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Manish ke liye bas ek hi sabd bacha hai " laut ke buddhu ghar ko aaye" babu ji hi aasra denge, main bhi yahi soch raha tha ki, wo dhabe wala hi bacha sakta hai use
Samar hi kaam ka aadmi hai, manish to chutiya hi hai
Nice update
Suprb apdet Bhai
Bahut hi badhiya update diya hai Riky007 bhai....
Nice and beautiful update....
Awesome update
तो मित्तल अभी जिन्दा है और मित्तल की जिंदगी से ही मनीष की भी जिन्दगी जुड़ गयी है
Nice update....
कसम उड़ानछले कि समर तो यारों का यार हे।
इस प्यार के चोदे मनीष की तो नेहा ले रही थी,वो भी कुत्ता बनाके
श्रेय नीचे से ऊपर आया, प्रिया रिवॉल्वर हाथ में लेने के बाद आई, बहुत केमिकल लोचा है इधर,
लेकिन अभी मित्तल साहब फिरोज खान साहब की स्टाइल में कहेंगे नोट टू वरी माई बॉय अभी हम जिंदा हैं, आइसा अपुन को लगता है मामूलोग ,बाकी होगा वोहिच जो तुम सोच के रखा ।
Nice update....
मनीष साहब वास्तव मे छल - कपट और प्रपंच से परे है ।
पढ़ाई लिखाई , हाई एजुकेशन , धन दौलत की प्रचुर उपलब्धता यह नही दर्शाता कि वह इंसान दिमाग से भी तेज होगा ! यह सब उसके विरासत , उसके कठोर कर्म और भाग्य की वजह से भी हो सकता है ।
इस अपडेट मे भी यही दिखाई दिया कि वह एक साधारण सोच वाले इंसान है । समर साहब ने उनके कमी को फिर से उजागर किया ।
वैसे यह कोई शर्मिंदगी की बात नही है । आम इंसान थोड़ी थोड़ी सी संवेदनशील चीजों पर बहक जाता है ।
मनीष साहब को अपने कुल देवता , पितर और आराध्य देव की प्रार्थना करनी चाहिए कि रजत मित्तल साहब साहब बच जाएं ! मित्तल साहब का बयान ही उन्हे निर्दोष साबित कर सकता है ।
लेकिन एक बात तो लगभग सभी रीडर्स को खटक रही है और वह है प्रिया का ऐन मौके पर पहुंच जाना जब मनीष साहब के हाथ मे रिवाल्वर है । हमारे एक रीडर बंधु ने श्रेय के बारे मे भी यही हिंट दिया ।
यह निस्संदेह जांच का विषय होना चाहिए ।
खुबसूरत अपडेट रिकी भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट ।
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है भाई मजा आ गया
क्या मित्तल साहब को गोली मारने वाला घर का ही हैं या कोई और जो मनिष को फसा कर अपना उल्लु निकाल सके
क्या समर मनिष को बचाने के लिये एडी चोटी का जो लगा कर उसे बचा पायेगा
ढाबे वाले बाबुजी किस तरहा से मनिष की मदत करते है
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
बचपन में मैं और मेरे साथी एक शब्द का इस्तेमाल करते थे "गऊ"!
ये दो शब्दों के मेल था - गधा और उल्लू।
मनीष वाक़ई गऊ है। अभी भी वो नेहा के प्रपंच में फंसा हुआ है और एक दूसरे ही जंजाल में फँस गया।
ऐसे कौन निरी मूर्खता वाला काम करता है भाई? इस आदमी से बिज़नेस सम्हलेगा? वाक़ई?
ठीक है, आप किसी और को धोखा न दें, लेकिन कम से कम स्वयं तो बार बार धोखे न खाएँ! ये कोई अच्छाई नहीं।
कम से समर उसके साथ है। एक मिनट -- समर उसके साथ है? या वो भी एक अलग ही प्रकार का छल है?
मित्तल दादा की हत्या करने का प्रयास हो चुका। मतलब घर का भेदी है कोई।
उसकी बेटी प्रिया ही तो नहीं? उसी को नुकसान होना था सबसे बड़ा मनीष के "परिवार" में बने रहने से।
पहले शतक की बहुत बहुत शुभकामनाएं आपको Riky007 भाई
Bahut hi umda update he Riky007 Bhai,
Manish kisi tarah se mittal sir ke ghar se bach nikla..........
Samar ki madad se vo shahar chhodne me bhi kamyag ho gaya................
Babuji ke dhabe par aakar hi use thoda chain milega............
Ye samar har jagah lagbhag sahi samay par pahuch jata he, kahi ye bhi to shamil nahi he is kaand me????
Keep rocking Bro
Hamare dost log to har chij ke chutiya hi use karte hai
Universal word hai
Murkh ho to chutiya ho,
sidhe ho to chutiya ho
Jyada shane ban rahe lekin kaam bigad gaya to bhi chutiya ho
कितने भले लोग!
जितना इन्होंने मनीष के लिए किया शायद ही कोई करता।
सगे रिश्ते भी ईर्ष्या का शिकार हो जाते हैं, कमाल हो आप सरदारजी और जॉली भैया।
Update postedManish ko Samar jaisa dost mila hai yeh uski khuskismati hai jo uske bure samay me kam aa raha hai. Romanchak. Pratiksha agle rasprad update ki
New update with new theory#अपडेट २९
अब तक आपने पढ़ा -
न्यूज में से अब इस केस पर से धीरे धीरे लोग का इंटरेस्ट कम होने लगा था, और न्यूज वाले भी अब इस न्यूज को ज्यादा नहीं दिखते थे। शेयर मार्केट में भी मित्तल ग्रुप के शेयर अब स्टेबल हो रहे थे। श्रेय और महेश अंकल ने अब कुछ पकड़ बना ली थी कंपनी पर।
दिन ऐसे ही बीत रहे थे...
अब आगे -
एक दिन बाबूजी मेरे पास आए और ऐसे ही बातों बातों में मुझसे कहा कि दाढ़ी वगैरा बनवा लो, अच्छा नहीं लगता है। तभी उनको देख कर मेरे दिमाग में एक ख्याल आया और जॉली भैया को बुलवा कर मैने उनसे कुछ कहा, वो बोले थोड़ा टाइम दो। उसके कुछ समय बाद वो एक आदमी के साथ आए। वो उनका बहुत खास जानने वाला था। एक मेकअप आर्टिस्ट। उसने मेरे हुलिया को थोड़ा दुरुस्त करके एक पग पहना दी। फिर जॉली भैया और बाबूजी ने मुझे देख कर बहुत खुश हुए और मेरे सामने आईना कर दिया, एक बार तो मैं खुद को ही नहीं पहचान पाया। इन दिनों मेरा वजन भी कुछ कम हो गया था तो मैं थोड़ा दुबला भी हो गया था। और इस हुलिए में मैं एक 20 21 साल के सिख युवक की तरह दिखने लगा था।
जॉली भैया ने उससे पूछा, "रमेश ये मेकअप कितनी देर रहेगा?"
"अरे जॉली भैया, ये कोई मेकअप नहीं है, ये तो इनकी नेचुरल दाढ़ी मूंछ है, तो ये जब तक इस पग को लगाए रहेंगे तो ऐसे ही दिखते रहेंगे।"
"मतलब ये कितनी भी देर तक ऐसा रह सकता है?"
"हां बस जब नहाएंगे तो मैं कुछ क्रीम देता हूं वो जरूर लगा लेंगे, जिससे स्किन का कलर जरा बदला सा रहेगा।" ये बोल कर उस आदमी ने दो तरह की क्रीम मुझे दी और उसे लगाने का तरीका भी बता दिया।
मैं फिर भी बहुत कॉन्फिडेंट नहीं था ऐसे निकलने में, तो बाबूजी ने मुझे अपने साथ लिया और अपने ढाबे के गल्ले पर बैठा दिया। एक दो लोग ने मेरे बारे में पूछा तो मुझे अपना भतीजा बता दिया। कुछ देर वहां बिताने के बाद मुझे कुछ कॉन्फिडेंस आया और मैं अकेले ही पूरी मार्केट घूम आया।
शाम तक वैसे ही रहने के बाद मुझे कुछ कॉन्फिडेंस आ गया, और मैने बाबूजी और जॉली भैया से वापस जाने की बात की।
जॉली भैया ने मुझे कुछ दिन और रुकने कहा, और वो मेरी एक दो फोटो भी खींच कर ले गए। बाबूजी ने मुझसे समर से बात करने कहा। मेरे भी दिमाग में था कि किसी तरह से नेहा के मां पिताजी से मिला जाय, क्योंकि ये गुत्थी बस वही सुलझा सकते थे कि ये बिट्टू कौन है।
रात को समर ने फोन किया, वो हर 2 4 दिन में मुझे अलग अलग नंबरों से कॉल करता था। ये उसकी खुद की सुरक्षा के लिए भी जरूरी था।
"हां मनीष कैसा है भाई?"
"कैसा होऊंगा? अच्छा एक बात बता, क्या किसी तरह से मैं नेहा के मां बाप से मिल कर बात कर सकता हूं?"
"क्यों मिलना है उनसे? और कैसे मिलोगे भाई, तुम्हारी तलाश पुलिस को आज भी है।"
"देखो समर, इसके पीछे जो भी है, वो नेहा से ही जुड़ा है। तो नेहा का पूरा पास्ट आना जरूरी है हमारे सामने, तभी कुछ गुत्थी सुलझाने के आसार बनेंगे। ऐसे यहां बैठे बैठे पूरी जिंदगी तो नहीं निकाल सकता न भाई। और अपने ऊपर आए दाग को भी हटाना जरूरी है।"
"बिल्कुल, पर कहां मिलोगे और कैसे मिलोगे?"
"वापी में बुला सकता है उनको?"
"तुम वापी आओगे?"
"हां आना ही पड़ेगा।"
"लेकिन?"
"बिना रिस्क लिए तो कुछ भी सही नहीं होगा न?"
"हां वो तो है। अच्छा एक काम करता हूं, नेहा के पापा का नंबर है मेरे पास, वो जब नेहा की बॉडी क्लेम करने आए थे तब उनसे लिया था। उन्होंने कहा था कि कोई संजीव की बॉडी न क्लेम करे तो उनको बताने। पर मुझे उस केस से ही हटा दिया तो मेरे दिमाग से भी उतर गया। चल बात करके बताता हूं तुझको, फिर उनके हिसाब से प्लान बना। और भाई सावधान रहना।"
" हां भाई, देख भाल कर ही आऊंगा।"
अगले दिन जॉली भईया ने मुझे मेरी नई पहचान के कुछ दस्तावेज बना कर दे दिए। वो इन सब का ही काम करते थे तो जाली दस्तावेज बनाना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं था। अब मैं 22 साल का हरप्रीत सिंह था और दिल्ली के प्रीतमपुरा का रहने वाला था।
दो दिन बार समर ने मुझे कॉल करके बताया कि नेहा के पिताजी एक सप्ताह बाद वापी आ कर संजीव का क्रियाकर्म कर देंगे। उसने बताया कि उनका यही अंदाजा था कि कोई संजीव की बॉडी क्लेम करने नहीं आएगा उसके परिवार से, वैसे भी उसका बस एक ही भाई था,और वो भी लंदन में था।
जॉली भैया ने मेरे लिए नए नाम से ट्रेन में रिजर्वेशन करवा दिया वापी जाने के लिए, उनके पहुंचने के एक दिन पहले ही मैं वहां पहुंच गया। रास्ते भर मुझे अपने पहचाने जाने का डर था, मगर इस घटना को लगभग 2 महीने बीत गए थे, और न्यूज वालों ने इतने दिनों में बहुत मसाला दे दिया था लोगों को, मेरे साथ हुई दुर्घटना को भूलने का।
सुबह वापी पहुंच कर मैं होटल अशोक में चला गया जिसे जॉली भैया ने ही मेरे नाम से ऑनलाइन बुक किया था। ये एक मिडिल बजट का अच्छा होटल था। मैं अपने रूम में पहुंच कर फ्रेश हुआ, और नीचे उतर कर मार्केट के एक रेस्टोरेंट में नाश्ता करने पहुंचा। असल में मेरे और समर की मीटिंग यहीं होनी थी। मैने पहुंच कर देखा तो समर पहले से ही एक टेबल पर था, वहां भीड़ ज्यादा थी तो लोग टेबल शेयर कर रहे थे। मैं भी एक अजनबी की तरह ही उसके टेबल पर बैठ गया, और अपना ऑर्डर दे दिया। कुछ देर रुकने के बाद जब हमने देखा किसी की नजर हमपर नहीं है तो समर और मैने कुछ बात की।
उसने कहा कि वो कल शाम को नेहा के पिताजी को मेरे ही होटल में लेकर आएगा, और वहीं कमरे में ही हम दोनो बात करेंगे।
अगले दिन मुझे कुछ काम नहीं था तो मैं ऐसे ही मित्तल सर के हॉस्पिटल की ओर चला गया। ये वापी का सबसे बड़ा प्राइवेट हॉस्पिटल था, और बहुत भीड़ रहती थी यहां पर।
वहां मैं कुछ देर बाहर खड़े हो कर नजर रख रहा था, तभी मुझे श्रेय की कार अंदर जाती दिखी तो मैं भी अंदर चला गया।
मेरे सामने लिफ्ट से श्रेय और शिविका ऊपर जाने वाले थे, लिफ्ट में और लोग भी थे, तो मैं भी उसी में चल गया। किस्मत से मैं और शिविका एक दूसरे के अगल बगल ही खड़े थे, मैं सामने देख रहा था, और उसकी नजर मुझ पर पड़ी, और वो मुझे ही देखती रही। फिर हम सब एक फ्लोर पर उतरे, ये हॉस्पिटल का आईसीयू फ्लोर था, इसमें दो तरफ आईसीयू यूनिट बने थे, दाईं तरफ जनरल आईसीयू, जहां साधारण लोग भर्ती होते थे, और बाएं तरफ VIP ward था, उसी में मित्तल सर को रखा गया था। उस तरफ पुलिस का पहरा था। मैं जनरल वार्ड की तरफ बढ़ गया। शिविका की नजर अभी भी मुझ पर ही थी।
जनरल वार्ड का वेटिंग हॉल सामने ही था, और वहां बैठ कर VIP वार्ड पर नजर रखी जा सकती थी। मैं ऐसी जगह देख कर बैठ गया जहां से मेरी नजर पूरे वार्ड पर रहती।
श्रेय और शिविका अंदर का चुके थे, मित्तल सर का कमरा सामने ही था। उनके कमरे के बाहर ही दो कांस्टेब तैनात थे और वो सबकी तलाशी ले कर ही अंदर जाने देते। श्रेय और शिविका की भी तलाशी हुई, ये मुझे कुछ अजीब लगा।
मैं वहां दोपहर तक बैठा रहा, श्रेय और शिविका आधे घंटे बाद चले गए थे। शिविका जाते समय भी इधर उधर सबको देख रही, शायद किसी को ढूंढ रही थी।
शायद मुझे?
दोपहर को मैं वहां से बाहर चला गया और खाना खा कर अपने होटल में जा कर आराम करने लगा। शाम 5 बजे मुझे समर ने फोन करके बताया कि वो नेहा के पापा को लेकर आ रहा है मेरे पास।
अंशुमान वर्मा, नेहा के पिता एक रिटायर सरकारी बैंक कर्मी थे। कोई 3 साल पहले ही वो रिटायर हुए थे, मतलब नेहा की शादी के एक साल बाद। समर मुझे उनसे एक दोस्त के रूप में, जो एक जर्नलिस्ट है, मिलवाने वाला था, ये बोलकर कि मैं इस घटना पर एक स्टोरी कर रहा हूं, उसी के सिलसिले में कुछ सवाल करने हैं।
एक घंटे बाद समर, अंशुमान वर्मा को लेकर मेरे रूम पर आ गया। मैने सबके लिए चाय का ऑर्डर किया, और कुछ देर इधर उधर की बात करने के बाद मैने उनसे ऐसे ही पूछ लिया
"सर, नेहा और संजीव की शादी तो आपकी मर्जी के खिलाफ हुई थी, फिर भी आप संजीव का अंतिम संस्कार करने क्यों आए।"
"किसने कहा कि संजीव और नेहा की शादी मेरी मर्जी के खिलाफ हुई?".....
Bahut hi shaandar update diya hai Riky007 bhai....#अपडेट २९
अब तक आपने पढ़ा -
न्यूज में से अब इस केस पर से धीरे धीरे लोग का इंटरेस्ट कम होने लगा था, और न्यूज वाले भी अब इस न्यूज को ज्यादा नहीं दिखते थे। शेयर मार्केट में भी मित्तल ग्रुप के शेयर अब स्टेबल हो रहे थे। श्रेय और महेश अंकल ने अब कुछ पकड़ बना ली थी कंपनी पर।
दिन ऐसे ही बीत रहे थे...
अब आगे -
एक दिन बाबूजी मेरे पास आए और ऐसे ही बातों बातों में मुझसे कहा कि दाढ़ी वगैरा बनवा लो, अच्छा नहीं लगता है। तभी उनको देख कर मेरे दिमाग में एक ख्याल आया और जॉली भैया को बुलवा कर मैने उनसे कुछ कहा, वो बोले थोड़ा टाइम दो। उसके कुछ समय बाद वो एक आदमी के साथ आए। वो उनका बहुत खास जानने वाला था। एक मेकअप आर्टिस्ट। उसने मेरे हुलिया को थोड़ा दुरुस्त करके एक पग पहना दी। फिर जॉली भैया और बाबूजी ने मुझे देख कर बहुत खुश हुए और मेरे सामने आईना कर दिया, एक बार तो मैं खुद को ही नहीं पहचान पाया। इन दिनों मेरा वजन भी कुछ कम हो गया था तो मैं थोड़ा दुबला भी हो गया था। और इस हुलिए में मैं एक 20 21 साल के सिख युवक की तरह दिखने लगा था।
जॉली भैया ने उससे पूछा, "रमेश ये मेकअप कितनी देर रहेगा?"
"अरे जॉली भैया, ये कोई मेकअप नहीं है, ये तो इनकी नेचुरल दाढ़ी मूंछ है, तो ये जब तक इस पग को लगाए रहेंगे तो ऐसे ही दिखते रहेंगे।"
"मतलब ये कितनी भी देर तक ऐसा रह सकता है?"
"हां बस जब नहाएंगे तो मैं कुछ क्रीम देता हूं वो जरूर लगा लेंगे, जिससे स्किन का कलर जरा बदला सा रहेगा।" ये बोल कर उस आदमी ने दो तरह की क्रीम मुझे दी और उसे लगाने का तरीका भी बता दिया।
मैं फिर भी बहुत कॉन्फिडेंट नहीं था ऐसे निकलने में, तो बाबूजी ने मुझे अपने साथ लिया और अपने ढाबे के गल्ले पर बैठा दिया। एक दो लोग ने मेरे बारे में पूछा तो मुझे अपना भतीजा बता दिया। कुछ देर वहां बिताने के बाद मुझे कुछ कॉन्फिडेंस आया और मैं अकेले ही पूरी मार्केट घूम आया।
शाम तक वैसे ही रहने के बाद मुझे कुछ कॉन्फिडेंस आ गया, और मैने बाबूजी और जॉली भैया से वापस जाने की बात की।
जॉली भैया ने मुझे कुछ दिन और रुकने कहा, और वो मेरी एक दो फोटो भी खींच कर ले गए। बाबूजी ने मुझसे समर से बात करने कहा। मेरे भी दिमाग में था कि किसी तरह से नेहा के मां पिताजी से मिला जाय, क्योंकि ये गुत्थी बस वही सुलझा सकते थे कि ये बिट्टू कौन है।
रात को समर ने फोन किया, वो हर 2 4 दिन में मुझे अलग अलग नंबरों से कॉल करता था। ये उसकी खुद की सुरक्षा के लिए भी जरूरी था।
"हां मनीष कैसा है भाई?"
"कैसा होऊंगा? अच्छा एक बात बता, क्या किसी तरह से मैं नेहा के मां बाप से मिल कर बात कर सकता हूं?"
"क्यों मिलना है उनसे? और कैसे मिलोगे भाई, तुम्हारी तलाश पुलिस को आज भी है।"
"देखो समर, इसके पीछे जो भी है, वो नेहा से ही जुड़ा है। तो नेहा का पूरा पास्ट आना जरूरी है हमारे सामने, तभी कुछ गुत्थी सुलझाने के आसार बनेंगे। ऐसे यहां बैठे बैठे पूरी जिंदगी तो नहीं निकाल सकता न भाई। और अपने ऊपर आए दाग को भी हटाना जरूरी है।"
"बिल्कुल, पर कहां मिलोगे और कैसे मिलोगे?"
"वापी में बुला सकता है उनको?"
"तुम वापी आओगे?"
"हां आना ही पड़ेगा।"
"लेकिन?"
"बिना रिस्क लिए तो कुछ भी सही नहीं होगा न?"
"हां वो तो है। अच्छा एक काम करता हूं, नेहा के पापा का नंबर है मेरे पास, वो जब नेहा की बॉडी क्लेम करने आए थे तब उनसे लिया था। उन्होंने कहा था कि कोई संजीव की बॉडी न क्लेम करे तो उनको बताने। पर मुझे उस केस से ही हटा दिया तो मेरे दिमाग से भी उतर गया। चल बात करके बताता हूं तुझको, फिर उनके हिसाब से प्लान बना। और भाई सावधान रहना।"
" हां भाई, देख भाल कर ही आऊंगा।"
अगले दिन जॉली भईया ने मुझे मेरी नई पहचान के कुछ दस्तावेज बना कर दे दिए। वो इन सब का ही काम करते थे तो जाली दस्तावेज बनाना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं था। अब मैं 22 साल का हरप्रीत सिंह था और दिल्ली के प्रीतमपुरा का रहने वाला था।
दो दिन बार समर ने मुझे कॉल करके बताया कि नेहा के पिताजी एक सप्ताह बाद वापी आ कर संजीव का क्रियाकर्म कर देंगे। उसने बताया कि उनका यही अंदाजा था कि कोई संजीव की बॉडी क्लेम करने नहीं आएगा उसके परिवार से, वैसे भी उसका बस एक ही भाई था,और वो भी लंदन में था।
जॉली भैया ने मेरे लिए नए नाम से ट्रेन में रिजर्वेशन करवा दिया वापी जाने के लिए, उनके पहुंचने के एक दिन पहले ही मैं वहां पहुंच गया। रास्ते भर मुझे अपने पहचाने जाने का डर था, मगर इस घटना को लगभग 2 महीने बीत गए थे, और न्यूज वालों ने इतने दिनों में बहुत मसाला दे दिया था लोगों को, मेरे साथ हुई दुर्घटना को भूलने का।
सुबह वापी पहुंच कर मैं होटल अशोक में चला गया जिसे जॉली भैया ने ही मेरे नाम से ऑनलाइन बुक किया था। ये एक मिडिल बजट का अच्छा होटल था। मैं अपने रूम में पहुंच कर फ्रेश हुआ, और नीचे उतर कर मार्केट के एक रेस्टोरेंट में नाश्ता करने पहुंचा। असल में मेरे और समर की मीटिंग यहीं होनी थी। मैने पहुंच कर देखा तो समर पहले से ही एक टेबल पर था, वहां भीड़ ज्यादा थी तो लोग टेबल शेयर कर रहे थे। मैं भी एक अजनबी की तरह ही उसके टेबल पर बैठ गया, और अपना ऑर्डर दे दिया। कुछ देर रुकने के बाद जब हमने देखा किसी की नजर हमपर नहीं है तो समर और मैने कुछ बात की।
उसने कहा कि वो कल शाम को नेहा के पिताजी को मेरे ही होटल में लेकर आएगा, और वहीं कमरे में ही हम दोनो बात करेंगे।
अगले दिन मुझे कुछ काम नहीं था तो मैं ऐसे ही मित्तल सर के हॉस्पिटल की ओर चला गया। ये वापी का सबसे बड़ा प्राइवेट हॉस्पिटल था, और बहुत भीड़ रहती थी यहां पर।
वहां मैं कुछ देर बाहर खड़े हो कर नजर रख रहा था, तभी मुझे श्रेय की कार अंदर जाती दिखी तो मैं भी अंदर चला गया।
मेरे सामने लिफ्ट से श्रेय और शिविका ऊपर जाने वाले थे, लिफ्ट में और लोग भी थे, तो मैं भी उसी में चल गया। किस्मत से मैं और शिविका एक दूसरे के अगल बगल ही खड़े थे, मैं सामने देख रहा था, और उसकी नजर मुझ पर पड़ी, और वो मुझे ही देखती रही। फिर हम सब एक फ्लोर पर उतरे, ये हॉस्पिटल का आईसीयू फ्लोर था, इसमें दो तरफ आईसीयू यूनिट बने थे, दाईं तरफ जनरल आईसीयू, जहां साधारण लोग भर्ती होते थे, और बाएं तरफ VIP ward था, उसी में मित्तल सर को रखा गया था। उस तरफ पुलिस का पहरा था। मैं जनरल वार्ड की तरफ बढ़ गया। शिविका की नजर अभी भी मुझ पर ही थी।
जनरल वार्ड का वेटिंग हॉल सामने ही था, और वहां बैठ कर VIP वार्ड पर नजर रखी जा सकती थी। मैं ऐसी जगह देख कर बैठ गया जहां से मेरी नजर पूरे वार्ड पर रहती।
श्रेय और शिविका अंदर का चुके थे, मित्तल सर का कमरा सामने ही था। उनके कमरे के बाहर ही दो कांस्टेब तैनात थे और वो सबकी तलाशी ले कर ही अंदर जाने देते। श्रेय और शिविका की भी तलाशी हुई, ये मुझे कुछ अजीब लगा।
मैं वहां दोपहर तक बैठा रहा, श्रेय और शिविका आधे घंटे बाद चले गए थे। शिविका जाते समय भी इधर उधर सबको देख रही, शायद किसी को ढूंढ रही थी।
शायद मुझे?
दोपहर को मैं वहां से बाहर चला गया और खाना खा कर अपने होटल में जा कर आराम करने लगा। शाम 5 बजे मुझे समर ने फोन करके बताया कि वो नेहा के पापा को लेकर आ रहा है मेरे पास।
अंशुमान वर्मा, नेहा के पिता एक रिटायर सरकारी बैंक कर्मी थे। कोई 3 साल पहले ही वो रिटायर हुए थे, मतलब नेहा की शादी के एक साल बाद। समर मुझे उनसे एक दोस्त के रूप में, जो एक जर्नलिस्ट है, मिलवाने वाला था, ये बोलकर कि मैं इस घटना पर एक स्टोरी कर रहा हूं, उसी के सिलसिले में कुछ सवाल करने हैं।
एक घंटे बाद समर, अंशुमान वर्मा को लेकर मेरे रूम पर आ गया। मैने सबके लिए चाय का ऑर्डर किया, और कुछ देर इधर उधर की बात करने के बाद मैने उनसे ऐसे ही पूछ लिया
"सर, नेहा और संजीव की शादी तो आपकी मर्जी के खिलाफ हुई थी, फिर भी आप संजीव का अंतिम संस्कार करने क्यों आए।"
"किसने कहा कि संजीव और नेहा की शादी मेरी मर्जी के खिलाफ हुई?".....
अब परतें खुलनी शुरू हुई#अपडेट २९
अब तक आपने पढ़ा -
न्यूज में से अब इस केस पर से धीरे धीरे लोग का इंटरेस्ट कम होने लगा था, और न्यूज वाले भी अब इस न्यूज को ज्यादा नहीं दिखते थे। शेयर मार्केट में भी मित्तल ग्रुप के शेयर अब स्टेबल हो रहे थे। श्रेय और महेश अंकल ने अब कुछ पकड़ बना ली थी कंपनी पर।
दिन ऐसे ही बीत रहे थे...
अब आगे -
एक दिन बाबूजी मेरे पास आए और ऐसे ही बातों बातों में मुझसे कहा कि दाढ़ी वगैरा बनवा लो, अच्छा नहीं लगता है। तभी उनको देख कर मेरे दिमाग में एक ख्याल आया और जॉली भैया को बुलवा कर मैने उनसे कुछ कहा, वो बोले थोड़ा टाइम दो। उसके कुछ समय बाद वो एक आदमी के साथ आए। वो उनका बहुत खास जानने वाला था। एक मेकअप आर्टिस्ट। उसने मेरे हुलिया को थोड़ा दुरुस्त करके एक पग पहना दी। फिर जॉली भैया और बाबूजी ने मुझे देख कर बहुत खुश हुए और मेरे सामने आईना कर दिया, एक बार तो मैं खुद को ही नहीं पहचान पाया। इन दिनों मेरा वजन भी कुछ कम हो गया था तो मैं थोड़ा दुबला भी हो गया था। और इस हुलिए में मैं एक 20 21 साल के सिख युवक की तरह दिखने लगा था।
जॉली भैया ने उससे पूछा, "रमेश ये मेकअप कितनी देर रहेगा?"
"अरे जॉली भैया, ये कोई मेकअप नहीं है, ये तो इनकी नेचुरल दाढ़ी मूंछ है, तो ये जब तक इस पग को लगाए रहेंगे तो ऐसे ही दिखते रहेंगे।"
"मतलब ये कितनी भी देर तक ऐसा रह सकता है?"
"हां बस जब नहाएंगे तो मैं कुछ क्रीम देता हूं वो जरूर लगा लेंगे, जिससे स्किन का कलर जरा बदला सा रहेगा।" ये बोल कर उस आदमी ने दो तरह की क्रीम मुझे दी और उसे लगाने का तरीका भी बता दिया।
मैं फिर भी बहुत कॉन्फिडेंट नहीं था ऐसे निकलने में, तो बाबूजी ने मुझे अपने साथ लिया और अपने ढाबे के गल्ले पर बैठा दिया। एक दो लोग ने मेरे बारे में पूछा तो मुझे अपना भतीजा बता दिया। कुछ देर वहां बिताने के बाद मुझे कुछ कॉन्फिडेंस आया और मैं अकेले ही पूरी मार्केट घूम आया।
शाम तक वैसे ही रहने के बाद मुझे कुछ कॉन्फिडेंस आ गया, और मैने बाबूजी और जॉली भैया से वापस जाने की बात की।
जॉली भैया ने मुझे कुछ दिन और रुकने कहा, और वो मेरी एक दो फोटो भी खींच कर ले गए। बाबूजी ने मुझसे समर से बात करने कहा। मेरे भी दिमाग में था कि किसी तरह से नेहा के मां पिताजी से मिला जाय, क्योंकि ये गुत्थी बस वही सुलझा सकते थे कि ये बिट्टू कौन है।
रात को समर ने फोन किया, वो हर 2 4 दिन में मुझे अलग अलग नंबरों से कॉल करता था। ये उसकी खुद की सुरक्षा के लिए भी जरूरी था।
"हां मनीष कैसा है भाई?"
"कैसा होऊंगा? अच्छा एक बात बता, क्या किसी तरह से मैं नेहा के मां बाप से मिल कर बात कर सकता हूं?"
"क्यों मिलना है उनसे? और कैसे मिलोगे भाई, तुम्हारी तलाश पुलिस को आज भी है।"
"देखो समर, इसके पीछे जो भी है, वो नेहा से ही जुड़ा है। तो नेहा का पूरा पास्ट आना जरूरी है हमारे सामने, तभी कुछ गुत्थी सुलझाने के आसार बनेंगे। ऐसे यहां बैठे बैठे पूरी जिंदगी तो नहीं निकाल सकता न भाई। और अपने ऊपर आए दाग को भी हटाना जरूरी है।"
"बिल्कुल, पर कहां मिलोगे और कैसे मिलोगे?"
"वापी में बुला सकता है उनको?"
"तुम वापी आओगे?"
"हां आना ही पड़ेगा।"
"लेकिन?"
"बिना रिस्क लिए तो कुछ भी सही नहीं होगा न?"
"हां वो तो है। अच्छा एक काम करता हूं, नेहा के पापा का नंबर है मेरे पास, वो जब नेहा की बॉडी क्लेम करने आए थे तब उनसे लिया था। उन्होंने कहा था कि कोई संजीव की बॉडी न क्लेम करे तो उनको बताने। पर मुझे उस केस से ही हटा दिया तो मेरे दिमाग से भी उतर गया। चल बात करके बताता हूं तुझको, फिर उनके हिसाब से प्लान बना। और भाई सावधान रहना।"
" हां भाई, देख भाल कर ही आऊंगा।"
अगले दिन जॉली भईया ने मुझे मेरी नई पहचान के कुछ दस्तावेज बना कर दे दिए। वो इन सब का ही काम करते थे तो जाली दस्तावेज बनाना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं था। अब मैं 22 साल का हरप्रीत सिंह था और दिल्ली के प्रीतमपुरा का रहने वाला था।
दो दिन बार समर ने मुझे कॉल करके बताया कि नेहा के पिताजी एक सप्ताह बाद वापी आ कर संजीव का क्रियाकर्म कर देंगे। उसने बताया कि उनका यही अंदाजा था कि कोई संजीव की बॉडी क्लेम करने नहीं आएगा उसके परिवार से, वैसे भी उसका बस एक ही भाई था,और वो भी लंदन में था।
जॉली भैया ने मेरे लिए नए नाम से ट्रेन में रिजर्वेशन करवा दिया वापी जाने के लिए, उनके पहुंचने के एक दिन पहले ही मैं वहां पहुंच गया। रास्ते भर मुझे अपने पहचाने जाने का डर था, मगर इस घटना को लगभग 2 महीने बीत गए थे, और न्यूज वालों ने इतने दिनों में बहुत मसाला दे दिया था लोगों को, मेरे साथ हुई दुर्घटना को भूलने का।
सुबह वापी पहुंच कर मैं होटल अशोक में चला गया जिसे जॉली भैया ने ही मेरे नाम से ऑनलाइन बुक किया था। ये एक मिडिल बजट का अच्छा होटल था। मैं अपने रूम में पहुंच कर फ्रेश हुआ, और नीचे उतर कर मार्केट के एक रेस्टोरेंट में नाश्ता करने पहुंचा। असल में मेरे और समर की मीटिंग यहीं होनी थी। मैने पहुंच कर देखा तो समर पहले से ही एक टेबल पर था, वहां भीड़ ज्यादा थी तो लोग टेबल शेयर कर रहे थे। मैं भी एक अजनबी की तरह ही उसके टेबल पर बैठ गया, और अपना ऑर्डर दे दिया। कुछ देर रुकने के बाद जब हमने देखा किसी की नजर हमपर नहीं है तो समर और मैने कुछ बात की।
उसने कहा कि वो कल शाम को नेहा के पिताजी को मेरे ही होटल में लेकर आएगा, और वहीं कमरे में ही हम दोनो बात करेंगे।
अगले दिन मुझे कुछ काम नहीं था तो मैं ऐसे ही मित्तल सर के हॉस्पिटल की ओर चला गया। ये वापी का सबसे बड़ा प्राइवेट हॉस्पिटल था, और बहुत भीड़ रहती थी यहां पर।
वहां मैं कुछ देर बाहर खड़े हो कर नजर रख रहा था, तभी मुझे श्रेय की कार अंदर जाती दिखी तो मैं भी अंदर चला गया।
मेरे सामने लिफ्ट से श्रेय और शिविका ऊपर जाने वाले थे, लिफ्ट में और लोग भी थे, तो मैं भी उसी में चल गया। किस्मत से मैं और शिविका एक दूसरे के अगल बगल ही खड़े थे, मैं सामने देख रहा था, और उसकी नजर मुझ पर पड़ी, और वो मुझे ही देखती रही। फिर हम सब एक फ्लोर पर उतरे, ये हॉस्पिटल का आईसीयू फ्लोर था, इसमें दो तरफ आईसीयू यूनिट बने थे, दाईं तरफ जनरल आईसीयू, जहां साधारण लोग भर्ती होते थे, और बाएं तरफ VIP ward था, उसी में मित्तल सर को रखा गया था। उस तरफ पुलिस का पहरा था। मैं जनरल वार्ड की तरफ बढ़ गया। शिविका की नजर अभी भी मुझ पर ही थी।
जनरल वार्ड का वेटिंग हॉल सामने ही था, और वहां बैठ कर VIP वार्ड पर नजर रखी जा सकती थी। मैं ऐसी जगह देख कर बैठ गया जहां से मेरी नजर पूरे वार्ड पर रहती।
श्रेय और शिविका अंदर का चुके थे, मित्तल सर का कमरा सामने ही था। उनके कमरे के बाहर ही दो कांस्टेब तैनात थे और वो सबकी तलाशी ले कर ही अंदर जाने देते। श्रेय और शिविका की भी तलाशी हुई, ये मुझे कुछ अजीब लगा।
मैं वहां दोपहर तक बैठा रहा, श्रेय और शिविका आधे घंटे बाद चले गए थे। शिविका जाते समय भी इधर उधर सबको देख रही, शायद किसी को ढूंढ रही थी।
शायद मुझे?
दोपहर को मैं वहां से बाहर चला गया और खाना खा कर अपने होटल में जा कर आराम करने लगा। शाम 5 बजे मुझे समर ने फोन करके बताया कि वो नेहा के पापा को लेकर आ रहा है मेरे पास।
अंशुमान वर्मा, नेहा के पिता एक रिटायर सरकारी बैंक कर्मी थे। कोई 3 साल पहले ही वो रिटायर हुए थे, मतलब नेहा की शादी के एक साल बाद। समर मुझे उनसे एक दोस्त के रूप में, जो एक जर्नलिस्ट है, मिलवाने वाला था, ये बोलकर कि मैं इस घटना पर एक स्टोरी कर रहा हूं, उसी के सिलसिले में कुछ सवाल करने हैं।
एक घंटे बाद समर, अंशुमान वर्मा को लेकर मेरे रूम पर आ गया। मैने सबके लिए चाय का ऑर्डर किया, और कुछ देर इधर उधर की बात करने के बाद मैने उनसे ऐसे ही पूछ लिया
"सर, नेहा और संजीव की शादी तो आपकी मर्जी के खिलाफ हुई थी, फिर भी आप संजीव का अंतिम संस्कार करने क्यों आए।"
"किसने कहा कि संजीव और नेहा की शादी मेरी मर्जी के खिलाफ हुई?".....
Ricky bhai ka update to aa gayaShyad mera update aane ke bad aayega Riky007 bhai ka update
अब कोई थ्योरी नहीं, बस सच्चाई सामने आएगी धीरे धीरे।New update with new theory
धन्यवाद भाईRomanchak Pratiksha agle rasprad update ki