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Incest वो तो है अलबेला (incest + adultery)

क्या संध्या की गलती माफी लायक है??


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Bhai Teri tadap abhi khatm nahin hogi story mein ma apne bhai se kisi majburi mein chudati hai aur ma Kai bar Apne bete ko sach batana chahti hai lekin writer story ko Lamba khinchne ke chakkar mein suspense per suspense banaen ja raha hai
Ye to acha hai iss story mai abhay ko koi behen ni hai ni to Sandhya usko bhi raman ke lode pr baitha chuki hoti...aisi hi maa aur bete ki nafrat ki ek story TERI TADAP JLDI KHTM NI HOGI...usme bhi kuch aisa hi h maa apne bete ko marti h aur khud aiyashi krti h...koi bhi majboori itni badi kaise ho skti hai ki khusi khusi chudti fere aur apne bete ko mare-pite...garmi shant krna hi hai to beta paida na kre fir chudti Rahi bina kisi tension ke,,:respekt::respekt:km se kam future mai uski izzat apne bete ke samne to ni jyegi...baki bro Dil pr na lena story hai sabke apne apne soch hai:freak:
Bakchodi pelna aur page badhana band karo tum dono story ke upar discussion kam aur ek dusre ke thought pe gyan pele ja rahe ho, baki readers bhi hai yahan sirf tum hi nahi ho, thoda thand rakha karo bey faltu ke chat se page badha rahe, update padho review do nikal lo, page pe page bhare ja rahe ho
 
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Absolute_ONE

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Bhai Teri tadap abhi khatm nahin hogi story mein ma apne bhai se kisi majburi mein chudati hai aur ma Kai bar Apne bete ko sach batana chahti hai lekin writer story ko Lamba khinchne ke chakkar mein suspense per suspense banaen ja raha hai
Are yar mai kaha ye bol rha ki wo na chude...Bhai chude din raat chude mujhe usse koi prblm ni mai ye bol rha ki majboori ki side krne ke baad koi bhi maa apne bete ko janwar ki trh ni marti aur itna sb krne ke baad jb beta dur hota tb hi usko ahsas hota h usse phle ni aur jb glti ki hai to maafi kyu mange paschtap kre...
 

Tiger 786

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अपडेट 13

रास्ते पर चल रहा अभि, खुद से ही कुछ न कुछ सवाल कर रहा था , पर उसके सवाल का जवाब ना ही उसका दिल दे रहा था और ना ही उसका दिमाग। इतने सालो बाद अपनी मां को देखकर, उसे इतना गुस्सा आखिर क्यूं आ गया? अभय भी कभी कभी सोचता इसके बारे में, लेकिन फिर अपनी मां की वो छवि उसकी आंखो के सामने दृश्यमान हो जाती, जिस छवि से वो बचपन से वाकिफ था। फिर उसको दिल को एक सुकून मिलता, की जो किया वो सही किया।

अभि रात भर सोया नही था, उसका सिर दुखने लगा था। उसकी आंखे भारी होने लगी थी, उसे नींद का एहसास होने लगा था। कलाई पर बंधी घड़ी की तरफ नजर दौड़ाई तो 11:३० है रहे थे, अभी ने रात से कुछ खाया भी नही था। तो उसे भूख तो लगी थी, पर नींद उसे अपने पास बुला रही थी। वो जल्द ही कॉलेज हॉस्टल के सामने पहुंच गया था। वो हॉस्टल में कदम रखने ही वाला था की, उसके नजर हॉस्टल से थोड़ी दूर वाले खेत पर पड़ी। जहां कुछ आदमी काम कर रहे थे, वो उस खेत में फावड़ा लेकर खुदाई कर रहे थे। ये देख कर ना जाने अभि को क्या हुआ, इसके चेहरे पर गुस्से के भाव उमड़ पड़े।

वो करीब करीब भागते हुए वहा पहुंचा जिस खेत में खुदाई हो रही थी।

"ऐ रुक, क्या कर रहा है तू ये? ये पेड़ क्यूं काट रहा है? तुझे पता नही की हरे भरे पेड़ को काटना किसी के मर्डर करने के बराबर है।"

अभि एक दम गुस्से में बोला...

अभि की गुस्से भरी आवाज सुनकर, बहा काम कर रहे सभी मजदूर सकते में आ गए, और अभि को प्रश्नवाचक की तरह देखने लगे। उन मजदूरों में से एक आदमी , को शायद वह खड़ा हो कर काम करवा रहा था वो बोल...

"और छोरे, क्यूं हमारा समय खोटी कर रहा है। तुम्हें पता नही की यह एक डिग्री कॉलेज बनना है। और हम उसी की नीव खोद रहे है। अब जाओ यह से, पढ़ाई लिखाई करो, और हमे हमारा काम करने दो।"

उस आदमी की बात सुनकर, अभय भी सकते में आ गया, और हैरत भरी नजरो से देखते हुए बोला...

अभि --"अरे तुम लोग पागल हो गए हो क्या? ये सारी ज़मीन उपजाऊं है। कोई ऊसर नही जो कोई भी आएगा और खोद कर डिग्री कॉलेज खड़ा कर देगा। अब अगर एक भी फावड़ा इस धरती पर पड़ा, कसम से बोल रहा ही, जो पहला फावड़ा चलाएगा, उसके ऊपर मेरा दूसरा फावड़ा चलेगा।"

अभि की गुर्राती हुई बात सुनकर, वो सब मजदूर एक दूसरे का मुंह देखने लगते है, अपने मजदूरों को यूं अचंभित देखकर वो काम करवाने वाला आदमी बोला...

"अरे वो छोरे, जा ना यह से, क्यूं मजाक कर रहा है? खोदो रे तुम लोग।"

अभि --"मेरे जानने वाले लोग कहते है की, कर मेरा मजाक सच होता है। अब ये तुम लोगो के ऊपर है, की इसे मजाक मानते हो या इस मजाक को सच होता देखना चाहते हो। मेरा mind set क्लियर है, जो पहला फावड़ा मरेगा। उसके उपर दूसरा फावड़ा जरूर पड़ेगा।"

अभि की बात सुनते ही, उन मजदूरों के हाथ से फावड़ा छूट गया, ये देखकर वो आदमी गुस्से में बोला...

"तुम सब पागल हो गए क्या? ये छोरा मजाक की दो बातें क्या बोल दिया तुम लोग तो दिल पर ले लिए।"

अभि --"ओ भाई साहब, तो तू ही फावड़ा चला ले। तुझे तो मेरी बात मजाक लग रही है ना, तूने तो दिल पर नही लिया है ना।"

अभि की बेबाकी सुनकर, वो आदमी भी हक्का बक्का रह गया, और अपना बैग उठते हुए अपनी कांख दबाते हुए बोला...

"बहुत चर्बी चढ़ी है ना तुझे, रुक अभि मालिक को लेकर आता हूं, फिर देखना क्या होता है?"

ये बोलकर वो आदमी वहा से जाने लगा, तभी अभि ने एक और आवाज लगाई...

अभि --"अबे वो छिले हुए अंडे, रानी को लेकर आ, प्यादो की बस की बात नहीं को मेरी चर्बी उतार सेके।"

आदमी --"क्या मतलब??"

अभि --"abe ठाकुराइन को लेकर आना।"

वहा खड़ा एक मजदूर अभि की बेबाक बाते ध्यान से सुन रहा था। जैसे ही काम करवाने वाला आदमी हवेली के लिए रूकसद हुआ। वो मजदूर भी चुपके से वहा से गांव की तरफ बढ़ा.....

वो आदमी थोड़ी दूर ही चला था की, अचानक से ही गांव की तरफ तेजी से भागने लगा। उसे भागते हुए किसी ने देखा होता तो शायद यही समझता की जैसे अपनी जान बचा कर भाग रहा हो, वो आदमी इतनी तेज गति से भाग रहा था। वो आदमी भागते भागते गांव तक पहुंच गया, और वो मुखी या की घर की तरफ भागने लगा।

इधर गांव का एक झुंड, सरपंच के घर पर एकत्रित थी। सरपंच कुर्सी लगा कर उन गांव वालो के सामने बैठा था।

सरपंच --"देखो मंगलू, मुझे भी दुख है इस बात का। पर अब कुछ नही हो सकता, ठाकुर साहब से बात की मैने मगर कुछ फायदा नहीं हुआ। अब उन खेतो पर कॉलेज बन कर ही रहेगा, अब तो मान्यता भी मिल गई है डिग्री की।"

ये सुनकर मंगलू बेबसी की बोली बोला...

मंगलू --"नही देखा जा रहा है मालिक, वो सिर्फ खेत ही नही, हमारा और हमारे परिवार का पेट भरने वाला अन्न का खजाना है, सब कुछ है हमारे लिए, उन खेतो में फावड़ा सिर्फ अनाज उगाने के लिए पड़ते थे मालिक, मगर आज जब उन्ही खेतों में फावड़ा कालेज बनाने के लिए पद रहे है तो, ऐसा लग रहा है वो फावड़ा हमारी किस्मत और साइन पर पद रहा है। कुछ तो करिए मालिक!!"

सरपंच अपनी कुर्सी पर से उठते हुए गुस्से में बोला...

सरपंच --"तुम सब को एक बार बोलने पर समझ नही आता क्या? बोला ना अब कुछ नही हो सकता। जब देखो मुंह उठा कर चले आते है..."

ये कह कर सरपंच अपने घर के अंदर जाने के लिए मुड़ा....

गांव वाले हांथ जोड़े इसी आस में थे की शायद कुछ होगा , मगर सरपंच की बात सुनकर अनलोगो का दिल पूरी तरह से टूट गया और जमीन पर बैठे हुए गांव के वो भोले भाले लोग, निराश मन से उठे और पिन घर की तरफ जाने के लिए मुड़े ही थे की...


"मंगलू काका.... मंगलू काका...."

गांव वालो ने देखा की गांव का एक आदमी सातब्दी एक्सप्रेस की तरह मंगलू का नाम लेते हुए भागा चला आबरा था। ये देख कर गांव वाले थोड़ा चकित हो गए, और आपस में ही बड़बड़ाने लगी...

"अरे ई तो कल्लू है, ऐसा कहे चिल्लाते हुए भागे आ रहा है?"

वो आदमी जो भागते हुए आ रहा था गांव वालो ने उसका नाम कल्लू बोला था, तो मतलब उसका नाम कल्लू था। अब वो कल्लू , गांव वालो के पास पहुंचते हुए रुक गया और अपने पेट पर हाथ रख कर जोर जोर से हाफने लगा...

कल्लू की ऐसी हालत देख कर गांव वाले भी हैरान थे, तभी मंगलू ने उसके कंधे पर हाथ रख कर कल्लू को झिंझोड़ते हुए पूछा.....

मंगलू --"अरे का हुआ, मंगलू? तू इतनी तेजी से कहे भाग रहा है? का बात है?"

कल्लू ने अपनी तेज चल रही सांसों को काबू करने की कोशिश की , मगर शायद जिंदगी में पहेली बार इतनी लगन के साथ भागा था इसलिए उसका शरीर उसकी सांसे को काबू ना कर सकी, वो फिर भी अपनी उखड़ी सांसों में बोला...

कल्लू --"वो खेतों... खेतों में खुदाई...खुदाई..."

हांफते हुए कल्लू की बात सुनकर, मंगलू ने दबे मन से कहा...

मंगलू --"पता है कल्लू, पर अब कुछ नही हो सकता, खेतो की खुदाई अब नही रुकेगी।"

"और काका...खुदाई रुक गई... ई ई ई है..."

कल्लू ने चिल्लाते हुए बोला....

कल्लू की ये बात से गांव वालो के शरीर में सिरहन पैदा हो गई... आश्चर्य से कल्लू की तरफ देखते हुए, अपनी आंखे बड़ी करते हुए सब गांव वालो में अफरा तफरी मच गई, घर के अंदर जा रहा सरपंच भी कल्लू की वाणी सुनकर सकते में आ गया। और पीछे मुड़ते हुए कल्लू की तरफ देखते हुए बोला...

सरपंच --"खुदाई रुक गई, पागल है क्या तू?"

कल्लू --"अरे सच कह रहा हूं सरपंच जी, एक 17 , 18 साल का लवंडा, आकर खुदाई रुकवा दी। कसम से बता रहा हूं सरपंच जी, क्या लड़का है? एक दम निडर, ऐसी बाते बोलता है की पूछो मत। अरे वो गया है अपना कॉन्ट्रैक्टर ठाकुर के पास, ठाकुर को बुलाने।"

सरपंच के साथ साथ गांव वालो के भी होश उड़ गए थे, सब गांव वालो में खलबली मच गई, और उस लड़के को देखने के लिए सारा झुंड उस खेतों की तरफ़ टूट पड़ा। फिर क्या था? औरते भी पीछे कहा रहने वाली थी, वो लोग भी अपना घूंघट चढ़ाए पीछे पीछे चल दी।

वहा पर खड़ा अजय और उसके दोस्त भी इस बात से हैरान थे। अजय भी अपने दोस्त के साथ साइकल पर बैठ कर चल दिया, पर गांव वालो की भीड़ जो रास्ते पर चल रही थी, उसकी वजह से अजय का सायकिल क्रॉस नही हो पा रहा था। अजय के अंदर , बहुत ज्यादा उत्सुकता थी उस जगह पहुंचने की, मगर रास्ता तो जाम था। इस पर वो थोड़ा चिड़चिड़ाते हुऐ आगे चल रही औरतों को चिल्लाते हुए बोला...

अजय --"अरे देवियों, तुम लोगों कब्वाहा क्या काम, सगाई गीत नही गाना है, जो सिर पर घूंघट ताने चल दिए..."

अजय की बात सुनकर, एक मोटी औरत अजय की तरफ घूमती हुई अपनी सारी का पल्लू जैसे ही हटती है...

अजय --"अम्मा तू भी।"

"हा, जरा मैं भी तो देखी उस छोर को, जो nna जाने कहा से हमारे लिए भगवान बनकर आ गया है, और ठाकुर के लिए शैतान।"

अजय --"वो तो ठीक है, पहले इन भैंसो को थोड़ा साइड कर हम लोगो को जाने दे।"

अजय की बात सुनकर, गांव की सभी औरते रुक कर अजय की तरफ मुड़ी...और वो औरते कुछ बोलने ही वाली थी की, अजय को एक गली दिखी...

अजय --"उस गली से निकल पप्पू...जल्दी नही तो भैंसे अटैक कर देंगी।"

और कहते हुए वो औरतों को चिढ़ाने लगा पर तब्बतक बल्लू ने गली में साइकिल मोड़ दी थी...

"सच बता रही हूं दीदी, अगर तुम्हरा छोरा गांव का चहेता नही होता ना, तो बताती इसे।"

तभी दूसरी औरत बोली...

"हाय री दईया, इसको तो कुछ बोलना भी हमको खुद को बुरा लगता है।"

तभी अजय की मां बोली...

"अरे मुन्नी...हमारे बेटे की तारीफ बाद में कर लियो, अभि तो अपने प्यार जरा तेजी से चला। इस छोरे को देखने को दिल मचल रहा है, कौन है वो? कहा से आया है? और कहे कर रहा है ये सब?

-----------&&--------------

इधर हवेली में जैसे ही संध्या की कार दस्तक देती है। संध्या कार से नीचे उतरती हुई, अपने नौकर भानु से बोली...

संध्या --"भानु, तू अंदर आ जल्दी।"

संध्या की बात और कदमों की रफ्तार देख कर मालती और ललिता दोनो थोड़े आश्चर्य रह गई, और वो दोनो भी संध्या के पीछे पीछे हवेली के अंदर चल दी। संध्या हवेली में घुस कर सोफे के आगे पीछे अपना हाथ मलते घूमने लगी...

संध्या --"भानु...."

संध्या जोर से चीखी...

"आया मालकिन...."

भानु करीब - करीब भागते हुए हवेली के अंदर पहुंचा।

भानू --"जी कहिए मालकिन।"

संध्या --"सुनो भानू, अपने हॉस्टल में एक लड़का आया है। तो आज से तुम उस हॉस्टल में ही रहोगे और उसे जिस भी चीज की जरूरत पड़ेगी, वो हर एक चीज उसे मिल जानी चाहिए।"

ये सुनकर भानू बोला...

भानू --"जी मालकिन,,"

संध्या -"ठीक है, जाओ और रमिया को भेज देना।"

ये सुनकर भानू वहा से चला जाता है। मलती बड़े गौर से संध्या को देख रही थी, पर संध्या का ध्यान मालती किंतारफ नही था। वोब्तो ना जाने क्या सोचते हुए इधर उधर बस हाथ मलते हुए चहल कदमी करवरही थी, उसे देख कर ऐसा लगब्रह था मानो किसी चीज की छटपटाहट में पड़ी है। तभी वहां पर रमिया भी आ गई।

रमिया --"जी मालकिन, आपने बुलाया हमको?"

संध्या रमिया को देख कर झट से बोल पड़ी...

संध्या --"हां सुन रमिया, आज से तू हर रोज सुबह और शाम हॉस्टल में जायेगी, और वहा पर जो एक नया लड़का आया है, उसके लिए खाना बनाना है। और हां याद रखना खाना एकदम अच्छा होना चाहिए। समझी।"

रमिया --"जैसा आप कहे मालकिन।"

संध्या की हरकते बहुत देर से देख रही मालती अचानक हंस पड़ी, मलती को हंसते देख संध्या का ध्यान अब जाकर मालती पर पड़ी...

संध्या --"मलती प्लीज़, मैं इस पर कुछ बात नही करना चाहती। मुझे पता है तुम्हारी हंसी का कारण क्या है? पर...

"पर...पर क्या दीदी?"
मलती ने संध्या की बात बीच में ही काटते हुए बोली...

मलती --"कही आपको ये तो नहीं लग रहा की, वो अभय है? वैसे भी आपकी बेताबी देख कर तो यही समझ आ रहा है मुझे। दीदी आपने शायद उस लड़के को ध्यान से परखा नही, वो लड़का जरा हट के था। कैसी कैसी बातें बोल रहा था देखा नही आपने? बिलकुल निडर, सच कहूं तो अगर वो अभय होता तो, तो तुम्हे देखते ही भीगी बिल्ली बन जाता। पर ऐसा हुआ नहीं, उसने तो आपको ही भीगी बिल्ली बना दीया, हा... हा... हा।"

संध्या --"देखो मालती, मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं, मुझे बक्श दो।"

मलती --"क्या हुआ दीदी? मैने ऐसा क्या कह दिया? जोभिया वही तो बोल रही हूं। चलो एक पल के लिए मान भी लेते है की, वो अभी है। तो आपको क्या लगता है, नौकरी को भेज कर उसकी देखभाल करा कर क्या साबित करना चाहती हो आप? आप ये सब करोगी और आप को लगता है, वो पिघलकर ma.. मां... मां करते हुए आपके गले से लिपट जायेगा। इतना आसान नहीं है दीदी। मैं ख़ुद भगवान से दुआ कर रही हूं की ये हमारा अभि ही हो, पर एक बात याद रखना अगर ये हमारा अभि हुआ, तो एक बात पर गौर जरूर करना की, वो घर छोड़ कर भागा था, और आपको पता है ना की घर छोड़ कर कौन भागता है? वो जिसे उस घर में अपने सब बेगाने लगते है। अरे वो तो बच्चा था, जब भागा था। ना जाने कैसे जिया होगा, किस हाल में रहा होगा। कितने दिन भूखा रहा होगा? रोया होगा, अपनी के प्यार के लिए तड़पा होगा। अरे जब उस हाल में वो खुद को पाल लिया, तो आज आपकी ये दो टके का प्यार दिखा कर, सब कुछ इतना आसानी से ठीक करना चाहती हो।"

मलती की बात संध्या के दिल को चीरते हुए उसकें दिल में घुस गई.....संध्या की आंखे थी या नदियां, आशुओं की धारा रुक ही नही रही थी।

संध्या --"मैं कुछ ठीक नहीं करना चाहती, और...और ये भी जानती हूं की ये इतना आसान नहीं है। मैं वही कर रही हूं जो मेरे दिल ने कहा है।"

मलती --"दिल ही तो है दीदी, कुछ भी कहता रहता है। वो लड़का थोड़ा अलबेला है, पहेली मुलाकात में ही घाव कर गया....

कहते हुए मालती अपने कमरे की तरफ चल देती है, और संध्या रोते हुए धड़ाम से सोफे पर गिर जाती है.....
Superb update
 

Mink

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बहुत ही खूबसूरत कृति है आपकी Hemantstar111 भाई , जब मैंने यह कहानी पढ़ना शुरू किया तो बिना रुके ही अभी तक के सारे अंक पढ़ डाले और कहानी के किरदार अब धीरे धीरे अपने अपने रंग में आने लगे हैं और जो चरित्र निर्माण (character development) हुए उससे में बहुत ही प्रभावित हुआ हूं और जैसा किरदार संध्या का है थोड़ा से ग्रे शेड लगे मुझे उसका क्यों की कभी कभी वो अपने बेटे के लिए बहुत ही दुखी है और अगले पल ही किसी दूसरे के लिए अपने बेटे को ही भूल जाना और जैसे अपने कहा की संध्या अपने शादी इस शर्त पर की थी की वो अपनी पढ़ाई शादी के बाद भी जारी रखेगी फिर भी अपनी BA कॉपी करके पास हुई इसमें कुछ लोचा है क्यों की लोग ऐसे तभी करते हैं जब सच में उनको पढ़ाई का कीड़ा हो या फिर किसी चीज से बचने के या फिर टालने मनसूबा बना रहे हो और इसी से शायद कुछ झोल लग रहा हो और पायल के किरदार बहुत ही भाया मुझे जैसे उसका इंट्रो फिर अभय के साथ बातचीत पढ़ते हुए मुस्कान तैर गई। खैर कहानी में बहुत से सरप्राइस और सस्पेंस एलिमेंट हैं जिसको फिर कभी fan theory जैसे चर्चा करेंगे और शुक्रिया जो आपने एक बेहतरीन कृति इस मंच पर हमारे सामने लाए। धन्यवाद
 

Tiger 786

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आज संध्या अपने आप में टूट सी गई थी, वो कुछ भी नही समझ पा रही थी की, वो क्या करे ? और क्या न करे?उसकी से आंखो से बह रहे आंसुओ की धारा को समझने वाला कोई नहीं था। कोई था भी, तो वो था सिर्फ उसका दिल। वैसे देखा जाए तो सही भी था। क्युकी इसकी जिम्मेदार वो खुद थी।

सोफे पर बैठी मन लगा कर रो रही संध्या, बार बार गुस्से में अपने हाथ को सोफे पर मारती। शायद उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था। पर वो बेचारी कर भी क्या सकती थी? रोती हुई संध्या अपने कमरे में उठ कर जा ही रही थी की, वो कॉन्ट्रैक्टर वहा पहुंच गया...


"नमस्ते ठाकुराइन..."

संध्या एक पल के लिए रुकी पर पलटी नही, वो अपनी साड़ी से बह रहे अपनी आंखो से अंसुओ को पहले पोछती है , फिर पलटी...

संध्या --"अरे सुजीत जी, आप यहां, क्या हुआ काम नहीं चल रहा है क्या कॉलेज का?"

तो उस कॉन्ट्रैक्टर का नाम सुजीत था,

सुजीत --"अरे ठाकुराइन जी, हम तो अपना काम ही कर रहे थे। पर न जाने कहा से एक छोकरा आ गया। और मजदूरों को काम करने से रोक दिया।"

संध्या --"क्या बात कर रहे हो सुजीत जी, एक छोकरा मजाक आकर आप लोगो से मजाक क्या कर दिया, आप लोग दर गए?"

सुजीत --"मैने भी उस छोकरे से यही कहा था ठाकुराइन, की क्या मजाक कर रहा है छोकरे? तो कहता है, अक्सर मुझे जानने वालों को लगता है की मेरा मजाक सच होता है। फिर क्या था मजदूरों के हाथ से फावड़ा ही छूट गया, क्यूंकि उसने कहा था की अगर अब एक भी फावड़ा इस खेत में पड़ा तो दूसरा फावड़ा तुम लोगो के सर पर पड़ेगा।"

उस कॉन्ट्रैक्टर की मजाक वाली बात पर संध्या का जैसे ही ध्यान गया, वो चौंक गई, क्युकी यही मजाक वाली बात का ठीक वैसा ही जवाब अभय ने भी संध्या को दिया था। संध्या के होश उड़ चुके थे, और वो झट से बोल पड़ी...

सांध्य --"ठीक है, आ...आपने कुछ किया तो नही ना उसे?

सुजीत --"अरे मैं क्या करता ठाकुराइन? वो नही माना तो, मैने उसको बोला की तू रुक अभि ठाकुर साहब को बुला कर लाता हूं।"

संध्या --"फिर, उसने क्या कहा?"

सुजीत --"अरे बहुत ही तेज मालूम पड़ता है वो ठाकुराइन, बोला की रानी को बुला कर ला, ये प्यादे मेरा कुछ नही बिगाड़ पाएंगे।"

ये सुनकर, संध्या के चेहरे पर ना जाने क्यूं हल्की सी मुस्कान फैल गई, जिसे उस कॉन्ट्रैक्टर ने ठाकुराइन का चेहरा देखते हुए बोला...

सुजीत --"कमाल है ठाकुराइन, कल का छोकरा आपका काम रुकवा दिया, और आप है की मुस्कुरा रही है।"

कॉन्ट्रैक्टर की बात सुनकर, संध्या अपने चेहरे की मुस्कुराहट को सामान्य करती हुई कुछ बोलने ही वाली थी की...

"अरे, सुजीत जी आप यहां। क्या हुआ काम शुरू नही किया क्या अभि तक?"

ये आवाज सुनते ही, कॉन्ट्रैक्टर और संध्या दोनो की नजरे us आवाज़ का पीछा की तो पाए की ये रमन सिंह था।

सुजीत --"काम तो शुरू ही किया था ठाकुर साहब, की तभी न जाने कहा से एक छोकरा आ गया, और काम ही रुकवा दिया।"

ये सुनकर रमन के चेहरे पर गुस्से की छवि उभरने लगी...

रमन --"क्या!! एक छोकरा?"

सुजीत --"हां, ठाकुर साहब,, इसी लिए तो मैं ठाकुराइन के पास आया था।"

रमन --"ऐसे लिए, भाभी के पास आने की क्या जरूरत थी? मुझे फोन कर देते, मैं मेरे लट्ठहेर भेज देता। जहा दो लाठी पड़ती , सब होश ठिकाने आ जाता उसका जा..."

"जबान संभाल के रमन..."

संध्या थोड़ा गुस्से में रमन की बात बीच में ही काटते हुए बोली। जिसे सुनकर रमन के चेहरे के रंग बेरंग हो गए। और असमंजस के भाव में बोला।

रमन --"भाभी, ये क्या कह रही हो तुम?"

संध्या --"मैं क्या कह रही हूं उस पर नही, तुम क्या कह रहे हो उस पर ध्यान दो। तुम एक लड़के को बिना वजह लट्ठहेरो से पिटवावोगे। यही काम बचा है अब।"

रमन तो चौकाने के सिवा और कुछ नही कर पाया, और झट से बोल पड़ा...

रमन --"बिना वजह, अरे वो छोकरा काम रुकवा दिया, और तुम कह रही हो की बिना वजह।"

संध्या --"हां, पहले चल कर पता तो करते है, की उसने आखिर ऐसा क्यूं किया। समझाएंगे, मान जायेगा। और तुम सीधा लाठी डंडे की बात करने लगे। ये अच्छी बात नहीं है ना। चलो सुजीत जी मै चलती हूं।"

और फिर संध्या कॉन्ट्रैक्टर के साथ, हवेली से बाहर जाने लगती है। एक पल के लिए तो रमन अश्र्याचकित अवस्था में वही खड़ा रहा, लेकिन जल्द ही वो भी उन लोगो के पीछे पीछे चल पड़ा...

गांव की भरी भरकम भीड़ उस खेत की तरफ आगे बढ़ रही थी। और एक तरफ से ठाकुराइन भी अपनी कार में बैठ कर निकल चुकी थीं। जल्द दोनो पलटन एक साथ ही उस खेत पर पहुंची। संध्या कार से उतरते हुए गांव वालो की इतनी संख्या में भीड़ देख कर रमन से बोली...

संध्या --"ये गांव वाले यहां क्या कर रहे है?"

संध्या की बात सुनकर और गांव वालो की भीड़ को देख कर रमन को पसीने आने लगे। रमन अपने माथे पर से पसीने को पोछत्ते हुए बोला...

रमन --"प...पता नही भाभी, व...वही तो देख कर मैं भी हैरान हूं।"

संध्या अब आगे बढ़ी और उसके साथ साथ कॉन्ट्रैक्टर और रमन भी। नजदीक पहुंचने पर संध्या को, अभय दिखा। जो अपने कानो में इयरफोन लगाए गाना सुन रहा था। और अपनी धुन में मस्त था। अभय को पता ही नही था की, पूरी गांव के साथ साथ ठाकुराइन और ठाकुर भी आ गए थे।

गांव वालो ने अभय को देखते ही रह गए। वही अजय की भी नजरे अभय के ऊपर ही थी। पर अभय अपनी मस्ती में मस्त गाने सुन रहा था।

रमन --"वो छोकरे, कौन है तू? और काम क्यूं बंद करा दिया?"

अभय अभि भी अपनी मस्ती में मस्त गाने सुनने में व्यस्त था। उसे रमन की बात सुनाई ही नही पड़ी। ये देख कर रमन फिर से बोला...

रमन --"वो छोरे.....सुनाई नही दे रहा है क्या?"

ये सुनकर अजय हंसते हुए बोला...

अजय --"अरे क्या ठाकुर साहब आप भी? आप देख नही रहे हो की उसने अपने कान में इयरफोन लगाया है। कैसे सुनेगा?"

ये सुनकर सब गांव वाले हंसने लगे, ठाकुराइन भी थोड़ा हस पड़ी। ये देख कर रमन गुस्से में आगे बढ़ा और अभय के नजदीक पहुंच कर उसके कान से इयरफोन निकालते हुए बोला...

रमन --"यहां नाटक चल रहा है क्या? कौन है तू? और काम रुकवाने की तेरी हिम्मत कैसे हुई?"

रमन की तेज तर्रार बाते संध्या के दिल में चुभ सी गई... और वो भी गुस्से में बड़बड़ाते हुए बोली...

संध्या --"रमन!! पागल हो गए हो क्या, आराम से बात नहीं कर सकते हो क्या। तुम चुप रहो, मैं बात करती हूं।"

रमन को शॉक पे शॉक लग रहे थे। वो हैरान था, और समझ नही पा रहा था की आखिर संध्या इस लड़के के लिए इतनी हमदर्दी क्यूं दिखा रही है। ये सोचते हुए रमन वापस संध्या के पास आ गया।

और इधर संध्या भी अपने आप से बाते करने लगी थी...

"ही भगवान, ना जाने क्यूं मेरा दिल कह रहा है की, यही मेरा अभय है। मेरी धड़कने मुझे ये अहसास करा रही है की यही मेरा अभि है। पर मेरा दिमाग क्यूं नही मान रहा है? वो लाश, इस दिन फिर वो लाश किसकी थी। मैं तो उस लाश को भी नही देख पाई थी, हिम्मत ही नहीं हुई। फिर आज ये सामने खड़ा लड़का कौन है? क्यूं मैं इसके सामने पिघल सी जा रही हूं? मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आवरा है भगवान, तू ही कोई रास्ता दिखा, क्या मेरा दिल जो कह रहा है वही ठीक है? क्या ये मेरा अभय ही है? क्या ये अपनी मां की तड़पते दिल की आवाज सुन कर आया है। अगर ऐसा है तो...."

"अरे मैडम, थोड़ा जल्दी बोलो, रात भर सोया नही हूं नींद आ रही है मुझे।"

संध्या अभि खुद से ही बाते कर रही थी की ये आवाज उसके कानो के पड़ी...वो सोच की दुनिया से बाहर निकलते हुए असलियत में आ चुकी थी, और अभय की बात सुनते हुए हिचकिचाते हुए बोली...

संध्या --"म... म..में कह रही थी की, ये काम तुमने क्यूं रुकवा दिया?"

ठाकुराइन की हिचकिचाती आवाज किसी को रास नहीं आई, गांव वाले भी हैरान थे , की आखिर ठाकुराइन इतनी सहमी सी क्यूं बात कर रही है?

और सब से ज्यादा चकित था रमन सिंह, वो तो अपनी भाभी का नया रूप देख रहा था। मानो वो एक प्रकार से सदमे में था। अभय बात तो कर रहा था ठाकुराइन से, मगर उसकी नजरे गांव वालोंकी तरफ था। उसकी नजरे किसी को देख ढूंढ रही थी शायद, गांव के बुजुर्ग और अधेड़ को तो उसके सब को पहेचान लिया था। पर अभी भी उसके नजरो की प्यास बुझी नही थी, शायद उसकी नजरों की प्यास बुझाने वाला उस भीड़ में नही था। अभय मान करते हुए अपनी मां से बोला...

अभय --"भला, मेरी इतनी औकात कहां की, मैं ये काम रुकवा सकूं मैडम। मैं तो बस इन मजदूरों को ये हरे भरे पेड़ो को कटने से मना किया था बस। और वैसे भी, आप ही समझिए ना मैडम, अच्छी खासी उपजाऊ जमीन पर कॉलेज बनवा कर, इन बेचारी किसानों के पेट पर लात क्यूं मार रही हो?"

अभय की प्यार भरी मीठी सी आवाज सुन कर, संध्या का दिल खुशी से अंदर ही अंदर झूम उठा। और इधर गांव वाले भी अभय को उनके हक में बात करता देख इसे मन ही मन दुवाएं देने लगे थे। पर एक सख्श था। जिसके मन में अधियां और तूफ़ान चल रहा था। और वो था रमन, उसकी जुबान तो कुछ नही बोल रही थी, पर उसका चेहरा सब कुछ बयां कर रहा था। की वो कितने गुस्से में है।

संध्या --"मैं भला, किसानों के पेट पर लात क्यूं मारने लगी। ये गांव वालो ने ही खुशी खुशी अपनी जमीनें दी है, कॉलेज बनवाने के लिए।"

ठाकुराइन का इतना बोलना था की, वहा खड़ा मंगलू अपने हाथ जोड़ते हुए झट से बोल पड़ा...

मंगलू --"कैसी बात कर रही हो मालकिन, हमारा और हमारे परिवार का पेट भरने का यही तो एक मात्र सहारा है। हां माना की हम गांव वालो ने आपसे जो कर्जा लिया था, वोभिम चुका नही पाए। पर इसके लिए आपने हमारी जमीनों पर कॉलेज बनवाने लगी, ये तो अच्छी बात नहीं है ना मालकिन, थोड़ा सा और समय दे दीजिए मालकिन, हम अपना पूरा अनाज बेच कर के आपके करके चुका देंगे।"

ये कहें था मंगलू का की, सब गांव वाले हाथ जोड़ते हुए अपने घुटने पर बैठ कर ठाकुराइन से विनती करने लगे...

ये देख कर ठाकुराइन हड़बड़ा गई, इस बात पर नही की ये गांव वाले क्या कर रहे है? बल्कि इस बात पर , की गांव वाले जो भी कर रहे है, उससे अभय उसके बारे में कुछ गलत न सोच ले। एक बात तो तय थी, की अब संध्या अभय को अपने बेटे के रूप में देखने लगी थी। भले उसे अभी यकीन हुआ हो या नहीं। वो झट से घबराहट में बोली...

संध्या --"ये कैसी बाते कर रहे हो तुम मंगलू? मैने कभी तुम सब से पैसे वापस करने की बात नहीं की। और पैसों के बदले ज़मीन की बात तो मै कभी सोच भी नही सकती...

ये सब वहा खड़ा अभय ध्यान से सुन रहा था। और जिस तरह गांव वाले बेबस होकर हाथ जोड़े अपने घुटनों पर बैठे थे , ये देख कर तो अभय का माथा ठनक गया। उसे अपनी मां पर इतना गुस्सा आया की वो अपने मन में ही हजारों बाते करने लगा।"

"जरूर इसी ने किया है ये सब, और अब सब गांव वालो के सामने इसकी बेइज्जती न हो इस लिए पलटी खा रही है, वैसे इस औरत से उम्मीद भी क्या की जा सकती है? ये है ही एक कपटी औरत।"

ये सब बाते खुद से करते हुए अभय बोला...

अभि --"कमाल है मैडम, क्या दिमाग लगाया है, हजार रुपए का कर्जा और लाखो की वसूली, ये सही है।"

इतना कह कर अभि वहा से चल पड़ता है..., संध्या को जिस बात का डर था वही हुआ। अभय ने संध्या को ही इसका जिम्मेदार ठहराया। और ये बात संध्या के अंदर चिड़चिड़ापन पैदा करने लगी...और वहा से जाते हुए अभी के सामने आकर खड़ी हो गई। संध्या को इस तरह अपने सामने आकर इतने पास खड़ी देख अभय का खून सुलग गया,।

संध्या --"मैं... मैं सच कह रही हूं, ये सब मैने नही किया है।"

कहते हुए संध्या ने अभि का हाथ पकड़ लिया। अपने हाथ को संध्या की हथेली में देख कर, अभि को न जाने क्या हुआ और गुस्से में संध्या का हाथ झटकते हुए बोला...

अभि --"आपने क्या किया है, क्या नही? उससे मुझे कोई लेना देना है, समझी आप। मैं तो यह आया था इन हरे भरे पेड़ों को कटने से बचाने के लिए बस। आप लोगो का नाटक देखने नही।"

कहते हुए अभि वहा से चला जाता है। संध्या का दिल एक बार फिर रोने लगा। वो अभी वही खड़ी अभय को जाते हुए देख रही थी। लेकिन जल्द ही अभि गांव वालो और संध्या की नजरों से ओझल हो चुका था।

संध्या भी वहा से जाते हुए, रमन से बोली...

संध्या --"रमन, ये काम रोक दो। अब यहां कोई कॉलेज नही बनेगा। और हां तुम हवेली आकार मुझसे मिलो मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।"

इतना कह कर संध्या वहा से चली गई...

रमन के होश तो छोड़ो, ये बात सुन कर उसकी दुनियां ही उजड़ गई हो मानो, ऐसा उसके चेहरे पर भाव था।



छोटा अपडेट देने के लिए सॉरी दोस्तो, पर ये वीक में थोड़ा busy hun, to please try to understand

Par update deta rahunga , Chhota hi sahi, story nahi rukegi...
Awesome update
 

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अभय के जाते ही, संध्या भी अपनी कार में बैठती है और हवेली के लिए निकल पड़ती है।

संध्या कार को ड्राइव तो कर रही थी, मगर उसका पूरा ध्यान अभय पर था। उसके दिल में को दर्द था वो शायद वही समझ सकती थी। वो अभय को अपना बेटा मनाने लगी थी। उसका दिल अभय के पास बैठ कर बाते करने को करता। वो अपनी की हुई गलती की माफ़ी मांगना चाहती थी, मगर आज एक बार फिर वो अभय की नजरों में गीर गाय थी। उस चीज का उसके उपर इल्जाम लगा था, जो उसने की ही नहीं थी। और यही बात उसके दिमाग में बार बार आती रहती।

संध्या की कार जल्द ही हवेली में दाखिल हुई, और वो कार से उतरी ही थी की, उसे सामने मुनीम खड़ा दिखा।

संध्या के कर से उतरते ही, मुनीम उसके पैरो में गिड़गिड़ाते हुए गिर पड़ा...

मुनीम --"मुझे माफ कर दो ठाकुराइन, आखिर उसमे मेरी क्या गलती थी? जो आपने बोला वो ही तो मैने किया था? आपने कहा था की अगर अभय बाबा स्कूल नही जाते है तो, 4 से 5 घंटे धूप में पेड़ से बांध कर रखना। मैने तो आपकी आज्ञा का पालन हो किया था ना मालकिन, नही तो मेरी इतनी औकात कहा की मैं अभय बाबा के साथ ऐसा कर सकता।"

मुनीम की बात सुनकर, संध्या का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। उसने मुनीम को चिल्लाते हुए बोली...

संध्या --"मुनीम, तुम जाओ यह से। और मुझे फिर दुबारा इस हवेली में मत दिखाई देना। मैं सच बता रही हूं, मेरा दिमाग पागल हो चुका है, और इस पागलपन में मेंबर बैठूंगी ये मुझे भी नही पता है। जाओ यह से..."

कहते हुए संध्या हवेली के अंदर चली जाति है। संध्या हाल में सोफे पर बैठी बड़ी गहरी सोच में थी। तभी वहा ललिता आ जाति है, और संध्या को देख कर उसके पास आ कर बोली...

ललिता --"क्या हुआ दीदी? आप बहुत परेशान लग रही है?"

संध्या ने नजर उठा कर देखा तो सामने ललिता खड़ी थी। ललिता को देख कर संध्या बोली.....

संध्या --"ठीक कह रही है तू। और मेरी इस परेशानी का कारण तेरा ही मरद है।"

संध्या की बात सुनकर ललिता ने जवाब में कहा...

ललिता --"मुझे तो ऐसा नहीं लगता दीदी।"

संध्या --"क्या मतलब? गांव वालो की ज़मीन को जबरन हथिया कर मुझसे उसने बोला की गांव वालो ने मर्जी से अपनी जमीनें दी है। और आज यही बात जब सब गांव वालो के सामने उठी , तो मेरा नाम आया की मैने पैसे के बदले गांव वालो की ज़मीन पर कब्जा कर लिया है। तुझे पता भी है, की मुझे उस समय कैसा महसूस हो रहा था सब गांव वालो के सामने, खुद को जलील महेसुस कर रही थी।"

संध्या की बात सुनकर, ललिता भी थापक से बोल पड़ी...

ललिता --"गांव वालो के सामने, या उस लड़के के सामने?"

ये सुनकर संध्या थोड़ा चकमका गई...

संध्या --"क्या मतलब??"

"मतलब ये की भाभी, उस लड़के के लिए तुम कुछ ज्यादा ही उतावली हो रही थी।"

इस अनजानी आवाज़ को सुनकर ललिता और संध्या दोनो की नजरे घूमी, तो पाई सामने से रमन आ रहा था।

संध्या --"ओह...तो आ गए तुम? बहुत अच्छा काम किया है तुमने मुझे गांव वालो के सामने जलील करके।"

रमन --"मैने किसी को भी जलील नही किया है भाभी, मैं तो बस पिता जी का सपना पूरा कर रहा था। अगर तुम्हारी नज़र में इससे जलील करना कहते हैं, तो उसके लिए मैं माफी मागता हूं। पर आज जो तुमने मेरे साथ किया , उसके लिए मैं क्या बोलूं? एक अजनबी लड़के लिए मेरे साथ इस तरह का व्यवहार? कमाल है भाभी.... आखिर क्यों??"

ललिता --"अरे वो कोई अजनबी लड़का थोड़ी है? वो अपना अभय है?"

ललिता की बात सुन कर , रमन के होश ही उड़ गए चेहरे पर से उड़ चुके रंग उसकी अश्चर्यता का प्रमाण था। और चौंकते हुए बोला...

रमन --"अभय...!!!"

ललिता --"हा अभय, ऐसा दीदी को लगता है। अभि उस लड़के को आए 5 घंटे भी नही हुए है, दो चार बाते क्या बोल दी उसने दीदी को उकसाने के लिए। दीदी तो उसे अपना बेटा ही मान बैठी।"

ये सुनकर रमन अभि भी आश्चर्यता से बोला...

रमन --"ओह, तो ये बात है। तुम पगला गई हो क्या भाभी? अपना अभय अब इस दुनिया में नही है...."

"वो है, कही नही गया है वो, आज आया है वो मेरे पास। और मैं अब कोई भी गलती नही करना चाहती जिसकी वजह से वो मुझे फिर से छोड़ कर जाए। मैं तो उसके नजदीक जाने की कोशिश में लगी थी। लेकिन तुम्हारी घटिया हरकत का का सबक मुझे मिला। एक बार फिर से मैं उसकी नजरों में गीर गई।"

संध्या चिल्लाते हुए बोली, रमन भी एकदम चकित हुए संध्या को ही देख रहा था। फिर संध्या की बात सुनकर रमन ने कहा...

रमन --"ठीक है भाभी, अगर तुम्हे लगता है की मेरी गलती है, तो मै आज ही पूरे गांव वालो के सामने इसकी माफी मांगूंगा। सब गांव वालो को ये बताऊंगा की, ये जमीन की बात तुम्हे नही पता थी। फिर शायद तुम्हारे दिल को तसल्ली मिल जाए। शायद वो अजनबी लड़के दिल में तुम्हारी इज्जत बन जाए।"

रमन की बात सुनकर, संध्या अपनी सुर्ख हो चली आवाज़ में बोली...

संध्या --"नही, अब कोई जरूरत नहीं है। जो हो गया सो हो गया।"

रमन --"रमन जरूरत है भाभी, क्यूं जरूरत नहीं है? एक अंजान लड़का आकार तुम्हारे सामने न जाने क्या दो शब्द बोल देता है, और तुम्हे समय नहीं लगा ये यकीन करने में की वो तुम्हारा बेटा है। और वही मैने, मैं ही क्या ? बल्कि पूरा गांव वाले अभय की लाश को अपनी आंखो से देखा उसका यकीन नही है तुम्हे, जब तुमने फैसला कर ही लिया है तो जाओ बुलाओ उसको हवेली में और बना दो उसे इस हवेली का वारिस।"

पूरा दांव उल्टा पड़ गया था। वो रमन को उल्टा आज जलील करना चाहती थी। पर वो तो खुद ही रमन के सवालों में उलझ कर रह गई, उसका सर भरी होने लगा था। उसके पास बोलने को कुछ नही था। पर उसका दिल इस बात से इंकार करने की इजाजत नहीं दे रहा था की अभय उसका बेटा नहीं है, जो अभी रमन बोल रहा था। संध्या ने उस समय एक शब्द भी नहीं बोला, और चुपचाप शांति से अपने कमरे में चली गई...

__________________&______&_

शाम के 6 बज रहे थे, अभि सो कर उठा था। नींद पूरी हुई तो दिमाग भी शांत था। उसे ऐसा लग रहा था मानो जैसे सर से बहुत बड़ा बोझ उतार गया हो। वो उठ कर अपने बेड पर बैठा था, और कुछ सोच रहा था की तभी...

"लीजिए, ये चाय पी लीजिए..."

अभय ने अपनी नजर उठा कर उस औरत की तरफ देखा, सावले रंग की करीब 35 साल की वो औरत अभय को देख कर मुस्कुरा रही थी। अभय ने हाथ बढ़ा कर चाय लेते हुए बोला...

अभि --"तो तुम इस हॉस्टल में खाने पीने की देखभाल करती हो?"

कहते हुए अभय ने चाय की चुस्कियां लेने लगा...

"जी हां, वैसे भी इस हॉस्टल में तो कोई रहता नही है। तुम अकेले ही हो। तो मुझे ज्यादा काम नहीं पड़ेगा।"

अभि --"hmmm... वैसे तुम्हारा नाम क्या है"

"मेरा नाम रमिया है।"

अभि उस औरत को पहचानने की कोशिश कर रहा था। लेकिन पहचान नही पाया इसलिए उसने रमिया से पूछा...

अभि --"तो तुम इसी गांव की हो?"

रमिया --"नही, मैं इस गांव की तो नही। पर हां अब इसी गांव में रहती हूं।"

अभि --"कुछ समझा नही मैं? इस गांव की नही हो पर इसी गांव में रहती हो...क्या मतलब इसका?"

अभय की बात सुनकर रमिया जवाब में बोली...

रमिया --"इस गांव की मेरी दीदी है। मेरा ब्याह हुआ था, पर ब्याह के एक दिन बाद ही मेरे पति की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। ससुराल वालो ने इसका जिम्मेदार मुझे ठहराया, और मुझे कुल्टा, कुलक्षणी और न जाने क्या क्या बोल कर वहा से निकाल दिया। घर पे सिर्फ एक बूढ़ी मां थी उसके साथ कुछ 4 साल रही फिर मेरी मां का भी देहांत हो गया, तो दीदी ने मुझे अपने पास बुला लिया। अभि दो साल से यहां इस गांव में रह रही हूं। और इस हवेली में काम करती हूं।"

रमिया की बाते अभि गौर से सुनते हुए बोला...

अभि --"मतलब जिंदगी ने तुम्हारे साथ भी खेला है?"

ये सुनकर रमिया बोली...

रमिया --"अब क्या करे बाबू जी, नसीब पर किसका जोर है? जो नसीब में लिखा है वो तो होकर ही रहता है। और शायद मेरी नसीब में यही लिखा था।"

रमिया की बात सुनकर, अभि कुछ सोच में पड़ गया ...

रमिया --"क्या सोचने लगे बाबू जी, कहीं तुमको हमारे ऊपर तरस तो नही आ रहा है?"

अभि --"नही बस सोच रहा था कुछ, खैर छोड़ो वो सब नसीब की बातें। तो आज से तुम ही मेरे लिए खाना पीना बना कर लगी?"

रमिया --"जी बाबू जी।"

अभि --"और ये सब करने के लिए जरूर तुम्हे इस गांव की ठाकुराइन ने कहा होगा?"

रमिया --"हां...लेकिन ये आपको कैसे पता?"

ये सुनकर अभि थोड़ा मुस्कुराते हुए बोला...

अभि --"वो क्या है ना, मैं भी तुम्हारी ही तरह नसीब का मारा हूं, तो मुझे लगा शायद ठाकुराइन को मुझ बेचारे पर तरस आ गया हो और उन्होंने मेरी अच्छी तरह से खातिरदारी के लिए तुम्हे भेज दिया हो, चलो अब जब आ ही गई हो तो, ये लो।"

अभि ने अपने जेब से कुछ निकलते हुए उस औरत के हाथ में थमा दिया, जब औरत ने ध्यान दिया तो, उसके हाथो में एक नोटो की गड्डी थी। जिसे देख कर वो औरत बोली...

रमिया --"ये ...ये पैसे क्यों बाबू जी?"

अभि एक बार फिर मुस्कुराया और बोला...

अभि --"ये तुम्हारी तनख्वाह है, तुम जब आ ही गई हो तो, मेरे लिए खाना वीना बना दिया करो। मगर ठाकुराइन के पंचभोग मुझसे नही पचेँगे। और हां ये बात जा कर ठाकुराइन से जरूर बताना।"

रमिया तो अभय को देखते रह गई, कुछ पल यूं ही देखने के बाद वो बोली...

रमिया --"तुम्हारा नाम क्या है बाबू जी?"

अभि --"मेरा नाम, मेरा नाम अभय है।"

"क्या....."

रमिया जोर से चौंकी....!! और रमिया को इस तरह चौंकते देख अभि बोला।

अभि --"अरे!! क्या हुआ ? नाम में कुछ गडबड है क्या?"

रमिया --"अरे नही बाबू जी। वो क्या है ना, इस गांव में एक लड़की है पायल नाम की, कहते है अभय नाम का हिबेक ठाकुराइन का बेटा भी था। जो शायद बरसो पहले इसी गांव के पीछे वाले जंगल में उसकी लाश मिली थी। और ये पायल us लड़के की पक्की दोस्त थी, लेकिन बेचारी जब से उसने अभय की मौत की खबर सुनी है तब से आज तक हंसी नहीं है। दिन भर खोई खोई सी रहती है।"

अभय रमिया की बात सुनकर खुद हैरान था, पायल की बात तो बाद की बात थी पर अपनी मौत की बात पर उसे सदमा बैठ गया था। लेकिन उस बारे में ज्यादा न सोचते हुए जब उसका ध्यान रमिया के द्वारा कहे हुए पायल की हालत पर पड़ा , तो उसका दिल तड़प कर रह गया... और उससे रहा नही गया और झट से बोल पड़ा।

अभय --"तो...तो उस अभय की मौत हो गई है, ये जानते हुए भी वो आ...आज भी उसके बारे में सोचती है।"

रमिया --"सोचती है, अरे ये कहो बाबू जी की, जब देखो तब अभय के बारे में ही बात करती रहती है।"

ये सुनकर अभय खुद को किताबो में व्यस्त करते हुए बोला...

अभि --"अच्छा, तो...तो क्या कहती वो अभय के बारे में?"

रमिया --"अरे पूछो मत बाबू जी, उसकी तो बाते ही खत्म नहीं होती। मेरा अभय ऐसा है, मेरा अभय वैसा है, देखना जब आएगा वो तो मेरे लिए ढेर सारी चूड़ियां लेकर आएगा। चूड़ियां लेने ही तो गया है वो, पर शायद उसे मेरी पसंद की चूड़ियां नही मिल रही होगी इस लिए वो दर के मारे नही आ रहा है सोच रहा होगा की मुझे अगर पसंद नहीं आएगी तो मै नाराज हो जाऊंगी उससे। ये सब कहते हुए बेचारी का मुंह लटक जाता है और फिर न जाने कौन से रस में डूबा कर अपने शब्द छोड़ते हुए बोलती है की, कोई बोलो ना उससे, की आ जाए वो, नही चाहिए मुझे चूड़ियां मुझे तो वो ही चाहिए उसके बिना कुछ अच्छा नहीं लगता। क्या बताऊं बाबू जी दीवानी है वो, मगर अब उसे कौन समझाए की जिसका वो इंतजार कर रही है, अब वो कभी लौट कर नहीं आने वाला।"

रमिया की बाते सुन कर अभय की आंखे भर आई , उसका गला भारी हो गया था। दिल में तूफान उठाने लगे थे, उसका दिल इस कदर बेताबी धड़कने लगा था की, उसका दिल कर रहा था की अभि वो पायल के पास जाए और उसे अपनी बाहों में भर कर बोल दे की मैं ही हूं तेरा अभय। मगर तभी रमिया के दूसरे शब्द उसके कान में पड़ते ही..... उसके दिमाग का पारा ही बढ़ता चला गया......

गुस्से में आंखे लाल होने लगी, और अपनी हाथ के पंजों को मुठ्ठी में तब्दील करते हुए, अपनी दातों को पिस्ता ही रह गया..
Sandhya phir se galti kar rahi hai Raman ki baton ko soch ke
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