- 19,187
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कैसे भाई जी, याद रखिए उसकी रिवॉल्वर गायब है, और फोटो में वो अपनी ही रिवॉल्वर लिए हुए है।अगर संजीव का ख़ून होता है, तो भी मनीष पर कोई आँच नहीं आने वाली।
वो फोटो ही उसकी बेगुनाही का सबूत है।
कैसे भाई जी, याद रखिए उसकी रिवॉल्वर गायब है, और फोटो में वो अपनी ही रिवॉल्वर लिए हुए है।अगर संजीव का ख़ून होता है, तो भी मनीष पर कोई आँच नहीं आने वाली।
वो फोटो ही उसकी बेगुनाही का सबूत है।
हां, लेकिन कोई और ही उसकी तस्वीर ले रहा है।कैसे भाई जी, याद रखिए उसकी रिवॉल्वर गायब है, और फोटो में वो अपनी ही रिवॉल्वर लिए हुए है।
लेकिन फोटो तो अगेंस्ट में इस्तेमाल हो ही सकती है, बाकी फोटो कैसे ली गई ये प्रूव करना होगा। मतलब रैंडम या जानबूझ कर बनाई हुई सिचुएशन है, ये प्रूव करने के लिए किसी विटनेस का होना जरूरी हैहां, लेकिन कोई और ही उसकी तस्वीर ले रहा है।
साफ़ बात है कि झूठ मूठ का staged फोटो लिया गया है।
और बॉडी अगर मिलती है, तो उससे भी सिद्ध हो जाएगा। वैसे इस मूर्ख को पुलिस को इत्तिला दे देनी चाहिए थी।
Fantastic update
तो आखिरकार नेहा और संजीव के जाल में फंस ही गया हमारा हीरो
देखते हैं इस जाल को बुना किसने है
मेरा अंदाजा तो श्रेय या शिविका भी हो सकती है
Ye Shreya bhosdi wala chahta hi nahi ki manish bord of director me samil ho, kyu ki agar aisa hota hai to fir wo uski barabari per aajayega, saale ne party me bhi manish ki gand jala di, khsir ye neha ka kya chakkar hai? Kya wo kisi khatre me hai? Ya manish ko chhod gai? Udhar sona aana suru ho gaya hai, to manish ka kaam or rutba dono hi badh rahe hai Superb update Riky bhai
To aakhir kar Neha ne khud call karke Manish ko bula leya or sab bat clear ki or sath me Majedar Romantic sex dono ka
.
Lekin ye Sanjeev achnak se kaise aa gaya yaha per or isne Revolver kaise nikal Lee Manish ki car se or usse bhi sabse badi bat Sanjeev or Neha ke bich jab Manish aaya to esa kya hua hoga ki Neha ki cheekh nikal gaye or Jaise he Manish jaise he palta kisi ne uske Sir pe mara aakhir kisne mara hoga Manish ke sir per
.
Kafi Romanchkari raha update ka ye last scene Riky007 bhai BRILLIANT writing
Awesome update
Neha vapish aayi aur ek nayi kahani sunakar sex ka dose dekar lagta hai manish ko fasa liya
और ये लगे ‘भोले बलम’ के लौ*!
जैसा मैंने पहले ही कहा था -- कार में पिस्तौल रखना सबसे बड़ी मूर्खता का काम है। ऐसी लावारिस पड़ी वस्तु कोई भी उठा सकता है। लेकिन, सवाल यह है कि संजीव को कैसे पता चला कि कार में ही उसकी पिस्तौल है? मनीष ने नेहा को दिखाया था, लिहाज़ा, संजीव को नेहा से ही पता चल सकता था। है कि नहीं?
नेहा की कहानी में बहुत से झोल हैं बाबा, बहुत से! इतना कमाती है तो शहर से इतनी दूर आ कर रहने की कोई मजबूरी नहीं है। पुनः, इतना कमाती है, फ़ोन जैसी मामूली वस्तु तुरंत ले सकती है। मन्नू भाई के सारे प्रश्नों के उत्तर दूध मलाई जी उसकी दही बना कर दे देती हैं।
मैं अपने सभी दोस्तों और अब अपने आगे वाली पीढ़ी को रिलेशनशिप पर एक सलाह ज़रूर देता हूँ -- never date a woman who carries a past! नेहा तो न जाने क्या क्या रहस्य लिए घूम रही है -- बार बार मन्नू भाई को दिखा भी रही है उसके उदाहरण! लेकिन इस गधे को समझ ही नहीं आ रहा है। थोड़ी भी सतर्कता नहीं है उसमें।
संजीव और नेहा हैं शतरंज के प्यादे। लौ* लग रहे हैं मनीष के -- या फिर किसी और के? शायद रजत मित्तल के?
देखते हैं।
सेक्स... एक दवा की तरह होता है उसे दबा कर करने से दुश्मन भी दोस्त बन जाते है नेहा ने मनीष को बुला कर, उसको दबा कर.. दवा का डोज दिया है। मनीष लगोट का कच्चा शुरू से ही रहा है, इसमें कोई दो राय नही है लेकिन संजीव भाई साहब को क्या अपनी खुजली इसी update मे खुजानी थी... नेक्स्ट update मे गोलीबारी कर देते।
Bahut hi badhiya update he Riky007 Bhai,
Aakhirkar Manish ke kehne par mittal sir ne proposal wapis le hi liya............
Lekin unko is proposal ko wapis lene me jitni beizzati aur jillat mehsus huyi he wo sirf wo hi samajh sakte he
Party me shery ne ek fir manish ke zakhmo par namak chidak diya..............
Neha ka wapis jana aur fir uska phone lagatar band aana kisi khatre ki ghanti na ho.........
Keep rocking Bro
कुल मिलाकर वही ! राइटर साहब नेहा मैडम का बचाव पर बचाव किए जा रहे है बल्कि एक तरह से उसके डिफेंस लाॅयर की भुमिका मे नजर आ रहे है और इधर रीडर्स नेहा को विलेन बनाने की कोई कोर कसर नही छोड़ रहे हैं ।
इस बार उनकी मोबाइल फोन गुम हो गई । एक माह तक कोई कंटेक्ट नही अपने कथित भोले बलम से । यह रियल मे किसी के गले नही उतरता कि इतने कोइंसिडेंस कैसे हो सकते हैं !
जैसा कि अमर भाई ( avsji ) ने भी कहा , कार मे रखी हुई रिवाल्वर के बारे मे राजेश को कैसे पता ! यह या तो मनीष को पता था या नेहा को ।
खैर , मनीष साहब पर विपत्ति सर पर आन खड़ी है लेकिन हमे विश्वास है वो इस विपत्ति से सकुशल बाहर भी निकल आयेंगे ।
पर अब जरूरी हो गया है मनीष साहब अपनी आंख और कान को मजबूत करें । दिमाग से सोचें ।
वैसे मित्तल कंपनी के बोर्ड आफ डायरेक्टर मे मनीष का शामिल न होना मनीष साहब के लिए वरदान ही साबित होगी । वाल्ट लूटने वाला है इसपर मुझे जरा भी संदेह नही है । कम से कम इस लूट के आरोप से वह बचे रहेंगे ।
इसीलिए कहते हैं प्रभु जो करता है आप के बेहतर के लिए ही करता है ।
मनीष साहब को शिविका से मेल मुलाकात भी बढ़ाना चाहिए । यह लड़की आप से प्यार करती है । बोर्ड आफ डायरेक्टर इलेक्शन के दौरान आप को सपोर्ट करती है । और क्या चाहिए आपको !
मित्तल साहब के बाद सिर्फ यही लड़की है जो मनीष को बुरे समय मे मदद कर सकती है ।
खुबसूरत अपडेट रिकी भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट ।
Nice update....
Matlab manish ke sach me laude laga diye ju ne
Khair, je to hona hi tha. Second hand maal par laar tapkane ka kuch to natija nikalna hi tha lauda...but aakhir me kisne pel diya isko...kahi Neha hi ne to nahi??
Yeh jaal jisme Manish fansa hai Mittal ki buni hui to nahi jisme Shrey, Sanjiv, Neha , Shivika mohre hai. Revolver de kar Manish ko lambe fansane ki bhi chal ho sakti hai. Romanchak Pratiksha agle rasprad update ki
Nice update....
Nice update....
अपडेट पोस्टेडBahut hi shaandar update diya hai Riky007 bhai....
Nice and lovely update....
Aaaaaayyyyyeeeee#अपडेट १९
अब तक आपने पढ़ा -
शाम को मैं फिर से उसी जगह होते हुए फ्लैट पर पहुंचा, और फ्रेश हो कर खाने का ऑर्डर दे दिया। 5 - 10 मिनिट बाद ही दरवाजे की घंटी बजी। अभी कौन हो सकता है, क्योंकि खाना आने में कम से कम आधा घंटा लगता है। मैने दरवाजा खोला, कोई नहीं था। लेकिन दरवाजा बंद करते समय मेरी नजर नीचे पड़े हुए एक भूरे एनवेलप पर गई।
मैने उसे उठा कर वो लिफाफा खोला, और उसमें मेरी और संजीव की फोटो थी, जिसमें मैं उस पर रिवॉल्वर ताने खड़ा था। इसी के साथ मेरा फोन भी बजा, ये किसी प्राइवेट नंबर से कॉल था.....
अब आगे -
कांपते हाथों से मैने फोन उठाया। "ह ह हैलो?"
"मनीष, फोटो तो तुमने देख ही ली होगी, अब जरा अपनी कार की डिक्की भी एक बार देख लो।" एक घरघराती सी आवाज आई उधर से।
"हेलो कौन बोल रहा है, और क्या है ये सब?"
"पहले डिक्की चेक करो, फिर आगे बात करेंगे।" ये बोल कर फोन काट गया।
मैं सोच में पड़ गया कि क्या करूं, फिर थोड़ी देर बाद हिम्मत करके नीचे उतर कर कार की तरफ चल दिया। मेरी कार बिल्डिंग के पीछे की ओर पार्क होती थी, साथ में बस एक और गाड़ी ही लगती थी उधर। मैं धड़कते दिल से कार की ओर गया, पूरी पार्किंग में सन्नाटा था।
मैने कार की डिक्की खोली, और घबरा कर पीछे लगभग गिर ही पड़ा। डिक्की में संजीव की लाश थी, जिसके आँखें खुली थी, और सीने पर गोली लगने का निशान था। कुछ देर मैं दिवाल का सहारा लिए उस लाश को निहारता ही रहा, मेरे विचार शून्य हो चुके थे उस समय।
कुछ देर बाद जैसे ही होश आया, मैने कार की डिक्की बंद की और भागते हुए अपने फ्लैट में आ गया। और दरवाजे के सारे लॉक लगा दिए। रस्ते भर मुझे यही अहसास होता रहा जैसे संजीव की लाश मेरे पीछे पीछे चली आ रही है। हल्की ठंड के बावजूद मेरा पूरा शरीर पसीने से नहाया हुआ था।
घर आ कर जैसे ही मैं कुछ संयत हुआ। वैसे ही मेरा फोन फिर से बजा। फिर से उसी प्राइवेट नंबर से फोन था।
"क्या है ये सब?" मैने लगभग चिल्लाते हुए फोन पर कहा।
"आराम से जीएम साहब, वरना अभी जो भी अपने देखा उसके बारे।में और कोई भी सुन लेगा और आप बिना खून किए उसके इल्जाम में फंस जाओगे। और तुम्हारी फोटो भी है संजीव पर पिस्तौल तानते हुए। और खून भी तुम्हारी ही रिवॉल्वर से हुआ है।"
"तुम.. तुम क्या चाहते हो आखिर?"
"पहले तो तुम उस लाश को ठिकान लगाओ।"
"क्या?"
"हां, पहले उसे ठिकाने लगाओ, बाकी का बाद में बताता हूं।"
"बाद में क्या? जो कहना है अभी कहो।"
"जी एम साहब, आप मैनेजर होंगे अपने ऑफिस में, अभी फिलहाल अपनी और नेहा की जान की सलामती चाहते हो तो जो बोला वो करो।"
नेहा की बात सुन कर मैं थोड़ा शांत हुआ।
"अब जल्दी से वो काम करो।" ये बोल कर फोन काट गया।
मैं बहुत देर सोच में बैठा रहा, इसी बीच खाना भी आ गया था, जिसे मैने ऐसे ही टेबल पर रख दिया था।
काफी देर सोच कर मैने फिर समर को फोन लगा दिया।
"हेलो समर।"
"हां मनीष, क्या हुआ है?"
"भाई अभी मिलने आ सकता है क्या?"
"हां आता हूं, बस ड्यूटी खत्म करके घर ही जा रहा था। बस 10 मिनिट में पहुंच रहा हूं।"
दस मिनट के बाद वो मेरे घर पर था, ड्यूटी से वापस आ रहा था तो उसने अपनी वर्दी ही पहन रखी थी।
अंदर आते ही, "क्या हुआ है मनीष, तुम आवाज से कुछ परेशान लग रहे हो?" उसने पूछा।
"भाई, मेरी गाड़ी में एक लाश है।"
"क्या?" उसने आश्चर्यचकित होते हुए पूछा। "सच में बोल रहे हो या कोई भ्रम हुआ है तुमको?"
"यार आज जब ऑफिस से वापस आया तो कुछ देर बाद याद आया कि ऑफिस का एक बैग डिक्की में ही रखा है, तो वही लेने चला गया, डिक्की खोली तो एक लाश पड़ी थी उसमें।" मैने बहाना बनाते हुए कहा।
"किसी जान पहचान वाले की है?"
"नहीं।" मैने सपाट लहजे में झूठ बोला।
"चलो, पहले देखते हैं उसको।" ये बोल कर वो चल दिया। मैं भी मरे कदमों से उसके पीछे चला गया। पार्किंग में पहुंच कर समर ने ही डिक्की खोली।
"आज कल ज्यादा पीने लगे ही या नींद कम ले रहे हो भाई?" समर ने पूछा।
Bahut hi badhiya update diya hai Riky007 bhai....#अपडेट १९
अब तक आपने पढ़ा -
शाम को मैं फिर से उसी जगह होते हुए फ्लैट पर पहुंचा, और फ्रेश हो कर खाने का ऑर्डर दे दिया। 5 - 10 मिनिट बाद ही दरवाजे की घंटी बजी। अभी कौन हो सकता है, क्योंकि खाना आने में कम से कम आधा घंटा लगता है। मैने दरवाजा खोला, कोई नहीं था। लेकिन दरवाजा बंद करते समय मेरी नजर नीचे पड़े हुए एक भूरे एनवेलप पर गई।
मैने उसे उठा कर वो लिफाफा खोला, और उसमें मेरी और संजीव की फोटो थी, जिसमें मैं उस पर रिवॉल्वर ताने खड़ा था। इसी के साथ मेरा फोन भी बजा, ये किसी प्राइवेट नंबर से कॉल था.....
अब आगे -
कांपते हाथों से मैने फोन उठाया। "ह ह हैलो?"
"मनीष, फोटो तो तुमने देख ही ली होगी, अब जरा अपनी कार की डिक्की भी एक बार देख लो।" एक घरघराती सी आवाज आई उधर से।
"हेलो कौन बोल रहा है, और क्या है ये सब?"
"पहले डिक्की चेक करो, फिर आगे बात करेंगे।" ये बोल कर फोन काट गया।
मैं सोच में पड़ गया कि क्या करूं, फिर थोड़ी देर बाद हिम्मत करके नीचे उतर कर कार की तरफ चल दिया। मेरी कार बिल्डिंग के पीछे की ओर पार्क होती थी, साथ में बस एक और गाड़ी ही लगती थी उधर। मैं धड़कते दिल से कार की ओर गया, पूरी पार्किंग में सन्नाटा था।
मैने कार की डिक्की खोली, और घबरा कर पीछे लगभग गिर ही पड़ा। डिक्की में संजीव की लाश थी, जिसके आँखें खुली थी, और सीने पर गोली लगने का निशान था। कुछ देर मैं दिवाल का सहारा लिए उस लाश को निहारता ही रहा, मेरे विचार शून्य हो चुके थे उस समय।
कुछ देर बाद जैसे ही होश आया, मैने कार की डिक्की बंद की और भागते हुए अपने फ्लैट में आ गया। और दरवाजे के सारे लॉक लगा दिए। रस्ते भर मुझे यही अहसास होता रहा जैसे संजीव की लाश मेरे पीछे पीछे चली आ रही है। हल्की ठंड के बावजूद मेरा पूरा शरीर पसीने से नहाया हुआ था।
घर आ कर जैसे ही मैं कुछ संयत हुआ। वैसे ही मेरा फोन फिर से बजा। फिर से उसी प्राइवेट नंबर से फोन था।
"क्या है ये सब?" मैने लगभग चिल्लाते हुए फोन पर कहा।
"आराम से जीएम साहब, वरना अभी जो भी अपने देखा उसके बारे।में और कोई भी सुन लेगा और आप बिना खून किए उसके इल्जाम में फंस जाओगे। और तुम्हारी फोटो भी है संजीव पर पिस्तौल तानते हुए। और खून भी तुम्हारी ही रिवॉल्वर से हुआ है।"
"तुम.. तुम क्या चाहते हो आखिर?"
"पहले तो तुम उस लाश को ठिकान लगाओ।"
"क्या?"
"हां, पहले उसे ठिकाने लगाओ, बाकी का बाद में बताता हूं।"
"बाद में क्या? जो कहना है अभी कहो।"
"जी एम साहब, आप मैनेजर होंगे अपने ऑफिस में, अभी फिलहाल अपनी और नेहा की जान की सलामती चाहते हो तो जो बोला वो करो।"
नेहा की बात सुन कर मैं थोड़ा शांत हुआ।
"अब जल्दी से वो काम करो।" ये बोल कर फोन काट गया।
मैं बहुत देर सोच में बैठा रहा, इसी बीच खाना भी आ गया था, जिसे मैने ऐसे ही टेबल पर रख दिया था।
काफी देर सोच कर मैने फिर समर को फोन लगा दिया।
"हेलो समर।"
"हां मनीष, क्या हुआ है?"
"भाई अभी मिलने आ सकता है क्या?"
"हां आता हूं, बस ड्यूटी खत्म करके घर ही जा रहा था। बस 10 मिनिट में पहुंच रहा हूं।"
दस मिनट के बाद वो मेरे घर पर था, ड्यूटी से वापस आ रहा था तो उसने अपनी वर्दी ही पहन रखी थी।
अंदर आते ही, "क्या हुआ है मनीष, तुम आवाज से कुछ परेशान लग रहे हो?" उसने पूछा।
"भाई, मेरी गाड़ी में एक लाश है।"
"क्या?" उसने आश्चर्यचकित होते हुए पूछा। "सच में बोल रहे हो या कोई भ्रम हुआ है तुमको?"
"यार आज जब ऑफिस से वापस आया तो कुछ देर बाद याद आया कि ऑफिस का एक बैग डिक्की में ही रखा है, तो वही लेने चला गया, डिक्की खोली तो एक लाश पड़ी थी उसमें।" मैने बहाना बनाते हुए कहा।
"किसी जान पहचान वाले की है?"
"नहीं।" मैने सपाट लहजे में झूठ बोला।
"चलो, पहले देखते हैं उसको।" ये बोल कर वो चल दिया। मैं भी मरे कदमों से उसके पीछे चला गया। पार्किंग में पहुंच कर समर ने ही डिक्की खोली।
"आज कल ज्यादा पीने लगे ही या नींद कम ले रहे हो भाई?" समर ने पूछा।
100% sahmat Bhai.कुल मिलाकर वही ! राइटर साहब नेहा मैडम का बचाव पर बचाव किए जा रहे है बल्कि एक तरह से उसके डिफेंस लाॅयर की भुमिका मे नजर आ रहे है और इधर रीडर्स नेहा को विलेन बनाने की कोई कोर कसर नही छोड़ रहे हैं ।
इस बार उनकी मोबाइल फोन गुम हो गई । एक माह तक कोई कंटेक्ट नही अपने कथित भोले बलम से । यह रियल मे किसी के गले नही उतरता कि इतने कोइंसिडेंस कैसे हो सकते हैं !
जैसा कि अमर भाई ( avsji ) ने भी कहा , कार मे रखी हुई रिवाल्वर के बारे मे राजेश को कैसे पता ! यह या तो मनीष को पता था या नेहा को ।
खैर , मनीष साहब पर विपत्ति सर पर आन खड़ी है लेकिन हमे विश्वास है वो इस विपत्ति से सकुशल बाहर भी निकल आयेंगे ।
पर अब जरूरी हो गया है मनीष साहब अपनी आंख और कान को मजबूत करें । दिमाग से सोचें ।
वैसे मित्तल कंपनी के बोर्ड आफ डायरेक्टर मे मनीष का शामिल न होना मनीष साहब के लिए वरदान ही साबित होगी । वाल्ट लूटने वाला है इसपर मुझे जरा भी संदेह नही है । कम से कम इस लूट के आरोप से वह बचे रहेंगे ।
इसीलिए कहते हैं प्रभु जो करता है आप के बेहतर के लिए ही करता है ।
मनीष साहब को शिविका से मेल मुलाकात भी बढ़ाना चाहिए । यह लड़की आप से प्यार करती है । बोर्ड आफ डायरेक्टर इलेक्शन के दौरान आप को सपोर्ट करती है । और क्या चाहिए आपको !
मित्तल साहब के बाद सिर्फ यही लड़की है जो मनीष को बुरे समय मे मदद कर सकती है ।
खुबसूरत अपडेट रिकी भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट ।
To ye envelope jisne bhi bheja tha wo bada hi ghaagh insaan hai per mujhe ab bhi lagta hai ki ye kiya-dhara manish ki so called mashuka ka hi hai Lifafe se to yahi samajh me aaya ki kidnaper Manish ko fasana chahta hai , ya to us bande ka khoon kar diya hai, or chuki photo me manish pistol tane hue hai, to sabka shak usi pe jayega, great, chaka-cchaka-chak wala update#अपडेट १८
अब तक आपने पढ़ा -
मैने गौर से देख तो ये मित्तल सर की दी हुई रिवॉल्वर थी।
मैने थोड़ा सा उसका ध्यान बांटने की कोशिश की, "नेहा पुलिस को कॉल करो।"
जैसे ही मैने ये कहा, वैसे ही उसका ध्यान मेरे पीछे खड़ी नेहा पर गया, और मैने झपट कर उससे रिवॉल्वर चीन ली, और उसके ऊपर तान दी।पर जैसे ही मैने रिवॉल्वर संजीव पर तानी, वैसे ही नेहा, जो मेरे पीछे खड़ी थी, फिर से चीखी
"नहीं.. आह!!!"
और इससे पहले कि मैं पलट कर नेहा को देखता, मेरे सर पर एक जोर का वार हुआ और.....
अब आगे -
मेरी आंखों के आगे अंधेरा छा गया, पर बेहोश होने से पहले मेरी नजर नेहा पर गई, जो जमीन पर बेहोश पड़ी थी।
जब मेरी आंख खुली तो मैं खुद को अपनी ही कार की ड्राइविंग सीट पर पाया, वैसे ही पैंट में, और मेरी शर्ट पास में ही पड़ी थी। सर के पीछे तेज दर्द हो रहा था, हाथ लगा कर देखा तो खून निकल कर सूख चुका था।
कार जहां खड़ी की थी वहीं पर लगी हुई थी, यानी कि नेहा ने जिस घर में बुलाया था उसी के सामने। मेरा मोबाइल, घड़ी और कार की चाभी साथ वाली सीट पर पड़ी थी, टाइम देखा तो रात के 3 बजे थे, लगभग मैं 5 घंटे बेहोश रहा था। मैं शर्ट पहन कर कार से उतर कर उस घर की ओर गया, दरवाजा लगा हुआ था, मेरे धक्का देते ही वो खुल गया। अंदर गया तो सब कुछ सही था। ऐसा लग ही नहीं रहा था कि यहां पर कोई हाथापाई हुई हो, बेडरूम भी साफ था। पीछे के ओर एक दरवाजा था जो अभी अंदर से बंद था, शायद जिसने मेरे और नेहा पर हमला किया वो उसी दरवाजे से आया होगा।
मैं उस घर से बाहर आ गया, और सबसे पहले मैने रिवॉल्वर अपनी कार में ढूंढनी शुरू की, मगर जहां उसे रखता था, वहां कुछ भी नहीं था। लेकिन एक कागज हाथ लगा मुझे वहां। उसे खोल कर देखा तो उस पर एक ही लाइन लिखी थी।
"नेहा हमारे कब्जे में है, और तब तक ही सुरक्षित है, जब तक तुम किसी को बताते नहीं इसके बारे में।"
ये पढ़ कर मैं डर गया, क्योंकि वो लोग नेहा को लेकर चले गए थे, उसपर से संजीव के हाथ में मेरी रिवॉल्वर भी थी। मैं समर को कॉल करके ये बताने ही जा रहा था कि फिर मुझे खयाल आया कि नेहा की सुरक्षा के लिए अभी किसी को इस बारे में बताना सही नहीं होगा। कार से मैने आस पास की जगह भी देखी, मगर ऐसा कुछ नहीं दिखा जिससे पता चले कि वो लोग कौन थे या किधर गए थे।
थक हार कर मैं वापस अपने फ्लैट पर आ गया। संडे था तो ऑफिस भी नहीं जाना था, मैं एक पेनकिलर खा कर सो गया। उस धमकी भरे नोट को पढ़ने के बाद अब मैं बस इंतजार ही कर सकता था किडनैपर संजीव के खुद कॉन्टेक्ट करने का, और भगवान से नेहा की सलामती की प्रार्थना करने का।
उस दिन फिर कुछ नहीं हुआ। अगले दिन मैं सामान्य दिन की तरह ऑफिस चला गया, और काम में लग गया। आज भी कोई कॉन्टेक्ट नहीं किया किडनैपर ने। शाम को मैं एक बार फिर से उसी घर के बाहर खड़ा था, पर वहां भी सब कुछ वैसा ही था। अगला दिन भी वैसा ही गुजरा।
उसके अगले दिन भी सब कुछ सामान्य रहा, ऑफिस में आज एक दो मीटिंग थी, जिसमें मित्तल सर भी थे। शाम को जब मैं उनके केबिन में बैठ कर आज की मीटिंग पर डिसकस कर के निकल ही रहा था तभी
"मनीष, नेहा कहां है आजकल? ऑफिस में दिखती नहीं।"
"जी वो देहरादून गई है एक महीने की छुट्टी ले कर। उसका डाइवोर्स वाले केस की डेट आ गई थी, उसी कारण।"
"तो क्या हुआ उसमें, कुछ पता है तुम्हे?"
"जी लास्ट वीक उसने बोला कि केस फाइनल हो गया है, और अभी वो अपने किसी रिश्तेदार के यहां गई है तो उसके बाद बात नहीं हुई।"
"अच्छा है जो केस फाइनल हुआ, अब उसके वापस आने पर मैं ही मनोहर भाई से बात करता हूं तुम दोनों की शादी की।"
"जी सर, अब मैं चलता हूं।"
"हां ठीक है। और वो जो नए सिस्टम डालने हैं वाल्ट में उनको जल्द से जल्द करवाओ।"
"ओक सर।" बोल कर मैं वहां से निकल गया। मुझे ऐसा लगा जैसे वो एक दो और सवाल पूछते तो शायद मैं नेहा के किडनैप की बात बोल जाता।
शाम को मैं फिर से उसी जगह होते हुए फ्लैट पर पहुंचा, और फ्रेश हो कर खाने का ऑर्डर दे दिया। 5 - 10 मिनिट बाद ही दरवाजे की घंटी बजी। अभी कौन हो सकता है, क्योंकि खाना आने में कम से कम आधा घंटा लगता है। मैने दरवाजा खोला, कोई नहीं था। लेकिन दरवाजा बंद करते समय मेरी नजर नीचे पड़े हुए एक भूरे एनवेलप पर गई।
मैने उसे उठा कर वो लिफाफा खोला, और उसमें मेरी और संजीव की फोटो थी, जिसमें मैं उस पर रिवॉल्वर ताने खड़ा था। इसी के साथ मेरा फोन भी बजा, ये किसी प्राइवेट नंबर से कॉल था.....
Iska review shaam ko#अपडेट १९
अब तक आपने पढ़ा -
शाम को मैं फिर से उसी जगह होते हुए फ्लैट पर पहुंचा, और फ्रेश हो कर खाने का ऑर्डर दे दिया। 5 - 10 मिनिट बाद ही दरवाजे की घंटी बजी। अभी कौन हो सकता है, क्योंकि खाना आने में कम से कम आधा घंटा लगता है। मैने दरवाजा खोला, कोई नहीं था। लेकिन दरवाजा बंद करते समय मेरी नजर नीचे पड़े हुए एक भूरे एनवेलप पर गई।
मैने उसे उठा कर वो लिफाफा खोला, और उसमें मेरी और संजीव की फोटो थी, जिसमें मैं उस पर रिवॉल्वर ताने खड़ा था। इसी के साथ मेरा फोन भी बजा, ये किसी प्राइवेट नंबर से कॉल था.....
अब आगे -
कांपते हाथों से मैने फोन उठाया। "ह ह हैलो?"
"मनीष, फोटो तो तुमने देख ही ली होगी, अब जरा अपनी कार की डिक्की भी एक बार देख लो।" एक घरघराती सी आवाज आई उधर से।
"हेलो कौन बोल रहा है, और क्या है ये सब?"
"पहले डिक्की चेक करो, फिर आगे बात करेंगे।" ये बोल कर फोन काट गया।
मैं सोच में पड़ गया कि क्या करूं, फिर थोड़ी देर बाद हिम्मत करके नीचे उतर कर कार की तरफ चल दिया। मेरी कार बिल्डिंग के पीछे की ओर पार्क होती थी, साथ में बस एक और गाड़ी ही लगती थी उधर। मैं धड़कते दिल से कार की ओर गया, पूरी पार्किंग में सन्नाटा था।
मैने कार की डिक्की खोली, और घबरा कर पीछे लगभग गिर ही पड़ा। डिक्की में संजीव की लाश थी, जिसके आँखें खुली थी, और सीने पर गोली लगने का निशान था। कुछ देर मैं दिवाल का सहारा लिए उस लाश को निहारता ही रहा, मेरे विचार शून्य हो चुके थे उस समय।
कुछ देर बाद जैसे ही होश आया, मैने कार की डिक्की बंद की और भागते हुए अपने फ्लैट में आ गया। और दरवाजे के सारे लॉक लगा दिए। रस्ते भर मुझे यही अहसास होता रहा जैसे संजीव की लाश मेरे पीछे पीछे चली आ रही है। हल्की ठंड के बावजूद मेरा पूरा शरीर पसीने से नहाया हुआ था।
घर आ कर जैसे ही मैं कुछ संयत हुआ। वैसे ही मेरा फोन फिर से बजा। फिर से उसी प्राइवेट नंबर से फोन था।
"क्या है ये सब?" मैने लगभग चिल्लाते हुए फोन पर कहा।
"आराम से जीएम साहब, वरना अभी जो भी अपने देखा उसके बारे।में और कोई भी सुन लेगा और आप बिना खून किए उसके इल्जाम में फंस जाओगे। और तुम्हारी फोटो भी है संजीव पर पिस्तौल तानते हुए। और खून भी तुम्हारी ही रिवॉल्वर से हुआ है।"
"तुम.. तुम क्या चाहते हो आखिर?"
"पहले तो तुम उस लाश को ठिकान लगाओ।"
"क्या?"
"हां, पहले उसे ठिकाने लगाओ, बाकी का बाद में बताता हूं।"
"बाद में क्या? जो कहना है अभी कहो।"
"जी एम साहब, आप मैनेजर होंगे अपने ऑफिस में, अभी फिलहाल अपनी और नेहा की जान की सलामती चाहते हो तो जो बोला वो करो।"
नेहा की बात सुन कर मैं थोड़ा शांत हुआ।
"अब जल्दी से वो काम करो।" ये बोल कर फोन काट गया।
मैं बहुत देर सोच में बैठा रहा, इसी बीच खाना भी आ गया था, जिसे मैने ऐसे ही टेबल पर रख दिया था।
काफी देर सोच कर मैने फिर समर को फोन लगा दिया।
"हेलो समर।"
"हां मनीष, क्या हुआ है?"
"भाई अभी मिलने आ सकता है क्या?"
"हां आता हूं, बस ड्यूटी खत्म करके घर ही जा रहा था। बस 10 मिनिट में पहुंच रहा हूं।"
दस मिनट के बाद वो मेरे घर पर था, ड्यूटी से वापस आ रहा था तो उसने अपनी वर्दी ही पहन रखी थी।
अंदर आते ही, "क्या हुआ है मनीष, तुम आवाज से कुछ परेशान लग रहे हो?" उसने पूछा।
"भाई, मेरी गाड़ी में एक लाश है।"
"क्या?" उसने आश्चर्यचकित होते हुए पूछा। "सच में बोल रहे हो या कोई भ्रम हुआ है तुमको?"
"यार आज जब ऑफिस से वापस आया तो कुछ देर बाद याद आया कि ऑफिस का एक बैग डिक्की में ही रखा है, तो वही लेने चला गया, डिक्की खोली तो एक लाश पड़ी थी उसमें।" मैने बहाना बनाते हुए कहा।
"किसी जान पहचान वाले की है?"
"नहीं।" मैने सपाट लहजे में झूठ बोला।
"चलो, पहले देखते हैं उसको।" ये बोल कर वो चल दिया। मैं भी मरे कदमों से उसके पीछे चला गया। पार्किंग में पहुंच कर समर ने ही डिक्की खोली।
"आज कल ज्यादा पीने लगे ही या नींद कम ले रहे हो भाई?" समर ने पूछा।