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Incest शक या अधूरा सच( incest+adultery)

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mayanksaxena85

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Rekha ji पहली बार किसी स्टोरी पे कमेंट कर रहा हूं आप शब्दो की जादूगरनी हैं निराशा त्याग कर अपडेट रेगुलर दे समय निकल कर
 

Rekha rani

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Rekha ji पहली बार किसी स्टोरी पे कमेंट कर रहा हूं आप शब्दो की जादूगरनी हैं निराशा त्याग कर अपडेट रेगुलर दे समय निकल कर
Thanks, definetly bas ek do din me apne shabdo ke saath aapse milti hu.
 

Jackhard

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रेखा जी, आप एक बेहतरीन लेखिका हैं, हरयाणवी भाषा के तड़के के साथ लोगों को ऐसी कहानी कहीं और पड़ने को नहीं मिलेगी। आप लगातार updates भेजती रहें तभी लोगों का भी इंटरेस्ट बना रहेगा।
 

Rekha rani

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अध्याय - 48

वो ये भी जानता था। कि उस का ये मकसद उस वक़्त तक नहीं पूरा हो सकता।जब तक वह अपनी सोई हुई बहन के जिस्म के ऊपर चढ़ कर उस की गरम फुद्दि से अपने जवान मोटे लंड को रगड़-रगड़ कर अपनी बहन की चूत को गीला ना कर दे। ये ही सोचते हुए सुनील ने अपनी नींद में मदहोश बहन के जिस्म का दोबारा से जायज़ा लिया।

रेखा की इस स्टाइल में सोने से उस की दोनों चूचे के दरमियाँ काफ़ी गॅप आ गया था। रेखा के सोने इस स्टाइल को देख कर सुनील के ज़हन में एक ख़्याल आया और वह आहिस्ता से अपनी सोती बहन के एक हाथ को पकड़ा और उस को खैंचता हुआ अपने नंगे लंड पर ला कर रख दिया। और बहन की हथेली में अपना लंड रख कर बहन के कोमल हाथों से मुठियाने लगा।

इस वक्त अपनी सोती बहन के गरम जिस्म को देख कर और उस के साथ मस्तियाँ कर-कर के सुनील इतना गरम हो चुका था। कि अपनी बहन की हथेली की बे इंतिहा गर्मी को अपने लंड पर महसूस करते ही सुनील के लिए अपने आप को कंट्रोल करना मुश्किल हो गया और एक झटके के साथ "अहह!" करते हुए सुनील के लंड ने अपना सारा माल अपनी बहन की मुठी के अंदर उडेल दिया।

अपने लंड को बहन की मुट्ठी के दरमियाँ इतनी जल्दी फारिग होता देख कर सुनील तो शरम से पानी-पानी हो गया। उस का खड़ा हुआ लंड मुरझा कर बैठने लगा। सुनील को अपने आप से शरम आने लगी। और अपने ऊपर लानत भेजते हुए उस ने एक दम अपने कपड़े उठाए और बहन को सोती छोड़ के वह कमरे से निकल आया।

अपने कमरे में लेट कर सुनील अपने और बहन के बारे में सोचने लगा। कि लाख कोशिश के बावजूद रेखडी उस के साथ चुदाई पर राज़ी नहीं हो रही। तो बेहतर है कि उसे उस के हाल पर छोड़ दिया जाए।

" दिल के अरमां आँसुओं में बह गये, हम वफ़ा कर के भी तेन्हा रह गये" ।

की तर्ज का एक शेर सुनील ने मन में बोला ,

" लंड के अरमां, मूठ लगा कर बह गये, हम लंड नंगा कर के भी, कंवारे रह गये।"

और उस ने ये तय कर लिया कि वह अब कभी ग़लती से भी अपनी बहन की चुदाई के बारे में सोचेगा भी नही।

भाई के कमरे से जाने के बाद मै काफ़ी देर अपने बिस्तर पर पड़ी बेखबर सोती रही।
फिर जब कुछ देर बाद मुझ को अपनी हथेली के ऊपर खुजली महसूस हुई। मेरी हथेली का वह हिस्सा सूखने के बावजूद मेरे अपने भाई का वीर्य मेरी उंगलियों पर चिपक-सा गया था

मुझ को ज्यों ही अहसास हुआ तो मै फॉरन उठी और बाथरूम में गई और अपने हाथ को अच्छी तरह से धो कर और अपने कमरे के दरवाज़े को फिर से लॉक लगा कर बिस्तर पर दुबारा सोने के लिए लेट गई।

अगले दिन सुबह ही कंगन बन्दन की और तेल की रसम थी, और इसी के साथ सारी रसमे शुरू होनी थी. और तेल और कंगन के बाद मै घर से बाहर नही निकल सकती थी.
हुआ ये कि आज सुबह सुबह दो चार दिन बाद दादी आई और उन के साथ गाँव से कुछ काम करने वालिया, औरते, मेरी चाची और एक दो गाँव की भाभी.

उन्होने सबसे पहले मुझे डाँट लगाई, क्या उदबिलाव की तरह टहलती रहती है. फिर मुझे प्यार से गले लगा के बोली कि अब तेरा कल ब्याह हो जायेगा, दुल्हन की तरह रहा कर.अब तू उच्छल कूद करने वाली लड़की थोड़ी है. फिर मम्मी का नंबर था सबसे ज़्यादा डाँट मम्मी को पड़ी कि शादी का घर ये लग ही नही रहा है, न कहीं ढोलक बज रही है और अभी तक दुल्हन को उबटन तक लगाना नही शुरू हुआ. उन्होंने मुझे न तो मालिश की और न उबटन लगाई.

फिर दादी बोली कि नाइन (नाऊ की लुगाई) को बुलावा भेजो दुल्हन की सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदारी तो उसी की है और फिर आज दोपहर में सारी रसम को शुरु किया गया।

मे अपने घर के आंगन में एक पटे पर बैठी थी। मेरे पैर के पास मे नाइन बैठी थी, हाथ मे तेल और उबटन की कटोरी लिए और औरतों ने एक एक कर मुझे हल्दी उबटन लगाना शुरु कर दिया। थोड़ा बहोत टाँग मे उबटन लगाया. लेकिन उसके आगे वो बढ़ना चाहती थी तो मेने सॉफ मना कर टाँगो में दर्द का बहाना बना दिया. सच तो ये है मुझे झिझक हो रही थी।

गाँव से आई एक चाची बोली "अर्रे, रेखा रानी. अभी से फटी पड़ रही है तो आगे क्या होगा. लेकिन चिंता मत करो मेरे हाथ से मालिश करा के और उबटन लगवा के तुम्हारी टांगे इतनी तगड़ी हो जाएगी, कि तेरा दूल्हा उसे चाहे जितनी देर तक उसे उठाए या फैलाए, कुछ फरक नही पड़ेगा."

और उन्होंने जैसे अपनी उंगलिओं मे तेल लेके लगाना शुरू किया, मेरी जो भी झिझक थी सब कुछ ही देर मे पिघल गया. मेरे पैरों, पिंडलियों, जाँघो की थकान तो गायब हो ही गई, मुझे लगने लगा कि जैसे मे एकदम हल्की हो गई हूँ. चाची का हाथ जब मेरे नितंबो पे पहुँचा, और उन्होंने अपने हाथों के बीच दोनो नितंबो को लेके मसलना शुरू किया तो मेरी पैंटी एकदम दरारों के बीच फँस गयी. मे झिझकी ज़रूर,मन किया कि मना करू पर इतना आराम लग रहा था और मना नही कर पायी. फिर भाभी ने उबटन लगाना शुरू किया, पहले पैरों पे फिर थोड़ा सा एक दूसरी कटोरी से कुछ अलग सा उबटन मेरे बूब्स के साइड मे लगा दिया.

मे अपने आप करवट बदल के पीठ के बल हो गयी. . मेरी पूरी देह मे एक नशा सा छा रहा था. एक अलग ढंग का उबटन ले के मेरे सीने पे हल्के हाथों से लगाया जा रहा था. (मुझे बाद मे पता चला कि वो अनार्दाने और अनार का एक ख़ास उबटन था जो बच्चे होने के बाद औरतों के सीने मे कसाव और शेप के लिए इस्तेमाल होता था) फिर उसे यहीं लगा हुआ छोड़ के फिर बाकी देह मे चंदन, हल्दी और सरसों का उबटन लगाना शुरू किया. एक घंटे के बाद फिर सीने पर लगा वो लेप छुड़ाया.

सीने पे वो ख़ास उबटन जब वो छुड़ाती तो चिढ़ाते हुए मेरे सीने को मसल देती और कहती तेरा दूल्हा ऐसे ही कस के मसलेगा. कयि बार जब वो मेरे निपल्स को छूती तो पता नही कैसी छुअन थी कि वो तुरंत चूची एरेक्ट हो जाती. फिर उसे पकड़ कर वो कहती, रेखा रानी, तेरे दूल्हे के तो भाग जाग गये जो इतने मस्त जोबन मिलेंगे उसको.

नीचे भी वो कोई मौका नही छोड़ती थी, कभी मेरी कुँवारी किशोर पंखुड़ियो को सहला देती तो कभी तेल लगाने के बहाने उंगली की टिप से छेद को छु देती. मे एक दम मस्ती से गिन-गिना जाती. और जब कभी मे उसे सीने को छुने से मना करती तो वो और कस के मसल के बोलती, "अर्रे बन्नो, ये तो जवानी के फूल हैं, तेरे दूल्हे के खिलौने. अर्रे वो तो इतने कस कस के मसलेगा कि तेरे पसीने छूट जाएँगे. सिर्फ़ हाथों से नही, होंठो से भी, चूमेगा, चुसेगा, चाटेगा और कच कचा के काटेगा. अब तेरे इन कबूतरो के उड़ने के दिन आ गये. और जब तेरे "वो दिन" होंगे ना, तो इन मस्त जोबन के बीच वो लंड डाल के चोदेगा भी."

मे शरमाती, गुस्सा होने का नाटक करती पर मन ही मन सोचती कि वो दिन कब आएँगे जब मे उनकी बाहों मे होंगी, चाची और भाभियो की उंगलिओं की तरह उन की ज़ुबान मे भी जादू था (नही मेरा और कुछ मतलब नही है, सिर्फ़ उनकी बातों से है). वो अपने अपने मर्द का किस्सा रस ले ले के पूरे डीटेल के साथ सुना रही थी. अर्रे आज आने के पहले बड़ी देर तक उसके टटटे चुस्ती रही. मेरे कुछ समझ मे नही आया, मे बोली.

"टटटे?? अर्रे इसका क्या मतलब ."

"अर्रे तू इसका मतलब नही जानती ससुराल मे नाम डुबोएगी, हम लोगों का. अर्रे लाडो, वो जो लटकता रहता है." मे समझ गई कि वो बॉल्स के बारे मे बात कर रही है. वो हंस के बोली और क्या,असली कारखाना तो यहीं है, माल बनाने का . और फिर वो बोली कि उसके बाद मेने उसके पीछे भी उसकी गांड को भी कस के चूसा.

"छी भाभी बड़ी गंदी हो तुम. वो कौन सी प्यार करने की जगह हुई.' मे बन के बोली.

"अर्रे मेरी बन्नो रेखा रानी," वो मेरे नितंबो को कस के मसल्ते बोली, "यही तो तुम नही जानती, गंदा सॉफ कुछ नही होता मज़ा लेना असली चीज़ है.और ये ट्रिक सीख लो तुम भी - उसे तो बहोत मज़ा आता है और मे भी एक दम जीभ अंदर कर के जब लंड एकदम थका हो ना कितना भी मुरझाया हो टट्टो और गांड के बीच मे चूमने चाटने से एकदम खड़ा हो जाता है. देखो जो चीज़ मर्द को अच्छी लगे, वो पता कर के, करना चाहिए. और आख़िर जब वो जोश मे होता है तो हम लोगों को भी तो मज़ा देता है, इसलिए बन्नो समझ लो फालतू का नखरा, या शरम करने से कोई फ़ायदा नही." ऐसे ही उबटन छुटाते उन्होंने मुझे एकदम दुहरा कर दिया. मेरे घुटने मेरे छातियों से लग गये. मे चीखी, ये "क्या कर रही हो छोड़ो ना."

"अर्रे लाडली जब वो ऐसे कर के चोदेगा ने तो लंड का टोपा सीधे बच्चे दानी से लगेगा, और क्या मज़ा आता है उस समय. और साथ साथ नीचे से ये चूत का दाना भी रगड़ ख़ाता है साथ साथ."

नितंबो पे उबटन का तेल लगाते हुए उन्होंने मेरे पीछे के छेद को भी पूरी ताक़त से कस के फैला के, वहाँ भी दो बूँद तेल अंदर चुवा दिया.

"हे क्या करती हो वहाँ क्यों तेल "

"अर्रे रेखा रानी जैसे मशीन के हर छेद मे तेल डालते है ना इस्तेमाल के पहले, उसी तरह.और तू क्या सोचती है यहाँ छोड़ेगा वो. तेरे इतते मस्त कसे कसे चूतड़ है - मेरे दूल्हे ने तो मेरे लाख मना करने के बाद भी पीछे वाले दरवाजा का बाजा बजा दिया था." और ये कह के थोड़ा सा उबटन लेके मेरे चूतड़ के बीचोबीच कस के रगड़ दिया.

औरतो ने मुझे सारी ट्रिक भी सीखा दी थी और ये भी कि मर्दों के "ख़ास ख़ास पॉइंट" कौन से होते है उन्हे कैसे छेड़ना चाहिए.

अब मै भी अच्छी ख़ासी खुल गयी थी और मेने पूच्छ लिया कि ये उबटन और मालिश शादी के पहले क्यों करते है. वो उस समय मेरे उरोजो से उबटन छुड़ा रही थी. उन्हे मसल के बोली,

"इसलिए बन्नो कि तुम अब तक सिर्फ़ लड़की थी लेकिन अब लड़की से दुल्हन बन चुकी हो और ये तेरे तन मन मे दुल्हन का एहसास कराता है, तुमको तैयार करता है दुल्हन की तरह बनने के लिए और इसके बाद तुम दुल्हन से औरत बन जाओगी."



"वो कैसे,.." मे अपनी जाँघो से उबटन छुड़ाने के लिए फैलाती हुई बोली.

"वो काम दूल्हे राजा का है. वो अपने सीने मे कस के भींच के, दबा के, रगड़ के रोज रात को कच कचा के प्यार करेगा ना. लेकिन पूरी औरत तुम उस दिन बन जाओगी जिस दिन वो तुम्हे गर्भिन कर देगा, तुम्हारे पेट मे अपने बच्चा डाल देगा."

"और, तुम अभी किस हालत मे हो." मेने उठते हुए उसे छेड़ा.

"थोड़ी दुल्हन थोड़ी औरत, लेकिन सबसे ज़्यादा मज़ा इसी हालत मे मिलता है बिना किसी डर के रोज" वो हंस के बोली.

वास्तव मे मुझे अलग सा एहसास होता रहता था. आँखो मे सपने, मन मे मुरादे, बस मन करता रहता था कि वो दिन कितनी जल्दी आ जाए. जब मे उनकी बाहों मे होऊ और वो कस कर, भींच कर..मेरे होंटो पे मेरे शरीर का हर अंग नेये ढंग से महसूस कराता मेरे उभार, मेरी छातियाँ मुझे खुद भारी भारी, पहले से कसी लगती, और हर समय मुझे उनका एहसास होता रहता और अक्सर मे सोच बैठती कि संजय कैसे मुझे बाहों मे लेंगे कैसे इन्हे कस के दबा देंगे लेकिन मे फिर खुद ही शर्मा जाती. और सारी देह मे एक अलग ढंग का रस्स खुमार, एक हल्की सी नेशीली सी चुभन और अब मेने जाना कि ये दुल्हन बनने का एहसास है.

फिर उबटन लगवा के और कंगन बंधवाने के बाद न्योता देने का काम शुरू हुआ, गाने के साथ, पहला न्योता देवता को मंदिर मे, दूसरा हमारे परिवार के गुरु को, फिर मेरे नेनिहाल और फिर सब को दिया गया और उस के बाद तो एक के बाद एक रस्मे, उड़द चुने की. मट्टी खोदने की। एक रस्म मे पितरों का भी आवाहन किया गया थी मुझे लगा कि जो बात दादी कह रही थी की जीवन के उस महत्व पूर्ण संक्रमण काल मे सिर्फ़ सारे सगे संबंधी ही नही, प्रक्रति और मेरे पूर्वज भी साथ साथ साथ है. और सबमे गाने और गाने से ज़्यादा गलियाँ और भाभीया किसी को बख़्श नही रही थी.

दो तीन घंटे के अंदर ही घर सारे औरतो, रिश्तेदारों से भर गया था..और हर किसी के आने पे पानी बाद मे पहले गालियाँ और गाने सबसे ज़्यादा तो जब मेरी छोटी मौसी आई तो मेरी सारी चाचियों ने मिल के वो जम के गालियाँ सुनाई. और रात को लेकिन मम्मी के साथ मिल, के सारी मौसीयों ने चाची की सूद ब्याज सहित खबर ली. और इसमे मर्द औरत, उमर, रिश्ते का कोई फरक नही पड़ता था. वो किसी ना किसी का नेंदोई, जीजा, साला, या ननद भाभी लगती ही. जैसे ही गाना शुरू होता -अर्रे आया बेहन चोद आया, अपनी बहने चुदवा आया हम लोग समझ जाते कौन आया है, किसका नाम लगा के गालियाँ दी जा रही है जो कुछ बचा खुचा होता वो रस्मों मे बिना इस ख़याल के कि वहाँ लड़कियाँ, बच्चिया है. अगर घर के लोगो ने छोड़ भी दिया तो काम करने वाली नही छोड़ने वाली थी. और इस से हर रस्म और रसीली हो जाती. (मेरा मन तो बहुत कर रहा है, पर मे जान बूझ के उन रस्मों और गानों का ज़िकर नही कर रही क्योंकि एक तो मेने अपनी कहानी के update बहुत डिले कर दिये है और अब मे भी फास्ट फॉर्वर्ड कर के मैं बात पे आना चाहती हूँ). गाँव से बहुत लोग आए थे और माहौल मे जैसे पुराने ढंग का माहौल हो और जहा तक लोकचार और रीति रिवाज का सवाल है ज़्यादा कन्सेशन नही था, इसमे लास्ट वर्ड, दादी और घर की और बुज़ुर्ग औरतों का ही था.
 

Rekha rani

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Short but hot update
Short but good update.
Filhaal to yahi lag raha hai ki Sunil jo kuchh karega wo rape hi hoga kyunki Rekha ke dil me Sunil ke liye koi bhi sexual feeling nahi hai.
Aur agar aisa hua to ye sarasar galat hoga.
Bty without any conversation kisi ghatna ko realistic show karna koi choti baat nahi hai.

Bahut badhiya likha aapne.
Update was again outstanding & Amazing Rekha ji.
Rekha ji पहली बार किसी स्टोरी पे कमेंट कर रहा हूं आप शब्दो की जादूगरनी हैं निराशा त्याग कर अपडेट रेगुलर दे समय निकल कर
रेखा जी, आप एक बेहतरीन लेखिका हैं, हरयाणवी भाषा के तड़के के साथ लोगों को ऐसी कहानी कहीं और पड़ने को नहीं मिलेगी। आप लगातार updates भेजती रहें तभी लोगों का भी इंटरेस्ट बना रहेगा।
Update posted
 

Sanjuhsr

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अध्याय - 48

वो ये भी जानता था। कि उस का ये मकसद उस वक़्त तक नहीं पूरा हो सकता।जब तक वह अपनी सोई हुई बहन के जिस्म के ऊपर चढ़ कर उस की गरम फुद्दि से अपने जवान मोटे लंड को रगड़-रगड़ कर अपनी बहन की चूत को गीला ना कर दे। ये ही सोचते हुए सुनील ने अपनी नींद में मदहोश बहन के जिस्म का दोबारा से जायज़ा लिया।

रेखा की इस स्टाइल में सोने से उस की दोनों चूचे के दरमियाँ काफ़ी गॅप आ गया था। रेखा के सोने इस स्टाइल को देख कर सुनील के ज़हन में एक ख़्याल आया और वह आहिस्ता से अपनी सोती बहन के एक हाथ को पकड़ा और उस को खैंचता हुआ अपने नंगे लंड पर ला कर रख दिया। और बहन की हथेली में अपना लंड रख कर बहन के कोमल हाथों से मुठियाने लगा।

इस वक्त अपनी सोती बहन के गरम जिस्म को देख कर और उस के साथ मस्तियाँ कर-कर के सुनील इतना गरम हो चुका था। कि अपनी बहन की हथेली की बे इंतिहा गर्मी को अपने लंड पर महसूस करते ही सुनील के लिए अपने आप को कंट्रोल करना मुश्किल हो गया और एक झटके के साथ "अहह!" करते हुए सुनील के लंड ने अपना सारा माल अपनी बहन की मुठी के अंदर उडेल दिया।

अपने लंड को बहन की मुट्ठी के दरमियाँ इतनी जल्दी फारिग होता देख कर सुनील तो शरम से पानी-पानी हो गया। उस का खड़ा हुआ लंड मुरझा कर बैठने लगा। सुनील को अपने आप से शरम आने लगी। और अपने ऊपर लानत भेजते हुए उस ने एक दम अपने कपड़े उठाए और बहन को सोती छोड़ के वह कमरे से निकल आया।

अपने कमरे में लेट कर सुनील अपने और बहन के बारे में सोचने लगा। कि लाख कोशिश के बावजूद रेखडी उस के साथ चुदाई पर राज़ी नहीं हो रही। तो बेहतर है कि उसे उस के हाल पर छोड़ दिया जाए।

" दिल के अरमां आँसुओं में बह गये, हम वफ़ा कर के भी तेन्हा रह गये" ।

की तर्ज का एक शेर सुनील ने मन में बोला ,

" लंड के अरमां, मूठ लगा कर बह गये, हम लंड नंगा कर के भी, कंवारे रह गये।"

और उस ने ये तय कर लिया कि वह अब कभी ग़लती से भी अपनी बहन की चुदाई के बारे में सोचेगा भी नही।

भाई के कमरे से जाने के बाद मै काफ़ी देर अपने बिस्तर पर पड़ी बेखबर सोती रही।
फिर जब कुछ देर बाद मुझ को अपनी हथेली के ऊपर खुजली महसूस हुई। मेरी हथेली का वह हिस्सा सूखने के बावजूद मेरे अपने भाई का वीर्य मेरी उंगलियों पर चिपक-सा गया था

मुझ को ज्यों ही अहसास हुआ तो मै फॉरन उठी और बाथरूम में गई और अपने हाथ को अच्छी तरह से धो कर और अपने कमरे के दरवाज़े को फिर से लॉक लगा कर बिस्तर पर दुबारा सोने के लिए लेट गई।

अगले दिन सुबह ही कंगन बन्दन की और तेल की रसम थी, और इसी के साथ सारी रसमे शुरू होनी थी. और तेल और कंगन के बाद मै घर से बाहर नही निकल सकती थी.
हुआ ये कि आज सुबह सुबह दो चार दिन बाद दादी आई और उन के साथ गाँव से कुछ काम करने वालिया, औरते, मेरी चाची और एक दो गाँव की भाभी.

उन्होने सबसे पहले मुझे डाँट लगाई, क्या उदबिलाव की तरह टहलती रहती है. फिर मुझे प्यार से गले लगा के बोली कि अब तेरा कल ब्याह हो जायेगा, दुल्हन की तरह रहा कर.अब तू उच्छल कूद करने वाली लड़की थोड़ी है. फिर मम्मी का नंबर था सबसे ज़्यादा डाँट मम्मी को पड़ी कि शादी का घर ये लग ही नही रहा है, न कहीं ढोलक बज रही है और अभी तक दुल्हन को उबटन तक लगाना नही शुरू हुआ. उन्होंने मुझे न तो मालिश की और न उबटन लगाई.

फिर दादी बोली कि नाइन (नाऊ की लुगाई) को बुलावा भेजो दुल्हन की सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदारी तो उसी की है और फिर आज दोपहर में सारी रसम को शुरु किया गया।

मे अपने घर के आंगन में एक पटे पर बैठी थी। मेरे पैर के पास मे नाइन बैठी थी, हाथ मे तेल और उबटन की कटोरी लिए और औरतों ने एक एक कर मुझे हल्दी उबटन लगाना शुरु कर दिया। थोड़ा बहोत टाँग मे उबटन लगाया. लेकिन उसके आगे वो बढ़ना चाहती थी तो मेने सॉफ मना कर टाँगो में दर्द का बहाना बना दिया. सच तो ये है मुझे झिझक हो रही थी।

गाँव से आई एक चाची बोली "अर्रे, रेखा रानी. अभी से फटी पड़ रही है तो आगे क्या होगा. लेकिन चिंता मत करो मेरे हाथ से मालिश करा के और उबटन लगवा के तुम्हारी टांगे इतनी तगड़ी हो जाएगी, कि तेरा दूल्हा उसे चाहे जितनी देर तक उसे उठाए या फैलाए, कुछ फरक नही पड़ेगा."

और उन्होंने जैसे अपनी उंगलिओं मे तेल लेके लगाना शुरू किया, मेरी जो भी झिझक थी सब कुछ ही देर मे पिघल गया. मेरे पैरों, पिंडलियों, जाँघो की थकान तो गायब हो ही गई, मुझे लगने लगा कि जैसे मे एकदम हल्की हो गई हूँ. चाची का हाथ जब मेरे नितंबो पे पहुँचा, और उन्होंने अपने हाथों के बीच दोनो नितंबो को लेके मसलना शुरू किया तो मेरी पैंटी एकदम दरारों के बीच फँस गयी. मे झिझकी ज़रूर,मन किया कि मना करू पर इतना आराम लग रहा था और मना नही कर पायी. फिर भाभी ने उबटन लगाना शुरू किया, पहले पैरों पे फिर थोड़ा सा एक दूसरी कटोरी से कुछ अलग सा उबटन मेरे बूब्स के साइड मे लगा दिया.

मे अपने आप करवट बदल के पीठ के बल हो गयी. . मेरी पूरी देह मे एक नशा सा छा रहा था. एक अलग ढंग का उबटन ले के मेरे सीने पे हल्के हाथों से लगाया जा रहा था. (मुझे बाद मे पता चला कि वो अनार्दाने और अनार का एक ख़ास उबटन था जो बच्चे होने के बाद औरतों के सीने मे कसाव और शेप के लिए इस्तेमाल होता था) फिर उसे यहीं लगा हुआ छोड़ के फिर बाकी देह मे चंदन, हल्दी और सरसों का उबटन लगाना शुरू किया. एक घंटे के बाद फिर सीने पर लगा वो लेप छुड़ाया.

सीने पे वो ख़ास उबटन जब वो छुड़ाती तो चिढ़ाते हुए मेरे सीने को मसल देती और कहती तेरा दूल्हा ऐसे ही कस के मसलेगा. कयि बार जब वो मेरे निपल्स को छूती तो पता नही कैसी छुअन थी कि वो तुरंत चूची एरेक्ट हो जाती. फिर उसे पकड़ कर वो कहती, रेखा रानी, तेरे दूल्हे के तो भाग जाग गये जो इतने मस्त जोबन मिलेंगे उसको.

नीचे भी वो कोई मौका नही छोड़ती थी, कभी मेरी कुँवारी किशोर पंखुड़ियो को सहला देती तो कभी तेल लगाने के बहाने उंगली की टिप से छेद को छु देती. मे एक दम मस्ती से गिन-गिना जाती. और जब कभी मे उसे सीने को छुने से मना करती तो वो और कस के मसल के बोलती, "अर्रे बन्नो, ये तो जवानी के फूल हैं, तेरे दूल्हे के खिलौने. अर्रे वो तो इतने कस कस के मसलेगा कि तेरे पसीने छूट जाएँगे. सिर्फ़ हाथों से नही, होंठो से भी, चूमेगा, चुसेगा, चाटेगा और कच कचा के काटेगा. अब तेरे इन कबूतरो के उड़ने के दिन आ गये. और जब तेरे "वो दिन" होंगे ना, तो इन मस्त जोबन के बीच वो लंड डाल के चोदेगा भी."

मे शरमाती, गुस्सा होने का नाटक करती पर मन ही मन सोचती कि वो दिन कब आएँगे जब मे उनकी बाहों मे होंगी, चाची और भाभियो की उंगलिओं की तरह उन की ज़ुबान मे भी जादू था (नही मेरा और कुछ मतलब नही है, सिर्फ़ उनकी बातों से है). वो अपने अपने मर्द का किस्सा रस ले ले के पूरे डीटेल के साथ सुना रही थी. अर्रे आज आने के पहले बड़ी देर तक उसके टटटे चुस्ती रही. मेरे कुछ समझ मे नही आया, मे बोली.

"टटटे?? अर्रे इसका क्या मतलब ."

"अर्रे तू इसका मतलब नही जानती ससुराल मे नाम डुबोएगी, हम लोगों का. अर्रे लाडो, वो जो लटकता रहता है." मे समझ गई कि वो बॉल्स के बारे मे बात कर रही है. वो हंस के बोली और क्या,असली कारखाना तो यहीं है, माल बनाने का . और फिर वो बोली कि उसके बाद मेने उसके पीछे भी उसकी गांड को भी कस के चूसा.

"छी भाभी बड़ी गंदी हो तुम. वो कौन सी प्यार करने की जगह हुई.' मे बन के बोली.

"अर्रे मेरी बन्नो रेखा रानी," वो मेरे नितंबो को कस के मसल्ते बोली, "यही तो तुम नही जानती, गंदा सॉफ कुछ नही होता मज़ा लेना असली चीज़ है.और ये ट्रिक सीख लो तुम भी - उसे तो बहोत मज़ा आता है और मे भी एक दम जीभ अंदर कर के जब लंड एकदम थका हो ना कितना भी मुरझाया हो टट्टो और गांड के बीच मे चूमने चाटने से एकदम खड़ा हो जाता है. देखो जो चीज़ मर्द को अच्छी लगे, वो पता कर के, करना चाहिए. और आख़िर जब वो जोश मे होता है तो हम लोगों को भी तो मज़ा देता है, इसलिए बन्नो समझ लो फालतू का नखरा, या शरम करने से कोई फ़ायदा नही." ऐसे ही उबटन छुटाते उन्होंने मुझे एकदम दुहरा कर दिया. मेरे घुटने मेरे छातियों से लग गये. मे चीखी, ये "क्या कर रही हो छोड़ो ना."

"अर्रे लाडली जब वो ऐसे कर के चोदेगा ने तो लंड का टोपा सीधे बच्चे दानी से लगेगा, और क्या मज़ा आता है उस समय. और साथ साथ नीचे से ये चूत का दाना भी रगड़ ख़ाता है साथ साथ."

नितंबो पे उबटन का तेल लगाते हुए उन्होंने मेरे पीछे के छेद को भी पूरी ताक़त से कस के फैला के, वहाँ भी दो बूँद तेल अंदर चुवा दिया.

"हे क्या करती हो वहाँ क्यों तेल "

"अर्रे रेखा रानी जैसे मशीन के हर छेद मे तेल डालते है ना इस्तेमाल के पहले, उसी तरह.और तू क्या सोचती है यहाँ छोड़ेगा वो. तेरे इतते मस्त कसे कसे चूतड़ है - मेरे दूल्हे ने तो मेरे लाख मना करने के बाद भी पीछे वाले दरवाजा का बाजा बजा दिया था." और ये कह के थोड़ा सा उबटन लेके मेरे चूतड़ के बीचोबीच कस के रगड़ दिया.

औरतो ने मुझे सारी ट्रिक भी सीखा दी थी और ये भी कि मर्दों के "ख़ास ख़ास पॉइंट" कौन से होते है उन्हे कैसे छेड़ना चाहिए.

अब मै भी अच्छी ख़ासी खुल गयी थी और मेने पूच्छ लिया कि ये उबटन और मालिश शादी के पहले क्यों करते है. वो उस समय मेरे उरोजो से उबटन छुड़ा रही थी. उन्हे मसल के बोली,

"इसलिए बन्नो कि तुम अब तक सिर्फ़ लड़की थी लेकिन अब लड़की से दुल्हन बन चुकी हो और ये तेरे तन मन मे दुल्हन का एहसास कराता है, तुमको तैयार करता है दुल्हन की तरह बनने के लिए और इसके बाद तुम दुल्हन से औरत बन जाओगी."



"वो कैसे,.." मे अपनी जाँघो से उबटन छुड़ाने के लिए फैलाती हुई बोली.

"वो काम दूल्हे राजा का है. वो अपने सीने मे कस के भींच के, दबा के, रगड़ के रोज रात को कच कचा के प्यार करेगा ना. लेकिन पूरी औरत तुम उस दिन बन जाओगी जिस दिन वो तुम्हे गर्भिन कर देगा, तुम्हारे पेट मे अपने बच्चा डाल देगा."

"और, तुम अभी किस हालत मे हो." मेने उठते हुए उसे छेड़ा.

"थोड़ी दुल्हन थोड़ी औरत, लेकिन सबसे ज़्यादा मज़ा इसी हालत मे मिलता है बिना किसी डर के रोज" वो हंस के बोली.

वास्तव मे मुझे अलग सा एहसास होता रहता था. आँखो मे सपने, मन मे मुरादे, बस मन करता रहता था कि वो दिन कितनी जल्दी आ जाए. जब मे उनकी बाहों मे होऊ और वो कस कर, भींच कर..मेरे होंटो पे मेरे शरीर का हर अंग नेये ढंग से महसूस कराता मेरे उभार, मेरी छातियाँ मुझे खुद भारी भारी, पहले से कसी लगती, और हर समय मुझे उनका एहसास होता रहता और अक्सर मे सोच बैठती कि संजय कैसे मुझे बाहों मे लेंगे कैसे इन्हे कस के दबा देंगे लेकिन मे फिर खुद ही शर्मा जाती. और सारी देह मे एक अलग ढंग का रस्स खुमार, एक हल्की सी नेशीली सी चुभन और अब मेने जाना कि ये दुल्हन बनने का एहसास है.

फिर उबटन लगवा के और कंगन बंधवाने के बाद न्योता देने का काम शुरू हुआ, गाने के साथ, पहला न्योता देवता को मंदिर मे, दूसरा हमारे परिवार के गुरु को, फिर मेरे नेनिहाल और फिर सब को दिया गया और उस के बाद तो एक के बाद एक रस्मे, उड़द चुने की. मट्टी खोदने की। एक रस्म मे पितरों का भी आवाहन किया गया थी मुझे लगा कि जो बात दादी कह रही थी की जीवन के उस महत्व पूर्ण संक्रमण काल मे सिर्फ़ सारे सगे संबंधी ही नही, प्रक्रति और मेरे पूर्वज भी साथ साथ साथ है. और सबमे गाने और गाने से ज़्यादा गलियाँ और भाभीया किसी को बख़्श नही रही थी.

दो तीन घंटे के अंदर ही घर सारे औरतो, रिश्तेदारों से भर गया था..और हर किसी के आने पे पानी बाद मे पहले गालियाँ और गाने सबसे ज़्यादा तो जब मेरी छोटी मौसी आई तो मेरी सारी चाचियों ने मिल के वो जम के गालियाँ सुनाई. और रात को लेकिन मम्मी के साथ मिल, के सारी मौसीयों ने चाची की सूद ब्याज सहित खबर ली. और इसमे मर्द औरत, उमर, रिश्ते का कोई फरक नही पड़ता था. वो किसी ना किसी का नेंदोई, जीजा, साला, या ननद भाभी लगती ही. जैसे ही गाना शुरू होता -अर्रे आया बेहन चोद आया, अपनी बहने चुदवा आया हम लोग समझ जाते कौन आया है, किसका नाम लगा के गालियाँ दी जा रही है जो कुछ बचा खुचा होता वो रस्मों मे बिना इस ख़याल के कि वहाँ लड़कियाँ, बच्चिया है. अगर घर के लोगो ने छोड़ भी दिया तो काम करने वाली नही छोड़ने वाली थी. और इस से हर रस्म और रसीली हो जाती. (मेरा मन तो बहुत कर रहा है, पर मे जान बूझ के उन रस्मों और गानों का ज़िकर नही कर रही क्योंकि एक तो मेने अपनी कहानी के update बहुत डिले कर दिये है और अब मे भी फास्ट फॉर्वर्ड कर के मैं बात पे आना चाहती हूँ). गाँव से बहुत लोग आए थे और माहौल मे जैसे पुराने ढंग का माहौल हो और जहा तक लोकचार और रीति रिवाज का सवाल है ज़्यादा कन्सेशन नही था, इसमे लास्ट वर्ड, दादी और घर की और बुज़ुर्ग औरतों का ही था.
Awesome update, aakhir rekha bach gayi sunil se, sunil ke sath sath hum pathak ke bhi khade lund par dhokha ho gya, ma aur bahan bahari logo se chud gayi aur sunil bechara aise hi jhad gya,
Rekha ki shadi ki tayari shuru ho gai aur uski chudayi ki bhi aur chachi usko pahle hi sab traning de rahi hai ,
 
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शादी-ब्याह के रस्में रिवाज का वर्णन अद्भुत था । वैसे तो सनातन धर्म मे शादियाँ अनेकों प्रकार से होती है लेकिन अधिकांशतः रस्में मेल खाते है । मुझे एक तरह से शादी-ब्याह एक यज्ञ की तरह ही लगता है जो पुण्य कर्म भी है , संस्कार भी है , परम्परा भी है , कहीं सुख तो कहीं गम भी है , भोजन पकवान भी है , आनंद भी है , गीत संगीत भी है और थकावट भी है।
वर - वधु के लिए सुनहले सपने तो हैं ही ।

सुनील की हिम्मत शायद उसका साथ न दे सकी । उसके इन्सेस्ट फाॅरविडेन सेक्स के सपने अधूरे रह गए ।
उसके दिल के अरमां वास्तव मे आंसुओ मे बह गए ।
इसी गीत की अगली पंक्ति मै गुनगुना देता हूं -
" जिन्दगी एक प्यास बनकर रह गई 2.
प्यार के किस्से अधूरे रह गए ।
हम वफा कर के भी तन्हा रह गए ,
दिल के अरमां आंसुओ मे बह गए। "
बेचारा अपनी ही सगी बहन से शादी करना चाहता था । इसका मतलब वो रेखा को सिर्फ हवस के नजरिए से नही देखता था बल्कि वो उससे प्रेम भी करता था ।
लेकिन ऐसा सम्भव था ही नही । यह पुरी तरह वर्जित है।

बहुत खुबसूरत अपडेट रेखा जी।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
 

Rekha rani

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Awesome update, aakhir rekha bach gayi sunil se, sunil ke sath sath hum pathak ke bhi khade lund par dhokha ho gya, ma aur bahan bahari logo se chud gayi aur sunil bechara aise hi jhad gya,
Rekha ki shadi ki tayari shuru ho gai aur uski chudayi ki bhi aur chachi usko pahle hi sab traning de rahi hai ,
Bahut bahut shukriya, afsos hai aapko or sunil ko rekha ki jawani chakhne ka mouka chook gya. Lekin aap dono K lie purani sharab ki botle darshna devi ji, aap dono ko niraash nhi karegi:laughing:

Dhanyavaad
 
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Rekha rani

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बेहतरीन अब नई अपडेट कब पहले ही। कहानी लेट हो चुकी है
Dhanyavaad, aap isi tarah saath jude rahiye.
 
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