• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Romance वो इश्क़ अधूरा (Completed)

Ashish Jain

कलम के सिपाही
265
446
79
कहानी का अन्तिम भाग पोस्ट कर रहा हूं दोस्तों... साथ बने रहिए...:)
 

Ashish Jain

कलम के सिपाही
265
446
79
भाग 6 (अन्तिम भाग)




अर्पूवा- क्या ? पर वो तो दिव्यांश था न। कोई अपना नाम गलत क्यों बताएगा? और इतने बड़े बिजनेसमैन को काम करने की क्या जरुरत थी?
धीरज- अब उसने ऐसा क्यों किया यह तो मैं नहीं जानता। क्योंकि मैंने जब भी उससे पूछा तो हमेशा टाल जाता। कहता कि वक्त आने पर सब पता चल जाएगा। उसने मुझे एक महीने पहले ही फोन किया था कि वह दिल्ली आ रहा है और उसे मेरे ऑफिस में काम चाहिए मैंने उससे पूछा, "इतने बड़े बिजनेसमैन को मेरे ऑफिस में काम क्यों चाहिए?" लेकिन वह फिर टाल गया और बोला बस कुछ ही दिनों में सब पता चल जाएगा। इसलिए मैंने अपने ऑफिस के मैनेजर का ट्रांसफर कर दिया था।
अपूर्वा बड़बड़ाने लगी..." इसका मतलब वह एयरपोर्ट पर मुझसे जानबूझकर टकराया फिर मुझ से माफी मांगने के बहाने बात की और बातों बातों में अपने जॉब की बात छेड़ी ताकि मैं उसे यह जॉब ऑफर कर सकूँ।
लेकिन क्यों और किसलिए????
धीरज- जब वह यहांँ आया तब उसने मुझसे तुम्हारे बारे में काफी कुछ पूछा, तो मैंने उसे तुम्हारे बारे में सारी बातें बता दि की तुम्हारा डीवॉर्स हो चुका है और तुम अपनी माँ और बेटी के साथ ग्रेटर कैलाश में रहती हो।
मैंने उससे पूछा भी था की अर्पूवा के बारे में क्यों पूछ रहा है। तो उसने कहा,- धीरज मैं किसी से कोई रिश्ता तो नहीं जोड़ सकता अब क्योंकि मेरे पास वक्त बहुत कम है। अपू्र्वा को मैंने जबसे देखा है मुझे उससे प्रेम है, बस इस परिवार के साथ खासकर अपूर्वा और विनी के साथ कुछ पल बिताना चाहता हूंँ। अब इस अंतिम वक्त में मेरे पास अपना है ही कौन?
चूंकि यह उसकी अंतिम इच्छा थी इसलिए मैं मान गया, हो सके तो तुम मुझे माफ कर देना।
अर्पूवा धड़कते दिल के साथ पूछी," अंतिम इच्छा??" मतलब क्या है आपका? क्या हुआ है उन्हें?
धीरज- हांँ! अंतिम इच्छा, वो अभी अमेरिका के H2U Health Center में आखरी सांसे ले रहा है वो कैंसर के अंतिम चरण पर हैं। उसके पूरे शरीर में इंफेक्शन फैल चुका है।
अर्पूवा- कैंसर? पर कैसे?
धीरज- इसके पीछे भी एक अतीत है। आज से लगभग 7 साल पहले जब चैतन्य कॉलेज में था तो उसके किसी दोस्त के घर में आग लग गई थी और उसके माता-पिता उस आग में फंस गए थे। चैतन्य ने ही उन्हें बचाया और हॉस्पिटल ले गया। परंतु वो भी बहुत जल गया था और मेरठ के सिटी हॉस्पिटल के वार्ड में 4 महीने तक एडमिट था। जब वह थोड़ा अच्छा हुआ तो उसने मुझे फोन करके सारी बात बताई।
अर्पूवा को ऐसा लग रहा था कि सारे जहाँ का दर्द उसके हिस्सें में आ गया है। आँसुओं से उसका पूरा चेहरा धुल गया था।
नम आंँखों से वो इतना ही बोल पायी कि,"वो दोस्त मैं ही थी जिसके घर में आग लगी थी। वो पागलों की तरह बड़बड़ा रही थी "मेरे माँ पापा को बचाने वाला लड़का कोई अनंत नहीं मेरा चैतन्य था और मैंने उसे क्या कुछ नहीं कहा। कितना सुनाया। वो उधर दर्द में था और मैं उसके बारे में क्या क्या सोच रही थी। उसने दोस्ती के सारे धर्म निभाए और मैंने एक भी धर्म नहीं निभाया। सबसे बड़ी स्वार्थी तो मैं हूँ।
धीरज ने बोलना जारी रखा,..."चैतन्य मेरे बचपन का दोस्त और पड़ोसी दोनों ही था। हमारे घर बिल्कुल अगल बगल में थे। मेरे और उसके पिताजी भी बचपन के बहुत अच्छे मित्र थे। चैतन्य जब 5 साल का था तब उसके माता पिता की एक रोड एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई थी। उसे उसके दादा दादी ने पाल पोस कर बड़ा किया। मेरे पिताजी का अपना बिजनेस था दिल्ली में। मेरे पिताजी बिच बिच में घर आते रहते थे वो उससे बहुत प्यार करते थे और वह भी उन्हें अपने पिताजी के जैसा सम्मान देता था। लेकिन जब मेरे पिताजी बिमार रहने लगे तो मैं दिल्ली आ गया था बिजनेस सम्भालने के लिये। फिर जब पिताजी चल बसे। उस वक्त हम लोग १८-१९ साल के होंगे तभी आखिरी मुलाकात हुई थी। चैतन्य और मैं बिल्कुल भाई जैसे थे। इसलिए पिताजी ने चैतन्य के नाम पर बैंक में कुछ पैसे फिक्स कर दिये थे ताकि भविष्य में अगर वो कुछ करना चाहे तो वो पैसे उसके काम आ सके।
उस दिन जब चैतन्य ने मुझे फोन करके सब बताया। फिर मैं चैतन्य के ठीक होने पर उसे दिल्ली ले आया। उसे अपनी कंपनी में जॉब दिया। लेकिन साल भर जॉब करने के बाद उसने मुझसे कहा कि वह अपना बिजनेस शुरू करना चाहता है। मैं बहुत खुश हुआ कि वह आगे बढ़ने की सोच रहा है। मैंने उसे पापा के फिक्स किए हुए पैसे दे दिए।
उसने अपना फैब्रिक का बिजनेस शुरू किया और तरक्की की सीढ़ियांँ चढ़ता गया। उसने जो तरक्की करनी शुरू की तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। फिर अचानक एक दिन उसने कहा कि वह अमेरिका में अपना बिजनेस शुरू कर रहा है। मैंने उसे बहुत बधाई दी। उसने दिल्ली का सारा बिजनेस मेरे नाम पर कर दिया। मैंने उसे मना किया पर वह नहीं माना और कहा," अंकल के और तेरे बहुत एहसान है मुझ पर यह तो कुछ भी नहीं, तेरे लिए तो अपनी जान भी दे सकता हूंँ। और वैसे भी मैं अमेरिका शिफ्ट हो रहा हूंँ तो यह बिजनेस तो तू ही देखेगा।
अर्पूवा- लेकिन दिव्यांश चैतन्य कैसे हो सकता है? वह चैतन्य से बिल्कुल अलग दिखता है। उसके और चैतन्य के चेहरे में बहुत अंतर है।
धीरज- जलने के बाद उसका चेहरा देखने में बहुत भद्दा हो गया था और पूरे शरीर में जलने के निशान हो गए थे तो मैंने है उसे प्लास्टिक सर्जरी की सलाह दी थी तो उसने अमेरिका जाकर अपनी सर्जरी करवा ली उस वक़्त मै उसके पास ही था। अमेरिका में भी अपना बिजनेस शुरू करके उसने दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की की। लेकिन धीरे-धीरे उसकी तबीयत खराब रहने लगी। जब उसने चेकअप कराया तो पता चला कि उसे कैंसर हो गया है क्योंकि उसके सारे घाव तो ठीक हो गए थे पर कुछ हिस्से इतने गहरे जले थे कि उनमें इन्फेक्शन होना शुरू हो गया था जो कि बढ़ता ही जा रहा था और अब उस इन्फेक्शन ने कैंसर का रूप धारण लिया है जिसकी वजह से आज वो जिंदगी के अंतिम दिन गिन रहा है।
अर्पूवा- उसके दादा दादी अभी कहाँ है?
धीरज- उसकी दादी का ५ साल पहले ही देहांत हो गया और दादी के जाने के १ साल बाद दादा जी भी चल बसे।
अर्पूवा एक दम निःशब्द हो गई थी। उसकी हालत ठीक ना देखकर धीरज उसे घर छोड़ आया।
घर आकर अर्पूवा अमेरिका जाने के लिए पैकिंग करने लगी।उसने अपनी माँ को भी चलने को कहा। उसे अगले दिन ही निकलना था। नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी। वो चैतन्य के बारे में सोच रही थी। अपने आप को कोस रही थी की क्यों उसने चैतन्य की भावनाओं को ठेस पहुँचाया। उसनें फिर एक बार उन पेपर्स को देखने के लिए उठाया तो लिफाफे से एक और पेपर गिरा। खोल कर देखा तो चैतन्य का पत्र था। वो पढ़ने लगी।
मेरी प्रिय अर्पूवा,
जब तक तुम्हें यह पत्र मिलेगा। जब तक तुम सब जानोगी तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। मुझे माफ कर देना मैंने तुमसे बहुत झूठ बोले हैं। लेकिन सिर्फ तुम्हारे और विनी के साथ कुछ वक्त बिताने के लिए। तुम्हें याद होगा जब तुमने मेरा प्रेम प्रस्ताव ठुकरा दिया था। मैं उसी वक्त कॉलेज से निकल कर घर जा रहा था पर जब मैं तुम्हारे घर के पास से गुजरा तो भीड़ देखकर घबरा गया। जाकर देखा तो पता चला तुम्हारे घर में आग लग गई थी और तुम्हारे माता-पिता अंदर फंसे हुए थे। मैंने उन्हें किसी तरह निकाल तो लिया हॉस्पिटल भी पहुंँचा दिया पर तुम्हारे पिताजी को बचा नहीं पाया। हो सके तो मुझे माफ कर देना। मैं भी जल गया था तो उन लोगों ने मुझे भी एडमिट कर लिया। जिस वार्ड में तुम्हारे माता-पिता थे उसी वार्ड में मैं भी कमरा नंबर १० में एडमिट था। मैंने नर्स को तुम्हें अपने बारे में बताने से मना कर दिया था क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि तुम्हें मेरे बारे में पता चले और तुम अपने लक्ष्य से भटक जाओ और मेरा एहसान मानकर मेरा प्रस्ताव स्वीकार कर लो।
और हांँ अब तुम पूरे अवस्थी एंड कंपनी की नई मालकिन हो तो एक बार हो सके तो अमेरिका वाले घर में जरूर जाना। यह मेरी अंतिम इच्छा है।
सोचा था कभी, कि जब तुम्हें सुकून और आराम की जिंदगी दे पाऊंँगा तो फिर तुम्हें अपनी जिंदगी में ले आऊंँगा। लेकिन ईश्वर को यह भी स्वीकार नहीं था। तुम्हें अपनी जिंदगी में ले तो आया पर मैं ही तुम्हें अकेला छोड़कर जा रहा हूंँ। एक और जिम्मेदारी देकर जा रहा हूंँ। जिस दिन तुम्हारी मीटिंग थी उस दिन मुझे ऑस्ट्रेलिया निकलना पड़ा था और हड़बड़ी में मैंने अपनी डायरी कहांँ रख दी मुझे याद ही नहीं उस डायरी को मैं बहुत संभाल कर रखता हूंँ। पता नहीं कैसे खो गई। उस डायरी की पहचान यह नंबर है
२६०८९०. तुम जानती हो ये नंबर क्या है यह नंबर तुम्हारा बर्थ डेट है अपूर्वा! २६-०८-९०. घर जाना तो उस डायरी को ढूंढ कर अपने पास रख लेना हो सके तो पढ़ना कभी उसमें मैंने अपने दिल की बातें लिखी है। मांँ को मेरा प्रणाम कहना और विनी को मेरा प्यार देना।
तुम्हारा चैतन्य।
अर्पूवा ने सोचा," इसका मतलब उस दिन जो डायरी मुझे ऑफिस के टेबल पर मिली थी, वो डायरी भी चैतन्य की ही थी। ओह चैतन्य! मतलब वो डायरी भी तुम्हारी ही है, आँखें नम हो चली। अपू्र्वा को आज चैतन्य के प्रेम की गहराई पता चल गया था।
अपूर्वा रात भर रोती रही। अगले दिन वो अपनी मांँ और विनी के साथ इंदिरा गांधी एयरपोर्ट से अमेरिका के लिए फ्लाइट पकड़ी। उसने रास्ते में अपनी माँ को सारी बातें बता दी। कुछ ही घंटों में वह उसी हॉस्पिटल में थी जहांँ चैतन्य एडमिट था। उसने डॉक्टर से मिलने की अनुमति मांगी तो डॉक्टर ने मना कर दिया। बहुत मिन्नतें करने पर वह ५ मिनट मिलने देने को तैयार हो गए। अर्पूवा जब अंदर गई तो चैतन्य को देख कर फूट-फूट कर रोने लगी और उससे माफी मांगने लगी," चैतन्य मुझे माफ कर देना मैंने तुम्हारे सच्चे प्यार को ठुकरा दिया और अंधी होकर मृगतृष्णा के पीछे भागती रही। सुनो ना चैतन्य! आज अधूरा काम पूरा करना चाहती हूं आज फिर वही दिन है चैतन्य! १४ फरवरी वैलेंटाइन डे और देखो! मैं लाल गुलाब के फूल भी लाई हूंँ। आज मैं तुमसे प्रेम निवेदन करती हूंँ। मेरी जिंदगी में लौट आओ चैतन्य! स्वीकार कर लो मुझे और मेरी बेटी को। कुछ नहीं चाहिए मुझे चैतन्य, ये पैसा प्रॉपर्टी कुछ भी नहीं बस तुम वापस आ जाओ, मै तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊँगी चैतन्य।
पर चैतन्य को जो चाहिए था वो तो उसे मिल गया था। जिससे उसके चेहरे पर अपार सुकून के भाव थे।
चैतन्य प्रेम का दिव्य अंश बनकर अनंत में विलीन हो गया था।
अपूर्वा वहाँ लगे हार्ट बीट्स दिखाने वाली मशीन को देखकर समझ गई कि चैतन्य की सांसे थम चुकी हैं वो फिर फूट फूट कर रोने लगती है उसका करुण रुदन सुन कर नर्स, डॉक्टर और उसकी मां अवंतिका सभी उसके पास आ जाते हैं। डॉक्टर भी चेकअप करके उसके डेथ सर्टिफिकेट पर मोहर लगा देते हैं की अब चैतन्य इस दुनिया में नहीं रहा।
और फिर एक बार वही हुआ जो सालों पहले हुआ
था। अपूर्वा के साथ आए हुए लाल गुलाब के फूलों को एक बार फिर वही जगह मिली जहां सात साल पहले उसके पिता के पास मिली थी उसे अपने भाग्य पर रोना आ गया कि जब जब उसे प्रेम का आभास हुआ। वह प्रेम उससे इतनी दूर चला गया कि उसे वापस लौटाना नामुमकिन था। उसे बहुत अफसोस था कि वह लाल गुलाब के फूलों के साथ कभी वैलेंटाइन डे पर अपने प्रेम का इजहार नहीं कर पाई।
चैतन्य के दाह संस्कार के बाद अपूर्वा चैतन्य के कहे अनुसार उसके घर जाती है। और जैसे ही वो अंदर प्रवेश करती है तो अचंभित रह जाती है। वहांँ हॉल में चारों तरफ अपूर्वा की बहुत सारी पोट्रेट लगी हुई है। उसकी हर एक अदा को चैतन्य ने अलग-अलग कैनवास पर उतारा था। कुछ कॉलेज के टाइम की और कुछ अभी की।
अर्पूवा एक कमरे में जाती है और वहांँ का नजारा देखकर उसकी आंँखें खुशी से छलक जाती हैं। क्योंकि कमरे में एक तरफ उस दिन की पेंटिंग लगी थी जिस दिन अपूर्वा "(दिव्यांश)" चैतन्य के साथ डिनर पर गई थी। चैतन्य ने उस पल को अपनी पेन्टिंग में कैद कर लिया था। ठीक उसके दूसरी तरफ एक और पेंटिंग लगी थी जिसमें चैतन्य, अपूर्वा और विनी के साथ था और विनी उसके गोद में थी। बेड ठीक बीचोबीच विनी की एकदम क्यूट सी पेंटिंग लगी थी।
ये सब देख कर अपूर्वा एक बार फिर पश्चाताप से भर उठती है और बोलती है, "चैतन्य तुमने मेरे हिस्से का पूर्ण प्रेम दिया पर अपने हिस्से में मेरी नफरत और घृणा ले गए।" कोई रिश्ता ना होते हुए भी तुमने सारे रिश्ते निभाए और मैं दोस्ती का रिश्ता भी ढ़ंग से नहीं निभा पायी। मैं तुम्हें कभी समझ ही नहीं पाई। मुझे माफ कर देना मैं तो तुम्हारे प्रेम के काबिल ही नहीं थी फिर भी तुमने मेरे लिए इतना सब कुछ किया।
३ साल बाद
दिल्ली में अपूर्वा का दो आश्रम खुल चुका है और वहांँ बुजुर्गों और बच्चों के रहने की हर सुविधा उपलब्ध है। और आश्रम के बच्चों को पढ़ाने के लिए एक स्कूल भी।
अपूर्वा एक बिजनेस वूमेन बन चुकी है। चैतन्य का सारा बिजनेस अपूर्वा अच्छे से चला रही हैं और उसनें दिल्ली में एक कैंसर का सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल भी खोला है जहाँ कैंसर पिड़ितों का मुफ्त इलाज होता है और आश्रम भी।
आज विनी का अमेरिका के Las Vegas High School Academy में ऐडमिशन है।
अपूर्वा और विनी प्रिंसिपल के रूम में बैठे हैं। जब अपूर्वा से प्रिंसिपल उसके पिता का नाम पूछती है,"What is her father's name?
तो अर्पूवा बोलती है,"Mr. Chaitanya Kumar Awasthi..चैतन्य का नाम लेते हुए अर्पूवा के चेहरे पर गर्व साफ झलक रहा था।

✴ समाप्त ✴
 

Chinturocky

Well-Known Member
4,397
12,810
158
Behtareen kahani,
Yaar dhukhbhara ant kyo kiya?
Maza aa gaya padhkar.
Agali kahani ke liye shubhkamnaye.
Besabari se intzaar hai Nayi kahani ka.
 
  • Like
Reactions: Ashish Jain

Sona

Smiling can make u and others happy
13,403
20,577
228
भाग 5




कुछ दिन यूँ ही बितने के बाद, एक दिन दिव्यांश ने अपूर्वा को ऑफिस के बाद रात में डिनर के लिए कहीं बाहर चलने का अनुरोध किया। अपूर्वा मान जाती है और कहती है कि वह ९:०० बजे तक तैयार होकर दिव्यांश के फ्लैट से उसे पिक कर लेगी।
ऑफिस से आकर अपूर्वा तैयार होने चली जाती है। उसने आज लाल रंग की शिफॉन साड़ी स्लीवलैस ब्लाउज के साथ पहनी है। इस लुक में वो एकदम अप्सरा की तरह लग रही थी और उसके काले घुंघराले बाल उसकी कजरारी आँखें और हल्के गुलाबी होंठ उसकी खूबसूरती को चार चांँद लगा रहे थे।
उसकी मांँ ने उसे नजर का टीका लगाते हुए कहा," किसी की नजर ना लग जाए तुझे"।अपू्र्वा मुस्कुराते हुए वहाँ से निकल गई।

अपूर्वा अपनी ऑडी लेकर दिव्यांश के फ्लैट से उसे पिक करने जाती है। आज दिव्यांश अपूर्वा के चेहरे से अपनी नजरें नहीं हटा पा रहा था। दिव्यांश भी नेवी ब्लू कोट पैंट में डैशिंग और हैंडसम लग रहा था। दोनों कार में बातें करते करते कब रेस्टोरेंट पहुंँच गए उन्हें पता भी नहीं चला। गाड़ी पार्क करने के बाद दोनों अंदर आकर एक टेबल पर बैठ गए। अपूर्वा ने दिव्यांश से ज़िद की कि खाना वो ही ऑर्डर करें।

दिव्यांश ने कहा ठीक है! और उसने बिना मेनू देखें इटालियन फूड ऑर्डर कर दिया।

अर्पूवा- आश्चर्यचकित और खुश होते हुए, "तुम्हें इटालियन फूड पसंद है?" मुझे तो बहुत पसंद है। अगर मुझे ऑर्डर करना होता तो मैं भी यही करती पर मैंने सोचा," पता नहीं"तुम्हें पसंद है या नहीं।

दिव्यांश- उत्साहित होते हुए , "मेरा तो बहुत ही पसंदीदा खाना है।
दोनों ने खाना इन्जॉय किया। फिर डेजर्ट में दिव्यांश ने केसर पिस्ता वाली आइसक्रीम ऑर्डर की।ये भी दोनों की पसंदीदा आइसक्रीम थी। खाना खत्म करके वो वहाँ से निकल गए। दोनों पहले दिव्यांश के फ्लैट पर गए। दिव्यांश को ड्रॉप करके अर्पूवा अपने घर आ गई। घर आ कर उसने बेल बजाई। बेला ने दरवाजा खोला। उसने बेला से पूछा,"माँ और विनी सो गए क्या? हाँ दीदी विनी तो ९:३० बजे ही सो गई थी और माँ जी बस थोड़ी देर पहले ही अपने कमरे में गई हैं।अच्छा चल अब तू भी सो जा मुझे अभी कुछ नहीं चाहिए।

अर्पूवा अपने कमरे में आ गई। चेन्ज करने के बाद वो अपने बेड पर सोने की कोशिश करने लगी। पर आज उसकी आँखों में नींद नहीं थी। वह दिव्यांश के बारे में ही सोच रही थी कि दिव्यांश बिल्कुल उसके जैसा है। उसकी पसंद नापसंद सब कुछ एकदम एक जैसे ही है। आज रेस्टोरेंट में सब मेरी पसंद का ऑर्डर किया उसने। वह भी बिना जाने हुए। वह उसे और विनी को कितनी अच्छी तरह समझता है और विनी के साथ तो वो बिल्कुल उसके पिता जैसा व्यवहार करता है। ऐसा लगता हैं कि वो उसे कितने सालों से जानता हैं।

यही सब सोचते सोचते उसकी आँख लग गई तो सीधा सुबह ही खुली। अगले दिन अर्पूवा ने सोचा की दिव्यांश को ऑफिस के लिए पिक कर लूँगी। ये बताने के लिए उसने दिव्यांश को फोन किया पर उसका फोन स्विच ऑफ था। उसने सोचा कहीं उसकी तबीयत तो खराब नहीं? इसलिए अभी तक सो रहा होगा। वो जल्दी जल्दी तैयार हुई और गाड़ी लेकर निकल गई।
उसके फ्लैट पर पहुंँची तो देखा फ्लैट में ताला लगा हुआ है। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि रात भर में दिव्यांश कहांँ चला गया। वह जल्दी से ऑफिस पहुंँची पर वह ऑफिस में भी नहीं आया था। उसने रिसेप्शन पर पूछा तो पता चला कि वो एक सप्ताह के लिए अमेरिका गया है। उसका लीव एप्लीकेशन लेकर वह अपने केबिन में चली गई। उसका मन रह रहकर आशंका से भर उठता कि क्या बात है जो दिव्यांश उसे बिना बताए चला गया वो भी रातों रात। आज उसका काम में मन नहीं लग रहा था। दिव्यांश का यूंँ बिना बताए चले जाना अपूर्वा को अच्छा नहीं लगा। वो दिव्यांश को बहुत मिस कर रही थी। शायद अपूर्वा को दिव्यांश से प्रेम हो गया था।
किसी तरह एक सप्ताह बीता पर दिव्यांश नहीं लौटा। इंतजार करते-करते एक सप्ताह और बीत गया पर दिव्यांश फिर भी नहीं लौटा। उसे दिव्यांश पर गुस्सा भी आ रहा था और उसके लिए घबराहट भी हो रही थी। उसे लग रहा था कि कहीं दिव्यांश भी उसके दिल के साथ खिलवाड़ तो नहीं कर रहा है। उसने निश्चय किया कि वह अमेरिका जाएगी उसे ढूंढने के लिए। शाम को जब वह ऑफिस से घर पहुंँची।

उसकी मांँ ने बताया कि उसके लिए कोई कुरियर आया है। उसने कुरियर देखने के लिए मांगा। यह तो किसी चैतन्य कुमार अवस्थी ने भेजा है। चैतन्य का नाम देख कर अनायास ही उसकी आंँखों के सामने कॉलेज के चैतन्य का चेहरा उभर गया। लिफाफे के अंदर कुछ पेपर्स थे। अपूर्वा ने जब उन पेपर्स को खोला तो हैरान रह गई। यह कुछ विल पेपर्स थे जो अपूर्वा और विनी के नाम पर थे जिसमें 10 कंपनियों की पावर ऑफ अटॉर्नी अपूर्वा के नाम पर और लगभग 1000 करोड़ की प्रॉपर्टी विनी के नाम पर थी। उसने वापस उस लिफाफे को देखा उस पर का एड्रेस देखकर अपूर्वा और भी हैरान हो गई एड्रेस था- Awasthi & Company, Las Vegas Valley, America अपनी कंपनी के बिजनेस डील के लिए वह इसी कंपनी में तो गई थी। उसका दिमाग पूरा घूम चुका था। उसके दिमाग में बहुत सारे सवाल थे जिन सवालों के जवाब उसे एक ही आदमी दे सकता था और वो थे अपूर्वा के बॉस मिस्टर धीरज मल्होत्रा। उसने अपनी गाड़ी निकाली और उसी समय अपने बॉस के घर पहुंँच गई। उनके घर पहुंँच कर उसने दरवाजे की बेल बजाई तो उनकी पत्नी ने दरवाजा खोला। हॉल में सामने सोफे पर उसके बॉस बैठे चाय पी रहे थे। अपूर्वा को देखते ही उन्होंने कहा, "आओ आओ अपूर्वा मुझे पता था तुम जरूर आओगी। आओ बैठो। अपूर्वा सोफे पर बैठ गई।

अर्पूवा- आपको पता था मतलब? आप पहले से ही सब कुछ जानते हैं।

धीरज- हांँ अर्पूवा! मुझे सब पता है।

अपू्र्वा- तो बताइये सर ! ऐसा कौन है जिसनें मेरे नाम इतना सबकुछ कर दिया बिना किसी रिश्ते के और क्यों? और इसका अमेरिका के अवस्थी एण्ड कंपनी से क्या सरोकार है?

धीरज- तुम जिस कंपनी में मीटिंग के लिए अमेरिका गई थी। उस कंपनी के मालिक मिस्टर चैतन्य कुमार अवस्थी मेरे परम मित्र और तुम उनसे मिल चुकी हो और उन्होंने ही अपना सबकुछ तुम्हारे और तुम्हारी बेटी विनी के नाम किया है।

अर्पूवा- नहीं सर! मैंने आपको बताया था कि मैं अवस्थी सर से नहीं मिल पाई क्योंकि वह एक अन्य बिजनेस मीटिंग के लिए ऑस्ट्रेलिया निकल गए थे। लेकिन उन्होंने अपनी संपत्ति मेरे और मेरी बेटी के नाम ही क्यों किया?

धीरज- हांँ मैं जानता हूंँ। तुम उनसे अमेरिका के ऑफिस में नहीं मिल पाई पर वो ऑस्ट्रेलिया नहीं गए थे बल्कि एयरपोर्ट पर तुम्हारा वेट कर रहे थे ऑफिस में मैनेजर की पोस्ट के लिए जो व्यक्ति आया था वही मिस्टर चैतन्य कुमार अवस्थी थे।
Nice update
 
Last edited:
  • Like
Reactions: Ashish Jain

Sona

Smiling can make u and others happy
13,403
20,577
228
भाग 6 (अन्तिम भाग)




अर्पूवा- क्या ? पर वो तो दिव्यांश था न। कोई अपना नाम गलत क्यों बताएगा? और इतने बड़े बिजनेसमैन को काम करने की क्या जरुरत थी?

धीरज- अब उसने ऐसा क्यों किया यह तो मैं नहीं जानता। क्योंकि मैंने जब भी उससे पूछा तो हमेशा टाल जाता। कहता कि वक्त आने पर सब पता चल जाएगा। उसने मुझे एक महीने पहले ही फोन किया था कि वह दिल्ली आ रहा है और उसे मेरे ऑफिस में काम चाहिए मैंने उससे पूछा, "इतने बड़े बिजनेसमैन को मेरे ऑफिस में काम क्यों चाहिए?" लेकिन वह फिर टाल गया और बोला बस कुछ ही दिनों में सब पता चल जाएगा। इसलिए मैंने अपने ऑफिस के मैनेजर का ट्रांसफर कर दिया था।


अपूर्वा बड़बड़ाने लगी..." इसका मतलब वह एयरपोर्ट पर मुझसे जानबूझकर टकराया फिर मुझ से माफी मांगने के बहाने बात की और बातों बातों में अपने जॉब की बात छेड़ी ताकि मैं उसे यह जॉब ऑफर कर सकूँ।
लेकिन क्यों और किसलिए????


धीरज- जब वह यहांँ आया तब उसने मुझसे तुम्हारे बारे में काफी कुछ पूछा, तो मैंने उसे तुम्हारे बारे में सारी बातें बता दि की तुम्हारा डीवॉर्स हो चुका है और तुम अपनी माँ और बेटी के साथ ग्रेटर कैलाश में रहती हो।
मैंने उससे पूछा भी था की अर्पूवा के बारे में क्यों पूछ रहा है। तो उसने कहा,- धीरज मैं किसी से कोई रिश्ता तो नहीं जोड़ सकता अब क्योंकि मेरे पास वक्त बहुत कम है। अपू्र्वा को मैंने जबसे देखा है मुझे उससे प्रेम है, बस इस परिवार के साथ खासकर अपूर्वा और विनी के साथ कुछ पल बिताना चाहता हूंँ। अब इस अंतिम वक्त में मेरे पास अपना है ही कौन?
चूंकि यह उसकी अंतिम इच्छा थी इसलिए मैं मान गया, हो सके तो तुम मुझे माफ कर देना।


अर्पूवा धड़कते दिल के साथ पूछी," अंतिम इच्छा??" मतलब क्या है आपका? क्या हुआ है उन्हें?


धीरज- हांँ! अंतिम इच्छा, वो अभी अमेरिका के H2U Health Center में आखरी सांसे ले रहा है वो कैंसर के अंतिम चरण पर हैं। उसके पूरे शरीर में इंफेक्शन फैल चुका है।


अर्पूवा- कैंसर? पर कैसे?


धीरज- इसके पीछे भी एक अतीत है। आज से लगभग 7 साल पहले जब चैतन्य कॉलेज में था तो उसके किसी दोस्त के घर में आग लग गई थी और उसके माता-पिता उस आग में फंस गए थे। चैतन्य ने ही उन्हें बचाया और हॉस्पिटल ले गया। परंतु वो भी बहुत जल गया था और मेरठ के सिटी हॉस्पिटल के वार्ड में 4 महीने तक एडमिट था। जब वह थोड़ा अच्छा हुआ तो उसने मुझे फोन करके सारी बात बताई।


अर्पूवा को ऐसा लग रहा था कि सारे जहाँ का दर्द उसके हिस्सें में आ गया है। आँसुओं से उसका पूरा चेहरा धुल गया था।
नम आंँखों से वो इतना ही बोल पायी कि,"वो दोस्त मैं ही थी जिसके घर में आग लगी थी। वो पागलों की तरह बड़बड़ा रही थी "मेरे माँ पापा को बचाने वाला लड़का कोई अनंत नहीं मेरा चैतन्य था और मैंने उसे क्या कुछ नहीं कहा। कितना सुनाया। वो उधर दर्द में था और मैं उसके बारे में क्या क्या सोच रही थी। उसने दोस्ती के सारे धर्म निभाए और मैंने एक भी धर्म नहीं निभाया। सबसे बड़ी स्वार्थी तो मैं हूँ।


धीरज ने बोलना जारी रखा,..."चैतन्य मेरे बचपन का दोस्त और पड़ोसी दोनों ही था। हमारे घर बिल्कुल अगल बगल में थे। मेरे और उसके पिताजी भी बचपन के बहुत अच्छे मित्र थे। चैतन्य जब 5 साल का था तब उसके माता पिता की एक रोड एक्सीडेंट में मृत्यु हो गई थी। उसे उसके दादा दादी ने पाल पोस कर बड़ा किया। मेरे पिताजी का अपना बिजनेस था दिल्ली में। मेरे पिताजी बिच बिच में घर आते रहते थे वो उससे बहुत प्यार करते थे और वह भी उन्हें अपने पिताजी के जैसा सम्मान देता था। लेकिन जब मेरे पिताजी बिमार रहने लगे तो मैं दिल्ली आ गया था बिजनेस सम्भालने के लिये। फिर जब पिताजी चल बसे। उस वक्त हम लोग १८-१९ साल के होंगे तभी आखिरी मुलाकात हुई थी। चैतन्य और मैं बिल्कुल भाई जैसे थे। इसलिए पिताजी ने चैतन्य के नाम पर बैंक में कुछ पैसे फिक्स कर दिये थे ताकि भविष्य में अगर वो कुछ करना चाहे तो वो पैसे उसके काम आ सके।


उस दिन जब चैतन्य ने मुझे फोन करके सब बताया। फिर मैं चैतन्य के ठीक होने पर उसे दिल्ली ले आया। उसे अपनी कंपनी में जॉब दिया। लेकिन साल भर जॉब करने के बाद उसने मुझसे कहा कि वह अपना बिजनेस शुरू करना चाहता है। मैं बहुत खुश हुआ कि वह आगे बढ़ने की सोच रहा है। मैंने उसे पापा के फिक्स किए हुए पैसे दे दिए।
उसने अपना फैब्रिक का बिजनेस शुरू किया और तरक्की की सीढ़ियांँ चढ़ता गया। उसने जो तरक्की करनी शुरू की तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। फिर अचानक एक दिन उसने कहा कि वह अमेरिका में अपना बिजनेस शुरू कर रहा है। मैंने उसे बहुत बधाई दी। उसने दिल्ली का सारा बिजनेस मेरे नाम पर कर दिया। मैंने उसे मना किया पर वह नहीं माना और कहा," अंकल के और तेरे बहुत एहसान है मुझ पर यह तो कुछ भी नहीं, तेरे लिए तो अपनी जान भी दे सकता हूंँ। और वैसे भी मैं अमेरिका शिफ्ट हो रहा हूंँ तो यह बिजनेस तो तू ही देखेगा।


अर्पूवा- लेकिन दिव्यांश चैतन्य कैसे हो सकता है? वह चैतन्य से बिल्कुल अलग दिखता है। उसके और चैतन्य के चेहरे में बहुत अंतर है।


धीरज- जलने के बाद उसका चेहरा देखने में बहुत भद्दा हो गया था और पूरे शरीर में जलने के निशान हो गए थे तो मैंने है उसे प्लास्टिक सर्जरी की सलाह दी थी तो उसने अमेरिका जाकर अपनी सर्जरी करवा ली उस वक़्त मै उसके पास ही था। अमेरिका में भी अपना बिजनेस शुरू करके उसने दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की की। लेकिन धीरे-धीरे उसकी तबीयत खराब रहने लगी। जब उसने चेकअप कराया तो पता चला कि उसे कैंसर हो गया है क्योंकि उसके सारे घाव तो ठीक हो गए थे पर कुछ हिस्से इतने गहरे जले थे कि उनमें इन्फेक्शन होना शुरू हो गया था जो कि बढ़ता ही जा रहा था और अब उस इन्फेक्शन ने कैंसर का रूप धारण लिया है जिसकी वजह से आज वो जिंदगी के अंतिम दिन गिन रहा है।


अर्पूवा- उसके दादा दादी अभी कहाँ है?


धीरज- उसकी दादी का ५ साल पहले ही देहांत हो गया और दादी के जाने के १ साल बाद दादा जी भी चल बसे।


अर्पूवा एक दम निःशब्द हो गई थी। उसकी हालत ठीक ना देखकर धीरज उसे घर छोड़ आया।


घर आकर अर्पूवा अमेरिका जाने के लिए पैकिंग करने लगी।उसने अपनी माँ को भी चलने को कहा। उसे अगले दिन ही निकलना था। नींद उसकी आँखों से कोसों दूर थी। वो चैतन्य के बारे में सोच रही थी। अपने आप को कोस रही थी की क्यों उसने चैतन्य की भावनाओं को ठेस पहुँचाया। उसनें फिर एक बार उन पेपर्स को देखने के लिए उठाया तो लिफाफे से एक और पेपर गिरा। खोल कर देखा तो चैतन्य का पत्र था। वो पढ़ने लगी।


मेरी प्रिय अर्पूवा,
जब तक तुम्हें यह पत्र मिलेगा। जब तक तुम सब जानोगी तब तक बहुत देर हो चुकी होगी। मुझे माफ कर देना मैंने तुमसे बहुत झूठ बोले हैं। लेकिन सिर्फ तुम्हारे और विनी के साथ कुछ वक्त बिताने के लिए। तुम्हें याद होगा जब तुमने मेरा प्रेम प्रस्ताव ठुकरा दिया था। मैं उसी वक्त कॉलेज से निकल कर घर जा रहा था पर जब मैं तुम्हारे घर के पास से गुजरा तो भीड़ देखकर घबरा गया। जाकर देखा तो पता चला तुम्हारे घर में आग लग गई थी और तुम्हारे माता-पिता अंदर फंसे हुए थे। मैंने उन्हें किसी तरह निकाल तो लिया हॉस्पिटल भी पहुंँचा दिया पर तुम्हारे पिताजी को बचा नहीं पाया। हो सके तो मुझे माफ कर देना। मैं भी जल गया था तो उन लोगों ने मुझे भी एडमिट कर लिया। जिस वार्ड में तुम्हारे माता-पिता थे उसी वार्ड में मैं भी कमरा नंबर १० में एडमिट था। मैंने नर्स को तुम्हें अपने बारे में बताने से मना कर दिया था क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि तुम्हें मेरे बारे में पता चले और तुम अपने लक्ष्य से भटक जाओ और मेरा एहसान मानकर मेरा प्रस्ताव स्वीकार कर लो।
और हांँ अब तुम पूरे अवस्थी एंड कंपनी की नई मालकिन हो तो एक बार हो सके तो अमेरिका वाले घर में जरूर जाना। यह मेरी अंतिम इच्छा है।
सोचा था कभी, कि जब तुम्हें सुकून और आराम की जिंदगी दे पाऊंँगा तो फिर तुम्हें अपनी जिंदगी में ले आऊंँगा। लेकिन ईश्वर को यह भी स्वीकार नहीं था। तुम्हें अपनी जिंदगी में ले तो आया पर मैं ही तुम्हें अकेला छोड़कर जा रहा हूंँ। एक और जिम्मेदारी देकर जा रहा हूंँ। जिस दिन तुम्हारी मीटिंग थी उस दिन मुझे ऑस्ट्रेलिया निकलना पड़ा था और हड़बड़ी में मैंने अपनी डायरी कहांँ रख दी मुझे याद ही नहीं उस डायरी को मैं बहुत संभाल कर रखता हूंँ। पता नहीं कैसे खो गई। उस डायरी की पहचान यह नंबर है
२६०८९०. तुम जानती हो ये नंबर क्या है यह नंबर तुम्हारा बर्थ डेट है अपूर्वा! २६-०८-९०. घर जाना तो उस डायरी को ढूंढ कर अपने पास रख लेना हो सके तो पढ़ना कभी उसमें मैंने अपने दिल की बातें लिखी है। मांँ को मेरा प्रणाम कहना और विनी को मेरा प्यार देना।


तुम्हारा चैतन्य।


अर्पूवा ने सोचा," इसका मतलब उस दिन जो डायरी मुझे ऑफिस के टेबल पर मिली थी, वो डायरी भी चैतन्य की ही थी। ओह चैतन्य! मतलब वो डायरी भी तुम्हारी ही है, आँखें नम हो चली। अपू्र्वा को आज चैतन्य के प्रेम की गहराई पता चल गया था।


अपूर्वा रात भर रोती रही। अगले दिन वो अपनी मांँ और विनी के साथ इंदिरा गांधी एयरपोर्ट से अमेरिका के लिए फ्लाइट पकड़ी। उसने रास्ते में अपनी माँ को सारी बातें बता दी। कुछ ही घंटों में वह उसी हॉस्पिटल में थी जहांँ चैतन्य एडमिट था। उसने डॉक्टर से मिलने की अनुमति मांगी तो डॉक्टर ने मना कर दिया। बहुत मिन्नतें करने पर वह ५ मिनट मिलने देने को तैयार हो गए। अर्पूवा जब अंदर गई तो चैतन्य को देख कर फूट-फूट कर रोने लगी और उससे माफी मांगने लगी," चैतन्य मुझे माफ कर देना मैंने तुम्हारे सच्चे प्यार को ठुकरा दिया और अंधी होकर मृगतृष्णा के पीछे भागती रही। सुनो ना चैतन्य! आज अधूरा काम पूरा करना चाहती हूं आज फिर वही दिन है चैतन्य! १४ फरवरी वैलेंटाइन डे और देखो! मैं लाल गुलाब के फूल भी लाई हूंँ। आज मैं तुमसे प्रेम निवेदन करती हूंँ। मेरी जिंदगी में लौट आओ चैतन्य! स्वीकार कर लो मुझे और मेरी बेटी को। कुछ नहीं चाहिए मुझे चैतन्य, ये पैसा प्रॉपर्टी कुछ भी नहीं बस तुम वापस आ जाओ, मै तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊँगी चैतन्य।


पर चैतन्य को जो चाहिए था वो तो उसे मिल गया था। जिससे उसके चेहरे पर अपार सुकून के भाव थे।


चैतन्य प्रेम का दिव्य अंश बनकर अनंत में विलीन हो गया था।


अपूर्वा वहाँ लगे हार्ट बीट्स दिखाने वाली मशीन को देखकर समझ गई कि चैतन्य की सांसे थम चुकी हैं वो फिर फूट फूट कर रोने लगती है उसका करुण रुदन सुन कर नर्स, डॉक्टर और उसकी मां अवंतिका सभी उसके पास आ जाते हैं। डॉक्टर भी चेकअप करके उसके डेथ सर्टिफिकेट पर मोहर लगा देते हैं की अब चैतन्य इस दुनिया में नहीं रहा।
और फिर एक बार वही हुआ जो सालों पहले हुआ
था। अपूर्वा के साथ आए हुए लाल गुलाब के फूलों को एक बार फिर वही जगह मिली जहां सात साल पहले उसके पिता के पास मिली थी उसे अपने भाग्य पर रोना आ गया कि जब जब उसे प्रेम का आभास हुआ। वह प्रेम उससे इतनी दूर चला गया कि उसे वापस लौटाना नामुमकिन था। उसे बहुत अफसोस था कि वह लाल गुलाब के फूलों के साथ कभी वैलेंटाइन डे पर अपने प्रेम का इजहार नहीं कर पाई।


चैतन्य के दाह संस्कार के बाद अपूर्वा चैतन्य के कहे अनुसार उसके घर जाती है। और जैसे ही वो अंदर प्रवेश करती है तो अचंभित रह जाती है। वहांँ हॉल में चारों तरफ अपूर्वा की बहुत सारी पोट्रेट लगी हुई है। उसकी हर एक अदा को चैतन्य ने अलग-अलग कैनवास पर उतारा था। कुछ कॉलेज के टाइम की और कुछ अभी की।
अर्पूवा एक कमरे में जाती है और वहांँ का नजारा देखकर उसकी आंँखें खुशी से छलक जाती हैं। क्योंकि कमरे में एक तरफ उस दिन की पेंटिंग लगी थी जिस दिन अपूर्वा "(दिव्यांश)" चैतन्य के साथ डिनर पर गई थी। चैतन्य ने उस पल को अपनी पेन्टिंग में कैद कर लिया था। ठीक उसके दूसरी तरफ एक और पेंटिंग लगी थी जिसमें चैतन्य, अपूर्वा और विनी के साथ था और विनी उसके गोद में थी। बेड ठीक बीचोबीच विनी की एकदम क्यूट सी पेंटिंग लगी थी।


ये सब देख कर अपूर्वा एक बार फिर पश्चाताप से भर उठती है और बोलती है, "चैतन्य तुमने मेरे हिस्से का पूर्ण प्रेम दिया पर अपने हिस्से में मेरी नफरत और घृणा ले गए।" कोई रिश्ता ना होते हुए भी तुमने सारे रिश्ते निभाए और मैं दोस्ती का रिश्ता भी ढ़ंग से नहीं निभा पायी। मैं तुम्हें कभी समझ ही नहीं पाई। मुझे माफ कर देना मैं तो तुम्हारे प्रेम के काबिल ही नहीं थी फिर भी तुमने मेरे लिए इतना सब कुछ किया।


३ साल बाद


दिल्ली में अपूर्वा का दो आश्रम खुल चुका है और वहांँ बुजुर्गों और बच्चों के रहने की हर सुविधा उपलब्ध है। और आश्रम के बच्चों को पढ़ाने के लिए एक स्कूल भी।


अपूर्वा एक बिजनेस वूमेन बन चुकी है। चैतन्य का सारा बिजनेस अपूर्वा अच्छे से चला रही हैं और उसनें दिल्ली में एक कैंसर का सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल भी खोला है जहाँ कैंसर पिड़ितों का मुफ्त इलाज होता है और आश्रम भी।


आज विनी का अमेरिका के Las Vegas High School Academy में ऐडमिशन है।


अपूर्वा और विनी प्रिंसिपल के रूम में बैठे हैं। जब अपूर्वा से प्रिंसिपल उसके पिता का नाम पूछती है,"What is her father's name?


तो अर्पूवा बोलती है,"Mr. Chaitanya Kumar Awasthi..चैतन्य का नाम लेते हुए अर्पूवा के चेहरे पर गर्व साफ झलक रहा था।


✴ समाप्त ✴
Fantastic story sir
 
  • Like
Reactions: Ashish Jain
Top