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Shayari शायरी और गजल™

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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तू चाहता है किसी और को पता न लगे,
मैं तेरे साथ फिरूं और मुझे हवा न लगे!!

तुम्हारे तक मैं बहुत दिल दुखा के पहुंचा हूं,
दुआ करो कि मुझे कोई बददुआ न लगे!!

तुझे तो चाहिए है और ऐसा चाहिए है,
जो तुझसे इश्क़ करे और मुबतला न लगे!!

मैं तेरे बाद कोई तेरे जैसा ढूंढता हूं,
जो बेवफ़ाई करे और बेवफ़ा न लगे!!

हज़ार इश्क़ करो लेकिन इतना ध्यान रहे,
कि तुमको पहली मुहब्बत की बददुआ न लगे!!

~अब्बास ताबिश
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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ऐ अँधेरे देख ले मुँह तेरा काला हो गया,
माँ ने आँखें खोल दीं घर में उजाला हो गया!!

राई के दाने बराबर भी न था जिसका वजूद,
नफ़रतों के बीच रह कर वह हिमाला हो गया!!

एक आँगन की तरह यह शहर था कल तक मगर,
नफ़रतों से टूटकर मोती की माला हो गया!!

शहर को जंगल बना देने में जो मशहूर था,
आजकल सुनते हैं वो अल्लाह वाला हो गया!!

हम ग़रीबों में चले आए बहुत अच्छा किया,
आज थोड़ी देर को घर में उजाला हो गया!!

~मुनव्वर राना
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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झुक के चलता हूँ कि क़द उसके बराबर न लगे,
दूसरा ये कि उसे राह में ठोकर न लगे!!

ये तेरे साथ तअ'ल्लुक़ का बड़ा फ़ायदा है,
आदमी हो भी तो औक़ात से बाहर न लगे!!

नीम तारीक सा माहौल है दरकार मुझे,
ऐसा माहौल जहाँ आँख लगे डर न लगे!!

माँओं ने चूमना होते हैं बुरीदा सर भी,
उस से कहना कि कोई ज़ख़्म जबीं पर न लगे!!

ये तलबगार निगाहों के तक़ाज़े हर सू,
कोई तो ऐसी जगह हो जो मुझे घर न लगे!!

ये जो आईना है देखूँ तो ख़ला दिखता है,
इस जगह कुछ भी न लगवाऊँ तो बेहतर न लगे!!

तुम ने छोड़ा तो किसी और से टकराऊँगा मैं,
कैसे मुमकिन है कि अंधे का कहीं सर न लगे!!

~ उमैर नजमी
 

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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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मर भी जाऊँ तो कहाँ लोग भुला ही देंगे,
लफ़्ज़ मेरे मिरे होने की गवाही देंगे!!!

लोग थर्रा गए जिस वक़्त मुनादी आई,
आज पैग़ाम नया ज़िल्ल-ए-इलाही देंगे!!!

झोंके कुछ ऐसे थपकते हैं गुलों के रुख़्सार,
जैसे इस बार तो पत-झड़ से बचा ही देंगे!!!

हम वो शब-ज़ाद कि सूरज की इनायात में भी,
अपने बच्चों को फ़क़त कोर-निगाही देंगे!!!

आस्तीं साँपों की पहनेंगे गले में माला,
अहल-ए-कूफ़ा को नई शहर-पनाही देंगे!!!

शहर की चाबियाँ आदा के हवाले कर के,
तोहफ़तन फिर उन्हें मक़्तूल सिपाही देंगे!!!

~परवीन शाकिर
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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जवानी ज़िंदगानी है न तुम समझे न हम समझे,
ये इक ऐसी कहानी है न तुम समझे न हम समझे!!

हमारे और तुम्हारे वास्ते में इक नया-पन था,
मगर दुनिया पुरानी है न तुम समझे न हम समझे!!

अयाँ कर दी हर इक पर हम ने अपनी दास्तान-ए-दिल,
ये किस किस से छुपानी है न तुम समझे न हम समझे!!

जहाँ दो दिल मिले दुनिया ने काँटे बो दिए अक्सर,
यही अपनी कहानी है न तुम समझे न हम समझे!!

मोहब्बत हम ने तुम ने एक वक़्ती चीज़ समझी थी,
मोहब्बत जावेदानी है न तुम समझे न हम समझे!!

गुज़ारी है जवानी रूठने में और मनाने में,
घड़ी-भर की जवानी है न तुम समझे न हम समझे!!

मता-ए-हुस्न-ओ-उल्फ़त पर यक़ीं कितना था दोनों को,
यहाँ हर चीज़ फ़ानी है न तुम समझे न हम समझे!!

अदा-ए-कम-निगाही ने किया रुस्वा मोहब्बत को,
ये किस की मेहरबानी है न तुम समझे न हम समझे!!

~सबा अकबराबादी
 

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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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देख तो दिल कि जाँ से उठता है,
ये धुआँ सा कहाँ से उठता है!!

गोर किस दिलजले की है ये फ़लक,
शोला इक सुब्ह याँ से उठता है!!

ख़ाना-ए-दिल से ज़ीनहार न जा,
कोई ऐसे मकाँ से उठता है!!

नाला सर खींचता है जब मेरा,
शोर इक आसमाँ से उठता है!!

लड़ती है उस की चश्म-ए-शोख़ जहाँ,
एक आशोब वाँ से उठता है!!

सुध ले घर की भी शोला-ए-आवाज़,
दूद कुछ आशियाँ से उठता है!!

बैठने कौन दे है फिर उस को,
जो तिरे आस्ताँ से उठता है!!

यूँ उठे आह उस गली से हम,
जैसे कोई जहाँ से उठता है!!

इश्क़ इक 'मीर' भारी पत्थर है,
कब ये तुझ ना-तवाँ से उठता है!!

~मीर तकी मीर
 

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तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किस का था
न था रक़ीब तो आख़िर वो नाम किस का था

वो क़त्ल कर के मुझे हर किसी से पूछते हैं
ये काम किस ने किया है ये काम किस का था

वफ़ा करेंगे निबाहेंगे बात मानेंगे
तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था

रहा न दिल में वो बेदर्द और दर्द रहा
मुक़ीम कौन हुआ है मक़ाम किस का था

न पूछ-गछ थी किसी की वहाँ न आव-भगत
तुम्हारी बज़्म में कल एहतिमाम किस का था

हमारे ख़त के तो पुर्ज़े किए पढ़ा भी नहीं
सुना जो तू ने ब-दिल वो पयाम किस का था

तमाम बज़्म जिसे सुन के रह गई मुश्ताक़
कहो वो तज़्किरा-ए-ना-तमाम किस का था

उठाई क्यूँ न क़यामत अदू के कूचे में
लिहाज़ आप को वक़्त-ए-ख़िराम किस का था

गुज़र गया वो ज़माना कहूँ तो किस से कहूँ
ख़याल दिल को मिरे सुब्ह ओ शाम किस का था

हमें तो हज़रत-ए-वाइज़ की ज़िद ने पिलवाई
यहाँ इरादा-ए-शर्ब-ए-मुदाम किस का था

अगरचे देखने वाले तिरे हज़ारों थे
तबाह-हाल बहुत ज़ेर-ए-बाम किस का था

वो कौन था कि तुम्हें जिस ने बेवफ़ा जाना
ख़याल-ए-ख़ाम ये सौदा-ए-ख़ाम किस का था

इन्हीं सिफ़ात से होता है आदमी मशहूर
जो लुत्फ़ आम वो करते ये नाम किस का था

हर इक से कहते हैं क्या 'दाग़' बेवफ़ा निकला
ये पूछे उन से कोई वो ग़ुलाम किस का था

~Dagh Dehalvi
 

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कितना दुश्वार था दुनिया ये हुनर आना भी
तुझ से ही फ़ासला रखना तुझे अपनाना भी

कैसी आदाब-ए-नुमाइश ने लगाईं शर्तें
फूल होना ही नहीं फूल नज़र आना भी

दिल की बिगड़ी हुई आदत से ये उम्मीद न थी
भूल जाएगा ये इक दिन तिरा याद आना भी

जाने कब शहर के रिश्तों का बदल जाए मिज़ाज
इतना आसाँ तो नहीं लौट के घर आना भी

ऐसे रिश्ते का भरम रखना कोई खेल नहीं
तेरा होना भी नहीं और तिरा कहलाना भी

ख़ुद को पहचान के देखे तो ज़रा ये दरिया
भूल जाएगा समुंदर की तरफ़ जाना भी

जानने वालों की इस भीड़ से क्या होगा 'वसीम'
इस में ये देखिए कोई मुझे पहचाना भी

~Wasim Barelvi
 

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शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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117,182
354
कैसे कैसे हादसे सहते रहे,
फिर भी हम जीते रहे हँसते रहे।

उसके आ जाने की उम्मीदें लिए,
रास्ता मुड़ मुड़ के हम तकते रहे।

वक़्त तो गुज़रा मगर कुछ इस तरह,
हम चराग़ों की तरह जलते रहे।

कितने चेहरे थे हमारे आस-पास,
तुम ही तुम दिल में मगर बसते रहे।

~वाजिदा तबस्सुम
 

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सुना था के वो आयेंगे अंजुमन में,
सुना था के उनसे मुलाकात होगी
हमे क्या पता था, हमे क्या खबर थी,
ना ये बात होगी, ना वो बात होगी

मैं कहता हूँ इस दिल को दिल में बसा लो,
वो कहते हैं हमसे, निगाहे मिला लो
निगाहों को मालूम क्या दिल की हालत,
निगाहों- निगाहों में क्या बात होगी

हमे खींचकर इश्क़ लाया हे तेरा,
तेरे दर पे हमने लगाया हे डेरा
हमे होगा जब-तक ना दीदार तेरा,
यहीं सुबह होगी, यहीं रात होगी

मुहब्बत का जब हमने छेड़ा फ़साना,
तो गोरे से मुखड़े पे आया पसीना
जो निकले थे घर से, तो क्या जानते थे,
के यूँ धूप में आज बरसात होगी

ख़फ़ा हमसे होके वो बैठे हुए हैं,
रक़ीबों में घिर के वो बैठे हुए हैं
ना वो देखते हैं,ना हम देखते हैं,
यहाँ बात होगी, तो क्या बात होगी

-क़मर जलालाबादी
 
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