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Fantasy वो कौन था

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Chutiyadr

Well-Known Member
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Maaf karna dosto
Kal se kuch jaruri kaam ki vajah se aaj update nahi aa payega
Agla update aaj raat ko ya kal subah aa jayega
koi bat nahi dost , ham itjaar karenge :)
 

manojmn37

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‘शमशान’ ये शब्द सुनते ही सप्तोश के कान खड़े हो गए ‘हा, शायद ये सही कह रहे है मेरी मांत्रिक शक्तिया शमशान में प्रवेश नहीं कर सकती, तभी वो बुड्ढा अब तक बचा रहा है’

“हमें जीजुशी चाहिए दोजू” समय की कमी को देखते हुए चेत्री तुरंत मुद्दे पर आ जाती है “क्या तुम्हारे पास वो अभी भी है”

दोजू ‘हा’ में सर जुकाता है

“जल्दी से अपना दाम बताओ, हमें जल्दी से निकलना है” चेत्री बिलकुल भी समय व्यर्थ नहीं गवाना नहीं चाहती थी !

“लेकिन जीजुशी की जरुरत तुम्हे नही इस मांत्रिक को है, मोल इसे ही चुकाना होगा” दोजू ने कहा जैसे कोई खजाना हाथ में लग गया हो !

“क्या चाहिए तुम्हे ?” सप्तोश मुश्किल से पहली बार इस झोपड़े में आकर कुछ बोला था !

इस पर दोजू ने सप्तोश के आखो में आखे डालकर मुस्कुराते हुए धीरे ने कहा

“कौड़म”

ये सुनते ही जैसे सप्तोश की जान हलक में आ गई !

‘पुरे ८ साल लगे थे इसे हासिल करने में’

‘कितनी मेहनत से प्राप्त किया था’

‘पूरी जान लगा दी थी’

‘और आज इसे कुछ पत्तो के बदले में मेरी ८ साल की कमाई दे दू’

“इतना मत सोचो मांत्रिक, तेरे गुरु की जान की कीमत ये तो कुछ भी नहीं है, तेरी जगह अगर तेरा गुरु होता तो उससे तो में कुमुदिनी ही मांग लेता” दोजू ने बड़े ही आत्मविश्वास और चतुराई के साथ कहा !

‘क्या !!!’

‘बाबा के पास कुमुदिनी भी है’

‘लेकिन कैसे’

‘इतने वर्षो से में बाबा के साथ रहा हु मुझे तक पता नहीं चला’

‘आखिर है कौन ये आदमी’

“ये दुनिया तेरी सोच से परे है बालक, आखिर तू है तो एक मानव का बच्चा” दोजू ने ये शब्द गोपनीयता ढंग से कहा और हल्का का मुस्कुरा दिया !

पहली बार दोजू ने सप्तोश को ‘बालक’ कह के संबोधित किया था ! सप्तोश अपने आप को बहुत ही हीन और छोटा महसूस कर रहा था, इतना छोटा तो वह अपने गुरु के सामने भी कभी महसूस नहीं किया था !

चेत्री को दोजू की बाते कुछ भी समझ नहीं आ रही थी लेकिन एक वैद्य होने के नाते उसे समय की कद्र भी उसे पता था की दोजू की रहस्यमयी बाते कभी पूरी नहीं होगी और वो अपनी कीमत लेकर ही मानेगा पर उषा का प्रहर शुरू ही हुआ था

“दोजू को जो भी चाहिए उसे दे दो बाबा सप्तोश, हमारे पास समय बहुत कम है”

सप्तोश भी समय की चाल समाज रहा था लेकिन वह कौड़म को इतनी आसानी के साथ नहीं गवाना चाहता था, वो उसको बचने की कम-से-मन एक आखिरी कोशिश तो करना ही चाहता था !

यही तो सिखाया था उसके गुरु ने, “चाहे समय कैसा भी हो, स्तिथि कैसी भी हो, हालत कितना भी मझबूर कर दे झुकाने को लेकिन जो आसानी से हार मान लेना है उसी समय उसकी आत्मा भी मर जाती है, फिर जीवन के हर कदम पर उसको चैन नहीं मिलता है” इसी के साथ वह एक कोशिश करता है

‘अपने इष्टदेव को याद कर, मन-ही-मन एक मंत्र का स्मरण करता है’

“तेरी सारी कोशिशे यहाँ व्यर्थ है बालक, तू अभी भी उस मुकाम तक नहीं पंहुचा है, तेरा कंसौल यहाँ कुछ काम नहीं करेगा” दोजू थोडा उत्तेजित स्वर में बोलता है

कंसौल एक अनिष्ट मंत्र है जिससे शत्रु के गुर्दे में अचानक दर्द उत्पन्न होता है और वो खून की उल्टिया करने लगता है, २ सप्ताह तक वो शय्या से नहीं उठ पाता है

सप्तोश अपनी पहली शुरुआत ही अपने सबसे शक्तिशाली मंत्र से करता है लेकिन उसका मन्त्र जागने से पहले ही उसकी काट हो जाती है, इससे वह हक्का-बक्का रह जाता है

“लेकिन आपको उसकी क्यों जरुरत है”

पहली बार सप्तोश उसको सम्मान के साथ बोलता है

“इलाज के मोल में इलाज, मुझे भी एक लड़की के इलाज के लिए इसकी जरुरत है, जिसके लिए में जीजुशी ली थी” दोजू चेत्री की तरफ देखकर बोलता है

“लेकिन उस लड़की का कोई इलाज संभव नहीं है दोजू, तुम उसे जीवन भर शय्या पर ही देख पाओगे !

“ये प्रकति बहुत ही अजीब और रहस्यों से भी भरी है राजवैद्यीजी” उसी रहस्यपूर्ण ढंग से दोजू बोलता है

समय की कमी को देखता हुआ सप्तोश आखिर कौड़म देने को तैयार हो जाता है

वह अपने थैले से एक मिश्र धातु का एक छोटा सा गोल डिब्बा निकलता है और उसे धीरे से देखते हुए दोजू के आगे बढाता है

दोजू मुस्कुराता हुआ वो डिब्बा ले लेता है और उसके बदले में उसे जीजुशी दे देता है !

अब ज्यादा देर ना करते हुए वह जीजुशी को चेत्री के हाथो में थमा देता है और जल्दी दे उस झोपड़े से बाहर निकलता है

बाहर निकलते ही वह अपने आप को एक स्वतंत्र कैदी के रूप में महसूस करता है ! चेत्री के मन अभी अनेको सवाल थे लेकिन समय की गंभीरता को समझते हुए वो मंदिर की दिशा में चल पड़ती है

दोजू वही अपने झोपड़े में बैठा हुआ मुस्कुराते हुए उन दोनों को जाते हुए देखता है

थोड़ी देर बाद वह अपनी जगह से उठता है और वापस अपने झोपड़े के पीछे चला जाता है, वहा आधे जले अंगारों के पास बैठकर सुबह की हलकी ठंडी में थोड़ी तपीश महसूस करता है ! वह लकड़ी से अंगारों को थोडा साफ़ करके उसे अपनी छोटी सी मिटटी की चिलम में भरता है और पास में ही मछुआरो द्वारा आ रहे सुबह के लोकगीतों की आवाज का आनंद लेते हुए धीरे-धीरे चिलम का कश खिचता है !

सुबह की लालिमा का उदय होता है



पहला अध्याय समाप्त
 

manojmn37

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कहानी का पहला अध्याय समाप्त हो चूका है
इसका पहला अध्याय बहुत छोटा है, इसमें सिर्फ कहानी की भूमिका और रुपरेखा ही तय की गई है, असली कहानी अब शुरू होंगी
कल से कहानी का दूसरा अध्याय शुरू होगा
आप सभी का झुड़े रहने का और प्रोत्साहित करने के लिए दिल से धन्यवाद :thankyou:
 
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