Swapnil bombe
Member
- 130
- 541
- 108
1 bat he aap ki writing me ki aakho ke samne pura seen khada hota he
jaisi aapki ichha prbhu....Vaise update chahiye kya aaj aap sab ko , ya fir kal du to chalega??
Awesome fantasticअपडेट 19
अभय के सामने बैठी संध्या की नजर अभय पर ही टिकी थी, मगर अभय कही और ही व्यस्त था। अभय का मन कर रहा था की वो जा कर पायल से बात से बात करे। मगर सब वहा मौजूद थे इसलिए वो पायल के पास ना जा सका। जल्द ही खाने पीने की व्यवस्था भी हो गई, अभय के साथ संध्या भी खाना खा रही थी, पायल भी अपनी सहेलियों के साथ वही खड़ी थी, पर अब उसकी नजर अभय पर नही थी। लेकिन अभय की नजर लगातार पायल के उपर ही अटकी रहती थी।
जल्द ही खाना खा कर अभय, अजय के पास आ गया...
अजय --"भाई ये पायल को क्या हुआ? कुछ समझ में नहीं आवरा है। तुमने बता दिया क्या पायल को की तुम ही अभय हो?"
अभय --"अबे मैं क्यूं बताऊंगा, उल्टा मैं तुम लोगो को माना किया है की, किसी को पता न चले की मैं ही अभय हूं। पर क्यूं? क्या हुआ पायल को? क्या किया उसने?"
अजय --"अरे भाई पूछो मत, जब से तुम गए हो, तब से बेचारी के चेहरे से मानो मुस्कान ही चली गई थी। पर न जाने क्यूं आज उसने मुस्कुराया और उधर देखो कितनी खुश है वो।"
अभय ने अजय के इशारे की तरफ देखा तो पायल अपनी सहेलियों से बात करते हुए बहुत खुश नजर आ रही थी। अभय भी नही समझ पाया की आखिर पायल अचानक से क्यूं खुश हो गई?
अजय --"भाई मुझे ना तुमसे बात करना है?"
अभय --"मुझे पता है की, तुम लोगो को मुझसे किस बारे में बात करनी है? पर अभी मैं तुम्हारे किसी भी सवालों का जवाब नही दे सकता। हां मगर सही समय पे जरूर बताऊंगा।"
अजय --"ठीक है भाई, अगर तुम कहते हो तो नही पूछेंगे हम सब। मगर एक बात जो मुझे बहुत अंदर ही अंदर तड़पते जा रही है की, अगर तुम जिंदा हो, तो वो लाश किसकी थी जंगल में? जिसको तुम्हारे चाचा ने तुम्हारी लाश साबित कर दिया था?"
अजय की बात सुनकर, अभय कुछ देर तक सोचा और फिर बोला...
अभय --"सब पता चलेगा अजय, तू चिंता मत कर। ये खेल तो बहुत पहले से शुरू हो गया था। तुझे पता है, मैं यह एक खास काम से आया हूं, और उसमे मुझे लगेगी तुम लोगो की मदद।"
अभय की बात सुनकर, अजय और बाकी दोस्त चौंक से गए...
अजय --"खास काम...? कैसा काम?"
अभय --"अभि नही, कुछ दिन और फिर सब बता हूं।"
कहते अभय ने अपनी नजर घुमाई तो पाया की, उसकी मां उसकी तरफ ही बढ़ी चली आ रही थी।
संध्या जैसे ही अभय के नजदीक पहुंची...
संध्या --"मैं सोचब्रही थी की, घर जा रही थी तो, तुम्हे हॉस्टल छोड़ दूं।"
संध्या की बात सुनकर, अभय मुस्कुराते हुए बोला...
अभय --"आप को परेशान होने की जरूरत नहीं है मैडम। मैं चला जाऊंगा । और वैसे भी हॉस्टल कौन सा दूर है यहां से।"
संध्या --"दूर तो नही है, पर फिर भी।"
कहते हुए संध्या का चेहरा उदासी में लटक गया। ये देख कर अभय ने कुछ सोचा और फिर बोला...
अभय --"ठीक है, अच्छी बात है। वैसे भी खाना खाने के बाद मुझे चलना पसंद नही है।"
ये सुनकर संध्या का चेहरा फूल की तरह खिल गया। वो झट से अपनी कार की तरफ बढ़ चली।
ये देखकर अजय बोला...
अजय --"भाई, तुम्हारी मां को पता...
अभय --"हां, उसको बताया तो नही है मैने, मगर उसको पता चल गया है की मैं ही अभय हूं। और अभि कुछ देर में उसे पूरी तरह से यकीन भी हो जायेगा की मैं ही अभय हूं। इसके लिए तो उसके साथ जा रहा हूं।"
अभय जैसे ही अपनी बात खत्म करता है, उसके बगल कार आ कर रुकती है। अभय ने अजय को और दोस्तो से विदा लिया और एक नजर पायल की तरफ देखा जो पायल उसे ही देख रही थी। ना जाने अभय को क्या हुआ की उसका हाथ उपर उठा और मुस्कुराते हुए पायल को बॉय का इशारा कर दिया। ये देख पायल भी झट से दूसरी तरफ मुंह करके घूम गई।
अभय मुस्कुराते हुए कार में बैठ गया और कार चल पड़ती है...
____________________________
संध्या कार चलाते हुए अपने मन में यही सोंचब्रही थी की क्या बोले वो?कुछ देर सोचने के बाद वो बोली...
संध्या --"वो लड़की, लगता है तुम्हे बहुत पसंद है? पूरा समय तुम्हारा ध्यान उस लड़की पर ही था।"
संध्या की बात सुनकर,,,
अभय --"और मुझे ऐसा लगता है की मैं आप को बहुत पसंद हु, आपका भी पूरा समय ध्यान मुझ पर था।"
ये सुनकर संध्या मुस्कुरा उठी, और झट से बोली...
संध्या --"वो...वो तो मैं। बस ऐसे ही देख रही थी।"
अभय --"पता है मुझे, मुझे तो ये पता है की आप ने मेरा उस बाग में भी पीछा किया था।"
अभय की बात सुनकर संध्या चौंक गई...
संध्या --"हां किया था। बस इसलिए की, मैं सोच रही थी की तुम इस गांव में नए आए हो तो देर शाम को उस बाग में क्या....?
अभय --"वो जानने नही गई थी तू!!"
संध्या की बात बीच में ही काटते हुए अभय बोला,
अभय --"तू वो जानने नही गई थी। सुर कुछ और है। तुझे लगता था की मैं तेरा बेटा हूं। और उस बाग में पीछा करते हुए जब तूने पायल को देखा तो तुझे पूरी तरह से यकीन हो गया की मैं ही अभय हूं। तो अब तू मेरे मुंह से भी से ले, हां मैं ही अभय हूं।"
ये सुनते ही संध्या ने एक जोरदार ब्रेक लगाते हुए कार को रोक देती है...
संध्या का शक यकीन में बदल गया था। और आज अभय के मुंह से सुनकर तो उसकी खुशी का ठिकाना ही न था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो क्या बोले? वो तुरंत ही जोर जोर से रोने लगती है, और उसके मुंह से सिर्फ गिड़गिड़ाहट की आवाज ही निकल रही थी...
हाथ बढ़ाते हुए उसने अपना हाथ अभय के हाथ पर रखा तो अभय ने दूर झटक दिया। ये देख संध्या का दिल तड़प कर रह गया...
संध्या --"मुझे पता है, तुम मुझसे नाराज़ हो। मैने गलती ही ऐसी की है की, उसकी माफी नहीं है। तुम्हे मुझे जो सजा देनी है से दो, मारो, पीटो, काटो, जो मन में आए...मुझसे यूं नाराज न हो। बड़े दिनों बाद दिल को सुकून मिला है। लेकिन मेरी किस्मत तो देखो मैं मेरा बेटा मेरी आंखो के सामने है और मैं उसे गले भी नही लगा पा रही हूं। कैसे बताऊं तुम्हे की मैं कितना तड़प रही हूं?"
रोते हुऐ संध्या अपने दिल की हालत बयां कर रही थी। और अभय शांत बैठा उसकी बातो सुन रहा था।
संध्या ने जब देखा अभय कुछ नही बोल रहा है तो, उसका दिल और ज्यादा घबराने लगा। मन ही मन भगवान से यही गुहार लगी रही थी की, उसे उसका बेटा माफ कर दे...
संध्या --"मु...मुझे तो कुछ समझ ही नही आ रहा है की, मैं ऐसा क्या बोलूं या क्या करूं जिससे तुम मान जाओ। तुम है बताओ ना की मैं क्या करूं?"
ये सुनकर अभि हंसने लगा...अभि को इस तरह से हंसता देख संध्या का दिल एक बार फिर से रो पड़ा। वो समझ गई की, उसकी गिड़गिड़ाहट अभय के लिए मात्र एक मजाक है और कुछ नही. और तभी अभय बोला...
अभय --"कुछ नही कर सकती तू। हमारे रास्ते अलग है। और मेरे रास्ते पे तेरे कदमों के निशान भी न पड़ने दू मैं। और तू सब कुछ ठीक करने की बात करती है। मुझे तुझे कोई हमदर्दी नही है। तेरे ये आंसू मेरे लिए समुद्र का वो कतरा है है जो किसी काम का नही। क्या हुआ? कहा गई तेरी वो ठाकुरानो वाली आवाज? मुनीम इससे आज खाना मत देना। मुनीम आज इससे पेड़ से बांध कर रखना। अमन तू तो मेरा राजा बेटा है। आज से उस लड़की के साथ तुझे देखा तो तेरी खाल उधेड़ लूंगी।"
अभय --"मैं वो लड़की के साथ तब भी था, आज भी ही8, और कल भी रहूंगा। बहुत उधेड़ी है तूने मेरी खाल। अच्छा लग रहा है, बड़ा सुकून मिल रहा है, तेरी हालत देख कर। (अभय जोर से हंसते हुए) ...तुम ही बातो की मैं क्या करू? की तुम मान जाओ। हा... हा... हा। नौटंकी बाज़ तो तू है ही। क्या हुआ...वो तेरा राजा बेटा कहा गया? उससे प्यार नही मिल रहा है क्या अब तुझे? नही मिलता होगा, वो क्या है ना अपना अपना ही होता है, शायद तुझे मेरे जाने के पता चला होगा। अरे तुझे शर्म है क्या ? तू किस मुंह से मेरे सामने आती है, कभी खुद से पूछती है क्या? बेशर्म है तू, तुझे कुछ फर्क नही पड़ता...
संध्या बस चुप चाप बैठी मग्न हो कर रो रही थी मगर अब चिल्लाई...
"हा... हा बेशर्म हूं मैं, घटिया औरत हूं मैं। मगर तेरी मां हूं मैं। तू मुझे इसबतार नही छोड़ सकता। जन्म दिया है तुझे मैने। तेरी ये जिंदगी मुझसे जुड़ी है, इस तरह से अलग हो जाए ऐसा मैं होने नही दूंगी।"
संध्या की चिल्लाहट सुन कर, अभय एक बार मुस्कुराया और बोला...
अभय --"तो ठीक है, लगी रह तू अपनी जिंदगी को मेरी जिंदगी से जोड़ने में।"
ये कहते हुए अभय कार से जैसे ही नीचे उतरने को हुआ, संध्या ने अभय का हाथ पकड़ लिया। और किसी भिखारी की तरह दया याचना करते हुए अभय से बोली...
संध्या --"ना जा छोड़ के, कोई नही है तेरे सिवा मेरा। कुछ अच्छा नहीं लगता जब तू मेरे पास नहीं रहता। रह जा ना मेरे साथ, तू किसी कोने में भी रखेगा मुझे वहा पड़ा रहूंगी, सुखी रोटी भी ला कर देगा वो भी खा लूंगी, बस मुझे छोड़ कर ना जा। रुक जा ना, तेरे साथ रहने मन कर रहा है।"
संध्या की करुण वाणी अगर इस समय कोई भी सुन लेता तो शत प्रतिशत पिघल जाता, उसने अपने दिल के हर वो दर्द को शब्दो में बयान कर दी थी। इस बार अभि भी थोड़ा भाऊक हो कर बड़े ही प्यार से बोला...
अभय --"याद है तुझे, मैं भी कभी यही बोला करता था था तुझसे। जब रात को तू मुझे सुलाने आती थी। मैं भी तेरा हाथ पकड़ कर बोलता था, रह जा ना मां, तेरे साथ अच्छा लगता है। तू पास रहती है तो मुझे बहुत अच्छी नींद आती है, रुक जा ना मां, मेरे पास ही सो जा। मगर तू नही रुकती थी। रुकती भी कैसे? तुझे किसी और के साथ जो सोना था। अगर तू चाहती है तो बता आगे भी बोलूं की...
"नहीं...चुप हो जा। तेरे पैर पड़ती हूं।"
कहते हुए संध्या ने अभय का हाथ छोड़ दिया, और दूसरी तरफ मुंह घुमा लेती है। ना जाने क्या हुआ उसे, ना रो रही थी ना कुछ बोल रही थी, बस बेबस सी पड़ी थी....
उसकी हालत देख कर अभय एक बार फिर बोला...
अभय --"जाते जाते तुझे एक बात बता दूं। तू गुलाब का वो फूल है, जिसके चारो तरफ सिर्फ कांटे है। एक मैं ही था, जो तुझे उन कारों से बचा सकता था। मगर तूने मुझे पतझड़ में सूखे हुए उस पत्ते की तरह खुद से अलग कर दिया की मैं भी तेरे चारों तरफ बिछे काटों को देखकर सुकून महसूस करता हूं...
ये कहकर अभि वहा से चला जाता है, संध्या बेचारी अपनी नजर उठा कर अंधेरे में अपने बेटे को देखना चाही, मगर कार के बाहर उसे सिर्फ अंधेरा ही दिखा, शायद उसकी जिंदगी में भी यही था......
Neki aur puch puch...Vaise update chahiye kya aaj aap sab ko , ya fir kal du to chalega??
Bahut khoobअपडेट 20
अभय के जाते ही संध्या अपनी कार स्टार्ट करती है और हवेली की तरफ बढ़ चलती है.....
अभय जैसे ही हॉस्टल में पहुंचा, उसका दिमाग पूरी तरह से खराब हो गया था...
शर्ट उतार कर बेड पर फेंकते हुए, खुद से बोला...
"अभय संभाल खुद को, उसकी बह रही आंसुओ में मत उलझ। तू कैसे भूल सकता है की तेरी मां एक मतलबी औरत है। अपने जज्बात के आगे तेरा बचपन खा गई। कुछ नहीं दिखा उसे, तू किस हाल में था। हर पल उसके प्यार के लिए तड़पता रहा मगर वो प्यार मिला किसको ? अमन को। याद रख, तू यह क्यूं आया है? ऐसा कौन सा राज है, जो तेरा बाप तुझे बताना चाहता था, मगर उसकी जुबान ना कह सकी जिसके वजह से उन्होंने अपना राज कही तो दफ्न किया है। ढूंढ उस राज को, कुछ तो है जरूर?"
खुद से ही ये सब बाते बोलते हुए, अभय का दिल जोर जोर से चलने लगा। पसीने आने लगे थे उसे। पास रखे पानी का बोतल उठा कर पानी पी कर वो अपने बेड पर शांति से बैठ जाता है।
उसके जहां में वो काली अंधेरी रात घूमने लगती है....जिस दिन वो घर से भाग रहा था।
उस दिन अभय जब स्कूल से घर वापस आया, तब वो अपनी मां को हवेली के बहार ही पाया। अपनी मां के हाथ में डंडा देख कर वो सहम सा जाता है। वो बहुत ज्यादा दर जाता है। स्कूल बैग टांगे उसके चल रहे कदम अचानक से रुक जाते है।
तभी अभय की नजर अमन पर जाति है, जैसा स्कूल यूनिफॉर्म हल्का हल्का फटा था। ऐसा लग रहा था मानो अमन मिट्टी में उलट पलट कर आया हो। अभय को समझते देर नहीं लगी की ये अमन जानबूझ कर किया है उसे उसकी मां से पिटवाने के लिए। अभय ये भी जानता था की, अभय ने कुछ नही बोला और अमन और अपनी मां को नजर अंदाज करते हुए हवेली के अंदर जाने लगा की तभी संध्या की आवाज गूंजी...
संध्या --"किधर जा रहा है? इधर आ?"
अपनी मां की कड़क भाषा सुन कर, अभय इतना तो समझ गया था की अब उसे मार पड़ने वाली है, वैसे तो वो हर बार अपनी मां से दर जाता था, और संध्या के कुछ बोलने से पहले ही वो छटपटाने लगता था। मगर आज वो बिना डर के अपनी मां की एक आवाज पर उसके नजदीक जा कर खड़ा हो गया था। आज उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। बस वहा खड़े होकर कुछ सोच रहा था...
संध्या --"तुझे इतनी बार समझाया है, तू समझता क्यूं नही है? अमन से झगड़ा क्यूं किया तूने? उसका स्कूल ड्रेस भी फाड़ दिया तूने? क्यूं किया तूने ऐसा?"
अभय एक दम शांत वही खड़ा रहा, उसे आज स्कूल में हुई घटना याद आने लगी, जब वो स्कूल के लंच टाइम में खाना खा रहा था, तब वहा अमन आ जाता है। और उसका लंच बॉक्स उठा कर फेक देता है। ये देख कर पास में बैठी पायल उठते हुए अमन के गाल पर एक थप्पड़ रसीद कर देती है।
पायल --"बदमीज कही का, तू क्यूं हमेशा अभय को परेशान करता रहता है? अकल नही है क्या तुझे? खाना भी फेकता है क्या कोई?चलो अभय तुम मेरे टिफिन सेबखाना खा लो।"
ये कहते हुए जब पायल ने अपना टिफिन आगे बढ़ाया, वैसे ही अमन गुस्से में अपना हाथ पायल के टिफिन की तरफ बढ़ा दिया लेकिन तब तक अभय ने अमन का पकड़ते हुए मरोड़ दिया।
अमन दर्द से कराह पड़ा...पर जल्द ही अभय ने कुछ सोचते हुए अमन का हाथ छोड़ दिया।
अमन अपना हाथ झटकते हुए बोला...
अमन --"बड़ा बहादुर बनता है ना तू, आज आ घर पे फिर पता चलेगा तुझे।"
तब तक वहा पर ना जाने कहा से मुंशी पहुंच जाता है, और अमन को दर्द में करता देख...
मुनीम --"क्या हुआ छोटे मालिक? क्या हुआ आपको?"
अमन --"देखो ना मुनीम काका, इसने मेरा हाथ मरोड़ दिया।"
उस समय तो मुनीम ने कुछ नही बोला और अमन को लेकर ना जाने कहा चला गया।
यही सब बातें अभय अपनी मां के सामने खड़ा सोच रहा था पर उसने अपनी मां की बातों का जवाब नही दिया। तभी वहा खड़ा मुनीम बोला...
मुनीम --"मालकिन अब क्या बोलूं, अभय बाबा ने अमन बाबा का लंच बॉक्स उठा कर फेक दिया, और जब अमन बाबा ने पूछा तो, अभय बाबा ने उनका हाथ मरोड़ कर उनसे लड़ने लगे और अमन बाबा को पीटने लगे।"
मुनीम की बात सुनकर संध्या का गुस्सा आसमान पे, पर अभय पर कोई असर नहीं, वो नही डरा और ना ही आज उसने कुछ सफाई पेश की, शायद उसे पता था की उसकी सफाई देने का कुछ भी असर उसकी मां पर नही होगा। और इधर संध्या गुस्से में थी। वो और गुस्से में तब पागल हो जाति है, जब उसे अभय के चहरे पर कुछ भी भाव नही दिखे , वो साधारण ही खड़ा रहा...
तभी एक जोरदार डंडा अभय के हाथ के बाजू पर पड़ा, मगर आज अभय के मुंह से दर्द की जरा सी भी छींक नही निकली...
संध्या --"देखो तो इसको, अब तो डर भी खतम हो गया है। पूरा बिगड़ गया है ये, मुनीम..."
मुनीम --"जी मालकिन..."
संध्या --"मुझे पता है, हर बार मैं जब तुम्हे इसे दंडित करने के लिए बोलती हूं, तो तुम इसको बच्चा समझ कर छोड़ देते हो। अब देखो कितना बिगड़ गया है, खाना भी उठा कर फेंकने लगा है। पर इस बार नही, आज इसने खाना फेंका है ना। इसे खाने की कीमत पता चलने चाहिए, इसे आज खाना मत देना, और कल सिर्फ एक वक्त का खाना देना, फिर पता चलेगा की खाना क्या होता है?"
मुनीम --"जी मालकिन..."
संध्या --"जी मालकिन नही, ऐसा ही करना समझे।"
ये कह कर संध्या जाते जाते 3 से 4 डंडे जोरदार अभय को जड़ देती है।
संध्या --"खाना फेकेगा, अभि से ही इतनी चर्बी।"
कहते हुए संध्या वहा से चली जाति है...
अभय ने अपनी नजर अमन की तरफ मोड़ते हुए देखा तो पाया, अमन संध्या का हाथ पकड़े हवेली के अंदर जा रहा था। अमन ने पीछे मुड़ते हुए मुस्कुरा कर ऐसा भाव अपने चेहरे पर लाया जैसे वो अभय को बेचारा साबित करना चाहता हो। मगर इस बार अभय को जलन नही हुई, बल्कि अमन की मुस्कुराहट का जवाब उसने मुस्कुरा कर ही दिया। जिसे देख कर अमन की मुस्कान उड़ चली।
अभय अपना स्कूल बैग टांगे हवेली के अंदर जाने लगा। तभी वहा रमन आ जाता है...
रमन --"बेचारा, क्यूं सहता तू इतना सब कुछ अभय? तेरी मां तुझे प्यार नही करती है। मुझे पता है, की खाना तूने नही अमन ने फेका था। पर देख अपनी मां को, वो किसे मार रही है, तुझे।"
रमन की बात सुनकर अभय ने मुस्कुराते हुए बोला...
अभय --"वो मुझे मरती है, क्यूंकि उसे लगता है की मैं ही गलत हूं। नही तो वो मुझे कभी नहीं मारती।"
ये सुनकर रमन बोला....
रमन --"अच्छा, तो तुझे लगता है की तेरी मां तुझे बहुत चाहती है?"
अभय --"इसमें लगने जैसा क्या है? हर मां अपने बच्चे को चाहती है।"
रमन --"अरे तेरी मां जब तेरे पापा से प्यार नही कर पाई, तो तुझे क्या करेगी?"
ये सुनकर अभय का दिमाग थम गया...
अभय --"मतलब...?"
रमन --"मतलब ये की, तेरी मां मुझसे प्यार करती है, उसे तेरा बाप पसंद ही नहीं था। इसीलिए तू तेरे बाप की औलाद है तो उस वजह से वो तुझे भी प्यार नही करती।"
अभय तो था 9 साल का बच्चा मगर शब्दो का बहाव उसे किसी दुविधा में डाल चुकी थी, उसने बोला...
अभय --"मेरी मां तुमसे प्यार क्यूं करेगी ? वो तो मेरे पापा से प्यार करती थी।"
ये सुनकर रमन मुस्कुराते हुए बोला...
रमन --"देख बेटा, मैं तेरी भलाई के लिए ही बोल रहा हूं। क्यूंकि तू मेरा भतीजा है?तेरी मां ने खुद मुझसे कहा है की, तू उसकी औलाद है जिसे वो पसंद नही करती थी, इसीलिए वो तुझे भी पसंद नही करती। अब देख तू ही बता वो मुझसे प्यार करती है इसीलिए मेरे बेटे अमन को भी खूब प्यार करती है। अगर तुझे फिर भी यकीन नही है तो। 1 घंटे बाद, वो अमरूद वाले बगीचे में अपना जो पंपसेट का कमरा है ना, उसमे आ जाना। फिर तू देख पाएगा की तेरी मां मुझसे कितना प्यार करती है??
Adbhut updateअपडेट 21
अभय आज अपने चाचा की बात सुनकर बहुत कुछ सोच रहा था। एक 9 साल का बच्चा दिमागी तौर पर परेशान हो चुका था। उसकी जिंदगी थी या अपनी जिंदगी से जूझ रहा था। ये बात भला उस 9 साल के बच्चे को क्या पता?
अपनी मां की मार खाकर भी वो हमेशा अपने दिल से एक ही बात बोलता की मेरी मां मुझसे प्यार करती है इसलिए मरती है, क्योंकि उसे लगता है की मैं ही गलत हूं। मगर आज उसके चाचा की बातें उसे किसी और दिशा में सोचने पर मजबूर कर देती है। वो अपना स्कूल बैग टांगे हवेली के अंदर चल दिया।
अभय अपने कमरे में पहुंच कर, अपना स्कूल बैग एक तरफ रखते हुए बेड पर बैठ जाता है। बार बार दीवाल पर टंगी घड़ी की तरफ नजर घुमाकर देखता। अभय का चेहरा किसी सूखे पत्ते की तरह सूख चला था। वो क्या सोच रहा था पता नही, यूं हीं घंटो बेड पर बैठा अभय बार बार दीवार पर टंगी घड़ी की तरफ नजर डालता। और जैसे ही घड़ी का कांटा 6 पर पहुंचा । वो अपने कमरे से बाहर निकाला।
कमरे से बाहर निकलते ही, हॉल में उसे उसकी मां दिखाई पड़ी। डाइनिंग टेबल पर बैठा अमन नाश्ता कर रहा था, और संध्या और ललिता वही खड़ी उसे नाश्ता खिला रही थी। नाश्ता देखकर अभि भी अपने कदम डाइनिंग टेबल की तरफ बढ़ा देता है और नजदीक आकर टेबल पर बैठ जाता है। उसको टेबल पर बैठा देख संध्या झट से बोल पड़ी....
संध्या --"क्या हुआ? भूख लग गई क्या?अब पता चला ना खाने की कीमत क्या होती है? जो तूने आज उठा कर फेंक दिया था।"
संध्या की बात सुनकर, अमन नाश्ता करते हुए बोला...
अमन --"हां ताई मां, और आपको पता है? आज मैं सारा दिन भूखा रह गया था।"
संध्या --"इतना बिगड़ जायेगा मैं सोच भी नही सकती थी, आज तुझे पता चलेगा की जब भूंख लगती है तो....
संध्या अभि बोल ही रही थी की, अभय मायूस हो कर वहा से बिना कुछ बोले उठ कर चल देता है। शायद वो समझ गया था की उसे खाने को कुछ नही मिलेगा। अभय हवेली से बाहर निकल कर गांव की सड़को पर चल रहा था, शायद उसे भूख लगी थी इसकी वजह से उसके शरीर में वो ऊर्जा नही थी। आज दोपहर को भी उसने थोड़ा बहुत ही खाया था वो भी पायल के टिफिन बॉक्स में से। उसका टिफिन बॉक्स तो अमन फेंक दिया था। वो चलते चलते अमरूद के बाग में पहुंच गया। उसे भूख लगी थी तो वो अमरूद के पेड़ पर चढ़ कर एक दो अमरूद तोड़ कर खा रहा था। करीब आधे घंटे बाद उसे उसकी मां की कार दिखी जो सड़क के किनारे आ कर रुक गई। पेड़ पर चढ़ा अभय की नजरे उस कार पर ही थी।
तभी उसने देखा की कार में से उसकी मां और उसका चाचा दोनो उतरे, और उसी बगीचे की तरफ आ रहे थे। जैसे जैसे अभय की मां बगीचे की तरफ बढ़ रही थी वैसे वैसे अभय का दिल भी धड़क रहा था।
अभय के मन में हजार सवाल उठने लगे थे, वो बहुत कुछ सोचने लगा था। पर उसकी नजर अभि भी अपनी मां के ऊपर ही टिकी थी। जल्द ही संध्या और रमन उस बगीचे में दाखिल हो चुके थे। अभय के दिल की रफ्तार तब और बढ़ गई जब उसने अपनी मां और चाचा को उस बगीचे वाले कमरे की तरफ जाते देखा।
जैसे ही दोनो कमरे के अंदर दाखिल हुए, संध्या दरवाजा बंद करने के लिए पीछे मुड़ी, तब अभय ने अपनी मां के चेहरे पर जो मुस्कान देखी उसे ऐसा लगा जैसे आज उसकी मां खुश है। जैसे संध्या ने दरवाजा बंद किया अभय की आंखे भी एक पल के लिए बंद हो गई। वो कुछ देर तक यूं ही उस अमरूद की टहनी पर बैठा उस दरवाजे की तरफ देखता रहा। और थोड़ी देर के बाद वो अमरूद के उस पेड़ से नीचे उतर कर बड़े ही धीमी गति से उस कमरे की तरफ बढ़ा।
उसका दिल इस तरह धड़क रहा था मानो फट ना जाए, उसे सांस लेने में तकलीफ सी हो रही थी। हर बार उसे गहरी सांस लेनी पड़ रही थी। चलते हुए उसके पैर आज कांप रहे थे। ठंडी के मौसम में भी उसे गर्मी का अहसास उसके शरीर से टपक रहे पसीने की बूंद करा रही थी। उसका सिर भरी सा पद गया था, मगर आखिर में वो उस कमरे के करीब पहुंच ही गया।
उसकी नजर उस दीवाल पर बने छोटे छोटे झरोखों पर पड़ी, और बड़ी ही हिम्मत जुटा कर अभय ने अपनी नजर उस झरोखे से सटा दिया।
अंदर का नजारा देखते ही, अभय के हाथ की मीठी में पड़ा वो अमरूद अचानक ही नीचे गिर जाता है। अभय के आंखो के सामने उसकी का की बिखरी हुई फर्श पर साड़ी पर पड़ी, वो अपनी मां की फर्श पर साड़ी को देखते हुए जैसे नजरे उठा कर देखा तो, उसे उसकी मां की नंगी पीठ दिखी, जो इस समय उसके चाचा रमन की जांघो पर उसकी तरफ मुंह कर के बैठी थी।
अभय हड़बड़ा गया, और झट से वो उस दीवार से इतनी तेजी से दूर हुआ, मानो उस दीवार में हजार वॉट का करंट दौड़ रहा हो।
अभय के चेहरे पर किस प्रकार के भाव थे ये बता पाना बहुत मुश्किल था। मगर उसे देख कर ये जरूर लग रहा था की वो पूरी तरह से टूटा हुआ, एक लाचार सा बच्चा था। जो आज अपनी मां को किसी गैर की बाहों में पाकर, खुद को गैर समझने लगा था। वो बहुत देर तक उस दीवाल से दूर खड़ा उसी दीवाल को घूरता रहा। और फिर धीरे से अपने लड़खड़ाते पैर उस बगीचे से बाहर के रास्ते की तरफ मोड़ दिया।
आज अभय का साथ उसे पैर भी नही दे रहे थे। दिमाग तो पहले ही साथ छोड़ चुका था और दिल तो ये मानने को तैयार नहीं था की जो उसकी आंखो ने देखा वो सब सच था। एक शरीर ही था उसका जो बिना दिल और दिमाग के कमजोर हो गया था। उसके पैर उस जगह नहीं पड़ते जहा वो रखना चाहता था। पर शायद अभय को इस बात का कोई फिक्र भी नही था। आज उसके कदम कही पड़े वो मायने नहीं रख रहा था। क्यूं की आज उसे खुद को नही पता था की वो अपने पैर किस दिशा की तरफ मोड़?
चलते हुए वो खेत की पगडंडी पर बैठ जाता है, पेट में लगी ढूंढ भी शायद शांत हो गई थी उसकी, अच्छा हुआ उसेसमय वहा कोई नही था, नही तो उस 9 साल के बच्चे का चेहरा देख कर ही यही समझता की जरूर इसका इस दुनिया में कोई नही है।
कहते है ना जो दिल समझता है अपना शरीर भी वैसा ही बर्ताव करता है। और आज अभय के दिल ने मान लिया था की अब उसका कोई नही है। आज वो रो भी नही रहा था, क्यूंकि जब आंखे रोती है तो आंखो से अश्रु की दरिया बहती है, लेकिन जब दिल रोता है, तो सारे दर्द रिस कर अश्रु की सिर्फ दो कतरे फूटते है जिसके कतरे हाथो से पूछने पर भी चांद लम्हों के बाद गालों पे दर्द की लकीरें छोड़ जाति है।
पगडंडी पर बैठा अभय की आंखो से भी आज रह रह कर ही बूंदे टपक रही थी। उसके सामने चारो दिशाएं थी मगर आज वो समझ नही पा रहा था की किस दिशा में वो जाए। उसकी चाचा की कही हुई बाते, अभय को यकीन दिला गई की उसकी मां ने आज तक उसे जितनी बार भी मारा था वो उसकी नफरत थी। रह रह कर अभय के जहन में उसके चाचा की बातें आती की, तेरी मां तेरे बाप से प्यार ही नहीं करती थी, वो तो मुझसे प्यार करती थी।"
अभय का सिर इतना जोर से दुखने लगा की मानो फट जायेगा, और वो अपना हाथ उठते हुए अपने सिर पर रख लेता है।
अंधेरा हो गया था, मगर अभय अभि भी वही बैठा था। तभी अचानक ही बादल कड़कने लगे, और तेज हवाएं चलने लगी... अभय ने एक बाजार उठा कर इधर उधर देखा और खड़ा होते हुए घर की तरफ जाने के लिए कदम बढ़ाया ही था की, उसने अपने पैर रोक लिए...
तभी किसी आवाज ने अभय को यादों से झिंझोड़ते हुए, वर्तमान में ला पटका। अभय की नजर फोन पर पड़ी जिस पर कॉल आ रहा था...
अभि --"हेलो...!!"
सामने से कुछ आवाज नही आवरा था, तो की ने एक बार फिर से बोला...
अभि --"हेलो...कौन है??"
तब सामने से आवाज आई.....
संध्या --"मैं हूं...।"
अभय --"मैं कौन? मैं का कुछ नाम तो होगा?"
अभय की बात सुनकर सामने से एक बार फिर से आवाज आई...
"एक अभागी मां हूं, जो अपने बेटे के लिए बहुत तड़प रही है, प्लीज फोन मत काटना अभय।"
अभय समझ गया की ये उसकी मां है, वो ये भी समझ गया की जरूर उसकी मां ने एडमिशन फॉर्म से नंबर निकला होगा।
अपनी मां की आवाज सुनकर अभय गुस्से में चिल्लाया...
अभय --"तुझे एक बार में समझ नही आता क्या? तेरा और मेरा रास्ता अलग है,। क्यूं तू मेरे पीछे पड़ी है, बचपन तो खा गई मेरी अब क्या बची हुई जिंदगी भी जहन्नुम बनाना चाहती है क्या?"
अभय की बात सुनकर संध्या एक बार फिर से रोने लगती है.....
संध्या --"ना बोल ऐसा, मैने ऐसा कभी सपने में भी नही सोच सकती।"
संध्या की बात सुनकर अभि इस बार शांति से बोला....
अभि --"काश!! तूने ये सपने में सोचा होता, पर तूने तो...??" देख मैं संभाल गया हूं, समझ बात को, मुझे अब तेरी जरूरत नहीं है, और ना ही तेरी परवाह। मैं यह सिर्फ पढ़ने आया हूं, कोई रिश्ता जोड़ने नही। तू अपने भेजे में ये बात डाल ले की मैं तेरे लिए मर चुका हूं और तू मेरे लिए। तू जैसे अपनी जिंदगी जी रही थी वैसे ही जी, और भगवान के लिए मुझे जीने दे। मैं तुझसे गुस्सा नही हूं, ना ही तुझसे नाराज हूं, क्योंकि गुस्सा और नाराजगी अपनो से किया जाता है। तू मेरे लिए दुनिया के भीड़ में चल रही एक इंसान है बस, और कुछ नही।"
कहते हुए अभय ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया.....