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बहुत ही खूबसूरती से सारी बातों को दर्शाया है आपने। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि कहानी में ऐसा माहौल और भी ज़्यादा बड़ी दक्षता से बनता ही जा रहा है कि प्रति पल ज़हन में सब कुछ जानने की उत्सुकता बढ़ती ही जा रही है।माफी के अंदाज में दातो तले जीभ दबाते हुए डामरी बोलती है “क्या है ना राजवैद्यीजी, बहुत दिनों बाद अवकाश मिला था तो सोचा की सुबह-सुबह थोडा गाव में घूम आऊ”
“मेरे साथ नहीं चलोगी घुमने”
“अकेले-अकेले में मजा नहीं आता है, हम किसी से बात भी नहीं कर सकते, इसीलिए में वापस आ गयी थी, और गाव में भी सभी अपना-अपना काम कर रहे थे, सोचा क्यों किसी को परेशान करू” डामरी एक ज्ञान देने वाली शिक्षिका के अंदाज में बोलती है “चलो अब हम दो हो गए है तो अब मजा आयेया, चलो चलते है”
दोनों मंदिर के विशाल दरवाजे से बाहर चले जाते है
उधर शमशान में वो पागल बुड्ढा रोज की तरह ही इधर-उधर घूम रहा था, कभी-कभार वह बहुत समय तक किसी भी जगह पर आलस्य से सोता रहता है, जब भी भूख लगे तब वह गाव में खाने के लिए जाता था, मिल गया तो ठीक वर्ना कोई मछली या जानवर को मारकर कच्चा ही खा जाता था, जब भी नींद आये तो वह सो जाता और जब नींद ना आये तो कई दिनों या महीनो तक ऐसे ही जागा करता था !
वह अपनी मस्ती में इतना मस्त था की कई बार गाव के लोग इसको देखकर इर्ष्या करने लगते थे,
कई लोग व्यंग में ये भी बोलते थे की इसी को सच्चिदानंद मिला हुआ है,
देखो हमें,
रोज सुबह जल्दी उठो,
काम पर जाओ,
मेहनत करो
तभी कल के खाने के लिए कुछ मिलता है,
बीबी-बच्चो और परिवार का बोझ उठाओ और इसको देखो, इसको तो परिवार तो क्या अपनी ही कोई चिंता नहीं है !
इस तरह की बाते गाव के हर गली में सुनने में मिल ही जाती है,
‘इस तरह के लोग जो अपने जिम्मेदारियो को बोझ समझने लगते है’
‘अपनी छोड़कर परायी वस्तुओ के पीछे भागते है’
‘चाहे खुद चांदी के बर्तनों में खाना खा ले परन्तु दूसरो को मिट्टी के बर्तनों में देखना उसको अच्छा नहीं लगता है’
ऐसी मानसिकता वाले लोग आपको हर जगह मिल जाते है !
रात का जगा हुआ वो पागल अभी भी शमशान में घूम ही रहा था, वो एक अच्छे पेड़ को देखता है, पैर पर पैर चढ़ाकर, पीठ को पेड़ से टिकाकर आराम से बैठ जाता है, उन दूर के उत्तरी पहाडियों को देखता है
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दूर उत्तरी पहाडियों पर वो शख्स अभी भी भागे जा रहा था लेकिन उसकी गति अभी कुछ धीमी हो गयी थी, वो पर्वत की छोटी पर लगभग पहुच ही चूका था, अचानक उसके नथुनों में फूलो की खुशबु भर जाती है, वो रुक जाता है और वो थोड़ी चैन की सास लेता है, उसके चेहरे पर परेशानी थोड़ी सी कम हुयी जैसे वो अपने गंतव्य पर पहुच चूका था
“इतना परेशान क्यों हो कालगिरी” तभी उसके पीछे से एक स्त्री आवाज आती है, बहुत ही सोम्य थी वो आवाज !
कालगिरी पीछे मुड़कर देखता है, उसे देखते ही वो थोडा सहज होता है, जैसे उसकी सारी थकान उस आवाज से ही शांत हो गयी !
“वो.. वो...” कालगिरी इतना ही बोल पाता है
“यही की वो आ गया है” उसी सोम्य आवाज में वो कहती है
“आप जानती है”
“हा”
“फिर भी, फिर भी आप कुछ नहीं कर रही है, आप इतनी शांत कैसे रह सकती है” कालगिरी थोडा उत्तेजित स्वर में बोलता है, जैसे उसको अपनी गलती का अहसास होता है, वो थोडा डर कर पीछे हट जाता है !
वो कालगिरी की तरफ देखती है लेकिन ऐसा लगता था की आज वो पहले से कुछ ज्यादा ही शांत थी, वो आज कालगिरी के उत्तेजित स्वर से नाराज नहीं थी
वो उसी शांत स्वभाव से अपने से दूर दक्षिण में देखती है जिस तरफ कद्पी पड़ता था, पलभर के लिए ऐसा लगा जैसे उसने कुछ देखा, जैसे नजर से नजर मिली ही, उसे कालगिरी के प्रश्न का उत्तर मिला, वो बोल पड़ती है “हम प्रतीक्षा करेंगे”
“प्रतीक्षा...पुरे बारह दिनों तक...” कालगिरी असमंजस में बोलता है “लेकिन प्रतीक्षा क्यों”
“वचन पूरा करना पड़ेगा” इसी के साथ वो हवा में लुप्त हो जाती है
कालगिरी वही देखता रह जाता है
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दोजू बहुत तेजी से अपने झोले को पकडे हुए माणिकलाल के घर की और चलता है और उसके पीछे सप्तोश !
सप्तोश को दोजू से कुछ पूछना था लेकिन दोजू को आज बहुत देर हो चुकी थी उसको सुबह जल्दी माणिकलाल के घर पहुचना था यदि सप्तोश उसको नहीं उठाता तो शायद दोहपर हो जाती !
लेकिन आज सप्तोश दोजू को छोड़ने वाला नहीं था, वो उससे आज उस पागल बुड्ढ़े का राज जानना चाहता था इसीलिए वो उसके पीछे-पीछे चल रहा था या यु कहो की धीरे-धीरे भाग रहा था ! दोजू बुड्ढा हो चूका था फिर भी उसकी तेजी देखने लायक थी !
चेत्री और डामरी दोनों नदी की तरफ टहलने आई थी लेकिन दोनों ने जब सप्तोश को दोजू के पीछे-पीछे चलते हुए देखा तो वे दोनों भी उनका पीछा करने लग जाती है !
दोजू लगभग माणिकलाल के घर पहुच ही चूका था की उसे एक आदमी दिखा, वो माणिकलाल के घर से वापस आ रहा था, एक पल के लिए दोजू चौका, दोनों की नजरे मिली, वो आदमी मुस्कुराया और दोनों आगे बढ़ गए !
माणिकलाल के घर का दरवाजा खुला ही था, दोजू तुरंत अन्दर जाते ही माणिकलाल से पूछता है “वो यहाँ क्यों आया था”
माणिकलाल अचानक से हुए इस सवाल और घर में दोजू के इतना तेज आने से थोडा हडबडा गया “कौन ??”
“जो अभी यहाँ से निकला है”
“वो तो कोई परदेसी ग्राहक था” माणिकलाल ने कहा “आप उन्हें जानते है क्या ??”
“नहीं, ऐसी कोई बात नहीं”
दोनों की बाते सुनकर निर्मला बाहर आ जाती है
“अरे वैद्यजी आप” ये कहते हुए निर्मला माणिकलाल को खाट बिछाने का इशारा करती है
माणिकलाल खाट बिछाते हुए सप्तोश को देखता है, वह सप्तोश को ठीक से पहचान नहीं पा रहा था शायद उसने परसों मंदिर में उसको दूर दे देखा था इसीलिए !
दोजू माणिकलाल को सप्तोश को घूरते हुए देखकर बोलता है “ये उस साधू बाबा का चेला है”
माणिकलाल इतना सुनते ही दोनों को बैठने के लिए बोलता है
“सुन माणिकलाल” दोजू कहता है
“जी वैद्यजी”
“तेरी बच्ची अब ठीक हो जाएगी, फिर से वो अब चलने लगेगी, दौड़ने लगेगी”
इतना सुनते ही माणिकलाल और निर्मला दोनों ख़ुशी से कुछ सोच भी नहीं पा रहे थे तभी तुरंत दोजू बोल उठता है “लेकिन”
“लेकिन, लेकिन क्या वैद्यजी ?”
“उसकी कीमत चुकानी होगी” दोजू वापस अपने उसी रहस्यपूर्ण अंदाज में बोलता है
ये सुनते ही सप्तोश वापस चौक जाता है, ये वैसा ही अंदाज था जिस अंदाज में दोजू ने उस से कौडम माँगा था,
‘अब इनसे ये क्या मांगने वाला है’ सप्तोश मन में सोचने लगता है
“क्या चाहिए आपको” माणिकलाल को बस कहने भर की ही देरी थी वो इस समय अपना पूरा घर, यहाँ तक की सब कुछ उस दोजू की झोली में डाल देता !
‘सप्तोश दोजू को देखता है की क्या मांगेगा’
दोजू हल्के से मुस्कुराता है......
bahut hi lajawab ,,,,“क्या चाहिए आपको” माणिकलाल को बस कहने भर की ही देरी थी वो इस समय अपना पूरा घर, यहाँ तक की सब कुछ उस दोजू की झोली में डाल देता !
‘सप्तोश दोजू को देखता है की क्या मांगेगा’
दोजू हल्के से मुस्कुराता है, आखो में चमक लिए बोलता है
“बारह दिन”
“बारह दिन ?” सप्तोश और माणिकलाल दोनों ही असमंजस में एक साथ बोल पड़ते है
“हा, बारह दिन”
“मतलब” माणिकलाल बोलता है
“बारह दिनों तक तुम्हे मेरे साथ चलना होगा, जो भी तुम अर्जित करोंगे उन बारह दिनों तक, वो सब मेरा होगा, बोलो मंजूर है” दोजू माणिकलाल को देखते हुए बोलता है
“ठीक है, में तैयार हु” माणिकलाल बिना सोचे-समझे ही बोल पड़ता है, उसको तो इस क्षण बस अपनी बच्ची के ठीक होने के इन्तेजार में था, भला एक बाप को और क्या चाहिए !
“लेकिन” बिच में निर्मला बोल पड़ती है
“तुम इसकी चिंता मत करो, ये मेरे साथ सुरक्षित रहेगा, वचन देता हु” दोजू माणिकलाल की ओर इशारा करते हुए निर्मला से कहता है, और अपने झोले में से एक पोटली माणिकलाल की और फेक देता है “और ये लो”
“ये क्या है, वैद्यजी” माणिकलाल वापस असमंजस में बोलता है !
“तुम्हारे यहाँ पर नहीं रहने पर ये धन तुम्हारी पत्नी के काम आएगा”
माणिकलाल उस पोटली को खोलकर देखता है, उसमे ४०-५० सोनो और चांदी के सिक्के थे !
वास्तव में राजवैद्यीजी ने सच ही कहा था दोजू का धन से कोई सरोकार नहीं था, धन उसके लिए कोई मायने नहीं रखता था !
सप्तोश ये सब देख कर अब सोचने लगता है, इन बारह दिनों में ऐसा क्या चाहिए दोजू को माणिकलाल से जो बिना सोचे-समझे ही इतना धन दे दिया ! सप्तोश के लिए दोजू भी अब रहस्य बन चूका था !
माणिकलाल को समझ नहीं आ रहा था की ये धन वो दोजू से ले या ना ले !
“इतना मत सोच माणिकलाल, इन बारह दिनों में तुम जो मुझको देने वाले हो उसके बदले में ये धन तो कुछ भी नहीं है” दोजू ऐसे बोल पड़ता है जैसे ये सौदा उसके हाथ से न निकल जाये !
“लेकिन हमारी बच्ची, वो तो ठीक हो जाएगी न ?” निर्मला बोलती है
तभी दरवाजे पर दस्तक होती है
“राजवैद्यीजी आप” माणिकलाल बोल पड़ता है
“अनुमति हो तो अन्दर आ सकते है”
चेत्री ये सब बाते बाहर से सुन रही थी ! जैसे ही सुरभि के इलाज की बात आई वो रह न सकी, क्योकि उसे जानना था की जिसका उपचार में 1 साल तक न कर सकी, उसको दोजू एक दिन में कैसे कर सकता है
“अब तुम क्यों आयी हो ?” दोजू थोडा गुस्से से बोल पड़ता है
“देखना चाहती हु में भी की तुम इलाज कैसे करते हो”
“ले आओ बच्ची को” दोजू बोल देता है माणिकलाल को !
माणिकलाल और निर्मला दोनों जाकर अन्दर से सुरभि को, खाट समेत बाहर ले आते है !
चेत्री निरिक्षण करती है,
सुरभि की हालत अब पहले से ज्यादा ख़राब हो चुकी थी, त्वचा की लगभग आखिरी परत बची थी और वो भी सूखती जा रही थी, त्वचा में से मास और शिराए साफ-साफ देख सकते थे, जैसे लगता था अंतिम क्षण है उसका ! फिर चेत्री थोडा पीछे हट जाती है !
“अपनी आखो को सम्भाल कर रखना” मजाक भरे अंदाज में दोजू चेत्री को बोलता है
दोजू अपने झोले में से वही मिश्र धातु का गोल डिब्बा निकालता है जो उसने सप्तोश से लिया था,
“बच्ची को नीचे लिटा दो” दोजू चेत्री को बोलता है
चेत्री सावधानीपूर्वक सुरभि को नीचे लिटा देती है !
“नाम क्या है बच्ची का” दोजू पूछता है
“सुरभि” माणिकलाल झट से बोल देता है
दोजू अब नाटकीय अंदाज में आखे बंद करके उस डिब्बे के ऊपर उंगली धुमाते हुए कुछ मंत्र सा बोलता है उसकी आवाज बहुत धीरे थी किसी को भी सुनाई नहीं दे रही थी बस फुसफुसाने की आवाज आ रही है और अंत में दोजू डिब्बी को नीचे रखते हुए बोलता है “सुरभि”
सभी लोगो की आखे उस डिब्बी को घुर रही थी, खास कर चेत्री की, वो काफी उत्सुक थी, क्या है कौडम !
तभी उस डिब्बी का ढक्कन खुलता है,
उसमे से एक काले रंग का चमकीला बिच्छू निकलता है,
वो धीरे-धीरे सुरभि के पास जाता है,
सप्तोश अपने पुरे ९ साल के मेहनत को अपने सामने से जाते हुए देख रहा था,
सब लोग आखे फाड़े उसे देख रहे थे,
बिच्छू सुरभि के पास जाता है,
उसके हाथ की शिरा को ढूंडता है
और,
और
डंक मार लेता है !
उसके पश्चात् वो बिच्छू हवा के साथ धुँआ बन जाता है !
सभी लोगो की आखे अभी तक सुरभि के उस डंक पर ही थी !
तभी अचानक उसके शरीर पर कुछ परिवर्तन होता है,
वो परिवर्तन बहुत ही तीव्र था,
बहुत ही जल्दी से नयी कोशिकाए उत्पन्न होकर अपनी जगह ले रही थी,
और कुछ ही क्षण में सुरभि का शरीर बिलकुल ठीक हो जाता है !
दोजू के अलावा जैसे सभी लोगो ने वहा सपना देख रहे थे, सब जड़ मूर्ति से बने हुए थे अब तक !
दोजू वहा से उठता है और दरवाजे के पास जाकर खटखटाता है जिससे की सबका ध्यान उसकी तरफ आ जाता है
“माणिकलाल, कल भोर के पहले प्रहर तक झोपड़े पर आ जाना, वचन दिया है” दोजू माणिकलाल को आदेशपूर्ण आवाज में बोलता है “सुरभि की चेतना संध्या तक लौट आएगी” कहते हुए दोजू अपने झोपड़े की ओर चल पड़ता है !
उसके चेहरे से ऐसा प्रतीत हो रहा था की जैसे किसी बड़े युद्ध की पूर्ण तैयारी पूर्ण कर ली हो और कल युद्ध के लिए रवाना होना हो !
लेकिन अभी भी कोई था दूर देश में जिनकी रणनीति अभी भी पूर्ण नहीं हुयी थी, वो अभी भी अपने सन्देश का इन्तेजार कर रहा था..
वाह! बहुत खूब मनोज भाई,,,,,“क्या चाहिए आपको” माणिकलाल को बस कहने भर की ही देरी थी वो इस समय अपना पूरा घर, यहाँ तक की सब कुछ उस दोजू की झोली में डाल देता !
‘सप्तोश दोजू को देखता है की क्या मांगेगा’
दोजू हल्के से मुस्कुराता है, आखो में चमक लिए बोलता है
“बारह दिन”
“बारह दिन ?” सप्तोश और माणिकलाल दोनों ही असमंजस में एक साथ बोल पड़ते है
“हा, बारह दिन”
“मतलब” माणिकलाल बोलता है
“बारह दिनों तक तुम्हे मेरे साथ चलना होगा, जो भी तुम अर्जित करोंगे उन बारह दिनों तक, वो सब मेरा होगा, बोलो मंजूर है” दोजू माणिकलाल को देखते हुए बोलता है
“ठीक है, में तैयार हु” माणिकलाल बिना सोचे-समझे ही बोल पड़ता है, उसको तो इस क्षण बस अपनी बच्ची के ठीक होने के इन्तेजार में था, भला एक बाप को और क्या चाहिए !
“लेकिन” बिच में निर्मला बोल पड़ती है
“तुम इसकी चिंता मत करो, ये मेरे साथ सुरक्षित रहेगा, वचन देता हु” दोजू माणिकलाल की ओर इशारा करते हुए निर्मला से कहता है, और अपने झोले में से एक पोटली माणिकलाल की और फेक देता है “और ये लो”
“ये क्या है, वैद्यजी” माणिकलाल वापस असमंजस में बोलता है !
“तुम्हारे यहाँ पर नहीं रहने पर ये धन तुम्हारी पत्नी के काम आएगा”
माणिकलाल उस पोटली को खोलकर देखता है, उसमे ४०-५० सोनो और चांदी के सिक्के थे !
वास्तव में राजवैद्यीजी ने सच ही कहा था दोजू का धन से कोई सरोकार नहीं था, धन उसके लिए कोई मायने नहीं रखता था !
सप्तोश ये सब देख कर अब सोचने लगता है, इन बारह दिनों में ऐसा क्या चाहिए दोजू को माणिकलाल से जो बिना सोचे-समझे ही इतना धन दे दिया ! सप्तोश के लिए दोजू भी अब रहस्य बन चूका था !
माणिकलाल को समझ नहीं आ रहा था की ये धन वो दोजू से ले या ना ले !
“इतना मत सोच माणिकलाल, इन बारह दिनों में तुम जो मुझको देने वाले हो उसके बदले में ये धन तो कुछ भी नहीं है” दोजू ऐसे बोल पड़ता है जैसे ये सौदा उसके हाथ से न निकल जाये !
“लेकिन हमारी बच्ची, वो तो ठीक हो जाएगी न ?” निर्मला बोलती है
तभी दरवाजे पर दस्तक होती है
“राजवैद्यीजी आप” माणिकलाल बोल पड़ता है
“अनुमति हो तो अन्दर आ सकते है”
चेत्री ये सब बाते बाहर से सुन रही थी ! जैसे ही सुरभि के इलाज की बात आई वो रह न सकी, क्योकि उसे जानना था की जिसका उपचार में 1 साल तक न कर सकी, उसको दोजू एक दिन में कैसे कर सकता है
“अब तुम क्यों आयी हो ?” दोजू थोडा गुस्से से बोल पड़ता है
“देखना चाहती हु में भी की तुम इलाज कैसे करते हो”
“ले आओ बच्ची को” दोजू बोल देता है माणिकलाल को !
माणिकलाल और निर्मला दोनों जाकर अन्दर से सुरभि को, खाट समेत बाहर ले आते है !
चेत्री निरिक्षण करती है,
सुरभि की हालत अब पहले से ज्यादा ख़राब हो चुकी थी, त्वचा की लगभग आखिरी परत बची थी और वो भी सूखती जा रही थी, त्वचा में से मास और शिराए साफ-साफ देख सकते थे, जैसे लगता था अंतिम क्षण है उसका ! फिर चेत्री थोडा पीछे हट जाती है !
“अपनी आखो को सम्भाल कर रखना” मजाक भरे अंदाज में दोजू चेत्री को बोलता है
दोजू अपने झोले में से वही मिश्र धातु का गोल डिब्बा निकालता है जो उसने सप्तोश से लिया था,
“बच्ची को नीचे लिटा दो” दोजू चेत्री को बोलता है
चेत्री सावधानीपूर्वक सुरभि को नीचे लिटा देती है !
“नाम क्या है बच्ची का” दोजू पूछता है
“सुरभि” माणिकलाल झट से बोल देता है
दोजू अब नाटकीय अंदाज में आखे बंद करके उस डिब्बे के ऊपर उंगली धुमाते हुए कुछ मंत्र सा बोलता है उसकी आवाज बहुत धीरे थी किसी को भी सुनाई नहीं दे रही थी बस फुसफुसाने की आवाज आ रही है और अंत में दोजू डिब्बी को नीचे रखते हुए बोलता है “सुरभि”
सभी लोगो की आखे उस डिब्बी को घुर रही थी, खास कर चेत्री की, वो काफी उत्सुक थी, क्या है कौडम !
तभी उस डिब्बी का ढक्कन खुलता है,
उसमे से एक काले रंग का चमकीला बिच्छू निकलता है,
वो धीरे-धीरे सुरभि के पास जाता है,
सप्तोश अपने पुरे ९ साल के मेहनत को अपने सामने से जाते हुए देख रहा था,
सब लोग आखे फाड़े उसे देख रहे थे,
बिच्छू सुरभि के पास जाता है,
उसके हाथ की शिरा को ढूंडता है
और,
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डंक मार लेता है !
उसके पश्चात् वो बिच्छू हवा के साथ धुँआ बन जाता है !
सभी लोगो की आखे अभी तक सुरभि के उस डंक पर ही थी !
तभी अचानक उसके शरीर पर कुछ परिवर्तन होता है,
वो परिवर्तन बहुत ही तीव्र था,
बहुत ही जल्दी से नयी कोशिकाए उत्पन्न होकर अपनी जगह ले रही थी,
और कुछ ही क्षण में सुरभि का शरीर बिलकुल ठीक हो जाता है !
दोजू के अलावा जैसे सभी लोगो ने वहा सपना देख रहे थे, सब जड़ मूर्ति से बने हुए थे अब तक !
दोजू वहा से उठता है और दरवाजे के पास जाकर खटखटाता है जिससे की सबका ध्यान उसकी तरफ आ जाता है
“माणिकलाल, कल भोर के पहले प्रहर तक झोपड़े पर आ जाना, वचन दिया है” दोजू माणिकलाल को आदेशपूर्ण आवाज में बोलता है “सुरभि की चेतना संध्या तक लौट आएगी” कहते हुए दोजू अपने झोपड़े की ओर चल पड़ता है !
उसके चेहरे से ऐसा प्रतीत हो रहा था की जैसे किसी बड़े युद्ध की पूर्ण तैयारी पूर्ण कर ली हो और कल युद्ध के लिए रवाना होना हो !
लेकिन अभी भी कोई था दूर देश में जिनकी रणनीति अभी भी पूर्ण नहीं हुयी थी, वो अभी भी अपने सन्देश का इन्तेजार कर रहा था..
Gajab update
Thank you very much for the complimentsuperb story writing with a difference and treatment, story is set in medieval era evokes curiosity and excitement
Great efforts
धन्यवाद आपकावाह! बहुत खूब मनोज भाई,,,,,
इस दोजू ने तो चमत्कार कर दिया। कहानी काफी रोमांचक और रहस्यों से भरी हुई है। ऐसा लगता है जैसे कोई तिलिस्मी सीरियल चल रहा हो। ख़ैर देखते हैं आगे और कैसे कैसे रहस्यों से आप हम सबको रूबरू कराते हैं।![]()
Bhut bhadiya............ 12 din............ war in next 12 days...... Plot aur characters to abhi tak kuch jyada smjh aaye nhi h but phir bhi aisa lagta h ki kuch log hone wale events ka bhut wakt se intizaar kar rahe h
Kiska intizaar kar rahe aur kyun kar rahe h kuch bhi pata nhi.. Kon acha h kon bura ye bhi nhi pata.. Story bhut suspenseful h ?.
Waiting for next![]()
Bahot khub..
Brilliant update with awesome writing skill![]()
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