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Incest वो तो है अलबेला (incest + adultery)

क्या संध्या की गलती माफी लायक है??


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Rudransh120

The Destroyer
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अपडेट 8

ग्राउंड खचाखच भरा था, आस पड़ोस के गांव भी क्रिकेट का वो शानदार खेल देखने आए थे।ये कोई ऐसा वैसा खेल नही था। ये खेल ठाकुरों और गांव के आम लोगो के बीच का खेल था।

खेल में 15 से 17 साल के युवा लडको ने भाग लिया था। कहा एक तरफ ठाकुर अमन सिंह अपने टीम का कप्तान था। तो वही दूसरी तरफ भी अमन के हमउम्र का ही एक लड़का कप्तान था, नाम था अजय। खेल शुरू हुई, दोनो कप्तान ग्राउंड पर आए और निर्धारक द्वारा सिक्का उछाला गया और निर्दय का फैसला अमन के खाते में गया।

अमन ने पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया। अजय की ने अपनी टीम का क्षेत्र रक्षण अच्छी तरह से लगाया। मैच स्टार्ट हुए, बल्लेबाजी के लिए पहले अमन और सरपंच का लड़का सुनील आया। शोरगुल के साथ मैच आरंभ हुआ ।

अमन की टीम बल्लेबाजी में मजबूत साबित हो रही थी, अमन एकतरफ से काफी अच्छी बल्लेबाजी करते हुए अच्छे रन बटोर रही थी। वही अमन किंशनदार बल्लेबाजी पर लोगो की तालिया बरस रही थी, और सबसे ज्यादा taliyo की गूंज संध्या सिंह की तरफ से पद रहे थे, देख कर ऐसा लग रहा था मानो संध्या के हाथ ही नही रुक रहे थे। चेहरे पर की खुशी साफ दिख रही थी। तालिया को पिटती हुई जोर जोर से चिल्ला कर वो अमन का हौसला अफजाई भी कर रही थीं। गांव के औरतों की नज़रे तो एक पल के लिए मैच से हटकर संध्या पर ही अटक गई।

मैच देख रही गांव की औरतों के झुंड में से एक औरत बोली।

"जरा देखो तो ठाकुराइन को, देखवकर लगता नही की बेटे के मौत का गम है। कितनी खिलखिला कर हंसते हुए तालिया बजा रही है।"

पहेली औरत की बात सुनकर , दूसरी औरत बोली...

"अरे शांति, जैसे तुझे कुछ पता ही न हो, अभय बाबा तो नाम के बेटे थे ठाकुराइन के, पूरा प्यार तो ठाकुराइन इस अमन पर ही लुटती थी, अच्छा हुआ अभय बाबा को भगवान का दरबार मिल गया। इस हवेली में तो तब तक ही सब कुछ सही था जब तक बड़े मालिक जिंदा थे।"

शांति --"सही कह रही है तू निम्मो,, अच्छे और भले इंसान को भगवान जल्दी ही बुला लेता है। अब देखो ना , अभय बाबा ये जाति पति की दीवार तोड़ कर हमारे बच्चो के साथ खेलने आया करते थे। और एक ये अमन है, इतनी कम उम्र में ही जाति पति का कांटा दिल और दिमाग में बो कर बैठा है।"

गांव की औरते यूं ही आपस में बाते कर रही थी, और इधर अमन 100 रन के करीब था। सिर्फ एक रन से दूर था। अगला ओवर अजय का था, तो इस समय बॉल उसके हाथ में था। अजय ने अपने सभी साथी खिलाड़ियों को एकत्रित किया था और उनसे कुछ तो बाते कर रहा था, या ये भी कह सकते हो की कप्तान होने के नाते अपने खिलाड़ी को कुछ समझा रहा था। तभी अमन अपने अहंकार में चूर अजय के गोल से होते हुए, बैटिंग छोर की तरफ जा रहा था , तभी वो अजय को देखते हुए बोला...

अमन --"बेटा अभी जा जाकर सिख, ये क्रिकेट का मैच है। तुम्हारे बस का खेल नही है।"

अमन की बात सुनकर अजय ने बाउल उछलते और कैच करते हुए उसकी तरफ बढ़ा और अमन के नजदीक आकर बोला...

अजय --"क्यूं? मुझसे दर लग रहा है क्या तुझे?"

अजय की तू तड़क वाली बात सुनकर, अमन को गुस्सा आ गया, और क्रिकेट पिच पर ही अजय का कूलर पकड़ लिया। में का ये रवैया देख कर सब के सब असमंजस में पड़ गए , गांव के बैठे हुए लोग भी अपने अपने स्थान से खड़े हो गए, संध्या के साथ साथ बाकी बैठे उच्च जाति के लोग भी हक्का बक्का गए की ये अमन क्या कर रहा , झगड़ा क्यूं कर रहा है?

लेकिन तब तक मैच के निर्धारक वहा पहुंच कर अमन को अजय से दूर ले जाते है। अजय को गुस्सा नही आया बल्कि वो अभी भी अपने बॉल को उछलते और कैच करते अमन की तरफ देखकर मुस्कुरा रहा था।

मैच शुरू हुई, पहेली परी का अंतिम ओवर था जो अजय फेंक रहा था। अजय ने पहला बॉल डाला और अमन ने बल्ला घुमाते हुए एक शानदार शॉट मारा और गेंद ग्राउंड के बाहर, और इसी के साथ अमन का 100 रन पूरा हुआ। अमन अपनी मेहनत का काम पर अहंकार का कुछ ज्यादा ही प्रदर्शन कर रहा था। और एक तरफ अमन के 100 रन पूरा करने की खुशी संध्या से मानो पच ही नही रही थी। खड़ी होकर इस तरह तालिया पीट रही थी , मानो हथेली ही न टूट जाए। गांव वाले भी अमन के अच्छे खेल पर उसके लिए तालिया से सम्मान जाता रहे थे।

पहेली परी का अंत हो चुका था 15 ओवर के मैच में 170 रन का लक्ष्य मिला था अजय की टीम को।

परी की शुरुआत में अजय और उसका एक साथी खिलाड़ी आए। पर नसीब ने धोखा दिया और पहले ओवर की पहली गेंद पर ही अमन ने अजय की खिल्ली उड़ा दी। गांव वालो का चेहरा उदास हो गया। क्युकी अजय ही 3k matra Aisa खिलाड़ी था जो इतने विशाल लक्ष्य को हासिल कर सकता था। अजय के जाते ही अजय के टीम के अन्य खिलाड़ी में आत्मविश्वास की कमी ने अपना पैर पसार दिया। और देखते ही देखते एक एक करके उनके विकेट गिरते चले गए।

मात्र 8 ओवर के मैच में ही अजय की टीम ऑल आउट हो गई और बेहद ही बुरी तरह से मैच से पराजित हुए। अजय के चेहरे पर पराजय की वो लकीरें साफ उमड़ी हुई दिख रही थी। वो काफी हताश था, जो गांव वाले उसके चेहरे को देख कर ही पता लगा चुके थे। अजय गुमसुम सा अपने चेहरे को अपनी हथेलियों में छुपाए नीचे मुंह कर कर बैठा था। अजय की ऐसी स्थिति देख कर गांव वालो का भी दिल भर आया। क्योंकि अजय ने मैच को जीतने के लिए काफी अभ्यास किया था। पर नतीजन वो एक ओवर भी क्रीच पर खड़ा ना हो सका जिसका सामना उसे मैच की पराजय से करना पड़ा।

कोई कुछ नही बोल रहा था। अजय का तकलीफ हर कोई समझ सकता था। मैच का समापन हो चुका था। अमन को उसकी अच्छे प्रदर्शन के लिए पुरस्कृत किया गया। वो भी गांव की ठाकुराइन संध्या के हाथों। एक चमचमाती बाइक की चाभी संध्या के खूबसूरत हाथो से अमन को पुरस्कृत किया गया। में को पुरस्कृत करते हुए संध्या के मुख से निकला...

संध्या --"शाबाश...

अमन ने खुशी खुशी बाइक चाभी को लेते हुए अपने हाथ को ऊपर उठाते हुए अपने पुरस्कार की घोड़ा की ।


_______________________

शाम के 6 बाज रहे थे। अभि घर के कमरे के अंदर से बाहर निकलते हुए हॉल में आकर बैठ गया और tv देखने लगा। तभी वह रेखा भी आ जाति है। रेखा भी अभि के बगल के बैठते हुऐ बोली...

रेखा --" क्या बात है अभि? आज तुम कुछ ज्यादा ही खुश लग रहे हो।"

रेखा की बात सुनकर अभि उसकी तरफ मुस्कुराते हुए देख कर बोला...

अभि --"हा आंटी, आपको पता है, आज मेरे स्कूल यह के एम एल ए आए थे और उन्होंने ये घोड़ा की है की जो भी स्टूडेंट इस वर्ष अच्छे मार्क्स से पास होगा वो उस स्टूडेंट की आगे की पढ़ाई का पूरा खर्चा सम्हालेंगे।"

रेखा --"अरे वाह! ये तो सच में बहुत अच्छी खबर है, और मुझे पता है की मेरा अभि ही इस साल अच्छे नंबर से पास होगा।"

अभि --"अच्छे मार्क्स के बारे में किसको पता आंटी, पर गुरु जी कहते थे , की आज के ऊपर ध्यान दोगे तो तुम्हारा कल बेहतर होगा। और कल के बारे में सोचो कर बैठोगे तो तुम्हारा कुछ नही होगा। तो मुझे नही पता की मैं कितने मार्क्स लाऊंगा , बस पता हैब्तो इतना की अगर आज मैंने जमकर पढ़ाई की तो कल मेरा बेहतर होगा। और तो और अब तो मुझे काम भी मील गया है। बस ऊपर walanisintarah मेहनत करने का मौका देते रहे बस।"

रेखा --"तू सच में सबसे अलग है अभि, तू अलबेला है अलबेला।"

रेखा की बात सुनकर अभि मुस्कुराते हुए बोला...

अभि --"जो जिंदगी से खेला है वही तो अलबेला है। ऐसा मेरे पापा कहते थे। अच्छा आंटी मैं बाजार की तरफ जा रहा ही कुछ लाना है तो बोल दी, आते वक्त लेते आऊंगा।"

रेखा ने अभि को एक गहरी नज़र से देखते हुए बोली...

रेखा --"चाहिए तो था पर तू la nahi पाएगा!"


अभि --"क्यूं? ज्यादा भरी है क्या?"

ये सुनकर रेखा मुस्कुराते हुए.....

रेखा --"उम्म्म, भारी तो नही है, पर तेरी उम्र के हिसाब से भरी ही है समझ ले।"

ये सुन कर अभि भी थोड़ा मुस्कुरा पड़ा, शायद उसके दिमाग ने भी कुछ समझा ।

रेखा --" क्या हुआ ? तू मुस्कुरा क्यूं रहा है?"

अभि कुछ नही बोलता बस मुस्कुराते हुए घर से बाहर नकल जाता है। रेखा के भी चेहरे पर इस वक्त मुस्कान की लकीरें उमड़ी पड़ी थी, और जैसे ही अभि उसकी आंखो से ओझल हुआ।

रेखा --" बदमाश कही का, सब समझता है बस भोला बना बैठा है। मेरा लल्ला।"

कहते है ना , जब किस्मत मेहरबान होती है तो लोगो के हाथो से अच्छे काम ही होते है, वो उस समय सिर्फ अच्छी बाते सोचता है और उसके साथ अच्छा ही होता है। वही हुआ हमारे अभि के साथ भी। पूरी लगन के साथ पढ़ाई और काम दोनो किया उसने , 10 वि का एग्जाम्स दे कर काफी अच्छे मार्क्स से पास हुआ । और इधर एम एल ए के घोड़ा अनुसार, अभय को पुरस्कृत करते हुए आगे की पढ़ाई का पूरा खर्चा देने का वादा भी निभाया। सरस्वती ध्यान सागर के ट्रस्ट द्वारा अभि को आगे की पढ़ाई के लिए एक अच्छे कॉलेज में एडमिशन मिल गया।

______&&_________&&_____

इधर गांव में रमन ने जोर शोरो से कॉलेज की नीव खड़ी कर दी थी। देख कर ही लग रहा था की काफी भव्य कॉलेज का निर्माण हो होने वाला था। वैसे भी रमन ने डिग्री कॉलेज की मान्यता लेने की सोची थी तो कॉलेज भी उसी के अनुसार भी तो होगी।

जहा एक तरफ संध्या का प्यार अमन के लिए दिन दुगनी रात चुगनी हो रही थी तो, वही अमन एक तरफ अहंकार की आंधी में उड़ रहा था। अब अमन भी 11 वि में प्रवेश कर चुका था।

संध्या अब अमन को ही अपना बेटा मां कर जीने लगी थी। अब तो मालती के ताने भी उसे सिर्फ हवा ही लगते थे। जिसकी वजह से मालती भी अपने आज में जीने लगी थी। और वो भी अभय की यादों से दूर होती जा रही थी। अभय अब उस हवेली के लिए बस एक नाम बनकर रह गया था। जो कभी कभी ही यादों में आता था। शायद संध्या को लग चुका था की अब रोने गाने से कुछ फर्क पड़ने वाला तो है नही, अभय अब तो वापस आने से रहा । इसीलिए वो भी उसकी यादों से तौबा कर चुकी थी।

और होता भी यही है, कब तक कोई किसी को याद करता रहेगा, कब तक कोई किसी के लिए आसूं बहायेगा? समय के साथ तो लस्सी भी पत्थर को काट देती है, तो संध्या का तो सिर्फ जख्मी दिल था, जिस मरहम बना अमन का प्यार, और बस अभय की यादें किसी गुमनामी के अंधेरे में भटक कर रह गया।

अभय की यादें गुमनामी में भटक रहा था, मगर अभय नही। शायद इन बहन के लौड़ों को नही पता था। खैर वो तो वक्त ही बताएगा की गुमनामी में कौन जीने वाला है , अभय या हवेली के चमकते सितारे। क्योंकि अभय को तो रात के अंधेरे में चमकता सितारा नही, दिन में चमक रहे सूर्य की भाटी जीने में मजा आता है।


दोस्तो इस पार्ट में इतना ही, i know ki update thoda slow aur Chhota hai, but samay ke saath saath vo bhi thik ho jayega , tab tak pls understadnd....
Shandar update tha bhai....

Jaha ek taraf Abhay ko jyada numbar aane par aage ki padhai free me hogi vaha dusri taraf Aman ne match bhi jit liya aur Raman ne college ka kam joro soro se aage badha diya he...

Par kya Sandhya Aman ke pyaar me andhi hokar Abhay ke sath ki hui nainsafi bhul bethi he jo ab sirf Aman ko hi sabkuch man kar ji rahi he

Aur kya wo ab aage bhi Raman ke sath gair sambandh banayegi jiski vajah se uska beta use chhodke chala gya uska pata chalega kabhi ya nahi ???
 

sunoanuj

Well-Known Member
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Bhut hee badhiya chota par satik …
 

Yasasvi1

❣bhootni💞
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अपडेट 8

ग्राउंड खचाखच भरा था, आस पड़ोस के गांव भी क्रिकेट का वो शानदार खेल देखने आए थे।ये कोई ऐसा वैसा खेल नही था। ये खेल ठाकुरों और गांव के आम लोगो के बीच का खेल था।

खेल में 15 से 17 साल के युवा लडको ने भाग लिया था। कहा एक तरफ ठाकुर अमन सिंह अपने टीम का कप्तान था। तो वही दूसरी तरफ भी अमन के हमउम्र का ही एक लड़का कप्तान था, नाम था अजय। खेल शुरू हुई, दोनो कप्तान ग्राउंड पर आए और निर्धारक द्वारा सिक्का उछाला गया और निर्दय का फैसला अमन के खाते में गया।

अमन ने पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया। अजय की ने अपनी टीम का क्षेत्र रक्षण अच्छी तरह से लगाया। मैच स्टार्ट हुए, बल्लेबाजी के लिए पहले अमन और सरपंच का लड़का सुनील आया। शोरगुल के साथ मैच आरंभ हुआ ।

अमन की टीम बल्लेबाजी में मजबूत साबित हो रही थी, अमन एकतरफ से काफी अच्छी बल्लेबाजी करते हुए अच्छे रन बटोर रही थी। वही अमन किंशनदार बल्लेबाजी पर लोगो की तालिया बरस रही थी, और सबसे ज्यादा taliyo की गूंज संध्या सिंह की तरफ से पद रहे थे, देख कर ऐसा लग रहा था मानो संध्या के हाथ ही नही रुक रहे थे। चेहरे पर की खुशी साफ दिख रही थी। तालिया को पिटती हुई जोर जोर से चिल्ला कर वो अमन का हौसला अफजाई भी कर रही थीं। गांव के औरतों की नज़रे तो एक पल के लिए मैच से हटकर संध्या पर ही अटक गई।

मैच देख रही गांव की औरतों के झुंड में से एक औरत बोली।

"जरा देखो तो ठाकुराइन को, देखवकर लगता नही की बेटे के मौत का गम है। कितनी खिलखिला कर हंसते हुए तालिया बजा रही है।"

पहेली औरत की बात सुनकर , दूसरी औरत बोली...

"अरे शांति, जैसे तुझे कुछ पता ही न हो, अभय बाबा तो नाम के बेटे थे ठाकुराइन के, पूरा प्यार तो ठाकुराइन इस अमन पर ही लुटती थी, अच्छा हुआ अभय बाबा को भगवान का दरबार मिल गया। इस हवेली में तो तब तक ही सब कुछ सही था जब तक बड़े मालिक जिंदा थे।"

शांति --"सही कह रही है तू निम्मो,, अच्छे और भले इंसान को भगवान जल्दी ही बुला लेता है। अब देखो ना , अभय बाबा ये जाति पति की दीवार तोड़ कर हमारे बच्चो के साथ खेलने आया करते थे। और एक ये अमन है, इतनी कम उम्र में ही जाति पति का कांटा दिल और दिमाग में बो कर बैठा है।"

गांव की औरते यूं ही आपस में बाते कर रही थी, और इधर अमन 100 रन के करीब था। सिर्फ एक रन से दूर था। अगला ओवर अजय का था, तो इस समय बॉल उसके हाथ में था। अजय ने अपने सभी साथी खिलाड़ियों को एकत्रित किया था और उनसे कुछ तो बाते कर रहा था, या ये भी कह सकते हो की कप्तान होने के नाते अपने खिलाड़ी को कुछ समझा रहा था। तभी अमन अपने अहंकार में चूर अजय के गोल से होते हुए, बैटिंग छोर की तरफ जा रहा था , तभी वो अजय को देखते हुए बोला...

अमन --"बेटा अभी जा जाकर सिख, ये क्रिकेट का मैच है। तुम्हारे बस का खेल नही है।"

अमन की बात सुनकर अजय ने बाउल उछलते और कैच करते हुए उसकी तरफ बढ़ा और अमन के नजदीक आकर बोला...

अजय --"क्यूं? मुझसे दर लग रहा है क्या तुझे?"

अजय की तू तड़क वाली बात सुनकर, अमन को गुस्सा आ गया, और क्रिकेट पिच पर ही अजय का कूलर पकड़ लिया। में का ये रवैया देख कर सब के सब असमंजस में पड़ गए , गांव के बैठे हुए लोग भी अपने अपने स्थान से खड़े हो गए, संध्या के साथ साथ बाकी बैठे उच्च जाति के लोग भी हक्का बक्का गए की ये अमन क्या कर रहा , झगड़ा क्यूं कर रहा है?

लेकिन तब तक मैच के निर्धारक वहा पहुंच कर अमन को अजय से दूर ले जाते है। अजय को गुस्सा नही आया बल्कि वो अभी भी अपने बॉल को उछलते और कैच करते अमन की तरफ देखकर मुस्कुरा रहा था।

मैच शुरू हुई, पहेली परी का अंतिम ओवर था जो अजय फेंक रहा था। अजय ने पहला बॉल डाला और अमन ने बल्ला घुमाते हुए एक शानदार शॉट मारा और गेंद ग्राउंड के बाहर, और इसी के साथ अमन का 100 रन पूरा हुआ। अमन अपनी मेहनत का काम पर अहंकार का कुछ ज्यादा ही प्रदर्शन कर रहा था। और एक तरफ अमन के 100 रन पूरा करने की खुशी संध्या से मानो पच ही नही रही थी। खड़ी होकर इस तरह तालिया पीट रही थी , मानो हथेली ही न टूट जाए। गांव वाले भी अमन के अच्छे खेल पर उसके लिए तालिया से सम्मान जाता रहे थे।

पहेली परी का अंत हो चुका था 15 ओवर के मैच में 170 रन का लक्ष्य मिला था अजय की टीम को।

परी की शुरुआत में अजय और उसका एक साथी खिलाड़ी आए। पर नसीब ने धोखा दिया और पहले ओवर की पहली गेंद पर ही अमन ने अजय की खिल्ली उड़ा दी। गांव वालो का चेहरा उदास हो गया। क्युकी अजय ही 3k matra Aisa खिलाड़ी था जो इतने विशाल लक्ष्य को हासिल कर सकता था। अजय के जाते ही अजय के टीम के अन्य खिलाड़ी में आत्मविश्वास की कमी ने अपना पैर पसार दिया। और देखते ही देखते एक एक करके उनके विकेट गिरते चले गए।

मात्र 8 ओवर के मैच में ही अजय की टीम ऑल आउट हो गई और बेहद ही बुरी तरह से मैच से पराजित हुए। अजय के चेहरे पर पराजय की वो लकीरें साफ उमड़ी हुई दिख रही थी। वो काफी हताश था, जो गांव वाले उसके चेहरे को देख कर ही पता लगा चुके थे। अजय गुमसुम सा अपने चेहरे को अपनी हथेलियों में छुपाए नीचे मुंह कर कर बैठा था। अजय की ऐसी स्थिति देख कर गांव वालो का भी दिल भर आया। क्योंकि अजय ने मैच को जीतने के लिए काफी अभ्यास किया था। पर नतीजन वो एक ओवर भी क्रीच पर खड़ा ना हो सका जिसका सामना उसे मैच की पराजय से करना पड़ा।

कोई कुछ नही बोल रहा था। अजय का तकलीफ हर कोई समझ सकता था। मैच का समापन हो चुका था। अमन को उसकी अच्छे प्रदर्शन के लिए पुरस्कृत किया गया। वो भी गांव की ठाकुराइन संध्या के हाथों। एक चमचमाती बाइक की चाभी संध्या के खूबसूरत हाथो से अमन को पुरस्कृत किया गया। में को पुरस्कृत करते हुए संध्या के मुख से निकला...

संध्या --"शाबाश...

अमन ने खुशी खुशी बाइक चाभी को लेते हुए अपने हाथ को ऊपर उठाते हुए अपने पुरस्कार की घोड़ा की ।


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शाम के 6 बाज रहे थे। अभि घर के कमरे के अंदर से बाहर निकलते हुए हॉल में आकर बैठ गया और tv देखने लगा। तभी वह रेखा भी आ जाति है। रेखा भी अभि के बगल के बैठते हुऐ बोली...

रेखा --" क्या बात है अभि? आज तुम कुछ ज्यादा ही खुश लग रहे हो।"

रेखा की बात सुनकर अभि उसकी तरफ मुस्कुराते हुए देख कर बोला...

अभि --"हा आंटी, आपको पता है, आज मेरे स्कूल यह के एम एल ए आए थे और उन्होंने ये घोड़ा की है की जो भी स्टूडेंट इस वर्ष अच्छे मार्क्स से पास होगा वो उस स्टूडेंट की आगे की पढ़ाई का पूरा खर्चा सम्हालेंगे।"

रेखा --"अरे वाह! ये तो सच में बहुत अच्छी खबर है, और मुझे पता है की मेरा अभि ही इस साल अच्छे नंबर से पास होगा।"

अभि --"अच्छे मार्क्स के बारे में किसको पता आंटी, पर गुरु जी कहते थे , की आज के ऊपर ध्यान दोगे तो तुम्हारा कल बेहतर होगा। और कल के बारे में सोचो कर बैठोगे तो तुम्हारा कुछ नही होगा। तो मुझे नही पता की मैं कितने मार्क्स लाऊंगा , बस पता हैब्तो इतना की अगर आज मैंने जमकर पढ़ाई की तो कल मेरा बेहतर होगा। और तो और अब तो मुझे काम भी मील गया है। बस ऊपर walanisintarah मेहनत करने का मौका देते रहे बस।"

रेखा --"तू सच में सबसे अलग है अभि, तू अलबेला है अलबेला।"

रेखा की बात सुनकर अभि मुस्कुराते हुए बोला...

अभि --"जो जिंदगी से खेला है वही तो अलबेला है। ऐसा मेरे पापा कहते थे। अच्छा आंटी मैं बाजार की तरफ जा रहा ही कुछ लाना है तो बोल दी, आते वक्त लेते आऊंगा।"

रेखा ने अभि को एक गहरी नज़र से देखते हुए बोली...

रेखा --"चाहिए तो था पर तू la nahi पाएगा!"


अभि --"क्यूं? ज्यादा भरी है क्या?"

ये सुनकर रेखा मुस्कुराते हुए.....

रेखा --"उम्म्म, भारी तो नही है, पर तेरी उम्र के हिसाब से भरी ही है समझ ले।"

ये सुन कर अभि भी थोड़ा मुस्कुरा पड़ा, शायद उसके दिमाग ने भी कुछ समझा ।

रेखा --" क्या हुआ ? तू मुस्कुरा क्यूं रहा है?"

अभि कुछ नही बोलता बस मुस्कुराते हुए घर से बाहर नकल जाता है। रेखा के भी चेहरे पर इस वक्त मुस्कान की लकीरें उमड़ी पड़ी थी, और जैसे ही अभि उसकी आंखो से ओझल हुआ।

रेखा --" बदमाश कही का, सब समझता है बस भोला बना बैठा है। मेरा लल्ला।"

कहते है ना , जब किस्मत मेहरबान होती है तो लोगो के हाथो से अच्छे काम ही होते है, वो उस समय सिर्फ अच्छी बाते सोचता है और उसके साथ अच्छा ही होता है। वही हुआ हमारे अभि के साथ भी। पूरी लगन के साथ पढ़ाई और काम दोनो किया उसने , 10 वि का एग्जाम्स दे कर काफी अच्छे मार्क्स से पास हुआ । और इधर एम एल ए के घोड़ा अनुसार, अभय को पुरस्कृत करते हुए आगे की पढ़ाई का पूरा खर्चा देने का वादा भी निभाया। सरस्वती ध्यान सागर के ट्रस्ट द्वारा अभि को आगे की पढ़ाई के लिए एक अच्छे कॉलेज में एडमिशन मिल गया।

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इधर गांव में रमन ने जोर शोरो से कॉलेज की नीव खड़ी कर दी थी। देख कर ही लग रहा था की काफी भव्य कॉलेज का निर्माण हो होने वाला था। वैसे भी रमन ने डिग्री कॉलेज की मान्यता लेने की सोची थी तो कॉलेज भी उसी के अनुसार भी तो होगी।

जहा एक तरफ संध्या का प्यार अमन के लिए दिन दुगनी रात चुगनी हो रही थी तो, वही अमन एक तरफ अहंकार की आंधी में उड़ रहा था। अब अमन भी 11 वि में प्रवेश कर चुका था।

संध्या अब अमन को ही अपना बेटा मां कर जीने लगी थी। अब तो मालती के ताने भी उसे सिर्फ हवा ही लगते थे। जिसकी वजह से मालती भी अपने आज में जीने लगी थी। और वो भी अभय की यादों से दूर होती जा रही थी। अभय अब उस हवेली के लिए बस एक नाम बनकर रह गया था। जो कभी कभी ही यादों में आता था। शायद संध्या को लग चुका था की अब रोने गाने से कुछ फर्क पड़ने वाला तो है नही, अभय अब तो वापस आने से रहा । इसीलिए वो भी उसकी यादों से तौबा कर चुकी थी।

और होता भी यही है, कब तक कोई किसी को याद करता रहेगा, कब तक कोई किसी के लिए आसूं बहायेगा? समय के साथ तो लस्सी भी पत्थर को काट देती है, तो संध्या का तो सिर्फ जख्मी दिल था, जिस मरहम बना अमन का प्यार, और बस अभय की यादें किसी गुमनामी के अंधेरे में भटक कर रह गया।

अभय की यादें गुमनामी में भटक रहा था, मगर अभय नही। शायद इन बहन के लौड़ों को नही पता था। खैर वो तो वक्त ही बताएगा की गुमनामी में कौन जीने वाला है , अभय या हवेली के चमकते सितारे। क्योंकि अभय को तो रात के अंधेरे में चमकता सितारा नही, दिन में चमक रहे सूर्य की भाटी जीने में मजा आता है।


दोस्तो इस पार्ट में इतना ही, i know ki update thoda slow aur Chhota hai, but samay ke saath saath vo bhi thik ho jayega , tab tak pls understadnd....
😍bhot payare update ab intazar ha 9 va update ka...😍😍
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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Nice update

शैली अच्छी है, भाषा पे ध्यान दीजिए, कभी कभी दुबारा पढ़ना पड़ता है समझने के लिए।

Hope to see pace in story soon.
 

Hemantstar111

New Member
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अपडेट 9

गर्मी के दिन थे, ठंडी हवाएं चल रही थी। अजय गांव के स्कूल के पुलिया पर बैठा था। उसके साथ दो और लड़के बैठे थे, सूर्य डूबने को था और अपनी ठंडी लालिमा धरती पर बिखेरे था।

अजय और वो दोनो लड़के आपस में बाते कर रहे थे।

"यार अजय अब तो छुट्टी के दिन भी बीत गए, कल से कॉलेज शुरू हो रहा है। फिर से उस हराम अमन के ताने सुनने पड़ेंगे।"

इस लड़के की बात सुनकर पास खड़ा दूसरा लड़का बोला।

"सही कहब्रहा है यार राजू तू। भाई अजय सच में , ये ठाकुर के बच्चो का कुछ न कुछ तोनकारना पड़ेगा।"

उन दोनो की बात सुनकर अजय बोला --

अजय --"क्या कर सकते है, झगड़ा करेंगे, अरे उन लोगो का चक्कर छोड़ो, और जरा पढ़ाई लिखाई में ध्यान लगाओ। हमारे पास कुछ बचा नही है, जो जमीन थी, वो भी उस हराम ठाकुर ने हड़प ली, अब तो सिर्फ पढ़ाई लिखाई का ही भरोसा है। अपना यार आज होता तो जरूर अपने लिए कुछ करता। पर वो भी हमे छोड़ कर उन तारों के बीच चला गया। मुझे तो अभी भी भरोसा नहीं हो रहा है की, जंगल में मिली वो लाश अभय की थी।"

अजय की बात सुनकर, वहा खड़ा दूसरा लड़का बोला।

"भाई, मुझे एक बात समझ नही आई?"

अजय --"कैसी बात?"

"यही की अपने अभय की लाश जंगल में पड़ी मिली, पर पुलिस कुछ नही की। कोई जांच पड़ताल कुछ नही। और अभय की मां ने भी पता लगवाने की कोशिश नही की।"

अजय --"अरे लल्ला, इन ठाकुरों की बात मुझे समझ नहीं आती। पर इतना जरूर पता है की अभय की जान किसी जंगली जानवर की वजह से नहीं गई है, बल्कि किसी इंसानी जानवर किंवजः से ही गई है।"

अजय की बात सुनकर वांडोनो लड़के अपना मुंह खोले अजय को देखते हुए पूछे...

लल्ला --"ये तुम कैसे कह सकते हो?"

अजय --"क्यूंकी अभय के पापा ना अभय को...."

कहते हुए अजय रुक गया , और बात पलटते हुए बोला

अजय --" छोड़ो, अब क्या फ़ायदा? अब को रहा ही नही उसके बारे में बात करके अपने और उसके दुखी को क्यूं कुरेदें। चलो घर चलते है, कल से कॉलेज शुरू होने वाला है, आज छुट्टी का अखिरीं दिन है।"

ये कह कर सब अपने अपने घरों के रास्ते पर चल पड़े...

_______________________

अभि आज जब स्कूल से अपना मार्कशीट लेकर घर आया तो, उसका चेहरा उतरा था। वो मायूस लग रहा था। वो घर में प्रवेश करते ही अपने कमरे में चला गया। रेखा घर का काम कर रही थी, उसने अभय को कमरे में जाते हुए देख ली थी, और वो देख कर समझ गई थी की अभय जरूर कुछ उदास है। रेखा झट से किचन की तरफ जाति है, और एक ग्लास में पानी भर कर अभि के कमरे में आ जाती है।

उसने देखा अभि अपने चेहरे को हथेली में भरे नाचे सिर किए हुए बेड पर बैठा है। इस मुद्रा में अभी को बैठा देख कर कोई भी बता सकता था की, अभि कोई न कोई परेशानी में है। रेखा अब घबराने लगी थी। उसका दिल ना जाने क्यूं धड़कने लगा, और अपने आप को रोक न सकी। वो तड़प कर अभि के नजदीक पहुंच गई, और अपने हाथो को अभि के सिर पर प्यार से फेरते हुए अभी के बगल में बैठ गई, और बोली...

रेखा --"क्या हुआ मेरे लाल को? इस तरह से सिर पर हाथ रख कर बैठ कर, मेरे सीने में तूफान क्यूं मचा रहा है। बता अब क्या बात है?"

रेखा का कोमल हाथ अपने सिर पर स्पर्श पाते ही, अभि अपने चेहरा ऊपर उठता है , और रेखा की बातो का जवाब देते हुए बोला...

अभि --"किया बताऊं आंटी, सब कुछ अच्छा चल रहा था, जो जिंदगी मैं पीछे छोड़ कर आगे बढ़ा था, आज वही जिंदगी मुझे फिर से बुला रही है।"

अभि की बाते रेखा को समझ में नहीं आई, वो अभी भी अभि के सिर को प्यार से सहलाते हुए बोली,

रेखा --"पिछली जिंदगी, क्या बात कर रहा है मुझे तो कुछ समझ नहीं आबरा है।"

रेखा की बात सुनकर, अभि बोला...

अभि --"सरस्वती ज्ञान मंदिर की तरफ से मेरी आगे की पढ़ाई के लिए, मेरा एडमिशन जिस कॉलेज में हुआ है। उस कॉलेज का नाम ठाकुर परम सिंह इंटर मीडिएट कॉलेज है।"

अभि किंबाट सुनकर , रेखा थोड़ा हैरान हुई और बोली...

रेखा --" हां, तो इसके उदास होने जैसी क्या बात है?"

अभि --"ये मेरे दादा जी का कॉलेज है,। दौलतपुर शहर का सबसे जाना माना कॉलेज।"

रेखा के लिए ये बातें नई थी, क्युकी अभि ने रेखा को अपने अतीत के बारे में कभी नहीं बताया था। वो थोड़ा आश्चर्य होकर बोली...

रेखा --"दादा जी का कॉलेज??"

अभि --" इतना चौकों मत आंटी, ऐसी बहुत सी बाते है मेरे अतीत की, अगर बता दी, तो पैरो तले जमीन खिसक जाएगी। आपको क्या लगता है, इतनी छोटी सी उम्र में मैं घर छोड़ कर क्यूं भागा? जरूर कोई ना कोई वजह तो रही होगी? नही तो जिस उम्र में बच्चे को घर परिवार,, मां बाप का साया चाहिए होता है, उस उम्र में मैं वो साया छोड़ कर दुनिया के वीराने में भटक रहा था। और आज वही साया मुझे फिर से बुला रहा है। मैं समझ नही पा रहा ही आंटी, की ये सिर्फ एक इत्तेफाक है या फिर कुछ और।"

रेखा तो बस अपने कान खड़े किए हुए सुनती जा रही थी।

रेखा --"इसका मतलब , तेरा...भी घर परिवार है, तेरे भी मां बाप है?"

ये सुनकर अभि एक झूठी मुस्कान की छवि अपने चेहरे पर लेट हुए बोला...

अभि --"मां...,, मां तो कब की जा चुकी थी। आज हो कर भी वो नही है। पर मेरे पापा, मेरे पापा इस दुनिया में ना होकर भी मेरे साथ हमेशा रहते है। मां की कभी याद आई ही नहीं, याद आने जैसा हमारे बीच वो प्यार ही नही था। पापा की बहुत याद आती है, वो हमेशा मुझसे कहते थे, की बेटा दुनिया एक माया जाल है, कोइबटेरा नही है, तू खुद का दोस्त है ये समझ कर जिंदगी जिएगा तो हमेशा खुश रहेगा, किसी और की जिंदगी से अपनी जिंदगी जोड़ेगा तो कभी न कभी तकलीफों के भंवर में फस कर दम तोड देगा। क्या करता? छोटा था ना,उनकी बात कभी समझ ही नही पता था। ना जाने कैसी कैसी बाते बोलते थे, जो कई कभी समझ ही नही पता था। पर एक दिन उनके जाने से पहले, वो रात मुझे आज भी याद है। पापा मेरे कमरे में आए, और मुझे अपने गोद में लेकर बड़े ही प्यार से बोले,

"बेटा अभय, मैने तेरे लिए एक सवाल छोड़ा है। जब तू बड़ा हो जायेगा ना, तब वो सवाल तू मेरी जिंदगी के कोरे पन्नो के बीच वाले पन्नो पर लिखा पाएगा। जिस दिन तू वो सवाल ढूंढ लेगा, तुझे तेरे बाप का वो उत्तर मिलेगा की मैं अपने बेटे से क्या चाहता हूं?"

उस रात भी मुझे पापा की बात समझ नही आई, की वो क्या कहें चाहते है? वो रात वो मेरे पास ही सो रहे थे, पर जब अगली सुबह मेरी आंख खुली तो पापा अपनी आंखे बंद कर चुके थे। मैं बहुत रोया था। मुझे उतनी तकलीफ तब भी नही हुई थी जब मैं घर छोड़ कर भाग रहा था।"

रेखा का दिल भर आया, वो अभी अभी की तकलीफ सुन रही थी, वो अंदाजा तो लगा सकती थी की अभि किस तकलीफ में अपने घर से भगा था। मगर पूछ कर अभि की और तकलीफ नहीं बढ़ाना चाहती थीं, इसीलिए वो सामान्य अवस्था में होकर बोली...

रेखा --" तू...तू ये सब सोचना छोड़, हम किसी दूसरे कॉलेज में एडमिशन ले लेंगे। तुझे वहा जाने की जरूरत नहीं है।"

अभि --" जरूरत है, आंटी। मुझे लगता है पापा के उस सवाल को ढूंढने का वक्त आ गया है। उस रात तो मैं कुछ समझ नहीं पाया। पर आज उस रात को जब भी याद करता हूं तो मुझे पापा का वो मायूस चेहरा याद आता है। ऐसा लग रहा था जैसे वो कुछ कहें चाहते थे। पर शायद मैं बच्चा था इसलिए उनकी जुबान से वो शब्द निकल ना पाए। पर मुझे यकीन है, की वो सारी बातें मुझे उनके सवाल को ढूंढ कर जरूर मिल जायेगा।"

रेखा के दिलनमे बेचैनी बढ़ने लगी थी, वो अभी को रोकने तो चाहती थी, पर वो जानती थी की अभि अब रुकने वाला नही है, क्युकी अगर सिर्फ पढ़ाई की ही बात होती तो एक बार के लिए अभी दुबारा अपने गांव जाने का खयाल भी नही लता। पर अब उसके सामने उसके पिता का एक सवाल था, जो उसकी मंजिल बन कर खड़ी थी...

रेखा --"ठीक है, कब निकलना है? और खाना पीना अच्छे से खाना। पैसे की चिंता मत करना, जीतने जरूरत पड़ने मांग लेना, हां पता है की तू खुद्दार है, अपने दम पर जीना सिखा है पर.....

रेखा बोल ही रही थी की अभि ने ने रेखा को गले से लगा लिया। रेखा का तो दिल दिमाग सब हिल गया। वो पूरी तरह से भाउक हो कर रोने लगी।

अभि --"मैं छोड़ कर कही जा थोड़ी रहा हूं, पता है मुझे तुम मुझसे बहुत प्यार करती हो आंटी। इतने सालो तक जो प्यार और दुलार मुझे तुमसे मिला उसकी तो आदत ही नही थी मुझे। मैं कभी खुद को अकेला नहीं पाया। तो फिर मैं तुमको कैसे छोड़ सकता हूं, और हां बस कुछ दिनों के लिए जा रहा ही, उसके बाद आ जाऊंगा उस गोबर का सर खाने।"

कहते हुए रेखा और अभि दोनो हंस पड़ते है, रेखा अपने आंख के बहते मोतियों को पूछते हुए बोली...

रेखा --"तुझे पता है, एक बार मैं भी मां बनी थी, बहुत खुश थी, ऐसा लग रहा था जैसे जिंदगी मिल गई । पर एक रात वो रोने लगा, 1 साल का था। उसकी रोने की आवाज मैंस नही पाई, रोता वो था पर जान मेरी निकल रही थीं। हॉस्पिटल लेकर पहुंचे तो उसका रोना बंद हो गया । पर क्या पता था की वो आखिरी बार रोया था। मां थी ना, पागल हो गई थी, उसकी वो रोने की आवाज आज भी मुझे चैन से सोने नहीं देती। Khokh सुनी हुई तो जैसे दुनिया ही सुनी हो गई। फिर तू आया, ऐसा लगा वही वापस आ गया मेरी जिंदगी में, हमने भी औलाद की लालच वश तुझे घर में बिना कुछ जाने सोचे विचारे रख लिया। पर ये लालच नहीं, ये तो एक मां का प्यार है जो तुझ पर बरसाने के लिए तड़प रही थी।"

अभि अपनी गहरी निगाहों से रेखा की तरफ देखते हुए बोला...


अभि --"क्या सच में मां इतनी प्यारी होती है?"

अभि की बातो को सुनते हुए, रेखा अपने हाथो को उसके सिर पर रखते हुए बोली...

रेखा --"मां ऐसी ही होती है, बस अपनी मां को एक बार समझने की कोशिश करना। हो सके तो अपनी मां को एक मौका जरूर देना।"

ये सुनकर अभि मुस्कुराते हुए बोला.....

अभि --"फिर तो तुम्हारा पत्ता कट जायेगा.।"

ये कह कर अभि और रेखा दोनो हंसने लगते है।

अभि --"अच्छा आंटी, वो जो औरत मार्केट में चूड़ियां लेकर आती थीं। कुछ महीनो से दिखाई नहीं दी, आपको पता है की वो कहा रहती है??"

अभि की बात सुनकर, रेखा अभि की तरफ मुस्कुरा कर देखते हुए बोली...

रेखा --"क्या बात है? आखिर ये चूड़ियां किसके लिए? कौन है वो, जो मेरे बेटे को फंसा ली?"

ये सुनकर अभि शर्मा गया और हंसते हुए बोला...

अभि --"अरे आंटी तुम भी ना, मुझे भला कौन फसाएगी? वो तो बचपन की एक दोस्त है गांव की, उसे चूड़ियां बहुत पसंद है, कभी कभी मैं मां की चूड़ियां चुरा कर उसके लिए ले कर जाता था।"

रेखा --"अच्छा...! तो बचपन का प्यार है। तब तो चूड़ियां लेनी पड़ेगी, ठीक है मैं ले कर आ जाऊंगी । पर अभी तू चल और कुछ खा पी ले, सुबह से भूखे पेट घूम रहा है..."

उसके बाद अभि और रेखा दोनो एक साथ कमरे से बाहर निकल जाते है......
 

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गर्मी के दिन थे, ठंडी हवाएं चल रही थी। अजय गांव के स्कूल के पुलिया पर बैठा था। उसके साथ दो और लड़के बैठे थे, सूर्य डूबने को था और अपनी ठंडी लालिमा धरती पर बिखेरे था।

अजय और वो दोनो लड़के आपस में बाते कर रहे थे।

"यार अजय अब तो छुट्टी के दिन भी बीत गए, कल से कॉलेज शुरू हो रहा है। फिर से उस हराम अमन के ताने सुनने पड़ेंगे।"

इस लड़के की बात सुनकर पास खड़ा दूसरा लड़का बोला।

"सही कहब्रहा है यार राजू तू। भाई अजय सच में , ये ठाकुर के बच्चो का कुछ न कुछ तोनकारना पड़ेगा।"

उन दोनो की बात सुनकर अजय बोला --

अजय --"क्या कर सकते है, झगड़ा करेंगे, अरे उन लोगो का चक्कर छोड़ो, और जरा पढ़ाई लिखाई में ध्यान लगाओ। हमारे पास कुछ बचा नही है, जो जमीन थी, वो भी उस हराम ठाकुर ने हड़प ली, अब तो सिर्फ पढ़ाई लिखाई का ही भरोसा है। अपना यार आज होता तो जरूर अपने लिए कुछ करता। पर वो भी हमे छोड़ कर उन तारों के बीच चला गया। मुझे तो अभी भी भरोसा नहीं हो रहा है की, जंगल में मिली वो लाश अभय की थी।"

अजय की बात सुनकर, वहा खड़ा दूसरा लड़का बोला।

"भाई, मुझे एक बात समझ नही आई?"

अजय --"कैसी बात?"

"यही की अपने अभय की लाश जंगल में पड़ी मिली, पर पुलिस कुछ नही की। कोई जांच पड़ताल कुछ नही। और अभय की मां ने भी पता लगवाने की कोशिश नही की।"

अजय --"अरे लल्ला, इन ठाकुरों की बात मुझे समझ नहीं आती। पर इतना जरूर पता है की अभय की जान किसी जंगली जानवर की वजह से नहीं गई है, बल्कि किसी इंसानी जानवर किंवजः से ही गई है।"

अजय की बात सुनकर वांडोनो लड़के अपना मुंह खोले अजय को देखते हुए पूछे...

लल्ला --"ये तुम कैसे कह सकते हो?"

अजय --"क्यूंकी अभय के पापा ना अभय को...."

कहते हुए अजय रुक गया , और बात पलटते हुए बोला

अजय --" छोड़ो, अब क्या फ़ायदा? अब को रहा ही नही उसके बारे में बात करके अपने और उसके दुखी को क्यूं कुरेदें। चलो घर चलते है, कल से कॉलेज शुरू होने वाला है, आज छुट्टी का अखिरीं दिन है।"

ये कह कर सब अपने अपने घरों के रास्ते पर चल पड़े...

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अभि आज जब स्कूल से अपना मार्कशीट लेकर घर आया तो, उसका चेहरा उतरा था। वो मायूस लग रहा था। वो घर में प्रवेश करते ही अपने कमरे में चला गया। रेखा घर का काम कर रही थी, उसने अभय को कमरे में जाते हुए देख ली थी, और वो देख कर समझ गई थी की अभय जरूर कुछ उदास है। रेखा झट से किचन की तरफ जाति है, और एक ग्लास में पानी भर कर अभि के कमरे में आ जाती है।

उसने देखा अभि अपने चेहरे को हथेली में भरे नाचे सिर किए हुए बेड पर बैठा है। इस मुद्रा में अभी को बैठा देख कर कोई भी बता सकता था की, अभि कोई न कोई परेशानी में है। रेखा अब घबराने लगी थी। उसका दिल ना जाने क्यूं धड़कने लगा, और अपने आप को रोक न सकी। वो तड़प कर अभि के नजदीक पहुंच गई, और अपने हाथो को अभि के सिर पर प्यार से फेरते हुए अभी के बगल में बैठ गई, और बोली...

रेखा --"क्या हुआ मेरे लाल को? इस तरह से सिर पर हाथ रख कर बैठ कर, मेरे सीने में तूफान क्यूं मचा रहा है। बता अब क्या बात है?"

रेखा का कोमल हाथ अपने सिर पर स्पर्श पाते ही, अभि अपने चेहरा ऊपर उठता है , और रेखा की बातो का जवाब देते हुए बोला...

अभि --"किया बताऊं आंटी, सब कुछ अच्छा चल रहा था, जो जिंदगी मैं पीछे छोड़ कर आगे बढ़ा था, आज वही जिंदगी मुझे फिर से बुला रही है।"

अभि की बाते रेखा को समझ में नहीं आई, वो अभी भी अभि के सिर को प्यार से सहलाते हुए बोली,

रेखा --"पिछली जिंदगी, क्या बात कर रहा है मुझे तो कुछ समझ नहीं आबरा है।"

रेखा की बात सुनकर, अभि बोला...

अभि --"सरस्वती ज्ञान मंदिर की तरफ से मेरी आगे की पढ़ाई के लिए, मेरा एडमिशन जिस कॉलेज में हुआ है। उस कॉलेज का नाम ठाकुर परम सिंह इंटर मीडिएट कॉलेज है।"

अभि किंबाट सुनकर , रेखा थोड़ा हैरान हुई और बोली...

रेखा --" हां, तो इसके उदास होने जैसी क्या बात है?"

अभि --"ये मेरे दादा जी का कॉलेज है,। दौलतपुर शहर का सबसे जाना माना कॉलेज।"

रेखा के लिए ये बातें नई थी, क्युकी अभि ने रेखा को अपने अतीत के बारे में कभी नहीं बताया था। वो थोड़ा आश्चर्य होकर बोली...

रेखा --"दादा जी का कॉलेज??"

अभि --" इतना चौकों मत आंटी, ऐसी बहुत सी बाते है मेरे अतीत की, अगर बता दी, तो पैरो तले जमीन खिसक जाएगी। आपको क्या लगता है, इतनी छोटी सी उम्र में मैं घर छोड़ कर क्यूं भागा? जरूर कोई ना कोई वजह तो रही होगी? नही तो जिस उम्र में बच्चे को घर परिवार,, मां बाप का साया चाहिए होता है, उस उम्र में मैं वो साया छोड़ कर दुनिया के वीराने में भटक रहा था। और आज वही साया मुझे फिर से बुला रहा है। मैं समझ नही पा रहा ही आंटी, की ये सिर्फ एक इत्तेफाक है या फिर कुछ और।"

रेखा तो बस अपने कान खड़े किए हुए सुनती जा रही थी।

रेखा --"इसका मतलब , तेरा...भी घर परिवार है, तेरे भी मां बाप है?"

ये सुनकर अभि एक झूठी मुस्कान की छवि अपने चेहरे पर लेट हुए बोला...

अभि --"मां...,, मां तो कब की जा चुकी थी। आज हो कर भी वो नही है। पर मेरे पापा, मेरे पापा इस दुनिया में ना होकर भी मेरे साथ हमेशा रहते है। मां की कभी याद आई ही नहीं, याद आने जैसा हमारे बीच वो प्यार ही नही था। पापा की बहुत याद आती है, वो हमेशा मुझसे कहते थे, की बेटा दुनिया एक माया जाल है, कोइबटेरा नही है, तू खुद का दोस्त है ये समझ कर जिंदगी जिएगा तो हमेशा खुश रहेगा, किसी और की जिंदगी से अपनी जिंदगी जोड़ेगा तो कभी न कभी तकलीफों के भंवर में फस कर दम तोड देगा। क्या करता? छोटा था ना,उनकी बात कभी समझ ही नही पता था। ना जाने कैसी कैसी बाते बोलते थे, जो कई कभी समझ ही नही पता था। पर एक दिन उनके जाने से पहले, वो रात मुझे आज भी याद है। पापा मेरे कमरे में आए, और मुझे अपने गोद में लेकर बड़े ही प्यार से बोले,

"बेटा अभय, मैने तेरे लिए एक सवाल छोड़ा है। जब तू बड़ा हो जायेगा ना, तब वो सवाल तू मेरी जिंदगी के कोरे पन्नो के बीच वाले पन्नो पर लिखा पाएगा। जिस दिन तू वो सवाल ढूंढ लेगा, तुझे तेरे बाप का वो उत्तर मिलेगा की मैं अपने बेटे से क्या चाहता हूं?"

उस रात भी मुझे पापा की बात समझ नही आई, की वो क्या कहें चाहते है? वो रात वो मेरे पास ही सो रहे थे, पर जब अगली सुबह मेरी आंख खुली तो पापा अपनी आंखे बंद कर चुके थे। मैं बहुत रोया था। मुझे उतनी तकलीफ तब भी नही हुई थी जब मैं घर छोड़ कर भाग रहा था।"

रेखा का दिल भर आया, वो अभी अभी की तकलीफ सुन रही थी, वो अंदाजा तो लगा सकती थी की अभि किस तकलीफ में अपने घर से भगा था। मगर पूछ कर अभि की और तकलीफ नहीं बढ़ाना चाहती थीं, इसीलिए वो सामान्य अवस्था में होकर बोली...

रेखा --" तू...तू ये सब सोचना छोड़, हम किसी दूसरे कॉलेज में एडमिशन ले लेंगे। तुझे वहा जाने की जरूरत नहीं है।"

अभि --" जरूरत है, आंटी। मुझे लगता है पापा के उस सवाल को ढूंढने का वक्त आ गया है। उस रात तो मैं कुछ समझ नहीं पाया। पर आज उस रात को जब भी याद करता हूं तो मुझे पापा का वो मायूस चेहरा याद आता है। ऐसा लग रहा था जैसे वो कुछ कहें चाहते थे। पर शायद मैं बच्चा था इसलिए उनकी जुबान से वो शब्द निकल ना पाए। पर मुझे यकीन है, की वो सारी बातें मुझे उनके सवाल को ढूंढ कर जरूर मिल जायेगा।"

रेखा के दिलनमे बेचैनी बढ़ने लगी थी, वो अभी को रोकने तो चाहती थी, पर वो जानती थी की अभि अब रुकने वाला नही है, क्युकी अगर सिर्फ पढ़ाई की ही बात होती तो एक बार के लिए अभी दुबारा अपने गांव जाने का खयाल भी नही लता। पर अब उसके सामने उसके पिता का एक सवाल था, जो उसकी मंजिल बन कर खड़ी थी...

रेखा --"ठीक है, कब निकलना है? और खाना पीना अच्छे से खाना। पैसे की चिंता मत करना, जीतने जरूरत पड़ने मांग लेना, हां पता है की तू खुद्दार है, अपने दम पर जीना सिखा है पर.....

रेखा बोल ही रही थी की अभि ने ने रेखा को गले से लगा लिया। रेखा का तो दिल दिमाग सब हिल गया। वो पूरी तरह से भाउक हो कर रोने लगी।

अभि --"मैं छोड़ कर कही जा थोड़ी रहा हूं, पता है मुझे तुम मुझसे बहुत प्यार करती हो आंटी। इतने सालो तक जो प्यार और दुलार मुझे तुमसे मिला उसकी तो आदत ही नही थी मुझे। मैं कभी खुद को अकेला नहीं पाया। तो फिर मैं तुमको कैसे छोड़ सकता हूं, और हां बस कुछ दिनों के लिए जा रहा ही, उसके बाद आ जाऊंगा उस गोबर का सर खाने।"

कहते हुए रेखा और अभि दोनो हंस पड़ते है, रेखा अपने आंख के बहते मोतियों को पूछते हुए बोली...

रेखा --"तुझे पता है, एक बार मैं भी मां बनी थी, बहुत खुश थी, ऐसा लग रहा था जैसे जिंदगी मिल गई । पर एक रात वो रोने लगा, 1 साल का था। उसकी रोने की आवाज मैंस नही पाई, रोता वो था पर जान मेरी निकल रही थीं। हॉस्पिटल लेकर पहुंचे तो उसका रोना बंद हो गया । पर क्या पता था की वो आखिरी बार रोया था। मां थी ना, पागल हो गई थी, उसकी वो रोने की आवाज आज भी मुझे चैन से सोने नहीं देती। Khokh सुनी हुई तो जैसे दुनिया ही सुनी हो गई। फिर तू आया, ऐसा लगा वही वापस आ गया मेरी जिंदगी में, हमने भी औलाद की लालच वश तुझे घर में बिना कुछ जाने सोचे विचारे रख लिया। पर ये लालच नहीं, ये तो एक मां का प्यार है जो तुझ पर बरसाने के लिए तड़प रही थी।"

अभि अपनी गहरी निगाहों से रेखा की तरफ देखते हुए बोला...


अभि --"क्या सच में मां इतनी प्यारी होती है?"

अभि की बातो को सुनते हुए, रेखा अपने हाथो को उसके सिर पर रखते हुए बोली...

रेखा --"मां ऐसी ही होती है, बस अपनी मां को एक बार समझने की कोशिश करना। हो सके तो अपनी मां को एक मौका जरूर देना।"

ये सुनकर अभि मुस्कुराते हुए बोला.....

अभि --"फिर तो तुम्हारा पत्ता कट जायेगा.।"

ये कह कर अभि और रेखा दोनो हंसने लगते है।

अभि --"अच्छा आंटी, वो जो औरत मार्केट में चूड़ियां लेकर आती थीं। कुछ महीनो से दिखाई नहीं दी, आपको पता है की वो कहा रहती है??"

अभि की बात सुनकर, रेखा अभि की तरफ मुस्कुरा कर देखते हुए बोली...

रेखा --"क्या बात है? आखिर ये चूड़ियां किसके लिए? कौन है वो, जो मेरे बेटे को फंसा ली?"

ये सुनकर अभि शर्मा गया और हंसते हुए बोला...

अभि --"अरे आंटी तुम भी ना, मुझे भला कौन फसाएगी? वो तो बचपन की एक दोस्त है गांव की, उसे चूड़ियां बहुत पसंद है, कभी कभी मैं मां की चूड़ियां चुरा कर उसके लिए ले कर जाता था।"

रेखा --"अच्छा...! तो बचपन का प्यार है। तब तो चूड़ियां लेनी पड़ेगी, ठीक है मैं ले कर आ जाऊंगी । पर अभी तू चल और कुछ खा पी ले, सुबह से भूखे पेट घूम रहा है..."

उसके बाद अभि और रेखा दोनो एक साथ कमरे से बाहर निकल जाते है......
अब असली मोड आनेवाला है कहानी का.............
रेखा --"मां ऐसी ही होती है, बस अपनी मां को एक बार समझने की कोशिश करना। हो सके तो अपनी मां को एक मौका जरूर देना।"
देखते हैं अभय रेखा की इस बात को मानता भी है या नहीं
और अगर मानता है तो संध्या की प्रतिक्रिया क्या होगी
 
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