दोजू वहा से उठता है और दरवाजे के पास जाकर खटखटाता है जिससे की सबका ध्यान उसकी तरफ आ जाता है
“माणिकलाल, कल भोर के पहले प्रहर तक झोपड़े पर आ जाना, वचन दिया है” दोजू माणिकलाल को आदेशपूर्ण आवाज में बोलता है “सुरभि की चेतना संध्या तक लौट आएगी” कहते हुए दोजू अपने झोपड़े की ओर चल पड़ता है !
उसके चेहरे से ऐसा प्रतीत हो रहा था की जैसे किसी बड़े युद्ध की पूर्ण तैयारी पूर्ण कर ली हो और कल युद्ध के लिए रवाना होना हो !
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लेकिन अभी भी कोई था दूर देश में जिनकी रणनीति अभी भी पूर्ण नहीं हुयी थी, वो अभी भी अपने सन्देश का इन्तेजार कर रहा था !
दोहपर होने ही वाली थी, वो तीनो अभी भी अपने प्रशिक्षण गृह की छत पर खड़े थे !
राजा वीरवर, अपने पुत्र को घुड़सवारी का प्रशिक्षण लेते हुए छत से देख रहे थे, उनके साथ में खड़ा था सेनापति धारेश ! उसकी नजर तो युवराज की तरफ थी लेकिन वो उसके बारे में बुरी-भली बाते सोच रहा था जिसके आने ने उसकी रणनीति के बारे में राजा अब विचार ही नहीं कर रहा था !
तभी आसमान में एक कर्कश ध्वनी सुनायी देती है – एक गिद्ध
वो एक गिद्ध था, उन तीनो की नजर उस पर पड़ी ! वो २-३ बार प्रशिक्षण गृह के ऊपर चक्कर लगाकर उस व्यक्ति के हाथ में रखे दंड पर बैठ जाता है, गिद्ध के पैर पर बंधे हुए पत्र को अलग करता है ! वो अपने हाथ से दंड छोड़ता है, गिद्ध अभी भी दंड पर बैठा हुआ था !
राजा और सेनापति, दोनों की नजरे उस व्यक्ति की तरफ थी, वो पत्र पढ़ता है,
“महाराज, आगे का कार्य पूरा हुआ ! हम सेनापति की रणनीति के अनुसार, दो दिन बाद रवाना होंगे”
एक पल के लिए जैसे सेनापति को अपने कानो पर यकीन ही नहीं हुआ की वो व्यक्ति उसकी रणनीति की स्वीकृति दे रहा हो !
सेनापति धारेश उत्साह से “ठीक है महाराज, में अभी से तैयारी में लग जाता हु” कहते हुए सेनापति सीढियों से नीचे चला जाता है !
“आगे के कार्य से तुम्हारा क्या तात्पर्य है, अमान”
“यह आपको जल्द ही पता चल जायेगा महाराज” अमान बोलता है “लेकिन ध्यान रखना इस बार, की शेर के बच्चे को पकड़ने के लिए सबसे पहले शेर को हराना पड़ेगा”
इसी के साथ दोनों एक साथ हस पड़ते है, गिद्ध उसी कर्कश ध्वनि के साथ वापस उस जाता है !
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सप्तोश हाट आया हुआ था बाबा बसोठा की बताई हुयी सामग्री लेने के लिए ! वैसे भी सुबह के वृतांत के बाद उसे काफी विलम्ब हो चूका था, संध्या होने से पहले उसे सारी सामग्री अपने गुरु को देनी थी !
सारी सामग्री मिल चुकी थी एक-दो को छोड़कर ! बहुतो से पूछने पर भी वो मिल नहीं रही थी, सभी एक ही बात कर रहे थे – शायद दोजू के पास मिल जाये !
सप्तोश दोजू के पास जाना नहीं चाहता था किसी भी वस्तु की खरीद के लिए ! उसका पहला अनुभव कुछ खास नहीं रहा था, उसके जीवन के ९ साल बिक गए थे ! लेकिन अब जाना भी जरुरी था, उसे सामग्री जो लानी थी वो भी संध्या से पहले !
सप्तोश अब चल पड़ा था वापस दोजू के झोपड़े की ओर !
दोजू अपने झोपड़े में कुछ काम कर रहा था, सप्तोश को दरवाजे पर देखते ही वो थोडा मुस्कुराता देता है !
अब तो जैसे सप्तोश, दोजू की इस प्रकार की मुस्कान देखता है, वो थोडा डर जाता है, इस मुस्कराहट को वो अब तो बिलकुल नजरंदाज नहीं कर सकता है ! सप्तोश को समझ नहीं आ रहा था की वो कहा से शुरू करे, वो इस तरह के मोल-भाव में कभी नहीं पड़ा था !
“अब क्या लेने आये हो तुम” दोजू बोल पड़ता है
इस बार सुविधा हुई सप्तोश हो, वो एक-दो वस्तुओ के नाम बोल देता है !
नाम सुनते ही “तेरे गुरु को चाहिए ये सब”
“हा”
“समझा दे तेरे गुरु को, उस बुड्ढ़े का पीछा छोड़ दे वर्ना सब कुछ खो देगा वो” दोजू इस बार थोडा गुस्से में बोलता है !
“कौन है वो बुड्ढा” थोडा उत्साह पूर्वक बोलता है सप्तोश जैसे की उस पागल के रहस्य का उद्धाटन होने वाला है !
“जानना चाहता है उसके बारे में ?” दोजू गहरे अंदाज में बोलता है !
सप्तोश हा में सर हिला देता है
“तो मेरे साथ चलना होगा”
“कहा”
“यात्रा पर, बारह दिनों की यात्रा पर”
“शिष्यत्व छोड़ना होना तेरे गुरु का, वापस मुक्त होना पड़ेगा पंछी की तरह”
जैसे ही दोजू ने शिष्यत्व छोड़ने की बात कही, एक झटका सा लगा सप्तोश को, बाबा बसोठा का शिष्यत्व छोड़ना मतलब, अभी तक जितना भी प्राप्त किया वो सब त्याग करना, जहा से शुरू किया वापस वही पर आ जाना !
“इतना मत सोच, तुमने अभी तक कुछ भी नहीं प्राप्त नहीं करा है – विश्वास कर मेरा” दोजू अब उसको समझाने के ढंग से बोलता है “यकीं दिलाता हु तुमको की जितना भी प्राप्त किया है तूने, उससे कई गुना ज्यादा रहस्य तेरा इन्तेजार कर रहे है”
इसी वाक्य के साथ दोजू उसे वो वस्तुए दे देता है और कहता है “ये ले अपने गुरु को दे देना और आज की पूरी रात पड़ी है तेरे पास, अच्छी तरह से सोच ले, इरादा बन जाये तो भोर होते ही आ जाना इसी झोपड़े पर, इन्तेजार करूँगा तुम्हारा”
सप्तोश वापस चल पड़ता है मंदिर की ओर, अपने गुरु की ओर वो वस्तुए लेकर और साथ में एक प्रस्ताव या यु कहो की नयी शुरुआत !