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Thriller शतरंज की चाल

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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बहुत ही सुंदर और शानदार कहानी है
मजा आ गया

बहुत ही मस्त लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है मजा आ गया

बहुत ही शानदार और जानदार अपडेट हैं भाई मजा आ गया

बहुत ही मस्त और लाजवाब अपडेट है मजा आ गया
धन्यवाद भाई 🙏🏼
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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Ye log aakhir walt me ghus hi gaye, per main walt me kaise jayege? Doosre ye bhi ho sakta hai ye log cctv access hack kar le, or security decode kar de, maamla thoda atpata hai? Wo white Scorpio me kon aaya hoga? Nice update

मेन वाल्ट?

अभी तो समस्या ये है कि बाहर कैसे आएंगे।

वाइट स्कॉर्पियो में असली हीरो आया है 😌
 

Napster

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# अपडेट ५

अब तक आपने पढ़ा -

और फिर दूसरा मैच शुरू हुआ और पहले 5 पॉइंट मैने आसानी से बनाए। फिर मेरी नजर समर के पीछे टेनिस कोर्ट पर पड़ी और....

अब आगे -

समर के पीछे टेनिस कोर्ट पर मुझे वही दिखाई दी, एक स्पोर्ट्स t shirt और half pant में टेनिस खेलती हुई नेहा वर्मा। मेरा ध्यान फिर एक बार भटक चुका था, बार बार मेरी नजरें उधर ही पहुंच जाती और ये मैच मैं 21-5 से बुरी तरह हार गया।

"क्यों जीएम साहब, क्या हो गया आपको?"

"कुछ नहीं।" ये बोल कर मैने एक बार फिर से अपना ध्यान अपने मैच पर लगाया और इस बार मैच 21-19 से मैने जीता।

"वाकई भाई डबल्स आपने ही जिताया था।" ये बोल कर समर ने मेरा कंधा थपथपाया। मैने मुस्कुराते हुए टेनिस कोर्ट में देखा। वो नहीं दिखी, शायद चली है थी।

फिर हम लोग बार में आ गए और समर ने दोनों के लिए ड्रिंक ऑर्डर कर दिया। हम पीते हुए बात कर रहे थे कि फिर से मेरी नजर नेहा पर पड़ी, अब वो ट्रैक सूट में थी, शायद कपड़े चेंज करने गई होगी। साथ में कोई और लड़की भी थी, जिसे मैं नहीं जानता था। वो दोनों दूसरी ओर बैठ गई, नेहा की पीठ मेरी ओर थी, और वो शायद मुझे नहीं देख पाई थी।

थोड़ी देर बाद समर ने कहा कि वो जा रहा है, मेरी ड्रिंक अभी बची थी तो मैने बोला कि बस इसे खत्म करके मैं भी निकलूंगा।

उसके जाने के कुछ समय बाद ही मुझे एक आवाज आई, "excuse me सर, what a pleasent surprice, आप यहां पर?"

ये नेहा थी। मैं उसे देख कर थोड़ा आश्चर्य में आ गया क्योंकि समर के जाने से पहले ही उन दोनो ने अपना टेबल छोड़ दिया था, और अभी नेहा अकेली ही थी। उसके पास एक बैग था जो उस समय नहीं था जब वो यहां बैठी थी।

"अरे नेहा जी, कैसी हो आप, और यहां?"

"वो सर actually मुझे टेनिस और गोल्फ का बहुत शौक है, और यहां 15 दिन पहले जब ज्वाइनिंग के लिए आई थी तो HR में किसी ने मुझे इस क्लब के बारे में बताया, अभी लास्ट विक ही ज्वाइन किया, पर आपको पहली बार देखा यहां?"

"मैं समय मिलने पर ही आता हूं यहां, आज ऑफिस से जल्दी छुट्टी मिली कई महीनों बाद तो चल आया यहां। वैसे शायद आप अभी किसी के साथ थी न?"

"अरे वो अर्चना थी, मेरी टेनिस पार्टनर, यहीं क्लब में ही मुलाकात हुई थी उससे। मैं भी वापस जा रही थी, अपना बैग ले कर लाकर रूम में जब आ रही थी तब आप पर नजर पड़ी। तो मिलने चली आई।"

"ओह अच्छा किया। वैसे आप कहां रहती हैं?"

"अशोक नगर में एक फ्लैट दिलवाया है ऑफिस से ही।"

"अच्छी जगह है वो तो, वैसे आप वापस कैसे जाएंगी?"

"कोई ऑटो देखती हूं सर।"

"अरे मैं छोड़ देता हूं, आपका फ्लैट मेरे घर के रास्ते में ही पड़ता है।"

नेहा कुछ सोच कर, "ok... चलिए चलते हैं फिर।"

मेरी ड्रिंक भी लगभग खत्म ही थी, हम दोनो पार्किंग एरिया में आ गए। अपनी कार के पास हम पहुंचे ही थे कि तभी

"अरे जीएम साहब, आज लगता है आपकी सेवाएं लेनी पड़ेंगी।"

समर मेरी ओर आते हुए बोला, और नेहा को देख कर कुछ आश्चर्य में आ गया।

"क्या हुआ भाई आपकी सरकारी गाड़ी को, जो मेरी सेवाएं लेने की जरूरत पड़ गई?" मैने पूछा।

"यार स्टार्ट नहीं हो रही, पता नहीं क्यों?" उसने नेहा की ओर देखते हुए कहा, "वैसे अगर प्रॉब्लम हो तो मैं मैनेज कर लेता हूं।"

"नहीं भाई क्या प्रॉब्लम होगी। वैसे इनसे मिलो, नेहा वर्मा, मेरे कंपनी में अभी एक हफ्ते पहले ही ज्वाइन किया है, क्लब में मिल गई और घर भी इनका मेरे रास्ते में ही है तो सोचा इनको भी ड्रॉप कर दूं। आजा तुझे भी ड्रॉप कर देता हूं।"

ये बोल कर मैने कार का लॉक खोला, और समर मेरे साथ आगे आ कर बैठ गया, नेहा पीछे बैठ गई।

"चलो भाई जल्दी से घर छोड़ दो, मैं किसी को भेज कर गाड़ी भी दिखवा लेता हूं।"

वो पीछे मुड़ कर, "हेलो नेहा जी, मैं समर सिंह, मनीष का दोस्त। वैसे पहले मुझे लगा कि शायद मैं गलत समय पर आ गया लिफ्ट मांगने।" ये बोल कर वो हंसने लगा।

"अरे नहीं भाई, बस साथ में काम करती हैं ये, अभी तुम्हारे जाने के बाद ही मिला इनसे, इनका घर में मेरे रास्ते में ही है तो सोचा ड्रॉप कर दूं।"

"मतलब आज जीएम साहब टैक्सी ड्राइवर बने हैं।"

ये सुन कर हम सब हंस दिए।

ऐसे ही बातें करते करते हम समर के घर के पास पहुंच गए, उसने गाड़ी अपनी सोसाइटी के बाहर ही रुकवा दी।

"नेहा जी आगे आ जाइए, वरना ये सचमुच में ड्राइवर लगेगा।"

ये बोल कर वो अपनी बिल्डिंग में चला गया। और नेहा आगे आ कर बैठ गई।

"तो सर, क्लब में आप क्या खेलते हैं?"

"स्विमिंग और बैडमिंटन, वैसे नेहा जी पहले तो हम दोनों हमउम्र हैं, तो ऑफिस के बाहर कम से कम मुझे सर मत बोलो।"

"फिर क्या बोलूं?" उसने मुझसे ही उल्टा सवाल

"जो एक दोस्त दूसरे को बोलता है। हम ऑफिस के बाहर दोस्त तो हो सकते हैं न नेहा जी?"

"बिलकुल मनीष जी।" ये बोल कर वो मुस्कुरा दी।


क्या दिलकश मुस्कान थी उसकी..

"अच्छा वैसे आप गोल्फ खेलते हैं क्या?" उसने मुझसे पूछा

"नहीं।"

"आप खेलिए, आपकी हाइट पर वो बहुत सूट करेगा आपको।"

"पर मुझे आता नहीं खेलना।"

"मैं सीखा दूंगी, बदले में आप मुझे स्विमिंग सीखा दीजिए।"

मैं उसके साथ रहना चाहते था, भला ऐसा मौका जो खुद उसने दिया कैसे हाथ से जाने देता। मैने भी हां कर दी।

ऐसे ही बातों बातों में उसका घर आ गया।

"तो कल सुबह साढ़े छः बजे गोल्फ क्लब में मैं आपका इंतजार करूंगी, आइएगा जरूर।"

ये बोल कर वो अपने घर चली गई। मैं भी अपने फ्लैट पर आ गया, आज का दिन बड़ा ही खुशगवार गया था।

सुबह नेहा से दुबारा मिलने की खुशी में मैं बहुत ही जल्दी तैयार हो कर 6 बजे ही क्लब पहुंच गया, फिर मुझे अपनी बेवकूफी का ध्यान आया और मैं क्लब से आगे गाड़ी लगा कर थोड़ा इंतजार किया और फिर समय पर वहां पहुंच गया, गाड़ी पार्क करते करते नेहा भी ऑटो से उतरती दिखी, आज भी उसने एक ट्रैक सूट पहना था ऊपर तो जैकेट थी, लेकिन स्किन फिट लेगिन में उसकी सुडौल जांघें प्रदर्शित हो रही थी। उसके हाथ में एक बैग था।

हम दोनो पीछे बने गोल्फ कोर्स में पहुंच गए, और वो मुझसे कह कर गोल्फ कोर्स की बिल्डिंग में चली गई, मैं पहले ही एक रनिंग पैजामा और पोलो टीशर्ट में था। कुछ देर बाद वो बाहर आई, उसके हाथ में एक केडी बैग था जिसमें कई तरह के गोल्फ क्लब थे। और इस समय वो वही लेगिन और ऊपर एक जिम टीशर्ट में थी, जो उसके शरीर की बनावट को पूरी तरह से दिखा रहे थे। उसे देख कर मेरा मुंह कुछ देर खुला ही रह गया। लेकिन उसके पास आने के पहले ही मैने अपने को सम्हाल लिया।

हम कोर्स के अंदर पहुंचे जहां पहले उसने मुझे अलग अलग तरह के क्लब्स (गोल्फ खेलने वाली छड़ी) के बारे में समझाया। उसे समझने से ज्यादा ध्यान मेरा नेहा पर था। फिर उसके बाद शॉट मारने के लिए क्या पोजीशन लेनी है वो भी बताया। मैने पोज ले कर शॉट लेने गया तो कई बार मेरे पास आ कर वो मेरे पोस्चर को सही कर रही थी, जिसके कारण वो मेरे शरीर के कई हिस्सों को छूती थी, और मेरे मन में सितार बज उठते थे।

कोई २ घंटे के बाद मैं कुछ सही शॉट्स लगने लगा। नेहा मेरी प्रोग्रेस से काफी खुश थी।

"वाह मनीष जी! आपने तो पहले दिन के हिसाब से अच्छा सीख लिया।"

"थैंक्यू नेहा जी, सब आपके सीखने का कमाल है।"मैने कहा, "वैसे एक बात बोलूं? जब हम ऑफिस के बाहर दोस्त बन गए हैं तो ये जी वाली फॉर्मेलिटी क्यों?"

"हां ये बात तो है, लेकिन आप भी तो मुझे जी बोलते हैं।"

"ओह अच्छा आज से सिर्फ नेहा, और मैं मनीष।"

"लेकिन ऑफिस में मनीष सीनियर और नेहा जूनियर।"

"हां ये भी ठीक है।"

इसके बाद हम लोग वापस लौट गए, मैने ही उसे उसके घर ड्रॉप किया और अपने घर आ कर ऑफिस के लिए तैयार हो कर ऑफिस चला गया। वैसे तो सर ने मुझे आज की छुट्टी दे रखी थी, लेकिन कुछ करने को था नहीं इसीलिए ऑफिस आ गया।

आज का दिन भी ऐसा ही बीता, लेकिन शाम में सर ने एक मीटिंग के लिए बुला लिया और उसके कारण आज शाम में क्लब नहीं जा पाया। लेकिन सुबह समय से उठ कर आज मैं सीधा नेहा के घर चला गया, बाहर से उसे कॉल किया और दोनो लोग गोल्फ कोर्स पहुंच गए।

कल के जैसा आज भी हमने २ घंटे तक प्रैक्टिस की। उसके बाद हम वापस आने लगे। नेहा ने कहा, "मुझे स्विमिंग कब सिखा रहे हैं?"

"क्लब में तो कोच है, उससे क्यों नहीं सीख रही तुम?"

"कुछ बेसिक उसने सिखा दी है, लेकिन जब आपके जैसा US का यूनिवर्सिटी चैंपियन है तो किसी और से क्यों सीखूं?"

"अच्छा! वैसे कितना सीखा है क्लब में?" मैने मुस्कुराते हुए पूछा?

"बिना सपोर्ट के पुल में तैर लेती हूं अब तो।"

"एक हफ्ते के हिसाब से अच्छी प्रोग्रेस है। अच्छा आज संडे है, कोई खास प्रोग्राम तो नहीं है तुम्हारा?"

"नहीं तो, वैसे भी अभी किसी को जानती भी नहीं यहां कि कोई ऐसा प्रोग्राम बनेगा।"

"तो चलो फिर आज से ही तुम्हारी क्लास शुरू करते हैं।"

ये बोल कर मैने कार को शहर से बाहर की ओर एक बीच की तरफ ले गया। ये एक अच्छा बीच था, जहां बहुत ही कम लोग आते थे, लेकिन यहां समुद्र का नजारा शानदार था, और स्विमिंग के लिए बहुत ही मुफीद जगह थी ये। ये एक पत्थरों की दिवाल के पास बना हुआ बीच था। सड़क से नीचे की ओर पत्थरों से होते हुए इस तक पहुंचा जा सकता था।

मैने कार को ऊपर सड़क के पास लगाया और उसका और अपना बैग लेकर नेहा के साथ नीचे उतरा, जैसा सोचा था, वहां अभी 4 6 लोग ही थे, हम दोनो उन लोगों से थोड़ी दूर पर जा कर अपना बैग रख दिया।

"स्विमिंग के लिए कॉस्ट्यूम तो लाई हो न?"

"हां, अभी चेंज करती हूं।" ये बोल कर वो अपने बैग से एक टॉवेल और कुछ कपड़े निकल कर एक बड़े पत्थर के पीछे चली गई। मैं भी टॉवेल ले कर एक पत्थर के पीछे जा कर अपना स्विमिंग अंडरवियर और एक वेस्ट पहन ली।

जब मैं बाहर आया तब तक नही भी आ चुकी थी। उसने जो पहना था उसे स्विमिंग कॉस्ट्यूम कहना सही नहीं होगा। उसने एक हॉट पैंट जैसा कुछ पहना था जो उसके टखने से थोड़ा ऊपर तक था, और एक स्पोर्ट्स ब्रा जो आधे पेट को ढके हुए थी। हम दोनो समुद्र में उतर गए।

"तुमने क्या सीखा वो बताओ।"

वो थोड़ा सा ब्रेस्ट स्ट्रोक पोजीशन में तैरने की कोशिश करने लगी। मैने उसके पेट पर थोड़ा सपोर्ट दे कर उसकी मदद की। डिसबैलेंस होने पर वो मुझे कस कर पकड़ लेती, कई बार हमारा पूरा शरीर एक दूसरे के संपर्क में आया। ये कुछ क्षणों का आलिंगन, छुवन मुझे एक अलग ही अहसास दिल रही थी। मेरे होशो हवास कई बार उड़ जा रहे थे। हम लोग करीब एक घंटे तक हम वहां रहे, उसके बाद थोड़ी भीड़ सी भी होने लगी, और नेहा भी थक सी गई थी, तो हम वापस आ गए। पहले मैने अपने कपड़े बदले और फिर उसको बोल कर मैं ऊपर कार को मोड़ने लगा। जब तक मैने कार को मोड़ा, तब तक नेहा भी ऊपर आ चुकी थी।

सुनहरी धूप में उसके गीले खुले बाल, और उससे चेहरे पर पड़ी हुई नमकीन पानी की बूंदों ने एक ऐसी कशिश को जगाया कि मेरी नजरें ही नहीं हट पा रही थी उसके ऊपर से। वो कब आ कर कार में बैठ गई, मुझे पता ही नहीं चला।

"ओ हेलो!!" चुटकी बजते हुए उसने मेरी तंद्रा तोड़ी।

"कहां खो गए जनाब? चलें अब बहुत भूख लग गई है।"

"ओह हां, सॉरी! ऑफिस के एक काम की याद आ गई, वही सोचने लगा था।" मैने बहाना मारते हुए कहा।

फिर हम एक रेस्टुरेंट में चले गए, वहां दोनों ने नाश्ता किया और फिर मैं उसे ड्रॉप करके अपने घर आ गया। आज बहुत थकान हो गई थी तो दिन भर तो सोते हुए ही बीता। शाम को मैं एक बार फिर क्लब चला गया। लेकिन आज वो नहीं आई थी।

अगले दिन से फिर वही रूटीन चालू हो गया। अब चूंकि अगले हफ्ते सबको निकलना था तो सब अपनी तैयारी में जुट गए। सारे टीम वाले कोई न कोई सवाल ले कर मेरे पास आते और मैं उनको उसके बारे में समझने लगता था। शनिवार को फिर से मेरी गोल्फ की ट्रेनिंग और नेहा की स्विमिंग की ट्रेनिंग हुई। शनिवार को मैं अपने केबिन में बैठा टूर की आखिरी तैयारियों में व्यस्त था, अभी टिकट्स और रिजर्वेशन की डिटेल नहीं आई थी। मैने करण से इंटरकॉम पर उसके बारे पूछा तो उसने बताया कि शाम तक सारी चीजें मिल जाएंगी। तभी मेरा केबिन का दरवाजा बजा और मैने "कम इन" बोल कर एक फाइल देखने लगा उधर से एक लड़की की हेलो की आवाज आई और मैने बेध्यानी में उसे नेहा समझ कर, "हां नेहा बोलो।"

"अरे पहले देख तो लो कौन बोल रहा है, या नेहा के सपने अभी से आने लगे जनाब?" ये शिविका थी। मैंने थोड़ा एम्बरेस हो कहा, "सॉरी शिविका, असल में मैं उसका ही का वेट कर रहा था।"

"अरे मैं तो मजाक कर रही थी यार, तुम्हारे ही डिपार्टमेंट में है, कोई बात नहीं।"

"वैसे कुछ काम था क्या?"

"वो कुछ इश्यू है प्रेजेंटेशन का, उसी के लिए मिलना था।"

"लाई, अभी तो फ्री ही हूं।"

उसने अपना इश्यू बताया और मैं उसे कुछ देर समझाया। वो क्लियर होने के बाद हम ऐसे ही बातें करने लगे।

"तो जनाब को अब मंडे से तो मजे हैं आपके?" वो फिर से मजाक के मूड में थी, और मेरी टांग खींच रही थी।

"काम करने जा रहे हैं हम शिविका।"

"अरे काम करो न, किसने मना किया है? वैसे ठंड का मौसम और sexy and hot लड़की साथ में!! है न डेडली कॉम्बिनेशन?"

"तुम जाओ यार, जब देखो टांग खींचती हो।" मैने थोड़ी नाराजगी दिखाते हुए कहा।

और वो खिलखिलाती हुई चली गई।

शाम को करण ने एक एनवेलप मुझे दिया, "इसमें सारे टिकट्स और होटल बुकिंग के डिटेल हैं। सुबह 7:30 की फ्लाइट है आपकी लखनऊ की। नेहा को कंपनी की कार पिकअप कर लेगी, आप टाइम से पहुंच जाइएगा।" ये बोल कर वो चला गया।

करण मध्य प्रदेश से था, बहुत ही मेहनती और तेज दिमाग का। वो यहां कोई 5 साल से काम कर रहा था, और 2 साल पहले ही बैंकिंग डिवीजन में आया, पहले वो रियल एस्टेट देखता था।


एनवेलप बैग में रख कर मैं घर चला गया। सुबह ड्राइवर आ गया था, और 6:30 पर मैं एयरपोर्ट के लिए निकल गया, नेहा को भी कॉल करके कंफर्म कर लिया की वो भी निकल गई है या नहीं।

रास्ते में मैने एनवेलप खोल कर टिकट्स निकलीं। उसमें सबसे ऊपर लखनऊ की ही टिकट थी। बुकिंग में नाम दिखा रहा था

Mr. Manish Mittal, age 27, male
Mrs. Neha Verma, age 29, female

ये देख कर मुझे लगा कि कोई गड़बड़ है क्या? फिर मैने सारी टिकट और बुकिंग चेक की, सबमें Mrs. Neha Verma ही था।

मैने करण को कॉल किया, "जी सर, कोई दिक्कत है क्या?"

"ये नेहा का नाम गलत प्रिंट हुआ है शायद? सब जगह Mrs. नेहा वर्मा है।"


"जी सही तो है सर वो।"...
बहुत ही सुंदर और मस्त अपडेट हैं मजा आ गया
 

Napster

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#अपडेट ६


अब तक आपने पढ़ा -


मैने करण को कॉल किया, "जी सर, कोई दिक्कत है क्या?"


"ये नेहा का नाम गलत प्रिंट हुआ है शायद? सब जगह Mrs. नेहा वर्मा है।"


"जी सही तो है सर वो।"


अब आगे -


"क्या?"


"जी सर, आपको पता नहीं, वो शादीशुदा है।"


"ओह अच्छा, चलो बेस्ट ऑफ लक फॉर योर टूर, और प्रिया को भी विश कर देना।" मैने अपनी आवाज को नार्मल रखते हुए कहा। हालांकि मुझे जोर का झटका लगा था।


मन बहुत व्यथित था कि इतनी बड़ी बात नेहा ने मुझसे छुपाई कैसे, लेकिन फिर एक बार ये भी सोचा कि हमारे बीच कभी ऐसी बात तो हुई ही नहीं कि वो मुझे बताती, फिर दिमाग ये सोचने लगता कि कोई सुहाग की निशानी भी नहीं दिखी मुझे, आखिर क्या चक्कर है ये।


एयरपोर्ट पहुंचते ही बोर्डिंग की अनाउंसमेंट हो गई थी, इसीलिए मैने नेहा को लेकर पहले चेक इन किया और फ्लाइट में भी हम दोनो की सीट अलग थी, इसीलिए कोई बात करने का चांस नहीं मिला। मन ही मन मैं गुस्सा था, इसीलिए मैने भी कोई ऐसी ज्यादा कोशिश नहीं की। लखनऊ में वहां के लोकल लोग हमें पिकअप करने आए थे, इसीलिए कार में कोई बात करने का फिर से मौका नहीं मिला। होटल में हमारे कमरे आमने सामने थे, और दोनो फ्रेश होने चले गए।


फ्रेश होने के बाद मुझे भूख लग रही थी, तभी मेरा फोन बजा, ये नेहा थी।


"हेलो?"


"सोचा अब तो लंच का टाइम है तो एक साथ ही कर लेते हैं, नीचे रेस्टुरेंट चलेंगे?"


"तुम खा लो नेहा, मेरे सर ने दर्द है, और वैसे भी मैं घर से हैवी ब्रेकफास्ट करके चला था, तो अभी तो भूख नहीं ही है।" भूख तो थी, पर उसके साथ खाने की इच्छा नहीं थी मुझे बिल्कुल भी।


"ओह, क्या आ कर बाम लगा दूं?"


"अरे नहीं, अभी एक घंटा है मीटिंग में, थोड़ा सो लेता हूं, रात को सोया नहीं था अच्छे से, शायद उसी से हो।" ये बोल कर मैने फोन काट दिया। फिर नाश्ता ऑर्डर करके रूम में ही मंगवा लिया।


नाश्ता आने के बाद मैं खाने बैठा और कुछ ही समय बाद मेरे रूम का दरवाजा खुला, जिसे मैं लॉक करना भूल गया था नाश्ता लेने के बाद, और नेहा अंदर आई।


"मैने सोचा कि तुम्हारे सर में दर्द है तो..."


"तुमने तो कहा भूख नहीं, फिर?"


"भूख लग गई तो मंगवा लिया।" मैने कुछ रुखाई से कहा।


"ओह सॉरी, मुझे बिना परमिशन के अंदर नहीं आना चाहिए था।"


ये बोल कर वो वापस चली गई।


कुछ देर बाद हम दोनो नीचे उतर कर मीटिंग में चले गए। देर रात तक मीटिंग चली और हमें कोई भी समय अकेले में नहीं मिला। थक जाने के कारण दोनों अपने अपने रूम में सो गए।


अगले दिन सुबह कानपुर के लिए निकल गए, साथ में कंपनी का एक एंप्लॉई भी था, वहां की मीटिंग भी देर शाम तक चली और रात को ही हमारी फ्लाइट थी दिल्ली की। देर रात को दिल्ली पहुंचे, यहां भी एक होटल में हमारा अरेंजमेंट था, लेकिन मैने वो कैंसल करके मित्तल सर के फॉर्महाउस जो छतरपुर में था वहां चले गए। दिल्ली में मैं अक्सर यहीं रुकता था। केयरटेकर ने डिनर का इंतजाम और हम दोनो के रूम रेडी रखे थे। हम दोनो ही बहुत थके थे तो खा कर अपने कमरों में जा कर सो गए। केयरटेकर ने बताया कि मित्तल सर भी आए हुए हैं और अभी वो सो चुके है।


वापी से लेकर अभी तक मेरे और नेहा के बीच जो भी बात हुई बस प्रोफेशनल तरीके से हुई। और मेरा व्यवहार भी कुछ रुखा सा ही था, जिससे वो थोड़ी दूरी बनाई हुई थी मुझसे।


सुबह नाश्ते की टेबल पर मित्तल सर भी मौजूद थे।


"और कैसी रही लखनऊ और कानपुर की मीटिंग?"


"बहुत बढ़िया रही, लोगों ने अच्छा रिस्पॉन्स दिया हमे लगता है कि जल्दी ही यहां भी ब्रांच खोल देनी चाहिए।"


"वाह ये तो अच्छी बात है। नेहा, क्या तुम अब अकेले मीटिंग हैंडल कर लोगी? मुझे मनीष को लेकर मंत्रालय जाना होगा।"


"जी सर, बिलकुल कर लूंगी।"


"वो जो वाल्ट वाली बात बोली थी मैने तुमको, उसके लिए चलना है।"


"बिलकुल चलिए, मेरा प्लान रेडी है पूरा।"


"ठीक है, मनीष नाश्ता करके मेरे साथ चलो तुम, मैने दिल्ली जोन के मैनेजर को नेहा के साथ रहने के लिए बोल दिया है, वो अभी 10 मिनिट में पहुंच कर नेहा को साथ ले जायेंगे वेन्यू पर। ठीक है मैं आता हूं अभी रूम से।"


थोड़ी देर के बाद नेहा नॉर्थ जोन के मैनेजर के साथ चली गई, और मैं सर के साथ मंत्रालय चल दिया, वहां पर पहले से ही उनकी अपॉइंटमेंट थी, लेकिन नेता तो नेता होते हैं, लगभग पूरी दोपहर बैठने के बाद मंत्री जी हमसे मिले और हमने उनके सामने प्रोपोजल रखा। असल में ऑटोमेटेड ब्रांच तो बस एक सीढ़ी थी सर के असल सपने की ओर। वो एक ऐसा वाल्ट बनवाना चाहते थे जिसमें सरकार अपना सोना रख सके। मैने उसकी रूप रेखा लगभग तैयार कर दी थी, बस सरकार से परमिशन ले कर उसपर काम करना था।


मीटिंग के बाद मंत्री जी बड़े खुश दिखे, और अगले दिन के लिए अपने विभाग के ऑफिसर्स के साथ इस प्रोजेक्ट को डिसकस करने के लिए दिया।


वापस आते आते रात हो चुकी थी, और नेहा भी थोड़ी देर पहले ही आई थी। दिसंबर का समय था और वातावरण ठंडा था। डाइनिंग टेबल पर नॉर्मल काम की बातें हुई और फिर हम सब सोने चले गए। अगला दिन भी व्यस्त था। शाम तक सारे काम खत्म हो चुके थे, और मित्तल सर मंत्रालय से ही वापस चले गए थे।


जब मैं फॉर्महाउस पहुंचा तो शायद नेहा जल्दी आ गई थी, और वो नीचे बने गार्डन में टहल रही थी। मैं फ्रेश हो कर आया तो फिर हमने खाना खाया। आज भी हमारे बीच एक खामोशी ही पसरी थी।


खाना खा कर मैं भी गार्डन में टहलने लगा। नेहा कुछ देर डाइनिंग टेबल पर ही बैठ अपना फोन चला रही थी। टेबल साफ करके सारे लोग अपने क्वार्टर में चले गए, और इस समय मुख्य इमारत में बस मैं और नेहा थे।


कुछ समय बाद मुझे लगा कोई मेरे पीछे है, देखा तो नेहा थी। इस समय उसने एक पैजामा टीशर्ट पहना था, जो अभी ठंड के हिसाब से कुछ कम था। मैं एक शॉल ओढ़े था।


"मुझे आपसे कुछ बात करनी है।"


"हां बोलिए नेहा जी।"


"दोस्त के नाते, क्या मैं कुछ पूछ सकती हूं?"


"हां बोलो।"


"क्या मुझसे नाराज हैं किसी बात पर?"


"दोस्त कहती हो और बातें भी छुपाती हो?" मैने सपाट भाव से पूछा।


"कौन सी बात छुपाई मैने?" उसने भी आश्चर्य से कहा।


"यही की तुम शादीशुदा हो।"



ये सुन कर वो मुझे गौर से देखने लगी...
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"दोस्त कहती हो और बातें भी छुपाती हो?" मैने सपाट भाव से पूछा।


"कौन सी बात छुपाई मैने?" उसने भी आश्चर्य से कहा।


"यही की तुम शादीशुदा हो।"


ये सुन कर वो मुझे गौर से देखने लगी...


अब आगे -


फिर जो जोर जोर से हंसने लगी


"हाहाहा, तो इसलिए आप मुझसे नाराज थे? अच्छा एक बात बताइए, कभी हमारे बीच ऐसी कोई बात हुई क्या? कभी हमने एक दूसरे की निजी जिंदगी के बारे में पूछा कुछ एक दूसरे से? ऐसा नहीं है कि मैं ये बात छुपाना चाहती थी, बस कभी बात ही नहीं हुई अपनी इस बारे में।"


ये सुन कर मैं सोच में पड़ गया, वाकई कभी मैने उससे उसकी निजी जिंदगी के बारे में नहीं पूछा, फिर उसके छुपाने का तो कोई सवाल ही नहीं था, लेकिन सुहाग की निशानियों का क्या? या वो अल्ट्रा माडर्न है जो ये सब नहीं लगना चाहती?


"पर तुमको देख कर लगता भी नहीं कि तुम शादीशुदा हो, आई मीन कोई सुहाग की निशानी वगैरा?"


मेरा ये सवाल सुन कर उसके चेहरे पर एक दर्द सा उभरा, "दरअसल मनीष, मेरी शादी अब बस नाम की ही है, बल्कि शायद कुछ दिनों में तलाक भी फाइनल हो जाय।"


"क्या मतलब?"


"मेरे पापा बैंक में थे, वो पहले दिल्ली में पोस्टेड थे, फिर उनका ट्रांसफर देहरादून हो गया। जब हम वहां गए तो उस समय मेरी उम्र लगभग 17 साल थी, अल्हड़ उम्र थी वो, बड़ी जल्दी ही किसी के भी प्रति आकर्षित हो जाती है इस उम्र में लड़कियां। मेरे साथ भी ऐसा हुआ, कैप्टन संजीव जो हमारे घर के पास ही रहते थे, और उम्र में मुझसे लगभग 10 साल बड़े थे, मैं उनकी ओर ऐसा आकर्षित हुई कि तीन साल बाद उनसे शादी कर बैठी। मेरे घर वाले इसके खिलाफ थे, मेरे पापा तो खास कर। जैसा होता है, कुछ दिनों तक तो मैं इश्क की खुमारी में थी, कुछ पता ही नहीं चला। फिर धीरे धीरे पता चला कि संजीव को शराब पीने की लत थी, और साथ में वो बहुत ही शॉर्ट टेंपरेड थे। सेना में कई बार उनको वार्निंग मिल चुकी थी। फिर एक दिन वो अपने सीनियर की पत्नी के साथ नशे में बदतमीजी कर दिए, और साथ में उसी सीनियर से मार पीट भी कर ली, तो सेना ने उन्हें बर्खास्त करके निकल दिया। फिर घर पर भी उनका वही रवईया शुरू हो गया, शराब पीना, मुझ पर गुस्सा दिखाना, कुछ काम भी नहीं करना। घर खर्च के लिए मैने नौकरी भी की तो उसमें भी उनको गलत दिखने लगा।" अब उसकी आंखों में आंसु भर चुके थे, मैं भी उसकी ये बातें सुन कर अपना गुस्सा भूल चुका था।


"उसने मुझ पर बदचलनी का भी आरोप लगा दिया, मार पीट तो रोज का किस्सा बन चुकी थी। नर्क बना दी थी उसने मेरी जिंदगी। फिर एक दिन मैं पापा के घर वापस चली गई। लेकिन फिर भी उसने मेरा जीना हरम कर रखा था। पापा के कहने पर ही मैने उससे डाइवोर्स लेने का फैसला किया, पुलिस में कंप्लेन भी की, लेकिन वो पीछे ही पड़ा था मेरे फिर पापा ने मित्तल अंकल से बात करके मेरी जॉब यह करवा दी।।" अब तक वो सुबकने लगी थी।


मैं तुरंत अंदर से पानी लेकर उसे पिलाया, और उसके कंधे पर हाथ रख कर, "I'm sorry नेहा, मुझे नहीं पता था कि तुमने इतना झेला है।"


"सच बताऊं मनीष, पिछले एक हफ्ते से तुम्हारे साथ रह कर मैं अपनी उस नर्क जैसी जिंदगी को लगभग भूल ही गई थी। शायद इसी कारण मैं इस बात को नहीं बता पाई तुमको।" ये बोल कर उसने मेरा हाथ पकड़ लिया।


मैने भी भाववेश ने उसके गाल पर हाथ रख दिया।


"ओह सॉरी, गलती से हो गया ये।" मैने अपना हाथ वापस खींचते हुए कहा।


उसने मुस्कुराते हुए मेरे गालों को भी सहला दिया, "कोई बात नहीं, तुमको इतना फॉर्मल होने की जरूरत नहीं है।"


"वैसे अब भी जनाब को गुस्सा है क्या?"


"नहीं, अब कैसे गुस्सा हो सकता हूं? कितना झेल है तुमने।"


"नहीं, तुमको भी गुस्सा होने का पूरा हक है, आखिर हम दोस्त हैं। हैं न?" उसने मेरी आंखों में झांकते हुए कहा, उसकी आँखें शरारत से चमक रही थी।


"बिलकुल दोस्त हैं।"


"बस, या दोस्त से भी बढ़ कर?"


"मतलब??" मैने थोड़ा आश्चर्य से उसकी ओर देखा।


"मतलब बेस्ट फ्रेंड। और क्या समझा तुमने बुद्धू?" उसने हंसते हुए कहा।


"हां बिल्कुल। हम बेस्ट फ्रेंड है अब से।"


"चलो अब सोते हैं। गुड नाइट।" उसने मेरे गाल को सहलाते हुए कहा।


"गुड नाइट।"


हम अपने अपने कमरों में जा कर सो गए। आज मुझे अच्छे से नींद आई, दिल से एक बोझ सा उतर गया था।


सुबह मेरी नींद जल्दी खुल गई, तो मैं जिम चला गया, एक घंटे पसीना बहाने के बाद जब मैं गार्डन में आया तो धूप खिली हुई थी आज, और मनोज जी, जो फॉर्महाउस के केयरटेकर थे, वो स्विमिंग पूल में ताजा पानी डाल रहे थे।


"गुड मॉर्निंग मनीष बाबा।" वो भी मुझे मित्तल सर के बच्चों जैसा ही मानते थे।


"गुड मॉर्निंग मनोज अंकल, कैसे हैं आप?"


"बढ़िया हूं मनीष बाबा, क्या आप पुल में नहाएंगे, पानी ताजा है, तो अभी गर्म ही है हल्का।"


"बिलकुल." ये बोल कर मैं अपने कपड़े निकाल कर एक अंडरवियर में पूल में उतर गया। तब तक मनोज अंकल भी टॉवेल और बाथ रोब रख कर अंदर के काम देखने चले गए। वैसे भी फॉर्महाउस में जब कोई स्विमिंग पूल में रहता था तो कोई भी स्टाफ का मेंबर इधर नहीं आता था।


थोड़ी देर के बाद ही नेहा भी गार्डन में आ गई, उसने अपने रात वाले कपड़े के ऊपर एक शॉल डाली हुई थी।


"गुड मॉर्निंग।"


"गुड मॉर्निंग नेहा, कैसी नींद आई रात को?"


"बिलकुल अच्छी नींद आई, मुझे मेरा बेस्ट फ्रेंड जो वापस मिल गया है।"


ये बोल कर वो पूल के किनारे ही टहलने लगी, मैं भी उसके साथ में चारों ओर तैरता हुआ उससे बातें करने लगा। एक दो बार मैने उससे भी पुल में आने को कहा, मगर उसने मना कर दिया।


ऐसे ही बातें करते कुछ समय बाद मैंने नेहा से हाथ देकर मुझे बाहर निकलने को कहा। और जैसे ही उसने मेरा हाथ पकड़ा, मैने उसे झटके से पूल में खींच लिया।


"ओह, मनीष क्या किया तुमने ये, मेरे पूरे कपड़े गीले कर दिए।"


"ओह सॉरी" कहते हुए मैने उसे पूल से बाहर कर दिया।


टीशर्ट गीले हो जाने के कारण उसका पूरा बदन मेरे सामने नुमाया हो गया। ठंड के कारण उसके निपल्स खड़े थे, और टीशर्ट पारदर्शी हो कर उसके बदन से चिपक गई थी, मुझे उसके स्तनों का पूरा आकर दिख रहा था। शायद रात को उसने अपने अंतर्वस्त्र उतार दिए होंगे। मेरे शरीर में उसे देख कर हलचल होने लगी। नेहा मुझे अपनी ओर ऐसे देखते हुए अपनी हालत पर गौर की और तेजी से पीछे मुड़ गई। लेकिन पीछे के हालात भी कुछ अच्छे नहीं थे। लेकिन उसके यूं पीछे मुड़ने से मेरे कुछ होशो हवास वापस आए।


"नेहा उधर एक बाथरॉब है, उसे पहन लो।"


ये सुन कर वो फौरन बाथरॉब पहन कर अंदर चली गई। मैं भी कुछ देर के बाद पूल से निकल कर अपने कमरे में चला गया।


डाइनिंग टेबल पर एक बार फिर से हम एक दूसरे के साथ बैठे थे, पूल वाली घटना से मैं खुद में बहुत असहज महसूस कर रहा था


"I'm sorry Neha."


"Sorry क्यों? मनीष हम अच्छे दोस्त है, ऐसा मजाक चलता रहता है। कोई बात नहीं।" उसने मेरा हाथ थपथपाते हुए कहा।


"मतलब तुम्हे बुरा नहीं लगा?"


"अगर तुम मुझे पूल में नहीं खींचते तो शायद बुरा लगता।" ये कह कर नेहा जोर से हंसने लगी। मैं भी मुस्कुरा दिया, मेरा गिल्ट अब जा चुका था।


नाश्ता करके हम लोग मीटिंग के लिए निकल गए। आज की मीटिंग जल्दी खत्म हो गई। लौटते हुए मैने नेहा से थोड़ा घूमने के लिए पूछा तो वो तैयार हो गई। मैने ड्राइवर को कार को सरदार जी के ढाबे की ओर ले चलने को कहा। कार को थोड़ा पहले रुकवा कर मैने ड्राइवर से कार की चाभी ले ली, और मैं नेहा को लेकर ढाबे पर गया।


"ये कहां लेकर आए हो मनीष?"


"कल तुमने अपना पास्ट बताया था मुझे, आज मैं तुमको अपने पास्ट से मिलवाने लाया हूं।"


इन तीन सालों में सरदार जी का ढाबा अब एक अच्छे रेस्टुरेंट में बदल चुका था। एक टेबल पर नेहा को बैठा कर मैं सरदार जी को ढूंढने लगा, वो किचेन में खुद लगे हुए थे आज और लोगों का ऑर्डर पहुंचने के लिए इंस्ट्रक्शन दे रहे थे।


मैं चुपचाप उनके पीछे पहुंच कर आवाज बदल कर बोला, "छह नंबर टेबल पर ग्राहक कह रहे हैं कि अब पहले जैसी सफाई नहीं रहती यहां।"


"नहीं रहती, क्यों क्या हो गया ऐसा जो उन्होंने ऐसा बोला?" बिना मेरी ओर देखे वो बोले।


"वो बोल रहे थे कि जब से मोनू गया है तबसे कोई और वैसी सफाई नहीं रखता अब।"


सरदार जी मेरी ओर मुड़े और बोले, "अच्छा, मेरी बिल्ली मुझसे ही म्याऊं?" बोल कर उन्होंने मुझे गले लगा लिया।


"कैसा है मेरा पुत्तर?"


"अच्छा हूं बाऊ जी।"


"अरे मुन्ना, जाकर जल्दी से जॉली को बुला ला, बोल कोई मिलने आया है बहुत दूर से।"


"पुत्तर तेरी तरक्की देख कर बहुत खुश हूं मैं, जब मित्तल साहब ने तुझे वाइस प्रेसिडेंट बनाया था, उसकी खबर टीवी पर आई तो मेरी छाती चौड़ी हो गई।"


"सब आपका ही आशीर्वाद और मार्गदर्शन है बाऊ जी, वरना मैं कौन सा इस काबिल था।"


"नहीं पुत्तर, सब तेरा भाग्य था, हम तो बस एक जरिया थे, सब रब दी मेहर है पुत्तर। ले जॉली भी आ गया।"


जॉली भैया भी मुझे देख कर बहुत खुश हुए। मैने उन लोग को नेहा से मिलवाया।


"इनसे मिलिए, ये हैं नेहा।"


"ओय खोते, तूने शादी कर ली, बिना हमे बताए।"


"बाऊ जी, ऐसा नहीं है, हम बस अच्छे दोस्त हैं।"


"ओय यार दिल तोड़ दिया तूने तो, मुझे लगा तेरी वोट्टी है ये।"


ये सुन कर हम सब हंसने लगे। बहुत देर तक हम चारों बातें करते रहे। जॉली भैया भी अपने काम में अब बहुत बदलाव कर चुके थे, अब मोबाइल रिपेयरिंग के साथ साथ साइबर कैफे और कंप्यूटर का काम भी शुरू कर दिया था, ऑनलाइन फॉर्म्स भी भरते थे वो। राजेंद्रनगर जैसी जगह में ये काम बहुत अच्छा चलता था।


देर रात हम वहां बैठे रहे और रात का खाना खा कर ही वहां से निकले। सरदार जी और जॉली भैया कई बार नेहा को मुझसे शादी करना का हिंट करके उससे हंसी मजाक करते रहे, वो भी खुल कर उनकी बातों में शामिल रही।


वापस लौटते समय कार में सिर्फ मैं और नेहा थे।


"तो नेहा, ये लोग ही हैं सिर्फ मेरे जीवन में मित्तल सर के अलावा।"


"बहुत अच्छे लोग हैं, कितने निस्वार्थ भाव से सब तुम्हारे साथ जुड़े हैं।"


"हां उनका बड़ापन ही है ये।"


"वैसे मनीष, क्या अब तक तुम्हारी जिंदगी में कोई लड़की नहीं आई? मतलब स्कूल, कॉलेज, वो भी फॉरेन में, जहां रिलेशनशिप में होना कोई ऐसी बड़ी बात नहीं है।"


"नेहा, मुझे ये सब करना ही नहीं था, क्योंकि जो मुझे मिला, इन सब लोगों से,मैं उसके लिए इनका न सिर्फ शुक्रगुजार हूं, बल्कि इनकी जो भी मुझसे एसपेक्टेशन थी, मैं उससे डिस्ट्रैक्ट नहीं होना चाहता था। इसीलिए पढ़ाई के समय मैने किसी की ओर नजर उठा कर देखा तक नहीं था। वैसे एक बात और भी थी, उस समय तक कोई मिली ही नहीं थी ऐसी कि मैं ध्यान देता उसकी ओर।"


"उस समय तक, और अब?"


"अब मिली तो है एक, लेकिन लगता नहीं मेरी दाल गलेगी वहां।" मैने कन्खियों से उसे देखते हुए मुस्कुरा कर कहा।


"कोशिश की है या नहीं, क्या पता कोशिश रंग लाए।" उसने भी बिना मेरी ओर देखे जवाब दिया।


"डर लगता है, अगर जो उसने मना कर दिया तो? वैसे भी वो किसी और से प्यार करती थी।"


इस बार उसने मेरी ओर देख कर कहा, "थी न, है तो नहीं। इसीलिए कोशिश तो करो पहले।"


उनका जवाब सुन कर मैं कुछ देर चुप हो गया।


अभी हम इंडिया गेट के सामने से निकल रहे थे, देर रात को वहां पर लगभग सन्नाटा ही था। मैने अपनी गाड़ी अंदर लेली, और गार्डन के पास लगा दी। अपना गेट खोल कर मैने उसकी ओर का गेट खोल कर उसकी ओर हाथ बढ़ा कर उसे बाहर निकाला।


उसके बाहर आते ही मैं अपने दाहिने घुटने पर बैठ कर, "नेहा, इस पूरी जिंदगी में सिर्फ एक तुम ही हो जिसे मैने अपनी जिंदगी में इतने करीब की जगह दी है। क्या तुम मेरी जिंदगी में हमेशा रहना चाहोगी? I love you Neha!"


ये सुन कर नेहा मेरे सामने अपने घुटनों पर आ गई, उसकी आंखे भी भरी हुई थीं।


"मनीष, मुझे पता है कि तुम एक बहुत ही अच्छे इंसान हो, और कोई भी औरत तुमको अपनाना चाहेगी। मैं भी तुम्हारी ओर आकर्षित हूं, लेकिन मुझे लगता है कि मुझे पहले अपनी बीती जिंदगी का फैसला पहले लेना चाहिए, उसके बाद ही इस बारे में मुझे कुछ सोचना चाहिए।"


"मैं समझ सकता हूं नेहा, तुम अपना पूरा समय लो। मुझे कोई जल्दी नहीं है।" ये बोलकर मैने उसका हाथ चूम लिया।


नेहा ने भी आगे बढ़ कर मेरे माथे को चूम लिया।


उसके बाद हम वापस फॉर्महाउस आ गए। जब हम अपने कमरों की ओर जा रहे थे तब मैने नेहा के चेहरे को पकड़ कर उसके होंठों पर गुड नाइट किस देनी चाही, लेकिन नेहा ने अपना हाथ बीच में का कर कहा, "मनीष अभी नहीं, थोड़ा सब्र रखो।"


मेरा मुंह थोड़ा उतर गया, ये देख हंसते हुए उसने मेरे गालों पर अपने लब लगा दिए, उसके तपते होंठो से मेरे दिल को एक अजीब सी ठंडक सी महसूस हुई।


"अब खुश? चलो अब सो जाते हैं, सुबह हमें देहरादून भी निकलना है।"


सुबह 9 बजे तक हम देहरादून पहुंच गए, नया साल तीन दिन बाद ही था, इसीूंलिए वहां का आम हमें आज ही खत्म करना था। देर रात तक काम करके हम अपने कमरों में जा कर सो गए। कुछ खास नहीं हुआ आज।


अगले दिन भी सुबह से ही मीटिंग थी, लेकिन हम आज 1 घंटे में ही फ्री ही गए। अब पूरा दिन खाली था हमारा। वैसे भी कल शाम की ही हमारी फ्लाइट थी शिमला की। तो मैने उससे पूछ कर अगले दिन का मसूरी का जाने का प्रोग्राम बना लिया और नेहा ने आज मुझे देहरादून घुमाने के लिए बोला। मीटिंग से ही हम सीधा तापकेश्वर महादेव मंदिर चले गए और वहां हमने दर्शन किए। ये द्रोण गुफा के नाम से भी प्रसिद्ध है। आसपास की सुंदरता को निहारते हुए हम फिर robber's Cave चले गए जिसे शिव के धाम के रूप में जाना जाता है। दोनों जगह घूमने के बाद हम वापस देहरादून में घंटाघर के पास बनी मार्केट में ऐसे ही घूमने लगे, वहां पर नेहा की बताई हुई कई स्ट्रीट फूड हमने खाई। ये सारी जगह हम हाथों में हाथ डाले ऐसे घूम रहे थे जैसे हमारी नई नई शादी हुई हो। कई जगह लोगों ने भी हमें ऐसा ही समझा। ऐसे ही घूमते हुए शाम हो चली थी।


"अब मैं जरा मां पापा से मिल लेती हूं।"


"मुझे नहीं मिलाओगी?"


"अभी नहीं मनीष, पहले ही वो मुझसे संजीव के कारण नाराज हैं, पहले वो वाली नाराजगी तो दूर होने दो।" उसने मेरा गाल सहलाते हुए मुझसे कहा।


"चलो मैं ड्रॉप कर देता हूं।"


हम दोनो कार से उसके घर की ओर चल दिए। एक गली के पास पहुंच कर उसने कार रुकवाई, और मुझसे कहा, "मेरा बैग तैयार है, तुम अभी होटल में जा कर अपनी तैयारी करो, मैं एक घंटे में कॉल करके बुलाती हूं, फिर हम मसूरी चलेंगे।


"कौन सा घर है तुम्हारा?"


उसने इशारा करके कहा, "ये गली ऊपर एक पहाड़ी पर जाती है, उसी में है मेरा घर, कार यहां से आगे नहीं जा पाएगी न, इसीलिए यहीं उतर जाती हूं।"


ये कह कर वो गली में चली गई, और मैने ड्राइवर को बोल कर होटल आ गया।


धीरे धीरे एक से दो घंटे हो गए, पर उसका की फोन नहीं आया, मैने एक दो बार उसका फोन लगाया भी तो वो आउट ऑफ नेटवर्क जा रहा था। ऐसे ही एक घंटा और बीत गया, मुझे चिंता होने लगी। समझ नहीं आ रहा था कि मैं कैसे उससे संपर्क करूं, एक बार तो सोचा मित्तल सर की कॉल करके उसके पापा का नंबर ले लूं, लेकिन फिर सोचा कि क्या बोलूंगा उनसे, की अपने घर गई है और अभी तक वापस नहीं आई। मसूरी वाला प्लान तो हमारे टूर में था ही नहीं।


ऐसे ही उधेड़बुन में आधा घंटा और निकल गया। तभी मेरे फोन पर एक unknown नंबर से कॉल आया।


"हेलो?"


"मनीष, मैं नेहा बोल रही हूं, प्लीज तुम जल्दी से पेसिफिक मॉल में आ जाओ। मैं यहीं हूं।" उसने फुसफुसाते हुए कहा, और मेरे कुछ कहने से पहले ही कॉल कट गई....
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं मजा आ गया
 

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#अपडेट ७
अब तक आपने पढ़ा -"दोस्त कहती हो और बातें भी छुपाती हो?" मैने सपाट भाव से पूछा।"कौन सी बात छुपाई मैने?" उसने भी आश्चर्य से कहा।"यही की तुम शादीशुदा हो।"ये सुन कर वो मुझे गौर से देखने लगी...अब आगे -फिर जो जोर जोर से हंसने लगी"हाहाहा, तो इसलिए आप मुझसे नाराज थे? अच्छा एक बात बताइए, कभी हमारे बीच ऐसी कोई बात हुई क्या? कभी हमने एक दूसरे की निजी जिंदगी के बारे में पूछा कुछ एक दूसरे से? ऐसा नहीं है कि मैं ये बात छुपाना चाहती थी, बस कभी बात ही नहीं हुई अपनी इस बारे में।"ये सुन कर मैं सोच में पड़ गया, वाकई कभी मैने उससे उसकी निजी जिंदगी के बारे में नहीं पूछा, फिर उसके छुपाने का तो कोई सवाल ही नहीं था, लेकिन सुहाग की निशानियों का क्या? या वो अल्ट्रा माडर्न है जो ये सब नहीं लगना चाहती?"पर तुमको देख कर लगता भी नहीं कि तुम शादीशुदा हो, आई मीन कोई सुहाग की निशानी वगैरा?"मेरा ये सवाल सुन कर उसके चेहरे पर एक दर्द सा उभरा, "दरअसल मनीष, मेरी शादी अब बस नाम की ही है, बल्कि शायद कुछ दिनों में तलाक भी फाइनल हो जाय।""क्या मतलब?""मेरे पापा बैंक में थे, वो पहले दिल्ली में पोस्टेड थे, फिर उनका ट्रांसफर देहरादून हो गया। जब हम वहां गए तो उस समय मेरी उम्र लगभग 17 साल थी, अल्हड़ उम्र थी वो, बड़ी जल्दी ही किसी के भी प्रति आकर्षित हो जाती है इस उम्र में लड़कियां। मेरे साथ भी ऐसा हुआ, कैप्टन संजीव जो हमारे घर के पास ही रहते थे, और उम्र में मुझसे लगभग 10 साल बड़े थे, मैं उनकी ओर ऐसा आकर्षित हुई कि तीन साल बाद उनसे शादी कर बैठी। मेरे घर वाले इसके खिलाफ थे, मेरे पापा तो खास कर। जैसा होता है, कुछ दिनों तक तो मैं इश्क की खुमारी में थी, कुछ पता ही नहीं चला। फिर धीरे धीरे पता चला कि संजीव को शराब पीने की लत थी, और साथ में वो बहुत ही शॉर्ट टेंपरेड थे। सेना में कई बार उनको वार्निंग मिल चुकी थी। फिर एक दिन वो अपने सीनियर की पत्नी के साथ नशे में बदतमीजी कर दिए, और साथ में उसी सीनियर से मार पीट भी कर ली, तो सेना ने उन्हें बर्खास्त करके निकल दिया। फिर घर पर भी उनका वही रवईया शुरू हो गया, शराब पीना, मुझ पर गुस्सा दिखाना, कुछ काम भी नहीं करना। घर खर्च के लिए मैने नौकरी भी की तो उसमें भी उनको गलत दिखने लगा।" अब उसकी आंखों में आंसु भर चुके थे, मैं भी उसकी ये बातें सुन कर अपना गुस्सा भूल चुका था।"उसने मुझ पर बदचलनी का भी आरोप लगा दिया, मार पीट तो रोज का किस्सा बन चुकी थी। नर्क बना दी थी उसने मेरी जिंदगी। फिर एक दिन मैं पापा के घर वापस चली गई। लेकिन फिर भी उसने मेरा जीना हरम कर रखा था। पापा के कहने पर ही मैने उससे डाइवोर्स लेने का फैसला किया, पुलिस में कंप्लेन भी की, लेकिन वो पीछे ही पड़ा था मेरे फिर पापा ने मित्तल अंकल से बात करके मेरी जॉब यह करवा दी।।" अब तक वो सुबकने लगी थी।मैं तुरंत अंदर से पानी लेकर उसे पिलाया, और उसके कंधे पर हाथ रख कर, "I'm sorry नेहा, मुझे नहीं पता था कि तुमने इतना झेला है।""सच बताऊं मनीष, पिछले एक हफ्ते से तुम्हारे साथ रह कर मैं अपनी उस नर्क जैसी जिंदगी को लगभग भूल ही गई थी। शायद इसी कारण मैं इस बात को नहीं बता पाई तुमको।" ये बोल कर उसने मेरा हाथ पकड़ लिया।मैने भी भाववेश ने उसके गाल पर हाथ रख दिया।"ओह सॉरी, गलती से हो गया ये।" मैने अपना हाथ वापस खींचते हुए कहा।उसने मुस्कुराते हुए मेरे गालों को भी सहला दिया, "कोई बात नहीं, तुमको इतना फॉर्मल होने की जरूरत नहीं है।""वैसे अब भी जनाब को गुस्सा है क्या?""नहीं, अब कैसे गुस्सा हो सकता हूं? कितना झेल है तुमने।""नहीं, तुमको भी गुस्सा होने का पूरा हक है, आखिर हम दोस्त हैं। हैं न?" उसने मेरी आंखों में झांकते हुए कहा, उसकी आँखें शरारत से चमक रही थी।"बिलकुल दोस्त हैं।""बस, या दोस्त से भी बढ़ कर?""मतलब??" मैने थोड़ा आश्चर्य से उसकी ओर देखा।"मतलब बेस्ट फ्रेंड। और क्या समझा तुमने बुद्धू?" उसने हंसते हुए कहा।"हां बिल्कुल। हम बेस्ट फ्रेंड है अब से।""चलो अब सोते हैं। गुड नाइट।" उसने मेरे गाल को सहलाते हुए कहा।"गुड नाइट।"हम अपने अपने कमरों में जा कर सो गए। आज मुझे अच्छे से नींद आई, दिल से एक बोझ सा उतर गया था।सुबह मेरी नींद जल्दी खुल गई, तो मैं जिम चला गया, एक घंटे पसीना बहाने के बाद जब मैं गार्डन में आया तो धूप खिली हुई थी आज, और मनोज जी, जो फॉर्महाउस के केयरटेकर थे, वो स्विमिंग पूल में ताजा पानी डाल रहे थे।"गुड मॉर्निंग मनीष बाबा।" वो भी मुझे मित्तल सर के बच्चों जैसा ही मानते थे।"गुड मॉर्निंग मनोज अंकल, कैसे हैं आप?""बढ़िया हूं मनीष बाबा, क्या आप पुल में नहाएंगे, पानी ताजा है, तो अभी गर्म ही है हल्का।""बिलकुल." ये बोल कर मैं अपने कपड़े निकाल कर एक अंडरवियर में पूल में उतर गया। तब तक मनोज अंकल भी टॉवेल और बाथ रोब रख कर अंदर के काम देखने चले गए। वैसे भी फॉर्महाउस में जब कोई स्विमिंग पूल में रहता था तो कोई भी स्टाफ का मेंबर इधर नहीं आता था।थोड़ी देर के बाद ही नेहा भी गार्डन में आ गई, उसने अपने रात वाले कपड़े के ऊपर एक शॉल डाली हुई थी।"गुड मॉर्निंग।""गुड मॉर्निंग नेहा, कैसी नींद आई रात को?""बिलकुल अच्छी नींद आई, मुझे मेरा बेस्ट फ्रेंड जो वापस मिल गया है।"ये बोल कर वो पूल के किनारे ही टहलने लगी, मैं भी उसके साथ में चारों ओर तैरता हुआ उससे बातें करने लगा। एक दो बार मैने उससे भी पुल में आने को कहा, मगर उसने मना कर दिया।ऐसे ही बातें करते कुछ समय बाद मैंने नेहा से हाथ देकर मुझे बाहर निकलने को कहा। और जैसे ही उसने मेरा हाथ पकड़ा, मैने उसे झटके से पूल में खींच लिया।"ओह, मनीष क्या किया तुमने ये, मेरे पूरे कपड़े गीले कर दिए।""ओह सॉरी" कहते हुए मैने उसे पूल से बाहर कर दिया।टीशर्ट गीले हो जाने के कारण उसका पूरा बदन मेरे सामने नुमाया हो गया। ठंड के कारण उसके निपल्स खड़े थे, और टीशर्ट पारदर्शी हो कर उसके बदन से चिपक गई थी, मुझे उसके स्तनों का पूरा आकर दिख रहा था। शायद रात को उसने अपने अंतर्वस्त्र उतार दिए होंगे। मेरे शरीर में उसे देख कर हलचल होने लगी। नेहा मुझे अपनी ओर ऐसे देखते हुए अपनी हालत पर गौर की और तेजी से पीछे मुड़ गई। लेकिन पीछे के हालात भी कुछ अच्छे नहीं थे। लेकिन उसके यूं पीछे मुड़ने से मेरे कुछ होशो हवास वापस आए।"नेहा उधर एक बाथरॉब है, उसे पहन लो।"ये सुन कर वो फौरन बाथरॉब पहन कर अंदर चली गई। मैं भी कुछ देर के बाद पूल से निकल कर अपने कमरे में चला गया।डाइनिंग टेबल पर एक बार फिर से हम एक दूसरे के साथ बैठे थे, पूल वाली घटना से मैं खुद में बहुत असहज महसूस कर रहा था"I'm sorry Neha.""Sorry क्यों? मनीष हम अच्छे दोस्त है, ऐसा मजाक चलता रहता है। कोई बात नहीं।" उसने मेरा हाथ थपथपाते हुए कहा।"मतलब तुम्हे बुरा नहीं लगा?""अगर तुम मुझे पूल में नहीं खींचते तो शायद बुरा लगता।" ये कह कर नेहा जोर से हंसने लगी। मैं भी मुस्कुरा दिया, मेरा गिल्ट अब जा चुका था।नाश्ता करके हम लोग मीटिंग के लिए निकल गए। आज की मीटिंग जल्दी खत्म हो गई। लौटते हुए मैने नेहा से थोड़ा घूमने के लिए पूछा तो वो तैयार हो गई। मैने ड्राइवर को कार को सरदार जी के ढाबे की ओर ले चलने को कहा। कार को थोड़ा पहले रुकवा कर मैने ड्राइवर से कार की चाभी ले ली, और मैं नेहा को लेकर ढाबे पर गया।"ये कहां लेकर आए हो मनीष?""कल तुमने अपना पास्ट बताया था मुझे, आज मैं तुमको अपने पास्ट से मिलवाने लाया हूं।"इन तीन सालों में सरदार जी का ढाबा अब एक अच्छे रेस्टुरेंट में बदल चुका था। एक टेबल पर नेहा को बैठा कर मैं सरदार जी को ढूंढने लगा, वो किचेन में खुद लगे हुए थे आज और लोगों का ऑर्डर पहुंचने के लिए इंस्ट्रक्शन दे रहे थे।मैं चुपचाप उनके पीछे पहुंच कर आवाज बदल कर बोला, "छह नंबर टेबल पर ग्राहक कह रहे हैं कि अब पहले जैसी सफाई नहीं रहती यहां।""नहीं रहती, क्यों क्या हो गया ऐसा जो उन्होंने ऐसा बोला?" बिना मेरी ओर देखे वो बोले।"वो बोल रहे थे कि जब से मोनू गया है तबसे कोई और वैसी सफाई नहीं रखता अब।"सरदार जी मेरी ओर मुड़े और बोले, "अच्छा, मेरी बिल्ली मुझसे ही म्याऊं?" बोल कर उन्होंने मुझे गले लगा लिया।"कैसा है मेरा पुत्तर?""अच्छा हूं बाऊ जी।""अरे मुन्ना, जाकर जल्दी से जॉली को बुला ला, बोल कोई मिलने आया है बहुत दूर से।""पुत्तर तेरी तरक्की देख कर बहुत खुश हूं मैं, जब मित्तल साहब ने तुझे वाइस प्रेसिडेंट बनाया था, उसकी खबर टीवी पर आई तो मेरी छाती चौड़ी हो गई।""सब आपका ही आशीर्वाद और मार्गदर्शन है बाऊ जी, वरना मैं कौन सा इस काबिल था।""नहीं पुत्तर, सब तेरा भाग्य था, हम तो बस एक जरिया थे, सब रब दी मेहर है पुत्तर। ले जॉली भी आ गया।"जॉली भैया भी मुझे देख कर बहुत खुश हुए। मैने उन लोग को नेहा से मिलवाया।"इनसे मिलिए, ये हैं नेहा।""ओय खोते, तूने शादी कर ली, बिना हमे बताए।""बाऊ जी, ऐसा नहीं है, हम बस अच्छे दोस्त हैं।""ओय यार दिल तोड़ दिया तूने तो, मुझे लगा तेरी वोट्टी है ये।"ये सुन कर हम सब हंसने लगे। बहुत देर तक हम चारों बातें करते रहे। जॉली भैया भी अपने काम में अब बहुत बदलाव कर चुके थे, अब मोबाइल रिपेयरिंग के साथ साथ साइबर कैफे और कंप्यूटर का काम भी शुरू कर दिया था, ऑनलाइन फॉर्म्स भी भरते थे वो। राजेंद्रनगर जैसी जगह में ये काम बहुत अच्छा चलता था।देर रात हम वहां बैठे रहे और रात का खाना खा कर ही वहां से निकले। सरदार जी और जॉली भैया कई बार नेहा को मुझसे शादी करना का हिंट करके उससे हंसी मजाक करते रहे, वो भी खुल कर उनकी बातों में शामिल रही।वापस लौटते समय कार में सिर्फ मैं और नेहा थे।"तो नेहा, ये लोग ही हैं सिर्फ मेरे जीवन में मित्तल सर के अलावा।""बहुत अच्छे लोग हैं, कितने निस्वार्थ भाव से सब तुम्हारे साथ जुड़े हैं।""हां उनका बड़ापन ही है ये।""वैसे मनीष, क्या अब तक तुम्हारी जिंदगी में कोई लड़की नहीं आई? मतलब स्कूल, कॉलेज, वो भी फॉरेन में, जहां रिलेशनशिप में होना कोई ऐसी बड़ी बात नहीं है।""नेहा, मुझे ये सब करना ही नहीं था, क्योंकि जो मुझे मिला, इन सब लोगों से,मैं उसके लिए इनका न सिर्फ शुक्रगुजार हूं, बल्कि इनकी जो भी मुझसे एसपेक्टेशन थी, मैं उससे डिस्ट्रैक्ट नहीं होना चाहता था। इसीलिए पढ़ाई के समय मैने किसी की ओर नजर उठा कर देखा तक नहीं था। वैसे एक बात और भी थी, उस समय तक कोई मिली ही नहीं थी ऐसी कि मैं ध्यान देता उसकी ओर।""उस समय तक, और अब?""अब मिली तो है एक, लेकिन लगता नहीं मेरी दाल गलेगी वहां।" मैने कन्खियों से उसे देखते हुए मुस्कुरा कर कहा।"कोशिश की है या नहीं, क्या पता कोशिश रंग लाए।" उसने भी बिना मेरी ओर देखे जवाब दिया।"डर लगता है, अगर जो उसने मना कर दिया तो? वैसे भी वो किसी और से प्यार करती थी।"इस बार उसने मेरी ओर देख कर कहा, "थी न, है तो नहीं। इसीलिए कोशिश तो करो पहले।"उनका जवाब सुन कर मैं कुछ देर चुप हो गया।अभी हम इंडिया गेट के सामने से निकल रहे थे, देर रात को वहां पर लगभग सन्नाटा ही था। मैने अपनी गाड़ी अंदर लेली, और गार्डन के पास लगा दी। अपना गेट खोल कर मैने उसकी ओर का गेट खोल कर उसकी ओर हाथ बढ़ा कर उसे बाहर निकाला।उसके बाहर आते ही मैं अपने दाहिने घुटने पर बैठ कर, "नेहा, इस पूरी जिंदगी में सिर्फ एक तुम ही हो जिसे मैने अपनी जिंदगी में इतने करीब की जगह दी है। क्या तुम मेरी जिंदगी में हमेशा रहना चाहोगी? I love you Neha!"ये सुन कर नेहा मेरे सामने अपने घुटनों पर आ गई, उसकी आंखे भी भरी हुई थीं।"मनीष, मुझे पता है कि तुम एक बहुत ही अच्छे इंसान हो, और कोई भी औरत तुमको अपनाना चाहेगी। मैं भी तुम्हारी ओर आकर्षित हूं, लेकिन मुझे लगता है कि मुझे पहले अपनी बीती जिंदगी का फैसला पहले लेना चाहिए, उसके बाद ही इस बारे में मुझे कुछ सोचना चाहिए।""मैं समझ सकता हूं नेहा, तुम अपना पूरा समय लो। मुझे कोई जल्दी नहीं है।" ये बोलकर मैने उसका हाथ चूम लिया।नेहा ने भी आगे बढ़ कर मेरे माथे को चूम लिया।उसके बाद हम वापस फॉर्महाउस आ गए। जब हम अपने कमरों की ओर जा रहे थे तब मैने नेहा के चेहरे को पकड़ कर उसके होंठों पर गुड नाइट किस देनी चाही, लेकिन नेहा ने अपना हाथ बीच में का कर कहा, "मनीष अभी नहीं, थोड़ा सब्र रखो।"मेरा मुंह थोड़ा उतर गया, ये देख हंसते हुए उसने मेरे गालों पर अपने लब लगा दिए, उसके तपते होंठो से मेरे दिल को एक अजीब सी ठंडक सी महसूस हुई।"अब खुश? चलो अब सो जाते हैं, सुबह हमें देहरादून भी निकलना है।"सुबह 9 बजे तक हम देहरादून पहुंच गए, नया साल तीन दिन बाद ही था, इसीूंलिए वहां का आम हमें आज ही खत्म करना था। देर रात तक काम करके हम अपने कमरों में जा कर सो गए। कुछ खास नहीं हुआ आज।अगले दिन भी सुबह से ही मीटिंग थी, लेकिन हम आज 1 घंटे में ही फ्री ही गए। अब पूरा दिन खाली था हमारा। वैसे भी कल शाम की ही हमारी फ्लाइट थी शिमला की। तो मैने उससे पूछ कर अगले दिन का मसूरी का जाने का प्रोग्राम बना लिया और नेहा ने आज मुझे देहरादून घुमाने के लिए बोला। मीटिंग से ही हम सीधा तापकेश्वर महादेव मंदिर चले गए और वहां हमने दर्शन किए। ये द्रोण गुफा के नाम से भी प्रसिद्ध है। आसपास की सुंदरता को निहारते हुए हम फिर robber's Cave चले गए जिसे शिव के धाम के रूप में जाना जाता है। दोनों जगह घूमने के बाद हम वापस देहरादून में घंटाघर के पास बनी मार्केट में ऐसे ही घूमने लगे, वहां पर नेहा की बताई हुई कई स्ट्रीट फूड हमने खाई। ये सारी जगह हम हाथों में हाथ डाले ऐसे घूम रहे थे जैसे हमारी नई नई शादी हुई हो। कई जगह लोगों ने भी हमें ऐसा ही समझा। ऐसे ही घूमते हुए शाम हो चली थी।"अब मैं जरा मां पापा से मिल लेती हूं।""मुझे नहीं मिलाओगी?""अभी नहीं मनीष, पहले ही वो मुझसे संजीव के कारण नाराज हैं, पहले वो वाली नाराजगी तो दूर होने दो।" उसने मेरा गाल सहलाते हुए मुझसे कहा।"चलो मैं ड्रॉप कर देता हूं।"हम दोनो कार से उसके घर की ओर चल दिए। एक गली के पास पहुंच कर उसने कार रुकवाई, और मुझसे कहा, "मेरा बैग तैयार है, तुम अभी होटल में जा कर अपनी तैयारी करो, मैं एक घंटे में कॉल करके बुलाती हूं, फिर हम मसूरी चलेंगे।"कौन सा घर है तुम्हारा?"उसने इशारा करके कहा, "ये गली ऊपर एक पहाड़ी पर जाती है, उसी में है मेरा घर, कार यहां से आगे नहीं जा पाएगी न, इसीलिए यहीं उतर जाती हूं।"ये कह कर वो गली में चली गई, और मैने ड्राइवर को बोल कर होटल आ गया।धीरे धीरे एक से दो घंटे हो गए, पर उसका की फोन नहीं आया, मैने एक दो बार उसका फोन लगाया भी तो वो आउट ऑफ नेटवर्क जा रहा था। ऐसे ही एक घंटा और बीत गया, मुझे चिंता होने लगी। समझ नहीं आ रहा था कि मैं कैसे उससे संपर्क करूं, एक बार तो सोचा मित्तल सर की कॉल करके उसके पापा का नंबर ले लूं, लेकिन फिर सोचा कि क्या बोलूंगा उनसे, की अपने घर गई है और अभी तक वापस नहीं आई। मसूरी वाला प्लान तो हमारे टूर में था ही नहीं।ऐसे ही उधेड़बुन में आधा घंटा और निकल गया। तभी मेरे फोन पर एक unknown नंबर से कॉल आया।"हेलो?"
"मनीष, मैं नेहा बोल रही हूं, प्लीज तुम जल्दी से पेसिफिक मॉल में आ जाओ। मैं यहीं हूं।" उसने फुसफुसाते हुए कहा, और मेरे कुछ कहने से पहले ही कॉल कट गई....
बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं मजा आ गया
 

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#अपडेट ८


अब तक आपने पढ़ा -


ऐसे ही उधेड़बुन में आधा घंटा और निकल गया। तभी मेरे फोन पर एक unknown नंबर से कॉल आया।


"हेलो?"


"मनीष, मैं नेहा बोल रही हूं, प्लीज तुम जल्दी से पेसिफिक मॉल में आ जाओ। मैं यहीं हूं।" उसने फुसफुसाते हुए कहा, और मेरे कुछ कहने से पहले ही कॉल कट गई....


अब आगे -


मैने उस नंबर पर वापस से कॉल लगाई, लेकिन अब वो आउट ऑफ नेटवर्क आ रहा था। मैं जल्दी से ड्राइवर को बोल कर पेसिफिक मॉल के लिए निकला, 15 मिनिट में मैं वहां पहुंच गया। लेकिन जाना कहां था ये नहीं पता था, इसीलिए मैं तेजी से पूरे मॉल का चक्कर लगाने लगा। तभी पहली मंजिल पर एक खंभे के पीछे मुझे ऐसा लगा मैने नेहा को देख है। मैं फौरन वहां पहुंचा, लेकिन कोई नहीं था वहां।


"मनीष इधर।" एक फुसफुसाहट सी आई, मैने मुड़ कर देखा तो नेहा फायर एग्जिट के पास छुप कर खड़ी थी। वो सहमी सी दिख रही थी।


"क्या हुआ है, तुम इतना डरी हुई क्यों हो?" मैने उसके पास जा कर धीमी आवाज में पूछा।


"वो संजीव, मेरे घर से मेरे पीछे पड़ा है। पहले तो फोन पर ही परेशान कर रहा था, घर से निकलते ही मेरे पीछे पड़ा है। किसी तरह से यहां तक पहुंची और किसी से फोन मांग कर तुमको कॉल किया।"


"अच्छा अब मैं आ गया हूं डरो नहीं।" ये बोल कर मैं उसको ले कर बाहर की ओर चलने लगा, लेकिन जैसे ही हम मॉल के एंट्रेंस के पास आए वैसे ही एक आदमी जो खिचड़ी बालों और अस्त व्यस्त कपड़ों में था, हमारे पास आया और नेहा का हाथ पकड़ कर बोला।


"कितनी देर से तुमसे कह रहा हूं कि बस एक बार बात करनी है तुमसे, मगर तुम मुझे इग्नोर कर रही हो।"


"ए मिस्टर, जब वो तुमसे बात नहीं करना चाहती तो जबरदस्ती क्यों कर रहे हो?" मैने नेहा का हाथ उससे छुड़ाते हुए कहा।


"तू कौन, और हम पति पत्नी के बीच बोलने का हक किसने दिया तुमको?" उसने मेरा गिरेबान पकड़ते हुए कहा।


"संजीव, छोड़िए इनको। जो बात करनी है यहीं पर करिए मुझसे।" नेहा उस आदमी का हाथ मेरे गिरेबान से हटाने की कोशिश करती हुई बोली।


"तो बात करने के लिए ही तो तुमको बुला रहा था। लेकिन मुझे क्या पता था कि तू अपने यार के साथ आई है यहां।" उसने मुझे छोड़ते हुए कहा।


"देखो मैं फिर कह रहा हूं, नेहा से दूर रहो, वरना।"


"वरना क्या?" एक बार फिर वो मुझसे मुखातिब होते हुए बोला।


अब मैने भी उसका गिरेबान पकड़ लिया।


"बोला न दूर रह मेरी नेहा से।" मैं भी गुस्से में चीखा उसके ऊपर।


तभी उसने मुझे एक थप्पड़ मार दिया। मुझे भी गुस्सा चढ़ा हुआ था तो मैने भी घूमा कर उसे एक मुक्का उसके चेहरे पर दे मारा। उसकी नाक से खून बहने लगा। नेहा हम दोनो की छुड़ाने की कोशिश कर रही थी। तभी दो हवलदार वहां आ कर हम दोनो को पकड़ लिए, और पुलिस जिप्सी में डाल दिए। एक महिला हवलदार ने नेहा को भी जिप्सी में बैठा लिया। शायद मॉल के सिक्योरिटी ने पुलिस को बुला लिया था।


पुलिस स्टेशन में पहुंच कर मुझे और नेहा को एक बेंच पर बैठा दिया गया, और संजीव को दूसरे कमरे में ले कर चले गए। शायद उसको फर्स्ट एड देने के लिए। वो जोर जोर से नेहा और मुझे गालियां दे रहा था। हम लोग के फोन गाड़ी में ही जब्त कर लिए गए थे।


नेहा शायद इन सब से बहुत डिस्टर्ब थी, वो अब तक चुप चाप बैठी थी।


मैं इंस्पेक्टर के पास पहुंच कर बोला, "देखिए आप लोगों ने मुझे और नेहा को गलत पकड़ा है, इस आदमी ने ही हंगामा किया था वहां।"


"अच्छा, और तुम हो कौन जो पति पत्नी के बीच आ गए?" उसने तंज से मुझे देखते हुए कहा। "जाओ चुपचाप जा कर बेंच पर बैठो, अभी SP नेगी आयेंगे तब कुछ बात होगी।


"कम से कम मुझे एक फोन तो करने दीजिए।" मैने रिक्वेस्ट करते हुए कहा।


"बोला न सर के आने के बाद ही कुछ होगा। अभी वो राउंड पर हैं, बस थोड़ी देर में ही आ चले।" ये बोल कर वो अपने काम में व्यस्त हो गया।


थोड़ी देर के बाद थाने में हलचल तेज हो गई, शायद SP आ गए थे। थोड़ी देर के बाद नेहा को एक कमरे में आने को बोला गया, मैं भी साथ में जाने लगा तो मुझे रोक दिया गया। थोड़ी देर के बाद उस कमरे में संजीव को भी ले जाया गया। कुछ समय बाद दोनों उस कमरे से बाहर आ गए, नेहा वापस से मेरी बेंच की तरफ आई। इससे पहले मैं उससे कुछ पूछता, हवलदार ने मुझे भी अंदर चलने कहा। नेहा ने भी इशारे से मुझे पहले अंदर जाने कहा।


अंदर कमरे में एक बड़े ऑफिस टेबल के पीछे मेरे ही हमउम्र एक रौबदार लेकिन कुछ कम लंबाई का व्यक्ति यूनिफॉर्म में बैठा था।


"आइए जनाब, बैठिए। बड़ा शौक है आपको मियां बीवी के बीच आने का।"


"देखिए सर, पहली बात तो बीच में मैं नहीं वो आया, और दूसरी बात, दोनों के तलाक का केस चल रहा है।"


"तो इससे क्या आप एलिजिबल हो जाते हैं उसके ऊपर हाथ उठाने के लिए?" उसने मुझे घूरते हुए कहा।


"पहले उसने ही मेरे ऊपर हाथ उठाया था। वैसे शायद आपने अभी तक मेरा पूरा परिचय नहीं जान है।" ये बोल कर मैने अपना बिजनेस कार्ड उसकी ओर बढ़ाया।


कार्ड पढ़ कर, "अरे मित्तल सर, आपने पहले क्यों नहीं बताया कि आप हैं। बिना मतलब में मेरे लोगों ने आपको यहां बैठा कर रखा।" उसने अपने सामने पड़ी ऑफिस बेल को बजाया।


एक हवलदार आ कर खड़ा हो गया। "दो कॉफी यहां और एक बाहर मैडम को, और इंस्पेक्टर रौशन को भेजो अंदर।"


"यस सर।" बोल कर वो हवलदार बाहर चला गया।


फौरन ही इंस्पेक्टर, जो हम यहां लेकर आया था वो अंदर आया।


"रौशन, कोई FIR मत लिखना, और न ही डेली डायरी में इनका नाम आना चाहिए। अब जाओ।"


तब तक कॉफी भी आ गई थी।


"लीजिए मित्तल साहब, और कोई सेवा?"


वाकई पैसे में बहुत पावर होती है, जब तक मैने बताया नहीं मैं कौन हूं, कोई सीधे मुंह बात नहीं कर रहा था यहां, और अब सेवा की जा रही थी।


"जी बिलकुल, एक छोटा सा काम और कर दीजिएगा।" बोल कर मैने अपने पर्स से कुछ 2000 के नोट निकल कर उनकी ओर बढ़ाए।


उसने हाथ के इशारे से मुझे रोका। और फिर एक बार बेल बजाई। इस बार एक दुबला सा आदमी आया, शायद कॉफी वाला होगा। SP ने मुझे इशारा किया, और मैने वो नोट उसे थमा दिए।


उसके जाते ही, "मित्तल साहब, आप निश्चिंत हो कर जाएं, 2 दिन हम उसकी खातिरदारी अच्छे से करेंगे, वो भी बिना किसी एंट्री के।"


"फिर मैं चलता हूं, SP नेगी सर।" मैने उठते हुए कहा।


"बिलकुल, अच्छा लगा आपसे मिल कर।"


बाहर आ कर मैं नेहा के पास पहुंचा। उसकी कॉफी वैसे ही रखी थी। मैने उसके कंधे पर हाथ रखा, और उसने ऊपर देखा। उसकी आंखे भरी हुई थी।


"चलो चलते हैं।" बोल कर मैं पीछे मुड़ गया, और वो भी उठ कर मेरे साथ चल दी। बाहर हमारी कार खड़ी थी। ड्राइवर बैग पहले ही उसमें रखें थे क्योंकि मैने पहले ही रूम्स चेक आउट कर लिए थे। हम दोनो पीछे बैठ गए, और गाड़ी मसूरी के लिए निकल गई। रात के करीब 9 बज गए थे।


नेहा अभी भी उदास सी खिड़की के बाहर शून्य में देख कर कुछ सोच रही थी। मैं उसका हाथ थाम कर बैठा था।


"जो हुआ उसे भूल जाओ नेहा।" मैने उसका हाथ दबाते हुए कहा।


"मेरे चलते तुम भी परेशान हुए, पुलिस तक बात पहुंच गई।" उसने उदासी भरे स्वर में कहा।


"नेहा, अब तुम्हारी परेशानी, मेरी परेशानी है। तुम चिंता मत करो।"


"हम्मम।" बोल कर वो फिर से बाहर देखने लगी।


थोड़ा आगे जाने पर रोड पर जाम लगा हुआ था। ड्राइवर ने गाड़ी लाइन में लगा देखने चला गया कि क्या हुआ है, मैं भी जरा देर के लिए बाहर निकला। ड्राइवर थोड़ी ही देर में पता करके आ गया कि आगे थोड़ी सी लैंड स्लाइड के कारण रास्ता बंद है, बस खुलने ही वाला है।


मैं गाड़ी में आ कर बैठ गया। नेहा मुझे देखते ही पूछी कि क्या हुआ है।


"कोई मुस्कुरा नहीं रहा, इसी कारण ट्रैफिक वालों ने किसी को भी आगे बढ़ने से मना कर दिया है।" मैने उसे देखते हुए सीरियस लहजे में कहा।


"क्या मतलब?"


"मतलब तुम मुस्कुरा दो, तो रास्ता खुल जाएगा।"


ये सुन कर उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई, और संयोग से उसी समय ट्रैफिक भी क्लियर हो गया।


ये देख मेरी हंसी छूट गई, और उसी के साथ अब नेहा भी कुछ नॉर्मल हो गई थी।


मसूरी पहुंच कर हमने होटल में चेक इन किया और अपने रूम्स के पास पहुंचे। हमारा रूम आमने सामने था। मैं उसे गुड नाइट बोल कर अपने रूम में जाने लगा।


"मनीष एक मिनिट, जरा मेरे रूम में आओगे?"


"श्योर।" बोल कर मैं उसके पीछे उसके रूम में आ गया।


मेरे अंदर आते ही उसने दरवाजा बंद किया, और मुझसे लिपट कर, "थैक्यू सो मच मनीष, तुमने इतना कुछ किया मेरे लिए, तुम नहीं होते तो पता नहीं क्या होता?" बोल कर वो सुबकने लगी।


मैं उसकी पीठ को सहलाते हुए, "नेहा, मैं हूं न तुम्हारे साथ। चिंता मत करो अब।"


ये बोल कर मैं उससे अलग हुआ, और उसके माथे को चूम कर बोला, "अब सो जाओ, सुबह तुमको मेरा मसूरी का टूर गाइड भी बनना है।"


ये बोल कर मैं जाने को हुआ, लेकिन नेहा ने मेरे चेहरे को थाम कर अपने होंठ मेरे होंठों से जोड दिए। और कुछ देर मेरे होंठों का रस पी कर उसने मुझे छोड़ दिया।


"गुड नाइट।" ये बोल कर वो शर्माने कर नीचे देखने लगी।


मैने भी मुस्कुराते हुए उसे वापस से गुड नाइट बोल कर अपने कमरे में आ कर सो गया।


अगले दिन भी हमारा घूमने फिरने में निकल गया। मसूरी देहरादान के पास ही है तो नेहा यहां भी लगभग सब कुछ जानती थी, इसीलिए वो ही मुझे घूमा रही थी यहां पर भी। सबसे पहले हम लाल टिब्बा गए। ये मसूरी का सबसे ऊंचा प्वाइंट है और नेहा वहां पर मुझे सूर्योदय दिखने के लिए सुबह 5 बजे ही जगा दी। लगभग 6:30 पर हम वहां पहुंच गए, दिसंबर होने के बावजूद आसमान साफ था और हम वहां से सूर्योदय का विहंगम दृश्य देख पाए। जैसे जैसे सूरज ऊपर आ रहा था, दिल में एक रोमांच सा भर रहा था। मैं और नेहा एक दूसरे का हाथ पकड़ कर खड़े इस दृश्य को निहार रहे थे।


"पता है मनीष, संजीव ने ही मुझे सबसे पहले ये जगह दिखाई थी, और सूर्योदय भी। हम यहां कई बार आए थे। कितना हसीन लम्हा हुआ करता था वो, कभी सोचा भी नहीं था कि वो मेरे साथ ऐसा भी कर सकता है।" ये बोलते बोलते उसकी आंखे भर आई।


"हे नेहा, जो बीत गया उसे याद करके क्यों परेशान हो रही हो। संजीव अब तुम्हारे लिए बीता हुआ कल है, कड़वी यादों को दिल से निकल कर नई यादें बनाओ अब।" मैने उसे कंधे से पकड़ते हुए अपने आप से लगा लिया। ये सुन कर उसने भी अपने सर मेरे सीन पर टीका दिया और सूर्योदय को देखने लगी।


"नेहा, आज का ये सूर्योदय तुम्हारे जिंदगी के लिए ऐसा होना चाहिए कि जैसे नई जिंदगी शुरू हो रही हो। प्लीज जो बीत गया उसे अब से मत याद करना, खास कर जब मैं साथ हूं।"


नेहा ने मेरे सीने से सर उठा कर कुछ पल मुझे देखा, और मेरे गालों को चूम कर बोली, "बिलकुल।" निश्चल मुस्कान से उसका चेहरा फिर से खिल उठा, सूरज की सिंदूरी लालिमा ने उसके चेहरे पर एक लावण्य ल दिया था। हिरणी जैसी आंखे, सूतवा नाक, जिसमे प्यार सा नोज रिंग पड़ा था, गुलाबी होंठ, जिसे देख मन किया अभी चूम लूं,और उनके नीचे एक तिल। जितना भी उसको देखो मन ही नहीं भरता था।


"ऐसे क्या देख रहे हो?"


"देख रहा हूं कि मेरी नेहा कितनी प्यारी है।"


"मक्खन लगा रहे हो?"


"जरूरत है क्या?"


"नहीं" बोल कर एक बार फिर उसने मेरे गालों को चूम लिया। "चलो अब, बहुत भूख लगी है।"


फिर हमने वहां चाय और मैगी खाई, और वापस शहर में निकल गए, मॉल रोड पर हम बहुत देर तक घूमते रहे, बहुत सारी शॉपिंग की और वहां के स्ट्रीट फूड का भी मजा लिया। सारी जगह पर लोग हमें नए नवेले जोड़े के जैसे देख रहे थे।


आज ही शाम की हमारी फ्लाइट थी शिमला के लिए तो वापस देहरादून आ कर फ्लाइट पकड़ी और रात को शिमला पहुंच गए। यहां पहली बार हमारा रूम आमने सामने न हो कर अगल बगल में था। और पीछे की ओर दोनों कमरों की एक ही बालकनी थी, जहां से अभी तो शिमला घाटी की जगमगाती रोशनी दिख रही थी। दोनो लोग थके हुए थे तो अपने अपने कमरे में जा कर सो गए।


अगले दिन रोज की तरह सुबह मैं उठ कर बालकनी में गया, मेरे हिसाब से ठंड थी तो मैं एक हाउस गाउन पहन कर गया था बालकनी में। सामने सूरज निकल रहा था, और शिवालिक का अदभुत नजारा दिख रहा था। मेरी नजर नेहा के रूम के साइड की बालकनी पर गई, जहां वो एक सिल्क नाइटी में खड़ी, बस मुझे ही देख कर मुस्कुरा रही थी।


"गुड मॉर्निंग लव, उठ गए?"


"गुड मॉर्निंग, तुमको ठंड नहीं लग रही?"


"पहाड़ों में ही पली बढ़ी हूं जनाब, मुझे कम ठंड ही लगती है।" बोल कर वो मेरे पास आई और मेरे गालों पर एक किस कर दी। "चलो आज कुछ काम कर लिया जाए।"


"बिलकुल, वरना मित्तल सर क्लास लगा देंगे।"


फिर हम दोनो तैयार होने चले गए। आज चूंकि 31 दिसंबर था, तो मुझे लगा कम लोग आयेंगे, मगर लोकल ब्रांच ने अच्छी गैदरिंग करवा दी थी, शाम 4 बजे तक हम दोनो को फुर्सत ही नहीं मिली। लोकल ब्रांच ने शाम को पार्टी अरेंज की थी, एक तो नया साल, ऊपर से उस ब्रांच ने इस साल सबसे बड़ी डील क्रैक की थी, हिमाचल सरकार के साथ। इसीलिए एक बढ़िया सी पार्टी करी गई। हम सब ने खूब मजे किए देर रात तक।


लगभग 12 बजे, नए साल के जश्न के साथ पार्टी खत्म हो गई, और हम दोनो अपने फ्लोर पर आ गए।


"गुड नाइट लव, एंड वनस अगेन हैप्पी न्यू ईयर।" बोल कर नेहा ने इस बार मेरे होंठों को हल्के से चूम लिया। पार्टी में ब्रांच सक्सेस की खुशी में शैंपेन भी चली थी, शायद उसका सुरूर था उसे। मैने भी उसके सर को पीछे से थाम कर उसके होंठों को कुछ देर पिया। थोड़ी देर बाद हम अलग हुए, और वो अपने कमरे की ओर चल दी, मैं भी उसके साथ ही था। कमरा खोल कर वो अंदर जा कर वापस मूडी, मैने भी अंदर जाने की कोशिश की, तो उसने फिर से मुझे रोक दिया।


"बस मनीष, अब और आगे अभी नहीं, जाओ अब सो जाओ जा कर। गुड नाइट।" और कमरे का दरवाजा बंद कर दिया।



मैं भी कुछ उदास मन से वापस अपने कमरे में आया और कपड़े बदल कर लेट गया। पता नहीं क्यों नींद नहीं आ रही थी। कुछ देर ऐसे ही पड़ा करवट बदलता रहा। मन में बार बार नेहा के साथ हुई बाते चल रही थी। कोई 1 बजे के करीब मुझे ऐसा लगा कि कोई मेरा दरवाजा खटखटा रहा है......
बडा ही शानदार और जानदार अपडेट हैं भाई मजा आ गया
 
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#अपडेट ९


अब तक आपने पढ़ा



"बस मनीष, अब और आगे अभी नहीं, जाओ अब सो जाओ जा कर। गुड नाइट।" और कमरे का दरवाजा बंद कर दिया।


मैं भी कुछ उदास मन से वापस अपने कमरे में आया और कपड़े बदल कर लेट गया। पता नहीं क्यों नींद नहीं आ रही थी। कुछ देर ऐसे ही पड़ा करवट बदलता रहा। मन में बार बार नेहा के साथ हुई बाते चल रही थी। कोई 1 बजे के करीब मुझे ऐसा लगा कि कोई मेरा दरवाजा खटखटा रहा है..


अब आगे -


पर वो खटखटाहट बालकनी के दरवाजे से थी। मैं हाउस गाउन पहन कर बाहर आया, चांदनी रात थी और मौसम भी खुला हुआ था। ठंड भी अच्छी खासी थी, रूम में हीटर होने के कारण इतना पता नहीं लग रहा था। मैने नेहा के कमरे की ओर देखा, वो अपने दरवाजे के बाहर एक वाइट हाउस गाउन में खड़ी थी, और मुझे देखते ही अपनी दाएं हाथ की उंगली से इशारा करते हुए, मुस्कुराती हुई अपने रूम में चली गई।मैं भी मंत्रमुग्ध सा उसके कमरे की ओर खींचा चला गया।


कमरे में कोई लाइट नहीं जल रही थी, कमरे में हल्की-सी रौशनी बिखरी हुई थी, जैसे चाँदनी खिड़की से झाँक रही हो। बेड पर खिड़की से सीधी चंद्रमा की किरणे पड़ रही थी, जिसमें नेहा लेटी हुई थी, शरीर पर एक पतली सी चादर पड़ी थी, और उसका हाउस कोट नीचे जमीन पर पड़ा था। रूम हीटर के कारण कमरे का तापमान सामान्य था।


उस दूधिया रोशनी में चादर के नीचे का बदन पूरा नुमाया हो रहा था, साफ दिख रहा था, स्तनों के निप्पल साफ पता चल रहे थे। एक बार फिर से उसने मुझे अपने पास आने का इशारा किया, मैं भी अपना कोट उतर कर बेड में उसके साथ लेट गया, इस समय मेरे शरीर पर बस एक अंडरवियर थी। बेड पर लेटते ही नेहा ने मेरे सर को पकड़ कर मेरे माथे पर एक चुम्बन दिया।


"सोचा नए साल का कोई तोहफा तुमको दूं, कैसा लगा मेरे भोले बलम?" उसने मेरी आंखों में झांकते हुए कहा।


"बहुत सेक्सी।" ये बोल कर मैने अपने होंठ उसके होंठों की ओर बढ़ा दिए, और एक बार फिर दोनों की जुंबिश शुरू हो गई, इस बार ये कुछ ज्यादा ही जोश भरी थी, दोनों एक दूसरे के होंठ से जैसे चूस कर सारा रस पी जाना चाहते हों। फिर नेहा ने अपनी जीभ मेरे मुंह में घुसा दी, और मैं उसे अपने लबों में भींच कर चूसने लगा। नेहा के हाथ मेरी नंगे सीने पर घूम रहे थे, मेरा या किसी भी लड़की के साथ पहला संसर्ग था इसीलिए मेरे शरीर में एक कंपन सा हो रहा था, मगर ये करना भी अच्छा लग रहा था। नेहा ने मेरे शरीर के कंपन को महसूस करते हुए चुंबन को तोड़ दिया।


"क्या हुआ मनीष?"


"पता नहीं, शरीर में एक झुरझुरी सी हो रही है, और मजा भी आ रहा है।"


ये सुन कर उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपने एक स्तन पर रख दिया, "इसे दबाओ मनीष, और भी अच्छा लगेगा।" बोल कर वो वापस मेरे होंठों से झूझने लगी। और मैं उसके एक स्तन को दबाने लगा, किसी स्पंज की तरह वो लग रहे थे, मगर उनको दबाने में एक अलग ही मजा आ रहा था।


"दूसरे को भी दबाओ न" उसने हौले से होंठों को छोड़ते हुए कहा।


मैंने दूसरे स्तन को भी पकड़ लिया, अब नेहा मेरे गले से होते हुए मेरे सीने की ओर हल्के हल्के चूमते और चाटते हुए बढ़ रही थी, और मेरी उत्तेजना भी बढ़ती जा रही थी, मेरा लिंग अंडरवियर को फाड़ कर बाहर आने को तैयार था, आज तक कभी इतना सख्त उसे महसूस नहीं किया, तभी नेहा ने मेरे एक निप्पल को मुंह में ले कर चूसा और मेरी आह निकल गई। ये देख मेरा मुंह भी खुद से उसके स्तनों की ओर बढ़ चला।


उसके निप्पल अभी एकदम सख्त थे और करीब आधे इंच लंबे, मुंह में लेते ही एक हल्की नमकीन सा स्वाद आया, मजेदार!! उधर नेहा भी बड़े इत्मीनान से अपने स्तनों को मुझे पिला रही थी, उसका एक हाथ मेरी नंगी पीठ को सहला रहा था और एक मेरे बालों को, उसके मुंह से हल्की हल्की करह निकल रही थी।


"ओह माय बॉय मनीष, ऐसे ही चूसो इनको।" उसके ये शब्द मेरे अंदर और जोश भर रहे थे। कोई दस मिनट बाद नेहा ने मुझे अलग किया, मेरा मन तो नहीं था उन उत्तेजक पिंडों को छोड़ने का, लेकिन शायद नेहा का मन भर गया था।


"अब छोड़ो भी इनको, देखो इनसे भी आकर्षक चीज है मेरे पास।" ये बोल कर उसने मुझे लेटा दिया और अपने दोनों पैरों को मेरे दोनों ओर करके उल्टा मेरे सीने पर बैठ गई। उसकी चमकती हुई पीठ अब मेरे सामने थी, जो चांद की दूधिया रोशनी में किसी श्वेत झरने के जैसी लग रही थी। और नीचे उसके दोनों नितंबों की गोलाई एक बार फिर मुझे अपनी ओर खींच रही थी। तभी नेहा थोड़ा उठ कर मेरे चेहरे की ओर आई। इसी कारण अब मुझे उसकी साफ गुलाबी योनि और उसके पीछे हल्के भूरे रंग का छेद दिखाई दिया जो उसके सिंदूरी रंग पर फब रहा था।


मेरे दोनों हाथ खुद ब खुद उसके दोनों नितंबों पर आ गए और मैने उसकी योनि को थोड़ा और फैला दिया। जीवन में कोई लड़की भले ही न आई हो मगर कभी कभी ब्ल्यू फिल्मों का सहारा ले लेता था मैं भी, आखिर इंसान हूं। तो योनि देखी तो थी मगर बस फिल्मों में, आज पहली बार किसी की योनि मेरे सामने थी, उत्तेजना का अलग ही मुकाम आ चुका था मेरे शरीर में।


उधर नेहा ने मेरा अंडरवियर नीचे सरकाते हुए मेरे लिंग को अपनी मुट्ठी में भर लिया और दो बार ऊपर नीचे करते ही मेरा स्खलन हो गया। जिससे मेरा ध्यान थोड़ा भंग हुआ। नेहा ने मूड कर मुझे देखा, और मेरी आंखों में एक शर्मिंदगी आ गई।


जिसे देख नेहा फौरन मेरी ओर मुड़ी और मेरे चेहरे को पकड़ कर मेरे होंठों को चूम कर बोली, "क्या हुआ मेरे भोले बलम?"


"सॉरी नेहा, शायद ये मेरा पहली बार है इसलिए..."


"मेरे भोले बलम, सबसे पहली बात, मुझे इसका अफसोस रहेगा कि मैंने सबसे पहले तुमसे नहीं किसी और से sex किया था। और हमेशा इस बात की खुशी भी रहेगी कि इसके बावजूद तुम मुझे चाहते हो। और ये जो हुआ, वो बस अति उत्तेजना में हुआ। देखो तुम्हारा लिंग अभी भी उत्तेजित ही है। इसलिए सोचना छोड़ो और अपने न्यू ईयर गिफ्ट का मजा लो।" ये बोल कर उसने मेरे होंठों से चूमते हुए वापस मेरे लिंग की ओर चली गई। उसकी बात सुन कर मुझे भी तसल्ली हुई।


एक बार फिर नेहा की योनि मेरी आंखों के सामने थी, जिससे कुछ गीलापन झलक रहा था। उधर नेहा ने मेरे लिंग को चूम कर अपने मुंह में भर लिया और इधर मेरा मुंह अपने आप ही नेहा की योनि से जा लगा। एक खट्टा और नमकीन सा स्वाद आया इस बार, लेकिन फिर से वो बहुत ही मजेदार था, उधर नेहा के मुंह में जाते ही मेरे लिंग का कड़कपन वापस आ गया था। कुछ देर दोनों एक दूसरे का रसपान करते रहे, और फिर हमारे होंठ एक दूसरे से जुड़े थे, इस बार मुझे नेहा के मुंह की मिठास के साथ साथ कुछ मेरा भी स्वाद चखने को मिला, शायद पहले निकले हुए वीर्य भी उसके मुंह में था।


नेहा इस बार खुद पीठ के बल बिस्तर पर लेट गई, और मेरे लिंग को पकड़ कर अपनी योनि पर रगड़ने लगी। "मेरे भोले बलम, मुझे पूरी तरह अपना बना लो अब।"


उसने मेरे लिंग को अपने योनि द्वार पर लगा कर मुझे अंदर डालने का इशारा किया, और मैने धीरे से अपनी कमर को आगे की ओर धकेला। थोड़ा सा अग्र भाग जाते ही मुझे अपने शिश्न पर थोड़ी सी जलन हुई, मगर उत्तेजना में वो सब ज्यादा महसूस नहीं हुआ। थोड़ी सी मेहनत के बाद मैं लगभग पूरी तरह से नेहा के अंदर था। नेहा के चेहरे पर भी थोड़े से दर्द के भाव थे, उसने मुझे रुकने को कहा, पर कुछ देर बाद ही अपने पैरों से अपनी ओर दबाने लगी, ये देख मैं भी धीरे धीरे आगे पीछे होने लगा।


"ओह बलम थोड़ा और तेज।" उसने अपने पैरों का दबाव बनते हुए कहा, और मैं और तेज धक्के लगाने लगा, करीब दस मिनट बाद नेहा कुछ शांत हो गई, शायद वो अपने चरम पर पहुंच गई थी और मुझे फिर एक बार अपने लिंग में उत्तेजना बहती हुई सी लगी और मैं फिर एक बार फिर से स्खलित होने वाला था, शायद नेहा को ये पता चल गया, और वो एकदम से मुझे हल्का धक्का दे कर बाहर निकली, और खुद बैठ कर मेरे लिंग के अपन मुंह में भर ली, कुछ ही सेकंड्स में मैं उसके मुंह में ही स्खलित हो गया, और नेहा ने अच्छी तरह से मुझे साफ कर दिया। और फिर अपनी वहीं में भर कर वो मुझे लेकर लेट गई और हम दोनो एक दूसरे से लिपट कर सो गए।


सुबह फिर एक बार हम लोगों ने sex किया और फिर जल्दी से तैयार हो कर नीचे मीटिंग में पहुंच गए। आज शाम को ही हमको चंडीगढ़ निकलना था जो इस टूर का आखिरी मुकाम था। मीटिंग के बाद हम सीधे चंडीगढ़ के लिए कार से ही निकल गए और देर रात को हम चंडीगढ़ पहुंचे। कल रात के संभोग और आज दिन भर की व्यस्तताओं के कारण हम दोनो अपने अपने कमरे में जा कर सो गए, और अगले दिन भी मीटिंग थी। अगले दिन सुबह की ही फ्लाइट थी वापसी की दिल्ली से, इसीलिए आज मीटिंग खत्म करके हम कार से ही दिल्ली निकल गए। और 3 जनवरी को सुबह 8 बजे हम दोनो वापस वापी में लैंड कर चुके थे।


एयरपोर्ट पर मेरा ड्राइवर मुझे लेने आया हुआ था। मैं नेहा को उसके घर अशोक नगर ड्रॉप करते हुए अपने फ्लैट पर निकल गया। आज ऑफिस जाने का मूड तो नहीं था, पर टूर की डिटेल मित्तल सर को देना जरूरी था इसीलिए हम दोनो ने 11 बजे ऑफिस जाना तय किया। फ्रेश हो कर मैं वापस नेहा को पिकअप करके ऑफिस पहुंचा।


शिमला की रात के बाद अभी तक हो हम दोनो को कोई भी लम्हा अकेले में नहीं मिला था। ऑफिस में हमको पहले अपने फ्लोर पर जाना था जो सबसे ऊपर था, और लिफ्ट में हम दोनों अकेले थे। जैसे ही लिफ्ट का दरवाजा बंद हुआ, मैने नेहा को अपनी ओर घुमा कर उसके होंठों का रसपान करने लगा। 2 मिनिट नेहा भौचक्की सी रही, फिर मुझसे अपने को छुड़ा कर बोली, "मनीष, हम अभी ऑफिस में है। किसी फ्लोर पर लिफ्ट रुक जाती तो?"


"सॉरी यार, मुझसे कंट्रोल नहीं हुआ।"


वो मुस्कुराते हुए, "ये अच्छी बात नहीं मनीष। थोड़ा कंट्रोल करो खुद पर।"


तब तक हमारा फ्लोर आ गया, और हम संयत हो कर बहत निकल गए। मैं सीधा अपने केबिन में चला गया और पूरे टूर की एक डिटेल रिपोर्ट जो लगभग बनी ही थी, उसे देखने लगा। सब दुरुस्त पा कर मैं नेहा को लेकर मित्तल सर के केबिन में जाकर उनको रिपोर्ट दे दी।


"तो कैसा लगा लोगों से मिल कर?"


"बढ़िया, लगता है जल्दी ही कई जगह ऐसी ब्रांच खोलनी पड़ेगी। वैसे बाकी लोग का क्या खयाल है?"


"लगभग सब लोग आ ही गए हैं, और आज या कल तक उनकी रिपोर्ट भी आ जाएगी। फिर हम सब एक साथ बैठ कर इसको डिसकस करते हैं।"


"जी सर।"


"और नेहा, दिल्ली में तो तुमसे ज्यादा बात हो नहीं पाई। कैसा रहा तुम्हारा टूर?"


"जी बहुत अच्छा रहा सर, और वैसे भी मेरे साथ मनीष सर थे तो ज्यादा दिक्कत नहीं हुई मुझे।"


"चलो फिर, एक मीटिंग और रखते हैं कल या परसों में। मनीष, तुम जरा रुको, एक बात करनी है।"


ये सुन कर नेहा वहां से चली गई।


"मनीष, वो वाल्ट वाली बात लगभग फाइनल होने पर है, पर अब तुमको उस प्रोजेक्ट पर लगना पड़ेगा पूरी तरह से।"


"जी सर, जब आप कहें। मेरे दिमाग में लगभग पूरी प्लानिंग है, बस ब्लू प्रिंट बना कर एक्सपर्ट्स से सलाह लेनी है उस पर। बस आप हां कहें तो मैं उस पर काम शुरू करूं।"


"बस 5 6 दिन में कंफर्म हो जायेगा।" ये बोल कर उन्होंने एक फाइल उठा ली और उसे पढ़ने लगे। ये उनका इशारा था कि उनकी बात खत्म हो गई।


मैं उठ कर अपने केबिन में वापस आया। दरवाजा खोल कर जैसे ही मैं अपने चेयर की ओर बढ़ा, किसी ने मेरा हाथ पकड़ लिया। ये नेहा थी। मेरे पलटते ही उसने अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। हम दोनो के बीच एक पैशनेट किस चालू हो गई। कोई पांच मिनट बाद हम अलग हुए।


"अब ऑफिस का ध्यान नहीं रहा तुमको?" मैने अपनी आंख नाचते हुए कहा।


"मेरे भोले बलम, लिफ्ट और केबिन में अंतर है कि नहीं?"


"और कोई अंदर आ जाता तो?"


"बिना नॉक किए किसको आने की इजाजत है?"


"हां यार! ये तो मुझे याद ही नहीं रहा?" ये बोल कर मेरी हंसी छूट गई, और नेहा भी हंस दी मेरे साथ।


तभी केबिन का दरवाजा नॉक हुआ। हम दोनो अभी अलग ही थे तो मैने आने वाले को इजाजत दे दी। ये शिविका थी। उसको आता देख नेहा चली गई।


"कैसे हो मनीष? कब आए?"


"बस आज सुबह ही, मैं अच्छा हूं तुम बताओ, कैसा रहा तुम्हारा टूर?"


"मेरा टूर भी अच्छा था,काफी अच्छा रिस्पॉन्स दिखा लोगों का। मुझे न तुम्हारी हेल्प चाहिए रिपोर्ट बनाने में।"


"हां बिल्कुल, आओ बैठो।"


फिर अगले दो ढाई घंटे हम दोनो उसकी रिपोर्ट पर काम करते रहे।इस पूरे समय शिविका पूरी गंभीरता से बैठी रही। लेकिन जैसे ही उसका काम खत्म हुआ, उसकी चंचलता वापस आ गई।


"तो और बताओ, हनीमून अच्छे से मनाया ना?"


ऐसे अचानक से उसके ये कहने पर मुझे थोड़ी घबराहट हो गई, "क क कैसा हनीमून?"


"हाहाहा।" वो मुझे देख बेतहाशा हंसने लगी। "तुम तो ऐसे घबरा गए जैसे सच में हनीमून मना लिया तुमने। हाहाहा।"


"तो तुम ऐसे पूछोगी तो घबराहट नहीं होगी क्या?"


"अच्छा यार सॉरी। वैसे मुझे पता है कि तुम काम के लिए कितना सीरियस हो। पर फिर भी कभी कभी थोड़ी मस्ती कर लेनी चाहिए। और वैसे भी इतनी खूबसूरत लड़की और इतना हसीन मौसम..."


"तुम फिर शुरू हो गई?"इस बार मैने थोड़ा गुस्से से कहा।


"ओके सॉरी यार।" उसने मेरा हाथ पकड़ कर कहा। "वैसे एक बात कहनी थी तुमसे।"


"बोलो।"


"थोड़ी बहुत मस्ती चलती है, पर मनीष, जब कभी किसी के साथ सच में रिलेशनशिप में आने का सोचो तो एक बार मुझे बता देना।" ये बोल कर वो उठ कर चली गई, और मैं उसे जाता देखता रहा। शिविका कब सीरियस है और कब मजाक कर रही, ये मुझे बहुत बार पता ही नहीं चलता था। अभी वो क्या कह कर गई, मुझे कुछ समझ नही आया था।शाम को मैं घर चला गया, नेहा को आज ऑफिस में कुछ काम था तो वो देर से गई।


अगले दिन मित्तल सर ने मीटिंग कॉल की, और वहां पर सारी टीम एक बार और इकट्ठी हुई। ऑटोमेटेड ब्रांचेस को बढ़ाने का निर्णय हुआ, जैसा मुझे भी लगा ही था पहले। इस काम को फिलहाल 2 फेस में करने का निर्णय लिया गया, पहले सारी राजधानियों में और उनकी सफलता पर बाकी के शहरों में।


मुझे ही इसके जिम्मेदारी मिली, लेकिन साथ में करण और नेहा भी थे। साथ साथ मित्तल सर ने वाल्ट वाले प्रोपोजल को भी पूरी टीम को बताया, जिसे सुन कर सब बहुत खुश हुए। मित्तल सर ने नेहा को खास कर कहा कि अगर जो वाल्ट वाला प्रोपोजल सरकार ने मंजूर कर लिया तो ऑटोमेटेड ब्रांच वाले प्रोजेक्ट को कुछ दिन उसे अकेले देखना पड़ेगा, क्योंकि मैं और करण उसके लिए व्यस्त हो जाएंगे।


अगले कुछ दिनों तक हम लोग ब्रांचेस बढ़ाने की प्लानिंग में लगे रहे। इस बीच हमें फिर से अकेले में मिलने का समय नहीं मिला, लेकिन चोरी छुपे हमारा रोमांस जारी था, कभी मेरे केबिन में, कभी उसके केबिन में।


ऐसे ही एक दिन दोपहर के समय मैं उसके केबिन में चला गया, वो खिड़की के पास खड़ी फोन पर किसी से बात कर रही थी, उसकी आवाज बहुत धीमी थी, मुझे साफ से सुनाई नहीं दिया।


".... हां वो तो पागल हो गया है पूरा।"


"......"


"बस जल्दी ही एक बार और करना है।"


"....."


तब तक मैने पीछे से उसे अपनी बाहों में भर लिया।


उसने मुझे देखा, उसके चेहरे पर कुछ घबराहट थी.....
बहुत ही गजब और मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
 

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#अपडेट १०


अब तक आपने पढ़ा -


ऐसे ही एक दिन दोपहर के समय मैं उसके केबिन में चला गया, वो खिड़की के पास खड़ी फोन पर किसी से बात कर रही थी, उसकी आवाज बहुत धीमी थी, मुझे साफ से सुनाई नहीं दिया।


".... हां वो तो पागल हो गया है पूरा।"


"......"


"बस जल्दी ही एक बार और करना है।"


"....."


तब तक मैने पीछे से उसे अपनी बाहों में भर लिया।


उसने मुझे देखा, उसके चेहरे पर कुछ घबराहट थी.....


अब आगे -





"अच्छा पापा, अब रखती हूं। कुछ जरूरी काम आ गया है।" बोल कर उसने फोन काट दिया।


"इतना घबरा क्यों गई तुम?"


"अब एकदम से ऐसे कोई पीछे से पकड़ लेगा तो घबराहट सी होगी ही।"


कहते हैं आशिकी में डूबा आशिक समझने समझाने से ऊपर उठ चुका होता है, मेरी भी हालत शायद वैसी ही थी, इसलिए मैने इस बात को फिर ज्यादा तूल नहीं दिया।


"क्या बात कर रही थी अपने पापा से?"


"वही संजीव से डाइवोर्स वाली। वो एक्चुअली कुछ पैसे मांग रहा है मुझसे।"


"कितने?"


"पच्चीस लाख। बोला इतने दे दो, आराम से तलाक दे दूंगा।"


"तो मैं दे देता हूं।"


"नहीं मनीष, इस बात के लिए तुमसे नहीं लूंगी पैसे। मेरी गलती है, मुझे ही इसको चुकाने दो।"


"नेहा, मेरे पैसे तुम्हारे पैसे हैं। जब भी कोई जरूरत हो, बेझिझक मांग लो।"


"वो मुझे पता है मेरे भोले बलम। लेकिन इस मामले में बिल्कुल नहीं। वैसे ज्यादा पैसे हैं तो कुछ शॉपिंग करवा दो।"


"अरे, बस इतनी सी बात? आज ही चलो।"


"नहीं, आज नहीं। कल चलते हैं।"


"ओके, वैसे भी कल सैटरडे है। कल ही चलते हैं।"


ये बोल कर मैने उसको फिर से अपनी बाहों में भर कर चूम लिया।


ऑफिस में अभी हमने किसी को भी अपने बारे में भनक भी नहीं लगने दी थी। इसीलिए काम के अलावा हम लोग ऑफिस अलग अलग ही आते जाते थे। अगले दिन भी शाम को मैं जल्दी ही ऑफिस से निकल कर नेहा को लेने गया। नेहा मुझसे पहले भी निकल चुकी थी। उसके घर से उसे पिक करके हम ऑर्बिट मॉल गए, वहां नेहा ने बहुत सारी खरीदारी की दोनों के लिए, उसके बाद हम उसी में मौजूद एक पब में चले गए। वहां पर डांस फ्लोर भी था। दोनों की ड्रिंक ऑर्डर करने के बाद हम एक टेबल पर बैठ गए, वीकेंड होने के कारण थोड़ी भीड़ थी। डांस फ्लोर पर लोग डांस कर रहे थे।


"चलो डांस करें।"


"मुझे डांस करना नहीं आता नेहा। तुम जाओ, मैं देखता हूं तुमको।"


"अरे चलो न, कौन सा मुझे आता है, लेकिन मुझे पसंद है डांस करना।" उसने जिद करते हुए कहा।


मैं उसके साथ चल गया। वहां पर कई कपल और कई लड़के लड़कियां अलग से भी डांस कर रहे थे। मुझे आता नहीं था तो पहले मैं बस ऐसे ही खड़ा रहा, नेहा मेरा हाथ पकड़ कर गाने की धुन पर झूम रही थी। उसके बदन की थिरकन देख लगता नहीं था कि उसको डांस नहीं आता।


फिर एक रोमांटिक गाना लगा दिया गया, और नेहा मेरे हाथों को पकड़ कर अपनी कमर पर रख दिया और मुझसे बिल्कुल चिपक कर डांस करने लगी। उसके यूं चिपकने से मेरे शरीर में उत्तेजना भरनी शुरू हो गई। मेरे हाथ उसकी पीठ पर घूमने लगे। और हमारे होंठ एक दूसरे से जुड़ गए। तभी गाना खत्म हो गया, और हमारा ड्रिंक भी आ गया था, तो हम वापस टेबल पर आ गए। कुछ देर बाद नेहा वापस से डांस फ्लोर पर चली गई, और मैं खाने का ऑर्डर देने लगा।


वहां नेहा अकेली ही डांस कर रही थी और कुछ ही देर में एक लड़का उसके काफी पास आ कर नाचने लगा। मैं खाने का ऑर्डर दे कर डांस फ्लोर की ओर देखा तो वो लड़का डांस करने के बहाने नेहा के आस पास ही मंडरा रहा था और नेहा को छूने की कोशिश कर रहा था। ये देख मैं भी वहां चला गया और नेहा के आस पास ही डांस करने लगा। उसने शायद मुझे नहीं देख, या मुझे भी अपने जैसा ही एक मनचला समझ लिया। उसकी हरकतें बंद नहीं हुई। मुझे गुस्सा बढ़ रहा था। तभी उसने नेहा की कमर पर अपना हाथ रख कर दबा दिया, जिससे नेहा भी चिहुंक गई, और मैने उसका हाथ पकड़ कर एक थप्पड़ मार दिया उसे, जिससे वो लड़खड़ा कर गिर पड़ा।


ये देख उसके 2 साथी भी आ गए और हम तीनों में हल्की हाथ पाई होने लगी। हंगामा ज्यादा बढ़ता, इससे पहले ही पब के बाउंसर आ कर हम सबको अलग किए और मामला शांत करवाने की कोशिश करने लगे।मैने पुलिस बुलाने को कहा, मगर तब तक नेहा ने बीच में आ कर सारा मामला रफा दफा करने कहा, और छेड़ छाड़ का मामला देख पब वाले भी इसे पुलिस तक नहीं ले जाना चाहते थे। फिर नेहा के समझाने पर मैने भी जिद छोड़ दी।


हम लोग खाना खा कर निकल गए वहां से। मैने नेहा को उसके घर पर ड्रॉप किया और अपने फ्लैट पर आ कर सो गया। अगले दिन संडे था तो सुबह देर तक सोता रहा।


मेरी नींद किसी के फ्लैट की घंटी बजने से खुली। देखा तो नेहा आई थी, अपने साथ एक बड़ा बैग लाई थी वो।


"अरे अभी तक सो रहे हो लेजी डेजी?"


"संडे है यार। और तुम इतनी सुबह?"


"हां संडे है, तभी सोचा आज का दिन तुम्हारे साथ बिताऊं।"


"अंदर आओ।"


नेहा पहली बार मेरे फ्लैट में आई थी और फ्लैट थोड़ा अस्त व्यस्त था। काम करने के लिए एक लड़का आता था, मगर वो एक दिन की छुट्टी पर था। और वैसे भी लड़के अपना घर जल्दी साफ नहीं करते हैं।


"कितना गंदा कर रखा है तुमने।" उसने मुंह बनते हुए कहा।


"मैने सोफे से गंदे कपड़े उठाते हुए कहा, "कोई तो आता नहीं यहां, किसके लिए साफ रखूं? वैसे भी सफाई वाला लड़का छुट्टी पर है, वर्मा इतना गंदा नहीं मिलता।"


उसने मेरे हाथ से कपड़े लेते हुए कहा, "लाओ ये मुझे दो, घर को कम से कम बैठने लायक तो बना लूं।"


ये कह कर उसने कपड़ों को वाशिंग मशीन में डाल कर ऑन कर दिया, और झाड़ू ढूंढ कर सफाई करने लगी।


"ये क्या कर रही हो, कल आयेगा न साफ करने वाला।"


"करने दो मुझे, और जाओ तुम भी फ्रेश हो जाओ, नाश्ता बना कर लाई हूं, एक साथ करेंगे।" एकदम बीवी वाले लहजे में उसने आदेश दिया।


मैं भी फ्रेश होने चला गया। नहाते हुए मुझे याद आया कि तौलिया ले।कर तो आया ही नहीं मैं।


"नेहा, जरा तौलिया दे देना।" मैने बाथरूम के दरवाजे से झांकते हुए कहा।


नेहा तौलिया ले कर आई, और मैने दरवाजे के पीछे से ही हाथ निकल कर बाहर कर दिए, तौलिया पकड़ने के लिए। लेकिन नेहा उसे मेरे हाथ में नहीं दे रही थी और बार बार इधर उधर लहरा रही थी।


"पकड़ के दिखाओ तौलिया।" उसने शरारत से कहा।



मैने भी थोड़ी चालाकी दिखाते हुए तौलिए की जगह उसका हाथ पकड़ लिया और बाथरूम में खींच लिया।


"मनीष, छोड़ो मुझे। भीग जाऊंगी मैं।" उसने मचलते हुए कहा। लेकिन तब तक मेरे होंठ उसके होंठों को बंद कर चुके थे।


मेरे हाथ उसके कपड़े खोलने लगे थे, मैं खुद तो बिना कपड़ों के था ही।


बाथरूम में कुछ देर एक दूसरे के बदन से खेलने के बाद हम बाहर आ गए, और बेड पर फिर से वो खेल शुरू हो गया।


मैं नेहा की योनि को चाट रहा था, और वो मेरे लिंग को मुंह में भरी हुई थी। थोड़ी देर बार मैं नेहा के अंदर था और वो मेरे ऊपर बैठ कर उछल रही थी। कोई आधे घंटे हमारा ये खेल चला, और उसके बाद हम वैसे ही उठ कर खुद को साफ करके नाश्ता करने बैठे। सारा दिन हमने साथ में ही बिताया।


शाम को नेहा को घर छोड़ कर मैं वापस लौट रहा था तो करण का फोन आया मेरे पास।


"सर कहां हैं?"


"अभी तो बाहर हूं, बोलो क्या बात है?"


"वो कल मुंबई वाली ब्रांच में जाना है न मुझे, और कल की एक फाइल पर अपने साइन नहीं किए। मुंबई उस फाइल को लेकर जाना है।"


"मेरे फ्लैट पर आ जाओ आधे घंटे में, मैं साइन कर देता हूं।"


आधे घंटे बाद करण मेरे फ्लैट में था।


"आओ करण, बैठो। क्या लोगे चाय या कुछ और? चाय तो भाई मंगवानी पड़ेगी। हां व्हिस्की बोलो तो अभी पिलाता हूं।"


"अब सर चाय तो हम लगभग रोज ही साथ में पीते हैं।" उसने शर्माते हुए कहा।


मैने व्हिस्की की बोतल निकला कर दो पैग बनाए और थोड़ी नमकीन भी रख ली।


"लाओ फाइल दो।"


उसने मेरी ओर फाइल बढ़ा दी। मैं उसे पढ़ने भी लगा और अपने पैग का शिप भी लेने लगा। करण ने अपना पैग जल्दी ही खत्म कर दिया।


"अरे भाई, बड़ी जल्दी है तुमको। अच्छा अपना एक और पैग बना लो तुम।" ये बोल मैं फिर से फाइल पढ़ने लगा।


थोड़ी देर बाद मैने फाइल पढ़ कर उस पर साइन कर के करण की ओर उसे बढ़ा दिया। करण ने फाइल।अपने बैग में रख ली।


"और करण, मां कैसी हैं अब तुम्हारी?"


"सर अभी तो ठीक हैं, मुंबई जा रहा हूं, वहां एक डॉक्टर का पता चला है उसने भी मिल लूंगा मां के केस के सिलसिले में।" उसकी बात सुन कर लगा जैसे कुछ नशे का असर होने लगा था उस पर।


"चलो अच्छी बात है, कोई हेल्प चाहिए तो बताना। वैसे US में एक डॉक्टर दोस्त है मेरा, बोलो तो उनसे बात करूं कभी?"


"नहीं सर, अभी तो लोग मुंबई वाले को बेस्ट बता रहे हैं। उनसे मिल लेता हूं पहले, फिर बताता हूं आपको।"


"ठीक है फिर।" ये बोल कर मैने एक और पैग बना दिए दोनो के लिए।


"सर, एक बात बोलनी थी आपसे?"


"बोलो करण। ऐसे पूछ कर क्या बोलना, जो कहना है कहो।"


"कैसे बोलूं सर समझ नहीं आ रहा। व वो नेहा है न, सर वो अच्छी लड़की नहीं है।"


"मतलब?"


"मतलब सर, मैने कई बार उसको श्रेय सर के केबिन में आते जाते देखा है। और कई बार मीटिंग वगैरा में भी दोनों को इशारों में बाते करते भी देखा है। आप सर उससे थोड़ा दूरी बना कर रखें।" अब उसकी जबान पूरी तरह से लड़खड़ाने लगी थी।


मैं थोड़ा गौर से उसे देखने लगा था।


"अच्छा सर, अब चलता हूं मैं। सॉरी शायद नशे में कुछ गलत बोल गया हूं तो।" बोल कर वो निकल गया।


मैं थोड़ी देर उसकी बात पर विचार करता रहा, फिर मैने सोचा शायद वो नेहा के एकदम से इतने ऊपर आने से कुछ गलतफहमी पाल रखी हो उसने, इस कारण ऐसा बोल रहा हो।


थोड़ी देर बाद मैं सो गया। अगले 2 दिन कुछ खास नहीं हुआ। मित्तल सर और करण दोनों ही नहीं थे, और करण के न रहने पर मैं और नेहा मिल कर आज पूरा काम देख रहे थे तो ज्यादा समय नहीं मिला हम दोनो को। तीसरे दिन करण मुंबई से आ चुका था, और मित्तल सर भी वापी पहुंच चुके थे, इसीलिए मैं कुछ रिलैक्स था, दोपहर में नेहा मेरे केबिन में आई और मेरी गोद में आ कर बैठ गई।



उसके बैठते ही मेरे केबिन का दरवाजा एकदम से खुल गया......
बहुत ही मस्त और शानदार अपडेट है भाई मजा आ गया
 

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# अपडेट ११


अब तक आपने पढ़ा -

थोड़ी देर बाद मैं सो गया। अगले 2 दिन कुछ खास नहीं हुआ। मित्तल सर और करण दोनों ही नहीं थे, और करण के न रहने पर मैं और नेहा मिल कर आज पूरा काम देख रहे थे तो ज्यादा समय नहीं मिला हम दोनो को। तीसरे दिन करण मुंबई से आ चुका था, और मित्तल सर भी वापी पहुंच चुके थे, इसीलिए मैं कुछ रिलैक्स था, दोपहर में नेहा मेरे केबिन में आई और मेरी गोद में आ कर बैठ गई।


उसके बैठते ही मेरे केबिन का दरवाजा एकदम से खुल गया...


अब आगे -


दरवाजे पर मित्तल साहब खड़े थे, बस एक वही थे जो बिना नॉक किए मेरे केबिन में आ सकते थे। उनको देख नेहा उछल कर खड़ी हो गई और पीछे खिड़की की ओर मुंह छुपा कर खड़ी हो गई। मैं भी शौक के बस उनको ही देख रहा था। वो कुछ सेकंड दरवाजा पकड़ कर वैसे ही खड़े रहे, शायद उनको भी बहुत आश्चर्य हुआ होगा, फिर वो पलट कर निकल गए और जाते जाते बोले, "मनीष अपना काम निपटा कर मेरे केबिन में आओ, बहुत जरूरी बात है।"


मैंने नेहा को जाने का इशारा किया और कुछ देर बाद मैं भी मित्तल सर के केबिन की ओर निकल गया। भले ही अभी तक मैने अपने और नेहा के बारे में किसी को नहीं बताया था, मगर मैं सबसे पहले ये बात मित्तल सर को ही बताता, पर मुझे ये अच्छा नहीं लगा कि उनको इस तरीके से ये बात पता चली। खैर अब सामना तो करना ही था उनका।


मैं उनके केबिन के बाहर पहुंच कर धड़कते दिल से दरवाजा खटखटाया।


"कम इन।"


"सर वो..." मैं सर झुकते हुए अंदर गया और बिना देखे उनसे बोलने लगा।


"बैठो पहले।"


मेरे बैठते ही, "क्या था वो मनीष?"


"जी असल में हम... मतलब मैं और नेहा एक दूसरे से प्यार करते हैं।" मैं एक झटके में अपनी बात बोल गया।


कुछ देर की खामोशी के बाद, "क्या उसने अपने बारे में सब बताया तुम्हे?"


"जी अपनी तरफ से तो सब बता ही दिया है। और बस जैसे ही उसका डाइवोर्स फाइनल होता तो हम सबको बताने ही वाले थे।"


"चलो अब जब तुमने ये फैसला ले ही लिया है तो सही है, वैसे मैने तो कुछ और ही सोचा था तुम्हारे बारे में। फिर भी अगर जो तुम खुश हो तो मैं भी खुश हूं।"


दिल से मेरे बहुत बड़ा बोझ उतर गया था।


"वैसे मैं ये बोलने आया था कि वाल्ट का आधा अप्रूवल तो मिल गया है, बाकी आधा वाल्ट बनाने के बाद मिलेगा। तो अब तुमको इस काम में लग जाना होगा।"


"जी बिलकुल, मैं तो बस आपकी मंजूरी का वेट कर रहा था। फिलहाल एक दो लॉक के वेंडर से बात भी हो चुकी है। बस आप बोलिए तो उनको डेमो के लिए बुलवा लेता हूं, फिर शॉर्टलिस्ट करके आपसे मिलवा दूंगा।"


"ठीक है फिर कल से लग जाओ इसपर। और हां ये सब काम ऑफिस में तो मत किया करो भाई। और कम से कम, जब तक उसका डाइवोर्स फाइनल नहीं होता तब तक तो जरूर।" उन्होंने कुछ मूड हल्का करते हुए कहा।


मैं भी सर झुका कर सारी बोल कर निकल गया उनके केबिन से। नेहा मेरा इंतजार कर रही थी मेरे केबिन में।


"क्या बोला सर ने?"


"वो बहुत गुस्सा थे। उनको ये रिश्ता मंजूर नहीं, बोले कि एक दो दिन में तुमको दिल्ली भेज देंगे।" मैने सीरियस चेहरा बनाते हुए कहा।


ये सुन कर नेहा की आंखों में आंसु आ गए। "मुझे ऐसा ही लगा था मनीष, इसीलिए पहले मैने तुमसे कहा था कि डाइवोर्स हो जाने दो। लेकिन मैं खुद ही बहक गई, और अब?"


उसकी आंखों में आंसु मुझे अच्छे नहीं लगे। "सॉरी नेहा, मैने मजाक किया था। उनको हमारा रिश्ता मंजूर है।" मैने उसके कंधों को पकड़ कर कहा।


नेहा मुझे कुछ देर मुझे आश्चर्य से देखती रही, "क्या? सच में?"


"हां नेहा, बिलकुल सच।"


ये सुनते ही वो मेरे गले लग गई। मैने उसे दूर करते हुए कहा, "ये सब ऑफिस में करने से मना किया है सर ने।"


"ओह, हां सही है ऑफिस आखिर काम करने की जगह होती है।"


"हां, हमें ऑफिस में अपनी मर्यादा नहीं भूलनी चाहिए। अच्छा वो वाल्ट वाले प्रोजेक्ट के काम पर लगना है, अब तुम भी अपने केबिन में जाओ। हम शाम को मिलते हैं।"


नेहा चली गई और मैं काम में मशरुफ हो गया। शाम को मैने नेहा को कॉल किया तो वो ऑफिस से निकल चुकी थी। मैने उसे उसके घर से पिकअप किया। चूंकि आज हमारे रिश्ते को मित्तल सर की मंजूरी भी मिल गई थी, इसीलिए आज हमने साथ में डिनर का प्लान बनाया था।


डिनर से वापस लौटते समय नेहा का फोन बजा। उसने कॉल देख कर इग्नोर कर दिया, पर चेहरे पर कुछ टेंशन सी आ गई। काल कट कर वापस आने लगा, उसने फिर से इग्नोर किया।


"किसका कॉल है जो उठा नहीं रही, और टेंशन में क्यों हो तुम आखिर?"


"कुछ नहीं, ऐसा कोई इंपोर्टेंट कॉल नहीं है।"


"फिर परेशान क्यों हो?"


"व वो, कुछ दिन से देर शाम को मुझे पता नहीं किसकी कॉल आ रही है, कुछ बोलता नहीं कोई, लेकिन रोज कॉल आती है।"


"और ये कब बताने वाली थी मुझे तुम?" मैने थोड़े गुस्से वाले लहजे में पूछा।


"असल में बस कॉल ही आया है, कोई कुछ बोलता नहीं, इसीलिए तुमको नहीं बताया अब तक।"


"अच्छा किस नंबर से कॉल आता है? मुझे बताओ।"


"कोई fix नहीं है, लेकिन एक ही सीरीज से आ रहा है।"


"मुझे दिखाओ" ये बोल कर मैने उससे फोन ले लिया। कॉल अब भी बज रही थी।


नंबर मुझे जाना पहचाना लगा। तब तक कॉल कट गई। मैने थोड़ा दिमाग पर जोर डाला, ये नंबर तो शायद ऑफिस की बिल्डिंग का था। इंटरकॉम वाले सिस्टम में ये सीरीज का नंबर चलता है, लेकिन अब मोबाइल आ जाने से हम लोग सिर्फ इंटरकॉम का ही काम लेते थे उससे।


मैने देखा तो वैसी कॉल्स 5 6 अलग अलग नंबर से आई थी। मैने सबकी सीरीज चेक की तो पता चला कि ये नंबर मेरे ही फ्लोर के हैं, एक नंबर अलग फ्लोर का भी था।


मैने ऑफिस के रिसेप्शन पर कॉल लगाया। और पूछा कि मेरे फ्लोर पर अभी कौन कौन है तो वहां से बताया गया कि अभी अभी प्रिया और उसकी टीम निकली है, करण भी 10 मिनिट पहले ही निकला था। फिलहाल कोई नहीं है है उस फ्लोर पर।


"तुमको ऑफिस में सब कैसे लगते हैं?" मैने नेहा से पूछा।


"मतलब?"


"मतलब अपने वर्टिकल में जो साथ में हैं, वो सब कैसे लगते हैं तुमको, क्या कोई ऐसा भी लगता है जो तुमको नहीं चाहता हो या गलत निगाह रखता हो?"


"ऐसा तो कोई नहीं लगता, सब अपने काम से ही मिलते जुलते हैं मुझसे। हां कई बार मैने गौर किया है कि करण मीटिंग वगैरा में मुझे निहारता रहता है। पर अभी तक उसने कोई ऐसी हरकत नहीं की।"


अब मुझे लगने लगा कि उस दिन करण मुझे नेहा के खिलाफ इसीलिए भड़का रहा था क्योंकि वो शायद नेहा को सीक्रेटली चाहता हो। फिलहाल मैने उन सारे नंबर्स को ब्लॉक कर दिया नेहा के नंबर से, और उसको बोला कि फिर कभी कॉल आए तो मुझे जरूर बताए। मैने उसे घर छोड़ते हुए अपने फ्लैट पर वापस आ गया।


ये हफ्ता ऐसे ही बीत गया। शनिवार को नेहा ने कहा कि उसकी कोई मौसी जो मुंबई में रहती हैं, वो मिलने आने वाली है तो शनिवार और रविवार को मिलना संभव नहीं है। उसको अब वो ब्लैंक कॉल्स आने बंद हो गए थे।


मैं ऑफिस में ही बैठा था कि प्रिया का कॉल आया मेरे पास।


"हेलो मनीष, मैं आज एक मीटिंग के लिए निकली हूं, घर के सीसीटीवी में कोई दिक्कत है, तो क्या तुम टेक्नीशियंस से बात करके उसको सही करवा दोगे? पापा ने तुमसे बोलने को कहा है इसीलिए मैने तुमसे बोला"


"हां क्यों नहीं, वैसे क्या दिक्कत है उनमें?"


"कुछ कैमरा ऑनलाइन एक्सेस नहीं हो रहे, या फिर कई बार कनेक्शन कट जा रहा है। मैं टेक्निशियन का नंबर भेज रही हूं, तुम उनसे बात कर लेना।"


"ठीक है प्रिया, भेज दो। हां वो इंटरनेट प्रोवाइडर का भी भेज देना, शायद उसके साइड से कोई दिक्कत हो।"


"हां वो भी भेज देती हूं।"


वैसे एक दो बार पहले भी घर की कुछ काम को मैने करवाया है, तो प्रिया का ये फोन कोई पहली बार नहीं था। हां पर हर बार वो रिक्वेस्ट जरूर करती थी, और सर का नाम भी बोलती थी। खैर खाली ही बैठा था आज तो मैने सोचा ये काम भी करवा लिया जाय। 2 मिनिट बाद उसने दोनों नंबर भेज दिए थे। मैने पहले कैमरा वाले को कॉल लगाया और उससे प्रॉब्लम के बारे में पूछा और उसने कुछ अपडेट करने बोला। मैने उसे बोला कि वो अपनी तरफ से अपडेट कर दे तो कुछ समय मांग उसने। कोई एक घंटे बाद उसने कॉल करके बताया कि अपडेट्स कर दिया हैं उसने और चेक करने भी बोला। मेरे पास एक्सेस नहीं था तो मैने प्रिया को वापस कॉल लगाई और चेक करने बोला। उसने कहा कि अभी वो बिजी है तो एक्सेस पासवर्ड भेज दिया उसने कि मैं खुद ही चेक कर लूं सब ठीक है या नहीं।


मैने चेक किया तो सब सही था। और मैने टेक्निशियन और प्रिया दोनों को इनफॉर्म कर दिया इसके बारे में। शाम को मैं आज क्लब चला गया जहां समर से भी मुलाकात हो गई, और उसके साथ बैठ कर कुछ ड्रिंक्स भी लेली। फिर मैं ड्राइव करके वापस अपने फ्लैट की ओर निकल गया।


रास्ते में ट्रैफिक बहुत ज्यादा नहीं था, मगर फिर भी ड्रिंक किए होने के कारण मैं आराम आराम से ड्राइव कर रहा था। क्लब से थोड़ा आगे जाने पर दूसरे साइड से आगे से एक कार आती दिखी। ये कार मित्तल हाउस की थी, और ज्यादातर उसे श्रेय ही चलता था। मैंने उस कार की ओर देखा तो ड्राइविंग सीट पर एक आदमी था, जिसका चेहरा मुझे नहीं दिख पाया, और पैसेंजर सीट पर एक लड़की थी। कार पास होते ही स्ट्रीट लाइट की रोशनी में मुझे लगा कि वो लड़की नेहा थी....
बहुत ही मस्त और शानदार अपडेट है भाई मजा आ गया
 
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