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Incest शक या अधूरा सच( incest+adultery)

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अध्याय--२-----


रेखा को बिस्तर पर लेटे लेटे ही 7 बज गए । उसे ईस बात का एहसास तब हुआ जब 7:00 का अलार्म बजने लगा। वह झट से बिस्तर पर से उठते हुए अपने गांऊन को नीचे की तरफ सरकाई, तभी उसकी नजर नीचे फर्श पड़ी ऊसकी पैंटी पर पड़ी जिसे वह उठाकर अपनी गोरी गोरी टांगों में डालकर धीरे धीरे ऊपर की तरफ उठा कर कमर में अटका ली, । वह धीरे धीरे चलते हुए दरवाजे के पास आई और दरवाजा खोलकर कमरे से बाहर निकल गई।


ऊसे पता था कि उसका बेटा अभी जोगिंग के लिए गया होगा, रेखा को कचहरी 10:00 बजे जाना होता है इसलिए नाश्ता तैयार करने की कोई जल्दबाजी नहीं थी । वह नहाने के लिए बाथरूम में चली गई । वैसे तो उसके रूम में ही अटैच बाथरूम था लेकिन वह उसका उपयोग बहुत ही कम ही करती थी। बाथरुम में घुसकर वह जल्दी जल्दी ब्रश करने लगी ब्रश करने के बाद वहां आईने के सामने खड़ी होकर अपने कपड़े उतारने को हुई ही थी कि वह अपने चेहरे को आईने में देखने लगी,,


रेखा खुद को शीशे में निहार रही थी | क्या मै बूढी हो रही हूँ? अपने चेहरे को गौर से देखते हुए, चेहरे के एक एक हिस्से की गौर से जाँच करते हुआ, जैसे कोई खूबसूरत औरत अधेड़ हो जाने के बाद खुद की खूबसूरती का जायजा लेती है | वो अभी भी जवान है और किसी भी मर्द के होश उडा देने में सक्षम है


चेहरा क्या था ऐसा लगता था मानो कोई गुलाब का फूल खिल गया हो,,,, एकदम गोल चेहरा, बड़ी- बड़ी कजरारी आंखें, गहरी आंखों में इतना नशा कि ऊनमें डूबने को जी करें। नाक ठीक है और होंठ ईतने लाल लाल के लिपस्टिक लगाएं बिना ही ऐसा लगता है कि मानो लिपिस्टिक लगाई हो। रेशमी बालों की बिखरी हुई लटे हमेशा उसके गोरे गालों से अठखेलियां करती थी।

बला की खूबसूरत लेकिन फिर भी उसके चेहरे पर संतुष्टि का आभाव था, प्यार की कमी थी जो कि उसके पति से बिल्कुल भी नहीं मिल पा रही थी। जिसके लिए वह बरसों से तरस रही थी। उसके मन में एक अजीब सी उदासी छाई थी । वह भी अब अपनी जिंदगी से खुशी की उम्मीद को छोड़ चुकी थी। वह शॉवर के नीचे आई और अपने गाऊन को दोनों हाथों से ऊपर की तरफ ऊठाते हुए अपनी बाहों से होते हुए बाहर निकाल दी, गाऊन निकालते ही उसका गोरा बदन और भी ज्यादा दमकने लगा जिस की चमक से पूरा बाथरूम रोशन हो गया। लंबे कद काठी की रेखा बिना कपड़ों के और भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी।


उसके बदन पर केवल गुलाबी रंग की पैंटी और गुलाबी रंग की ब्रा थी। बदन के पोर पोर से ऐसा लग रहा था कि मानो बदन रस टपक रहा हो। गुलाबी रंग की कसी हुई ब्रा मे दूध से भरी हुई बड़ी बड़ी चूचियां बड़ी ही मादक लग रही थी, चुचियों का आकार एकदम गोल गोल ऐसा लग रहा था कि जैसे रस से भरा हुआ खरबूजा हो। कसी हुई ब्रा के अंदर कैद चूचियां आधे से भी ज्यादा बाहर नजर आ रही थी। और चुचियों के बीच की गहरी लंबी लकीर किसी भी मर्द को गर्म आहें भरने के लिए मजबूर कर दे।


गुदाज बदन का हर एक अंग अलग आभा और कटाव लिए हुए था। बलखाती कमर पूरे बदन को एक अजीब ओर मादक तरीके से ठहराव दिए हुए था। पूरे बदन पर अत्यधिक चर्बी का कहीं भी नामोनिशान नहीं था पूरा शरीर सुगठित तरीके से ऐसा लग रहा था मानो कि भगवान ने अपने हाथों से बनाया हो। गुदाज बांहैं, जिनमें समाने के लिए हर एक मर्द तरसता रहता था। गुदाज बदन जिसे पाने का सपना हर एक मर्द अपने दिल के कोने में बसाए रखता था। मांसल जांघें ईतनी चिकनी की ऊंगली रखते ही उंगली फिसल जाए।


गोरा रंग तो इतना जैसे कि भगवान ने सुंदरता के सारे बीज को एक साथ पत्थर पर पीसकर उसका सारा रस रेखा के बदन में डाल दिया हो । और कहीं भी हल्के से हाथ रख देने पर भी वहां का रंग एकदम लाल लाल हो जाता था। एक तरह से रेखा को खूबसूरती की मिसाल भी कह सकते थे।


रेखा शॉवर को चालू किए बिना ही उसके नीचे खड़ी होकर के अपने बदन को ऊपर से नीचे तक निहारने लगी। उसे खुद ही कुछ समझ में नहीं आ रहा था। इस तरह की अपनी किस्मत पर उसे बहुत ही ज्यादा क्रोध आता था। वह मन ही मन सोचती थी कि इतनी खूबसूरत होने के बावजूद उसका हर एक अंग इतना खूबसूरत होने के बावजूद भी वह अपने पति को अपनी तरफ कभी भी आकर्षित नहीं कर पाई। भगवान ने उसे खूबसूरती देने में कहीं कोई भी कसर बाकी नहीं रखा था । लेकिन शायद भगवान को भी इसकी खूबसूरती से जलन होने लगी और उसने उसकी किस्मत में पति से विमुख होना और प्यार के लिए तरसना लिख दिया।


रेखा अपनी किस्मत और अपने जीवन से जरा सी भी खुश नहीं थी। वह मन में उदासी लिए अपने दोनों हाथ को पीछे ले जाकर के नरम नरम अंगुलियों के सहारे ब्रा के हुक को खोलने लगी । और अगले ही पल उसने ब्रा का हुक खोल कर अपनी ब्रा को एक एक करके अपनी बाहों से बाहर निकाल दि। जैसे ही रेखा के बदन से ब्रा अलग हुई वैसे ही उसकी नंगी नंगी चूचियां एक बड़े ही मादक तरीके की गोलाई लिए हुए तनकर खड़ी हो गई। इस उम्र में भी रेखा की बड़ी बड़ी चूचियां लटकने की वजाय तन कर खड़ी थी, जिसका कसाव ओर गोलाई देख कर जवान लड़कियां भी आश्चर्य से दांतों तले उंगलियां दबा ले। रेखा खुद ही दोनों चुचीयों को अपनी हथेली में भर कर हल्के से दबाई जोकी ऊसकी बड़ी बड़ी चूचियां उसकी हथेली में सिर्फ आधी ही आ रही थी। कुछ सेकंड तक वह अपनी हथेलियों को चूचियों पर रखी रही उसके बाद हटा ली।

उसके बदन पर अब सिर्फ पेंटी ही रह गई थी जिसके दोनों की नारियों पर रेखा की अंगुलियां ऊलझी हुई थी, और वह धीरे धीरे अपनी पैंटी को नीचे की तरफ सरकाने लगी,,,,, रेखा तो औपचारिक रुप से ही अपनी पेंटिं को नीचे सरका रही थी लेकिन बाथरूम का नजारा बड़ा हि मादक और कामुक था। अगले ही पल रेखा ने घुटनों के नीचे तक अपनी पेंटी को सरका दी, उसके बाद पैरों का सहारा लेकर के पेंटी को अपनी चिकनी लंबी टांगों से बाहर निकालकर संपूर्ण रुप से एकदम नंगी हो गई।


इस समय बाथरुम की चारदीवारी के अंदर वह पूरी तरह से नंगी थी उसके बदन पर कपड़े का एक रेशा तक नहीं था। बाथरूम के अंदर नग्नावस्था मैं वह स्वर्ग से उतरी हुई कोई अप्सरा लग रही थी। जांघों के बीच पेंटी के अंदर छीपाए हुए बेशकीमती खजाने को वह आजाद कर दी थी, रेखा ने अपनी बेशकीमती रसीली बुर को एकदम जतन से रखी हुई थी तभी तो इसे उम्र में भी उसकी बुर की गुलाबी पंखुड़ियां बाहर को नहीं निकली थी, बुर पर मात्र एक हल्की सी लकीर ही नजर आती थी जो कि ईस उम्र में नजर आना नामुमकिन था, रेखा की बुर पर बस एक पतली सी गहरी लकीर ही नजर आती थी और उसके इर्द-गिर्द बाल के रेशे का नाम भी नहीं था वह पूरी तरह से अपनी बुर को हमेशा चिकनी ही रखती थी क्योंकि बुर पर बाल उसके पति को बिल्कुल भी पसंद नहीं था ।रेखा के नितंबों की तारीफ जितनी की जाए उतनी कम थी।


नितंबों का उभार कुछ ज्यादा ही था । देखने वाले की नजर जब भी रेखा की मदमस्त उभरी हुई गांड पर पड़ती थी तो वह देखता ही रह जाता था और मन में ना जाने उस के नितंबों को लेकर के कितने रंगीन सपने देख डालता था।
नितंबों पर अभी भी जवानी के दिनों वाला ही कसाव बरकरार था। गांड के दोनों फांखों के बीच की गहरी लकीर,,,,, ऊफ्फ्फ्फ,,,,,,,, किसी के भी लंड का पानी निकालने में पूरी तरह से सक्षम थी। इतना समझ लो कि रेखा पूरी तरह से खूबसूरती से भरी हुई कयामत थी ।


उसने शॉवर चालू कर दि और सावर के नीचे खड़ी होकर नहाना शुरू कर दी । वह आहिस्ते आहिस्ते खुशबूदार साबुन को अपने पूरे बदन पर रगड़ रगड़ कर लगाई,,,,, वह साबुन लगाए जा रही थी और उसके बदन पर पानी का फव्वारा गिरता जा रहा था। थोड़ी देर में वह नहा चुकी थी और अपने नंगे बदन पर से पानी की बूंदों को साफ करके अपने बदन पर टॉवल लपेट ली।
अपने नंगे बदन पर टावल लपेटने के बाद वह बाथरुम से निकल कर सीधे अपने कमरे में चली गई। कमरे में जाते ही उसने अलमारी खोली जिसमें उसकी मैं ही महंगी रंग-बिरंगी साड़ियां भरी हुई थी। उसमें से उसने अपने मनपसंद की साड़ी निकाल कर के उसके मैचिंग का ब्लाउज पेटीकोट और उसी रंग की ब्रा पेंटी भी निकाल ली।


उसके बाद वह आईने के सामने खड़ी होकर के अपने बदन पर लपेटे हुए टॉवल को भी निकालकर बिस्तर पर फेंक दी और एक बार फिर से उसकी नंगे पन की खूबसूरती से पूरा कमरा जगमगा उठा। सबसे पहले वहं ब्रा उठा करके उसे पहनने लगी और अपनी बड़ी बड़ी चूचीयो को फिर से अपनी ब्रा में छुपा ली, फिर ऊसने पेंटी पहनकर अपने बेश कीमती खजाने को भी छीपा ली। धीरे धीरे करके उसने अपने बदन पर सारे वस्त्र धारण कर ली। इस वक्त अगर कोई रेखा को देख ले तो उसके मुंह से वाह वाह निकल जाए। जितनी खूबसूरत और निरवस्र होने के बाद नजर आती है उससे भी कहीं ज्यादा खूबसूरत कपड़े पहनने के बाद दीखती थी।



अपने पसंदीदा गुलाबी रंग की साड़ी में वह बला की खूबसूरत लगती थी। लंबे काले घने रेशमी बाल भीगे होने की वजह से उसका ब्लाउज भीग गया था जिसकी वजह से उसके अंदर की गुलाबी रंग की ब्रा नजर आ रही थी। जो कि बड़ा ही मनमोहक लग रहा था। रेखा कमर के नीचे साड़ी को कुछ हद तक टाइट ही लपेटती थी जिससे कि उसके कमर के नीचे का गांड का घेराव कुछ ज्यादा ही उभरा हुआ नजर आता था । ईस तरह से साड़ी पहनने की वजह से उसके अंगों का उभार और कटाव साड़ी के ऊपर भी उभर कर सामने आता था। जिसे देख कर हर मर्द ललचा जाता था । रेखा आपने के लिए बालों को सुखाकर उसे सवारने लगी।


थोड़ी ही देर में रेखा पूरी तरह से तैयार हो चुकी थी वह तैयार होने के बाद बेहद खूबसूरत लग रही थी मगर ऐसे में दूसरा कोई भी इंसान देख ले तो उसके मन में रेखा को पाने की लालसा जाग जाए। रेखा खुद भी यही सोचती थी, लेकिन उसे यह नहीं समझ में आ रहा था कि उसके पति को आखिर क्या चाहिए था।
रेखा तैयार होने के बाद जैसे ही कमरे का दरवाजा खोलने को हुई की घर में बने मंदिर में से घंटी की आवाज आने लगी।


घर के मंदिर से आ रही घंटी की आवाज सुनकर वह समझ गई की उसका बेटा तैयार हो चुका है। रेखा के बेटे का नाम मनीश था। जोकि बड़ा ही संस्कारी लड़का था।
घर में सब से पहले वही उठता था और नित्य कर्म करके नहा धोकर के सबसे पहले वह भगवान की पूजा किया करता था। मनीश का व्यवहार दूसरे लड़कों की तरह बिल्कुल भी नहीं था वह बहुत ही सादगी में रहता था घर में किसी भी चीज की कमी नहीं थी।


सुबह 4:00 बजे ही उठ कर उसकी दिनचर्या शुरू हो जाती थी। कसरत और व्यायाम करना वह कभी नहीं भूलता था।
रेखा कमरे का दरवाजा खोलकर बाहर की तरफ जाने लगी जैसे ही सीढ़ियों से उतर कर नीचे पहुंच ही रही थी कि सामने से पूजा के कमरे से मनीश बाहर आ रहा था और वहां अपनी मां को देखकर सबसे पहले ऊन्हे नमस्ते किया।

प्रणाम मम्मी (अपनी मां के पैरों को छू कर के)

जीते रहो बेटे,,,,, तैयार हो गए,,,

हां मम्मी मैं तैयार हो गया।

जाओ कुछ फ्रूट खाकर के दूध पी लो।

जी मम्मी

थोड़ी देर बाद वह नाश्ता तैयार करके, नाश्ते को टेबल पर लगाकर मनीश का इंतजार कर रही थी, रोज की ही तरह वह तैयार होकर के आया और कुर्सी पर बैठकर रेखा से बिना कुछ बोले ही नाश्ता करने लगा। ब्रेड पर मक्खन लगाकर वह खाते समय तिरछी नजर से रेखा पर जरूर नजरें फेर ले रहा था लेकिन बोल कुछ भी नहीं रहा था। रेखा अपने बेटे मनीश के मुंह से अपनी खूबसूरती की तारीफ में दो शब्द सुनने को तरस रही थी।


लेकिन रेखा के बेटे मनीश से तो झूठ मूठ का भी तारीफ में दो शब्द नहीं निकलते थे। लेकिन राह चलते कभी भी लफंगो के मुंह से उसे अश्लील तारीफ सुनने को मिल ही जाती थी।
हाय क्या माल है,,,, हाय चिकनी कहां जा रही हो,,,,, कभी कभी तो ईससे भी ज्यादा गंदे कमेंटस सुनने को मिल जाते थे।



हाय मेरी रानी,,,, चुदवाओगी,,,,,,,, तुम्हारी गांड कीतनी बडी़ है,,,,,,, कभी हमे भी दुध पिला दीया करो,,,,,,,

इस तरह के कमेंट सुनकर के तो रेखा अंदर ही अंदर डर के मारे थरथरा जाती थी। वह अपने बारे में इस तरह के कमेंट सुनने की बिल्कुल भी आदी नहीं थी

लेकिन रेखा ने एक नई बात महसूस करी थी कि उसको नए लड़के बहुत अच्छे लगते थे, जब भी वो किशोरवय लड़के को देखती, उसकी दबी कुचली सेक्स इच्छाए जाग उठती और इस बात को लेकर वो बहुत ही परेशान हो जाती थी |


रेखा अभी नाश्ता करके तैयार हो चुकी थी वह अपने कमरे में जाकर कि अपना पर्स ले आई, मनीश घर के बाहर आकर के गेराज के बाहर खड़ा हो कर के अपनी मां का ही इंतजार कर रहा था। रेखा गैराज में जाकर के कार्य का दरवाजा खोल करके ड्राइविंग सीट पर बैठ गई,,,,,, रेखा अपनी कार को खुद ड्राइव करती थी। पहले वह बस से ही आया जाया करती थी लेकिन अपने बारे में गंदे कमेंट को सुन सुनकर बहुत परेशान हो चुकी थी इसलिए वह कार से ही आने जाने लगी।

चाबी लगाकर कार स्टार्ट करके उसने अपने पांव का दबाव एक्सीलेटर पर बढ़ा कर कार को आगे बढ़ाई और मनीश के करीब लाकर के ब्रेक लगाई मनीश झट से कार का दरवाजा खोलकर आगे वाली सीट पर बैठ गया।
कुछ ही सेकंड में रेखा कार को मुख्य सड़क पर दौड़ाने लगी।

बेटा तुमने सोच लिया है ना,,, जज के सामने क्या बोलना है ( एक हाथ को दुलार से मनीश के सर पर रखते हुए)

हां मम्मी । ( मनीश शीसे में से बाहर झांकते हुए)

बेटा कोई दिक्कत हो तो अभी बोलना,,,,,,

नही मम्मी मुझे कोई दिक्कत नहीं है पर आप ऐसा क्यों बोल रही है,,,,,,


तुम्हारे स्वभाव की वजह से तुम हमेशा शांत रहते हो और बहुत ही कम बोलते हो इसलिए कह रही हूं कि भी बेझिझक कोई भी तकलीफ हो तो मुझे अभी बता दो।

ठीक है मम्मी,,,,,, ( इतना कहकर वह फिर से शीशे से बाहर झांकने लगा। दोनों ही माँ बेटे अपनी अपनी जिंदगी की तन्हाई से झूझते हुए एक दूसरे से नजर बचा रहे थे।

रेखा और उसके बेटे मनीश के बीच ऐसा क्या हुआ था कि रेखा उसे कोर्ट में अपने साथ ले जा रही है???

रेखा के पति ने उसे क्यों छोड़ा???
और वो अभी कहाँ है???

रेखा का बेटा एक शादीशुदा आदमी है, फिर उसकी पत्नी कहाँ है???
वो अपनी मम्मी के साथ आज जज साहब के सामने क्या बोलने वाला है????


रेखा और उसके बेटे की जिंदगी में आये इस अकेलेपन और तूफान की वजह जानने के लिए हम रेखा की जिंदगी की किताब के पन्ने उलट कर पढ़ते है।

"" एक शक और अधूरा सच """

रेखा गाड़ी चलाते हुए अपनी पुरानी यादों के झरोखे में चली गई।





मेरी जिंदगी की शुरुआत हरियाणा के एक छोटे से कस्बे में हुयी थी, मेरे परिवार में मेरे पापा, मम्मी, मुझसे दो साल बड़ी मेरी बड़ी बहन अंजू दीदी और एक साल बड़ा एक भाई सुनील है, मेरे पापा जो पेशे से एक पेंटर थे उन्होंने बड़ी ही मेहनत से और मेरी मम्मी के त्याग से हम भाई बहनो को पालने में कोई कसर नही छोड़ी। पेंटर का मतलब एम एफ हुसैन जैसा कोई चित्रकार नही, । हाहाहा हाहाहा हाहाहा हाहाहा

वो तो हरियाणा में घरों और बिल्डिंग पर रंगाई पुताई का काम करते थे।

हम मिडिल क्लास फैमिली से जरूर थे पर तीसरी कटगरी वाली। मतलब घर तो हमारे पास है पर काम नही।
हाहाहा हाहाहा हाहाहा

मेरे हिसाब से मिडिल क्लास फैमली तीन तरह की होती है। पहली जो साल भर बैठ कर खा सके, दूसरी जो एक महिना बैठ कर खा सके और तीसरी जो एक दिन तो बैठे बैठे आराम से खा सकती है पर अगले दिन फिर से कमाना है। ये अनुभव मुझे कोरोना काल में हुआ है।


समय बीतता गया, साल 2000 आते आते हमारे लिए सब कुछ बदल गया था। पापा पेंटर से छोटे ठेकेदार बन गये और अब खुद पुताई नही करते बल्कि लोगो से करवा लेते। और हम भाई बहन जवानी की देहलीज पर कदम रखते हुए बड़े होने लगे।


मेरे पापा ने घर के बाहर ही एक किराना की दुकान मेरे भाई को खुलवा दी, जिस पर तीनो भाई बहन बारी बारी से बैठे रहते, कभी कभी मम्मी भी बैठ जाती थी हमारे exam के समय, पापा गुजरात में ही रहकर काम कर रहे थे।


मेरा बड़ा भाई सुनील. मुझ से एक साल बड़ा है. पर जिस्म से लंबा तगड़ा जवान है.
मेरी बड़ी बहन अंजू जो पढाई कमजोर थी और आठवी में दो बार फैल होने की वजह से हम एक साथ एक ही क्लास में आ गये। मुझे पढ़ने लिखने का शुरु से ही शौक था और मै हर वक्त पढाई में लगी रहती।


मैं बचपन से ही बहुत सुंदर थी. मेरी छातियाँ भर आई थी. बगल में और टाँगों के बीच में काफ़ी बाल निकलने लगे थे. जवानी तक पहुँचते पहुँचते तो मैं मानो पूरी जवान लगने लगी थी. गली में और बाज़ार में लड़के आवाज़ें कसने लगे थे. ब्रा की ज़रूरत तो पहले से ही पद गयी थी.जवानी में साइज़ 34 इंच हो गया था. अब तो टाँगों के बीच में बाल बहुत ही घने और लंबे हो गये थे.

हालाँकि कमर काफ़ी पतली थी लेकिन मेरे नितंब काफ़ी भारी और चौड़े हो गये थे. मुझे अहसास होता जा रहा था कि लड़कों को मेरी दो चीज़ें बहुत आकर्षित करती हैं – मेरे नितंब और मेरी उभरी हुई छातियाँ. स्कूल में मेरी बहुत सी सहेलियों के चक्कर थे, लेकिन मैं कभी इस लाफदे में नहीं पड़ी. स्कूल से ही मेरे पीछे बहुत से लड़के दीवाने थे.


लड़कों को और भी ज़्यादा तड़पाने में मुझे बड़ा मज़ा आता था. स्कूल में सिर्फ़ घुटनों से नीचे तक की स्कर्ट ही अलोड थी. क्लास में बैठ कर मैं अपनी स्कर्ट जांघों तक चढ़ा लेती थी और लड़कों को अपनी गोरी गोरी सुडोल मांसल टाँगों के दर्शन कराती. केयी लड़के जान बूझ कर अपना पेन या पेन्सिल नीचे गिरा कर, उठाने के बहाने मेरी टाँगों के बीच में झाँक कर मेरी पॅंटी की झलक पाने की नाकामयाब कोशिश करते.


अब तो अपनी जवानी को कपड़ों में समेटना मुश्किल होता जा रहा था. छातियों का साइज़ 34 इंच हो गया था.मेरे नितुंबों को संभालना मेरी पॅंटी के बस में नहीं रहा. और तो और टाँगों के बीच में बाल इतने घने और लंबे हो गये कि दोनो तरफ से पॅंटी के बाहर निकलने लगे थे. ऐसी उल्हड़ जवानी किसी पर भी कहर बरसा सकती थी.

मेरा बड़ा भाई सुनील भी जवान हो रहा था, लेकिन आप जानते हैं लड़कियाँ जल्दी जवान हो जाती हैं. हम तीनों एक ही स्कूल में पढ़ते थे. हम तीनों भाई बेहन में बहुत प्यार था. कभी कभी मुझे महसूस होता कि सुनील भी मुझे अक्सर और लड़कों की तरह देखता है.

लेकिन मैं यह विचार मन से निकाल देती. लड़कों की ओर मेरा भी आकर्षण बढ़ता जा रहा था, लेकिन मैं लड़कों को तडपा कर ही खुश हो जाती थी.


मेरी बड़ी बहन अंजू दीदी से मेरा बहन से ज्यादा सहेली जैसा रिश्ता था, अंजू दीदी का स्कूल के लड़के, सुधीर के साथ चक्कर था. वो अक्सर अपने इश्क़ की रसीली कहानियाँ सुनाया करती थी. उसकी कहानियाँ सुन कर मेरे बदन में भी आग लग जाती. अंजू दीदी और सुधीर के बीच में शारीरिक संबंध भी थे. अंजू दीदी ने ही मुझे बताया था कि रेखा ये हरियाणा है हमारे यहाँ लड़को का चेहरा नही लौड़ा देखकर पसंद किया जाता है।


लड़कों के गुप्तांगों को लंड या लॉडा और लड़कियो के गुप्तांगों को चूत कहते हैं. जब लड़के का लंड लड़की की चूत में जाता है तो उसे चोदना कहते हैं. अंजू दीदी ने ही बताया की जब लड़के उत्तेजित होते हैं तो उनका लंड और भी लंबा मोटा और सख़्त हो जाता है जिसको लंड का खड़ा होना बोलते हैं. @साल की उम्र तक मुझे ऐसे शब्दों का पता नहीं था.

अभी तक ऐसे शब्द मुँह से निकालते हुए मुझे शर्म आती है पर लिखने में संकोच कैसा?

हालाँकि मैने बच्चों की नूनियाँ बहुत देखी थी पर आज तक किसी मर्द का लंड नहीं देखा था. अंजू दीदी के मुँह से सुधीर के लंड का वर्णन सुन कर मेरी चूत भी गीली हो जाती. एक बार मैं सुधीर और अंजू दीदी के साथ स्कूल से भाग कर पिक्चर देखने गये. पिक्चर हॉल में अंजू दीदी हम दोनो के बीच में बैठी थी. लाइट ऑफ हुई और पिक्चर शुरू हुई. कुच्छ देर बाद मुझे ऐसा लगा मानो मैने अंजू दीदी के मुँह से सिसकी की आवाज़ सुनी हो. मैने कन्खिओ से अंजू दीदी की ओर देखा. रोशनी कम होने के कारण साफ तो दिखाई नहीं दे रहा था पर जो कुच्छ दिखा उसेदेख कर मैं डांग रह गयी.


अंजू दीदी की स्कर्ट जांघों तक उठी हुई थी और सुधीर का हाथ अंजू दीदी की टाँगों के बीच में था. सुधीर की पॅंट के बटन खुले हुए थे और अंजू दीदी सुधीर के लंड को सहला रही थी. अंधेरे में मुझे सुधीर के लंड का साइज़ तो पता नहीं लगा लेकिन जिस तरह अंजू दीदी उस पर हाथ फेर रही थी, उससे लगता था की काफ़ी बड़ा होगा. सुधीर का हाथ अंजू दीदी की टाँगों के बीच में क्या कर रहा होगा ये सोच सोच कर मेरी चूत बुरी तरह से गीली हो चुकी थी और पॅंटी को भी गीला कर रही थी. इंटर्वल में हम लोग बाहर कोल्ड ड्रिंक पीने गये. अंजू दीदी का चेहरा उत्तेजना से लाल हो गया था.

सुधीर की पॅंट में भी लंड का उभार सॉफ नज़र आ रहा था. सुधीर ने मुझे अपने लंड के उभार की ओर देखते हुए पकड़ लिया. मेरी नज़रें उसकी नज़रें से मिली और मैं मारे शर्म के लाल हो गयी. सुधीर मुस्कुरा दिया. किसी तरह इंटर्वल ख़तम हुआ और मैने चैन की साँस ली. पिक्चर शुरू होते ही अंजू दीदी का हाथ फिर से सुधीर के लंड पे पहुँच गया. लेकिन सुधीर ने अपना हाथ अंजू दीदी के कंधों पर रख लिया.

अंजू दीदी के मुँह से सिसकी की आवाज़ सुन कर मैं समझ गयी की अब वो अंजू दीदी की चूचियाँ दबा रहा था. अचानक सुधीर का हाथ मुझे टच करने लगा. मैने सोचा ग़लती से लग गया होगा. लेकिन धीरे धीरे वो मेरी पीठ सहलाने लगा और मेरी ब्रा के ऊपर हाथ फेरने लगा. अंजू दीदी इससे बिल्कुल बेख़बर थी. मैं मारे डरके पसीना पसीना हो गयी और हिल ना सकी.


अब सुधीर का साहस और बढ़ गया और उसने साइड से हाथ डाल कर मेरी उभरी हुई चूची को शर्ट के ऊपर से पकड़ कर दबा दिया. मैं बिल्कुल बेबुस थी. उठ कर चली जाती तो अंजू दीदी को पता लग जाता. हिम्मत मानो जबाब दे चुकी थी. सुधीर ने इसका पूरा फ़ायदा उठाया. वो धीरे धीरे मेरी चूची सहलाने लगा. इतने में अंजू दीदी मुझसे बोली,“ रेखा पेशाब लगी है ज़रा बाथरूम जा कर आती हूँ.” मेरा कलेजा तो धक से रह गया. जैसे ही अंजू दीदी गयी सुधीर ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लंड पर रख दिया. मैने एकदम से हड़बड़ा के हाथ खींचने की कोशिश की, लेकिन सुधीर ने मेरा हाथ कस कर पकड़ रखा था. लंड काफ़ी गरम, मोटा और लोहे के समान सख़्त था. मैं रुनासि होके बोली।


“ सुधीर ये क्या कर रहे हो ? छोड़ो मुझे, नहीं तो अंजू दीदी को बता दूँगी.” सुधीर मंजा हुआ खिलाड़ी था, बोला,

“ मेरी जान तुम पर तो मैं मरता हूँ. तुमने मेरी रातों की नींद चुरा ली है. मैं तुमसे बहुत प्यार करने लगा हूँ.” यह कह कर वो मेरा हाथ अपने लंड पर रगड़ता रहा.

“ सुधीर तुम अंजू दीदी को धोका दे रहे हो. वो बेचारी तुमसे शादी करना चाहती है और तुम दूसरी लड़कियो के पीछे पड़े हो.”

“ रेखा मेरी जान तुम दूसरी कहाँ, मेरी हो. तुम्हारी अंजू दीदी से दोस्ती तो मैने तुम्हें पाने के लिए की थी.”

“ झूट ! अंजू दीदी तो अपना सूब कुच्छ तुम्हें सौंप चुकी है. तुम्हें शर्म आनी चाहिए उस बेचारी को धोका देते हुए. प्लीज़ मेरा हाथ छोड़ो.”

इतने में अंजू दीदी वापस आ गयी. सुधीर ने झट से मेरा हाथ छोड़ दिया. मेरी लाचारी का फायेदा उठाने के कारण मैं बहुत गुस्से में थी, लेकिन ज़िंदगी में पहली बार किसी मर्द के खड़े लंड को हाथ लगाने के अनुभव से खुश भी थी. अंजू दीदी के बैठने के बाद सुधीर ने फिर से अपना हाथ उसके कंधे पर रख दिया. अंजू दीदी ने उसका हाथ अपने कंधों से हटा कर अपनी टाँगों के बीच में रख दिया और सुधीर के लंड को फिर से सहलाने लगी. सुधीर भी अंजू दीदी की स्कर्ट में हाथ डाल कर उसकी चूत सहलाने लगा. जैसे ही अंजू दीदी ने ज़ोर की सिसकी ली मैं समझ गयी कि सुधीर ने अपनी उंगली उसकी चूत में घुसा दी है.


इस घटना के बाद मैने सुधीर से बिल्कुल बात करना बंद कर दिया. और अंजू दीदी को सुधीर के बारे में बता दिया कि उसने मेरे साथ छेड़खानी की थी तो अन्जू दीदी बोली रेखा जो हो गया सो हो गया भूल जाओ सब। पर मुझे सुधीर पर बहुत गुस्सा आ रहा था मेरे मुह से गालिया निकल रही थी। अंजू दीदी मुझे समझाने की हर कोशिश कर रही थी। आखिर में मै अंजू दीदी से बोली अगर तुमने सुधीर का साथ नही छोड़ा तो मै पापा को बता दूँगी।

ये सुनकर अंजू दीदी बड़ी जोर शोर से हँसने लगी हाहाहा हाहाहा हाहाहा और
हस्ती हुई बोली मेरी प्यारी रेखा रानी तुम पापा को जानती नही हो वो भी हरियाणा के जाट है, और अगर उन्हे तुमने जरा सी भी बात बताई तो वो उस सुधीर के साथ साथ हम दोनों को भी खेत मे लगे पीपल के पेड़ पर टांग देंगे। इसलिए रेखा रानी भूल जाओ सुधीर की कहानी।

मै गहरी सोच में थी क्या अंजू दीदी सच कह रही है??? क्या मुझे सब भूल जाना चाहिए??? मुझे अपनी सगी बड़ी बहन को सुधीर जैसे हरामी लड़के के चगुल से बचाना होगा मगर कैसे????
Nice plot
 
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अध्याय - 46

दिल के रिस्ताँ का कोए नाम ना होंदा।
हर रास्तां का कोए मुकाम ना होंदा।
अगर निभाण की चाहत हो दोनों कानी।
तो कसम त कोए रिस्तां नाकाम ना होंदा।

बस इतनी सी बात रेखा... चलो मैं तुम्हारे साथ चलता हूँ और मम्मी से बोलता हूँ मेरी दुल्हनिया आपकी अमानत है कुछ दिन बाद ये आपको परेशान नही करेगी।
ये सुनकर मेरी हँसी छूट पड़ी..... ह्म्म

हम दोनो बाइक पर सवार जल्द ही अपने घर पहुँचे वहां देखा तो घर के बाहर के चबूतरे पर कुछ लोग खड़े थे वो सभी मेरे पड़ोसी थे ,सबने मेरे होने वाले पति संजय को मेरे साथ आते हुए देखा तो आपस में कानाफूसि करने लगे। हम जब अंदर गये तो वहां पापा और मम्मी थी उन्हें संजय को मेरे साथ देखकर समझ आ गया की ये रेखा को छोड़ने को ही यहां आये है पापा ने संजय का अभिनदंन किया मम्मी मुझसे तब तक बात भी नही कर रही थी ,वो बड़े ही सलीके से वहां खड़ी थी पास ही मेरा (बेहण चोद) भाई सुनील खड़ा था जिसे मैंने गुस्से से देखा वो बेचारा घर से बाहर अपने काम पर चला गया।

कुछ देर में मै सभी के लिए चाय ले आयी और संजय को चाय देने लगी। संजय ने चाय लेते हुए एक मुस्कान बिखरा दी ,वो शरारत भरी मुस्कान मासूम सी मेरा प्यारा संजय ,वाह जैसे कुछ हुआ ही ना हो अपने सभी गम भूलकर बस मै उसे देखने लगी। और फिर किचन के दरवाजे के पास चली गयी वही मम्मी और पापा दोनो ही संजय से बातें करने लगे …

“क्यो दमांद जी सुबह सुबह कहाँ लेकर चले गए थे आप, हम सभी घरवालो का बुरा हाल था , रेखडी फोन भी उठा नही रही थी।
“देखो संजय हमारी बेटियां हमारी इज्जत है और हमने इन्हे बड़े ही प्यार से पाला है , ये तुमसे बहुत प्यार करती है और जब से ये शादी की तारिख नजदीक आ रही है तुम्हारे लिए ही परेशान है ,इसमें हम सबकी जान बसती है ,तुमसे हाथ जोड़कर विनती है इसका खयाल रखना “ पापा ने अपने हाथ संजय के सामने जोड़ लिए , संजय ने तुरंत ही उनका हाथ पकड़ लिया, पापा की आंखे कुछ नम थी ,

“ पापा ये आप क्या कह रहे है ,मुझसे सच मे गलती हो गयी असल में आज मेरा जनम दिन था और सबसे पहले रेखा से मिलना चाहता था। मै उसके ही साथ था, मुझे माफ कर दीजिये और आप यू हाथ जोड़कर मुझे शर्मिंदा मत करे आप तो बड़े है आपका तो हक है की आप हमे डांटे।

संजय के झूठ को सुनकर…”अब पापा के चहरे में कुछ मुस्कान आ गयी थी ,पर वो मुस्कान अब भी फीकी ही थी ,

“आप लोग बातें करे मैं और रेखा मिलकर खाना बनाते है,” मम्मी इतना कहकर वहां से चली गयी ।

अब पापा और संजय वो दोनो ही बैठे थे

“देखो संजय रेखा अभी भी बच्ची है ,और तुम अब हमारे परिवार हो ठीक है और अगर उससे कोई गलती हो गयी है तो हमे बताओ हम उसे समझायेंगे । तुम मुझे सच सच बताओ सब ठीक तो है ना “

“हा पापा सब ठीक है ,डरने वाली कोई भी बात नही है और रही रेखा की बात तो मैं उसे अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता हु ,मैं कभी उसे दुखी नही करूँगा,और रही आज सुबह की बात तो वो कुछ अलग मेटर है ,मेरे और रेखा के बीच की आप को चिंता की जरूरत नही है वो सुबह ही हमने सॉल्व कर लिया था,”

पापा अब थोड़े से निश्चिंत दिख रहे थे , और बैठे बैठे युही इधर उधर की बाते करने लगे………..

सुबह वाले वॉकये के बाद सुनील रात देर से अपने काम से वापिस घर लौटा। तो उस वक़्त घर में अजीब सी खामोशी छाई हुई थी। सुनील अपनी मम्मी के कमरे के पास से गुज़रते हुए उन के कमरे की बंद लाइट देख कर समझ गया। कि उस की मम्मी अब अपनी मस्त नींद के मज़े ले रहीं हैं।

अपने कमरे में जाते हुए जब वह अपनी बहन रेखा के कमरे के पास से गुजरा तो उस को कमरे में रोशनी नज़र आई। कमरे में से आती हुई रोशनी को देख कर सुनील की नज़र अपनी बहन के कमरे की खिड़की पर पड़ी। कमरे की खिड़की पर एक हल्का-सा परदा पड़ा था और कमरे में लाइट ऑन होने की वज़ह से बाहर खड़े हुए इंसान को कमरे का नज़ारा काफ़ी हद तक नज़र आता था।

सुनील ने देखा कि उस की बहन ना सिर्फ़ अभी तक जाग रही है। बल्कि वह अभी-अभी बाथ रूम से निकल कर बेड रूम में दाखिल हो रही थी। सुनील के देखते ही देखते मै अपने कमरे में पड़े हुए बड़े से ड्रेसिंग टेबल के सामने आन खड़ी हुई।

अपने सगे भाई की खिड़की पर मौजूदगी से बेखबर ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़े हो कर मैने अपनी दाई (राइट) टाँग को टेबल के सामने पड़े स्टूल पर रखा।तो सुनील को अंदाज़ा हुआ कि उस की बहन तो उस वक़्त सिर्फ़ अपनी कुर्ती में ही है।

जब कि नीचे शलवार ना पहने होने की वज़ह से मेरी मोटी मुलायम और गुदाज रान अपनी पूरी शान के साथ सुनील की भूकि और प्यासी आँखों के सामने नीम नंगी हो रही थी।

"हाईईईईईईईईईईई!" अपनी बहन की ये "सॉफ छुपाते भी नही, सामने आते भी नही" वाली अदा सुनील के दिल और लंड को घायल कर गई।

उधर कमरे में शीशे के सामने खड़े हो कर मैने अपनी मुलायम रानों पर एक नज़र दौड़ाई. तो मुझे कुछ दिन पहले वाला रसोई का वाकीया याद आ गया। जब मेरे भाई ने पहली बार मेरी गान्ड की पहाड़ी पर बड़े ज़ोर और जोश से काटा था। कुछ दिन गुज़र जाने के बावजूद मुझको अपने भाई के दाँतों की चुभन अपनी गान्ड की पहाड़ी पर महसूस हो रही थी।

मैने अपना एक हाथ पीछे ले जा कर गैर इरादी तौर पर अपनी गान्ड के उपेर से अपनी कुर्ती का कोना उठाया और थोड़ी तिरछही हो कर शीशे में अपनी गान्ड को देखने लगी। कि कहीं भाई के "काटने" (बाइट) का निशान अब भी गान्ड की पहाड़ी पर बाक़ी तो नही।

अपनी बहन को यूँ अपनी गान्ड का जायज़ा लेता देख कर कमरे से बाहर खड़े सुनील के तो होश की उड़ गये और उस का लंड पहले से ज़्यादा रफ़्तार से उस की पॅंट में फ़न फनाने लगा।

फिर स्टूल पर अपनी टाँग को इसी स्टाइल में रख कर मैने ड्रेसिंग टेबल से स्किन माय्स्चर क्रीम उठाई.और एक-एक कर के अपनी दोनों गुदाज रानों और लंबी-लंबी टाँगों पर क्रीम लगाने लगी।

"हाईईईईईई! रेखडी मेरी जान अगर तुम मुझे इजाज़त दो, तो में अपने लंड की टोपी पर क्रीम लगा कर तुम्हारी मोटी राणू पर अपने लंड से मालिश करू मेरी बहन" कमरे से बाहर खड़े सुनील ने अपनी बहन को अपनी गरम और मोटी रानों पर क्रीम से भरे हाथ फेरते देख कर गरम होते हुए मन में कहा।

मैने अपनी दोनों गुदाज रानों और लंबी-लंबी टाँगों पर क्रीम लगाने के बाद बेड के ऊपर पड़ी अपनी शलवार को उठा कर पहन लिया। और फिर से शीशे के सामने खड़ी हो कर अपने जवान बदन का जायज़ा लेने लगी।

मै ये बात तो जानती थी कि मेरा जिस्म मर्दो को अपनी तरफ़ खैंचता है। मगर आज मै शीशे के सामने खड़े हो अपना बदन को देख कर ये सोचने लगी। कि देखूं तो सही कि मेरे जिस्म में ऐसी क्या ख़ास बात है।कि और तो और मेरा अपना सगा भाई भी मेरे जिस्म का आशिक़ हो गया है।

सुनील अपनी बहन की मचलती जवानी को देख कर मस्ती से बे क़रार हो रहा था। आज उस को उस की बहन की जवानी एक अनोखा ही रस दे रही थी।

फिर उस के देखते ही देखते मैने एक बहुत ही मदहोश अंगड़ाई ली।

मेरी इस अंगड़ाई से ब्रा में क़ैद मोटे और बड़े मम्मे ऊपर की तरफ़ छलक उठे। तो सुनील अपनी बहन की इस मदहोश अदा से गरम और बे चैन हो गया।

"रात की गहराई में तंग शलवार कुर्ते में मदमस्त बहन की मदहोश करने वाली अंगड़ाई को देख कर किसी भी भाई के लिए ख़ुद पर काबू रखना एक ना मुमकिन बात होती हैं।"

बिल्कुल ये ही हॉल सुनील का भी अपनी बहन के जवान बदन को देख कर उस वक़्त हो रहा था।

उस पर अपने ही घर के माल पर हाथ मारने की धुन तो पहले ही सवार हो चुकी थी।
इसीलिए उसे रात के अंधेरे में अपनी बहन के बेड रूम के बाहर खड़े हो कर उस के जवान, प्यासे बदन को देख-देख कर अपनी आँखे सेकने में मज़ा आ रहा था।

अपनी बहन की ये भरपूर अंगड़ाई देख कर सुनील भी मदहोशी में अपने लंड को पकड़ कर मचल उठा और वह अपनी पॅंट की पॉकेट में हाथ डाल कर पॅंट में खड़े अपने मोटे लंड से खेलने लगा।

कुछ देर शीशे के सामने अपने जिस्म का अच्छी तरह से दीदार करने के बाद मै अपने पलंग पर आ गई। पलंग पर लेट कर मैने अपनी जवानी को बिस्तर की चादर से ढँक लिया और हाथ बढ़ा कर कमरे में जलती लाइट को बंद कर दिया।

बहन की जवानी का शो ख़तम हो चुका था। इसीलिए सुनील भी चलता हुआ अपने कमरे में दाखिल हुआ। उस का लंड अपनी बहन के बदन के नज़ारे से फुल मस्ती में आया हुआ था।

अपनी कमरे में आते साथ ही वो भी अपने कपड़े बदल कर के अपने बिस्तर पर लेट गया। मगर अपनी बहन की जवानी का ताज़ा-ताज़ा नज़ारा देख कर आज नींद उस की आँखों से कोसो दूर भाग चुकी थी।

सुनील अपनी आँखे बंद किए अपने बिस्तर पर लेटा अपनी बहन के बारे में सोच-सोच कर गरम हो रहा था। और उस के हाथ उस की चड्डी में खड़े उस के लंड पर आहिस्ता-आहिस्ता फिसल रहे थे।

"ओह रेखाराणी क्या मस्त मम्मे हैं तुम्हारे और क्या शानदार टाइट चूत होगी तुम्हारी, हाईईईईईईई! , काश तुम मेरी सग़ी बहन ना होतीईईईईइ!" । सुनील अपने लंड से खेलते हुए अपनी बहन के जिस्म को ज़हन में ला कर उस के नाम की मूठ लगा रहा था।

सुनील को समझ नहीं आ रही थी।कि उस की बहन इतना ज़्यादा गरम और प्यासी होने के बावजूद अभी तक उस के साथ चुदाई के लिए क्यों राजी नहीं हो रही है।

वो काफ़ी देर तक इसी सोच में गुम रहा। कि वह किस तरह कुछ ऐसा करे कि उस की बहन गरम हो कर अपने ही आप एक पके हुए फल की तरह उस की झोली में आन गिरे।

ये सोचते सोचे उस को ख़्याल आया। कि क्यों ना वह आज रात की गहराई में अपनी बहन के कमरे में जा कर एक बार फिर अपनी किस्मेत आज़माई करे।

"अगर रेखारानी आराम से चुदवाने पर राज़ी हो गई तो ठीक, वरना आज जबर्जस्ती उसे चोद कर ज़रूर अपनी और उस के प्यासे जिस्म की प्यास बुझा लूँगा" सुनील ने अपनी दिल ही दिल में ये फ़ैसला कर लिया।
Very nice update
 
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आपका पोस्ट डिलीट किए जाने से पहले ही पढ़ लिया था । ऐसी लेंग्वेज का प्रयोग लाउंज मे नही किया जाता ।
शायद आप को याद होगा कि इम्मो भाई और सिराज भाई की वजह से ही आपके थ्रीड पर आई प्रॉब्लम दूर हुई थी।
और दोनो ही फोरम के सीनियर मोडरेटर है।

जहां तक बात है मानु भाई की , मै ही पहला शख्स था जो उसपर किए जा रहे प्रहार का प्रतिवाद किया था । मुझे देखकर हेल स्टोर्म आगे आया लेकिन कुछ अवांछित शब्द का प्रयोग कर बैठा । पर यह मै जानता हूं कि उसका नीयत गलत नही था । माही ने भी इस पर प्रतिवाद किया । लाउंज की कुछ सीमाएँ है जिसे कोई भी पार नही कर सकता।
इसे सीरियस बिल्कुल ही नही लेना है । कभी-कभार भावनाओं पर अंकुश लगाना ही बुद्धिमानी होता है।
आप फिक्र मत कीजिए , हेल स्टोर्म बहुत जल्द वापस दिखेगा।
 
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आपका पोस्ट डिलीट किए जाने से पहले ही पढ़ लिया था । ऐसी लेंग्वेज का प्रयोग लाउंज मे नही किया जाता ।
शायद आप को याद होगा कि इम्मो भाई और सिराज भाई की वजह से ही आपके थ्रीड पर आई प्रॉब्लम दूर हुई थी।
और दोनो ही फोरम के सीनियर मोडरेटर है।

जहां तक बात है मानु भाई की , मै ही पहला शख्स था जो उसपर किए जा रहे प्रहार का प्रतिवाद किया था । मुझे देखकर हेल स्टोर्म आगे आया लेकिन कुछ अवांछित शब्द का प्रयोग कर बैठा । पर यह मै जानता हूं कि उसका नीयत गलत नही था । माही ने भी इस पर प्रतिवाद किया । लाउंज की कुछ सीमाएँ है जिसे कोई भी पार नही कर सकता।
इसे सीरियस बिल्कुल ही नही लेना है । कभी-कभार भावनाओं पर अंकुश लगाना ही बुद्धिमानी होता है।
आप फिक्र मत कीजिए , हेल स्टोर्म बहुत जल्द वापस दिखेगा।
Atleast aapko post padhne ko mili to sahi. Muje post karne k paanch minit baad hi notificatin me remove post aa gaya. Ye padhkar paara or jyda chadh gya. Khair jo hua so hua. Accuuly festive season ki wajh se foram or thread par bilkul bhi samay nhi de paa rahi hu. Bas thoda sa wakt milta hai. Mesej chek karne k liye. Jald hi aapse story par milti hu.
 
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Atleast aapko post padhne ko mili to sahi. Muje post karne k paanch minit baad hi notificatin me remove post aa gaya. Ye padhkar paara or jyda chadh gya. Khair jo hua so hua. Accuuly festive season ki wajh se foram or thread par bilkul bhi samay nhi de paa rahi hu. Bas thoda sa wakt milta hai. Mesej chek karne k liye. Jald hi aapse story par milti hu.
Bty maine kal hi Hell Storm se ban hatwa diya hai. Wo ab active hai.
Aur aap lounge ke politics se parichit nahi hai esliye aap gussa ho gayi. Waha par roj ka hi ye kaam hai. Main khud lounge adhik nahi jata.
Koi baat nahi , festival season enjoy kijiye.
 
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