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Incest वो तो है अलबेला (incest + adultery)

क्या संध्या की गलती माफी लायक है??


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Studxyz

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सभी पाठकों से निवेदन है कि कमेंट तो अपनी मर्ज़ी के हिसाब से कर लें लेकिन ये ध्यान रखें की कहानी तो लेखक अलबेले ने अपनी पटकथा व प्लाट के हिसाब से ही लिखनी है
 

brego4

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Bhai ye chudai na dikhane ka chutiyapa failane ki bajay. ...
Bachche ko bina mention kiye full flashback dikhane me to koi problem nahi honi chahiye
Ya fir bina flashback ke kahani me kuchh aur bhi interesting bacha rahne ki ummeed hai....







Ye sab suggestions kya kahani me kuchh interesting chhodeinge????

Mana adult forum me kuchh bhi logical nahi hota... Lekin chudai to hoti hai... Ya wo bhi hata deni hai

agar past mein sandhya ka jo bhi chrachter raha hai wo accha hoga agar sab ko maloom ho
 

brego4

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all 4 updates are mind blowing,

suspense bhi hai

bachpan ka dosti bhi hai

emotions bhi hai aur adulterous n incestuous sex bhi hua hai and loe is also in the air between payal and alabela

abhay ki flashback mein kuch details nikal sakti hai like what exactly was past of sandhya. how much abhay knows and how much he has been shown imaginary mirror by raman n munim ?

story is becoming very exciting waiting for next part
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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अपडेट 17




संध्या की आंखो के सामने एक लैंप जलता हुआ दिखा। और उसे उस लैंप की रौशनी में खड़ी दो लड़की दिखी। संध्या उन लड़कियों को देख कर हैरान थी। वो सोचने लगी की ये लड़कियां कौन है? और इस समय यह क्या कर रही है? अपने आप से ही सवाल करती हुई संध्या अपने कदम उन लड़कियों की तरफ बढ़ा दी।


संध्या जब नजदीक पहुंची तो देखी की वो लड़की पायल थी, जो आज लाल रंग के लहंगा पहने सिर पे चुन्नी ओढ़े हाथो में एक थाली लिए खड़ी थी।

संध्या -"अरे पायल, तू यह क्या कर रही है?"

कहते हुए संध्या की नजरे पायल के हाथ में पड़ी थाली पर पड़ी, जिसमे कपूर का दिया जल रहा था।

पायल --"ठाकुराइन जी आप? मैं वो...वो ।"

तभी संध्या ने पायल की आवाज को बीच में काटते हुए बोली...

संध्या --"कुछ बोलने की जरूरत नहीं है पायल, ये वही जगह है ना, जहां तुम और अभय बचपन से भूमि पूजन करते थे।"

संध्या की बात सुनकर पायल थोड़ा मुस्कुरा कर बोली...

पायल --"हां, लेकिन कभी सोचा नहीं था की कभी मुझे अकेले ही करना पड़ेगा।"

कहते हुए पायल की आंखो में आसूं आ गए, ये देख कर संध्या को रोक नहीं पाई और आगे बढ़कर पायल को अपने सीने से लगा लेती है, और वो भाऊक हो कर बोली...

संध्या --"बहुत प्यार करती है ना तू उसे आज भी?"

पायल एक पल के लिए तो ठाकुराइन का इतना प्यार देखकर हैरान रह गई। फिर ठाकुराइन की बातो पर गौर करते हुए बोली...

पायल --"प्यार की होता है, वो तो पता नही । लेकिन उसकी याद हर पल आती रहती है।"

पायल की बात सुनकर संध्या की आंखो में भी आसूं छलक गए और वो एक बार कस के पायल को अपने सीने से चिपका लेती है। ये सब माजरा एक पेड़ के पीछे छिप कर अभय देख रह था।

पायल को पहेली बार उसने देखा था। मासूम से खूबसूरत चेहरे को देखकर अभय की दिल किंधडकन तेज हो गया। उसे वो हर पल सताने लगा जो पल उसने पायल के साथ बिताया था। पायल की हालत उससे देखी नही जा रही थी। वो सोच भी नही सकता था की बचपन का वो एक साथ खेलकूद, एक साथ बिताए पल पायल के दिल में इस कदर बस जायेगा की वो उसे भूल नहीं पाएगी।

पायल की हालत को सोचते हुए, आज पहेली बार अभय के आंखो से भी आसू की धारा बह गई। वो तो बस आज के दिन के अहसास के लिए इस जगह आया था। की वो इस जगह को महसूस कर सके जिस जगह वो बचपन से अपने इस दोस्त के साथ छुप कर अकेले में भूमि पूजन करता था। पर उसे क्या पता था की इस जगह। का अहसास करने वो अकेला नहीं आया था, उसका बचपन को साथी भी था जिसके साथ वो भूमि पूजन करता था।

उसका दिल देह रह कर धड़क रहा था, उसके थामे कदम हर बार आगे बढ़ने को कांपते की जाकर बता दे , की मैं आ गया हु पायल, तेरा वो बचपन का दोस्त, जिसे तू आज भी बुला नही पाई है, जिसका तू आज भी इंतजार करती है, जाता दी की तेरा इंतजार की घड़ी खत्म हो गई है....

हजारों सवालों को अपने दिल से करते हुए अभय के कदम वापस पीछे की तरफ मुड़ चले, वो चाह कर भी न जा पाया बस भीगी पलकों से कुछ दूर चल कर रुकते हुए एक बार बार मुड़ कर पायल की तरफ देखता और जल्द ही वो बाग से बाहर सड़क पर आ गया था।

इधर संध्या पायल को अपने सीने से चिपकाई वो सुर्ख आवाज में बोली...

संध्य --"तू भी मुझसे बहुत नाराज़ होगी ना पायल?"

संध्या की बात सुनकर, पायल संध्या से अलग होते हुए बोली...

पायल --"आपसे नाराज़ नहीं हु मै, हां लेकिन आप जब भी बेवजह अभय को मरती थी ना। तब मुझे आप पर बहुत गुस्सा आता था। कई अभय से पूछती थी की, तुम्हारी मां तुम्हे इतना क्यूं मरती है? तो मुस्कुराते हुए बोलता था की, मारती है तो क्या हुआ बाद उसी जख्मों पर रोते हुए प्यार से मलहम भी तो लगाती है मेरी मां। थोड़ा गुस्से वाली है मेरी मां पर प्यार बहुत करती है। उसके मुंह से ये सुनकर आपके ऊपर से सारा गुस्सा चला जाता था।"

पायल की बातो ने संध्या की आंखो को दरिया बना दी। वो 3के शब्द नही बोल पाई, शायद अंदर ही अंदर तड़प रही थी और रो ना पाने की वजह से गला भी दुखने लगा था। फिर भी वो अपनी आवाज पर काबू पाते हुए बोली...

संध्या --"आज मैं भी तेरे साथ पूजा करना चाहती हूं, क्या तू इजाजत देगी मुझे?"

संध्या की बात सुनकर पायल ने मुस्कुराते हुए अपना सिर हा में हिला दिया,,


______________________________

इधर अभय पूरी तरह से सोच में डूबा था। वो कुछ फैसला नहीं कर पा रहा था की, वो अपनी सच्चाई पायल को बताए की नही, उसका दिल बेचैन था पायल से वो दूर नहीं रह सकता था। पर फिर भी वो खुद के सवालों में उलझ था। अंधेरी रात में वो सड़क पर चलते हुए हॉस्टल की तरफ जा रहा था की तभी वो सड़क के एक नुक्कड़ पर पहुंचा....


उस नुक्कड़ पर एक बूकन थी। जहा पे कुछ गांव के लड़के खड़े थे। अभय के कानो में एक लड़के की आवाज पड़ी...

"यार अजय, कितना सिगरेट पिएगा तू, तेरे बापू को पता चला ना टांगे तोड़ देंगे तेरी।"

अभय के कानो में अजय नाम सुनाई देते ही, वो अजय को देखने लगा, अजय को देखते ही उसी चेहरे पर एक मुस्कान सी फैल गई और खुद से बोला....

"अच्छा, तो मै कुछ दिनों के लिए गांव की छोड़ा, ये इतना बिगाड़ गया। खबर तो लेनी पड़ेगी इसकी......यार जो है अपना।"

खुद से कहते हु अभय उन लडको की तरफ बढ़ा, अभय जैसे ही उनके नजदीक पहुंचा, अजय की नजर अचानक ही अभय के ऊपर पड़ी...

सिगरेट को नीचे ज़मीन पर फेंकते हुए वो झट से बोला...

अजय --"अरे भाई तुम, गांव की तरफ चल रहे हो, वैसे भी आज खास तुम्हारे लिए ही तो प्रोग्राम किया है।"

अजय की बात सुनकर अभय मुस्कुराते हुए बोला......

अभय --"हां प्रोग्राम तो खास है, लेकिन इस बार भी तू ही सरपंच की धोती में चूहा छोड़ेगा...।

"नही देख यार, हर बार मैं ही करता हु इस बार तू...."

कहते हुए अजय चुप हो गया, अजय के चेहरे के भाव इतनी जल्दी बदले की गिरगिट भी न बदल पाए। उसके तो होश ही उड़ गए, सिर चकरा गया और झट से बोला...

अजय --"तू....तुम्हे कै...कैसे पता की मैं सरपंच के धोती में चूहा छोड़ता था।"

अजय की बात सुनकर, अभय ने आगे बढ़ते हुए अजय को अपने गले से लगा लिया और प्यार से बोला...

अभय --"इतना भी नही बदला हूं, की तू अपने यार को ही नही पहचाना।"

गले लगते ही अजय का शरीर पूरा कांप सा गया, उसके चेहरे पर अजीब सी शांति और दिल में ठंडक वाला तूफान उठा लगा। कस कर अभय को गले लगाते हुए अजय रोने लगा....

अजय इस तरह रो रह था मानो कोई बच तो रह था। अभय और अजय आज अपनी यारी में एक दूर के गले लगे रो रह थे।

अजय --"कहा चला गया था यार, बहुत याद आती थी यार तेरी।"

अजय की बात सुनकर, अभय भी अपनी भीग चुकी आंखो को खोलते हुए सुर्ख लहज़े में बोला...

अभय --"जिंदगी क्या है, वो ही सीखने गया था। पर अब तो आ गया ना।"

कहते हुए अभय अजय से अलग हो जाता है, अभय अजय का चेहरा देखते हुए बोला...

अभय --"अरे तू तो मेरा शेर है, तू कब से रोने लगा। अब ये रोना धोना बंद कर, और हा एक बात...."

इससे पहले की अभय कुछ और बोलता वहा खड़े 3 और लड़के अभय के गले लग जाते है...

"मुझे पहेचान....मैं पप्पू, जिसे तुमने आम के पेड़ से नीचे धकेल दिया था और हाथ में मंच आ गई थी।"

पप्पू की बात सुनकर अभय बोला...

अभय --"हा तो वो आम भी तो तुझे ही चाहिए था ना।"

कहते हुए सब हंस पड़ते है....

"मैं अमित, और मै राजू....।"

अभय --"अरे मेरे यारो, सब को पहेचान गया । लेकिन एक बात ध्यान से सुनो,, ये बात की मैं ही अभय हूं, किसीको पता नही चलाना चाहिए।"

अभय अभि बोल ही रहा थे की, अजय एक बार भीर से अभय के गले लग जाता है....

अभय --"कुछ ज्यादा नही हो रह है अजय, लोग देखेंगे तो कुछ और न समझ ले...।

अभय की बात पर सब हंसन लगे....की तभी उस नुक्कड़ पर एक कार आ कर रुकी।

उस कार को देखते ही अभय समझ गया की ये कार संध्या की है। संध्या जैसे ही कार से उतरी उसकी नजर अभय पर पड़ी।

कार से पायल और और उसके साथ उसकी सहेली भी नीचे उतरती है। नुक्कड़ पर लगी बिजली के खंबे में जल रही लाइट की रौशनी में , एक बार फ़िर से पायल का चांद सा चेहरा अभय के सामने था।

पायल को देख कर अभय ठंडी सांस लेने लगता है। उसका पूरा ध्यान पायल पर ही था। अभय को इस तरह अपनी तरफ देख कर पायल भी हैरान हो जाति है।

तभी पायल के पास खड़ी उसकी सहेली बोली...

"देख पायल, यही वो लड़का है जिसकी वजह से हमे हमारे खेत मिल गए।"

अपनी सहेली की बात सुनकर पायल ने कुछ बोलाब्तो नही, पर अपनी करी कजरारी आंखो से एक नजर अभय की तरफ देखती है। पायल की नजर अभय की नजरों से जा मिलती है, दोनो कुछ पल के लिए एक दूसरे को देखते रहते है। संध्या भी जब देखती है की दोनो की नजरे आपस में टकरा गई है तो वो भी चुप चाप कुछ समय के लिए खड़ी रहती है।

संध्या अपनी नज़रे नीचे झुका लेती है और खुद से बोलती है...

"जिसकाबती इंतजार कर रही थी पायल, ये वही है। मैं तो अपने बेटे को चाह कर भी गले नही लगा पा रही हूं, पर तू , तू तो अपने बचपन के प्यार से उसके सीने से लिपट सकती है।"

संध्या यहीबसब सोच हीं रही थी की, तभी पायल सीधा जाकर कार में बैठ जाती है। पायल को अपनी आंखो से ओझल पाते ही। अभय भी भी जमीन पर आबजाता है.....

संध्या ने जब पायल को कार में बैठते देखा तो, उसने अभय की तरफ देखते हुए बोली...

संध्या --"गांव की तरफ जा रहे हो? आओ छोड़ देती हूं मैं।"

संध्या की बात सुनते हुए, अभि एक पल के लिए मुस्कुराया और फिर बोला।

अभि --"शुक्रिया आप का।"

कहते हुए अभि, अजय की तरफ मुड़ते हुए कुछ इशारा करता है। अजय अभि का इशारा समझ जाता है की वो पायल के साथ जा रहा है...

अजय भी मुस्कुराते हुए हां का इशारा करता है...और फिर अभि भी कार में जाकर बैठ जाता है।

अभि कार की आगे वाली सीट पर बैठा था, और पायल कार की पीछे वाली सीट पे। संध्या कार की ड्राइविंग सीट पर बैठी कार को स्टार्ट करते हुए गांव की तरफ बढ़ चलती है।

अभि का दिल बार बार पायल को देखने का कर रहा था। मगर पायल पीछे वाली सीट पर बैठी थी। उसके पास कोई बहाना भी नही था की वो पायल से कैसे बात करे? वो बेचैन था, और उस बेचैनी में वो बार बार कभी इधर देखता तो कभी उधर, मगर पीछे नहीं देख पा रहा था। उसकी बेचैनी संध्या समझ चुकी थी,

संध्या --"अरे पायल, इनसे मिली क्या तुम? ये तुम्हारे कॉलेज में ही पढ़ने आया है। और तुम्हारे ही क्लास में है।"

संध्या का इतना बोलना था की, अभय ने झट से पीछे मुड़ते हुए पायल को देखते हुए बोला...

अभि --"हाय...! तो तुम भी मेरे क्लास में पढ़ती हो?"

अभि का सवाल थोड़ा फनी था, पर उसने जान बूझ कर ये बोला था।

अभि की बात सुनकर पायल अपना मुंह दूसरे तरफ घुमाते हुए विंडो से बाहर देखते हुए बोली...

पायल --"मैं नही, तुम मेरे क्लास में पढ़ते हो।"

पायल की बात सुनकर, अभि मुस्कुराते हुए बोला...

अभि --"अच्छा ऐसा है क्या? वैसे तुम्हारा नाम क्या है?"

पायल अभी भी अभय की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रही थी, वो बस विंडो से बाहर ही देखते हुए बोली...

पायल --"लगता है तुम्हे कम सुनाई पड़ता है, अभि ठाकुराइन जी ने मेरा नाम लिया तुमने सुना नही क्या?"

पायल की बात सुनकर, संध्या कुछ बोलना तो चाहती थी। मगर अभय को अपने इतने करीब बैठा और खुश देख कर वो कुछ नही बोली। वो नही चाहती थी की उसकी बातो से अभि का दिमाग खराब हो।

अभि पायल को देखते हुए बोला...

अभि --"हां, वो तो सुना। पर अगर तुम अपने मुंहासे बताती तो मुझे खुशी होती।"

अभि की बात सुनकर पायल कुछ नही बोलती बस विंडो से बाहर ही देखती रहती है....

अपडेट 18



अभि ने देखा की पायल उससे बात करने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रहीं है। इस पात पर अभी पायल को देखते हुए बोला...

अभि --"लगता है तुम्हें अंधेरे में भी दिखता है? इसीलिए विंडो से बाहर झांकते हुए अंधेरे का लुफ्त उठा रही हो?"

अभय की बात पर संध्या के चेहरे पर मुस्कान बिखर गई, और वही दूसरी तरफ पायल को गुस्सा आ गया।


पायल --"तुम शांति से बैठ नहीं सकते हो क्या? तुम्हे क्या पड़ी है मैं अंधेरे में देखी चाहे उजाले में?"

पायल का गुस्सा देखकर, अभय मन ही मन बहुत खुश हो रहा था। पायल की मासूमियत गुस्से में अभि को और भी ज्यादा प्यारी लग रही थी। विंडो से अंदर आ रही हवाएं पायल के घने बालों को इस कदर बार बार बिखरा देती थी, जिसे देख कर अभि का दिल ही थम जाता। अभि का मन पायल को अपनी बाहों में भरने का कर रहा था। वो खुद को रोक नहीं पा रहा था। पर खुद को समझता की अभि वोबसामय नही आया है। अभि को पता था की एक बार के लिए उसके दोस्त इस बात को गुप्त रख सकते है की वो ही अभय है। मगर अगर वो पायल को बता दिया तो, पायल अपने आप को रोक नहीं पाएगी, और शायद अभय भी नही। और इस चक्कर में बात को सामने आने में समय नहीं लगेगा की अभय कौन है?


इधर संध्या गाड़ी चलाते हुए बार बार अभय को देखती, जो अभी चुप चाप शांति से बैठा पायल को दीवाने की तरह देख रहा था। संध्या के चेहरे पर ऐसी मुस्कान शायद ही कभी आई हो। आज वो अपने बेटे को उस नजर से देख रही थी, जो नजर न जाने कब से प्यासी थी। आज अभय भी संध्या को कुछ नही बोल रहा था। शायद उसका पूरा ध्यान पायल पर था। और ये बात संध्या जानती भी थी, मगर फिर भी उसे इस बात की खुशी थी की उसका बेटा आज उसके बगल में बैठा था। संध्या को ऐसा लग रहा था मानो उसकी जिंदगी में कुछ बहार सी आ गई हो। एक नया सा अहसास था उसके दिल में, जो उसे खुशियों में डूबा रही थी।

संध्या को ऐसा लग रहा था की काश ये सफर खत्म ही न हो, वो इसी तरह गाड़ी चलाती रहे और अभय उसके पास बैठा रहे। मगर सफर हो तो था, मंजिल पर आकर रुकना ही था। जो आ चुका था। गाड़ी गांव में दाखिल हुई, चारो तरफ शोर शराबा और जश्न का माहौल था। लोग नाच गा रहे थे। बच्चे खेल कूद रहे थे। पर अभय इस सब चका चौंध से अंजान अभि भी उसके नजरे पायल पर अटकी थी। वो तब होश में आया जब पायल कार से नीचे उतरी। अभि भी बिना देरी के कार से नीचे उतरा और उसकी नजर एक बार फिर से पायल पर अटक गई, लेकिन तब तक वह पर गांव के लोग आ गए थे।

गांव के लोग ने अभय और ठाकुराइन दोनों का अच्छे से सम्मान किया और उनके बैठने के लिए कुर्सी ले कर आए।

संध्या के सामने अभय बैठा था। संध्या की नजरे अभय को ताड़ रही थी तो वही अभय की नजरे पायल को। वो दोनो बात तो गांव वालो से कर रहे थे पर नजरे कही और ही थी।

संध्या अभय को देखते हुए खुद के मन से बोली...

"बेटा एक नजर अपनी मानकी तरफ भी देख लो, मैं भी इसी आस में बैठी हूं। पूरा प्यार प्रेमिका पर ही, मां के लिए थोड़ा भी नही, हाय रे मेरी किस्मत!!"

संध्या अपनी सोच में डूबी अपनी किस्मत को कोस रही थी, तब तक वह अजय और बाकी तीनों दोस्त भी पहुंच जाते है। अजय, अभय के पास आकर खड़ा हो जाता है, अजय भी आज बहुत खुश लग रहा था। जब अजय ने अभय को देखा की उसके नजरे बार बार पायल पे ही जा रही है तो, वो मुस्कुराते हुए पायल की तरफ बढ़ा। और पायल के नजदीक पहुंच कर बोला...


अजय --"क्या बात है पायल? तूने तो उस छोकरे को दीवाना बना दीया है, नुक्कड़ पर से ही उसकी नजर तुझपे ही अटकी है।"

अजय की बात सुनकर, पायल बोली...

पायल --"कोई पागल लगता है, कार में भी मुझे ही घूर रहा था। और अभि भी देखो, सब बैठे है फिर भी बेशर्म की तरह मुझे ही घूर रहा है। बदतमीज है।"

ये सुनकर अजय मन ही मन खुश होते हुए बोला...

अजय --"वैसे, कल मज़ा आएगा।"

पायल --"क्यूं ऐसा क्या होगा कल?"

अजय--"कल कॉलेज में जब ये तुझे इसी तरह घुरेगा, तो तेरा वो शरफिरा आशिक अमन इसकी जमकर धुलाई करेगा, तो देखने में मजा आयेगा।"

ये सुनकर पायल बोली...

पायल --"मुझे तो नही लगता।"

पायल की बात सुनकर अजय थोड़ा जानबूझ कर आश्चर्य से बोला...

अजय --"क्या नही लगता?"

पायल --"यही, की अमन इस पागल का कुछ बिगड़ पाएगा?"

पायल की बात अजय को सुकून पहुंचने जैसी थी, फिर भी वो हाव भाव बदलते हुए बोला...

अजय --"क्यूं? तू ऐसा कैसे बोल सकती है? तुझे पता नही क्या अमन के हरामीपन के बारे में।"

पायल --"पता है, पर उससे बड़ा हरामि तो मुझे ये पागल लग रहा है। देखा नही क्या तुमने इस पागल को? सांड है पूरा, हाथ है हथौड़ा, गलती से भी उस पर एक भी पड़ गया तो बेचारे का सारा बॉडी ब्लॉक हो जायेगा। उस अमन की तरह मुफ्त की रोटियां खाने वालो में से तो नही लगता ये पागल। और वैसे भी वो मुझे देख रहा है तो उस अमन का क्या जाता है?"

पायल की बाते अजय को कुछ समझ नहीं आ रही थी...

अजय --"अरे तू कहेंना क्या चाहती है?तू उसकी तारीफ भी कर रही है और एक तरफ उसे पागल भी बोल रही है। क्या मतलब है...?"

ये सुनकर पायल मुस्कुरा पड़ी.......

पायल को मुस्कुराता देख सब दंग रह गए, सालो बाद पायल आज मुस्कुराई थी...पास खड़ी उसकी सहेलियां तो मानो उनके होश ही उड़ गए हो। अजय का भी कुछ यही हाल था। पायल मुस्कुराते हुए अभि भी अभय को ही देख रही थी।

और इधर पायल को मुस्कुराता देख अभय भी मंगलू और गांव वालो से बात करते हुए मुस्कुरा पड़ता है।

सब के मुंह खुले के खुले पड़े थे। पायल की एक सहेली भागते हुए कुछ औरतों के पास गई, जहा पायल की मां शांति भी थी...

"काकी...काकी...काकी"

उस लड़की की उत्तेजित आवाज सुनकर सब औरते उसको देखते हुए बोली...

"अरे का हुआ, नीलम कहे इतना चिल्ला रही है?"

नीलम ने कुछ बोलने के बजाय अपना हाथ उठते हुए पायल की तरफ इशारा किया...

सब औरते की नजर पायल के मुस्कुराते हुए चेहरे पर पड़ी, जिसे देख कर सब के मुंह खुले के खुले रह गए। सब से ज्यादा अचंभा तो शांति को था, ना जाने कितने सालों के बाद आज उसने अपनी बेटी का खिला और मुस्कुराता हुआ चेहरा देखी थी वो।

शांति --"है भगवान, मैं कही सपना तो नहीं देख रही हूं।"

कहते हुए वो भागते हुए पायल के पास पहुंची...

पायल जब अपनी मां को देखती है तो उसकी मां रो रही थी। ये देख कर पायल झट से बोल पड़ी...


पायल --"मां, तू रो क्यूं रही है?"

शांति --"तू , मुस्कुरा रही थी मेरी लाडो। एक बार फिर से मुस्कुरा ना।"

ये सुन कर पायल इस बार सिर्फ मुस्कुराई ही नहीं बल्कि खिलखिला कर हंस पड़ी। सभी औरते और लड़किया भी पायल का खूबसूरत चेहरा देख कर खुशी से झूम उठी। पायल की जवानी का ये पहेली मुस्कान थी, जो आज सबने देखा था। वाकई मुस्कान जानलेवा था। पर शायद ये मुस्कान किसी और के लिए था...

पायल --"हो गया, मुस्कुरा दी मैंने मेरी मां। अब तो तू रोना बंद कर।"

ये सुनकर शांति भी मुस्कुरा पड़ी, शांति को नही पता था की उसकी बेटी किस वजह से आज खुश है?किस कारण वो मुस्कुरा रही थी? और शायद जानना भी नही चाहती थी, उसके लिए तो सबसे बड़ी बात यही थी की, बरसो बाद उसकी फूल जैसी बेटी का मुरझाया चेहरा गुलाब की तरह खिला था।

अजय को कही न कही पायल की मुस्कान की वजह पता चल तरह था। पर वो ये बात जनता था की, अगर अभय ने उससे अपनी पहेचान गुप्त रखने के लिए बोला है तो, वो कार में अपनी मां और नीलम के सामने अपनी पहेचान पायल को नही बताएगा।

अजय मन में....

"क्या माजरा है? क्या पायल ने अभय को पहेचान लिया है? पर मैं तो नही पहेचान पाया, जबकि अभय मेरा लंगोटिया यार था। क्या पता? वैसे भी पायल और अभय सबसे ज्यादा एक दूसरे के साथ रहते थे, शायद पायल ने पहेचान लिया है। नही तो दुनिया की ऐसी कोई खुशी नही जो पायल के चेहरे की मुस्कान बन सके सिवाय अभय के।"

सोचते हुए अजय की नजर अभय पर पड़ी जो इस वक्त पायल को ही देख रहा था, और नजर घुमा कर पायल की ओर देखा तो पायल अभय को देख रही थी...
Abhay ne payal ko dekha jo bhumi pujan ke liye aam ke bagiche me khadi thi, Abhay abhi Isi kash-me-kash me hai ki Vo btaye ya nhi payal ko pr apne dosto ko dekh kr sab bta diya hai or unse Pahchan chhupane ka bhi kaha hai...

Payal ki najro me najre daal chuka hai Abhay jiske chalte payal ko pta Chal gya hai ki yhi uska Abhay hai pr itne dino baad dekha to khud ko control kar gyi Thakurain or Abhay ke dosto ke samne, Isiliye vo bahar khidki ki taraf dekh rhi thi, apne jajbat chhupate huye...

Payal ko hasta hua dekhna Uski ma or baki ke ganv valo ke liye kisi tyohar se kam nhi tha, vo ladki Jisne Abhay ke Jane se mushkurana chhod diya ho Vo achanak hasne lage...

Do premi ke dilo me baitha itne varsho ka dard itni asani se khatm to nhi hoga pr Samay ne yadi malham lgaya to dekhne vali baat hogi ki kya rang lata hai inka yah prem...

MA ke bare me kya Kahe vo to itne me hi khush ho rhi hai ki uska baccha khush hai or uske bagal me baitha hai...

Bhavnatmak updates bhai jabarjast superb amazing sandar bhai
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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अभय के सामने बैठी संध्या की नजर अभय पर ही टिकी थी, मगर अभय कही और ही व्यस्त था। अभय का मन कर रहा था की वो जा कर पायल से बात से बात करे। मगर सब वहा मौजूद थे इसलिए वो पायल के पास ना जा सका। जल्द ही खाने पीने की व्यवस्था भी हो गई, अभय के साथ संध्या भी खाना खा रही थी, पायल भी अपनी सहेलियों के साथ वही खड़ी थी, पर अब उसकी नजर अभय पर नही थी। लेकिन अभय की नजर लगातार पायल के उपर ही अटकी रहती थी।

जल्द ही खाना खा कर अभय, अजय के पास आ गया...

अजय --"भाई ये पायल को क्या हुआ? कुछ समझ में नहीं आवरा है। तुमने बता दिया क्या पायल को की तुम ही अभय हो?"

अभय --"अबे मैं क्यूं बताऊंगा, उल्टा मैं तुम लोगो को माना किया है की, किसी को पता न चले की मैं ही अभय हूं। पर क्यूं? क्या हुआ पायल को? क्या किया उसने?"

अजय --"अरे भाई पूछो मत, जब से तुम गए हो, तब से बेचारी के चेहरे से मानो मुस्कान ही चली गई थी। पर न जाने क्यूं आज उसने मुस्कुराया और उधर देखो कितनी खुश है वो।"

अभय ने अजय के इशारे की तरफ देखा तो पायल अपनी सहेलियों से बात करते हुए बहुत खुश नजर आ रही थी। अभय भी नही समझ पाया की आखिर पायल अचानक से क्यूं खुश हो गई?

अजय --"भाई मुझे ना तुमसे बात करना है?"

अभय --"मुझे पता है की, तुम लोगो को मुझसे किस बारे में बात करनी है? पर अभी मैं तुम्हारे किसी भी सवालों का जवाब नही दे सकता। हां मगर सही समय पे जरूर बताऊंगा।"

अजय --"ठीक है भाई, अगर तुम कहते हो तो नही पूछेंगे हम सब। मगर एक बात जो मुझे बहुत अंदर ही अंदर तड़पते जा रही है की, अगर तुम जिंदा हो, तो वो लाश किसकी थी जंगल में? जिसको तुम्हारे चाचा ने तुम्हारी लाश साबित कर दिया था?"

अजय की बात सुनकर, अभय कुछ देर तक सोचा और फिर बोला...

अभय --"सब पता चलेगा अजय, तू चिंता मत कर। ये खेल तो बहुत पहले से शुरू हो गया था। तुझे पता है, मैं यह एक खास काम से आया हूं, और उसमे मुझे लगेगी तुम लोगो की मदद।"

अभय की बात सुनकर, अजय और बाकी दोस्त चौंक से गए...

अजय --"खास काम...? कैसा काम?"

अभय --"अभि नही, कुछ दिन और फिर सब बता हूं।"

कहते अभय ने अपनी नजर घुमाई तो पाया की, उसकी मां उसकी तरफ ही बढ़ी चली आ रही थी।

संध्या जैसे ही अभय के नजदीक पहुंची...

संध्या --"मैं सोचब्रही थी की, घर जा रही थी तो, तुम्हे हॉस्टल छोड़ दूं।"

संध्या की बात सुनकर, अभय मुस्कुराते हुए बोला...

अभय --"आप को परेशान होने की जरूरत नहीं है मैडम। मैं चला जाऊंगा । और वैसे भी हॉस्टल कौन सा दूर है यहां से।"

संध्या --"दूर तो नही है, पर फिर भी।"

कहते हुए संध्या का चेहरा उदासी में लटक गया। ये देख कर अभय ने कुछ सोचा और फिर बोला...

अभय --"ठीक है, अच्छी बात है। वैसे भी खाना खाने के बाद मुझे चलना पसंद नही है।"

ये सुनकर संध्या का चेहरा फूल की तरह खिल गया। वो झट से अपनी कार की तरफ बढ़ चली।

ये देखकर अजय बोला...

अजय --"भाई, तुम्हारी मां को पता...

अभय --"हां, उसको बताया तो नही है मैने, मगर उसको पता चल गया है की मैं ही अभय हूं। और अभि कुछ देर में उसे पूरी तरह से यकीन भी हो जायेगा की मैं ही अभय हूं। इसके लिए तो उसके साथ जा रहा हूं।"

अभय जैसे ही अपनी बात खत्म करता है, उसके बगल कार आ कर रुकती है। अभय ने अजय को और दोस्तो से विदा लिया और एक नजर पायल की तरफ देखा जो पायल उसे ही देख रही थी। ना जाने अभय को क्या हुआ की उसका हाथ उपर उठा और मुस्कुराते हुए पायल को बॉय का इशारा कर दिया। ये देख पायल भी झट से दूसरी तरफ मुंह करके घूम गई।

अभय मुस्कुराते हुए कार में बैठ गया और कार चल पड़ती है...

____________________________

संध्या कार चलाते हुए अपने मन में यही सोंचब्रही थी की क्या बोले वो?कुछ देर सोचने के बाद वो बोली...

संध्या --"वो लड़की, लगता है तुम्हे बहुत पसंद है? पूरा समय तुम्हारा ध्यान उस लड़की पर ही था।"

संध्या की बात सुनकर,,,

अभय --"और मुझे ऐसा लगता है की मैं आप को बहुत पसंद हु, आपका भी पूरा समय ध्यान मुझ पर था।"

ये सुनकर संध्या मुस्कुरा उठी, और झट से बोली...

संध्या --"वो...वो तो मैं। बस ऐसे ही देख रही थी।"

अभय --"पता है मुझे, मुझे तो ये पता है की आप ने मेरा उस बाग में भी पीछा किया था।"

अभय की बात सुनकर संध्या चौंक गई...

संध्या --"हां किया था। बस इसलिए की, मैं सोच रही थी की तुम इस गांव में नए आए हो तो देर शाम को उस बाग में क्या....?

अभय --"वो जानने नही गई थी तू!!"

संध्या की बात बीच में ही काटते हुए अभय बोला,

अभय --"तू वो जानने नही गई थी। सुर कुछ और है। तुझे लगता था की मैं तेरा बेटा हूं। और उस बाग में पीछा करते हुए जब तूने पायल को देखा तो तुझे पूरी तरह से यकीन हो गया की मैं ही अभय हूं। तो अब तू मेरे मुंह से भी से ले, हां मैं ही अभय हूं।"

ये सुनते ही संध्या ने एक जोरदार ब्रेक लगाते हुए कार को रोक देती है...

संध्या का शक यकीन में बदल गया था। और आज अभय के मुंह से सुनकर तो उसकी खुशी का ठिकाना ही न था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो क्या बोले? वो तुरंत ही जोर जोर से रोने लगती है, और उसके मुंह से सिर्फ गिड़गिड़ाहट की आवाज ही निकल रही थी...

हाथ बढ़ाते हुए उसने अपना हाथ अभय के हाथ पर रखा तो अभय ने दूर झटक दिया। ये देख संध्या का दिल तड़प कर रह गया...

संध्या --"मुझे पता है, तुम मुझसे नाराज़ हो। मैने गलती ही ऐसी की है की, उसकी माफी नहीं है। तुम्हे मुझे जो सजा देनी है से दो, मारो, पीटो, काटो, जो मन में आए...मुझसे यूं नाराज न हो। बड़े दिनों बाद दिल को सुकून मिला है। लेकिन मेरी किस्मत तो देखो मैं मेरा बेटा मेरी आंखो के सामने है और मैं उसे गले भी नही लगा पा रही हूं। कैसे बताऊं तुम्हे की मैं कितना तड़प रही हूं?"

रोते हुऐ संध्या अपने दिल की हालत बयां कर रही थी। और अभय शांत बैठा उसकी बातो सुन रहा था।

संध्या ने जब देखा अभय कुछ नही बोल रहा है तो, उसका दिल और ज्यादा घबराने लगा। मन ही मन भगवान से यही गुहार लगी रही थी की, उसे उसका बेटा माफ कर दे...

संध्या --"मु...मुझे तो कुछ समझ ही नही आ रहा है की, मैं ऐसा क्या बोलूं या क्या करूं जिससे तुम मान जाओ। तुम है बताओ ना की मैं क्या करूं?"

ये सुनकर अभि हंसने लगा...अभि को इस तरह से हंसता देख संध्या का दिल एक बार फिर से रो पड़ा। वो समझ गई की, उसकी गिड़गिड़ाहट अभय के लिए मात्र एक मजाक है और कुछ नही. और तभी अभय बोला...

अभय --"कुछ नही कर सकती तू। हमारे रास्ते अलग है। और मेरे रास्ते पे तेरे कदमों के निशान भी न पड़ने दू मैं। और तू सब कुछ ठीक करने की बात करती है। मुझे तुझे कोई हमदर्दी नही है। तेरे ये आंसू मेरे लिए समुद्र का वो कतरा है है जो किसी काम का नही। क्या हुआ? कहा गई तेरी वो ठाकुरानो वाली आवाज? मुनीम इससे आज खाना मत देना। मुनीम आज इससे पेड़ से बांध कर रखना। अमन तू तो मेरा राजा बेटा है। आज से उस लड़की के साथ तुझे देखा तो तेरी खाल उधेड़ लूंगी।"

अभय --"मैं वो लड़की के साथ तब भी था, आज भी ही8, और कल भी रहूंगा। बहुत उधेड़ी है तूने मेरी खाल। अच्छा लग रहा है, बड़ा सुकून मिल रहा है, तेरी हालत देख कर। (अभय जोर से हंसते हुए) ...तुम ही बातो की मैं क्या करू? की तुम मान जाओ। हा... हा... हा। नौटंकी बाज़ तो तू है ही। क्या हुआ...वो तेरा राजा बेटा कहा गया? उससे प्यार नही मिल रहा है क्या अब तुझे? नही मिलता होगा, वो क्या है ना अपना अपना ही होता है, शायद तुझे मेरे जाने के पता चला होगा। अरे तुझे शर्म है क्या ? तू किस मुंह से मेरे सामने आती है, कभी खुद से पूछती है क्या? बेशर्म है तू, तुझे कुछ फर्क नही पड़ता...

संध्या बस चुप चाप बैठी मग्न हो कर रो रही थी मगर अब चिल्लाई...

"हा... हा बेशर्म हूं मैं, घटिया औरत हूं मैं। मगर तेरी मां हूं मैं। तू मुझे इसबतार नही छोड़ सकता। जन्म दिया है तुझे मैने। तेरी ये जिंदगी मुझसे जुड़ी है, इस तरह से अलग हो जाए ऐसा मैं होने नही दूंगी।"

संध्या की चिल्लाहट सुन कर, अभय एक बार मुस्कुराया और बोला...

अभय --"तो ठीक है, लगी रह तू अपनी जिंदगी को मेरी जिंदगी से जोड़ने में।"

ये कहते हुए अभय कार से जैसे ही नीचे उतरने को हुआ, संध्या ने अभय का हाथ पकड़ लिया। और किसी भिखारी की तरह दया याचना करते हुए अभय से बोली...

संध्या --"ना जा छोड़ के, कोई नही है तेरे सिवा मेरा। कुछ अच्छा नहीं लगता जब तू मेरे पास नहीं रहता। रह जा ना मेरे साथ, तू किसी कोने में भी रखेगा मुझे वहा पड़ा रहूंगी, सुखी रोटी भी ला कर देगा वो भी खा लूंगी, बस मुझे छोड़ कर ना जा। रुक जा ना, तेरे साथ रहने मन कर रहा है।"

संध्या की करुण वाणी अगर इस समय कोई भी सुन लेता तो शत प्रतिशत पिघल जाता, उसने अपने दिल के हर वो दर्द को शब्दो में बयान कर दी थी। इस बार अभि भी थोड़ा भाऊक हो कर बड़े ही प्यार से बोला...

अभय --"याद है तुझे, मैं भी कभी यही बोला करता था था तुझसे। जब रात को तू मुझे सुलाने आती थी। मैं भी तेरा हाथ पकड़ कर बोलता था, रह जा ना मां, तेरे साथ अच्छा लगता है। तू पास रहती है तो मुझे बहुत अच्छी नींद आती है, रुक जा ना मां, मेरे पास ही सो जा। मगर तू नही रुकती थी। रुकती भी कैसे? तुझे किसी और के साथ जो सोना था। अगर तू चाहती है तो बता आगे भी बोलूं की...

"नहीं...चुप हो जा। तेरे पैर पड़ती हूं।"

कहते हुए संध्या ने अभय का हाथ छोड़ दिया, और दूसरी तरफ मुंह घुमा लेती है। ना जाने क्या हुआ उसे, ना रो रही थी ना कुछ बोल रही थी, बस बेबस सी पड़ी थी....

उसकी हालत देख कर अभय एक बार फिर बोला...

अभय --"जाते जाते तुझे एक बात बता दूं। तू गुलाब का वो फूल है, जिसके चारो तरफ सिर्फ कांटे है। एक मैं ही था, जो तुझे उन कारों से बचा सकता था। मगर तूने मुझे पतझड़ में सूखे हुए उस पत्ते की तरह खुद से अलग कर दिया की मैं भी तेरे चारों तरफ बिछे काटों को देखकर सुकून महसूस करता हूं...



ये कहकर अभि वहा से चला जाता है, संध्या बेचारी अपनी नजर उठा कर अंधेरे में अपने बेटे को देखना चाही, मगर कार के बाहर उसे सिर्फ अंधेरा ही दिखा, शायद उसकी जिंदगी में भी यही था......
Sabse karara thappad mara hai Abhay ne Sandhya ko apni bato se, Abhay ke sabdo me kitna Dukh kitna dard bhara hua tha ye to Vahi bta sakta hai Jisne vo sab Pahle saha ho...

Sandhya ko aaj pta Chal hi gya ki uske bete ko uski sari kartute malum hai, jo bhi usne ki hui thi...

Abhay ne apne dosto ko kuchh din rukne ka kaha hai, vo koi Khash kaam karne aaya hai, kahi vo apne papa ke aise achanak marne ke or unke Kahe last bato ka javab dhundhne ka to nhi kah rha tha...

Bhavnao ke bhavar me duba yah update superb tha bhai jabarjast sandar
 

Xabhi

"Injoy Everything In Limits"
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अभय के जाते ही संध्या अपनी कार स्टार्ट करती है और हवेली की तरफ बढ़ चलती है.....


अभय जैसे ही हॉस्टल में पहुंचा, उसका दिमाग पूरी तरह से खराब हो गया था...

शर्ट उतार कर बेड पर फेंकते हुए, खुद से बोला...

"अभय संभाल खुद को, उसकी बह रही आंसुओ में मत उलझ। तू कैसे भूल सकता है की तेरी मां एक मतलबी औरत है। अपने जज्बात के आगे तेरा बचपन खा गई। कुछ नहीं दिखा उसे, तू किस हाल में था। हर पल उसके प्यार के लिए तड़पता रहा मगर वो प्यार मिला किसको ? अमन को। याद रख, तू यह क्यूं आया है? ऐसा कौन सा राज है, जो तेरा बाप तुझे बताना चाहता था, मगर उसकी जुबान ना कह सकी जिसके वजह से उन्होंने अपना राज कही तो दफ्न किया है। ढूंढ उस राज को, कुछ तो है जरूर?"

खुद से ही ये सब बाते बोलते हुए, अभय का दिल जोर जोर से चलने लगा। पसीने आने लगे थे उसे। पास रखे पानी का बोतल उठा कर पानी पी कर वो अपने बेड पर शांति से बैठ जाता है।

उसके जहां में वो काली अंधेरी रात घूमने लगती है....जिस दिन वो घर से भाग रहा था।

उस दिन अभय जब स्कूल से घर वापस आया, तब वो अपनी मां को हवेली के बहार ही पाया। अपनी मां के हाथ में डंडा देख कर वो सहम सा जाता है। वो बहुत ज्यादा दर जाता है। स्कूल बैग टांगे उसके चल रहे कदम अचानक से रुक जाते है।

तभी अभय की नजर अमन पर जाति है, जैसा स्कूल यूनिफॉर्म हल्का हल्का फटा था। ऐसा लग रहा था मानो अमन मिट्टी में उलट पलट कर आया हो। अभय को समझते देर नहीं लगी की ये अमन जानबूझ कर किया है उसे उसकी मां से पिटवाने के लिए। अभय ये भी जानता था की, अभय ने कुछ नही बोला और अमन और अपनी मां को नजर अंदाज करते हुए हवेली के अंदर जाने लगा की तभी संध्या की आवाज गूंजी...

संध्या --"किधर जा रहा है? इधर आ?"

अपनी मां की कड़क भाषा सुन कर, अभय इतना तो समझ गया था की अब उसे मार पड़ने वाली है, वैसे तो वो हर बार अपनी मां से दर जाता था, और संध्या के कुछ बोलने से पहले ही वो छटपटाने लगता था। मगर आज वो बिना डर के अपनी मां की एक आवाज पर उसके नजदीक जा कर खड़ा हो गया था। आज उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। बस वहा खड़े होकर कुछ सोच रहा था...

संध्या --"तुझे इतनी बार समझाया है, तू समझता क्यूं नही है? अमन से झगड़ा क्यूं किया तूने? उसका स्कूल ड्रेस भी फाड़ दिया तूने? क्यूं किया तूने ऐसा?"

अभय एक दम शांत वही खड़ा रहा, उसे आज स्कूल में हुई घटना याद आने लगी, जब वो स्कूल के लंच टाइम में खाना खा रहा था, तब वहा अमन आ जाता है। और उसका लंच बॉक्स उठा कर फेक देता है। ये देख कर पास में बैठी पायल उठते हुए अमन के गाल पर एक थप्पड़ रसीद कर देती है।

पायल --"बदमीज कही का, तू क्यूं हमेशा अभय को परेशान करता रहता है? अकल नही है क्या तुझे? खाना भी फेकता है क्या कोई?चलो अभय तुम मेरे टिफिन सेबखाना खा लो।"

ये कहते हुए जब पायल ने अपना टिफिन आगे बढ़ाया, वैसे ही अमन गुस्से में अपना हाथ पायल के टिफिन की तरफ बढ़ा दिया लेकिन तब तक अभय ने अमन का पकड़ते हुए मरोड़ दिया।

अमन दर्द से कराह पड़ा...पर जल्द ही अभय ने कुछ सोचते हुए अमन का हाथ छोड़ दिया।

अमन अपना हाथ झटकते हुए बोला...

अमन --"बड़ा बहादुर बनता है ना तू, आज आ घर पे फिर पता चलेगा तुझे।"

तब तक वहा पर ना जाने कहा से मुंशी पहुंच जाता है, और अमन को दर्द में करता देख...

मुनीम --"क्या हुआ छोटे मालिक? क्या हुआ आपको?"

अमन --"देखो ना मुनीम काका, इसने मेरा हाथ मरोड़ दिया।"

उस समय तो मुनीम ने कुछ नही बोला और अमन को लेकर ना जाने कहा चला गया।

यही सब बातें अभय अपनी मां के सामने खड़ा सोच रहा था पर उसने अपनी मां की बातों का जवाब नही दिया। तभी वहा खड़ा मुनीम बोला...

मुनीम --"मालकिन अब क्या बोलूं, अभय बाबा ने अमन बाबा का लंच बॉक्स उठा कर फेक दिया, और जब अमन बाबा ने पूछा तो, अभय बाबा ने उनका हाथ मरोड़ कर उनसे लड़ने लगे और अमन बाबा को पीटने लगे।"

मुनीम की बात सुनकर संध्या का गुस्सा आसमान पे, पर अभय पर कोई असर नहीं, वो नही डरा और ना ही आज उसने कुछ सफाई पेश की, शायद उसे पता था की उसकी सफाई देने का कुछ भी असर उसकी मां पर नही होगा। और इधर संध्या गुस्से में थी। वो और गुस्से में तब पागल हो जाति है, जब उसे अभय के चहरे पर कुछ भी भाव नही दिखे , वो साधारण ही खड़ा रहा...

तभी एक जोरदार डंडा अभय के हाथ के बाजू पर पड़ा, मगर आज अभय के मुंह से दर्द की जरा सी भी छींक नही निकली...

संध्या --"देखो तो इसको, अब तो डर भी खतम हो गया है। पूरा बिगड़ गया है ये, मुनीम..."

मुनीम --"जी मालकिन..."

संध्या --"मुझे पता है, हर बार मैं जब तुम्हे इसे दंडित करने के लिए बोलती हूं, तो तुम इसको बच्चा समझ कर छोड़ देते हो। अब देखो कितना बिगड़ गया है, खाना भी उठा कर फेंकने लगा है। पर इस बार नही, आज इसने खाना फेंका है ना। इसे खाने की कीमत पता चलने चाहिए, इसे आज खाना मत देना, और कल सिर्फ एक वक्त का खाना देना, फिर पता चलेगा की खाना क्या होता है?"

मुनीम --"जी मालकिन..."

संध्या --"जी मालकिन नही, ऐसा ही करना समझे।"

ये कह कर संध्या जाते जाते 3 से 4 डंडे जोरदार अभय को जड़ देती है।

संध्या --"खाना फेकेगा, अभि से ही इतनी चर्बी।"

कहते हुए संध्या वहा से चली जाति है...

अभय ने अपनी नजर अमन की तरफ मोड़ते हुए देखा तो पाया, अमन संध्या का हाथ पकड़े हवेली के अंदर जा रहा था। अमन ने पीछे मुड़ते हुए मुस्कुरा कर ऐसा भाव अपने चेहरे पर लाया जैसे वो अभय को बेचारा साबित करना चाहता हो। मगर इस बार अभय को जलन नही हुई, बल्कि अमन की मुस्कुराहट का जवाब उसने मुस्कुरा कर ही दिया। जिसे देख कर अमन की मुस्कान उड़ चली।

अभय अपना स्कूल बैग टांगे हवेली के अंदर जाने लगा। तभी वहा रमन आ जाता है...

रमन --"बेचारा, क्यूं सहता तू इतना सब कुछ अभय? तेरी मां तुझे प्यार नही करती है। मुझे पता है, की खाना तूने नही अमन ने फेका था। पर देख अपनी मां को, वो किसे मार रही है, तुझे।"

रमन की बात सुनकर अभय ने मुस्कुराते हुए बोला...

अभय --"वो मुझे मरती है, क्यूंकि उसे लगता है की मैं ही गलत हूं। नही तो वो मुझे कभी नहीं मारती।"

ये सुनकर रमन बोला....

रमन --"अच्छा, तो तुझे लगता है की तेरी मां तुझे बहुत चाहती है?"

अभय --"इसमें लगने जैसा क्या है? हर मां अपने बच्चे को चाहती है।"

रमन --"अरे तेरी मां जब तेरे पापा से प्यार नही कर पाई, तो तुझे क्या करेगी?"

ये सुनकर अभय का दिमाग थम गया...

अभय --"मतलब...?"

रमन --"मतलब ये की, तेरी मां मुझसे प्यार करती है, उसे तेरा बाप पसंद ही नहीं था। इसीलिए तू तेरे बाप की औलाद है तो उस वजह से वो तुझे भी प्यार नही करती।"

अभय तो था 9 साल का बच्चा मगर शब्दो का बहाव उसे किसी दुविधा में डाल चुकी थी, उसने बोला...

अभय --"मेरी मां तुमसे प्यार क्यूं करेगी ? वो तो मेरे पापा से प्यार करती थी।"

ये सुनकर रमन मुस्कुराते हुए बोला...

रमन --"देख बेटा, मैं तेरी भलाई के लिए ही बोल रहा हूं। क्यूंकि तू मेरा भतीजा है?तेरी मां ने खुद मुझसे कहा है की, तू उसकी औलाद है जिसे वो पसंद नही करती थी, इसीलिए वो तुझे भी पसंद नही करती। अब देख तू ही बता वो मुझसे प्यार करती है इसीलिए मेरे बेटे अमन को भी खूब प्यार करती है। अगर तुझे फिर भी यकीन नही है तो। 1 घंटे बाद, वो अमरूद वाले बगीचे में अपना जो पंपसेट का कमरा है ना, उसमे आ जाना। फिर तू देख पाएगा की तेरी मां मुझसे कितना प्यार करती है??
Raman aman or munim ke alava lalita ji hi hai is sadyantra me ya or bhi koi hai jiske bare me Abhay ko uske papa ke chhupaye raaj me pta chlega...

Abhay ke bachpan me kuchh jagah nafrat ka is chacha ne bhi bhara hua tha munim ke sath milkr, Dekhte hai kya hota hai aage...

Superb update bhai sandar jabarjast
 
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