अपडेट 13
रास्ते पर चल रहा अभि, खुद से ही कुछ न कुछ सवाल कर रहा था , पर उसके सवाल का जवाब ना ही उसका दिल दे रहा था और ना ही उसका दिमाग। इतने सालो बाद अपनी मां को देखकर, उसे इतना गुस्सा आखिर क्यूं आ गया? अभय भी कभी कभी सोचता इसके बारे में, लेकिन फिर अपनी मां की वो छवि उसकी आंखो के सामने दृश्यमान हो जाती, जिस छवि से वो बचपन से वाकिफ था। फिर उसको दिल को एक सुकून मिलता, की जो किया वो सही किया।
अभि रात भर सोया नही था, उसका सिर दुखने लगा था। उसकी आंखे भारी होने लगी थी, उसे नींद का एहसास होने लगा था। कलाई पर बंधी घड़ी की तरफ नजर दौड़ाई तो 11:३० है रहे थे, अभी ने रात से कुछ खाया भी नही था। तो उसे भूख तो लगी थी, पर नींद उसे अपने पास बुला रही थी। वो जल्द ही कॉलेज हॉस्टल के सामने पहुंच गया था। वो हॉस्टल में कदम रखने ही वाला था की, उसके नजर हॉस्टल से थोड़ी दूर वाले खेत पर पड़ी। जहां कुछ आदमी काम कर रहे थे, वो उस खेत में फावड़ा लेकर खुदाई कर रहे थे। ये देख कर ना जाने अभि को क्या हुआ, इसके चेहरे पर गुस्से के भाव उमड़ पड़े।
वो करीब करीब भागते हुए वहा पहुंचा जिस खेत में खुदाई हो रही थी।
"ऐ रुक, क्या कर रहा है तू ये? ये पेड़ क्यूं काट रहा है? तुझे पता नही की हरे भरे पेड़ को काटना किसी के मर्डर करने के बराबर है।"
अभि एक दम गुस्से में बोला...
अभि की गुस्से भरी आवाज सुनकर, बहा काम कर रहे सभी मजदूर सकते में आ गए, और अभि को प्रश्नवाचक की तरह देखने लगे। उन मजदूरों में से एक आदमी , को शायद वह खड़ा हो कर काम करवा रहा था वो बोल...
"और छोरे, क्यूं हमारा समय खोटी कर रहा है। तुम्हें पता नही की यह एक डिग्री कॉलेज बनना है। और हम उसी की नीव खोद रहे है। अब जाओ यह से, पढ़ाई लिखाई करो, और हमे हमारा काम करने दो।"
उस आदमी की बात सुनकर, अभय भी सकते में आ गया, और हैरत भरी नजरो से देखते हुए बोला...
अभि --"अरे तुम लोग पागल हो गए हो क्या? ये सारी ज़मीन उपजाऊं है। कोई ऊसर नही जो कोई भी आएगा और खोद कर डिग्री कॉलेज खड़ा कर देगा। अब अगर एक भी फावड़ा इस धरती पर पड़ा, कसम से बोल रहा ही, जो पहला फावड़ा चलाएगा, उसके ऊपर मेरा दूसरा फावड़ा चलेगा।"
अभि की गुर्राती हुई बात सुनकर, वो सब मजदूर एक दूसरे का मुंह देखने लगते है, अपने मजदूरों को यूं अचंभित देखकर वो काम करवाने वाला आदमी बोला...
"अरे वो छोरे, जा ना यह से, क्यूं मजाक कर रहा है? खोदो रे तुम लोग।"
अभि --"मेरे जानने वाले लोग कहते है की, कर मेरा मजाक सच होता है। अब ये तुम लोगो के ऊपर है, की इसे मजाक मानते हो या इस मजाक को सच होता देखना चाहते हो। मेरा mind set क्लियर है, जो पहला फावड़ा मरेगा। उसके उपर दूसरा फावड़ा जरूर पड़ेगा।"
अभि की बात सुनते ही, उन मजदूरों के हाथ से फावड़ा छूट गया, ये देखकर वो आदमी गुस्से में बोला...
"तुम सब पागल हो गए क्या? ये छोरा मजाक की दो बातें क्या बोल दिया तुम लोग तो दिल पर ले लिए।"
अभि --"ओ भाई साहब, तो तू ही फावड़ा चला ले। तुझे तो मेरी बात मजाक लग रही है ना, तूने तो दिल पर नही लिया है ना।"
अभि की बेबाकी सुनकर, वो आदमी भी हक्का बक्का रह गया, और अपना बैग उठते हुए अपनी कांख दबाते हुए बोला...
"बहुत चर्बी चढ़ी है ना तुझे, रुक अभि मालिक को लेकर आता हूं, फिर देखना क्या होता है?"
ये बोलकर वो आदमी वहा से जाने लगा, तभी अभि ने एक और आवाज लगाई...
अभि --"अबे वो छिले हुए अंडे, रानी को लेकर आ, प्यादो की बस की बात नहीं को मेरी चर्बी उतार सेके।"
आदमी --"क्या मतलब??"
अभि --"abe ठाकुराइन को लेकर आना।"
वहा खड़ा एक मजदूर अभि की बेबाक बाते ध्यान से सुन रहा था। जैसे ही काम करवाने वाला आदमी हवेली के लिए रूकसद हुआ। वो मजदूर भी चुपके से वहा से गांव की तरफ बढ़ा.....
वो आदमी थोड़ी दूर ही चला था की, अचानक से ही गांव की तरफ तेजी से भागने लगा। उसे भागते हुए किसी ने देखा होता तो शायद यही समझता की जैसे अपनी जान बचा कर भाग रहा हो, वो आदमी इतनी तेज गति से भाग रहा था। वो आदमी भागते भागते गांव तक पहुंच गया, और वो मुखी या की घर की तरफ भागने लगा।
इधर गांव का एक झुंड, सरपंच के घर पर एकत्रित थी। सरपंच कुर्सी लगा कर उन गांव वालो के सामने बैठा था।
सरपंच --"देखो मंगलू, मुझे भी दुख है इस बात का। पर अब कुछ नही हो सकता, ठाकुर साहब से बात की मैने मगर कुछ फायदा नहीं हुआ। अब उन खेतो पर कॉलेज बन कर ही रहेगा, अब तो मान्यता भी मिल गई है डिग्री की।"
ये सुनकर मंगलू बेबसी की बोली बोला...
मंगलू --"नही देखा जा रहा है मालिक, वो सिर्फ खेत ही नही, हमारा और हमारे परिवार का पेट भरने वाला अन्न का खजाना है, सब कुछ है हमारे लिए, उन खेतो में फावड़ा सिर्फ अनाज उगाने के लिए पड़ते थे मालिक, मगर आज जब उन्ही खेतों में फावड़ा कालेज बनाने के लिए पद रहे है तो, ऐसा लग रहा है वो फावड़ा हमारी किस्मत और साइन पर पद रहा है। कुछ तो करिए मालिक!!"
सरपंच अपनी कुर्सी पर से उठते हुए गुस्से में बोला...
सरपंच --"तुम सब को एक बार बोलने पर समझ नही आता क्या? बोला ना अब कुछ नही हो सकता। जब देखो मुंह उठा कर चले आते है..."
ये कह कर सरपंच अपने घर के अंदर जाने के लिए मुड़ा....
गांव वाले हांथ जोड़े इसी आस में थे की शायद कुछ होगा , मगर सरपंच की बात सुनकर अनलोगो का दिल पूरी तरह से टूट गया और जमीन पर बैठे हुए गांव के वो भोले भाले लोग, निराश मन से उठे और पिन घर की तरफ जाने के लिए मुड़े ही थे की...
"मंगलू काका.... मंगलू काका...."
गांव वालो ने देखा की गांव का एक आदमी सातब्दी एक्सप्रेस की तरह मंगलू का नाम लेते हुए भागा चला आबरा था। ये देख कर गांव वाले थोड़ा चकित हो गए, और आपस में ही बड़बड़ाने लगी...
"अरे ई तो कल्लू है, ऐसा कहे चिल्लाते हुए भागे आ रहा है?"
वो आदमी जो भागते हुए आ रहा था गांव वालो ने उसका नाम कल्लू बोला था, तो मतलब उसका नाम कल्लू था। अब वो कल्लू , गांव वालो के पास पहुंचते हुए रुक गया और अपने पेट पर हाथ रख कर जोर जोर से हाफने लगा...
कल्लू की ऐसी हालत देख कर गांव वाले भी हैरान थे, तभी मंगलू ने उसके कंधे पर हाथ रख कर कल्लू को झिंझोड़ते हुए पूछा.....
मंगलू --"अरे का हुआ, मंगलू? तू इतनी तेजी से कहे भाग रहा है? का बात है?"
कल्लू ने अपनी तेज चल रही सांसों को काबू करने की कोशिश की , मगर शायद जिंदगी में पहेली बार इतनी लगन के साथ भागा था इसलिए उसका शरीर उसकी सांसे को काबू ना कर सकी, वो फिर भी अपनी उखड़ी सांसों में बोला...
कल्लू --"वो खेतों... खेतों में खुदाई...खुदाई..."
हांफते हुए कल्लू की बात सुनकर, मंगलू ने दबे मन से कहा...
मंगलू --"पता है कल्लू, पर अब कुछ नही हो सकता, खेतो की खुदाई अब नही रुकेगी।"
"और काका...खुदाई रुक गई... ई ई ई है..."
कल्लू ने चिल्लाते हुए बोला....
कल्लू की ये बात से गांव वालो के शरीर में सिरहन पैदा हो गई... आश्चर्य से कल्लू की तरफ देखते हुए, अपनी आंखे बड़ी करते हुए सब गांव वालो में अफरा तफरी मच गई, घर के अंदर जा रहा सरपंच भी कल्लू की वाणी सुनकर सकते में आ गया। और पीछे मुड़ते हुए कल्लू की तरफ देखते हुए बोला...
सरपंच --"खुदाई रुक गई, पागल है क्या तू?"
कल्लू --"अरे सच कह रहा हूं सरपंच जी, एक 17 , 18 साल का लवंडा, आकर खुदाई रुकवा दी। कसम से बता रहा हूं सरपंच जी, क्या लड़का है? एक दम निडर, ऐसी बाते बोलता है की पूछो मत। अरे वो गया है अपना कॉन्ट्रैक्टर ठाकुर के पास, ठाकुर को बुलाने।"
सरपंच के साथ साथ गांव वालो के भी होश उड़ गए थे, सब गांव वालो में खलबली मच गई, और उस लड़के को देखने के लिए सारा झुंड उस खेतों की तरफ़ टूट पड़ा। फिर क्या था? औरते भी पीछे कहा रहने वाली थी, वो लोग भी अपना घूंघट चढ़ाए पीछे पीछे चल दी।
वहा पर खड़ा अजय और उसके दोस्त भी इस बात से हैरान थे। अजय भी अपने दोस्त के साथ साइकल पर बैठ कर चल दिया, पर गांव वालो की भीड़ जो रास्ते पर चल रही थी, उसकी वजह से अजय का सायकिल क्रॉस नही हो पा रहा था। अजय के अंदर , बहुत ज्यादा उत्सुकता थी उस जगह पहुंचने की, मगर रास्ता तो जाम था। इस पर वो थोड़ा चिड़चिड़ाते हुऐ आगे चल रही औरतों को चिल्लाते हुए बोला...
अजय --"अरे देवियों, तुम लोगों कब्वाहा क्या काम, सगाई गीत नही गाना है, जो सिर पर घूंघट ताने चल दिए..."
अजय की बात सुनकर, एक मोटी औरत अजय की तरफ घूमती हुई अपनी सारी का पल्लू जैसे ही हटती है...
अजय --"अम्मा तू भी।"
"हा, जरा मैं भी तो देखी उस छोर को, जो nna जाने कहा से हमारे लिए भगवान बनकर आ गया है, और ठाकुर के लिए शैतान।"
अजय --"वो तो ठीक है, पहले इन भैंसो को थोड़ा साइड कर हम लोगो को जाने दे।"
अजय की बात सुनकर, गांव की सभी औरते रुक कर अजय की तरफ मुड़ी...और वो औरते कुछ बोलने ही वाली थी की, अजय को एक गली दिखी...
अजय --"उस गली से निकल पप्पू...जल्दी नही तो भैंसे अटैक कर देंगी।"
और कहते हुए वो औरतों को चिढ़ाने लगा पर तब्बतक बल्लू ने गली में साइकिल मोड़ दी थी...
"सच बता रही हूं दीदी, अगर तुम्हरा छोरा गांव का चहेता नही होता ना, तो बताती इसे।"
तभी दूसरी औरत बोली...
"हाय री दईया, इसको तो कुछ बोलना भी हमको खुद को बुरा लगता है।"
तभी अजय की मां बोली...
"अरे मुन्नी...हमारे बेटे की तारीफ बाद में कर लियो, अभि तो अपने प्यार जरा तेजी से चला। इस छोरे को देखने को दिल मचल रहा है, कौन है वो? कहा से आया है? और कहे कर रहा है ये सब?
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इधर हवेली में जैसे ही संध्या की कार दस्तक देती है। संध्या कार से नीचे उतरती हुई, अपने नौकर भानु से बोली...
संध्या --"भानु, तू अंदर आ जल्दी।"
संध्या की बात और कदमों की रफ्तार देख कर मालती और ललिता दोनो थोड़े आश्चर्य रह गई, और वो दोनो भी संध्या के पीछे पीछे हवेली के अंदर चल दी। संध्या हवेली में घुस कर सोफे के आगे पीछे अपना हाथ मलते घूमने लगी...
संध्या --"भानु...."
संध्या जोर से चीखी...
"आया मालकिन...."
भानु करीब - करीब भागते हुए हवेली के अंदर पहुंचा।
भानू --"जी कहिए मालकिन।"
संध्या --"सुनो भानू, अपने हॉस्टल में एक लड़का आया है। तो आज से तुम उस हॉस्टल में ही रहोगे और उसे जिस भी चीज की जरूरत पड़ेगी, वो हर एक चीज उसे मिल जानी चाहिए।"
ये सुनकर भानू बोला...
भानू --"जी मालकिन,,"
संध्या -"ठीक है, जाओ और रमिया को भेज देना।"
ये सुनकर भानू वहा से चला जाता है। मलती बड़े गौर से संध्या को देख रही थी, पर संध्या का ध्यान मालती किंतारफ नही था। वोब्तो ना जाने क्या सोचते हुए इधर उधर बस हाथ मलते हुए चहल कदमी करवरही थी, उसे देख कर ऐसा लगब्रह था मानो किसी चीज की छटपटाहट में पड़ी है। तभी वहां पर रमिया भी आ गई।
रमिया --"जी मालकिन, आपने बुलाया हमको?"
संध्या रमिया को देख कर झट से बोल पड़ी...
संध्या --"हां सुन रमिया, आज से तू हर रोज सुबह और शाम हॉस्टल में जायेगी, और वहा पर जो एक नया लड़का आया है, उसके लिए खाना बनाना है। और हां याद रखना खाना एकदम अच्छा होना चाहिए। समझी।"
रमिया --"जैसा आप कहे मालकिन।"
संध्या की हरकते बहुत देर से देख रही मालती अचानक हंस पड़ी, मलती को हंसते देख संध्या का ध्यान अब जाकर मालती पर पड़ी...
संध्या --"मलती प्लीज़, मैं इस पर कुछ बात नही करना चाहती। मुझे पता है तुम्हारी हंसी का कारण क्या है? पर...
"पर...पर क्या दीदी?"
मलती ने संध्या की बात बीच में ही काटते हुए बोली...
मलती --"कही आपको ये तो नहीं लग रहा की, वो अभय है? वैसे भी आपकी बेताबी देख कर तो यही समझ आ रहा है मुझे। दीदी आपने शायद उस लड़के को ध्यान से परखा नही, वो लड़का जरा हट के था। कैसी कैसी बातें बोल रहा था देखा नही आपने? बिलकुल निडर, सच कहूं तो अगर वो अभय होता तो, तो तुम्हे देखते ही भीगी बिल्ली बन जाता। पर ऐसा हुआ नहीं, उसने तो आपको ही भीगी बिल्ली बना दीया, हा... हा... हा।"
संध्या --"देखो मालती, मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं, मुझे बक्श दो।"
मलती --"क्या हुआ दीदी? मैने ऐसा क्या कह दिया? जोभिया वही तो बोल रही हूं। चलो एक पल के लिए मान भी लेते है की, वो अभी है। तो आपको क्या लगता है, नौकरी को भेज कर उसकी देखभाल करा कर क्या साबित करना चाहती हो आप? आप ये सब करोगी और आप को लगता है, वो पिघलकर ma.. मां... मां करते हुए आपके गले से लिपट जायेगा। इतना आसान नहीं है दीदी। मैं ख़ुद भगवान से दुआ कर रही हूं की ये हमारा अभि ही हो, पर एक बात याद रखना अगर ये हमारा अभि हुआ, तो एक बात पर गौर जरूर करना की, वो घर छोड़ कर भागा था, और आपको पता है ना की घर छोड़ कर कौन भागता है? वो जिसे उस घर में अपने सब बेगाने लगते है। अरे वो तो बच्चा था, जब भागा था। ना जाने कैसे जिया होगा, किस हाल में रहा होगा। कितने दिन भूखा रहा होगा? रोया होगा, अपनी के प्यार के लिए तड़पा होगा। अरे जब उस हाल में वो खुद को पाल लिया, तो आज आपकी ये दो टके का प्यार दिखा कर, सब कुछ इतना आसानी से ठीक करना चाहती हो।"
मलती की बात संध्या के दिल को चीरते हुए उसकें दिल में घुस गई.....संध्या की आंखे थी या नदियां, आशुओं की धारा रुक ही नही रही थी।
संध्या --"मैं कुछ ठीक नहीं करना चाहती, और...और ये भी जानती हूं की ये इतना आसान नहीं है। मैं वही कर रही हूं जो मेरे दिल ने कहा है।"
मलती --"दिल ही तो है दीदी, कुछ भी कहता रहता है। वो लड़का थोड़ा अलबेला है, पहेली मुलाकात में ही घाव कर गया....
कहते हुए मालती अपने कमरे की तरफ चल देती है, और संध्या रोते हुए धड़ाम से सोफे पर गिर जाती है.....