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Romance वो इश्क़ अधूरा (Completed)

Sona

Smiling can make u and others happy
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भाग 4



आपने पढ़ा:-
अर्पूवा- अपने पिता के बारे में सुनकर वो रोने लगती है फिर अपने आप को सम्भालते हुए उस लड़के के बारे में पूछती है....."क्या आप उस लड़के का नाम पता दे सकती हैं?"


अब आगे:-

नर्स - जी! अभी देती हूँ। ये रहा, "उसका नाम अनंत है और पता मयूर विहार कॉलोनी"।

अपूर्वा नाम पता लेकर एक ऑटो वाले से पूछी,- "इस एड्रेस पर चलोगे भैया?"

ऑटोवाला- ले चलूँगा मैडम पर यह एड्रेस कहांँ है मुझे पता नहीं। पर ढूंढने में आपकी मदद कर सकता हूँ।

वो ऑटो से आसपास के सारे एरिया में पता करती है पर ना तो अनंत मिला और ना ही वह एड्रेस। वह वापस हॉस्पिटल आ गई पर उसके लिए एक बुरी खबर थी कि उसके पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे। यह सुनकर वह फूट-फूट कर रोने लगी। वो उस वक्त अपने आप को बहुत अकेला महसूस कर रही थी उसे चैतन्य की बहुत याद आ रही थी
वह मन ही मन में बड़बड़ाती है कि यही उसका प्यार था। मैंने मना कर दिया तो उसने दोस्ती भी नहीं रखी। मेरे साथ इतना बड़ा हादसा हो गया और वह पूछने तक नहीं आया। जब कॉलोनी के सारे लोगों को पता है तो उसे भी जरूर पता होगा। अगर नहीं भी पता चला तो कम से कम मेरा मिस कॉल तो देखा ही होगा, फोन भी नहीं किया उसने। यह सब सोच कर उसे चैतन्य से नफरत हो जाती है।
जो फूल वह अपने माँ पापा के लिए लाई थी। उसे अपने पापा के अर्थी पर चढ़ा दिया। अपूर्वा आज भी यह परंपरा निभा रही है। हर वेलेंटाइन डे को अपूर्वा गुलाब के फूल अपने पिताजी की तस्वीर पर श्रद्धा के साथ चढ़ाती है।

६ साल बाद

अपूर्वा एयरपोर्ट पहुँच गई है। वह पार्किंग लॉट से सीधा दौड़ते हुए एयरपोर्ट की तरफ जा रही थी कि एक व्यक्ति से टकरा जाती है। वह उस व्यक्ति को रुक कर सॉरी बोली, और आगे बढ़ गई। थोड़ी देर में अनाउंसमेंट हुई कि दिल्ली जाने वाली फ्लाइट आधे घंटे लेट है। वह थोड़ी सहज हो गई और पास वाले बेंच पर आराम से बैठ गई। वह व्यक्ति भी उसी बेंच पर बैठा था जिससे वो टकराई थी।

व्यक्ति- लगता है आप बहुत थक गई हैं। पानी पी लीजिए थोड़ी राहत हो जाएगी।

अर्पूवा- वैसे तुम हो कौन? बहुत देर से देख रही हूंँ। मेरा पीछा कर रहे हो। सॉरी बोला न मैंने अब क्या आपके पैरों पर गिर जाऊंँ?

व्यक्ति - हाय!मुझे दिव्यांश कहते हैं। आप मुझे गलत समझ रही हैं। एक्चुअली उस वक्त गलती आपकी नहीं मेरी थी।मैं रास्ते में खड़ा था। जल्दबाजी में आपने अपनी गलती समझ कर सॉरी बोल दिया पर मैं तो जानता हूँ कि गलती मेरी हैं इसलिए आपसे माफी मांँगने चला आया था। लेकिन आपको बुरा लगा तो आई एम सॉरी।मुझे माफ कर दिजिए।

अर्पूवा ने देखा की वो थोड़ा असहज महसूस कर रहा है तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ।

अर्पूवा- अरे! नहीं नहीं कोई बात नहीं। वैसे आप कहाँ जा रहे हैं।


दिव्यांश - मैं मेरे मित्र से मिलने दिल्ली जा रहा हूंँ। वहीं पर कोई जॉब ढूंढ लूंँगा। यहांँ पर अब दिल नहीं लगता अपनापन नहीं है। यहांँ घुटन सी होती है।

अर्पूवा- दिव्यांश जी! सोचिए आपका काम हो गया। मेरे ऑफिस में मैनेजर की पोस्ट बस एक महीने पहले ही खाली हुई है। पहले जो थे उनका ट्रांसफर हो गया। अगर आप कहें तो मै अपने बॉस से बात करूँगी।

दिव्यांश- ये तो बहुत ही अच्छा हो जाएगा मेरे लिए, मुझे जॉब के लिए भटकना नहीं पड़ेगा।

तभी फ्लाइट के आने की अनाउंसमेंट होती है। दोनों फ्लाइट में बैठ जाते हैं। दिल्ली इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर पहुंचकर दोनों औपचारिकता निभा कर अपना फोन नं.एक्सचेंज कर अपने अपने रास्ते चले जाते हैं।

अपूर्वा जब घर पहुँचती है तो शुभांकर उस पर बरस पड़ता है। शुभांकर के हिसाब से बाहर काम करने वाली औरतों का चरित्र अच्छा नहीं होता। वो अपूर्वा के ऊपर चिल्लाने लगता है, "आ गई गुलछर्रे उड़ा कर। कहांँ थी इतने दिन? कितनी बार कहा है कि बंद करो यह जॉब-वॉब और घर पर रहा करो। लेकिन नहीं! मेरी बात तो सुननी ही नहीं है। इन्हें तो ऐश करना है मौज उड़ाना है। अरे! मेरे पास पैसे कम पड़ते है क्या?
अपूर्वा को उसकी बातें बर्दाश्त नहीं हुई वह बोली,"मैं पैसों के लिए नहीं अपने आत्मसम्मान के लिए कमाती हूंँ।" अगर तुम्हें इतनी दिक्कत है, तो मुझे छोडकर चले क्यों नहीं जाते और इतना बोलकर वो रोने लगी,और रोते हुए दौड़ कर अपनी बेटी विनी के पास गई और उसे गोद में लेकर प्यार करने लगी। उसके बाद वह अपनी माँ से मिली।

शुभांकर को अपूर्वा की मांँ का उनके साथ रहना पसंद नहीं था पर वह कुछ कह नहीं पाता था क्योंकि घर अपूर्वा का था। विवाह के बाद शुभांकर अपूर्वा की ज़िद पर उसके बंगले पर ही रहने लगे थे क्योंकि वह अपनी मांँ को अकेले नहीं छोड़ना चाहती थी ऊपर से शुभांकर का ऑफिस भी वहांँ से बहुत नज़दीक था।

आज अपूर्वा के पास पैसे तो बहुत है। अपना बंगला अपनी तीन तीन गाड़ियांँ सब कुछ, पर शुभांकर के साथ उसका रिश्ता विवाह के साल भर बाद से ही बिगड़ने लगा था। रोज आए दिन झगड़े होने लगे थे। शुभांकर रोज देर रात शराब पीकर घर लौटता और कभी-कभी तो अपने साथ लड़की भी लाता था। कितनी बार तो उसने अपने कमरे में ही उसे दूसरी दूसरी लड़कियों के साथ देखा था। अब वह अपूर्वा पर हाथ भी उठाने लगा था।विवाह के बाद वो बिल्कुल बदल चुका था। अर्पूवा उसके इस बदलाव को देखकर बहुत अचंभित थी। वो हमेशा सोचती कि शुभांकर को पहचानने में उससे इतनी बड़ी गलती कैसे हो गई।
अपूर्वा ने इस बार शुभांकर को डिवोर्स देने की ठान ली थी। उसने सोच लिया था, कि अब वह शुभांकर को अपना अपमान नहीं करने देगी और ना ही अब उसे कोई सुधरने का मौका देगी। इसके लिए उसने अपने वकील से बात कर ली थी। कुछ ही दिनों में अपूर्वा ने शुभांकर को डिवोर्स दे दिया।

उधर ऑफिस में उसने दिव्यांश के लिए अपने बॉस से बात कर ली थी। उसकी जॉब पक्की हो गई थी। उसने ऑफिस भी आना शुरू कर दिया था।
दिव्यांश की काबिलियत, काम के प्रति लगन और मेहनत देखकर अपूर्वा उस से बहुत प्रभावित हुई।

दिव्यांश बहुत ही हैंडसम, स्मार्ट और मॉडर्न लड़का था। अपूर्वा के साथ उसकी खूब बनती थी। कुछ ही दिनों में दिव्यांश और अपूर्वा में काफी अच्छी मित्रता हो गई थी। ऑफिस में साथ लंच करना, शाम को कैंटीन में साथ कॉफी पीना यह सब उनकी दिनचर्या में शामिल था। अपूर्वा दिव्यांश को बहुत पसंद करती थी।

एक बार छुट्टी के दिन अपूर्वा ने दिव्यांश को अपने घर लंच पर बुलाया। अपूर्वा की मांँ यह जानकर बहुत खुश हुई क्योंकि शुभांकर से डिवोर्स के बाद अपूर्वा पहली बार किसी व्यक्ति के संदर्भ में आई थी। अपूर्वा की मांँ चाहती थी कि अपूर्वा फिर से अपना घर बसा ले।
आज सुबह से अपूर्वा किचन में खाना बना रही थी। घड़ी में ११:३० हो चुके थे। तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। वो बाकी का काम बेला के जिम्मे छोड़कर वह दरवाजा खोलने चली गई।
दरवाजे पर दिव्यांश खड़ा था।उसने उसे अंदर आने को कहा। दोनों बाहर ही हॉल में सोफे पर बैठकर इधर उधर की बातें करने लगे। बातें करते करते थोड़ी देर में अपूर्वा की मांँ भी आ गई। उन्होंने बेला को चाय लाने को कहा। बेला सबके लिए चाय ले आई, सभी ने चाय पिया और फिर से बातें करने लग गए।

१:३० बजे बेला ने डाइनिंग टेबल पर खाना लगा दिया। सब ने साथ में खाना खाया। खाना बहुत ही स्वादिष्ट बना था। दिव्यांश तारीफ किए बिना नहीं रह सका उसने खाने की जमकर तारीफ की। तब तक विनी भी सो कर उठ गई और रोने लगी। विनी बहुत ही गोरी, क्यूट, मासूम, और कोमल सी थी। उसको रोते हुए देखकर दिव्यांश से रहा नहीं गया। उसने विनी को गोद में उठा लिया। दिव्यांश के गोद में जाते ही विनी चुप हो गई और उसके साथ खेलने लगी।

ये देखकर अपूर्वा भाव विभोर हो उठी। उसकी आंँखें नम हो गई। विनी दिव्यांश के साथ ऐसे खेल रही थी जैसे वह उसका पिता हो। अपूर्वा के दिल में एक हूक सी उठी और अनायास ही उसे शुभांकर की याद हो आई। वह शुभांकर से यही तो चाहती थी पर शुभांकर के पास तो उन दोनों के लिए वक्त ही नहीं था।
शाम के ४:०० बज गए थे। विनी दिव्यांश की गोद में खेलते खेलते थक कर सो गई थी। शाम की चाय का वक्त हो गया था। उन्होंने शाम की चाय पी और अपूर्वा ने दिव्यांश से अनुरोध किया कि वो रात का डिनर भी उन्हीं के साथ करे। दिव्यांश भी विनी को छोड़कर जाना नहीं चाह रहा था। अतः वह मान गया। रात का डिनर करने के बाद जब दिव्यांश ने विनी को अपनी गोद से उतारा तो वो रोने लगी। वो पूरे दिन दिव्यांश के गोद में ही थी।

दिव्यांश के जाने के बाद अपूर्वा की माँ ने अपूर्वा से कहा, "कितना अच्छा लड़का है ना दिव्यांश" विनी को कितना प्यार करता है, विनी भी कैसे उसकी गोद से नहीं उतर रही थी जैसे उसे कितने दिनों से जानती हो। मैं तो कहती हूंँ दिव्यांश को अपनी जिंदगी में ले आ अपूर्वा। विनी को पिता का प्यार मिल जाएगा और तुम्हें भी सहारा मिल जायेगा।

नहीं माँ! एक बार प्रेम को बंधन में बांध कर देख चुकी हूंँ। अब इस प्रेम को बंधन में बांध कर फिर वही मूर्खता नहीं करना चाहती। अपने लिए, अपनी बेटी के लिए इस प्रेम को बंधन में बांध लेना स्वार्थ होगा और जहां स्वार्थ हो वहां बंधन होता है और उस बंधन में प्रेम नहीं होता मांँ। जब प्रेम अपूर्ण हो तभी पूर्णता का एहसास देता है।

तो क्या तू जिंदगी भर अकेली रहेगी? तो इसमें बुराई ही क्या है माँ? तुम हो , विनी है और अब दिव्यांश जैसा दोस्त भी है और कौन चाहिए ?
मेरे मरने के बाद और विनी के विवाह के बाद क्या करेगी? बोल....ओ हो माँ कैसी बातें करती हो। मैं जल्द ही तुम्हारे और पापा के नाम पर दो आश्रम खोलूँगी। एक बुजुर्गों के लिए और एक बच्चों के लिए। विनी के विवाह के बाद उन्हीं लोगों की सेवा में जीन्दगी बिता दूँगी।
Nice update sir
 
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Kirti.s

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भाग 3



"बसंत ऋतु" फरवरी महीने की शुरुआत हो चुकी थी। चारों तरफ बहार ही बहार और तरह-तरह के फूल खिले चुके थे और जब बसंत ऋतु की बसंती बयार चलती तो प्रकृति किसी नवयौवना की तरह लजाती हुई लगती और ऐसे मौसम में कौन भला ऐसा होगा जिसके हृदय में प्रेम ने अपना डेरा ना डाला हो?बसंत ऋतु की बसंती बयार हर किसी का मन मोह ही लेती है।
कॉलेज में चारों तरफ १४ फरवरी यानी वेलेंटाइन डे को लेकर स्टूडेंट्स के बीच धूम मची हुई थी। सभी के बीच में चर्चा का विषय बना हुआ था कि कौन किसको प्रपोज करेगा कौन किसको क्या गिफ्ट देगा वगैरह वगैरह।

चैतन्य ने भी सोचा कि इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता अपूर्वा से अपने प्रेम निवेदन का। पर अपूर्वा को ना तो वैलेंटाइन डे से कोई मतलब था और ना ही इस वसंत ऋतु के बसंती बयार से।उसे भी प्रेम था पर अपने लक्ष्य से, अपने माता पिता के सपनों से। अपने माता पिता को उनके आखिरी समय में आराम और सम्मान के जीवन से। अपने माता पिता के लिए और एक सूकून भरे जीवन की कामना लिए अपने लक्ष्य को उस पक्षी के आँख की तरह भेदने को तैयार थी जीसे अर्जुन ने भेदा था।
************
आज १४ फरवरी यानी वैलेंटाइन डे है। कॉलेज में सब एक दूसरे को प्रपोज करने और गुलाब देने की होड़ में लगे हुए हैं। अर्पूवा अकेले कॉलेज के गार्डन में बैठी इन सबको देख रही है और सोच रही है।" क्या प्रेम ऐसा होता है?" जिसमें सिर्फ स्वार्थ ही स्वार्थ दिख रहा है। और प्रेम क्या किसी एक दिन के लिए होता है? प्रेम की गर्माहट तो कभी ना खत्म होने वाली होती है।" प्रेम तो मेरे पापा ने मुझसे किया है जिन्होंने मुझे पाल पोस कर बड़ा किया और मेरी जिंदगी संवारने के चक्कर में अपने आप को भी मिटा दिया है। मैं भी अपने पापा से बहुत प्रेम करती हूंँ पर मेरा प्रेम उनके प्रेम के आगे बहुत छोटा है।

तभी सामने से उसे चैतन्य आता हुआ दिखता है और उसकी तंद्रा टूट जाती है। चैतन्य के हाथों में लाल गुलाब देखकर अपूर्वा मुस्कुरा देती है और मन ही मन सोचती है," इतने अच्छे मित्र होने के बावजूद चैतन्य ने मुझे कभी अपने प्रेम के बारे में नहीं बताया।"ये सोचते हुए अपूर्वा ने चैतन्य से पूछा,
" तुम भी किसी से प्रेम करते हो?

चैतन्य हिचकीचाते हुए बोला.....हाँ।

अपूर्वा उत्साहित होते हुए,"किससे? कौन है वो ? मुझे भी तो बताओ।

चैतन्य- " त् त्... तुम अर्पूवा!"

अपू्र्वा आश्चर्यजनक स्थिति में.....।
"क्या....मैं?" मज़ाक मत करो। ये नहीं हो सकता।

चैतन्य- "हाँ अर्पूवा मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ और अपनी पूरी जीन्दगी तुम्हारे साथ जीना चाहता हूँ।

अर्पूवा- पर मैं नहीं चाहती चैतन्य।

चैतन्य- लेकिन क्यों अर्पूवा? आखिर क्या कमी है मुझमे?

अर्पूवा- कमी तुम्हारे में नहीं तुम्हारी सोच में है। तुम एक आर्टिस्ट बनना चाहते हो। जिसमें ज्यादा पैसे नहीं है। अगर मैं तुम्हारे साथ अपनी जिंदगी बिताती हूँ तो बचपन से मैंने जो इतनी मेहनत की है वो सब विफल हो जाएगा और मैं फिर से वैसी ही जिंदगी जीने को मजबूर हो जाऊँगी। मुझे अपने सपनों से समझौता करना पड़ेगा जो मैं नहीं चाहती हूँ। सबसे पहली बात तो अभी मैं इन सब के लिए तैयार नहीं हूँ क्योंकि मुझे अभी बहुत आगे जाना है, अपने माता पिता के सपनों को सकार करना हैं पैसे कमाने हैं अपना घर बनाना है। ताकि मैं उन्हें उनके आखिरी समय में आराम और सम्मान की जीन्दगी दे सकूँ अपने पिता का अच्छे हॉस्पिटल में ईलाज करा सकूँ और दूसरी बात मुझे पैसे वाला आदमी चाहिए ताकि कल को मेरे बच्चों को बाजार में अगर कोई चीज पसंद आ जाए तो मुझे उसे अपने बच्चों को देने के लिए सोचना ना पड़े। मैं अपने बच्चों को अपने जैसे संघर्षमय जिंदगी नहीं देना चाहती हूँ। वह सिर्फ अपने हिस्से का संघर्ष करेंगे। उन्हें किसी भी चीज से समझौता नहीं करना पड़ेगा। मैं अपने सारे सपने इसी जन्म में पूरा करना चाहती हूंँ चैतन्य। बुरा मत मानना चैतन्य मेरी और तुम्हारी सोच बिल्कुल अलग है। मैंने अपनी जिंदगी में बचपन से ही बहुत संघर्ष किया है। सोना तक भूल गई हूंँ। लेकिन आगे की जिंदगी में मैं और संघर्ष नहीं करना चाहती। मुझे हर चिंता से दूर सुकून भरी जिंदगी चाहिए। आराम से सोना चाहती हूँ। कौन सी चीज घर में कैसे आएगी मैं यह नहीं सोचना चाहती। मेरे घर में जब कोई बीमार हो तो उसका इलाज कैसे होगा? यह मैं नहीं सोचना चाहती। मैं चैन की नींद सोना चाहती हूँ क्योंकि गरीबी एक अभिशाप है और इस अभिशाप के साथ मैं और नहीं जीना चाहती। मुझे गलत मत समझना चैतन्य पर मुझे तुम्हारा प्रेम प्रस्ताव स्वीकार्य नहीं है। चलती हूँ! क्लास के लिए देर हो रही है। उसके बाद घर जाकर मुझे ट्यूशन भी पढ़ाना है।

चैतन्य उसकी बातों से बहुत आहत हो गया था। उसकी आंखें नम हो चुकी थी और दिल टूट चुका था। अपनी भीगी पलकों से वो अपूर्वा को जाते हुए देखता रहा तब तक जबतक कि वो उसकी आँखों से ओझल नही हो गई। वहाँ खड़ा जाने क्या सोचता रहा।

इधर कॉलेज के बाद अपूर्वा अपने मांँ पापा को देने के लिए गुलाब के फूल लेकर जब अपने घर पहुंची तो एक अनहोनी उसका इंतजार कर रही थी। घर के दरवाजे पर लोगों की भीड़ देखकर वह सिहर उठी। उसकी धड़कने तेज चलने लगी और कान सांय सांय करने लगे। धड़कते हुए दिल के साथ उसने घर के भीतर प्रवेश किया तो घर का माहौल देखकर उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। चारों तरफ कालिमा छाई हुई थी। सब कुछ जलकर राख हो गया था। वह पागलों की तरह अपने माँ पापा को ढूंढने लगी। लोगों से पूछा तो एक बुजुर्ग ने बताया कि घर में आग लग गई थी और उसके माँ पापा अंदर ही फंसे हुए थे। वह तो भला हो उस लड़के का जिसने अपने प्राणों पर खेलकर उन दोनों को बचाया और अभी अभी हॉस्पिटल ले गया है।

अर्पूवा- कौन से हॉस्पिटल ले गए हैं काका?

बुजुर्ग- यह तो पता नहीं बिटिया। लेकिन वो गाड़ी वाले को कह रहा था कि जो हॉस्पिटल सबसे नज़दीक हो वही लेकर चलो और सबसे नज़दीक तो सिटी हॉस्पिटल है। तो मेरे ख्याल से वो लोग वहीं गए होंगे। बेचारा वह लड़का खुद भी बहुत जल गया था।

अपूर्वा ने सोचा चैतन्य को भी फोन करके बुला लेती हूंँ। उसने उसे फोन किया तो रिंग जा रही थी पर उधर से कोई जवाब नहीं आया। उसे कॉलेज वाली बात याद आ गई,... "दुनिया में कितने स्वार्थी लोग होते हैं। छोटी-छोटी बातों पर भी दोस्ती तोड़ देते हैं और कहते हैं प्रेम करता हूँ।"

उसने फोन रख दिया और जल्दी से ऑटो लेकर सिटी हॉस्पिटल पहुँची। वहाँ पहुँच कर उसने काउंटर पर नर्स से पूछा, "अभी अभी एक बर्न केस आया है क्या वह इसी हॉस्पिटल में है?"

नर्स - हांँ अभी-अभी एक बर्न केस आया तो है तीन लोग जले हैं। कौन है वो आपके?

अर्पूवा- वह मेरे माता पिता है। एक जन को तो मैं नहीं जानती हूँ क्योंकि वह मेरे रिश्तेदार नहीं हैं। पर मेरे माता-पिता को बचाते हुए जल गए हैं। क्या मैं उन सब से मिल सकती हूँ? वह किस वार्ड में हैं?

नर्स - आपके माता-पिता तो वार्ड नंबर ७ में एडमिट है पर वह लड़का चला गया है। वह ज्यादा नहीं जला था इसलिए ड्रेसिंग करवा कर और दवाइयाँ लेकर चला गया। पर आप अभी डॉक्टर के आने तक किसी से नहीं मिल सकती। आपके पिताजी ९०% जल गए हैं। उनके बचने की उम्मीद नहीं है और आपकी माँ भी अभी होश में नहीं है।

अर्पूवा- अपने पिता के बारे में सुनकर वो रोने लगती है फिर अपने आप को सम्भालते हुए उस लड़के के बारे में पूछती है....."क्या आप उस लड़के का नाम पता दे सकती हैं?"
very nice update sir ji
apurva apne career ko le ke focus hai jo achi baat hai har insaan ki life mein ek aim hota hai jise woh achieve krna chahta hai .
akhir chaitanya ne apni dil ki baat apurva se kah di lekin utni rudely tarike se apurva ne use reject bhi kr diya aisa kon krta hai har baat kahne ka apna tarika hota hai ye baat woh dusre tarike se bhi chiatanya ko samjha skti thi jis se use bura na lgta. usne toh direct uske soch or uske sapne ko bahana bna kr use reject kr diya jo ki bht buri baat thi
 

Kirti.s

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भाग 4



आपने पढ़ा:-
अर्पूवा- अपने पिता के बारे में सुनकर वो रोने लगती है फिर अपने आप को सम्भालते हुए उस लड़के के बारे में पूछती है....."क्या आप उस लड़के का नाम पता दे सकती हैं?"


अब आगे:-

नर्स - जी! अभी देती हूँ। ये रहा, "उसका नाम अनंत है और पता मयूर विहार कॉलोनी"।

अपूर्वा नाम पता लेकर एक ऑटो वाले से पूछी,- "इस एड्रेस पर चलोगे भैया?"

ऑटोवाला- ले चलूँगा मैडम पर यह एड्रेस कहांँ है मुझे पता नहीं। पर ढूंढने में आपकी मदद कर सकता हूँ।

वो ऑटो से आसपास के सारे एरिया में पता करती है पर ना तो अनंत मिला और ना ही वह एड्रेस। वह वापस हॉस्पिटल आ गई पर उसके लिए एक बुरी खबर थी कि उसके पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे। यह सुनकर वह फूट-फूट कर रोने लगी। वो उस वक्त अपने आप को बहुत अकेला महसूस कर रही थी उसे चैतन्य की बहुत याद आ रही थी
वह मन ही मन में बड़बड़ाती है कि यही उसका प्यार था। मैंने मना कर दिया तो उसने दोस्ती भी नहीं रखी। मेरे साथ इतना बड़ा हादसा हो गया और वह पूछने तक नहीं आया। जब कॉलोनी के सारे लोगों को पता है तो उसे भी जरूर पता होगा। अगर नहीं भी पता चला तो कम से कम मेरा मिस कॉल तो देखा ही होगा, फोन भी नहीं किया उसने। यह सब सोच कर उसे चैतन्य से नफरत हो जाती है।
जो फूल वह अपने माँ पापा के लिए लाई थी। उसे अपने पापा के अर्थी पर चढ़ा दिया। अपूर्वा आज भी यह परंपरा निभा रही है। हर वेलेंटाइन डे को अपूर्वा गुलाब के फूल अपने पिताजी की तस्वीर पर श्रद्धा के साथ चढ़ाती है।

६ साल बाद

अपूर्वा एयरपोर्ट पहुँच गई है। वह पार्किंग लॉट से सीधा दौड़ते हुए एयरपोर्ट की तरफ जा रही थी कि एक व्यक्ति से टकरा जाती है। वह उस व्यक्ति को रुक कर सॉरी बोली, और आगे बढ़ गई। थोड़ी देर में अनाउंसमेंट हुई कि दिल्ली जाने वाली फ्लाइट आधे घंटे लेट है। वह थोड़ी सहज हो गई और पास वाले बेंच पर आराम से बैठ गई। वह व्यक्ति भी उसी बेंच पर बैठा था जिससे वो टकराई थी।

व्यक्ति- लगता है आप बहुत थक गई हैं। पानी पी लीजिए थोड़ी राहत हो जाएगी।

अर्पूवा- वैसे तुम हो कौन? बहुत देर से देख रही हूंँ। मेरा पीछा कर रहे हो। सॉरी बोला न मैंने अब क्या आपके पैरों पर गिर जाऊंँ?

व्यक्ति - हाय!मुझे दिव्यांश कहते हैं। आप मुझे गलत समझ रही हैं। एक्चुअली उस वक्त गलती आपकी नहीं मेरी थी।मैं रास्ते में खड़ा था। जल्दबाजी में आपने अपनी गलती समझ कर सॉरी बोल दिया पर मैं तो जानता हूँ कि गलती मेरी हैं इसलिए आपसे माफी मांँगने चला आया था। लेकिन आपको बुरा लगा तो आई एम सॉरी।मुझे माफ कर दिजिए।

अर्पूवा ने देखा की वो थोड़ा असहज महसूस कर रहा है तो उसे अपनी गलती का एहसास हुआ।

अर्पूवा- अरे! नहीं नहीं कोई बात नहीं। वैसे आप कहाँ जा रहे हैं।


दिव्यांश - मैं मेरे मित्र से मिलने दिल्ली जा रहा हूंँ। वहीं पर कोई जॉब ढूंढ लूंँगा। यहांँ पर अब दिल नहीं लगता अपनापन नहीं है। यहांँ घुटन सी होती है।

अर्पूवा- दिव्यांश जी! सोचिए आपका काम हो गया। मेरे ऑफिस में मैनेजर की पोस्ट बस एक महीने पहले ही खाली हुई है। पहले जो थे उनका ट्रांसफर हो गया। अगर आप कहें तो मै अपने बॉस से बात करूँगी।

दिव्यांश- ये तो बहुत ही अच्छा हो जाएगा मेरे लिए, मुझे जॉब के लिए भटकना नहीं पड़ेगा।

तभी फ्लाइट के आने की अनाउंसमेंट होती है। दोनों फ्लाइट में बैठ जाते हैं। दिल्ली इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर पहुंचकर दोनों औपचारिकता निभा कर अपना फोन नं.एक्सचेंज कर अपने अपने रास्ते चले जाते हैं।

अपूर्वा जब घर पहुँचती है तो शुभांकर उस पर बरस पड़ता है। शुभांकर के हिसाब से बाहर काम करने वाली औरतों का चरित्र अच्छा नहीं होता। वो अपूर्वा के ऊपर चिल्लाने लगता है, "आ गई गुलछर्रे उड़ा कर। कहांँ थी इतने दिन? कितनी बार कहा है कि बंद करो यह जॉब-वॉब और घर पर रहा करो। लेकिन नहीं! मेरी बात तो सुननी ही नहीं है। इन्हें तो ऐश करना है मौज उड़ाना है। अरे! मेरे पास पैसे कम पड़ते है क्या?
अपूर्वा को उसकी बातें बर्दाश्त नहीं हुई वह बोली,"मैं पैसों के लिए नहीं अपने आत्मसम्मान के लिए कमाती हूंँ।" अगर तुम्हें इतनी दिक्कत है, तो मुझे छोडकर चले क्यों नहीं जाते और इतना बोलकर वो रोने लगी,और रोते हुए दौड़ कर अपनी बेटी विनी के पास गई और उसे गोद में लेकर प्यार करने लगी। उसके बाद वह अपनी माँ से मिली।

शुभांकर को अपूर्वा की मांँ का उनके साथ रहना पसंद नहीं था पर वह कुछ कह नहीं पाता था क्योंकि घर अपूर्वा का था। विवाह के बाद शुभांकर अपूर्वा की ज़िद पर उसके बंगले पर ही रहने लगे थे क्योंकि वह अपनी मांँ को अकेले नहीं छोड़ना चाहती थी ऊपर से शुभांकर का ऑफिस भी वहांँ से बहुत नज़दीक था।

आज अपूर्वा के पास पैसे तो बहुत है। अपना बंगला अपनी तीन तीन गाड़ियांँ सब कुछ, पर शुभांकर के साथ उसका रिश्ता विवाह के साल भर बाद से ही बिगड़ने लगा था। रोज आए दिन झगड़े होने लगे थे। शुभांकर रोज देर रात शराब पीकर घर लौटता और कभी-कभी तो अपने साथ लड़की भी लाता था। कितनी बार तो उसने अपने कमरे में ही उसे दूसरी दूसरी लड़कियों के साथ देखा था। अब वह अपूर्वा पर हाथ भी उठाने लगा था।विवाह के बाद वो बिल्कुल बदल चुका था। अर्पूवा उसके इस बदलाव को देखकर बहुत अचंभित थी। वो हमेशा सोचती कि शुभांकर को पहचानने में उससे इतनी बड़ी गलती कैसे हो गई।
अपूर्वा ने इस बार शुभांकर को डिवोर्स देने की ठान ली थी। उसने सोच लिया था, कि अब वह शुभांकर को अपना अपमान नहीं करने देगी और ना ही अब उसे कोई सुधरने का मौका देगी। इसके लिए उसने अपने वकील से बात कर ली थी। कुछ ही दिनों में अपूर्वा ने शुभांकर को डिवोर्स दे दिया।

उधर ऑफिस में उसने दिव्यांश के लिए अपने बॉस से बात कर ली थी। उसकी जॉब पक्की हो गई थी। उसने ऑफिस भी आना शुरू कर दिया था।
दिव्यांश की काबिलियत, काम के प्रति लगन और मेहनत देखकर अपूर्वा उस से बहुत प्रभावित हुई।

दिव्यांश बहुत ही हैंडसम, स्मार्ट और मॉडर्न लड़का था। अपूर्वा के साथ उसकी खूब बनती थी। कुछ ही दिनों में दिव्यांश और अपूर्वा में काफी अच्छी मित्रता हो गई थी। ऑफिस में साथ लंच करना, शाम को कैंटीन में साथ कॉफी पीना यह सब उनकी दिनचर्या में शामिल था। अपूर्वा दिव्यांश को बहुत पसंद करती थी।

एक बार छुट्टी के दिन अपूर्वा ने दिव्यांश को अपने घर लंच पर बुलाया। अपूर्वा की मांँ यह जानकर बहुत खुश हुई क्योंकि शुभांकर से डिवोर्स के बाद अपूर्वा पहली बार किसी व्यक्ति के संदर्भ में आई थी। अपूर्वा की मांँ चाहती थी कि अपूर्वा फिर से अपना घर बसा ले।
आज सुबह से अपूर्वा किचन में खाना बना रही थी। घड़ी में ११:३० हो चुके थे। तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। वो बाकी का काम बेला के जिम्मे छोड़कर वह दरवाजा खोलने चली गई।
दरवाजे पर दिव्यांश खड़ा था।उसने उसे अंदर आने को कहा। दोनों बाहर ही हॉल में सोफे पर बैठकर इधर उधर की बातें करने लगे। बातें करते करते थोड़ी देर में अपूर्वा की मांँ भी आ गई। उन्होंने बेला को चाय लाने को कहा। बेला सबके लिए चाय ले आई, सभी ने चाय पिया और फिर से बातें करने लग गए।

१:३० बजे बेला ने डाइनिंग टेबल पर खाना लगा दिया। सब ने साथ में खाना खाया। खाना बहुत ही स्वादिष्ट बना था। दिव्यांश तारीफ किए बिना नहीं रह सका उसने खाने की जमकर तारीफ की। तब तक विनी भी सो कर उठ गई और रोने लगी। विनी बहुत ही गोरी, क्यूट, मासूम, और कोमल सी थी। उसको रोते हुए देखकर दिव्यांश से रहा नहीं गया। उसने विनी को गोद में उठा लिया। दिव्यांश के गोद में जाते ही विनी चुप हो गई और उसके साथ खेलने लगी।

ये देखकर अपूर्वा भाव विभोर हो उठी। उसकी आंँखें नम हो गई। विनी दिव्यांश के साथ ऐसे खेल रही थी जैसे वह उसका पिता हो। अपूर्वा के दिल में एक हूक सी उठी और अनायास ही उसे शुभांकर की याद हो आई। वह शुभांकर से यही तो चाहती थी पर शुभांकर के पास तो उन दोनों के लिए वक्त ही नहीं था।
शाम के ४:०० बज गए थे। विनी दिव्यांश की गोद में खेलते खेलते थक कर सो गई थी। शाम की चाय का वक्त हो गया था। उन्होंने शाम की चाय पी और अपूर्वा ने दिव्यांश से अनुरोध किया कि वो रात का डिनर भी उन्हीं के साथ करे। दिव्यांश भी विनी को छोड़कर जाना नहीं चाह रहा था। अतः वह मान गया। रात का डिनर करने के बाद जब दिव्यांश ने विनी को अपनी गोद से उतारा तो वो रोने लगी। वो पूरे दिन दिव्यांश के गोद में ही थी।

दिव्यांश के जाने के बाद अपूर्वा की माँ ने अपूर्वा से कहा, "कितना अच्छा लड़का है ना दिव्यांश" विनी को कितना प्यार करता है, विनी भी कैसे उसकी गोद से नहीं उतर रही थी जैसे उसे कितने दिनों से जानती हो। मैं तो कहती हूंँ दिव्यांश को अपनी जिंदगी में ले आ अपूर्वा। विनी को पिता का प्यार मिल जाएगा और तुम्हें भी सहारा मिल जायेगा।

नहीं माँ! एक बार प्रेम को बंधन में बांध कर देख चुकी हूंँ। अब इस प्रेम को बंधन में बांध कर फिर वही मूर्खता नहीं करना चाहती। अपने लिए, अपनी बेटी के लिए इस प्रेम को बंधन में बांध लेना स्वार्थ होगा और जहां स्वार्थ हो वहां बंधन होता है और उस बंधन में प्रेम नहीं होता मांँ। जब प्रेम अपूर्ण हो तभी पूर्णता का एहसास देता है।

तो क्या तू जिंदगी भर अकेली रहेगी? तो इसमें बुराई ही क्या है माँ? तुम हो , विनी है और अब दिव्यांश जैसा दोस्त भी है और कौन चाहिए ?
मेरे मरने के बाद और विनी के विवाह के बाद क्या करेगी? बोल....ओ हो माँ कैसी बातें करती हो। मैं जल्द ही तुम्हारे और पापा के नाम पर दो आश्रम खोलूँगी। एक बुजुर्गों के लिए और एक बच्चों के लिए। विनी के विवाह के बाद उन्हीं लोगों की सेवा में जीन्दगी बिता दूँगी।
brilliant update sir ji
apurva ke papa ke sath bht hi bura hua kitna kuch soch rkha tha apurva ne apne parents ke liye lekin uske papa in sbse vanchit hi rah gye.
mujhe aisa kyu lgta hai ki apurva ke papa or uski maa ko hospital pahuchane wla shakhs chaitanya hi tha or unse apni pahchan chupane ke liye apna naam or address galat bataya ho.jis se apurva ne prem vivah kiya tha woh insaan bharose kabil nhi nikla waise rishte mein rah ke bhi koi faida nhi jis mein khud ki maan samaan ko geerana pade akhir apurva us rishte se nikl aai ye achi baat hai finally ek decision usne sahi liya
ab ye divyansh ko itni importance kyu di ja rhi hai yha toh dosti jaisa kuch lg nhi rha apurva ko jis pe(chaitanya) bharosa krna chaiya tha uspe toh kiya nhi baki (shubhankar or divyansh) sbpe bharosa hai let's see age kya hota hai
 
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