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Fantasy विष कन्या - (Completed)

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और जिस तरह हर update के अंत मे कुछ रहस्य बनाया जा रहा है वो और भी मजेदार लगता है ।
 
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राजगुरु क्या कहना चाहते हैं ये जान ने की सबको बहुत जिज्ञासा थी।


महाराज आप जानते हो की अब मेरी आयु हो गई हैं। मुझ पर राजगुरु और गुरुकुल के प्रधान आचार्यपद दोनो पद का भार है, किंतु अब में गुरुकुल के अचार्यपद से निवृत्त होना चाहता हुं। अब मैं राज, काज छोड़कर आध्यात्म की ओर प्रयाण करना चाहता हुं अतः मेरी आपसे ये विनती हे की मुझे गुरुकुल के आचार्यपद से निवृत्त करें।


राजगुरु की बात सुनकर महाराज, सेनापति वज्रबाहु, वृषाली, मृत्युंजय सबको थोड़ा धक्का लगा। ये क्या कह रहे हे आप राजगुर आप निवृत्त होना चाहते हैं? आपको ज्ञात है ना की आपके बिना ये राजमहल और गुरुकुल दोनो अपूर्ण है कृपया आप निवृत्त होने की बात मत कीजिए। महाराज ने राजगुरु से हाथ जोड़कर विनती की।


में राजगुरु के पद से निवृत्त नही हो सकता किंतु मुझे गुरुकुल के पद से निवृत्त कर दीजिए ये मेरे लिए और हम सबके लिए अच्छा होगा।


किंतु आपके बिना गुरुकुल चलाएगा कोन? आपसे अच्छा और आपसे बढ़कर आचार्य गुरुकुल को और नही मिलेगा इसलिए आप शिष्यों केलिए ही आचार्यपद का त्याग मत कीजिए।


ऐसा किसने कहा की मुझसे अच्छा आचार्य गुरुकुल को और नही मिलेगा? परिवर्तन श्रृष्टि का नियम है, यहां कोई भी हमेशा केलिए सर्वश्रेष्ठ और सर्वोपरि नही रहता। "बहु रत्ना वसुंधरा" पृथ्वी पर हजारों एक से बढ़कर एक रत्न हैं। राजगुरु ने कहा।


किंतु हम गुरुकुल केलिए आप जैसा महान ज्ञानी आचार्य कहां से लायेंगे राजगुरु। महाराज मेरी दृष्टि में एक व्यक्ति हैं जो मुझसे भी बढ़कर है। ऐसा कोन है राजगुरु कृपया बताए। मृत्युंजय.... मृत्युंजय गुरुकुल के आचार्यपद केलिए सर्वथा उचित है।


राजगुरु के मुख से मृत्युंजय का नाम सुनकर सबको अच्छा लगा। इस पद हेतु में मृत्युंजय का चयन करता हुं महाराज। राजगुरु में आपकी बात से सहमत हुं, सेनापति वज्रबाहु ने कहा।


महाराज अभी बिना कुछ कहे चुप है। आपकी क्या राय हैं महाराज? राजगुरु ने प्रश्न किया। आपका चयन कभी अनुचित हो ही नही सकता राजगुरु किंतु मृत्युंजय को ये पद स्वीकार्य होगा?


तुम क्या सोचते हो मृत्युंजय इस विषय में? राजगुरु ने मृत्युंजय के समीप जाकर उससे पूछा। में आपके जितना योग्य तो अभी नहीं हुं राजगुरु। देखो मृत्युंजय तुमने राज्य का महाराज पद लेने से मना किया क्योंकि वो तुम्हे भेंट में मिल रहा था, किंतु गुरुकुल का आचार्यपद तुम्हे तुम्हारी योग्यता से मिल रहा है।


गुरुकुल को तुम्हारे जैसे ज्ञानी और सुलझे हुए आचार्य की आवश्यकता है इसलिए मैं तुमसे ये अनुरोध करता हुं की इस पद का स्वीकार कर लो।


अगर आपको ये उचित लगता हे तो ठीक है मुझे ये पद स्वीकार्य हैं। मृत्युंजय की स्वीकृति से सब प्रसन्न हो गए।


समय अपनी गति से बीतने लगा। शुभ मुहूर्त में राजकुमारी वृषाली का विवाह मृत्युंजय से, लावण्या का विवाह कुमार निकुंभ से और भुजंगा का विवाह सारिका से हो गया। तीनो कन्याओं का विवाह एक ही मंडप में हुआ और तीनो का कन्यादान महाराज ने अपने हाथसे किया।


सब प्रसन्न होकर जीवन निर्वाह करने लगे। राजगुरु ने आचार्यपद मृत्युंजय को सौंप दिया। भुजंगा भी गुरुकुल में अपनी योग्यता के आधार पर शिक्षक बन गया। महाराज ने भी अपना राज्य कुमार निकुंभ को सौंप दिया और उसका मार्गदर्शन कर रहे थे। सारिका अब विष मुक्त होकर सामान्य हो गई।


और इस तरह प्रतिशोध और षडयंत्र से शुरू हुई एक कहानी का सुखद अंत हुआ।


समाप्त🙏



आप सब वाचकों ने मेरी कहानी "विष कन्या" को प्रेम से पढ़ा और बहुत पसंद किया हैं, आप के रिव्यू ने मुझे अच्छा लिखने का उत्साह प्रदान किया इसलिए मैं आप सबकl बहुत आभारी हुं। आप सबका बहुत बहुत धन्यवाद। बस ऐसे ही साथ जुड़े रहिए और उत्साह प्रदान करते रहिए यही विनती हैं। 🙏🙏
 

The_Punisher

Death is wisest of all in labyrinth of darkness
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Hello everyone.

We are Happy to present to you The annual story contest of XForum


"The Ultimate Story Contest" (USC).

As you all know, in previous week we announced USC and also opened Rules and Queries thread after some time. Before all this, chit-chat thread already opened in Hindi section.

Well, Just want to inform that it is a Short story contest, in this you can post post story under any prefix. with minimum 700 words and maximum 7000 words . That is why, i want to invite you so that you can portray your thoughts using your words into a story which whole xforum would watch. This is a great step for you and for your stories cause USC's stories are read by every reader of Xforum. You are one of the best writers of Xforum, and your story is also going very well. That is why We whole heatedly request you to write a short story For USC. We know that you do not have time to spare but even after that we also know that you are capable of doing everything and bound to no limits.

And the readers who does not want to write they can also participate for the "Best Readers Award" .. You just have to give your reviews on the Posted stories in USC

"Winning Writer's will be awarded with Cash prizes and another awards "and along with that they get a chance to sticky their thread in their section so their thread remains on the top. That is why This is a fantastic chance for you all to make a great image on the mind of all reader and stretch your reach to the mark. This is a golden chance for all of you to portrait your thoughts into words to show us here in USC. So, bring it on and show us all your ideas, show it to the world.

Entry thread will be opened on 7th February, meaning you can start submission of your stories from 7th of feb and that will be opened till 25th of feb. During this you can post your story, so it is better for you to start writing your story in the given time.

And one more thing! Story is to be posted in one post only, cause this is a short story contest that means we can only hope for short stories. So you are not permitted to post your story in many post/parts. If you have any query regarding this, you can contact any staff member.



To chat or ask any doubt on a story, Use this thread — Chit Chat Thread

To Give review on USC's stories, Use this thread — Review Thread

To Chit Chat regarding the contest, Use this thread— Rules & Queries Thread

To post your story, use this thread — Entry Thread

Prizes
Position Benifits
Winner 1500 Rupees + Award + 30 days sticky Thread (Stories)
1st Runner-Up 500 Rupees + Award + 2500 Likes + 15 day Sticky thread (Stories)
2nd Runner-UP 5000 Likes + 7 Days Sticky Thread (Stories) + 2 Months Prime Membership
Best Supporting Reader Award + 1000 Likes+ 2 Months Prime Membership
Members reporting CnP Stories with Valid Proof 200 Likes for each report



Regards :- XForum Staff
 
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ashish_1982_in

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महाराज अगर आप ऐसे खाना पीना छोड़कर विशादमे ही डूबे रहेंगे तो कैसे चलेगा। में आपकी हालत समज रहा हूं पर आपका सर्व प्रथम दाइत्व आपके राज्य के प्रति और आपकी प्रजाके प्रति है, इस लिए शास्त्रों में कहा गया है कि एक राजाका विलाप या शोक में डूब जाना अनुचित हे। क्यों की प्रजा केलिए राजा उनके पिता, पालनहार, और भगवान के समान होता है। अतः आपका इस तरह विशाद मे डूब कर अपने रज्यके प्रति कर्तव्यों से विमुख हो जाना आप जैसे प्रजा वत्सल रजाको शोभा नहीं देता। राजगुरु ने शांति से अपनी बात को समझाने का प्रयास किया।


में भी उनको यही समझाने का प्रयास कर रहा हूं राजगुरु। पर छोटा मुंह बड़ी बात शोभा नहीं देती इस लिए मैने आपको यहां आने का कष्ट दिया। में उसके लिए क्षमा चाहता हूं।अपने आसन से उठकर महामंत्री राजगुरु के समीप आए और हाथ जोड़कर बोले।


महाराज अपने हाथकी सहायता से शिश झुकाए बैठे है। गहरा शोक उनको घेरे हुए है। राजगुरु की बात सुनकर ऊपर देखते हुए बोले, में आपकी बात समझ रहा हूं पर क्या करू गुरुजी राजा होने के साथ में एक बाप भी हूं वो भी एक बेटिका। भगवान ने सालो तक हमें संतान सुखसे वंचित रखा, कितनी मन्नते, कितने पूजा पाठ, दान पुण्य, हवन, यज्ञ, क्या क्या नहीं किया तब जाके कहीं हमारे घर राजकुमारी वृषाली की नन्नी किलकारियां गूंजी और हमारा राजमहल खुशियों से भर गया। और आज......वो आगे बोल नहीं पाए, उनका गला भर आया और आंखें आंसुओ से भर गई।


ईश्वर सब ठीक कर देगा। हर इनसान की जिंदगी में कठिन समय आता है, और तब ही उसके विवेक और धैर्य की परीक्षा होती है। आपकी भी हो रही है और मुझे भरोसा है आप इसमें जरूर उतिर्न होंगे। आप महान विरो के वंशज है। गुरुजी के शब्दों में दृढ़ता थी। आपने राजा होने के नाते इस से भी कठिन युद्ध का सामना निडरता से किया है। ये कठिन वक्त भी गुजर जाएगा राजगुरु बोले। गुरुजी कोई तो उपाय होगा, आप तो इतने बड़े विद्वान है आप कुछ कीजिए, कोई पूजा पाठ, यज्ञ कुछ तो.... बस राजकुमारी वृषाली को ठीक कर दीजिए। महाराज राजगुरु के पैर में पड़कर आजिज़ी करने लगते है। राजगुरु उनकी बाहे थामकर उनको अपने पास बैठाते हे।


देखिए महाराज हमारे राजवैध पर भरोसा रखिए। संसार के अच्छे वैद में से एक है हमारे राजवैध, वो प्रयास कर रहे है और मुझे उनपर पूरा भरोसा है वो जरूर हमारी राजकुमारी को जल्द से जल्द ठीक कर देंगे। आप भी इश्वरसे प्राथना कीजिए के वो अपने काम में जल्द से जल्द सफल हो जाए।


महाराज और गुरुजीका वार्तालाप चल रहा है तभी बाहर से एक दरवान कक्ष में आने की अनुमति लेता है और अंदर आके कहेता है, क्षमा कीजिए महाराज लेकिन बाहर कोई आया है जो कह रहा है कि में राजकुमारी को ठीक कर सकता हूं और इसी उद्देश्य से यहां आया हूं जाके अपने महाराज को ये बात बताओ।


दरबान की बात सुनते ही महाराज की आंखे में चमक आ गई। कोन है वो, कहा से आया है? उसे तुरंत यहां उपस्थित होने को कहा जाए। जैसी आपकी आज्ञा महाराज कहेकर दरबान चला गया पर महाराज की आंखे कक्षके दरवाजे पर ही ठहेर गई। राजगुरु महाराज की ये उत्सुकता देख रहे थे। महाराज अपने आसन से उठकर कक्षमे इधर उधर चलने लगे। उनके लिए एक एक क्षण मानो जैसे एक एक सालके जैसा है। महाराज को इस दशामे देखकर गुरूजिसे अब रहा नहीं गया। उन्होंने कहा महाराज आप अपने आसनपे विराजे दरबान उसे लेकर आ ही रहा होगा।


जी गुरुजी पर पता नहीं क्यों लेकिन दिलमे एक आस जगी है कि शायद ये आनेवाला अजनबी राजकुमारी को ठीक कर देगा। महाराज की आंखों में आशा की ज्योत दिखाई दे रही है। भगवान करे एसा ही हो महाराज पर आप इतने व्याकुल होकर धीरज मत खोइए। आने वाला इनसान कोंन है, कैसा है ये जानना भी अती आवश्यक है। यहां बात राजकुमारी के स्वास्थ और सुरक्षा दोनों कि है। एसे किसी भी इंसान पे भरोसा नहीं कर सकते। पहले उससे मिल कर उसके तात्पर्य की पुष्टि करनी होगी।


जी गुरुजी आप सही कह रहे है। राजगुरु और महाराज का वार्तालाप चल रहा है तभी वो अजनबी कक्ष में दाखिल होता है और महाराज और राजगुरु उसको देखकर अपने वार्तालाप को अधूरा छोड़कर उस अजनबी को देखते है।


अजनबी युवान पुरुष है। गठीला शरीर, तलवार की धार के जैसी तेज आंखे, चौड़ा सीना, प्रचंड भुजाए, पहाड़ जैसा व्यक्तित्व, और चहेरे पे तपते हुए सूरज की लालिमा जैसा तेज, विशाल भालपे किया हुआ त्रिपुंड चहेरे को और भी तेजवंत बना रहा है, गलेमे और पूरे शरीर पर पहने हुए रुद्राक्ष मानो साक्षात कोई रुद्रावतार हो। और कंधेसे नीचे तक जाते हुए गहरे काले बाल जैसे अनगिनत सर्प हो।


महाराज और राजगुरु इस अजनबी युवान को देखते ही रहे गए। कक्षकी धुंधली रोशनी में वो सूर्य सा तेज लेके आया था। महाराज से रहा नहीं गया उन्होंने पूछ लिया आप कोंन है कृपया अपना परिचय दीजिए। आपके मुखके तेज को देखकर लगता है कि आप महा ज्ञानी ब्राह्मण है, पर आपकी विशाल भुजाओं को देखकर लगता है आप वीर क्षत्रिय है अतः अपना परिचय दीजिए।
Very nice update bhai
 
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ashish_1982_in

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आगे हमने पढ़ा कि महाराज राजकुमारी वृषालि की बिमारिसे व्यथित है और राजगुरु उनको समजा रहे है। तभी बाहर से दरबान आके केहेता है कि बाहर कोई आया है जो अंदर आनेकी अनुमति मांग रहा है और कहे रहा है कि में तुम्हारी राजकुमारी को ठीक कर सकता हूं। महाराज उसे अंदर आने को कहते है और उसे देखकर उसका परिचय पूछते है अब आगे........y


युवान ने हााथ जोड़कर महाराज और राजगुरु को कहा महादेव । राजगुरु और महाराज नेभी हाथ जोड़कर महादेव हर कहा। अपना परिचय दीजिए और यहां आने का तात्पर्य बताइए राजगुरु ने कहा।


में विश्व विख्यात वेदाभ्याशी, और जगत के सर्व श्रेष्ठ वैदो में से एक वेदाचार्य वेदर्थी का अनुयाई, शिस्य और उनका पुत्र मृत्युंजय हूं।


ये सुनते ही राजगुरु अचंभित होकर अपने आसन से उठकर खड़े हो गए। क्या कहा तुम सर्व वेदों के ज्ञाता और अभ्यासी वेदाचार्य वेदर्थी के पुत्र हो? हा में वही हूं। लेकिन हम कैसे मान ले कि तुम वेदर्थी के पुत्र हो? उनको तो बर्षो से किसी ने देखा तक नहीं, वो कहा है, कैसे है, क्या कर रहे है किसीको पता नहीं। तुम इस बात का कोई प्रमाण दे सकते हो की तुम ही वेदर्थी के है पुत्र हो?


जरूर दे सकता हूं। मृत्युंजय की आंखे आत्मविश्वास से छलक रही है। उसके कंधे पर एक जोली थी उसने उसमे हाथ डालकर एक पोटली निकाली और उसे छोड़ ने लगा । राजगुरु बड़े आतुर थे ये देखने केलिए के उसमे क्या हो सकता है जो प्रमाणित करदे की ये वेदर्थी का ही पुत्र है।


मृत्युंजय ने एक अंगूठी निकाली ओर राजगुरु के सामने रखकर कहा इसे तो आप पहेचानते ही होंगे राजगुरु सौमित्र। राजगुरु मृत्युंजय के मुहसे अपना नाम सुनकर ओर उस अंगूठी को देखकर चौंक गए। अब उनसे रहा नहीं गया उन्होंने आगे बढ़कर अंगूठी को हाथ में लिया और गौर से देखा । उनकी आंखे छलकने लगे उन्होंने मृत्युंजय को पास जाकर गौर से देखा। वही आंखे, वही भुजाए, वही आत्मविश्वास, मानो जैसे खुद वेदर्थी ही उनके सामने खड़े है।


वेदर्थी अभी कहा है, कैसे है? इतने वर्षो में उसने एक बार भी मुजसे मिलने कि कोशिश नहीं की। एक संदेश तक नहीं भेजा वो कुशल तो हैना?


वो अब इस दुनियांमें नहीं रहे। कुछ समय पहले ही वो स्वर्ग सिधार गए। ये सुनते ही राजगुरु के दिलको धक्का लगा, उनके कदम जैसे लड़खड़ा गए। वो आसन पर बैठ गए। महाराज राजगुरु को इस दशा में देखकर तुरंत उनके पास आए , क्या हुआ राजगुरु आप ठीक तो हैं ना। राजगुरु ने आंखे बंध करके लंबी शांस लेते हुए कहा हा में ठीक हूं।


महाराज ने देखाकि राजगुरु अब स्वस्थ है तो उन्होंने पूछा। राजगुरु कोन है ये मृत्युंजय और उसके पिता के साथ आपका कया संबंध था? कृपया आप मेरे मन के कुतुहल का समाधान कीजिए।


राजगुरु कुछ देर शांत रहे ओर फिर बोले महाराज वेदर्थी एक परम ज्ञानी, वेदों के अभ्यासी, ओर महान वैद थे। हम दोनों परम मित्र थे। हम दोनों ने महान वेदाचार्य गुरु सोमदेव से साथ मे शिक्षा और दीक्षा प्राप्त कि थी। वेदर्थी मूजसे हर बात मे आगे था। हमारी शिक्षा पूर्ण होने के बाद हमे बड़े बड़े गुरुकुल से आचार्य पद केलिए प्रस्ताव आए। मैने आपके पिताजी का प्रस्ताव स्वीकार किया ओर मे यहां आपके राज्य में आ गया।


वेदर्थी को जिनकी गिनती भारतके सबसे बड़े राजे रजवाड़ों मे होती है उस राज्य सोनगढ़ के राजगुरु ओर उनके गुरुकुल के प्रधान आचार्य के पद केलिए प्रस्ताव आया। ये हम सब केलिए बड़ी गौरव की बात थी। वहा उनकी ख्याति पूरे भारत में फेल गई। लेकिन कहते है ना कि समय कब करवट बदले पता नहीं चलता। वेदर्थी की ख्याति से जलते लोगों ने षडयंत्र करके उसपर राजद्रोह का आरोप लगा दिया।


राजद्रोह , केसा राजद्रोह? महाराज उत्सुख थे कारण जान ने केलिए। किसीने सोनगढ़ के राजा को विष दे दिया ओर साबित कर दिया कि राज वैध वेदर्थी ने उनको जहर दे कर मारनेका षडयंत्र रचा है। उनको सारे पदसे निष्काशित कर दिया गया ओर कारावास में डाल दिया गया। मुझे ये खबर सुनके बहुत आघात लगा था। मैने सोनगढ़ के राजा से मिलकर उनको समझाने का बहुत ही प्रयत्न किया पर सारे प्रमाण वेदर्थी के विरुद्ध थे। में चाहते हुए भी अपने परम मित्र केलिए कुछ नहीं कर सका।


राजगुरु बहुत व्यथित हो गए उस घटना को याद करके। अपने मित्र के लिए कुछ ना कर पाने की पीड़ा उनके मुख मंडल को घेर रही थी, मनों जैसे वो मृत्युंजय से आंखे नहीं मिला पा रहे थे। वो खामोश होकर अपने आसन पर बैठे रहे।


महाराज भी ये सब सुनकर, देखकर थोड़े व्यथित हो गए। इतने बड़े ज्ञानी पुरुष के साथ एसा बर्ताव? फिर क्या हुआ राजगुरु कृपया मुझे बताइए मेरा ह्रदय व्यथित है ये सब जानकर। क्या फिर वो कभी अपने आपको निर्दोष प्रमाणित कर पाए?। राजगुरु नमृत्युंजय के सामने देखा जैसे उनकी आंखे कह रही हो कि अब आगे की बात तुम कहो मेरी जीहवा से में नहीं कह पाऊंगा। मृत्युंजय ने गुरुजी की आंखो की पीड़ा को समझ लिया और कहा महाराज मे बताता हूं कि फिर क्या हुआ।
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आगे हमने देखाकि आने वाला युवान अपनी पहेचान बताते हुए कहता है कि में महान वेदाभ्याशी वेदर्थी का पुत्र मृत्युंजय हूं ओर इस बात को प्रमाण देते हुए एक अंगूठी राजगुरु सौमित्र के हाथ में देता है। फिर महाराज राजगुरु से वेदर्थी के बारे में पूछते है तो राजगुरु बताते हे की वो गुरुकुल मे साथ थे ओर परम मित्र थे , ओर फिर कैसे वो सोनगढ़ के प्रधान आचार्य बने ओर उनके साथ षडयंत्र करके उन्हे राज द्रोही प्रमाणित कर दिया गया अब आगे.......


राजगुरु इतने व्यथित हो गए है कि अब वों आगे बोल नहीं सकते थे। मृत्युंजय ने आगे की बात बताना शुरू किया.....


षडयंत्र की जाल बहुत सोच समजमर बूनी गई थी। ओर पिताजी उसमे फंस चुके थे। उनको सोनगढ़ के राजा को मार ने के षड्यंत्र का दोषी करार कर के राजद्रोह का इल्ज़ाम लगाकर कारावास मे डाल दिया गया। मेरी मां को भी राजद्रोही की पत्नी मान कर राज्य से बाहर निकाल दिया। तब में अपनी मां की कोख में था। इस अवस्था में मेरी मां ने दर दर की ठोंकरे खाई लेकिन किसी भी राज्य ओर नगर ने उनको सहारा नहीं दिया।


तब जंगल के एक वनवासी कबिलेने मां को सहारा दिया। वही उस काबिले में ही मेरा जन्म हुआ ओर मेरे जन्म के समय ही मां स्वर्ग सिधार गई। मृत्युंजय के चहेरे पर पीड़ा साफ दिखाई दे रही है। फिर उसने तुरंत अपने आप को संभाल लिया ओर आगे बात कहना शुरू किया।


गुरुकुल के कुछ शिष्य जो तन मन धन से पिताजी को अपना गुरु मान ते थे उनसे ये बात सही नहीं गई। उन्होंने पूरे षडयंत्र का पता लगाकर सच्चाई सोनगढ़ के राजा के सामने रखदी ओर सही गुनहगार को दुनिया के सामने खड़ा कर दिया। ओर वो षडयंत्रकारी कोन थे महाराज से पूछे बिना रहा नहीं गया। गुरुकुल के एक आचार्य ओर सोंगढ़के राजा का एक मंत्री।


महाराज को ये सुनकर बड़ा विस्मय हुआ, खुद राजा के राज्य के मंत्री ओर आचार्य ही राजा को मार ने का षडयंत्र करे तो फिर राजा ओर राज्य कैसे सुरक्षित रहेंगे। ये बात तो सचमे पीड़ा देने वाली ओर सोचने वाली है। वो थोड़ी देर मौन रहे। फिर क्या हुआ मृत्युंजय आगे की बात बताओ उन्होंने कहा।

मेरे पिता निर्दोष थे उन्हे रिहा कर दिया गया ओर उनके सर से सारे इल्ज़ाम खारिज कर दिए गए। सोनगढ़ के राजा ने उनसे माफी मांगी और फिर से अपने पद पर वापस आने केलिए बिनती की लेकिन पिताजी ने मना कर दिया। राजा ने हाथ जोड़कर मिन्नते की लेकिन पिताजी का मन अब इन सब चीजों से उठ चुका था। उन्होंने राज्य छोड़ दिया ओर गुरुकुल का प्रधान आचार्य पद भी। बोलते बोलते मृत्युंजय खामोश हो गया। पूरे कक्ष में सिर्फ ओर सिर्फ खामोशी ही थी।


थोड़ी देर बाद राजगुरु ने अपने आपको संभाला और आसन से उठकर मृत्युंजय के पास गए । उनकी आंखों मे कही प्रश्न साफ साफ दिखाई दे रहे थे।


उन्होंने बोलना शुरू किया। जब मुझे पता चला कि वेदर्थी निर्दोष प्रमाणित हो गया है तब मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा। में उस से मिलने के लिए सोनगढ़ पहुंच गया पर वहा जाके मुझे पता चला कि वो सब कुछ त्याग के वहा से जा चुका था। मैने वर्षो तक उसे ढूंढ नेकी बहुत कोशिश की लेकिन मुझे फिर कभी उसका पता नहीं चला। राजगुरु का मे मन पीड़ा से भर गया था। मुजे हमेशा दिल में इस बात की पीड़ा रही की मेरे मित्रने मुझ से एक भी बार मिलना या संदेश करना भी उचित नहीं समझा।


मृत्युंजय वो कहां था, किस हाल में था, इतने वर्षो उसने क्या किया। राजगुरु के शब्दों में अपने मित्र के प्रति दिल में उठ रही पीड़ा ओर नाराजगी साफ साफ दिखाई दे रही थी। वो ये जान ने केलिए व्याकुल थे कि इतने वर्षो तक उनका मित्र किस हाल में था।


पिताजी ने तन मन धन से सोनगढ़ के राजा, राज्य ओर गुरुकुल के प्रति सदैव अपना दायित्व निष्ठा से निभाया उसके बावजूद जो हुआ उसके बाद उनका मन द्रवित हो गया था। ऊपर से जब उनको पता चला कि मां की मृत्यु किस हालत में हुई तो उनका मन सबके प्रति रोष से भर गया।


एसा राज्य ओर समाज जो एक गर्भवती स्त्री का रक्षण ओर पोषण ना कर सके वो रहने के योग्य नहीं होता। इस लिए उन्होंने सोनगढ़ रज्यका, उसके राजा का ओर कहे जाने वाले सभ्य समजका त्याग कर दिया।


कुछ शिष्य जिन्होने पिताजी को बेकसूर प्रमाणित करने में योगदान दिया था उन्होने पिताजी को मेरे बारे में बताया। पिताजी मुझे लेकर दूर हिमालय की घाटी में जाकर वहा के वनवासी लोगो के साथ बस गए। उन्हों ने महसूस किया कि राजा ओर नगरके लोगो से उनकी ज्यादा जरूरत इन वनवासी प्रजा को थी। ओर ये अनपढ़ और असभ्य कहे जाने वाले वनवासी सिर्फ कहे जाने वाले सभ्य लोगो से ज्यादा समजदार ओर वफादार थे। पिताजी ने सारी उम्र हिमालय की पहाड़ियों में मिलने वाली औसधी ओर जड़ीबुटी पर संशोधन किया ओर वनवासियों की सेवा की। उन्हों ने उन वनवासी प्रजा को थोड़ा बहुत वेदों के बारे में ओर धर्म के बारे में ज्ञान भी प्रदान किया। वो वनवासियों के बच्चो को आयुर्वेद ओर जड़ीबुटी के बारे में भी ज्ञान देने लगे ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगो को सही उपचार ओर मदद मिल शके।


राजगुरु बीच मे ही बोल पड़े सब किया पर क्या कभी उसे अपने मित्र की याद नहीं आई???
Very nice update bhai
 
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