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Fantasy वो कौन था

आपको ये कहानी कैसी लग रही है

  • बेकार है

    Votes: 2 5.3%
  • कुछ कह नही सकते

    Votes: 4 10.5%
  • अच्छी है

    Votes: 8 21.1%
  • बहुत अच्छी है

    Votes: 24 63.2%

  • Total voters
    38

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
19,678
48,995
259
Bhai bohot hi jabarjust kahani hai.
Itni must kahani ke update rukne nahi chahiye.
Agar roke to aapko paap lagega :applause: :applause:
 

Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
Staff member
Moderator
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304

Hello Everyone :hello:
We are Happy to present to you The annual story contest of Xforum "The Ultimate Story Contest" (USC)..

Jaisa ki aap sabko maalum hai abhi pichle hafte he humne USC ki announcement ki hai or abhi kuch time Pehle Rules and Queries thread bhi open kiya hai or Chit chat thread toh pehle se he Hind section mein khulla hai.

Iske baare Mein thoda aapko btaadun ye ek short story contest hai jisme aap kissi bhi prefix ki short story post kar shaktey ho jo minimum 700 words and maximum 7000 words takk ho shakti hai. Isliye main aapko invitation deta hun ki aap Iss contest Mein apne khayaalon ko shabdon kaa Rupp dekar isme apni stories daalein jisko pura Xforum dekhega ye ek bahot acha kadam hoga aapke or aapki stories k liye kyunki USC Ki stories ko pure Xforum k readers read kartey hain.. Or jo readers likhna nahi caahtey woh bhi Iss contest Mein participate kar shaktey hain "Best Readers Award" k liye aapko bus karna ye hoga ki contest Mein posted stories ko read karke unke Uppar apne views dene honge.

Winning Writer's ko well deserved Awards milenge, uske aalwa aapko apna thread apne section mein sticky karne kaa mouka bhi milega Taaki aapka thread top par rahe uss dauraan. Isliye aapsab k liye ye ek behtareen mouka hai Xforum k sabhi readers k Uppar apni chaap chhodne ka or apni reach badhaane kaa.

Entry thread 7th February ko open hoga matlab aap 7 February se story daalna suru kar shaktey hain or woh thread 21st February takk open rahega Iss dauraan aap apni story daal shaktey hain. Isliye aap abhi se apni Kahaani likhna suru kardein toh aapke liye better rahega.

Koi bhi issue ho toh aap kissi bhi staff member ko Message kar shaktey hain..

Rules Check karne k liye Iss thread kaa use karein :- Rules And Queries Thread.

Contest k regarding Chit chat karne k liye Iss thread kaa use karein :- Chit Chat Thread.

Regards :Xforum Staff.

 

jitutripathi00

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पहला आध्याय

दोहपर का समय था सूर्य देवता अपना पूरा अस्तित्व बता रहे थे ! पुरे जगत को अपने किरणों से प्रकाशमान करने वाले और सभी जीवो और प्रकति को संतुलित रखने वाले सूर्य देवता आज एसा लग रहे थे जैसे कुध्र होकर बरस रहे हो ! लगता है जैसे हवा भी आज सूर्यदेव के क्रोध का शिकार हो गयी है आसमान से जैसे अंगार बरस रहे है ! कुछ पक्षी अपने घोसलों में बैठे या तो अपने साथियों की प्रतीक्षा रहे थे या सूर्य के कम होने का इंतेजार कर रहे थे और कुछ पक्षी पानी की तलाश में अपनी खोजी व्यक्तित्व की पहचान दे रहे थे ! पालतू मवेशी अपने अपने बेड़े में बैठकर अपने मालिको की प्रतीक्षा कर रहे थे की कब उनके मालिक आकर चारा पानी की व्यवस्था कर दे ! कुत्ते यहाँ वहा चाव देखकर सुस्ता रहे थे ! सारे लोग अपने अपने घरो में आराम कर रहे थे और खेतो में काम करने वाले मजदुर भी पेड़ो के निचे बैठ है अपनी शुधा शांत कर रहे थे !

अभी- अभी एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति अपने घर से निकलकर हाट की तरफ जा रहा था उस व्यक्ति का हुलिया और अभी अभी आ रहे सफेद बालो की वजह से एसा लग रहा था की जैसे उसके भाग्य ने उसे समय से पहले ही काफी कुछ सिखा दिया हो ! हाथ में उसने एक कपडे की जोली लटका थी, फटे कपड़ो के चप्पल और पुराने बेरंग कपडे उसकी जर्जर स्तिथि का वर्णन कर रही थी ! वो व्यक्ति धीरे-धीरे अपने कदम हाट की तरफ ले जा रहा था और मन में उसके काफी विचार उभर रहे थे कुछ थोड़े से सिक्को और ढेर सारी जरूरतों को लेकर वो चल रहा था ! एसा इसलिए नहीं की दोहपर को वह खाली पड़ा रहता था या कुछ करने के लिए काम नहीं था बल्कि उसने इस भरी दोहपर को इसीलिए हाट जाने के लिए चुना था क्युकी इस समय एक्का दुक्का लोग ही हाट में रहते है ताकि लोग उससे अपना उधार मांग कर वो परेशान न हो ! परेशानी उसे इस बात की नहीं थी की लोग उस से अपना मांगेंगे बल्कि इस बात से थी की वो इन सब का धन कैसे लौटाएगा ! आखिरकार वो हाट पहुच ही गया !

हाट पहुचते ही उसने नजर इधर उधर घुमाई और एक दुकान की तरफ चल पड़ा ! वो एक धागों की दुकान थी ! वो व्यक्ति अपनी आजीविका और घर का पेट पालने के लिए कपड़ो की बुनाई करता था इसीलिए वो हाट में धागे और कुछ अनाज लेने आया था !

“कैसे हो माणिकलाल” उस दुकानदार ने कहा !

दुकानदार के कटाक्ष ने माणिकलाल का ध्यान खीचा

“माफ़ करना हरिराम, में तेरा धन जल्द ही चूकता कर दूंगा “

“अरे में तो बस ऐसे ही पूछ रहा था, बताओ क्या खरीदने आये हो “

माणिकलाल ने दुकान में रखे धागों पर एक नजरभर दौड़ाई और कुछ हरे सूत के धागों का मोल पूछा

“हरे रंग का सूत, ये किसके लिए ले जा रहे हो”

“आज सुबह ही एक बुढा आया था घर पर, उसने कहा की उसको हरे रंग के कुर्ते के लिए एक कपडा चाहिए था”

“माफ़ करना माणिकलाल, लेकिन इन रंग के धागों का में उधारी नहीं रख सकता ! पहली बात तो ये है की इन रंग के धागे बहुत कम आते है और दूसरी की आजकल तुम्हारी उधारी कुछ ज्यादा ही हो रही है” हरिराम ने बनावटी उदास भाव में कहा !

“आज इसकी कोई जरुरत नहीं पड़ेगी”

“मतलब क्या है तुम्हारा ?” हरिराम उसकी जर्जर हालात से पूरा वाखिफ था और वो उसको और उधारी का माल नहीं देना चाहता था इस लिए वह माणिकलाल की इस बात से थोडा चौक गया था

“मतलब ये है की इन धागों की आज में पूरा मूल्य चूका के जाऊंगा”

“लगता है कुछ खजाना हाथ लग गया है”

“अरे नहीं भाई, सुबह उस बूढ़े ने कपडे की सारी रकम पहले ही दे दी और ३ दिन बाद आने को कहा है”

“कोन है वो बुढा, जिसने माल से पहले ही पूरी रकम दे दी “

“में भी हैरान हु, वो अपने गॉव का तो नहीं था ! उसका पहनावा भी अलग था ढाढ़ी थोड़ी लम्बी और सर पर कुछ अजीब सा पहन रखा था शायद धुप से बचने के लिए होगा, और तो और उसके कहा ही कपडे के लिए हरे रंग के धागों का ही इस्तेमाल करना, कपडा बुनने के बाद रंगना मत”

“लगता है कोई परदेसी होगा”

“वो सब बाते छोड़ो, कपडे का कितना मूल्य हुआ”

“पुरे ७ ताम्बे के सिक्के”

माणिकलाल ने सिक्के दिए और धागों को अपने झोले में डालने लगा तभी अचानक एक व्यक्ति दौड़ता हुआ आया और माणिकलाल से टकरा गया जिससे वो दोनों गिर पड़े और वो धागे निचे मिट्टी में गिर गए !

“हा हा हा हा बदल जायेगा, बदल जायेगा, सब बदल जायेगा”

ये गॉव का पागल बुढा था जो दिन भर चिल्लाता हुआ गॉव में घूमता रहता था फटे कपडे, बालो से भरा चेहरा, पिली और लाल मिश्रित आखे, जैसे कई रातो से वह सोया नहीं था कोई भी उसको देखकर भय से काफ उठे ! उसकी उस हालात से उसकी उम्र का कोई भी अंदाजा नहीं लगा सकता था की वह कितना बुड्डा था ! वो बहुत सालो से ऐसे ही दिख रहा था जैसे की उसकी उम्र थम सी गयी हो !

दुकानदार ने पास में रखे डंडे को उठाया और उस पागल को मारने के अंदाज में ऊपर लहराया, वो पागल वहा से चिल्लाता हुआ भाग गया !

“चोट तो नहीं लगी माणिकलाल”

गिरने की वजह से माणिकलाल के हाथो और पीठ पर कंकड़ की वजह से कुछ खरोचे आ गयी थी

“नहीं, कोई बात नहीं, में ठीक हु”

“पता नहीं इस पागल से कब छुटकारा मिलेगा, ना तो ये गॉव से जाता है और ना ही मरता है” दुकानदार ने घृणा भरे अंदाज में कहा

माणिकलाल उठा और अपने जोले को सही करके जमीन पर गिरे धागों को उठाकर जोले में डाल देता है और चलने लगता है

वो हाट में इधर उधर देखता है और कुछ अनाज और धान लेकर अपने घर की और निकल पड़ता है

माणिकलाल का घर गॉव के उत्तरी दिशा में सबसे अंत में था और इसके आगे से जंगल शुरू होता था ! माणिकलाल धीरे धीरे घर की और बढ़ता है तभी उसे अचानक एक पेड़ के निचे कुछ दिखाई देता है वो चौका !! उसको जैसे यकीन नहीं हुआ, और धीरे धीरे पेड़ के नजदीक पंहुचा ! लेकिन अब वहा कोई नहीं था ! शायद मेरा भ्रम था – उसने मन में सोचा और अपने घर की और निकल पड़ा !

अगली सुबह गॉव में कुछ हलचल सी मची थी, सभी लोग शिव मंदिर में जाने को उत्सुक हो रहे थे बहुत बड़ी मात्र में भीड़ उमड रही थी

मंदिर गॉव के लगभग बिच में ही था ! शिव मंदिर बहुत ही भव्य और प्राचीन था ! मंदिर के २ मुख्य द्वार थे, एक दक्षिणी द्वार और दूसरा पूर्वी द्वार ! मंदिर के दक्षिणी द्वार में प्रवेश करते ही नंदी की एक विशाल प्रतिमा (लगभग २० फीट ऊची ) और पूर्वी द्वार में एक बिच्छु की प्रतिमा दिखाई पड़ती है ! मंदिर का प्रांगण बहुत ही बड़ा था जिसमे १२०० से भी अधिक लोग एक साथ आ सकते थे ! इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता ये थी की इसमें कोई गर्भ गृह नहीं था और ना ही शिवलिंग, बस एक शिव की विशाल प्रतिमा खुले आकाश के निचे ध्यानस्थ अवस्था में थी ! ये प्रतिमा इतनी बड़ी थी की दूर के उत्त्तरी पहाडियों से भी हल्की सी दिखाई पड़ती थी ! इस मंदिर में इस क्षेत्र का राजा धूम्रकेतु हर अमावस्या पर आकर अभिषेक करता था ! यद्यपि यह गॉव और राजधानी के बिच का रास्ता २ दिन का पड़ता था फिर भी राजा अपने पूर्वजो की प्रथा को आगे बढ़ाने पर बिलकुल विलम्ब नहीं करता था

माणिकलाल अपने घर में बुनाई का कम बस शुरू ही कर रहा था की उसको कुछ ध्वनि सुनाई दी ! ये ढोल और नगाडो की आवाजे थी ! ये आवाजे सुनकर उसकी पत्नी भी खाना बनाते बनाते बिच में छोड़कर माणिकलाल के पास आ गयी !

“ सुनो जी, आज गॉव में कोई उत्सव है क्या “ उसकी पत्नी बोली

“मुझे तो इस बात की कोई खबर नहीं है, रुको में अभी देखकर आता हु “ माणिकलाल ने अपना बुनाई का सामान निचे रखते हुए बोला

“ठीक है लेनिक जल्दी आना, सुरभि को दोहपर से पहले वैध जी के यहाँ भी ले चलना है “ उसकी पत्नी ने कहा

सुरभि का नाम सुनते ही उसका उत्साह थोडा कम हो गया !

“ठीक है, में जल्द ही आ जाऊंगा” ये कहते ही माणिकलाल अपने घर से उस ढोल की आवाजो की तरफ चल पड़ा !

पुरे गॉव में उत्सव की लहर दौड़ चुकी थी, हर कोई अपना अपना काम छोड़कर ढोल की आवाज की और जा रहा था ! भीड़ बढ़ चुकी थी और तो और राजा धूम्रकेतु भी अपने पुरे परिवार के साथ वहा आ चूका था ! पूरी भीड़ आचर्यचाकित थी की आज ना ही अमावस्या है और न ही कोई विशेष त्यौहार फिर भी आज वहा राजा आया हुआ था !

राजा धूम्रकेतु वहा किसी की साधू बाबा की पूजा कर रहे थे ! उनके चहरे पर चिंता और प्रसन्नता के मिक्ष्रित भाव थे, मन में उधेड़बुन चल रही थी !

माणिकलाल भी भीड़ को चीरता हुआ वहा आ पंहुचा ! वो भी चौक गया, उसने भी राजा को उस हालात में पहली बार देखा था ! जो राजा कभी किसी के सामने झुका नहीं, पता नहीं कितने ही साधू महात्मा उनकी राजधानी में आकर चले भी गए परन्तु धूम्रकेतु ने कभी किसी को नमस्कार तक भी नहीं किया ! इसलिए माणिकलाल को अपने आखो पर विश्वास नहीं हो रहा था की राजा धूम्रकेतु किसी साधू बाबा की सेवा कर सकता है !

वो साधू बाबा दिखने में हष्ट पुष्ट था, उम्र में बहुत बूढ़े थे लगभग १२०-१४० वर्ष के, लेकिन उनकी उम्र का उनके शरीर से पता नहीं चल रहा था ! लम्बी सफेद दाढ़ी, काली धोती और उपर कुछ नहीं, ललाट पर भबूत से कुछ निशान बना और लम्बी जटाए ! लगभग १५० से ज्यादा उनके शिष्य और शिष्याए उनके आस पास बैठे हुए थे ! सभी मंदिर के प्रांगण में शिव की प्रतिमा के समकक्ष बैठे थे !

“तुम भी यह आये हो माणिक” माणिकलाल का ध्यान भंग हुआ, किसी ने उसके पीठ पर हाथ फेरते हुये कहा

“रमन, तो ये तुम हो “ माणिकलाल ने कहा !

रमन माणिकलाल का बचपन का मित्र था जिसने अब तक उसका साथ नहीं छोड़ा था !

“तुम यहाँ क्या कर रहे हों” रमन ने पूछा !

“कुछ नहीं, बस ढोल और नगाडो की आवाज बहुत जोरो से आ रही थी तो सोचा की देख आऊ ! लेकिन यहाँ आया तो कुछ पता भी रही चल रहा है की क्या हो रहा है”

“सामने से हट, मुझे देखने दे “

रमन माणिकलाल को उधर करके भीड़ से थोडा आये चला गया और सामने का द्रश्य देखता है ! एक बार में तो वो भी चौक गया लेकिन उसे कुछ याद आया “अच्छा तो ये बात है “

“क्या हुआ, क्या तुम जानते हो “

“पूरा तो नहीं, लेकिन थोडा थोडा “

“में जब छोटा था तब मेरे दादाजी ने इनके बारे कुछ बताया था “ रमन ने कहा

“ क्या बताया था, जल्दी कहो”

“बहुत समय पहले की बात है जब राजाजी की उम्र ३-४ साल होगी ! तब उनको एक साप ने डस लिया था ! बड़े राजा साहब ने इनका बहुत इलाज करवाया लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा और अन्त में राजाजी की मौत हो गयी ! उस समय पुरे राज्य में मातम सा छाया हुआ था क्युकी बड़े राजाजी की एक ही संतान थी और वो भी बहुत समय बाद काफी मन्नतो के बाद पैदा हुई थी ! बड़े राजाजी इनको बहुत प्यार करते थे और अब वे पूरी तरह टूट चुके थे ! २ दिनों बाद शव का अंतिम संस्कार था और पूरा राज घराना शौक में डूबा हुआ था “

“ यदि राजाजी मर चुके थे तो ये कौन है “ बिच में ही माणिकलाल ने पूछा !

“अरे मेरी पहले पूरी बात तो सुन लिया करो ! अब सुनो “

“जैसे ही शव का अंतिम संस्कार करने के लिए नदी के पास वाले शमसान में जा रहे थे तभी एक काले कपड़ो वाला एक साधू दिखाई दिया ! उस साधू ने बड़े राजाजी से कहा ही वह उस शव को वापस जिन्दा कर देगा लेकिन उसकी एक शर्त थी ! और उसकी शर्त............”

अचानक रमन और माणिकलाल को भीड़ में से किसी ने धक्का दिया !
बहुत ही शानदार शुरुआत है दोस्त
 

Nevil singh

Well-Known Member
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पहला आध्याय

दोहपर का समय था सूर्य देवता अपना पूरा अस्तित्व बता रहे थे ! पुरे जगत को अपने किरणों से प्रकाशमान करने वाले और सभी जीवो और प्रकति को संतुलित रखने वाले सूर्य देवता आज एसा लग रहे थे जैसे कुध्र होकर बरस रहे हो ! लगता है जैसे हवा भी आज सूर्यदेव के क्रोध का शिकार हो गयी है आसमान से जैसे अंगार बरस रहे है ! कुछ पक्षी अपने घोसलों में बैठे या तो अपने साथियों की प्रतीक्षा रहे थे या सूर्य के कम होने का इंतेजार कर रहे थे और कुछ पक्षी पानी की तलाश में अपनी खोजी व्यक्तित्व की पहचान दे रहे थे ! पालतू मवेशी अपने अपने बेड़े में बैठकर अपने मालिको की प्रतीक्षा कर रहे थे की कब उनके मालिक आकर चारा पानी की व्यवस्था कर दे ! कुत्ते यहाँ वहा चाव देखकर सुस्ता रहे थे ! सारे लोग अपने अपने घरो में आराम कर रहे थे और खेतो में काम करने वाले मजदुर भी पेड़ो के निचे बैठ है अपनी शुधा शांत कर रहे थे !

अभी- अभी एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति अपने घर से निकलकर हाट की तरफ जा रहा था उस व्यक्ति का हुलिया और अभी अभी आ रहे सफेद बालो की वजह से एसा लग रहा था की जैसे उसके भाग्य ने उसे समय से पहले ही काफी कुछ सिखा दिया हो ! हाथ में उसने एक कपडे की जोली लटका थी, फटे कपड़ो के चप्पल और पुराने बेरंग कपडे उसकी जर्जर स्तिथि का वर्णन कर रही थी ! वो व्यक्ति धीरे-धीरे अपने कदम हाट की तरफ ले जा रहा था और मन में उसके काफी विचार उभर रहे थे कुछ थोड़े से सिक्को और ढेर सारी जरूरतों को लेकर वो चल रहा था ! एसा इसलिए नहीं की दोहपर को वह खाली पड़ा रहता था या कुछ करने के लिए काम नहीं था बल्कि उसने इस भरी दोहपर को इसीलिए हाट जाने के लिए चुना था क्युकी इस समय एक्का दुक्का लोग ही हाट में रहते है ताकि लोग उससे अपना उधार मांग कर वो परेशान न हो ! परेशानी उसे इस बात की नहीं थी की लोग उस से अपना मांगेंगे बल्कि इस बात से थी की वो इन सब का धन कैसे लौटाएगा ! आखिरकार वो हाट पहुच ही गया !

हाट पहुचते ही उसने नजर इधर उधर घुमाई और एक दुकान की तरफ चल पड़ा ! वो एक धागों की दुकान थी ! वो व्यक्ति अपनी आजीविका और घर का पेट पालने के लिए कपड़ो की बुनाई करता था इसीलिए वो हाट में धागे और कुछ अनाज लेने आया था !

“कैसे हो माणिकलाल” उस दुकानदार ने कहा !

दुकानदार के कटाक्ष ने माणिकलाल का ध्यान खीचा

“माफ़ करना हरिराम, में तेरा धन जल्द ही चूकता कर दूंगा “

“अरे में तो बस ऐसे ही पूछ रहा था, बताओ क्या खरीदने आये हो “

माणिकलाल ने दुकान में रखे धागों पर एक नजरभर दौड़ाई और कुछ हरे सूत के धागों का मोल पूछा

“हरे रंग का सूत, ये किसके लिए ले जा रहे हो”

“आज सुबह ही एक बुढा आया था घर पर, उसने कहा की उसको हरे रंग के कुर्ते के लिए एक कपडा चाहिए था”

“माफ़ करना माणिकलाल, लेकिन इन रंग के धागों का में उधारी नहीं रख सकता ! पहली बात तो ये है की इन रंग के धागे बहुत कम आते है और दूसरी की आजकल तुम्हारी उधारी कुछ ज्यादा ही हो रही है” हरिराम ने बनावटी उदास भाव में कहा !

“आज इसकी कोई जरुरत नहीं पड़ेगी”

“मतलब क्या है तुम्हारा ?” हरिराम उसकी जर्जर हालात से पूरा वाखिफ था और वो उसको और उधारी का माल नहीं देना चाहता था इस लिए वह माणिकलाल की इस बात से थोडा चौक गया था

“मतलब ये है की इन धागों की आज में पूरा मूल्य चूका के जाऊंगा”

“लगता है कुछ खजाना हाथ लग गया है”

“अरे नहीं भाई, सुबह उस बूढ़े ने कपडे की सारी रकम पहले ही दे दी और ३ दिन बाद आने को कहा है”

“कोन है वो बुढा, जिसने माल से पहले ही पूरी रकम दे दी “

“में भी हैरान हु, वो अपने गॉव का तो नहीं था ! उसका पहनावा भी अलग था ढाढ़ी थोड़ी लम्बी और सर पर कुछ अजीब सा पहन रखा था शायद धुप से बचने के लिए होगा, और तो और उसके कहा ही कपडे के लिए हरे रंग के धागों का ही इस्तेमाल करना, कपडा बुनने के बाद रंगना मत”

“लगता है कोई परदेसी होगा”

“वो सब बाते छोड़ो, कपडे का कितना मूल्य हुआ”

“पुरे ७ ताम्बे के सिक्के”

माणिकलाल ने सिक्के दिए और धागों को अपने झोले में डालने लगा तभी अचानक एक व्यक्ति दौड़ता हुआ आया और माणिकलाल से टकरा गया जिससे वो दोनों गिर पड़े और वो धागे निचे मिट्टी में गिर गए !

“हा हा हा हा बदल जायेगा, बदल जायेगा, सब बदल जायेगा”

ये गॉव का पागल बुढा था जो दिन भर चिल्लाता हुआ गॉव में घूमता रहता था फटे कपडे, बालो से भरा चेहरा, पिली और लाल मिश्रित आखे, जैसे कई रातो से वह सोया नहीं था कोई भी उसको देखकर भय से काफ उठे ! उसकी उस हालात से उसकी उम्र का कोई भी अंदाजा नहीं लगा सकता था की वह कितना बुड्डा था ! वो बहुत सालो से ऐसे ही दिख रहा था जैसे की उसकी उम्र थम सी गयी हो !

दुकानदार ने पास में रखे डंडे को उठाया और उस पागल को मारने के अंदाज में ऊपर लहराया, वो पागल वहा से चिल्लाता हुआ भाग गया !

“चोट तो नहीं लगी माणिकलाल”

गिरने की वजह से माणिकलाल के हाथो और पीठ पर कंकड़ की वजह से कुछ खरोचे आ गयी थी

“नहीं, कोई बात नहीं, में ठीक हु”

“पता नहीं इस पागल से कब छुटकारा मिलेगा, ना तो ये गॉव से जाता है और ना ही मरता है” दुकानदार ने घृणा भरे अंदाज में कहा

माणिकलाल उठा और अपने जोले को सही करके जमीन पर गिरे धागों को उठाकर जोले में डाल देता है और चलने लगता है

वो हाट में इधर उधर देखता है और कुछ अनाज और धान लेकर अपने घर की और निकल पड़ता है

माणिकलाल का घर गॉव के उत्तरी दिशा में सबसे अंत में था और इसके आगे से जंगल शुरू होता था ! माणिकलाल धीरे धीरे घर की और बढ़ता है तभी उसे अचानक एक पेड़ के निचे कुछ दिखाई देता है वो चौका !! उसको जैसे यकीन नहीं हुआ, और धीरे धीरे पेड़ के नजदीक पंहुचा ! लेकिन अब वहा कोई नहीं था ! शायद मेरा भ्रम था – उसने मन में सोचा और अपने घर की और निकल पड़ा !

अगली सुबह गॉव में कुछ हलचल सी मची थी, सभी लोग शिव मंदिर में जाने को उत्सुक हो रहे थे बहुत बड़ी मात्र में भीड़ उमड रही थी

मंदिर गॉव के लगभग बिच में ही था ! शिव मंदिर बहुत ही भव्य और प्राचीन था ! मंदिर के २ मुख्य द्वार थे, एक दक्षिणी द्वार और दूसरा पूर्वी द्वार ! मंदिर के दक्षिणी द्वार में प्रवेश करते ही नंदी की एक विशाल प्रतिमा (लगभग २० फीट ऊची ) और पूर्वी द्वार में एक बिच्छु की प्रतिमा दिखाई पड़ती है ! मंदिर का प्रांगण बहुत ही बड़ा था जिसमे १२०० से भी अधिक लोग एक साथ आ सकते थे ! इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता ये थी की इसमें कोई गर्भ गृह नहीं था और ना ही शिवलिंग, बस एक शिव की विशाल प्रतिमा खुले आकाश के निचे ध्यानस्थ अवस्था में थी ! ये प्रतिमा इतनी बड़ी थी की दूर के उत्त्तरी पहाडियों से भी हल्की सी दिखाई पड़ती थी ! इस मंदिर में इस क्षेत्र का राजा धूम्रकेतु हर अमावस्या पर आकर अभिषेक करता था ! यद्यपि यह गॉव और राजधानी के बिच का रास्ता २ दिन का पड़ता था फिर भी राजा अपने पूर्वजो की प्रथा को आगे बढ़ाने पर बिलकुल विलम्ब नहीं करता था

माणिकलाल अपने घर में बुनाई का कम बस शुरू ही कर रहा था की उसको कुछ ध्वनि सुनाई दी ! ये ढोल और नगाडो की आवाजे थी ! ये आवाजे सुनकर उसकी पत्नी भी खाना बनाते बनाते बिच में छोड़कर माणिकलाल के पास आ गयी !

“ सुनो जी, आज गॉव में कोई उत्सव है क्या “ उसकी पत्नी बोली

“मुझे तो इस बात की कोई खबर नहीं है, रुको में अभी देखकर आता हु “ माणिकलाल ने अपना बुनाई का सामान निचे रखते हुए बोला

“ठीक है लेनिक जल्दी आना, सुरभि को दोहपर से पहले वैध जी के यहाँ भी ले चलना है “ उसकी पत्नी ने कहा

सुरभि का नाम सुनते ही उसका उत्साह थोडा कम हो गया !

“ठीक है, में जल्द ही आ जाऊंगा” ये कहते ही माणिकलाल अपने घर से उस ढोल की आवाजो की तरफ चल पड़ा !

पुरे गॉव में उत्सव की लहर दौड़ चुकी थी, हर कोई अपना अपना काम छोड़कर ढोल की आवाज की और जा रहा था ! भीड़ बढ़ चुकी थी और तो और राजा धूम्रकेतु भी अपने पुरे परिवार के साथ वहा आ चूका था ! पूरी भीड़ आचर्यचाकित थी की आज ना ही अमावस्या है और न ही कोई विशेष त्यौहार फिर भी आज वहा राजा आया हुआ था !

राजा धूम्रकेतु वहा किसी की साधू बाबा की पूजा कर रहे थे ! उनके चहरे पर चिंता और प्रसन्नता के मिक्ष्रित भाव थे, मन में उधेड़बुन चल रही थी !

माणिकलाल भी भीड़ को चीरता हुआ वहा आ पंहुचा ! वो भी चौक गया, उसने भी राजा को उस हालात में पहली बार देखा था ! जो राजा कभी किसी के सामने झुका नहीं, पता नहीं कितने ही साधू महात्मा उनकी राजधानी में आकर चले भी गए परन्तु धूम्रकेतु ने कभी किसी को नमस्कार तक भी नहीं किया ! इसलिए माणिकलाल को अपने आखो पर विश्वास नहीं हो रहा था की राजा धूम्रकेतु किसी साधू बाबा की सेवा कर सकता है !

वो साधू बाबा दिखने में हष्ट पुष्ट था, उम्र में बहुत बूढ़े थे लगभग १२०-१४० वर्ष के, लेकिन उनकी उम्र का उनके शरीर से पता नहीं चल रहा था ! लम्बी सफेद दाढ़ी, काली धोती और उपर कुछ नहीं, ललाट पर भबूत से कुछ निशान बना और लम्बी जटाए ! लगभग १५० से ज्यादा उनके शिष्य और शिष्याए उनके आस पास बैठे हुए थे ! सभी मंदिर के प्रांगण में शिव की प्रतिमा के समकक्ष बैठे थे !

“तुम भी यह आये हो माणिक” माणिकलाल का ध्यान भंग हुआ, किसी ने उसके पीठ पर हाथ फेरते हुये कहा

“रमन, तो ये तुम हो “ माणिकलाल ने कहा !

रमन माणिकलाल का बचपन का मित्र था जिसने अब तक उसका साथ नहीं छोड़ा था !

“तुम यहाँ क्या कर रहे हों” रमन ने पूछा !

“कुछ नहीं, बस ढोल और नगाडो की आवाज बहुत जोरो से आ रही थी तो सोचा की देख आऊ ! लेकिन यहाँ आया तो कुछ पता भी रही चल रहा है की क्या हो रहा है”

“सामने से हट, मुझे देखने दे “

रमन माणिकलाल को उधर करके भीड़ से थोडा आये चला गया और सामने का द्रश्य देखता है ! एक बार में तो वो भी चौक गया लेकिन उसे कुछ याद आया “अच्छा तो ये बात है “

“क्या हुआ, क्या तुम जानते हो “

“पूरा तो नहीं, लेकिन थोडा थोडा “

“में जब छोटा था तब मेरे दादाजी ने इनके बारे कुछ बताया था “ रमन ने कहा

“ क्या बताया था, जल्दी कहो”

“बहुत समय पहले की बात है जब राजाजी की उम्र ३-४ साल होगी ! तब उनको एक साप ने डस लिया था ! बड़े राजा साहब ने इनका बहुत इलाज करवाया लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा और अन्त में राजाजी की मौत हो गयी ! उस समय पुरे राज्य में मातम सा छाया हुआ था क्युकी बड़े राजाजी की एक ही संतान थी और वो भी बहुत समय बाद काफी मन्नतो के बाद पैदा हुई थी ! बड़े राजाजी इनको बहुत प्यार करते थे और अब वे पूरी तरह टूट चुके थे ! २ दिनों बाद शव का अंतिम संस्कार था और पूरा राज घराना शौक में डूबा हुआ था “

“ यदि राजाजी मर चुके थे तो ये कौन है “ बिच में ही माणिकलाल ने पूछा !

“अरे मेरी पहले पूरी बात तो सुन लिया करो ! अब सुनो “

“जैसे ही शव का अंतिम संस्कार करने के लिए नदी के पास वाले शमसान में जा रहे थे तभी एक काले कपड़ो वाला एक साधू दिखाई दिया ! उस साधू ने बड़े राजाजी से कहा ही वह उस शव को वापस जिन्दा कर देगा लेकिन उसकी एक शर्त थी ! और उसकी शर्त............”

अचानक रमन और माणिकलाल को भीड़ में से किसी ने धक्का दिया !
Behtreen kahani ki shuruwaat mitr
Sath hi ek sunder adhyaay
 

Nevil singh

Well-Known Member
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53,000
173
हेल्लो दोस्तों
ये मेरी पहली कहानी है और ये बहुत लम्बी जाने वाली है
पसंद आये तो comment करके बताना दोस्तों की आपको इसकी शुरवात कैसी लगी ताकि में आगे भी पोस्ट करता रहू
thank you
Laajwaab mitr
 

Nevil singh

Well-Known Member
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“बहुत समय पहले की बात है जब राजाजी की उम्र ३-४ साल होगी ! तब उनको एक साप ने डस लिया था ! बड़े राजा साहब ने इनका बहुत इलाज करवाया लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा और अन्त में राजाजी की मौत हो गयी ! उस समय पुरे राज्य में मातम सा छाया हुआ था क्युकी बड़े राजाजी की एक ही संतान थी और वो भी बहुत समय बाद काफी मन्नतो के बाद पैदा हुई थी ! बड़े राजाजी इनको बहुत प्यार करते थे और अब वे पूरी तरह टूट चुके थे ! २ दिनों बाद शव का अंतिम संस्कार था और पूरा राज घराना शौक में डूबा हुआ था “

“ यदि राजाजी मर चुके थे तो ये कौन है “ बिच में ही माणिकलाल ने पूछा !

“अरे मेरी पहले पूरी बात तो सुन लिया करो ! अब सुनो “

“जैसे ही शव का अंतिम संस्कार करने के लिए नदी के पास वाले शमसान में जा रहे थे तभी एक काले कपड़ो वाला एक साधू दिखाई दिया ! उस साधू ने बड़े राजाजी से कहा ही वह उस शव को वापस जिन्दा कर देगा लेकिन उसकी एक शर्त थी ! और उसकी शर्त............”

अचानक रमन और माणिकलाल को भीड़ में से किसी ने धक्का दिया !

“धन का इंतजाम हो गया माणिक चाचा ?” एक लड़के ने कहा !

इस आवाज को सुनते ही रमन के आख में एक मिर्ची सी लगी ! ये इस गाव के एकमात्र साहूकार का एकमात्र बेटा था, कालू : बहुत ही अड़ियल और बेशर्म था ! अपने पिता, राजन सेठ से बिलकुल विपरीत था !

राजन सेठ, इनका व्यहार अपने साहूकार के व्यक्तिव्य से बिलकुल अलग था ! साधारण सा दिखने वाला शरीर, सरल वेशभूषा और सहज ही उसकी भाषा ! कोई भी अनजान व्यक्ति ये सोच भी नहीं सकता की उसका दूर-दूर तक कोई साहूकार का सम्बन्ध भी हो सकता था ! वह कर बार निर्धनों को बिना सूद के ही धन दे दिया करता था और समय ख़तम होने पर उन पर जोर भी नहीं देता था ! एसा नहीं की राजन सेठ के इस व्यहार से उसे साहुकारी में बहुत फायदा बल्कि कभी-कभी तो वह घाटे में भी चला जाता था लेकिन अपने पूर्वजो की छोड़ी गई इतनी धन सम्पदा, जो लोगो के खून पसीने से वसूली गई थी, कभी कम नहीं पड़ी थी !

कालू, जिसका सही नाम कालिसेठ था, उसके इस अड़ियल स्वाभाव के कारण सब उसके पीठ पीछे उसे कालू ही कहते थे ! वैसे कालू की गाव में कोई खास इज्जत नहीं थी,बल्कि राजन सेठ से द्वारा दिया गया धन के कारण लोगो को कालू को इज्जत देनी पड़ती थी ! कालू का स्वाभाव अपने पुरखो के जैसा ही था : वाक-पटुकता, लालची, लोगो से जबरदस्ती धन वसूलना, कभी कभार अचानक सूद बढ़ा देना ! लेकिन उसके पिता के कारण उसकी बिलकुल नहीं चलती थी !



“सुन कालू सेठ, धन का सम्बन्ध तेरे पिता और माणिक के बिच है, उससे तेरा कोई सम्बन्ध नहीं है” रमन ने थोडा उग्र होते हुए कहा !

“अरे अरे रमन चाचा, जरा शांत, में तो बस पूछ रहा था” कालू ने अपना बचाव करते हुए कहा !

पुरे गाव में सिर्फ एक्का-दुक्का लोग ही थे जिसने राजनसेठ ने उधार धन नहीं लिया था जिनमे से एक था रमन ! रमन प्रकति से थोडा उग्र था, उसके बाप-दादा सभी सेना में थे लेकिन रमन को खेती-बाड़ी ही पसंद थी इसीलिए वो सेना में नहीं गया, लेकिन वह एक सेनिक जीवट वाला ही था ! कालू अपने बुरे बर्ताव के कारण कई बार रमन से पिट भी चूका था

इसीलिए वो रमन से संभलकर ही रहता है !

कालू रमन के उग्र स्वाभाव को देखकर थोडा भीड़ से आगे चला जाता है !

“हा तो रमन, तुम साधूबाबा के बारे में क्या शर्त बता रहे थे ?” माणिक ने रमन को शांत कराने के लिए पूछा ताकि उसका ध्यान कालू से हट जाये !

“अरे ये कालू भी ना, पूरा दिमाख ख़राब कर देता है” रमन ने अपने गुस्से को शांत करते हुए कहा

“उसको छोड़ो, तुम आगे उस शर्त के बारे में बताओ” माणिक ने कहा

‘अब सुनो, साधुबाबा की शर्त ये थी की जब भी वो वापस आये तो बड़े राजाजी या उनके वंश को उनकी बात मानकर उनका एक काम करना होगा नहीं तो वो उनकी वंशबेली को समाप्त कर देंगे’

‘आखिर, उस बूढ़े बाप के पुत्र मोह ने उनकी इस शर्त को मानने से मजबूर कर दिया’

‘बाद में साधुबाबा ने उस शव को लेकर चले गए और पुरे 3 दिनों ले बाद उसको जीवित कर वापस महल ले आये’

तब से लेकर आज तक साधुबाबा कभी नहीं आये, उनका सीधा आज ही दर्शन हो पाया है

‘अच्छा, तभी राजाजी इतने उलजन में दिख रहे है’ माणिक मन में सोच रहा था

“अरे हां माणिक, तुम सुरभि के बारे में इनसे क्यों नहीं पूछ लेते, कोई तो रास्ता जरुर होगा इनके पास” रमन ने भरोसा दिलाते हुए कहा

ये बात सुनकर माणिकलाल के मन में एक आशा की किरण सी जाग गई

‘हा हा ये साधुबाबा सुरभि को जरुर ठीक कर देंगे, ये तो मुर्दों को भी ठीक कर सकते है, आखिरकार बरसो के बाद मेरी बच्ची ठीक हो सकेगी’ अपनी मन की कल्पनाओ में माणिकलाल खुश हो रहा था

तभी अचानक भीड़ में कुछ हल्ला सा हो उठा ! माणिकलाल अपने मन की कल्पनाओ से बहार आकर देखता है की अचानक वो गाव का पागल बुड्ढा उस विशाल शिव प्रतिमा के पीछे से बहार निकलता है और इतनी फुर्ती के साथ वो राजा के सैनिको के बीच से निकलकर उस साधू के पास पहुच जाता है जिससे सारे लोग और राजा भी चौक जाते है ! इस पागल बुड्ढ़े को एसा गाव में करते हुए किसी ने कभी नहीं देखा था

तभी वो होता है जिसे देख कर सारे लोग और यहाँ तक की राजा भी हक्का-बक्का रह जाता है
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Nevil singh

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तभी अचानक भीड़ में कुछ हल्ला सा हो उठा ! माणिकलाल अपने मन की कल्पनाओ से बहार आकर देखता है की अचानक वो गाव का पागल बुड्ढा उस विशाल शिव प्रतिमा के पीछे से बहार निकलता है और इतनी फुर्ती के साथ वो राजा के सैनिको के बीच से निकलकर उस साधू के पास पहुच जाता है जिससे सारे लोग और राजा भी चौक जाते है ! इस पागल बुड्ढ़े को एसा गाव में करते हुए किसी ने कभी नहीं देखा था

तभी वो होता है जिसे देख कर सारे लोग और यहाँ तक की राजा भी हक्का-बक्का रह जाता है

वो पागल बुड्ढा, साधू के आखो में आखे डालता हुआ, धीरे-धीरे उसके होठ साधू के कानो के पास ले जाकर कुछ बोलता है और अचानक से चिल्लाता और हसता हुआ वो बुड्ढा तेजी से दौड़ता हुआ मंदिर से बहार चला जाता है !

वो साधू डर के मारे जड़वत हो जाता है मानो अभी उसके सामने मौत नाचकर चली गयी हो ! धीरे-धीरे उसके आखो के सामने अन्धकार छा जाता है और वो वही बैठे-बैठे नीचे गिर पड़ता है





रात्रि का दूसरा प्रहर, निशिथ चल रहा था ! मंदिर के प्रांगण में राजा और उन साधुबाबा का तम्बू लगा दिया गया था और राजा के सैनिक, मंदिर की चारदीवारी की सुरक्षा कर रहे थे, कुछ सैनिक अपना प्रहर ख़त्म होते ही अपनी स्तिथि छोड़ रहे थे उसकी जगह पर नए सैनिक जगह ले रहे थे !

सप्तोश, जो उस साधूबाबा का सबसे पुराना शिष्य था वो राजवैद्यीके साथ साधू की जडीबुटी कर रहा था ! राजवैद्यी, सुबह से कई बार साधू की नाडी देख चुकी थी, कई परिक्षण कर चुकी थी लेकिन उसको कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था की उनको हुआ क्या था !

सप्तोश भी आयुर्वेद का परम ज्ञाता था उसके गुरु ने उसको अपना सारा ज्ञान उसको दिया हुआ था लेकिन आज उसे अपने गुरु की हालात उसके पुरे ज्ञान के विपरीत दिखाई पड़ रही थी इसीलिए उसने राजवैद्यी का सहारा लिया था !

राजवैद्यी चेत्री, वह हमेशा यात्रा के दौरान राजा के साथ ही रहती थी ! वो दिखने में कुरूप थी लेकिन उसको कुरूप कहना उसके ज्ञान का अपमान था ! उसका सौन्दर्य, उसका ज्ञान और उसकी वैज्ञानिक सोच थी जो उसको हमेशा दुसरो से महान रखती थी ! वह हमेशा हर किसी की मदद के लिए तत्पर रहती थी ! राजा को उसकी वजह से कभी परेशानी का सामना नहीं करना पड़ा था ! लेकिन आज जैसे उसकी ज्ञान की परीक्षा थी !

लगभग रात्रि का दूसरा प्रहर भी बीत चूका था ! दोनों को समझ नहीं आ रहा था की अब क्या करे ! दोनों अपनी-अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे थे, दोनों ही तरफ से मामला सर के उपर था !

सप्तोश, जो की प्रधान शिष्य भी था, वो तम्बू से बाहर निकलता है और उपर आसमान को देखता है, आज उसने तारो की गणना भी सही करी थी लेकिन एसी अनहोनी का अंदाजा उसे बिलकुल नहीं था ! साधू के सारे शिष्य और शिष्याऐ, मंदिर प्रांगण में खुले आकाश के नीचे बैठे हुए थे ! सभी के आखो से नींद गायब थी !

“कुछ पता चला, गुरूजी को क्या हुआ है” डामरी ने पूछा !

डामरी, साधूबाबा की शिष्याओ में से एक थी जिसने अभी-अभी साधुबाबा का शिष्यत्व स्वीकार किया था !

“नहीं डामरी, अभी तक उनकी अवस्था का कुछ पता नहीं चला” सप्तोश ने हताश होते हुए कहा !

“और राजवैद्यी, उनका क्या कहना है” डामरी ने फिर पूछा !

“वो भी अपनी पूरी कोशिश कर रही है”

सप्तोश ने डामरी को नजरंदाज करते हुए शिव की प्रतिमा को देखते हुए कहा ! अचानक सप्तोश को कुछ याद आया और वो जल्दी से राजा के तम्बू की और चल पड़ा और डामरी उसको देखती ही रह गयी !

राजा धूम्रकेतु, अपने तम्बू में कुछ परेशान से उधेड़बुन में इधर-उधर टहल रहे थे ! राजा सुबह से ही चिंतित थे, पहली तो ये की उनको जल्दी-जल्दी में अपनी राजधानी से यहाँ आना पड़ा था जिससे उसने अपने राज्य का कार्यभाल अपने बड़े बेटे अश्वनी को सौप कर आया था जो अभी राज्य, नीति और व्यवहार सिख ही रहा था और दूसरा साधुबाबा के यहाँ आने का और तीसरा और सबसे बड़ी परेशानी यह थी की अब क्या करा जाये ! इस अवस्था में वो, साधुबाबा और उनके शिष्यों को छोड़ भी नहीं सकता था और ना ही साधुबाबा के कुछ उपचार का पता चल रहा था तभी सप्तोश बिना राजा को सूचना दिए सीधे ही राजा के सामने आ जाता है ! जिससे राजा का ध्यान भंग हो जाता है ! राजा के द्वारपालों में हिम्मत नहीं थी थी वो साधुबाबा के प्रधान शिष्य, सप्तोश को रोक सके !

“सुन राजन, अगर मेरे गुरु को कुछ भी हुआ तो में इस पुरे गाव का नाश कर दूंगा” अपने शक्तियों के अभिमान और क्रोधवश सप्तोश बोल उठा, जिससे राजा थोडा डर गया !

राजा का डरना भी जायज था क्योकि ५५ से ६० वर्ष का सप्तोश को उसके गुरु ने काफी कुछ सिखा भी दिया था और काफी परालौकिक शक्तिया भी अर्जित कर ली थी

“सुन, उस पागल बुड्ढ़े के बारे के कुछ पता चला, जिसके कारण ये सब घटित हुआ है” सप्तोश ने उसी क्रोध में कहा

“हमारे गुप्तचर और खोजी, सुबह से उस की तलाश में है लेकिन उसका अब तक कोई पता नहीं चला” राजा ने कहा

इसके आगे सप्तोश भी कुछ नहीं कह सकता था क्योकि उसने भी अपनी तरफ से, अपनी शक्तियों की सहायता से पूरी कोशिश कर ली थी लेकिन उस पागल का कोई पता नहीं चला था मानो उसका अस्तित्व ही नहीं हो

“चेत्री का इसके बारे में क्या कहना है” राजा ने माहोल को थोडा शांत करने के लिए कहा !

सप्तोश कुछ कहने ही वाला था की एक सैनिक दौड़ता हुआ आता है और कहता है की......
Bahad sunder update mitr
 
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