Chutiyadr
Well-Known Member
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Are manoj bhai index pahle page par banate hai...Aap 6th page par bana diye..
Koi nahi 1st page me copy past mar dijiye...
Aise yanha rahe to bhi koi problem nahi hai
bahut badiya writing aur khoob bhalo story ..द्वितीय अध्याय
सुबह का समय, उषा काल की समाप्ति !
बहुद ही अद्भुत नजारा होता है ! सूर्य की लालिमा चारो तरफ बिखरी रहती है, वातावरण में नमी का अहसास मन को छुकर जा रही थी मानो ऐसा लग रहा हो जैसे एक माँ अपने प्यारे लाडले को ममता भरे स्पर्श से जगा रही हो ! उसी तरह माँ प्रकति भी अपनी संतान को हल्की-हल्की ठंडी वायु के स्पर्श से सबको अपने कर्म की और प्रेरित कर रही थी !
सूर्य भी मानो प्रकति के प्रेमवश अपनी किरणों से आखो को शीतलता प्रदान कर रहे थे, जंगलो से आ रही मोर की मीठी धुन कर्मचक्र के आगाज का शंखनाद कर रहे थे !
कद्पी की प्राकतिक सम्पदा थी ही बहुत निराली,
हा, कद्पी नाम ही था उस गाव का,
स्थानीय भाषा में सब उसको इसी नाम से पुकारते थे
वैसे सही नाम था उसका ‘कदर्पी’
अपने नाम के अनुरूप ही यह गाव अपने अन्दर बहुत सारे रहस्यों और ज्ञान का भंडार भरे हुए था,
लेकिन मनुष्य,
इस प्रकति में चंद समय का मेहमान,
अपने आपको ही इसका ईश्वर समझने लगता है,
बड़ा ही स्वार्थी,
कपट,
और बहुत से आडम्बरो के मध्य छुपा होता है ये,
जिनमे से एक था बाबा बसोठा,
अपने जीवन में बहुत से चल-कपट किये,
बहुत से राजा-महाराजो को अपने शब्दों के मायाजाल में फसाकर अपना स्वार्थ सिद्ध किया था, वैसे था भी वो बहुत शक्तिशाली, कितने ही प्रेत और महाप्रेतो को पकड़ कर उनसे चाकरी करवाई थी, बहुत से युद्धों को अपने सिर्फ एक गर्जना से ही रुकवा दिया था, जीवन में बहुत से द्वंद्ध जीते थे कभी भी पराजीत नहीं हुआ था, इन सबके ही कारण वह बहुत अहंकारी भी था !
उसका अहंकारी होना जायज भी था,
एक साधारण से मनुष्य के पास यदि थोडा बहुत ही धन आ जाये तो भी अपने-आपको राजा समझने लगता है,
यहाँ तो बात मृत्यु को जीत लेने की थी,
लेकिन अहंकारी होना कोई गलत नहीं है पर साथ में विवेक का ना होना,
यही सबसे बड़ी भूल है,
बिना विवेक के मनुष्य निर्दयी और अत्याचारी हो जाता है,
सही गलत को पहचानना भूल जाता है,
और इसी भूल के कारण,
उसके कर्मचक्र ने उसे इस गाव में बुलाया था !
बाबा मंदिर के प्रांगण में नंदी की प्रतिमा के समकक्ष ध्यान लगाये बैठे थे,
कल जो घटना हुयी उसका चिंतन कर रहा था, ऐसा उसके जीवन में पहली बार हुआ था,
अब उसका लक्ष्य बदल चूका था जिस हेतु उसके राजा को यहाँ बुलाया था
होश आते ही बाबा ने राजा जो वापस भेज दिया था, लेकिन अपने सारे शिष्यों को भी राजा के साथ भेज दिया ताकि आगे के कार्य में उसको कोई व्यवधान न पैदा हो, कुछ गिने-चुने शिष्यों को छोड़कर !
चेत्री, जब से कल की घटनाये उसके सामने से घटी है उसको लगा की इस दुनिया में और भी बहुत कुछ है जानने के लिए समझने के लिए ! इसीलिए वह सप्तोश के साथ ही रुक जाती है !
मंदिर में बड़े-बड़े घंटो और नगाडो के साथ सुबह की पूजा हो रही थी लेकिन वो आवाजे जैसे बाबा को सुनाई भी नहीं पड़ रही थी, उसको तो बस एक ही वाक्य उसके सर में गूंज रहा था जो उस पागल ने कहा था
“स्वर्णलेखा, नहीं आई ना ? हा हां हा .......”
Are manoj bhai index pahle page par banate hai...Aap 6th page par bana diye..
Koi nahi 1st page me copy past mar dijiye...
Aise yanha rahe to bhi koi problem nahi hai
pahle to abhi jo index banaye ho usme edit me jaata aur pura copy kar lena fir use waisa hi rahne dena , fir fisrt page par jana wanha 2nd no. ka post jo apne kiya hai usme edit me jana aur use kaat kar wanha past kar dena , ye 1st page me chale jayega ...वापस 1st पेज पर कैसे पोस्ट कर सकते है ??
ya aisa bhi kar sakte ho ki jo pahla post hai use cut karke dusare no. ke post me past kar do aur 1st post me index ko past kar do ..वापस 1st पेज पर कैसे पोस्ट कर सकते है ??