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Shayari शायरी और गजल™

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,765
117,182
354
ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन
वो काग़ज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी

मुहल्ले की सबसे पुरानी निशानी
वो बुढ़िया जिसे बच्चे कहते थे नानी
वो नानी की बातों में परियों का डेरा
वो चेहरे की झुर्रियों में सदियों का फेरा
भुलाये नहीं भूल सकता हैं कोई
वो छोटी सी रातें, वो लंबी कहानी

कड़ी धूंप में अपने घर से निकलना
वो चिड़िया, वो बुलबुल, वो तितली पकड़ना
वो गुड़िया की शादी में लड़ना झगड़ना
वो झूलों से गिरना, वो गिर के संभलना
वो पीतल के छल्लों के प्यारे से तोहफ़े
वो टूटी हुई चूड़ियों की निशानी

कभी रेत के उँचे टीलों पे जाना
घरौंदे बनाना, बनाकर मिटाना
वो मासूम चाहत की तस्वीर अपनी
वो ख्वाबों खिलौनों की जागीर अपनी
ना दुनियाँ का ग़म था, ना रिश्तों के बंधन
बड़ी खुबसूरत थी वो ज़िंदगानी

-सुदर्शन फ़ाकिर
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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दिन डूबा तुम याद आए
दीप जला तुम याद आए

जब जब मेरे आँगन में
फूल खिला तुम याद आए

दरवाज़े पर आहट से
दिल धड़का तुम याद आए

जब भी दिल पर कोई ताज़ा
ज़ख़्म लगा तुम याद आए

-नसीम अजमेरी
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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तुमको देखा तो ये ख़याल आया
ज़िन्दगी धूप तुम घना साया

आज फिर दिल ने इक तमन्ना की
आज फिर दिल को हमने समझाया

तुम चले जाओगे तो सोचेंगे
हमने क्या खोया, हमने क्या पाया

हम जिसे गुनगुना नहीं सकते
वक़्त ने ऐसा गीत क्यूँ गाया

-जावेद अख़्तर
 

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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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इश्क़ कि दास्तान है प्यारे,
अपनी अपनी ज़ुबान है प्यारे।

हम ज़माने से इन्तक़ाम तो लें,
एक हसीं दरमियान है प्यारे।

तू नहीं मैं हूँ, मैं नहीं तू है,
अब कुछ ऐसा गुमान है प्यारे।

रख क़दम फूँक फूँक कर नादाँ,
ज़र्रे ज़र्रे में जान है प्यारे।

~जिगर मुरादाबादी
 

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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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हमसफ़र होता कोई तो बाँट लेते दूरियाँ,
राह चलते लोग क्या समझें मेरी मजबूरियाँ।

मुस्कुराते ख़्वाब चुनती गुनगुनाती ये नज़र,
किस तरह समझे मेरी क़िस्मत की नामंज़ूरियाँ।

हादसों की भीड़ है चलता हुआ ये कारवाँ,
ज़िन्दगी का नाम है लाचारियाँ मजबूरियाँ।

फिर किसी ने आज छेड़ा ज़िक्र-ए-मंजिल इस तरह,
दिल के दामन से लिपटने आ गई हैं दूरियाँ।

~सरदार अंजुम
 

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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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आईना सामने रखोगे तो याद आऊँगा
अपनी ज़ुल्फ़ों को सँवारोगे तो याद आऊँगा

भूल जाना मुझे आसान नहीं है इतना
जब मुझे भूलना चाहोगे तो याद आऊँगा

एक दिन भीगे थे बरसात में हम तुम दोनों
अब जो बरसात में भीगोगे तो याद आऊँगा

याद आऊँगा उदासी की जो रुत आयेगी
जब कोई जश्न मनाओगे तो याद आऊँगा

-राजेन्द्र नाथ ‘रहबर’
 

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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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ग़म का ख़ज़ाना तेरा भी है मेरा भी
ये नज़राना तेरा भी है मेरा भी

अपने ग़म को गीत बना कर गा लेना
राग पुराना तेरा भी है मेरा भी

तू मुझ को और मैं तुझ को समझाऊँ क्या
दिल दीवाना तेरा भी है मेरा भी

शहर में गलियों गलियों जिस का चर्चा है
वो अफ़साना तेरा भी है मेरा भी

मैख़ाने की बात न कर वाइज़ मुझ से
आना जाना तेरा भी है मेरा भी

-शाहिद कबीर
 

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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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बहुत मिलेंगे हसीन चेहरे मोहब्बत के इस बाजार में,
वो मुकद्दर से मिलता है जिसका दिल खूबसूरत होता है।।
 

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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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किताबें तो बहुत पढ ली तुमने.्,
मेरे दिल का हाल पढो तो जानू।।
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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सूरज, सितारे चाँद मेरे साथ में रहे।
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहे।।

साँसों की तरह साथ रहे सारी ज़िंदगी,
तुम ख़्वाब से गए तो ख़्यालात में रहे।।

हर बूँद तीर बन के उतरती है रूह में,
तन्हा मेरा तरह कोई बरसात में रहे।।

हर रंग हर मिज़ाज में पाया है आपको,
मौसम तमाम आपकी ख़िदमत में रहे।।

शाखों से टूट जाएं वो पत्ते नहीं हैं हम,
आँधी से कोई कह दे के औक़ात में रहे।।

______राहत इंदौरी
 
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