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Thriller शतरंज की चाल

DesiPriyaRai

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#अपडेट २


अब तक आपने पढ़ा -


अब आप सोच रहे होंगे कि कैसा नालायक बेटा हूं मैं जो अपने पिता को सर बोल रहा हूं और उनके साथ घर क्यों नही गया?


तो आपको बता दूं रजत जी मेरे पिता नही हैं....



अब आगे -


हां वो मुझे जन्म देने वाले पिता नही हैं, लेकिन पिता से कम भी नहीं हैं, ये नाम मनीष मित्तल भी उन्ही का दिया है, वरना जब से मैंने होश सम्हाल है, खुद को इस दुनिया में अकेला ही पाया है।


मुझे पता भी नही कि मेरे माता पिता कौन थे, कैसे थे। मैं उनकी ही औलाद था या नाजायज था, या उनकी किसी दुर्घटना में मौत हो गई।


होश आते ही मैंने खुद को दिल्ली की सड़कों पर भटकता पाया, पेट भरने के लिए कभी भीख मांगता, कभी कुछ छोटे मोटे काम, जैसे जूता पॉलिश करना, गाड़ी साफ करना, करते हुए गुजारा करने लगा। जब मैं कुछ बड़ा हुआ तो मुझे नई दिल्ली स्टेशन के पास एक ढाबे में काम मिल गया। वो ढाबा एक सरदार जी का था, जो उस वक्त करीब पैंतीस साल के होंगे, बड़े ही जिंदादिल इंसान और स्वभाव के बहुत ही अच्छे। उन्होंने पहले तो मुझे टेबल साफ करना का काम दिया, और बाद में मुझे पढ़ने के लिए भी उकसाया।


मुझे पढ़ाई बड़ी अच्छी लगने लगी, मैने कुछ ही साल में क्लास 5 तक की पढ़ाई पढ़ ली। पढ़ाई के साथ साथ मुझे नई चीजें सीखना का भी शौक था।


एक दिन स्टेशन के पास सौंदर्यीकरण के कारण सरदार जी को ढाबे की जगह खाली करने का आदेश आ गया, सरदार जी ने अपने ढाबे को राजेंद्र नगर में शिफ्ट कर दिया, और कई पुराने लोगों को भी वहीं काम पर बुला लिया, उनमें से मैं भी एक था, वो मुझे बहुत मानने लगे थे।


वहां ढाबे के पास ही जॉली की इलेक्ट्रॉनिक रिपेयरिंग की दुकान थी, वो समय था जब भारत में मोबाइल आया ही था, और हैप्पी भैया भी मोबाइल रिपेयरिंग का काम सीख कर अपनी दुकान में वो भी करने लगे थे। सरदार जी और मेरी उनसे बहुत बनने लगी। मैं तो अक्सर खाली समय में उनकी दुकान पर बैठा चीजों को रिपेयर होते देखता रहता था। कभी कभी हैप्पी भैया मुझे भी कुछ छोटी चीजों को रिपेयर करने देते थे।


एक दिन जब मैं उनकी दुकान पर बैठा था तो दुकान में 3 4 आदमी आए, उनमें से एक को छोड़ कर बाकी दुकान के बाहर रुक गए।


उनको देखते ही जॉली भैया अपनी सीट छोड़ कर खड़े हो गए, "अरे मित्तल साहब, नमस्ते। आइए आइए, बोलिए यहां आने की जहमत क्यों उठाई आपने, मुझे बुलवा लिया होता।"


जॉली भैया के इस तरह बोलते देख मैं समझ गया कि ये कोई बड़ी हस्ती हैं, और बाहर खड़े लोग उनके बॉडीगार्ड या मातहत हैं।


मित्तल साहब, "अरे जॉली बात ही कुछ ऐसी है, तुमको बुलाता तो आने जाने में समय बरबाद होता, इसीलिए खुद आ गया। अभी कुछ दिन पहले अमेरिका से आया हूं,वहां ये लेटेस्ट मॉडल का फोन लिया था, लेकिन आज सुबह से ये ऑन भी नही हो रहा। जरा देखो इसको, बहुत सारे जरूरी कॉन्टेक्ट इसी फोन में हैं।"



जॉली भैया तुरंत उस फोन को खोल कर देखने लगते हैं, कोई 15 20 मिनट के बाद, "मित्तल साहब ये तो कुछ समझ नही आ रहा मुझे, और ये फोन तो इतना लेटेस्ट है कि इसे फिलहाल तो अपने देश में कोई बना भी न पाए।"


मित्तल साहब जो ये सुन कर थोड़ा परेशान हो गए, "एक बार सही से कोशिश तो करो भाई, बहुत जरूरी है इस फोन का सही होना, वरना एक बहुत बड़ा कॉन्ट्रैक्ट हाथ से चला जायेगा।"


जॉली भैया फिर से कोशिश में लग जाते हैं, और फिर 10 मिनिट के बाद, "नही समझ आ रहा मित्तल साहब।"


ये सुन कर वो व्यक्ति थोड़ा निराश दिखने लगा।


तभी पता नही मुझे क्या हुआ, "जॉली भैया, एक बार मैं कोशिश करूं?"


मित्तल साहब ने सवालिया नजरें से जॉली को देखा।


जॉली, "अरे मोनू, आज तक तूने किसी फोन को हाथ भी नही लगाया, और ये तो इतना लेटेस्ट है कि मुझे भी नही समझ आ रहा, तू कैसे करेगा ये?"


"एक बार कोशिश तो करने दो मुझे भैया।"


जॉली भैया बड़े पसोपेश में पड़ गए


मित्तल साहब मेरे पास आ कर मेरी आंखो में झांकते हुए बोले, "क्या तुम कर लोगे।"


पता नही किस शक्ति के वशीभूत हो कर मैने भी वैसे ही उनकी आंखों में देखते हुए जवाब दिया, "मुझे लगता है कि मैं इसको सही कर सकता हूं।"


"जॉली, एक बार इसे कोशिश करने दो।"


"पर मित्तल साहब?"


"जॉली फोन तो वैसे भी अब शायद ही बने यहां, एक बार इसको दो तो।"


जॉली भैया अपनी सीट छोड़ कर खड़े हो गए और मुझे इशारा किया। मैं उनकी सीट पर जा कर बैठ गया, जहां वो फोन रखा था। मैने उसे खोला और गौर से उसे देखने लगा। मित्तल साहब और जॉली भैया बाहर जा कर बैठ गए और कुछ बातें करने लगे।


मैं उस फोन को गौर से देख रहा था और समझने की कोशिश कर रहा था, पता नही मैने किस भावना में बह कर मित्तल साहब की आंखों में झांकते हुए फोन को सही करने की बात कर दी थी, अब मेरी हालत खराब हो रही थी।


खैर कुछ समय बाद मुझे लगा की कुछ है जो शायद टूटा है, वो एक बहुत ही महीन सा तार था जो बैटरी के कनेक्शन को मेन यूनिट से जोड़ रहा था, पतली वाली चिमटी से उसे निकलने पर वो टूटा ही मिला मुझे, और मैने एक और तार से वैसे ही महीन सा तार निकल कर लगा दिया, और फोन को वापस से पैक करके धड़कते दिल से ऑन का स्विच दबा दिया। कुछ सेकंड बाद फोन में लाइट आने लगी और वो ऑन हो गया।


आवाज सुनते ही जॉली भैया और मित्तल जी अंदर आए, और आते ही जॉली भैया ने मुझे गले लगा लिया, मित्तल जी फोन के ऑन होने से बहुत खुश थे।


जॉली, "कैसे किया तूने?"


मैने फिर सारी बात बताई, जिसे सुन कर मित्तल साहब के चेहरे पर कई तरह के भाव आते जाते रहे। सारी बात सुन कर मित्तल साहब ने अपना कार्ड मुझे देते हुए कहा, "बेटा ये मेरा कार्ड रखो, और अभी मैं किसी काम से मुंबई जा रहा हूं, 2 3 दिन के बाद लौटूंगा, तुम आ कर मुझसे जरूर से मिलना।"


इसके बाद वो बाहर निकल गए। जॉली भैया बहुत खुश थे और उन्होंने ये बात तुरंत ही सरदार जी को बताई। ये सुन कर सरदार जी भी खुश हो कर मेरी पीठ थपथपाने लगे।


खैर उसके बाद में ढाबे के काम में व्यस्त हो गया और मित्तल साहब के कार्ड के बारे में लगभग भूल ही गया।


6 7 दिन बाद दोपहर के बाद मैं ढाबे की सफाई कर रहा था, तभी एक ड्राइवर की वर्दी में ढाबे पर आया और मुझे सामने देख मुझसे पूछा, "ये मोनू कहां मिलेगा?"


"बोलिए, में ही मोनू हूं।"


"चलो, तुम्हे साहब ने बुलाया है।"


"कौन साहब?"


"मित्तल साहब का ड्राइवर हूं मैं, उन्होंने ही मुझे तुम्हे लाने भेजा है।"


तब तक सरदार जी भी पास आ चुके थे और मित्तल साहब का नाम सुनते ही मुझसे बोले, "जा पुत्तर, मिल कर आ मित्तल साहब से।"


मैं ड्राइवर के साथ निकल गया, वो एक बहुत ही बड़ी गाड़ी में आया था, जो दिल्ली जैसे शहर में ही बहुत कम दिखती थी। कोई एक घंटे बाद ड्राइवर ने गाड़ी एक इमारत के अंदर ले जा कर लगाई, और मुझे ले कर गाड़ी से बाहर आ कर लिफ्ट से इमारत के सबसे ऊपर वाली मंजिल पर ले गया।


वहां पहुंच कर ड्राइवर ने सामने काउंटर पर बैठी लड़की से कुछ बात की और उस लड़की ने उसे इशारे से अंदर जाने को कहा। ड्राइवर मुझे ले कर एक दरवाजे के पास ले गया और दरवाजे को खटखटाने लगा, अंदर से "आ जाओ" की आवाज आई, और ड्राइवर ने दरवाजा खोल कर मुझे अंदर जाने का इशारा किया।


अंदर जाते ही मैंने देखा, ये एक बहुत ही बड़ा और शानदार ऑफिस था, और सामने मित्तल साहब अपनी डेस्क के पीछे बैठे कोई फाइल पढ़ रहे थे। वो कमरा बहुत ही बड़ा था, इतना बड़ा की कई लोग का पूरा घर ही उतने में आ जाय।


मित्तल साहब ने मुझे देख कर साइड में रखे सोफे पर बैठने का इशारा किया, और फिर से फाइल पढ़ने लगे। मैं चुपचाप जा कर उस सोफे पर बैठने गया, और धड़कते दिल से चारों ओर देखने लगा। मुझे समझ नही आ रहा था कि आखिर इतने बड़े आदमी को मुझमें इतनी दिलचस्पी क्यों है कि मुझे लेने अपनी कार तक को भेज दिया। कोई पांच मिनट बाद मित्तल साहब अपनी कुर्सी से उठा कर मेरे सामने वाले सोफे पर आ कर बैठ गए।


"कैसे हो मोनू?"


"जी अच्छा हूं।" मैने अटकते हुए कहा।


"मैने तुमको उस दिन ही कहा था कि आ कर मुझसे मिलना, कर तुम आए नही?"


मैं निरूतर था, इसीलिए मैंने अपनी गर्दन झुका ली।


"समझ सकता हूं कि तुम सोच रहे होगे आखिर एक मामूली से तार को जोड़ कर तुमने ऐसा क्या कर दिया कि मुझ जैसा आदमी तुमको अपनी गाड़ी भेज कर अपने पास क्यों बुलाया है?"


मैं आश्चर्य से उनकी ओर देखने लगा।


" देखो मोनू, तुमने मेरा फोन बनाया, ये कोई बड़ी बात नहीं थी। उसकी खराबी शायद जॉली भी एक बार और देख कर समझा जाता। मगर जिस कॉन्फिडेंस से तुमने मेरे आंखो में आंखे डाल कर बोला कि तुमको लगता है कि तुम इस फोन को बना सकते हो, मुझे वो बहुत ही अच्छा लगा। तुम्हारी इस बात से पता लगता है कि तुम कोई साधारण लड़के नही हो, और जॉली ने भी मुझे बताया कि तुम्हारा दिमाग बहुत तेज है, और तुम्हारा पढ़ने लिखने में भी बहुत मन लगता है। इसीलिए, बस मैं तुम्हे आगे पढ़ना चाहता हूं।"


"पर मैं तो पढ़ ही रहा हूं अभी।"


"वो कोई पढ़ाई है भला, मैं चाहता हूं की तुम अपना ध्यान बस पढ़ने में लगाओ, और बस पढ़ो, और एक काबिल इंसान बनो।"


मैं आश्चर्य से उनकी ओर देखने लगा।


"देखो मोनू, मैं बस अच्छे लोगों की मदद करना चाहता हूं, मुझे लगता है कि तुम कुछ बन गए तो तुम इस समाज, इस देख के बहुत काम आ सकते हो, शायद मेरे भी।"


मैं अभी भी आंखे फाड़े उन्हें ही देखे जा रहा था। मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई मुझसे ऐसी बातें भी कर सकता है।


"ऐसा नहीं है कि तुम पहले हो जिसके साथ मैं ऐसा कर रहा हूं, मैने कई बच्चों को शिक्षा दिलाई है, हां तुम मुझे उनसे अलग लगे, इसीलिए मैंने खुद तुम्हे यहां बुलवा कर तुमसे बात कर रहा हूं। और मैं ये भी नही कह रहा कि तुम अभी ही कोई फैसला लो। अभी तुम वापस जाओ, और आराम से 2 3 दिन सोच विचार करके अपना फैसला लो। बस अपने भले की ही सोचना।"


ये बोल कर उन्होंने अपने सामने रखे फोन को उठा कर ड्राइवर को अंदर बुलाया। ड्राइवर के आते ही उन्होंने ड्राइवर को मुझे वापस छोड़ने को कहा। और मैं ड्राइवर के साथ वापस आ गया। रास्ते भर में पसोपेश में था कि क्या करूं और क्या नहीं। ऐसा नहीं था की मित्तल साहब मुझे कोई गलत आदमी लगे, लेकिन सब कुछ पीछे छोड़ कर मुझ जैसे बच्चे का ऐसा फैसला लेना...


खैर ये सब सोचते सोचते मैं ढाबे पर वापस पहुंच चुका था, शाम ढल चुकी थी, और ढाबा ग्राहकों से भरा हुआ था। पहुंचते ही मैं अपने काम में लग गया, और सरदार जी भी व्यस्त थे तो उन्होंने भी मुझे नही टोका। देर रात तक फ्री हो कर मैं सोने चला गया, और सुबह जब उठा तो सरदार जी अपने घर से वापस आ चुके थे।


उन्होंने मुझे अपने केबिन में बुलवाया, मैं अंदर गया तो उन्होंने मुझे कुर्सी पर बैठा कर मित्तल साहब से हुई मुलाकात के बारे में पूछा। मैने उन्हे सारी बात बताने लगा, जिसे सुन कर सरदार जी के आंखों की चमक बढ़ती चली गई।


"बेटा किस्मत किसी किसी को ही ऐसा मौका देती है, ज्यादा सोच मत, मित्तल साहब के साथ लग जा, जिंदगी बन जायेगी तेरी।"


" पर दार जी, आपके सात इतने दिन से रह रहा हूं, आप मुझे पढ़ने देते ही हैं, फिर?"


"बेटा, मित्तल साहब जो शिक्षा तुम्हे दे सकते हैं, वो तो शायद मैं खुद के बच्चों भी न दिलवा पाऊं, इसीलिए ज्यादा सोच मत, बस भगवान का भरोसा कर चला जा।"


मैं अभी भी पसोपेश में था। कुछ देर बाद जॉली भैया भी आ गए और सारी बात जानने के बाद वो भी मुझे मित्तल साहब के प्रस्ताव को मानने के लिए बोलने लगे।


अगले दिन मैं, सरदारजी और जॉली भैया, मित्तल साहब के ऑफिस में बैठे थे, उन दोनो ने कई तरीके की बात की मित्तल साहब से, और आखिरी में मुझे मित्तल साहब के ऑफिस में छोड़ कर दोनो वहां से चले गए।


मित्तल साहब मुझे ले कर एक बोर्डिंग स्कूल में ले गए, को LN Group का ही कोई चैरिटेबल स्कूल था, वहां मेरी बाकी बची 4 5 साल की पढ़ाई को एक साल में ही पूरा करवा दिया गया। फिर एक साल बाद मित्तल साहब मुझे ले कर पुणे गए, और एक दूसरे बोर्डिंग स्कूल में मेरा एडमिशन सीधे 10वीं में करवा दिया गया, ये स्कूल वही था जहां मित्तल साहब के घर के बच्चे भी पढ़ते थे। वहीं उन्होंने मेरा नाम मोनू से मनीष मित्तल करवा दिया, और सरकारी दस्तावेज में मेरे पिता भी वही बन गए। मैने भी उनके इस अहसान को माना और अपने आपको पूरी तरह से पढ़ाई में झोंक दिया।



तभी एक झटका लगने से मैं अतीत से बाहर आ गया। मेरी गाड़ी मेरे अपार्टमेंट में आ चुकी थी....
👌 Achi shuruaat huvi hai, Mittal saab ka garib bacho ke prati udarbhav or unke bhavishya ke liye unko support krna 👌, aur monu jo choti ummar se apni study and kaam dono ko manage kr raha hai, aur quick learner bhi hai. Dekhte hai aage kya hoga.

मुझे लगता है कि तुम कुछ बन गए तो तुम इस समाज, इस देख के बहुत काम आ सकते हो,
Ek choti galti hai, yaha

इस समाज, इस देश के बहुत काम आ सकते हो।

Isaa aayega?? Naye reader ke sudhar lo..
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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Jhelne wale time par ju the hi kaha, ab to jhelne jaisi koi baat hi nahi rahi :D

Bole to cheer faad karne wale kuch readers gayab ho gaye aur kuch thak haar ke baith gayle hain. Maybe...bhauji logo ke belan ki maar se unke andar ka sara kadakpan gadhe ke seeng ki tarah gayab ho gaya. Sabse zyada maze ki baat ye hai ki iske bavjood khud ko teesmaarkha samajh rele hain. Bole to rassi jal gai par bal nahi gaya jaise haal ke maafik khud ko ghaseete ja rele hain :lol1:
अरे भाई, मैं भी चीर फाड़ करने वाला ही हूं।

तो मुझे भी मजा आता है ऐसे कॉमेंट्स पढ़ने में।

बाकी घसीटने वाला कौन है

kamdev99008 ??
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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👌 Achi shuruaat huvi hai, Mittal saab ka garib bacho ke prati udarbhav or unke bhavishya ke liye unko support krna 👌, aur monu jo choti ummar se apni study and kaam dono ko manage kr raha hai, aur quick learner bhi hai. Dekhte hai aage kya hoga.
धन्यवाद प्रिया

वैसे तुम्हारे नाम का भी कैरेक्टर है इसमें, नाराज मत होना :hide2:
Ek choti galti hai, yaha

इस समाज, इस देश के बहुत काम आ सकते हो।

Isaa aayega?? Naye reader ke sudhar lo..
Done 👍🏼
 

kamdev99008

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अरे भाई, मैं भी चीर फाड़ करने वाला ही हूं।

तो मुझे भी मजा आता है ऐसे कॉमेंट्स पढ़ने में।

बाकी घसीटने वाला कौन है

kamdev99008 ??
मैं अकेला नहीं होता था फ़ायरफ़ॉक्स, नैना, आलू, संगीता जैसे हम बहुत सारे धोबी मिलकर धुलाई करते थे इस धोबीघाट पर
मोड्स की कृपा से ज्यादातर लोग जा चुके हैं

अब तो मैं भी कोई ज्यादा जोर दे या मूड बन जाये तभी कुछ लिखता हूं पिछले करीब डेढ़-दो साल तो मैंने कमेंट ही नहीं किया

बस कुछ पुराने मित्र या नये प्रतिभाशाली लेखक मुझे अभी तक यहां रोके हुए ह
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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"गुड, तुम तो बहुत स्मार्ट हो।"
मैं गेट के सामने मौजूद बस स्टैंड के पास खड़ा हो कर देखने लगा, तभी एक सफेद स्कॉर्पियो मेरे सामने आ कर रुकी और उसका दरवाजा खुला....
Kahe ka smart?? Lauda fir koi aa gaya pelne :lol:

Well, kidnappers log bhari sabhya log prateet ho rele hain. Bole to Manish jaise jhandu ko call par "Aap" bolte hain betichod, zaahir hai ye yede log Manish ke utne hi kareebi hain jitna laude ka andkosh kareebi hota hai :D

Ab dekhna ye hai ki last me scarpio se aane wale log agar manish ko pelne ke khaatir hi aayle hain to kitna pelte hain usko.... :daru:
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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मैं अकेला नहीं होता था फ़ायरफ़ॉक्स, नैना, आलू, संगीता जैसे हम बहुत सारे धोबी मिलकर धुलाई करते थे इस धोबीघाट पर
मोड्स की कृपा से ज्यादातर लोग जा चुके हैं

अब तो मैं भी कोई ज्यादा जोर दे या मूड बन जाये तभी कुछ लिखता हूं पिछले करीब डेढ़-दो साल तो मैंने कमेंट ही नहीं किया

बस कुछ पुराने मित्र या नये प्रतिभाशाली लेखक मुझे अभी तक यहां रोके हुए ह
पता नहीं लोगों की झा** क्यों सुलग जाती है एक भी नेगेटिव कमेंट पढ़ कर?

मुझे तो एक लेखक ने ब्लॉक कर दिया, जिसपर मैने बस इतना ही लिखा कि भाई fax के चक्कर में कहानी रुकी हुई लग रही है।

अरे भाई criticism नहीं ले सकते तो पब्लिक फोरम पर उतरे ही क्यों, और वो भी ऑनलाइन, जहां तुरंत ही रिएक्शन मिलता है।

बाकी too much moderation also kills the party
 

Riky007

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Kahe ka smart?? Lauda fir koi aa gaya pelne :lol:

Well, kidnappers log bhari sabhya log prateet ho rele hain. Bole to Manish jaise jhandu ko call par "Aap" bolte hain betichod, zaahir hai ye yede log Manish ke utne hi kareebi hain jitna laude ka andkosh kareebi hota hai :D

Ab dekhna ye hai ki last me scarpio se aane wale log agar manish ko pelne ke khaatir hi aayle hain to kitna pelte hain usko.... :daru:
बेवकूफी करेगा तो loye लगेंगे ही 😌

फिलहाल देखते हैं कब अकल आएगी इसको
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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अरे भाई, मैं भी चीर फाड़ करने वाला ही हूं।

तो मुझे भी मजा आता है ऐसे कॉमेंट्स पढ़ने में।
Ek time ke baad khud ke bare me sab aiseich bolte hain, apan bhi ab yahich bolta hai ki apan ko jhaanth barabar bhi fark nahi padta...par nahi, lauda us time fark padta tha :lol:
बाकी घसीटने वाला कौन है

kamdev99008 ??
Sahi pakde ho... :laughing:
Sabse bade fenku yahi mahashay hain :D
 
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