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धन्यवाद दोस्त कहानी को इतनी अच्छी से विष्लेषण करने और समझने के लिए...brilliant update sir ji
apurva ke papa ke sath bht hi bura hua kitna kuch soch rkha tha apurva ne apne parents ke liye lekin uske papa in sbse vanchit hi rah gye.
mujhe aisa kyu lgta hai ki apurva ke papa or uski maa ko hospital pahuchane wla shakhs chaitanya hi tha or unse apni pahchan chupane ke liye apna naam or address galat bataya ho.jis se apurva ne prem vivah kiya tha woh insaan bharose kabil nhi nikla waise rishte mein rah ke bhi koi faida nhi jis mein khud ki maan samaan ko geerana pade akhir apurva us rishte se nikl aai ye achi baat hai finally ek decision usne sahi liya
ab ye divyansh ko itni importance kyu di ja rhi hai yha toh dosti jaisa kuch lg nhi rha apurva ko jis pe(chaitanya) bharosa krna chaiya tha uspe toh kiya nhi baki (shubhankar or divyansh) sbpe bharosa hai let's see age kya hota hai
संभावना दूर हो जाएगा आपका बस कहानी के साथ जुड़े रहिए...Mujhe Aisa feel hota hai ki us din jarur Chaitanya ke Saath bhi koi hadasa hua tha.
मैं तो उम्मीद कभी नहीं हारता खुदसे आप भी मत हारिए हमसे...Gazab ki starting hai bro....Umid hai aap iss story ko adhura nahin chhodoge
Waiting
nice story, waiting for next.
waiting
Waiting for next update
अपडेट कुछ ही देर में....Waiting
Awesome fabulous update
Itna sab kuch hota Chala ja RHA h
Keep posting
Brilliant update sir jiभाग 5
कुछ दिन यूँ ही बितने के बाद, एक दिन दिव्यांश ने अपूर्वा को ऑफिस के बाद रात में डिनर के लिए कहीं बाहर चलने का अनुरोध किया। अपूर्वा मान जाती है और कहती है कि वह ९:०० बजे तक तैयार होकर दिव्यांश के फ्लैट से उसे पिक कर लेगी।
ऑफिस से आकर अपूर्वा तैयार होने चली जाती है। उसने आज लाल रंग की शिफॉन साड़ी स्लीवलैस ब्लाउज के साथ पहनी है। इस लुक में वो एकदम अप्सरा की तरह लग रही थी और उसके काले घुंघराले बाल उसकी कजरारी आँखें और हल्के गुलाबी होंठ उसकी खूबसूरती को चार चांँद लगा रहे थे।
उसकी मांँ ने उसे नजर का टीका लगाते हुए कहा," किसी की नजर ना लग जाए तुझे"।अपू्र्वा मुस्कुराते हुए वहाँ से निकल गई।
अपूर्वा अपनी ऑडी लेकर दिव्यांश के फ्लैट से उसे पिक करने जाती है। आज दिव्यांश अपूर्वा के चेहरे से अपनी नजरें नहीं हटा पा रहा था। दिव्यांश भी नेवी ब्लू कोट पैंट में डैशिंग और हैंडसम लग रहा था। दोनों कार में बातें करते करते कब रेस्टोरेंट पहुंँच गए उन्हें पता भी नहीं चला। गाड़ी पार्क करने के बाद दोनों अंदर आकर एक टेबल पर बैठ गए। अपूर्वा ने दिव्यांश से ज़िद की कि खाना वो ही ऑर्डर करें।
दिव्यांश ने कहा ठीक है! और उसने बिना मेनू देखें इटालियन फूड ऑर्डर कर दिया।
अर्पूवा- आश्चर्यचकित और खुश होते हुए, "तुम्हें इटालियन फूड पसंद है?" मुझे तो बहुत पसंद है। अगर मुझे ऑर्डर करना होता तो मैं भी यही करती पर मैंने सोचा," पता नहीं"तुम्हें पसंद है या नहीं।
दिव्यांश- उत्साहित होते हुए , "मेरा तो बहुत ही पसंदीदा खाना है।
दोनों ने खाना इन्जॉय किया। फिर डेजर्ट में दिव्यांश ने केसर पिस्ता वाली आइसक्रीम ऑर्डर की।ये भी दोनों की पसंदीदा आइसक्रीम थी। खाना खत्म करके वो वहाँ से निकल गए। दोनों पहले दिव्यांश के फ्लैट पर गए। दिव्यांश को ड्रॉप करके अर्पूवा अपने घर आ गई। घर आ कर उसने बेल बजाई। बेला ने दरवाजा खोला। उसने बेला से पूछा,"माँ और विनी सो गए क्या? हाँ दीदी विनी तो ९:३० बजे ही सो गई थी और माँ जी बस थोड़ी देर पहले ही अपने कमरे में गई हैं।अच्छा चल अब तू भी सो जा मुझे अभी कुछ नहीं चाहिए।
अर्पूवा अपने कमरे में आ गई। चेन्ज करने के बाद वो अपने बेड पर सोने की कोशिश करने लगी। पर आज उसकी आँखों में नींद नहीं थी। वह दिव्यांश के बारे में ही सोच रही थी कि दिव्यांश बिल्कुल उसके जैसा है। उसकी पसंद नापसंद सब कुछ एकदम एक जैसे ही है। आज रेस्टोरेंट में सब मेरी पसंद का ऑर्डर किया उसने। वह भी बिना जाने हुए। वह उसे और विनी को कितनी अच्छी तरह समझता है और विनी के साथ तो वो बिल्कुल उसके पिता जैसा व्यवहार करता है। ऐसा लगता हैं कि वो उसे कितने सालों से जानता हैं।
यही सब सोचते सोचते उसकी आँख लग गई तो सीधा सुबह ही खुली। अगले दिन अर्पूवा ने सोचा की दिव्यांश को ऑफिस के लिए पिक कर लूँगी। ये बताने के लिए उसने दिव्यांश को फोन किया पर उसका फोन स्विच ऑफ था। उसने सोचा कहीं उसकी तबीयत तो खराब नहीं? इसलिए अभी तक सो रहा होगा। वो जल्दी जल्दी तैयार हुई और गाड़ी लेकर निकल गई।
उसके फ्लैट पर पहुंँची तो देखा फ्लैट में ताला लगा हुआ है। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि रात भर में दिव्यांश कहांँ चला गया। वह जल्दी से ऑफिस पहुंँची पर वह ऑफिस में भी नहीं आया था। उसने रिसेप्शन पर पूछा तो पता चला कि वो एक सप्ताह के लिए अमेरिका गया है। उसका लीव एप्लीकेशन लेकर वह अपने केबिन में चली गई। उसका मन रह रहकर आशंका से भर उठता कि क्या बात है जो दिव्यांश उसे बिना बताए चला गया वो भी रातों रात। आज उसका काम में मन नहीं लग रहा था। दिव्यांश का यूंँ बिना बताए चले जाना अपूर्वा को अच्छा नहीं लगा। वो दिव्यांश को बहुत मिस कर रही थी। शायद अपूर्वा को दिव्यांश से प्रेम हो गया था।
किसी तरह एक सप्ताह बीता पर दिव्यांश नहीं लौटा। इंतजार करते-करते एक सप्ताह और बीत गया पर दिव्यांश फिर भी नहीं लौटा। उसे दिव्यांश पर गुस्सा भी आ रहा था और उसके लिए घबराहट भी हो रही थी। उसे लग रहा था कि कहीं दिव्यांश भी उसके दिल के साथ खिलवाड़ तो नहीं कर रहा है। उसने निश्चय किया कि वह अमेरिका जाएगी उसे ढूंढने के लिए। शाम को जब वह ऑफिस से घर पहुंँची।
उसकी मांँ ने बताया कि उसके लिए कोई कुरियर आया है। उसने कुरियर देखने के लिए मांगा। यह तो किसी चैतन्य कुमार अवस्थी ने भेजा है। चैतन्य का नाम देख कर अनायास ही उसकी आंँखों के सामने कॉलेज के चैतन्य का चेहरा उभर गया। लिफाफे के अंदर कुछ पेपर्स थे। अपूर्वा ने जब उन पेपर्स को खोला तो हैरान रह गई। यह कुछ विल पेपर्स थे जो अपूर्वा और विनी के नाम पर थे जिसमें 10 कंपनियों की पावर ऑफ अटॉर्नी अपूर्वा के नाम पर और लगभग 1000 करोड़ की प्रॉपर्टी विनी के नाम पर थी। उसने वापस उस लिफाफे को देखा उस पर का एड्रेस देखकर अपूर्वा और भी हैरान हो गई एड्रेस था- Awasthi & Company, Las Vegas Valley, America अपनी कंपनी के बिजनेस डील के लिए वह इसी कंपनी में तो गई थी। उसका दिमाग पूरा घूम चुका था। उसके दिमाग में बहुत सारे सवाल थे जिन सवालों के जवाब उसे एक ही आदमी दे सकता था और वो थे अपूर्वा के बॉस मिस्टर धीरज मल्होत्रा। उसने अपनी गाड़ी निकाली और उसी समय अपने बॉस के घर पहुंँच गई। उनके घर पहुंँच कर उसने दरवाजे की बेल बजाई तो उनकी पत्नी ने दरवाजा खोला। हॉल में सामने सोफे पर उसके बॉस बैठे चाय पी रहे थे। अपूर्वा को देखते ही उन्होंने कहा, "आओ आओ अपूर्वा मुझे पता था तुम जरूर आओगी। आओ बैठो। अपूर्वा सोफे पर बैठ गई।
अर्पूवा- आपको पता था मतलब? आप पहले से ही सब कुछ जानते हैं।
धीरज- हांँ अर्पूवा! मुझे सब पता है।
अपू्र्वा- तो बताइये सर ! ऐसा कौन है जिसनें मेरे नाम इतना सबकुछ कर दिया बिना किसी रिश्ते के और क्यों? और इसका अमेरिका के अवस्थी एण्ड कंपनी से क्या सरोकार है?
धीरज- तुम जिस कंपनी में मीटिंग के लिए अमेरिका गई थी। उस कंपनी के मालिक मिस्टर चैतन्य कुमार अवस्थी मेरे परम मित्र और तुम उनसे मिल चुकी हो और उन्होंने ही अपना सबकुछ तुम्हारे और तुम्हारी बेटी विनी के नाम किया है।
अर्पूवा- नहीं सर! मैंने आपको बताया था कि मैं अवस्थी सर से नहीं मिल पाई क्योंकि वह एक अन्य बिजनेस मीटिंग के लिए ऑस्ट्रेलिया निकल गए थे। लेकिन उन्होंने अपनी संपत्ति मेरे और मेरी बेटी के नाम ही क्यों किया?
धीरज- हांँ मैं जानता हूंँ। तुम उनसे अमेरिका के ऑफिस में नहीं मिल पाई पर वो ऑस्ट्रेलिया नहीं गए थे बल्कि एयरपोर्ट पर तुम्हारा वेट कर रहे थे ऑफिस में मैनेजर की पोस्ट के लिए जो व्यक्ति आया था वही मिस्टर चैतन्य कुमार अवस्थी थे।