• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Incest शक या अधूरा सच( incest+adultery)

Status
Not open for further replies.

Rekha rani

Well-Known Member
2,496
10,582
159
अध्याय -- 51

सपनों के मुताबिक जब मैं कमरे में आती हूं तो मेरा पति मुझे कसकर गले लगाता है, चुंबनों की बौछार कर देता है और सारी रात मुझे प्यार करता रहता है. लेकिन वास्तविकता में, मेरे लिए ये बेहद तकलीफ़ भरा था, ऐसा लगा कि मेरे पूरे अस्तित्व को मेरे पति ने नकार दिया हो.

सुबह जब दरवाज़े पर मेरी जेठानी ने दस्तक दी तो मैं जाग गयी. मैने उन्हें अंदर आने को कहा. उनका नाम मीरा है. ये वही भाभी थी जो मुझे मेरे घर मे सासु मा के साथ देखने आई थी.

जेठानी ने आते ही अंदर बिस्तर पर चारो तरफ देखा और फिर मेरी तरफ देखा, उनके चेहरे पर मायूसी और थोड़ी परेशानी नज़र आई फिर मेरी पास आकर कहा कि नाश्ता तैयार है आप नाश्ता कर लीजिए.

मेरा कमरा घर के कोने मे था, ये एक बड़ा सा खुला हुआ घर था, जिसमे कई कमरे थे वो बरामदे मे आकर जुड़ते है,सभी कमरे एक ही लाइन मे थे और सबका एक ही कामन किचन, बाथरूम और टाय्लेट था.

मैं उठी और कामन बाथरूम की तरफ बढ़ गयी, इस बाथरूम के लिए मुझे अपने कमरे से थोड़ा बाहर जाना पड़ा. बाहर मेरी सास विमला देवी तख्त पर बैठी आलू छील रही थीं.

मेरी नज़र उनसे मिली फिर मैं बाथरूम की तरफ बढ़ गयी. शादी वाला घर था, दूर से आए हुए मेहमान अभी भी घर मे ही थे, मैं अपने साथ कुछ कपड़े लाई थी जो मैने नहा कर पहेन लिए और जब कमरे मे वापस गयी तो मेरे पति अभी भी सो रहे थे. मैं खामोश होकर बिस्तर के कोने मे बैठी रही. कुछ देर बाद मेरी सास मेरे कमरे मे आ गयी और अपने बेटे को उठाने लगी. लेकिन वो कहाँ उठने वाले थे.

मेरी सास मुझे दूसरे कमरे मे ले गयी और वहाँ मैने उनके साथ नाश्ता करने लगी. अजीब सी खामोशी थी, तभी सामने से बाथरूम में से बाहर निकल कर मेरे ससुर ओम प्रकाश जी अपना तोलिया लपेटे हुए हाथ में गुलाब के फूल की कुछ टूटी फटी पत्तियाँ लेकर मेरी सास को दिखाते हुए बोले..... " विमला, अपने घर में लेट्रिन में बैठ कर गुलाब का फूल कौन सूंघता है.. ????? ""

मेरी सास विमला देवी अपना माथा पीटते हुए ससुर से बोली .." बावली गांड में जरा सी भी लाज शर्म है कों नही, काल रात छोरे और बहू की सुहागरात थी... दोनों में किसी के चूतरो में गुलाब का फूल चिपक गया होगा और हगने बैठे तो टपक गया होगा...."
अपनी सास की ये बात सुनते ही मेरी हँसी निकल पड़ी, लेकिन मै लाज के मारे खुल के हँस ना पायी.... ह्म्म्म ह्म्म्म

नई बहू के रसोई के मुहुर्त होने के पूर्व मेरी सास मुझ को समझाती है, " रेखा आज स्वाग्ले (सुहागिनो का भोजन) है, देखो थकान के कारण सब मेहमान देर से उठेंगे, हम मिलकर जल्दी से सब काम निपटा लेंगे।तुम कढी, भात बना लेना । पूड़ी, सब्जी, हलवा, रायता आदि मैं फटाफट निपटा दूँगी। "


मै घबराहट में कढी में दुगना नमक व सब्जी में नमक डालना ही भूल गयी। सभी नई बहू के हाथ का भोजन चखने को उत्सुक थे। टेबल भी ऐसी सजी थी कि देख कर ही लार टपकने लगे। जैसे ही भोजन शुरू हुआ सब एक दूसरे का मुँह देखने लगे। फूफा ससुर फट से बोल पड़े, " कढी तो नमक की बनी है और सब्जी से तो नमक नदारद है।"

फूफा ससुर कि बात सुनते ही मुझे बड़ी शर्मिंदगी महसूस हो रही थी, मेरी आँख भी भर आई. . . . . मेरी सासू माँ बात संभालते हुए बोली, " अरे नंदोई जी ! मैं अब दो दो बहूओ की सास क्या बन गयी कि अभी से सठियाने लगी। मसालदानी में नमक नहीं था तो मैंने ही बड़ी बहु को कहा कि नमक मैं डाल दूँगी और छोटी बहू रेखा को टेबल सजाने का कह दिया। " और मेरी आँखों से ढलकते आंसू देख पल्लू से गाल पोछते हुए बोली, " देखो आटा लगा है। "

फिर सासु जैसे ही ससुर जी को पूड़ी परोसने लगी, वे बुद्बुदाए, " विमला हलवे में तो तुम्हारे हाथ का स्वाद आ रहा है। "

मुस्कुराते हुए सासु ने झट से मुझ को आदेश दिया," बहू, ससुर जी तुम्हारा सारा हलवा चट कर जाएगें, हमारे लिए शायद ही बचे। " मै, सासू माँ से भावुक होकर लिपटते हुए बोल पड़ी, " मम्मी जी ! अब बस भी...पापा और हलवा लाऊं। "

उसी पल से रिश्तों में नमक की मिठास ऐसी घुली कि मुझ को इस नए घर में मम्मी व पापा दोनों मिल गए। जेठानी एक कोने में खड़ी अपनी सास की साजिश समझ कर मुस्कुरा रही थी।

शाम चार बजे भजन और नई बहु की मुह दिखाई की रस्म थी। ये रसम् मोहल्ले वाले
और तमाम रिश्तेदारो की महिलाओ के लिए होती है. इसमे मेरी बहन अंजू भी आई थी क्योकि मेरी ससुराल के तरफ के रिश्ते से अंजू मेरी जेठानी बन गयी थी. वहाँ पर पहले से ही काफ़ी औरतें मौजूद थी, सब मुझे मूह दिखाई के नेग दे कर एक एक करके जा रहीं थी, मेरी बहन अंजू मुझसे मिलने के लिए बेताब थी. लेकिन मैने किसी पर ये ज़ाहिर नही होने दिया कि मेरे साथ रात मे क्या हुआ था. ये एक शर्म और सदमे वाली बात थी जिसे मैं किसी से शेअर नही करना चाहती थी. बनावटी मुस्कान के पीछे रात की कालिख और भयानक अंधेरा छुप गया. रात के राज़, राज़ ही रहे और दुनिया मे एक और लड़की सब की खातिर क़ुरबान हो गयी. लड़किया हमेशा से ही क़ुरबान होती रही हैं, क़ानून और धर्म चाहे कितना ही क्यूँ ना उन्हे हक़ दे लेकिन मर्दो के इस समाज मे औरतें हमेशा क़ुरबान ही होती रही हैं.

शाम को शादी की सारी रस्मे ख़तम हो चुकी थीं और धीरे धीरे सब मेहमान जाने लगे. पूरा घर लगभग खाली हो गया। मेरी सास ज़्यादा तर खामोश ही रही. शाम हो चुकी थी,मेरे पति संजय अब अपने पास पड़ोस के दोस्तो के साथ आँगन मे बैठे बात चीत कर रहे थे.

रात को मेरी जेठानी मेरे कमरे आ आई और कहने लगी.

" रेखा मैं जानती हूँ कि शायद आपकी पिछली रात ख़ुशगवार नही गुज़री थी,हमारे यहाँ सभी बड़ी परेशानी से गुज़र रहे है और शायद यही हमारी किस्मत है। तुम्हारे पति ने तुम्हें भोगा तो सही, स्त्रितव् का अहसास तो दिया भले ही द्वार गलत चुना, सही मार्ग के स्थान पर गलत दिशा चुनी। लेकिन पुरुषत्व तो है। मेरे पति तो मुझसे दूर भागते है, छूना पकड़ना तो दूर की बात है.


अगर कोई औरत अपने पहने हुए कपड़े भी ठीक करती है तो मर्द उसे ऐसा करते हुए देखने की कोशिश करता है. लेकिन अगर मैं कभी रात को पूरी तरह से अपने कपड़े उतार भी देती हूँ तो भी मेरे पति उदासीन बने रहते है. क्या मेरा वज़न उनके इस व्यवहार का कारण है? क्या उन्होंने मुझसे किसी दबाव में शादी की है? मुझे नहीं मालूम कि ये सब बातें किससे शेयर करूं. मैं अपने परिवार से बात नहीं कर सकती, क्योंकि सब यही सोचते कि मैं बहुत ख़ुश हूं.. .. .. और वो ये कहकर फूट फूट कर रोने लगी. मै जेठानी के करीब आई और उन्हें अपने सीने से लगा कर मुझे चुप करने लगी.

इतने मे बाहर से मेरी सास की आवाज़ आई तो जेठानी आँसू पोछ कर सही तरीके से बैठ गयी.

मेरी सास मेरे करीब आकर बैठ गयी, उन्होने इस वक़्त अपना मोटा चस्मा नही पहना था और वो बड़ी शर्मिंदा सी लग रहीं थी, ये वो औरत नही लग रहीं थी जो मुझे देखने आई थी, ये तो कोई मज़लूम बेसहारा सी एक ख़ौफजदा सी ज़माने की सताई औरत की तरह लग रही थीं, उन्होने मेरी और जेठानी की तरफ इस तरह देखा जैसे वो अपने किसी गुनाह की माफी माँग रही हों. उन्होने आते ही जेठानी को बाहर जाने का इशारा किया.

जेठानी के जाते ही वो भी मुझसे लिपट गयी. और एक मा की तरहा मेरे सर पर हाथ रख दिया.

फिर कहने लगी
"मेरी बच्ची मैं तुझे यकीन दिलाती हूँ कि मैं तेरी ज़िंदगी बर्बाद नही होने दूँगी बस यकीन रख और थोड़ा वक़्त दे"

मैं: "मम्मी जी , मुझे उम्मीद है कि मेरे साथ बुरा नही होगा"

सास "शाबाश बहू, तुझसे यही उम्मीद है"

फिर रात आ गयी और मेरे पति फिर मेरे कमरे मे दाखिल हुए. मैं अभी लेटी ही थी कि उनकी आवाज़ आई "सो गयी क्या तुम?"

और मैं घबरा कर उठ गयी और उनकी तरफ देखा. आज मुझे कोई और इंसान नज़र आया. ये तो मेरे पति संजय ही थे लेकिन आज शराब् के नशे मे नही लग रहे थे. नशा इंसान को क्या से क्या बना देता है. ये इंसान चेहरे पे हल्की सी मुस्कुराहट. ऐसा लगता था कि वो मुझसे कह रहा हो कि "रेखा तुम कहाँ खो गयी थीं". उनकी मुस्कुराहट ने जैसे मेरे सारे घाव भर दिए... .

एक पत्नी को अपने पति से चाहिए ही क्या होता है, लजीज भोजन और अजीज चोदन (बस दो जून की रोटी और थोड़ा सा प्यार) इसमे ही वो अपनी जन्नत ढूँढ लेती है और इसके सिवा उसे किसी और चीज़ की चाहत नही होती.

मेरे पति मेरे सामने खड़े मुस्कुरा रहे थे और मैं सर झुकाए बिस्तर पर खामोशी से दिल की धड़कन को रोकने मे लगी थी. पता ही नही चला कि कब वो मेरे सामने आकर बैठ गये और मेरी ठोडी उठा कर मेरी गहरी डूबी हुई आँखो को फिर से उभारने लगे. मैं खुश थी लेकिन थोड़ी घबराई हुई थी. एक एक पल जैसे पहाड़ मालूम पड़ रहा था,मैं कमरे मे सुई के गिरने की आवाज़ सुन सकती थी,
एक हसीन लम्हा धीरे धीरे मेरी पॅल्को के नीचे से गुज़र रहा था.इतने मे मुझे मेरे हसीन ख्वाब से मेरे पति ने जगा दिया. उन्होने हल्के से लहजे मे कहा।


"कितना बेवकूफ़ हूँ मैं जो शराब का नशा करता हूँ मुझे तो इन आँखो का नशा करना चाहिए" मुझे कल पी कर नही आना चाहिए था, दर असल मेरे दोस्तो ने मुझे ज़बरदस्ती पिला दी, कम्बख़्त कहीं के, तुम मुझसे नाराज़ तो नही हो?

मैं: नही तो

संजय: "झूठी कहीं की, ऐसा भी कभी होता है कि, पत्नी पति के पीने पर नाराज़ ना हो"

मैं:"मैं आपके शराब पीने पर नही बल्कि आपके मुझे गौर से देखे बिना ही सो जाने पर परेशान थी"

संजय: "हां, होना भी चाहिए, आख़िर बीवी बन कर आई हो, लेकिन जानती हो मैं बचपन से ही सही वक्त पर गलत काम करता आ रहा हूँ इसलिए मैं लगातार हारता रहा हूँ, कई चीज़ें मैं जानबुझ कर हारा,कई चीज़ें ना चाहते हुए भी लेकिन मैं हारता ज़रूर रहा हूँ.

मैं: क्या मैं आपसे एक सवाल कर सकती हूँ
संजय: क्यूँ नही, पूछो एक क्या दो सवाल पूछो।
मैं: क्या आप किसी और से मोहब्बत करते हैं?
संजय: हां.
ये सुनकर मेरे पैरो तले ज़मीन खिसक गयी, अब यही इंसान जो मुझे प्यारा लगने लगा था, जो दो जुमलो से मुझे जन्नत दिखा रहा था, एक ही हां से मुझे और मेरे वजूद को हिला गया, मैं बेशख्ता ही अचानक सर उठा कर उन्हे देखने लगी,इस पर वो खिल खिला कर हंस पड़े और हस्ते हुए बोले अर्रे मेरी "भोली जटनी" मैं अपने मा बाप, भाई भाभी, रिश्तेदार सब से मोहब्बत करता हूँ.

मैं: नहीं मैं कुछ और पूछ रही थी.
संजय: जानता हूँ, मैने मोहब्बत की थी अपने स्कूल की एक लड़की से, लेकिन कभी ज़बान पर नयी आ पाई,वो बड़े घर की लड़की थी और "ऊँची जाति" की, बस दिल मे था कि उससे बात करूँ, वो थी ही इतनी खूबसूरत.

मैं: तो क्या मैं खूबसूरत नही हूँ
संजय: तुम तो एक बला हो, कयामत हो, मुझे तो यकीन ही नही होता कि एक इतनी खूबसूरत हसीन लड़की मेरी ज़िंदगी मे आई है, अब दिल चाहता है कि तुम्हारे दामन मे सर रख कर खूब रोया जाए और अपने दिल के सारे राज़ खोल दिए जायें, मैं तुममे अपनी ख़ुसी और ज़िंदगी तलाश करना चाहता हूँ, बोलो दोगि मेरा साथ....???

मैं: जी बिल्कुल
संजय: मुझे इतनी जल्दी समझना आसान नही है, खैर अगर तुम्हे नींद आ रही है तो सो जाओ.

मैं खामोश रही.
संजय: क्या तुम,,,,क्या मैं,,,

मैं: क्या कहना चाहते हैं?
संजय: मुझसे नही कहा जाता,,उफ़फ्फ़

मैं: क्या नही कहा जाता
संजय: मैं तुम्हे अपने सीने से लगा कर सोना चाहता हूँ.

मैं खामोश रही.
संजय: शायद लड़की की खामोशी मे हां होती है. "ये बात उन्होने इतनी मासूमियत से कही कि मुझे हसी आ गयी."

संजय: हँसी तो फँसी.
मैं अब खिल खिला का हंस पड़ी.
ह्म्म्म ह्म्म्म ह्म्म्म

उन्होने मुझे अचानक से अपनी बाहों मे खींच लिया और सीधा मे गालो को चूमने लगे बस थोड़ी सी पीठ और हल्की सी चोली पे उनकी उंगलियो का अहसास मेरी पीठ पे हो रहा था, और मैं उनकी बाहों मे जैसे किसी लालची बच्चे को मिठाई मिल जाय जिसकी उसे बहुत दिनो से चाह हो पर वह डर रहा हो झिझक रहा हो. उनकी निगाहे बार फिसल के मेरी चोली के उभार पे चोली से बाहर झाँकते मेरे सीने के उपरी भाग और कसी चोली से दिखते गहरे क्लीवेज मे जा के अट्क जाती, लेकिन फिर कुछ सोच के वो नजरे सहम जाती. उनकी आँखे मेरी आँखो मे झाँक रही थी, जैसे आगे बढ़ने की इजाज़त माँग रही हो.


लेकिन मेरी पलके तो खुद शरम के बोझ से बार बार झुक जाती. और उनका पहला चुंबन मेरी पॅल्को ने ही महसूस किया. बस उनके होंठ बहुत हिम्मत कर के उन्होने छू भर दिया, लेकिन दो तीन हल्के चुंबनो के बाद उन्होने बड़ी बड़ी से मेरी दोनो पॅल्को को कस के चूम के बंद कर दिया, जैसे उनके होंठ कह रहे हो, मैं इन कजरारे नयनो की सारी लाज हर के, उसमे ढेर सारे सपने भर दे रहा हू.


"मै सोई थी गैर मर्द के साथ, मेरे जिस्म को भोगने की कोशिश की गयी घर की चार दीवारी में, मगर अब मिला मुझे वो प्रेमी जो चूम रहा था महज मेरी आँखे, मै आज फिर से "कुवारी" हो गयी।" मेरी आँखे अभी उनके चुंबन के स्वाद की आदि भी नही हो पाई थी, कि उन्होने हल्के से मेरे माँग को जहा सिंदूर की तरह वो बेस था, चूम लिया. और फिर माथे की बिंदी पे मेने अपने को अब उनकी बाहों के हवाले कर दिया था. मेरी मूंदी पलके बस अभी तक स्वाद ले रही थी और मैं उसे खोल के इस सचमुच के ख्वाब को खराब नही करना चाहती थी.


जैसे किसी चोर को एक दो छोटी छोटी चोरिया करने के बाद आदत पड़ जाय और न रोके जाने पे उसकी हिम्मत बढ़ जाए, यही हालत अब इनके होंठो की भी थी.


माथे से वो सीधे मेरे गोरे गुलाबी गालो पे आ के रुके. लेकिन बस छू के हट गये शायद उन्हे लगा कि मैं कुछ.. पर मेरी हालत ऐसी कहाँ थी. और अगली बार फिर कुछ देर तक.. और फिर दूसरे गाल पे. उनकी बाहों मे बँधी फँसी मैं मेरे दिल की धड़कने उनके दिल की धड़कनो की रफ़्तार से चल रही थी. और फिर मेरे होंठो पे पहली बार.. एक अंजान सा.. लेकिन चिर प्रतीक्ष्हित स्वाद नही ऐसा नही कि उन्होने कस के चूम लिया हो.. लेते भी तो मैं कहाँ मना करती..


जब दुबारा उन्होने चूमा तो उनके होंठ एक पल ठहर गये और आज तक मुझे उस पहले चुंबन का स्वाद याद है. मेरे होंठ, बस उस के बाद से आज तक मेरे नही रहे. उसी दिन मेने जाना कि, कैसे और क्यो, जब मुँह का घूँघट उठा, गुलाब की कली को सूरज की किरण चूमती है तो वो कैसे खिल उठती है,


मेने सोचा था कि मैं भी उनके चुंबन का जवाब चुंबन से दूँगी लेकिन दो तीन चुंबनो के बाद कही जाके हल्के से लरज के मेरे होंठ अपनी स्वीकारोक्ति दे पाए. अभी मेरे होंठो ने हिम्मत बढ़ाई ही थी कि, उनके होंठो ने मेरी चिबुक के गहरे गढ्ढे मे, जो तिल था उसे चूम लिया. और उसी के साथ उनकी उंगलियाँ मेरी केले के पत्ते ऐसी चिकनी पीठ पे फिसल रही थी.


(मेरी पीठ के बीच मे गहरी नली ऐसी है, जो कहते है कि एक कामुक नारी की निशानी होती है और उनकी उंगलिया वहाँ भी.) उसे छिपाने धकने आँचल ने कब का साथ छोड़ दिया था. सिर्फ़, चोली को बांधने वाली एक पतली सी स्ट्रिंग थी जो थोड़ी सी रुकावट डाल रही थी. उनकी उंगलियो के स्पर्श और मेरी सारी देह मे तूफान उठ रहा था. तभी अचानक उनके होंठ, मेरे गले से होते होते फिसल के, मेरे उभारो के उपरी भाग पे रुके.


लेकिन बस वो छूकर हट गये. जैसे कोई भौंरा, किसी पंखुड़ी पे जाके तुरंत हट जाय ये सोचते हुए कि वो कही वो उसका भार बर्दाश्त कर पाएगी कि नही. और फिर मुझे बिस्तर पर लिटा कर मुझसे कस कर चिपक गये, मैं इस के लिए तैयार ना थी और उनसे कहने लगी कि मैं अपने गहने उतार लेती हूँ.


इस पर उन्होने मुझे अलग कर दिया और मेरी तरफ देखने लगे, मैने उन्हे देखे बिना अपने सारे ज़ेवर उतार कर अलमारी मे रख दिए और बिस्तर पर उनके करीब आ कर लेट गयी. उन्होने मुझे फिर से बाहों मे कस लिया और उनके हाथ मेरी पीठ पर थे और धीरे धीरे वो मेरे चोली के बटन खोलने लगे.मैने हाथ पीछे लेजकर उन्हे रोकना चाहा ही था कि उन्होने अपने एक हाथ से मेरे हाथ रोक लिए. अब चेहरे से अपने होंठ हटा कर उन्होने मेरे होंठो पर अपने होंठ रख दिए और मेरे निचले होंठ को अपने उपर के होंठ से चूसने लगे, मेरे सारे बदन मे झुरजुरी सी होने लगी, आज तक किसी ने मेरे होंटो पर इस तरहा किस नही किया था, मैं भी उनका साथ देने लगी, अब उन्होने मेरे चोली के सारे बटन खोल दिए थे और अब मेरे चोली को निकालना चाहते थे,इसके लिए उन्होने मुझे थोड़ा दूर किया तो मेरी आँखें उनकी आँखो से मिली और मैने शरमा कर अपनी आँखें बंद कर दी. एक झटके मे मेरी चोली उतर गयी और फिर दोबारा उन्होने उसी तरहा मेरी ब्रा के हुक भी खोल दिए और मेरी ब्रा को मेरे बदन से आज़ाद किया. मैने अपने दोनो हाथ अपने सीने पे लगा लिए लेकिन उन्होने फिर बड़ी तेज़ी से मेरे हाथ हटा दिए. मैं बहुत शर्म महसूस कर रही थी, लेकिन अब उनका ध्यान मेरी आँखो पर नही बल्कि मेरे नंगे सीने पर था.


अब उनके हाथ मेरे नर्म सीने पर आ गये, जिससे मेरी मूह से अया सीईईईईई की आवाज़ आई. अब उन्होने मुझे मेरी पीठ के बल लिटा दिया और मेरे निपल्स पर अपना मूह रख दिया, ऐसा अहसास मुझे पहले नही हुआ था, अब मैं अपने आपे मे ना रही और उनके सर को अपने सीने मे दबाने लगी ऐसा लगा जैसे मैं किसी तेज़ धारा मे बही जा रही हूँ. उनका एक हाथ मेरे दूसरे सीने पर था.

मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी चूत (यौनि) मे से कुछ रिस रहा है. अब उन्होने मेरी लहगे के नाडे मे हाथ डाला जिसके लिए मैं तैयार ना थी, एक झटके मे मेरा लहगा खुल गया.
वो अब उठ गये और मेरे लहगे को नीचे कर दिया. मेरे जिस्म पर पर मेरी पैंटी के अलावा कुछ ना था, उन्होने एक नज़र मेरी गोरी टाँगो को देखा और फिर मेरी पैंटी की एलास्टिक को पकड़ कर मेरी पैंटी नीचे करने लगे, मैने कस कर अपनी पैंटी को पकड़ लिया लेकिन उनकी ज़िद के आगे कुछ ना कर सकी. तुरंत उन्होने मेरी टाँगो के बीच बैठ कर मेरी पैंटी नीचे सरका दी.

अब मैं बिस्तर पर बिल्कुल नंगी लेटी थी और दोनो हाथो से अपना मूह छिपाए थी. मैं शर्म से गढ़ी जा रही थी. आज तक मुझे किसी ने ऐसी हालत मे देखो हो ये मुझे याद नही है. कुछ देर वो इसी तरहा देखते रहे और एक उंगली मेरी टाँगो के बीच मे ले गये.मैं एक दम सिसक उठी, हाअइईई,उफफफफफफफफफ्फ़,सीईईईईई

संजय: तुम्हारी चूत तो बड़ी शानदार है. इतनी गुलाबी और भरी हुई.

मैं कुछ बोल ही ना सकी, कुछ देर तक कोई हरकत ना हुई तो मैने अपने हाथ हटा कर देखना चाहा तो क्या देखती हूँ कि मेरे पति अपने सारे कपड़े उतार चुके थे और बिल्कुल नंगे मेरी टाँगो के बीच मे आकर बैठ गये. अब उन्होने मेरी टाँगो को हवा मे उठाया और अपना औज़ार मेरे मुहाने पर रख दिया.

कुछ देर वो उसे इसी तरहा रगड़ते रहे और फिर अचानक उन्होने एक ज़ोर का झटका मारा और पूरी तरह मेरे अंदर दाखिल हुए, ये इतनी ज़ोर का धक्का था कि मैं चीख उठी,ऐसा लगा कि किसी तेज़ ब्लेड ने मेरी खाल को अलग कर दिया हो. संजय शायद इस बात के लिए तैय्यार थे और उन्होने धक्का देते ही मेरे मूह पर हाथ रख दिया जिससे मेरी चीख कमरे मे ही रही.अब वो लगातार धक्के दिए जा रहे थे और मैं जैसे सातवे आसमान मे थी, अब मैं खुल कर आवाज़ निकाल रही थी,, उफफफफफफफफफफफफफ्फ़,हइई
,आआआआआआअहह, सीईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई

ये लगभग कुछ देर चला होगा कि मुझे लगा की मुझमे से कोई फव्वारा फूटने वाला हो और अचानक मेरे अंदर से गाढ़ा चिपचिपा पानी निकल पड़ा, इस अनोखे से एहसास ने ना जाने मुझे शुरुआत मे हुआ दर्द भुला दिया था, मुझे अपनी बहेन अंजू की बात याद आई कि "आज की रात के बाद तू कुँवारी नही रहेगी"

कुछ देर मे संजय ने भी एक फव्वारे मेरे अंदर छोड़ दिया और मुझपर ही लेट कर वो अपनी सांसो को अपने क़ब्ज़े मे करने लगे. हम कुछ देर इसी तरहा लेटे रहे और
फिर अपने कपड़े पहेन कर सो गये.

मेरी ज़िंदगी की ये सुबह एक नया रंग और रूप लेकर आई थी. सुबह हो चुकी थी लेकिन फिर भी ये एक हसीन ठंडी रात की तरहा थी जिसमे चाँद और तारे चारो तरफ मीठी ठंडी रोशनी हर तरफ फैला रहे होते हैं. हर तरफ कोई रात रानी का पौधा खुसबु फैला रहा होता है. ठंडी हवा जैसे कोई मीठा राग गा रही होती है और जैसे कोई जोड़ा बहुत दिनो बाद मिला होता है और उस रात मे बाहों मे बाहें डाले एक दूसरे से लिपटा हुआ चाँद की तरफ देख रहा होता है. वो ऐसा नज़ारा होता है जैसे वक़्त अब कोई मायने नही रखता और ऐसा लगता है जैसे दुनिया की भाग दौड़ और दुख तकलीफे हमेशा के लिए ख़तम हो चुकी हैं. ऐसा लगता है कि जैसे अब दुख, तकलीफ़, घबराहट, बेचैनी, डर, दर्द सब फना हो चुके हैं और अब सिर्फ़ दो प्यार करने वाले हमारी इस नई जन्नत मे एक दूसरे के साथ हमेशा हमेशा के लिए खुश रहेंगे.
 

Rekha rani

Well-Known Member
2,496
10,582
159
Waiting next
परिपुर्ण जैसा कुछ भी नहीं होता इस जगत मे
मानविय आकान्क्षाओं की सूची का कोई ना कोई टिक बॉक्स खाली रह ही जाता है और हालात के आगे बेबस इन्सान एक ढोंग भरे सन्तोष का दिखावा करता है कि वो खुश है मगर ये कुछ ना मिलने का , कुछ छूट जाने का जो भाव है वो भीतर कही दबा रह जाता है ।
सामाज की भेड़चाल भरी व्यवस्था मे खुद की छवियों को एक परिपक्वता का रूप देते ज्यादातर लोग ये दबी हुई भावना व्यव्हार के किसी अन्य रूप मे बाहर आती है ।
मगर मै ऐसे रिश्ते नाते से सहमत नही ।
मनुष्य हो चाहे स्त्री या पुरुष
समझौते का रिशता है बराबर का अधिकार मिलना चाहिए ।
होश मे लिए गये फैसले है तो बेहोशी मे कोई काम क्यू ।
जिस दशक मे ये कहानी चल रही है उस समय महिला को अपनी पवित्रता साबित करने के आमतौर सुहागरात सफेद बेडशीट पर मनानी पड़ती थी और सुबह अगर उसपे खून के धब्बे ना हो तो उसको चरित्रहीन समझ लिया जाता था । ये सब क्रियाएं घर की औरते ही करती ।
नारी का जितना अपमान और शोषण नारी स्वयं करती है उतना कोई ना करता है
पुरुष कामी जरुर है मगर वो ली गयी जिम्मेदारीओ और जुड़े रिश्तो की खामियां भुला कर बस प्रेम देता है ।

रेखा की फिल्मी दुनिया के तराने अभी पूरे नही हुए
मगर पुरुष प्रेम पिपासु होता है , वो पत्नी की जरा सी आंखो की शरारत से ही कामुक हो उठेगा ।
रेखा के पास मौका है अब अपने हाथ मे लगाम लेने का
कुछ लोगो को अपनी कदर ब्तानी पड़ती है
प्रेम सिखाना पड़ता है

उम्मीदन रेखा जैसी होनहार लड़की ये समझेगी ।
रेखा की फर्स्ट नाइट , मतलब उसकी सुहागरात कुछ अच्छी नही रही । हसबैंड ने गुदा मैथुन किया और वो भी वगैर पत्नी के इच्छा के । एक ऐसा अप्राकृतिक सेक्स जो भारत मे अपराध की श्रेणी मे माना जाता हे ।
इस तरह का सेक्स कई लोगों के लिए पंसदीदा सेक्स हो सकता है लेकिन यह तभी स्वीकृत है जब दोनो युगल की रजामंदी हो और यह चीज दोनो का प्राइवेट बना रहे।

लेकिन कोई भी लड़की यह सपने मे भी नही सोच सकती कि उसका सुहागरात इस तरह से हो । यह बहुत बहुत ही गलत था । यह सुहागरात नही था । यह एक मर्द का विकृत सेक्सुअल हवस और विकृत सेक्सुअल मानसिकता था।
सुहागरात एक हजार दिन भी न हो पाए , कोई वांदा नही लेकिन जब हो तो यह लड़के का कर्तव्य है कि वो इसे सही तरीके से करे । पत्नी का दिल जीतने की कोशिश करे। पत्नी को सेक्सुअली संतुष्ट करे ।

यह अध्याय रेखा के लिए कोई बढ़िया संदेश लेकर नही आया।
अपडेट हमेशा की तरह वाह वाह था ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट रेखा जी।
Nice writing ... waiting for next
Nice update
Update posted
 

DREAMBOY40

सपनों का सौदागर 😎
7,461
20,638
174
अध्याय -- 51

सपनों के मुताबिक जब मैं कमरे में आती हूं तो मेरा पति मुझे कसकर गले लगाता है, चुंबनों की बौछार कर देता है और सारी रात मुझे प्यार करता रहता है. लेकिन वास्तविकता में, मेरे लिए ये बेहद तकलीफ़ भरा था, ऐसा लगा कि मेरे पूरे अस्तित्व को मेरे पति ने नकार दिया हो.

सुबह जब दरवाज़े पर मेरी जेठानी ने दस्तक दी तो मैं जाग गयी. मैने उन्हें अंदर आने को कहा. उनका नाम मीरा है. ये वही भाभी थी जो मुझे मेरे घर मे सासु मा के साथ देखने आई थी.

जेठानी ने आते ही अंदर बिस्तर पर चारो तरफ देखा और फिर मेरी तरफ देखा, उनके चेहरे पर मायूसी और थोड़ी परेशानी नज़र आई फिर मेरी पास आकर कहा कि नाश्ता तैयार है आप नाश्ता कर लीजिए.

मेरा कमरा घर के कोने मे था, ये एक बड़ा सा खुला हुआ घर था, जिसमे कई कमरे थे वो बरामदे मे आकर जुड़ते है,सभी कमरे एक ही लाइन मे थे और सबका एक ही कामन किचन, बाथरूम और टाय्लेट था.

मैं उठी और कामन बाथरूम की तरफ बढ़ गयी, इस बाथरूम के लिए मुझे अपने कमरे से थोड़ा बाहर जाना पड़ा. बाहर मेरी सास विमला देवी तख्त पर बैठी आलू छील रही थीं.

मेरी नज़र उनसे मिली फिर मैं बाथरूम की तरफ बढ़ गयी. शादी वाला घर था, दूर से आए हुए मेहमान अभी भी घर मे ही थे, मैं अपने साथ कुछ कपड़े लाई थी जो मैने नहा कर पहेन लिए और जब कमरे मे वापस गयी तो मेरे पति अभी भी सो रहे थे. मैं खामोश होकर बिस्तर के कोने मे बैठी रही. कुछ देर बाद मेरी सास मेरे कमरे मे आ गयी और अपने बेटे को उठाने लगी. लेकिन वो कहाँ उठने वाले थे.

मेरी सास मुझे दूसरे कमरे मे ले गयी और वहाँ मैने उनके साथ नाश्ता करने लगी. अजीब सी खामोशी थी, तभी सामने से बाथरूम में से बाहर निकल कर मेरे ससुर ओम प्रकाश जी अपना तोलिया लपेटे हुए हाथ में गुलाब के फूल की कुछ टूटी फटी पत्तियाँ लेकर मेरी सास को दिखाते हुए बोले..... " विमला, अपने घर में लेट्रिन में बैठ कर गुलाब का फूल कौन सूंघता है.. ????? ""

मेरी सास विमला देवी अपना माथा पीटते हुए ससुर से बोली .." बावली गांड में जरा सी भी लाज शर्म है कों नही, काल रात छोरे और बहू की सुहागरात थी... दोनों में किसी के चूतरो में गुलाब का फूल चिपक गया होगा और हगने बैठे तो टपक गया होगा...."
अपनी सास की ये बात सुनते ही मेरी हँसी निकल पड़ी, लेकिन मै लाज के मारे खुल के हँस ना पायी.... ह्म्म्म ह्म्म्म

नई बहू के रसोई के मुहुर्त होने के पूर्व मेरी सास मुझ को समझाती है, " रेखा आज स्वाग्ले (सुहागिनो का भोजन) है, देखो थकान के कारण सब मेहमान देर से उठेंगे, हम मिलकर जल्दी से सब काम निपटा लेंगे।तुम कढी, भात बना लेना । पूड़ी, सब्जी, हलवा, रायता आदि मैं फटाफट निपटा दूँगी। "


मै घबराहट में कढी में दुगना नमक व सब्जी में नमक डालना ही भूल गयी। सभी नई बहू के हाथ का भोजन चखने को उत्सुक थे। टेबल भी ऐसी सजी थी कि देख कर ही लार टपकने लगे। जैसे ही भोजन शुरू हुआ सब एक दूसरे का मुँह देखने लगे। फूफा ससुर फट से बोल पड़े, " कढी तो नमक की बनी है और सब्जी से तो नमक नदारद है।"

फूफा ससुर कि बात सुनते ही मुझे बड़ी शर्मिंदगी महसूस हो रही थी, मेरी आँख भी भर आई. . . . . मेरी सासू माँ बात संभालते हुए बोली, " अरे नंदोई जी ! मैं अब दो दो बहूओ की सास क्या बन गयी कि अभी से सठियाने लगी। मसालदानी में नमक नहीं था तो मैंने ही बड़ी बहु को कहा कि नमक मैं डाल दूँगी और छोटी बहू रेखा को टेबल सजाने का कह दिया। " और मेरी आँखों से ढलकते आंसू देख पल्लू से गाल पोछते हुए बोली, " देखो आटा लगा है। "

फिर सासु जैसे ही ससुर जी को पूड़ी परोसने लगी, वे बुद्बुदाए, " विमला हलवे में तो तुम्हारे हाथ का स्वाद आ रहा है। "

मुस्कुराते हुए सासु ने झट से मुझ को आदेश दिया," बहू, ससुर जी तुम्हारा सारा हलवा चट कर जाएगें, हमारे लिए शायद ही बचे। " मै, सासू माँ से भावुक होकर लिपटते हुए बोल पड़ी, " मम्मी जी ! अब बस भी...पापा और हलवा लाऊं। "

उसी पल से रिश्तों में नमक की मिठास ऐसी घुली कि मुझ को इस नए घर में मम्मी व पापा दोनों मिल गए। जेठानी एक कोने में खड़ी अपनी सास की साजिश समझ कर मुस्कुरा रही थी।

शाम चार बजे भजन और नई बहु की मुह दिखाई की रस्म थी। ये रसम् मोहल्ले वाले
और तमाम रिश्तेदारो की महिलाओ के लिए होती है. इसमे मेरी बहन अंजू भी आई थी क्योकि मेरी ससुराल के तरफ के रिश्ते से अंजू मेरी जेठानी बन गयी थी. वहाँ पर पहले से ही काफ़ी औरतें मौजूद थी, सब मुझे मूह दिखाई के नेग दे कर एक एक करके जा रहीं थी, मेरी बहन अंजू मुझसे मिलने के लिए बेताब थी. लेकिन मैने किसी पर ये ज़ाहिर नही होने दिया कि मेरे साथ रात मे क्या हुआ था. ये एक शर्म और सदमे वाली बात थी जिसे मैं किसी से शेअर नही करना चाहती थी. बनावटी मुस्कान के पीछे रात की कालिख और भयानक अंधेरा छुप गया. रात के राज़, राज़ ही रहे और दुनिया मे एक और लड़की सब की खातिर क़ुरबान हो गयी. लड़किया हमेशा से ही क़ुरबान होती रही हैं, क़ानून और धर्म चाहे कितना ही क्यूँ ना उन्हे हक़ दे लेकिन मर्दो के इस समाज मे औरतें हमेशा क़ुरबान ही होती रही हैं.

शाम को शादी की सारी रस्मे ख़तम हो चुकी थीं और धीरे धीरे सब मेहमान जाने लगे. पूरा घर लगभग खाली हो गया। मेरी सास ज़्यादा तर खामोश ही रही. शाम हो चुकी थी,मेरे पति संजय अब अपने पास पड़ोस के दोस्तो के साथ आँगन मे बैठे बात चीत कर रहे थे.

रात को मेरी जेठानी मेरे कमरे आ आई और कहने लगी.

" रेखा मैं जानती हूँ कि शायद आपकी पिछली रात ख़ुशगवार नही गुज़री थी,हमारे यहाँ सभी बड़ी परेशानी से गुज़र रहे है और शायद यही हमारी किस्मत है। तुम्हारे पति ने तुम्हें भोगा तो सही, स्त्रितव् का अहसास तो दिया भले ही द्वार गलत चुना, सही मार्ग के स्थान पर गलत दिशा चुनी। लेकिन पुरुषत्व तो है। मेरे पति तो मुझसे दूर भागते है, छूना पकड़ना तो दूर की बात है.


अगर कोई औरत अपने पहने हुए कपड़े भी ठीक करती है तो मर्द उसे ऐसा करते हुए देखने की कोशिश करता है. लेकिन अगर मैं कभी रात को पूरी तरह से अपने कपड़े उतार भी देती हूँ तो भी मेरे पति उदासीन बने रहते है. क्या मेरा वज़न उनके इस व्यवहार का कारण है? क्या उन्होंने मुझसे किसी दबाव में शादी की है? मुझे नहीं मालूम कि ये सब बातें किससे शेयर करूं. मैं अपने परिवार से बात नहीं कर सकती, क्योंकि सब यही सोचते कि मैं बहुत ख़ुश हूं.. .. .. और वो ये कहकर फूट फूट कर रोने लगी. मै जेठानी के करीब आई और उन्हें अपने सीने से लगा कर मुझे चुप करने लगी.

इतने मे बाहर से मेरी सास की आवाज़ आई तो जेठानी आँसू पोछ कर सही तरीके से बैठ गयी.

मेरी सास मेरे करीब आकर बैठ गयी, उन्होने इस वक़्त अपना मोटा चस्मा नही पहना था और वो बड़ी शर्मिंदा सी लग रहीं थी, ये वो औरत नही लग रहीं थी जो मुझे देखने आई थी, ये तो कोई मज़लूम बेसहारा सी एक ख़ौफजदा सी ज़माने की सताई औरत की तरह लग रही थीं, उन्होने मेरी और जेठानी की तरफ इस तरह देखा जैसे वो अपने किसी गुनाह की माफी माँग रही हों. उन्होने आते ही जेठानी को बाहर जाने का इशारा किया.

जेठानी के जाते ही वो भी मुझसे लिपट गयी. और एक मा की तरहा मेरे सर पर हाथ रख दिया.

फिर कहने लगी
"मेरी बच्ची मैं तुझे यकीन दिलाती हूँ कि मैं तेरी ज़िंदगी बर्बाद नही होने दूँगी बस यकीन रख और थोड़ा वक़्त दे"

मैं: "मम्मी जी , मुझे उम्मीद है कि मेरे साथ बुरा नही होगा"

सास "शाबाश बहू, तुझसे यही उम्मीद है"

फिर रात आ गयी और मेरे पति फिर मेरे कमरे मे दाखिल हुए. मैं अभी लेटी ही थी कि उनकी आवाज़ आई "सो गयी क्या तुम?"

और मैं घबरा कर उठ गयी और उनकी तरफ देखा. आज मुझे कोई और इंसान नज़र आया. ये तो मेरे पति संजय ही थे लेकिन आज शराब् के नशे मे नही लग रहे थे. नशा इंसान को क्या से क्या बना देता है. ये इंसान चेहरे पे हल्की सी मुस्कुराहट. ऐसा लगता था कि वो मुझसे कह रहा हो कि "रेखा तुम कहाँ खो गयी थीं". उनकी मुस्कुराहट ने जैसे मेरे सारे घाव भर दिए... .

एक पत्नी को अपने पति से चाहिए ही क्या होता है, लजीज भोजन और अजीज चोदन (बस दो जून की रोटी और थोड़ा सा प्यार) इसमे ही वो अपनी जन्नत ढूँढ लेती है और इसके सिवा उसे किसी और चीज़ की चाहत नही होती.

मेरे पति मेरे सामने खड़े मुस्कुरा रहे थे और मैं सर झुकाए बिस्तर पर खामोशी से दिल की धड़कन को रोकने मे लगी थी. पता ही नही चला कि कब वो मेरे सामने आकर बैठ गये और मेरी ठोडी उठा कर मेरी गहरी डूबी हुई आँखो को फिर से उभारने लगे. मैं खुश थी लेकिन थोड़ी घबराई हुई थी. एक एक पल जैसे पहाड़ मालूम पड़ रहा था,मैं कमरे मे सुई के गिरने की आवाज़ सुन सकती थी,
एक हसीन लम्हा धीरे धीरे मेरी पॅल्को के नीचे से गुज़र रहा था.इतने मे मुझे मेरे हसीन ख्वाब से मेरे पति ने जगा दिया. उन्होने हल्के से लहजे मे कहा।


"कितना बेवकूफ़ हूँ मैं जो शराब का नशा करता हूँ मुझे तो इन आँखो का नशा करना चाहिए" मुझे कल पी कर नही आना चाहिए था, दर असल मेरे दोस्तो ने मुझे ज़बरदस्ती पिला दी, कम्बख़्त कहीं के, तुम मुझसे नाराज़ तो नही हो?

मैं: नही तो

संजय: "झूठी कहीं की, ऐसा भी कभी होता है कि, पत्नी पति के पीने पर नाराज़ ना हो"

मैं:"मैं आपके शराब पीने पर नही बल्कि आपके मुझे गौर से देखे बिना ही सो जाने पर परेशान थी"

संजय: "हां, होना भी चाहिए, आख़िर बीवी बन कर आई हो, लेकिन जानती हो मैं बचपन से ही सही वक्त पर गलत काम करता आ रहा हूँ इसलिए मैं लगातार हारता रहा हूँ, कई चीज़ें मैं जानबुझ कर हारा,कई चीज़ें ना चाहते हुए भी लेकिन मैं हारता ज़रूर रहा हूँ.

मैं: क्या मैं आपसे एक सवाल कर सकती हूँ
संजय: क्यूँ नही, पूछो एक क्या दो सवाल पूछो।
मैं: क्या आप किसी और से मोहब्बत करते हैं?
संजय: हां.
ये सुनकर मेरे पैरो तले ज़मीन खिसक गयी, अब यही इंसान जो मुझे प्यारा लगने लगा था, जो दो जुमलो से मुझे जन्नत दिखा रहा था, एक ही हां से मुझे और मेरे वजूद को हिला गया, मैं बेशख्ता ही अचानक सर उठा कर उन्हे देखने लगी,इस पर वो खिल खिला कर हंस पड़े और हस्ते हुए बोले अर्रे मेरी "भोली जटनी" मैं अपने मा बाप, भाई भाभी, रिश्तेदार सब से मोहब्बत करता हूँ.

मैं: नहीं मैं कुछ और पूछ रही थी.
संजय: जानता हूँ, मैने मोहब्बत की थी अपने स्कूल की एक लड़की से, लेकिन कभी ज़बान पर नयी आ पाई,वो बड़े घर की लड़की थी और "ऊँची जाति" की, बस दिल मे था कि उससे बात करूँ, वो थी ही इतनी खूबसूरत.

मैं: तो क्या मैं खूबसूरत नही हूँ
संजय: तुम तो एक बला हो, कयामत हो, मुझे तो यकीन ही नही होता कि एक इतनी खूबसूरत हसीन लड़की मेरी ज़िंदगी मे आई है, अब दिल चाहता है कि तुम्हारे दामन मे सर रख कर खूब रोया जाए और अपने दिल के सारे राज़ खोल दिए जायें, मैं तुममे अपनी ख़ुसी और ज़िंदगी तलाश करना चाहता हूँ, बोलो दोगि मेरा साथ....???

मैं: जी बिल्कुल
संजय: मुझे इतनी जल्दी समझना आसान नही है, खैर अगर तुम्हे नींद आ रही है तो सो जाओ.

मैं खामोश रही.
संजय: क्या तुम,,,,क्या मैं,,,

मैं: क्या कहना चाहते हैं?
संजय: मुझसे नही कहा जाता,,उफ़फ्फ़

मैं: क्या नही कहा जाता
संजय: मैं तुम्हे अपने सीने से लगा कर सोना चाहता हूँ.

मैं खामोश रही.
संजय: शायद लड़की की खामोशी मे हां होती है. "ये बात उन्होने इतनी मासूमियत से कही कि मुझे हसी आ गयी."

संजय: हँसी तो फँसी.
मैं अब खिल खिला का हंस पड़ी.
ह्म्म्म ह्म्म्म ह्म्म्म

उन्होने मुझे अचानक से अपनी बाहों मे खींच लिया और सीधा मे गालो को चूमने लगे बस थोड़ी सी पीठ और हल्की सी चोली पे उनकी उंगलियो का अहसास मेरी पीठ पे हो रहा था, और मैं उनकी बाहों मे जैसे किसी लालची बच्चे को मिठाई मिल जाय जिसकी उसे बहुत दिनो से चाह हो पर वह डर रहा हो झिझक रहा हो. उनकी निगाहे बार फिसल के मेरी चोली के उभार पे चोली से बाहर झाँकते मेरे सीने के उपरी भाग और कसी चोली से दिखते गहरे क्लीवेज मे जा के अट्क जाती, लेकिन फिर कुछ सोच के वो नजरे सहम जाती. उनकी आँखे मेरी आँखो मे झाँक रही थी, जैसे आगे बढ़ने की इजाज़त माँग रही हो.


लेकिन मेरी पलके तो खुद शरम के बोझ से बार बार झुक जाती. और उनका पहला चुंबन मेरी पॅल्को ने ही महसूस किया. बस उनके होंठ बहुत हिम्मत कर के उन्होने छू भर दिया, लेकिन दो तीन हल्के चुंबनो के बाद उन्होने बड़ी बड़ी से मेरी दोनो पॅल्को को कस के चूम के बंद कर दिया, जैसे उनके होंठ कह रहे हो, मैं इन कजरारे नयनो की सारी लाज हर के, उसमे ढेर सारे सपने भर दे रहा हू.


"मै सोई थी गैर मर्द के साथ, मेरे जिस्म को भोगने की कोशिश की गयी घर की चार दीवारी में, मगर अब मिला मुझे वो प्रेमी जो चूम रहा था महज मेरी आँखे, मै आज फिर से "कुवारी" हो गयी।" मेरी आँखे अभी उनके चुंबन के स्वाद की आदि भी नही हो पाई थी, कि उन्होने हल्के से मेरे माँग को जहा सिंदूर की तरह वो बेस था, चूम लिया. और फिर माथे की बिंदी पे मेने अपने को अब उनकी बाहों के हवाले कर दिया था. मेरी मूंदी पलके बस अभी तक स्वाद ले रही थी और मैं उसे खोल के इस सचमुच के ख्वाब को खराब नही करना चाहती थी.


जैसे किसी चोर को एक दो छोटी छोटी चोरिया करने के बाद आदत पड़ जाय और न रोके जाने पे उसकी हिम्मत बढ़ जाए, यही हालत अब इनके होंठो की भी थी.


माथे से वो सीधे मेरे गोरे गुलाबी गालो पे आ के रुके. लेकिन बस छू के हट गये शायद उन्हे लगा कि मैं कुछ.. पर मेरी हालत ऐसी कहाँ थी. और अगली बार फिर कुछ देर तक.. और फिर दूसरे गाल पे. उनकी बाहों मे बँधी फँसी मैं मेरे दिल की धड़कने उनके दिल की धड़कनो की रफ़्तार से चल रही थी. और फिर मेरे होंठो पे पहली बार.. एक अंजान सा.. लेकिन चिर प्रतीक्ष्हित स्वाद नही ऐसा नही कि उन्होने कस के चूम लिया हो.. लेते भी तो मैं कहाँ मना करती..


जब दुबारा उन्होने चूमा तो उनके होंठ एक पल ठहर गये और आज तक मुझे उस पहले चुंबन का स्वाद याद है. मेरे होंठ, बस उस के बाद से आज तक मेरे नही रहे. उसी दिन मेने जाना कि, कैसे और क्यो, जब मुँह का घूँघट उठा, गुलाब की कली को सूरज की किरण चूमती है तो वो कैसे खिल उठती है,


मेने सोचा था कि मैं भी उनके चुंबन का जवाब चुंबन से दूँगी लेकिन दो तीन चुंबनो के बाद कही जाके हल्के से लरज के मेरे होंठ अपनी स्वीकारोक्ति दे पाए. अभी मेरे होंठो ने हिम्मत बढ़ाई ही थी कि, उनके होंठो ने मेरी चिबुक के गहरे गढ्ढे मे, जो तिल था उसे चूम लिया. और उसी के साथ उनकी उंगलियाँ मेरी केले के पत्ते ऐसी चिकनी पीठ पे फिसल रही थी.


(मेरी पीठ के बीच मे गहरी नली ऐसी है, जो कहते है कि एक कामुक नारी की निशानी होती है और उनकी उंगलिया वहाँ भी.) उसे छिपाने धकने आँचल ने कब का साथ छोड़ दिया था. सिर्फ़, चोली को बांधने वाली एक पतली सी स्ट्रिंग थी जो थोड़ी सी रुकावट डाल रही थी. उनकी उंगलियो के स्पर्श और मेरी सारी देह मे तूफान उठ रहा था. तभी अचानक उनके होंठ, मेरे गले से होते होते फिसल के, मेरे उभारो के उपरी भाग पे रुके.


लेकिन बस वो छूकर हट गये. जैसे कोई भौंरा, किसी पंखुड़ी पे जाके तुरंत हट जाय ये सोचते हुए कि वो कही वो उसका भार बर्दाश्त कर पाएगी कि नही. और फिर मुझे बिस्तर पर लिटा कर मुझसे कस कर चिपक गये, मैं इस के लिए तैयार ना थी और उनसे कहने लगी कि मैं अपने गहने उतार लेती हूँ.


इस पर उन्होने मुझे अलग कर दिया और मेरी तरफ देखने लगे, मैने उन्हे देखे बिना अपने सारे ज़ेवर उतार कर अलमारी मे रख दिए और बिस्तर पर उनके करीब आ कर लेट गयी. उन्होने मुझे फिर से बाहों मे कस लिया और उनके हाथ मेरी पीठ पर थे और धीरे धीरे वो मेरे चोली के बटन खोलने लगे.मैने हाथ पीछे लेजकर उन्हे रोकना चाहा ही था कि उन्होने अपने एक हाथ से मेरे हाथ रोक लिए. अब चेहरे से अपने होंठ हटा कर उन्होने मेरे होंठो पर अपने होंठ रख दिए और मेरे निचले होंठ को अपने उपर के होंठ से चूसने लगे, मेरे सारे बदन मे झुरजुरी सी होने लगी, आज तक किसी ने मेरे होंटो पर इस तरहा किस नही किया था, मैं भी उनका साथ देने लगी, अब उन्होने मेरे चोली के सारे बटन खोल दिए थे और अब मेरे चोली को निकालना चाहते थे,इसके लिए उन्होने मुझे थोड़ा दूर किया तो मेरी आँखें उनकी आँखो से मिली और मैने शरमा कर अपनी आँखें बंद कर दी. एक झटके मे मेरी चोली उतर गयी और फिर दोबारा उन्होने उसी तरहा मेरी ब्रा के हुक भी खोल दिए और मेरी ब्रा को मेरे बदन से आज़ाद किया. मैने अपने दोनो हाथ अपने सीने पे लगा लिए लेकिन उन्होने फिर बड़ी तेज़ी से मेरे हाथ हटा दिए. मैं बहुत शर्म महसूस कर रही थी, लेकिन अब उनका ध्यान मेरी आँखो पर नही बल्कि मेरे नंगे सीने पर था.


अब उनके हाथ मेरे नर्म सीने पर आ गये, जिससे मेरी मूह से अया सीईईईईई की आवाज़ आई. अब उन्होने मुझे मेरी पीठ के बल लिटा दिया और मेरे निपल्स पर अपना मूह रख दिया, ऐसा अहसास मुझे पहले नही हुआ था, अब मैं अपने आपे मे ना रही और उनके सर को अपने सीने मे दबाने लगी ऐसा लगा जैसे मैं किसी तेज़ धारा मे बही जा रही हूँ. उनका एक हाथ मेरे दूसरे सीने पर था.

मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी चूत (यौनि) मे से कुछ रिस रहा है. अब उन्होने मेरी लहगे के नाडे मे हाथ डाला जिसके लिए मैं तैयार ना थी, एक झटके मे मेरा लहगा खुल गया.
वो अब उठ गये और मेरे लहगे को नीचे कर दिया. मेरे जिस्म पर पर मेरी पैंटी के अलावा कुछ ना था, उन्होने एक नज़र मेरी गोरी टाँगो को देखा और फिर मेरी पैंटी की एलास्टिक को पकड़ कर मेरी पैंटी नीचे करने लगे, मैने कस कर अपनी पैंटी को पकड़ लिया लेकिन उनकी ज़िद के आगे कुछ ना कर सकी. तुरंत उन्होने मेरी टाँगो के बीच बैठ कर मेरी पैंटी नीचे सरका दी.

अब मैं बिस्तर पर बिल्कुल नंगी लेटी थी और दोनो हाथो से अपना मूह छिपाए थी. मैं शर्म से गढ़ी जा रही थी. आज तक मुझे किसी ने ऐसी हालत मे देखो हो ये मुझे याद नही है. कुछ देर वो इसी तरहा देखते रहे और एक उंगली मेरी टाँगो के बीच मे ले गये.मैं एक दम सिसक उठी, हाअइईई,उफफफफफफफफफ्फ़,सीईईईईई

संजय: तुम्हारी चूत तो बड़ी शानदार है. इतनी गुलाबी और भरी हुई.

मैं कुछ बोल ही ना सकी, कुछ देर तक कोई हरकत ना हुई तो मैने अपने हाथ हटा कर देखना चाहा तो क्या देखती हूँ कि मेरे पति अपने सारे कपड़े उतार चुके थे और बिल्कुल नंगे मेरी टाँगो के बीच मे आकर बैठ गये. अब उन्होने मेरी टाँगो को हवा मे उठाया और अपना औज़ार मेरे मुहाने पर रख दिया.

कुछ देर वो उसे इसी तरहा रगड़ते रहे और फिर अचानक उन्होने एक ज़ोर का झटका मारा और पूरी तरह मेरे अंदर दाखिल हुए, ये इतनी ज़ोर का धक्का था कि मैं चीख उठी,ऐसा लगा कि किसी तेज़ ब्लेड ने मेरी खाल को अलग कर दिया हो. संजय शायद इस बात के लिए तैय्यार थे और उन्होने धक्का देते ही मेरे मूह पर हाथ रख दिया जिससे मेरी चीख कमरे मे ही रही.अब वो लगातार धक्के दिए जा रहे थे और मैं जैसे सातवे आसमान मे थी, अब मैं खुल कर आवाज़ निकाल रही थी,, उफफफफफफफफफफफफफ्फ़,हइई
,आआआआआआअहह, सीईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई

ये लगभग कुछ देर चला होगा कि मुझे लगा की मुझमे से कोई फव्वारा फूटने वाला हो और अचानक मेरे अंदर से गाढ़ा चिपचिपा पानी निकल पड़ा, इस अनोखे से एहसास ने ना जाने मुझे शुरुआत मे हुआ दर्द भुला दिया था, मुझे अपनी बहेन अंजू की बात याद आई कि "आज की रात के बाद तू कुँवारी नही रहेगी"

कुछ देर मे संजय ने भी एक फव्वारे मेरे अंदर छोड़ दिया और मुझपर ही लेट कर वो अपनी सांसो को अपने क़ब्ज़े मे करने लगे. हम कुछ देर इसी तरहा लेटे रहे और
फिर अपने कपड़े पहेन कर सो गये.

मेरी ज़िंदगी की ये सुबह एक नया रंग और रूप लेकर आई थी. सुबह हो चुकी थी लेकिन फिर भी ये एक हसीन ठंडी रात की तरहा थी जिसमे चाँद और तारे चारो तरफ मीठी ठंडी रोशनी हर तरफ फैला रहे होते हैं. हर तरफ कोई रात रानी का पौधा खुसबु फैला रहा होता है. ठंडी हवा जैसे कोई मीठा राग गा रही होती है और जैसे कोई जोड़ा बहुत दिनो बाद मिला होता है और उस रात मे बाहों मे बाहें डाले एक दूसरे से लिपटा हुआ चाँद की तरफ देख रहा होता है. वो ऐसा नज़ारा होता है जैसे वक़्त अब कोई मायने नही रखता और ऐसा लगता है जैसे दुनिया की भाग दौड़ और दुख तकलीफे हमेशा के लिए ख़तम हो चुकी हैं. ऐसा लगता है कि जैसे अब दुख, तकलीफ़, घबराहट, बेचैनी, डर, दर्द सब फना हो चुके हैं और अब सिर्फ़ दो प्यार करने वाले हमारी इस नई जन्नत मे एक दूसरे के साथ हमेशा हमेशा के लिए खुश रहेंगे.
सुन्दर प्रस्तुति रेखा को उसके हक का प्रेम मिला
:beer: मुझे कब देगी रेखा ??
 
10,224
42,994
258
सास-ससुर , देवर - ननद और या बाकी परिवार का प्रेम , सहानुभूति अलग है और हसबैंड का प्रेम अलग । परिवार के सभी सदस्य गलत हों, कोई बात नही पर हसबैंड का साथ भी न हो तो पत्नी के लिए इससे बढ़कर कुछ भी बुरा नही।

रेखा के सास-ससुर और जेठानी का व्यवहार बहुत बढ़िया है । इस के लिए उनकी तारीफ होनी चाहिए । लेकिन घर के मर्दों का रंग - ढंग , खासकर सेक्स के मामले मे कुछ बढ़िया नही लगता है । ये घर की औरतों की बात से भली भांति जाहिर होता है।
ऐसा क्यों हुआ यह क्लियर नही है लेकिन संजय साहब के बात और उनके व्यवहार से ऐसा लगता है कि वो पहले अपने परिवार के अन्य मर्दों के समान नही थे । वो क्यों उसी रास्ते पर चल पड़े जहां उनके परिवार के मर्द चल पड़े थे , रेखा को अवश्य जानना चाहिए।

खैर देर से ही सही , संजय साहब को सद्बुद्धी तो आया और सुहागरात सही तरह से पुरा हुआ।
शराब बहुत ही खराब चीज है । लेकिन यह व्यक्ति पर अलग-अलग तरीके से असर करता है। वैसे यह हंड्रेड पर्सेंट सच है कि इसका असर अधिकतर खराब ही होता है। लेकिन अगर पत्नी और पति के बीच सही मे प्रेम है तो पति के शराब की लत छुट सकती है।

बहुत ही खूबसूरत अपडेट रेखा जी। आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट।
 

liverpool244

Active Member
506
759
94
Aap ki kahani padi bahut acchi lagi par do kirdaar bahut pasand aaye mujhe Sunil aur uski maa darshna ka....aur Jo un dono ki beech shart Hui wo accha laga par dono ke beech baatcheet bahut garm thi...darshna apne aap ko Sunil ke hawale karne ko taiyaar hai..aapse ek request hai dono ke beech sex bahut accha ho .....aur jab ghar pe akele ho tabhi ho Sunil ke papa ko 6 se 7 din ke liye kahi bhej do taki Sunil kub tabiyat se chudai kare darshna ki ....aur dharsna bhi kub maje se chudwae...aur ab to use pata lag Gaya hai ki mardo ko gandi gandi baatein karne mein maja aata hai aur ko control karna chahte hai..do wo Sunil ko apna submissive nature dikae aur Sunil dominate kare ...kub kinky chudai ho dono Sunil aur dharshna ke beech aur chudai ke beech baat cheet ho kub gandi gandi wali aur Sunil dhashna ko kub gali de ke chode aur wo kub maje se chudwane....bas aap se ye request hai...aage aapki marzi.....
 

MAD DEVIL

Active Member
898
1,724
123
Uffffffff Rekha rani ji hum kuch din gyb ky hue ki yha pe REKHA ki shadi or Suhaagrat wo pehle piche or ab aage dono trf ki ho gy hdd ho gy bdi der krdi maine
.
Waise mast chl rhe hai story aapki
.
Ha ye bat alag hai bech ke 3 se 4 update mai ek sath read kia but Masti mjak ke sath maine enjoy bi kia
.
Kehte hai ki everything is not perfect
Is update me bi ye bat dekhne ko mili Rekha ki jethani ki khe bat or sath me Rekha ki saas ne jis trh se khane ke time apni bhoo ka sath dia or sath me sasur ne bi very interesting update Rekha rani ji
.
Keep up REKHA ji
Ese he mjedar update ka Dil se intjaar hai
 
Status
Not open for further replies.
Top