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Incest वो तो है अलबेला (incest + adultery)

क्या संध्या की गलती माफी लायक है??


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Hemantstar111

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अपडेट 21
वो तो है अलबेला

अभय आज अपने चाचा की बात सुनकर बहुत कुछ सोच रहा था। एक 9 साल का बच्चा दिमागी तौर पर परेशान हो चुका था। उसकी जिंदगी थी या अपनी जिंदगी से जूझ रहा था। ये बात भला उस 9 साल के बच्चे को क्या पता?

अपनी मां की मार खाकर भी वो हमेशा अपने दिल से एक ही बात बोलता की मेरी मां मुझसे प्यार करती है इसलिए मरती है, क्योंकि उसे लगता है की मैं ही गलत हूं। मगर आज उसके चाचा की बातें उसे किसी और दिशा में सोचने पर मजबूर कर देती है। वो अपना स्कूल बैग टांगे हवेली के अंदर चल दिया।

अभय अपने कमरे में पहुंच कर, अपना स्कूल बैग एक तरफ रखते हुए बेड पर बैठ जाता है। बार बार दीवाल पर टंगी घड़ी की तरफ नजर घुमाकर देखता। अभय का चेहरा किसी सूखे पत्ते की तरह सूख चला था। वो क्या सोच रहा था पता नही, यूं हीं घंटो बेड पर बैठा अभय बार बार दीवार पर टंगी घड़ी की तरफ नजर डालता। और जैसे ही घड़ी का कांटा 6 पर पहुंचा । वो अपने कमरे से बाहर निकाला।

कमरे से बाहर निकलते ही, हॉल में उसे उसकी मां दिखाई पड़ी। डाइनिंग टेबल पर बैठा अमन नाश्ता कर रहा था, और संध्या और ललिता वही खड़ी उसे नाश्ता खिला रही थी। नाश्ता देखकर अभि भी अपने कदम डाइनिंग टेबल की तरफ बढ़ा देता है और नजदीक आकर टेबल पर बैठ जाता है। उसको टेबल पर बैठा देख संध्या झट से बोल पड़ी....


संध्या --"क्या हुआ? भूख लग गई क्या?अब पता चला ना खाने की कीमत क्या होती है? जो तूने आज उठा कर फेंक दिया था।"

संध्या की बात सुनकर, अमन नाश्ता करते हुए बोला...

अमन --"हां ताई मां, और आपको पता है? आज मैं सारा दिन भूखा रह गया था।"

संध्या --"इतना बिगड़ जायेगा मैं सोच भी नही सकती थी, आज तुझे पता चलेगा की जब भूंख लगती है तो....

संध्या अभि बोल ही रही थी की, अभय मायूस हो कर वहा से बिना कुछ बोले उठ कर चल देता है। शायद वो समझ गया था की उसे खाने को कुछ नही मिलेगा। अभय हवेली से बाहर निकल कर गांव की सड़को पर चल रहा था, शायद उसे भूख लगी थी इसकी वजह से उसके शरीर में वो ऊर्जा नही थी। आज दोपहर को भी उसने थोड़ा बहुत ही खाया था वो भी पायल के टिफिन बॉक्स में से। उसका टिफिन बॉक्स तो अमन फेंक दिया था। वो चलते चलते अमरूद के बाग में पहुंच गया। उसे भूख लगी थी तो वो अमरूद के पेड़ पर चढ़ कर एक दो अमरूद तोड़ कर खा रहा था। करीब आधे घंटे बाद उसे उसकी मां की कार दिखी जो सड़क के किनारे आ कर रुक गई। पेड़ पर चढ़ा अभय की नजरे उस कार पर ही थी।

तभी उसने देखा की कार में से उसकी मां और उसका चाचा दोनो उतरे, और उसी बगीचे की तरफ आ रहे थे। जैसे जैसे अभय की मां बगीचे की तरफ बढ़ रही थी वैसे वैसे अभय का दिल भी धड़क रहा था।

अभय के मन में हजार सवाल उठने लगे थे, वो बहुत कुछ सोचने लगा था। पर उसकी नजर अभि भी अपनी मां के ऊपर ही टिकी थी। जल्द ही संध्या और रमन उस बगीचे में दाखिल हो चुके थे। अभय के दिल की रफ्तार तब और बढ़ गई जब उसने अपनी मां और चाचा को उस बगीचे वाले कमरे की तरफ जाते देखा।

जैसे ही दोनो कमरे के अंदर दाखिल हुए, संध्या दरवाजा बंद करने के लिए पीछे मुड़ी, तब अभय ने अपनी मां के चेहरे पर जो मुस्कान देखी उसे ऐसा लगा जैसे आज उसकी मां खुश है। जैसे संध्या ने दरवाजा बंद किया अभय की आंखे भी एक पल के लिए बंद हो गई। वो कुछ देर तक यूं ही उस अमरूद की टहनी पर बैठा उस दरवाजे की तरफ देखता रहा। और थोड़ी देर के बाद वो अमरूद के उस पेड़ से नीचे उतर कर बड़े ही धीमी गति से उस कमरे की तरफ बढ़ा।

उसका दिल इस तरह धड़क रहा था मानो फट ना जाए, उसे सांस लेने में तकलीफ सी हो रही थी। हर बार उसे गहरी सांस लेनी पड़ रही थी। चलते हुए उसके पैर आज कांप रहे थे। ठंडी के मौसम में भी उसे गर्मी का अहसास उसके शरीर से टपक रहे पसीने की बूंद करा रही थी। उसका सिर भरी सा पद गया था, मगर आखिर में वो उस कमरे के करीब पहुंच ही गया।

उसकी नजर उस दीवाल पर बने छोटे छोटे झरोखों पर पड़ी, और बड़ी ही हिम्मत जुटा कर अभय ने अपनी नजर उस झरोखे से सटा दिया।

अंदर का नजारा देखते ही, अभय के हाथ की मीठी में पड़ा वो अमरूद अचानक ही नीचे गिर जाता है।

ना जाने अभय ने अंदर क्या देखा की ....

अभय हड़बड़ा गया, और झट से वो उस दीवार से इतनी तेजी से दूर हुआ, मानो उस दीवार में हजार वॉट का करंट दौड़ रहा हो।

अभय के चेहरे पर किस प्रकार के भाव थे ये बता पाना बहुत मुश्किल था। मगर उसे देख कर ये जरूर लग रहा था की वो पूरी तरह से टूटा हुआ, एक लाचार सा बच्चा था। जो आज अपनी मां को किसी गैर की बाहों में पाकर, खुद को गैर समझने लगा था। वो बहुत देर तक उस दीवाल से दूर खड़ा उसी दीवाल को घूरता रहा। और फिर धीरे से अपने लड़खड़ाते पैर उस बगीचे से बाहर के रास्ते की तरफ मोड़ दिया।


आज अभय का साथ उसे पैर भी नही दे रहे थे। दिमाग तो पहले ही साथ छोड़ चुका था और दिल तो ये मानने को तैयार नहीं था की जो उसकी आंखो ने देखा वो सब सच था। एक शरीर ही था उसका जो बिना दिल और दिमाग के कमजोर हो गया था। उसके पैर उस जगह नहीं पड़ते जहा वो रखना चाहता था। पर शायद अभय को इस बात का कोई फिक्र भी नही था। आज उसके कदम कही पड़े वो मायने नहीं रख रहा था। क्यूं की आज उसे खुद को नही पता था की वो अपने पैर किस दिशा की तरफ मोड़?

चलते हुए वो खेत की पगडंडी पर बैठ जाता है, पेट में लगी ढूंढ भी शायद शांत हो गई थी उसकी, अच्छा हुआ उसेसमय वहा कोई नही था, नही तो उस 9 साल के बच्चे का चेहरा देख कर ही यही समझता की जरूर इसका इस दुनिया में कोई नही है।

कहते है ना जो दिल समझता है अपना शरीर भी वैसा ही बर्ताव करता है। और आज अभय के दिल ने मान लिया था की अब उसका कोई नही है। आज वो रो भी नही रहा था, क्यूंकि जब आंखे रोती है तो आंखो से अश्रु की दरिया बहती है, लेकिन जब दिल रोता है, तो सारे दर्द रिस कर अश्रु की सिर्फ दो कतरे फूटते है जिसके कतरे हाथो से पूछने पर भी चांद लम्हों के बाद गालों पे दर्द की लकीरें छोड़ जाति है।


पगडंडी पर बैठा अभय की आंखो से भी आज रह रह कर ही बूंदे टपक रही थी। उसके सामने चारो दिशाएं थी मगर आज वो समझ नही पा रहा था की किस दिशा में वो जाए। उसकी चाचा की कही हुई बाते, अभय को यकीन दिला गई की उसकी मां ने आज तक उसे जितनी बार भी मारा था वो उसकी नफरत थी। रह रह कर अभय के जहन में उसके चाचा की बातें आती की, तेरी मां तेरे बाप से प्यार ही नहीं करती थी, वो तो मुझसे प्यार करती थी।"

अभय का सिर इतना जोर से दुखने लगा की मानो फट जायेगा, और वो अपना हाथ उठते हुए अपने सिर पर रख लेता है।

अंधेरा हो गया था, मगर अभय अभि भी वही बैठा था। तभी अचानक ही बादल कड़कने लगे, और तेज हवाएं चलने लगी... अभय ने एक बाजार उठा कर इधर उधर देखा और खड़ा होते हुए घर की तरफ जाने के लिए कदम बढ़ाया ही था की, उसने अपने पैर रोक लिए...

तभी किसी आवाज ने अभय को यादों से झिंझोड़ते हुए, वर्तमान में ला पटका। अभय की नजर फोन पर पड़ी जिस पर कॉल आ रहा था...

अभि --"हेलो...!!"

सामने से कुछ आवाज नही आवरा था, तो की ने एक बार फिर से बोला...

अभि --"हेलो...कौन है??"

तब सामने से आवाज आई.....

संध्या --"मैं हूं...।"

अभय --"मैं कौन? मैं का कुछ नाम तो होगा?"

अभय की बात सुनकर सामने से एक बार फिर से आवाज आई...

"एक अभागी मां हूं, जो अपने बेटे के लिए बहुत तड़प रही है, प्लीज फोन मत काटना अभय।"

अभय समझ गया की ये उसकी मां है, वो ये भी समझ गया की जरूर उसकी मां ने एडमिशन फॉर्म से नंबर निकला होगा।

अपनी मां की आवाज सुनकर अभय गुस्से में चिल्लाया...

अभय --"तुझे एक बार में समझ नही आता क्या? तेरा और मेरा रास्ता अलग है,। क्यूं तू मेरे पीछे पड़ी है, बचपन तो खा गई मेरी अब क्या बची हुई जिंदगी भी जहन्नुम बनाना चाहती है क्या?"

अभय की बात सुनकर संध्या एक बार फिर से रोने लगती है.....

संध्या --"ना बोल ऐसा, मैने ऐसा कभी सपने में भी नही सोच सकती।"

संध्या की बात सुनकर अभि इस बार शांति से बोला....

अभि --"काश!! तूने ये सपने में सोचा होता, पर तूने तो...??" देख मैं संभाल गया हूं, समझ बात को, मुझे अब तेरी जरूरत नहीं है, और ना ही तेरी परवाह। मैं यह सिर्फ पढ़ने आया हूं, कोई रिश्ता जोड़ने नही। तू अपने भेजे में ये बात डाल ले की मैं तेरे लिए मर चुका हूं और तू मेरे लिए। तू जैसे अपनी जिंदगी जी रही थी वैसे ही जी, और भगवान के लिए मुझे जीने दे। मैं तुझसे गुस्सा नही हूं, ना ही तुझसे नाराज हूं, क्योंकि गुस्सा और नाराजगी अपनो से किया जाता है। तू मेरे लिए दुनिया के भीड़ में चल रही एक इंसान है बस, और कुछ नही।"

कहते हुए अभय ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया.....
 
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Rekha rani

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Nice update, is flash back se raman ki sajish ka malum chal gya lekin sandhya ke charitr ab bhi suspanc me hai, jaise abhay ne dekha sandhya ko to wo apni marji aur khushi se raman se chudva rhi thi, lekin vartman ki bato se laga ki sirf anjane me hua tha jaise sandhya ne raman ko latada tha, isliye sandhya ke point of view se hi asli bat samjh aayegi akhir chal kya rha tha
 

Game888

Hum hai rahi pyar ke
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Dil Ko nichod Diya hai bhai Kalpana Matra se hi दिल दहल जाता है क्या बिजी होगी उस मासूम पर...........
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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अभय आज अपने चाचा की बात सुनकर बहुत कुछ सोच रहा था। एक 9 साल का बच्चा दिमागी तौर पर परेशान हो चुका था। उसकी जिंदगी थी या अपनी जिंदगी से जूझ रहा था। ये बात भला उस 9 साल के बच्चे को क्या पता?

अपनी मां की मार खाकर भी वो हमेशा अपने दिल से एक ही बात बोलता की मेरी मां मुझसे प्यार करती है इसलिए मरती है, क्योंकि उसे लगता है की मैं ही गलत हूं। मगर आज उसके चाचा की बातें उसे किसी और दिशा में सोचने पर मजबूर कर देती है। वो अपना स्कूल बैग टांगे हवेली के अंदर चल दिया।

अभय अपने कमरे में पहुंच कर, अपना स्कूल बैग एक तरफ रखते हुए बेड पर बैठ जाता है। बार बार दीवाल पर टंगी घड़ी की तरफ नजर घुमाकर देखता। अभय का चेहरा किसी सूखे पत्ते की तरह सूख चला था। वो क्या सोच रहा था पता नही, यूं हीं घंटो बेड पर बैठा अभय बार बार दीवार पर टंगी घड़ी की तरफ नजर डालता। और जैसे ही घड़ी का कांटा 6 पर पहुंचा । वो अपने कमरे से बाहर निकाला।

कमरे से बाहर निकलते ही, हॉल में उसे उसकी मां दिखाई पड़ी। डाइनिंग टेबल पर बैठा अमन नाश्ता कर रहा था, और संध्या और ललिता वही खड़ी उसे नाश्ता खिला रही थी। नाश्ता देखकर अभि भी अपने कदम डाइनिंग टेबल की तरफ बढ़ा देता है और नजदीक आकर टेबल पर बैठ जाता है। उसको टेबल पर बैठा देख संध्या झट से बोल पड़ी....


संध्या --"क्या हुआ? भूख लग गई क्या?अब पता चला ना खाने की कीमत क्या होती है? जो तूने आज उठा कर फेंक दिया था।"

संध्या की बात सुनकर, अमन नाश्ता करते हुए बोला...

अमन --"हां ताई मां, और आपको पता है? आज मैं सारा दिन भूखा रह गया था।"

संध्या --"इतना बिगड़ जायेगा मैं सोच भी नही सकती थी, आज तुझे पता चलेगा की जब भूंख लगती है तो....

संध्या अभि बोल ही रही थी की, अभय मायूस हो कर वहा से बिना कुछ बोले उठ कर चल देता है। शायद वो समझ गया था की उसे खाने को कुछ नही मिलेगा। अभय हवेली से बाहर निकल कर गांव की सड़को पर चल रहा था, शायद उसे भूख लगी थी इसकी वजह से उसके शरीर में वो ऊर्जा नही थी। आज दोपहर को भी उसने थोड़ा बहुत ही खाया था वो भी पायल के टिफिन बॉक्स में से। उसका टिफिन बॉक्स तो अमन फेंक दिया था। वो चलते चलते अमरूद के बाग में पहुंच गया। उसे भूख लगी थी तो वो अमरूद के पेड़ पर चढ़ कर एक दो अमरूद तोड़ कर खा रहा था। करीब आधे घंटे बाद उसे उसकी मां की कार दिखी जो सड़क के किनारे आ कर रुक गई। पेड़ पर चढ़ा अभय की नजरे उस कार पर ही थी।

तभी उसने देखा की कार में से उसकी मां और उसका चाचा दोनो उतरे, और उसी बगीचे की तरफ आ रहे थे। जैसे जैसे अभय की मां बगीचे की तरफ बढ़ रही थी वैसे वैसे अभय का दिल भी धड़क रहा था।

अभय के मन में हजार सवाल उठने लगे थे, वो बहुत कुछ सोचने लगा था। पर उसकी नजर अभि भी अपनी मां के ऊपर ही टिकी थी। जल्द ही संध्या और रमन उस बगीचे में दाखिल हो चुके थे। अभय के दिल की रफ्तार तब और बढ़ गई जब उसने अपनी मां और चाचा को उस बगीचे वाले कमरे की तरफ जाते देखा।

जैसे ही दोनो कमरे के अंदर दाखिल हुए, संध्या दरवाजा बंद करने के लिए पीछे मुड़ी, तब अभय ने अपनी मां के चेहरे पर जो मुस्कान देखी उसे ऐसा लगा जैसे आज उसकी मां खुश है। जैसे संध्या ने दरवाजा बंद किया अभय की आंखे भी एक पल के लिए बंद हो गई। वो कुछ देर तक यूं ही उस अमरूद की टहनी पर बैठा उस दरवाजे की तरफ देखता रहा। और थोड़ी देर के बाद वो अमरूद के उस पेड़ से नीचे उतर कर बड़े ही धीमी गति से उस कमरे की तरफ बढ़ा।

उसका दिल इस तरह धड़क रहा था मानो फट ना जाए, उसे सांस लेने में तकलीफ सी हो रही थी। हर बार उसे गहरी सांस लेनी पड़ रही थी। चलते हुए उसके पैर आज कांप रहे थे। ठंडी के मौसम में भी उसे गर्मी का अहसास उसके शरीर से टपक रहे पसीने की बूंद करा रही थी। उसका सिर भरी सा पद गया था, मगर आखिर में वो उस कमरे के करीब पहुंच ही गया।

उसकी नजर उस दीवाल पर बने छोटे छोटे झरोखों पर पड़ी, और बड़ी ही हिम्मत जुटा कर अभय ने अपनी नजर उस झरोखे से सटा दिया।

अंदर का नजारा देखते ही, अभय के हाथ की मीठी में पड़ा वो अमरूद अचानक ही नीचे गिर जाता है। अभय के आंखो के सामने उसकी का की बिखरी हुई फर्श पर साड़ी पर पड़ी, वो अपनी मां की फर्श पर साड़ी को देखते हुए जैसे नजरे उठा कर देखा तो, उसे उसकी मां की नंगी पीठ दिखी, जो इस समय उसके चाचा रमन की जांघो पर उसकी तरफ मुंह कर के बैठी थी।

अभय हड़बड़ा गया, और झट से वो उस दीवार से इतनी तेजी से दूर हुआ, मानो उस दीवार में हजार वॉट का करंट दौड़ रहा हो।

अभय के चेहरे पर किस प्रकार के भाव थे ये बता पाना बहुत मुश्किल था। मगर उसे देख कर ये जरूर लग रहा था की वो पूरी तरह से टूटा हुआ, एक लाचार सा बच्चा था। जो आज अपनी मां को किसी गैर की बाहों में पाकर, खुद को गैर समझने लगा था। वो बहुत देर तक उस दीवाल से दूर खड़ा उसी दीवाल को घूरता रहा। और फिर धीरे से अपने लड़खड़ाते पैर उस बगीचे से बाहर के रास्ते की तरफ मोड़ दिया।


आज अभय का साथ उसे पैर भी नही दे रहे थे। दिमाग तो पहले ही साथ छोड़ चुका था और दिल तो ये मानने को तैयार नहीं था की जो उसकी आंखो ने देखा वो सब सच था। एक शरीर ही था उसका जो बिना दिल और दिमाग के कमजोर हो गया था। उसके पैर उस जगह नहीं पड़ते जहा वो रखना चाहता था। पर शायद अभय को इस बात का कोई फिक्र भी नही था। आज उसके कदम कही पड़े वो मायने नहीं रख रहा था। क्यूं की आज उसे खुद को नही पता था की वो अपने पैर किस दिशा की तरफ मोड़?

चलते हुए वो खेत की पगडंडी पर बैठ जाता है, पेट में लगी ढूंढ भी शायद शांत हो गई थी उसकी, अच्छा हुआ उसेसमय वहा कोई नही था, नही तो उस 9 साल के बच्चे का चेहरा देख कर ही यही समझता की जरूर इसका इस दुनिया में कोई नही है।

कहते है ना जो दिल समझता है अपना शरीर भी वैसा ही बर्ताव करता है। और आज अभय के दिल ने मान लिया था की अब उसका कोई नही है। आज वो रो भी नही रहा था, क्यूंकि जब आंखे रोती है तो आंखो से अश्रु की दरिया बहती है, लेकिन जब दिल रोता है, तो सारे दर्द रिस कर अश्रु की सिर्फ दो कतरे फूटते है जिसके कतरे हाथो से पूछने पर भी चांद लम्हों के बाद गालों पे दर्द की लकीरें छोड़ जाति है।


पगडंडी पर बैठा अभय की आंखो से भी आज रह रह कर ही बूंदे टपक रही थी। उसके सामने चारो दिशाएं थी मगर आज वो समझ नही पा रहा था की किस दिशा में वो जाए। उसकी चाचा की कही हुई बाते, अभय को यकीन दिला गई की उसकी मां ने आज तक उसे जितनी बार भी मारा था वो उसकी नफरत थी। रह रह कर अभय के जहन में उसके चाचा की बातें आती की, तेरी मां तेरे बाप से प्यार ही नहीं करती थी, वो तो मुझसे प्यार करती थी।"

अभय का सिर इतना जोर से दुखने लगा की मानो फट जायेगा, और वो अपना हाथ उठते हुए अपने सिर पर रख लेता है।

अंधेरा हो गया था, मगर अभय अभि भी वही बैठा था। तभी अचानक ही बादल कड़कने लगे, और तेज हवाएं चलने लगी... अभय ने एक बाजार उठा कर इधर उधर देखा और खड़ा होते हुए घर की तरफ जाने के लिए कदम बढ़ाया ही था की, उसने अपने पैर रोक लिए...

तभी किसी आवाज ने अभय को यादों से झिंझोड़ते हुए, वर्तमान में ला पटका। अभय की नजर फोन पर पड़ी जिस पर कॉल आ रहा था...

अभि --"हेलो...!!"

सामने से कुछ आवाज नही आवरा था, तो की ने एक बार फिर से बोला...

अभि --"हेलो...कौन है??"

तब सामने से आवाज आई.....

संध्या --"मैं हूं...।"

अभय --"मैं कौन? मैं का कुछ नाम तो होगा?"

अभय की बात सुनकर सामने से एक बार फिर से आवाज आई...

"एक अभागी मां हूं, जो अपने बेटे के लिए बहुत तड़प रही है, प्लीज फोन मत काटना अभय।"

अभय समझ गया की ये उसकी मां है, वो ये भी समझ गया की जरूर उसकी मां ने एडमिशन फॉर्म से नंबर निकला होगा।

अपनी मां की आवाज सुनकर अभय गुस्से में चिल्लाया...

अभय --"तुझे एक बार में समझ नही आता क्या? तेरा और मेरा रास्ता अलग है,। क्यूं तू मेरे पीछे पड़ी है, बचपन तो खा गई मेरी अब क्या बची हुई जिंदगी भी जहन्नुम बनाना चाहती है क्या?"

अभय की बात सुनकर संध्या एक बार फिर से रोने लगती है.....

संध्या --"ना बोल ऐसा, मैने ऐसा कभी सपने में भी नही सोच सकती।"

संध्या की बात सुनकर अभि इस बार शांति से बोला....

अभि --"काश!! तूने ये सपने में सोचा होता, पर तूने तो...??" देख मैं संभाल गया हूं, समझ बात को, मुझे अब तेरी जरूरत नहीं है, और ना ही तेरी परवाह। मैं यह सिर्फ पढ़ने आया हूं, कोई रिश्ता जोड़ने नही। तू अपने भेजे में ये बात डाल ले की मैं तेरे लिए मर चुका हूं और तू मेरे लिए। तू जैसे अपनी जिंदगी जी रही थी वैसे ही जी, और भगवान के लिए मुझे जीने दे। मैं तुझसे गुस्सा नही हूं, ना ही तुझसे नाराज हूं, क्योंकि गुस्सा और नाराजगी अपनो से किया जाता है। तू मेरे लिए दुनिया के भीड़ में चल रही एक इंसान है बस, और कुछ नही।"

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चरित्र खराब है तो अनजाने में कुछ कैसे हुआ भाई?

कृपया इस उलझन को सुलझा दीजिए।

वैसे अगर जो इसको किनारे कर दें तो कहानी अभी तक बहुत ही अच्छी चल रही है।

वैसे कहानी कोई भी हो, उसके किरदारों का अतीत बहुत मायने रखता है, और वो अतीत जब तक खुल कर सामने नही आए, कहानी में जिज्ञासा नही रह पाती।
 

Studxyz

Well-Known Member
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संध्या तो साली पक्की बदचलन औरत निकली साली रमन से कई बार चुदी है और अब बेटा बेटा कर रही है इसको इतनी आसानी से माफ़ी नहीं मिलना चाहिए पर इसका इस्तेमाल अभय कर सकता है रमन, अमन व् ललिता के खिलाफ अब वह ऐसा करेगा कि नहीं आगे पता चलेगा या फिर कोई और ही दांव पेंच चलेगा ?

बच्चे की लाश का राज़ भी खोलना इस से हरामियों का जोड़ा रमन व् मुनीम जेल की हवा खा सकते हैं
 
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