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Ye sandhya bhi sali kuch ajib si hai bhai,अपडेट 10
हवेली को आज सुबह सुबह ही सजाया जा रहा था। संध्या,मालती,ललिता,अमन और निधि डाइनिंग टेबल पर बैठे हुए नाश्ता कर रह थे। मालती बार बार संध्या को ही देखे जा रही थी। और ये बात संध्या को भली भाती पता थी।
संध्या --"ऐसे क्यूं देख रही है तू मालती? अब बोल भी दे, क्या बोलना चाहती है?"
संध्या की बात सुनकर, मालती मुस्कुराते हुऐ बोली...
मालती --"मैं... मैं ये बोलना चाहती थी दीदी, की अभय का जन्मदिन मनाने की क्या जरूरत है? इस तरह से तो हमे उसकी याद आती ही रहेगी। और पता नही , हम उसका जन्म दिन माना रहे है या उसके छोड़ के जाने वाला दिन।"
मालती की बात सुनकर संध्या कुछ पल के लिए शांत रही, फिर बोली...
संध्या --"अब मुझसे ये हक़ ना छीनना मालती, की उसके जाने के बाद मैं उसको याद नहीं कर सकती, या उसका जन्म दीन नही मना सकती। वो कहीं गया थोड़ी है, वो है मेरे दिल में, और हमेशा रहेगा।"
ये सुनकर मालती कुछ बोलती तो नही, पर मुस्कुरा जरूर पढ़ती है। मालती की मुस्कुराहट संध्या के दिल में किसी कांटे की तरह चुभ सी जाती है। वो मालती के मुंह नही लगना चाहती थीं, क्यूंकि संध्या को पता था, की अगर उसने मालती के मुस्कुराने का कारण पूछा तो जरूर मालती कुछ ऐसा बोलेगी की संध्या को खुद की नजरों में गिरना पड़ेगा। इस लिए संध्या अपनी नजरों में चोर बनी बस चुप रही।
अमन तो बस भुक्कड़ की तरह ठूंसे जा रहा था। पराठे पे पराठा खाए पड़ा था। ये देखकर मालती अमन को बोली...
मलती --"इंसानों के जैसा खा ना, शैतानी की तरह क्यूं खा रहा है? पेट है या कुंवा? भर ही नही रहा है।"
मालती की बात सुनकर, संध्या मलती को घूरते हुए देखने लगी। देख कर ही लग रहा था की मलती की बात संध्या को बुरी लगी। पर संध्या कुछ बोली नहीं, और गुस्से में वहां से चली गई। संध्या को जाते देख मालती धीरे से कुछ बुदबुदाई, और वो भी उठ कर अपने कमरे में चली गई। थोड़ी देर के बाद ललिता, संध्या के कमरे में जाति है तो पाती है की संध्या अपने बेड पर बैठी रो रही थी, उसके हाथो में अभय की तस्वीर थी। जिसे वो अपने सीने से लगा कर रोए जा रही थी।
ललिता, संध्या के kareeb pahunchate हुऐ उसके बगल में बैठ जाती है, और संध्या को प्यार से दिलासा देने लगती है।
संध्या रुवांसी आवाज़ में बोली...
संध्या --"मेरी तो क़िस्मत ही खराब है ललिता। क्या करूं कुछ समझ में ही नही आ रहा है। ये मलती हमेशा मुझे नीचा दिखाती रहती है, मैं भी कितनी पागल हूं, वो मुझे नीचा क्यूं दिखाएगी, वो तो मुझे सिर्फ आइना दिखाती है, मैं ही उस आईने में खुद को देख कर अपनी नजरों में गीर जाती हूं। भला कौन सी मां ऐसा करती है? जब तक वो मेरे पास था, हमेशा बेवजह मरती रही उसे, दुत्कर्त रही। और आज जब वो छोड़ कर चला गया तो मेरा सारा प्यार सबको दिखावा लग रहा है। लगना भी चाहिए, मैं इसी लायक हूं। जी तो चाहता है की मैं भी कही जा कर मर जाऊं।"
कहते हुए संध्या ललिता के कंधे पर सर रख कर रोने लगती है। ललिता भी संध्या को किसी तरह से शांत करती है।
ठाकुर रमन सिंह कहीं से मुनीम के साथ जब हवेली लौटता है, तो हवेली को दुल्हन की तरह सज़ा देख कर मुनीम की तरफ़ देख कर बोला...
रमन --"मुनीम जी, वैसे भाभी अपने बेटे के जन्मदिन की खुशी में हवेली सजवाई है या मरण दिन के खुशी में?"
ये सुनकर मुनीम हंसने लगता है और साथ ही साथ ठाकुर रमन सिंह भी, फिर दोनो हवेली के अंदर चले जाते है। ठाकुर रमन सिंह और मुनीम को हंसते हुए देख कर वहा काम कर रहे गांव के दो लोग आपस में बात करते हुए बोले...
"देख रहा है, बल्लू। कैसे ये दोनो अभय बाबा कन्माजक बना रहे है?"
उसी वक्त संध्या वहां से गुज़र रही थी, और उस गांव के आदमी के मुंह से अपने बेटे के बारे में सुनकर संध्या के पैर वहीं थम से जाते है। और वो हवेली के बने मोटे पिलर की आड़ में छुप कर उनकी बातें सुनने लगती हैं.....
बल्लू --"अरे छैलू अब हम क्या बोल सकते है? जिसका लड़का मरा उसी को फर्क नही पड़ा तो हमारे फर्क पड़ने या ना पड़ने से क्या पड़ता है?"
छैलू --"तो तेरे कहने का मतलब, ठाकुराइन को अभय बाबा के जाने का दुःख नहीं है ?"
बल्लू --"अरे काहे का दुःख, मैं ना तुझे एक राज़ की बात बताता हु, पर हां ध्यान रहे किसी को इस राज़ की बात को कानों कान ख़बर भी नही होनी चाहिए!"
बल्लू की बात सुनकर संध्या के कान खड़े हो गए, और वो पिलर से एकदम से चिपक जाती है और अपने कान तेज़ करके बल्लू की बातों को ध्यान से सुनने की कोशिश करने लगती है।
छैलू --"अरे रुक बल्लू, इतनी राज़ की बात है तो बाद में बताना, क्यूंकि सुना है दीवारों के भी कान होते है, समझा।"
और कहते हुए छैलू, बल्लू को पिलर की तरफ़ इशारा करने लगा, बल्लू ने जैसे ही पिलर की तरफ़ देखा तो उसके तो होश ही उड़ गए, उसे पिलर की आट में साड़ी का हल्का सा पल्लू दिखा। बल्लू समझ गया की कोई औरत है जो उसकी बातों को छुप कर सुन रहा है। एक पल के लिऐ तो बल्लू के प्राण ही पखेरू हो गए थे। और इधर संध्या भी गुस्से में अपने दांत पीस कर रह गई, क्यूंकि वो जानना चाहती थीं कि, आखिर बल्लू किस राज की बात कर रहा था, की तभी उसके कानो में बल्लू की आवाज़ आई।
बल्लू --"अरे कोई सुनता है तो सुने, मैं थोड़ी ना झूठ बोल रहा हूं, जो अपनी आंखो से देखा है वहीं बता रहा हूं, और सच पूछो तो मैने ठाकुराइन का असली चेहरा उसी दीन देखा। मैं तो सोच भी नही सकता था कि ठकुराइन अपने सगे बेटे के साथ ऐसा भी कर सकती है!! तुझे पता है वो अमरूद वाला बाग, उसी बाग में ना जाने किस बात पर, ठाकुराइन ने अभय बाबा को भरी दोपहरी में पूरे 4 घंटे तक पेड़ में बांध कर रखा था। अब तू ही बता ऐसा कोई मां करती है क्या?? अच्छा हुआ, जो अभय बाबा को मुक्ति मिल गई नही तो वो अपनी मां की....."
इससे आगे बल्लू कुछ बोल पाता, उसके गाल पर जोर का तमाचा पड़ा...
"कुत्ते..... हरामजादे तेरी हिम्मत कैसे हुई, मेरे बेटे के बारे में एक शब्द भी बोलने का।"
बल्लू के सर पर जूं नाचने लगी, उसे लगा था की शायद पिलर की आड़ में छुप कर उसकी बातो को सुनने वाली हवेली की कोई नौकरानी होगी, उसे जरा भी अंदाजा ना था कि ये ठाकुराइन भी हो सकती है। बल्लू ने अपने पैरों पर खुद ही कुल्हाड़ी मार ली थीं। इधर ठाकुराइन गुस्से में लाल बल्लू के गाल अपने तमाचो से लाल करती हुई चिल्ला रहि थीं।
संध्या की चिल्लाहट सुन कर, रमन, मुनीम, मलती, ललिता ये सब हवेली के बहार आ जाते है, मलती ने संध्या को पकड़ते हुए बोला...
मलती --"अरे क्या हुआ दीदी? उस बेचारे को क्यूं मार रही हो?"
संध्या अभि भी गुस्से में चिल्लाती हुई खुद को मलती से छुड़ाते हुए उस बल्लू की तरफ़ ही लपक रही थी।
संध्या --"हरमजादा... बोल रहा है की, मैं अपने अभय को भरी दोपहरी में अमरूद के पेड़ो में बांध कर रखी थीं। इसकी हिम्मत कैसे हुई ऐसी घिनौनी इल्जाम लगाने की मुझ पर। औकात में रह कमिने।"
अमरूद वाली बाग की बात सुनकर, रमन सिंह मुनीम की तरफ़ देखने लगा। उन दोनो के चेहरे फक्क पड़ गए थे। तभी मुनीम लपकते हुए बल्लू की तरफ़ बढ़ा, और बल्लू का गिरेबान पकड़ कर घसीटते हुए...
मुनीम --"साले, औकात भूल गया क्या तू अपना, अरे लट्ठहेरो देख क्या रहे हो? मारो इस हराम के जने को।"
फिर क्या था... लट्ठहेरो ने लाठी मार मार कर बल्लू की गांड़ ही तोड़ दी। जब संध्या अपने गुस्से में से होश में आई तो, उसे खुद पर बहुत पछतावा हुआ, छैलू बल्लू को सहारा देते हुए हवेली से ले कर चल दिया। संध्या का दिमाग पगला गया था, उसे चक्कर आ रहे थे। वो मुनीम की तरफ़ गुस्से में देखते हुए बोली...
संध्या --"उस पर लाठी बरसाने को किसने कहा तुमसे मुनीम?"
मुनीम अपने चस्मे को ठीक करते हुए बोला...
मुनीम --"वो ऐसी बकवास बातें आप के लिऐ करेगा तो क्या मै चुप रहूंगा मालकिन?"
मुनीम की बातों को काटते हुए मालती ने कहा...
मलती --"भला उस बेचारे को ऐसी बकवास बातें करके क्या मिलेगा? जरूर उसने कुछ देखा होगा, तो ही तो बोल रहा था।"
ये सुनकर संध्या एक नजर मालती की तरफ़ घूर कर देखती है, क्यूंकि संध्या समझ गई थीं कि, मलती का निशाना उसकी तरफ़ ही है, और जब तक संध्या कुछ बोल पाती मालती वहां से चली गई थीं।
संध्या भी हवेली के अंदर जाने के लिऐ कदम बढ़ाई ही थी कि...
संध्या --"एक मिनट, मुझे याद है वो दीन। उस दिन मै अभय को स्कूल ना जाने की वजह के लिऐ उस अमरूद के बाग में मैंने उसे मारा था, और मुनीम मैने तुमसे कहा था कि, उसे स्कूल छोड़ कर आ जाओ। तो क्या उस दीन तुमने उसे स्कूल छोड़ था?"
संध्या की बात सुनकर, मुनीम रमन की तरफ एक नजर देखा और बोला...
मुनीम --"वो...आपने ही तो कहा था ना ठाकुराइन, की इसे स्कूल ले जाओ और अगर नही गया तो, इसी कड़कती धूप में पेड़ से बांध दो फिर दिमाग ठिकाने पर आएगा।"
अब संध्या के पैरों तले ज़मीन और सर से आसमान दोनो खिसक गए। वो मुनीम के मुंह से ये बात सुनकर हंसने लगी... मानो कोई पागल हो। कुछ देर तक हंसी फिर बोली।
संध्या --"वो तो मैं गुस्से में बोली थीं। और तूने मुनीम, तूने मेरे बेटे को कड़कती धूप में पेड़ में बांध दिया। तेरी हिम्मत कैसे हुई मुनीम...
अभि संध्या कुछ बोल ही रही थीं की...
"कहा है वो हराम की जानि ठाकुराइन, छीनाल कहीं की, हरजाई। ठाकुराइन बनती फिरती है, बताओ मेरे बेटे को किसी कुत्ते की तरह मरवाया है हरामजादी ने,।"
संध्या के साथ साथ वहां खड़े सब की नजारे हवेली के गेट पर पड़ी तो एक मोटी सी औरत रोते हुए संध्या को गालियां बक रही थीं। इस तरह की भद्दी गाली सुनकर रमन गुस्से में अपने लट्ठेरी को इशारा करता है। वहां खड़े चार पांच लट्ठेरो ने उस औरत को पकड़ लिया और हवेली से बाहर करने लगे... मगर वो औरत अभि भी रोते हुए ठाकुराइन को गालियां बक रहि थीं...
"अच्छा हुआ करमजली, जो तेरा बेटा मर गया। तू उस लायक नही है छीनाल, कुटिया , घटिया औरत।"
धीरे धीरे उस औरत की आवाज संध्या के कानो से ओझल हो गई। संध्या किसी चोर की तरह अपनी नज़रे झुकाई, बेबस, लाचार वहीं खड़ी रही। तभी वहां ललिता आ कर संध्या को हवेली के अंदर ले जाती है। संध्या की आंखो से लगातार अश्रु की बूंदे टपक रही थीं। वो हवेली के अंदर जाते हुए एक बार रुकी और पीछे मुड़ते हुए रमन की तरफ देख कर बोली...
संध्या --"कल से मुझे, ये मुनीम इस हवेली के आस -पास भी नजर नहीं आना चाहिए।"
कहते हुए संध्या हवेली के अंदर चली जाती है....
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इधर अभि, अपना समान पैक कर के स्टेशन आ पहुंचा था। उसको छोड़ने रेखा और सेठ दोनो आए थे। रेखा और अभि दोनो बात कर रहे थे की तभी ट्रेन ने हॉर्न मारा।
अभि --"अच्छा आंटी, मैं चलता हूं।"
रेखा -"अरे रुक जरा, ये ले, देख मना मत करना। आज तक तूने कभी कुछ नही लिया। पर आज मना मत करना।"
रेखा के हाथों में पैसों की गड्डी थी। ये देख कर अभि ने कहा।
अभि --" छोड़ो ना आंटी, पैसे है मेरे पास, अगर जरूरत पड़ेगी तो मांग लूंगा। अब फोर्स मत करना, वर्ण लौट कर नहीं आऊंगा।"
रेखा --"मुझे पता था, तू जरूर कुछ ऐसी बात बोलेगा जिससे में पिघल जाऊंगी, तेरी बात मानने के लिऐ। ठीक है जा, अपना खयाल रखना, और पहुंच कर फोन करना, हर रोज करना। अगर नही किया तो मै पहुंच जाऊंगी फिर तेरा कान और मेरा हाथ, मरोड़ दूंगी हां।"
ये सुनकर अभि हंसने लगा..... और रेखा को साइन से लगा लिया। रेखा की आंखे नम हो गई। मगर अभी रेखा से अलग होते हुए उसके माथे को चूमते हुए बोला।"
अभि --"वीडियो कॉलिंग करूंगा, कॉल क्या चीज है। और हां, वो ना उठने वाला समान मैं लेकर आया हूं आप के लिऐ, मेरे कपाट में है ले लेना।"
ये सुनकर रेखा शर्मा गई, और चौंकते हुए बोलि...
रेखा --" बदमाश कही का, एकदम बेशर्म है तू। समझ गया की कौन सी चीज के बारे में बात कर रही हूं l"
Abhi मुस्कुराते हुए....
अभि --"हां, सोचा आपको बता दूं, की अब मेरी उम्र us चीज को उठाने की हो गई है।"।
तभी वहां सेठ भी आ गया, अभि ने पहेली बार रेखा और सेठ के पैर छुए, रेखा और सेठ इस पल को अपनी जिंदगी का सबसे कीमती पलों में गिन रहे थे। मानो आज उन्हे सच में उनका बेटा मिल गया हो। ट्रेन चली... तीनो के पलके भीग चुकी थीं, फिर भी मुस्कुराहट की छवि जबरन मुख पर लेट हुए सेठ और रेखा ने अभि को अलविदा कहा, और ट्रेन स्टेशन से जल्द ही ओझल हो चुकी थी.....
Bete ko kitna toucher kiya h isne, or raman or munim ne milker bhi game khela hai uske sath jiska sandhya ko bhi pata nahi, per uska beta to yahi samjhta hoga ki ye sab uski maa ne marwaya hai, khar dekhne wali baat ye hogi ki hiro aage kya karta hai, kaise wo un sabse kaise leta hai.
Awesome update with great writing skills