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Shayari शायरी और गजल™

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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क्या खरीदोगे ये बाज़ार बहुत महंगा है।
प्यार की ज़िद न करो प्यार बहुत महंगा है।।

चाहने वालों की एक भीड़ लगी रहती है,
आज कल आपका दीदार बहुत महंगा है।।

इश्क़ में वादा निभाना कोई आसान नहीं,
करके पछताओगे इक़रार बहुत महंगा है।।

आज तक तुमने खिलौने ही ख़रीदे होंगे,
दिल है ये दिल मेरे सरकार बहुत महंगा है।।

_______राहत इंदौरी
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,765
117,168
354
कहीं अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूँगा उसे।
जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे।।

मुझे वो छोड़ गया ये कमाल है उस का,
इरादा मैं ने किया था कि छोड़ दूँगा उसे।।

बदन चुरा के वो चलता है मुझ से शीशा-बदन,
उसे ये डर है कि मैं तोड़ फोड़ दूँगा उसे।।

पसीने बाँटता फिरता है हर तरफ़ सूरज,
कभी जो हाथ लगा तो निचोड़ दूँगा उसे।।

मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को,
समझ रही थी कि ऐसे ही छोड़ दूँगा उसे।।

_______राहत इंदौरी
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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354
सिर्फ़ ख़ंजर ही नहीं आँखों में पानी चाहिए।
ऐ ख़ुदा दुश्मन भी मुझ को ख़ानदानी चाहिए।।

शहर की सारी अलिफ़-लैलाएँ बूढ़ी हो चुकीं,
शाहज़ादे को कोई ताज़ा कहानी चाहिए।।

मैं ने ऐ सूरज तुझे पूजा नहीं समझा तो है,
मेरे हिस्से में भी थोड़ी धूप आनी चाहिए।।

मेरी क़ीमत कौन दे सकता है इस बाज़ार में,
तुम ज़ुलेख़ा हो तुम्हें क़ीमत लगानी चाहिए।।

ज़िंदगी है इक सफ़र और ज़िंदगी की राह में,
ज़िंदगी भी आए तो ठोकर लगानी चाहिए।।

मैं ने अपनी ख़ुश्क आँखों से लहू छलका दिया,
इक समुंदर कह रहा था मुझ को पानी चाहिए।।

________राहत इंदौरी
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,765
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अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गए।
कितने शरीफ़ लोग थे सब खुल के आ गए।।

सूरज से जंग जीतने निकले थे बेवक़ूफ़,
सारे सिपाही मोम के थे घुल के आ गए।।

मस्जिद में दूर दूर कोई दूसरा न था,
हम आज अपने आप से मिल-जुल के आ गए।।

नींदों से जंग होती रहेगी तमाम उम्र,
आँखों में बंद ख़्वाब अगर खुल के आ गए।।

सूरज ने अपनी शक्ल भी देखी थी पहली बार,
आईने को मज़े भी तक़ाबुल के आ गए।।

अनजाने साए फिरने लगे हैं इधर उधर,
मौसम हमारे शहर में काबुल के आ गए।।

________राहत इंदौरी
 

Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
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Moderator
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अंदर का ज़हर चूम लिया धुल के आ गए।
कितने शरीफ़ लोग थे सब खुल के आ गए।।

सूरज से जंग जीतने निकले थे बेवक़ूफ़,
सारे सिपाही मोम के थे घुल के आ गए।।

मस्जिद में दूर दूर कोई दूसरा न था,
हम आज अपने आप से मिल-जुल के आ गए।।

नींदों से जंग होती रहेगी तमाम उम्र,
आँखों में बंद ख़्वाब अगर खुल के आ गए।।

सूरज ने अपनी शक्ल भी देखी थी पहली बार,
आईने को मज़े भी तक़ाबुल के आ गए।।

अनजाने साए फिरने लगे हैं इधर उधर,
मौसम हमारे शहर में काबुल के आ गए।।

________राहत इंदौरी

ये लाल डिबिया में जो पड़ी है वो मुँह दिखाई पड़ी रहेगी
जो मैं भी रूठा तो सुब्ह तक तू सजी सजाई पड़ी रहेगी

न तू ने पहने जो अपने हाथों में मेरी इन उँगलियों के कंगन
तो सोच ले कितनी सूनी सूनी तिरी कलाई पड़ी रहेगी

हमारे घर से यूँ भाग जाने पे क्या बनेगा मैं सोचता हूँ
मोहल्ले-भर में कई महीनों तलक दहाई पड़ी रहेगी

जहाँ पे कप के किनारे पर एक लिपस्टिक का निशान होगा
वहीं पे इक दो क़दम की दूरी पे एक टाई पड़ी रहेगी

और अब मिठाई की क्या ज़रूरत मैं तुझ से मिल-जुल के जा रहा हूँ
मगर है अफ़्सोस तेरे हाथों की रस मलाई पड़ी रहेगी

जो मेरी मानो तो मेरे ऑफ़िस मैं कोई मर्ज़ी की जॉब कर लो
कि हम ने क्या काम-वाम करना है कारवाई पड़ी रहेगी

हमारे सपने कुछ इस तरह से जगाए रखेंगे रात सारी
कि दिन चढ़े तक तो मेरी बाहोँ में कसमसाई पड़ी रहेगी

इस एक बिस्तर पे आज कोई नई कहानी जन्म न ले ले
अगर यूँ ही इस पे सिलवटों से भरी रज़ाई पड़ी रहेगी

मेरी मोहब्बत के तीन दर्जे हैं सहल मुश्किल या ग़ैर-मुमकिन
तो एक हिस्सा ही झेल पाएगी दो तिहाई पड़ी रहेगी
- Amir Ameer​
:dance2:
 
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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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ये लाल डिबिया में जो पड़ी है वो मुँह दिखाई पड़ी रहेगी
जो मैं भी रूठा तो सुब्ह तक तू सजी सजाई पड़ी रहेगी

न तू ने पहने जो अपने हाथों में मेरी इन उँगलियों के कंगन
तो सोच ले कितनी सूनी सूनी तिरी कलाई पड़ी रहेगी

हमारे घर से यूँ भाग जाने पे क्या बनेगा मैं सोचता हूँ
मोहल्ले-भर में कई महीनों तलक दहाई पड़ी रहेगी

जहाँ पे कप के किनारे पर एक लिपस्टिक का निशान होगा
वहीं पे इक दो क़दम की दूरी पे एक टाई पड़ी रहेगी

और अब मिठाई की क्या ज़रूरत मैं तुझ से मिल-जुल के जा रहा हूँ
मगर है अफ़्सोस तेरे हाथों की रस मलाई पड़ी रहेगी

जो मेरी मानो तो मेरे ऑफ़िस मैं कोई मर्ज़ी की जॉब कर लो
कि हम ने क्या काम-वाम करना है कारवाई पड़ी रहेगी

हमारे सपने कुछ इस तरह से जगाए रखेंगे रात सारी
कि दिन चढ़े तक तो मेरी बाहोँ में कसमसाई पड़ी रहेगी

इस एक बिस्तर पे आज कोई नई कहानी जन्म न ले ले
अगर यूँ ही इस पे सिलवटों से भरी रज़ाई पड़ी रहेगी

मेरी मोहब्बत के तीन दर्जे हैं सहल मुश्किल या ग़ैर-मुमकिन
तो एक हिस्सा ही झेल पाएगी दो तिहाई पड़ी रहेगी
- Amir Ameer​
:dance2:
Bahut khoob :perfect:
 
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TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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तुम से न मिल के ख़ुश हैं वो दावा किधर गया।
दो रोज़ में गुलाब सा चेहरा उतर गया।।

जान-ए-बहार तुम ने वो काँटे चुभोए हैं,
मैं हर गुल-ए-शगुफ़्ता को छूने से डर गया।।

इस दिल के टूटने का मुझे कोई ग़म नहीं,
अच्छा हुआ कि पाप कटा दर्द-ए-सर गया।।

मैं भी समझ रहा हूँ कि तुम तुम नहीं रहे,
तुम भी ये सोच लो कि मिरा 'कैफ़' मर गया।।

_____कैफ़ भोपाली
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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सिर्फ़ इतने जुर्म पर हंगामा होता जाए है।
तेरा दीवाना तिरी गलियों में देखा जाए है।।

आप किस किस को भला सूली चढ़ाते जाएँगे,
अब तो सारा शहर ही मंसूर बनता जाए है।।

दिलबरों के भेस में फिरते हैं चोरों के गिरोह,
जागते रहियो कि इन रातों में लूटा जाए है।।

तेरा मय-ख़ाना है या ख़ैरात-ख़ाना साक़िया,
इस तरह मिलता है बादा जैसे बख़्शा जाए है।।

मय-कशो आगे बढ़ो तिश्ना-लबो आगे बढ़ो,
अपना हक़ माँगा नहीं जाता है छीना जाए है।।

मौत आई और तसव्वुर आप का रुख़्सत हुआ,
जैसे मंज़िल तक कोई रह-रौ को पहुँचा जाए है।।

______कैफ़ भोपाली
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,765
117,168
354
तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है।
तेरे आगे चाँद पुराना लगता है।।

तिरछे तिरछे तीर नज़र के लगते हैं,
सीधा सीधा दिल पे निशाना लगता है।।

आग का क्या है पल दो पल में लगती है,
बुझते बुझते एक ज़माना लगता है।।

पाँव ना बाँधा पंछी का पर बाँधा,
आज का बच्चा कितना सियाना लगता है।।

सच तो ये है फूल का दिल भी छलनी है,
हँसता चेहरा एक बहाना लगता है।।

सुनने वाले घंटों सुनते रहते हैं,
मेरा फ़साना सब का फ़साना लगता है।।

'कैफ़' बता क्या तेरी ग़ज़ल में जादू है,
बच्चा बच्चा तेरा दिवाना लगता है।।

_______कैफ़ भोपाली
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,765
117,168
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कहीं न था वो दरिया जिस का साहिल था मैं।
आँख खुली तो इक सहरा के मुक़ाबिल था मैं।।

हासिल कर के तुझ को अब शर्मिंदा सा हूँ,
था इक वक़्त कि सच-मुच तेरे क़ाबिल था मैं।।

किस एहसास-ए-जुर्म की सब करते हैं तवक़्क़ो',
इक किरदार किया था जिस में क़ातिल था मैं।।

कौन था वो जिस ने ये हाल किया है मेरा,
किस को इतनी आसानी से हासिल था मैं।।

सारी तवज्जोह दुश्मन पर मरकूज़ थी मेरी,
अपनी तरफ़ से तो बिल्कुल ही ग़ाफ़िल था मैं।।

जिन पर मैं थोड़ा सा भी आसान हुआ हूँ,
वही बता सकते हैं कितना मुश्किल था मैं।।

नींद नहीं आती थी साज़िश के धड़के में,
फ़ातेह हो कर भी किस दर्जा बुज़दिल था मैं।।

घर में ख़ुद को क़ैद तो मैं ने आज किया है,
तब भी तन्हा था जब महफ़िल महफ़िल था मैं।।

_______शारिक़ कैफ़ी
 
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