परिपुर्ण जैसा कुछ भी नहीं होता इस जगत मेअध्याय -- 50
उन्होने मुझे हल्के से हिलाया, तो मेरी आँख खुल गई. वो बोले, बस हम लोग 10 मिनेट मे पहुँचने वाले है तुम पानी पी लो और फ्रेश हो जाओ.. इतना लंबा सफ़र और पता भी नही चला और नीद इतनी अच्छी थी कि रात भर जागने की सारी थकान उतर गयी.
थोड़ी ही देर मे मैं अपने ससुराल पहुँच गयी. मेरी सास और बुजुर्ग औरतो ने पहले हल्दी के छापे मेरे हाथों से घर के द्वार पर लगवाए। लेकिन घर मे घुसने से पहले मेरी ननदो उनकी सहेलियो ने रास्ता रोक रखा था.
उन्होने' 500 रुपये दिए तो मेरी मझली ननद बोल पड़ी,
"वाह भैया सालियो को तो पूरे 1000 और हम लोगो को सिर्फ़ 500"उनकी भाभी, मीरा भाभी मेरी जेठानी पूरा मेरा साथ दे रही थी. वो बोली,
"अर्रे सालिया तो सालिया होती है, तुम सब इनके साथ वो काम कर सकती हो जो सालिया कर सकती है, "लेकिन ननद टस से मस नही हुई. आख़िर मेरी जेठानी बोली, अच्छा चलो मैं तुम लोगो को 500 रुपये देती हू, लेकिन ये वादा रहा कि ये अड्वान्स पेमेंट है, तुम सबको मैं अपने देवर की साली बना के मानूँगी. " सपना ने आगे बढ़ के रुपये ले लिए.
और उस के बाद ढेर सारी रस्मे, गाने लेकिन मेरी जेठानी ने एक के बाद एक सारी रस्मे जल्द ही करवा दी. उसके बाद कंगन खोलने की रसम थी और उनकी भाभियो ने उन्हे खूब चिड़ाया (उसी समय मुझे पता चला कि कंगन और उसके खोलने का क्या 'मतलब' है कि उसके बिना रात को दूल्हा, दुल्हन का मिलन नही हो सकता.) और उसके बाद देवी दर्शन की, उसी के साथ मुझे पता चला कि मज़ाक, गाने और खास कर गालियो मे मेरी ससुराल वालिया, मेरे मायके वालो से कम नही बल्कि ज़्यादा ही थी. और खास तौर से चमेली भाभी वो गाव की थी, 24-25 साल की दीर्घ नितंब, और कम से कम 36 डी.. और इतनी खुल के गालिया बंद ही नही होती थी.
जब सारी रस्मे ख़तम हो गयी तो मीरा भाभी, मुझे एक कमर्रे मे ले गयी और बोली कि अभी डेढ़ बज रहा है. तुम कुछ खा लो मैं ले आती हू. उसके बाद मैं बाहर से दरवाजा बंद कर दूँगी. तुम थोड़ी देर आराम कर लो.। मेरी जेठानी ने मेरे मना करने पे भी अच्छी तरह खिलाया और बाहर से कमरा बंद कर दिया कि आके मुझे कोई डिस्टर्ब ने करे. तीन घंटे मैं जम के सोई. दरवाजा खट खटाने की आवाज़ से मेरी नींद खुली. बस मैं ये सोच रही थी कि काश एक गरम चाय की प्याली मिल जाए, और गुड्डी ने दरवाजा खोला, गरम चाय के साथ. और मेने सोचा कि शायद इस समय मेने जो कुछ माँगा होता तो वो मिल जाता लेकिन फिर मुझे ये ख्याल आया कि जो कुछ मेने चाहा था वो तो मुझे मिल ही गया है और बाकी आज रात को और वो सोच के मैं खुद शर्मा गई. गुड्डी, 15-16 साल की थी, और वो भी टेन्थ मे थी, लेकिन मेरी जेठानी की भतीजी होने के कारण वो मेरे साथ थी.
बस मन मे एक सिहरन सी लग रही थी. डर भी था और इंतजार भी. और जब मेरी जेठानी आई तो उन्होने बोला, कि सुहाग के कमरे मे जाने से पहले अपनी सास का पैर ज़रूर छू लेना. वो हंस के बोली कि हां वो तुम्हारा इंतजार भी कर रही है.
मुझे वो बाहर ले आई. वहाँ मेरी सास, इनकी मामी, चाची, मौसी और घर की और सब औरते, कुछ काम करने वालिया बैठी थी और बन्नो बन्नी के गाने और नाच हो रहा था, जैसा हमारे यहाँ शादी के पहले हुआ था. मेने सब का पैर छुआ. मौसी ने मेरा पैर देख लिया और दुलारी को हड़काया,
अर्रे अपनी भौजाई के महावर तो ठीक से लगा दे .उसने फिर जम के खूब चौड़ा और गाढ़ा महावर लगाया. मैं सब के साथ बैठ के गाने सुन रही थी.
गाने ख़तम होने के साथ ही मेरी सास ने ननदो से कहा, बहू को इसके कमरे मे ले जा. थोड़ा आराम कर ले, रात भर की जागी है, साढ़े आठ बज गये है. जा बहू जा.
चलने के पहले, किसी ने बोला घबड़ाना मत ज़रा सा भी. मेरी सासू बोली, अर्रे घबड़ाने की क्या बात है. मेरे सर पे हाथ फेरते हुए , मेरे कान मे मुस्करा के बोली, ना घबड़ाना ना शरमाना, और मुझे आशीष दी,
"बेटी तेरा सुहाग अमर रहे, और तेरी हर रात सुहाग रात हो"मेरी ननदे मुझे ले जाने के लिए तैयार खड़ी थी. वो मुझे ले के उपर छत पे चल दी. सीढ़ी पे चढ़ते ही उनकी छेड़ छाड़ एकदम पीक पे पहुँच गयी. किसी ने गाया, चोदेन्गे बुर सैयाँ, चुदवाने के दिन आ गये.
जब दरवाजा खुला तो कमरे को देख के मेरी कल्पना से भी ज़्यादा सुंदर, खूब बड़ा. एक ओर खूब चौड़ा सा बेड, और उसपर गुलाब के पंखुड़ियो से सजावट, पूरा कमरा ही गुलाबी गुलाब से सज़ा, गुलाब की पंखुड़ियो से रंगोली सी सजी और बेड के तल मे गुलाब की पंखुड़ियो से अल्पने, दो खूब बड़ी खिड़किया जिन पे रेशमी पर्दे पड़े थे, और सामने ज़मीन पे भी, बेड के बगल मे टेबल पे तश्तरी मे पान, दूसरी प्लेट मे कुछ मिठाइया और ग्लास मे दूध .
मेने सोचा था कि कुछ देर शायद मुझे इंतजार करना होगा.. लेकिन बस मैं सोच रही थी कि बस तब तक दरवाजा खुला और मेरी जेठानी के साथ ""वो..""
कई बार जब लाज से लरजते होंठ नही बोल पाते तो आँखो, उंगलियों, देह के हर अंग मे ज़ुबान उग जाती है.
कुछ लमहे ऐसे होते है जो सोने के तार की तरह खींच जाते है कुछ छनो के अहसास हर दम साथ रहते है पूरे तन मन मे रच बस के "अगर तुम्हारे सामने कोई शेर आ जाए किसी आदमी से पूछा गया तो तुम क्या करोगे. मैं क्या करूँगा, जो करेगा वो शेर ही करेगा." मेरी एक भाभी ने बताया था कि सुहाग रात मे बस यही होता है. जो करेगा, वो शेर ही करेगा.
"अभी 9 बज रहे है. मैं बाहर से ताला बंद कर दे रही हू और सुबह ठीक 9 बजे खोल दूँगी. तुम लोगो के पास 12 घंटे का समय है, और हाँ मैं छत का रास्ता भी बंद कर दे रही हू जिससे तुम लोगो को कोई डिस्टर्ब ना करे.."
वो निकल गयी और बाहर से ताला बंद होने की आवाज़ मेने सुनी. वो मूड के दरवाजे के पास गये अंदर से भी उन्होने सीत्कनी लगा दी.
सुहाग रात शब्द से सभी को झुरझुरी सी आने लगती है। सुहागरात की कल्पना शादी की बात चलने से भी बहुत पहले ही शुरू हो जाती है। इसमें लड़का हो या लड़की दोनों की स्थिति शायद एक जैसी रहती है। जहां सुहागरात को लेकर एक उमंग होती है वहीं मन भीतर से बहुत आशंकित भी होता है।
इसका ये मतलब नही कि मैं बताना नही चाहती या फिर जैसे अक्सर लड़किया अपनी भाभियो और सहेलियो के साथ, 'दिया बुझा और सुबह हो गयी' वाली बात कर के असली बात गोल कर देना चाहती है मेरा वैसा कोई इरादा नही है. मैं तो बस अपने एहसास बता रही हू. तो ठीक है शुरू करती हू बात पहली रात की.
जब किसी की सुहागरात की बात होती है तो मन मे रोमांटिक विचार ही रहते है लेकिन हकीकत में आशंकाए ज्यादा रोमांस कम होता है। ऐसे ही मेरी भी सुहागरात तो होनी ही थी। छोटे छोटे शहर में जहां लाइट का आना जाना ही एक उपलब्धि से कम नही होता। जून के महीने में सुहागरात पड़ना भी एक बुरे सपने से कम नही था। मै ईश्वर से एक ही प्रार्थना कर रही थी कि लाइट न चली जाए। हमारे छोटे छोटे शहरों मे एक सहारा इन्वर्टर का ही होता था। लेकिन विवाह वाले घर मे इन्वर्टर की हालत क्या होति है आप सभी समझ सकते है।
मैं बिस्तर पर बैठी हुई थी कि तभी थोड़ी देर बाद वह आए और मेरे पास बैठ गए । उनके पास से सख़्त बू आ रही थी जो शराब की थी. मुझे शराब से नफ़रत थी लेकिन मैं आज की रात को बर्बाद नही करना चाहती थी. अभी हम उनके पास ही बैठे थे कि इतने लाइट भी चली गयी। बंद कमरा और बत्ती गुल सुनने में बहुत अच्छा लगता है किंतु पसीने से भरे हुए इतनी हालात खराब हो रही थी, मैं सोच रही थी कि 8 घंटे कैसे कटेंगे ये.
फिर वो उठे और अलमारी में रखी मोमबत्ति और मॉर्टीन जला कर मेरे पास आकर के बैठ गये. फूलों की सुंगाधित खुशबू कि जगह मच्छर भगाने वाली मॉर्टीन कोइल की दुर्गंध फैल गयी।
नही उन्होने कोई गाना वाना नही गया...... जैसे कोई इम्तहान की बहुत तैयारी कर ले, पर एग्ज़ॅम हॉल मे जाके सब कुछ भूल जाए वही हालत मेरी हो रही थी. मैं सब कुछ भूल गयी थी. और शायद यही हालत 'इनकी' भी थी.
मेरी साँसें तेज़ हो गयी, उन्होने मेरा घूँघट हटाया और कहा "बला की खूबसूरत हो" बस मुझे इतना याद है, फिर इन्होने पूछा नींद तो नही आ रही और मेने सर हिला के इशारे से जवाब दिया, 'नही'.
फिर इसके बाद हम लोग बल्कि वो कुछ बाते करने लगे. लेकिन उन्होने क्या कहा मुझे याद नही, सिर्फ़ ये कि उन्होने मुझसे अपना पजामा निकालते हुए कहा कि, गर्मी ज्यादा है, और लाइट का पता नही कब तक आयेगी तुम भी अपने कपड़े उतार दो आराम मिलेगा। मैं ज्यादा कुछ बोल ही ना सकी, और मैं आराम से टांगे फैला के अध लेटी हो गयी, बेड के हेड बोर्ड के सहारे.
कुछ देर तक कोई हरकत ना हुई तो मैने अपने हाथ हटा कर देखना चाहा तो क्या देखती हूँ कि मेरे पति अपने सारे कपड़े उतार चुके थे और बिल्कुल नंगे मेरी टाँगो के बीच मे आकर बैठ गये. मुझे अंदाज़ा नही था कि आदमी लोगो का इतना बड़ा हो सकता है. अब उन्होने मेरी टाँगो को हवा मे उठाया और अपना औज़ार मेरे मुहाने पर रख दिया. और अपना लिंग मेरी योनि पर टिकाने का प्रयत्न करने लगे।
लेकिन अँधेरे और शराब के नशे के कारण उसे पता नहीं चला कि उसका लिंग मेरी योनि से थोड़ा नीचे मेरे गुदा द्वार पर टिक गया है। मैं समझ गई थी कि अब वह मेरे साथ गुदामैथुन करने वाले हैं...मै शर्म के कारण नहीं बता सकी की लिंग गलत दिशा में जा रहा है। पर मैं भी काफी उत्तेजित थी इसलिए मैं दुनिया भर की शर्मो हया और घृणा छोड़कर उनके लिंग के सिरे के चमड़े को पीछे खिसका कर जितना हो सके उनका लिंग अपने प्राकृतिक द्वार में प्रवेश करने की कोशिस कर रही थी |
फिर उन्होंने मेरा सिर बिस्तर पर टिका दिया| मैं घुटनों के बल थी जिसकी वजह से मेरे कूल्हे उठे हुए थे, मैं समझ गई कि अब वक्त आ गया है मैं बिस्तर पर उनकी तरफ पीठ करके घुटनों के बल बैठ गई ।
मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा| उनका लिंग पकड़ते वक्त मुझे इस बात का अंदाजा हो गया था कि उनका लिंग् कितना सख्त और दृढ़ है और अब थोड़ी ही देर में वो यह चीज मेरे गुदा द्वार के अंदर घुसाने वाले थे... मैं मारे उत्तेजना और पूर्वानुमान के फिर से रोने लगी... लेकिन शायद वो जानते थे उन्हें क्या करना है... शायद उन्हें पहले से पता था इसलिए उन्होंने सामने रखी कोकोनट तेल की शीशी में से तेल निकालकर मेरे गुदा द्वार पर लगाने लगे और लगाते लगाते उन्होंने अपनी एक उंगली मेरे गुदा द्वार के अंदर डाल दीया| तेल की वजह से मेरे गुदा द्वार का बाहरी और अंदरूनी हिस्सा बिल्कुल चिकना चिकना और फिसलाऊ हो गया था पर मुझे ऐसा लग रहा था कि वो शायद इस बात का अंदाजा लगा रहे हैं कि मेरा द्वार कितना तंग है... एहसास जैसे कि मानो मेरी उत्तेजना को बिल्कुल चरम सीमा पर ले गया... वो मेरी ऐसी हालत देखकर मन ही मन बहुत खुश हो रहे थे| और फिर उन्होंने मेरी कमर को कस कर पकड़ा... कमरे की सारी खिड़कियां- बाहर को खुलने वाली और अंदर को खुलने वाली सब के सब खुली हुई थी| बाहर आसमान में बादल छाए हुए थे हल्की-हल्की बिजली चमक रही थी| ठंडी हवाओं के झोंकों से कमरे के परदे उड़ रहे थे... पर अचानक जैसे सब कुछ शांत हो गया... मैं अब तक छटपटा रही थी और फिर मैं एकदम स्थिर हो गई... उन्होंने अपने लिंग का सिरा मेरे गुदा द्वार पर छुआया... मेरा सारा बदन कांप उठा... उन्होंने फिर मेरे कूलहो को पकड़ कर मेरा गुदा द्वार के अंदर अपना सुडौल, लंबा, मोटा और एक भाले की तरह खड़ा लिंग अंदर घोंप दिया... मैं मारे दर्द के जोर से चीख उठी... और बाहर बड़ी तेज बिजली चमकी और बादल भी बड़े जोर से गरज उठे|
अब तक मैंने सुना ही था कि "जब गाड़ लगे फटने तो खैरात लगी बटने... अब मुझे उसका पूरा पूरा अंदाजा हो चुका था... उन्होंने अपना लिंग मेरे गुदा द्वार के अंदर और थोड़ा घुसा दिया... मैं और जोर से चीख उठी...
मुझे क्या मालूम था कि कमरे एक खिड़की जो अंदर की तरफ खुलती है उसके बाहर बिल्कुल नंगी और उकडू होकर बैठी हुई मेरी मीरा भाभी अब तक हम दोनों की कामलीला पर्दे को थोड़ा सा हटा कर देख देख कर अपनी योनि में उंगली कर रही थी... लेकिन मेरी चीख सुनकर उन्होंने भी हाथ जोड़कर प्रार्थना शुरू कर दी...
वो एक-दो मिनट बिल्कुल बिना हिले दुले चुपचाप वैसे ही बैठे रहे... शायद वह मुझे संभालने का मौका दे रहे थे| और उसके बाद उन्होंने अपनी मैथुन लीला शुरू कर दी और मेरा पूरा बदन उनके धक्कों डोलने लगा... मैं सुख और दर्द के बीच का भेदभाव नहीं कर पा रही थी... मेरे मुंह से बस एक दबी हुई थी आवाज ही निकल रही थी, "उम्मम्मम ममममम" और मुझे मालूम था कि वो बिल्कुल मैथुन होकर मिथुनलीला किए जा रहे थे... कुछ देर बाद मुझे भी यह सब बहुत ही अच्छा लगने लगा...
मैं जरूर बेहोश हो गई थी|
इसलिए मुझे यह याद नहीं कि कितनी देर तक उन्होंने मेरे साथ गुदामैथुन किया और कब उन्होंने मुझे बिस्तर पर सीधा लेटा दिया था|
बस मुझे हल्का-हल्का याद है कि उन्होंने मुझे पानी पिलाया था ।
हां अब मुझे याद आ रहा है शायद ऐसा ही हुआ था... और उनके गरम-गरम वीर्य से मेरी गुदा पूरी तरह से लबालब भर गई थी| मैं एक अजीब सी शांति का एहसास कर रही थी... इसलिए मैं फिर से कब सो गई (या फिर बेहोश हो गई) यह मुझे याद नहीं... उसके बाद फिर मुझे ऐसा लगने लगा कि शायद मैं सपना देख रही हूं... वो मेरे ऊपर लेटे हुए थे और मुझे जी भर के प्यार कर रहे थे| मुझे चुम रहे थे चाट रहे थे|
... न जाने उन्हें आज क्या हो गया था...वह पुरे समय मेरे साथ गुदा मैथुन ही करता रहा यह सोचकर कि उसका लिंग मेरी योनि के अंदर है। मै दर्द के मारे कराहती रही लेकिन वह सोचता रहा कि वह प्रथम सम्भोग के कारण होने वाले दर्द के कारण कराह रही है। एक उत्तेजित और खड़े हुए लिंग का यथा स्थान एक स्त्री की योनि के अंदर होता है... और उनका लिंग् अपनी दिशा से भटक गया था- मेरी गुदा के अंदर... फिर मुझे उनके शरीर की गंध आने लगी... और उनका वजन अपने बदन के ऊपर महसूस करने लगी... नहीं यह सपना नहीं है, हकीकत है|
मैं सोच मे पड़ गयी कि क्या यही वो रात है जिसका हर लड़की इंतेज़ार करती है. अब मैं रोना चाहती थी लेकिन रो भी ना सकी, मेरी शादी की पहली रात थी. मैं पहली बार अपने पति के साथ अंतरंग हुयी थी. करीबी सहेलियों, भाभियो से हुई बातचीत से मेरे दिमाग़ में सपनों और इच्छाओं की कई तस्वीरें उभर रही थीं. सिर झुकाए, हाथ में दूध का गिलास लिए बेडरूम में घुसना. अब तक सब कुछ वैसे ही था जैसा मैंने सोचा था. लेकिन मुझे बिल्कुल भी आभास नहीं था कि एक मुझे कुछ ही देर में ज़ोरदार झटका लगने वाला है.
सपनों के मुताबिक जब मैं कमरे में आती हूं तो मेरा पति मुझे कसकर गले लगाता है, चुंबनों की बौछार कर देता है और सारी रात मुझे प्यार करता रहता है. लेकिन वास्तविकता में, मेरे लिए ये बेहद तकलीफ़ भरा था, ऐसा लगा कि मेरे पूरे अस्तित्व को मेरे पति ने नकार दिया हो.
रेखा की फर्स्ट नाइट , मतलब उसकी सुहागरात कुछ अच्छी नही रही । हसबैंड ने गुदा मैथुन किया और वो भी वगैर पत्नी के इच्छा के । एक ऐसा अप्राकृतिक सेक्स जो भारत मे अपराध की श्रेणी मे माना जाता हे ।
इस तरह का सेक्स कई लोगों के लिए पंसदीदा सेक्स हो सकता है लेकिन यह तभी स्वीकृत है जब दोनो युगल की रजामंदी हो और यह चीज दोनो का प्राइवेट बना रहे।
लेकिन कोई भी लड़की यह सपने मे भी नही सोच सकती कि उसका सुहागरात इस तरह से हो । यह बहुत बहुत ही गलत था । यह सुहागरात नही था । यह एक मर्द का विकृत सेक्सुअल हवस और विकृत सेक्सुअल मानसिकता था।
सुहागरात एक हजार दिन भी न हो पाए , कोई वांदा नही लेकिन जब हो तो यह लड़के का कर्तव्य है कि वो इसे सही तरीके से करे । पत्नी का दिल जीतने की कोशिश करे। पत्नी को सेक्सुअली संतुष्ट करे ।
यह अध्याय रेखा के लिए कोई बढ़िया संदेश लेकर नही आया।
अपडेट हमेशा की तरह वाह वाह था ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट रेखा जी।
बहुत बहुत शुक्रिया...... आभारपरिपुर्ण जैसा कुछ भी नहीं होता इस जगत मे
मानविय आकान्क्षाओं की सूची का कोई ना कोई टिक बॉक्स खाली रह ही जाता है और हालात के आगे बेबस इन्सान एक ढोंग भरे सन्तोष का दिखावा करता है कि वो खुश है मगर ये कुछ ना मिलने का , कुछ छूट जाने का जो भाव है वो भीतर कही दबा रह जाता है ।
सामाज की भेड़चाल भरी व्यवस्था मे खुद की छवियों को एक परिपक्वता का रूप देते ज्यादातर लोग ये दबी हुई भावना व्यव्हार के किसी अन्य रूप मे बाहर आती है ।
मगर मै ऐसे रिश्ते नाते से सहमत नही ।
मनुष्य हो चाहे स्त्री या पुरुष
समझौते का रिशता है बराबर का अधिकार मिलना चाहिए ।
होश मे लिए गये फैसले है तो बेहोशी मे कोई काम क्यू ।
जिस दशक मे ये कहानी चल रही है उस समय महिला को अपनी पवित्रता साबित करने के आमतौर सुहागरात सफेद बेडशीट पर मनानी पड़ती थी और सुबह अगर उसपे खून के धब्बे ना हो तो उसको चरित्रहीन समझ लिया जाता था । ये सब क्रियाएं घर की औरते ही करती ।
नारी का जितना अपमान और शोषण नारी स्वयं करती है उतना कोई ना करता है
पुरुष कामी जरुर है मगर वो ली गयी जिम्मेदारीओ और जुड़े रिश्तो की खामियां भुला कर बस प्रेम देता है ।
रेखा की फिल्मी दुनिया के तराने अभी पूरे नही हुए
मगर पुरुष प्रेम पिपासु होता है , वो पत्नी की जरा सी आंखो की शरारत से ही कामुक हो उठेगा ।
रेखा के पास मौका है अब अपने हाथ मे लगाम लेने का
कुछ लोगो को अपनी कदर ब्तानी पड़ती है
प्रेम सिखाना पड़ता है
उम्मीदन रेखा जैसी होनहार लड़की ये समझेगी ।
बहुत बहुत शुक्रिया... देखते है आगे क्या होता है।Awesome update, bechari rekhadi kya soche baithi thi kya ho gya, pati to sala nwabi shokin nikla, chut ki jagah gand mar di
Thank you so muchNice writing ... waiting for next