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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

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👉पैंतालीसवां अपडेट
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तीन महीने बाद
ESS ऑफिस में विक्रम, पिनाक और वीर बैठे हुए हैं l महांती उस कैबिन के दीवार पर लगे मैप पर पिन लगा कर लाल घागा बांध कर तीनों के तरफ मुड़ता है l

महांती - सो वेलकम जेंटलमेन... मैं आज आपको गुड न्यूज दे रहा हूँ... ऑल मोस्ट ऑल ऑर्गनाइजेशन, कॉर्पोरेट हाउसेस, मीडिया हाउसेस, बैंक और इंस्टिट्यूशन्स सभी को... भुवनेश्वर में हम... सिक्युरिटी प्रोवाइड करेंगे.... वह भी हमारी सर्विलांस के साथ....
पिनाक - वाह... बहुत अच्छे... युवराज जी वाह... आपका प्लान वर्क आउट कर गया...
विक्रम - ह्म्म्म्म...
पिनाक - अब आगे क्या सोचा है....
विक्रम - (महांती के ओर देख कर) महांती... यह स्पाय बग क्या होता है...
महांती - ट्रांसमीटर, ट्रैकर... बहुत कुछ....
विक्रम - देखो महांती... हम से जो भी सर्विस लेंगे... उनके अपने टर्मस एंड कंडीशनस होंगे... पर... हमे अग्रीमेंट के बीयंड जाना है...
महांती - समझ गया... युवराज...
वीर - क्या समझ गया... हम भी इस टीम में हैं... तो हमे भी थोड़ा समझाओ...
महांती - राजकुमार जी... युवराज जी के कहने का मतलब... हम उनके पर्सनल और प्रोफेशनल सारे डिटेल्स तक पहुंचेंगे... उनकी प्राइवेट और सीक्रेट सब हमारे पास सीक्रेट नहीं रहेगा... और उसके आड़ में बहुत कुछ हासिल हो सकता है...
वीर - मतलब...
विक्रम - मतलब यह है कि.... हम राजधानी में प्रभाव बढ़ाने जा रहे हैं... हम कोई बिजनैस नहीं करेंगे पर... सभी बिजनैस में हम ही हम होंगे... या तो प्यार से... या फ़िर जोर से...
वीर - ओ... मतलब हर बिजनैस में... हमारा हिस्सा होगा... पर इसके लिए... हमे बहुत हाईटेक होना होगा... हमे सबमें बेस्ट होना होगा....
महांती - हाँ हमारे गार्ड्स के ट्रेनिंग... उसी लेवल का हो रहा है... यकीन मानिए राजकुमार जी... आने वाले समय में... ESS की इंटेलिजंस भी.. सीआईडी या सीबीआई जैसी होगी... उनसे उन्नीस तो बिल्कुल नहीं होगी...
पिनाक - वाव...
विक्रम - छोटे राजा जी... डेविल आर्मी तैयार हो गई है... अब हैल की डिवेलपमेंट कहाँ तक पहुँची है....
पिनाक - शायद और दो महीने बाद... हम गृह प्रवेश कर पाएंगे...
विक्रम - ठीक है... महांती... हमारी रेपुटेशन कुछ उस लेवल तक हो... की लोग थाने के वजाए हमारी ESS के पास आए... और वह सब हम खुद डील करेंगे...
महांती - जी युवराज... हो जाएगा... पर ख़र्चे भी उस लेवल का होगा... और एक बात... अब आप, राजकुमार और छोटे राजा जी सब ESS की सिक्युरिटी लेकर चलें....
वीर - यह सिक्युरिटी लेकर चलना आपको मुबारक... हम नहीं लेकर जाने वाले...
विक्रम - क्यूँ....
वीर - फ़िलहाल हम स्टूडेंट लाइफ एंजॉय करेंगे... जब हम भी डायरेक्ट पालिटिक्स में आयेंगे... तब देखेंगे... आप बस महांती को पैसे की बात देखिए...
पिनाक - आप उसकी फ़िक्र मत करो.... जो भी है... वन टाइम इंवेस्टमेंट है... वैसे महांती क्या करोगे...
महांती - एक बहुत बड़ा सर्वर रूम... कंट्रोल रूम...
पिनाक - ठीक है.. ठीक है... जो भी है... उस पर काम शुरू कर दो...
विक्रम - महांती... यह बग के इंस्टालेशन जितना सीक्रेट हो उतना अच्छा...
महांती - उसकी फ़िक्र आप ना करें... वह सब सीक्रेट ही रहेगा...

इतने में पिनाक का फोन बजने लगता है l पिनाक वह फोन देख कर थोड़ा मुस्कराता है और

पिनाक - मुझे पार्टी ऑफिस जाना होगा... बाकी यह प्रोजेक्ट और यह प्लान आपका है... युवराज.... इसलिए आगे क्या हो सकता है और आप क्या कर सकते हैं... यह आप सोचिए... हम चले अपने प्रोजेक्ट पर....
वीर - आपका प्रोजेक्ट...
पिनाक - हाँ... क्यूँ हमारा कोई प्रोजेक्ट नहीं हो सकता है क्या....
वीर - क्यूँ नहीं हो सकता... पर युवराज जी का रंगमहल प्रवेश हो चुका है...(विक्रम के ओर देखते हुए) तो क्या उनको पता है... आपके प्रोजेक्ट के बारे में...
विक्रम - नहीं... हमे नहीं पता...
पिनाक - हमारा यह प्रोजेक्ट पुरी तरह से पर्सनल है... इसलिए युवराज नहीं जानते....

इतना कह कर पिनाक वहाँ से निकल जाता है l पिनाक के जाने के बाद महांती भी विक्रम से इजाजत लेकर बाहर चला जाता है l

वीर - तो हम चलें...
विक्रम - राजकुमार जी... अब आप गाड़ी चलाना सीख लीजिए... आप पूरी तरह इंडिपेंडेंट बन जाइए....
वीर - ह्म्म्म्म... आइडिया अच्छा है... पर अब तो मेरे ड्राइवर आप हैं....
विक्रम - ठीक है राजकुमार.... आज के लिए ही हम आखिरी बार... गाड़ी ड्राइव करेंगे... क्यूंकि कल से... हम गार्ड्स से घिरे रहेंगे... पुरे वीवीआईपी के जैसे...
वीर - ठीक है...

_____×_____×_____×_____×_____×_____×

गाड़ी के पीछली सीट पर प्रतिभा और प्रत्युष बैठे हुए गप्पे लड़ा रहे हैं और रेअर मिरर से उन दोनों को मजे से गप्पे लड़ाता देख चिढ़ा हुआ तापस गाड़ी ड्राइविंग कर रहा है l

प्रतिभा - हाँ तो ड्राईवर... गाड़ी को जरा महानदी व्यू होटल ले चलो...
तापस - यह बहुत हो रहा है... तुम माँ बेटे... मुझसे ऐसे बदला ले रहे हो... जिस दिन मेरी बारी आएगी... उस दिन देखलेना...
प्रत्युष - देखो ड्राइवर... आप बस कार ड्राइव करो... हमारे पचड़े में मत पड़ो...
तापस - तो बिल भी आप दे देना मालिक...
प्रत्युष - कौनसा बिल...
तापस - क्यूँ... होटल में बिल क्या तुम्हारा बाप भरेगा...
प्रतिभा - कोई नहीं... बाप नहीं... इस बार बिल माँ भरेगी...
प्रत्युष - देखा... हो गया ना आपका पोपट...
तापस - हाँ बेटे... तुम माँ बेटे मिलकर मुझसे चीटिंग कर... पत्ते में हराया है... और ड्राइवर बना कर... लिए जा रहे हो...
प्रत्युष - हाँ तो... आपने ही तो चैलेंज लिया था... के हॉकी के चक्कर में... मैं इंटरेंशिप भी नहीं कर पाऊँगा...
प्रतिभा - और नहीं तो... इंटेरेंशिप तक पहुंच गए तो ड्राइवर बन कर ट्रीट दोगे बोले भी थे... बचने के लिए तास की पत्ते का गेम चैलेंज दिया... आपने लिया...
प्रत्युष - इसलिए ड्राइवर... ट्रीट तो माँ ही देगी... आप बस टीप दे देना...
तापस - हम्म... याद रखूँगा...
प्रतिभा - वाकई यह दिन याद रखने लायक है... सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस... मिस्टर तापस कुमार सेनापति... आज ड्राइवर बन गए हैं...

दोनों माँ बेटे हँसने लगते हैं l तापस गुस्से से उनको रेअर मिरर से देखता है और मुहँ बना कर गाड़ी चलाता है l उसी होटल के एक टेबल पर पिनाक और यश आमने सामने बैठे हुए हैं l

पिनाक - यश बाबु... आपका कहिए... कैसे याद किया... हमने आपके लिए एक मीटिंग को पेंडिंग कर आए हैं...
यश - वह क्या है कि... बड़े लोग कह गए हैं... उपकार किया तो भूल जाओ और.... पर काम किया हो तो कीमत जरूर माँगों...
पिनाक - हमारे भी बड़े कह गए हैं... उपकार लिया है तो याद रखो... काम लिया है तो कीमत अदा करो.... कहिए यश बाबु... क्या कीमत चाहिए....
यश - एक बहुत बड़ा ज़मीन... मैं पहली बार वाईआईसी फार्मास्यूटिकल्स को कटक से बाहर ले जाना चाहता हूँ... और इस बीच मैं कई बार... राजगड़ जा कर आ चुका हूँ... मुझे वह जगह बहुत पसंद आई है... चूंकि हस्पताल का एक एक्सटेंशन जा रहा है... लगे हाथ फैक्ट्री का भी कल्याण कर दीजिए...
पिनाक - हूँ... पर फैक्ट्री के लिए राजगड़ ही क्यूँ...
यश - फ़िक्र ना करें छोटे राजा जी... मैं जानता हूँ... राजगड़ में आपके सिवाय कोई इंडस्ट्री लगा नहीं सकता... मैं खुद वह बाउंड्री लाइन क्रॉस नहीं करना चाहता... आपका हमारा पार्टनरशिप रहेगा... ज़मीन आपकी इंफ्रास्ट्रक्चर और इंवेस्टमेंट मेरा...
पिनाक - हूँ... प्रपोजल तो अच्छा है... पर फ़िर भी... राजगड़ ही क्यूँ...
यश - वेरी सिम्पल... पूरे राजगड़ और यशपुर... और उसके आस पास जहां भी क्षेत्रपाल एंड कंपनी की फैक्ट्रियाँ हैं... वहाँ पर लेबर कॉस्ट... पूरी दुनिया में सबसे कम है... और सोने पे सुहागा... इस मैटर पर कोई हिम्मत नहीं करता... अपना सर खपाने के लिए...
पिनाक - हाँ... यह तो है...
यश - वैसे कैसा है... अपना हीरो... आपका युवराज...
पिनाक - बढ़िया है... वैसे... उसके लिए थैंक्स... हाँ....
यश - नो मेनशन... कितनी डोज दिया है उसे...
पिनाक - दो डोज... जिस दिन रंगमहल प्रवेश हुआ... उस दिन तो क्या कहने... और दो डोज दिए हैं.... अभी इन तीन महीने में... पर उसका आउट कॉम क्या हुआ... यह मालुम नहीं हुआ....
यश - तो और मत दीजिए... एक बात याद रखिए... छोटे राजा जी... जिसके मन में सेक्स डिजायर होता है... या बायोलॉजीकल नीड होता है... यह दवा उस डिजायर या नीड को बूस्ट करता है... अगर यह दवा खाने वाला... ख़ुद को... सेक्स से दूर रखेगा... तो उस दवा के साइड इफेक्ट से.... उसका फ्रस्ट्रेशन लेवल एलीवेट होगा... जो उसे धीरे धीरे आपके युवराज को.. वाइलेंट करेगा... करता ही जाएगा...
पिनाक - ओ... यश बेटा... क्या सेक्स तुम्हारा भी डिजायर है या नीड....
यश - सेक्स मेरा... ना तो नीड है... ना ही डिजायर... सेक्स तो मेरा पैशन है.....
पिनाक - हूँ... खैर उसकी नौबत नहीं आयेगी.... क्षेत्रपाल है... वह अपना डिजायर फुल फिल कर लेगा...
यश - तो सैंपैन मंगवाये...
पिनाक - हाँ मंगवा लो...

यश फोन पर सैंपैन ऑर्डर करता है l और कुछ देर बाद एक वेटर सैंपैन का बॉटल और दो ग्लास रख कर चला जाता है l

बाहर कुछ देर बाद सेनापति परिवार गाड़ी से पहुंचते हैं l प्रतिभा और प्रत्युष गाड़ी से उतर कर सीधे होटल में घुस जाते हैं l तापस गाड़ी पार्क करके अंदर पहुंचता है l तो देखता है एक बहुत बड़े ग्राउंड में कुछ कॉटेज नुमा शेड है तापस ग्यारह नंबर कॉटेज में पहुंचता है l वहाँ लगे टेबल पर पहले से ही प्रतिभा और प्रत्युष दोनों बैठे हुए हैं l तापस उनके पास आकर बैठ जाता है l

तापस - वाह बच्चू... होटल पहुंचते ही अपने बाप को भूल गए...
प्रत्युष - डेड आप मेरा इंसल्ट कर रहे हैं... मैं इतना नामाकूल, नामुराद, नालायक नहीं हूँ...
तापस - तो क्या हो...
प्रतिभा - होनेवाला एमबीबीएस डॉक्टर... प्रत्युष सेनापति...
प्रत्युष - थैंक्स माँ... देखा डैड... डोंट बी सैड...
तापस - (माँ बेटे की जुगलबंदी देख कर मुहँ बना कर चुप बैठता है) वेटर... (बुलाता है)
एक वेटर आकर - यस सर...
प्रत्युष - अरे वेटर... ऑर्डर मैं दूँगा...
वेटर - ठीक है सर... (मेन्यू कार्ड देता है)
प्रत्युष - अरे यह मेन्यू कार्ड हटाओ... मैं जो ऑर्डर करूँ वह लाओ... मेरे लिए... एक मटका बिरियानी और एक बैंबु मटन... माँ के लिए... दो बटर नान चिल्ली पनीर और कढ़ाई मशरूम... और डैड के लिए तीन तंदुर रोटी और एक डाल फ्राय... सिंपल... जाओ...
वेटर - सर स्टार्टर में कुछ...
प्रत्युष - ठीक है... हमारे लिए.. मसाला पापड़ और डैड के लिए ग्रीन सलाद... अब जाओ...

वेटर चला जाता है, वेटर के जाने के बाद प्रत्युष तापस की ओर देखता है, तापस प्रत्युष को ऐसे देख रहा है जैसे वह कच्चा चबा जाएगा l

प्रत्युष - (डरने की ऐक्टिंग करते हुए) क्य.. क्या हुआ डैड... आप मुझे ऐसे क्यूँ देख रहे हैं...
तापस - कमीने... तेरी और तेरी माँ की ऑर्डर देख और मेरी ऑर्डर देख... मैंने क्या बिगाड़ा तेरा... जो मुझे घास फुस खिलाएगा...
प्रत्युष - डैड... जब माँ को बिल पे करना है... तो ऑर्डर स्पेशल होना चाहिए कि नहीं...
तापस - यानी अगर मैं बिल पे करूँ... तो ऑर्डर बदल सकता है...
प्रत्युष - ना... वह अगली बार के लिए...

इतने में वेटर स्टार्टर लाकर टेबल पर सर्व कर देता है l वेटर के जाते ही

तापस - क्या बात है भाग्यवान.... हम बात बेटे में इतना तर्क हुआ... पर तुमने हिस्सा नहीं लिया...
प्रतिभा - हाँ वह... दोनों वहाँ पर जो बैठे हुए हैं... क्या हम उन्हें जानते हैं...
प्रत्युष - ( उस तरफ देखते हैं) हाँ माँ वह जो शूट बूट और फ्रेंच कट दाढ़ी के साथ बैठे हैं... वह हमारे निरोग हस्पताल के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं... पर उनके बगल में जो बैठे हैं... उन्हें नहीं जानता...
तापस - वह... पिनाक सिंह क्षेत्रपाल हैं...
प्रतिभा - तभी..... तभी मेरी नज़र बार बार उस तरफ जा रहा है...
प्रत्युष - एक मिनट... (इतना कह कर प्रत्युष उठ जाता है और यश के बैठे शेड तक जाता है, यश से ) गुड इवनींग सर...
यश - (हैरान हो कर) गुड इवनींग... आप कौन हो बरखुरदार... क्या मैं आपको जनता हूँ...
प्रत्युष - नो सर... पर मैं आपको जनता हूँ... सर मैं आप ही के कॉलेज में मेडिकल पढ़ रहा हूँ... इस साल इंटरैंनशीप में जा रहा हूँ...
यश - ओह... कंग्रैचुलेशन... एंड केरी ऑन...
प्रत्युष - थैंक्यू सर...
यश - यहाँ कैसे... माय बॉय...
प्रत्युष - वह सर माँ और डैड के साथ पार्टी करने आया था... आपको देखा तो रहा नहीं गया... इसलिए चला आया... क्यूँ की आप हम सबके... आइडल हैं... आइकॉन हैं... आप तक मीडिया वाले भी नहीं पहुंच पाते... पर आज मैं बहुत लकी हूँ... आपसे मेरी बात हो पा रही है...
यश - थैंक्यू.. थैंक्यू...
प्रत्युष - सर अगर आप बुरा ना माने तो..
यश - क्या...
प्रत्युष - सर यहीँ... मेरे मोम डैड हैं... ईफ यु डोंट माइंड...
यश - ओके...
प्रत्युष - (हाथ से इशारा करते और आवाज देकर) माँ... डैड... प्लीज यहाँ आइए... (प्रतिभा और तापस उस शेड में पहुंचते हैं) सर... यह मेरी माँ हैं... एक लयर और यह मेरे डैड... सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस....
यश - (वहीँ बैठे बैठे) हैलो... हैलो...
दोनों - हैलो...
यश - कैन यु जॉइन वीथ अस...
तापस - नो सर... यु प्लीज कैरी ऑन... हमारी ऑर्डर हो चुका है...
प्रतिभा - हाँ आप बड़े लोग... कोई महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा कर रहे होंगे... इसलिए हमे इजाज़त दीजिए... थैंक्यू..
यश - ओके... नाइस मीटिंग यु...

तीनों अपने शेड में लौट आते हैं l तापस और प्रतिभा दोनों प्रत्युष पर भड़कते हैं l

प्रतिभा - क्या जरूरत थी... उनके पास जाने की...
प्रत्युष - क्यूँ क्या हुआ माँ...
तापस - देखो प्रत्युष... उनको हमारा वहाँ जाना पसंद नहीं आया...
प्रत्युष - ओह डैड... यह आप कैसे कह सकते हैं...
प्रतिभा - तेरे डैड ठीक कह रहे हैं... वह जो तेरे बॉस के साथ बैठा हुआ है... पिनाक सिंह.... उसने एक बार धमकाया था मुझे... और तुने देखा नहीं उन्होंने हमें फौरन बाय भी कहा... ना दिलसे स्वागत किया ना दिलसे बाय कहा....
प्रत्युष - व्हाट... ओ
प्रतिभा - यह व्हाट किस लिए... ओर ओ... किसलिए...
प्रत्युष - पिनाक सिंह ने आपको धमकी दी.... इसके लिए व्हाट और हमारे एमडी ने ना दिलसे स्वागत किया और ना बाय दिलसे... इसके लिए ओ...
तापस - ओह स्टॉप ईट... हम क्यूँ अपना शाम खराब कर रहे हैं...
प्रतिभा - ठीक है... नो मोर डिस्कशन

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अगले दिन
सेंट्रल जैल
विश्व सुबह तड़के स्पेशल बैरक पहुंचता है lइस बार प्रणब उसका स्वागत करता है l

प्रणब - और विश्व... कैसा गया तुम्हारा एक्जाम...
विश्व - जी बहुत अच्छा गया... वैसे आप सबको थैंक्स... यह दस दिन मुझे छुट्टी देने के लिए...
चित्त - ऑए... थैंक्स या धन्यबाद जो भी करना है... डैनी भाई से बोल... (उधर से चित्त आते हुए) उनके अदालत में मुजरिम तु है...
विश्व - जी वह तो मैं कह ही दूँगा....
प्रणब - चल तु अपने रूटीन में लग जा... पानी निकाल और पेड़ पौधों को पेट भर पीला... चल
विश्व - ठीक है भाई...

इतना कह कर विश्व हांडी को कुए में डाल कर, अपनी दोनों हाथों के तीन तीन उंगलियों के सहारे बाकी दिनों के तुलना में जल्दी जल्दी पानी निकालने लगा और पौधों में भाग भाग कर पानी डालने लगा l प्रणब और चित्त दोनों उसकी आज की फुर्ती देख कर हैरान रह जाते हैं l पौधों में पानी डालने के बाद कुए से सटे सीमेंट की टंकी भी पानी से भर कर विश्व उन दोनों के सामने खड़ा हो जाता है l

विश्व - भाई अब क्या...
प्रणब - हूँ... ओ हाँ... (तीन महीनों में पहली बार विश्व की स्फूर्ति देख कर हैरान हुआ है) वह.. एक मिनट...

प्रणब कुछ दूर जा कर चित्त से बात करता है फ़िर अंदर जा कर बाल्टी लाता है l वह उस बाल्टी को टंकी में उड़ेल देता है l बाल्टी से दो मछलियाँ गिर कर टंकी में गिरते हैं l

प्रणब - चल यह मछली पकड़...

विश्व उस टंकी के पास आकर खड़ा होता है l उसे पानी में दो मछली दिखते हैं l विश्व टंकी में उतरता है l पानी उसके घुटनों के बराबर है l विश्व पानी के टंकी में निश्चल खड़ा रहता है l पांच मिनट बाद मछलीयाँ उसके पैर के पास पहुंचते हैं l अचानक विश्व बारी बारी से पहले दाहिने हाथ फिर बाएं हाथ से दोनों मछलीयाँ पलक झपकते ही पकड़ कर टंकी से बाहर फेंक देता है l अब समीर भी प्रणब और चित्त के पास पहुंच जाता है l विश्व की मछली पकड़ना देख तीनों हैरान हो जाते हैं क्यूंकि विश्व इस बार मछलियों को पकड़ने के लिए वही तीन उँगलियों का इस्तमाल किया था जिन उंगलियों को पानी निकालने के लिए इस्तेमाल किया करता है l विश्व टंकी से निकल कर तीनों के सामने खड़ा हो जाता है l तीनों उसे मुहँ फाड़े देखे जा रहे हैं l

विश्व - हाँ भाई... अब क्या करना है...
समीर - वैसे डे अल्टरनेट में... या तो मछली पकड़ना है या फिर मुर्गी... पर तेरी स्पीड देख कर आज... मुर्गी पकडने का टास्क भी करले....
विश्व - ठीक है...

तीनों विश्व को लेकर सात नंबर रुम के पीछे पहुंचते हैं l उस रूम के पीछे बीस बाय बीस के एक वर्ग क्षेत्र को तार की जाली से घेरा गया है l जाली वाली वर्ग के भीतर एक मुर्गा चर रहा है l विश्व उस वर्ग में घुसता है l विश्व के घुसते ही मुर्गा सतर्क हो जाता है l विश्व अपनी दोनों बाहें फैला कर मुर्गे को एक कोने तक पहुंचा देता है l कोने में पहुंच कर जब मुर्गे को घिर जाने का एहसास होता है l मुर्गा विश्व को दाएं बाएं छका कर विश्व के सर के ऊपर जंप लगा देता है l विश्व भी उतनी ही फुर्ती से पलट कर मुड़ते हुए छलांग लगाता है l मुर्गे के दोनों पैर विश्व के उंगलियों में फंस जाती है l सिर्फ कुछ ही मिनट में मुर्गा विश्व के कब्जे में थी l इस बार भी विश्व को कोई परेशानी नहीं हुई l मुर्गा हाथ में आने के बाद विश्व इन तीनों के सामने आ कर खड़ा हो जाता है lवह तीनों हक्के बक्के हो कर विश्व को देखते हैं l दस दिन ही तो हुए हैं l डैनी ने विश्व को एक्जाम के लिए छुट्टी दी थी, और यह दस दिन विश्व ने सिर्फ़ पढ़ाई ही किया है l पर आज दस दिन बाद एक अलग विश्व को देख रहे हैं l

समीर - जा पांच नंबर रूम में जा... हम डैनी भाई से पुछ कर आते हैं...

विश्व पांच नंबर रूम की ओर चल देता है l वहाँ पहुँच कर देखता है उस कमरे में कोई नहीं है l वह उस कमरे में लगे सभी इंस्ट्रूमेंट्स को उत्सुकता से देखता है l उन पर सिर्फ डैनी को ही कसरत करते देखा है उसने l ऐसे रूम में घुमते घुमते विंग-चुंग के सामने आ कर खड़ा होता है l वह डैनी को विंग-चुंग पर हाथ आजमाते देखा है l विश्व इधर उधर देखता है l उसे कोई नहीं दिखता है l अपनी मन की उत्सुकता को दबा नहीं पाता l इतने दिनों से डैनी जिस तरह से विंग-चुंग पर हाथ चला रहा था उसे याद करते हुए विश्व भी हाथ चलाने लगता है l पहले याद करते करते धीरे धीरे उसका हाथ चलने लगता है l फिर उसके हाथ ज़ोर ज़ोर से चलने लगता है, बिल्कुल वैसे ही जैसे डैनी के हाथ चल रहा था l विश्व के हाथ तेजी से चलने लगते हैं बिल्कुल किसी प्रोफेशनल की तरह l क़रीब आधे घंटे बाद उसे लगता है कमरे में वह अकेला नहीं है l विश्व विंग-चुंग से हाथ हटा लेता है और पीछे मुड़ कर देखता है l डैनी अपने पंटरों के साथ खड़ा है और विश्व को सब देख रहे हैं l डैनी को छोड़ बाकी सब विश्व को आँखे फाड़ देख रहे हैं l

डैनी - वाह लौंडे... आज तो तुने कमाल ही करदिया.... आज तुने सारे टास्क वक्त से पहले खतम कर दिया... पर... तुझे मेरे इंस्ट्रूमेंट्स को हाथ लगाना नहीं चाहिए था....
विश्व - वह... स.. सॉरी डैनी भाई.... सॉरी... मुझे माफ कर दीजिए...
डैनी - माफ़ी... मिल सकती है... बशर्ते मैं तुझे मारूँगा... पर तुझे मेरी मार लगनी नहीं चाहिए....
विश्व - जी.... जी (हैरानी से)...
डैनी - हाँ जी.... चल तैयार हो जा...

विश्व जाना नहीं चाहता पर वसंत और हरीश उसके पास पहुंचते हैं और धक्का दे कर डैनी के पास भेज देते हैं l पांचो ऐसे घेरे खड़े रहते हैं कहीं विश्व भाग ना जाए l डैनी एक पंच मारता है, विश्व के हाथ अपने अपने उस पंच को रोक देता है l फ़िर डैनी के पंचेस की स्पीड बढ़ती जाती है विश्व के रीफ्लेक्सेस उतनी ही तेजी से बढ़ जाती है l अपने रीफ्लेक्सेस देख खुद विश्व भी हैरान हो जाता है, पर कुछ देर बाद डैनी अपनी वार बदलता है l जिस हाथ का पंच विश्व ब्लॉक करता है उसी हाथ को डैनी मोड़ कर कोहनी से मारता है l इस बार विश्व को लग जाती है l अब कि बार विश्व को डैनी छका कर घुम कर कोहनी से मारता है l विश्व मुहँ के बल गिर जाता है l विश्व फिर संभल कर बैठ जाता है और डैनी को देखता है l डैनी जीम टेबल पर बैठ कर विश्व को देख रहा है l

डैनी - वाह लौंडे वाह... बहुत जल्द पकड़ लिया...

विश्व अपनी जगह से उठता है और सीधे डैनी के सामने खड़ा हो जाता है l फ़िर झुक कर डैनी के पैरों पर गिर जाता है l

डैनी - अरे यह... यह क्या कर रहा है...
विश्व - आप... आप मुझे सीखा रहे थे... लड़ना... मुझे समझ में नहीं आया... पर अब समझ में आ गया है.... पर जो मैंने माँगा नहीं... वह आप मुझे क्यूँ दे रहे हैं....
डैनी - वह इसलिए के तुने..... अपनी भावनाओं के चलते मुझे वहाँ ला खड़ा कर दिया... जिसकी मैं... मुझ जैसा इंसान लायक ही नहीं है... (विश्व को खड़ा करता है)
विश्व - आप क्या कह रहे हैं... मैं कुछ समझा नहीं...
डैनी - तुने अपनी दीदी से कहा है ना... के तु मुझे उतना ही मान देता है... जितना जयंत सर को देता है...
विश्व - जी...
डैनी - तो मुझे... जयंत सर को फॉलो करना पड़ा....
विश्व - (हैरान होकर) फॉलो करना पड़ा... म.. मतलब...
डैनी - तुने मांगा नहीं फिरभी.... उन्होंने अपनी खुद की खुन पसीने की कमाई तुझे दे दी... है ना...
विश्व - जी...
डैनी - तो मैं भी तुझे अपनी खुन पसीने की कमाई दे रहा हूँ... भले ही तुने माँगा नहीं... पर मैं जानता हूँ... तेरी लड़ाई में... यह ज़रूरत पड़ेगी....

विश्व कुछ नहीं कह पाता है उसके आंखों में कृतज्ञता दो बूंद आँसू गिर जाते हैं l

डैनी - विश्व तुम्हारी सबसे बड़ी कमजोरी तुम्हारा जज्बाती होना है.... तुम्हें अपने ज़ज्बात पर कोई काबु नहीं है... खुशी हो या ग़म... तुम जफ्त नहीं कर पाते... जाहिर कर देते हो... इसलिए पहले अपने ज़ज्बात पर काबु पाओ.... (विश्व अपनी आँखे साफ करता है) विश्व तुम जो सीखने जा रहे हो... उसे मार्शल आर्ट्स कहते हैं... यानी युद्ध कला... उसके साथ साथ आत्म नियंत्रण और अन्य विषयों में भी तुम को सिखाया जाएगा... और तुम सिखोगे भी... (विश्व अब डैनी को हैरान हो कर देखता है) इन तीन महीनों में जो सीखा और लगातार जिसमें काम किया... उससे तुम्हारा स्टेमिना बढ़ा और अटैक पर ब्लॉक करना नैचुरली एडप्ट कर लिया... और सबसे खास बात... तुमने आज मछली और मुर्गे को पकड़ने के लिए सही तरीका चुना.... यानी तुम्हारे अंदर का शिकारी जाग रहा है.... अब आओ तुम्हें तुम्हारे प्रोफेसरों से मिलवाता हूँ...
इनसे मिलो... समीर मल्लिक... इसके पास एक जबरदस्त क्वालिटी है... अपनी पारखी नजर और बातों से... सामने वाले की प्रोफेशन और कैरेक्टर स्कैन कर सकता है....
अब इनसे मिलो... हरीश बाडत्या... इनके पास भी ग़ज़ब का हुनर है... सच झूठ बोल कर सामने वाले के अंदर की बातों उगलवा सकते हैं.... अगर मान लो किसी इंटरव्यू को जाए... तो बिना तकलीफ के सिलेक्ट हो जाए... इतना इम्प्रेस कर सकता है... इसको टॉकींग स्किल कहते हैं...
औऱ यह हैं प्रणब... यह तुम्हें लठबाजी से लेकर छुरी चाकू तक चलाना सीखा देंगे... सिवाय बंदूक के...
और यह हैं वसंत... इनके ख़ासियत यह है कि ऐसा कोई जेब नहीं जिसको इसने काटा नहीं...
विश्व - जेब काटना...
डैनी - तुझे लगता है... जेब काटना जरूरी नहीं है... पर यह हाथ की सफ़ाई है... पता नहीं कब काम आ जाए...
और अंत में यह... इनसे मिलो चित्त रंजन... इसे अक्सर तुमने खाना सर्व करते हुए देखा है... (विश्व अपना सर हिलाता है) आज से... बल्कि अभी से तुम्हारा डाएट चार्ट इनके हवाले...
सबसे परिचय करवाने के बाद डैनी जीम टेबल पर बैठ जाता है l और विश्व से पूछता है

डैनी - तो विश्व... क्या तुम सीखना चाहोगे...
विश्व - जी...
डैनी - ठीक है चित्त.. तुम्हारे लिए रूटीन बना चुका है... (चित्त से) बताओ इसे....
चित्त - देखो विश्व... दिन रात मिलाकर चौबीस घंटे हुए... तुम आठ घंटे सोने और बाथरुम के लिए इस्तेमाल करोगे... आठ घंटे मे... सुबह चार घंटे और शाम को चार घंटे सिर्फ़ ट्रेनिंग होगी... बाकी के आठ घंटे में तुम्हारा खाना पीना पढ़ना और दूसरे कैदियों से मिलना होगा...
डैनी - समझ गया... (विश्व अपना सर हिलाकर हाँ कहता है) विश्व एक बात जान लो... तुम शायद सीखते सीखते थक जाओगे... पर यह लोग तुम्हें सीखाते सीखाते नहीं थकेंगे... (विश्व फिरसे अपना सर हिलाता है) तो.... लग जाओ ट्रेनिंग पर....
अब विश्व बनेगा विश्वा भाई। क्या होटल में पिनाक और यश से मुलाकात ही प्रत्युष की मौत का कारण बनने वाली है। डैनी ने अपना उत्तराधिकारी चुन भी लिया है और उसकी ट्रेनिंग भी चालू कर दी है। विक्रम एक बहुत ही कंफ्यूज इंसान है और शायद यही कारण है कि शुभ्रा का प्यार अब विक्रम के लिए खत्म हो गया है। बेहतरीन अपडेट।
 

Kala Nag

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अब विश्व बनेगा विश्वा भाई। क्या होटल में पिनाक और यश से मुलाकात ही प्रत्युष की मौत का कारण बनने वाली है। डैनी ने अपना उत्तराधिकारी चुन भी लिया है और उसकी ट्रेनिंग भी चालू कर दी है। विक्रम एक बहुत ही कंफ्यूज इंसान है और शायद यही कारण है कि शुभ्रा का प्यार अब विक्रम के लिए खत्म हो गया है। बेहतरीन अपडेट।
काफ़ी हद तक सही अनुमान लगाया है आपने
 

ANUJ KUMAR

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👉पैंतीसवां अपडेट
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खान - क्या... जयंत सर चल बसे....
तापस - हाँ....

कुछ देर के लिए बैठक में शांति छा जाती है l (मैराथन फ्लैशबैक से स्वल्प विराम, अब कुछ अपडेट वर्तमान और फ्लैशबैक के मिश्रण में आगे बढ़ेगी)

खान - वाकई... विश्व के साथ.... बहुत ही... बुरा हुआ.... बदनसीब निकला वह... किनारे पर पहुंच कर ही.... कश्ती डूब गई....
तापस - हाँ... वह तो है.... अखिर जयंत सर ने कहा था.... इसी दिन के लिए तैयारी किया था.... भैरव सिंह क्षेत्रपाल का अहंकार दाव पर लगी थी... अपने घमंड के चलते.... वह कटघरे में आना नहीं चाहता था..... पर जयंत सर के जिद.... राजा साहब को ज़द पहुंचा ही दिया.... उस कटघरे में क्षेत्रपाल को आना ही पड़ा... जो वह सिर्फ़.... आम लोगों के लिए ही सोचता था..... अगर उस दिन.... जयंत सर की साँसों ने... उनसे बेवफ़ाई ना कि होती.... तो शायद कहानी कुछ और होती..... (कहते कहते तापस का चेहरा गम्भीर हो गया) उस वक्त... कोर्ट रूम में.... एक ऐसी शांति छाई हुई थी.... के डर लग रहा था... वहाँ मौजूद लोगों में.... भाव भी अलग ही था.... कुछ लोग ऐसे थे..... जो जयंत सर के मौत पर... अंदर ही अंदर बहुत खुश हो रहे थे.... उनकी खुशी... लाख कोशिशों के बावजूद... छुपाये नहीं छुप रही थी..... भैरव सिंह एंड कंपनी... कुछ लोग थे.... यानी के मैं... मेरा स्टाफ... मेरी पत्नी और जजों के साथ साथ कोर्ट के सारे स्टाफ.... हम गहरे सदमे में थे... हमे अंदर से बहुत पीड़ा और दुख का अनुभव हो रहा था.... और एक तरफ... वह दो भाई और बहन थे.... जो अपनी आँखे फाड़े उस इंसान को देख रहे थे.... जिसने उनके भीतर उम्मीद नहीं... विश्वास को जगाया था.... वह अंदर ही अंदर खुन के आंसू... रो रहे थे.... पर कोशिश उनकी यह थी.... कोई जान ना ले....
खान - ह्म्म्म्म.... मतलब सब के सब शॉक में थे... पर सबकी अपनी अपनी अलग वजह थी....
तापस - हाँ...
खान - उसके बाद क्या हुआ....
तापस - कुछ नहीं... जो स्टैंडर्ड ऑफ प्रोसिजर था... वही हुआ उस दिन... मेडिकल टीम पहुंची.... जयंत सर की बॉडी को... मेडिकल ले जाया गया..... शाम तक उनकी पोस्ट मोर्टम रिपोर्ट भी आ गया था....
खान - क्या था.... उस रिपोर्ट में...
तापस - सिंपल.... कार्डीयाक अरेस्ट... पहले भी दो बार आ चुका था.... उस दिन वह आखिरी बार आया.....
खान - ह्म्म्म्म.... मतलब... उन ताक़तों ने... न्याय तंत्र का गला घोंटने के लिए.... भीड़ तंत्र का उपयोग किया....
तापस - हाँ उपयोग किया था...... लोगों का... क्यूँ के उन्हें... इसके सिवा कुछ आता ही नहीं था.... अखिर पीढ़ियों का... एक्सपेरियंस था.... उनके पास.... जनता को... लूटो... जनता के जरिए... और जनता को मरवाओ... जनता के जरिए....
खान - फ़िर क्या हुआ.... मेरे हिसाब से.... विश्व के केस में.... नाइंटी पर्सेन्ट केस सॉल्व हो चुका था.... फ़िर भी उसे सजा हो गई....
तापस - हमारे कानून की जिस तरह की व्यवस्था या प्रणाली है.... उसमें जितनी बारीकियां है.... उतनी ही पेचीदगी भी है.... विश्व इसी पेचीदगियों में फंस गया...

फ्लैशबैक में
मंगल वार
जगन्नाथ मंदिर में बाइस पावच्छ के पास के दीवार के पास बैठी वैदेही भगवान जगन्नाथ को घूरे जा रही है l आंखों में आंसू नहीं है पर चेहरे पर नाराजगी और गुस्सा झलक रही है l उसके पास मंदिर का मुख्य पुजारी पंडा आता है l

पंडा - अच्छा हुआ... तुम यहीँ मिल गई.... (वैदेही पंडा को देखती है, पंडा उसके पास बैठ जाता है) बेटी.... वह पिछले तीन सालों से... खुद को हर केस से दूर रख रहा था.... पर विश्व का केस उसने लिया.... कुछ तो वजह होगी.... (वैदेही पंडा को देख रही पर उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं है) मानता हूँ.... तुम्हें.... (जगन्नाथ को दिखा कर) उससे शिकायत है... पर इतना याद रखो.... वह राह दिखाते हैं... बताते हैं... ताकि उसे मानने वाला.... उस राह पर चले... वरना.... कुरुक्षेत्र का युद्ध अट्ठारह दिन तक ना चलता.... (वैदेही फ़िर भी,चेहरे पर बिना कोई भाव लाए पंडा को सुन रही है) अब मैं... क्या कहूँ.... जिस दिन तुमने मुझसे.... निर्माल्य लिया था.... उसी दिन जयंत मेरे पास आया था.... तुम्हारे लिए एक चिट्ठी छोड़ गया था.... और मुझसे कहा था... अगर केस खतम होने तक अगर उसे कुछ हो जाए... तो तुम्हें यह देने के लिए कहा था.... (कह कर एक कवर देता है, वैदेही उससे वह कवर ले लेती है और फाड़ कर चिट्ठी निकलने वाली होती है, पंडा उसे रोक देता है) तुम्हारा शुभ चिंतक था वह... उसके दिए भावनात्मक चिट्ठी को.... जाओ कमरे में पढ़ो.... उसके भावनाओं का सम्मान करो....

वैदेही अपना सर हिलती है और धर्मशाला में अपने कमरे की ओर चली जाती है l

उधर जैल की कोठरी में दीवार पर टेक् लगाए विश्व बैठा हुआ है l दोनों घुटने के ऊपर अपनी कोहनी का भार रख कर चेहरा झुकाए ग़मगीन बैठा हुआ है l सेल की दरवाजा खुलने की आवाज़ सुनाई देता है l वह उस तरफ ध्यान नहीं देता है l पर उसे महसूस होता है कोई आकार उसके पास खड़ा हुआ है l विश्व अपनी नजरें उठाता है l उसके सामने तापस खड़ा था l विश्व फ़िर अपना चेहरा झुका लेता है l तापस भी विश्व के पास बैठ जाता है l

तापस - विश्व.... रविवार को तुमसे मिलने से पहले.... जयंत सर मुझसे मिले... और कुछ देर मेरे साथ बात भी की थी.... (विश्व कुछ नहीं कहता, वैसे ही अपना चेहरा झुकाए बैठा रहता है) उनको शायद आभास हो गया था.... इसलिए वह तुम्हारे लिए... (एक कवर निकाल कर) यह... शायद कोई चिट्ठी... तुम्हारे लिए परसों.... मेरे पास छोड़ गए थे....

विश्व तापस को हैरान हो कर देखता है l तापस भी विश्व को वह कवर दे देता है और वहाँ से उठ कर बाहर चला जाता है l

इधर विश्व कवर फाड़ कर एक चिट्ठी निकालता है और उधर धर्मशाला के अपने कमरे में वैदेही चिट्ठी निकाल कर पढ़ने लगती है,

मेरे प्यारे वैदेही और विश्व
अगर यह चिट्ठी तुम लोग पढ़ रहे हो, तो मैं अब इस दुनिया में नहीं हूँ l मतलब केस की सुनवाई पूरी नहीं हो पाई है l मुझे तुम लोगों को यूँ आधे रास्ते पर छोड़ कर जाने के लिए माफ कर देना l इतना तो हक़ रखता हूँ, है ना l

खैर विश्व यह केस मेरी पेशा का आखिरी केस था l जिसके लिए मैंने अपनी जान लगा दी पर मंज़िल तक सफ़र पूरा ना हो पाया l
सच कहता हूँ l यह केस लेने की मेरी कोई ख्वाहिश नहीं थी l वैसे मज़बूरी भी नहीं थी l पर मैंने यह केस ली l क्यूँ, यही तुम लोगों से बात करना चाहता था l पहले लगता था कि केस खतम हो जाए तो फ़िर इत्मीनान से कहूँगा l पर मुझे महसूस हो रहा है कि शायद मेरी सांसे मेरे साथ बेवफ़ाई करने वाली हैं l इसलिए आज सब कुछ जो दिल में था, तुम तक पहुंचा रहा हूँ l हाँ यह मैं तुम लोगों पर छोड़ रहा हूँ यह चिट्ठी पढ़ने के बाद तुम दोनों कैसे रिएक्ट करोगे l
चलो मैं आज तुम दोनों को अपने बारे में कुछ बताता हूँ l मैं इस साल रिटायर होने वाला था यानी अपनी जीवन के उनसठ वसंत देखने के बाद साठ पर रन आउट हो गया l अब इन उनसठ वसंत में जब से होश सम्भाला तब से इस सहर और सहर के लोगों को बढ़ते, फूलते और बदलते देखा है l यह जो घर पर मैं रहता था, वह हमारी पुस्तैनी घर था l करीब ढाई पीढ़ियों की साक्षी थी l मेरे पिता दादाजी के इकलौते लड़के थे इसलिए विरासत में वह घर मिला था l पर हम तीन भाई थे l और तीनों में, मैं बड़ा था l मेरे पिता तब सूबेदार हुआ करते थे l उन्होंने ज्यादा कुछ नहीं किया l मेरी माँ से शादी की और हम सबको दुनिया में लाकर खुद दुनिया से चले गए l खैर मेरी माँ भी तब थोड़ी पड़ी लिखी थी इसलिए इसलिए उन्हें म्युनिसिपाल्टी ऑफिस में क्लर्क की नौकरी करने लगी और हम तीनों पको पाल पोश कर बड़ा करने लगी l ऐसे में मैंने कॉलेज खतम की l उसके बाद जिंदगी से जुझना शुरू हो गया l क्यूंकि घर की आमदनी कम तो थी उस पर माँ को बीमारी ने घेर लिया l तब मैंने भी किसी किसी वकीलों के पास काम करने लगा ताकि घर में आमदनी रुके ना l दिन भर जी तोड़ कर मेहनत करता था और नाइट कॉलेज में लॉ की पढ़ाई करता था l ऐसे में मेरी शादी भी तय हो गई l डिग्री होते होते माँ भी इस दुनिया से चल बसी l इससे पहले मैं अपनी दुनिया बसा पाता एक सामाजिक समस्या सामने आ खड़ी हो गई l मुझसे मेरे होने वाले ससुर ने एक प्रस्ताव रखा के शादी के बाद मुझे अपनी भाईयों को उसी घर में छोड़ कर उनके साथ रहना होगा l मुझे तब गुस्सा आया और मैंने गुस्से में काठजोडी नदी के किनारे शाम तक बैठा रहा l फ़िर शाम ढलते ही घर लौट आया l मैंने देखा घर के बरामदे में मेरे दो भाई मेरा इंतजार कर रहे थे l माँ के बाद उस घर की आँगन में माँ की गोद की तरह मेहसूस होती थी l दुनिया से जुझने के बाद जब आँगन में थोड़ी देर सुस्ता लेने से माँ की गोद में सर रखने जैसा आराम मिल जाता था l मैंने उस दिन एक फैसला किया और हमेशा के लिए अपने भाईयों के लिए उनसे सारे संबंध तोड़ दिया l मैंने शादी कर घर बसाने के वजाए अपने भाईयों को चुना l उनके लिए मैंने अपने आपको जीवन की आग में झोंक दिया l मुझे आगे चलकर पब्लिक प्रोसिक्यूटर की जॉब भी मिल गई l
मुझे और मेरे भाईयों के आगे की पढ़ाई और जीवन के लिए इस जॉब ने बहुत सपोर्ट किया l धीरे धीरे मेरे भाई भी नौकरी पर लग गए l एक एक करके उनकी घर भी बसा दिआ l सब अपने अपने जिंदगी में खुश रहने लगे l भाइयों की जब ट्रांसफर हुई वे कटक छोड़ कर अपनी अपनी कर्मक्षेत्र में व्यस्त रहने लगे l हर वर्ष दशहरा को हमारा परिवार कटक में इकट्ठा होता था l ऐसा मैंने ही नियम बनाया था और वह भी इस नियम को सम्मान देते हुए, वे सब कहीं भी रहे, पर दशहरा मैं कटक आते ही थे, और मैं अपनी साल भर की कमाई को साल के इसी महीने के खर्च करने लिए बचाके रखता था l जब मेरे परिवार मेरे पास होता था तो जम कर खर्च किया करता था l फ़िर एक दशहरा ऐसा आया के वह लोग नहीं आए l दशहरा के छुट्टियों में उनके इंतजार में उस घर आँगन में ही बीत गई l जब वह लोग नहीं आए तो मैं कुछ दिनों की छुट्टी लेकर उनके पास जाने के लिए निकला l पर जब वहाँ पहुंचा तो मुझे खबर मिली के वह लोग कटक गए हुए हैं l मैं खुशी के मारे मेरे पहुंचने तक उन्हें कटक में रुके रहने के लिए उन तक ख़बर भिजवाई l मैं
खुशी के मारे जब घर पहुंचा तो देखा वहाँ मेरा इंतजार हो रहा है l दोनों के दोनों वहीँ बैठे मेरा इंतजार कर रहे थे, जैसे बचपन में किया था l मेरी खुशी दुगनी हो गई पर ज़्यादा देर तक नहीं टिकी l मेरे दोनों भाई उस दिन अपने हिस्से का बटवारा मांग रहे थे l उस घर को बेचने की बात कर रहे थे l वह घर जो हमारी अपनी थी l जो हमे आपस में जोड़ती थी l जिसकी आँगन में अपनी माँ के गोद को मेहसूस किया करता था l अब वह लोग उसी घर को बेच कर अलग हो जाना चाहते थे l वह दोनों जिनको मैंने अपना घर बसाने के वजाए अपना दुनिया बनाया था आज वह लोग अपनी दुनिया के लिए वह इकलौती चीज़ को बेच देना चाहते थे जिसने हमे अबतक बांधे रखा था l चलो बेच भी देता तो, मैं उनके दुनिया के लिए एक गैर जरूरी बन चुका था l मैं कहाँ रहूँगा किसके पास जाऊँगा इसकी उन्हें कोई आवश्यकता ही नहीं थी l मुझे यह बात बहुत चुभ गई l दिल यह दर्द झेल नहीं पाया l मेरी दर्द के मारे आँखे बंद हो गई l जब आँखे खुली तो खुदको हस्पताल में पाया l डॉक्टर ने कहा कि मेरे दोनों भाई मुझे यहाँ दाखिल कर गए हैं l मैं इंतजार करता रहा के कोई तो आएगा l पर नहीं, कोई नहीं आया l क्यूंकि वह लोग मुझे हस्पताल में छोड़ कर चले गए थे, या फिर यूँ कहो कि हस्पताल में छोड़ कर भाग गए थे l अपने भाई को बचाने के लिए कहीं उनकी जेब हल्का ना हो जाए l जितने भी दिन रहा, मुझसे मिलने मेरे कॉलीग्स और दोस्त ही आए l पर वह लोग नहीं आए जिनको मैंने अपनी दुनिया मान कर घर नहीं बसाया था l उसके बाद कई दशहरा आई पर कोई नहीं आया l फिर तीन साल पहले वे लोग आए थे पर वह दशहरा नहीं था l वह फ़िर से घर बेचने की बात करने लगे l मैंने इसबार सीधे कह दिया मेरे जीते जी नहीं l मेरे मरने के बाद ही हो सकता है l उस दिन वह लोग मुझे जल्दी मर जाने की दुआ दे कर चले गए l इस बार भी दिल का दौरा पड़ा l पर सम्भाल लिया था मैंने खुदको l उसके बाद काम करना कम करदिया और धीरे धीरे बंद भी कर दिया l
एक दिन घर में यूहीं बैठे बैठे सोचने लगा अगर इस घर को बेच दिया होता तो क्या बुरा होता l मैं घर से बाहर जाता हूँ और घर लौट आता हूँ l पर घर काटने को दौड़ता था जब दशहरा आता था l जिनके लिए घर को लौट कर आता था l उन लोगों को अब मेरी कोई जरूरत ही नहीं थी l ऐसे में एक दिन निश्चय किया l सब कुछ छोड़ कर कहीं चला जाऊं l क्यूँ के मेरे भाइयों ने मुझे लावारिश कर दिया था l अगर मेरी मौत भी हो जाए तो वह लोग शायद नहीं आयेंगे l मेरी लाश एक लावारिश लाश बन कर रह जाएगी l इसलिए सब छोड़ कर मैं कहीं ऐसी जगह चला जाऊँ जहां एक लावारिश लाश को पहचानने वाला भी कोई ना हो l यही सोच कर एक दिन घर में ताला लगा कर कटक छोड़ने के लिए निकल पड़ा l जब गेट के पास पहुंचा तो एक बार उस घर के तरफ मुड़ कर देखा जिसे मैं छोड़ कर जा रहा था l आखिर मेरी माँ के बाद यही तो आँगन था जब दुनिया से जुझ कर यहाँ थक कर लौट आता था l अब इस घर को किसीके लिए लौट आऊँ, मेरा ऐसा कोई था ही नहीं l एक आखिरी बार अपने घर को देख कर जा रहा था कि अचानक मेरी नजर मेरे मैल बॉक्स पर पड़ी l एक चिट्ठी थी l मन मचल गया बहुत दिनों बाद कोई चिट्ठी दिखी थी शायद मेरे किसी अपने कि l नहीं मैं गुस्सा था उनसे, इसीलिये बिना मुड़े बादामबाड़ी बस स्टैंड चला गया l पर बस चढ़ नहीं पाया l कौन है, जिसको मेरी जरूरत पड़ गई यही सोच कर मैं घर के आँगन में वापस आया l मैल बॉक्स में देखा तो पाया एक सरकारी चिट्ठी थी l विश्व तुम्हारे ही पैरवी के लिए सरकारी सिफारिश पत्र था l मन उचट गया, धत मैंने तो किसी अपने के लिए सोच कर वापस आया था, पर यह तो एक सरकारी सिफारिशी चिट्ठी निकली l जो भी हो मुझे जिस के वजह से घर लौटना पड़ा l उसके बारे में मेरे लिए जानना जरूरी था l यह सोच कर तुम्हारे केस से जुड़े सारे दस्तावेज मैंने कोर्ट से हासिल किया, पढ़ा, पढ़ने के बाद मुझे कुछ गडबड लगा l इसलिए मैं अपनी भेष बदल कर दस दिन के लिए राजगड़ गया, वहाँ पर मैं अपने तरीके से खोज खबर ली l तुम दोनों से मैं प्रभावित हुआ l गांव में सब डरे डरे हुए थे सहमे सहमे हुए थे, फ़िर भी दबे स्वर में तुम दोनों के लिए अच्छा ही कहते थे l मैं कटक वापस आया और सोचने लगा यह केस लेना चाहिए या नहीं l फ़िर सोचा मैं घर से निकल चुका था, पर जिसके लिए अपने घर की आँगन के तरफ मुड़कर देखा था, जिसने मुझे घर दुबारा लौटने पर मजबूर कर दिया उससे जरूर मेरा कोई ना कोई रिश्ता है l इस जनम का नहीं तो शायद किसी और जनम का हो l बस उसी क्षण मैंने फैसला किया और वैदेही को रजिस्ट्री लेटर से यहाँ बुलवाया l बाकी आगे की सब तुम जानते हो l
तो अब आते हैं जिस विषय के लिए मैंने तुम लोगों को यह चिट्ठी लिखी है l विश्व, इंसान पीछे मुड़ कर उसे खोजता है, जिसके लिए उसे घर लौटना होता है, क्यूंकि वह उसका अपना होता है l जिसके लिए उसे दुनिया से टकराना पड़ता है, क्यूंकि वह उसका अपना होता है l मैं जब भी पीछे मुड़ कर देखता था तो मुझे सिर्फ़ तुम ही दिखाई देते थे l मैं जब जब तुम्हें देखता था तो पुरे जोश के साथ दुनिया से टकराने की हिम्मत जुटा लेता था l इसलिए मैंने जो वसीयत बनाई है, वैदेही और विश्व तुम दोनों को मैंने अपना लीगल हायर घोषणा किया है l मैंने अपनी जिंदगी की सारी जमा पूंजी जो मैंने कमाया है अपनी खून पसीने से वह सब तुम दोनों में बांट दिया है l बस वह घर तुम लोगों को नहीं दे सकता था क्यूंकि वह हमारे पुस्तैनी घर है और उस पर मेरे बाद उन दो नामुराद भाइयों का ही हक़ बनता है l सो मैंने उनको वह हक़ दे दिया है l वह अब घर को बेच कर अपने हिस्से का पैसा ले कर जा सकते हैं l पर जो मैंने कमाया है उसे बांटने का पुरा हक़ मेरा ही है l इसलिए मेरी सारे बैंक डिपॉजिट वैदेही तुमको मिलेगी और मेरे मरने के बाद अगर विश्व जैल से ना छूटे तो उस परिस्थिति में मेरी इपीएफ ओर जीपीएफ को फिक्स करदिया जाएगा वह विश्व के रिहा होने के बाद मिलेगा l तुम लोग डराना बिल्कुल भी नहीं l अरे भई मैं वकील हूँ, मैंने सब सेट करदिया है l मेरी कमाई पर मेरे भाई कोई दावा नहीं ठोक सकते l
विश्व और वैदेही तुम दोनों बहुत अच्छे हो l तुम दोनों अपने अंदर की अच्छाई को मरने मत देना l और हाँ कभी रोना भी मत l क्यूंकि रोना कमजोरों की निशानी है l और तुम दोनों को कमज़ोर नहीं बनना है l एक बात याद रखो, तुम खुद अपनी उम्मीद हो और विश्वास हो l तुम्हारा विश्वास ही तुम्हें मंज़िल तक पहुंचाएगी l

और अंत में मेरी फीस, तो विश्व पूरी के स्वर्ग धाम में मेरी अंत्येष्टि तुम ही करना l इतना हक़ तो तुम पर मैं रखता हूँ, अगर नहीं भी तो इसे मेरी फ़ीस ही समझ लेना l चिंता मत करो मैंने अपने वसीयत नामे में यह साफ़ लिख भी दिया है कि मेरी चिता को आग विश्व प्रताप महापात्र ही देगा, कोई और नहीं l मेरी बात याद रखना, आगे तुमको मंजिल मिलेगी और जरूर मिलेगी क्यूंकि मैं वहाँ ऊपर भगवान से तुम दोनों के लिए लड़ता रहूँगा l अब इस बुढ़े का सफ़र यहीँ खतम हुआ l
बस एक आखिरी इच्छा शेष है चिंता मत करो वह मैं भगवान से मांग लूंगा l चलो बता ही देता हूँ l इस जनम का कोटा तो खतम हो गया अगले जनम में हे भगवान वैदेही को मेरी माँ बनाना और विश्व को मेरा बेटा l बस इतना ही क्यूँकी यह पाने के लिए और जनम भी तो लेना है l
अलविदा मेरे बच्चों अलविदा

दोनों अपनी अपनी चिट्ठी पढ़ कर स्तब्ध हो जाते हैं l

फ्लैशबैक में स्वल्प विराम

खान - व्हाट... जयंत सर ने... विश्व और वैदेही को अपना लीगल हायर बनाया...
तापस - हाँ...
खान - जयंत सर के भाइयों ने तो.... हंगामा खड़ा कर दिया होगा...
तापस - हाँ कर तो दिया था... पर जैसा कि जयंत सर एक मंझे हुए वकील थे.... और उन्होंने जिस तरह से अपना वसीयत नामा बनाया था.... वह दोनों भाई सिर्फ़ घर पाकर भी बहुत खुस थे...
खान - वह कैसे...
तापस - अरे भाई... जयंत सर की पूरी जमा पूंजी सिर्फ़ तीस लाख के करीब ही निकली... जब कि वह जगह समेत घर... पूरे करोड़ों की थी... उनके लिए सौदा बुरा नहीं था...
खान - ओ.... हम्म... फ़िर...
तापस - कुछ नहीं.... अगली सुनवाई के लिए तारीख दो हफ्ते बाद की मिली थी.... इसी बीच जयंत सर जी वसीयत सामने आया.... उनकी अंत्येष्टि उनकी इच्छा को सम्मान करते हुए.... पूरी के स्वर्गद्वार में किया गया... और विश्व ने ही किया.... और उनका पिंड तेरहवे दिन... पूरी के सागर तट पर दे दिया गया....
खान - ह्म्म्म्म... आगे की केस में सुनवाई कैसे हो पाया.... जनता के आक्रोश के चलते शायद वकील कोई तैयार ही नहीं... हुआ होगा...
तापस - पता नहीं... पर उसकी नौबत ही नहीं आई....
खान - मतलब....
तापस - दो हफ्ते बाद.... जब सुनवाई शुरू हुआ... तब....

फ्लैशबैक में

जज - ऑर्डर ऑर्डर ऑर्डर.... आज पूरे दो हफ्ते बाद.... इस केस पर सुनवाई के लिए हम एकत्र हुए हैं.... जो हुआ बहुत दुखद था... चूंकि इसी जगह.... अपने काम के वक्त.... डिफेंस लॉयर श्री जयंत राउत जी का स्वर्गवास हुआ... इसलिए उनके स्मरण में आइये पहले.... हम सब खड़े हो कर... दो मिनट का मौन श्रद्धांजली दें.... (जज के आग्रह पर सब अपने अपने जगह पर खड़े होकर दो मिनिट का मौन श्रद्धांजलि दिए, उसके बाद) आइए अब बैठ जाते हैं और आज केस पर आगे की सुनवाई के लिए..... प्रोसिक्यूशन अपना तथ्य रखें.....
प्रतिभा - थैंक्यू मायलर्ड... आज मैं इतना कह सकती हूँ.... के डिफेंस ने जिन चारों गवाहों से जिरह के लिए अदालत से.... इजाज़त ली थी.... उनमें से तीनों की गवाही पुरी हो चुकी है.... अब केवल अंतिम गवाह के रूप में.... सिर्फ़ भैरव सिंह क्षेत्रपाल ही बचे हुए हैं.... और इस वक्त अदालत में.... डिफेंस की कुर्सी खाली है... योर ऑनर... और जब तक यह कुर्सी खाली रहेगी.... तब तक अंतिम फैसला नहीं लिया जा सकता है....
जज - हाँ... यह अदालत आपसे इत्तेफाक रखती है.... हाँ तो मक्तुल श्री विश्व प्रताप महापात्र... पिछली बार अदालत ने, आपकी बहन.... सुश्री वैदेही जी के आग्रह पर.... आपके लिए सरकार से सिफारिश की थी.... क्या इस बार भी अदालत फ़िर से.... सरकार से सिफारिश करेगी.....

जज के इस बात पर जहां भैरव सिंह और बल्लभ के चेहरे पर कुटिल मुस्कान उभर जाती है, वहीँ अदालत में दूसरे लोग विश्व की हाँ सुनने की प्रतीक्षा में थे l

विश्व - (अपने दोनों हाथ जोड़ कर) नहीं जज साहब नहीं... मुझे नहीं लगता... की अदालत में और खुलासे की कोई जरूरत है.... जयंत सर ने अदालत में मेरे लिए... जितनी भी जिरह कर... सच्चाई को सामने लाये.... वह बहुत है.... अब मैं... उनके जगह किसी और को नहीं दे सकता हूँ.... जितनी भी जिरह हो चुकी है.... वह आपके फैसले लेने के लिए..... पर्याप्त है... इसलिए.... मेरे लिए कोई और वकील मुकर्रर ना किया जाए...

यह एक धमाका था जो विश्व ने अदालत में उस वक्त किया l जजों के साथ साथ भैरव सिंह भी हैरान था l

जज - विश्व प्रताप.... यह अदालत बगैर डिफेंस के.... अपना निर्णय नहीं सुना सकती l इसलिए आपको.... या तो अपना वकील लाना होगा.... या फिर हमे सरकार को सिफारिश भेजनी होगी.....
विश्वा- (हाथ जोड़ कर) नहीं योर ऑनर.... मैं अब अपने लिए कोई वकील नहीं चाहता हूँ.... जयंत सर ने मुझे जो मान व अधिकार दिया है..... वह कभी मुझे मेरे पिता भी नहीं दे पाए..... इसलिए मैं यह नहीं जानता.... अदालत और क्या जानना चाहती है..... पर मेरे तरफ से.... सारी जिरह को खतम.... समझा जाए....

जज से लेकर वहाँ उपस्थित सब लोग भौंचके हो गए l अब जजों के सामने यह विकट स्थिति थी l

जज - विश्व प्रताप.... अपने इस समय अदालत को.... धर्म संकट में डाल दिया है.... इसलिए यह अदालत एक बार फिर.... आज के लिए अगली सुनवाई तक स्थगित किया जाता है....... नाउ द कोर्ट इज़ एडजॉर्न......
Nice update
 

ANUJ KUMAR

Well-Known Member
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👉छत्तीसवां अपडेट
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खान - यह वाकई... कानून के इतिहास में अनोखी केस हो गई...
तापस - हाँ (फ्लैशबैक से बाहर आ कर) कानून के बड़े से बड़े जानकारों का सर घुम गया.... था...
खान - अच्छा... जयंत.... क्या सिर्फ़ पैसे छोड़ गए थे.... या कुछ और भी छोड़ा था.... क्या जयंत सर के भाइयों ने... आपत्ति नहीं जताई...
तापस - हाँ छोड़ा तो था.... पर सब विश्व के ही काम आया.... उनके भाइयों के कुछ भी काम का ना था.....
खान - मतलब...
तापस - उन्होंने दो अलमारी भर कर कानून के किताबें.... विश्व के लिए जायदाद के रूप में छोड़ी थी.... कटक चांदनीचौक जगन्नाथ मंदिर के पुजारी के पास.... यही उन्होंने कमाया था.... जिसका वारिस जयंत सर ने विश्व को बनाया था.....
खान - ओ.... तो क्या इसलिए विश्व कानून पढ़ रहा है....
तापस - हाँ....
खान - पर क्यूँ....
तापस - पता नहीं... पर शायद.... जयंत सर ने... ऐसा विश्व के लिए सोचा था.....
खान - वैदेही के हिस्से में जो पैसे आए.... क्या उस पर बवाल नहीं मचा....
तापस - जयंत सर के... वसीयत में इसकी जिक्र था.... और चैलेंज करने की हिम्मत... उनके भाइयों में नहीं थी.... वैसे वैदेही के हिस्से सिर्फ बारह लाख रुपये आए.... और करीब करीब अट्ठारह लाख रुपये.... फिक्स डिपॉजिट किया गया.... विश्व को छूटने के बाद... विश्व को मिलेगा......
खान - ओह.... मतलब विश्व.... जैल से निकलने के बाद.... अच्छी खासी पैसों का मालिक होगा..
तापस - हाँ... तुम कह सकते हो....
खान - अच्छा... उस दिन.... अदालत की... कारवाई बंद होने के बाद क्या हुआ....
तापस - इस बात का चर्चा.... मीडिया में बड़े बड़े एक्सपर्ट.... करने लगे थे.... अगली सुनवाई को क्या हो सकता है.....

फ्लैशबैक

टीवी पर
अरुंधति - (अपने मेहमान से) तो पटनायक सर.... शायद कानून के इतिहास में पहली बार.... कुछ ऐसा होने वाला है.... जो पहले कभी किसी ने सोचा भी नहीं था....
पटनायक - जी अरुंधति जी..... ऐसा पहले कभी कोई वाक़या सामने नहीं आया...
अरुंधति - क्या कानून में... ऐसा कोई प्रावधान है.... के अभियुक्त खुद के लिए जिरह कर सके...
पटनायक - हाँ है भी और हुआ भी है..... आप मीडिया वालों को... इसकी जानकारी होनी चाहिए.... कई दशकों पहले.... बिकीनी कीलर के नाम से... मशहूर... चार्ल्स शोभराज ने खुद अपने लिए... जिरह किया था.... उसने भी कभी अपने लिए.... वकील नहीं लिया था.... पर ओड़िशा में.... अब तक ऐसा कभी हुआ नहीं है..... मैं भी अचंभित हूँ.... और मुझे भी प्रतीक्षा रहेगी.... अगली सुनवाई में क्या होता है....

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परीडा - अरे यार.... यह पटनायक एक.... रिटायर्ड जज है.... जब यह नहीं बोल पा रहा है.... तब हम कहाँ से दिमाग़ लगाएं.....
रोणा - विश्व ने दिमाग़.... लगाया है.... या... ऐसे ही कुछ तुक्का भिड़ाया है...
पिनाक - कुछ भी भिड़ाए.... फ़िकर मत करो.... इस बार वकील का बंदोबस्त हो गया है.... अगर वह मांगेगा.... तो इसबार की सरकारी वकील... हमारे लिए लड़ेगा....
बल्लभ - पर विश्व पहले.... वकील की मांग करे तो सही..... वह तो मना कर दिया.... क्या चल रहा है... उसके दिमाग में....
पिनाक - उसके पास कोई दिमाग़ नहीं है.... अपने नाजायज़ बाप की चिता में आग देने के बाद.... सेंटीमेंट के लिए... वकील मना कर दिया है..... अगली बार वह गलती नहीं दोहराएगा....
रोणा - हाँ.... जल्दी ही यह कीचकीच खतम हो.... साला कटक में... रह रह कर सड़ने लगा हूँ....
बल्लभ - हाँ अगली सुनवाई तक तो.... हर हाल में रुकना पड़ेगा....

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सेंट्रल जैल
लाइब्रेरी में टेबल के पास दो चेयर पर आमने सामने बैठे हुए हैं वैदेही और विश्व l

वैदेही - तुने वकील लेने से.... मना क्यूँ कर दिया...
विश्व - वजह... आप अच्छे से जानते हो.... दीदी...
वैदेही - किसी की भी.... जयंत सर के जैसे अंजाम ना हो... इसलिए ना...
विश्व - किसी का भी.... मेरे वजह से... किसी भी तरह का बुरा हो... यह मैं नहीं चाहता....
वैदेही - ह्म्म्म्म... यही अच्छाई.... कभी ना छोड़ने के लिए जयंत सर ने कहा है....
विश्व - लेकिन फ़िर भी... यह आधा सच है....
वैदेही - तो पूरा सच क्या है....
विश्व - जयंत सर ने मेरे लिए जितना भी किया है.... उसका श्रेय मैं किसी और के साथ बांट नहीं सकता.... (वैदेही चुप रहती है) अब अंजाम चाहे जो भी हो... मैंने नीयत बना लीआ है.... नियती चाहे कैसी भी हो.... मुझे स्वीकार होगा....
वैदेही - ह्म्म्म्म.... वैसे... उन्होंने जो किताबें दी है... वह तेरे क्या काम आयेंगे....
विश्व - (वैदेही की ओर देखते हुए) दीदी... उन्होंने मेरे लक्ष को पहचान लिया था..... उस लक्ष को धार देने के लिए ही..... वह किताबें मुझे दी है... मुझे अब यहाँ रह कर क्या करना है.... वह राह दिखा दिया है.....
वैदेही - क्या मतलब..... है... इसका..
विश्व - दीदी.... चूंकि तुमने कहा तो.... इसलिए मैंने करेस्पंडिंग... डिस्टेंस... एजूकेशन में.... पहले बीए सोसिओलॉजी में ग्रेजुएशन पुरी करूंगा.... और उसके बाद.... जैल में ही रह कर.... वकालत की डिग्री हासिल करूंगा.....
वैदेही - क्या.... वकालत की डिग्री.... इससे... तेरा... क्या फायदा....
विश्व - (एक फीकी मुस्कान मुस्कराते हुए) इंसान को लक्ष्मी... छोड़ सकती है.... पर सरस्वती कभी नहीं छोड़ती....
वैदेही - यह... कैसी... बहकी बहकी बातेँ कर रहा है....
विश्व - यह बात मुझसे.... जयंत सर ने कही थी.... उस दिन की उस बात का आशय.... आज समझ में आ रहा है...
वैदेही - अगर उन्होंने कहा था.... तो गूढ़ रहस्य होगा.... तू कह रहा है... तुने नियत बना लिया है.... हर नियती को स्वीकार करने की.... कुछ बुरा हुआ तो.... (विश्व उसे हैरान हो कर देखता है) उस क्षेत्रपाल के अहं पर.... चोट देने के लिए ही... मैंने तुझे... ग्रेजुएशन करने के लिए कहा.... और.... अंजाम...
विश्व - दीदी.... हमारे सुरक्षा की चिंता.... छोड़ दो.... (विश्व के मुस्कान में जान दिखती है) जयंत सर की बातों को मत भूलो.... अब वह भगवान के पास हैं.... और हमारे लिए.... भगवान से प्रार्थना भी करेंगे और... लड़ भी जाएंगे.... इसलिए फ़िकर मत करो....

वैदेही एक फीकी हँसी हँसती है और विश्व को देखती है l पर विश्व के चेहरे से मुस्कान धीरे धीरे गायब हो जाती है और आँखें भाव हीन हो जाती है l

वैदेही - विश्व.... पता नहीं क्यूँ.... पर अब तुझे देख कर थोड़ा डर लगने लगा है....
विश्व - (वैदेही की ओर देख कर) दीदी.... मैंने फैसला कर लिया है.... अब कभी... किसीके भी सामने.... कमजोर नहीं पड़ना है.... और उसके लिए.... मैं कुछ भी कर गुजर जाऊँगा....

वैदेही की आंखे हैरानी से बड़ी हो जाती, विश्व का तेजी से बदलते रूप और व्यवहार को देख कर l


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विश्व दस्तखत कर राइटर को एफिडेविट की कॉपी दे देता है l राइटर वह जज को बढ़ा देता है l

जज - ठीक है... विश्व आपके वकील ने चार गवाहों की... जिरह की परमिशन ली थी.... सिर्फ़ एक गवाह की जिरह बाकी है.... क्या आप... उनकी जिरह करना चाहेंगे....

विश्व एक नजर भैरव सिंह को देखता है फ़िर जज से कहता है

विश्व - नहीं जज साहब... मुझे किसीसे अब कुछ नहीं पूछना... अभियोजन पक्ष को कुछ कमी महसूस हो रही है... तो वह चाहें तो.... जिरह कर सकते हैं.....
जज - प्रोसिक्यूशन....
प्रतिभा - नहीं योर ऑनर...
जज - विश्व आप चाहें तो.... आपके खिलाफ दर्ज़ हुई.... रिपोर्ट और सबूत के तौर पर जमा किए हुए... सारे कागजात... अदालत से ले सकते हैं.... और आप चाहें तो... जिरह फिर से आरंभ किया जा सकता है.....
विश्व - नहीं मायलर्ड..... अब तक कारवाई से.... मैं संतुष्ट हूँ.... इसलिए जिरह को फिर से.... शुरू करने का.... कोई औचित्य नहीं दिख रहा है.....
जज - ठीक है.... तो फिर पहले अभियोजन पक्ष अपना पक्ष रखें....
प्रतिभा - जी योर ऑनर.... (एक फाइल निकाल कर) तो... मायलर्ड... यह केस राजा साहब के... मौखिक शिकायत पर.... गृह मंत्रालय ने एसआइटी बनाया और मनरेगा घोटाले की जांच शुरू हुई.... जांच में पाया गया.... की सारे लेन देन में... मृतकों के आधार कार्ड के जरिए किया गया.... एसआइटी ने पांच मुख्य अभियुक्तों की पहचान की.... पर एसआइटी की जांच का हर सिरा घुम कर... श्री विश्व प्रताप पर रुकी.... ऐसे में उनको मानिया गांव शासन के पंचायत समिति सभ्य... श्री दिलीप कुमार कर... जांच में दिशा प्रदान किया.... भले ही वह गवाह ईमानदार ना साबित हो पाया... पर जब एक अभियुक्त... बैंक अधिकारी की मौत की खबर एसआईटी को मिली.... तब जाकर विश्व को गिरफ्तार करने के लिए... देवगड़ तहसीलदार के द्वारा.... श्री अनिकेत रोणा जी को समन भिजवाया.... और विश्व को गिरफ्तार करवाया... भले ही अमानवीय तरीके से और व्यक्तिगत भावनाओं के चलते ही क्यूँ नहीं... पर विश्व गिरफ्तार हुए और आज यह केस सुनवाई के अंत तक पहुंच गई.... फ़िलहाल... अब तक जिरह में... सारे गवाह भले ही... ईमानदार ना साबित हुए हों.... पर यह कहीं पर भी साबित नहीं हुआ... श्री विश्व बेगुनाह हैं... और विश्व इसमे शामिल नहीं थे..... यह कहीं पर भी.... साबित नहीं हो पाया है.... इसलिए मैं अभियोजन पक्ष की तरफ से.... विश्व के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग करती हूँ....

प्रतिभा के उपस्थापन के बाद भैरव के खेमा हैरान जितनी हुई उतनी खुश भी हुई l पर वैदेही के चेहरे पर पर उदासी और दुख साफ दिखने लगती है l

जज - अब बचाव पक्ष... अपना पक्ष रखें....

विश्व - मायलर्ड.... हाँ यह सच है.... मेरे खिलाफ़... चाहे मौखिक ही क्यूँ ना हो... शिकायत दर्ज हुई.... जिस पर एसआइटी बना.... यानी पहले से ही... मैं दोषी करार दिया जा चुका था.... और इसको आधार बना कर.... जांच की गई.... मायलर्ड.... जांच इसलिए शुरू नहीं की गई.... की विश्व कहीं कहीं... बेगुनाह लगे... बल्कि हर सिरा घूमते घूमते.... विश्व तक पहुंचे... जांच इसलिए कि गई.... वह सरकारी गवाह... जो अभी लकवा ग्रस्त है.... हस्पताल में है.... वह कितना बड़ा सच्चा है... यह अदालत के सामने प्रमाणित हो चुका है..... और रही.... राजगड़ के मॉडल पुलिस थाने के... अधिकारी... किस तरह कानून को अपने हाथ में लेकर.... अपनी थाने को मॉडल थाना बनाया... यह भी प्रमाणित हो चुका है.... अंत में... अदालत के समक्ष... इस केस के बाबत... कुछ परते खुल चुकी है.... अगर इंसाफ़ के लिए पर्याप्त हों... तो उनपर गौर किया जाए.... बस मायलर्ड बस....

विश्व की बात खतम होते ही, सारे जो उस कमरे में उपस्थित थे, सब के सब असमंजस में पड़ जाते हैं l मुख्य जज विश्व को देखता है, फ़िर कुछ कहने को होता है मगर कुछ सोच कर रुक जाता है l

जज - आज इतने दिनों बाद... आख़िर इस केस की सुनवाई की प्रक्रिया में... अंतिम दौर पर पहुंच गए हैं.... अभियोजन पक्ष ने अपना पक्ष रख चुके हैं... और अभियुक्त पक्ष ने... भी अपना पक्ष रख दिया है..... अब सभी की नजर..... इस केस में होने वाली निर्णय पर... ठहर गया है.... अब अदालत ने इस केस पर... फैसला सुरक्षित कर लिया है.... अगले हफ्ते.... सोमवार को.... इस केस पर फैसला सुना दिया जाएगा..... आज के लिए... यह अदालत की कारवाई को स्थगित किया जाता है.... नाउ द कोर्ट इज एडजॉर्न....

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नमस्कार,.... मैं अरुंधती.... आप सबको ख़बर ओड़िशा के प्राइम टाइम खबर में स्वागत करती हूँ.... आज कोर्ट में आधिकारिक तौर पर.... राजगड़ मनरेगा घोटाले कांड पर फैसला ले लिया गया है..... पर जजों के पैनल ने सुरक्षित रख लिया है.... अगली सोमवार को जनसाधारण.... कोर्ट के लिए गए... निर्णय से अवगत हो जाएंगे.... पर आज कोर्ट में जो हुआ... उस पर हम.... अवसर प्राप्त पूर्व न्यायधीश... निरंजन पटनायक... जी से बात करेंगे.... मैं आपको नमस्कार करती हूँ.... और आपको स्टुडियो में स्वागत करती हूँ....
पटनायक - नमस्कार...
अरुंधति - पटनायक सर, क्या ऐसा कोई प्रावधान होता है... कानून के किताब में....
पटनायक - हाँ... होता है... मान लीजिए.... एक अभियुक्त.... अपने पैरवी करने वाले वकील से संतुष्ट.... ना हो पाए... उस परिस्थिति में.... अभियुक्त अपने लिए स्वयं.... जिरह कर सकता है.... अगर कोई वकील ना मिले ऐसे परिस्थिति में भी... अभियुक्त अपने लिए... जिरह कर सकता है...
अरुंधति - अगर ऐसा प्रावधान है.... तो सवाल यह है कि.... अभियुक्त विश्व.... को.... इससे पहले अवगत क्यूँ नहीं कराया गया....
पटनायक - देखिए.... यह.... प्रश्न.... मानवीय दृष्टि से... सही नहीं है... एक अभियुक्त के लिए... वकील जितना लड़ सकता है.... वह खुद अपने लिए.... उतना लड़ नहीं सकता.... क्यूंकि सबूत जुटाना... एक ऐसी बात है.... जो जैल अंदर से जुटाना.... संभव नहीं होता.... पर संविधान में... यह प्रावधान है....
अरुंधति - अगर... इस बात को... पहले से जानते होते.... तो क्या विश्व.... वकील की मांग किए होते....
पटनायक - उन्होंने जो उस वक्त.... मांग रखी थी.... वह सौ फीसद जायज था.... अब वह जो कर रहे हैं.... वह उनकी आवश्यकता है....
अरुंधति - सर... अगर वह अब भी.... अदालत से मांग करते... तो क्या अदालत... उनकी मांग को.... खारिज कर देती....
पटनायक - कभी नहीं... अरुंधति... यह आप भी जानते हैं... अदालत ने... उन्हें इस बाबत... पुछा भी था.... पर यह उनका अपना व्यक्तिगत निर्णय था....
अरुंधती - तो इसका मतलब यह हुआ.... शायद विश्व.... अपने वकील दिवंगत जयंत कुमार से... संतुष्ट नहीं थे....
पटनायक - नहीं मुझे.... ऐसा नहीं लगता.... उन्होंने.... किसी और वकील को... जन आक्रोश का शिकार... नहीं होना देना चाहते थे....
अरुंधती - हाँ... यह भी हो सकता है.... पर जन आक्रोश तब भी था... जब विश्व.... हिरासत में लिए गए थे....
पटनायक - हाँ... था... पर तब जन आक्रोश.... सिर्फ़ विश्व के विरुद्ध था.... पर अब जन आक्रोश... उसके लिए खड़े होने वालों के विरुद्ध मुड़ गया है...

पिनाक टीवी बंद कर देता है l और बल्लभ की और देखते हुए l

पिनाक - प्रधान तुमने वाकई.... मीडिया मैनेजमेंट बहुत बढ़िया किया है.... बहुत अच्छे...
यश - यह.... हुई ना बात... आपको कभी कभी अपने लोगों... एप्रीसिएट करना चाहिए...
पिनाक - इसलिए तो मैं कर रहा हूँ... लेकिन तुम्हारा भी... एप्रीसिएट करना चाहूँगा...
यश - वह क्यूँ भला....
पिनाक - तुमने माहौल ही ऐसा बनाया है... के कोई भी वकील... विश्व के केस में हाथ डालने से पहले.... सौ बार सोच रहा है....
यश - इसके लिए भी.... आप अपने प्रधान को... एप्रीसिएट कीजिए... मैंने उससे जो जो भी मांगा... वह... जुगाड़ कर दे दिया.... इसलिए काम आसान बन गया....
पिनाक - अरे प्रधान... बहुत अच्छे... बहुत अच्छे.... बहुत अच्छे...
बल्लभ - थैंक्यू... छोटे राजाजी.... वैसे छोटा मुहँ और बड़ी बात.... आज विश्व ने.... राजा साहब से कुछ पुछा क्यूँ नहीं..... और आज राजा साहब ने भी.... कहा था.... वह उनसे कुछ पूछेगा नहीं.... ऐसा क्यूँ....
पिनाक - अच्छा हुआ... यह तुमने मुझे पुछा... राजा साहब से पूछा होता.... तो....
बल्लभ - इसलिए तो... आपसे पुछा है मैंने....
पिनाक - सच कहूँ... तो मैं भी नहीं जानता.... शायद विश्व..... राजा साहब से... डर गया हो..... यह राजा साहब ही बता सकते हैं.... क्यूँकी सिर्फ उन्हें ही मालुम था.... विश्व उनसे.... कुछ नहीं पूछेगा... पता नहीं वह अब कहाँ है...

यश - वह पिताजी के साथ हैं.... सच कहूँ तो... शायद मैं समझ सकता हूँ.... या यूँ कहूँ... के मैं जान गया हूँ.... आखिर विश्व ने... हथियार डाल क्यूँ दिया....
पिनाक - क्या तुम्हें मालुम हो गया.... कैसे....
यश - जब मैंने आपसे विश्व की पूरी राम कहानी पूछा था.... तब सिर्फ़ एक घटना मुझे याद रहा.... विश्व ने छलांग लगा कर.... राजा साहब के गिरेबान तक पहुंचने की कोशिश की थी....
रोणा - हाँ ऐसा हुआ था.... पर हवा में ही रुक गया था.... राजा साहब के गार्ड्स ने उसे बीच हवा में ही.... रोक लिया था....
परीडा - हाँ... इस बात का... मैं गवाह हूँ...
यश - तो फ़िर वह डरा नहीं है... बात कुछ और है... पर यह पक्का है...... वह डरा बिल्कुल नहीं है....
पिनाक - क्या तुम उससे मिले हो कभी.... या जानते हो.... हमारे ही टुकड़ों पर पलता था.... उसमें हिम्मत ज़वाब दे गई होगी.... जैल की रोटियाँ तोड़ते तोड़ते.....

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सेंट्रल जैल
डायनिंग हॉल, लंच का समय
विश्व एक टेबल पर अकेला बैठा हुआ है, अपनी थाली के सामने l खाना वैसा ही थाली में रखा हुआ है l डैनी उसे दूर से देखता है और अपने थाली के साथ वह विश्व के बैठे टेबल पर पहुंचता है l

डैनी - क्या हुआ हीरो... बड़े गहरे सोच में है.... वैसे खाने ने क्या बिगाड़ा है तेरा.... खाने से इतनी बेरुखी क्यूँ....
विश्व - (अपना सर ना में हिलाते हुए) नहीं कुछ नहीं.... भूख ही नहीं लग रही है....
डैनी - हाँ... तुने जो किया.... उससे तेरा भूख मर चुकी होगी.... आख़िर तुने मौका जो गवां दिया...
विश्व - (डैनी को गौर से देखता है, और पुछता है) एक बात पूछूं... आपसे...
डैनी - हाँ पुछले...
विश्व - मैंने बहुत दिनों से गौर किया है.... जहां मीडिया चूक जाती है.... वह खबर भी आप तक पहुंच जाती है.... कैसे...
डैनी - वह क्या है कि... मैं स्पेशल सेल में... रहता हूँ... मैं कोई आम कैदी नहीं हूँ... मैं यहाँ का खास कैदी हूँ...
विश्व - हाँ जानता हूँ... यह आपने मुझे... पहले भी बताया है.... पर कोर्ट में चल रही कारवाई... की डिटेल्स... मीडिया तक भी नहीं पहुंच पाती है..... वह आप तक... बिल्कुल सही तरीके से.... पहुंच जाती है....
डैनी - मेरी... अपनी... इंफॉर्मेशन नेटवर्क है... इसलिए....
विश्व - ओ....
डैनी - पर तुने बताया नहीं.... अपने दुश्मन के गिरेबान पर हाथ रखने का मौका मिला था तुझे.... पर तुने उसे छोड़ क्यूँ दिया... उससे सवाल पूछ कर... उसकी बेइज्जती भी कर सकता था.....
विश्व - मेरे पास उस आदमी के लिए.... सिर्फ़ जवाब हैं.... सवाल है ही नहीं.... इसलिए उससे पुछा नहीं....

यह कहते कहते विश्व का चेहरा कठोर हो जाता है l डैनी भी विश्व में यह बदलाव देख कर हैरान हो जाता है l
Very beautiful update
 

ANUJ KUMAR

Well-Known Member
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👉सैंतीसवां अपडेट
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आखिर कर वह दिन आ ही गया.... आज जजों ने जो फैसला सुरक्षित कर लिया था..... आज उसकी तारीख आ गई है... राज्य के सभी छोटे बड़े से लेकर... बड़े बड़े विद्वानों और सरकार को भी प्रतीक्षा है.... आज की आने वाली निर्णय पर.... इस घोटाले पर सुनवाई के दौरान... बेहद ही दुखद घटना भी हुई.... बचाव पक्ष के वकील... श्री जयंत कुमार राउत जी की अकस्मात देहांत हो गया.... इसके बाद बचाव पक्ष ने... कोई वकील नहीं लीआ... अपनी पैरवी खुद की.... इसलिए.... सब बेसब्र हो कर इंतजार में हैं.... की इस सुनवाई का अंत क्या होगा.... अभी अभी राजगड़ मनरेगा आर्थिक घोटाले की मुख्य अभियुक्त को..... पुलिस वैन में ले जाया गया है... अभियोजन पक्ष के सभी गवाह.... पहले से ही कोर्ट में मौजूद हैं... बस थोड़ी देर और.... फिर आएगा.... सबसे ज्यादा चर्चित घोटाले पर... मनानीय उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय... तब तक के लिए.... मैं प्रज्ञा... खबर ओड़िशा से....

इतना कह कर अपनी माइक ऑफ कर देती है और कोर्ट से लगे पुलिस बैरीकैट तक जाती है l उधर कोर्ट के भीतर सभी मौजूद हैं, सिवाय दिलीप कर के l कोर्ट में शांति छाई हुई है l इतनी शांति के फैन के आवाज के बावज़ूद सबको घड़ी की टिक टिक आवाज़ तक सुनाई दे रही है l जज अपना चश्मा निकाल कर रूम में बैठे सभी पर नजर दौड़ाता है l भैरव सिंह और विश्व दोनों के चेहरे भाव शुन्य दिख रहे हैं l बल्लभ एंड कंपनी धड़कते हुए दिल के साथ फैसले का इंतजार कर रहे हैं l वैदेही का मन बहुत भारी और उदास लग रहा है l प्रतिभा के आँखों में भी इंतजार दिख रही है l

जज अपना चश्मा दुरुस्त करता है l और

जज - तो आज हम... उस मुक़ाम पर पहुंच गए हैं... जहां इस केस का सफ़र इस अदालत में खतम हो रहा है....
अब यह अदालत अपना फैसला सुनाने से पहले... कुछ तथ्यों पर रौशनी डालना चाहती है...
एसआईटी के रिपोर्ट के अनुसार.... स्वर्गीय श्री उमाकांत आचार्य जी के... विश्व के विरुद्ध शिकायत ले कर राजा साहब जी के पास गए.... राजा साहब ने आश्वासन दिया... के उस पर वह इस बात की तहकीकात... कराएंगे....
फिर राजा साहब... मनानीय मुख्यमंत्री जी से मुलाकात करते हैं... मनरेगा आर्थिक घोटाले पर बात करते हैं... जिस पर आगे चलकर... गृहमंत्रालय एक एसआईटी का गठन कर... राजगड़ में हुए मनरेगा आर्थिक घोटाले की जांच की आदेश देते हैं....
जैसा कि बचाव पक्ष ने कहा.... आरंभ से ही... विश्व को.... अपराधी मान कर.... जांच को आगे बढ़ाया गया.... इसलिए जांच केवल विश्व तक ही सीमित रह गई.... यह जानने के बावजूद... के इस आर्थिक घोटाले में पांच मुख्य अभियुक्त हैं.... पर गिरफ्तारी के लिए सिर्फ़ विश्व के नाम पर समन जारी किया गया.... यह सबसे बड़ी चूक या गलती रही.... एसआईटी की... जो अभियुक्तों के फरार होने में सहायक हुआ.... अगर पांचो के नाम.... समन जारी हुआ होता.... तो शायद वह तीन अभियुक्त.... कानून के गिरफ्त में होते... यह एसआईटी की बहुत बड़ी.... चूक है....
अब आते हैं.... प्रथम एवं प्रमुख सरकारी गवाह.... जिसने अपनी पद... मर्यादा को न केवल नष्ट किया.... बल्कि छल से.... कॉन्ट्रैक्ट के जरिए... मनरेगा से पैसे भी ऐंठे... उनकी जिरह से यह साफ हो गया... के जांच को प्रभावित करने की पुरी कोशिश की है.... इससे एसआईटी की... लापरवाही... उजागर हुआ है.... जो बहुत ही शर्म की बात है... फ़िर विश्व की गिरफ्तारी और उसके बाद... विश्व पर हुए.... अत्याचार.... बहुत ही अमानवीय एवं शर्मनाक है....
पर इतने घटनाओं में.... विश्व लूट का एक जरिया है... ऐसा दिख रहा है.... पर यह कहीं पर भी विश्व शामिल नहीं है.... यह प्रमाणित नहीं हो पाया है...
इसलिए अब विश्व से यह अदालत जानना चाहती है... श्री उमाकांत आचार्य कौन हैं... और आपका उनसे क्या सम्बंध है....
विश्व - वह हमारे पारिवारिक मित्र व शुभचिंतक थे... वह मेरे पढ़े हुए प्राथमिक स्कुल के.... प्रधान आचार्य थे...
जज - अब एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न.... क्या आचार्य जी ने आपको.... सरपंच चुनाव में खड़े होने के लिए कहा था.... मतलब.... आपने राजा साहब को तो नकार दिया.... पर आचार्य जी को ना नहीं कहा... आपके लिए... आचार्य जी इतना महत्व रखते थे....
विश्व - जी...
जज - तो एक अंतिम प्रश्न.... क्या आचार्य जी ने.... राजा साहब को आपके विरुद्ध... शिकायत की थी...
विश्व - पता नहीं.... आचार्य जी ने... शिकायत की.... इस बात का कोई गवाह भी तो नहीं है.....
जज- ठीक है.... तो आप इस पर.... भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी से.... जिरह क्यूँ नहीं की....
विश्व - आचार्य जैसे महात्मा का नाम.... अदालत में.... सच और झूठ के बीच लाना नहीं चाहता था....
जज - तो क्या आचार्य जी ने झूठ कहा था...
विश्व - आचार्य जी कभी झूठ नहीं बोलते थे....
जज - मतलब अगर आचार्य जी ने कहा होगा... तो वह सच ही होगा....(विश्व चुप रहता है) विश्व जवाब दीजिए.... (विश्व फ़िर भी चुप रहता है) विश्व... (विश्व का जवड़ा भींच जाता है)
विश्व - आचार्य सर... कभी झूठे नहीं थे... कभी हो ही नहीं सकते थे....
जज - बस यही बात.... क्या आप सोच समझ के... बोल रहे हैं...
विश्व - (एक गहरी सांस छोड़ते हुए) जी...
जज - यह स्टेटमेंट आपके विरुद्ध भी जा सकती है....
विश्व - जी...
जज - ठीक है... श्री विश्व.... अब यह अदालत फैसला सुनाएगी....

एक बार फिर अदालत में ख़ामोशी छा जाती है l सबकी धड़कने बढ़ जाती है l सिवाय दो शख्स के l भैरव सिंह और विश्व के l

जज - अभियुक्त विश्व से... एक कंफर्मेशन मिल जाने के बाद... अब अदालत अपना निर्णय..... तीन शुन्य मत से सुनाने जा रही है... पहले इस केस में एसआईटी की जांच.... इस केस पर कम... विश्व पर फोकस था... इसलिए... यह अदालत जांच को अधुरी मानती है... अदालत बचाव पक्ष की यह दलील मानती है.... की यह षडयंत्र... केवल विश्व या उन भगोड़े के बलबूते संभव नहीं हो सकता था.... इसके पीछे जरूर कुछ और शक्ति शाली लोग हो सकते हैं.... इसलिए यह अदालत सरकार को आदेश देती है.... एसआईटी को बंद ना करे.... जब तक एसआईटी के द्वारा... अभियुक्तों की पूरी जानकारी हासिल नहीं हो जाती.... जरूरत पड़ने पर फरार व गायब हुए अभियुक्तों के खिलाफ़.... इंटरपोल के जरिए... रेड कॉर्नर नोटिस इशू करें.... और एसआईटी के टीम को बदल कर... नॉन बायस्ड ऑफिसरों के हवाले करे.... और पूरी जांच फॉरेंसिक सहित अदालत को सौंपे.....
पहला एवं प्रमुख सरकारी गवाह.... अपनी करतूतों से.... न्याय व्यवस्था को ना सिर्फ भटकाया बल्कि... अनीति के साथ... मनरेगा से... पैसा भी कमाया.... इसलिए... यह अदालत... उनकी अभी की पंचायत समिति सभ्य की पद को खारिज करती है.... और उन पर आजीवन चुनाव लड़ने से.... प्रतिबंध लगाती है....
श्री अनिकेत रोणा जी... बचाव पक्ष की आप पर दी हुई दलील..... और आपके इकबालिया बयान.... सुनने के बाद.... अदालत आपको छह माह तक अपने पदवी से निलंबन का आदेश देती है.... और आपके विभाग को आदेश देती है.... निलंबन के बाद.... आपकी पोस्टिंग... तुरंत राजगड़ से दूर... कहीं और किया जाए.... कम से कम अगले तीन पोस्टिंग तक.... राजगड़ या उसके आसपास इलाकों से भी दूर.... रखा जाए.....
और अंत में विश्व प्रताप महापात्र जी..... जिन हत्याओं पर.... आपको एसआईटी ने संदेह का लाभ दिया है... उसे यह अदालत बरकरार रखते हुए.... संदेह का लाभ आपको दे रही है...... दिलीप कुमार कर के जिरह से साबित हुआ है के जितने चेकों पर दस्तखत किए हैं उसमें साजिशन आप से कराई गई थी..... पर आपकी उस साजिश में सहमति और सहभागिता नहीं थी.... यह कहीं पर भी प्रमाणित नहीं हुआ है..... और राजा साहब श्री भैरव सिंह क्षेत्रपाल जी जिनके शिकायत पर..... सरकार तक जिनकी आवाज़ पहुंचाई..... वह जिवित नहीं हैं.... और आपने उनकी श्री क्षेत्रपाल जी हुई मुलाकात..... और वार्तालाप का खंडन नहीं किया है.... श्री विश्व.... आप एक पढ़े लिखे नवयुवक हैं.... आपने.... जन मत के द्वारा जो जिम्मेदारी प्राप्त की.... वह जिम्मेदारी आप ठीक से निभा नहीं पाए हैं.... यह आपको स्वीकार करना होगा....
विश्व - (अपना सर हाँ में हिलाते हुए) जी... योर ऑनर....
जज - इसलिए आपको यह अदालत.... अपनी जिम्मेदारी ठीक से ना निभा पाने की दोषी पाती है.... आप बहुत ही आसानी से.... इस महा लूट का ज़रिया बन गए.... अपनी पद व कर्तव्य के प्रति असचेतनता ही... इस महा लूट का कारण बना.... यही कारण है कि यह अदालत आपको आईपीसी धारा 420 /आईपीसी धारा 378 व 379 / और आईपीसी धारा 392 के तहत इस महा घोटाले की केस में.... आंशिक दोषी पा रही है....
इसलिए यह अदालत मक्तुल श्री विश्व प्रताप महापात्र को चार वर्ष की सश्रम कारावास की सजा सुनाती है.... चूंकि लूट की रकम.... एसआईटी के द्वारा बरामदगी नहीं हो पाया.... इसलिए तीन वर्ष की अतिरिक्त कारावास की सजा होगी.... चूंकि आप गिरफ्तार होने के बाद से सुनवाई खतम होने तक.... जैल में पांच महीना रहे हैं.... इसलिए यह पांच महीना आपके सजा से काट दिया जाता है.... आपको सिर्फ छह वर्ष सात महीने की ही जैल होगी... और अगर आप इस निर्णय के विरुद्ध... ऊपर की अदालत पर जाना चाहें तो.... जा सकते हैं... और नहीं तो.... यदि आप चाहें... फिर से सुनवाई के लिए.... पिटीशन डाल सकते हैं....
अब यह अदालत की कारवाई समाप्त होती है...

इतना कह कर जज अपना लकड़ी का हथोड़ा टेबल पर मार कर सुनवाई खतम कर दी और उसके बाद अदालत के फैसले नामे में तीनों जज दस्तखत किए और अदालत की कारवाई खतम हो गई l
विश्व को हथकड़ी लगा कर दास अपने साथ कोर्ट के बाहर ले गया l पीछे पीछे वैदेही वैन तक पहुंचती है l

वैदेही - विश्व.... (विश्व और दास रुक जाते हैं, विश्व के रुकते ही वैदेही सिसकते हुए उसके गले लग जाती है )
विश्व - दीदी... (वैदेही को खुद से अलग करते हुए) आप रो क्यूँ रहे हो....
वैदेही - (हैरान हो कर विश्व को देखते हुए) तुझे जरा भी दुख नहीं हुआ....
विश्व - दुख कैसा.... दीदी... दुख कैसा... इस नियति को मैंने चुना है.... दुख तब होता... अगर मुझ पर थोपा गया होता....
वैदेही - तू सच में... इतना बदल गया...
विश्व - (थोड़ा मुस्कराकर) मेरा बदलना तुमने बहुत पहले ही देख लिया था.... पर बोल अब रही हो...
वैदेही - यह... यह... क्या कह रहा है... मुझे कब मालुम हुआ..?
विश्व - तुम मुझे विशु नहीं.... विश्व बुला रही हो.... (कह कर मुस्करा देता है)

वैदेही अपनी दोनों हाथ हैरानी से अपने मुहँ पर रख कर बड़ी बड़ी फटी आखों से विश्व को देखने लगती है l

विश्व - इतना हैरान ना हो दीदी.... यही नियति है...
वैदेही - (अपना सर हाँ में हिलाते हुए) हाँ.... यही नियति है...
विश्व - दीदी... बस एक इच्छा है....
वैदेही - बोल...
विश्व - अब मेरी सजा खतम होने तक.... आप मुझसे मिलने की कोशिश मत करना...
वैदेही - (एक खिंच कर थप्पड़ मारती है) क्या तेरा दिमाग फिर गया है... मुझे मिलने से मना कर रहा है...
विश्व - दीदी... आप मुझे जैल में मिलने ना आया करो.... आप अगर आओगी.... तो मुझे मेरी बेबसी की एहसास होता रहेगा.... मैं अपने लक्ष से भटकना नहीं चाहता....
वैदेही - (सुबकते हुए) मैं तुझे देखे बगैर कैसे रह पाऊँगी...
विश्व - आप मेरी खैर खबर.... सुपरिटेंडेंट साहब से लेती रहना....
वैदेही - अगर... कुछ जरूरी हुआ तो...
विश्व - तो चिट्ठी लिख कर.... सुपरिटेंडेंट साहब को दे देना.... पर मुझसे इन सात सालों में.... मिलने की कोशिश भी मत करना....

इतना कह कर विश्व तेजी से मुड़कर वैन में बैठ जाता है l गाड़ी अपनी धुआँ उड़ाकर चला जाता है l वैदेही वहीँ खड़ी रह जाती है और वैन को अपनी आंखों से ओझल होते देखती रह जाती है l

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तापस अपनी गाड़ी को भगा रहा है l उसके पास बगल में प्रतिभा बैठी है l तापस को लगता है l प्रतिभा कुछ अपसेट है l

तापस - क्या बात है जान... क्या सोच रही हो...
प्रतिभा - (अपना सर ना में हिलाते हुए) नहीं कुछ भी नहीं.....
तापस - विश्व को सजा हो गई... इसके लिए कहीं तुम खुद को जिम्मेदार तो नहीं मान रही....
प्रतिभा - नहीं... एज अ पब्लिक प्रोसिक्यूटर मुझे जो करना था किया... पर इस बार... जिम्मेदार खुद विश्व है...
तापस - हाँ... यह तुमने सही कहा.... वाकई... कोर्ट से मिले मौके को गंवा दिया....
प्रतिभा - नहीं सेनापति जी.... नहीं... जब विश्व को मैंने.... पहली बार कटघरे में देखा था..... आज जो विश्व को मैंने देखा.... दोनों में फर्श से अर्श तक का फर्क़ है...
तापस - (हैरानी भरे एक नजर प्रतिभा पर डालते हुए) अच्छा... वह कैसे...
प्रतिभा - पहली दफा जब विश्व को कटघरे में देखा था.... तब मुझे... वह एक डरा हुआ, कंफ्युज्ड लग रहा था.... पर आज मैंने जिस विश्व को देखा.... वह निडर, डीटरमीन और मैच्योर्ड लग रहा है....
तापस - अच्छा... यह तुमने कब गौर किया...
प्रतिभा - जज साहब जब...... अपना फैसला सुना रहे थे.... तब मैं उसे गौर से देख रही थी....
तापस - चलो मान लेता हूँ.... पर आज जो हुआ... इसमे तुमको... विश्व की.... मैच्योर्डनेस कहाँ दिखी....
प्रतिभा - (तापस की ओर देखते हुए) सेनापति जी... आप तो इतने... बेवक़ूफ़ ना थे....
तापस - इंसान हूँ... कहीं कहीं... चुक जाता हूँ... पर चूक सुधारने के लिए... मेरी वकील साहिबा है ना....
प्रतिभा - हो गया...
तापस - अभी कहाँ... तुम डिटेल्स में.... बताओगी तो समझ में आएगा....
प्रतिभा - देखिए सेनापति जी.... इन पांच महीनों में... विश्व को... राजा साहब का... रुतबा समझ में आ चुका होगा... मेरे हिसाब से... विश्व ने... एनालीसीस किया होगा.... राजा साहब के एक इशारे पर... जब एक मंत्रालय.... विश्व के खिलाफ.... एसआईटी बना सकती है... उस आदमी को... कटघरे में खड़ा कर.... विश्व जो भी जिरह करता.... वह कोर्ट में... साबित भी नहीं कर पाता.... तब उसकी जिरह बेकार ही जाता....
तापस - हाँ... यह तो है... पर आज कोर्ट ने जो स्टैंड लिया है.... क्या तुम्हें जायज लगता है....
प्रतिभा - हाँ... चाहे कानून के नजरिए से... या फिर मानवीय दृष्टि कोण से.... जायज ही है...
तापस - अच्छा... वह कैसे....
प्रतिभा - देखिए.... सेनापति जी... कानूनन... इसलिए... भले ही... विश्व एक्युस्ड था... पर कहीं पर यह साबित नहीं हो सका... उसे जानकारी नहीं थी... या उसकी सहमती नहीं थी... या वह सामिल नहीं था.... हाँ जयंत सर होते तो बात कुछ और ही होती.... क्यूँ के... केस को अच्छी तरह से... स्टडी करने के बाद ही... उन्होंने सौ गवाहों के बीच से.... जिरह के लिए.... सिर्फ़... चार लोगों को चुना था.... और अगर वह राजा साहब की जिरह कर पाए होते.... तो बात अलग होती... पर विश्व की बदकिस्मती... जयंत सर चल बसे.... और विश्व जैसे.... आम इंसान के लिए.... राजा साहब जैसी शख्सियत का जिरह के जरिए.... कुछ भी तथ्य.... अदालत में प्रस्तुत कर पाना संभव ही नहीं था.... इसलिए.... अब तक जितनी भी.... प्रोसिडींग हुई है.... उस हिसाब से... कानूनन सजा ठीक ही है....
तापस - हाँ तुम... वकील हो... इस मामले में... मुझसे बेहतर समझ रखती हो.... पर इस में.... तुम्हें मानवीय पक्ष कहाँ नजर आया....
प्रतिभा - सेनापति जी... एसआईटी ने जिन पांच लोगों को.... मुख्य अभियुक्त बनाया है... सिर्फ़ एक ही कानून के सामने उपलब्ध हो पाया.... या फ़िर यूँ कहें... सिर्फ़ एक को... उपलब्ध कराया गया....
तापस यह सुन कर गाड़ी रोक कर एक किनारे लगा देता है, और हैरान हो कर प्रतिभा को देखने लगता है

प्रतिभा - यह वह सच है.... जिसे मैंने महसूस किया.... अदालत ने... केस को बंद नहीं किया है.... जिनको एसआईटी फरार बता रहा है.... उनके खिलाफ़ वारंट... अदालत से जारी की गई है.... जरूरत पड़ने पर.... रेड कॉर्नर नोटिस जारी करने के लिए कहा गया है....
तापस - हाँ तो...
प्रतिभा - सेनापति जी... अगर आपने जयंत सर को ध्यान से सुना हो... तो याद होगा.... उन्होंने कहा था.... के उन्हें डर है... एसआईटी जिन्हें फरार बता रही है.... वास्तव में वह शायद.... जिवित ना हों.....
तापस - हाँ याद है....
प्रतिभा - तो समझ लीजिए l.... विश्व को सजा दे कर.... अदालत ने... उसकी जान बचाई है....
तापस - तुम यह यकीन के साथ... कैसे कह सकती हो....
प्रतिभा - जरा सोचिए... सेनापति जी.... यह जितना छोटा और संक्षिप्त दिख रहा है.... असल में.... हमारे कल्पना से भी बड़ी है.... यह केस... टोटली फैब्रिकेटेड है.... फ्रेम्ड है.... विश्व सिर्फ़ एक.... डाइवर्जन है.... इसलिए तो अदालत ने इस केस को खतम नहीं किया.... सरकार को... एसआईटी की ऑफिसर बदलने को कहा है....
तापस - (गाड़ी शुरू करता है) लेकिन क्या तुम्हें लगता है.... सरकार इसे सिरीयसली लेगी...
प्रतिभा - नहीं.... सरकार... एक और टीम बना कर सात साल तक... केस को खिंचेगी.... सात साल बाद.... उन अभियुक्तों को.... मरा हुआ घोषित कर.... केस क्लोज कर देगी....
तापस - क्या बात है... मैडम... आज तो आपका दिमाग.... दिमाग नहीं.... कंप्युटर की अम्मा लग रही है....

प्रतिभा तापस को घूर कर देखती है l तापस उससे अपना नजरें चुरा कर गाड़ी चलाता है l

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उधर शाम हो चुकी है l चिलका के बीचों-बीच एक हाउस बोट में भैरव सिंह अपने चेयर पर बैठा है, उसके पास एक तरफ पिनाक सिंह और दूसरी तरफ ओंकार चेट्टी बैठे हुए हैं l कुछ दूर डायनिंग टेबल के पास परीडा, बल्लभ, यश और रोणा भैरव सिंह के तरफ मुहँ कर बैठे हुए हैं l एक कोने में दिलीप कर हाथ जोड़े खड़ा है l उन सबके बीच कोई बात चित नहीं हो रही है l आखिर कर ख़ामोशी को तोड़ते हुए

ओंकार - राजा साहब... अब तो कोर्ट का काम खतम हो गया है.... और केस भी लगभग खतम हो गया है.... बाकी जो भी है.... सब हमारे हाथ में है.....
पिनाक - कहाँ.... ओंकार जी.... अदालत ने केस को क्लॉज नहीं की है..... उल्टा... एसआईटी की टीम बदलने के लिए.... कहा है....
ओंकार - तो इसमें.... परेशान होने की... क्या बात है.... यह जज फिर अपने अपने रास्ते.... और केस का भविष्य.... गृह मंत्रालय के डस्ट बिन में.....
रोणा - पर मेरा तो... पोपट हो गया ना.... मुझे छह महीने के लिए.... सस्पेंड कर दिया गया है....
बल्लभ - शूकर करो... तुम्हारे इकबालिया बयान के चलते.... सिर्फ़.... सस्पेंड हुए हो... और नौकरी तुम्हारी सलामत है.... उस कर को देखो.... आजीवन चुनाव नहीं लड़ सकता है.....
रोणा - उसकी प्रॉब्लम भी कोई प्रॉब्लम है.... अरे वह नहीं लड़ सकता है..... तो अपनी बीवी को... तो चुनाव में.... खड़ा कर सकता है....
भैरव - बस.... (उसकी आवाज़ सुन कर, सब फिरसे खामोश हो जाते हैं) बस.. यह एक ऐसा केस है... जिसमें सब ने कुछ न कुछ खोया है.... पर जितना पाया है... उसके आगे.... यह खोना कुछ भी नहीं है.... (पिनाक की ओर देख कर) छोटे राजा जी.... पहले इस बेवक़ूफ़... कर को कुछ पैसे दो.... इसकी रोनी सुरत.... देखी नहीं जा रही है... (पिनाक अपनी ब्रीफकेस से पैसों कुछ गड्डी निकाल कर कर के तरफ फेंकता है, कर भी झपट कर वह पैसे उठा लेता है) अदालत ने अगर सामने का दरवाज़ा बंद किया है.... तो पीछे का दरवाज़ा इस्तमाल करने के लिए.... जो हमारा साथ देता है..... हम उसे कभी नहीं छोड़ते.... रोणा तुम्हारा तीन पोस्टिंग का कोटा.... सिर्फ़ पांच साल में पूरा हो जाएगा.... और उसके बाद राजगड़ में तुम रिटायर होगे....
रोणा - (खुशी के मारे) थैंक्यू.... थैंक्यू.. वेरी मच... राजा साहब... थैंक्यू... वेरी मच...
भैरव - दिलीप कर.... तु... फ़िकर मत कर.... तु.... मेरा बफादार था है और रहेगा.... और तुझे तेरे हिस्से की हड्डी मिलती रहेगी....
कर - आप मेरे भगवान... मैं आपका थूक चटा भक्त हूँ... अब मैं और क्या कउं... आप मालिक हो.... मैं कुत्ता हूँ...
पिनाक - कोई शक़...
भैरव - परीडा.... तुम वाकई बहुत काम आए.... तुम कहो.... तुम्हें क्या ईनाम... चाहिए....
परीडा - बस राजा साहब.... अदालत ने... मेरी कैरियर पर दाग लगा दी है.... आप मेरी प्रमोशन करवा दीजिए.... और यशपुर की एसएसपी बना कर पोस्टिंग करवा दीजिए...
भैरव - तथास्तु... ऐसा ही होगा.... प्रधान... हमने कभी... इंसान को पहचानने में... कोई गलती नहीं की है... चेट्टी एंड सन्स ने... मेरे इस खास रत्न पर मोहर भी लगा दी है.... इसलिए तुम आज मांगो क्या मांगते हो...
बल्लभ - बस राजा साहब.... आपकी छत्र छाया... मेरे सर पर यूँही बनी रहे.... आप दिन दुगनी और रात चौगुनी दौलत की गंगा बहाएं..... और हमारे ऊपर कुछ छिटें यूँ ही फेंक मारते रहें....
भैरव - तथास्तु.... अंत में... चेट्टीस् फादर एंड सन.... कहिए आप लोगों को क्या चाहिए....


ओंकार कुछ कहने को होता है पर यश उसे इशारे से रोक देता है

यस - राजा साहब... हम जानते हैं... आप ना तो किसीसे दोस्ती करते हैं.... और ना ही किसीसे दुश्मनी छोड़ते हैं.... बस हमे दोस्ती का दर्जा दीजिए.... यही ख्वाहिश है हमारी....

भैरव सिंह कुछ देर के लिए चुप हो जाता है l उसकी चुप्पी, वहाँ सबको डराने लगती है l पर यश के आंखों में कोई डर नहीं दिखता है l

भैरव सिंह - (मुस्कराते हुए) ठीक है.... यश.... हमे... चेट्टीस् के दोस्ती कुबूल है....
यश - ठीक है.... राजा साहब.... यही हमारे लिए... बेस्ट कंप्लीमेंट है... थैंक्यू....
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अगले दिन जगन्नाथ मंदिर में, वैदेही अपना सामान बांध कर कमरे से बाहर निकलती है l बाहर उसे पंडा और कुछ सेवायत उसके इंतजार में थे l वैदेही बाहर निकलती है और सबको हाथ जोड़ कर नमस्कार करती है l सब ज़वाब में वैदेही को नमस्कार करते हैं l

वैदेही - अच्छा बाबा... चलती हूँ... आपने जो किया... उसके की धन्यबाद बहुत ही छोटा है.... बस भगवान से प्रार्थना करूंगी... की मैं आपके चरणों की सेवा कर सकूँ... ऐसा अवसर मुझे दे....
पंडा - मैं कौन हूँ... मैं क्या हूँ... सब उसकी मर्जी.... अगर मंजिल के राह में... ठोकरें लगते रहे... तो समझ लो.... उसने कुछ तो जरूर सोच रखा होगा....... और वह बहुत ही खास होगा....

वैदेही कुछ नहीं कहती बस हल्की सी मुस्करा देती है और मंदिर से बाहर निकल कर रास्ते पर ऑटो के लिए खड़ी होती है l उसके साथ साथ पंडा भी आकर खड़ा होता है l

वैदेही - बाबा आप क्यूँ यहाँ आए... मैं बस स्टैंड चली जाऊँगी....
पंडा - बेटी अब तो तेरा यहाँ.... आना नहीं होगा... तेरे भाई से मिलने अब तुझे भुवनेश्वर जाना होगा....
वैदेही - हाँ बाबा.... मैं कुछ कर लुंगी... बाबा आप फ़िकर ना करो...
पंडा - अरे कैसे ना करूँ... कल को अगर बुलावा आ गया... तो उस कम्बख्त को क्या मुहँ दिखाऊंगा....
वैदेही - पर बाबा....
पंडा - चुप रह और सुन.... अगली बार जब विश्व से मिलने जाएगी.... तब मुझसे एक बार मिलकर चले जाना....
वैदेही - पर... क्यूँ बाबा...
पंडा - देख... भुवनेश्वर राम मंदिर में कोई धर्मशाला नहीं है.... सेवायतों के लिए तीन चार कमरे हैं.... और उस मंदिर का पुजारी मेरा ही भाई है.... वह तुम्हारे ठहरने का प्रबंध कर देगा....
वैदेही - (मुस्कराते हुए) ठीक है बाबा... (इतने में ऑटो आजाती है, वैदेही उसमें बैठ जाती है) अच्छा बाबा मैं... चलती हूँ...
पंडा - (उसे टोक कर) चलती हूँ नहीं बेटा.... कहो फिर मिलते हैं... इससे जीने की आस बनी रहती है....
वैदेही - ठीक है बाबा... फिर मिलते हैं...
पंडा - हाँ... फ़िर मिलते हैं....

ऑटो निकल जाती है चांदनी चौक से निकल कर रिंग रोड पर आ जाती है और बादाम बाड़ी बस स्टैंड की बढ़ने लगती है, तभी एक फॉर्च्यूनर उसके सामने रुक जाती है l एक आदमी उतरता है, जेब से रिवाल्वर निकाल कर ऑटो ड्राइवर को ऑटो छोड़ कर भागने के लिए कहता है l ऑटो ड्राइवर बिना पीछे देखे भाग जाता है l

आदमी - सुनो वैदेही.... तुम्हारे लिए... एक अलग गाड़ी की व्यवस्था की गयी है....

वैदेही अपना ऑटो से उतरती है और पीछे मुड़ कर देखती है l एक चमचमाती दुध सी सफेद रंग की गाड़ी, रोल्स रॉयस l गाड़ी देखते ही वैदेही समझ जाती है, यह भैरव सिंह की गाड़ी है l तब तक उसका समान वह आदमी ऑटो से निकाल कर रोल्स रॉयस की ओर बढ़ जाता है l वैदेही भी उसके पीछे पीछे गाड़ी तक जाती है l ड्राइवर डिकी में सामान रखने के बाद कार का दरवाजा खोल देता है और वैदेही को अंदर जाने के लिए कहता है l वैदेही भी बिना कुछ कहे गाड़ी के अंदर जा कर बैठ जाती है l उसके सामने वाली सीट पर भैरव सिंह बैठा हुआ है l गाड़ी में पिछली सीट की अरेंजमेंट आमने सामने किया गया है l गाड़ी के इंटरकम से ड्राइवर को गाड़ी चलाने को बोलता है भैरव सिंह l गाड़ी चलने लगती है l वैदेही गुस्से से भैरव को देखती है l भैरव सिंह उसके गुस्से को देख कर एक कुटील मुस्कान से वैदेही को देखता है l

भैरव - कोई बात नहीं मेरी रंडी... तु जितना चाहे मुझे गाली दे सकती है.... कोई नहीं सुन पाएगा.... गाड़ी का यह हिस्सा साउंड प्रूफ़ है... इसलिए मेरे लिए... जितनी गालियाँ सोच रही है.... जल्दी जल्दी उगल दे.... फिर मौका मिले ना मिले....
वैदेही - कमीने.... कुत्ते.... हरामी... मादरचोद.... सुवर... गंदी नाली के कीड़े... वहशी... दरिंदे.... (वैदेही चुप हो जाती है)
भैरव - बस.... इतनी ही गाली आती है.... तुझे.... तेरे पेट में... मेरे लिए... गाली भी नहीं बन रही है.... हाँ.... कैसे बनेगी... बाँझ जो ठहरी... जब इतनी चुत फाड़ चुदाई के बाद... बच्चा नहीं जन पाई... तो गाली कहाँ से लाएगी... कुत्तीआ...

वैदेही गुस्से से थर्रा जाती है, चेहरा लाल हो जाती है पर कुछ कह नहीं पाती l

भैरव - अरे कुछ नहीं सूझ रहा है तुझे... कोई बात नहीं.... मैं ही बता देता हूँ तुझे.... यही सोच रही है ना.... यह गाड़ी कितने की है.... पुरे चालीस करोड़ की है... इसे रोल्स रॉयस कहते हैं... मेड ऑन ऑर्डर गाड़ी इसे कहते हैं.... समझी... अब तु सोचेगी... इतनी महंगी गाड़ी में.... तुझे क्यूँ बिठाया.... तो सुन मेरी रंडी कुत्तीआ.... तेरी गांड इतनी बार फाड़ी है... तो तुझ पर तरस खा कर... सोचा एक बार... चालीस करोड़ की कार में.... एक तेरा पिछवाड़ा ही टिका दूँ....
वैदेही - क्या यही बकवास सुनाने के लिए.... मुझे अपने साथ ले जा रहा है.... कहाँ..... फिर रंग महल को.... या किसी थर्ड ग्रेड लॉज को....
भैरव - तु.... इस खुश फहमी मत पाल ले... के तुझमे निचोड़ने के लिए... कुछ रस बचा भी है....
तुझे.... अपने साथ राजगड़ लिए जा रहा हूँ... अपने भाई के लिए... उस जयंत के साथ सो सो कर थक गई होगी.... इसलिए तुझे अपने तरफ से... चालीस करोड़ की सवारी पर लिफ्ट दे रहा हूँ... शर्त लगा ले... इतनी महंगी लिफ्ट... पुरे राज्य में.... किसीने नहीं ली होगी....

वैदेही गुस्से से भैरव पर झपट पड़ती है l भैरव उसे पकड़ लेता है और वैदेही के हाथ को मरोड़ कर सीट पर उल्टा लिटा देता है l

भैरव - अरे वाह कुत्तीआ... काटने को आ गई.... (वैदेही को दर्द हो रहा है, भैरव के कब्जे में वह छटपटा रही है, उसके गालों पर उंगली फेरते हुए) बस..... बस यही दर्द.... यही छटपटाहट देखना चाहता था.... तेरी.... (भैरव उसके ऊपर झुक कर उसके कान के पास) तुझे आज बिन पानी के मछली के जैसे फड़फड़ाते देख.... मुझे कितना सुकून मिल रहा है.... क्या बताऊँ.... (कह कर वैदेही को छोड़ देता है, वैदेही अपनी हाथ को पकड़ कर भैरव सिंह को गुस्से से देखने लगती है) तेरे खानदान की औरतों को चोद कर.... अगली नस्ल की फसल तैयार किया जाता था..... पर तु.... कमीनी रांड साली... बाँझ निकली.... यह मेरी पहली हार थी.... मेरे दादा, मेरे पिता सबने अपनी बीज का फल चखा.... पर तु बाँझ साली कुत्तीआ... मुझे वह संतुष्टि नहीं दे सकी.... (वैदेही उसे घूरे जा रही है) सात साल... कितनी चुदाई की.... पर तुने मेरे बीज का फल नहीं दिया.... एक बार बड़े राजा ने.... मेरे मर्दानगी पर सवाल उठा दिया.... मैंने इसलिए गांव में ढूंढ ढूंढ कर बीज डालता गया... और फसल बनाता गया... इसके बाद डॉक्टर को बुला कर जब चेक कराया.... तु कम्बख्त बाँझ निकली.... वह पल मेरे लिए बहुत ही दर्दनाक था.... वह क्या है कि.... मेरे सुख और तेरे दर्द के बीच जो आएगा.... वह तबाह और बर्बाद हो जाएगा....
वह चाहे... तेरी माँ हो, रघुनाथ हो, या उमाकांत आचार्य, या विश्व हो... या फ़िर जयंत... हा हा हा हा....

वैदेही - जयंत सर... उनको बेइज्जत कर, गोबर फीकवा कर...
भैरव - ऐ... चुप... तूने देखा नहीं..... जैसे ही गवाह के कटघरे में उसके आँखों में देखा.... खौफ से उसका दिल धड़कना बंद कर दिया.... समझ गई... यह है मेरा खौफ, रौब और रुतबा...
वैदेही - मुझसे इतनी ही नाराजगी है... तो मुझे रंग महल के जानवरों के हवाले क्यूँ नहीं कर दिया....
भैरव सिंह - सोचा तो मैंने भी यही था.... पर मैंने फिर सोचा.... अगर तु मर गई... तो मजा वहीँ खतम हो जाएगा.... मैं तो तुझे तड़पते हुए, चीखते हुए, रोते बिलखते हुए देखना चाहता था..... इतनी बेरहमी से चुदाई के बाद... जब तु... चिल्लाई नहीं... तब दूसरों से भी तुझे चुदवाया.... पर फिरभी.... तेरे चेहरे पर... दर्द उभरा ना जिल्लत.... इसलिए तुझे चुड़ैल बता कर लोगों से पथराव करवाया.... लोग पत्थर बरसा रहे थे... मुझे असीम खुशी मिल रही थी.... पर तुझे.... विश्व ने आकर बचा लिया.... उसी दिन से विश्व.... मेरा टार्गेट बन गया.... हूं ह... मुझे नीचा दिखाने के लिए... उससे ग्रैजुएशन करवा रही थी.... मैंने उसे फंसा कर... जैल की रोटी तोड़ने के लिए छोड़ दिया.... क्यूंकि मुझे तेरी दुखती रग मिल चुका था..... हा हा हा.... विश्व... तु भले ही बेज़ान हो गई है.... पर तुझे दर्द तब होती है... जब विश्व को दर्द होता है.... हा हा हा हा.... यही... हाँ यही तो तेरे चेहरे पर देखना चाहता था.... हा हा हा हा
वैदेही - यह तुने.... ठीक नहीं किया भैरव सिंह क्षेत्रपाल.... यह तुने ठीक नहीं किया....
भैरव - अच्छा... कौन मेरा... क्या उखाड़ लेगा... तेरा भाई विश्व... हा हा हा हा...
वैदेही - हँस मत कुत्ते हँस मत.... कोई देखेगा तो सोचेगा.... राजा साहब पागल हो गया है.... इसलिए हँस मत...
भैरव - आले आले आले... मेरे हँसने से... मेरी कुत्तीआ का... पिछवाड़ा सुलग रही है...
वैदेही - भैरव सिंह तुने मुझे... जिंदा रख कर बहुत बड़ी.... गलती कर दी है.... अब विश्व को भी... जिंदा नहीं छोड़ना था....
भैरव - (वैदेही के गालों को अपने पंजे से पकड़ कर) तु जिंदा है... मेरी झांट के बाल तक उखाड़ नहीं पाई.... सिर्फ़ विश्व को मेरे खिलाफ भड़काने के सिवा.... और वह तेरा विश्व क्या कर लेगा मेरा.... मेरे एक भीमा के बांह बराबर नहीं है... फूँक मारूं... उड़कर पता नहीं कहाँ गिरेगा... कुत्तीआ... साली कहती है... मैंने गलती की है....
वैदेही - विश्व से डरता है तु.... इसलिए... उसे लंगड़ा करने की कोशिश की थी तुने.... उसका हुक्का पानी बंद करवा रखा है तुने....
भैरव - वह इसलिए... के वह जब जब गली गली भीख मांगता... तब तेरे तड़प देख कर मैं... खुश होता....
वैदेही - पर भाग्य ने यह होने नहीं दिया....
भैरव - भाग्य... जब जब भाग्य मुझसे... पंजा लड़ाया है... मैंने तब तब किसी और का भाग्य लिखा है.....
वैदेही - इतना अहं.... पचा नहीं पाओगे... यह तब तक... है जब तक... विश्व अंदर है... वह जब आएगा... तु बहुत रोएगा... उसके इरादों के आँधी के आगे... तेरा साम्राज्य तिनका तिनका उड़ जाएगा.... उसके नफ़रत के सैलाब से.... तेरा जर्रा जर्रा बह जाएगा.... देखना.... आखिर उस पर... मेरे तीन थप्पड़ों का.... कर्ज है...
भैरव - आई शाबाश... मुझे अब तुझ पर प्यार आ रहा है... मेरी रंडी कुत्तीआ.... चल आज तेरी खुशी के लिए... मैं सात साल तक विश्व को भूल जाता हूँ... तो बता विश्व आकर मेरा क्या उखाड़ेगा....

वैदेही चुप रहती है और गुस्से से भैरव सिंह को देखती है l भैरव सिंह उसे देख कर हँसने लगता है l ऐसे में वे लोग राजगड़ के मुख्य चौराहे पर पहुंच जाते हैं l

भैरव - चल उतर हरामजादी... तुने विश्व को अपने तीन थप्पड़ों के कर्ज तले दबा रखा है.... ना... अब मैं तुझे... उसके सात साल के लिए... सात थप्पड़ों का कर्ज दूँगा... इसी बीच चौराहे पर....

यह कह कर भैरव सिंह, वैदेही को बालों को पकड़ कर बाहर खिंच निकालता है, वैदेही देखती है, वहाँ पर लोगों का जमावड़ा है

भैरव - यह सब तेरे लिए ही इकट्ठे हुए हैं... मैंने इनसे वादा किया था... आज इस चौराहे पर... तेरा तमाशा करूंगा.... देख लोग कितनी बेताबी से... तेरी तमाशा देखने के लिये खड़े हैं... हा हा हा हा... देख....

वैदेही लोगों के चेहरे को देखती है l सबकी आँखों में भय और विवशता दिखती है l

भैरव - (चिल्लाते हुए) गांव वालो... हमने जो इसकी हुक्का-पानी बंद किया था.... वह आज हटा रहे हैं... पर इसके भाई की हुक्का-पानी बंद रहेगी..... (वैदेही को देख कर) क्यूँ कुत्तीआ... कैसी रही.... चल बता... विश्व आएगा.... तो यहाँ क्या बदलेगा....

यह कह कर भैरव सिंह वैदेही को पहला थप्पड़ मारता है l थप्पड़ लगते ही वैदेही का बायाँ गाल लाल हो जाती है l

भैरव - चल बता... क्या कर लेगा.... यहां क्या बदलेगा....
वैदेही - तेरे पाले हुए कुत्ते... जो... तेरे नाम की खौफ... फैला कर गली गली शेर बन फ़िर रहे हैं.... उन्हें विश्व कुत्तों की तरह इन्हीं गालियों में... दौड़ा दौड़ा कर मारेगा....
भैरव - वाह मजा आ गया... वाह...

यह कह कर दुसरा थप्पड़ उल्टे हाथ से मारता है, वैदेही गिर जाती है और उसका दायाँ गाल की हालत वही होती है l

भैरव - हाँ अब बता... अब क्या बदलेगा...
वैदेही - तेरे खानदान को... छोड़ किसीने.... यहाँ पर... कभी उत्सव नहीं मनाई... वह आकर पहला उत्सव मनाएगा.....
भैरव - वाह क्या बात है... वाह... (कह कर बलों से खिंच कर उठाता है) यह ले यह तीसरा थप्पड़....

तीसरे थप्पड़ से वैदेही के गालों पर भैरव सिंह के हाथों के निशान दिखते हैं l

भैरव - चल बता.... लोग मजे ले रहे हैं.... चल बता...
वैदेही - आज तक किसीने... क्षेत्रपाल नाम के खिलाफ... पुलिस थाने में... केस दर्ज नहीं कराई.... वह करेगा....
भैरव - बढ़िया... बहुत बढ़िया.... वाह. हम बहुत खुश हुए, यह ले यह चौथा (कह कर फ़िर उल्टे हाथ थप्पड़ मारता है)
वैदेही - जो लोग यहाँ पर... क्षेत्रपाल यह क्षेत्रपाल महल के तरफ पीठ नहीं करते, उल्टे पांव लौटते हैं.... उसके आने के बाद... सब एक दिन तुझे और तेरी महल को पीठ करेंगे और वापस भी लौटेंगे.... बिना उल्टे पांव के.....
भैरव - आ हा... हाहा... हा मजा आ गया... यह ले पांचवां (कह कर थप्पड़ मारता है, इस बार वैदेही के होंठ फट जाते हैं)
वैदेही - (एक घूंट खून की थूकती है) जिस अहंकार के दम पर.... हमारे परिवार को तितर बितर किया है.... उसी अहंकार के चलते.... तुझसे तेरा परिवार भी तितर बितर हो जाएगा.... इसका वजह... विश्व नहीं तु होगा....
भैरव - आह... इतनी खुशी.... बर्दाश्त नहीं हो रही.... यह ले छटा....

इसबार वैदेही नीचे गिर जाती है पर उठ नहीं पाती l भैरव एक आदमी को इशारा करता है तो वह आदमी बोतल से पानी निकाल कर वैदेही के मुहँ पर उड़ेल देता है l वैदेही उठती है l

भैरव - चल बता... छटा लगाया है.... चल बता....
वैदेही - इस गांव में मातम में सिर्फ़ क्षेत्रपाल महल में ही भीड़ होती थी.... पर विश्व आने के बाद मातम गांव में तो मनेगा..... पर कोई क्षेत्रपाल महल के मातम में शामिल नहीं होगा....
भैरव - वाह वाह वाह.... बस आखिरी थप्पड़... कह कर जोर से हाथ घुमा देता है l थप्पड़ लगते ही, वैदेही छिटक कर दूर गिरती है l बड़ी मुश्किल से उठ खड़ी होती है l

वैदेही - तू... अपने गरूर के सिंहासन पर होगा.... यही लोग तेरे... महल की ईंट से ईंट बजा देंगे... तेरी महल ढह जाएगी.... क्षेत्रपाल.... यह नाम सिर्फ इतिहास हो जाएगा.... और तेरे लोगों की अंजाम की कहानी.... आने वाले कल में... बुजुर्गों से सुनी भी जाएगी... सुनाई भी जाएगी....

इतना कह कर वैदेही गिर जाती है l एक आदमी भैरव सिंह के गाड़ी से वैदेही की सामान निकाल कर फेंक देता है l फिर भैरव सिंह वहाँ से गाड़ी में बैठ कर चला जाता है l लोग धीरे धीरे वहाँ से चले जाते हैं l पश्चिम आकाश में सुरज डूब रहा है l पर उस चौराहे पर वैदेही अभी भी बेहोश पड़ी हुई है l
Super fantastic update
 

parkas

Well-Known Member
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61,182
303
👉पैंतालीसवां अपडेट
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तीन महीने बाद
ESS ऑफिस में विक्रम, पिनाक और वीर बैठे हुए हैं l महांती उस कैबिन के दीवार पर लगे मैप पर पिन लगा कर लाल घागा बांध कर तीनों के तरफ मुड़ता है l

महांती - सो वेलकम जेंटलमेन... मैं आज आपको गुड न्यूज दे रहा हूँ... ऑल मोस्ट ऑल ऑर्गनाइजेशन, कॉर्पोरेट हाउसेस, मीडिया हाउसेस, बैंक और इंस्टिट्यूशन्स सभी को... भुवनेश्वर में हम... सिक्युरिटी प्रोवाइड करेंगे.... वह भी हमारी सर्विलांस के साथ....
पिनाक - वाह... बहुत अच्छे... युवराज जी वाह... आपका प्लान वर्क आउट कर गया...
विक्रम - ह्म्म्म्म...
पिनाक - अब आगे क्या सोचा है....
विक्रम - (महांती के ओर देख कर) महांती... यह स्पाय बग क्या होता है...
महांती - ट्रांसमीटर, ट्रैकर... बहुत कुछ....
विक्रम - देखो महांती... हम से जो भी सर्विस लेंगे... उनके अपने टर्मस एंड कंडीशनस होंगे... पर... हमे अग्रीमेंट के बीयंड जाना है...
महांती - समझ गया... युवराज...
वीर - क्या समझ गया... हम भी इस टीम में हैं... तो हमे भी थोड़ा समझाओ...
महांती - राजकुमार जी... युवराज जी के कहने का मतलब... हम उनके पर्सनल और प्रोफेशनल सारे डिटेल्स तक पहुंचेंगे... उनकी प्राइवेट और सीक्रेट सब हमारे पास सीक्रेट नहीं रहेगा... और उसके आड़ में बहुत कुछ हासिल हो सकता है...
वीर - मतलब...
विक्रम - मतलब यह है कि.... हम राजधानी में प्रभाव बढ़ाने जा रहे हैं... हम कोई बिजनैस नहीं करेंगे पर... सभी बिजनैस में हम ही हम होंगे... या तो प्यार से... या फ़िर जोर से...
वीर - ओ... मतलब हर बिजनैस में... हमारा हिस्सा होगा... पर इसके लिए... हमे बहुत हाईटेक होना होगा... हमे सबमें बेस्ट होना होगा....
महांती - हाँ हमारे गार्ड्स के ट्रेनिंग... उसी लेवल का हो रहा है... यकीन मानिए राजकुमार जी... आने वाले समय में... ESS की इंटेलिजंस भी.. सीआईडी या सीबीआई जैसी होगी... उनसे उन्नीस तो बिल्कुल नहीं होगी...
पिनाक - वाव...
विक्रम - छोटे राजा जी... डेविल आर्मी तैयार हो गई है... अब हैल की डिवेलपमेंट कहाँ तक पहुँची है....
पिनाक - शायद और दो महीने बाद... हम गृह प्रवेश कर पाएंगे...
विक्रम - ठीक है... महांती... हमारी रेपुटेशन कुछ उस लेवल तक हो... की लोग थाने के वजाए हमारी ESS के पास आए... और वह सब हम खुद डील करेंगे...
महांती - जी युवराज... हो जाएगा... पर ख़र्चे भी उस लेवल का होगा... और एक बात... अब आप, राजकुमार और छोटे राजा जी सब ESS की सिक्युरिटी लेकर चलें....
वीर - यह सिक्युरिटी लेकर चलना आपको मुबारक... हम नहीं लेकर जाने वाले...
विक्रम - क्यूँ....
वीर - फ़िलहाल हम स्टूडेंट लाइफ एंजॉय करेंगे... जब हम भी डायरेक्ट पालिटिक्स में आयेंगे... तब देखेंगे... आप बस महांती को पैसे की बात देखिए...
पिनाक - आप उसकी फ़िक्र मत करो.... जो भी है... वन टाइम इंवेस्टमेंट है... वैसे महांती क्या करोगे...
महांती - एक बहुत बड़ा सर्वर रूम... कंट्रोल रूम...
पिनाक - ठीक है.. ठीक है... जो भी है... उस पर काम शुरू कर दो...
विक्रम - महांती... यह बग के इंस्टालेशन जितना सीक्रेट हो उतना अच्छा...
महांती - उसकी फ़िक्र आप ना करें... वह सब सीक्रेट ही रहेगा...

इतने में पिनाक का फोन बजने लगता है l पिनाक वह फोन देख कर थोड़ा मुस्कराता है और

पिनाक - मुझे पार्टी ऑफिस जाना होगा... बाकी यह प्रोजेक्ट और यह प्लान आपका है... युवराज.... इसलिए आगे क्या हो सकता है और आप क्या कर सकते हैं... यह आप सोचिए... हम चले अपने प्रोजेक्ट पर....
वीर - आपका प्रोजेक्ट...
पिनाक - हाँ... क्यूँ हमारा कोई प्रोजेक्ट नहीं हो सकता है क्या....
वीर - क्यूँ नहीं हो सकता... पर युवराज जी का रंगमहल प्रवेश हो चुका है...(विक्रम के ओर देखते हुए) तो क्या उनको पता है... आपके प्रोजेक्ट के बारे में...
विक्रम - नहीं... हमे नहीं पता...
पिनाक - हमारा यह प्रोजेक्ट पुरी तरह से पर्सनल है... इसलिए युवराज नहीं जानते....

इतना कह कर पिनाक वहाँ से निकल जाता है l पिनाक के जाने के बाद महांती भी विक्रम से इजाजत लेकर बाहर चला जाता है l

वीर - तो हम चलें...
विक्रम - राजकुमार जी... अब आप गाड़ी चलाना सीख लीजिए... आप पूरी तरह इंडिपेंडेंट बन जाइए....
वीर - ह्म्म्म्म... आइडिया अच्छा है... पर अब तो मेरे ड्राइवर आप हैं....
विक्रम - ठीक है राजकुमार.... आज के लिए ही हम आखिरी बार... गाड़ी ड्राइव करेंगे... क्यूंकि कल से... हम गार्ड्स से घिरे रहेंगे... पुरे वीवीआईपी के जैसे...
वीर - ठीक है...

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गाड़ी के पीछली सीट पर प्रतिभा और प्रत्युष बैठे हुए गप्पे लड़ा रहे हैं और रेअर मिरर से उन दोनों को मजे से गप्पे लड़ाता देख चिढ़ा हुआ तापस गाड़ी ड्राइविंग कर रहा है l

प्रतिभा - हाँ तो ड्राईवर... गाड़ी को जरा महानदी व्यू होटल ले चलो...
तापस - यह बहुत हो रहा है... तुम माँ बेटे... मुझसे ऐसे बदला ले रहे हो... जिस दिन मेरी बारी आएगी... उस दिन देखलेना...
प्रत्युष - देखो ड्राइवर... आप बस कार ड्राइव करो... हमारे पचड़े में मत पड़ो...
तापस - तो बिल भी आप दे देना मालिक...
प्रत्युष - कौनसा बिल...
तापस - क्यूँ... होटल में बिल क्या तुम्हारा बाप भरेगा...
प्रतिभा - कोई नहीं... बाप नहीं... इस बार बिल माँ भरेगी...
प्रत्युष - देखा... हो गया ना आपका पोपट...
तापस - हाँ बेटे... तुम माँ बेटे मिलकर मुझसे चीटिंग कर... पत्ते में हराया है... और ड्राइवर बना कर... लिए जा रहे हो...
प्रत्युष - हाँ तो... आपने ही तो चैलेंज लिया था... के हॉकी के चक्कर में... मैं इंटरेंशिप भी नहीं कर पाऊँगा...
प्रतिभा - और नहीं तो... इंटेरेंशिप तक पहुंच गए तो ड्राइवर बन कर ट्रीट दोगे बोले भी थे... बचने के लिए तास की पत्ते का गेम चैलेंज दिया... आपने लिया...
प्रत्युष - इसलिए ड्राइवर... ट्रीट तो माँ ही देगी... आप बस टीप दे देना...
तापस - हम्म... याद रखूँगा...
प्रतिभा - वाकई यह दिन याद रखने लायक है... सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस... मिस्टर तापस कुमार सेनापति... आज ड्राइवर बन गए हैं...

दोनों माँ बेटे हँसने लगते हैं l तापस गुस्से से उनको रेअर मिरर से देखता है और मुहँ बना कर गाड़ी चलाता है l उसी होटल के एक टेबल पर पिनाक और यश आमने सामने बैठे हुए हैं l

पिनाक - यश बाबु... आपका कहिए... कैसे याद किया... हमने आपके लिए एक मीटिंग को पेंडिंग कर आए हैं...
यश - वह क्या है कि... बड़े लोग कह गए हैं... उपकार किया तो भूल जाओ और.... पर काम किया हो तो कीमत जरूर माँगों...
पिनाक - हमारे भी बड़े कह गए हैं... उपकार लिया है तो याद रखो... काम लिया है तो कीमत अदा करो.... कहिए यश बाबु... क्या कीमत चाहिए....
यश - एक बहुत बड़ा ज़मीन... मैं पहली बार वाईआईसी फार्मास्यूटिकल्स को कटक से बाहर ले जाना चाहता हूँ... और इस बीच मैं कई बार... राजगड़ जा कर आ चुका हूँ... मुझे वह जगह बहुत पसंद आई है... चूंकि हस्पताल का एक एक्सटेंशन जा रहा है... लगे हाथ फैक्ट्री का भी कल्याण कर दीजिए...
पिनाक - हूँ... पर फैक्ट्री के लिए राजगड़ ही क्यूँ...
यश - फ़िक्र ना करें छोटे राजा जी... मैं जानता हूँ... राजगड़ में आपके सिवाय कोई इंडस्ट्री लगा नहीं सकता... मैं खुद वह बाउंड्री लाइन क्रॉस नहीं करना चाहता... आपका हमारा पार्टनरशिप रहेगा... ज़मीन आपकी इंफ्रास्ट्रक्चर और इंवेस्टमेंट मेरा...
पिनाक - हूँ... प्रपोजल तो अच्छा है... पर फ़िर भी... राजगड़ ही क्यूँ...
यश - वेरी सिम्पल... पूरे राजगड़ और यशपुर... और उसके आस पास जहां भी क्षेत्रपाल एंड कंपनी की फैक्ट्रियाँ हैं... वहाँ पर लेबर कॉस्ट... पूरी दुनिया में सबसे कम है... और सोने पे सुहागा... इस मैटर पर कोई हिम्मत नहीं करता... अपना सर खपाने के लिए...
पिनाक - हाँ... यह तो है...
यश - वैसे कैसा है... अपना हीरो... आपका युवराज...
पिनाक - बढ़िया है... वैसे... उसके लिए थैंक्स... हाँ....
यश - नो मेनशन... कितनी डोज दिया है उसे...
पिनाक - दो डोज... जिस दिन रंगमहल प्रवेश हुआ... उस दिन तो क्या कहने... और दो डोज दिए हैं.... अभी इन तीन महीने में... पर उसका आउट कॉम क्या हुआ... यह मालुम नहीं हुआ....
यश - तो और मत दीजिए... एक बात याद रखिए... छोटे राजा जी... जिसके मन में सेक्स डिजायर होता है... या बायोलॉजीकल नीड होता है... यह दवा उस डिजायर या नीड को बूस्ट करता है... अगर यह दवा खाने वाला... ख़ुद को... सेक्स से दूर रखेगा... तो उस दवा के साइड इफेक्ट से.... उसका फ्रस्ट्रेशन लेवल एलीवेट होगा... जो उसे धीरे धीरे आपके युवराज को.. वाइलेंट करेगा... करता ही जाएगा...
पिनाक - ओ... यश बेटा... क्या सेक्स तुम्हारा भी डिजायर है या नीड....
यश - सेक्स मेरा... ना तो नीड है... ना ही डिजायर... सेक्स तो मेरा पैशन है.....
पिनाक - हूँ... खैर उसकी नौबत नहीं आयेगी.... क्षेत्रपाल है... वह अपना डिजायर फुल फिल कर लेगा...
यश - तो सैंपैन मंगवाये...
पिनाक - हाँ मंगवा लो...

यश फोन पर सैंपैन ऑर्डर करता है l और कुछ देर बाद एक वेटर सैंपैन का बॉटल और दो ग्लास रख कर चला जाता है l

बाहर कुछ देर बाद सेनापति परिवार गाड़ी से पहुंचते हैं l प्रतिभा और प्रत्युष गाड़ी से उतर कर सीधे होटल में घुस जाते हैं l तापस गाड़ी पार्क करके अंदर पहुंचता है l तो देखता है एक बहुत बड़े ग्राउंड में कुछ कॉटेज नुमा शेड है तापस ग्यारह नंबर कॉटेज में पहुंचता है l वहाँ लगे टेबल पर पहले से ही प्रतिभा और प्रत्युष दोनों बैठे हुए हैं l तापस उनके पास आकर बैठ जाता है l

तापस - वाह बच्चू... होटल पहुंचते ही अपने बाप को भूल गए...
प्रत्युष - डेड आप मेरा इंसल्ट कर रहे हैं... मैं इतना नामाकूल, नामुराद, नालायक नहीं हूँ...
तापस - तो क्या हो...
प्रतिभा - होनेवाला एमबीबीएस डॉक्टर... प्रत्युष सेनापति...
प्रत्युष - थैंक्स माँ... देखा डैड... डोंट बी सैड...
तापस - (माँ बेटे की जुगलबंदी देख कर मुहँ बना कर चुप बैठता है) वेटर... (बुलाता है)
एक वेटर आकर - यस सर...
प्रत्युष - अरे वेटर... ऑर्डर मैं दूँगा...
वेटर - ठीक है सर... (मेन्यू कार्ड देता है)
प्रत्युष - अरे यह मेन्यू कार्ड हटाओ... मैं जो ऑर्डर करूँ वह लाओ... मेरे लिए... एक मटका बिरियानी और एक बैंबु मटन... माँ के लिए... दो बटर नान चिल्ली पनीर और कढ़ाई मशरूम... और डैड के लिए तीन तंदुर रोटी और एक डाल फ्राय... सिंपल... जाओ...
वेटर - सर स्टार्टर में कुछ...
प्रत्युष - ठीक है... हमारे लिए.. मसाला पापड़ और डैड के लिए ग्रीन सलाद... अब जाओ...

वेटर चला जाता है, वेटर के जाने के बाद प्रत्युष तापस की ओर देखता है, तापस प्रत्युष को ऐसे देख रहा है जैसे वह कच्चा चबा जाएगा l

प्रत्युष - (डरने की ऐक्टिंग करते हुए) क्य.. क्या हुआ डैड... आप मुझे ऐसे क्यूँ देख रहे हैं...
तापस - कमीने... तेरी और तेरी माँ की ऑर्डर देख और मेरी ऑर्डर देख... मैंने क्या बिगाड़ा तेरा... जो मुझे घास फुस खिलाएगा...
प्रत्युष - डैड... जब माँ को बिल पे करना है... तो ऑर्डर स्पेशल होना चाहिए कि नहीं...
तापस - यानी अगर मैं बिल पे करूँ... तो ऑर्डर बदल सकता है...
प्रत्युष - ना... वह अगली बार के लिए...

इतने में वेटर स्टार्टर लाकर टेबल पर सर्व कर देता है l वेटर के जाते ही

तापस - क्या बात है भाग्यवान.... हम बात बेटे में इतना तर्क हुआ... पर तुमने हिस्सा नहीं लिया...
प्रतिभा - हाँ वह... दोनों वहाँ पर जो बैठे हुए हैं... क्या हम उन्हें जानते हैं...
प्रत्युष - ( उस तरफ देखते हैं) हाँ माँ वह जो शूट बूट और फ्रेंच कट दाढ़ी के साथ बैठे हैं... वह हमारे निरोग हस्पताल के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं... पर उनके बगल में जो बैठे हैं... उन्हें नहीं जानता...
तापस - वह... पिनाक सिंह क्षेत्रपाल हैं...
प्रतिभा - तभी..... तभी मेरी नज़र बार बार उस तरफ जा रहा है...
प्रत्युष - एक मिनट... (इतना कह कर प्रत्युष उठ जाता है और यश के बैठे शेड तक जाता है, यश से ) गुड इवनींग सर...
यश - (हैरान हो कर) गुड इवनींग... आप कौन हो बरखुरदार... क्या मैं आपको जनता हूँ...
प्रत्युष - नो सर... पर मैं आपको जनता हूँ... सर मैं आप ही के कॉलेज में मेडिकल पढ़ रहा हूँ... इस साल इंटरैंनशीप में जा रहा हूँ...
यश - ओह... कंग्रैचुलेशन... एंड केरी ऑन...
प्रत्युष - थैंक्यू सर...
यश - यहाँ कैसे... माय बॉय...
प्रत्युष - वह सर माँ और डैड के साथ पार्टी करने आया था... आपको देखा तो रहा नहीं गया... इसलिए चला आया... क्यूँ की आप हम सबके... आइडल हैं... आइकॉन हैं... आप तक मीडिया वाले भी नहीं पहुंच पाते... पर आज मैं बहुत लकी हूँ... आपसे मेरी बात हो पा रही है...
यश - थैंक्यू.. थैंक्यू...
प्रत्युष - सर अगर आप बुरा ना माने तो..
यश - क्या...
प्रत्युष - सर यहीँ... मेरे मोम डैड हैं... ईफ यु डोंट माइंड...
यश - ओके...
प्रत्युष - (हाथ से इशारा करते और आवाज देकर) माँ... डैड... प्लीज यहाँ आइए... (प्रतिभा और तापस उस शेड में पहुंचते हैं) सर... यह मेरी माँ हैं... एक लयर और यह मेरे डैड... सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस....
यश - (वहीँ बैठे बैठे) हैलो... हैलो...
दोनों - हैलो...
यश - कैन यु जॉइन वीथ अस...
तापस - नो सर... यु प्लीज कैरी ऑन... हमारी ऑर्डर हो चुका है...
प्रतिभा - हाँ आप बड़े लोग... कोई महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा कर रहे होंगे... इसलिए हमे इजाज़त दीजिए... थैंक्यू..
यश - ओके... नाइस मीटिंग यु...

तीनों अपने शेड में लौट आते हैं l तापस और प्रतिभा दोनों प्रत्युष पर भड़कते हैं l

प्रतिभा - क्या जरूरत थी... उनके पास जाने की...
प्रत्युष - क्यूँ क्या हुआ माँ...
तापस - देखो प्रत्युष... उनको हमारा वहाँ जाना पसंद नहीं आया...
प्रत्युष - ओह डैड... यह आप कैसे कह सकते हैं...
प्रतिभा - तेरे डैड ठीक कह रहे हैं... वह जो तेरे बॉस के साथ बैठा हुआ है... पिनाक सिंह.... उसने एक बार धमकाया था मुझे... और तुने देखा नहीं उन्होंने हमें फौरन बाय भी कहा... ना दिलसे स्वागत किया ना दिलसे बाय कहा....
प्रत्युष - व्हाट... ओ
प्रतिभा - यह व्हाट किस लिए... ओर ओ... किसलिए...
प्रत्युष - पिनाक सिंह ने आपको धमकी दी.... इसके लिए व्हाट और हमारे एमडी ने ना दिलसे स्वागत किया और ना बाय दिलसे... इसके लिए ओ...
तापस - ओह स्टॉप ईट... हम क्यूँ अपना शाम खराब कर रहे हैं...
प्रतिभा - ठीक है... नो मोर डिस्कशन

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अगले दिन
सेंट्रल जैल
विश्व सुबह तड़के स्पेशल बैरक पहुंचता है lइस बार प्रणब उसका स्वागत करता है l

प्रणब - और विश्व... कैसा गया तुम्हारा एक्जाम...
विश्व - जी बहुत अच्छा गया... वैसे आप सबको थैंक्स... यह दस दिन मुझे छुट्टी देने के लिए...
चित्त - ऑए... थैंक्स या धन्यबाद जो भी करना है... डैनी भाई से बोल... (उधर से चित्त आते हुए) उनके अदालत में मुजरिम तु है...
विश्व - जी वह तो मैं कह ही दूँगा....
प्रणब - चल तु अपने रूटीन में लग जा... पानी निकाल और पेड़ पौधों को पेट भर पीला... चल
विश्व - ठीक है भाई...

इतना कह कर विश्व हांडी को कुए में डाल कर, अपनी दोनों हाथों के तीन तीन उंगलियों के सहारे बाकी दिनों के तुलना में जल्दी जल्दी पानी निकालने लगा और पौधों में भाग भाग कर पानी डालने लगा l प्रणब और चित्त दोनों उसकी आज की फुर्ती देख कर हैरान रह जाते हैं l पौधों में पानी डालने के बाद कुए से सटे सीमेंट की टंकी भी पानी से भर कर विश्व उन दोनों के सामने खड़ा हो जाता है l

विश्व - भाई अब क्या...
प्रणब - हूँ... ओ हाँ... (तीन महीनों में पहली बार विश्व की स्फूर्ति देख कर हैरान हुआ है) वह.. एक मिनट...

प्रणब कुछ दूर जा कर चित्त से बात करता है फ़िर अंदर जा कर बाल्टी लाता है l वह उस बाल्टी को टंकी में उड़ेल देता है l बाल्टी से दो मछलियाँ गिर कर टंकी में गिरते हैं l

प्रणब - चल यह मछली पकड़...

विश्व उस टंकी के पास आकर खड़ा होता है l उसे पानी में दो मछली दिखते हैं l विश्व टंकी में उतरता है l पानी उसके घुटनों के बराबर है l विश्व पानी के टंकी में निश्चल खड़ा रहता है l पांच मिनट बाद मछलीयाँ उसके पैर के पास पहुंचते हैं l अचानक विश्व बारी बारी से पहले दाहिने हाथ फिर बाएं हाथ से दोनों मछलीयाँ पलक झपकते ही पकड़ कर टंकी से बाहर फेंक देता है l अब समीर भी प्रणब और चित्त के पास पहुंच जाता है l विश्व की मछली पकड़ना देख तीनों हैरान हो जाते हैं क्यूंकि विश्व इस बार मछलियों को पकड़ने के लिए वही तीन उँगलियों का इस्तमाल किया था जिन उंगलियों को पानी निकालने के लिए इस्तेमाल किया करता है l विश्व टंकी से निकल कर तीनों के सामने खड़ा हो जाता है l तीनों उसे मुहँ फाड़े देखे जा रहे हैं l

विश्व - हाँ भाई... अब क्या करना है...
समीर - वैसे डे अल्टरनेट में... या तो मछली पकड़ना है या फिर मुर्गी... पर तेरी स्पीड देख कर आज... मुर्गी पकडने का टास्क भी करले....
विश्व - ठीक है...

तीनों विश्व को लेकर सात नंबर रुम के पीछे पहुंचते हैं l उस रूम के पीछे बीस बाय बीस के एक वर्ग क्षेत्र को तार की जाली से घेरा गया है l जाली वाली वर्ग के भीतर एक मुर्गा चर रहा है l विश्व उस वर्ग में घुसता है l विश्व के घुसते ही मुर्गा सतर्क हो जाता है l विश्व अपनी दोनों बाहें फैला कर मुर्गे को एक कोने तक पहुंचा देता है l कोने में पहुंच कर जब मुर्गे को घिर जाने का एहसास होता है l मुर्गा विश्व को दाएं बाएं छका कर विश्व के सर के ऊपर जंप लगा देता है l विश्व भी उतनी ही फुर्ती से पलट कर मुड़ते हुए छलांग लगाता है l मुर्गे के दोनों पैर विश्व के उंगलियों में फंस जाती है l सिर्फ कुछ ही मिनट में मुर्गा विश्व के कब्जे में थी l इस बार भी विश्व को कोई परेशानी नहीं हुई l मुर्गा हाथ में आने के बाद विश्व इन तीनों के सामने आ कर खड़ा हो जाता है lवह तीनों हक्के बक्के हो कर विश्व को देखते हैं l दस दिन ही तो हुए हैं l डैनी ने विश्व को एक्जाम के लिए छुट्टी दी थी, और यह दस दिन विश्व ने सिर्फ़ पढ़ाई ही किया है l पर आज दस दिन बाद एक अलग विश्व को देख रहे हैं l

समीर - जा पांच नंबर रूम में जा... हम डैनी भाई से पुछ कर आते हैं...

विश्व पांच नंबर रूम की ओर चल देता है l वहाँ पहुँच कर देखता है उस कमरे में कोई नहीं है l वह उस कमरे में लगे सभी इंस्ट्रूमेंट्स को उत्सुकता से देखता है l उन पर सिर्फ डैनी को ही कसरत करते देखा है उसने l ऐसे रूम में घुमते घुमते विंग-चुंग के सामने आ कर खड़ा होता है l वह डैनी को विंग-चुंग पर हाथ आजमाते देखा है l विश्व इधर उधर देखता है l उसे कोई नहीं दिखता है l अपनी मन की उत्सुकता को दबा नहीं पाता l इतने दिनों से डैनी जिस तरह से विंग-चुंग पर हाथ चला रहा था उसे याद करते हुए विश्व भी हाथ चलाने लगता है l पहले याद करते करते धीरे धीरे उसका हाथ चलने लगता है l फिर उसके हाथ ज़ोर ज़ोर से चलने लगता है, बिल्कुल वैसे ही जैसे डैनी के हाथ चल रहा था l विश्व के हाथ तेजी से चलने लगते हैं बिल्कुल किसी प्रोफेशनल की तरह l क़रीब आधे घंटे बाद उसे लगता है कमरे में वह अकेला नहीं है l विश्व विंग-चुंग से हाथ हटा लेता है और पीछे मुड़ कर देखता है l डैनी अपने पंटरों के साथ खड़ा है और विश्व को सब देख रहे हैं l डैनी को छोड़ बाकी सब विश्व को आँखे फाड़ देख रहे हैं l

डैनी - वाह लौंडे... आज तो तुने कमाल ही करदिया.... आज तुने सारे टास्क वक्त से पहले खतम कर दिया... पर... तुझे मेरे इंस्ट्रूमेंट्स को हाथ लगाना नहीं चाहिए था....
विश्व - वह... स.. सॉरी डैनी भाई.... सॉरी... मुझे माफ कर दीजिए...
डैनी - माफ़ी... मिल सकती है... बशर्ते मैं तुझे मारूँगा... पर तुझे मेरी मार लगनी नहीं चाहिए....
विश्व - जी.... जी (हैरानी से)...
डैनी - हाँ जी.... चल तैयार हो जा...

विश्व जाना नहीं चाहता पर वसंत और हरीश उसके पास पहुंचते हैं और धक्का दे कर डैनी के पास भेज देते हैं l पांचो ऐसे घेरे खड़े रहते हैं कहीं विश्व भाग ना जाए l डैनी एक पंच मारता है, विश्व के हाथ अपने अपने उस पंच को रोक देता है l फ़िर डैनी के पंचेस की स्पीड बढ़ती जाती है विश्व के रीफ्लेक्सेस उतनी ही तेजी से बढ़ जाती है l अपने रीफ्लेक्सेस देख खुद विश्व भी हैरान हो जाता है, पर कुछ देर बाद डैनी अपनी वार बदलता है l जिस हाथ का पंच विश्व ब्लॉक करता है उसी हाथ को डैनी मोड़ कर कोहनी से मारता है l इस बार विश्व को लग जाती है l अब कि बार विश्व को डैनी छका कर घुम कर कोहनी से मारता है l विश्व मुहँ के बल गिर जाता है l विश्व फिर संभल कर बैठ जाता है और डैनी को देखता है l डैनी जीम टेबल पर बैठ कर विश्व को देख रहा है l

डैनी - वाह लौंडे वाह... बहुत जल्द पकड़ लिया...

विश्व अपनी जगह से उठता है और सीधे डैनी के सामने खड़ा हो जाता है l फ़िर झुक कर डैनी के पैरों पर गिर जाता है l

डैनी - अरे यह... यह क्या कर रहा है...
विश्व - आप... आप मुझे सीखा रहे थे... लड़ना... मुझे समझ में नहीं आया... पर अब समझ में आ गया है.... पर जो मैंने माँगा नहीं... वह आप मुझे क्यूँ दे रहे हैं....
डैनी - वह इसलिए के तुने..... अपनी भावनाओं के चलते मुझे वहाँ ला खड़ा कर दिया... जिसकी मैं... मुझ जैसा इंसान लायक ही नहीं है... (विश्व को खड़ा करता है)
विश्व - आप क्या कह रहे हैं... मैं कुछ समझा नहीं...
डैनी - तुने अपनी दीदी से कहा है ना... के तु मुझे उतना ही मान देता है... जितना जयंत सर को देता है...
विश्व - जी...
डैनी - तो मुझे... जयंत सर को फॉलो करना पड़ा....
विश्व - (हैरान होकर) फॉलो करना पड़ा... म.. मतलब...
डैनी - तुने मांगा नहीं फिरभी.... उन्होंने अपनी खुद की खुन पसीने की कमाई तुझे दे दी... है ना...
विश्व - जी...
डैनी - तो मैं भी तुझे अपनी खुन पसीने की कमाई दे रहा हूँ... भले ही तुने माँगा नहीं... पर मैं जानता हूँ... तेरी लड़ाई में... यह ज़रूरत पड़ेगी....

विश्व कुछ नहीं कह पाता है उसके आंखों में कृतज्ञता दो बूंद आँसू गिर जाते हैं l

डैनी - विश्व तुम्हारी सबसे बड़ी कमजोरी तुम्हारा जज्बाती होना है.... तुम्हें अपने ज़ज्बात पर कोई काबु नहीं है... खुशी हो या ग़म... तुम जफ्त नहीं कर पाते... जाहिर कर देते हो... इसलिए पहले अपने ज़ज्बात पर काबु पाओ.... (विश्व अपनी आँखे साफ करता है) विश्व तुम जो सीखने जा रहे हो... उसे मार्शल आर्ट्स कहते हैं... यानी युद्ध कला... उसके साथ साथ आत्म नियंत्रण और अन्य विषयों में भी तुम को सिखाया जाएगा... और तुम सिखोगे भी... (विश्व अब डैनी को हैरान हो कर देखता है) इन तीन महीनों में जो सीखा और लगातार जिसमें काम किया... उससे तुम्हारा स्टेमिना बढ़ा और अटैक पर ब्लॉक करना नैचुरली एडप्ट कर लिया... और सबसे खास बात... तुमने आज मछली और मुर्गे को पकड़ने के लिए सही तरीका चुना.... यानी तुम्हारे अंदर का शिकारी जाग रहा है.... अब आओ तुम्हें तुम्हारे प्रोफेसरों से मिलवाता हूँ...
इनसे मिलो... समीर मल्लिक... इसके पास एक जबरदस्त क्वालिटी है... अपनी पारखी नजर और बातों से... सामने वाले की प्रोफेशन और कैरेक्टर स्कैन कर सकता है....
अब इनसे मिलो... हरीश बाडत्या... इनके पास भी ग़ज़ब का हुनर है... सच झूठ बोल कर सामने वाले के अंदर की बातों उगलवा सकते हैं.... अगर मान लो किसी इंटरव्यू को जाए... तो बिना तकलीफ के सिलेक्ट हो जाए... इतना इम्प्रेस कर सकता है... इसको टॉकींग स्किल कहते हैं...
औऱ यह हैं प्रणब... यह तुम्हें लठबाजी से लेकर छुरी चाकू तक चलाना सीखा देंगे... सिवाय बंदूक के...
और यह हैं वसंत... इनके ख़ासियत यह है कि ऐसा कोई जेब नहीं जिसको इसने काटा नहीं...
विश्व - जेब काटना...
डैनी - तुझे लगता है... जेब काटना जरूरी नहीं है... पर यह हाथ की सफ़ाई है... पता नहीं कब काम आ जाए...
और अंत में यह... इनसे मिलो चित्त रंजन... इसे अक्सर तुमने खाना सर्व करते हुए देखा है... (विश्व अपना सर हिलाता है) आज से... बल्कि अभी से तुम्हारा डाएट चार्ट इनके हवाले...
सबसे परिचय करवाने के बाद डैनी जीम टेबल पर बैठ जाता है l और विश्व से पूछता है

डैनी - तो विश्व... क्या तुम सीखना चाहोगे...
विश्व - जी...
डैनी - ठीक है चित्त.. तुम्हारे लिए रूटीन बना चुका है... (चित्त से) बताओ इसे....
चित्त - देखो विश्व... दिन रात मिलाकर चौबीस घंटे हुए... तुम आठ घंटे सोने और बाथरुम के लिए इस्तेमाल करोगे... आठ घंटे मे... सुबह चार घंटे और शाम को चार घंटे सिर्फ़ ट्रेनिंग होगी... बाकी के आठ घंटे में तुम्हारा खाना पीना पढ़ना और दूसरे कैदियों से मिलना होगा...
डैनी - समझ गया... (विश्व अपना सर हिलाकर हाँ कहता है) विश्व एक बात जान लो... तुम शायद सीखते सीखते थक जाओगे... पर यह लोग तुम्हें सीखाते सीखाते नहीं थकेंगे... (विश्व फिरसे अपना सर हिलाता है) तो.... लग जाओ ट्रेनिंग पर....
Nice and lovely update....
 

ANUJ KUMAR

Well-Known Member
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N
👉अड़तीसवां अपडेट
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अगले दिन
राजगड़
सुबह की धूप खिल रही है क्षेत्रपाल महल में एक गाड़ी आकर रुकती है l पिनाक सिंह उस गाड़ी से उतरता है और एक जोरदार अंगड़ाई लेता है l क्षेत्रपाल महल में वह सीधे नागेंद्र के कमरे की ओर जाता है l वहाँ नागेंद्र के सेवा में कुछ नौकर और नौकरानियां लगे हुए हैं l पिनाक के वहाँ पहुँचते ही नागेंद्र को छोड़ कर एक किनारे हो जाते हैं l

नागेंद्र - आइए... छोटे राजा जी... आइए... विराजे... (पास पड़े एक कुर्सी पर पिनाक बैठ जाता है) क्या आप विजयी हो कर लौटे हैं...
पिनाक - जी... आपका आशीर्वाद है... पार्टी में हमारी बात रख दी गई है...... पार्टी हाई कमांड तैयार हो गए हैं... इस बार बीएमसी चुनाव में... हम अप्रतिद्वंदी होंगे...
नागेंद्र - शाबाश... और युवराज.... वह क्यूँ नहीं आए...
पिनाक - जी उन्हीं की खबर देने ही आए हैं.... वह कॉलेज में... छात्र संगठन में.... अध्यक्ष चुन लिए गए हैं.... और अगले महीने *** तारीख को.... उनकी संस्था का... उद्घाटन समारोह है.... उस समारोह के उपरांत... वह और राजकुमार दोनों... राजगड़ पधारेंगे....
नागेंद्र - बहुत अच्छे... आपके साथ... राजा जी क्यूँ नहीं आए....
पिनाक - पर वह तो... कल सुबह ही.... राजगड़ के लिए... निकल गए थे...
नागेंद्र - ह्म्म्म्म.... कोर्ट में... जीत की खुशी... मनाने के लिए.... हो सकता है... रंगमहल गए होंगे....
पिनाक - हाँ... शायद...
नागेंद्र - वह सुवर की औलाद... विश्व.... अपने औकात से आगे... निकल गया.... आख़िर हमे.. अपनी ही खेमे से निकल कर... बाहर जाने को... मज़बूर कर दिया...
पिनाक - हाँ... लोक शाही की... जरूरत जो है...
नागेंद्र - लोक शाही... कैसी लोक शाही.... हमने... लोक शाही को... हमारे ठोकर पर अब तक रखे हुए हैं... आज इस राज्य में... लोक शाही रेंग भी रही है.... तो हमारी राज शाही के वैशाखी पर...
पिनाक - जी... पर वह.... लोक शाही के अंजाम तक... पहुंच गया है...
नागेंद्र - एक तरह से.... अच्छा ही हुआ.... अब जब तक... इनकी नस्लें... रहेंगी... तब तक... क्षेत्रपाल महल की और... आँखे उठाने की हिम्मत... कोई नहीं करेगा....
पिनाक - जी... दुरुस्त... फ़रमाया... आपने...
नागेंद्र - अब आप जा सकते हैं... जाईए... छोटी रानी जी... हमारी खुब सेवा किए हैं.... उनसे मिल लीजिए...
पिनाक - जी.... जरूर... नागेंद्र - और हाँ.... समय निकाल कर.... रंगमहल जा कर.... राजा जी की.. खैर खबर.... आप स्वयं लें....
पिनाक - जी... जरूर नागेंद्र - देखिए... रंग महल की चमक... फीकी ना पड़े... यह अब पूरी तरह से... आपके लोगों के जिम्मे.... क्षेत्रपाल महल हमारा रौब.... और रंगमहल हमारा रुतबा है.... हमारी उम्र अब इजाजत नहीं दे रहा है.... और शरीर भी धीरे धीरे ज़वाब दे रहा है....
पिनाक - जी... अब आज्ञा.. चाहूँगा... (कह कर पिनाक उठ कर जाने लगता है)
नागेंद्र - छोटे राजा जी... (पिनाक रुक कर मुड़ कर देखता है) उस लड़की का क्या हुआ...
पिनाक - नहीं जानते.... पर इतना जरूर जानते हैं... कल राजा जी ने... उसे उसके हक़ की... दे दी गई है....

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वैदेही धीरे-धीरे अपनी आँखे खोलती है l तो खुद को एक कमरे में नीचे बिछे बिस्तर पर पाती है l उठ कर बैठ जाती है l उसके गालों पर अभी भी सूजन है, थोड़ा दर्द भी है l वह अपने गालों को छूती है तो उसे बीती शाम की बातेँ याद आती हैं l वह सोचती है वह चाटों के मार खाने के बाद बेहोश हो गई थी l तो उसे कौन लाया और यह किसी का घर है l पर किस का l कौन लाया उसे l यह सब सोचते हुए वह बाहर आती है l उसे लक्ष्मी दिखती है l


वैदेही - ओ... लक्ष्मी...(उसकी आवाज़ ऐसी सुनाई दी, जैसे उसके मुहँ में कुछ रख कर बात कर रही है) तो... यह तुम्हारा घर है....
लक्ष्मी - हाँ वैदेही... अब कैसा लग रहा है...
वैदेही - मैं यहाँ पहुंची कैसे.....
लक्ष्मी - मेरा मरद रात में... फैक्ट्री... नाइट् शिफ्ट काम के लिए निकल गया.... तो हम माँ बेटी.... चौराहे पर जा कर ले आए तुझे....
वैदेही - तुझे डर नहीं लगा....
लक्ष्मी - लगा था.... पर फिर याद आया... कल राजा साहब ने.... तेरे हुक्के पानी पर रोक हटा दी ना...
वैदेही - अच्छा.... तेरा यह उपकार... मुझ पर उधार रहा.... मैं अपने घर चलती हूँ....
लक्ष्मी - थोड़ी देर रुक जाती..... अपनी चेहरा तो देख...
वैदेही - नहीं... अब रुकना नहीं है.... मैं फिर बाद में मिलती हूँ... तुझसे....

कह कर वैदेही अपना सामान ले कर,लक्ष्मी के घर से निकल कर अपने घर की ओर चली जाती है l रास्ते में कुछ लोग उसे देख कर डर के मारे रास्ता छोड़ देते हैं और कुछ लोग उसके पीछे पीछे चलते हुए फब्तीयाँ कसते हैं l सबको अनसुना करके वैदेही अपने घर पर पहुंच जाती है l अपनी बैग से चाबी निकाल कर ताला खोल कर घर के अंदर आती है, फ़िर दरवाज़ा बंद कर अंदर की कुए में बाल्टी डाल कर पानी निकालती है और अपने ऊपर उड़ेल देती है l पानी ऊपर गिरते ही वह हांफने लगती है l धीरे धीरे उसका चेहरा कठोर हो जाती है

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टीवी की रिमोट हाथ में लेकर सारे न्यूज चैनल छान मारने के बाद रिमोट सोफ़े पर फेंक देती है, प्रतिभा l

तापस - क्या बात है.... आज किसका गुस्सा टीवी के रिमोट पर... उतारा जा रहा है....

प्रतिभा - कितने प्रदर्शन हुए,... कितने धरने पर बैठे.... ना जाने क्या क्या... नाटक किया गया.... पर देखो भुला देने के लिए.... एक दिन भी नहीं लगा.....
तापस - कमाल करती हो.... भाग्यवान.... कल ही तो तुमने मुझसे कहा था.... विश्व एक डाईवर्जन है... उसे सजा हुई.... काम खतम... अब लोग अपनी रोजी रोटी के लिए भाग दौड़ कर सकेंगे.... मीडिया वाले... नई मसालेदार ख़बरों की खोज में... लगेंगे.... राजनीतिक गिरगिट अपना रंग बदलेंगे.... ऐसे में विश्व... या मनरेगा से... क्या मतलब है...
प्रतिभा - हाँ... सेनापति जी.... आप ठीक कह रहे हैं....
तापस - वही तो... अब हमे भी... आगे बढ़ना चाहिए.....
प्रतिभा - हाँ आप ठीक कह रहे हैं.....
तापस - सच... (खुशी से चहकते हुए) तुम तैयार हो....
प्रतिभा - (आपनी आँखे सिकुड़ कर) यह आप.. किस बात की... तैयारी कर रहे हैं...
तापस - कमाल करती हो.... भाग्यवान.... अब... लड़का डॉक्टर... बन जाएगा.... बाहर... बिजी रहेगा.... तो हम क्यूँ ना... चौथे... सदस्य को... लाने की तैयारी करें...
प्रतिभा - (अपनी कमर पर दोनों हाथ रखकर) क्या कहा आपने...
तापस - अरे क्या... कहा मैंने... मैं.. तो बस यह कह रहा था... हम तीन हैं... चलो... चार बनने की... तैयारी करते हैं...
प्रतिभा - (सोफा पर से एक कुशन उठा कर तापस की फेंकती है) आपको शर्म नहीं आती.... बुढ़ापे में ऐसी बातेँ... करते हुए...
तापस - इस में... शर्माने की... क्या बात है... मैं कह रहा था... डॉक्टर विजय से बात करूँ.... ताकि हमारे.. लाट साहब के हाथ पीले कर दिया जाए...
प्रत्युष - मैं भी यही कह रहा था....
प्रतिभा - तु.... कब आया.... और.... बड़ों के बीच में.... तु क्यूँ... घुसा जा रहा है....
प्रत्युष - बड़ों... या बूढ़ों... पहले यह कंफर्म करो...
तापस - बुड्ढा किसको बोला....
प्रत्युष - अभी बोला कहाँ है... बस पुछा ही तो है...
प्रतिभा - मैंने सिर्फ़ इतना कहा.... बड़ों के बीच में नहीं आते....
प्रत्युष - आप दोनों वहाँ हो... मैं यहाँ हूँ... बीच में कहाँ हूँ.... बाकी बड़ों के... मतलब क्या हो सकता है.... आपको यह कहना चाहिए... बूढ़ों के बीच में नहीं आना चाहिए.... क्यूंकि जवान लड़का... बूढ़ों के बीच क्या करेगा...
तापस - तुने फ़िर बुढ़ा किसको कहा....
प्रत्युष - अब इस कमरे में... जवान कहो या बच्चा... वह सिर्फ़ मैं ही हूँ....
तापस - तु.... बुढ़ा होगा तु... तेरा बाप...
प्रत्युष - फ़िर से करेक्शन... सिर्फ़ बुढ़ा होगा तेरा बाप... यही कहावत है....
तापस - रुक अभी बताता हूँ...
प्रत्युष वहाँ से भाग जाता है l उसके भागते ही प्रतिभा हँस देती है l

तापस - वैसे जान... तुमने कुछ और भी सोचा था ना... (अपनी भौंवै नचा कर पूछता है)

प्रतिभा एक प्यार भरा गुस्से से तापस को देखती है, तापस पीछे मुड़ कर हँसते हुए भाग जाता है l

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एक कमरे में वीर डायनिंग टेबल पर नाश्ता कर रहा है l और बीच बीच में अटक कर कुछ सोच रहा है l विक्रम उसे कुछ देर से देखे जा रहा है l

विक्रम - क्या बात है... राजकुमार.... बड़ी गहरी सोच में हो....
वीर - हाँ हैं हम....
विक्रम - पढ़ाई को ले कर.....
वीर - ना... पढ़ाई जब कि ही नहीं.... तो उसकी सोचें ही क्यूँ....
विक्रम - तो खाते खाते बीच में.... आप अटक क्यूँ रहे हैं....
वीर - अब खाली दिमाग़... शैतान का घर... इसलिए.... बहुत बड़ी बात दिमाग़ में.... डाल कर सोच रहे हैं.... ताकि दिमाग़ खाली ना रहे....
विक्रम - अच्छा तो हमें भी... वाकिफ़ कराएं... आपके दिमाग में... क्या चल रहा है....
वीर - यही... के अगर आप... राजा साहब के जगह लेते हैं... तो तब जाहिर है... छोटे राजा तो हम ही होंगे.... तब... अब वाले छोटे राजा जी का.... डेजिग्नेशन क्या होगा... बस... यही सोच रहे हैं...

विक्रम की खांसी निकल जाती है l थोड़ा पानी पी लेने के बाद वीर को घूर कर देखता है l

विक्रम - आपको और कुछ नहीं सूझा..... सोचने के लिए....
वीर - देखिए... युवराज जी... कभी ना कभी... बड़े राजा... सिधार जाएंगे... तब सब अपने अपने... डेजिग्नेशन से... प्रमोट होंगे.... तो मैं छोटे राजा जी के लिए... परेशान हूँ....
विक्रम - कास... आप अपने.... स्टडीज के लिए इतने परेशान होते...
वीर - परेशान होने से क्या होगा... ज्यादा से ज्यादा... आईएएस तो नहीं बनना है..... पर ऐसा पोजीशन हासिल करना है..... बड़े बड़े गोल्ड मेडलिस्ट आईएएस आगे पीछे घुमते हुए नजर आयेंगे....
विक्रम - बहुत दिमाग़ चल रहा है आपका...
वीर - कोई शक़...
विक्रम - चलो एक पहेली है... सुलझाके दिखाओ...
वीर - क्यूँ... किसी आईएएस से मेरा प्लेट साफ करवायेंगे क्या...
विक्रम - आप... यह आईएएस वालों के पीछे क्यूँ लगे हुए हैं...
वीर - क्यूंकि आपने... पढ़ाई की बात छेड़ दी...
विक्रम - अच्छा चलिए हमे माफ़ करें....
वीर - ठीक है... आप अपना पहेली पूछिए...
विक्रम - इस पहेली में... एक फोन नंबर है... जो आपको पता करना है...
वीर - अगर हमने पता कर दिया तो....
विक्रम - वादा रहा... किसी आईएएस से आपका प्लेट उठवाएंगे....
वीर - ठीक है... पहेली क्या है...
विक्रम - एक पायदानी सफर .... ऊपर से नीचे की ओर.... थमती है सफर... जब लगती है पंजे के जोड़े की जोर.... आगे नहीं सफ़र... मूड जाती है पीछे की ओर.... ना एक है ... ना दो ... ना तीन है ... ना चार... बस कुछ ऐसी है यह सफर.... इसी में है मेरा नंबर....
वीर - ह्म्म्म्म लगता है... किसी लड़की का नंबर है...
विक्रम -(झेप जाता है, हकलाने लगता है) हाँ.. हा.. व... न... ना.. नहीं... यह एक... द...द.. दोस्त का नंबर है...
वीर - तो इतना हकला क्यूँ... रहे हैं...
विक्रम - अरे भाई.... आप को... बताना है तो बताओ....
वीर - (टिशू पेपर से अपना होंठ साफ करते हुए) ठीक है... बहुत आसान है.... पर यह बताइए.... पहली... कितने दिन पहले की है...
विक्रम - (थोड़ा उदास होते हुए) क्या बताएं.... बीस दिन हो गए हैं...
वीर - क्या... आप... बीस दिन से... नहीं मिले हैं... आपस में...
विक्रम - हाँ.. क.. कौन... किससे...
वीर - वेरी सिंपल... आपकी गर्लफ्रेंड से...
विक्रम - य.. यह आ.. आ.. आप क.. क.. क्या कह रहे हैं...
वीर - तो ठीक है ना... आप हकला क्यूँ रहे हैं..
विक्रम - नहीं तो...
वीर - ठीक है... फिरसे... पहेली क्या है... बताइए...
विक्रम - एक पायदानी सफर .... ऊपर से नीचे की ओर.... थमती है सफर... जब लगती है पंजे के जोड़े की जोर.... आगे नहीं सफ़र... मूड जाती है पीछे की ओर.... ना एक है ... ना दो ... ना तीन है ... ना चार... बस कुछ ऐसी है यह सफर.... इसी में है मेरा नंबर....
वीर - ह्म्म्म्म एक पायदानी सफर... नीचे की ओर... पंजे की जोड़े ह्म्म्म्म...
मतलब पहले डिसेंडींग ऑर्डर.... फिर एसेंडींग ऑर्डर....
लो मिल गया... आपका नंबर...
विक्रम - क्या... मिल गया... क क्या है नंबर...
वीर - पायदानी सफ़र... ऊपर से नीचे की ओर मतलब 9876 पंजे की जोड़े ने रोका मतलब 55 फिर वापस भेज दिया ऊपर की ओर... 6789
उसमें... ना एक है ना दो है ना तीन है ना ही चार है.....
9876556789 बस यही नंबर है....
विक्रम - क्या... (हैरानी से चिल्लाते हुए) वाकई... वाव.. यह तो.. बहुत ही आसान था... हम तो बीस दिनों से... इसी भंवर में भटक रहे हैं...
वीर - आपको भी मालुम हो जाता... पर....
विक्रम - पर क्या....
वीर - पर अगर... अपने दिल के जगह... दिमाग़ का इस्तमाल किया होता...

विक्रम फिर से खांसने लगता है l वीर उसे अपनी आँखे सिकुड़ कर देखने लगता है l विक्रम कुछ नहीं कहता, अपना सर झुका कर कमरे से बाहर चला जाता है l

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वैदेही अपने कमरे में बैठ कर किन्ही ख़यालों में खोई हुई है अचानक वह उठती है और बाहर निकल कर उसी चौराहे पर पहुंचती है l जहां भैरव सिंह ने उस पर थप्पड़ बरसाये थे l वैदेही वहीँ खड़ी हो कर उसी जगह को देखती रहती है l कुछ मर्द वहाँ से गुज़रते हैं, पर जैसे ही वैदेही को देखते हैं वह लोग अपना रास्ता बदल कर चले जाते हैं l वैदेही वहीँ खड़ी हो कर उसी जगह को देख रही है और कुछ सोच रही है l उसके पास कुछ औरतें आती हैं l

एक औरत - क्या बात है.. वैदेही... तुम यहाँ पर क्यूँ खड़ी हो....
वैदेही - कुछ नहीं कुसुम भाभी... मैं यह सोच रही थी.... कितनी आसानी से... एक चौराहे से... किसी के घर की इज़्ज़त, किसी के घर की जन्नत, किसी के बाग की फूल... कोई आकर उठा ले जाता है... रौंदने के लिए... किसी... भाई का खुन नहीं खौलता.... किसी बाप का दिल नहीं... चीखता.... क्यूँ...
दूसरी औरत - सब का खुन... ठंडा हो चुका है... क्षेत्रपाल परिवार के दहशत से... नामर्द बन चुके हैं... सारे के सारे...
वैदेही - क्यूँ सावित्री मौसी...
सावित्री - शायद दुसरे के आंच से... खुद को इसलिए दूर रख रहे हैं... कहीं अपने दामन में... आग ना लग जाए...
वैदेही - पड़ोसी के घर की आग को ना बुझाया जाए... तो वह आग... खुद के मौहल्ले में भी... फैल सकता है...
कुसुम - यह समझते समझते... घर राख हो चुका होता है...
वैदेही - अब और वैसा... नहीं होगा... नहीं होना चाहिए... मैं.. होने ही नहीं दूंगी...

वह सारी औरतें वैदेही को देखते रह जाते हैं l उन्हें वैदेही के बातों से उसकी अंदर की निश्चितता का एहसास होने लगता है l

वैदेही - मुझे इसी जगह पर अपने लिए... कुछ चाहिए.... पर क्या... यही सोच रही हूँ.....
कुसुम - क्या... कोई जगह या घर ख़रीदना है क्या...
वैदेही -अरे हाँ... अगर मिल जाए तो... मिल सकता है... क्या...
कुसुम - पता नहीं... वह जो घर और थोड़ी सी जगह देख रही है ना... वह चगुली साबत.... बेचना चाहता था.... पर उसे... कीमत नहीं मिल रहा था....
वैदेही - क्या... क्यूँ बेचना चाहता था....
सावित्री - अरे... उसके माँ बाप चल बसे.... वह पहले से राजगड़ छोड़ कर चले जाना चाहता था.... पर उसे सरकारी कीमत भी कोई नहीं दे रहा था.... सब राजा साहब से डर कर....
वैदेही - कोई नहीं... उसे बोलो... मुझसे मिले... उसे उसकी कीमत मिल जाएगी....
सावित्री - क्या... तुम... पागल तो नहीं हो गई हो... राजा साहब से तुम नहीं डरती... पर चगुली...
वैदेही - तुम... फ़िकर मत करो... वह मैं सम्भाल लुंगी.... उसे कहो... वह मुझसे आकर मिले....

सारी औरतें उसे हैरान हो कर देखती है l वैदेही को वहाँ सोच में छोड़ कर अपनी अपनी घर की ओर चले जाते हैं l

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तापस अपने कैबिन में आकर अपने चेयर पर बैठ जाता है l अपनी टेबल पर फाइल निकाल कर देखने लगता है l तभी जगन आकर उसे सैल्यूट करता है l

तापस - क्या बात है... जगन...
जगन - वह सुबह से... विश्व... आपको.. कई बार... पुछ चुका है...
तापस - मुझे... पर क्यूँ...
जगन - यह तो वही जाने....
तापस - अच्छा जाओ... उसे बुलाओ...

जगन सैल्यूट कर बाहर चला जाता है l उसके जाते ही तापस एक गहरी सोच में पड़ जाता है l थोड़ी देर बाद विश्व दरवाजे पर खड़ा मिलता है l

तापस - अरे विश्व... आओ... तुम मुझे ढूंढ रहे थे....
विश्व - जी....
तापस - क्यूँ कोई काम था...
विश्व - जी.... मुझे आपसे कुछ मदत चाहिए था...
तापस - मदत... कैसी मदत....
विश्व - जी.. सर.. आपको शायद मालूम नहीं होगा.... मैं.. कॉरस्पांडींग में... इग्नू से... ग्रैजुएशन कर रहा हूँ... अभी सेकंड ईयर चल रहा है.... पांच महीने... वैसे ही... बरबाद हो चुके हैं... मैं इसे... कंप्लीट करना चाहता हूँ....
तापस - बहुत अच्छे... यह तो... बहुत बढ़िया बात है... तुम डीस्टेंस एजुकेशन में... कौन से फॉर्मेट और कौन से डिसीप्लीन में कर रहे हो...

विश्व उसे सब बताता है l विश्व से सब सुनने के बाद l

तापस - विश्व... तुम जिस फॉर्मेट में... कर रहे हो... वह रेगुलर स्टुडेंट्स के लिए है... जो प्राइवेट में पढ़ाई करते हैं... हर साल एक्जाम में... एपीयर करते हैं... और इस फॉर्मेट में.... तुमको पैरोल में बाहर जा कर... एक्जाम देना होगा.... और पैरोल में... बाहर निकलने के लिए... तुम्हें वकील की... जरूरत पड़ेगी....

तापस की बातें सुनकर विश्व सोच में पड़ जाता है l वह अपनी नजरें झुका कर इधर उधर देखने लगता है l उसकी हरकत से परेशानी साफ़ झलक रहा है l तापस उसकी हालत देख कर

तापस - विश्व... (विश्व तापस की ओर देखता है) देखो तुम्हारी परेशानी मैं समझ सकता हूँ... पर इसमे प्रॉब्लम... क्या है... तुम भी जानते हो... और मैं भी जानता हूँ... जयंत सर जी के... हादसे के बाद... शायद ही कोई... वकील... तुम्हारे लिए आगे आए...
विश्व - सर... कोई और रास्ता नहीं है...
तापस - मैं... एक्सप्लोर करने की... कोशिश करता हूँ... चाहे रेगुलर हो या इरेगुलर... एक्जाम के लिए तो तुम्हें बाहर जाना पड़ेगा.... अगर एनुएली... एक बार में देना चाहो... तो... मैं कुछ बंदोबस्त कर सकता हूँ... पर इरेगुलर फॉर्मेट में... रेगुलर फॉर्मेट में.... मैं ज्यादा कुछ कर नहीं... पाऊँगा...

विश्व उदास हो जाता है l और दुखी मन से वह तापस को हाथ जोड़कर नमस्कार कर बाहर की ओर मुड़ता है l

तापस - विश्व... (विश्व रुक कर पीछे मुड़ कर देखता है) तुम दस पंद्रह दिन... सोचलो.... अगर फॉर्मेट बदलना चाहो... तो... बताना... मैं... मदत करने की.. कोशिश करूंगा....

विश्व कुछ नहीं कहता है l एक फीकी हँसी के साथ हाथ जोड़कर नमस्कार कर वापस चला जाता है l

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विक्रम गाड़ी भगा रहा है l सहर कब का पीछे छूट गया है पर गाड़ी सड़क पर भाग रहा है l आज विक्रम को एक अलग सी खुशी महसुस हो रही है l उसे समझ में नहीं आ रहा क्या करे क्या ना करे l बस गाड़ी भगाए जा रहा है l उसे लग रहा है जैसे वह उड़ रहा है, उड़ते उड़ते वह कहीं जा रहा है l यह एहसास उसे गुदगुदा रहा है l तभी उसका ध्यान टूटता है l वह गाड़ी की मीडिया स्क्रीन पर देखता है, महांती का नाम डिस्प्ले हो रहा है l फोन ऑन करने के बाद

विक्रम - गुड मार्निंग महांती.... वाव... क्या बात है.... क्या टाइमिंग है... ज़रूर आज कोई ज़बरदस्त ख़बर देने वाले हो....
महांती - क्या बात है... युवराज जी.... आपको तो जैसे.... पहले से ही आभास हो जाता है...
विक्रम - बस.... हो जाता है.... अब बोलो... क्या ख़बर है....
महांती - सर सबकुछ फाइनल हो गया है... हमारा ट्रेनिंग सेंटर... ऑफिस... और इनागुरेशन का दिन.... सब फाइनल हो गया है... बहुत ही ग्रांड ओपनिंग होगी.... मज़े की बात यह है कि... मुख्य मंत्री भी राजी हो गए हैं.... हमारे मुख्य अतिथि बनने के लिए....
विक्रम - वाव... वाव.... क्या बात है.... महांती... अब तारीख़ भी... बता दो....
महांती - सर आज से ठीक.... पंद्रह दिन के बाद.... ****** तारीख़ को... हमारे सिक्युरिटी सर्विस की इनागुराल सेरेमनी होगी.... बस... एक बात की... कंफर्मेशन लेनी थी आपसे....
विक्रम - हाँ कहो....
महांती - हम... हर... प्रिंट मीडिया और... इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में अपनी... सिक्युरिटी सर्विस की... ऐड चलाएं....
विक्रम - बेशक.... करनी चाहिए.... भाई... तुम... पार्टनर हो... तुम्हारा हक़.... बनता है....
महांती - थैंक्यू... युवराज जी...
विक्रम - ओके पार्टनर.... प्रोसिड देन.... (कह कर विक्रम फोन काट देता है)

आज गाड़ी के भीतर गुनगुना रहा है l

कितनी हसरत है हमे...
तुमसे दिल लगाने की...
पास आने की तुम्हें...
जिंदगी में लाने की....

अचानक वह गाड़ी के ब्रेक लगाता है l वह बाहर निकालता है तो सामने रास्ता खतम मिलता है l सामने सिर्फ़ पानी और रेत दिखता है उसे l वह अपने सर के पीछे खुद ही चपत लगाता है और हँसने लगता है l वह फोन उठाता है फ़िर अपनी जेब में रख लेता है l ऐसा कई बार वह दोहराता है और उसे अपनी इसी हरकत पर हँसी भी आ रहा है और मजा भी आ रहा है l वहाँ पर तभी एक मछुआ जा रहा था l विक्रम उसे रोकता है

विक्रम - ऐ... भाई... जरा सुनो... यह कौनसी जगह है... मेरा मतलब... इस जगह का नाम क्या है....
मछुआ - इस जगह को... मुण्डुली कहते हैं... साहब....
विक्रम - अच्छा और इस नदी का नाम....
मछुआ - महानदी...
विक्रम - यह जगह बहुत अच्छी है.... यहाँ का नज़ारा भी बहुत बढ़िया है..... (कह कर विक्रम उस महुआ को पांच सौ रुपए निकाल कर देता है)
मछुआ - (वह मछुआ खुश होते हुए) साहब यहाँ का... सूर्यास्त भी बहुत खूबसूरत होता है....
विक्रम - अच्छा....
मछुआ - हाँ साहब...

इतना कह कर सलाम ठोक कर वहाँ से चला जाता है l विक्रम अपना फोन निकालता है और फोन अपनी लकी चार्म को फोन मिलाता है, पर उस तरफ फोन स्विच ऑफ मिलता है l उसका चेहरा उतर जाता है l कुछ सोच कर एक मैसेज टाइप करता है - हाई... आपका प्रेसिडेंट...
और पोस्ट कर देता है l फ़िर अपने कार के बॉनेट पर बैठ जाता है l

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पिनाक सिंह नागेंद्र से मिलने के बाद अपने कमरे की ओर जाने के वजाए क्षेत्रपाल महल से निकल कर अपने गाड़ी में बैठ बाहर निकल चुका है l सुषमा अपने कमरे में इंतजार करते रह गई l पिनाक नहीं आया, सुषमा को नौकरियों से खबर मिली l पिनाक जा चुका है l सुषमा अपने कमरे की दरवाजा बंद कर देती है l पिनाक की गाड़ी को ड्राइवर रंग महल की ओर लिए जा रहा है l
रंग महल में पहुंच कर पिनाक सिंह गाड़ी से उतर कर, सीधे एक गार्ड्स वालों के कमरे की ओर जाता है l वहाँ पहुँच कर भीमा के सामने अपने कमर पर हाथ रख कर खड़ा हो जाता है l भीमा उसे देख कर खड़ा हो जाता है l पिनाक इशारे से बाहर बुलाता है l भीमा बाहर आते ही पिनाक भीमा को साथ लेकर रंग महल के अंदर एक कमरे की ओर चलते हैं l

पिनाक - बड़े राजा जी को... कल राजा साहब जी का यहाँ... राजगड़ आने का खबर ही नहीं थी.... भीमा... क्या हुआ था कल....

भीमा राजगड़ में कल हुए घटना की जानकारी देता है l दोनों एक कमरे के सामने पहुंचते हैं l कमरा अंदर से बंद था l पिनाक इशारे से भीमा को दरवाजा खोलने को कहता है l भीमा डरते हुए हाथ जोड़ कर मना करता है,
भीमा- नहीं छोटे राजा जी... इस कमरे के भीतर..... जाने की हिम्मत... हम में... किसी में भी नहीं है... हमे माफ़ करें.....
भीमा के मना कर देने के बाद, पिनाक दरवाज़े पर हल्का सा धक्का देता है l दरवाज़ा खुल जाता है l पिनाक कमरे के अंदर झांकता है और कमरे में लाइट का स्विच ऑन करता है l कमरे में सिर्फ़ एक बिस्तर और उसके विपरीत दिशा के तरफ दीवार के शेल्फ शराब के बोतलों से भरी हुई है l उस कमरे में और कुछ भी नहीं है l सफ़ेद दीवार पर एक स्लाइडींग डोर दिखती है जो आधा खुला l वह कपड़ों का कबोड है l भैरव सिंह एक लुंगी पहन कर शराब के शेल्फ के पास लगे एल शेप्ड टेबल पर बैठा हुआ है l पिनाक कमरे के बाहर निकल जाता है और वह एक नौकर को भैरव सिंह के पास भेजता है, वह नौकर डरते हुए भैरव सिंह के पैरों पर झुक कर

नौकर - माफ़ी... हुकुम... माफी....
भैरव- (उसे देखता है) क्या है....
नौकर - वह... छोटे राजा जी आए हैं.... आपसे... मिलना चाहते हैं....
भैरव - ह्म्म्म्म.. भेज दो... उन्हें...

नौकर वैसे ही झुके हुए उल्टे पांव कमरे से बाहर निकल जाता है l उसको जाते हुए भैरव सिंह गौर से देख रहा है l नौकर के बाहर जाते ही भैरव सिंह हँसने लगता है l वह हँसते हुए शराब का और एक घूंट पीता है, फ़िर हँसता है l पिनाक कमरे में आकर भैरव को हँसते हुए देख कर

पिनाक - क्या बात है... राजा जी.... अपने आप क्यों... हँस रहे हैं...
भैरव - आपके आने से पहले... जो नौकर आया था... उसे... उल्टे पांव लौटते देख हँसी आ गई....
पिनाक - क्यूँ... कुछ गड़बड़ हो गया... क्या... यह तो उन लोगोंका.... हमारे प्रति सम्मान है....
भैरव - हाँ... आप बताओ.... यहाँ हमसे मिलने... क्यूँ आए.... और आप राजगड़ कब आए....
पिनाक - हम कल रात को... प्रधान और रोणा के साथ मिल कर.. यशपुर गए... वहाँ सर्किट हाउस में रात को रुके.... फिर सुबह ही निकले... राजगड़ पहुंचे..... बहुत दिनों से.... राजगड़ दूर रहे.... इसलिए दुरूस्त होने आ गए.....
भैरव - तो आपको... छोटी रानी जी के पास... होना चाहिए था.... अगर रंग महल के किसी कमरे में...आए हो... तो.. हमारे पास क्यूँ...
पिनाक - आप... कल रात आपके आने की खबर.... बड़े राजा जी को नहीं थी... वह जान कर परेशान हो रहे थे.....
भैरव - इसमे परेशानी की क्या बात है.... यह तो सब जानते हैं... हम या तो... क्षेत्रपाल महल में होंगे.... या फिर रंग महल में.... पर यह छोड़िए... बात कुछ और है.... पूछिए...
पिनाक - वह एक बात हमे ठीक नहीं लगा.... तो उस पर आपसे बात करने आए हैं....
भैरव - कौनसी बात....
पिनाक - आज आप ने... जिस तरह... वैदेही पर ... बीच चौराहे में... हाथ छोड़ा.... वह हमे ठीक नहीं लगा...
भैरव - जब बीच चौराहे से... लड़कियाँ... उठाए हैं... तब आपको बुरा नहीं लगा.... एक को चांटा क्या मारा... बुरा लग गया....
पिनाक - बीच चौराहे से... लड़की को एक मर्द ही उठा सकता है.... पर बीच चौराहे पर... हाथ उठाना.....
भैरव - बस... जुबान पर लगाम दो... (शराब का घूंट पी कर) छोटे राजा जी.... आज हम बहुत ही.. अच्छे मुड़ में हैं... और अच्छा हुआ.... यह प्रश्न आपने पुछा है....

भैरव की यह बात सुन कर पिनाक सकपका जाता है l उसे लगता है शायद बात बात में वह कुछ ज्यादा ही बोल गया l पिनाक इधर उधर देखने लगता है l जब भैरव सिंह कुछ नहीं बोलता है तो अपनी कुर्सी से उठ कर जाने लगता है l

भैरव - अगर सवाल किया है... तो ज़वाब भी लेते जाइए... छोटे राजा जी.....


पिनाक रुक जाता है l भैरव उसे बैठने के लिए इशारा करता है l पिनाक बैठ जाता है l भैरव एक ग्लास निकालता है और उसमें शराब डाल कर पिनाक की ओर बढ़ाता है l पिनाक वह ग्लास ले कर घूंट भरता है l भैरव एक और ग्लास निकालता है और आवाज़ देता है

भैरव - भीमा....
भीमा - हुकुम...
भैरव - यह लो.... (ग्लास को भीमा के तरफ उछालता है, भीमा उस ग्लास को कैच कर लेता है) अब इसे... घोट कर... तोड़ो...

भीमा अपने दोनों हाथों से दबाने लगता है l पर ग्लास बहुत ही मजबूत था, नहीं टूटता है l

भैरव - ठीक है... रहने दो... लाओ... ग्लास हमे दे दो... (भीमा से ग्लास को अपने हाथों में लेकर) छोटे राजा जी... आपने कभी किसीसे प्यार किया है....
पिनाक - (थोड़ा हँसते हुए) पता नहीं... राजा साहब... पता नहीं....
भैरव - और... (पिनाक के आँखों में देखते हुए) और... किसीसे नफरत की है....
पिनाक - नहीं जानते... शायद नहीं...
भैरव - करना चाहिए.... इंसान को... करना चाहिए...
पिनाक - क्या.... क्या करना चाहिए... प्यार या नफरत..
भैरव - कुछ भी...
पिनाक - तो क्या... आपने किसीसे... प्यार....
भैरव - प्यार....हा हा हा... माय फुट... हमने तो.... नफ़रत की है.... वह भी बड़ी... शिद्दत से.... (थोड़ा मुस्कराते हुए) और... वह भी हमसे.... उतनी ही नफ़रत करती है.... उतनी ही शिद्दत से....

भैरव सिंह इतना कह कर बोतल में जितना शराब बचा था, उसे एक ही सांस में पी लेता है l पिनाक उसे हैरानी से देख रहा है l

पिनाक - हम कुछ... समझे नहीं... राजा साहब...
भैरव - हम इंसान हैं... छोटे राजा जी... इंसान बहुत जज्बाती होता है... हर इंसान का वज़ूद के लिए.... एक एहसास... एक खास ज़ज्बात... जरूरी होता है.... जो उस इंसान को... उसके होने का... एहसास दिलाता है.... मुझे मेरे होने का एहसास... तब होता है... जब जब वैदेही के चेहरे पर... दर्द उभरता है.... पता नहीं क्यूँ... पर जब जब उसकी तकलीफ की वजह मैं होता हूँ... उसकी वह तकलीफ़ मुझे... जुनून के हद तक.... सुकून देता है....
(भैरव सिंह एक गहरी सांस छोड़ता है) उसके आँखों में अपने लिए... बेइंतहा नफरत जब देखता हूँ.... तब मुझे हिमालय जितने जैसा लगता है..... हा हा हा हा... जीने का मजा ही कुछ अलग हो जाता है.... (भैरव सिंह का चेहरा अचानक से कठोर हो जाता है, जबड़े भींच जाते हैं, आँखे अंगारों सा दहकने लगता है) जानते हैं... हम उस कमीनी से... क्यूँ इतना नफ़रत करते हैं.... क्यूंकि एक वही है.... जो मेरे अंदर के... पुरूषार्थ को... अहं को चोट पहुंचाई है.... एक वही है... जिसे देखता हूँ... तो खुद को हारा हुआ महसुस करता हूँ... उसके साथ यह रिश्ता... उसके होश सम्भालने से पहले से ही है.... जानते हैं... जब हमारे सामने... वह चेट्टी... अपने बेटे के लिए बोला.... बाप से बढ़कर बेटा.... वह लफ्ज़... मेरे लिए एक गाली था... थप्पड़ था... जानते हैं.... जब पहली बार..... हमे बड़े राजा जी.... रंग महल के भीतर लाए... हमने ऐयाशी की दुनिया में कदम रखा... तब... एक दिन वैदेही की माँ को जबरदस्ती.... अपने नीचे ला रहा था... तब वैदेही ने... अपने नन्हें नन्हें दांतों से मेरे हाथ पर काट लिया था.... नवा... नवा जवानी चढ़ रही थी... पहली बार... मैं अपनी अंदर की आग को शांत किए वगैर.... रंग महल से लौटे थे..... वह पहली हार था... हमारा.... हाँ यह बात और है.... तवज्जो नहीं दी थी हमने..... फ़िर एक दिन वह.... भाग गई रंग महल से... वह दुसरी हार थी... क्यूँकी हमे सिर्फ एक बात... मालुम था... उसे हमारा बीज ढोना था.... पर वह भाग निकली.... यह हार था.... फिर एक दिन मिली.... उसे लाते वक्त... रघुनाथ बीच में आया.... मार डाला हमने उसे....
पिनाक - क्या... रघुनाथ को आपने मारा.... वहाँ तो सब... हमारे आदमी गए हुए थे... ना...

भैरव - हाँ (उसके आँखों में एक शैतानी चमक दिखती है) मैंने उस दिन... भेष बदलकर... अपने ही आदमियों के साथ गया था... सबको... अपना मुहँ... ढंकने का हुकुम दिया था.... इसलिए... राजगड़ के लोगों को छोड़ो... वैदेही भी आज तक यही समझती है... उसे हमारे ही आदमियों ने उठाया था....
पिनाक - ओ....
भैरव - मेरे अंदर... मेरे हार को बदलने का अवसर जो था.... इसलिए... बीच में आने वाले हर एक को... मारने की... ठान लिया था हमने... पर उस दिन विश्व... बेहोश हो गया था.... जो बाद में... सुवर बनकर.... हमारे सामने आया... खैर छोड़ो... वह... (एक तरफ हाथ उठा कर इशारा करते हुए) उस बैठक में (भैरव सिंह हाथ के इशारे से दिखाता है) बड़े राजा जी ने.... उसकी नथ उतारी.... वह बेहोश हो गई थी.... बड़े राजा जी उसकी माँ को लेकर आखेट घर ले गए.... मेरे लिए बेहोश वैदेही को छोड़ कर... मैंने उसे इसी कमरे में ला कर... मार मार कर पहले होश में लाया... उसके होश में आते ही... ही ही ही... टुट पड़ा.... वह मेरे सीने के इस हिस्से को (अपने दाएं हाथ से बाएं सीने पर एक जगह फेरते हुए) फिरसे काट लिया था.... पर इस बार... मैं नहीं रुका... अपनी अंदर की को शांत किया... तब उठा... पर तब तक... उसकी हालत बहुत खराब हो चुकी थी.... पर मेरे अंदर का पुरुष को.... असीम तृप्ति मिल चुका था.... पहली बार... मुझे जीत का एहसास हुआ.... हस्पताल से वापस आने के बाद.... मैंने उसे अपने.. नीचे लाकर हर तरह से रौंदा... उसकी चीख, उसके दर्द... मुझे बहुत खुशी देती थी... पर धीरे धीरे... वह बेज़ान हो गई....किसी पुतले की तरह... उसे कोई एहसास नहीं हो रहा था... वह ना चीखती थी... ना चिल्लाती थी... बस बेज़ान सी नीचे पड़ी रहती थी... मुझे उससे कोई मतलब नहीं था.... पर वह.... पेट से नहीं हो रही थी... यह मेरी बहुत बड़ी हार थी.... मुझे मेरे मर्दानगी पर... शक़ करने पर... मज़बूर करदिया.... यह और एक हार थी मेरे लिए... जब डॉक्टर ने बताया... की वह बाँझ है.... तो यह मेरे लिए... बहुत ही तकलीफ देह थी.... मैं अपने... बाप दादा के वंशानुगत रिवाज को... हार गया था... मैं.. मैं अगर उसे मार देता... तो यह उसकी जीत होती... इसलिए... उसे चुड़ैल बता कर नंगी... राजगड़ के गालियों में दौड़ाया... उस पर पत्थर फीकवाया.... इस बार उसके चेहरे पर दर्द दिखा.... मुझे खुशी महसुस हुई.... पर ज्यादा देर के लिए नहीं.... विश्व जिसे मैंने भुला दिया था... वह बीच में आ गया.... मैं इस बार फ़िर हार गया था.... रंग महल से... कभी कोई औरत निकली ही नहीं थी... अगर निकली भी थी... तो लाश बनकर... पर इसबार वैदेही.... जिंदा थी... फ़िर उसने मुझे मेरे हारने का... एहसास दिलाया.... पर एक बात तो मालुम हुआ... विश्व उसकी दुखती रग है.... बस आगे की कहानी आप जानते हैं... (भैरव वही ग्लास उठाता है) छोटे राजा जी.... अगर हमने वैदेही पर ताकत... आजमाया होता... तो (ग्लास पर पकड़ मजबूत करते हुए) एक ही थप्पड़ से ही... मर गई होती...(कड़ की आवाज़ आती है) हम उसे तकलीफ में देखना... चाहते थे... उसके जज्बातों को कुरेदा.... एहसासों को.. नोचा...(कड़च) उसे तकलीफ़ पहुंचाई.... जो मुझे असीम खुशी दे गई..... (कड़चटाक की आवाज़ सुनाई देती है और ग्लास टुट कर भैरव सिंह के हाथ से गिरती है)
Nice update
 
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