अपडेट 20
अभय के जाते ही संध्या अपनी कार स्टार्ट करती है और हवेली की तरफ बढ़ चलती है.....
अभय जैसे ही हॉस्टल में पहुंचा, उसका दिमाग पूरी तरह से खराब हो गया था...
शर्ट उतार कर बेड पर फेंकते हुए, खुद से बोला...
"अभय संभाल खुद को, उसकी बह रही आंसुओ में मत उलझ। तू कैसे भूल सकता है की तेरी मां एक मतलबी औरत है। अपने जज्बात के आगे तेरा बचपन खा गई। कुछ नहीं दिखा उसे, तू किस हाल में था। हर पल उसके प्यार के लिए तड़पता रहा मगर वो प्यार मिला किसको ? अमन को। याद रख, तू यह क्यूं आया है? ऐसा कौन सा राज है, जो तेरा बाप तुझे बताना चाहता था, मगर उसकी जुबान ना कह सकी जिसके वजह से उन्होंने अपना राज कही तो दफ्न किया है। ढूंढ उस राज को, कुछ तो है जरूर?"
खुद से ही ये सब बाते बोलते हुए, अभय का दिल जोर जोर से चलने लगा। पसीने आने लगे थे उसे। पास रखे पानी का बोतल उठा कर पानी पी कर वो अपने बेड पर शांति से बैठ जाता है।
उसके जहां में वो काली अंधेरी रात घूमने लगती है....जिस दिन वो घर से भाग रहा था।
उस दिन अभय जब स्कूल से घर वापस आया, तब वो अपनी मां को हवेली के बहार ही पाया। अपनी मां के हाथ में डंडा देख कर वो सहम सा जाता है। वो बहुत ज्यादा दर जाता है। स्कूल बैग टांगे उसके चल रहे कदम अचानक से रुक जाते है।
तभी अभय की नजर अमन पर जाति है, जैसा स्कूल यूनिफॉर्म हल्का हल्का फटा था। ऐसा लग रहा था मानो अमन मिट्टी में उलट पलट कर आया हो। अभय को समझते देर नहीं लगी की ये अमन जानबूझ कर किया है उसे उसकी मां से पिटवाने के लिए। अभय ये भी जानता था की, अभय ने कुछ नही बोला और अमन और अपनी मां को नजर अंदाज करते हुए हवेली के अंदर जाने लगा की तभी संध्या की आवाज गूंजी...
संध्या --"किधर जा रहा है? इधर आ?"
अपनी मां की कड़क भाषा सुन कर, अभय इतना तो समझ गया था की अब उसे मार पड़ने वाली है, वैसे तो वो हर बार अपनी मां से दर जाता था, और संध्या के कुछ बोलने से पहले ही वो छटपटाने लगता था। मगर आज वो बिना डर के अपनी मां की एक आवाज पर उसके नजदीक जा कर खड़ा हो गया था। आज उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। बस वहा खड़े होकर कुछ सोच रहा था...
संध्या --"तुझे इतनी बार समझाया है, तू समझता क्यूं नही है? अमन से झगड़ा क्यूं किया तूने? उसका स्कूल ड्रेस भी फाड़ दिया तूने? क्यूं किया तूने ऐसा?"
अभय एक दम शांत वही खड़ा रहा, उसे आज स्कूल में हुई घटना याद आने लगी, जब वो स्कूल के लंच टाइम में खाना खा रहा था, तब वहा अमन आ जाता है। और उसका लंच बॉक्स उठा कर फेक देता है। ये देख कर पास में बैठी पायल उठते हुए अमन के गाल पर एक थप्पड़ रसीद कर देती है।
पायल --"बदमीज कही का, तू क्यूं हमेशा अभय को परेशान करता रहता है? अकल नही है क्या तुझे? खाना भी फेकता है क्या कोई?चलो अभय तुम मेरे टिफिन सेबखाना खा लो।"
ये कहते हुए जब पायल ने अपना टिफिन आगे बढ़ाया, वैसे ही अमन गुस्से में अपना हाथ पायल के टिफिन की तरफ बढ़ा दिया लेकिन तब तक अभय ने अमन का पकड़ते हुए मरोड़ दिया।
अमन दर्द से कराह पड़ा...पर जल्द ही अभय ने कुछ सोचते हुए अमन का हाथ छोड़ दिया।
अमन अपना हाथ झटकते हुए बोला...
अमन --"बड़ा बहादुर बनता है ना तू, आज आ घर पे फिर पता चलेगा तुझे।"
तब तक वहा पर ना जाने कहा से मुंशी पहुंच जाता है, और अमन को दर्द में करता देख...
मुनीम --"क्या हुआ छोटे मालिक? क्या हुआ आपको?"
अमन --"देखो ना मुनीम काका, इसने मेरा हाथ मरोड़ दिया।"
उस समय तो मुनीम ने कुछ नही बोला और अमन को लेकर ना जाने कहा चला गया।
यही सब बातें अभय अपनी मां के सामने खड़ा सोच रहा था पर उसने अपनी मां की बातों का जवाब नही दिया। तभी वहा खड़ा मुनीम बोला...
मुनीम --"मालकिन अब क्या बोलूं, अभय बाबा ने अमन बाबा का लंच बॉक्स उठा कर फेक दिया, और जब अमन बाबा ने पूछा तो, अभय बाबा ने उनका हाथ मरोड़ कर उनसे लड़ने लगे और अमन बाबा को पीटने लगे।"
मुनीम की बात सुनकर संध्या का गुस्सा आसमान पे, पर अभय पर कोई असर नहीं, वो नही डरा और ना ही आज उसने कुछ सफाई पेश की, शायद उसे पता था की उसकी सफाई देने का कुछ भी असर उसकी मां पर नही होगा। और इधर संध्या गुस्से में थी। वो और गुस्से में तब पागल हो जाति है, जब उसे अभय के चहरे पर कुछ भी भाव नही दिखे , वो साधारण ही खड़ा रहा...
तभी एक जोरदार डंडा अभय के हाथ के बाजू पर पड़ा, मगर आज अभय के मुंह से दर्द की जरा सी भी छींक नही निकली...
संध्या --"देखो तो इसको, अब तो डर भी खतम हो गया है। पूरा बिगड़ गया है ये, मुनीम..."
मुनीम --"जी मालकिन..."
संध्या --"मुझे पता है, हर बार मैं जब तुम्हे इसे दंडित करने के लिए बोलती हूं, तो तुम इसको बच्चा समझ कर छोड़ देते हो। अब देखो कितना बिगड़ गया है, खाना भी उठा कर फेंकने लगा है। पर इस बार नही, आज इसने खाना फेंका है ना। इसे खाने की कीमत पता चलने चाहिए, इसे आज खाना मत देना, और कल सिर्फ एक वक्त का खाना देना, फिर पता चलेगा की खाना क्या होता है?"
मुनीम --"जी मालकिन..."
संध्या --"जी मालकिन नही, ऐसा ही करना समझे।"
ये कह कर संध्या जाते जाते 3 से 4 डंडे जोरदार अभय को जड़ देती है।
संध्या --"खाना फेकेगा, अभि से ही इतनी चर्बी।"
कहते हुए संध्या वहा से चली जाति है...
अभय ने अपनी नजर अमन की तरफ मोड़ते हुए देखा तो पाया, अमन संध्या का हाथ पकड़े हवेली के अंदर जा रहा था। अमन ने पीछे मुड़ते हुए मुस्कुरा कर ऐसा भाव अपने चेहरे पर लाया जैसे वो अभय को बेचारा साबित करना चाहता हो। मगर इस बार अभय को जलन नही हुई, बल्कि अमन की मुस्कुराहट का जवाब उसने मुस्कुरा कर ही दिया। जिसे देख कर अमन की मुस्कान उड़ चली।
अभय अपना स्कूल बैग टांगे हवेली के अंदर जाने लगा। तभी वहा रमन आ जाता है...
रमन --"बेचारा, क्यूं सहता तू इतना सब कुछ अभय? तेरी मां तुझे प्यार नही करती है। मुझे पता है, की खाना तूने नही अमन ने फेका था। पर देख अपनी मां को, वो किसे मार रही है, तुझे।"
रमन की बात सुनकर अभय ने मुस्कुराते हुए बोला...
अभय --"वो मुझे मरती है, क्यूंकि उसे लगता है की मैं ही गलत हूं। नही तो वो मुझे कभी नहीं मारती।"
ये सुनकर रमन बोला....
रमन --"अच्छा, तो तुझे लगता है की तेरी मां तुझे बहुत चाहती है?"
अभय --"इसमें लगने जैसा क्या है? हर मां अपने बच्चे को चाहती है।"
रमन --"अरे तेरी मां जब तेरे पापा से प्यार नही कर पाई, तो तुझे क्या करेगी?"
ये सुनकर अभय का दिमाग थम गया...
अभय --"मतलब...?"
रमन --"मतलब ये की, तेरी मां मुझसे प्यार करती है, उसे तेरा बाप पसंद ही नहीं था। इसीलिए तू तेरे बाप की औलाद है तो उस वजह से वो तुझे भी प्यार नही करती।"
अभय तो था 9 साल का बच्चा मगर शब्दो का बहाव उसे किसी दुविधा में डाल चुकी थी, उसने बोला...
अभय --"मेरी मां तुमसे प्यार क्यूं करेगी ? वो तो मेरे पापा से प्यार करती थी।"
ये सुनकर रमन मुस्कुराते हुए बोला...
रमन --"देख बेटा, मैं तेरी भलाई के लिए ही बोल रहा हूं। क्यूंकि तू मेरा भतीजा है?तेरी मां ने खुद मुझसे कहा है की, तू उसकी औलाद है जिसे वो पसंद नही करती थी, इसीलिए वो तुझे भी पसंद नही करती। अब देख तू ही बता वो मुझसे प्यार करती है इसीलिए मेरे बेटे अमन को भी खूब प्यार करती है। अगर तुझे फिर भी यकीन नही है तो। 1 घंटे बाद, वो अमरूद वाले बगीचे में अपना जो पंपसेट का कमरा है ना, उसमे आ जाना। फिर तू देख पाएगा की तेरी मां मुझसे कितना प्यार करती है??