आगे हमने देखा की, मृत्युंजय को याद करके वृषाली चिंतित हे, तभी सारिका और लावण्या कक्ष में चौसर लेके आते हे। वृषाली को चौसर देखकर चारूलता की याद आती हे और वो उदास हो जाती हे। लावण्या कहती हे की आज हम छंद मुकरी खेलते हे। सब खेल रही हे तभी पीछे से मृत्युंजय उत्तर देता हे। उसे देखकर वृषाली और लावण्या खुस होते हैं। राजगुरु मृत्युंजय को कार्य के विषय में पूछते है तो वो कहता हे उचित समय आने पर सब बताऊंगा अब आगे........
समय बीत रहा हे। राजकुमारी अब धीरे धीरे अपने पैरों पर खड़ी होने लगीं हैं। जैसे नन्हा बालक धीरे धीरे डगमगाते चलता हे वैसे राजकुमारी भी चल रही हैं। महाराज बहुत प्रसन्न हे, किंतु राजगुरु और सेनापति वज्रबाहु राजमहल की सुरक्षा के विषय में चिंतित एवम कार्यरत हे की कहीं कोई अनहोनी घटना न घट जाए। मृत्युंजय इस कार्य में अपना पूरा योगदान दे रहा है।
लावण्या अपनी शैय्या में लेटी हुई है। उसका मुख देखकर ये ज्ञात होता है की वो बहुत उदास हैं। सारिका कबसे लावण्या को पास में बैठी निहार रही हे।
आखिर सारिका ने अपने मौन को विराम दिया और बोली, सखी इतनी व्यथित क्यों हो रही हो? लावण्या ने सारिका के सामने देखा, ये तुम पूछ रही हों सारिका अगर ये बात कोई अन्य व्यक्ति मुझसे पूछता तो फिर भी ठीक था। जब तुम सब जानती हो तो भी पूछ रही हो। लावण्या के अंदर जो पीड़ा हे वो उसके शब्दों में स्पष्ट दिखाई देती हे।
तुम्हे याद हैं लावण्या जब राजवैद्यजी ने तुम्हे राजमहल में राजकुमारी के उपचार हेतु आने केलिए कहा था तब तुम कितनी रूष्ट हुई थी। सारिका वो बात अलग थी, हा सखी उसी तरह आज राजव्वैध्यजी ने तुम्हे कार्य संपन्न होने पर वापस लौट ने केलिए कहा है। और वैसे भी हम यहां जिस प्रयोजन से आए हे वो भी तो पूर्ण करना हे। फिर भी सारिका यहां मेरे मित्र हे जिनके साथ मेरा ह्रदय जुड गया हैं।
किंतु मृत्युंजय भी तो अब अपने गांव लॉट जायेगा। उसका भी कार्य अब समाप्त होंगया हे फिर तुम यहां रहो के अपने अध्ययन स्थल पर क्या फर्क पड़ेगा।
लावण्या और सारिका बात कर रही है तभी एक सेविका कक्ष में प्रवेश करती हे, महाराज ने आपको तुरंत अपने कक्ष में उपस्थित होने का आदेश दिया हैं, बिना विलंब आप हमारे साथ चलिए।
महाराज ने आदेश दिया हैं? लावण्या और सारिका दोनों को आश्चर्य हुआ। किंतु इस समय, क्या कोई समस्या आ गई हे? वो हम नही जानते बस आप हमारे साथ चलिए।
सेविका आगे चल रही हे। लावण्या और सारिका शीघ्र ही महाराज के कक्ष में पहुंच गई। किंतु वहां जाकर उसने जो दृश्य देखा ये देखकर उसके होश उड़ गए, उसको अपने नेत्रों पर विश्वास नहीं हो रहा था वो कुछ क्षण केलिए ठहर गई और तेजिसे सामने खड़े एक व्यक्ति की ओर बढ़ी और उसके नजदीक जाते ही फिर ठहर गई।
कक्ष में महाराज, राजगुरु, मृत्युंजय, राजकुमारी वृषाली, सेनापति वज्रबाहु, और अन्य तीन व्यक्ति भी उपस्थित थे। वो तीनो व्यक्ति महाराज के समक्ष ऐसे खड़े थे जैसे उन्होंने कोई अपराध किया है और सजा सुनाने हेतु उन्हे यहां उपस्थित किया गया है।
सबने लावण्या की ओर देखा उन तीन व्यक्तियों ने।भी, सब चुप थे।
लावण्या क्यों रुक गई मिल लो अपने पिता से, अब रहस्य से पर्दा उठ गया हे, मृत्युंजय ने कहां। ये सुनते ही लावण्या के पैरो के नीचे से जमीन खिसक गई। उसके ह्रदय पर जेसे कोई बहुत बड़ा बोझ किसीने रख दिया हो ऐसा उसे लगा। वो अपनी जगह से दो कदम पीछे हो गई। वो मृत्युंजय के सामने देख रही थी किंतु उसकी आंख से आंख नहीं मिला पा रही थी। उसकी आंख से आंसू निकलें और नीचे गिर गए।
सब शांत था, लेकिन ये शांति कोई बड़े चक्रवात का अंदेशा दे रही थी।
महाराज कनकपुर तो आपका आश्रित राज्य है, आप हमारे महाराज है तो हम भला आपके और आपके राज्य के विरुद्ध षडयंत्र क्यूं करेंगे? लावण्या के बड़े पिताजी और कनकपुर के महाराज ने कहा। यही तो हम आपसे जानना चाहते है भानुप्रताप की हमने या हमारे राज्य ने कभी कोई भी ऐसा कार्य नहीं किया जिससे आपके मान, सम्मान, आपके कुटुंब, राज्य या आपके।धन को हानि पहुंचे फिर भी आपने हमारे विरुद्ध ये सब क्यों किया?
षडयंत्र? महाराज और बड़े पिताजी ये किस षडयंत्र के विषय में बात कर रहे हैं। सच छुपाना कोई षडयंत्र तो नही होता। लावण्या मन ही मन स्वयम से कहे रही हे।
भानुप्रताप, वीर युद्धभूमि में युद्ध करते हैं यूं पीठ पीछे षडयंत्र नही। आपसे हमे ऐसी कायरता की अपेक्षा नहीं थी। महाराज आप क्या कह रहे हैं हमारी कुछ समझ में नहीं आ रहा हे।
महाराज इंद्रवर्मा ओर कनकपुर के राजा भानुप्रताप वार्तालाप कर रहे हैं तभी मृत्युंजय आसन से उठा और मध्य में बोला, क्षमा कीजिए महाराज आप दोनो के मध्य बोल रहा हूं किंतु क्यों ना ये सवाल उस व्यक्ति से ही पूछा जाए जिसने ये पूरा षडयंत्र रचा हे।
मृत्युंजय की बात सुनकर सब आश्चर्यचकित हो गए। तुम कहेना क्या चाहते हो मृत्युंजय जरा विस्तार।से कहो, राजगुरु ने कहा। विस्तार से में क्या कह सकता हुं जो भी कहेंना है वो अब कनकपुर के महाराज भानुप्रताप के अनुज तेजप्रताप ही कहेंगे।
तेजप्रताप कहेंगे? मृत्युंजय पहेलियां मत बुझाओ कुछ समझ में आए ऐसा कहो। राजगुरु ने स्पष्ट शब्दों में मृत्युंजय को आज्ञा देते हुए कहा। मृत्युंजय ठीक कहे रहा हे राजगुरु जो कहेंगे वो तेजप्रताप ही कहेंगे। सेनापति वज्रबाहु ने भी यही कहा।
पिताजी क्या कहेंगे? ओर ये किस षडयंत्र के विषय में बात कर रहे हे। लावण्या का ह्रदय तेज गति से धड़कने लगा हे।
अवश्य ही आपसे किसी ने असत्य कहा हे महाराज इंद्रवर्मा हमारा अनुज ऐसा कोई कार्य नहीं कर सकता जिससे हमे ग्लानि हो और हमारा शीश झुक जाए। ऐसा हे तो फिर आपही स्वयम अपने भ्राता से पूछ क्यों नही लेते की ऐसी क्या विवशता थी जिसने इन्हे षड्यंत्रकारी बना दिया।
हमारा अनुज षड्यंत्रकारी? भानुप्रताप की आंखे फटी की फटी रहे गई सेनापति वज्रबाहु की ये बात सुनकर। हमारे पिताजी षड्यंत्रकारी नही नही ऐसा कदापि नही हो सकता, लावण्या मध्य ही चीखकर बोल पड़ी।
कुमारी लावण्या इस समय दो राज्यों के राजाओं के मध्य बात हो रही हैं आप बीच में न बोलें यहीं उचित होगा। राजगुरु ने थोड़ा रूष्ट होकर आज्ञा दी। क्षमा करे राजगुरु किंतु यहां हमारे पिताजी पर कलंक लगाया जा रहा हे, मेरे पिताजी वीर योद्धा हे वे षड्यंत्रकारी कभी नहीं हो सकते, कभी नही।
लावण्या तुमने सुना नही राजगुरु ने तुम्हे का आज्ञा दी मृत्युंजय ने कठिन शब्दों में लावण्या की ओर देखते हुए कहा। मृत्युंजय तुम भी? तुम तो हमारे मित्र हो फिर भी,? हम अपने पिता पर कोई भी कलंक लगते नाही देख सकते हैं ओर नाही सुन सकते हैं समझे तुम। लावण्या उग्र हो गई।
हां हुं में षड्यंत्रकारी, में ये स्वीकार करता हुं के ये सारा षडयंत्र मेने ही रचा है। तेजप्रताप ने ऊंचे स्वर में कहां और लावण्या चुप हो गई, उसके ह्रदय पर जैसे घात हो गया। भानुप्रताप का शरीर सुन्न हो गया। महाराज इंद्रवर्मा और राजगुरु अपने आसन से उठखड़े हो गए।
आपने रचा षडयंत्र तेजप्रताप हमारे विरुद्ध? किंतु क्यूं, आपसे तो हमारी परस्पर ना कोई स्पर्धा हे ना कोई शत्रुता फिर आपने ऐसा जघन्य अपराध क्यूं किया। महाराज इंद्रवर्मा क्रोधित हो गए, उनका हाथ अपनी कमर पर लटकती म्यान पर गया और उन्हों ने तलवार निकाली। सब चिंतित हो गए , महाराज अपने आप पर संयम रखिए और विवेक से काम लीजिए, राजगुरु ने कहा।
संयम केसे रख्खू राजगुरु अगर ये वीरो की तरह वार करते तो मुझे गर्व होता किंतु उसने तो कायर के।भांति पीठ पीछे वार किया, और चोंट पहुंचाई भी तो किसे? हमारी बेटी राजकुमारी वृषाली को। नही गुरुजी ये दंड के पात्र हैं हम इस समय ही उसका शीश धड़ से अलग कर देंगे।
षडयंत्र हमारे विरुद्ध? वृषाली ये सुनकर चौंक गई।हमारे पिताजी ने वृषाली को चोट पहुंचाई आखिर ये किस विषय में बात हो रही हे। लावण्या भी चौंक गई थी उसके मस्तिष्क ने जैसे कार्य करना ही बंध कर दिया था राजगुरु ने जैसे तैसे महाराज को शांत किया।
भानुप्रताप अपने अनुज तेजप्रताप के समीप गए और जोर से एक चाटे की आवाज कक्ष में गूंज गई। ये किस षडयंत्र की बात हो रही हैं तुमने क्या षडयंत्र किया हैं तेजपाल बोलो, ऐसे पत्थर की मूरत बनकर क्यों खड़े हो बोलो तेजपाल बोलो नही तो आज हमारे हाथों से कुछ अनर्थ हो जायेगा।
भानुप्रताप, तेजपाल के दोनों कंधो को जक्जोड़ कर पूछ रहे हैं। हा मेने ही रचा है षडयंत्र मैने ही। क्या किया है तुमने और क्यों किया है तेजपाल बोलो....
भानुप्रताप द्वारा तेजपाल से पूछे गए प्रश्न का उत्तर जान ने केलिए सब उत्सुक हे।