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Incest वो तो है अलबेला (incest + adultery)

क्या संध्या की गलती माफी लायक है??


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Tiger 786

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अपडेट 20



अभय के जाते ही संध्या अपनी कार स्टार्ट करती है और हवेली की तरफ बढ़ चलती है.....


अभय जैसे ही हॉस्टल में पहुंचा, उसका दिमाग पूरी तरह से खराब हो गया था...

शर्ट उतार कर बेड पर फेंकते हुए, खुद से बोला...

"अभय संभाल खुद को, उसकी बह रही आंसुओ में मत उलझ। तू कैसे भूल सकता है की तेरी मां एक मतलबी औरत है। अपने जज्बात के आगे तेरा बचपन खा गई। कुछ नहीं दिखा उसे, तू किस हाल में था। हर पल उसके प्यार के लिए तड़पता रहा मगर वो प्यार मिला किसको ? अमन को। याद रख, तू यह क्यूं आया है? ऐसा कौन सा राज है, जो तेरा बाप तुझे बताना चाहता था, मगर उसकी जुबान ना कह सकी जिसके वजह से उन्होंने अपना राज कही तो दफ्न किया है। ढूंढ उस राज को, कुछ तो है जरूर?"

खुद से ही ये सब बाते बोलते हुए, अभय का दिल जोर जोर से चलने लगा। पसीने आने लगे थे उसे। पास रखे पानी का बोतल उठा कर पानी पी कर वो अपने बेड पर शांति से बैठ जाता है।

उसके जहां में वो काली अंधेरी रात घूमने लगती है....जिस दिन वो घर से भाग रहा था।

उस दिन अभय जब स्कूल से घर वापस आया, तब वो अपनी मां को हवेली के बहार ही पाया। अपनी मां के हाथ में डंडा देख कर वो सहम सा जाता है। वो बहुत ज्यादा दर जाता है। स्कूल बैग टांगे उसके चल रहे कदम अचानक से रुक जाते है।

तभी अभय की नजर अमन पर जाति है, जैसा स्कूल यूनिफॉर्म हल्का हल्का फटा था। ऐसा लग रहा था मानो अमन मिट्टी में उलट पलट कर आया हो। अभय को समझते देर नहीं लगी की ये अमन जानबूझ कर किया है उसे उसकी मां से पिटवाने के लिए। अभय ये भी जानता था की, अभय ने कुछ नही बोला और अमन और अपनी मां को नजर अंदाज करते हुए हवेली के अंदर जाने लगा की तभी संध्या की आवाज गूंजी...

संध्या --"किधर जा रहा है? इधर आ?"

अपनी मां की कड़क भाषा सुन कर, अभय इतना तो समझ गया था की अब उसे मार पड़ने वाली है, वैसे तो वो हर बार अपनी मां से दर जाता था, और संध्या के कुछ बोलने से पहले ही वो छटपटाने लगता था। मगर आज वो बिना डर के अपनी मां की एक आवाज पर उसके नजदीक जा कर खड़ा हो गया था। आज उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। बस वहा खड़े होकर कुछ सोच रहा था...

संध्या --"तुझे इतनी बार समझाया है, तू समझता क्यूं नही है? अमन से झगड़ा क्यूं किया तूने? उसका स्कूल ड्रेस भी फाड़ दिया तूने? क्यूं किया तूने ऐसा?"

अभय एक दम शांत वही खड़ा रहा, उसे आज स्कूल में हुई घटना याद आने लगी, जब वो स्कूल के लंच टाइम में खाना खा रहा था, तब वहा अमन आ जाता है। और उसका लंच बॉक्स उठा कर फेक देता है। ये देख कर पास में बैठी पायल उठते हुए अमन के गाल पर एक थप्पड़ रसीद कर देती है।

पायल --"बदमीज कही का, तू क्यूं हमेशा अभय को परेशान करता रहता है? अकल नही है क्या तुझे? खाना भी फेकता है क्या कोई?चलो अभय तुम मेरे टिफिन सेबखाना खा लो।"

ये कहते हुए जब पायल ने अपना टिफिन आगे बढ़ाया, वैसे ही अमन गुस्से में अपना हाथ पायल के टिफिन की तरफ बढ़ा दिया लेकिन तब तक अभय ने अमन का पकड़ते हुए मरोड़ दिया।

अमन दर्द से कराह पड़ा...पर जल्द ही अभय ने कुछ सोचते हुए अमन का हाथ छोड़ दिया।

अमन अपना हाथ झटकते हुए बोला...

अमन --"बड़ा बहादुर बनता है ना तू, आज आ घर पे फिर पता चलेगा तुझे।"

तब तक वहा पर ना जाने कहा से मुंशी पहुंच जाता है, और अमन को दर्द में करता देख...

मुनीम --"क्या हुआ छोटे मालिक? क्या हुआ आपको?"

अमन --"देखो ना मुनीम काका, इसने मेरा हाथ मरोड़ दिया।"

उस समय तो मुनीम ने कुछ नही बोला और अमन को लेकर ना जाने कहा चला गया।

यही सब बातें अभय अपनी मां के सामने खड़ा सोच रहा था पर उसने अपनी मां की बातों का जवाब नही दिया। तभी वहा खड़ा मुनीम बोला...

मुनीम --"मालकिन अब क्या बोलूं, अभय बाबा ने अमन बाबा का लंच बॉक्स उठा कर फेक दिया, और जब अमन बाबा ने पूछा तो, अभय बाबा ने उनका हाथ मरोड़ कर उनसे लड़ने लगे और अमन बाबा को पीटने लगे।"

मुनीम की बात सुनकर संध्या का गुस्सा आसमान पे, पर अभय पर कोई असर नहीं, वो नही डरा और ना ही आज उसने कुछ सफाई पेश की, शायद उसे पता था की उसकी सफाई देने का कुछ भी असर उसकी मां पर नही होगा। और इधर संध्या गुस्से में थी। वो और गुस्से में तब पागल हो जाति है, जब उसे अभय के चहरे पर कुछ भी भाव नही दिखे , वो साधारण ही खड़ा रहा...

तभी एक जोरदार डंडा अभय के हाथ के बाजू पर पड़ा, मगर आज अभय के मुंह से दर्द की जरा सी भी छींक नही निकली...

संध्या --"देखो तो इसको, अब तो डर भी खतम हो गया है। पूरा बिगड़ गया है ये, मुनीम..."

मुनीम --"जी मालकिन..."

संध्या --"मुझे पता है, हर बार मैं जब तुम्हे इसे दंडित करने के लिए बोलती हूं, तो तुम इसको बच्चा समझ कर छोड़ देते हो। अब देखो कितना बिगड़ गया है, खाना भी उठा कर फेंकने लगा है। पर इस बार नही, आज इसने खाना फेंका है ना। इसे खाने की कीमत पता चलने चाहिए, इसे आज खाना मत देना, और कल सिर्फ एक वक्त का खाना देना, फिर पता चलेगा की खाना क्या होता है?"

मुनीम --"जी मालकिन..."

संध्या --"जी मालकिन नही, ऐसा ही करना समझे।"

ये कह कर संध्या जाते जाते 3 से 4 डंडे जोरदार अभय को जड़ देती है।

संध्या --"खाना फेकेगा, अभि से ही इतनी चर्बी।"

कहते हुए संध्या वहा से चली जाति है...

अभय ने अपनी नजर अमन की तरफ मोड़ते हुए देखा तो पाया, अमन संध्या का हाथ पकड़े हवेली के अंदर जा रहा था। अमन ने पीछे मुड़ते हुए मुस्कुरा कर ऐसा भाव अपने चेहरे पर लाया जैसे वो अभय को बेचारा साबित करना चाहता हो। मगर इस बार अभय को जलन नही हुई, बल्कि अमन की मुस्कुराहट का जवाब उसने मुस्कुरा कर ही दिया। जिसे देख कर अमन की मुस्कान उड़ चली।

अभय अपना स्कूल बैग टांगे हवेली के अंदर जाने लगा। तभी वहा रमन आ जाता है...

रमन --"बेचारा, क्यूं सहता तू इतना सब कुछ अभय? तेरी मां तुझे प्यार नही करती है। मुझे पता है, की खाना तूने नही अमन ने फेका था। पर देख अपनी मां को, वो किसे मार रही है, तुझे।"

रमन की बात सुनकर अभय ने मुस्कुराते हुए बोला...

अभय --"वो मुझे मरती है, क्यूंकि उसे लगता है की मैं ही गलत हूं। नही तो वो मुझे कभी नहीं मारती।"

ये सुनकर रमन बोला....

रमन --"अच्छा, तो तुझे लगता है की तेरी मां तुझे बहुत चाहती है?"

अभय --"इसमें लगने जैसा क्या है? हर मां अपने बच्चे को चाहती है।"

रमन --"अरे तेरी मां जब तेरे पापा से प्यार नही कर पाई, तो तुझे क्या करेगी?"

ये सुनकर अभय का दिमाग थम गया...

अभय --"मतलब...?"

रमन --"मतलब ये की, तेरी मां मुझसे प्यार करती है, उसे तेरा बाप पसंद ही नहीं था। इसीलिए तू तेरे बाप की औलाद है तो उस वजह से वो तुझे भी प्यार नही करती।"

अभय तो था 9 साल का बच्चा मगर शब्दो का बहाव उसे किसी दुविधा में डाल चुकी थी, उसने बोला...

अभय --"मेरी मां तुमसे प्यार क्यूं करेगी ? वो तो मेरे पापा से प्यार करती थी।"

ये सुनकर रमन मुस्कुराते हुए बोला...

रमन --"देख बेटा, मैं तेरी भलाई के लिए ही बोल रहा हूं। क्यूंकि तू मेरा भतीजा है?तेरी मां ने खुद मुझसे कहा है की, तू उसकी औलाद है जिसे वो पसंद नही करती थी, इसीलिए वो तुझे भी पसंद नही करती। अब देख तू ही बता वो मुझसे प्यार करती है इसीलिए मेरे बेटे अमन को भी खूब प्यार करती है। अगर तुझे फिर भी यकीन नही है तो। 1 घंटे बाद, वो अमरूद वाले बगीचे में अपना जो पंपसेट का कमरा है ना, उसमे आ जाना। फिर तू देख पाएगा की तेरी मां मुझसे कितना प्यार करती है??
Fantastic update
 

MAD. MAX

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Ye story maa bete ki nafrat pr ni hai...aur last update mai abhay ne ye saaf saaf bola hai ka wo Sandhya se gussa hai na hi nafrat krta hai wo yaha padhne aur apne pita ki letter ko dhudhne aaya hai...kyuki agar abhay nafrat krta to kabhi Sandhya ko apni sachai khud se ni batata...baki sare rahasay writer hi janta hai...!!!
Waiting for next update!!
Glt aap fir se update read kro bro
.
ABHAY ne SANDHYA ko paraya kha hai mtlb ek anjaan
Or such hai ki gussa or narajgi to apno se hoti hai parayee se ni
Yhe bat ABHAY ne boli SANDHYA se
.
Waise bi ye sb bol kr SANDHYA ko ache se sbk sikha rha hai taki ABHAY trpte hue dekh ske apni Maa SANDHYA ko apne bete ke lye jitne wo tdpa tha bachpan se apni Maa ke pyar ke lye
.
Lekin apne Pita ke letter ki bat kb boli ye btao aap😉😉😉😉
 

MAD. MAX

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Bhai koi bhi ma beta ki nafrat wali stories me beta ma se nafrat nhi karta blki gussa hi rahta hai aur apni ma se door rahta hai chacha, mama ya kisi dusre shahar me aur jab wapas aata hai to apni ma se baat nhi karta aur karta bhi hai to tana mar kar aur ma apni galti par roti rahti hai tbhi to stories incest hota hai aur stories ka happy ending hota hai aur agar nafart karega to stories ka end hi nhi ho sakta
Bro story me TWIST hona jroori hai
.
Ab saare patter thodi na kholega writer comments me 😉😉😉😉
 

MAD. MAX

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Bhai Teri tadap abhi khatm nahin hogi story mein ma apne bhai se kisi majburi mein chudati hai aur ma Kai bar Apne bete ko sach batana chahti hai lekin writer story ko Lamba khinchne ke chakkar mein suspense per suspense banaen ja raha hai
Mai suru se read kr rha ho us story ko but such kho to itne late update or uper se ese ese carectors aad hogy hai ki ab to kuch smj me ni aarha hai bs isliye jhothi tariff bi ni krta comments me mai ab
 

Tiger 786

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अपडेट 21


अभय आज अपने चाचा की बात सुनकर बहुत कुछ सोच रहा था। एक 9 साल का बच्चा दिमागी तौर पर परेशान हो चुका था। उसकी जिंदगी थी या अपनी जिंदगी से जूझ रहा था। ये बात भला उस 9 साल के बच्चे को क्या पता?

अपनी मां की मार खाकर भी वो हमेशा अपने दिल से एक ही बात बोलता की मेरी मां मुझसे प्यार करती है इसलिए मरती है, क्योंकि उसे लगता है की मैं ही गलत हूं। मगर आज उसके चाचा की बातें उसे किसी और दिशा में सोचने पर मजबूर कर देती है। वो अपना स्कूल बैग टांगे हवेली के अंदर चल दिया।

अभय अपने कमरे में पहुंच कर, अपना स्कूल बैग एक तरफ रखते हुए बेड पर बैठ जाता है। बार बार दीवाल पर टंगी घड़ी की तरफ नजर घुमाकर देखता। अभय का चेहरा किसी सूखे पत्ते की तरह सूख चला था। वो क्या सोच रहा था पता नही, यूं हीं घंटो बेड पर बैठा अभय बार बार दीवार पर टंगी घड़ी की तरफ नजर डालता। और जैसे ही घड़ी का कांटा 6 पर पहुंचा । वो अपने कमरे से बाहर निकाला।

कमरे से बाहर निकलते ही, हॉल में उसे उसकी मां दिखाई पड़ी। डाइनिंग टेबल पर बैठा अमन नाश्ता कर रहा था, और संध्या और ललिता वही खड़ी उसे नाश्ता खिला रही थी। नाश्ता देखकर अभि भी अपने कदम डाइनिंग टेबल की तरफ बढ़ा देता है और नजदीक आकर टेबल पर बैठ जाता है। उसको टेबल पर बैठा देख संध्या झट से बोल पड़ी....


संध्या --"क्या हुआ? भूख लग गई क्या?अब पता चला ना खाने की कीमत क्या होती है? जो तूने आज उठा कर फेंक दिया था।"

संध्या की बात सुनकर, अमन नाश्ता करते हुए बोला...

अमन --"हां ताई मां, और आपको पता है? आज मैं सारा दिन भूखा रह गया था।"

संध्या --"इतना बिगड़ जायेगा मैं सोच भी नही सकती थी, आज तुझे पता चलेगा की जब भूंख लगती है तो....

संध्या अभि बोल ही रही थी की, अभय मायूस हो कर वहा से बिना कुछ बोले उठ कर चल देता है। शायद वो समझ गया था की उसे खाने को कुछ नही मिलेगा। अभय हवेली से बाहर निकल कर गांव की सड़को पर चल रहा था, शायद उसे भूख लगी थी इसकी वजह से उसके शरीर में वो ऊर्जा नही थी। आज दोपहर को भी उसने थोड़ा बहुत ही खाया था वो भी पायल के टिफिन बॉक्स में से। उसका टिफिन बॉक्स तो अमन फेंक दिया था। वो चलते चलते अमरूद के बाग में पहुंच गया। उसे भूख लगी थी तो वो अमरूद के पेड़ पर चढ़ कर एक दो अमरूद तोड़ कर खा रहा था। करीब आधे घंटे बाद उसे उसकी मां की कार दिखी जो सड़क के किनारे आ कर रुक गई। पेड़ पर चढ़ा अभय की नजरे उस कार पर ही थी।

तभी उसने देखा की कार में से उसकी मां और उसका चाचा दोनो उतरे, और उसी बगीचे की तरफ आ रहे थे। जैसे जैसे अभय की मां बगीचे की तरफ बढ़ रही थी वैसे वैसे अभय का दिल भी धड़क रहा था।

अभय के मन में हजार सवाल उठने लगे थे, वो बहुत कुछ सोचने लगा था। पर उसकी नजर अभि भी अपनी मां के ऊपर ही टिकी थी। जल्द ही संध्या और रमन उस बगीचे में दाखिल हो चुके थे। अभय के दिल की रफ्तार तब और बढ़ गई जब उसने अपनी मां और चाचा को उस बगीचे वाले कमरे की तरफ जाते देखा।

जैसे ही दोनो कमरे के अंदर दाखिल हुए, संध्या दरवाजा बंद करने के लिए पीछे मुड़ी, तब अभय ने अपनी मां के चेहरे पर जो मुस्कान देखी उसे ऐसा लगा जैसे आज उसकी मां खुश है। जैसे संध्या ने दरवाजा बंद किया अभय की आंखे भी एक पल के लिए बंद हो गई। वो कुछ देर तक यूं ही उस अमरूद की टहनी पर बैठा उस दरवाजे की तरफ देखता रहा। और थोड़ी देर के बाद वो अमरूद के उस पेड़ से नीचे उतर कर बड़े ही धीमी गति से उस कमरे की तरफ बढ़ा।

उसका दिल इस तरह धड़क रहा था मानो फट ना जाए, उसे सांस लेने में तकलीफ सी हो रही थी। हर बार उसे गहरी सांस लेनी पड़ रही थी। चलते हुए उसके पैर आज कांप रहे थे। ठंडी के मौसम में भी उसे गर्मी का अहसास उसके शरीर से टपक रहे पसीने की बूंद करा रही थी। उसका सिर भरी सा पद गया था, मगर आखिर में वो उस कमरे के करीब पहुंच ही गया।

उसकी नजर उस दीवाल पर बने छोटे छोटे झरोखों पर पड़ी, और बड़ी ही हिम्मत जुटा कर अभय ने अपनी नजर उस झरोखे से सटा दिया।

अंदर का नजारा देखते ही, अभय के हाथ की मीठी में पड़ा वो अमरूद अचानक ही नीचे गिर जाता है। अभय के आंखो के सामने उसकी का की बिखरी हुई फर्श पर साड़ी पर पड़ी, वो अपनी मां की फर्श पर साड़ी को देखते हुए जैसे नजरे उठा कर देखा तो, उसे उसकी मां की नंगी पीठ दिखी, जो इस समय उसके चाचा रमन की जांघो पर उसकी तरफ मुंह कर के बैठी थी।

अभय हड़बड़ा गया, और झट से वो उस दीवार से इतनी तेजी से दूर हुआ, मानो उस दीवार में हजार वॉट का करंट दौड़ रहा हो।

अभय के चेहरे पर किस प्रकार के भाव थे ये बता पाना बहुत मुश्किल था। मगर उसे देख कर ये जरूर लग रहा था की वो पूरी तरह से टूटा हुआ, एक लाचार सा बच्चा था। जो आज अपनी मां को किसी गैर की बाहों में पाकर, खुद को गैर समझने लगा था। वो बहुत देर तक उस दीवाल से दूर खड़ा उसी दीवाल को घूरता रहा। और फिर धीरे से अपने लड़खड़ाते पैर उस बगीचे से बाहर के रास्ते की तरफ मोड़ दिया।


आज अभय का साथ उसे पैर भी नही दे रहे थे। दिमाग तो पहले ही साथ छोड़ चुका था और दिल तो ये मानने को तैयार नहीं था की जो उसकी आंखो ने देखा वो सब सच था। एक शरीर ही था उसका जो बिना दिल और दिमाग के कमजोर हो गया था। उसके पैर उस जगह नहीं पड़ते जहा वो रखना चाहता था। पर शायद अभय को इस बात का कोई फिक्र भी नही था। आज उसके कदम कही पड़े वो मायने नहीं रख रहा था। क्यूं की आज उसे खुद को नही पता था की वो अपने पैर किस दिशा की तरफ मोड़?

चलते हुए वो खेत की पगडंडी पर बैठ जाता है, पेट में लगी ढूंढ भी शायद शांत हो गई थी उसकी, अच्छा हुआ उसेसमय वहा कोई नही था, नही तो उस 9 साल के बच्चे का चेहरा देख कर ही यही समझता की जरूर इसका इस दुनिया में कोई नही है।

कहते है ना जो दिल समझता है अपना शरीर भी वैसा ही बर्ताव करता है। और आज अभय के दिल ने मान लिया था की अब उसका कोई नही है। आज वो रो भी नही रहा था, क्यूंकि जब आंखे रोती है तो आंखो से अश्रु की दरिया बहती है, लेकिन जब दिल रोता है, तो सारे दर्द रिस कर अश्रु की सिर्फ दो कतरे फूटते है जिसके कतरे हाथो से पूछने पर भी चांद लम्हों के बाद गालों पे दर्द की लकीरें छोड़ जाति है।


पगडंडी पर बैठा अभय की आंखो से भी आज रह रह कर ही बूंदे टपक रही थी। उसके सामने चारो दिशाएं थी मगर आज वो समझ नही पा रहा था की किस दिशा में वो जाए। उसकी चाचा की कही हुई बाते, अभय को यकीन दिला गई की उसकी मां ने आज तक उसे जितनी बार भी मारा था वो उसकी नफरत थी। रह रह कर अभय के जहन में उसके चाचा की बातें आती की, तेरी मां तेरे बाप से प्यार ही नहीं करती थी, वो तो मुझसे प्यार करती थी।"

अभय का सिर इतना जोर से दुखने लगा की मानो फट जायेगा, और वो अपना हाथ उठते हुए अपने सिर पर रख लेता है।

अंधेरा हो गया था, मगर अभय अभि भी वही बैठा था। तभी अचानक ही बादल कड़कने लगे, और तेज हवाएं चलने लगी... अभय ने एक बाजार उठा कर इधर उधर देखा और खड़ा होते हुए घर की तरफ जाने के लिए कदम बढ़ाया ही था की, उसने अपने पैर रोक लिए...

तभी किसी आवाज ने अभय को यादों से झिंझोड़ते हुए, वर्तमान में ला पटका। अभय की नजर फोन पर पड़ी जिस पर कॉल आ रहा था...

अभि --"हेलो...!!"

सामने से कुछ आवाज नही आवरा था, तो की ने एक बार फिर से बोला...

अभि --"हेलो...कौन है??"

तब सामने से आवाज आई.....

संध्या --"मैं हूं...।"

अभय --"मैं कौन? मैं का कुछ नाम तो होगा?"

अभय की बात सुनकर सामने से एक बार फिर से आवाज आई...

"एक अभागी मां हूं, जो अपने बेटे के लिए बहुत तड़प रही है, प्लीज फोन मत काटना अभय।"

अभय समझ गया की ये उसकी मां है, वो ये भी समझ गया की जरूर उसकी मां ने एडमिशन फॉर्म से नंबर निकला होगा।

अपनी मां की आवाज सुनकर अभय गुस्से में चिल्लाया...

अभय --"तुझे एक बार में समझ नही आता क्या? तेरा और मेरा रास्ता अलग है,। क्यूं तू मेरे पीछे पड़ी है, बचपन तो खा गई मेरी अब क्या बची हुई जिंदगी भी जहन्नुम बनाना चाहती है क्या?"

अभय की बात सुनकर संध्या एक बार फिर से रोने लगती है.....

संध्या --"ना बोल ऐसा, मैने ऐसा कभी सपने में भी नही सोच सकती।"

संध्या की बात सुनकर अभि इस बार शांति से बोला....

अभि --"काश!! तूने ये सपने में सोचा होता, पर तूने तो...??" देख मैं संभाल गया हूं, समझ बात को, मुझे अब तेरी जरूरत नहीं है, और ना ही तेरी परवाह। मैं यह सिर्फ पढ़ने आया हूं, कोई रिश्ता जोड़ने नही। तू अपने भेजे में ये बात डाल ले की मैं तेरे लिए मर चुका हूं और तू मेरे लिए। तू जैसे अपनी जिंदगी जी रही थी वैसे ही जी, और भगवान के लिए मुझे जीने दे। मैं तुझसे गुस्सा नही हूं, ना ही तुझसे नाराज हूं, क्योंकि गुस्सा और नाराजगी अपनो से किया जाता है। तू मेरे लिए दुनिया के भीड़ में चल रही एक इंसान है बस, और कुछ नही।"

कहते हुए अभय ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया.....
Sandhya ko bi Raman ne dokhe se hi pasaya tha sex ke liye or abhi bhi dokhe ka hi shikar hua.shandya pe ab taras aa raha hai

Shandhaar update
 

chudkad baba

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Bhai mujhe lagta hai ki jab abhay ne Sandhya ko kaha ki tujhe kisi aur ke sath Sona tha to Sandhya ko laga ki abhay usko Aman ko lekar tana mar raha hai tbhi usko jhatka nhi laga tha

Jab ki abhay ne Raman ko lekar Sandhya ko tana mara tha Aur Isliye writer mahoday ne sabse pahle flashback abhay ka dikhya

Ab jab abhay college me Aman ki dhulai karega to Sandhya abhay ko kuchh nhi bolegi to fir abhay Sandhya ko tana marte hua kahega ki aaj tum mujhe kuchh nahi bol rahi ya kahega ki kyu Aaj tujhe gussa nhi aa raha mujh par Maine tere aur tere yaar ke Raja beta ki dhulai ki hai tab Sandhya ko jordar jhatka lagega aur sharmindgi hogi ki abhay ko Raman aur uske rishte ke baare me kaise pata

Aur tab Sandhya ko abhay ke gussa hone aur ghar chhodne ka karan maloom hoga

Kyuki abhi Sandhya ko lagta hai ki abhay naraj aur ghar isliye chhoda tha kyunki wah abhay se mar pit aur us par julm ki thi

Fir Sandhya apne aur Raman ke rishte ke baare me sochegi ki Raman ne yesa kya kiya tha ki wo anjane me chud gai yaha sirf karn jana hai chudne ka

Flashback me Chudai dikhane ki bhi aavshyakta nhi
kyunki dono ki chudai pehle update me hi dikhaya ja chuka hai

Kyunki abhi Puri stories se yesa lag raha hai ki Sandhya aur Raman ka sambandh kafi pehle se hai

Fir Sandhya ye pata lagayegi ki abhay ko Raman aur uske rishte ke baare me kaise pata chala tab fir dhire dhire Raman, Aman munshi ki sajish Sandhya ke samne dhire dhire khulti jayegi ki kaise Raman Aman aur munshi milkar jhooth bolkar usko abhay ke khilaf bhadkate the

bhale hi abhay ke flashback me bhi Sandhya ko khush hokar door band karte dikhaya gaya ho lekin jab abhay ne dekha to usko sirf nangi pith dikha tha chehara nhi kyunki is stories me sajish aur suspense bhi hai aur aksar sajish wali stories me suspense to hota hi hai jisme shuru me dikhata kucch aur hai aur baad me niklta kuchh aur hai

Is stories me Sandhya ke 3 alag alag bayan aur Raman ka Sandhya ko ye kahana ki tum janti ho ki main tumse kitna pyar karta hu, tum yese sab kuchh inti aasani se khatm nhi kar sakti yahi Sandhya ke character ko badchalan sabit kar raha hai Jaise Sandhya pahle se chud rahi ho isko clear karne ki jarurt hai

aur agar Sandhya Raman se pehle se chudti aa rahi hai to maine hero Raman hoga isliye writer mahoday se sirf ek hi gujarish karunga ki is stories ko incest category se hatakar adultery category me dal de to fir koi problem nahi hai ki Sandhya chahe jitni baar Raman ya kisi aur se chude chahe bar bar apni chudai ko yaad kare

Ye sirf mere vichar hai kyoki mujhe lagta hai ki ma beta ki nafrat wali stories me ma anjane me ya kisi sajish ke karn ya majburi me kisi aur se sirf ek hi baar chudti hai jise beta dekh leta hai aur apni ma se nafrat karne lagta hai aur jab sachchai ka pata chalta hai tab nafart khatam ho jata hai fir shuru hota hai ma beta aur ghar ki sabhi aurto ki chudai lila

Baaki bhai writer mahoday Jane kyoki stories unki hai chahe kuch bhi likhe ya dikhaye hume koi aapti nahi hai
 
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