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Updated...अपडेट कब दोगे भाई लंड में माल जमा है कितने दिनों से झरना है जल्दी से एक दमदार अपडेट दे दो
Behtreen update bro ab lagta hai Mausam or uske BAAP ka milan jaldi hi hoga or fir threesomबहोत उदास हो गई फाल्गुनी.. जिंदगी ऐसे कठिन मोड पर लाकर खड़ा कर देगी ऐसा उसने कभी नही सोचा था.. सोचते सोचते कब दोनों की आँख लग गई उन्हे पता ही नही चला..
सुबह साढ़े छह बजे एलार्म बजते ही सब से पहले वैशाली की आँख खुली.. उसने धक्का देकर मौसम को जगाया.. अपने नंगे जिस्म को देखकर.. वैशाली को पिछली रात की रंगीन घटनाएं याद आ गई.. मन ही मन मुस्कुराते हुए उसने मौसम को हाथ से सहारा देकर उठाया और गुड मॉर्निंग कहते हुए उसे गले से लगा लिया.. स्तन से स्तन मिलें.. और स्तनों ने भी आपस में सुप्रभातम कर लिया..
"अब इस चुड़ैल को भी जगा..फिर हम तीनों बाथरूम में एक साथ नहायेंगे.. सब के सामने तैयार होकर जाने से पहले.. एक एक ऑर्गैज़म हो जाए.. फिर किसी की ओर आकर्षण होने का कोई खतरा नही.. वरना इस छुपी रुस्तम फाल्गुनी का कुछ कह नही सकते.. माउंट आबू में ही किसी को ढूंढकर उसके नीचे लेट जाएगी.. और फिर हम से कहेगी.. सात-आठ बार नही पर नौ बार चुदवाया है.. अभी भी साली मादरचोद ने उसका नाम नही बताया.. और ये भी नही बताया की सात-आठ बार एक ही लंड लिया था या हर बार अलग अलग था.. !!"
सुबह-सुबह वैशाली के मुंह से यह नंग-धड़ंग बातें सुनकर मौसम की चूत में कुछ कुछ होने लगा.. मौसम खड़ी हुई और वैशाली को उसकी निप्पल से खींचते हुए बाथरूम के अंदर ले गई.. और इंग्लिश कमोड पर बैठकर पेशाब करने लगी.. उसने निप्पल पकड़े रखी थी.. वैशाली ने कहा "क्या कर रही है यार तू? दर्द हो रहा है.. ऐसे भी भला कोई निप्पल खींचता है क्या!! दिमाग-विमाग है या नही? नहाना मुझे भी है.. ऐसे ही थोड़े बिना नहाए साइट सीइंग के लिए निकल पड़ूँगी!! अब जल्दी खतम कर और खड़ी हो जा.. मुझे भी बड़ी जोर से लगी है" मौसम के हाथ से अपनी निप्पल छुड़वाते हुए वैशाली ने थोड़े गुस्से से कहा
पर मौसम ने उसकी एक न सुनी.. और आराम से कमोड पर ही बैठकर मुस्कुराते रही.. आखिर थककर वैशाली बाथरूम के फर्श पर ही उकड़ूँ बैठ गई और मूतने लगी.. दोनों की पेशाब की धार की आवाज पूरे बाथरूम में गूंज रही थी..
वैशाली: "वो रांड अब तक जागी क्यों नही? रात को कहीं किसी वेटर के साथ चुदवाने तो नही गई थी ना.. !! उसका कुछ कह नही सकते" मौसम के गले में अपने बाहों का हार डालकर उसकी नाक से अपनी नाक रगड़ते हुए उसने कहा
मौसम ने झुककर अपना हाथ वैशाली की मूत रही चूत पर लगाया और पेशाब की धार से अपनी हथेली गीली करके खुद की चूत पर मल दिया और आँखें बंद कर किसी दूसरी दुनिया में ही पहुँच गई और बोली "आहाहाहा.. वैशाली कितना गुनगुना और गरम लग रहा है यार!! मन कर रही है की टांगें चौड़ी करके यहीं नीचे लेट जाऊँ.. और तेरे पेशाब की धार सीधी अपने चूत में लूँ.. "
मौसम के सुंदर स्तनों को दबाते हुए वैशाली ने कहा "अरे यार.. पहली बता देती.. चूत में क्यों.. तेरे मुंह में ही मेरी धार मार देती.. ऐसा मस्त नमकीन स्वाद तुझे और कहीं चखने को नही मिलेगा.. "
मौसम को घिन आ गई "छी छी यार.. मुंह में भी कभी कोई मुतता है क्या!!!"
वैशाली: "यार मौसम.. ये फाल्गुनी हमे उस चोदनेवाला का नाम क्यों नही बता रही? कोई बहोत बड़ा राज है क्या?"
मौसम: "रात को हम दोनों के बीच इस बारे में काफी कहा सुनी हुई थी.. तू सो गई उसके बाद.. मैंने कितनी बार पूछा पर उसने बताया ही नही.. इतना बुरा लगा मुझे.. दोस्ती में ऐसा भी क्या छुपाना!!! अगर मुझे बता देती तो मैँ कौन सा उसके लवर को छीन लेने वाली थी..!!"
वैशाली: "हाँ यार.. उस बात का मुझे भी बुरा लगा था.. जब हम तीनों इतना खुल चुके थे तब उसे बताने में भला क्या दिक्कत थी?? अब उसे बताना ही ना हो फिर पूछकर क्या काम.. !!"
मौसम: "हमें काम तो कुछ नही पर जानना जरूरी है.. कहीं वो किसी उलटे सीधे मर्द के साथ फंस गई हो तो हम उसकी मदद कर सकते है "
वैशाली सोचने लगी.. मौसम की बात तो सही थी.. एक तरफ फाल्गुनी सेक्स से इतना परहेज करती है.. और फिर भी सात-आठ बार कर चुकी है.. ऐसा कैसे हो सकता है? कहीं किसी के चंगुल में तो नही फंस गई? या फिर कोई ब्लैकमेल कर रहा हो.. ??
वैशाली: "तेरी बात बिल्कुल सही है मौसम.. कुछ तो बड़ा लोचा है.. हमें कुछ करना ही होगा" वैशाली वैसे ही नंगी कमरे में चली गई और फाल्गुनी को जगाकर बाथरूम में खींच लाई..
फाल्गुनी को अंदर लाकर वैशाली ने शावर चालू कर दिया और तीनों एक दूसरे पर पानी उड़ाते हुए खेलने लगी.. पानी का जादू ही कुछ ऐसा होता है की बूढ़े से बूढ़ा आदमी भी उसके संसर्ग में आकर बच्चे जैसा बन जाता है.. गीजर के गरम गुनगुने पानी को एक दूसरे पर उछालते हुए वैशाली दोनों के साथ बातें कर रही थी.. पर मौसम और फाल्गुनी एक दूसरे से नजरें चुरा रही थी.. दोनों बात भी नही कर रही थी.. फाल्गुनी से मौसम का ये बदला बदला सा रूप बर्दाश्त नही हो रहा था.. उसने मौसम पर पानी उड़ाकर उसे मनाने की कोशिश तो की.. पर मौसम तौलिया लेकर बिना कुछ कहें कमरे में चली गई..
वैशाली समझ गई की दोनों के बीच अनबन हुई थी.. मौसम के बाहर जाते ही मौके का फायदा उठाकर वैशाली ने दरवाजा बंद कर लिया और फाल्गुनी को अपनी बाहों में दबा दिया.. फाल्गुनी ने वैशाली के होंठों पर किस करते हुए कहा "देख वैशाली.. जैसे तूने सिखाया था वैसे ही किस करना अब आ गया मुझे"
वैशाली: "अब वो तो होना ही था.. क्यों नही आता भला.. !! आखिर गुरु कौन है तेरी!!! हा हा हा हा.. पर मुझे ऐसी शेखी नही मारनी चाहिए की मैंने ही तुझे किस करना सिखाया" वैशाली ने परोक्ष तरीके से बात छेड ही दी.. फाल्गुनी के स्तनों पर साबुन मलते हुए दूसरा साबुन उसने उसके हाथ में दे दिया.. फाल्गुनी समझ गई और वो भी वैशाली के भरे भरे स्तनों पर साबुन लगाते हुए बोली "मतलब? तू कहना क्या चाहती है?"
वैशाली: "मेरे कहने का ये मतलब है की तूने सात-आठ बार जिसका भी लंड अपनी चूत में दलवाया.. उसने सीधे सीधे तो लंड अंदर नही डाला होगा न.. पहले बूब्स दबाएं होंगे.. चूसे होंगे.. चूत चाटी होगी.. और लिप किस भी की होगी.. फिर मैं ये कैसे कह सकती हूँ की मैंने तुझे सिखाया?"
"वो तो उन्होंने की थी.. मैंने थोड़े ही की थी? जिसने की हो वही जाने.. उनके करने से मुझे किस करना कैसे आ जाता.. !! पर ये बता दूँ.. की तुझे और मौसम को किस करने में जो मज़ा आया था वैसा मज़ा उनके साथ नही आया था यार.. !!"
फाल्गुनी के बोलते ही वैशाली ने नोटिस किया "उन्होंने.. उनके.. " शब्द प्रयोग का अर्थ यह था की फाल्गुनी को चोदने वाला कोई उसकी उम्र का या उसकी आसपास की उम्र का नही था.. कोई बड़ी उम्र का या बुजुर्ग ही हो सकता है.. अब नाम जानने के लिए फाल्गुनी को फुसलाना जरूरी था.. वैशाली का दिमाग भी उसकी माँ शीला जैसा तेज था.. उसने एक तरकीब सोची..
फाल्गुनी की चूत पर साबुन रगड़ते हुए वैशाली ने अपनी एक उंगली अंदर डाली और उसके होंठों पर एक लंबी किस कर दी.. दोनों के साबुन लगे स्तन एक दूसरे के संग दब गए.. चूत में उंगली करते हुए उसने फाल्गुनी से कहा "फाल्गुनी, मेरी एक रीक्वेस्ट है.. "
फाल्गुनी: "हाँ हाँ बोल ना.. !!"
वैशाली: "यार, बात दरअसल यह है की तुझे शायद नही पता होगा.. मेरे और मेरे पति संजय के बीच जरा भी नही बनती.. पिछले काफी समय से हम एक दूसरे से ठीक से बात तक नही करते.. तुझे पता है फाल्गुनी, मर्द तो घूमते रहते है और अपनी जरूरतें बाहर कहीं भी पूरी कर लेते है.. लेकिन हम लड़कियां ऐसा नही कर सकती.. मर्दों को अपनी हवस बुझाने के लिए बाजार में ढेरों लड़कियां मौजूद है जो पैसे लेकर अपने शरीर का सौदा कर लेती है.. पर हम लड़कियों के लिए वो सुविधा भी आसानी से उपलब्ध नही होती.. यार फाल्गुनी, तू अभी कुंवारी है इसलिए शायद मेरी बात समझ में नही आएगी.. पर एक बार हमारी चूत को लंड की आदत पड़ जाती है ना.. फिर उसे वो चाहिए ही चाहिए.. संजय तो अब मुझे छूता तक नही.. या यूं कह लो की मैं उस मादरचोद को हाथ लगाने नही देती.. किसी रांड की चूत में घुसा हुआ लंड मैं क्यों अपने मुंह में लूँ.. ??" वैशाली ऐसे ऐसे शब्दों का प्रयोग कर रही थी जिन्हे सुनकर फाल्गुनी की चूत गरम भांप छोड़ने लगी..
बाथरूम से बाहर आकर मौसम ने कपड़े पहन लिए.. मेकअप भी कर लिया.. लेकिन वैशाली और फाल्गुनी अभी तक बाथरूम में ही घुसी हुई थी.. क्या कर रही होगी वो दोनों अंदर? दरवाजा भी बंद है.. जरूर रात जैसा है कोई कार्यक्रम शुरू किया होगा दोनों ने.. मैं भी अंदर रहती तो मज़ा आता.. वैशाली के साथ वैसे तो बहोत मज़ा आता ही है.. बोल्ड और ब्यूटीफुल है वो.. पर इन दोनों ने दरवाजा अंदर से बंद क्यों कर रखा है? मौसम को ज्यादा विचार करने की जरूरत नही पड़ी क्योंकि दरवाजे के करीब खड़े रहकर उसे वैशाली की बातें स्पष्ट सुनाई दे रही थी.. अब मौसम कान लगाकर उनकी बातें बाहर से सुन रही है उसका पता वैशाली और फाल्गुनी को कैसे चलता.. !!
वैशाली: "मुझे तो हर रात को इतनी इच्छा होती है.. रोज रात होते ही मेरी भूख जाग जाती है और मुझसे बर्दाश्त नही होती.. संजय तो अपनी मस्ती में कहीं पड़ा रहता है.. और मैं यहाँ मर्द के स्पर्श को तरसती और तड़पती रहती हूँ.. फाल्गुनी, मैं भी जवान हूँ.. मेरे भी अरमान है.. जरूरतें है.. ज्यादा से ज्यादा तीन दिनों तक अपनी भूख को सहन कर लेती हूँ.. चौथे दिन तो ऐसा मन करता है की कहीं भाग जाऊँ.. अलग अलग प्रयोग करके खुद को संतुष करने की कोशिश करती हूँ.. पर कितने दिनों तक?? ओरीजीनल लेने में कितना मज़ा आता है.. तुझे तो पता ही है.. !!"
फाल्गुनी: "हाँ यार वैशाली.. तेरी बात बिल्कुल सही हैं.. मैं कितनी भी कोशिश करूँ मुझसे गलती हो ही जाती है.. साला कंट्रोल ही नही रहता.. पर तू मुझसे क्या चाहती है, ये तो बता.. !!"
वैशाली: "बुरा मत मानना फाल्गुनी, तेरा जो भी पार्टनर हो उसे मैं छिनना नही चाहती.. पर एक बार मुझे भी उनसे मिलवा दे.. मुझे बहोत मन कर रहा है यार.. इस चूत में असली लंड गए हुए एक साल से ऊपर हो गया है.. मुझे तो लगता है की मैं पागल हो जाऊँगी.. "
फाल्गुनी: "जो तू कह रही है वो मुमकिन नही हो सकता.. कोई चांस ही नही है:
वैशाली: "मैं समझ सकती हूँ यार.. पर अगर तेरे पार्टनर के साथ मुमकिन न हो तो उसके कोई दोस्त से सेटिंग करवा दे.. हम दोनों मिलकर मजे करेंगे"
फाल्गुनी: "यार वैशाली, मैं तुझे कैसे समझाऊँ? ये पोसीबल ही नहीं ये.. वो मौसम भी यही बात को लेकर मुझसे रूठी हुई है.. उसे भी नाम जानना है.. अगर मैं उसे नाम बता दूँगी तो उसकी क्या हालत होगी वो नही जानती.. और तुम भी कल रात से इसी जिद पर अडी हुई हो..!!"
मौसम दरवाजे पर कान चिपकाकर ये सारी बातें बड़े ध्यान से सुन रही थी.. उसकी सांसें गले में अटक गई थी.. कहीं कोई बात सुनने में रह न जाए इसलिए वो एकटक अपना ध्यान अंदर की बातों पर केंद्रित कर सुन रही थी.. उसे वैशाली की बात सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ.. एक स्त्री होकर कैसे वो अपनी दोस्त का पार्टनर मांग रही थी!!!! वो भी सेक्स करने के लिए ?? माय गॉड.. एक नंबर की बेशर्म है साली.. !!"
फाल्गुनी: "वैशाली, जैसा तूने कहा की मर्दों को पैसे देकर लड़कियां मिल जाती है.. तो क्या संजय भी ऐसी लड़कियों के साथ संबंध रखता है ??"
वैशाली की उंगलियों का जादुई असर अब फाल्गुनी पर हो रहा था.. उत्तेजित होकर वो विचित्र सवाल पूछ रही थी जिनका जवाब भी उत्तेजना और अश्लीलता से भरपूर ही होने वाला था
वैशाली: "हाँ यार.. दो दो महिना बाहर रहकर जब वो घर आता है.. तब इतने आराम से मेरे बगल में लेटे हुए बिना कुछ कीये पड़ा रहता है.. देखकर ही पता चल जाता है की वो अपनी आग कहीं और बुझाकर आया है.. बाकी ऐसा कौन सा पति होगा जो दो महीने तक अपनी पत्नी से दूर रहकर वापिस आयें और अपनी पत्नी को हाथ भी ना लगाएं.. !!!"
फाल्गुनी: "सही बात है.. मर्द लोग तो कुछ भी कर सकते है.. ना जगह देखते है.. न समय देखते है.. जब मन करे तब छेड़ने लगते है.. हम लोगों तो कितनी शर्म आती है पर उन्हें तो कोई शर्म ही नही होती.. !!"
वैशाली: "जैसे पुरुषों के लिए लड़कियों और औरतों का बाजार होता है वैसे ही हम लड़कियों के लिए भी लड़कों/मर्दों का बाजार होता तो कितना अच्छा होता.. !! मेरी जैसी भूखी लड़कियां.. विधवा.. तलाकशुदा औरतें.. वहाँ जाकर अपनी पसंद के लड़के से चुदकर हवस को शांत कर पाती.. ये भूख अब सही नही जाती.. तू मानेगी नही.. इतना मन करता है की तुझे क्या बताऊँ?? कल रात तुम दोनों ने देखा था न.. कितनी गरम हो गई थी मैं!! ये जानते हुए की मेरी खुजली शांत कर सकें ऐसा लंड हाजिर नहीं है फिर भी कैसे मैंने मेरी चूत को तेरे और मौसम के चेहरे पर चिपका दिया था!! अब तुझसे क्या छुपाना.. संजय की उपेक्षा से मैं तंग आकर मैं यहाँ अपनी मम्मी के पास आ गई.. और सेक्स की इतनी तीव्र इच्छा हो रही थी की मैंने मम्मी की गैरमौजूदगी में अपने कॉलेज के पुराने फ्रेंड को घर बुलाकर चुदवा लिया.. तब जाके नीचे थोड़ी ठंडक मिली.. पर मुसीबत ये है की एक बार करने पर भूख थोड़े समय के लिए शांत तो हो जाती है.. पर दो-तीन बितते है वापिस अंदाई लेकर भूख जाग जाती है.. कभी कभी तो पुरुषों को देखकर इतने गंदे गंदे विचार आने लगते है मन में की क्या बताऊँ? मन करता है की उनको वहीं धर दबोचूँ और अपनी चूत में उनका लंड ले लूँ.. अब ऐसे मैं कहीं मुझसे कोई बड़ी गलती हो गई तो?? इसीलिए मैंने तुझसे कहा.. की तू जिसके साथ मजे करती है उसके साथ मेरी भी सेटिंग करवा दे.. तू बुरा मत मानना.. पर तू तो कुछ दिनों में चली जाएगी.. फिर मुझे ऐसा चांस दोबारा नही मिलेगा.. मुझे एक बार तो मजे कर लेने दे यार.. तुझे क्या दिक्कत है?? पर जब तू नाम भी नही बता रही तो करने देने का कोई सवाल ही नही उठता.. " एक भारी सांस छोड़ते हुए वैशाली ने कहा
फाल्गुनी: वैशाली, तू मेरे पार्टनर के साथ सेक्स करें उसमें मुझे कोई प्रॉब्लेम नही है.. पर मैं उलझन में हूँ.. अगर मैं वो नाम बता दूँगी तो तू मेरे बारे में क्या सोचेगी!!! और मौसम को पता चलेगा तो उसके सर पर आसमान टूट पड़ेगा.. !!"
वैशाली: 'मैं प्रोमिस करती हूँ.. ये बात मौसम को कभी पता नही चलेगी.. तुझे मुझपर इतना भरोसा तो होना चाहिए.. और वैसे भी मैं कुछ दिनों में वापिस कलकत्ता चली जाऊँगी.. तेरा राज मेरे सीने में महफूज रहेगा.. "
फाल्गुनी: "बात तो तेरी ठीक है.. पर कहते हुए मेरी जबान नही चलती.. प्लीज यार.. !!"
वैशाली: "फाल्गुनी, तू नाम देने में जितना शरमा रही है.. उतनी ही मेरी बेसब्री बढ़ते जा रही है.. अगर तूने मुझे नाम बता दिया.. तो मैं मौसम से तेरी दोस्ती फिर से करवा दूँगी.. बिना उसे कुछ बताएं.. ये मेरा वादा है.. " वैशाली ने फाल्गुनी के दोनों स्तनों को दबाकर उसे उत्तेजित कर दिया.. शावर का गरम पानी उसकी चूत से होकर टपकते हुए उसे बेहद आनंद दे रहा था
फाल्गुनी: "ये कैसे मुमकिन होगा वैशाली? बिना नाम जाने मौसम नही मानेगी.. और मैं किसी भी सूरत में उसे नाम नही बता पाऊँगी.. नाम बता दूँगी तो भी हम दोनों की दोस्ती हमेशा हमेशा के लिए टूटने वाली है फिर मैं क्यों बेकार में उसके पापा का नाम बदनाम करूँ???"
वैशाली की सिट्टी-पीट्टी गुम हो गई.. उसके मुंह से चीख निकल गई "मतलब तू मौसम के पापा के साथ..............!!!!!!!!!!!!!!!!" वहीं चीख दरवाजे से होते हुए मौसम के कानों तक पहुँच गई और फिर हवा में ओजल हो गई..
फाल्गुनी: "धीरे बोल वैशाली.. कहीं मौसम ने सुन लिया तो गजब हो जाएगा.. वो तो जान से मार देगी मुझे.. "
वैशाली: "फाल्गुनी, मौसम के पापा के साथ तेरा संपर्क कैसे हुआ? कैसे शुरू हुआ ये सब? कुछ विस्तार से बता तो पता चले मुझे" वैशाली ने एक मिशन तो पार कर लिया था अब दूसरे की तैयारी करने लगी..
फाल्गुनी: "वो सब बाद में बताऊँगी वैशाली.. हम लोग कब से बाथरूम के अंदर घुसकर बैठे है.. सब नीचे साइट-सीइंग के लिए हमारा इंतज़ार कर रहे होंगे.. मौसम भी क्या सोचेगी हमारे बारे में.. !! और हाँ.. तू मेरी और उसकी दोस्ती करवा दे फिर मैं अपनी कहानी सुनाऊँगी!!"
वैशाली: "उसका हल तो काफी सिम्पल सा है.. तू ऐसे ही किसी का भी नाम बता दे मौसम को.. ऐसे व्यक्ति का नाम बता दे जिसे मौसम जानती तो हो पर उससे कन्फर्म करने ना जा सके "
फाल्गुनी: "ऐसे कैसे किसी का भी नाम ले लूँ?"
वैशाली: "दिमाग पर थोड़ा जोर लगा और सोच.. कोई तो नाम होगा.. कोई बुजुर्ग.. या पड़ोसी या कोई रिश्तेदार.. !!"
"नही यार.. ऐसा कोई नही है जिसका नाम ले सकूँ" फाल्गुनी सोचते हुए बोली
"तुम्हारे कॉलेज का कोई प्रोफेसर? " वैशाली उसे नाम सोचने में मदद करने लगी
"प्रोफेसर तो सारे जवान है.. हाँ प्रिंसिपल सर बूढ़े है.. उनका नाम बता दूँ?" फाल्गुनी खुश हो गई.. अपनी समस्या का हल मिलने पर चमक आ गई उसके चेहरे पर..
"हाँ.. बढ़िया रहेगा.. मौसम तुम्हारे प्रिंसिपल से ये पूछने तो जाएगी नही की.. सर, क्या आप मेरी फ्रेंड को चोदते हो?.. " वैशाली ने कहा
फाल्गुनी: "पूछने जाने का तो सवाल ही नही है.. बहोत ही स्ट्रिक्ट है प्रिंसिपल सर.. चल अब हम दोनों निकलते है बाहर"
वैशाली: "और सुन.. बाहर जाकर.. जैसा मैं कहूँ वैसे ही मौसम से बात करना.. ठीक है"
"ओके.. " कहते हुए फाल्गुनी अपने और वैशाली के गीले जिस्म को तौलिए से पोंछने लगी..
बाहर मौसम की पूरी दुनिया गोल गोल घूम रही थी.. वो बेड पर अपना सर पकड़कर बैठी हुई थी.. पापा?? मेरे पापा?? ऐसा कैसे कर सकते है? फाल्गुनी के साथ सेक्स? मौसम के लिए उन दोनों के बाहर आने से पहले नॉर्मल हो जाना काफी जरूरी था.. नहीं तो उनको पता चल जाता की मौसम ये बात जान चुकी थी.. उसने आईने में देखकर अपना मेकअप ठीक कर लिया और लिपस्टिक लगाते हुए गीत गुनगुनाने लगी..
वैशाली और फाल्गुनी बाथरूम से बाहर निकले.. मौसम को मेकअप में व्यस्त देखकर दोनों के दिल को राहत मिली.. खास कर फाल्गुनी को.. क्यों की उसे डर था की जब वैशाली ने चीखकर उसके पापा का नाम लिया तब शायद मौसम ने सुन लिया हो.. !! डरते डरते उसने तिरछी नज़रों से मौसम की ओर देखा.. मौसम तो बेफिक्री से बैठी हुई थी..
वैशाली: "मौसम.. मैंने इस रंडी से उसके पार्टनर का नाम उगलवा लिया"
मौसम: "वैशाली, तू उसकी खास सहेली है.. इसलिए तुझे तो वो सब बताएगी.. दिक्कत तो उसे सिर्फ मुझे बताने में है.."
फाल्गुनी की आँखों में आँसू आ गए "ऐसा नही है मौसम.. तू मुझे गलत समझ रही है यार.. प्लीज ऐसा मत बोल"
मौसम को जैसे फाल्गुनी के आँसू या उसकी बातों से कोई फरक ही नही पड़ा हो वैसे उसने कहा "चलो अब नीचे चलें.. !! सब लोग हमारा वैट कर रहे होंगे"
फाल्गुनी के उदास चेहरे के सामने वैशाली ने देखा..
वैशाली: "मौसम, इतना भी क्या गुस्सा करना? ऐसा गुस्सा अक्सर दोस्ती के लिए खतरनाक साबित होता है.. डोर को कभी इतना भी मत खींचो की वो टूट जाएँ.. !!"
मौसम: "मैंने कहाँ कुछ किया या कहा है? जो भी किया है फाल्गुनी ने किया.. हम दोनों बचपन से साथ है.. एक दूसरे को हर छोटी बड़ी बात बताते है.. पर आज उसने इतनी बड़ी बात मुझसे छुपाई और तुझे बता दी.. अब तू ही बता.. मुझे दुख तो होगा ना.. !!"
फाल्गुनी ने नजरें झुकाते हुए कहा "यार, वो हमारे कॉलेज के प्रिंसिपल सर है.. इसलिए उनका नाम लेने में मुझे शर्म आ रही थी.. !!"
मौसम को दूसरा सदमा पहुंचा.. दोस्ती में एक और झूठ???
एक तरफ तो अपने पापा और फाल्गुनी के संबंधों के बारे में जानकर उसकी रूह कांप गई थी.. ऊपर से प्रिंसिपल के नाम का झूठ सुनकर उसे बड़ा धक्का लगा.. पर उसने अपने चेहरे से ये प्रतीत नही होने दिया.. और नॉर्मल होकर बोली "अरे वो टकलू.. !! तूने क्या देख लिया उस बूढ़े खूसट में? तू चाहती तो एक से बढ़कर एक लड़के तेरी टांगों के बीच आने के लिए तैयार थे.. हरीश है. राज है.. सब लाइन मारते है तुझे.. और तुझे उस बूढ़े माथुर में ऐसा क्या नजर आ गया.. ??"
मौसम को नॉर्मल होकर चर्चा में शामिल होता देख वैशाली खुश हो गई.. चलो आखिर सब ठीक होने लगा था..
वैशाली: "हाँ यार फाल्गुनी.. मौसम की इस बात से तो मैं भी सहमत हूँ.. कोई बांका जवान हेंडसम लड़का होता तो तुझे अपनी छातियाँ मसलवाने में कितना मज़ा आता.. उस बूढ़े में ऐसा क्या दिख गया तुझे? साले का एक पैर कबर में और दूसरा पैर अस्पताल में.. वो तुझे चोद गया.. मुझे तो ये बात हजम नही हो रही" फाल्गुनी ब्रा के हुक बंद करते हुए अपने तंदूरस्त स्तनों को थोड़ा सा उभारने लगी.. ताकि उनका आकार बाहर नजर आयें..
फाल्गुनी: "मैंने सामने से कहाँ कुछ किया है यार.. आप लोग तो मुझ पर ऐसे टूट पड़े जैसे मैं सामने से माथुर सर की चेम्बर में जाकर नंगी होकर लेट गई.. तुझे याद है मौसम उस दिन हम माथुर सर की चेम्बर में.. उस हरामी हरीश की कंप्लेन करने गए थे?? याद कर.. !!"
मौसम: "हाँ हाँ.. याद आया.. !!" मौसम को ताज्जुब हुआ.. कितनी आसानी से बातों की कड़ियाँ जोड़ रही है ये फाल्गुनी..!!!
फाल्गुनी: "उस दिन फिर तू बाहर पटेल सर से बात करने के लिए रुक गई और जैसे ही मैं माथुर सर के चेम्बर में गई.. तो मैंने देखा की वो पल्लवी मैडम को अपनी गोद में बिठाकर उनके बूब्स दबा रहे थे.. और पल्लवी मैडम उन्हे किस कर रही थी.. दोनों इतने बीजी थे की मैं उनके पास जाकर खड़ी हो गई तब तक उन्हें पता ही नही चला.. मैडम के ब्लाउज में हाथ डालकर वो उनके बूब्स को मसल रहे थे.. मैडम भी उनके पेंट के अंदर हाथ डालकर बैठी थी.. यार मौसम.. मैंने तो पहले कभी ऐसा कुछ देखा ही नही था.. मैं तो बुरी तरह चोंक गई.. क्या करूँ समझ में नही आ रहा था.. तभी अचानक उनकी नजर मेरे ऊपर पड़ी.. मैं भागकर बाहर चली गई.. दूसरे दिन तू कॉलेज नही आई थी.. तब कॉलेज खतम होने के बाद मैडम ने मुझे स्टाफ रूम में बुलाया और दरवाजा अंदर से बंद कर दिया.. फिर उन्होंने जबरदस्ती अपने बूब्स मुझसे दबवाये और कहा की अगर मैं किसी को भी इस बारे में कुछ बताऊँगी तो वो मुझे फैल कर देंगे.. मैं बहोत डर गई थी यार.. इसलिए तुझे बता न सकी.. इस में मेरी क्या गलती? मैंने अपनी मर्जी से तो कुछ किया नही था"
वैशाली: "तूने मैडम के साथ ये सब किया तो माथुर सर बीच में कैसे आ गए फाल्गुनी? मुझे लगता है तू अभी भी कुछ छुपा रही है"
फाल्गुनी: "मैं सब कुछ बताती हूँ.. थोड़ा रुको तो.. !!"
तभी मौसम के मोबाइल पर पीयूष का कॉल आया.. उसने कहा की सब बस में बैठ चुके थे और तीनों की राह देख रहे थे.. जल्दी आओ.. तीनों फटाफट निकले पर निकालने से पहले वैशाली ने मौसम और फाल्गुनी की फिरसे दोस्ती करवा दी और कहा "मौसम, गुस्सा थूक दे.. "और फिर दोनों के स्तनों को बारी बारी दबा दिया.. फिर वैशाली और फाल्गुनी दोनों ने मिलकर मौसम के स्तन एक साथ दबाएं और उसे हंसा दिया.. मौसम फाल्गुनी से गले लग गई.. फाल्गुनी की आँखों से आँसू टपक पड़े.. वो इतना ही बोल पाई "मौसम प्लीज.. दोबारा कभी मेरे साथ ऐसा मत करना.."
मौसम: "तूने मुझसे ये सब छुपाया नही होता तो ये नोबत ही नही आती.. चल.. अब सब भूल जा.. चलते है अब.. देर हो गई है"
वैशाली: "एक मिनट रुको.. कुछ दिनों के बाद मैं वापिस कलकत्ता चली जाऊँगी.. फिर न जाने कब मिले.. एक लास्ट किस तो बनती है" तीनों ने एक दूसरे को किस किया और स्तन दबाएं और खिलखिलाकर हँसते हुए बाहर निकली
मौसम नॉर्मल होने का दिखावा कर रही थी.. लेकिन उसके दिल और दिमाग में तो आग जल रही थी.. रह रहकर उसे ये विचार आ रहा था की पापा और फाल्गुनी ने ऐसा क्यों किया? कब किया होगा? मम्मी कहाँ थी तब? मैं कहाँ थी? क्या वो दोनों मेरे घर पर ही करते होंगे? या फिर पापा की ऑफिस में?? नही नही ऑफिस में तो नही हो सकता.. तो फिर कहाँ मिलते होंगे वो दोनों.. और एकाध बार नही.. सात आठ बार.. !! जानना तो पड़ेगा ही.. फाल्गुनी पर नजर रखूंगी तो सब पता चल जाएगा.. !!!
Superb & sexyबहोत उदास हो गई फाल्गुनी.. जिंदगी ऐसे कठिन मोड पर लाकर खड़ा कर देगी ऐसा उसने कभी नही सोचा था.. सोचते सोचते कब दोनों की आँख लग गई उन्हे पता ही नही चला..
सुबह साढ़े छह बजे एलार्म बजते ही सब से पहले वैशाली की आँख खुली.. उसने धक्का देकर मौसम को जगाया.. अपने नंगे जिस्म को देखकर.. वैशाली को पिछली रात की रंगीन घटनाएं याद आ गई.. मन ही मन मुस्कुराते हुए उसने मौसम को हाथ से सहारा देकर उठाया और गुड मॉर्निंग कहते हुए उसे गले से लगा लिया.. स्तन से स्तन मिलें.. और स्तनों ने भी आपस में सुप्रभातम कर लिया..
"अब इस चुड़ैल को भी जगा..फिर हम तीनों बाथरूम में एक साथ नहायेंगे.. सब के सामने तैयार होकर जाने से पहले.. एक एक ऑर्गैज़म हो जाए.. फिर किसी की ओर आकर्षण होने का कोई खतरा नही.. वरना इस छुपी रुस्तम फाल्गुनी का कुछ कह नही सकते.. माउंट आबू में ही किसी को ढूंढकर उसके नीचे लेट जाएगी.. और फिर हम से कहेगी.. सात-आठ बार नही पर नौ बार चुदवाया है.. अभी भी साली मादरचोद ने उसका नाम नही बताया.. और ये भी नही बताया की सात-आठ बार एक ही लंड लिया था या हर बार अलग अलग था.. !!"
सुबह-सुबह वैशाली के मुंह से यह नंग-धड़ंग बातें सुनकर मौसम की चूत में कुछ कुछ होने लगा.. मौसम खड़ी हुई और वैशाली को उसकी निप्पल से खींचते हुए बाथरूम के अंदर ले गई.. और इंग्लिश कमोड पर बैठकर पेशाब करने लगी.. उसने निप्पल पकड़े रखी थी.. वैशाली ने कहा "क्या कर रही है यार तू? दर्द हो रहा है.. ऐसे भी भला कोई निप्पल खींचता है क्या!! दिमाग-विमाग है या नही? नहाना मुझे भी है.. ऐसे ही थोड़े बिना नहाए साइट सीइंग के लिए निकल पड़ूँगी!! अब जल्दी खतम कर और खड़ी हो जा.. मुझे भी बड़ी जोर से लगी है" मौसम के हाथ से अपनी निप्पल छुड़वाते हुए वैशाली ने थोड़े गुस्से से कहा
पर मौसम ने उसकी एक न सुनी.. और आराम से कमोड पर ही बैठकर मुस्कुराते रही.. आखिर थककर वैशाली बाथरूम के फर्श पर ही उकड़ूँ बैठ गई और मूतने लगी.. दोनों की पेशाब की धार की आवाज पूरे बाथरूम में गूंज रही थी..
वैशाली: "वो रांड अब तक जागी क्यों नही? रात को कहीं किसी वेटर के साथ चुदवाने तो नही गई थी ना.. !! उसका कुछ कह नही सकते" मौसम के गले में अपने बाहों का हार डालकर उसकी नाक से अपनी नाक रगड़ते हुए उसने कहा
मौसम ने झुककर अपना हाथ वैशाली की मूत रही चूत पर लगाया और पेशाब की धार से अपनी हथेली गीली करके खुद की चूत पर मल दिया और आँखें बंद कर किसी दूसरी दुनिया में ही पहुँच गई और बोली "आहाहाहा.. वैशाली कितना गुनगुना और गरम लग रहा है यार!! मन कर रही है की टांगें चौड़ी करके यहीं नीचे लेट जाऊँ.. और तेरे पेशाब की धार सीधी अपने चूत में लूँ.. "
मौसम के सुंदर स्तनों को दबाते हुए वैशाली ने कहा "अरे यार.. पहली बता देती.. चूत में क्यों.. तेरे मुंह में ही मेरी धार मार देती.. ऐसा मस्त नमकीन स्वाद तुझे और कहीं चखने को नही मिलेगा.. "
मौसम को घिन आ गई "छी छी यार.. मुंह में भी कभी कोई मुतता है क्या!!!"
वैशाली: "यार मौसम.. ये फाल्गुनी हमे उस चोदनेवाला का नाम क्यों नही बता रही? कोई बहोत बड़ा राज है क्या?"
मौसम: "रात को हम दोनों के बीच इस बारे में काफी कहा सुनी हुई थी.. तू सो गई उसके बाद.. मैंने कितनी बार पूछा पर उसने बताया ही नही.. इतना बुरा लगा मुझे.. दोस्ती में ऐसा भी क्या छुपाना!!! अगर मुझे बता देती तो मैँ कौन सा उसके लवर को छीन लेने वाली थी..!!"
वैशाली: "हाँ यार.. उस बात का मुझे भी बुरा लगा था.. जब हम तीनों इतना खुल चुके थे तब उसे बताने में भला क्या दिक्कत थी?? अब उसे बताना ही ना हो फिर पूछकर क्या काम.. !!"
मौसम: "हमें काम तो कुछ नही पर जानना जरूरी है.. कहीं वो किसी उलटे सीधे मर्द के साथ फंस गई हो तो हम उसकी मदद कर सकते है "
वैशाली सोचने लगी.. मौसम की बात तो सही थी.. एक तरफ फाल्गुनी सेक्स से इतना परहेज करती है.. और फिर भी सात-आठ बार कर चुकी है.. ऐसा कैसे हो सकता है? कहीं किसी के चंगुल में तो नही फंस गई? या फिर कोई ब्लैकमेल कर रहा हो.. ??
वैशाली: "तेरी बात बिल्कुल सही है मौसम.. कुछ तो बड़ा लोचा है.. हमें कुछ करना ही होगा" वैशाली वैसे ही नंगी कमरे में चली गई और फाल्गुनी को जगाकर बाथरूम में खींच लाई..
फाल्गुनी को अंदर लाकर वैशाली ने शावर चालू कर दिया और तीनों एक दूसरे पर पानी उड़ाते हुए खेलने लगी.. पानी का जादू ही कुछ ऐसा होता है की बूढ़े से बूढ़ा आदमी भी उसके संसर्ग में आकर बच्चे जैसा बन जाता है.. गीजर के गरम गुनगुने पानी को एक दूसरे पर उछालते हुए वैशाली दोनों के साथ बातें कर रही थी.. पर मौसम और फाल्गुनी एक दूसरे से नजरें चुरा रही थी.. दोनों बात भी नही कर रही थी.. फाल्गुनी से मौसम का ये बदला बदला सा रूप बर्दाश्त नही हो रहा था.. उसने मौसम पर पानी उड़ाकर उसे मनाने की कोशिश तो की.. पर मौसम तौलिया लेकर बिना कुछ कहें कमरे में चली गई..
वैशाली समझ गई की दोनों के बीच अनबन हुई थी.. मौसम के बाहर जाते ही मौके का फायदा उठाकर वैशाली ने दरवाजा बंद कर लिया और फाल्गुनी को अपनी बाहों में दबा दिया.. फाल्गुनी ने वैशाली के होंठों पर किस करते हुए कहा "देख वैशाली.. जैसे तूने सिखाया था वैसे ही किस करना अब आ गया मुझे"
वैशाली: "अब वो तो होना ही था.. क्यों नही आता भला.. !! आखिर गुरु कौन है तेरी!!! हा हा हा हा.. पर मुझे ऐसी शेखी नही मारनी चाहिए की मैंने ही तुझे किस करना सिखाया" वैशाली ने परोक्ष तरीके से बात छेड ही दी.. फाल्गुनी के स्तनों पर साबुन मलते हुए दूसरा साबुन उसने उसके हाथ में दे दिया.. फाल्गुनी समझ गई और वो भी वैशाली के भरे भरे स्तनों पर साबुन लगाते हुए बोली "मतलब? तू कहना क्या चाहती है?"
वैशाली: "मेरे कहने का ये मतलब है की तूने सात-आठ बार जिसका भी लंड अपनी चूत में दलवाया.. उसने सीधे सीधे तो लंड अंदर नही डाला होगा न.. पहले बूब्स दबाएं होंगे.. चूसे होंगे.. चूत चाटी होगी.. और लिप किस भी की होगी.. फिर मैं ये कैसे कह सकती हूँ की मैंने तुझे सिखाया?"
"वो तो उन्होंने की थी.. मैंने थोड़े ही की थी? जिसने की हो वही जाने.. उनके करने से मुझे किस करना कैसे आ जाता.. !! पर ये बता दूँ.. की तुझे और मौसम को किस करने में जो मज़ा आया था वैसा मज़ा उनके साथ नही आया था यार.. !!"
फाल्गुनी के बोलते ही वैशाली ने नोटिस किया "उन्होंने.. उनके.. " शब्द प्रयोग का अर्थ यह था की फाल्गुनी को चोदने वाला कोई उसकी उम्र का या उसकी आसपास की उम्र का नही था.. कोई बड़ी उम्र का या बुजुर्ग ही हो सकता है.. अब नाम जानने के लिए फाल्गुनी को फुसलाना जरूरी था.. वैशाली का दिमाग भी उसकी माँ शीला जैसा तेज था.. उसने एक तरकीब सोची..
फाल्गुनी की चूत पर साबुन रगड़ते हुए वैशाली ने अपनी एक उंगली अंदर डाली और उसके होंठों पर एक लंबी किस कर दी.. दोनों के साबुन लगे स्तन एक दूसरे के संग दब गए.. चूत में उंगली करते हुए उसने फाल्गुनी से कहा "फाल्गुनी, मेरी एक रीक्वेस्ट है.. "
फाल्गुनी: "हाँ हाँ बोल ना.. !!"
वैशाली: "यार, बात दरअसल यह है की तुझे शायद नही पता होगा.. मेरे और मेरे पति संजय के बीच जरा भी नही बनती.. पिछले काफी समय से हम एक दूसरे से ठीक से बात तक नही करते.. तुझे पता है फाल्गुनी, मर्द तो घूमते रहते है और अपनी जरूरतें बाहर कहीं भी पूरी कर लेते है.. लेकिन हम लड़कियां ऐसा नही कर सकती.. मर्दों को अपनी हवस बुझाने के लिए बाजार में ढेरों लड़कियां मौजूद है जो पैसे लेकर अपने शरीर का सौदा कर लेती है.. पर हम लड़कियों के लिए वो सुविधा भी आसानी से उपलब्ध नही होती.. यार फाल्गुनी, तू अभी कुंवारी है इसलिए शायद मेरी बात समझ में नही आएगी.. पर एक बार हमारी चूत को लंड की आदत पड़ जाती है ना.. फिर उसे वो चाहिए ही चाहिए.. संजय तो अब मुझे छूता तक नही.. या यूं कह लो की मैं उस मादरचोद को हाथ लगाने नही देती.. किसी रांड की चूत में घुसा हुआ लंड मैं क्यों अपने मुंह में लूँ.. ??" वैशाली ऐसे ऐसे शब्दों का प्रयोग कर रही थी जिन्हे सुनकर फाल्गुनी की चूत गरम भांप छोड़ने लगी..
बाथरूम से बाहर आकर मौसम ने कपड़े पहन लिए.. मेकअप भी कर लिया.. लेकिन वैशाली और फाल्गुनी अभी तक बाथरूम में ही घुसी हुई थी.. क्या कर रही होगी वो दोनों अंदर? दरवाजा भी बंद है.. जरूर रात जैसा है कोई कार्यक्रम शुरू किया होगा दोनों ने.. मैं भी अंदर रहती तो मज़ा आता.. वैशाली के साथ वैसे तो बहोत मज़ा आता ही है.. बोल्ड और ब्यूटीफुल है वो.. पर इन दोनों ने दरवाजा अंदर से बंद क्यों कर रखा है? मौसम को ज्यादा विचार करने की जरूरत नही पड़ी क्योंकि दरवाजे के करीब खड़े रहकर उसे वैशाली की बातें स्पष्ट सुनाई दे रही थी.. अब मौसम कान लगाकर उनकी बातें बाहर से सुन रही है उसका पता वैशाली और फाल्गुनी को कैसे चलता.. !!
वैशाली: "मुझे तो हर रात को इतनी इच्छा होती है.. रोज रात होते ही मेरी भूख जाग जाती है और मुझसे बर्दाश्त नही होती.. संजय तो अपनी मस्ती में कहीं पड़ा रहता है.. और मैं यहाँ मर्द के स्पर्श को तरसती और तड़पती रहती हूँ.. फाल्गुनी, मैं भी जवान हूँ.. मेरे भी अरमान है.. जरूरतें है.. ज्यादा से ज्यादा तीन दिनों तक अपनी भूख को सहन कर लेती हूँ.. चौथे दिन तो ऐसा मन करता है की कहीं भाग जाऊँ.. अलग अलग प्रयोग करके खुद को संतुष करने की कोशिश करती हूँ.. पर कितने दिनों तक?? ओरीजीनल लेने में कितना मज़ा आता है.. तुझे तो पता ही है.. !!"
फाल्गुनी: "हाँ यार वैशाली.. तेरी बात बिल्कुल सही हैं.. मैं कितनी भी कोशिश करूँ मुझसे गलती हो ही जाती है.. साला कंट्रोल ही नही रहता.. पर तू मुझसे क्या चाहती है, ये तो बता.. !!"
वैशाली: "बुरा मत मानना फाल्गुनी, तेरा जो भी पार्टनर हो उसे मैं छिनना नही चाहती.. पर एक बार मुझे भी उनसे मिलवा दे.. मुझे बहोत मन कर रहा है यार.. इस चूत में असली लंड गए हुए एक साल से ऊपर हो गया है.. मुझे तो लगता है की मैं पागल हो जाऊँगी.. "
फाल्गुनी: "जो तू कह रही है वो मुमकिन नही हो सकता.. कोई चांस ही नही है:
वैशाली: "मैं समझ सकती हूँ यार.. पर अगर तेरे पार्टनर के साथ मुमकिन न हो तो उसके कोई दोस्त से सेटिंग करवा दे.. हम दोनों मिलकर मजे करेंगे"
फाल्गुनी: "यार वैशाली, मैं तुझे कैसे समझाऊँ? ये पोसीबल ही नहीं ये.. वो मौसम भी यही बात को लेकर मुझसे रूठी हुई है.. उसे भी नाम जानना है.. अगर मैं उसे नाम बता दूँगी तो उसकी क्या हालत होगी वो नही जानती.. और तुम भी कल रात से इसी जिद पर अडी हुई हो..!!"
मौसम दरवाजे पर कान चिपकाकर ये सारी बातें बड़े ध्यान से सुन रही थी.. उसकी सांसें गले में अटक गई थी.. कहीं कोई बात सुनने में रह न जाए इसलिए वो एकटक अपना ध्यान अंदर की बातों पर केंद्रित कर सुन रही थी.. उसे वैशाली की बात सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ.. एक स्त्री होकर कैसे वो अपनी दोस्त का पार्टनर मांग रही थी!!!! वो भी सेक्स करने के लिए ?? माय गॉड.. एक नंबर की बेशर्म है साली.. !!"
फाल्गुनी: "वैशाली, जैसा तूने कहा की मर्दों को पैसे देकर लड़कियां मिल जाती है.. तो क्या संजय भी ऐसी लड़कियों के साथ संबंध रखता है ??"
वैशाली की उंगलियों का जादुई असर अब फाल्गुनी पर हो रहा था.. उत्तेजित होकर वो विचित्र सवाल पूछ रही थी जिनका जवाब भी उत्तेजना और अश्लीलता से भरपूर ही होने वाला था
वैशाली: "हाँ यार.. दो दो महिना बाहर रहकर जब वो घर आता है.. तब इतने आराम से मेरे बगल में लेटे हुए बिना कुछ कीये पड़ा रहता है.. देखकर ही पता चल जाता है की वो अपनी आग कहीं और बुझाकर आया है.. बाकी ऐसा कौन सा पति होगा जो दो महीने तक अपनी पत्नी से दूर रहकर वापिस आयें और अपनी पत्नी को हाथ भी ना लगाएं.. !!!"
फाल्गुनी: "सही बात है.. मर्द लोग तो कुछ भी कर सकते है.. ना जगह देखते है.. न समय देखते है.. जब मन करे तब छेड़ने लगते है.. हम लोगों तो कितनी शर्म आती है पर उन्हें तो कोई शर्म ही नही होती.. !!"
वैशाली: "जैसे पुरुषों के लिए लड़कियों और औरतों का बाजार होता है वैसे ही हम लड़कियों के लिए भी लड़कों/मर्दों का बाजार होता तो कितना अच्छा होता.. !! मेरी जैसी भूखी लड़कियां.. विधवा.. तलाकशुदा औरतें.. वहाँ जाकर अपनी पसंद के लड़के से चुदकर हवस को शांत कर पाती.. ये भूख अब सही नही जाती.. तू मानेगी नही.. इतना मन करता है की तुझे क्या बताऊँ?? कल रात तुम दोनों ने देखा था न.. कितनी गरम हो गई थी मैं!! ये जानते हुए की मेरी खुजली शांत कर सकें ऐसा लंड हाजिर नहीं है फिर भी कैसे मैंने मेरी चूत को तेरे और मौसम के चेहरे पर चिपका दिया था!! अब तुझसे क्या छुपाना.. संजय की उपेक्षा से मैं तंग आकर मैं यहाँ अपनी मम्मी के पास आ गई.. और सेक्स की इतनी तीव्र इच्छा हो रही थी की मैंने मम्मी की गैरमौजूदगी में अपने कॉलेज के पुराने फ्रेंड को घर बुलाकर चुदवा लिया.. तब जाके नीचे थोड़ी ठंडक मिली.. पर मुसीबत ये है की एक बार करने पर भूख थोड़े समय के लिए शांत तो हो जाती है.. पर दो-तीन बितते है वापिस अंदाई लेकर भूख जाग जाती है.. कभी कभी तो पुरुषों को देखकर इतने गंदे गंदे विचार आने लगते है मन में की क्या बताऊँ? मन करता है की उनको वहीं धर दबोचूँ और अपनी चूत में उनका लंड ले लूँ.. अब ऐसे मैं कहीं मुझसे कोई बड़ी गलती हो गई तो?? इसीलिए मैंने तुझसे कहा.. की तू जिसके साथ मजे करती है उसके साथ मेरी भी सेटिंग करवा दे.. तू बुरा मत मानना.. पर तू तो कुछ दिनों में चली जाएगी.. फिर मुझे ऐसा चांस दोबारा नही मिलेगा.. मुझे एक बार तो मजे कर लेने दे यार.. तुझे क्या दिक्कत है?? पर जब तू नाम भी नही बता रही तो करने देने का कोई सवाल ही नही उठता.. " एक भारी सांस छोड़ते हुए वैशाली ने कहा
फाल्गुनी: वैशाली, तू मेरे पार्टनर के साथ सेक्स करें उसमें मुझे कोई प्रॉब्लेम नही है.. पर मैं उलझन में हूँ.. अगर मैं वो नाम बता दूँगी तो तू मेरे बारे में क्या सोचेगी!!! और मौसम को पता चलेगा तो उसके सर पर आसमान टूट पड़ेगा.. !!"
वैशाली: 'मैं प्रोमिस करती हूँ.. ये बात मौसम को कभी पता नही चलेगी.. तुझे मुझपर इतना भरोसा तो होना चाहिए.. और वैसे भी मैं कुछ दिनों में वापिस कलकत्ता चली जाऊँगी.. तेरा राज मेरे सीने में महफूज रहेगा.. "
फाल्गुनी: "बात तो तेरी ठीक है.. पर कहते हुए मेरी जबान नही चलती.. प्लीज यार.. !!"
वैशाली: "फाल्गुनी, तू नाम देने में जितना शरमा रही है.. उतनी ही मेरी बेसब्री बढ़ते जा रही है.. अगर तूने मुझे नाम बता दिया.. तो मैं मौसम से तेरी दोस्ती फिर से करवा दूँगी.. बिना उसे कुछ बताएं.. ये मेरा वादा है.. " वैशाली ने फाल्गुनी के दोनों स्तनों को दबाकर उसे उत्तेजित कर दिया.. शावर का गरम पानी उसकी चूत से होकर टपकते हुए उसे बेहद आनंद दे रहा था
फाल्गुनी: "ये कैसे मुमकिन होगा वैशाली? बिना नाम जाने मौसम नही मानेगी.. और मैं किसी भी सूरत में उसे नाम नही बता पाऊँगी.. नाम बता दूँगी तो भी हम दोनों की दोस्ती हमेशा हमेशा के लिए टूटने वाली है फिर मैं क्यों बेकार में उसके पापा का नाम बदनाम करूँ???"
वैशाली की सिट्टी-पीट्टी गुम हो गई.. उसके मुंह से चीख निकल गई "मतलब तू मौसम के पापा के साथ..............!!!!!!!!!!!!!!!!" वहीं चीख दरवाजे से होते हुए मौसम के कानों तक पहुँच गई और फिर हवा में ओजल हो गई..
फाल्गुनी: "धीरे बोल वैशाली.. कहीं मौसम ने सुन लिया तो गजब हो जाएगा.. वो तो जान से मार देगी मुझे.. "
वैशाली: "फाल्गुनी, मौसम के पापा के साथ तेरा संपर्क कैसे हुआ? कैसे शुरू हुआ ये सब? कुछ विस्तार से बता तो पता चले मुझे" वैशाली ने एक मिशन तो पार कर लिया था अब दूसरे की तैयारी करने लगी..
फाल्गुनी: "वो सब बाद में बताऊँगी वैशाली.. हम लोग कब से बाथरूम के अंदर घुसकर बैठे है.. सब नीचे साइट-सीइंग के लिए हमारा इंतज़ार कर रहे होंगे.. मौसम भी क्या सोचेगी हमारे बारे में.. !! और हाँ.. तू मेरी और उसकी दोस्ती करवा दे फिर मैं अपनी कहानी सुनाऊँगी!!"
वैशाली: "उसका हल तो काफी सिम्पल सा है.. तू ऐसे ही किसी का भी नाम बता दे मौसम को.. ऐसे व्यक्ति का नाम बता दे जिसे मौसम जानती तो हो पर उससे कन्फर्म करने ना जा सके "
फाल्गुनी: "ऐसे कैसे किसी का भी नाम ले लूँ?"
वैशाली: "दिमाग पर थोड़ा जोर लगा और सोच.. कोई तो नाम होगा.. कोई बुजुर्ग.. या पड़ोसी या कोई रिश्तेदार.. !!"
"नही यार.. ऐसा कोई नही है जिसका नाम ले सकूँ" फाल्गुनी सोचते हुए बोली
"तुम्हारे कॉलेज का कोई प्रोफेसर? " वैशाली उसे नाम सोचने में मदद करने लगी
"प्रोफेसर तो सारे जवान है.. हाँ प्रिंसिपल सर बूढ़े है.. उनका नाम बता दूँ?" फाल्गुनी खुश हो गई.. अपनी समस्या का हल मिलने पर चमक आ गई उसके चेहरे पर..
"हाँ.. बढ़िया रहेगा.. मौसम तुम्हारे प्रिंसिपल से ये पूछने तो जाएगी नही की.. सर, क्या आप मेरी फ्रेंड को चोदते हो?.. " वैशाली ने कहा
फाल्गुनी: "पूछने जाने का तो सवाल ही नही है.. बहोत ही स्ट्रिक्ट है प्रिंसिपल सर.. चल अब हम दोनों निकलते है बाहर"
वैशाली: "और सुन.. बाहर जाकर.. जैसा मैं कहूँ वैसे ही मौसम से बात करना.. ठीक है"
"ओके.. " कहते हुए फाल्गुनी अपने और वैशाली के गीले जिस्म को तौलिए से पोंछने लगी..
बाहर मौसम की पूरी दुनिया गोल गोल घूम रही थी.. वो बेड पर अपना सर पकड़कर बैठी हुई थी.. पापा?? मेरे पापा?? ऐसा कैसे कर सकते है? फाल्गुनी के साथ सेक्स? मौसम के लिए उन दोनों के बाहर आने से पहले नॉर्मल हो जाना काफी जरूरी था.. नहीं तो उनको पता चल जाता की मौसम ये बात जान चुकी थी.. उसने आईने में देखकर अपना मेकअप ठीक कर लिया और लिपस्टिक लगाते हुए गीत गुनगुनाने लगी..
वैशाली और फाल्गुनी बाथरूम से बाहर निकले.. मौसम को मेकअप में व्यस्त देखकर दोनों के दिल को राहत मिली.. खास कर फाल्गुनी को.. क्यों की उसे डर था की जब वैशाली ने चीखकर उसके पापा का नाम लिया तब शायद मौसम ने सुन लिया हो.. !! डरते डरते उसने तिरछी नज़रों से मौसम की ओर देखा.. मौसम तो बेफिक्री से बैठी हुई थी..
वैशाली: "मौसम.. मैंने इस रंडी से उसके पार्टनर का नाम उगलवा लिया"
मौसम: "वैशाली, तू उसकी खास सहेली है.. इसलिए तुझे तो वो सब बताएगी.. दिक्कत तो उसे सिर्फ मुझे बताने में है.."
फाल्गुनी की आँखों में आँसू आ गए "ऐसा नही है मौसम.. तू मुझे गलत समझ रही है यार.. प्लीज ऐसा मत बोल"
मौसम को जैसे फाल्गुनी के आँसू या उसकी बातों से कोई फरक ही नही पड़ा हो वैसे उसने कहा "चलो अब नीचे चलें.. !! सब लोग हमारा वैट कर रहे होंगे"
फाल्गुनी के उदास चेहरे के सामने वैशाली ने देखा..
वैशाली: "मौसम, इतना भी क्या गुस्सा करना? ऐसा गुस्सा अक्सर दोस्ती के लिए खतरनाक साबित होता है.. डोर को कभी इतना भी मत खींचो की वो टूट जाएँ.. !!"
मौसम: "मैंने कहाँ कुछ किया या कहा है? जो भी किया है फाल्गुनी ने किया.. हम दोनों बचपन से साथ है.. एक दूसरे को हर छोटी बड़ी बात बताते है.. पर आज उसने इतनी बड़ी बात मुझसे छुपाई और तुझे बता दी.. अब तू ही बता.. मुझे दुख तो होगा ना.. !!"
फाल्गुनी ने नजरें झुकाते हुए कहा "यार, वो हमारे कॉलेज के प्रिंसिपल सर है.. इसलिए उनका नाम लेने में मुझे शर्म आ रही थी.. !!"
मौसम को दूसरा सदमा पहुंचा.. दोस्ती में एक और झूठ???
एक तरफ तो अपने पापा और फाल्गुनी के संबंधों के बारे में जानकर उसकी रूह कांप गई थी.. ऊपर से प्रिंसिपल के नाम का झूठ सुनकर उसे बड़ा धक्का लगा.. पर उसने अपने चेहरे से ये प्रतीत नही होने दिया.. और नॉर्मल होकर बोली "अरे वो टकलू.. !! तूने क्या देख लिया उस बूढ़े खूसट में? तू चाहती तो एक से बढ़कर एक लड़के तेरी टांगों के बीच आने के लिए तैयार थे.. हरीश है. राज है.. सब लाइन मारते है तुझे.. और तुझे उस बूढ़े माथुर में ऐसा क्या नजर आ गया.. ??"
मौसम को नॉर्मल होकर चर्चा में शामिल होता देख वैशाली खुश हो गई.. चलो आखिर सब ठीक होने लगा था..
वैशाली: "हाँ यार फाल्गुनी.. मौसम की इस बात से तो मैं भी सहमत हूँ.. कोई बांका जवान हेंडसम लड़का होता तो तुझे अपनी छातियाँ मसलवाने में कितना मज़ा आता.. उस बूढ़े में ऐसा क्या दिख गया तुझे? साले का एक पैर कबर में और दूसरा पैर अस्पताल में.. वो तुझे चोद गया.. मुझे तो ये बात हजम नही हो रही" फाल्गुनी ब्रा के हुक बंद करते हुए अपने तंदूरस्त स्तनों को थोड़ा सा उभारने लगी.. ताकि उनका आकार बाहर नजर आयें..
फाल्गुनी: "मैंने सामने से कहाँ कुछ किया है यार.. आप लोग तो मुझ पर ऐसे टूट पड़े जैसे मैं सामने से माथुर सर की चेम्बर में जाकर नंगी होकर लेट गई.. तुझे याद है मौसम उस दिन हम माथुर सर की चेम्बर में.. उस हरामी हरीश की कंप्लेन करने गए थे?? याद कर.. !!"
मौसम: "हाँ हाँ.. याद आया.. !!" मौसम को ताज्जुब हुआ.. कितनी आसानी से बातों की कड़ियाँ जोड़ रही है ये फाल्गुनी..!!!
फाल्गुनी: "उस दिन फिर तू बाहर पटेल सर से बात करने के लिए रुक गई और जैसे ही मैं माथुर सर के चेम्बर में गई.. तो मैंने देखा की वो पल्लवी मैडम को अपनी गोद में बिठाकर उनके बूब्स दबा रहे थे.. और पल्लवी मैडम उन्हे किस कर रही थी.. दोनों इतने बीजी थे की मैं उनके पास जाकर खड़ी हो गई तब तक उन्हें पता ही नही चला.. मैडम के ब्लाउज में हाथ डालकर वो उनके बूब्स को मसल रहे थे.. मैडम भी उनके पेंट के अंदर हाथ डालकर बैठी थी.. यार मौसम.. मैंने तो पहले कभी ऐसा कुछ देखा ही नही था.. मैं तो बुरी तरह चोंक गई.. क्या करूँ समझ में नही आ रहा था.. तभी अचानक उनकी नजर मेरे ऊपर पड़ी.. मैं भागकर बाहर चली गई.. दूसरे दिन तू कॉलेज नही आई थी.. तब कॉलेज खतम होने के बाद मैडम ने मुझे स्टाफ रूम में बुलाया और दरवाजा अंदर से बंद कर दिया.. फिर उन्होंने जबरदस्ती अपने बूब्स मुझसे दबवाये और कहा की अगर मैं किसी को भी इस बारे में कुछ बताऊँगी तो वो मुझे फैल कर देंगे.. मैं बहोत डर गई थी यार.. इसलिए तुझे बता न सकी.. इस में मेरी क्या गलती? मैंने अपनी मर्जी से तो कुछ किया नही था"
वैशाली: "तूने मैडम के साथ ये सब किया तो माथुर सर बीच में कैसे आ गए फाल्गुनी? मुझे लगता है तू अभी भी कुछ छुपा रही है"
फाल्गुनी: "मैं सब कुछ बताती हूँ.. थोड़ा रुको तो.. !!"
तभी मौसम के मोबाइल पर पीयूष का कॉल आया.. उसने कहा की सब बस में बैठ चुके थे और तीनों की राह देख रहे थे.. जल्दी आओ.. तीनों फटाफट निकले पर निकालने से पहले वैशाली ने मौसम और फाल्गुनी की फिरसे दोस्ती करवा दी और कहा "मौसम, गुस्सा थूक दे.. "और फिर दोनों के स्तनों को बारी बारी दबा दिया.. फिर वैशाली और फाल्गुनी दोनों ने मिलकर मौसम के स्तन एक साथ दबाएं और उसे हंसा दिया.. मौसम फाल्गुनी से गले लग गई.. फाल्गुनी की आँखों से आँसू टपक पड़े.. वो इतना ही बोल पाई "मौसम प्लीज.. दोबारा कभी मेरे साथ ऐसा मत करना.."
मौसम: "तूने मुझसे ये सब छुपाया नही होता तो ये नोबत ही नही आती.. चल.. अब सब भूल जा.. चलते है अब.. देर हो गई है"
वैशाली: "एक मिनट रुको.. कुछ दिनों के बाद मैं वापिस कलकत्ता चली जाऊँगी.. फिर न जाने कब मिले.. एक लास्ट किस तो बनती है" तीनों ने एक दूसरे को किस किया और स्तन दबाएं और खिलखिलाकर हँसते हुए बाहर निकली
मौसम नॉर्मल होने का दिखावा कर रही थी.. लेकिन उसके दिल और दिमाग में तो आग जल रही थी.. रह रहकर उसे ये विचार आ रहा था की पापा और फाल्गुनी ने ऐसा क्यों किया? कब किया होगा? मम्मी कहाँ थी तब? मैं कहाँ थी? क्या वो दोनों मेरे घर पर ही करते होंगे? या फिर पापा की ऑफिस में?? नही नही ऑफिस में तो नही हो सकता.. तो फिर कहाँ मिलते होंगे वो दोनों.. और एकाध बार नही.. सात आठ बार.. !! जानना तो पड़ेगा ही.. फाल्गुनी पर नजर रखूंगी तो सब पता चल जाएगा.. !!!
The secret is going to be out soon.तीनों लड़कियां अपनी हवस शांत करने के लिए अलग अलग क्रियाएं करने में व्यस्त थी.. लेकिन उनकी वासना शांत होने के बदले और भड़क रही थी.. रात के डेढ़ बजे का समय हो रहा था.. पर तीनों में से किसी की भी आँखों में नींद का नामोनिशान नही था.. थी तो बस नारी की हवस..
आज फाल्गुनी का बिल्कुल नया ही स्वरूप देख रहे थे मौसम और वैशाली.. अचानक वैशाली ने अपनी आगे पीछे होने की गति बधाई.. वो बड़ी ही आक्रामकता से अपनी चूत को मौसम के चेहरे के साथ रगड़ने लगी.. वैशाली के प्रहारों से मौसम बिलबिलाने लगी.. लेकिन वैशाली के जोर के सामने वो ज्यादा कुछ नही कर पाई.. अब मौसम थक चुकी थी.. खुले बालों के साथ हाँफ रही वैशाली का पूरा चेहरा लाल हो गया था.. पसीने से तरबतर हो गई थी उसकी गर्दन.. उसका पसीना दोनों स्तनों के बीच से गुज़रता हुआ उसकी चूत से होकर मौसम के चेहरे पर टपकने लगा था.. फाल्गुनी यह द्रश्य और वैशाली का कामुक स्वरूप देखकर ही झड़ गई.. हेरब्रश का डंडा चूत में डालने की जरूरत ही नही पड़ी..
"ओह्ह ओह्ह ओह्ह आह्ह मर गई.. चाट जल्दी.. डाल जीभ अंदर.. ऊईई आह्ह.. ओह गॉड.. उफ्फ़.. !!!!" की कामुक आवाजों के साथ वैशाली झड़ गई.. जैसे भूकंप आने से बहुमंजिला इमारत ढह जाती है.. संध्या होते ही दो पर्वतों के बीच सूरज ढल जाता है.. वैसे ही वैशाली भी पस्त होकर गिर पड़ी.. फाल्गुनी की चूत ने झड़ने के बाद काफी पानी निकाला था.. बेड के चद्दर पर बड़ा सा धब्बा हो गया था चूत के रिसे हुए पानी से.. फाल्गुनी और वैशाली दोनों ठंडी हो चुकी थी.. पर मौसम अब फिरसे उत्तेजित हो गई थी.. अब समस्या यह थी की वैशाली या फाल्गुनी दोनों में से कोई भी उसका साथ देने के लिए फिलहाल तैयार नही थे..
मौसम खड़ी हो गई.. और बालकनी की दीवार के पास खड़ी होकर अपनी चूत को खुजाने लगी.. चारों तरफ अंधकार था.. ठंडी सरसराती हवाएं उसके नंगे बदन को चूमते हुए निकल रही थी.. मौसम की पुच्ची में खुजली का जोर बढ़ता जा रहा था.. उसे अपने पीयूष जीजू की याद आ रही थी.. पीयूष ने कैसे उसके होंठों पर उसके जीवन का प्रथम चुंबन दिया था.. उसके ड्रेस में हाथ डालकर उरोजों को पकड़कर दबाया था.. आह्ह.. !!
मौसम ने पीछे मुड़कर बिस्तर की तरफ देखा.. वैशाली और फाल्गुनी.. एक दूसरे की बाहों में बाहें डालकर.. नवविवाहित जोड़ें की तरह पड़े हुए थे.. फाल्गुनी वैशाली के होंठों पर अपनी जीभ फेर रही थी.. और हेरब्रश का हेंडल वैशाली की चुत के अंदर डाल रही थी.. लगभग ६ इंच लंबा हेंडल कैसे वैशाली की चूत के अंदर चला गया ये देखना चाहती थी मौसम.. !! वह वापिस बेड पर आई.. वैशाली के दोनों पैरों को चौड़ा किया और फाल्गुनी के हाथ से हेरब्रश ले लिया..
मौसम: "मुझे सच सच बता.. फाल्गुनी.. तूने जो लंड लिया वो इतना ही लंबा था?"
फाल्गुनी: "इतना लंबा तो नही था"
मौसम: "तो इससे आधा ??"
वैशाली: "मौसम, लगता है तुझे लंड देखने की बड़ी चूल मची है.. एक काम कर.. यहाँ हमारे ग्रुप में से किसी भी एक मर्द को पसंद कर और चुदवा ले.. यहाँ कौन देखने वाला है तुझे!! घर वापिस लौटकर चुदवाना तो छोड़.. लंड देखना भी नसीब नही होगा !!"
फाल्गुनी: "मन तो मेरा भी कर रहा है.. पर किसी को भी कैसे राजी करें? सीधा जाकर ऐसा तो नही बोल सकते की चलो चोदते है!!"
वैशाली: "तुम दोनों मुझे एक बात बताओ.. अगर तुम्हें एक रात के लिए किसी एक मर्द के साथ बिताने का मौका मिले.. तो हमारे ग्रुप में से कीसे चुनोगी?"
सवाल बड़ा ही रोमांचक था.. मौसम और फाल्गुनी दोनों शरमा गई.. नग्न स्त्री या लड़की को शरमाते देखना बड़ा ही मनोहर द्रश्य होता है
मौसम: "पहले तू बता वैशाली.. तुझे कौन पसंद है?"
वैशाली: "मुझे तो सब पसंद है.. अगर मौका मिले तो मैं एक ही रात में सभी मर्दों से चुदवा लूँ.. पर अभी बात मेरी नही, तुम दोनों की हो रही है.. तो बताओ मुझे.. हो सकता है की तुम्हारी पसंद के मर्द के साथ रात गुजारने का मैं ही तुम दोनों के लिए सेटिंग कर दूँ....
फाल्गुनी: "माय गॉड.. तुम तो दलाल जैसी बात कर रही हो.. !!"
मौसम: "यार फाल्गुनी.. मुझे तो लगता है की वैशाली ने इस ग्रुप के किसी मर्द के साथ ऑलरेडी सेक्स कर लिया है.. मुझे तो यकीन है!!"
फाल्गुनी: "अच्छा? तो तेरे हिसाब से वैशाली ने किसके साथ किया होगा? कौन हो सकता है?"
थोड़ी देर सोचने के बाद मौसम ने कहा "हम्म.. एक तो राजेश सर के साथ और दूसरा.. !!"
वैशाली रोमांची होकर बोली "हाँ हाँ बोल ना.. कौन हो सकता है दूसरा!!" वो देखना चाहती थी की मौसम अपने मुंह से पीयूष का नाम लेती है या नही
मौसम: "दूसरा कौन हो सकता है.. ये मुझे पता नही.. फाल्गुनी, तू बता.. तू किसके साथ रात गुजारना चाहेगी?"
फाल्गुनी के स्तन टाइट हो गए.. रात बिताने की कल्पना से ही.. !!
उसने शरमाते हुए कहा "पिंटू के साथ, मौसम। मुझे वो बहोत ही पसंद है.. कितना क्यूट है यार!! कल से उसकी तरफ देखकर लाइन दे रही हूँ.. पर वो कमीना मेरे सामने नजर उठाकर देखता तक नही है!! मुझे लगता है की उसे किसी ओर लड़की में इन्टरेस्ट होगा.. !!"
मौसम अपनी बहन कविता के राज के बारे में थोड़ा बहोत जानती थी.. फाल्गुनी के मुंह से पिंटू का नाम सुनकर वो चोंक गई.. कहीं पिंटू और कविता के बीच अब भी कुछ??? बाप रे.. !! जिस कंपनी में पिंटू जॉब करता हैं, वहीं पर जीजू भी है.. ये कड़ियाँ कहीं न कहीं तो जुड़ ही रही होगी.. मौसम चुपचाप सोचती रही..
फाल्गुनी: "अब तेरी बारी है मौसम.. तू बता"
मौसम उलझन में पड़ गई.. कैसे कहूँ की मैं अपने जीजू पीयूष के साथ रात बिताना चाहती हूँ!!
पीयूष जीजू की याद आते ही मौसम बेचैन हो गई.. जीजू के संग बिताएं वो दो घंटों का सुहाना समय.. उसके जीवन का एक अविस्मरणीय पन्ना था.. पीयूष के साथ बिताएं उन पलों के बाद.. मौसम ज्यादातर उत्तेजित रहती और उसे बार बार अपनी गीली मुनिया में उंगली करने को दिल कर रहा था.. आज से पहले उसे कभी ऐसा एहसास नही हुआ था.. अब तक तो वो दो हफ्तों में.. कभी कभी महीने में एकाध बाद चूत में उंगली करती या टूथब्रश घुसाकर सो जाती.. पर माउंट आबू के इस मदहोश वातावरण में.. पीयूष के संग बिताई उस दोपहर के बाद.. और खास कर उस सेक्स शॉप में हुए अनुभव के बाद.. जैसे उसकी कामुकता को रोके रखने वाला दरवाजा ही टूट गया.. हाय रे जवानी.. !! बालकनी में नंगी खड़ी मौसम.. अपने कुँवारे स्तनों पर लग रही ठंडी ठंडी हवा के स्पर्श का मज़ा लेते हुए पीयूष की लिप किस को याद कर रही थी.. उसने हल्के से अपनी छाती पर हाथ रखा और बालकनी की दीवार पर एक पैर टीकाकर.. मजबूत लंड के धक्के कखाने को बेकरार.. उसकी गुलाबी चूत को सहलाने लगी.. जैसे अपनी चूत को मना रही हो.. उसे ताज्जुब इस बात का हो रहा था की कैसे वैशाली, फाल्गुनी और पीयूष के हाथ उसके जिस्म पर सरककर निकल गए!! वो माउंट आबू की हसीन वादियों का मज़ा लेने आई तब निर्दोष मासूम बच्ची थी.. एक ही दिन में जिंदगी ने ऐसी करवट ली.. की उसकी पूरी सोच ही बदल गई.. उसने कभी सपने में भी नही सोचा था की उसकी कुंवारी जवानी की धरती पर.. पीयूष नाम का बादल यूं बरस पड़ेगा.. !!
स्तन मर्दन करते हुए उसकी जवानी की भूख इतनी बेकाबू हो चली.. की बार बार उसकी चूत फड़फड़ा उठती.. अपने दिल को उसने बार बार समझाया की शादी के बाद ही ये सारी चीजें हो सकती है.. पर कमबख्त दिल था की मानता ही नही था.. !! क्या करूँ? कैसे समझाऊँ अपने जिस्म को? ये तो अच्छा हुआ की ऐसे वक्त पर मुझे वैशाली और फाल्गुनी का साथ मिल गया.. नहीं तो जरूर मैं कुछ गलती कर बैठती.. !! उसने एक नजर बेड पर लेटी अपनी नंगी सहेलियों की ओर देखा.. एक दूसरे के गले में बाहें डालकर बेफिक्र होकर दोनों लेटी हुई थी..
मौसम धीरे से बेड की तरफ आई.. ट्यूबलाइट के सफेद प्रकाश में वैशाली की मदमस्त छाती इतनी गदराई और तंदूरस्त नजर आ रही थी.. देखते ही अच्छे अच्छों की नियत खराब हो जाएँ.. मौसम ने फाल्गुनी के स्तनों की ओर देखा.. देखकर पता चलता था की भले ही वैशाली जीतने दबे नही थे पर फाल्गुनी अनछुई भी नही थी.. और अब तो उसने खुद ही इस बात का एकरार कर लिया था.. !! वो खुद ही बता चुकी थी की वो सात से आठ बार चुद चुकी थी.. पर पहली बार जब उसने अपनी नाजुक सी फुद्दी में लंड लिया होगा तब उसे कैसा अनुभव हुआ होगा?? लंड.. लंड.. लंड.. !! बाप रे.. ये शब्द सोचते ही चूत में ४४० वॉल्ट का झटका लग जाता था.. पता नही चूत के अंदर लेते वक्त क्या होता होगा..!!
वैशाली और फाल्गुनी के बीच पड़ा हेरब्रश मौसम ने उठाया.. और उसे चूम लिया.. पता नही चल रहा था की वो ऐसा क्यों कर रही थी!! एक निर्जीव लकड़ी से बने ब्रश को चूमने पर इतना मज़ा क्यों आ रहा था भला.. !! मौसम को वो रात याद आ गई जब उसके गाने से खुश होकर संजय ने उसे ५०० रुपये दिए थे.. वैशाली का कहना था की उसका पति संजय बहोत ही लोफ़र और दिलफेंक किस्म का आदमी था.. कहीं ५०० रुपये देकर संजय मुझे पटाना तो नही चाहता था.. !!! उस वक्त तो ऐसा कुछ नही लगा था.. और उस वक्त के बाद संजय से मिलना भी तो नही हुआ था.. वैसे संजय दिखने में बड़ा हेंडसम है.. तो फिर वैशाली को उससे इतनी भी क्या दिक्कत होगी??
हेरब्रश को अपनी छाती से रगड़ते हुए मौसम ये सब सोच रही थी.. सारे विचारों को अपने दिमाग से हटाकर मौसम ने फाल्गुनी की नंगी जांघों पर हेरब्रश का डंडा हल्के से रगड़ दिया.. कहीं फाल्गुनी को संजय ने तो नही चोद दिया होगा?? नही नही.. संजय और फाल्गुनी मिले ही एक बार है.. ऐसा होना असंभव था.. गहरी नींद में सो रही फाल्गुनी को अपने शरीर पर किसी चीज का स्पर्श महसूस नही हुआ.. मौसम की नजर फाल्गुनी की चूत पर पड़ी.. उसकी चूत भी जैसे गहरी नींद सो रही थी.. वैशाली द्वारा चटवाने के बाद शांत पड़ी चूत काफी सुस्त लग रही थी.. वैशाली की टांगें थोड़ी सी चौड़ी करके हेरब्रश का डंडा उसकी चुत पर रगड़ा.. वैशाली का सुराख थोड़ा सा चौड़ा था.. पर मेरी चूत तो अब भी कितनी टाइट और कसी हुई है!! शायद इसी वजह से वैशाली को फाल्गुनी पर शक हुआ था की उसका सील टूटा हुआ था.. सील टूटते वक्त कैसा महसूस होता होगा?? अब मौसम वापिस फाल्गुनी की चूत पर हेरब्रश रगड़ने लगी.. सोचते सोचते अनजाने में ही मौसम ने हेरब्रश का हेंडल फाल्गुनी की चूत के अंदर धकेल दिया..
"आह्ह.. !!" फाल्गुनी की आँख एकदम से खुल गई.. उसने बगल में बैठी नग्न मौसम को चूत के अंदर डंडा डालते देख वह अपनी आँखें मलते हुए खड़ी हो गई.. "तू अभी भी जाग रही है.. !! नींद नही आ रही क्या?"
मौसम को हाथ में हेरब्रश पकड़े देखकर उसने आगे पूछा "क्या बात है मौसम? तू क्या करने वाली थी? सच सच बता मुझे"
मौसम: "कुछ नही यार.. मैं ये सोच सोचकर परेशान हो रही हूँ की आखिर तूने इतनी सारी बार सेक्स किया किसके साथ? मैंने दिमाग पर जोर डालकर बहोत सोचा पर कोई नाम नही सुझा मुझे.. मुझे बता न यार!! जब तक मैं ये जान नही लूँगी तब तक मेरे मन को चैन नही पड़ेगा.. तेरा उस व्यक्ति का संपर्क कैसे हुआ था? पहचान कैसे हुई थी? मुझे तूने क्यों कुछ नही बताया? मुझसे छुपाने का क्या कारण था?? इस बात का मुझे दुख हो रहा है ये जाहीर सी बात है.. मैंने आज तक तुझसे मेरी कोई बात नही छुपाई फिर तूने मेरे साथ आखिर ऐसा किया ही क्यों?"
एक ही सांस में मौसम ने कई सवाल दाग दिए फाल्गुनी की ओर.. पूछते पूछते उसने हेरब्रश का चार इंच जितना हिस्सा फाल्गुनी की चूत में डाल दिया था.. और वो उसे हिलाते हुए आगे पीछे भी कर रही थी.. फाल्गुनी को मज़ा आना शुरू हो गया था इसका पता चल रहा था क्योंकि वो मौसम के हाथों की हलचल के साथ तालमेल मिलाते हुए अपने चूतड़ भी हिला रही थी.. !! उसकी कमर और गांड की हलचल से ये साफ प्रतीत हो रहा था की उसकी चूत में भी खुजली हो रही थी..
मौसम: "बोल ना फाल्गुनी.. मुझसे क्यों छुपा रही है? क्या तू मुझे अपना नही मानती? ठीक है.. नही बताना है तो मत बता" कहते हुए नाराज होकर उसने हेरब्रश चूत से बाहर निकाल लिया और नाराज होकर फाल्गुनी की बगल में लेट गई
फाल्गुनी: "मौसम, तू समझती क्यों नही है यार!!! मैं नाम नही बता सकती.. अगर बता सकती तो तुझसे छुपाती ही क्यों? अगर मैंने नाम बता दिया तो हाहाकार मच जाएगा.. प्लीज यार.. मुझे नाम बताने के लिए ओर फोर्स मत कर"
नाराज मौसम को देखकर फाल्गुनी सोच में डूब गई.. इस मामले को सुलझाएं कैसे? किसी भी सूरत में अपना ये सीक्रेट मौसम को नही बता सकती थी ये बात तो पक्की थी.. मौसम नाराज होकर करवट बदलकर फाल्गुनी से विरुद्ध दिशा में सो गई.. मौसम की चूत में जबरदस्त खुजली हो रही थी पर साथ ही साथ उसका दिमाग ये सोच रहा था की यही सही वक्त था फाल्गुनी से वो राज उगलवाने का.. अगर वो आज जान नही पाई तो ये राज हमेशा राज बनकर ही रह जाएगा..
मौसम को कंधे से पकड़कर फाल्गुनी ने अपनी और खींचा और बोली "नाराज हो गई यार!! मैंने आज तक तुझसे कोई बात कभी छुपाई है क्या!! वो हरीश मुझे लाइन मारता था वो भी बता दिया था मैंने तुझे!!"
मौसम: "हाँ फाल्गुनी.. तुझे जो लड़का लाइन मार रहा था उसके बारे में तो सब बता दिया था तूने.. पर जो तुझे चोद गया उसके बारे में मुझे कुछ भी नही बता रही.. एक बार को तो ऐसा भी विचार आया मुझे की कहीं उस लफंगे हरीश के साथ तो तूने नही चुदवाया ना?? हो सकता है.. क्यों नही हो सकता.. जो लड़की अपनी सब से खास सहेली से इतनी बड़ी बात छुपा सकती है.. वो कुछ भी कर सकती है"
फाल्गुनी अब बराबर फंस चुकी थी.. उसने एकदम धीमी आवाज में कहा "तूने ऐसा क्यों नही सोचा की मेरे लिए बताना मुमकिन नही होगा तभी नही बताया होगा... वरना मैं क्यों तुझसे कुछ भी छुपाऊँ?? और तुझसे छुपाकर मुझे क्या फायदा?"
मौसम: "क्या फायदा ये तो छुपानेवाला ही बता सकता है.. कुछ तो होगा कारण.. हो सकता है की तुझे लगता हो की अगर मुझे बताएगी तो मैं भी तेरे साथी में हिस्सा मांगूँगी.. !!"
फाल्गुनी: "पागलों जैसी बात मत कर, मौसम!!"
मौसम: "तुझे ये भी विचार नही आया की सात आठ बार मजे लूट लेने के बाद तू मुझे भी मौका देती..!! मुझे पता नही था की तू इतनी स्वार्थी होगी.. अब तक तो हम एकदम खास सहेलियाँ थी.. पर शायद अब तुझे अकेले अकेले ही खाने में मज़ा आने लगा है.. जा.. अब से तेरी कट्टी"
पहाड़ टूट पड़ा फाल्गुनी पर.. मौसम रूठ जाएँ तो कैसे चलेगा.. !! फाल्गुनी अपने माँ बाप के बगैर रह सकती थी पर मौसम के बगैर उसे एक पल नही चलता था.. इतनी गहरी दोस्ती थी दोनों की.. फाल्गुनी को भी मन ही मन गुस्सा आ रहा था.. की मौसम ऐसी बात के लिए उससे रूठ गई!! पर मैं भी क्या करूँ? अगर मौसम को सब सच बता दूँ तो कयामत आ जाएगी.. और नही बताती तो दोस्ती टूट जाएगी.. ओह्ह क्या करूँ?
रात के साढ़े तीन बज रहे थे पर मौसम या फाल्गुनी.. दोनों की नींद उड़ चुकी थी.. वैशाली घोड़े बेचकर सो रही थी.. अपनी चूत शांत करके.. अब वो सच में सो रही थी या ढोंग कर रही थी वो तो उसे पता.. !! पर मौसम और फाल्गुनी के संबंध ऐसे चौराहे पर आकर खड़े हो गई थे की अगर फाल्गुनी सच नही बताती तो दोनों की दोस्ती वहीं खतम होने वाली थी
बहोत उदास हो गई फाल्गुनी.. जिंदगी ऐसे कठिन मोड पर लाकर खड़ा कर देगी ऐसा उसने कभी नही सोचा था.. सोचते सोचते कब दोनों की आँख लग गई उन्हे पता ही नही चला..
हमेशा सेवा में तत्पर
Thanks for the comments Delta101सही बात है.....
बहोत उदास हो गई फाल्गुनी.. जिंदगी ऐसे कठिन मोड पर लाकर खड़ा कर देगी ऐसा उसने कभी नही सोचा था.. सोचते सोचते कब दोनों की आँख लग गई उन्हे पता ही नही चला..
सुबह साढ़े छह बजे एलार्म बजते ही सब से पहले वैशाली की आँख खुली.. उसने धक्का देकर मौसम को जगाया.. अपने नंगे जिस्म को देखकर.. वैशाली को पिछली रात की रंगीन घटनाएं याद आ गई.. मन ही मन मुस्कुराते हुए उसने मौसम को हाथ से सहारा देकर उठाया और गुड मॉर्निंग कहते हुए उसे गले से लगा लिया.. स्तन से स्तन मिलें.. और स्तनों ने भी आपस में सुप्रभातम कर लिया..
"अब इस चुड़ैल को भी जगा..फिर हम तीनों बाथरूम में एक साथ नहायेंगे.. सब के सामने तैयार होकर जाने से पहले.. एक एक ऑर्गैज़म हो जाए.. फिर किसी की ओर आकर्षण होने का कोई खतरा नही.. वरना इस छुपी रुस्तम फाल्गुनी का कुछ कह नही सकते.. माउंट आबू में ही किसी को ढूंढकर उसके नीचे लेट जाएगी.. और फिर हम से कहेगी.. सात-आठ बार नही पर नौ बार चुदवाया है.. अभी भी साली मादरचोद ने उसका नाम नही बताया.. और ये भी नही बताया की सात-आठ बार एक ही लंड लिया था या हर बार अलग अलग था.. !!"
सुबह-सुबह वैशाली के मुंह से यह नंग-धड़ंग बातें सुनकर मौसम की चूत में कुछ कुछ होने लगा.. मौसम खड़ी हुई और वैशाली को उसकी निप्पल से खींचते हुए बाथरूम के अंदर ले गई.. और इंग्लिश कमोड पर बैठकर पेशाब करने लगी.. उसने निप्पल पकड़े रखी थी.. वैशाली ने कहा "क्या कर रही है यार तू? दर्द हो रहा है.. ऐसे भी भला कोई निप्पल खींचता है क्या!! दिमाग-विमाग है या नही? नहाना मुझे भी है.. ऐसे ही थोड़े बिना नहाए साइट सीइंग के लिए निकल पड़ूँगी!! अब जल्दी खतम कर और खड़ी हो जा.. मुझे भी बड़ी जोर से लगी है" मौसम के हाथ से अपनी निप्पल छुड़वाते हुए वैशाली ने थोड़े गुस्से से कहा
पर मौसम ने उसकी एक न सुनी.. और आराम से कमोड पर ही बैठकर मुस्कुराते रही.. आखिर थककर वैशाली बाथरूम के फर्श पर ही उकड़ूँ बैठ गई और मूतने लगी.. दोनों की पेशाब की धार की आवाज पूरे बाथरूम में गूंज रही थी..
वैशाली: "वो रांड अब तक जागी क्यों नही? रात को कहीं किसी वेटर के साथ चुदवाने तो नही गई थी ना.. !! उसका कुछ कह नही सकते" मौसम के गले में अपने बाहों का हार डालकर उसकी नाक से अपनी नाक रगड़ते हुए उसने कहा
मौसम ने झुककर अपना हाथ वैशाली की मूत रही चूत पर लगाया और पेशाब की धार से अपनी हथेली गीली करके खुद की चूत पर मल दिया और आँखें बंद कर किसी दूसरी दुनिया में ही पहुँच गई और बोली "आहाहाहा.. वैशाली कितना गुनगुना और गरम लग रहा है यार!! मन कर रही है की टांगें चौड़ी करके यहीं नीचे लेट जाऊँ.. और तेरे पेशाब की धार सीधी अपने चूत में लूँ.. "
मौसम के सुंदर स्तनों को दबाते हुए वैशाली ने कहा "अरे यार.. पहली बता देती.. चूत में क्यों.. तेरे मुंह में ही मेरी धार मार देती.. ऐसा मस्त नमकीन स्वाद तुझे और कहीं चखने को नही मिलेगा.. "
मौसम को घिन आ गई "छी छी यार.. मुंह में भी कभी कोई मुतता है क्या!!!"
वैशाली: "यार मौसम.. ये फाल्गुनी हमे उस चोदनेवाला का नाम क्यों नही बता रही? कोई बहोत बड़ा राज है क्या?"
मौसम: "रात को हम दोनों के बीच इस बारे में काफी कहा सुनी हुई थी.. तू सो गई उसके बाद.. मैंने कितनी बार पूछा पर उसने बताया ही नही.. इतना बुरा लगा मुझे.. दोस्ती में ऐसा भी क्या छुपाना!!! अगर मुझे बता देती तो मैँ कौन सा उसके लवर को छीन लेने वाली थी..!!"
वैशाली: "हाँ यार.. उस बात का मुझे भी बुरा लगा था.. जब हम तीनों इतना खुल चुके थे तब उसे बताने में भला क्या दिक्कत थी?? अब उसे बताना ही ना हो फिर पूछकर क्या काम.. !!"
मौसम: "हमें काम तो कुछ नही पर जानना जरूरी है.. कहीं वो किसी उलटे सीधे मर्द के साथ फंस गई हो तो हम उसकी मदद कर सकते है "
वैशाली सोचने लगी.. मौसम की बात तो सही थी.. एक तरफ फाल्गुनी सेक्स से इतना परहेज करती है.. और फिर भी सात-आठ बार कर चुकी है.. ऐसा कैसे हो सकता है? कहीं किसी के चंगुल में तो नही फंस गई? या फिर कोई ब्लैकमेल कर रहा हो.. ??
वैशाली: "तेरी बात बिल्कुल सही है मौसम.. कुछ तो बड़ा लोचा है.. हमें कुछ करना ही होगा" वैशाली वैसे ही नंगी कमरे में चली गई और फाल्गुनी को जगाकर बाथरूम में खींच लाई..
फाल्गुनी को अंदर लाकर वैशाली ने शावर चालू कर दिया और तीनों एक दूसरे पर पानी उड़ाते हुए खेलने लगी.. पानी का जादू ही कुछ ऐसा होता है की बूढ़े से बूढ़ा आदमी भी उसके संसर्ग में आकर बच्चे जैसा बन जाता है.. गीजर के गरम गुनगुने पानी को एक दूसरे पर उछालते हुए वैशाली दोनों के साथ बातें कर रही थी.. पर मौसम और फाल्गुनी एक दूसरे से नजरें चुरा रही थी.. दोनों बात भी नही कर रही थी.. फाल्गुनी से मौसम का ये बदला बदला सा रूप बर्दाश्त नही हो रहा था.. उसने मौसम पर पानी उड़ाकर उसे मनाने की कोशिश तो की.. पर मौसम तौलिया लेकर बिना कुछ कहें कमरे में चली गई..
वैशाली समझ गई की दोनों के बीच अनबन हुई थी.. मौसम के बाहर जाते ही मौके का फायदा उठाकर वैशाली ने दरवाजा बंद कर लिया और फाल्गुनी को अपनी बाहों में दबा दिया.. फाल्गुनी ने वैशाली के होंठों पर किस करते हुए कहा "देख वैशाली.. जैसे तूने सिखाया था वैसे ही किस करना अब आ गया मुझे"
वैशाली: "अब वो तो होना ही था.. क्यों नही आता भला.. !! आखिर गुरु कौन है तेरी!!! हा हा हा हा.. पर मुझे ऐसी शेखी नही मारनी चाहिए की मैंने ही तुझे किस करना सिखाया" वैशाली ने परोक्ष तरीके से बात छेड ही दी.. फाल्गुनी के स्तनों पर साबुन मलते हुए दूसरा साबुन उसने उसके हाथ में दे दिया.. फाल्गुनी समझ गई और वो भी वैशाली के भरे भरे स्तनों पर साबुन लगाते हुए बोली "मतलब? तू कहना क्या चाहती है?"
वैशाली: "मेरे कहने का ये मतलब है की तूने सात-आठ बार जिसका भी लंड अपनी चूत में दलवाया.. उसने सीधे सीधे तो लंड अंदर नही डाला होगा न.. पहले बूब्स दबाएं होंगे.. चूसे होंगे.. चूत चाटी होगी.. और लिप किस भी की होगी.. फिर मैं ये कैसे कह सकती हूँ की मैंने तुझे सिखाया?"
"वो तो उन्होंने की थी.. मैंने थोड़े ही की थी? जिसने की हो वही जाने.. उनके करने से मुझे किस करना कैसे आ जाता.. !! पर ये बता दूँ.. की तुझे और मौसम को किस करने में जो मज़ा आया था वैसा मज़ा उनके साथ नही आया था यार.. !!"
फाल्गुनी के बोलते ही वैशाली ने नोटिस किया "उन्होंने.. उनके.. " शब्द प्रयोग का अर्थ यह था की फाल्गुनी को चोदने वाला कोई उसकी उम्र का या उसकी आसपास की उम्र का नही था.. कोई बड़ी उम्र का या बुजुर्ग ही हो सकता है.. अब नाम जानने के लिए फाल्गुनी को फुसलाना जरूरी था.. वैशाली का दिमाग भी उसकी माँ शीला जैसा तेज था.. उसने एक तरकीब सोची..
फाल्गुनी की चूत पर साबुन रगड़ते हुए वैशाली ने अपनी एक उंगली अंदर डाली और उसके होंठों पर एक लंबी किस कर दी.. दोनों के साबुन लगे स्तन एक दूसरे के संग दब गए.. चूत में उंगली करते हुए उसने फाल्गुनी से कहा "फाल्गुनी, मेरी एक रीक्वेस्ट है.. "
फाल्गुनी: "हाँ हाँ बोल ना.. !!"
वैशाली: "यार, बात दरअसल यह है की तुझे शायद नही पता होगा.. मेरे और मेरे पति संजय के बीच जरा भी नही बनती.. पिछले काफी समय से हम एक दूसरे से ठीक से बात तक नही करते.. तुझे पता है फाल्गुनी, मर्द तो घूमते रहते है और अपनी जरूरतें बाहर कहीं भी पूरी कर लेते है.. लेकिन हम लड़कियां ऐसा नही कर सकती.. मर्दों को अपनी हवस बुझाने के लिए बाजार में ढेरों लड़कियां मौजूद है जो पैसे लेकर अपने शरीर का सौदा कर लेती है.. पर हम लड़कियों के लिए वो सुविधा भी आसानी से उपलब्ध नही होती.. यार फाल्गुनी, तू अभी कुंवारी है इसलिए शायद मेरी बात समझ में नही आएगी.. पर एक बार हमारी चूत को लंड की आदत पड़ जाती है ना.. फिर उसे वो चाहिए ही चाहिए.. संजय तो अब मुझे छूता तक नही.. या यूं कह लो की मैं उस मादरचोद को हाथ लगाने नही देती.. किसी रांड की चूत में घुसा हुआ लंड मैं क्यों अपने मुंह में लूँ.. ??" वैशाली ऐसे ऐसे शब्दों का प्रयोग कर रही थी जिन्हे सुनकर फाल्गुनी की चूत गरम भांप छोड़ने लगी..
बाथरूम से बाहर आकर मौसम ने कपड़े पहन लिए.. मेकअप भी कर लिया.. लेकिन वैशाली और फाल्गुनी अभी तक बाथरूम में ही घुसी हुई थी.. क्या कर रही होगी वो दोनों अंदर? दरवाजा भी बंद है.. जरूर रात जैसा है कोई कार्यक्रम शुरू किया होगा दोनों ने.. मैं भी अंदर रहती तो मज़ा आता.. वैशाली के साथ वैसे तो बहोत मज़ा आता ही है.. बोल्ड और ब्यूटीफुल है वो.. पर इन दोनों ने दरवाजा अंदर से बंद क्यों कर रखा है? मौसम को ज्यादा विचार करने की जरूरत नही पड़ी क्योंकि दरवाजे के करीब खड़े रहकर उसे वैशाली की बातें स्पष्ट सुनाई दे रही थी.. अब मौसम कान लगाकर उनकी बातें बाहर से सुन रही है उसका पता वैशाली और फाल्गुनी को कैसे चलता.. !!
वैशाली: "मुझे तो हर रात को इतनी इच्छा होती है.. रोज रात होते ही मेरी भूख जाग जाती है और मुझसे बर्दाश्त नही होती.. संजय तो अपनी मस्ती में कहीं पड़ा रहता है.. और मैं यहाँ मर्द के स्पर्श को तरसती और तड़पती रहती हूँ.. फाल्गुनी, मैं भी जवान हूँ.. मेरे भी अरमान है.. जरूरतें है.. ज्यादा से ज्यादा तीन दिनों तक अपनी भूख को सहन कर लेती हूँ.. चौथे दिन तो ऐसा मन करता है की कहीं भाग जाऊँ.. अलग अलग प्रयोग करके खुद को संतुष करने की कोशिश करती हूँ.. पर कितने दिनों तक?? ओरीजीनल लेने में कितना मज़ा आता है.. तुझे तो पता ही है.. !!"
फाल्गुनी: "हाँ यार वैशाली.. तेरी बात बिल्कुल सही हैं.. मैं कितनी भी कोशिश करूँ मुझसे गलती हो ही जाती है.. साला कंट्रोल ही नही रहता.. पर तू मुझसे क्या चाहती है, ये तो बता.. !!"
वैशाली: "बुरा मत मानना फाल्गुनी, तेरा जो भी पार्टनर हो उसे मैं छिनना नही चाहती.. पर एक बार मुझे भी उनसे मिलवा दे.. मुझे बहोत मन कर रहा है यार.. इस चूत में असली लंड गए हुए एक साल से ऊपर हो गया है.. मुझे तो लगता है की मैं पागल हो जाऊँगी.. "
फाल्गुनी: "जो तू कह रही है वो मुमकिन नही हो सकता.. कोई चांस ही नही है:
वैशाली: "मैं समझ सकती हूँ यार.. पर अगर तेरे पार्टनर के साथ मुमकिन न हो तो उसके कोई दोस्त से सेटिंग करवा दे.. हम दोनों मिलकर मजे करेंगे"
फाल्गुनी: "यार वैशाली, मैं तुझे कैसे समझाऊँ? ये पोसीबल ही नहीं ये.. वो मौसम भी यही बात को लेकर मुझसे रूठी हुई है.. उसे भी नाम जानना है.. अगर मैं उसे नाम बता दूँगी तो उसकी क्या हालत होगी वो नही जानती.. और तुम भी कल रात से इसी जिद पर अडी हुई हो..!!"
मौसम दरवाजे पर कान चिपकाकर ये सारी बातें बड़े ध्यान से सुन रही थी.. उसकी सांसें गले में अटक गई थी.. कहीं कोई बात सुनने में रह न जाए इसलिए वो एकटक अपना ध्यान अंदर की बातों पर केंद्रित कर सुन रही थी.. उसे वैशाली की बात सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ.. एक स्त्री होकर कैसे वो अपनी दोस्त का पार्टनर मांग रही थी!!!! वो भी सेक्स करने के लिए ?? माय गॉड.. एक नंबर की बेशर्म है साली.. !!"
फाल्गुनी: "वैशाली, जैसा तूने कहा की मर्दों को पैसे देकर लड़कियां मिल जाती है.. तो क्या संजय भी ऐसी लड़कियों के साथ संबंध रखता है ??"
वैशाली की उंगलियों का जादुई असर अब फाल्गुनी पर हो रहा था.. उत्तेजित होकर वो विचित्र सवाल पूछ रही थी जिनका जवाब भी उत्तेजना और अश्लीलता से भरपूर ही होने वाला था
वैशाली: "हाँ यार.. दो दो महिना बाहर रहकर जब वो घर आता है.. तब इतने आराम से मेरे बगल में लेटे हुए बिना कुछ कीये पड़ा रहता है.. देखकर ही पता चल जाता है की वो अपनी आग कहीं और बुझाकर आया है.. बाकी ऐसा कौन सा पति होगा जो दो महीने तक अपनी पत्नी से दूर रहकर वापिस आयें और अपनी पत्नी को हाथ भी ना लगाएं.. !!!"
फाल्गुनी: "सही बात है.. मर्द लोग तो कुछ भी कर सकते है.. ना जगह देखते है.. न समय देखते है.. जब मन करे तब छेड़ने लगते है.. हम लोगों तो कितनी शर्म आती है पर उन्हें तो कोई शर्म ही नही होती.. !!"
वैशाली: "जैसे पुरुषों के लिए लड़कियों और औरतों का बाजार होता है वैसे ही हम लड़कियों के लिए भी लड़कों/मर्दों का बाजार होता तो कितना अच्छा होता.. !! मेरी जैसी भूखी लड़कियां.. विधवा.. तलाकशुदा औरतें.. वहाँ जाकर अपनी पसंद के लड़के से चुदकर हवस को शांत कर पाती.. ये भूख अब सही नही जाती.. तू मानेगी नही.. इतना मन करता है की तुझे क्या बताऊँ?? कल रात तुम दोनों ने देखा था न.. कितनी गरम हो गई थी मैं!! ये जानते हुए की मेरी खुजली शांत कर सकें ऐसा लंड हाजिर नहीं है फिर भी कैसे मैंने मेरी चूत को तेरे और मौसम के चेहरे पर चिपका दिया था!! अब तुझसे क्या छुपाना.. संजय की उपेक्षा से मैं तंग आकर मैं यहाँ अपनी मम्मी के पास आ गई.. और सेक्स की इतनी तीव्र इच्छा हो रही थी की मैंने मम्मी की गैरमौजूदगी में अपने कॉलेज के पुराने फ्रेंड को घर बुलाकर चुदवा लिया.. तब जाके नीचे थोड़ी ठंडक मिली.. पर मुसीबत ये है की एक बार करने पर भूख थोड़े समय के लिए शांत तो हो जाती है.. पर दो-तीन बितते है वापिस अंदाई लेकर भूख जाग जाती है.. कभी कभी तो पुरुषों को देखकर इतने गंदे गंदे विचार आने लगते है मन में की क्या बताऊँ? मन करता है की उनको वहीं धर दबोचूँ और अपनी चूत में उनका लंड ले लूँ.. अब ऐसे मैं कहीं मुझसे कोई बड़ी गलती हो गई तो?? इसीलिए मैंने तुझसे कहा.. की तू जिसके साथ मजे करती है उसके साथ मेरी भी सेटिंग करवा दे.. तू बुरा मत मानना.. पर तू तो कुछ दिनों में चली जाएगी.. फिर मुझे ऐसा चांस दोबारा नही मिलेगा.. मुझे एक बार तो मजे कर लेने दे यार.. तुझे क्या दिक्कत है?? पर जब तू नाम भी नही बता रही तो करने देने का कोई सवाल ही नही उठता.. " एक भारी सांस छोड़ते हुए वैशाली ने कहा
फाल्गुनी: वैशाली, तू मेरे पार्टनर के साथ सेक्स करें उसमें मुझे कोई प्रॉब्लेम नही है.. पर मैं उलझन में हूँ.. अगर मैं वो नाम बता दूँगी तो तू मेरे बारे में क्या सोचेगी!!! और मौसम को पता चलेगा तो उसके सर पर आसमान टूट पड़ेगा.. !!"
वैशाली: 'मैं प्रोमिस करती हूँ.. ये बात मौसम को कभी पता नही चलेगी.. तुझे मुझपर इतना भरोसा तो होना चाहिए.. और वैसे भी मैं कुछ दिनों में वापिस कलकत्ता चली जाऊँगी.. तेरा राज मेरे सीने में महफूज रहेगा.. "
फाल्गुनी: "बात तो तेरी ठीक है.. पर कहते हुए मेरी जबान नही चलती.. प्लीज यार.. !!"
वैशाली: "फाल्गुनी, तू नाम देने में जितना शरमा रही है.. उतनी ही मेरी बेसब्री बढ़ते जा रही है.. अगर तूने मुझे नाम बता दिया.. तो मैं मौसम से तेरी दोस्ती फिर से करवा दूँगी.. बिना उसे कुछ बताएं.. ये मेरा वादा है.. " वैशाली ने फाल्गुनी के दोनों स्तनों को दबाकर उसे उत्तेजित कर दिया.. शावर का गरम पानी उसकी चूत से होकर टपकते हुए उसे बेहद आनंद दे रहा था
फाल्गुनी: "ये कैसे मुमकिन होगा वैशाली? बिना नाम जाने मौसम नही मानेगी.. और मैं किसी भी सूरत में उसे नाम नही बता पाऊँगी.. नाम बता दूँगी तो भी हम दोनों की दोस्ती हमेशा हमेशा के लिए टूटने वाली है फिर मैं क्यों बेकार में उसके पापा का नाम बदनाम करूँ???"
वैशाली की सिट्टी-पीट्टी गुम हो गई.. उसके मुंह से चीख निकल गई "मतलब तू मौसम के पापा के साथ..............!!!!!!!!!!!!!!!!" वहीं चीख दरवाजे से होते हुए मौसम के कानों तक पहुँच गई और फिर हवा में ओजल हो गई..
फाल्गुनी: "धीरे बोल वैशाली.. कहीं मौसम ने सुन लिया तो गजब हो जाएगा.. वो तो जान से मार देगी मुझे.. "
वैशाली: "फाल्गुनी, मौसम के पापा के साथ तेरा संपर्क कैसे हुआ? कैसे शुरू हुआ ये सब? कुछ विस्तार से बता तो पता चले मुझे" वैशाली ने एक मिशन तो पार कर लिया था अब दूसरे की तैयारी करने लगी..
फाल्गुनी: "वो सब बाद में बताऊँगी वैशाली.. हम लोग कब से बाथरूम के अंदर घुसकर बैठे है.. सब नीचे साइट-सीइंग के लिए हमारा इंतज़ार कर रहे होंगे.. मौसम भी क्या सोचेगी हमारे बारे में.. !! और हाँ.. तू मेरी और उसकी दोस्ती करवा दे फिर मैं अपनी कहानी सुनाऊँगी!!"
वैशाली: "उसका हल तो काफी सिम्पल सा है.. तू ऐसे ही किसी का भी नाम बता दे मौसम को.. ऐसे व्यक्ति का नाम बता दे जिसे मौसम जानती तो हो पर उससे कन्फर्म करने ना जा सके "
फाल्गुनी: "ऐसे कैसे किसी का भी नाम ले लूँ?"
वैशाली: "दिमाग पर थोड़ा जोर लगा और सोच.. कोई तो नाम होगा.. कोई बुजुर्ग.. या पड़ोसी या कोई रिश्तेदार.. !!"
"नही यार.. ऐसा कोई नही है जिसका नाम ले सकूँ" फाल्गुनी सोचते हुए बोली
"तुम्हारे कॉलेज का कोई प्रोफेसर? " वैशाली उसे नाम सोचने में मदद करने लगी
"प्रोफेसर तो सारे जवान है.. हाँ प्रिंसिपल सर बूढ़े है.. उनका नाम बता दूँ?" फाल्गुनी खुश हो गई.. अपनी समस्या का हल मिलने पर चमक आ गई उसके चेहरे पर..
"हाँ.. बढ़िया रहेगा.. मौसम तुम्हारे प्रिंसिपल से ये पूछने तो जाएगी नही की.. सर, क्या आप मेरी फ्रेंड को चोदते हो?.. " वैशाली ने कहा
फाल्गुनी: "पूछने जाने का तो सवाल ही नही है.. बहोत ही स्ट्रिक्ट है प्रिंसिपल सर.. चल अब हम दोनों निकलते है बाहर"
वैशाली: "और सुन.. बाहर जाकर.. जैसा मैं कहूँ वैसे ही मौसम से बात करना.. ठीक है"
"ओके.. " कहते हुए फाल्गुनी अपने और वैशाली के गीले जिस्म को तौलिए से पोंछने लगी..
बाहर मौसम की पूरी दुनिया गोल गोल घूम रही थी.. वो बेड पर अपना सर पकड़कर बैठी हुई थी.. पापा?? मेरे पापा?? ऐसा कैसे कर सकते है? फाल्गुनी के साथ सेक्स? मौसम के लिए उन दोनों के बाहर आने से पहले नॉर्मल हो जाना काफी जरूरी था.. नहीं तो उनको पता चल जाता की मौसम ये बात जान चुकी थी.. उसने आईने में देखकर अपना मेकअप ठीक कर लिया और लिपस्टिक लगाते हुए गीत गुनगुनाने लगी..
वैशाली और फाल्गुनी बाथरूम से बाहर निकले.. मौसम को मेकअप में व्यस्त देखकर दोनों के दिल को राहत मिली.. खास कर फाल्गुनी को.. क्यों की उसे डर था की जब वैशाली ने चीखकर उसके पापा का नाम लिया तब शायद मौसम ने सुन लिया हो.. !! डरते डरते उसने तिरछी नज़रों से मौसम की ओर देखा.. मौसम तो बेफिक्री से बैठी हुई थी..
वैशाली: "मौसम.. मैंने इस रंडी से उसके पार्टनर का नाम उगलवा लिया"
मौसम: "वैशाली, तू उसकी खास सहेली है.. इसलिए तुझे तो वो सब बताएगी.. दिक्कत तो उसे सिर्फ मुझे बताने में है.."
फाल्गुनी की आँखों में आँसू आ गए "ऐसा नही है मौसम.. तू मुझे गलत समझ रही है यार.. प्लीज ऐसा मत बोल"
मौसम को जैसे फाल्गुनी के आँसू या उसकी बातों से कोई फरक ही नही पड़ा हो वैसे उसने कहा "चलो अब नीचे चलें.. !! सब लोग हमारा वैट कर रहे होंगे"
फाल्गुनी के उदास चेहरे के सामने वैशाली ने देखा..
वैशाली: "मौसम, इतना भी क्या गुस्सा करना? ऐसा गुस्सा अक्सर दोस्ती के लिए खतरनाक साबित होता है.. डोर को कभी इतना भी मत खींचो की वो टूट जाएँ.. !!"
मौसम: "मैंने कहाँ कुछ किया या कहा है? जो भी किया है फाल्गुनी ने किया.. हम दोनों बचपन से साथ है.. एक दूसरे को हर छोटी बड़ी बात बताते है.. पर आज उसने इतनी बड़ी बात मुझसे छुपाई और तुझे बता दी.. अब तू ही बता.. मुझे दुख तो होगा ना.. !!"
फाल्गुनी ने नजरें झुकाते हुए कहा "यार, वो हमारे कॉलेज के प्रिंसिपल सर है.. इसलिए उनका नाम लेने में मुझे शर्म आ रही थी.. !!"
मौसम को दूसरा सदमा पहुंचा.. दोस्ती में एक और झूठ???
एक तरफ तो अपने पापा और फाल्गुनी के संबंधों के बारे में जानकर उसकी रूह कांप गई थी.. ऊपर से प्रिंसिपल के नाम का झूठ सुनकर उसे बड़ा धक्का लगा.. पर उसने अपने चेहरे से ये प्रतीत नही होने दिया.. और नॉर्मल होकर बोली "अरे वो टकलू.. !! तूने क्या देख लिया उस बूढ़े खूसट में? तू चाहती तो एक से बढ़कर एक लड़के तेरी टांगों के बीच आने के लिए तैयार थे.. हरीश है. राज है.. सब लाइन मारते है तुझे.. और तुझे उस बूढ़े माथुर में ऐसा क्या नजर आ गया.. ??"
मौसम को नॉर्मल होकर चर्चा में शामिल होता देख वैशाली खुश हो गई.. चलो आखिर सब ठीक होने लगा था..
वैशाली: "हाँ यार फाल्गुनी.. मौसम की इस बात से तो मैं भी सहमत हूँ.. कोई बांका जवान हेंडसम लड़का होता तो तुझे अपनी छातियाँ मसलवाने में कितना मज़ा आता.. उस बूढ़े में ऐसा क्या दिख गया तुझे? साले का एक पैर कबर में और दूसरा पैर अस्पताल में.. वो तुझे चोद गया.. मुझे तो ये बात हजम नही हो रही" फाल्गुनी ब्रा के हुक बंद करते हुए अपने तंदूरस्त स्तनों को थोड़ा सा उभारने लगी.. ताकि उनका आकार बाहर नजर आयें..
फाल्गुनी: "मैंने सामने से कहाँ कुछ किया है यार.. आप लोग तो मुझ पर ऐसे टूट पड़े जैसे मैं सामने से माथुर सर की चेम्बर में जाकर नंगी होकर लेट गई.. तुझे याद है मौसम उस दिन हम माथुर सर की चेम्बर में.. उस हरामी हरीश की कंप्लेन करने गए थे?? याद कर.. !!"
मौसम: "हाँ हाँ.. याद आया.. !!" मौसम को ताज्जुब हुआ.. कितनी आसानी से बातों की कड़ियाँ जोड़ रही है ये फाल्गुनी..!!!
फाल्गुनी: "उस दिन फिर तू बाहर पटेल सर से बात करने के लिए रुक गई और जैसे ही मैं माथुर सर के चेम्बर में गई.. तो मैंने देखा की वो पल्लवी मैडम को अपनी गोद में बिठाकर उनके बूब्स दबा रहे थे.. और पल्लवी मैडम उन्हे किस कर रही थी.. दोनों इतने बीजी थे की मैं उनके पास जाकर खड़ी हो गई तब तक उन्हें पता ही नही चला.. मैडम के ब्लाउज में हाथ डालकर वो उनके बूब्स को मसल रहे थे.. मैडम भी उनके पेंट के अंदर हाथ डालकर बैठी थी.. यार मौसम.. मैंने तो पहले कभी ऐसा कुछ देखा ही नही था.. मैं तो बुरी तरह चोंक गई.. क्या करूँ समझ में नही आ रहा था.. तभी अचानक उनकी नजर मेरे ऊपर पड़ी.. मैं भागकर बाहर चली गई.. दूसरे दिन तू कॉलेज नही आई थी.. तब कॉलेज खतम होने के बाद मैडम ने मुझे स्टाफ रूम में बुलाया और दरवाजा अंदर से बंद कर दिया.. फिर उन्होंने जबरदस्ती अपने बूब्स मुझसे दबवाये और कहा की अगर मैं किसी को भी इस बारे में कुछ बताऊँगी तो वो मुझे फैल कर देंगे.. मैं बहोत डर गई थी यार.. इसलिए तुझे बता न सकी.. इस में मेरी क्या गलती? मैंने अपनी मर्जी से तो कुछ किया नही था"
वैशाली: "तूने मैडम के साथ ये सब किया तो माथुर सर बीच में कैसे आ गए फाल्गुनी? मुझे लगता है तू अभी भी कुछ छुपा रही है"
फाल्गुनी: "मैं सब कुछ बताती हूँ.. थोड़ा रुको तो.. !!"
तभी मौसम के मोबाइल पर पीयूष का कॉल आया.. उसने कहा की सब बस में बैठ चुके थे और तीनों की राह देख रहे थे.. जल्दी आओ.. तीनों फटाफट निकले पर निकालने से पहले वैशाली ने मौसम और फाल्गुनी की फिरसे दोस्ती करवा दी और कहा "मौसम, गुस्सा थूक दे.. "और फिर दोनों के स्तनों को बारी बारी दबा दिया.. फिर वैशाली और फाल्गुनी दोनों ने मिलकर मौसम के स्तन एक साथ दबाएं और उसे हंसा दिया.. मौसम फाल्गुनी से गले लग गई.. फाल्गुनी की आँखों से आँसू टपक पड़े.. वो इतना ही बोल पाई "मौसम प्लीज.. दोबारा कभी मेरे साथ ऐसा मत करना.."
मौसम: "तूने मुझसे ये सब छुपाया नही होता तो ये नोबत ही नही आती.. चल.. अब सब भूल जा.. चलते है अब.. देर हो गई है"
वैशाली: "एक मिनट रुको.. कुछ दिनों के बाद मैं वापिस कलकत्ता चली जाऊँगी.. फिर न जाने कब मिले.. एक लास्ट किस तो बनती है" तीनों ने एक दूसरे को किस किया और स्तन दबाएं और खिलखिलाकर हँसते हुए बाहर निकली
मौसम नॉर्मल होने का दिखावा कर रही थी.. लेकिन उसके दिल और दिमाग में तो आग जल रही थी.. रह रहकर उसे ये विचार आ रहा था की पापा और फाल्गुनी ने ऐसा क्यों किया? कब किया होगा? मम्मी कहाँ थी तब? मैं कहाँ थी? क्या वो दोनों मेरे घर पर ही करते होंगे? या फिर पापा की ऑफिस में?? नही नही ऑफिस में तो नही हो सकता.. तो फिर कहाँ मिलते होंगे वो दोनों.. और एकाध बार नही.. सात आठ बार.. !! जानना तो पड़ेगा ही.. फाल्गुनी पर नजर रखूंगी तो सब पता चल जाएगा.. !!!
हे मेरे कामदेवता!
Thanks for the commentsजीजा साली और सास दामाद का रोमांस चरम सीमा पर चल रहा है भाई गज़ब ढा दिया है...आगे आगे देखते हैं होता है क्या
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है शीला ने संजय की जिंदगी की गाड़ी को पटरी पर लाने की पूरी कोशिश कर रही है अब ये संजय कहा चला गयाएक घंटे के भीषण एनकाउंटर के बाद.. कमरे में सन्नाटा छा गया था.. जॉन और संजय लाश की तरह बिस्तर की एक तरफ पड़े हुए थे.. चार्ली नाम की चिड़िया.. शीला की पुख्त भुजाओं में सिमटकर छोटे बच्चे की तरह आराम से सो रही थी.. शीला की गांड में जलन हो रही थी.. नजदीक पड़े सिगार का पैकेट खोला तो वह खाली था.. शीला ने.. अकेले ही.. अपने बलबूते पर.. जॉन, संजय, चार्ली और सिगार.. सब को खाली कर दिया था.. आराम करते हुए एकाध घंटा और बीत गया..
रात के लगभग साढ़े आठ बज चुके थे.. शीला की सुस्ती अब भी कम नही हो रही थी.. संजय कपड़े पहन कर अपनी पसंद की सिगरेट लेने बाहर गया.. और जॉन बाथरूम में नहाने चला गया था.. चार्ली नंगे बदन सो रही थी.. उसकी साँसों के साथ स्तन ऊपर नीचे हो रहे थे.. देखते ही शीला को अपनी जवानी के दिनों की याद आ गई.. तब उसके स्तन भी ऐसी मध्यम कद के और सख्त थे.. निप्पल तो जैसे थी ही नही.. कुंवारी लड़कियों के स्तन बड़े नाजुक होते है.. मर्द का हाथ पड़ते ही उसका आकार बदलने लगता है..
मदन के साथ जब उसकी सगाई हुई.. उससे पहले शीला के स्तन बिल्कुल अनछुए थे.. जब वह स्कूल में पढ़ती थी तब उसके स्तन सब से बड़े थे.. सारे लड़के टकटकी लगाकर देखते तब उसे बहोत शर्म आती थी.. अपने स्तनों की सुंदरता से आज तक उसने कई मर्दों को अपनी उंगलियों पर नचाया था.. शीला के स्कूल के शिक्षक भी मौका मिलते ही शीला के कुँवारे उरोजों को तांकते रहते.. ये सब बातें याद आते ही मुस्कुराने लगी शीला..
तभी चार्ली ने आँखें खोली.. शीला के नग्न नरम उभारों पर हाथ फेरते हुए उसने शीला की गर्दन पर किस कर दी.. शीला ने भी चार्ली के स्तनों को मसल दिया.. दोनों एक दूसरे के साथ खेलते हुए खड़े हुए.. तभी जॉन बाथरूम से नहाकर नंगा बाहर निकला.. उसके पिचके हुए नरम लंड को तिरस्कार भरी नज़रों से देख रही थी शीला.. शीला को सिर्फ सख्त लंड पसंद थे..
चार्ली ने जॉन से पूछा.. "Honey..did you enjoy it or not? I loved fucking with Sanjay.. I like Indian cocks.. They are quite hard and strong..much harder than your cock..!!"
"Yeah darling.. Indian pussy is also too hot to handle definately.. This has been the most memorable fucking experience, I ever had"
तभी हाथ में सिगरेट का पैकेट लिए हुए संजय कमरे के अंदर आया.. सिगरेट के साथ साथ वह वोड्का की बोतल भी साथ ले आया था.. साथ में बाइटिंग के लिए कुछ सामान भी था.. उसने फोन करके ४ ग्लास मँगवाए.. और सब का लाइट पेग बनाया.. चारों लोग आराम से पीने लगे और उस पेग को खतम किया.. अब अलग होने का समय आ चुका था.. शीला ने अपने कपड़े पहने.. और बड़े प्यार से उसने जॉन और चार्ली को एक किस करते हुए अलविदा कहा..
होटल से बाहर निकलकर चलते चलते वह दोनों अपने होटल के कमरे में पहुंचे.. थककर संजय ने अपना पेंट उतारा और बिस्तर पर बैठ गया और शीला उसकी गोद में..
शीला: "राजा.. आज तो तेरी सुहागरात है.. अपनी सास के संग इस रात को यादगार बना देना.. मुझे इतना चोद.. इतना चोद की मेरी जन्मों की प्यास बुझ जाएँ.. मैं बहोत तरसी हूँ बेटा..!!"
संजय: "मम्मी जी, आपकी प्यास का तो मुझे उसी दिन पता चल गया था जिस दिन मैंने आपको पेड़ के तने से चूत रगड़ते हुए देखा था.. तभी में समझ गया था की पापा जी की गैर मौजूदगी में आप कितना तड़प रही थी"
शीला ने चोंककर कहा "अच्छा.. !! अब समझी!! तो उस रात वो तुम ही थे.. जिस ने मुझे अंधेरे में पीछे से चोद दिया था.. मुझे शक तो था ही.. की ऐसा काम तुम्हारे अलावा और कोई नही कर सकता.. पर इतना बड़ा रिस्क तूने कैसे लिया संजय? तुझे डर नही लगा था क्या?"
संजय: "अरे मम्मी जी, आपकी हालत तब इतनी खराब थी की पीछे से कोई कुत्ता आकर चोद जाता तो भी आप मना नही करती.. बहोत उत्तेजित थी आप.. इसीलिए तो मैंने मौका देखकर अपना लंड घुसा दिया सीधा.. पर सच बताना.. कैसा लगा था आपको उस रात?"
शीला: "मुझे तो बहोत मज़ा आया था.. लंड के लिए तड़प रही थी तभी चूत में लंड घुस गया.. उससे ज्यादा क्या चाहिए!! संजय.. अच्छा हुआ जो तू मुझे गोवा लेकर आया.. हम साथ में मजे तो करेंगे ही.. पर यहाँ आने से उन दो फिरंगियों के साथ मज़ा करने का जबरदस्त मौका मिल गया "
संजय: "मम्मी जी, उस चार्ली की चूत बड़ी ही टाइट थी.. वैशाली को पहली बार चोदा था उससे भी टाइट.. !! मुझे लगता है की जॉन ने उसे ज्यादा रगड़ा नही होगा अब तक"
शीला: "मुझे तो ऐसा नही लगता.. जॉन के साथ चार्ली यहाँ गोवा तक आई है तो चुदाई में तो कोई कसर नही छोड़ी होगी दोनों ने.. मेरे हिसाब से तो चार्ली भी एक नंबर की चुदक्कड़ ही थी.. हाँ.. उसकी चुत बेशक काफी मुलायम और टाइट थी.." साथ लेकर आए बोतल से संजय को घूंट पिलाते हुए शीला ने नीचे हाथ डालकर संजय के लंड से खेलना शुरू कर दिया था.. संजय का लंड एकदम गन्ने जैसा सख्त हो गया था.. गोद में बैठी शीला के स्तन हल्के हल्के मसल रहा था संजय..
संजय के हाथ में सिगरेट थी.. शीला ने सिगरेट उसके हाथ से लेकर एक कश लगाया.. धुआँ छोड़ते हुए उसने संजय के लंड को पकड़कर उससे पूछा "तैयार हो गया क्या, बेटा..?"
संजय-शीला के रूम की बालकनी से समंदर का किनारा नजर आ रहा था.. वोड्का का हल्का नशा दोनों के जिस्मों को गरम कर रहा था..
संजय: "तुम्हारा हाथ पड़े और ये तैयार न हो ऐसा कभी हो सकता है क्या!!" शीला की मांसल जांघों पर हाथ फेरते हुए उसने उसकी गर्दन को काट लीया "अगर तुम मेरी सास न होती तो तो मैं तुम्हें भगाकर ले जाता.. तुम्हारे जैसा गदराया माल मैंने आज तक नही देखा.. एक दो बार चोद कर मन नही भरेगा मेरा.. दिल करता है की एक हफ्ते तक तुम्हें बिस्तर पर लेकर पड़ा रहूँ तब जाकर मेरे लंड को तसल्ली मिलेगी" कहते हुए संजय ने शीला के दोनों बबलों को रगड़ दिया
शीला: "चार्ली के साथ अनुभव कैसा रहा?"
संजय: " अरे गजब का अनुभव था.. साली इतना कडक माल थी.. मेरा तो जी करता है की आज की पूरी रात अगर उन दोनों के साथ बिताने का मौका मिलता तो मज़ा आ जाता.. सच सच बताना..तुम्हें भी जॉन के गोरे लंड की याद आ रही है ना ??"
शीला: "हाँ बेटा.. जॉन के लंड को याद करते हुए अभी भी मेरे दो पैरों के बीच की परीपागल हो जाती है.. एक बात तो है बेटा.. चुदाई के लिए जब कोई नया साथी मिले तब मज़ा और उत्तेजना दोनों दोगुने हो जाते है.. इसका क्या कारण होगा?"
संजय: "तुम्हारी बात बिल्कुल सही है.. नए साथी के संग चुदाई करने का मज़ा ही कुछ अलग होता है.. चार्ली के छेद में घुसाने का बड़ा मज़ा आया मुझे.. साली फिर से मिल जाएँ तो जीवन सार्थक हो जाए मेरा.. "
शीला संजय के लंड को पकड़कर खींचते हुए बोली "संजय, जॉन और चार्ली को बुला कर ला.. होटल तो उनका नजदीक ही है.. वो लोग वहीं होंगे.. फिर से हम चारों मिलकर चुदाई करते है"
संजय: "अभी तो मैं तुम्हें मन भरकर चोदना चाहता हूँ.. घर लौटने के बाद तो वापिस तुम्हें "आप" कहना पड़ेगा.. इतनी आसानी से तुम मिलोगी भी नही मुझे.. प्लीज.. अब और कोई हम दोनों के बीच नही आएगा.. जो भी करना है हम दोनों ही करेंगे.. " संजय ने शीला को बेड पर लैटा दिया.. बगल में पड़ा वोड्का का खाली ग्लास गिर गया.. जो गिने चुने कपड़े उन दोनों ने पहन रखे थे वो उतार दिए..
संजय के फुँकारते नाग जैसे लंड को शीला ने बड़े ही प्यार से हाथ में पकड़कर चूम लिया "घर लौटने के बाद इसकी बहोत याद आएगी मुझे.. मैंने कभी सपने भी नही सोचा था की अपने दामाद के साथ करने का मौका मिलेगा मुझे.. औरतों को पटाने में तू मास्टर है.. सच सच बता.. चेतना को कितनी बार चोदा है तूने? "शीला का दिमाग पुरानी बातें भुला नही था
शीला की बात सुनकर संजय चोंक पड़ा..
"कौन चेतना, मम्मी जी?"
"भोसड़ी के.. ज्यादा शाणा मत बन.. वही चेतना.. जिसने तुझे उस दिन शाम को पाँच बजे अपने घर बुलाने का मेसेज भेजा था.. मेरे साथ चालाकी मत कर संजय, और सब सच बता दे.. वैसे चेतना ने तो मुझे सब बता ही दिया है.. " संजय के पास अपना बचाव करने के लिए कुछ भी नही बचा था.. मन ही मन वो चेतना को गालियां दे रहा था.. हरामखोर ने शीला को सब बता दिया!!! इन औरतों के पेट में एक बात नही टिकती.. कितना भी समझाओ, वक्त आने पर तोते की तरह बोलने लगती है..
अब शीला के शरण में आए बगैर संजय के पास ओर कोई चारा नही था.. सरेंडर होकर उसने सारी बातें कुबूल कर ली.. उसकी सारे बातें सुनते हुए शीला संजय का लंड सहला रही थी
शीला: "संजु बेटा.. तू कहीं भी मुंह मार.. कितने भी मजे कर.. मुझे कोई आपत्ति नही है.. पर तू मेरी बेटी वैशाली को दुख देगा तो वो मैं नही सहूँगी.. मैं क्या कोई भी माँ ये बर्दाश्त नही करेगी.. अब तू मुझे बता.. वैशाली के साथ आगे की ज़िंदगी बिताने का क्या प्लान है तेरा? मैंने सुना है की प्रमिला के साथ साथ किसी रोजी नाम की लड़की के साथ भी तेरा चक्कर है !! तू उसके साथ दिन रात गेस्टहाउस में पड़ा रहेगा तो मेरी वैशाली का क्या होगा??? अगर वो कहीं किसी ओर की तरफ मुड़ गई तो लेने के देने पड़ जाएंगे तुझे"
संजय सुनते सुनते हौले हौले शीला के स्तनों को मसल रहा था.. वोड्का के हल्के नशे में वह बोला: "मम्मी जी, वैशाली काफी टाइम से मुझे चोदने नही देती.. जब पत्नी ही आपकी इच्छाओं को पूरा ना करे तो पति आखिर क्या करेगा!! मेरे इस लंड को लेकर में कहाँ जाऊ?? आप ही बताइए.. मुझे दिन में कम से कम एक बार तो सेक्स चाहिए ही चाहिए.. जब तक एक बार वीर्य छूट न जाएँ मुझे नींद ही नही आती.. मैं थोड़ा ज्यादा ही एक्टिव हूँ इस बारे में.. ये तुम भी जान गई हो.. वैशाली मुझे जरा सा भी सहयोग नही देती.. मैं उसके स्तन दबाने जाता हूँ तो बोलती है - मुझसे तो ज्यादा रोजी के बड़े है.. जा उसके जाकर दबा - अब तुम ही बताओ.. ये सब बोलकर वो क्या साबित करना चाहती है.. अरे तुम नही दबाने देती तभी तो मुझे रोजी के पास जाना पड़ा.. इसलिए फिर मैंने भी उस पर ध्यान देना छोड़ ही दिया.. "
संजय ने अपना दुखड़ा तो सुना दिया पर ये नही बताया की वह कुछ काम धंधा नही करता और पूरे दिन चोदने की फिराक में ही रहता है इसलिए वैशाली उसे सहयोग नही देती.. शीला का मन तो किया की वह उसे ये भी बताएं पर वह हर कदम फूँक फूँक कर रखना चाहती थी..
शीला: "संजु बेटा.. अगर मैं वैशाली को समझाकर मना लूँ.. तो क्या तुम रोजी को छोड़ दोगे?"
संजय: "मम्मी जी, रोजी को तो मैं अब छोड़ नही सकता!!"
शीला: "क्यों? कहीं तुम दोनों ने छुपकर शादी तो नही कर ली!!"
संजय: "नही मम्मी जी.. बात दरअसल यह है की.. मैंने रोजी के पापा से ४ लाख रुपये ब्याज पर लिए है.. जब तक वो पैसे न लौटा दूँ मैं रोजी को नही छोड़ सकता.. !!"
शीला: "अच्छा?? मतलब ४ लाख के ब्याज के बदले वो तुझसे चुदवा रही है.. पर बेटा तू ये भी तो सोच.. तू रोजी को बाहों में भरकर दिन रात चोदता-चाटता रहेगा तो पैसे कैसे लौटाएगा? पैसे कमाने के लिए बिस्तर से उठकर कोई काम धंधा भी करना पड़ेगा ना.. !!"
संजय: "मम्मी जी, मैं बस इसी जुगाड़ में हूँ.. इसीलिए तो पंद्रह दिनों से यहाँ पड़ा हुआ हूँ.. "
शीला: "यहाँ आने के बाद तूने काम कम किया और चुदाई ज्यादा की है.. ये बहानेबाजी बहोत हुई.. कुछ ढंग का काम करना शुरू कर नही तो तेरे वैवाहिक जीवन को बर्बाद होने से कोई नही बचा पाएगा.. और वहाँ कलकत्ता में बैठकर कुछ नही होने वाला तेरा.. वहाँ तेरे लफंगे दोस्तों की संगत में तू कुछ नही कर पाएगा.. इससे अच्छा यही होगा की तुम लोग यहीं शिफ्ट हो जाओ"
संजय: "शिफ्ट तो मैं अभी हो जाऊँ.. पर फिर मेरे माँ-बाप का ध्यान कौन रखेगा!! इस बुढ़ापे में मैं उन्हे अकेला नही छोड़ सकता"
संजय की गोद में ठीक से बैठते हुए उसके लंड को अपनी चूत के सुराख पर सेट कर दिया.. कडक लोड़े को गरम चिपचिपा छेद मिलते ही वो लपक कर अंदर घुस गया.. जैसे सांप अपने बिल में घुस जाता है.. पूरा लंड हजम करने के बाद शीला अपनी गांड हिलाते और रगड़ते हुए बात को आगे बढ़ाने लगी
"ये बात तो तेरी सही है बेटा.. लेकिन अगर उनकी इतनी चिंता है तो उन्हे भी यहाँ साथ ले आ.. हम सब मिलकर तेरे और वैशाली के लीये कुछ सोचेंगे और तुम्हारी ज़िंदगी को वापिस पटरी पर लाने की कोशिश करेंगे.. माँ-बाप की चिंता होना स्वाभाविक है.. पर क्या तूने कभी ये सोचा है की इस उम्र में तेरी इस आवारागर्दी के चलते उन्हे तुम्हारी कितनी फिक्र हो रही होगी?? पंद्रह दिनों से तुम और वैशाली यहाँ हो.. तो उनका ध्यान कौन रख रहा होगा? तू महीनों तक बाहर घूमता रहता है.. घर पर फूटी कौड़ी तक नही देता.. तो तेरी सारी कमाई जाती कहाँ है? और ऐसा तू क्या करता है जो लोगों से ब्याज पर उधार पैसे लेने की जरूरत पड़ती है??"
शीला की सीधी बात सुनकर संजय चुप हो गया.. फिलहाल जिस स्थिति में वह दोनों थे.. वह ऐसी गंभीर चर्चा के लिए अनुकूल नही थी.. लेकिन शीला की बात का न जाने क्या असर हुआ संजय पर.. उसने अपना लंड शीला के भोसड़े के बाहर निकाला और शीला को खड़ी करते हुए खुद भी खड़ा हो गया.. अपने कपड़े पहन कर वह बोला "मैं थोड़ी देर में आता हूँ, मम्मी जी" और निकल गया
रात को नौ बज चुके थे.. शीला को बड़ी जोर की भूख लगी थी.. वोड्का का नशा भी काफी चढ़ चुका था.. शीला ने खड़े होने का प्रयास किया लेकिन उसके कदम नशे के कारण डगमगा रहे थे.. वो सोच में पड़ गई.. कहाँ गया होगा संजय? कहीं उसे मेरी बातों का बुरा तो नही लगा होगा? नाराज होकर अगर वो मुझे यहीं छोड़कर चला गया तो मैं वापिस कैसे लौटूँगी? मदन को लौटने में अब ज्यादा दिन नही बचे थे.. उसके आने के बाद संजय कुछ हंगामा न कर दे.. बाप रे.. मैं क्यों इस संजय के साथ इतने दूर चली आई? शीला मन ही मन कांप उठी..
कुछ भी करके संजय को मनाना पड़ेगा.. एक बार घर पहुँच कर भी तो ये सारी बातें की जा सकती थी.. !!
शीला ने खड़ी होकर.. संजय ने दिलाया था वह छोटा सा टॉप पहन लिया.. बिना पेन्टी के उसने वह छोटी सी शॉर्ट्स भी पहन ली..
वो कमरे से बाहर निकली और सीढ़ियाँ उतरते हुए उसने देखा की संजय ड्राइवर के साथ कुछ बात करके निकल गया..
बहकती चाल से चलते हुए वह गाड़ी तक आई.. बिना ब्रा के उछल रहे उसके स्तनों को लॉबी में खड़े सारे मर्द देख रहे थे.. शीला ड्राइवर के पास आई
शीला: "क्या नाम है तुम्हारा? और कहाँ गए तुम्हारे साहब? "
ड्राइवर: "जी, मेरा नाम हाफ़िज़ है.. और संजय साहब अभी आ रहें है.. जब तक वो न लौटे तब तक आपका खयाल रखने को कहा है मुझे.. मैडम आप अभी नशे में है.. लोग देख रहे है.. चलिए मैं आपको आपके कमरे तक पहुंचा दु.. " शीला को कंधे से सहारा देते हुए हाफ़िज़ उसे कमरे तक जाने में मदद करने लगा.. "आपका कमरा कहाँ है मैडम?"
नशे की हालत में शीला ने कहा "ऊपर के माले पर कोने वाला कमरा है" उसके कदम लड़खड़ा रहे थे.. वह हाफ़िज़ के जिस्म पर लगभग लटक ही रही थी..
कमरा खोलकर हाफ़िज़ ने शीला को सहारा देते हुए बेड पर लैटाया.. शीला को छोटा सा टॉप ऊपर चढ़ गया था.. और स्तनों का निचला हिस्सा टॉप के बाहर झलक रहा था.. शीला की छोटी सी शॉर्ट्स इतनी तंग थी की उसकी दोनों जांघें ऊपर तक खुली हुई थी.. हाफ़िज़ बस उसे देखता ही रहा