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Fantasy वो कौन था

आपको ये कहानी कैसी लग रही है

  • बेकार है

    Votes: 2 5.3%
  • कुछ कह नही सकते

    Votes: 4 10.5%
  • अच्छी है

    Votes: 8 21.1%
  • बहुत अच्छी है

    Votes: 24 63.2%

  • Total voters
    38

manojmn37

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माफी के अंदाज में दातो तले जीभ दबाते हुए डामरी बोलती है “क्या है ना राजवैद्यीजी, बहुत दिनों बाद अवकाश मिला था तो सोचा की सुबह-सुबह थोडा गाव में घूम आऊ”

“मेरे साथ नहीं चलोगी घुमने”

“अकेले-अकेले में मजा नहीं आता है, हम किसी से बात भी नहीं कर सकते, इसीलिए में वापस आ गयी थी, और गाव में भी सभी अपना-अपना काम कर रहे थे, सोचा क्यों किसी को परेशान करू” डामरी एक ज्ञान देने वाली शिक्षिका के अंदाज में बोलती है “चलो अब हम दो हो गए है तो अब मजा आयेया, चलो चलते है”



दोनों मंदिर के विशाल दरवाजे से बाहर चले जाते है



उधर शमशान में वो पागल बुड्ढा रोज की तरह ही इधर-उधर घूम रहा था, कभी-कभार वह बहुत समय तक किसी भी जगह पर आलस्य से सोता रहता है, जब भी भूख लगे तब वह गाव में खाने के लिए जाता था, मिल गया तो ठीक वर्ना कोई मछली या जानवर को मारकर कच्चा ही खा जाता था, जब भी नींद आये तो वह सो जाता और जब नींद ना आये तो कई दिनों या महीनो तक ऐसे ही जागा करता था !

वह अपनी मस्ती में इतना मस्त था की कई बार गाव के लोग इसको देखकर इर्ष्या करने लगते थे,

कई लोग व्यंग में ये भी बोलते थे की इसी को सच्चिदानंद मिला हुआ है,

देखो हमें,

रोज सुबह जल्दी उठो,

काम पर जाओ,

मेहनत करो

तभी कल के खाने के लिए कुछ मिलता है,

बीबी-बच्चो और परिवार का बोझ उठाओ और इसको देखो, इसको तो परिवार तो क्या अपनी ही कोई चिंता नहीं है !

इस तरह की बाते गाव के हर गली में सुनने में मिल ही जाती है,

‘इस तरह के लोग जो अपने जिम्मेदारियो को बोझ समझने लगते है’

‘अपनी छोड़कर परायी वस्तुओ के पीछे भागते है’

‘चाहे खुद चांदी के बर्तनों में खाना खा ले परन्तु दूसरो को मिट्टी के बर्तनों में देखना उसको अच्छा नहीं लगता है’

ऐसी मानसिकता वाले लोग आपको हर जगह मिल जाते है !

रात का जगा हुआ वो पागल अभी भी शमशान में घूम ही रहा था, वो एक अच्छे पेड़ को देखता है, पैर पर पैर चढ़ाकर, पीठ को पेड़ से टिकाकर आराम से बैठ जाता है, उन दूर के उत्तरी पहाडियों को देखता है

.

.

.

दूर उत्तरी पहाडियों पर वो शख्स अभी भी भागे जा रहा था लेकिन उसकी गति अभी कुछ धीमी हो गयी थी, वो पर्वत की छोटी पर लगभग पहुच ही चूका था, अचानक उसके नथुनों में फूलो की खुशबु भर जाती है, वो रुक जाता है और वो थोड़ी चैन की सास लेता है, उसके चेहरे पर परेशानी थोड़ी सी कम हुयी जैसे वो अपने गंतव्य पर पहुच चूका था

“इतना परेशान क्यों हो कालगिरी” तभी उसके पीछे से एक स्त्री आवाज आती है, बहुत ही सोम्य थी वो आवाज !

कालगिरी पीछे मुड़कर देखता है, उसे देखते ही वो थोडा सहज होता है, जैसे उसकी सारी थकान उस आवाज से ही शांत हो गयी !

“वो.. वो...” कालगिरी इतना ही बोल पाता है

“यही की वो आ गया है” उसी सोम्य आवाज में वो कहती है

“आप जानती है”

“हा”

“फिर भी, फिर भी आप कुछ नहीं कर रही है, आप इतनी शांत कैसे रह सकती है” कालगिरी थोडा उत्तेजित स्वर में बोलता है, जैसे उसको अपनी गलती का अहसास होता है, वो थोडा डर कर पीछे हट जाता है !

वो कालगिरी की तरफ देखती है लेकिन ऐसा लगता था की आज वो पहले से कुछ ज्यादा ही शांत थी, वो आज कालगिरी के उत्तेजित स्वर से नाराज नहीं थी

वो उसी शांत स्वभाव से अपने से दूर दक्षिण में देखती है जिस तरफ कद्पी पड़ता था, पलभर के लिए ऐसा लगा जैसे उसने कुछ देखा, जैसे नजर से नजर मिली ही, उसे कालगिरी के प्रश्न का उत्तर मिला, वो बोल पड़ती है “हम प्रतीक्षा करेंगे”

“प्रतीक्षा...पुरे बारह दिनों तक...” कालगिरी असमंजस में बोलता है “लेकिन प्रतीक्षा क्यों”

वचन पूरा करना पड़ेगा” इसी के साथ वो हवा में लुप्त हो जाती है

कालगिरी वही देखता रह जाता है

.

.

.

.

.

दोजू बहुत तेजी से अपने झोले को पकडे हुए माणिकलाल के घर की और चलता है और उसके पीछे सप्तोश !

सप्तोश को दोजू से कुछ पूछना था लेकिन दोजू को आज बहुत देर हो चुकी थी उसको सुबह जल्दी माणिकलाल के घर पहुचना था यदि सप्तोश उसको नहीं उठाता तो शायद दोहपर हो जाती !

लेकिन आज सप्तोश दोजू को छोड़ने वाला नहीं था, वो उससे आज उस पागल बुड्ढ़े का राज जानना चाहता था इसीलिए वो उसके पीछे-पीछे चल रहा था या यु कहो की धीरे-धीरे भाग रहा था ! दोजू बुड्ढा हो चूका था फिर भी उसकी तेजी देखने लायक थी !

चेत्री और डामरी दोनों नदी की तरफ टहलने आई थी लेकिन दोनों ने जब सप्तोश को दोजू के पीछे-पीछे चलते हुए देखा तो वे दोनों भी उनका पीछा करने लग जाती है !

दोजू लगभग माणिकलाल के घर पहुच ही चूका था की उसे एक आदमी दिखा, वो माणिकलाल के घर से वापस आ रहा था, एक पल के लिए दोजू चौका, दोनों की नजरे मिली, वो आदमी मुस्कुराया और दोनों आगे बढ़ गए !

माणिकलाल के घर का दरवाजा खुला ही था, दोजू तुरंत अन्दर जाते ही माणिकलाल से पूछता है “वो यहाँ क्यों आया था”

माणिकलाल अचानक से हुए इस सवाल और घर में दोजू के इतना तेज आने से थोडा हडबडा गया “कौन ??”

“जो अभी यहाँ से निकला है”

“वो तो कोई परदेसी ग्राहक था” माणिकलाल ने कहा “आप उन्हें जानते है क्या ??”

“नहीं, ऐसी कोई बात नहीं”

दोनों की बाते सुनकर निर्मला बाहर आ जाती है

“अरे वैद्यजी आप” ये कहते हुए निर्मला माणिकलाल को खाट बिछाने का इशारा करती है

माणिकलाल खाट बिछाते हुए सप्तोश को देखता है, वह सप्तोश को ठीक से पहचान नहीं पा रहा था शायद उसने परसों मंदिर में उसको दूर दे देखा था इसीलिए !

दोजू माणिकलाल को सप्तोश को घूरते हुए देखकर बोलता है “ये उस साधू बाबा का चेला है”

माणिकलाल इतना सुनते ही दोनों को बैठने के लिए बोलता है

“सुन माणिकलाल” दोजू कहता है

“जी वैद्यजी”

“तेरी बच्ची अब ठीक हो जाएगी, फिर से वो अब चलने लगेगी, दौड़ने लगेगी”

इतना सुनते ही माणिकलाल और निर्मला दोनों ख़ुशी से कुछ सोच भी नहीं पा रहे थे तभी तुरंत दोजू बोल उठता है “लेकिन

“लेकिन, लेकिन क्या वैद्यजी ?”

“उसकी कीमत चुकानी होगी” दोजू वापस अपने उसी रहस्यपूर्ण अंदाज में बोलता है

ये सुनते ही सप्तोश वापस चौक जाता है, ये वैसा ही अंदाज था जिस अंदाज में दोजू ने उस से कौडम माँगा था,

‘अब इनसे ये क्या मांगने वाला है’ सप्तोश मन में सोचने लगता है

“क्या चाहिए आपको” माणिकलाल को बस कहने भर की ही देरी थी वो इस समय अपना पूरा घर, यहाँ तक की सब कुछ उस दोजू की झोली में डाल देता !

‘सप्तोश दोजू को देखता है की क्या मांगेगा’

दोजू हल्के से मुस्कुराता है......








 

Studxyz

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वाह भाई ग़ज़ब की कहानी है ये भागने वाला कालगिरि और सोम्य भी रहस्य से बंधे हैं और दोजु साला बड़ा लालची है अब उस गरीब मानिकलाल से क्या माँगेगा ?
 

manojmn37

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वाह भाई ग़ज़ब की कहानी है ये भागने वाला कालगिरि और सोम्य भी रहस्य से बंधे हैं और दोजु साला बड़ा लालची है अब उस गरीब मानिकलाल से क्या माँगेगा ?
धन्यवाद भाई साहब
लेकिन यहाँ पर सोम्य किसी का नाम नहीं है मेने लिखा है
"बहुत ही सोम्य थी वो आवाज" :writing::)
 

Chutiyadr

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माफी के अंदाज में दातो तले जीभ दबाते हुए डामरी बोलती है “क्या है ना राजवैद्यीजी, बहुत दिनों बाद अवकाश मिला था तो सोचा की सुबह-सुबह थोडा गाव में घूम आऊ”

“मेरे साथ नहीं चलोगी घुमने”

“अकेले-अकेले में मजा नहीं आता है, हम किसी से बात भी नहीं कर सकते, इसीलिए में वापस आ गयी थी, और गाव में भी सभी अपना-अपना काम कर रहे थे, सोचा क्यों किसी को परेशान करू” डामरी एक ज्ञान देने वाली शिक्षिका के अंदाज में बोलती है “चलो अब हम दो हो गए है तो अब मजा आयेया, चलो चलते है”



दोनों मंदिर के विशाल दरवाजे से बाहर चले जाते है



उधर शमशान में वो पागल बुड्ढा रोज की तरह ही इधर-उधर घूम रहा था, कभी-कभार वह बहुत समय तक किसी भी जगह पर आलस्य से सोता रहता है, जब भी भूख लगे तब वह गाव में खाने के लिए जाता था, मिल गया तो ठीक वर्ना कोई मछली या जानवर को मारकर कच्चा ही खा जाता था, जब भी नींद आये तो वह सो जाता और जब नींद ना आये तो कई दिनों या महीनो तक ऐसे ही जागा करता था !

वह अपनी मस्ती में इतना मस्त था की कई बार गाव के लोग इसको देखकर इर्ष्या करने लगते थे,

कई लोग व्यंग में ये भी बोलते थे की इसी को सच्चिदानंद मिला हुआ है,

देखो हमें,

रोज सुबह जल्दी उठो,

काम पर जाओ,

मेहनत करो

तभी कल के खाने के लिए कुछ मिलता है,

बीबी-बच्चो और परिवार का बोझ उठाओ और इसको देखो, इसको तो परिवार तो क्या अपनी ही कोई चिंता नहीं है !

इस तरह की बाते गाव के हर गली में सुनने में मिल ही जाती है,

‘इस तरह के लोग जो अपने जिम्मेदारियो को बोझ समझने लगते है’

‘अपनी छोड़कर परायी वस्तुओ के पीछे भागते है’

‘चाहे खुद चांदी के बर्तनों में खाना खा ले परन्तु दूसरो को मिट्टी के बर्तनों में देखना उसको अच्छा नहीं लगता है’

ऐसी मानसिकता वाले लोग आपको हर जगह मिल जाते है !

रात का जगा हुआ वो पागल अभी भी शमशान में घूम ही रहा था, वो एक अच्छे पेड़ को देखता है, पैर पर पैर चढ़ाकर, पीठ को पेड़ से टिकाकर आराम से बैठ जाता है, उन दूर के उत्तरी पहाडियों को देखता है

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दूर उत्तरी पहाडियों पर वो शख्स अभी भी भागे जा रहा था लेकिन उसकी गति अभी कुछ धीमी हो गयी थी, वो पर्वत की छोटी पर लगभग पहुच ही चूका था, अचानक उसके नथुनों में फूलो की खुशबु भर जाती है, वो रुक जाता है और वो थोड़ी चैन की सास लेता है, उसके चेहरे पर परेशानी थोड़ी सी कम हुयी जैसे वो अपने गंतव्य पर पहुच चूका था

“इतना परेशान क्यों हो कालगिरी” तभी उसके पीछे से एक स्त्री आवाज आती है, बहुत ही सोम्य थी वो आवाज !

कालगिरी पीछे मुड़कर देखता है, उसे देखते ही वो थोडा सहज होता है, जैसे उसकी सारी थकान उस आवाज से ही शांत हो गयी !

“वो.. वो...” कालगिरी इतना ही बोल पाता है

“यही की वो आ गया है” उसी सोम्य आवाज में वो कहती है

“आप जानती है”

“हा”

“फिर भी, फिर भी आप कुछ नहीं कर रही है, आप इतनी शांत कैसे रह सकती है” कालगिरी थोडा उत्तेजित स्वर में बोलता है, जैसे उसको अपनी गलती का अहसास होता है, वो थोडा डर कर पीछे हट जाता है !

वो कालगिरी की तरफ देखती है लेकिन ऐसा लगता था की आज वो पहले से कुछ ज्यादा ही शांत थी, वो आज कालगिरी के उत्तेजित स्वर से नाराज नहीं थी

वो उसी शांत स्वभाव से अपने से दूर दक्षिण में देखती है जिस तरफ कद्पी पड़ता था, पलभर के लिए ऐसा लगा जैसे उसने कुछ देखा, जैसे नजर से नजर मिली ही, उसे कालगिरी के प्रश्न का उत्तर मिला, वो बोल पड़ती है “हम प्रतीक्षा करेंगे”

“प्रतीक्षा...पुरे बारह दिनों तक...” कालगिरी असमंजस में बोलता है “लेकिन प्रतीक्षा क्यों”

वचन पूरा करना पड़ेगा” इसी के साथ वो हवा में लुप्त हो जाती है

कालगिरी वही देखता रह जाता है

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दोजू बहुत तेजी से अपने झोले को पकडे हुए माणिकलाल के घर की और चलता है और उसके पीछे सप्तोश !

सप्तोश को दोजू से कुछ पूछना था लेकिन दोजू को आज बहुत देर हो चुकी थी उसको सुबह जल्दी माणिकलाल के घर पहुचना था यदि सप्तोश उसको नहीं उठाता तो शायद दोहपर हो जाती !

लेकिन आज सप्तोश दोजू को छोड़ने वाला नहीं था, वो उससे आज उस पागल बुड्ढ़े का राज जानना चाहता था इसीलिए वो उसके पीछे-पीछे चल रहा था या यु कहो की धीरे-धीरे भाग रहा था ! दोजू बुड्ढा हो चूका था फिर भी उसकी तेजी देखने लायक थी !

चेत्री और डामरी दोनों नदी की तरफ टहलने आई थी लेकिन दोनों ने जब सप्तोश को दोजू के पीछे-पीछे चलते हुए देखा तो वे दोनों भी उनका पीछा करने लग जाती है !

दोजू लगभग माणिकलाल के घर पहुच ही चूका था की उसे एक आदमी दिखा, वो माणिकलाल के घर से वापस आ रहा था, एक पल के लिए दोजू चौका, दोनों की नजरे मिली, वो आदमी मुस्कुराया और दोनों आगे बढ़ गए !

माणिकलाल के घर का दरवाजा खुला ही था, दोजू तुरंत अन्दर जाते ही माणिकलाल से पूछता है “वो यहाँ क्यों आया था”

माणिकलाल अचानक से हुए इस सवाल और घर में दोजू के इतना तेज आने से थोडा हडबडा गया “कौन ??”

“जो अभी यहाँ से निकला है”

“वो तो कोई परदेसी ग्राहक था” माणिकलाल ने कहा “आप उन्हें जानते है क्या ??”

“नहीं, ऐसी कोई बात नहीं”

दोनों की बाते सुनकर निर्मला बाहर आ जाती है

“अरे वैद्यजी आप” ये कहते हुए निर्मला माणिकलाल को खाट बिछाने का इशारा करती है

माणिकलाल खाट बिछाते हुए सप्तोश को देखता है, वह सप्तोश को ठीक से पहचान नहीं पा रहा था शायद उसने परसों मंदिर में उसको दूर दे देखा था इसीलिए !

दोजू माणिकलाल को सप्तोश को घूरते हुए देखकर बोलता है “ये उस साधू बाबा का चेला है”

माणिकलाल इतना सुनते ही दोनों को बैठने के लिए बोलता है

“सुन माणिकलाल” दोजू कहता है

“जी वैद्यजी”

“तेरी बच्ची अब ठीक हो जाएगी, फिर से वो अब चलने लगेगी, दौड़ने लगेगी”

इतना सुनते ही माणिकलाल और निर्मला दोनों ख़ुशी से कुछ सोच भी नहीं पा रहे थे तभी तुरंत दोजू बोल उठता है “लेकिन

“लेकिन, लेकिन क्या वैद्यजी ?”

“उसकी कीमत चुकानी होगी” दोजू वापस अपने उसी रहस्यपूर्ण अंदाज में बोलता है

ये सुनते ही सप्तोश वापस चौक जाता है, ये वैसा ही अंदाज था जिस अंदाज में दोजू ने उस से कौडम माँगा था,

‘अब इनसे ये क्या मांगने वाला है’ सप्तोश मन में सोचने लगता है

“क्या चाहिए आपको” माणिकलाल को बस कहने भर की ही देरी थी वो इस समय अपना पूरा घर, यहाँ तक की सब कुछ उस दोजू की झोली में डाल देता !

‘सप्तोश दोजू को देखता है की क्या मांगेगा’

दोजू हल्के से मुस्कुराता है......





bade hi suspenc wale jagah me lakar rokte ho bhai ...

skelets%20(31).gif
 

lone_hunterr

Titanus Ghidorah
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Badhiya bhai :applause: bhot bhadiya..... Sahi jagah lake rokte ho..... 2 naye characters aaye h aur Pata nhi kon aa gaya ki vo log itne pareshan h.....
Achaa plot tayar kiya h.... Suspense and Thrill
Agle update ka intezaar h......
 
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