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Thank you so much.Superb update cant wait to see more
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Bahut bahut shukriya ek khoobsoorat pyaare se vishlenshn ke liye. Mujhe kushi sabse jyada khushi is baat ki hai, aapko apni shaadi ka wo lamha yaad aaya. Ye jaankar meri lekhini safal ho gyai.जिस बेहतरीन तरीक़े से पिछले अध्याय मे शादी-ब्याह के रिति - रस्मों का का आगाज किया था , उसी अंदाज से इन रस्मों का समापन भी किया । बहुत बहुत खुबसूरत अपडेट था यह ।
शुरुआत करते है आप के इस अपडेट की मुख्य बातों से -
बड़े-बुजूर्ग औरतों ने वैसे कुछ और हो सोचकर कहा था कि शादी के बाद औरतों के नसीब मे सोना नही होता । पर हकीकत मे यह सच है कि विवाह के बाद औरत पति की सहचरी बनकर नही वरन सारे परिवार की दासी और सेविका बनकर रह जाती है । उनके लिए आराम करना हराम बनकर रह जाता है ।
जूते छिपाई रस्म - वैसे यह भी बहुत पुराना रस्म है लेकिन सूरज चंद बड़जात्या साहब की फिल्म " हम आपके हैं कौन " के बाद से कुछ ज्यादा ही जोश-उत्साह से यह रस्म मनाया जाने लगा है ।
बारात मे पहले लड़कियां नही जाती थी लेकिन अब यह पुरी तरह बदल चुका है । लड़कियां बारात मे जाती है और वरमाला के वक्त , विवाह के वक्त इनकी मौजूदगी माहौल को खुशगवार और रंगीन बना देती है ।
शादी-ब्याह के मौके पर औरतों द्वारा की गई छेड़छाड़ , उनकी द्वी - अर्थी अश्लील बातें इस अपडेट को रियलिस्टिक बनाता है । बहुत खुबसूरत वर्णन किया आपने।
जूते-चप्पल को पर्दे के पीछे रखकर लड़कियां दुल्हे को यह कहकर - कि यहां हमारे कुल - देवी देवता का स्थान है और आप इन्हे प्रणाम करो - खुब मजाक बनाया जाता है ।
( सच कहूं तो यह सब पढ़कर मुझे अपनी शादी याद आ गई )
विदाई का गमगीन माहौल , दुल्हन की करूणार्द्र विलाप , मां- बाप और भाई - बहन का रोना काफी इमोशनल लम्हा होता है । यह सब मै देख ही नही सकता ।
ऐसे मौके पर " नीलकमल " फिल्म का एक बहुत ही इमोशनल गीत जो मोहम्मद रफी साहब ने गाया था - " बाबुल की दुआएं लेती जा , जा तुझको सुखी संसार मिले " - बिल्कुल सटीक बैठता है ।
( इस गीत की रिकार्डिंग करते वक्त रफी साहब रो भी रहे थे और साथ मे गीत भी गा रहे थे । ये आप इस गीत को सुनकर समझ सकती है । वो चार या शायद पांच लड़की के पिता थे और जब वो गीत रिकार्डिंग कर रहे थे उस वक्त उनके मन मस्तिष्क मे उनकी बेटियाँ ही छाई हुई थी )
इस अपडेट का समापन आपने संजय को अपनी दुल्हन रेखा को पानी पिलाकर किया । यह भी बिल्कुल वास्तविक है । लड़का अपनी दुल्हन को रोते हुए देख नही सकता । वो कभी पानी के बहाने तो कभी कुछ खाने के बहाने उससे बात करता है ।
यह अध्याय बहुत बहुत खुबसूरत था ।
परफेक्ट जगमग जगमग अपडेट।
रेखा तेरा क्या होगाअध्याय -- 49
गाँव से बहुत लोग आए थे और माहौल मे जैसे पुराने ढंग का माहौल हो और जहा तक लोकचार और रीति रिवाज का सवाल है ज़्यादा कन्सेशन नही था, इसमे लास्ट वर्ड, दादी और घर की और बुज़ुर्ग औरतों का ही था.
रात मे भी, ज़बरदस्ती सभी ने मुझे 10 बजे मेरे कमरे मे ले जा के सुला दिया और कहा कि,आज सो ले. आज के बाद सबसे मुश्किल से तुम्हे जो चीज़ नेसीब होगी वो सोना ही होगी.
अगला दिन यानी कि शादी वाले दिन भी हालाकि बहुत काम था, और बहुत सारा समय ब्यूटी पार्लर वालीयो ने ले लिया, लेकिन भाभी ने इंश्योर किया था कि मेरे कमरे मे सिर्फ़ मेरी कुछ सहेलिया ही जाएँगी. दिन मे भी मेने मौका पा के सो लिया और खूब आराम किया. इसका नतीजा हुआ कि शाम को मे एकदम ताज़ा दम थी. और जैसे ही बारात आई मुझे पुरानी रस्म के तहत मेरी सहेलिया, भाभीया अक्षत (चावल) फेंकने के लिए ले आई और मेरा निशाना सीधे संजय पे पड़ा.
जयमाला के समय चूड़ीदार और सुनेहरी शेरवानी मे वो बहुत ही हैडसम लग रहे थे ( और उनका कहना था, सुर्ख 24 कली के लहँगे मे, मे भी बहुत हसीन लग रही थी. मेरे जोड़े मे जो सोने के तारों का काम था वो उनकी शेरवानी से मैंच कर रहा था). मेरी सहेलियों को सिर्फ़ एक प्राब्लम लग रही थी,और वो थी उनकी छोटी बेहन और मेरी छोटी ननद, सपना. वो उनके साथ स्टैम्प टिकिट की तरह चिपकी थी. और मेरी सहेलिया न तो खुल के अपने जीजा से बात कर पा रही थी ना उन्हे बना पा रही थी.
पर सवाल था, अभी क्या करे इस वार गाँव से आई हुयी भाभी ने ही रास्ता निकाला. उन्होने सुनील और उसके दोस्तों को बुलाया और कहा की इत्ता मस्त माल शादी मे आया है और तुम लोग टाइम वेस्ट कर रहे हो. गाँव वाली भाभी मेरी नन्द को बुला के एक कोने मे ले आई कि उसे कोई बुला रही है और वहाँ उसे सुनील और उसके दोस्तों ने घेर लिया और उसके लाख कोशिश करने पे भी घंटे भर घेरे रहे, छेड़ते रहे.
जब 'वो' आए तो सबसे पहले 'स्वागत' पापा और मम्मी ने ही किया, जो हमारे यहाँ क़ी 'पारंपरिक' परम्परा थी. फिर वरमाला का प्रोग्राम शुरु हुआ, वो ही धीरे धीरे से चलते हुए एक दूसरे के गले में माला डालना।
. मेरी नंंद और , उसकी सहेलिया कुछ ज़्यादा ही चहक रहे थे, इसलिए की उन्हें जूता चुराने का प्रोग्राम फेल करना था. मेरी नंंद ने खुद जूते उतारे और अपनी स्कर्ट मे छिपा के, सब लोगों को चिढ़ाते हुए, दिखा के बैठ गयी. अब वहाँ से कौन ले आए. बाराती भी खूब मज़े ले रहे थे. लेकिन जूते चुराने वाली बात बन नही पा रही थी. भाभी ने सुनील को पानी ले के बारातियों के पास भेजा और जब वो मेरी नन्द के पास पहुँचा तो उसके लाख मना करने पे भी उसने पानी थामने की कोशिश नही की.उसी मे पानी गिर गया.वो बेचारी चिहुकी पर मेरी अंजू दीदी और उसकी सहेलिया पहले से ही तैयार थी.वो तुरंत जूता ले के चंपत हो गई.
वरमाला के बाद फेरो की रसम थी. लेकिन दरवाजा पे भाभीया, मेरी बहन अंजू और सहेलिया दरवाजा रोक के खड़ी थी, शर्त थी 1000 रूपरे, जूते की. 'उनके' साथ, उनके दोस्त भाई, बहनें भाभीया. नन्द कह रही थी जूता चुराया नही गया फाउल तरीके से लिया गया है इसलिए नेग नही बनता. वो बेचारे खड़े. खैर. मेरे लिए तो सुनील एक कुर्सी ले आया और मे आराम से बैठ गयी. एकदम डेडलॉक की स्तिथि थी.
बहुत देर तक वो लोग खड़े रहे. किसी औरत ने कहा,"खड़े रहने दो, देखो कितनी देर खड़े रहते है."
"अर्रे आप लोगों को नही मालूम, हम लोग कितनी देर तक खड़े रह सकते है."
द्विअर्थि ढंग से उनका एक दोस्त बोला.
"अर्रे खड़े रहो, खड़े रहो बाहर. असली बात तो अंदर घुसने की है." उसी अंदाज़ मे आँख नचाके अंजू ने जवाब दिया.
"अर्रे आप को नही मालूम, भैया, धक्के मार के अंदर घुस जाएँगे."
मुस्करा के मेरी नंद भी उसी अंदाज़ मे बोली.
"अर्रे बहुत अंदाज़ है इनको अपने भैया के धक्को की ताक़त का. लगता है बहुत धक्के खाए है अपने भैया से." मेरी सहेली अंजलि भी मैदान मे आ गई. किसी ने कहा कुछ कम करो 1000 बहुत ज़्यादा है,किसी और ने बीच बचाव की कोशिश की. किसी ने कहा कि लगता है, इनेके पास है नही उधार कर दो तो मेरी एक भाभी, अंजलि और उनकी और बहनो की ओर, इशारा कर के बोली,
"अर्रे पैसो की क्या कमी है, ये टकसाल तो सामने दिख रही है. बस एक रात रेशमपुरा ( हमारे शहेर की रेड लाइट एरिया) मे बैठा दें, पैसो की बौछार हो जाएगी, या यही मान जाए मेरे देवरो (सुनील और उसके दोस्त) के लिए, एक रात का मे ही दे दूँगी."
ज़्यादातर बड़े बुजुर्ग तो शादी ख़तम होने के बाद बाहर चले गये थे, लेकिन एक कोई शायद 'उनके' चाचा थे. उन्होने सबको हड़काया, और कहा कि जूते का तो साली का नेग होता ही है, और उन्होने कैसे लिया इससे कोई फ़र्क थोड़े ही पढ़ता है, और 1000 रूपरे निकाल के अंजू को पकड़ा दिए. एक साथ ही सारी लड़कियाँ, मेरी बहनें सहेलिया, भाभीया, बोल उठीं,हिप्प हिप्प हुर्रे, लड़की वालों की. अब बची बात गाना गाने की तो उनकी ओर से सारे लड़के लड़कियाँ एक साथ गाने लगे,
"ले जाएँगे, ले जाएँगे दिल वाले दुलहानिया ले जाएँगे"
अंजू, अंजलि सब एक साथ बोली नही नही हमे दूल्हे का गाना सुनना है. पर उन साहब ने गाना पूरा किया ही.
मेरी नंद बोली, अच्छा भैया कुछ भी सुना दीजिए तो उनका मूह खुला,
"वीर तुम बढ़े चलो, सामने पहाड़ हो,सिंह की दहाड़ हो, वीर तुम रूको नही, वीर तुम झुको नही"
उन्होने सालियों और सलहजो की ओर देख के सुनाया. उनका मतलब साफ था लेकिन उनके एक जीजा ने और सॉफ कर दिया,
"देखा ये सिंह झुकने वाला नही है, सीधे गुफा मे घुस जाएगा. बच के रहने तुम लोग."
"अर्रे यहाँ बचना कौन चाहता है," अंजू की सहेली ज्योत्सना बोली, "लेकिन जो सिंह के साथ गीदड़ है ना उनकी आने की मना ही है."
मेरी चाची बोली. " अर्रे लड़कियो पैसा तो तुम लोगों को मिल गया है, रहा गाना तो
ये रही ढोलक ये गाना क्या, अपनी मा बहनो का सब सुर मे सुनाएँगे एक बार फेरों को तो हो जाने दो, " मंडप में ब्याह पढ़ा जाने लगा।
सुबह के चार बज गये, अब बस मंडप के समीप मे 14 से 44 तक की 25-30 लड़कियाँ, औरते (भाभी की भाषा मे कहु तो, 30बी से ले के 38डी तक की) और सब की सब एक दम मूड मे, जिनमे आधे से ज़्यादा उनकी सालिया (मेरी सहेलिया, मेरी बहने और उनकी सहेलिया), सलहजे और बाकी उनकी सास (मम्मी, मेरी चाचिया, मामिया, बुआ, मौसीया और मम्मी की सहेलिया) लगती थी लेकिन जो जोश मे लड़कियो से भी वो दो हाथ आगे थी. वो ही जाग रही थी। ज्यादतर बाराती घराती सोने चले गए थे।
फेरे संपन होने के बाद मेरी गाँव की भाभियों ने उनसे कुल देवी के आगे सिर झुकानेको कहा. एक मूर्ति सी पर्दे के अंदर रखी गई थी. उन्होने कहा कि नही पहले मे पूजा करू तो वो करेंगे.
मौसी ने कहा कि लगता है तुम्हे सिखाया गया है, कि हर चीज़ खोल के देखना. वो हंस के बोले एकदम. भाभी ने कहा ठीक है हम आपकी दोनो शर्ते मान लेते है, लेकिन हमे दुख है कि आप को हम पे विश्वास नही. पहले मेने सर झुकाया और फिर इन्होने. जब वो झुके तो मेरी चाची ने आके पीछे से इनेके नितंबो पे हाथ फेर के कहा,
"लगता है, इसको झुकने से डर लगता है. बचपन मे कोई हादसा तो नही हो गया था, कि ये झुके हो और पीछे से किसी ने गांड मार ली हो." मेरी मामी और मौसीया भी मैदान मे आ गयी.
मौसी भी हाथ फिरा के बोली,
"अर्रे आपको मालूम नही क्या वो हादसा. जिसके कारण वो जो इसकी छिनाल बेहन है, सपना (मेरी नन्द) इसके साथ चिपकी रहती है, 'बता दूं बुरा तो नही मनोगे. उनसे पूछते हुए वो चालू रही, " हुआ ये. ये बात सच है कि एक लौंडेबाज इनके पीछे पड़ गया था, और वो तो इनकी गांड मार ही लेता पर उसका मोटा हथियार देख के इसकी हालत खराब हो गयी. तब तक सपना (मेरी नन्द) वहाँ पहुँची और उसने कहा कि मेरे भैया के बदले मेरी मार लो. तो उसने बोला कि ठीक है लेकिन मे आगे और पीछे दोनो ओर की लूँगा. वो मान गई इसी लिए बस ये उस की"
उन की बात काट के मेरी मामी बोली,
"अर्रे तुम कहाँ उस के चक्कर मे पड़ गये.अहसान की कोई बात नही. ये कहो कि मोटा लौंडा देख के उस छिनाल सपना (मेरी नन्द) की चूत पनिया गयी होगी, इसलिए उस चुदवासि ने चुदवा लिया." मम्मी ने बहुत देर तक अपने को रोका था लेकिन वो अब रोक नही पाई. उनके बाल सहलाते हुए वो बोली,
"अर्रे यहाँ डरने की कोई बात नही है. यहाँ हम सब औरते ही है, तुम्हारे पिछवाड़े पे कोई ख़तरा नही है."
और तब तक जैसे ही इन्होंने सर झुकाया, भाभियों ने कपड़ा हटा दिया. हस्ते हस्ते सब की बुरी हालत हो गई. उसमे मेरी सारी चप्पलो सेंडलों का ढेर था, इस्तेमाल की हुई बाथ रूम स्लिपर से, हाई हिल तक. और साथ मे अंजू, मम्मी की भी. भाभी बोली,
"ठीक से पूजा कर लीजिए, ये आपकी असली कुल देवी है. ये सब आपकी बीबी की है और ये साली, और सास की.आज से इस घर की औरतों की चप्पलो को सर लग के, छू के." किसी ने बोला अर्रे बीबी के पैर भी छू लो चप्पल तो छू ही लिया, तो कोई बोला अर्रे वो तो कल रात से रात भर सर लगाना पड़ेगा, तो किसी ने कहा अर्रे सिर्फ़ रात मे क्यों दिन मे भी. (उसका मतलब मुझे सुहाग रात के बाद समझ मे आया). अंजलि ने अंजू से कहा कहा अर्रे जीजू ने तेरी चप्पल छुई है ज़रा आशीर्वाद तो दे दे. अंजू से पहले भाभी ने आशीर्वाद दे दिया,
"सदा सुहागिन रहो, दुधो नहाओ पुतो फलो." पीछे से मामी ने टुकड़ा लगाया,
"अर्रे तुम्हारे घर मे आज से ठीक 9 महीने बाद सोहर (स्वर) हो. सपना और तेरी जितनी बहनें यहाँ आई है, सबका यहाँ आना फले और सब ठीक 9 महीने बाद बच्चा जने, और तुम मामा कहलाओ.
भाभी ने वापस उन्हे लाकर पटे पे बैठाया.
आख़िरी रस्म चल रही थी, कुंवर कलेउ, पलंग पूजा छाती पान की. थोड़ी देर मे विदाई होनी थी. बारात पहले ही जा चुकी थी. मेने सुना मेरी नन्द सपना किसी से कह रही थी कि वो हम लोगो के साथ ही गाड़ी मे जाएगी.
विदाई के समय पूरा माहौल बदल गया था. मेने लाख सोचा था कि ज़रा भी नही रोऊंगी पर मम्मी से मिलते समय मेरी आँखे भर आई .किसी तरह मैं आँसू रोक पाई, लेकिन पापा से गले मिलते समय, सारे बाँध टूट गये. पापा से मेरे ना जाने कितने तरह के रिश्ते और शादी तय होने से अब तक तो हम दोनो के आँखो से आँसू बिन बोले, झर रहे थे और हम दोनो एक दूसरे को कस के बाहों मे भिच के, मना भी कर रहे थे ना रोने के लिए. और ये देख के मम्मी की भी आँखे जो अब तक किसी तरह उन्होने रोका था, गंगा जमुना हो गयी.
'माहौल को मजाकिया बनाते हुए विनय जीजा बोले "अगर रोने से गले मिलने का मौका मिले तो मैं भी रोना चाहूँगा. "पल भर मे माहौल बदल गया और मैं भी मुस्कान रोक नही पाई. अंजू ने हंस कर कहा एकदम. जैसे ही वो आगे बढ़ी, उन्होने अंजू को कस के गले लगा लिया, और अंजू भी वो मौका क्यो छोड़ती. और फिर अंजू ने हम दोनो को कार मे बैठा दिया. मेने देखा कि आगे कार मे, अगली सीट पे नन्द बैठी थी. तब तक अंजू मेरे पास पानी का गिलास ले आई. मैं जैसे ही पीने लगी, उसने धीरे से कहा, बस थोडा सा पीना. मेने कनेखियो से देखा कि कुछ समझ के वापस वो ग्लास अंजू के हवाले कर दिया. अंजू ने मुस्करा कर वो ही ग्लास ' इन्हे ' दिया. साली कुछ दे और जीजा मना कर दें. इन्होंने पूरा ग्लास गटक लिया.
कार जैसे ही हमारे मोहल्ले से बाहर निकली, उन्होने मुझसे कहा क़ि तुम चप्पल उतार दो और अपने हाथ से घूँघट थोड़ा सरका के मेरा सर अपने कंधे पे कर लिया. हलके से मेरे कान मे उन्होने मुझे समझाया कि मैं रिलेक्स कर लू, अभी एक दो घंटे का रास्ता है, और वहाँ पहुँच के फिर सारी रस्मे रीत चालू हो जाएँगे. कुछ रात भर के जागने की थकान, कुछ उन के साथ की गरमी और कुछ उनके कंधे का सहारा, मैं थोड़ी देर मे ही पूरी तरह नीद मे तो नही तंद्रा मे खो गयी. एक आध बार मेरी झपकी खुली, तो मेने देखा कि उनका हाथ मेरे कंधे पे है. और एकाध बार चोर चोरी से जाए हेरा फेरी से ने जाए मैने महसूस किया कि उनकी अंगुली का हल्का सा दबाव दिया मेरी चोली पे जान बुझ के मेने आँखे नही खोली लेकिन मेरे सारी देह मे एक सिहरन सी दौड़ गई. उन्होने मुझे हल्के से हिलाया, तो मेरी आँख खुल गई. वो बोले, बस हम लोग 10 मिनेट मे पहुँचने वाले है तुम पानी पी लो और फ्रेश हो जाओ.. इतना लंबा सफ़र और पता भी नही चला और नीद इतनी अच्छी थी कि रात भर जागने की सारी थकान उतर गयी.
Bahut bahut aabhaar.रेखा तेरा क्या होगा
सुना है तेरा खसम ठरकी है
मधुर और मनोरम
मजा ही आ गया
शादी व्याह की रस्मों मे गारी वाला भाग आपने स्किप किया थोडा अफसोस जनक रहा मगर ससुराल मे जमाई बाबू की नकेल बराबर कसी गयी ।
छेड़खानी मे जो मजा आया पूछो मत
हाल ही मैने मेरे मित्र की शादी का अनुभव किया था
वहा भी वही ड्रामा हुआ
फेरो के बाद घर मे भगवान के नाम पर सालियों के पैर पुजवाये गये बेचारे से
उसपे से दुल्हन की एक चाची ने खुब कलास ली थी मेरे मित्र की , साथ मे मेरी भी खातिरदारि हुई कि बात बात मै मेरे मित्र का बचाव करने की फिराक मे लगा था ।
बिन बहन के बहनचोद वाला बिल्ला लगाया गया वो भी आलू काट के कामिनीयो ने सूट का शर्ट खराब कर दिया था मेरा
Update bahut late aata hai aapkaBahut bahut aabhaar.
Wakt ke abhaav ki wajh se kahani likhne ka samay kam mil pata hai. Islie main main baato par jyda dhyan raha.
Isi tarah saath jude rahiye
Dhanyavaad
Sorry for this time. Next update jaldi milega.Update bahut late aata hai aapka
Awesome update, aakhir rekhdi ki shadi ho hi gayi bina kisi natak ke
Superb update cant wait to see more
Update postedजिस बेहतरीन तरीक़े से पिछले अध्याय मे शादी-ब्याह के रिति - रस्मों का का आगाज किया था , उसी अंदाज से इन रस्मों का समापन भी किया । बहुत बहुत खुबसूरत अपडेट था यह ।
शुरुआत करते है आप के इस अपडेट की मुख्य बातों से -
बड़े-बुजूर्ग औरतों ने वैसे कुछ और हो सोचकर कहा था कि शादी के बाद औरतों के नसीब मे सोना नही होता । पर हकीकत मे यह सच है कि विवाह के बाद औरत पति की सहचरी बनकर नही वरन सारे परिवार की दासी और सेविका बनकर रह जाती है । उनके लिए आराम करना हराम बनकर रह जाता है ।
जूते छिपाई रस्म - वैसे यह भी बहुत पुराना रस्म है लेकिन सूरज चंद बड़जात्या साहब की फिल्म " हम आपके हैं कौन " के बाद से कुछ ज्यादा ही जोश-उत्साह से यह रस्म मनाया जाने लगा है ।
बारात मे पहले लड़कियां नही जाती थी लेकिन अब यह पुरी तरह बदल चुका है । लड़कियां बारात मे जाती है और वरमाला के वक्त , विवाह के वक्त इनकी मौजूदगी माहौल को खुशगवार और रंगीन बना देती है ।
शादी-ब्याह के मौके पर औरतों द्वारा की गई छेड़छाड़ , उनकी द्वी - अर्थी अश्लील बातें इस अपडेट को रियलिस्टिक बनाता है । बहुत खुबसूरत वर्णन किया आपने।
जूते-चप्पल को पर्दे के पीछे रखकर लड़कियां दुल्हे को यह कहकर - कि यहां हमारे कुल - देवी देवता का स्थान है और आप इन्हे प्रणाम करो - खुब मजाक बनाया जाता है ।
( सच कहूं तो यह सब पढ़कर मुझे अपनी शादी याद आ गई )
विदाई का गमगीन माहौल , दुल्हन की करूणार्द्र विलाप , मां- बाप और भाई - बहन का रोना काफी इमोशनल लम्हा होता है । यह सब मै देख ही नही सकता ।
ऐसे मौके पर " नीलकमल " फिल्म का एक बहुत ही इमोशनल गीत जो मोहम्मद रफी साहब ने गाया था - " बाबुल की दुआएं लेती जा , जा तुझको सुखी संसार मिले " - बिल्कुल सटीक बैठता है ।
( इस गीत की रिकार्डिंग करते वक्त रफी साहब रो भी रहे थे और साथ मे गीत भी गा रहे थे । ये आप इस गीत को सुनकर समझ सकती है । वो चार या शायद पांच लड़की के पिता थे और जब वो गीत रिकार्डिंग कर रहे थे उस वक्त उनके मन मस्तिष्क मे उनकी बेटियाँ ही छाई हुई थी )
इस अपडेट का समापन आपने संजय को अपनी दुल्हन रेखा को पानी पिलाकर किया । यह भी बिल्कुल वास्तविक है । लड़का अपनी दुल्हन को रोते हुए देख नही सकता । वो कभी पानी के बहाने तो कभी कुछ खाने के बहाने उससे बात करता है ।
यह अध्याय बहुत बहुत खुबसूरत था ।
परफेक्ट जगमग जगमग अपडेट।
रेखा तेरा क्या होगा
सुना है तेरा खसम ठरकी है
मधुर और मनोरम
मजा ही आ गया
शादी व्याह की रस्मों मे गारी वाला भाग आपने स्किप किया थोडा अफसोस जनक रहा मगर ससुराल मे जमाई बाबू की नकेल बराबर कसी गयी ।
छेड़खानी मे जो मजा आया पूछो मत
हाल ही मैने मेरे मित्र की शादी का अनुभव किया था
वहा भी वही ड्रामा हुआ
फेरो के बाद घर मे भगवान के नाम पर सालियों के पैर पुजवाये गये बेचारे से
उसपे से दुल्हन की एक चाची ने खुब कलास ली थी मेरे मित्र की , साथ मे मेरी भी खातिरदारि हुई कि बात बात मै मेरे मित्र का बचाव करने की फिराक मे लगा था ।
बिन बहन के बहनचोद वाला बिल्ला लगाया गया वो भी आलू काट के कामिनीयो ने सूट का शर्ट खराब कर दिया था मेरा
Update postedUpdate bahut late aata hai aapka
Awesome update, bechari rekhadi kya soche baithi thi kya ho gya, pati to sala nwabi shokin nikla, chut ki jagah gand mar diअध्याय -- 50
उन्होने मुझे हल्के से हिलाया, तो मेरी आँख खुल गई. वो बोले, बस हम लोग 10 मिनेट मे पहुँचने वाले है तुम पानी पी लो और फ्रेश हो जाओ.. इतना लंबा सफ़र और पता भी नही चला और नीद इतनी अच्छी थी कि रात भर जागने की सारी थकान उतर गयी.
थोड़ी ही देर मे मैं अपने ससुराल पहुँच गयी. मेरी सास और बुजुर्ग औरतो ने पहले हल्दी के छापे मेरे हाथों से घर के द्वार पर लगवाए। लेकिन घर मे घुसने से पहले मेरी ननदो उनकी सहेलियो ने रास्ता रोक रखा था.
उन्होने' 500 रुपये दिए तो मेरी मझली ननद बोल पड़ी,
"वाह भैया सालियो को तो पूरे 1000 और हम लोगो को सिर्फ़ 500"उनकी भाभी, मीरा भाभी मेरी जेठानी पूरा मेरा साथ दे रही थी. वो बोली,
"अर्रे सालिया तो सालिया होती है, तुम सब इनके साथ वो काम कर सकती हो जो सालिया कर सकती है, "लेकिन ननद टस से मस नही हुई. आख़िर मेरी जेठानी बोली, अच्छा चलो मैं तुम लोगो को 500 रुपये देती हू, लेकिन ये वादा रहा कि ये अड्वान्स पेमेंट है, तुम सबको मैं अपने देवर की साली बना के मानूँगी. " सपना ने आगे बढ़ के रुपये ले लिए.
और उस के बाद ढेर सारी रस्मे, गाने लेकिन मेरी जेठानी ने एक के बाद एक सारी रस्मे जल्द ही करवा दी. उसके बाद कंगन खोलने की रसम थी और उनकी भाभियो ने उन्हे खूब चिड़ाया (उसी समय मुझे पता चला कि कंगन और उसके खोलने का क्या 'मतलब' है कि उसके बिना रात को दूल्हा, दुल्हन का मिलन नही हो सकता.) और उसके बाद देवी दर्शन की, उसी के साथ मुझे पता चला कि मज़ाक, गाने और खास कर गालियो मे मेरी ससुराल वालिया, मेरे मायके वालो से कम नही बल्कि ज़्यादा ही थी. और खास तौर से चमेली भाभी वो गाव की थी, 24-25 साल की दीर्घ नितंब, और कम से कम 36 डी.. और इतनी खुल के गालिया बंद ही नही होती थी.
जब सारी रस्मे ख़तम हो गयी तो मीरा भाभी, मुझे एक कमर्रे मे ले गयी और बोली कि अभी डेढ़ बज रहा है. तुम कुछ खा लो मैं ले आती हू. उसके बाद मैं बाहर से दरवाजा बंद कर दूँगी. तुम थोड़ी देर आराम कर लो.। मेरी जेठानी ने मेरे मना करने पे भी अच्छी तरह खिलाया और बाहर से कमरा बंद कर दिया कि आके मुझे कोई डिस्टर्ब ने करे. तीन घंटे मैं जम के सोई. दरवाजा खट खटाने की आवाज़ से मेरी नींद खुली. बस मैं ये सोच रही थी कि काश एक गरम चाय की प्याली मिल जाए, और गुड्डी ने दरवाजा खोला, गरम चाय के साथ. और मेने सोचा कि शायद इस समय मेने जो कुछ माँगा होता तो वो मिल जाता लेकिन फिर मुझे ये ख्याल आया कि जो कुछ मेने चाहा था वो तो मुझे मिल ही गया है और बाकी आज रात को और वो सोच के मैं खुद शर्मा गई. गुड्डी, 15-16 साल की थी, और वो भी टेन्थ मे थी, लेकिन मेरी जेठानी की भतीजी होने के कारण वो मेरे साथ थी.
बस मन मे एक सिहरन सी लग रही थी. डर भी था और इंतजार भी. और जब मेरी जेठानी आई तो उन्होने बोला, कि सुहाग के कमरे मे जाने से पहले अपनी सास का पैर ज़रूर छू लेना. वो हंस के बोली कि हां वो तुम्हारा इंतजार भी कर रही है.
मुझे वो बाहर ले आई. वहाँ मेरी सास, इनकी मामी, चाची, मौसी और घर की और सब औरते, कुछ काम करने वालिया बैठी थी और बन्नो बन्नी के गाने और नाच हो रहा था, जैसा हमारे यहाँ शादी के पहले हुआ था. मेने सब का पैर छुआ. मौसी ने मेरा पैर देख लिया और दुलारी को हड़काया,
अर्रे अपनी भौजाई के महावर तो ठीक से लगा दे .उसने फिर जम के खूब चौड़ा और गाढ़ा महावर लगाया. मैं सब के साथ बैठ के गाने सुन रही थी.
गाने ख़तम होने के साथ ही मेरी सास ने ननदो से कहा, बहू को इसके कमरे मे ले जा. थोड़ा आराम कर ले, रात भर की जागी है, साढ़े आठ बज गये है. जा बहू जा.
चलने के पहले, किसी ने बोला घबड़ाना मत ज़रा सा भी. मेरी सासू बोली, अर्रे घबड़ाने की क्या बात है. मेरे सर पे हाथ फेरते हुए , मेरे कान मे मुस्करा के बोली, ना घबड़ाना ना शरमाना, और मुझे आशीष दी,
"बेटी तेरा सुहाग अमर रहे, और तेरी हर रात सुहाग रात हो"मेरी ननदे मुझे ले जाने के लिए तैयार खड़ी थी. वो मुझे ले के उपर छत पे चल दी. सीढ़ी पे चढ़ते ही उनकी छेड़ छाड़ एकदम पीक पे पहुँच गयी. किसी ने गाया, चोदेन्गे बुर सैयाँ, चुदवाने के दिन आ गये.
जब दरवाजा खुला तो कमरे को देख के मेरी कल्पना से भी ज़्यादा सुंदर, खूब बड़ा. एक ओर खूब चौड़ा सा बेड, और उसपर गुलाब के पंखुड़ियो से सजावट, पूरा कमरा ही गुलाबी गुलाब से सज़ा, गुलाब की पंखुड़ियो से रंगोली सी सजी और बेड के तल मे गुलाब की पंखुड़ियो से अल्पने, दो खूब बड़ी खिड़किया जिन पे रेशमी पर्दे पड़े थे, और सामने ज़मीन पे भी, बेड के बगल मे टेबल पे तश्तरी मे पान, दूसरी प्लेट मे कुछ मिठाइया और ग्लास मे दूध .
मेने सोचा था कि कुछ देर शायद मुझे इंतजार करना होगा.. लेकिन बस मैं सोच रही थी कि बस तब तक दरवाजा खुला और मेरी जेठानी के साथ ""वो..""
कई बार जब लाज से लरजते होंठ नही बोल पाते तो आँखो, उंगलियों, देह के हर अंग मे ज़ुबान उग जाती है.
कुछ लमहे ऐसे होते है जो सोने के तार की तरह खींच जाते है कुछ छनो के अहसास हर दम साथ रहते है पूरे तन मन मे रच बस के "अगर तुम्हारे सामने कोई शेर आ जाए किसी आदमी से पूछा गया तो तुम क्या करोगे. मैं क्या करूँगा, जो करेगा वो शेर ही करेगा." मेरी एक भाभी ने बताया था कि सुहाग रात मे बस यही होता है. जो करेगा, वो शेर ही करेगा.
"अभी 9 बज रहे है. मैं बाहर से ताला बंद कर दे रही हू और सुबह ठीक 9 बजे खोल दूँगी. तुम लोगो के पास 12 घंटे का समय है, और हाँ मैं छत का रास्ता भी बंद कर दे रही हू जिससे तुम लोगो को कोई डिस्टर्ब ना करे.."
वो निकल गयी और बाहर से ताला बंद होने की आवाज़ मेने सुनी. वो मूड के दरवाजे के पास गये अंदर से भी उन्होने सीत्कनी लगा दी.
सुहाग रात शब्द से सभी को झुरझुरी सी आने लगती है। सुहागरात की कल्पना शादी की बात चलने से भी बहुत पहले ही शुरू हो जाती है। इसमें लड़का हो या लड़की दोनों की स्थिति शायद एक जैसी रहती है। जहां सुहागरात को लेकर एक उमंग होती है वहीं मन भीतर से बहुत आशंकित भी होता है।
इसका ये मतलब नही कि मैं बताना नही चाहती या फिर जैसे अक्सर लड़किया अपनी भाभियो और सहेलियो के साथ, 'दिया बुझा और सुबह हो गयी' वाली बात कर के असली बात गोल कर देना चाहती है मेरा वैसा कोई इरादा नही है. मैं तो बस अपने एहसास बता रही हू. तो ठीक है शुरू करती हू बात पहली रात की.
जब किसी की सुहागरात की बात होती है तो मन मे रोमांटिक विचार ही रहते है लेकिन हकीकत में आशंकाए ज्यादा रोमांस कम होता है। ऐसे ही मेरी भी सुहागरात तो होनी ही थी। छोटे छोटे शहर में जहां लाइट का आना जाना ही एक उपलब्धि से कम नही होता। जून के महीने में सुहागरात पड़ना भी एक बुरे सपने से कम नही था। मै ईश्वर से एक ही प्रार्थना कर रही थी कि लाइट न चली जाए। हमारे छोटे छोटे शहरों मे एक सहारा इन्वर्टर का ही होता था। लेकिन विवाह वाले घर मे इन्वर्टर की हालत क्या होति है आप सभी समझ सकते है।
मैं बिस्तर पर बैठी हुई थी कि तभी थोड़ी देर बाद वह आए और मेरे पास बैठ गए । उनके पास से सख़्त बू आ रही थी जो शराब की थी. मुझे शराब से नफ़रत थी लेकिन मैं आज की रात को बर्बाद नही करना चाहती थी. अभी हम उनके पास ही बैठे थे कि इतने लाइट भी चली गयी। बंद कमरा और बत्ती गुल सुनने में बहुत अच्छा लगता है किंतु पसीने से भरे हुए इतनी हालात खराब हो रही थी, मैं सोच रही थी कि 8 घंटे कैसे कटेंगे ये.
फिर वो उठे और अलमारी में रखी मोमबत्ति और मॉर्टीन जला कर मेरे पास आकर के बैठ गये. फूलों की सुंगाधित खुशबू कि जगह मच्छर भगाने वाली मॉर्टीन कोइल की दुर्गंध फैल गयी।
नही उन्होने कोई गाना वाना नही गया...... जैसे कोई इम्तहान की बहुत तैयारी कर ले, पर एग्ज़ॅम हॉल मे जाके सब कुछ भूल जाए वही हालत मेरी हो रही थी. मैं सब कुछ भूल गयी थी. और शायद यही हालत 'इनकी' भी थी.
मेरी साँसें तेज़ हो गयी, उन्होने मेरा घूँघट हटाया और कहा "बला की खूबसूरत हो" बस मुझे इतना याद है, फिर इन्होने पूछा नींद तो नही आ रही और मेने सर हिला के इशारे से जवाब दिया, 'नही'.
फिर इसके बाद हम लोग बल्कि वो कुछ बाते करने लगे. लेकिन उन्होने क्या कहा मुझे याद नही, सिर्फ़ ये कि उन्होने मुझसे अपना पजामा निकालते हुए कहा कि, गर्मी ज्यादा है, और लाइट का पता नही कब तक आयेगी तुम भी अपने कपड़े उतार दो आराम मिलेगा। मैं ज्यादा कुछ बोल ही ना सकी, और मैं आराम से टांगे फैला के अध लेटी हो गयी, बेड के हेड बोर्ड के सहारे.
कुछ देर तक कोई हरकत ना हुई तो मैने अपने हाथ हटा कर देखना चाहा तो क्या देखती हूँ कि मेरे पति अपने सारे कपड़े उतार चुके थे और बिल्कुल नंगे मेरी टाँगो के बीच मे आकर बैठ गये. मुझे अंदाज़ा नही था कि आदमी लोगो का इतना बड़ा हो सकता है. अब उन्होने मेरी टाँगो को हवा मे उठाया और अपना औज़ार मेरे मुहाने पर रख दिया. और अपना लिंग मेरी योनि पर टिकाने का प्रयत्न करने लगे।
लेकिन अँधेरे और शराब के नशे के कारण उसे पता नहीं चला कि उसका लिंग मेरी योनि से थोड़ा नीचे मेरे गुदा द्वार पर टिक गया है। मैं समझ गई थी कि अब वह मेरे साथ गुदामैथुन करने वाले हैं...मै शर्म के कारण नहीं बता सकी की लिंग गलत दिशा में जा रहा है। पर मैं भी काफी उत्तेजित थी इसलिए मैं दुनिया भर की शर्मो हया और घृणा छोड़कर उनके लिंग के सिरे के चमड़े को पीछे खिसका कर जितना हो सके उनका लिंग अपने प्राकृतिक द्वार में प्रवेश करने की कोशिस कर रही थी |
फिर उन्होंने मेरा सिर बिस्तर पर टिका दिया| मैं घुटनों के बल थी जिसकी वजह से मेरे कूल्हे उठे हुए थे, मैं समझ गई कि अब वक्त आ गया है मैं बिस्तर पर उनकी तरफ पीठ करके घुटनों के बल बैठ गई ।
मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा| उनका लिंग पकड़ते वक्त मुझे इस बात का अंदाजा हो गया था कि उनका लिंग् कितना सख्त और दृढ़ है और अब थोड़ी ही देर में वो यह चीज मेरे गुदा द्वार के अंदर घुसाने वाले थे... मैं मारे उत्तेजना और पूर्वानुमान के फिर से रोने लगी... लेकिन शायद वो जानते थे उन्हें क्या करना है... शायद उन्हें पहले से पता था इसलिए उन्होंने सामने रखी कोकोनट तेल की शीशी में से तेल निकालकर मेरे गुदा द्वार पर लगाने लगे और लगाते लगाते उन्होंने अपनी एक उंगली मेरे गुदा द्वार के अंदर डाल दीया| तेल की वजह से मेरे गुदा द्वार का बाहरी और अंदरूनी हिस्सा बिल्कुल चिकना चिकना और फिसलाऊ हो गया था पर मुझे ऐसा लग रहा था कि वो शायद इस बात का अंदाजा लगा रहे हैं कि मेरा द्वार कितना तंग है... एहसास जैसे कि मानो मेरी उत्तेजना को बिल्कुल चरम सीमा पर ले गया... वो मेरी ऐसी हालत देखकर मन ही मन बहुत खुश हो रहे थे| और फिर उन्होंने मेरी कमर को कस कर पकड़ा... कमरे की सारी खिड़कियां- बाहर को खुलने वाली और अंदर को खुलने वाली सब के सब खुली हुई थी| बाहर आसमान में बादल छाए हुए थे हल्की-हल्की बिजली चमक रही थी| ठंडी हवाओं के झोंकों से कमरे के परदे उड़ रहे थे... पर अचानक जैसे सब कुछ शांत हो गया... मैं अब तक छटपटा रही थी और फिर मैं एकदम स्थिर हो गई... उन्होंने अपने लिंग का सिरा मेरे गुदा द्वार पर छुआया... मेरा सारा बदन कांप उठा... उन्होंने फिर मेरे कूलहो को पकड़ कर मेरा गुदा द्वार के अंदर अपना सुडौल, लंबा, मोटा और एक भाले की तरह खड़ा लिंग अंदर घोंप दिया... मैं मारे दर्द के जोर से चीख उठी... और बाहर बड़ी तेज बिजली चमकी और बादल भी बड़े जोर से गरज उठे|
अब तक मैंने सुना ही था कि "जब गाड़ लगे फटने तो खैरात लगी बटने... अब मुझे उसका पूरा पूरा अंदाजा हो चुका था... उन्होंने अपना लिंग मेरे गुदा द्वार के अंदर और थोड़ा घुसा दिया... मैं और जोर से चीख उठी...
मुझे क्या मालूम था कि कमरे एक खिड़की जो अंदर की तरफ खुलती है उसके बाहर बिल्कुल नंगी और उकडू होकर बैठी हुई मेरी मीरा भाभी अब तक हम दोनों की कामलीला पर्दे को थोड़ा सा हटा कर देख देख कर अपनी योनि में उंगली कर रही थी... लेकिन मेरी चीख सुनकर उन्होंने भी हाथ जोड़कर प्रार्थना शुरू कर दी...
वो एक-दो मिनट बिल्कुल बिना हिले दुले चुपचाप वैसे ही बैठे रहे... शायद वह मुझे संभालने का मौका दे रहे थे| और उसके बाद उन्होंने अपनी मैथुन लीला शुरू कर दी और मेरा पूरा बदन उनके धक्कों डोलने लगा... मैं सुख और दर्द के बीच का भेदभाव नहीं कर पा रही थी... मेरे मुंह से बस एक दबी हुई थी आवाज ही निकल रही थी, "उम्मम्मम ममममम" और मुझे मालूम था कि वो बिल्कुल मैथुन होकर मिथुनलीला किए जा रहे थे... कुछ देर बाद मुझे भी यह सब बहुत ही अच्छा लगने लगा...
मैं जरूर बेहोश हो गई थी|
इसलिए मुझे यह याद नहीं कि कितनी देर तक उन्होंने मेरे साथ गुदामैथुन किया और कब उन्होंने मुझे बिस्तर पर सीधा लेटा दिया था|
बस मुझे हल्का-हल्का याद है कि उन्होंने मुझे पानी पिलाया था ।
हां अब मुझे याद आ रहा है शायद ऐसा ही हुआ था... और उनके गरम-गरम वीर्य से मेरी गुदा पूरी तरह से लबालब भर गई थी| मैं एक अजीब सी शांति का एहसास कर रही थी... इसलिए मैं फिर से कब सो गई (या फिर बेहोश हो गई) यह मुझे याद नहीं... उसके बाद फिर मुझे ऐसा लगने लगा कि शायद मैं सपना देख रही हूं... वो मेरे ऊपर लेटे हुए थे और मुझे जी भर के प्यार कर रहे थे| मुझे चुम रहे थे चाट रहे थे|
... न जाने उन्हें आज क्या हो गया था...वह पुरे समय मेरे साथ गुदा मैथुन ही करता रहा यह सोचकर कि उसका लिंग मेरी योनि के अंदर है। मै दर्द के मारे कराहती रही लेकिन वह सोचता रहा कि वह प्रथम सम्भोग के कारण होने वाले दर्द के कारण कराह रही है। एक उत्तेजित और खड़े हुए लिंग का यथा स्थान एक स्त्री की योनि के अंदर होता है... और उनका लिंग् अपनी दिशा से भटक गया था- मेरी गुदा के अंदर... फिर मुझे उनके शरीर की गंध आने लगी... और उनका वजन अपने बदन के ऊपर महसूस करने लगी... नहीं यह सपना नहीं है, हकीकत है|
मैं सोच मे पड़ गयी कि क्या यही वो रात है जिसका हर लड़की इंतेज़ार करती है. अब मैं रोना चाहती थी लेकिन रो भी ना सकी, मेरी शादी की पहली रात थी. मैं पहली बार अपने पति के साथ अंतरंग हुयी थी. करीबी सहेलियों, भाभियो से हुई बातचीत से मेरे दिमाग़ में सपनों और इच्छाओं की कई तस्वीरें उभर रही थीं. सिर झुकाए, हाथ में दूध का गिलास लिए बेडरूम में घुसना. अब तक सब कुछ वैसे ही था जैसा मैंने सोचा था. लेकिन मुझे बिल्कुल भी आभास नहीं था कि एक मुझे कुछ ही देर में ज़ोरदार झटका लगने वाला है.
सपनों के मुताबिक जब मैं कमरे में आती हूं तो मेरा पति मुझे कसकर गले लगाता है, चुंबनों की बौछार कर देता है और सारी रात मुझे प्यार करता रहता है. लेकिन वास्तविकता में, मेरे लिए ये बेहद तकलीफ़ भरा था, ऐसा लगा कि मेरे पूरे अस्तित्व को मेरे पति ने नकार दिया हो.