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Usne matlab Manish ko cheat kar diya kya dekhna padega!!???शातिर है नेहा
Maine kaha hi tha Manish aur Shivika ki jodi mast rahegi.#अपडेट १०
अब तक आपने पढ़ा -
ऐसे ही एक दिन दोपहर के समय मैं उसके केबिन में चला गया, वो खिड़की के पास खड़ी फोन पर किसी से बात कर रही थी, उसकी आवाज बहुत धीमी थी, मुझे साफ से सुनाई नहीं दिया।
".... हां वो तो पागल हो गया है पूरा।"
"......"
"बस जल्दी ही एक बार और करना है।"
"....."
तब तक मैने पीछे से उसे अपनी बाहों में भर लिया।
उसने मुझे देखा, उसके चेहरे पर कुछ घबराहट थी.....
अब आगे -
"अच्छा पापा, अब रखती हूं। कुछ जरूरी काम आ गया है।" बोल कर उसने फोन काट दिया।
"इतना घबरा क्यों गई तुम?"
"अब एकदम से ऐसे कोई पीछे से पकड़ लेगा तो घबराहट सी होगी ही।"
कहते हैं आशिकी में डूबा आशिक समझने समझाने से ऊपर उठ चुका होता है, मेरी भी हालत शायद वैसी ही थी, इसलिए मैने इस बात को फिर ज्यादा तूल नहीं दिया।
"क्या बात कर रही थी अपने पापा से?"
"वही संजीव से डाइवोर्स वाली। वो एक्चुअली कुछ पैसे मांग रहा है मुझसे।"
"कितने?"
"पच्चीस लाख। बोला इतने दे दो, आराम से तलाक दे दूंगा।"
"तो मैं दे देता हूं।"
"नहीं मनीष, इस बात के लिए तुमसे नहीं लूंगी पैसे। मेरी गलती है, मुझे ही इसको चुकाने दो।"
"नेहा, मेरे पैसे तुम्हारे पैसे हैं। जब भी कोई जरूरत हो, बेझिझक मांग लो।"
"वो मुझे पता है मेरे भोले बलम। लेकिन इस मामले में बिल्कुल नहीं। वैसे ज्यादा पैसे हैं तो कुछ शॉपिंग करवा दो।"
"अरे, बस इतनी सी बात? आज ही चलो।"
"नहीं, आज नहीं। कल चलते हैं।"
"ओके, वैसे भी कल सैटरडे है। कल ही चलते हैं।"
ये बोल कर मैने उसको फिर से अपनी बाहों में भर कर चूम लिया।
ऑफिस में अभी हमने किसी को भी अपने बारे में भनक भी नहीं लगने दी थी। इसीलिए काम के अलावा हम लोग ऑफिस अलग अलग ही आते जाते थे। अगले दिन भी शाम को मैं जल्दी ही ऑफिस से निकल कर नेहा को लेने गया। नेहा मुझसे पहले भी निकल चुकी थी। उसके घर से उसे पिक करके हम ऑर्बिट मॉल गए, वहां नेहा ने बहुत सारी खरीदारी की दोनों के लिए, उसके बाद हम उसी में मौजूद एक पब में चले गए। वहां पर डांस फ्लोर भी था। दोनों की ड्रिंक ऑर्डर करने के बाद हम एक टेबल पर बैठ गए, वीकेंड होने के कारण थोड़ी भीड़ थी। डांस फ्लोर पर लोग डांस कर रहे थे।
"चलो डांस करें।"
"मुझे डांस करना नहीं आता नेहा। तुम जाओ, मैं देखता हूं तुमको।"
"अरे चलो न, कौन सा मुझे आता है, लेकिन मुझे पसंद है डांस करना।" उसने जिद करते हुए कहा।
मैं उसके साथ चल गया। वहां पर कई कपल और कई लड़के लड़कियां अलग से भी डांस कर रहे थे। मुझे आता नहीं था तो पहले मैं बस ऐसे ही खड़ा रहा, नेहा मेरा हाथ पकड़ कर गाने की धुन पर झूम रही थी। उसके बदन की थिरकन देख लगता नहीं था कि उसको डांस नहीं आता।
फिर एक रोमांटिक गाना लगा दिया गया, और नेहा मेरे हाथों को पकड़ कर अपनी कमर पर रख दिया और मुझसे बिल्कुल चिपक कर डांस करने लगी। उसके यूं चिपकने से मेरे शरीर में उत्तेजना भरनी शुरू हो गई। मेरे हाथ उसकी पीठ पर घूमने लगे। और हमारे होंठ एक दूसरे से जुड़ गए। तभी गाना खत्म हो गया, और हमारा ड्रिंक भी आ गया था, तो हम वापस टेबल पर आ गए। कुछ देर बाद नेहा वापस से डांस फ्लोर पर चली गई, और मैं खाने का ऑर्डर देने लगा।
वहां नेहा अकेली ही डांस कर रही थी और कुछ ही देर में एक लड़का उसके काफी पास आ कर नाचने लगा। मैं खाने का ऑर्डर दे कर डांस फ्लोर की ओर देखा तो वो लड़का डांस करने के बहाने नेहा के आस पास ही मंडरा रहा था और नेहा को छूने की कोशिश कर रहा था। ये देख मैं भी वहां चला गया और नेहा के आस पास ही डांस करने लगा। उसने शायद मुझे नहीं देख, या मुझे भी अपने जैसा ही एक मनचला समझ लिया। उसकी हरकतें बंद नहीं हुई। मुझे गुस्सा बढ़ रहा था। तभी उसने नेहा की कमर पर अपना हाथ रख कर दबा दिया, जिससे नेहा भी चिहुंक गई, और मैने उसका हाथ पकड़ कर एक थप्पड़ मार दिया उसे, जिससे वो लड़खड़ा कर गिर पड़ा।
ये देख उसके 2 साथी भी आ गए और हम तीनों में हल्की हाथ पाई होने लगी। हंगामा ज्यादा बढ़ता, इससे पहले ही पब के बाउंसर आ कर हम सबको अलग किए और मामला शांत करवाने की कोशिश करने लगे।मैने पुलिस बुलाने को कहा, मगर तब तक नेहा ने बीच में आ कर सारा मामला रफा दफा करने कहा, और छेड़ छाड़ का मामला देख पब वाले भी इसे पुलिस तक नहीं ले जाना चाहते थे। फिर नेहा के समझाने पर मैने भी जिद छोड़ दी।
हम लोग खाना खा कर निकल गए वहां से। मैने नेहा को उसके घर पर ड्रॉप किया और अपने फ्लैट पर आ कर सो गया। अगले दिन संडे था तो सुबह देर तक सोता रहा।
मेरी नींद किसी के फ्लैट की घंटी बजने से खुली। देखा तो नेहा आई थी, अपने साथ एक बड़ा बैग लाई थी वो।
"अरे अभी तक सो रहे हो लेजी डेजी?"
"संडे है यार। और तुम इतनी सुबह?"
"हां संडे है, तभी सोचा आज का दिन तुम्हारे साथ बिताऊं।"
"अंदर आओ।"
नेहा पहली बार मेरे फ्लैट में आई थी और फ्लैट थोड़ा अस्त व्यस्त था। काम करने के लिए एक लड़का आता था, मगर वो एक दिन की छुट्टी पर था। और वैसे भी लड़के अपना घर जल्दी साफ नहीं करते हैं।
"कितना गंदा कर रखा है तुमने।" उसने मुंह बनते हुए कहा।
"मैने सोफे से गंदे कपड़े उठाते हुए कहा, "कोई तो आता नहीं यहां, किसके लिए साफ रखूं? वैसे भी सफाई वाला लड़का छुट्टी पर है, वर्मा इतना गंदा नहीं मिलता।"
उसने मेरे हाथ से कपड़े लेते हुए कहा, "लाओ ये मुझे दो, घर को कम से कम बैठने लायक तो बना लूं।"
ये कह कर उसने कपड़ों को वाशिंग मशीन में डाल कर ऑन कर दिया, और झाड़ू ढूंढ कर सफाई करने लगी।
"ये क्या कर रही हो, कल आयेगा न साफ करने वाला।"
"करने दो मुझे, और जाओ तुम भी फ्रेश हो जाओ, नाश्ता बना कर लाई हूं, एक साथ करेंगे।" एकदम बीवी वाले लहजे में उसने आदेश दिया।
मैं भी फ्रेश होने चला गया। नहाते हुए मुझे याद आया कि तौलिया ले।कर तो आया ही नहीं मैं।
"नेहा, जरा तौलिया दे देना।" मैने बाथरूम के दरवाजे से झांकते हुए कहा।
नेहा तौलिया ले कर आई, और मैने दरवाजे के पीछे से ही हाथ निकल कर बाहर कर दिए, तौलिया पकड़ने के लिए। लेकिन नेहा उसे मेरे हाथ में नहीं दे रही थी और बार बार इधर उधर लहरा रही थी।
"पकड़ के दिखाओ तौलिया।" उसने शरारत से कहा।
मैने भी थोड़ी चालाकी दिखाते हुए तौलिए की जगह उसका हाथ पकड़ लिया और बाथरूम में खींच लिया।
"मनीष, छोड़ो मुझे। भीग जाऊंगी मैं।" उसने मचलते हुए कहा। लेकिन तब तक मेरे होंठ उसके होंठों को बंद कर चुके थे।
मेरे हाथ उसके कपड़े खोलने लगे थे, मैं खुद तो बिना कपड़ों के था ही।
बाथरूम में कुछ देर एक दूसरे के बदन से खेलने के बाद हम बाहर आ गए, और बेड पर फिर से वो खेल शुरू हो गया।
मैं नेहा की योनि को चाट रहा था, और वो मेरे लिंग को मुंह में भरी हुई थी। थोड़ी देर बार मैं नेहा के अंदर था और वो मेरे ऊपर बैठ कर उछल रही थी। कोई आधे घंटे हमारा ये खेल चला, और उसके बाद हम वैसे ही उठ कर खुद को साफ करके नाश्ता करने बैठे। सारा दिन हमने साथ में ही बिताया।
शाम को नेहा को घर छोड़ कर मैं वापस लौट रहा था तो करण का फोन आया मेरे पास।
"सर कहां हैं?"
"अभी तो बाहर हूं, बोलो क्या बात है?"
"वो कल मुंबई वाली ब्रांच में जाना है न मुझे, और कल की एक फाइल पर अपने साइन नहीं किए। मुंबई उस फाइल को लेकर जाना है।"
"मेरे फ्लैट पर आ जाओ आधे घंटे में, मैं साइन कर देता हूं।"
आधे घंटे बाद करण मेरे फ्लैट में था।
"आओ करण, बैठो। क्या लोगे चाय या कुछ और? चाय तो भाई मंगवानी पड़ेगी। हां व्हिस्की बोलो तो अभी पिलाता हूं।"
"अब सर चाय तो हम लगभग रोज ही साथ में पीते हैं।" उसने शर्माते हुए कहा।
मैने व्हिस्की की बोतल निकला कर दो पैग बनाए और थोड़ी नमकीन भी रख ली।
"लाओ फाइल दो।"
उसने मेरी ओर फाइल बढ़ा दी। मैं उसे पढ़ने भी लगा और अपने पैग का शिप भी लेने लगा। करण ने अपना पैग जल्दी ही खत्म कर दिया।
"अरे भाई, बड़ी जल्दी है तुमको। अच्छा अपना एक और पैग बना लो तुम।" ये बोल मैं फिर से फाइल पढ़ने लगा।
थोड़ी देर बाद मैने फाइल पढ़ कर उस पर साइन कर के करण की ओर उसे बढ़ा दिया। करण ने फाइल।अपने बैग में रख ली।
"और करण, मां कैसी हैं अब तुम्हारी?"
"सर अभी तो ठीक हैं, मुंबई जा रहा हूं, वहां एक डॉक्टर का पता चला है उसने भी मिल लूंगा मां के केस के सिलसिले में।" उसकी बात सुन कर लगा जैसे कुछ नशे का असर होने लगा था उस पर।
"चलो अच्छी बात है, कोई हेल्प चाहिए तो बताना। वैसे US में एक डॉक्टर दोस्त है मेरा, बोलो तो उनसे बात करूं कभी?"
"नहीं सर, अभी तो लोग मुंबई वाले को बेस्ट बता रहे हैं। उनसे मिल लेता हूं पहले, फिर बताता हूं आपको।"
"ठीक है फिर।" ये बोल कर मैने एक और पैग बना दिए दोनो के लिए।
"सर, एक बात बोलनी थी आपसे?"
"बोलो करण। ऐसे पूछ कर क्या बोलना, जो कहना है कहो।"
"कैसे बोलूं सर समझ नहीं आ रहा। व वो नेहा है न, सर वो अच्छी लड़की नहीं है।"
"मतलब?"
"मतलब सर, मैने कई बार उसको श्रेय सर के केबिन में आते जाते देखा है। और कई बार मीटिंग वगैरा में भी दोनों को इशारों में बाते करते भी देखा है। आप सर उससे थोड़ा दूरी बना कर रखें।" अब उसकी जबान पूरी तरह से लड़खड़ाने लगी थी।
मैं थोड़ा गौर से उसे देखने लगा था।
"अच्छा सर, अब चलता हूं मैं। सॉरी शायद नशे में कुछ गलत बोल गया हूं तो।" बोल कर वो निकल गया।
मैं थोड़ी देर उसकी बात पर विचार करता रहा, फिर मैने सोचा शायद वो नेहा के एकदम से इतने ऊपर आने से कुछ गलतफहमी पाल रखी हो उसने, इस कारण ऐसा बोल रहा हो।
थोड़ी देर बाद मैं सो गया। अगले 2 दिन कुछ खास नहीं हुआ। मित्तल सर और करण दोनों ही नहीं थे, और करण के न रहने पर मैं और नेहा मिल कर आज पूरा काम देख रहे थे तो ज्यादा समय नहीं मिला हम दोनो को। तीसरे दिन करण मुंबई से आ चुका था, और मित्तल सर भी वापी पहुंच चुके थे, इसीलिए मैं कुछ रिलैक्स था, दोपहर में नेहा मेरे केबिन में आई और मेरी गोद में आ कर बैठ गई।
उसके बैठते ही मेरे केबिन का दरवाजा एकदम से खुल गया......
Oh fuck paka hi ye ladki Neha hi hogi jisne apni mausi ka bahana bana kar Shrey ke sath enjoy kar rahi hogi!!# अपडेट ११
अब तक आपने पढ़ा -
थोड़ी देर बाद मैं सो गया। अगले 2 दिन कुछ खास नहीं हुआ। मित्तल सर और करण दोनों ही नहीं थे, और करण के न रहने पर मैं और नेहा मिल कर आज पूरा काम देख रहे थे तो ज्यादा समय नहीं मिला हम दोनो को। तीसरे दिन करण मुंबई से आ चुका था, और मित्तल सर भी वापी पहुंच चुके थे, इसीलिए मैं कुछ रिलैक्स था, दोपहर में नेहा मेरे केबिन में आई और मेरी गोद में आ कर बैठ गई।
उसके बैठते ही मेरे केबिन का दरवाजा एकदम से खुल गया...
अब आगे -
दरवाजे पर मित्तल साहब खड़े थे, बस एक वही थे जो बिना नॉक किए मेरे केबिन में आ सकते थे। उनको देख नेहा उछल कर खड़ी हो गई और पीछे खिड़की की ओर मुंह छुपा कर खड़ी हो गई। मैं भी शौक के बस उनको ही देख रहा था। वो कुछ सेकंड दरवाजा पकड़ कर वैसे ही खड़े रहे, शायद उनको भी बहुत आश्चर्य हुआ होगा, फिर वो पलट कर निकल गए और जाते जाते बोले, "मनीष अपना काम निपटा कर मेरे केबिन में आओ, बहुत जरूरी बात है।"
मैंने नेहा को जाने का इशारा किया और कुछ देर बाद मैं भी मित्तल सर के केबिन की ओर निकल गया। भले ही अभी तक मैने अपने और नेहा के बारे में किसी को नहीं बताया था, मगर मैं सबसे पहले ये बात मित्तल सर को ही बताता, पर मुझे ये अच्छा नहीं लगा कि उनको इस तरीके से ये बात पता चली। खैर अब सामना तो करना ही था उनका।
मैं उनके केबिन के बाहर पहुंच कर धड़कते दिल से दरवाजा खटखटाया।
"कम इन।"
"सर वो..." मैं सर झुकते हुए अंदर गया और बिना देखे उनसे बोलने लगा।
"बैठो पहले।"
मेरे बैठते ही, "क्या था वो मनीष?"
"जी असल में हम... मतलब मैं और नेहा एक दूसरे से प्यार करते हैं।" मैं एक झटके में अपनी बात बोल गया।
कुछ देर की खामोशी के बाद, "क्या उसने अपने बारे में सब बताया तुम्हे?"
"जी अपनी तरफ से तो सब बता ही दिया है। और बस जैसे ही उसका डाइवोर्स फाइनल होता तो हम सबको बताने ही वाले थे।"
"चलो अब जब तुमने ये फैसला ले ही लिया है तो सही है, वैसे मैने तो कुछ और ही सोचा था तुम्हारे बारे में। फिर भी अगर जो तुम खुश हो तो मैं भी खुश हूं।"
दिल से मेरे बहुत बड़ा बोझ उतर गया था।
"वैसे मैं ये बोलने आया था कि वाल्ट का आधा अप्रूवल तो मिल गया है, बाकी आधा वाल्ट बनाने के बाद मिलेगा। तो अब तुमको इस काम में लग जाना होगा।"
"जी बिलकुल, मैं तो बस आपकी मंजूरी का वेट कर रहा था। फिलहाल एक दो लॉक के वेंडर से बात भी हो चुकी है। बस आप बोलिए तो उनको डेमो के लिए बुलवा लेता हूं, फिर शॉर्टलिस्ट करके आपसे मिलवा दूंगा।"
"ठीक है फिर कल से लग जाओ इसपर। और हां ये सब काम ऑफिस में तो मत किया करो भाई। और कम से कम, जब तक उसका डाइवोर्स फाइनल नहीं होता तब तक तो जरूर।" उन्होंने कुछ मूड हल्का करते हुए कहा।
मैं भी सर झुका कर सारी बोल कर निकल गया उनके केबिन से। नेहा मेरा इंतजार कर रही थी मेरे केबिन में।
"क्या बोला सर ने?"
"वो बहुत गुस्सा थे। उनको ये रिश्ता मंजूर नहीं, बोले कि एक दो दिन में तुमको दिल्ली भेज देंगे।" मैने सीरियस चेहरा बनाते हुए कहा।
ये सुन कर नेहा की आंखों में आंसु आ गए। "मुझे ऐसा ही लगा था मनीष, इसीलिए पहले मैने तुमसे कहा था कि डाइवोर्स हो जाने दो। लेकिन मैं खुद ही बहक गई, और अब?"
उसकी आंखों में आंसु मुझे अच्छे नहीं लगे। "सॉरी नेहा, मैने मजाक किया था। उनको हमारा रिश्ता मंजूर है।" मैने उसके कंधों को पकड़ कर कहा।
नेहा मुझे कुछ देर मुझे आश्चर्य से देखती रही, "क्या? सच में?"
"हां नेहा, बिलकुल सच।"
ये सुनते ही वो मेरे गले लग गई। मैने उसे दूर करते हुए कहा, "ये सब ऑफिस में करने से मना किया है सर ने।"
"ओह, हां सही है ऑफिस आखिर काम करने की जगह होती है।"
"हां, हमें ऑफिस में अपनी मर्यादा नहीं भूलनी चाहिए। अच्छा वो वाल्ट वाले प्रोजेक्ट के काम पर लगना है, अब तुम भी अपने केबिन में जाओ। हम शाम को मिलते हैं।"
नेहा चली गई और मैं काम में मशरुफ हो गया। शाम को मैने नेहा को कॉल किया तो वो ऑफिस से निकल चुकी थी। मैने उसे उसके घर से पिकअप किया। चूंकि आज हमारे रिश्ते को मित्तल सर की मंजूरी भी मिल गई थी, इसीलिए आज हमने साथ में डिनर का प्लान बनाया था।
डिनर से वापस लौटते समय नेहा का फोन बजा। उसने कॉल देख कर इग्नोर कर दिया, पर चेहरे पर कुछ टेंशन सी आ गई। काल कट कर वापस आने लगा, उसने फिर से इग्नोर किया।
"किसका कॉल है जो उठा नहीं रही, और टेंशन में क्यों हो तुम आखिर?"
"कुछ नहीं, ऐसा कोई इंपोर्टेंट कॉल नहीं है।"
"फिर परेशान क्यों हो?"
"व वो, कुछ दिन से देर शाम को मुझे पता नहीं किसकी कॉल आ रही है, कुछ बोलता नहीं कोई, लेकिन रोज कॉल आती है।"
"और ये कब बताने वाली थी मुझे तुम?" मैने थोड़े गुस्से वाले लहजे में पूछा।
"असल में बस कॉल ही आया है, कोई कुछ बोलता नहीं, इसीलिए तुमको नहीं बताया अब तक।"
"अच्छा किस नंबर से कॉल आता है? मुझे बताओ।"
"कोई fix नहीं है, लेकिन एक ही सीरीज से आ रहा है।"
"मुझे दिखाओ" ये बोल कर मैने उससे फोन ले लिया। कॉल अब भी बज रही थी।
नंबर मुझे जाना पहचाना लगा। तब तक कॉल कट गई। मैने थोड़ा दिमाग पर जोर डाला, ये नंबर तो शायद ऑफिस की बिल्डिंग का था। इंटरकॉम वाले सिस्टम में ये सीरीज का नंबर चलता है, लेकिन अब मोबाइल आ जाने से हम लोग सिर्फ इंटरकॉम का ही काम लेते थे उससे।
मैने देखा तो वैसी कॉल्स 5 6 अलग अलग नंबर से आई थी। मैने सबकी सीरीज चेक की तो पता चला कि ये नंबर मेरे ही फ्लोर के हैं, एक नंबर अलग फ्लोर का भी था।
मैने ऑफिस के रिसेप्शन पर कॉल लगाया। और पूछा कि मेरे फ्लोर पर अभी कौन कौन है तो वहां से बताया गया कि अभी अभी प्रिया और उसकी टीम निकली है, करण भी 10 मिनिट पहले ही निकला था। फिलहाल कोई नहीं है है उस फ्लोर पर।
"तुमको ऑफिस में सब कैसे लगते हैं?" मैने नेहा से पूछा।
"मतलब?"
"मतलब अपने वर्टिकल में जो साथ में हैं, वो सब कैसे लगते हैं तुमको, क्या कोई ऐसा भी लगता है जो तुमको नहीं चाहता हो या गलत निगाह रखता हो?"
"ऐसा तो कोई नहीं लगता, सब अपने काम से ही मिलते जुलते हैं मुझसे। हां कई बार मैने गौर किया है कि करण मीटिंग वगैरा में मुझे निहारता रहता है। पर अभी तक उसने कोई ऐसी हरकत नहीं की।"
अब मुझे लगने लगा कि उस दिन करण मुझे नेहा के खिलाफ इसीलिए भड़का रहा था क्योंकि वो शायद नेहा को सीक्रेटली चाहता हो। फिलहाल मैने उन सारे नंबर्स को ब्लॉक कर दिया नेहा के नंबर से, और उसको बोला कि फिर कभी कॉल आए तो मुझे जरूर बताए। मैने उसे घर छोड़ते हुए अपने फ्लैट पर वापस आ गया।
ये हफ्ता ऐसे ही बीत गया। शनिवार को नेहा ने कहा कि उसकी कोई मौसी जो मुंबई में रहती हैं, वो मिलने आने वाली है तो शनिवार और रविवार को मिलना संभव नहीं है। उसको अब वो ब्लैंक कॉल्स आने बंद हो गए थे।
मैं ऑफिस में ही बैठा था कि प्रिया का कॉल आया मेरे पास।
"हेलो मनीष, मैं आज एक मीटिंग के लिए निकली हूं, घर के सीसीटीवी में कोई दिक्कत है, तो क्या तुम टेक्नीशियंस से बात करके उसको सही करवा दोगे? पापा ने तुमसे बोलने को कहा है इसीलिए मैने तुमसे बोला"
"हां क्यों नहीं, वैसे क्या दिक्कत है उनमें?"
"कुछ कैमरा ऑनलाइन एक्सेस नहीं हो रहे, या फिर कई बार कनेक्शन कट जा रहा है। मैं टेक्निशियन का नंबर भेज रही हूं, तुम उनसे बात कर लेना।"
"ठीक है प्रिया, भेज दो। हां वो इंटरनेट प्रोवाइडर का भी भेज देना, शायद उसके साइड से कोई दिक्कत हो।"
"हां वो भी भेज देती हूं।"
वैसे एक दो बार पहले भी घर की कुछ काम को मैने करवाया है, तो प्रिया का ये फोन कोई पहली बार नहीं था। हां पर हर बार वो रिक्वेस्ट जरूर करती थी, और सर का नाम भी बोलती थी। खैर खाली ही बैठा था आज तो मैने सोचा ये काम भी करवा लिया जाय। 2 मिनिट बाद उसने दोनों नंबर भेज दिए थे। मैने पहले कैमरा वाले को कॉल लगाया और उससे प्रॉब्लम के बारे में पूछा और उसने कुछ अपडेट करने बोला। मैने उसे बोला कि वो अपनी तरफ से अपडेट कर दे तो कुछ समय मांग उसने। कोई एक घंटे बाद उसने कॉल करके बताया कि अपडेट्स कर दिया हैं उसने और चेक करने भी बोला। मेरे पास एक्सेस नहीं था तो मैने प्रिया को वापस कॉल लगाई और चेक करने बोला। उसने कहा कि अभी वो बिजी है तो एक्सेस पासवर्ड भेज दिया उसने कि मैं खुद ही चेक कर लूं सब ठीक है या नहीं।
मैने चेक किया तो सब सही था। और मैने टेक्निशियन और प्रिया दोनों को इनफॉर्म कर दिया इसके बारे में। शाम को मैं आज क्लब चला गया जहां समर से भी मुलाकात हो गई, और उसके साथ बैठ कर कुछ ड्रिंक्स भी लेली। फिर मैं ड्राइव करके वापस अपने फ्लैट की ओर निकल गया।
रास्ते में ट्रैफिक बहुत ज्यादा नहीं था, मगर फिर भी ड्रिंक किए होने के कारण मैं आराम आराम से ड्राइव कर रहा था। क्लब से थोड़ा आगे जाने पर दूसरे साइड से आगे से एक कार आती दिखी। ये कार मित्तल हाउस की थी, और ज्यादातर उसे श्रेय ही चलता था। मैंने उस कार की ओर देखा तो ड्राइविंग सीट पर एक आदमी था, जिसका चेहरा मुझे नहीं दिख पाया, और पैसेंजर सीट पर एक लड़की थी। कार पास होते ही स्ट्रीट लाइट की रोशनी में मुझे लगा कि वो लड़की नेहा थी....
Kahin ye sab bhi Neha ka setup to nahi hai Manish ka bharosa jitne ke liye knife ki vaar ko khud par le liya, kyon main Neha par bharosa nahi kar pa raha hoon aur jaise story ko Manish narrate kar raha hai usse to yahi lag raha hai ki wo usne Neha par aankh band kar bharosa kiya hai aur use Neha se dhokha mila hai.#अपडेट १२
अब तक आपने पढ़ा -
रास्ते में ट्रैफिक बहुत ज्यादा नहीं था, मगर फिर भी ड्रिंक किए होने के कारण मैं आराम आराम से ड्राइव कर रहा था। क्लब से थोड़ा आगे जाने पर दूसरे साइड से आगे से एक कार आती दिखी। ये कार मित्तल हाउस की थी, और ज्यादातर उसे श्रेय ही चलता था। मैंने उस कार की ओर देखा तो ड्राइविंग सीट पर एक आदमी था, जिसका चेहरा मुझे नहीं दिख पाया, और पैसेंजर सीट पर एक लड़की थी। कार पास होते ही स्ट्रीट लाइट की रोशनी में मुझे लगा कि वो लड़की नेहा थी....
अब आगे -
वो देख मुझे एक झटका सा लगा, लेकिन फिर सोचा शायद मुझे वहम हुआ होगा, एक तो अंधेरा, ऊपर से मैं थोड़ा नशे में भी। फिर भी दिल नहीं माना, इसीलिए मैने गाड़ी मोड कर उसी दिशा की ओर चला दी, थोड़ी ज्यादा स्पीड में। कुछ ही देर में वो गाड़ी मुझे दिख गई, ट्रैफिक ज्यादा नहीं था इसीलिए मैं थोड़ा पीछे चल रहा था। थोड़ी आगे जा कर वो गाड़ी एक पतले रास्ते पर घूम गई, जिसे देख मैं समझ गया कि इस गाड़ी की मंजिल कहां है। वो रास्ता सीधा मित्तल मेंशन जाता था, इस सड़क पर और कोई घर नहीं था। एक बार मैने सोचा कि मैं भी चला जाऊं वहां, लेकिन वहां मित्तल सर थे नहीं, तो क्या बहाना लेकर जाता, और कोई जरूरी नहीं कि उस कार में जो आया वो मुझे दिख ही जाता।
फिर मैं वापस अपने फ्लैट की ओर चल दिया। पर फिर मुझे सीसीटीवी की याद आई, और मैने अपनी कार साइड में लगा कर अपने मोबाइल पर ही मित्तल मेंशन के सीसीटीवी फीड को खोल दिया। पार्किंग में वो कार लगी हुई थी, मतलब जो भी था उस कार में वो अंदर जा चुका था। सारे कॉरिडोर और सीढ़ियों पर कैमरा लगे थे, पर जिस हिस्से में सबके कमरे थे उधर कोई कैमरा नहीं था। मैं एक एक करके सारे कैमरा चेक किया, लेकिन किसी भी कैमरे में कोई ऐसा नहीं दिखा जो उस कार जैसी दिखे। बस मित्तल सर और महेश अंकल की पत्नियां लिविंग रूम में दिखी। और कोई नहीं था पूरे घर में, या था भी तो अपने कमरे में, जिसे मैं नहीं देख सकता था।
तभी मैने एक कैमरे में कुछ हलचल देखी, ये टेरेस पर वाला कैमरा था, उस को जूम करके देखा तो ऐसा लगा कोई उधर आया है, मगर टेरेस पर लाइट कम थी, और नाइट विजन कैमरा नहीं था। मगर फिर भी ऐसा लगा झूले के पास 2 लोग हैं जो साथ में खड़े हैं। फिर वो आपस में किसिंग करते दिखे मुझे। और धीरे धीरे वो अपनी इस आत्मीय क्रीड़ा में आगे बढ़ रहे थे। और देखते ही देखते वो काम क्रिया में भी लिप्त हो गए। मुझे देख कर अजीब लग रहा था कि ऐसे खुले में वो दोनों ऐसा कर रहे हैं, कोई आ गया तब, वैसे भी घर के हर व्यक्ति को पता है कि हर खुली जगह में कैमरा है तो वो ऐसा कैसे करेगा।
थोड़ी देर बाद दोनों का वो खेल खत्म हो गया और दोनों कुछ देर वहां बैठ कर वापस चल दिए। उन्होंने सीधे पार्किंग में जाने वाला रास्ता लिया और पार्किंग में आ गए। उनकी कार उसी रस्ते के बगल में लगी थी, और दोनों तुरंत ही गाड़ी में बैठ कर घर से निकल गए। पार्किंग में भी रोशनी कम थी इस कारण मुझे फिर से उनकी शक्ल सही से नहीं दिख पाई। मुझे बहुत टेंशन हो रही थी कि वो नेहा है या कोई और।
मैने प्रिया को एक बार फिर कॉल लगाई।
"हेलो प्रिया, कहां हो तुम?"
"मीटिंग से अभी निकली हूं, कोई काम था क्या मनीष?"
"नहीं बस ये पूछने के लिए किया कि सीसीटीवी चेक किया तुमने?"
"समय ही नहीं मिल पाया अभी तक, घर पहुंच कर चेक कर लूंगी।"
"ओके, कोई इश्यू हो तो बताना। गुड नाइट।" ये बोल कर मैने फोन रख दिया। ये प्रिया तो नहीं थी। फिर मैने नेहा को कॉल लगाया, मगर उसने उठाया नहीं।
फिर मैने ऑफिस में कॉल करके अपने ऑफिस की जानकारी ली ऐसे ही कैजुअली, तो पता चला कि श्रेय तो शाम में ही सूरत चला गया था, मित्तल सर का कॉल आने पर। फिर कौन था वो??
कहीं शिवानी अपने बॉयफ्रेंड को लेकर तो नहीं आई थी? मगर घर में वो भी खुले आसमान के नीचे ऐसी हरकत?
फिर मुझे लगा कि इससे अच्छी जगह क्या हो सकती है, एक तो घर में ही, बाहर से किसी के देख लेने का डर नहीं। ऊपर से इतनी रात में टेरेस पर कौन जाता है। कमरे में जाने के लिए तो फिर भी लिविंग रूम से होकर जाना पड़ता, जिससे उसकी मां और चाची को पता चल जाता।
मुझे ये लॉजिक सबसे सही लगा और मैने उस लड़की को शिवानी मान लिया। हालांकि मुझे ये भी नहीं पता था कि शिवानी का कोई बॉयफ्रेंड है भी या नहीं। पर फिर भी नेहा का फोन न उठाना मुझे कहीं न कहीं खटक रहा था।
मैं घर आ गया। मेरा मन बहुत विचलित था। मैने व्हिस्की को बोतल उठा कर पीने बैठ गया। बेचैनी में आज कुछ ज्यादा ही पी लिया मैने और वहीं सोफे पर सो गया।
सुबह मेरी नींद बेल की आवाज से खुली, जो लगातार बजी जा रही थी। मेरा सर दर्द से फटा जा रहा था। मैने किसी तरह से दरवाजा खोला, सामने नेहा थी।
"कहां थे तुम रात से? कितनी काल लगाई नहीं उठाया, अभी पिछले 10 15 मिनिट से बेल बजा रही हूं।" वो गुस्से से बिगड़ती हुई बोली।
"तुमने कॉल किया? कब? बल्कि तुमने मेरा कॉल नहीं उठाया।" मैं थोड़ा गुस्से में बोला।
"हां तुम्हारा कॉल आया था, पर उस समय मैं अपनी मौसी एक साथ फिल्म देखने गई थी, और फोन साइलेंट पर था। पर वहां से लौट कर जब मैने देखा तो कॉल किया तुमको, पर उठाया नहीं तुमने भी, मुझे लगा सो गए होगे। सुबह मौसी वापस चली गई और तब से ही कॉल कर रही हूं, पर फोन नहीं उठने पर मैं खुद ही आ गई यहां। खुद इतने सारे कॉल नहीं उठाए तो कोई बात नहीं, और मेरी एक कॉल न उठने पर इतना गुस्सा?"
मैने उसकी बात का कुछ जवाब नहीं दिया। पर मेरे चेहरे में बहुत अनिश्चितता झलक रही थी।
"क्या हुआ है मनीष? मेरी किसी बात से गुस्सा हो तो बताओ, लेकिन ऐसे मत रहो प्लीज।" उसने मुझे उदास देख पूछा।
"नेहा, कल ऐसा लगा था जैसे तुम मुझे धोखा दे रही हो।"
"क्या मतलब?"
फिर मैने नेहा को कल जो देखा वो बता दिया।
"मैने तुमको बताया था न कि मेरी मौसी आ रही हैं कल, फिर ऐसा कैसे सोच लिया तुमने? मैं तुमको धोखा दे रही हूं ये सोच भी कैसे सकते हो तुम मनीष?" उसकी आंखे भर आई थी।
मैने उसे गले से लगा लिया, "नेहा मैं सच में बहुत डर गया था कि तुम और श्रेय.."
"मारूंगी अगर जो ऐसा सोचा भी।" उसने मेरे पीठ पर मुक्के मरते हुए कहा।
"वैसे भी श्रेय कल ही सूरत चला गया था। वहां पर कुछ बैंक में भी काम था तो उसने कुछ डिटेल ली थी मुझसे जाने से पहले।"
"हां पता चला मुझे।"
"फिर भी शक कर रहे हो?"
"अब नहीं।" ये बोल कर मैने उसके होंठ चूम लिए।
"यक! जाओ फ्रेश हो कर आओ पहले, मुंह से स्मेल आ रही है शराब की।" उसने अलग होते हुए कहा।
मैं बाथरूम में चला गया। कुछ देर बाद फ्रेश हो कर जब बाहर निकला तो पूरे फ्लैट की खिड़कियां बंद थी, और उन पर पर्दे पड़े थे मेरे बेडरूम में हल्की रोशनी थी, जिसमें मैने देखा नेहा एक पारदर्शी नाइटी पहन कर खड़ी थी, और बहुत ही सेडक्टिव नजरों से मुझे देख रही थी।
"सर ने कहा है न अभी इन सब से दूर रहने।" मैने थूक गटकते हुए कहा।
"ये तुम्हारी उस टेंशन का हर्जाना समझो।" ये बोल कर वो मेरे और करीब आ गई।
मैं जस समय बस एक तौलिया लपेट कर खड़ा था, उसने पास आते ही मेरी तौलिया खोल कर एक हाथ से मेरे लिंग, जो पहले ही नेहा को इस रूप में देख सर उठाने लगा था, को सहलाना शुरू कर दिया, और मेरे चेहरे को दूसरे हाथ से पकड़ कर चुंबनों की बौछार कर दी। मेरे हाथ भी अपने आप उसके स्तनों पर पहुंच चुके थे और मैं उनको धीरे धीरे मसलने लगा।
नेहा ने मेरे मुंह से मुंह लगा कर अपनी जीभ मेरे मुंह में डाल दी, मैने भी उसको चूसते हुए नेहा के एक निप्पल के जोर से भींच दिया।
"सीई, आह। क्या करते हो मेरे भोले बलम।" बोलते हुए उसने छाती पर मुक्के बरसाने शुरू कर दिए।
मैने उसकी दोनों बाहों को जकड़ कर बेड की ओर ले गया और उसकी नाइटी को एक झटके में फाड़ते हुए उतर दिया। अब मेरा मुंह उसके स्तनों पर घूम रहा था और एक हाथ से मैं नेहा की योनि को सहला रहा था। उसका एक हाथ मेरे बालों में घूम रहा था और दूसरा अभी भी मेरे लिंग को पकड़े था।
धीरे धीरे मैं उसके पेट की ओर बढ़ने लगा और उसकी गहरी नाभि में अपनी जीभ डाल कर उसे चाटने लगा, नेहा की आहें बढ़ती ही जा रही थी और उसके हाथ मेरी पीठ पर फिसल रहे थे।
फिर नेहा ने मुझे उठा कर बेड पर लेटा दिया और अब वो मेरे ऊपर आ कर मेरे लिंग को अपने मुंह में भर की और अपनी योनि को मेरे मुंह पर थी और मैने जीभ से उसके भग्नासे को छेड़ने लगा। हमारा ये मुख मैथुन कुछ समय तक चला और फिर नेहा अपने घुटनों पर बेड पर आ गई और एक हाथ से मेरा लिंग पकड़ कर अपनी योनि पर लगा दी। मैं पीछे से धक्के लगाने लगा और पूरा कमरा हमारी कामवासना की आवाज़ों से गूंजने लगा। कुछ देर के बाद हम दोनो ही स्खलित हो गए और बेड पर धराशाई हो गए। थोड़ा समय ऐसे ही एक दूसरे से लिपट कर लेट गए।
फिर नेहा ऐसे ही उठ कर रसोई से खाना ले कर आई, जो वो अपने साथ ही बन कर लाई थी। और हम दोनो ने एक दूसरे को ऐसे ही खाना खिलाया। दिन भर हम दोनो साथ ही घर पर रहे। शाम को उसने कहीं घूमने चलने को कहा, तो हम बीच पर निकल गए। अभी शाम ही थी, अंधेरा नहीं हुआ था। हम हाथ में हाथ डाले समुद्र की लहरों के साथ चलने लगे। ऐसे ही टहलते टहलते शाम ढल गई। हमने वापस लौटने का फैसला किया।
पार्किंग में गाड़ी के पास एक मोटरसाइकिल लगी थी, जिस पर एक आदमी टेक लगा कर खड़ा था। हम दोनो के पास पहुंचते ही वो अचानक से हमारी ओर बढ़ा। उसके हाथ में एक चाकू था, और उसने मेरे ऊपर वार किया।
इससे पहले वो चाकू मुझे लगता, नेहा बीच में आ गई, और वो चाकू उसको लगा.....
Wow kya baat hai ye Neha madam aur uske husband Sanjeev dono jail mein bhi rah chuke hain, par isse abhi Neha ka guilty hona prove nahi ho jata hai.#अपडेट १३
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पार्किंग में गाड़ी के पास एक मोटरसाइकिल लगी थी, जिस पर एक आदमी टेक लगा कर खड़ा था। हम दोनो के पास पहुंचते ही वो अचानक से हमारी ओर बढ़ा। उसके हाथ में एक चाकू था, और उसने मेरे ऊपर वार किया।
इससे पहले वो चाकू मुझे लगता, नेहा बीच में आ गई, और वो चाकू उसको लगा.....
अब आगे -
ये सब इतनी तेजी में हुआ कि कुछ समझ नहीं आया पहले, लेकिन नेहा को चाकू लगने से वो चीखी, जिससे मुझे भी कुछ समझ आया और मैंने नेहा को पकड़ कर उस आदमी की ओर देखा, वो वही था जिससे पब में मेरी हाथापाई हुई थी। इससे पहले वो फिर से हमला करता, पार्किंग का गार्ड और कुछ लोग हमारी ओर लपके, और वो अपनी मोटरसाइकिल पर बैठ कर भाग गया।
मैने नेहा को देख उसकी बांह पर एक बड़ा सा कट आया था और उससे बहुत तेजी से खून बह रहा था। और वो बेहोश सी हो गई। मैं फौरन उसे अपने गाड़ी में डाल कर हॉस्पिटल ले गया, उधर पार्किंग के गार्ड ने पुलिस को कॉल कर दिया था, वो मुझे जनता था तो मेरे हॉस्पिटल पहुंचने के कुछ देर बाद ही मेरे फोन पर समर की कॉल आ गई।
"मनीष, क्या हुआ? कहां हो तुम, मैं अभी पहुंचता हूं।"
"मैं सिटी हॉस्पिटल में हूं समर, किसी ने मुझ पर हमला किया और नेहा को चाकू लग गया है। बहुत खून निकला है, अभी डॉक्टर इलाज कर रहे हैं।" मैं भरी हुई आंखों से उसे पूरा हाल बताया।
कुछ ही देर में वो एक इंस्पेक्टर को लेकर हॉस्पिटल में था। और फॉर्मेलिटीज में लग गया था। थोड़ी देर में पूरा मित्तल परिवार भी हॉस्पिटल पहुंच चुका था। और सब मेरी खैरियत पूछ रहे थे।
समर भी हॉस्पिटल का काम करके आ चुका था।
"मनीष, अपना बयान देदो, और नेहा से भी कहो।" समर ने मुझसे कहा।
"हां चलो। और सर, अब आप लोग जाइए। सब ठीक ही है, समर भी आ गया है, और डॉक्टर ने भी कहा है कि नेहा भी ठीक है अब।" मैने मित्तल सर से कहा।
"तुम बयान दे कर आओ बेटा, फिर हम भी नेहा से मिल कर चले जायेगे। भगवान का शुक्र है कुछ बड़ा हादसा नहीं हुआ।"।मित्तल सर ने कहा।
"हां मनीष, चाचा सही कह रहे हैं, तुम बयान दे कर आओ।" श्रेय ने भी अपने चाचा की बात का समर्थन किया।
मैं समर के साथ नेहा के कमरे में चला गया और अपना और नेहा का बयान दिलवा दिया।
मेरे वापस आने पर मित्तल सर, अपनी पत्नी और महेश अंकल अपनी पत्नी के साथ नेहा से मिलने चले गए। श्रेय नहीं था। प्रिया और शिवानी मेरे पास आ कर मुझसे बात करने लगे। शिवानी आज मुझसे कुछ कटी कटी सी थी। कुछ देर बाद श्रेय मेरे और नेहा के लिए कॉफी लेकर आया, और मुझे दे कर नेहा को देने चला गया।
मित्तल सर और बाकी लोग बाहर आ गए, और बाकी लोग नेहा से मिलने चले गए।
"बेटा, कल तुम ऑफिस जाने के पहले घर आ कर मुझसे मिल लेना।" मित्तल सर ने जाते जाते मुझसे कहा।
मैने पैर छू कर उनको विदा किया, और नेहा के पास चला गया। डॉक्टर ने डिस्चार्ज करने को कहा, क्योंकि अब नेहा बिलकुल ठीक थी। मैं उसे उसके घर छोड़ कर अपने फ्लैट में चला गया।
सुबह ऑफिस जाने से पहले मैं मित्तल सर के घर गया। उन्होंने अपनी स्टडी में मुझे बुलाया जो उनके कमरे के साथ ही थी। वहां उनका एक छोटा सा ऑफिस जैसा बना था। वो अपनी चेयर पर बैठे थे और वहां श्रेय भी था।
मेरे बैठने के बाद मित्तल सर ने अपने पीछे लगी तिजोरी खोली और उसमें से एक रिवॉल्वर निकल कर मुझे दी।
"इसे रखो मनीष। तुम तो वैसे भी सिक्योरिटी नहीं रखते, लेकिन इसको अपने साथ रखा करो।"
"मगर..."
इससे पहले मैं आगे कुछ कहता, श्रेय बोला, "मनीष रख लो इसे, वैसे भी हम लोग के कई दुश्मन होते हैं। वापी में सिक्योरिटी न लो, पर इसको साथ रखा करो तुम। तुम्हारे ही नाम है ये।"
"हां बेटा, मैने घर के सारे लोगों के नाम पर एक एक रिवॉल्वर ली हुई है, पर सब मेरे पास ही हैं। लेकिन तुम बाहर रहते हो तो इसे अपने साथ रखो।"
मैने भी उनकी आंखों में चिंता देख ज्यादा बहस करना उचित नहीं समझा और वो रिवॉल्वर अपने पास रख ली। रिवॉल्वर को मैने कार के ही ग्लव बॉक्स में हिफाजत से रख दिया। फिर मैं अपने ऑफिस आ गया।
नेहा आज अपने घर ही थी, इसीलिए काम जल्दी निपटा कर मैं उसके घर चला गया। कुछ देर उसके साथ रहा। फिर शाम को समर का कॉल आया और उसने मुझे अपने ऑफिस में बुलाया मिलने के लिए।
"आओ मनीष, कितनी बातें मुझसे छिपाओगे?"
"क्या छिपाया? पब वाले बात तो बता ही दी थी कल मैने।"
"हां पब वाली बात तो बता दी, पर देहरादून में जो हाथापाई की वो कौन बताएगा?"
"तुमको कैसे पता?" मैने आश्चर्य से पूछा।
"SP नेगी याद हैं? वो मेरा ही दोस्त है। जिस आदमी ने तुम पर हमला किया शायद वो भी देहरादून का ही है। मोटरसाइकिल रेंट पर की थी, वहीं से उसका पता निकला। उसकी कुंडली निकलने के लिए नेगी को कॉल किया था, तब पता चला।"
"मुझे लगा ऐसी कोई बात ही नहीं, इसीलिए नहीं बताया तुमको।"
"अच्छा एक बात और पता है तुमको? तुम्हारी ये नेहा मैडम जेल में भी रह चुकी है 2 महीने के लिए?"
"क्या?" मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं था।
"हां, ये और इसका पति, संजीव दोनों जेल में थे। ये 2 महीने और वो 1 साल। किसी चिटफंड कंपनी का काम करते थे दोनो देहरादून में, उसी के सिलसिले में। हालांकि उसके असली मालिक का पता नहीं चला और इन दोनों को पुलिस ने छोड़ दिया। ऐसा लगता है कि जिस आदमी ने तुम पर हमला किया वो संजीव ने ही भेजा था।"
"मुझे कुछ भी नहीं पता इस बारे में। आज ही मैं नेहा से पूछता हूं इस बारे में।"
"हां पूछ लो, वैसे ऐसी कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन उसे कम से कम बताना तो चाहिए था।"
मैं वहां से निकल कर वापस से नेहा के पास चला गया।
"नेहा क्या सच में तुम मुझसे प्यार करती हो?" पहुंचते ही मैने सीधा सवाल दाग दिया।
वो आश्चर्य से मुझे देखती हुई बोली, "हुआ क्या है मनीष?"
"आखिर आज तक तुमने मुझे पूरा सच क्यों नहीं बताया?"
"कैसा सच?"
"यही कि तुम जेल में भी रही थी।"
मेरे इतना कहते ही नेहा नाम आंखों से मुझे देखती रही कुछ देर तक, और मैं उसके जवाब का वेट कर रहा था।
"हां ये सच है।" उस भरे हुए गले से कहा।
"लेकिन इसमें मेरा कोई कसूर नहीं था मनीष, एक चिटफंड कंपनी थी, संजीव ने उसका काम लिया था, और मुझे भी ऑफिस मैनेजर के रूप में वहां लगवा दिया था। पर वो कंपनी लोगों का पैसा ले कर भाग गई, और लोग मुझे और संजीव को ही पुलिस से पकड़वा दिया। बाद में मेरी जमानत 2 महीने बाद हो गई, और संजीव की 1 साल बाद। यकीन करो, उस कांड में न मेरा और न ही संजीव का कोई कसूर था। हम तो बस उसका काम करके सैलरी लेते थे। इसीलिए पुलिस ने भी बाद में हमको छोड़ दिया था।"
"लेकिन मुझे क्यों नहीं बताया तुमने?"
"मुझे लगा ऐसी कोई जरूरी बात नहीं है ये, इसीलिए। वैसे भी हम दोनो का ही नाम अब उस केस में नहीं है।"
जो बातें मुझे समर ने बताई, नेहा ने भी वही बताई। फिर शक की कोई गुंजाइश ही नहीं थी। मुझे भी ये बात कोई बड़ी नहीं लगी। इसीलिए मैं भी आश्वस्त हो गया।
अगले कुछ दिनों में मैं वाल्ट के काम में लग गया। बैंक का सारा काम काज नेहा ने सम्हाल रखा था, और मनीष हम दोनो की ही मदद करता रहता था।
वाल्ट के काम में मैं हर समय लगा रहता था। मित्तल सर के सबसे बड़े ड्रीम में से वो एक था, इसीलिए कोई कोताही नहीं रखना चाहता था मैं उसमें। तो इधर कई दिनों से नेहा से मुलाकात नहीं हो पाई थी। हां फोन पर हम रोज जरूर बात करते थे।
कोई 2 महीने की मेहनत के बाद वाल्ट बन कर तैयार हो चुका था।
Isme jayada kuchh likhne ko nahi hai par kya aisa hua ki Mittal sir ko pata chal gaya ho ki wo terrace par kisi ko kiss raha tha, kash ye baat bhi sach ho jaye par pata nahi kyonki aapne pahle hi 28 updates tak ye story likh liya hai.#अपडेट १४
अब तक आपने पढ़ा -
वाल्ट के काम में मैं हर समय लगा रहता था। मित्तल सर के सबसे बड़े ड्रीम में से वो एक था, इसीलिए कोई कोताही नहीं रखना चाहता था मैं उसमें। तो इधर कई दिनों से नेहा से मुलाकात नहीं हो पाई थी। हां फोन पर हम रोज जरूर बात करते थे।
कोई 2 महीने की मेहनत के बाद वाल्ट बन कर तैयार हो चुका था।
अब आगे -
ये वाल्ट सरकारी और प्राइवेट दोनों के इस्तेमाल के लिए बनाया गया था। माडर्न सिक्योरिटी से भरपूर ये वाल्ट अपने समय का सबसे आधुनिक वाल्ट था।
जमीन से दो फ्लोर नीचे इसे बनाया गया था। ऊपर गेट पर गार्ड्स का एक रूम था, जहां बिना फिजिकल चेकिंग के कोई नहीं जा सकता था। हर जाने वाले के लिए हमेशा नया पास कोड दिया जाता था जो हर बार बैंक के हेडऑफिस, यानी कि मेरे ऑफिस से ही इश्यू होता था, और उसके ऑथोराइजेशन बस 3 लोग के पास थी, मेरे, मित्तल सर और महेश अंकल के पास। उसके बाद मेन वाल्ट के फ्लोर तक जाने के लिए लिफ्ट थी जो फिंगर सेंसर से चलती थी, जिसे ऑथोरिटी लेटर इश्यू करते समय ही रजिस्टर किया जाता था। जिसका एक बार रजिस्टर हो गया, वो दुबारा करने की जरूरत नहीं थी।
नीचे वाल्ट को दो हिस्सों में बांट गया था, एक ओर प्राइवेट वाल्ट थे, जो छोटी तिजोरी जैसे ही थे, और दूसरी ओर 5 बड़े कमरे, सरकार के लिए बनाए गए थे। दोनों की एंट्री एक ही गेट से होती थी और उसका लॉक भी फिंगर प्रिंट से खुलता था। उसके बाद हर वाल्ट का अलग अलग कोड था, और वो प्राइवेटली ही सेट किया जा सकता था, पर उसका रिकॉर्ड भी हेडऑफिस में मेंटेन होता था।
इनके अलावा पूरे परिसर में सीसीटीवी और मोशन सेंसर अलार्म लगे थे। मोशन सेंसर अलार्म दोनों वाल्ट में होने वाली गतिविधियों को मॉनिटर करते थे, और जब कोई प्राइवेट वाल्ट के इस्तेमाल की परमिशन लेकर जाएगा, उसे सरकारी वाल्ट में जाने की इजाजत नहीं होगी, और सरकारी वालों को प्राइवेट की तरफ जाने की। किसी के भी उधर जाते ही अलार्म ट्रिगर हो जाएगा, जो सीधा पास के थाने से जुड़ा था, और साथ साथ नीचे वाला गेट भी ऑटोमैटिक लॉक हो जात था, जिसे खोलने के लिए हेडऑफिस से ही पासवर्ड डाल कर खोला जा सकता था।
बिल्डिंग बनने और ये सारे सिस्टम अपग्रेड होते होते 2 महीने बीत गए थे। वाल्ट को हेडऑफिस के पास में ही बनाया गया था, जिससे कभी भी जरूरत पड़ने पर जल्दी से जल्दी वहां पहुंचा जा सके। इन दो महीनों में एक दिन का भी आराम मुझे नहीं मिला हां करण कई बार आ कर मुझे कुछ घंटों का रिलीफ दे देता था, मगर ये सारा काम मेरे ही देखरेख में हुआ था। इस दौरान मेरा नेहा से मिलना भी लगभग न के बराबर ही रहा।
जिस दिन ये सब बन कर तैयार हो गया, उसी दिन मैने पूरे सिस्टम को मित्तल सर को दिखाया और वो बहुत इंप्रेस हुए इससे।
"मनीष बहुत बढ़िया, मुझे लगता है ये मंत्री जी को पसंद आएगा, इसका कोई प्रेजेंटेशन बना लेना, जल्दी ही हमे दिल्ली चल कर मिलना होगा, और पूरा सिस्टम भी समझना होगा।"
"जी बिलकुल, मैं एक दो दिन में इसे तैयार कर देता हूं।"
" चलो एक पार्टी भी रख लेते हैं इसको सेलिब्रेट करने के लिए। आखिर तुमने जो मेहनत की है वो अपने ऑफिस में तो सबको पता चलनी चाहिए। कल शाम को ही एक पार्टी रख लेते हैं ऑफिस में।"
अगले दिन शाम को ऑफिस में एक बढ़िया सी पार्टी हुई, जिसमे सभी लोगों ने मेरे काम को बहुत सराहा। नेहा भी इतने दिनों के बाद मुझको मिली थी, तो पार्टी के बाद हम दोनो एक साथ ही निकल गए। और अपने फ्लैट में चले गए।
अगले दिन संडे था तो मैंने और नेहा ने पूरा दिन लगभग साथ में बिताया। शाम को जब हम घूमने निकले तो नेहा को थोड़ा डर सा लगा, क्योंकि जब आखिरी बार हम इस तरह से निकले थे तो हम पर हमला हुआ था। ये देख मैने उसे आश्वस्त करने के लिए गाड़ी में रखी रिवॉल्वर दिखा दी, जिसे देख वो थोड़ा तो निश्चिंत हुई लेकिन फिर भी उसके कहने पर इस बार हम एक माल में चले गए, जहां भीड़ भाड़ थी। फिर रात को अपने फ्लैट पर वापस आ कर मैं सो गया।
अगले दिन ऑफिस में बैठ कर मैं उसी प्रेजेंटेशन को बनाने में व्यस्त हो गया। दो दिन बाद मित्तल सर ने मुझसे उस प्रेजेंटेशन की जानकारी ली, जो लगभग तैयार था। मेरे हां कहने पर उन्होंने मंत्रालय में आपॉइंटम के लिए कॉन्टेक्ट किया, और शुक्रवार की आपॉइंटमेंट मिल गई उनको।
हम दोनो सुबह ही दिल्ली के लिए निकल गए, और दिन भर की मीटिंग के बाद हम फॉर्महाउस पहुंचे। वहां पर श्रेय भी आया हुआ था, अपने वर्टिकल के किसी काम से।
मित्तल सर ने अपना लैपटॉप मुझे दे कर कहा कि वो वाला प्रेजेंटेशन मैं उनके लैपटॉप में भी डाल दूं। मैं उनका लैपटॉप ले कर अपने कमरे में चला गया और फ्रेश हो कर उसमें प्रेजेंटेशन डालने बैठ गया।
कोई आधे घंटे बाद मैं लैपटॉप ले कर सर के कमरे में गया, पर वो अपने कमरे में नहीं थे, तो मैं लैपटॉप रख कर जाने लगा। तभी मुझे उनके स्टडी से कुछ आवाजें आई, सर शायद वहीं थे। मैं उस तरफ बढ़ने लगा, पर दरवाजे को खोलने से पहले ही मुझे ऐसा लगा वो किसी से बहस कर रहे हैं....
Wow Shrey wow bahut khub isme Manish ki kya galti??#अपडेट १५
अब तक आपने पढ़ा -
कोई आधे घंटे बाद मैं लैपटॉप ले कर सर के कमरे में गया, पर वो अपने कमरे में नहीं थे, तो मैं लैपटॉप रख कर जाने लगा। तभी मुझे उनके स्टडी से कुछ आवाजें आई, सर शायद वहीं थे। मैं उस तरफ बढ़ने लगा, पर दरवाजे को खोलने से पहले ही मुझे ऐसा लगा वो किसी से बहस कर रहे हैं....
अब आगे -
ये श्रेय था। आज तक मैने कभी उसे मित्तल सर के साथ इतनी तेज आवाज में बात करते नहीं सुना था। मैं वहां से जाने लगा, पर तभी मुझे मेरा नाम सुनाई दिया। अब मैं कान लगा कर उनकी बहस सुनने की कोशिश करने लगा।
"चाचाजी, मनीष को मैं किसी भी सूरत में बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में शामिल नहीं होने दूंगा।" श्रेय की आवाज आई।
"लेकिन क्यों? अच्छा लड़का है टैलेंटेड है, ऐसे लोगों की जरूरत है कंपनी को, वैसे भी मैं उसे अपना बेटा मानता हूं।"
"पर वो मानता है क्या? पहले मैं भी उसे अच्छा मानता था, पर उसने शिविका के साथ क्या किया?"
"श्रेय।" इस बार मित्तल सर की आवाज बहुत तेज थी। "उसमें उसकी क्या गलती थी? उसे तो पता भी नहीं कि हम उसकी शादी शिविका से करवाना चाहते थे, बतानि तो हमें ही थी ये बात, पर हम ही अपने स्वार्थ में पहले अपने सपने पूरे करवाने लगे उससे। और उसका दिल कहीं और लग गया, तो इसमें कोई क्या कर सकता है। और ऐसा नहीं है कि मैं बोलता तो वो शिविका से शादी नहीं करता, लेकिन ये सोचो फिर अपनी ही शिविका का जीवन कैसा हो जाता? क्या पता मनीष उसे वैसा प्यार दे पता या नहीं?"
"फिर भी चाचाजी, मैं नहीं चाहता कि वो बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में आए।"
"तुम इस कंपनी में मेरी ऑथोरिटी को चैलेंज कर रहे हो श्रेय?"
"नहीं चाचाजी, वो मैं कभी नहीं कर सकता। मुझे अच्छी तरह से पता है कि ये कंपनी आपके बिना यहां तक नहीं पहुंचती, और इसीलिए पापा भी कभी आपकी कोई बात नहीं टालते, लेकिन फिर भी मैं आपकी इस बात के खिलाफ हूं।"
" तक फिर मनीष बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में आएगा, ये मेरा फैसला है।"
"फिर मैं भी पूरी कोशिश करूंगा कि वो न आए।" श्रेय ने भी ऊंची आवाज में बोला।
मुझे लगा कि वो बाहर आने वाला है, इसीलिए मैं वहां से अपने कमरे में चला आया। मेरे और शिविका के बारे में मित्तल सर ने ये सोचा था इसे।जान कर मुझे खुद में कुछ ग्लानि होने लगी, शायद यही कारण था कि अब शिविका मुझसे कटी कटी रहने लगी थी। लेकिन शायद सर भी सही थे, उनके कहने पर मैं आज भी नेहा को छोड़ दूं, पर वो प्यार किसी और को दे पाऊंगा? शायद कभी नहीं।
श्रेय उसी समय वापस वापी के लिए निकल गया था। हमें अभी 2 से 3 दिन और लगने थे। अगले दिन गृह मंत्रालय से बुलावा आया और हम लोग वहां मीटिंग के लिए चले गए। मीटिंग अच्छी रही थी। सरकार अपने खजाने का कुछ हिस्सा रखने को तैयार थी, बस उनकी एक जांच समिति आ कर वाल्ट की सुरक्षा जांच करने के बाद ही इसका अप्रूवल मिलता था। हम वापस वापी आ गए।
अगले हफ्ते पहले ही दिन बोर्ड ऑफ डायरेक्टर की मीटिंग बुला ली गई। फिलहाल इसमें 9 मेंबर हैं, मित्तल सर जो 15% होल्डिंग रखते हैं और फिलहाल मैनेजिंग डायरेक्टर हैं, उनके अलावा महेश अंकल के पास 10%, दोनो की पत्नी और बच्चों के पास 5 5 % की होल्डिंग है। इनके अलावा 2 प्रमोटर है जो 5% की ही होल्डिंग रखते हैं। बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में आने के लिए कम से कम 5% की होल्डिंग होना जरूरी था, और 1% से ऊपर की होल्डिंग बिना बोर्ड ऑफ डायरेक्टर के अप्रूवल के नहीं मान्य थी। तो किसी को भी बोर्ड में शामिल होने के लिए इनकी अप्रूवल जरूरी थी।
हर मेंबर को एक वोट की ही वोटिंग राइट थी, लेकिन MD होने के नाते मित्तल सर की बात को कोई आज तक काटा नहीं था, तो वोटिंग को नौबत नहीं आई थी।
आज की मीटिंग में मुझे भी बुलाया गया था।
मीटिंग शुरू होते समय मुझे मित्तल सर के चेहरे पर कुछ टेंशन दिखी, जो मुझे बहुत चुभ रही थी। आज तक मैने उनको कभी इस प्रकार से तनाव में नहीं देखा था।
मीटिंग शुरू होने पर कुछ जनरल बाते डिसकस हुई, वाल्ट के लिए सरकार की ओर से लगभग मंजूरी मिलने की बात भी मित्तल सर ने बताई जिसे सुन सभी बहुत खुश हुए, और मुझे भी बधाई दी।
फिर मित्तल सर ने मुझे बोर्ड में शामिल होने का प्रपोजल दिया। जिसे पहले तो महेश अंकल ने एक्सेप्ट किया, लेकिन उसके फौरन बाद ही श्रेय ने उठ कर इस प्रस्ताव का विरोध कर दिया, और वोटिंग की बात कर दी। इसे सुन कर न सिर्फ मित्तल सर, बल्कि महेश अंकल भी टेंशन में आ गए।
वोटिंग के लिए चीफ अकाउंटेंट और कंपनी सेक्रेटरी को कॉल किया गया, और उनके आने पर वोटिंग का प्रोसेस शुरू हुआ।
और पहले मोशन के विरोध में लोगों के वोट लिए गए, और उसके रिजल्ट देख सबसे बड़ा झटका मित्तल सर को लगा.....
Cheat का तो सवाल ही नहीं है। चू**काट दिया कतईUsne matlab Manish ko cheat kar diya kya dekhna padega!!???
अब क्या ही करें, मनीष बाबू कहीं और दिल, या कुछ और लगाए बैठे हैंMaine kaha hi tha Manish aur Shivika ki jodi mast rahegi.
Ye Neha kisse baat kar rahi thi aur bol rahi thi ki bas ek baar aur Manish ke sath karna hai wo uska diwana ho chuka hai, kahin koi naya boyfriend to nahi paal rakhi hai Neha ne.
Neha ki kamar par kisi ne hath daal diya aur usne itni easily use jane diya ye kya naya drama hai.
And one more thing mujhe lagta hai Karan ne jo Manish ko Neha aur Shrey ke bare mein bataya hai wo sach hi hoga!!
धन्यवाद भाईWell wonderful update brother, thrilling with some suspense in the end.
थ्रिलर में थ्रिल ही न रखें तो क्या स्टोरी बनेगीIsme jayada kuchh likhne ko nahi hai par kya aisa hua ki Mittal sir ko pata chal gaya ho ki wo terrace par kisi ko kiss raha tha, kash ye baat bhi sach ho jaye par pata nahi kyonki aapne pahle hi 28 updates tak ye story likh liya hai.
Phir se ek baar ye update suspense par hi end hua, lagta hai aap readers ki suspense se jaan lena chahte ho.
Well nice update brother.... .
इसमें भी गहरा राज छिपा है, समय आने पर खुल जाएगा वो भी।Wow Shrey wow bahut khub isme Manish ki kya galti??
Shrey apne hi chacha ke decision ko oppose kar raha hai, kya karna chahta hai ye Shrey??? Ab ye bhi shak ke ghere mein aa raha hai, kyonki ek aur wo Manish ki gun lene ke liye apna approval deta hai aur board of directors mein shamil karne ke liye oppose karta hai ??
Well beautiful update, ek baar phir se story suspense par hi end hua.