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Thanks a lot Rajpoot MS bhaiBole to mast he boss
Bahut shandar update bhai
आत्मग्लानी से भरी हुई शीला यूं करने लगी विचारअब वैशाली को कहाँ पता था की उसके आगमन से मम्मी और संजय के रंग में कैसा भंग हो गया था.. !!
मन में क्रोध दबाकर बड़े ही प्यार से शीला ने वैशाली से कहा "बेटा.. तुझे अपने पति के कमरे में जाना चाहिए.. इतने दिनों बाद मिल रही हो.. पर तेरे चेहरे पर कोई खुशी ही नजर नही आ रही संजय को देखने की.. !! ऐसा कैसे चलेगा और कब तक चलेगा?? इतना भी क्या रूठना.. !! ऐसे ही चलता रहा तो एक दिन अलग होने की नोबत आ जाएगी.. याद रखना.. !!"
शीला ऐसे प्रकार की स्त्री थी जो अपनी इच्छाओं और जज़्बातों को दबाने में नही मानती थी.. कैसे भी वो अपनी पसंद की चीज प्राप्त कर ही लेती थी.. वैशाली ने गलत समय पर एंट्री कर, उसके होने वाले ऑर्गैज़म की माँ चोद दी थी.. इसलिए वो व्याकुल हो गई थी.. वो सोच रही थी.. की अगर वैशाली सिर्फ ५ मिनट देर से आती तो कितना अच्छा होता.. उसके भोसड़े का पानी बस झड़ने ही वाला था.. संजय भी फूल स्पीड से चोद रहा था और बस आखिरी तीन चार धक्के लगाने की ही देर थी.. दोनों अपनी मंजिल पर पहुँचने की तैयारी में थे तभी.. कमबख्त डोरबेल बजी.. और सारे मूड की माँ-बहन एक हो गई..
शीला का दिमाग भन्ना रहा था.. वैशाली को क्या खबर.. यहाँ मेरी चूत में कैसी खुजली मची हुई है!! वैशाली के बगल में लेटी शीला ने अपनी चूत को शांत करने के लिए दोनों जांघों को आपस में दबा दिया.. अपने अधूरे स्खलन को भुलाने के लिए उसने वैशाली से बात छेड़ी थी..
पर वैशाली ने शीला की बात को आधे में ही काटकर कहा "मम्मी, मुझे संजय के साथ बात करने में भी इन्टरेस्ट नही.. साथ सोने की बात तो बहोत दूर की है"
शीला: "ऐसा कब तक चलेगा वैशाली? लगता है अब मुझे ही बात करके कोई रास्ता निकालना पड़ेगा.. तेरा जीवन मैं इस तरह बर्बाद होते नही देख सकती.. तू यही बेड पर लेटी रहना.. मैं संजय कुमार को जाकर समझाती हूँ.. जब तक मैं ना कहूँ तुम वहाँ मत आना.. बेकार में बात का बतंगड़ बना देगी तू.. " कहते ही शीला बेड से उठी और वैशाली के बेडरूम का दरवाजा बंद कर दिया
संजय के कमरे का दरवाजा खोलते ही शीला ने सुना "आ जाओ अंदर वैशाली.. " अंधेरे में अपने लंड को हिला रहे संजय को लगा की कमरे में वैशाली आई है.. इसलिए उसी नग्न अवस्था में उसने निःसंकोच टेबल-लैम्प की स्विच ऑन कर दी.. सामने अपनी सासु माँ को देखकर वो स्तब्ध हो गया.. लैम्प के उजाले में संजय का गोरा कडक लंड देखकर शीला मुस्कुराई और उसने दरवाजा अंदर से लॉक कर दिया..
संजय के बिल्कुल करीब आकर एकदम दबी हुई आवाज में बोली "बड़ी मुश्किल से वैशाली को उल्लू बनाकर आई हूँ.. मैं तो ये सोच रही थी की वैशाली तेरे साथ सोने आएगी और मुझे उस कमरे में बाकी की रात उंगली डालकर ही बितानी पड़ेगी.. पर वो कहावत है ना "दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम"
संजय: "हाँ मम्मी जी.. और मेरे लंड पर लिखा है बस आपका ही नाम.. " कहकर संजय ने शीला को हाथ से खींचकर अपने ऊपर ले लिया.. शीला ऐसे खींची चली आई जैसे परवाना शमा को देखकर खींचा चला आता है.. शीला का पूरा गदराया शरीर संजय के ऊपर छा गया.. अब ना किसी औपचारिकता की जरूरत थी और ना ही किसी फॉरप्ले की.. वैशाली ने जब डोरबेल बजाई तब उनका कार्यक्रम जहां पर रुका था वहीं से दोनों ने शुरुआत की..
संजय का लंड मुठ्ठी में पकड़कर उसे अपनी धड़कती भोस के सुराख पर घिसते हुए.. लंड की चमड़ी को पीछे सरकाकर सुपाड़े को उजागर कर दिया.. और अपनी चिपचिपी गीली भोस पर रगड़ना शुरू कर दिया.. और धीमे से संजय के कान में बोली "आह्ह बेटा.. जरा जल्दी करना.. इससे पहले की कोई नई मुसीबत आ खड़ी हो.. जल्दी जल्दी मुझे झड़वा दे और तू भी पिचकारी मारकर खतम कर.. फिर मैं चुपचाप वैशाली के कमरे में चली जाऊँगी.. उफ्फ़फफ संजु.. अब रहा नही जाता.. अब चोद दे मुझे.. डाल दे अंदर" शीला उतावली हो रही थी..
शीला के पपीते जैसे बड़े स्तनों को मसलते हुए उत्तेजित संजय ने कहा "ओर कोई तो यहाँ आने नही वाला.. अगर वैशाली आ गई तो दिक्कत ही क्या है.. माँ और बेटी दोनों को एक साथ चोद दूंगा.. ऐसा मौका कब मिलेगा.. !! चाहो तो जाकर वैशाली को बुला लो.. फिर दोनों को साथ में रगड़ता हूँ"
शीला पहले से ही जबरदस्त उत्तेजित थी.. ऊपर से संजय ने माँ-बेटी दोनों को साथ में चोदने की बात करके उसे ओर गरम कर दिया था.. संजय के चेहरे पर अपने विशाल बबले झुलाते हुए वो बोली "ओह्ह संजु.. वो सब बाद में.. पहले मुझे ठंडा कर.. काश.. वैशाली थोड़ी देर बाद आई होती तो सब कुछ आराम से हो जाता.. और उसकी मौजूदगी में मुझे तुम्हारे कमरे में आने का जोखिम उठाना नही पड़ता.. !!"
संजय: "अरे मेरी रानी.. कर दूंगा तुझे ठंडा.. पर पहले मेरे लंड को थोड़ा सा चूस तो लो.. !! फिर न जाने ऐसा मौका कब मिलेगा.. ??" शीला के स्तनों को दबाते हुए संजय ने कहा और शीला ने तुरंत ही उस विनती का स्वीकार करते हुए संजय का लंड एक ही पल में लपक कर मुंह में ले लिया..
"आह्ह आह्ह मम्मी जी.. ओह्ह शीला.. जबरदस्त.. ओह्ह.. नही.. निकल जाएगा मेरा.. यार प्लीज" शीला तब तक चूसती रही जब तक की संजय की हालत खराब न हो गई और वो झड़ने की कगार पर नही आ गया.. साथ ही साथ उसने यह ध्यान भी रखा की संजय उसके मुंह में ही न झड़ जाएँ.. वरना उसके भोसड़े का क्या होता?? जिस डाली पर बैठी हो उसी डाली को काट दे ऐसी मूर्ख तो थी नही शीला.. !!
"बस्स बस्स मम्मी जी.. मज़ा आ गया.. !!" संजय आगे कुछ बोलता उससे पहले ही शीला उसके बगल में बेड पर टांगें चौड़ी करके बैठ गई और बोली
"चल आजा बेटा.. शुरू हो जा.. आज तो निर्दय होकर ऐसी चुदाई कर की मेरी चूत फट जाएँ.. और हाँ.. डालने से पहले थोड़ी देर चाट लेना.. मस्त चाटता है रे तू.. तेरे जाने के बाद बहोत याद आएगी इस चटाई की"
अपनी बेटी बगल के कमरे में सो रही थी और शीला बिंदास अपने दामाद से चुत चटवा रही थी.. जबरदस्त डेरिंगबाज औरत थी शीला.. !! जैसे जैसे संजय उसकी चूत को चाटता गया वैसे वैसे शीला का सुराख ओर चिपचिपा शहद छोड़ता गया.. जब शीला एकदम गरम हो गई तब उसने संजय को इशारा करके अपने ऊपर चढ़ने का न्योता दिया.. संजय भी रिधम में आकर.. अपनी पत्नी की मौजूदगी की परवाह कीये बिना.. सासु माँ की चूत में अपना लंड पेलकर बड़ी मस्ती से चोदने लगा.. जबरदस्त धक्के लगाते हुए जब संजय और शीला शांत हुए तभी दम लीया.. दोनों अपनी मनमानी कर चुके थे और हांफ रही शीला अपनी सांस नियंत्रित होने का इंतज़ार कर रही थी..
"संजय बेटा.. तेरे साथ बिताएं ये कुछ दिन मुझे हमेशा याद रहेंगे.. शाम को जब तेरे ससुरजी का फोन आया तब मैं उनकी साथ बात कर रही थी और तू जिस तरह मुझे उस वक्त छेड़ रहा था तब बहोत मज़ा आया था.. वो क्षण याद आते ही मेरी चूत में झटके लगने लगते है.. मैं मेरे पति से बात कर रही थी तब तू मेरी चूत चाट रहा था.. आह्ह.. मेरे स्तनों को मींज रहा था.. मैं बातों में व्यस्त थी तब तूने अपना सख्त लंड मेरे गालों पर रगड़ दिया था.. ईट वॉज जस्ट अमेजिंग.. मज़ा आ गया था बेटा.. फिर कभी चांस मिले तो और मजे करेंगे.. अब एक आखिरी बार मेरे गले लग जा"
दोनों ने एक दूसरे को अपने बाहुपाश में जकड़ते हुए एक जानदार किस कर ली.. संजय ने अपने पसंदीदा स्तनों को गाउन के ऊपर से ही दबाया और मसल लिया.. हाथ अंदर डालकर दोनों निप्पलों को मरोड़ा.. और शीला की गर्दन पर किस कर दी.. शीला ने भी संजय के लंड को उसकी सारी सेवा के बदले आभार प्रकट करते हुए चूम लिया..
शरीर की भूख सम्पूर्ण तृप्त करके सास और दामाद वापिस अपनी सामाजिक सृष्टि में लौट गए तब दोनों के चेहरे पर संतुष्टि के भाव झलक रहे थे.. अपने गाउन के हुक बंद कर रही शीला के स्तनों को वो आखिरी बार दबा रहा था.. आखिरी हुक बंद करते हुए शीला ने कहा " बस दामाद जी.. अब और शरात नही.. आजादी का समय पूरा हुआ.. मैं जाकर वैशाली को बुलाकर लाती हूँ.. मुझे कुछ महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा करनी है तुम दोनों के साथ.. और सुन.. गुस्से में मैं अगर कुछ बोल दूँ तो बुरा मत मानना.. पिछले चार दिनों में.. हमने जो संबंध स्थापित किया है उसकी लाज रखना"
इतना कहकर शीला संजय के कमरे से बाहर निकली और वैशाली के रूम में गई.. उसे बुलाने.. पर जब वो वहाँ पहुंची तब उसने देखा की वैशाली तो खर्राटे मारते हुए सो रही थी.. "इतनी देर में नींद भी आ गई ईसे? पहले पता होता तो मैं इतनी जल्दी नही करती.. " शीला ने सोचा.. चलो जो हुआ अच्छा ही हुआ.. लालच बुरी बला है.. ज्यादा लालच ठीक नही.. उसने अपने मन को मनाया..
सोचते सोचते शीला बाथरूम गई और पेशाब करते हुए सामने लगे आईने को देखकर मन ही मन बोलने लगी "संजय और मदन.. दोनों चोदने में एक्सपर्ट है.. मदन भी संजय की तरह तड़पा तड़पाकर चोदता था.. दोनों तब तक लंड चूत में नही डालते थे जब तक शीला अंदर डलवाने के लिए बेबस न हो जाए.. शाम को जब शीला और संजय चोद रहे थे तभी मदन का फोन आया था.. वो याद आते ही शीला के बदन में एक सुरसुरी से मच गई.. रोमांचित हो गई याद करके.. मदन जब फोन पर उसके साथ जज्बाती हो रहा था तब वो संजय का लंड हिलाते हिलाते सुन रही थी.. जब मदन शीला से यह कह रहा था की वो उसे मिलने के लिए बेताब है.. तब संजय शीला की चूत के होंठों को चाट रहा था.. एक बार तो वो बात करते सिसक भी पड़ी.. लेकिन मदन को लगा की शायद शीला रो रही थी..
चौबीस महीनों के बाद.. मदन कल आ रहा था.. और अगर उसे मेरी आँखों में प्यास या तड़प नही दिखेगी तो वो क्या सोचेगा अगर मैं रसिक, रूखी, जीवा, रघु और संजय के संपर्क में नही आई होती.. तो बिना लंड देखे ही उसे २ साल बिताने पड़ते.. पर मदन के लिए तो उसे ऐसा ही अभिनय करना था जैसे वो पिछले दो साल से बिना सेक्स के.. जुदाई की आग में जल रही हो.. जो रात होते ही अपने पति की आगोश में अपनी चूत शांत करने के लिए चिपक जाएँ..
पिछले दो महीनों में.. जिंदगी ने कहाँ से कहाँ लाकर रख दिया.. !! ऐसे अटपटे विचार करते हुए शीला सोने जा रही थी तभी उसे याद आया की संजय उनकी राह देख रहा होगा.. जाकर उसे बता देती हूँ ताकि वो भी सो जाएँ.. सारी बातें सुबह कर लेंगे.. वैसे भी.. अब तो सिर्फ बातें ही करनी थी.. और कुछ तो होने से रहा.. !! वो संजय के कमरे में गई पर संजय सो चुका था.. हल्की रोशनी में पूरे बेड पर हाथ फैलाकर सो रहे अपने दामाद को थोड़ी देर तक देखती ही रही शीला.. !! सास और दामाद के बीच कितने सामाजिक परदे होते है.. हवस की एक ही आंधी ने सब कुछ तहस नहस कर दिया.. चुपचाप वो संजय के रूम से निकलकर वैशाली के रूम में आ गई और लेट गई.. रात के साढ़े बारह बज चुके थे.. थोड़ी ही देर में शीला की भी आँख लग गई..
सुबह हो गई.. प्रभात के सुनहरे किरण आज नई ज़िंदगी का आगाज ले कर आए थे शीला के लिए.. आज मदन वापिस आने वाला था..
शीला जागी और बाथरूम में घुस गई.. अपने सुंदर शरीर को साबुन से रगड़ रगड़कर साफ करने लगी.. जैसे पिछले दो महीनों में जो भी पाप और व्यभिचार कीये थे उन्हे धो देना चाहती हो.. !! अपनी चूत को भी उसने बराबर रगड़कर साफ किया.. कहीं किसी पुराने लंड की कोई निशानी बाकी न रह जाएँ..
लाल रंग की बांधनी साड़ी पहन कर शीला तैयार हो गई और नाश्ता बनाने किचन में गई.. ब्रेड-पकोड़े तल रही शीला को कुछ आवाज़ें सुनाई दी.. आवाज उसके बेडरूम से आ रही थी.. शायद वैशाली और संजय के बीच कुछ नोक-झोंक हो रही थी.. सुबह के नौ बजे ही दोनों शुरू हो गए!! शीला ने गेस की आंच को धीमा किया और बेडरूम की तरफ गई.. बेडरूम का दरवाजा बंद था.. वो कान लगाकर सुनने लगी..
"मुझे छूने की कोशिश भी मत करना संजय.. मुझे नही करवाना तेरे साथ.. तू चला जा.. आह्ह.. छोड़ मुझे.. मम्मी सुन लेगी.. " वैशाली की आवाज सुनकर शीला ने अंदाजा लगाया की संजय चोदने की जिद कर रहा था और वैशाली मना कर रही थी.. आगे क्या होता है वो बड़े ध्यान से सुनने लागि शीला..
संजय: "कितने दिन हो गए वैशाली.. !! तुझे मेरी जरा भी फिकर नही है.. मेरा कितना मन कर रहा है तुझे पता नही है.. ये देख.. कैसा तैयार हो गया है मेरा.. करीब आजा न यार.. क्यों तड़पा रही है.. मेरे लंड को देखकर जरा भी दया नही आती तुझे?"
वैशाली: "तेरा ये तो चौबीसों घंटे तैयार ही रहता है.. और ये सिर्फ मेरे लिए थोड़ी न खड़ा होता है.. !! तेरी वो रखेल है ना.. जा उसके पास.. और डाल उसकी चूत में.. मैं अपनी चूत को तेरे लंड से बर्बाद करवाना नही चाहती.. छोड़ मुझे!!"
वैशाली को संजय ने पकड़कर रखा होगा ऐसी कल्पना करने लगी शीला.. सेक्स से संलग्न किसी भी बात में शीला को हमेशा बहोत दिलचस्पी हो जाती.. सगी बेटी और दामाद को उनके निजी हरकतें करते हुए देखना या सुनना पाप है ये जानते हुए भी अपने आप को रोक नही पाई शीला..
संजय: "प्लीज जानु.. बहोत दिन हो गए.. एक बार मुंह में तो ले.. क्यों इतने नखरे कर रही है?? चल अब गुस्सा थूक दे और जल्दी जल्दी मुंह मे लेकर चूसना शुरू कर.. फिर मैं भी तेरी चुत को मस्त चाटूँगा.. आह्ह वैशाली.. दिन-ब-दिन तेरे स्तन तेरी मम्मी जैसे होते जा रहे है.. एकदम बड़े बड़े.. "
वैशाली: "ऊईईई माँ.. मर गई.. जरा धीरे से दबा स्टूपिड.. जब देखों तब मेरे बॉल पर ही टूट पड़ता है.. मेरे साथ जबरदस्ती मत कर.. वरना मम्मी को पता चल जाएगा.. एक बार कहा न मैंने.. मैं मुंह में नही लूँगी.. मुझे घिन आती है.. कौन जाने कितनी गंदी चूतों को चोदकर आया होगा तू.. !! और ऐसा गंदा लंड मैं चुसूँ?? छी.. !!"
संजय: "अरे!!! मेरी जान.. चूत में लंड जाने से गंदा थोड़े ही हो जाता है.. !! अब नखरे बंद कर और चूसना शुरू कर.. भेनचोद तेरी माँ का घर है इसलिए ज्यादा नखरे चोद रही है.. अभी मेरे घर पर होते तो तेरी क्या हालत करता.. पता है ना तुझे.. !!"
शीला समझ गई.. संजय के अंदर का शैतान जाग उठा था.. उसके बाद थोड़ी देर तक कमरे से कोई आवाज नही आई.. शायद वैशाली संजय के शरण में जा चुकी थी.. शीला वापिस किचन में लौट गई और नाश्ता बनाने लगी..
लाल रंग की सुंदर साड़ी पहने हुए शीला.. एक आदर्श गृहिणी बन गई थी.. अनैतिकता का चोला उतार फेंक कर वह वापिस वफादार पत्नी का किरदार निभाने के लिए तैयार हो गई थी..
किचन में ब्रेड पकोड़े तलते हुए उसका मन तो बेडरूम में ही था.. क्या चल रहा होगा उन दोनों के बीच में?? एकदम आवाज़ें बंद क्यों हो गई होगी? पकोड़े तैयार हो गए.. प्लेट में सजाकर उसने टेबल पर रखे और तुरंत भागकर बेडरूम के दरवाजे पर पहुँच गई और सुनने लगी
वैशाली और संजय की बातें अब सुनाई दे रही थी
वैशाली: "आह्ह.. अब डाल भी दे अंदर.. गरम करने के बाद इतनी देर क्यों कर रहा है संजय? प्लीज.. मुझे फिर किचन में भी जाना है.. मम्मी अकेले सारा काम कर रही होगी.. तू सुबह सुबह ये सब लेकर बैठ जाता है ये मुझे जरा भी पसंद नही है.. !!"
संजय: "तो मैंने कहाँ तुझे पकड़ कर रखा है?? जा.. तेरी मम्मी की मदद कर.. मैं नही रोकूँगा.. "
वैशाली: "अब मुझे इतना एक्साइट करने के बाद बोल रहा है.. !! अब मुझ से बर्दाश्त नही हो रहा.. मुझे झड़ना है.. बाहर रगड़ना छोड़ और डाल दे अंदर.. आह्ह.. आग लगी है.. !!"
ये सुनकर शीला सोचने लगी .. अभी थोड़ी देर पहले तो कितनी नफरत से बात कर रही थी.. और अब गिड़गिड़ा रही है.. रात को तो संजय से सीधे मुंह बात तक नही की और अब उसका लंड चूत में लेने के लीये फुदक रही है..
चिपचिपी चूत में लंड के अंदर बाहर होने की आवाज कमरे में गूंजने लगी.. इन आवाजों से शीला परिचित थी.. वैशाली संजय के गोरे लंड को अपनी चूत की गहराइयों में अंदर बाहर करवाते हुए चूत की खुजली को मिटा रही थी.. धक्के लगाते वक्त संजय के हाव भाव कैसे होंगे?? पिछली रात ही शीला ने अनुभव किया था.. वो मन ही मन संजय और वैशाली की चुदाई की कल्पना करने लगी.. वैशाली को कितना मज़ा आ रहा होगा.. !!
कई स्त्री कितनी भी सीधी-साधी और सरल क्यों न हो अपने पति के साथ बेडरूम में ऐसा चाहती है की उसका पति जबरदस्ती करे.. उसे रौंद दे.. उसकी चूत के परखच्चे उड़ा दे.. उसके इनकार को अनदेखा कर उसे जबरदस्त चोद दे.. इसीलिए वैसी स्त्री संभोग की शुरुआत.. सभी चीजों के लिए ना - ना कहकर ही करती है.. और पुरुष को और ज्यादा आक्रामक बना देती है.. आवेश में आकर जब पुरुष जबरदस्ती उस पर चढ़ता है तब उसे दोगुना मज़ा आता है.. ये सब के साथ तो नही होता.. पर हाँ कुछ औरतें ऐसा जरूर चाहती है..
वैशाली की सिसकियाँ और कराहें सुनकर शीला के जिस्म में मीठी मीठी सुरसुरी होने लगी.. संजय के गोरे तगड़े लंड को याद करते हुए वो अपनी चूत को साड़ी के ऊपर से ही दबाकर उसे उत्तेजित होने से रोकने लगी..
"ओह्ह वैशाली.. गजब की टाइट है तेरी चूत.. आह्ह आह्ह ओह्ह मेरी जान.. तुझे चोदने का मज़ा ही अलग है.. " संजय की इस आवाज को सुनकर शीला अपने घाघरे में हाथ डालने के लिए मजबूर हो गई..
तभी शीला के घर की डोरबेल बजी.. भागकर शीला ने दरवाजा खोला.. सामने उसका पति मदन खड़ा था.. उसे देखते ही शीला भावुक हो गई.. एक ही पल में उसकी सारी उत्तेजना भांप बनकर उड़ गई.. पूरे दो सालों के बाद वो अपने पति को देख रही थी..
"ओह मदन.. तुम आ गए.. " कहते हुए मदन के गले लगकर रोने लगी शीला..
बाहर गाड़ी का ड्राइवर डीकी खोलकर सामान निकालने की तैयारी करते हुए खड़ा था.. वो भी इस पति पत्नी के मिलन को देखता रहा.. किसी भी विकार या वासना से अलिप्त इस शुद्ध मिलन की घड़ी को अनुमौसी और कविता भी अपने घर से देख रहे थे..
पल्लू से अपने आँसू पोंछते हुए शीला ने देखा की ड्राइवर उन दोनों को देखकर मुस्कुरा रहा था.. शीला शरमा गई.. और साथ ही साथ उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान भी आ गई.. वो ड्राइवर और कोई नही.. पर हाफ़िज़ ही था..
शीला तुरंत मदन से अलग हो गई और उसका हाथ पकड़कर घर के अंदर ले गई..
"कितना प्यार है दोनों के बीच" अनुमौसी ने कविता से कहा "धन्य है शीला को.. !!दो दो साल तक बिना पति के रह पाना कितना मुश्किल होता है.. अच्छा हुआ जो मदन आ गया.. अब शीला के दुख के दिन खत्म हुए.." एक स्त्री को पुरुष के शारीरिक साथ की कितनी जरूरत होती है वो अनुमौसी बखूबी समझते थे.. उनकी बातों से उम्र और अनुभव दोनों का निचोड़ छलक रहा था.. कविता को अचानक पीयूष की याद आ गई और वो दुखी हो गई.. वो सोच रही थी.. शीला भाभी और मदन भैया इस उम्र में भी एक दूसरे को कितना प्यार करते है.. !! और यहाँ पीयूष को तो मेरी कदर ही नही है.. पता नही एकदम से उसे क्या हो गया.. वो पहले तो ऐसा नही था.. पिछले एकाध महीने से ही उसके स्वभाव में ये बदलाव आया है.. जैसे जैसे वो सोचती गई वैसे वैसे कविता को भी अपनी गलतियों का एहसास होने लगा था.. वो सोचने लगी.. कहीं मेरे और पिंटू के बीच के संबंध के बारे में पीयूष को पता तो नही चल गया होगा?? कांप उठी कविता
"किस सोच में डूब गई कविता.. ?? चाय उबलकर पतीली से बाहर गिर रही है.. ध्यान कहाँ है तेरा?? अभी चाय तेरे हाथ पर गिर जाती.. " अनुमौसी ने कविता की विचारशृंखला को तोड़ा और किचन के बाहर चली गई
शीला और मदन, इनोवा की डीकी से सामान उतारने लगे.. ड्राइवर हाफ़िज़ कैरियर पर रस्सी से बांधी हुई बेग को खोल रहा था.. और कार के टॉप से शीला के स्तनों के बीच की खाई को देखता जा रहा था
शीला और मदन दोनों अंदर आए.. शीला ने मदन को ड्रॉइंग रूम में ही बिठाया.. ताकि वैशाली और संजय को मिलन की आखिरी पलों में चरमसीमा हासिल करने में कोई खलल ना पड़े.. मंजिल पर पहुंचते वक्त कोई बाधा आ जाएँ तो क्या गुजरती है ये शीला बखूबी जानती थी.. कल रात ही ऐसा हुआ था जब वैशाली चुदाई के बीच ही टपक पड़ी थी
सामान लेकर हाफ़िज़ अंदर आया.. शीला उससे नजरें नही मिला पा रही थी.. वो चाहती थी की मदन उसे भाड़ा देकर जल्द से जल्द रवाना कर दे.. पर मदन को कहाँ पता था जिस गाड़ी में वो आया है उस गाड़ी का ड्राइवर उसकी बीवी को दो बार चोद चुका है.. !!
"तुमने मेरी बहोत मदद की है.. अंदर आओ.. शीला.. ड्राइवर भाई के लिए चाय बना दे.. बहोत ही अच्छा आदमी है.. " मदन का ये कहते ही शीला के छक्के छूट गए.. पर वो क्या करती!!
"आइए आइए भैया.. यहाँ सोफ़े पर बैठिए.. मैं आपके लिए चाय बनाकर लाती हूँ.. " ना चाहते हुए भी शीला को हाफ़िज़ का स्वागत करना पड़ा..
मन ही मन खुश होते हुए हाफ़िज़ सोफ़े पर बैठ गया.. शीला ने जब उसे पानी का ग्लास दिया तब हाफ़िज़ ने जानबूझकर शीला के हाथ को छु लिया.. शीला के जिस्म में बिजली दौड़ गई.. वो बेचारी इन सब से दूर भागना चाहती थी.. लेकिन स्थिति ही कुछ ऐसी थी की वो कुछ कर नही पाई.. वो तुरंत किचन में चली गई और मदन और हाफ़िज़ के लिए चाय बनाने लगी..
तीन कप चाय ट्रे में लेकर बाहर आई.. और तीनों चाय पीने लगे.. तभी बेडरूम का दरवाजा खुला और वैशाली संजय के साथ तृप्त होकर बाहर निकली
"पापा....!!!" कहते हुए वैशाली मदन से लिपट पड़ी
बाप और बेटी के इस भावुक मिलन के दौरान.. वैशाली की आँखों से टपकते आँसू.. अपने पिता संग मिलन की खुशी.. और संजय से मन-मुटाव का दुख.. दोनों व्यक्त कर रहे थे.. वैशाई अपने पापा के कंधे पर सर रखकर काफी देर तक रोती रही.. सृष्टि के सब से करुण द्रश्य में से एक था.. पहले तो मदन को पता नही चला.. पर जब वैशाली का रोना काफी देर तक चलता रहा तब उसे शक हुआ की कुछ तो हुआ था वैशाली के साथ.. कोई भी बाप अपनी बेटी को रोते हुए नही देख सकता.. बड़ी मुश्किल से मदन ने वैशाली को अपने आप से अलग किया और शीला को इशारा किया की वो वैशाली को अंदर ले जाएँ.. वैशाली को सांत्वना देते हुए शीला उसे अंदर किचन में ले गई.. वैशाली के आधे से ज्यादा आंसुओं का जवाबदार संजय ऐसे बैठा था जैसे उसे कुछ पता ही न हो.. पास पड़ा अखबार उठाकर पढ़ने लगा वो
मदन ने पर्स से पैसे निकालकर हाफ़िज़ को भाड़ा चुकाया.. जाते जाते हाफ़िज़ किचन के करीब से खाँसते हुए निकला.. शीला का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए.. लेकिन शीला ने उसकी तरफ देखा तक नही.. "चलिए मेमसाब.. मैं चलता हूँ. चाय पिलाने के लिए शुक्रिया.. कभी किराएं पर गाड़ी की जरूरत हो.. या और किसी भी चीज की जरूरत हो तो याद करना.. बंदा हाजिर हो जाएगा.. आपके जैसी पार्टियां बहोत कम मिलती है" शीला को आँख मारते हुए हाफ़िज़ ने कहा
शीला को एक पल के लिए अपने आप पर ही घिन आने लगी.. हे प्रभु.. मैं कैसी थी और कैसी बन गई.. !! अब ये मेरा काला भूतकाल मेरा पीछा नही छोड़ेगा.. कुछ अनहोनी ना हो जाए तो अच्छा है..
संजय खड़ा हुआ और किचन में आकर बोला "मम्मी जी.. मैं काम से बाहर जा रहा हूँ.. मेरा खाना मत बनाना.. पार्टी से मिलने जा रहा हूँ वहीं खाना खा लूँगा.. !!"
"बड़ा आया पार्टी वाला.. होगी कोई उसकी रांड.. मुझे तो मन भरकर भोग लिया.. उसका काम हो गया.. अब यहाँ रहकर क्या फायदा.. अब सस्ती चूतों के पीछे भटकता रहेगा मादरचोद" वैशाली मन में सोच रही थी..
संजय के चले जाने के बाद.. माँ, बेटी और मदन अकेले हुए.. तब तक मदन बाथरूम से नहाकर निकला था..
"आह.. अपने वतन में आकर कितना अच्छा लगता है.. मैं क्या बताऊँ वैशाली.. !! विदेश में सुख सुविधा का भंडार था.. पर जो सुकून अपने देश में आकर मिलता है वो कहीं नही मिलता.. " सोफ़े पर आराम से बैठते हुए मदन ने वैशाली से कहा
विदेश की बातें करते हुए मदन और वैशाली ने नाश्ता किया.. उसे ब्रेड पकोड़े बेहद पसंद थे इसीलिए शीला ने याद करके वही बनाए थे.. वहाँ विदेश में रहकर शीला के हाथ का बना भोजन वो कितना मिस कर रहा था ये बताया मदन ने.. खाने के अलावा.. शीला से दूर रहकर उसे कितनी तकलीफें झेलनी पड़ी उसका सारा ब्यौरा दे रहा था वो.. ये सुनकर शीला बेचैन हो गई.. अपने पति की जुदाई में उसने जो कारनामे कीये थे वो याद करके दुखी दुखी हो गई शीला.. मेरा पति वहाँ मेरी जुदाई के गम में तड़प रहा था.. और मैंने यहाँ क्या क्या कर दिया.. छी छी ची.. अपने आप पर ही घृणा होने लगी शीला को.. पर जो बीत गई सो बात गई.. अब कुछ नही हो सकती था
वैशाली सयानी और शादीशुदा थी.. वो समझ सकती थी की दो सालों के बाद मिले पति पत्नी को एकांत देना बेहद जरूरी था.. नाश्ता खतम करके वो खड़ी हो गई
वैशाली: "पापा.. मैं कविता और उसकी बहन मौसम से मिलकर आती हूँ.. तब तक आप और मम्मी बातें कीजिए.. और हाँ.. पापा से सब कुछ पूछ लेना मम्मी.. की वहाँ क्या गुल खिलाकर आए है " हँसते हँसते वैशाली ने शीला के कान में कहा "वहाँ की गोरी लड़कियां बेहद सुंदर और आकर्षक होती है.. अच्छे अच्छे उनके आगे फिसल जाते है.. पूछना तुम पापा से" खिलखिलाकर हँसते हुए वैशाली चली गई.. शीला भी हंस पड़ी..
बड़ी ही प्रेमभरी नज़रों से मदन शीला को हँसते हुए देखता रहा "शीला, तेरा ये हँसता हुआ चेहरा देखने के लिए मैं दो साल तक तरसा हूँ"
सम्पूर्ण एकांत.. वो भी दो सालों की जुदाई के बाद.. दो साल नही.. चौबीस महीने.. चौबीस महीने नही सातसौ तीस दिन.. !!! जुदाई के अनगिनत घंटों के बाद जाकर एकांत मिला था शीला और मदन को.. ऐसा नही है की जुदाई में इंसान सिर्फ सेक्स को ही मिस करता है.. उसके अलावा भी काफी बातें होती है.. सेक्स तो केवल दो इंसानों के मिलन से जुड़ी भावनाओ की आग का नाम है.. मदन शीला की गोद में सर रखकर सो गया.. शीला मदन के सर और क्लीन शेव चेहरे पर हाथ सहलाने लगी.. मदन की आँख में आँसू आ गए.. शीला की आँखें भी नम थी.. दोनों बिना कुछ कहें बस एक दूसरे के स्पर्श को महसूस कर रहे थे.. जैसे जनम जनम के बाद मिल रहे हो.. !!
वैशाली के जाते शीला और मदन को जैसा ही मिलाएकांतसम्पूर्ण एकांत.. वो भी दो सालों की जुदाई के बाद.. दो साल नही.. चौबीस महीने.. चौबीस महीने नही सातसौ तीस दिन.. !!! जुदाई के अनगिनत घंटों के बाद जाकर एकांत मिला था शीला और मदन को.. ऐसा नही है की जुदाई में इंसान सिर्फ सेक्स को ही मिस करता है.. उसके अलावा भी काफी बातें होती है.. सेक्स तो केवल दो इंसानों के मिलन से जुड़ी भावनाओ की आग का नाम है.. मदन शीला की गोद में सर रखकर सो गया.. शीला मदन के सर और क्लीन शेव चेहरे पर हाथ सहलाने लगी.. मदन की आँख में आँसू आ गए.. शीला की आँखें भी नम थी.. दोनों बिना कुछ कहें बस एक दूसरे के स्पर्श को महसूस कर रहे थे.. जैसे जनम जनम के बाद मिल रहे हो.. !!
"||ये सब से अद्भुत अवस्था होती है मिलन की.. कहना तो बहुत कुछ है.. पर याद कुछ भी नही||"
शीला और मदन दोनों की स्थिति एक जैसी ही थी.. शीला का पल्लू सरककर मदन के चेहरे पर आ गिरा.. पल्लू ने आँसू तो सोख लिए पर पूर्णिमा के चंद्र जैसे शीला के स्तनों के उभारों को उजागर कर दिया.. और साथ ही साथ मदन के चेहरे को भी ढँक दिया
अजब लीला है कुदरत की.. जब मीठा खाने की उम्र और इच्छा दोनों हो तब जेब में पैसे नही होते.. जब इच्छा और पैसे दोनों होते है तब तक तो डॉक्टर ने मीठा खाने के लिए मना कर दिया होता है.. जीवन का दूसरा नाम ही है अभाव.. हर किसी को जीवन में कोई न कोई अभाव जरूर होता है
"जो चीज देखने के लिए मैं अमेरिका से यहाँ तक आया..वो देखने नही दोगी क्या!! दिखाने के लिए पल्लू हटाती हो.. और दूसरी तरफ मेरा चेहरा ढँक देती हो.. !!" बिना पल्लू हटाए मदन ने कहा
शीला की विशाल छातियाँ.. भारी साँसों के कारण ऊपर नीचे हो रही थी.. वासना के साथ साथ शर्म और हया भी पूरे शरीर में फैल चुकी थी..
आखिर मदन ने खुद ही अपने चेहरे से शीला का पल्लू हटा लिया.. अपनी पत्नी शीला के स्तन उसने सेंकड़ों बार चूसे, दबाए और मसले थे.. और अनगिनत बार उसके दो बबलों के बीच लंड घुसेड़कर स्तन-चुदाई भी की थी.. फिर भी.. उन स्तनों की साइज़ और परिधि को देखकर वो निःशब्द हो गया.. शीला के महंदी लगे सुंदर बाल.. गोरा चेहरा.. चमकती त्वचा.. गालों की लाली.. और ऊपर पहनी लाल रंग की सुंदर साड़ी.. अगर वैशाली यहाँ नही होती तो बड़े इत्मीनान से मदन शीला को चोदता..
अचानक शीला को याद आया की दरवाजा तो खुला था..
"मदन, मैं दरवाजा बंद कर दूँ? वैशाली एकदम से आ जाएगी तो अच्छा नही लगेगा"
"कोई नही आएगा शीला.. अब तुम मुझे छोड़कर कहीं मत जा.. प्लीज.. वैशाली सयानी और समझदार है.. हमें अकेला छोड़ने के लिए ही वो जान बूझकर बाहर गई है इसलिए वो तो अब नही आएगी.. बस मुझे प्यार कर और प्यार करने दे शीला" कहते हुए मदन ने शीला का मुख अपनी ओर खींचा और एक शानदार चुंबन के साथ उनके नए हनीमून की शुरुआत हुई..
"ओह शीला मेरी जान.. पूरी दुनिया घूम ली मैंने.. पर तेरे इन दमदार चूचियों जैसा रूप कहीं नही देखा.." शीला के ब्लाउस की एक कटोरी को दबाते हुए मदन ने कहा.. हर स्त्री को अपने पति की प्रशंसा अतिप्रिय होती है.. शीला की परिपक्व जवानी मदन के स्पर्श से खिल उठी.. उसकी आँखें अपने आप ही बंद हो गई.. उसने नीचे झुककर मदन के होंठों पर अपने होंठ रखकर उसकी बोलती बंद कर दी.. मदन शीला के विशाल स्तनों के भार तले दब गया.. और उसका लंड तनकर खड़ा हो गया.. मदन के लोडे का उभार देखकर शीला मुस्कुराई और बोली "बहोत जल्दी तैयार हो गया तेरा.. मेरे शरीर के प्रति तेरा आकर्षण अभी भी पहले जितना ही है.. मैं तो सोच रही थी की इतना समय विदेश रहने के बाद तुझे अब सिर्फ गोरी चमड़ी वाली मेमसाब ही पसंद आती होगी.. "
शीला के ब्लाउस के टाइट हुक.. एक के बाद एक खोलने लगा मदन..
मदन: "हाँ.. वहाँ की गोरी लड़कियां और औरतें बेहद सुंदर, सेक्सी और आकर्षक होती है.. अंग प्रदर्शन भी इतना करती है.. ऐसा नही था की मैं उनसे आकर्षित नही हुआ था.. पर मेरे दिल की रानी तो हमेशा तू ही रहेगी शीला.. !! तेरा स्थान और कोई ले नही सकता.. देख देख.. मेरा लंड भी इस बात की गँवाही दे रहा है.. !!"
शीला ने अपना हाथ लंबा कर मदन के पेंट के ऊपर से ही उसके लंड को सहलाया.. और उसकी सख्ती भी जांच ली.. लंड के ऊपर अन्डरवेर और पेंट का आवरण होने के बावजूद शीला को उसकी गर्मी का एहसास अपनी हथेली पर हो रहा था.. उसके जिस्म में वासना की भूख ऐसी जागी की वो बस इतना ही बोल पाई "मदन, तेरे जाने के बाद.. इसके बिना.. मत इतना तड़पी हूँ.. इतना तड़पी हूँ की बता नही सकती.. आज तो मुझे पूरा रगड़ दे.. ऐसा चोद.. ऐसा चोद मुझे की मेरी चीखें निकल जाएँ.. आह्ह" शीला के ब्लाउस के तमाम हुक खुलते ही उसके दोनों भारी भरकम खरबूजे मदन के मुख पर जा टकराए.. उस नरम मांसल स्पर्श ने मदन को बेहद उत्तेजित कर दिया.. शीला का जो हाथ मदन के लंड पर था उसने भी लोड़े की इस उत्तेजना को महसूस किया
शीला ने पेंट की चैन को नीचे सरकाते हुए कहा "मदन, अगर बीच कार्यक्रम में वैशाली आ गई तो मेरी सारी इच्छाएं दबी की दबी रह जाएगी.. इसलिए अभी फिलहाल तो तू मुझे जल्दी जल्दी ठंडी कर दे.. फिर रात को हम दोनों तसल्ली से चुदाई करेंगे.. मुझे तेरे साथ बड़े ही इत्मीनान से चुदवाना है आज.. !!"
पेंट की चैन सरकाकर.. शीला ने मदन का लंड बाहर निकाल दिया.. दिन के उजाले में इस सख्त खिले हुए लंड को देखकर शीला को सेंकड़ों विचार एक साथ आ गए.. रसिक का.. जीवा का.. रघु का.. पीयूष का.. संजय का.. सब के लंड उसकी नज़रों के सामने एक साथ नाचने लगे.. उस अंग्रेज जॉन के लंड की भी याद आ गई जो उसने गोवा में देखा था.. और हाफ़िज़ का भी
अपनी गोद से मदन का सर हटाकर तकिये पर रखकर शीला ने खड़ी होकर अपना घाघरा उठाया.. चुत के दोनों वर्टिकल होंठों को उंगलियों से चौड़ा कर अंदर का लाल गुलाबी हिस्सा मदन को दिखाने लगी..
"ओह्ह शीला.. करीब आ.. थोड़ी देर चाटने दे मुझे" मदन ने अपना सर उठाते हुए कहा
"नही मदन.. पहले मुझे ईसे चूसने दे.. फिर तू चाट लेना.. " कहते हुए शीला ने लंड को अपनी मुठ्ठी में पकड़कर आगे पीछे किया.. शीला की कोमल हथेली का अनुभवी स्पर्श मिलते ही मदन का लोडा ठुमकने लगा.. मोर की तरह नाचने लगा.. छत की तरफ तांकते हुए लहराने लगा..
"एक काम कर.. तू नीचे सोजा और मैं उल्टा होकर तेरे ऊपर लेट जाता हूँ.. मैं तेरी चाट लूँगा तू मेरा चूस लेना.. दोनों का काम एक साथ हो जाएगा " मदन ने उत्तम सुझाव दिया
शीला तुरंत बेड पर तकिये पर सर रखकर लेट गई.. और मदन उसके ऊपर उल्टा लेट गया.. दोनों 69 की पोजीशन में सेट हो गए.. अब संवाद के लिए कोई स्थान न था क्योंकि शीला के मुख के सामने मदन का आठ इंच का लंड था और मदन के मुंह के सामने शीला का रसीला रस टपकाता भोसड़ा.. जो मदन को चाटने के लिए ललचा रहा था.. मदन अपनी पत्नी की चूत पर ऐसे टूट पड़ा जैसे जनम जनम का भूखा हो.. तर्जनी जैसी शीला की फुली हुई क्लिटोरिस दोनों होंठों के बीच रखकर चॉकलेट की तरह चूसने लगा.. मदन की गरम जीभ का स्पर्श होते ही शीला एक पल के लीये उछल पड़ी.. और मदन के पूरे लंड को एक ही बार में.. मुंह के अंदर ले लिया.. और ऐसे चूसने लगी की मदन सारी गोरी राँडों को एक सेकंड में भूल गया..
शीला की लंड चुसाई से मदन ओर उत्तेजित होकर शीला के भोसड़े की गहराई में खो गया और अंदर के लाल हिस्से को अपनी जीभ से कुरेद कुरेदकर चाटने लगा.. शीला आज चौबीस महीनों के बाद.. बिना किसी डर या अपराधभाव के चुदाई का आनंद ले रही थी.. पिछले दो महीनों में उसे केवल गैर-कानूनी या यूं कहिए.. सामाजिक तौर पर अस्वीकृत सेक्स ही मिला था.. मदन के लंड को शीला जब चूसती थी तब कभी पूरे लंड को एक ही बार में अंदर डाल देती.. तो कभी लंड को चारों तरफ से चाटती.. मदन शीला की चूत को चाटते हुए.. बुर से रिस रहे शहद को भी चटकारे लेकर चूस रहा था..
मदन ने अब अपनी कमर हिलाते हुए शीला के मुंह को चोदना शुरू कर दिया.. उसकी चोदने की गति बढ़ने लगी.. शीला समझ गई की उसके वीर्य का फव्वारा बस छूटने को था.. वो भी ऑर्गैज़म की प्रतियोगित में पीछे रहना नही चाहती थी.. उसने भी मदन के चेहरे को अपनी गोरी मांसल गदराई जांघों के बीच ऐसे दबा दिया.. की मदन की सांस रुक गई.. थोड़ी ही देर में शीला का मुंह.. चिपचिपे गाढ़े सफेद वीर्य से भर गया.. तो बदले में उसने भी मदन का मुंह अपनी चुत के रसगुल्ले की चासनी जैसे शहद से भर दिया..
मदन हांफते हुए शीला पर धराशायी हो गया और उसका लंड शीला के मुख के अंदर नरम होकर दफन हो गया.. मदन के अंडकोश शीला की ठुड्डी पर दब रहे थे.. वीर्य खाली होते ही उसके आँड भी नरम होकर निर्जीव हो गए.. दोनों संतुष्ट हुए थी की किसी के आने की भनक लगी..
"लगता है वैशाली आ गई.. जल्दी जल्दी कपड़े पहन कर बाहर जा.. मुझे साड़ी और ब्लाउस पहनने में थोड़ी देर लगेगी.. और मुझे बाथरूम में जाकर मुंह भी साफ करना है.. " कहते ही शीला अपने कपड़े लेकर बाथरूम की तरफ भागी.. मदन ने फटाफट कपड़े पहन लिए और बाहर के कमरे में आ गया.. वैशाली, मौसम, फाल्गुनी और कविता.. चारों ड्रॉइंग रूम में बैठे थे..
"आप आ गए अंकल? कैसी है तबीयत आपकी? हमारे लिए क्या लाए?" कहते हुए कविता ने मदन के साथ बातें शुरू कर दी.. मौसम, फाल्गुनी और वैशाली मदन के चेहरे की ओर देखकर बार बार हंस रहे थे.. कविता भी बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोक रही थी..
तभी शीला बाथरूम से बाहर आई.. चारों लड़कियों को साथ देखकर वो खुश हो गई
"अरे तुम सब एक साथ!! चलो अच्छा हुआ.. अंकल से मिलने आ गई.. " शीला ने कहा.. पर मौसम, फाल्गुनी और कविता की हंसी देखकर उसे लगा की कहीं तो कुछ था जिसे देखकर इन लड़कियों को इतनी हंसी आ रही थी.. तभी उसकी नजर मदन के चेहरे पर गई और वो एकदम शर्मा गई.. वो भागकर किचन में आई और मदन को आवाज दी
मदन अंदर किचन में गया.. शीला ने उसके चेहरे पर चिपकी अपनी बिंदी निकाल दी..
"ये लड़कियां इतना हंस रही थी तो तुझे पता भी नही चला की क्यों हंस रही है? ये बिंदी देखकर हंस रही थी वो सब"
"अरे मुझे क्या पता!! मुझे थोड़े ही अपना चेहरा दिखता है जो मुझे तेरी बिंदी नजर आती?"
"अरे मेरे साहब.. बाहर आने से पहले एक बार आईने में देख तो लेते.. पता लग जाता की क्या चिपका है.. !! जा बाहर जाकर उनके साथ बैठ.. मैँ शर्बत बनाकर लाती हूँ सब के लिए"
मदन शरमाते हुए बाहर आकर बैठ गया.. जवान लड़कियों को पता चल गया था की अंकल-आंटी अभी अभी चुदाई का प्रोग्राम करके बाहर निकले थे.. पर अब कुछ नही हो सकता था.. बात को बदलना ही योग्य था
"तेरी तो बहोत सारी सहेलियाँ हो गई है, वैशाली.. मेरी बेटी है ही ऐसी.. सब के साथ सेट हो जाती है" मदन ने हँसते हुए कहा
"हाँ.. मेरे पीयूष के साथ भी जरूरत से ज्यादा सेट हो गई है आपकी बेटी" कविता के होंठों तक ये शब्द आ गए फिर खुद ही निगल गई.. और चेहरे पर झूठी मुस्कान का चोला पहन लिया
तभी शीला शर्बत के ग्लास की ट्रे ले कर आई और सब को एक एक ग्लास दिया.. बैठने की जगह थोड़ी कम थी इसलिए शीला उस सोफ़े पर दुबक कर बैठ गई जहां कविता और मौसम बैठे हुए थे.. इतनी सी जगह में बैठते हुए शीला के स्तन कविता के कंधे से दब गए.. कविता के पूरे जिस्म में झुंझुनाहट होने लगी.. पुरानी यादें ताज़ा हो गई.. पर अभी सब के सामने ऐसे किसी भी तरह के जज़्बात को व्यक्त करना मुमकिन नही था..
कविता: "शीला भाभी, आज सुबह मेरे पापा का फोन आया था.. मौसम को लड़के वाले देखने आ रहे है.. इसलिए मौसम को तुरंत घर वापिस जाना होगा.. आज शाम मौसम और फाल्गुनी को घर छोड़ने जाएगा पीयूष.. और कल लौटेगा.. इसलिए सोचा की दोनों को अंकल से आज ही मिलवा दूँ.. "
मदन: "अरे मौसम बेटा.. मैं आज आया और तुम जा रही हो.. ऐसा कैसे चलेगा?" मदन ने प्यार से कहा
मौसम ने मुस्कुराकर कहा "मैं भी यहाँ रुकना चाहती हूँ अंकल.. पर क्या करू.. मम्मी को मुझे घर से भगाने की बड़ी जल्दी है.. आए दिन लड़के वालों को देखने के लिए बुला लेती है.. मुझे तो अभी ओर पढ़ाई करनी है.. पर मम्मी पापा मुझे शादी के लिए फोर्स कर रहे है.. क्या करू??"
मदन: "अरे बेटा.. हर माँ बाप को अपनी बेटी की शादी की चिंता रात दिन रहती है.. इसमे गलत क्या है!! और अभी के अभी तेरी शादी थोड़े ही कर देंगे!! अभी तो लड़का देखने का सिलसिला शुरू हुआ है.. पसंद है या नही है.. वो ज्यादा जरूरी है"
वैशाली: "लड़का पसंद करने में जरा भी जल्दबाजी मत करना मौसम.. वरना बहोत पछताएगी बाद में.. सिर्फ दिखावे पर कभी मत जाना.. कितना कमाता है.. पढ़ा लिखा है भी या नही.. उसके दोस्त कैसे है.. इन सब की जानकारी लिए बगैर कुछ भी तय मत करना वरना लेने के देने पड़ जाएंगे.. आज कल तो ऐसे लड़कों की भरमार लगी हुई है जो बाप के पैसों पर उछलते रहते है और खुद तो एक ढेला भी नही कमाते.. " वैशाली नॉन-स्टॉप बोले जा रही थी.. वैशाली को ऐसा बोलते हुए मदन देखता ही रह गया
मौसम और फाल्गुनी को वैशाली की बातों में कुछ खास दिलचस्पी नही थी पर कविता, मदन और शीला को वैशाली की बातों में छुपा अर्थ और दर्द महसूस हो रहा था
कविता: "वैशाली, इससे अच्छा तो ये होगा की तुम ही मौसम के साथ चली जाओ.. इंसान को परखने का अनुभव तो तुझे है ही.. वैसे भी मौसम की तेरे साथ अच्छी पटती है.. फाल्गुनी के साथ तू भी उसकी फ्रेंड की तरह मीटिंग में साथ रहना"
"हाँ वैशाली.. दीदी की बात बिल्कुल सही है.. तुम भी मेरे साथ घर चलो.. हम दोनों ने तुम्हारे घर और तुम्हारे साथ कितने मजे कीये है!!! अब हमें भी आपकी खातिरदारी करने का मौका दो.. " मौसम तुरंत बोल पड़ी
"मौसम के बात बिलकूल सही है" फाल्गुनी ने भी मौसम का साथ दिया
वैशाली उलझन में पड़ गई.. क्या किया जाए?
अपनी बेटी के चेहरे को साफ पढ़ते हुए मदन ने हल निकाला "मुझे लगता है की तुम्हें मौसम के साथ जाना चाहिए, वैशाली। लड़की की पूरी ज़िंदगी का सवाल है.. सिर्फ सलाह देने से काम नही होता.. तुम्हें साथ रहकर प्रेकटिकली मदद करनी चाहिए उसकी.. "
शीला: "कई बार लड़कियां शरमाकर काफी सवाल पूछने की हिम्मत ही नही करती.. घरवाले भी ज्यादा पूछ नही सकते.. ऐसे में सहेलियाँ ही काम आती है.. जो उनको सटीक सवाल पूछकर सारी जानकारी हासिल कर सके.. !! तू जरूर जा मौसम के साथ"
वैशाली: "ठीक है मम्मी.. आप सब कह रहे है तो मैं तैयार हूँ जाने के लिए.. पर मेरी एक शर्त है"
मदन: "कौन सी शर्त, बेटा?"
वैशाली: "यही की आप और मम्मी मुझे वापिस लेने आएंगे.. वादा करो तो ही मैं जाऊँगी मौसम के साथ"
मदन: "अरे पगली.. तू क्या अब छोटी बच्ची है जो हम तुझे लेने आए!! तू कलकत्ता से अकेली यहाँ आती है.. और हम तुझे दो घंटों के बस के सफर के लिए लेने आए.. कैसी बचकानी बातें कर रही है तू वैशाली.. !!"
वैशाली: "पापा, आप और मम्मी कार लेकर मुझे लेने आओ तो मुझे बस के धक्के खाने न पड़े.. "
शीला: "दो घंटों में तुझे कौन से धक्के लग जाने वाले है?"
वैशाली: "वो सब मैं कुछ नही जानती.. आप दोनों मुझे लेने आओ तो ही मैं जाऊँगी वरना सॉरी मौसम.. !!"
मौसम: "अंकल.. आंटी.. प्लीज मान जाइए ना.. !!"
कविता: "अरे वो कहाँ मना करने वाले है.. वैशाली मैं तुझे गारंटी के साथ कहती हूँ.. ये दोनों तुझे लेने आएंगे कार लेकर.. तू चिंता मत कर.. दो जोड़ी कपड़े भर दे बेग में.. शाम को पाँच बजे निकलना है..तैयार रहना.. मौसम.. फाल्गुनी.. चलो उठो.. हमें बाजार जाना है.. मुझे तुम दोनों को शॉपिंग करवानी है"
कविता, फाल्गुनी और मौसम तीनों निकल गए.. और वैशाली अपने कमरे में पॅकिंग करने लगी.. मदन और शीला इस सोच में थे की मौसम के घर जाएँ या न जाएँ.. तभी संजय का फोन आया.. उसे काम आ गया था इसलिए वो तीन दिन तक घर वापिस नही आएगा.. वैशाली समझ गई की उसे कौनसा काम आ गया होगा
कविता ने वैशाली को फोन किया और कहा की अगर वो भी शॉपिंग में उन तीनों के साथ आना चाहती हो तो तैयार होकर आ जाए.. वैशाली फटाफट तैयार होकर निकल गई.. शॉपिंग के लिए कभी कोई लड़की मना करती है क्या.. !!
वैशाली के जाते शीला और मदन को जैसा ही मिलाएकांतसम्पूर्ण एकांत.. वो भी दो सालों की जुदाई के बाद.. दो साल नही.. चौबीस महीने.. चौबीस महीने नही सातसौ तीस दिन.. !!! जुदाई के अनगिनत घंटों के बाद जाकर एकांत मिला था शीला और मदन को.. ऐसा नही है की जुदाई में इंसान सिर्फ सेक्स को ही मिस करता है.. उसके अलावा भी काफी बातें होती है.. सेक्स तो केवल दो इंसानों के मिलन से जुड़ी भावनाओ की आग का नाम है.. मदन शीला की गोद में सर रखकर सो गया.. शीला मदन के सर और क्लीन शेव चेहरे पर हाथ सहलाने लगी.. मदन की आँख में आँसू आ गए.. शीला की आँखें भी नम थी.. दोनों बिना कुछ कहें बस एक दूसरे के स्पर्श को महसूस कर रहे थे.. जैसे जनम जनम के बाद मिल रहे हो.. !!
"||ये सब से अद्भुत अवस्था होती है मिलन की.. कहना तो बहुत कुछ है.. पर याद कुछ भी नही||"
शीला और मदन दोनों की स्थिति एक जैसी ही थी.. शीला का पल्लू सरककर मदन के चेहरे पर आ गिरा.. पल्लू ने आँसू तो सोख लिए पर पूर्णिमा के चंद्र जैसे शीला के स्तनों के उभारों को उजागर कर दिया.. और साथ ही साथ मदन के चेहरे को भी ढँक दिया
अजब लीला है कुदरत की.. जब मीठा खाने की उम्र और इच्छा दोनों हो तब जेब में पैसे नही होते.. जब इच्छा और पैसे दोनों होते है तब तक तो डॉक्टर ने मीठा खाने के लिए मना कर दिया होता है.. जीवन का दूसरा नाम ही है अभाव.. हर किसी को जीवन में कोई न कोई अभाव जरूर होता है
"जो चीज देखने के लिए मैं अमेरिका से यहाँ तक आया..वो देखने नही दोगी क्या!! दिखाने के लिए पल्लू हटाती हो.. और दूसरी तरफ मेरा चेहरा ढँक देती हो.. !!" बिना पल्लू हटाए मदन ने कहा
शीला की विशाल छातियाँ.. भारी साँसों के कारण ऊपर नीचे हो रही थी.. वासना के साथ साथ शर्म और हया भी पूरे शरीर में फैल चुकी थी..
आखिर मदन ने खुद ही अपने चेहरे से शीला का पल्लू हटा लिया.. अपनी पत्नी शीला के स्तन उसने सेंकड़ों बार चूसे, दबाए और मसले थे.. और अनगिनत बार उसके दो बबलों के बीच लंड घुसेड़कर स्तन-चुदाई भी की थी.. फिर भी.. उन स्तनों की साइज़ और परिधि को देखकर वो निःशब्द हो गया.. शीला के महंदी लगे सुंदर बाल.. गोरा चेहरा.. चमकती त्वचा.. गालों की लाली.. और ऊपर पहनी लाल रंग की सुंदर साड़ी.. अगर वैशाली यहाँ नही होती तो बड़े इत्मीनान से मदन शीला को चोदता..
अचानक शीला को याद आया की दरवाजा तो खुला था..
"मदन, मैं दरवाजा बंद कर दूँ? वैशाली एकदम से आ जाएगी तो अच्छा नही लगेगा"
"कोई नही आएगा शीला.. अब तुम मुझे छोड़कर कहीं मत जा.. प्लीज.. वैशाली सयानी और समझदार है.. हमें अकेला छोड़ने के लिए ही वो जान बूझकर बाहर गई है इसलिए वो तो अब नही आएगी.. बस मुझे प्यार कर और प्यार करने दे शीला" कहते हुए मदन ने शीला का मुख अपनी ओर खींचा और एक शानदार चुंबन के साथ उनके नए हनीमून की शुरुआत हुई..
"ओह शीला मेरी जान.. पूरी दुनिया घूम ली मैंने.. पर तेरे इन दमदार चूचियों जैसा रूप कहीं नही देखा.." शीला के ब्लाउस की एक कटोरी को दबाते हुए मदन ने कहा.. हर स्त्री को अपने पति की प्रशंसा अतिप्रिय होती है.. शीला की परिपक्व जवानी मदन के स्पर्श से खिल उठी.. उसकी आँखें अपने आप ही बंद हो गई.. उसने नीचे झुककर मदन के होंठों पर अपने होंठ रखकर उसकी बोलती बंद कर दी.. मदन शीला के विशाल स्तनों के भार तले दब गया.. और उसका लंड तनकर खड़ा हो गया.. मदन के लोडे का उभार देखकर शीला मुस्कुराई और बोली "बहोत जल्दी तैयार हो गया तेरा.. मेरे शरीर के प्रति तेरा आकर्षण अभी भी पहले जितना ही है.. मैं तो सोच रही थी की इतना समय विदेश रहने के बाद तुझे अब सिर्फ गोरी चमड़ी वाली मेमसाब ही पसंद आती होगी.. "
शीला के ब्लाउस के टाइट हुक.. एक के बाद एक खोलने लगा मदन..
मदन: "हाँ.. वहाँ की गोरी लड़कियां और औरतें बेहद सुंदर, सेक्सी और आकर्षक होती है.. अंग प्रदर्शन भी इतना करती है.. ऐसा नही था की मैं उनसे आकर्षित नही हुआ था.. पर मेरे दिल की रानी तो हमेशा तू ही रहेगी शीला.. !! तेरा स्थान और कोई ले नही सकता.. देख देख.. मेरा लंड भी इस बात की गँवाही दे रहा है.. !!"
शीला ने अपना हाथ लंबा कर मदन के पेंट के ऊपर से ही उसके लंड को सहलाया.. और उसकी सख्ती भी जांच ली.. लंड के ऊपर अन्डरवेर और पेंट का आवरण होने के बावजूद शीला को उसकी गर्मी का एहसास अपनी हथेली पर हो रहा था.. उसके जिस्म में वासना की भूख ऐसी जागी की वो बस इतना ही बोल पाई "मदन, तेरे जाने के बाद.. इसके बिना.. मत इतना तड़पी हूँ.. इतना तड़पी हूँ की बता नही सकती.. आज तो मुझे पूरा रगड़ दे.. ऐसा चोद.. ऐसा चोद मुझे की मेरी चीखें निकल जाएँ.. आह्ह" शीला के ब्लाउस के तमाम हुक खुलते ही उसके दोनों भारी भरकम खरबूजे मदन के मुख पर जा टकराए.. उस नरम मांसल स्पर्श ने मदन को बेहद उत्तेजित कर दिया.. शीला का जो हाथ मदन के लंड पर था उसने भी लोड़े की इस उत्तेजना को महसूस किया
शीला ने पेंट की चैन को नीचे सरकाते हुए कहा "मदन, अगर बीच कार्यक्रम में वैशाली आ गई तो मेरी सारी इच्छाएं दबी की दबी रह जाएगी.. इसलिए अभी फिलहाल तो तू मुझे जल्दी जल्दी ठंडी कर दे.. फिर रात को हम दोनों तसल्ली से चुदाई करेंगे.. मुझे तेरे साथ बड़े ही इत्मीनान से चुदवाना है आज.. !!"
पेंट की चैन सरकाकर.. शीला ने मदन का लंड बाहर निकाल दिया.. दिन के उजाले में इस सख्त खिले हुए लंड को देखकर शीला को सेंकड़ों विचार एक साथ आ गए.. रसिक का.. जीवा का.. रघु का.. पीयूष का.. संजय का.. सब के लंड उसकी नज़रों के सामने एक साथ नाचने लगे.. उस अंग्रेज जॉन के लंड की भी याद आ गई जो उसने गोवा में देखा था.. और हाफ़िज़ का भी
अपनी गोद से मदन का सर हटाकर तकिये पर रखकर शीला ने खड़ी होकर अपना घाघरा उठाया.. चुत के दोनों वर्टिकल होंठों को उंगलियों से चौड़ा कर अंदर का लाल गुलाबी हिस्सा मदन को दिखाने लगी..
"ओह्ह शीला.. करीब आ.. थोड़ी देर चाटने दे मुझे" मदन ने अपना सर उठाते हुए कहा
"नही मदन.. पहले मुझे ईसे चूसने दे.. फिर तू चाट लेना.. " कहते हुए शीला ने लंड को अपनी मुठ्ठी में पकड़कर आगे पीछे किया.. शीला की कोमल हथेली का अनुभवी स्पर्श मिलते ही मदन का लोडा ठुमकने लगा.. मोर की तरह नाचने लगा.. छत की तरफ तांकते हुए लहराने लगा..
"एक काम कर.. तू नीचे सोजा और मैं उल्टा होकर तेरे ऊपर लेट जाता हूँ.. मैं तेरी चाट लूँगा तू मेरा चूस लेना.. दोनों का काम एक साथ हो जाएगा " मदन ने उत्तम सुझाव दिया
शीला तुरंत बेड पर तकिये पर सर रखकर लेट गई.. और मदन उसके ऊपर उल्टा लेट गया.. दोनों 69 की पोजीशन में सेट हो गए.. अब संवाद के लिए कोई स्थान न था क्योंकि शीला के मुख के सामने मदन का आठ इंच का लंड था और मदन के मुंह के सामने शीला का रसीला रस टपकाता भोसड़ा.. जो मदन को चाटने के लिए ललचा रहा था.. मदन अपनी पत्नी की चूत पर ऐसे टूट पड़ा जैसे जनम जनम का भूखा हो.. तर्जनी जैसी शीला की फुली हुई क्लिटोरिस दोनों होंठों के बीच रखकर चॉकलेट की तरह चूसने लगा.. मदन की गरम जीभ का स्पर्श होते ही शीला एक पल के लीये उछल पड़ी.. और मदन के पूरे लंड को एक ही बार में.. मुंह के अंदर ले लिया.. और ऐसे चूसने लगी की मदन सारी गोरी राँडों को एक सेकंड में भूल गया..
शीला की लंड चुसाई से मदन ओर उत्तेजित होकर शीला के भोसड़े की गहराई में खो गया और अंदर के लाल हिस्से को अपनी जीभ से कुरेद कुरेदकर चाटने लगा.. शीला आज चौबीस महीनों के बाद.. बिना किसी डर या अपराधभाव के चुदाई का आनंद ले रही थी.. पिछले दो महीनों में उसे केवल गैर-कानूनी या यूं कहिए.. सामाजिक तौर पर अस्वीकृत सेक्स ही मिला था.. मदन के लंड को शीला जब चूसती थी तब कभी पूरे लंड को एक ही बार में अंदर डाल देती.. तो कभी लंड को चारों तरफ से चाटती.. मदन शीला की चूत को चाटते हुए.. बुर से रिस रहे शहद को भी चटकारे लेकर चूस रहा था..
मदन ने अब अपनी कमर हिलाते हुए शीला के मुंह को चोदना शुरू कर दिया.. उसकी चोदने की गति बढ़ने लगी.. शीला समझ गई की उसके वीर्य का फव्वारा बस छूटने को था.. वो भी ऑर्गैज़म की प्रतियोगित में पीछे रहना नही चाहती थी.. उसने भी मदन के चेहरे को अपनी गोरी मांसल गदराई जांघों के बीच ऐसे दबा दिया.. की मदन की सांस रुक गई.. थोड़ी ही देर में शीला का मुंह.. चिपचिपे गाढ़े सफेद वीर्य से भर गया.. तो बदले में उसने भी मदन का मुंह अपनी चुत के रसगुल्ले की चासनी जैसे शहद से भर दिया..
मदन हांफते हुए शीला पर धराशायी हो गया और उसका लंड शीला के मुख के अंदर नरम होकर दफन हो गया.. मदन के अंडकोश शीला की ठुड्डी पर दब रहे थे.. वीर्य खाली होते ही उसके आँड भी नरम होकर निर्जीव हो गए.. दोनों संतुष्ट हुए थी की किसी के आने की भनक लगी..
"लगता है वैशाली आ गई.. जल्दी जल्दी कपड़े पहन कर बाहर जा.. मुझे साड़ी और ब्लाउस पहनने में थोड़ी देर लगेगी.. और मुझे बाथरूम में जाकर मुंह भी साफ करना है.. " कहते ही शीला अपने कपड़े लेकर बाथरूम की तरफ भागी.. मदन ने फटाफट कपड़े पहन लिए और बाहर के कमरे में आ गया.. वैशाली, मौसम, फाल्गुनी और कविता.. चारों ड्रॉइंग रूम में बैठे थे..
"आप आ गए अंकल? कैसी है तबीयत आपकी? हमारे लिए क्या लाए?" कहते हुए कविता ने मदन के साथ बातें शुरू कर दी.. मौसम, फाल्गुनी और वैशाली मदन के चेहरे की ओर देखकर बार बार हंस रहे थे.. कविता भी बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोक रही थी..
तभी शीला बाथरूम से बाहर आई.. चारों लड़कियों को साथ देखकर वो खुश हो गई
"अरे तुम सब एक साथ!! चलो अच्छा हुआ.. अंकल से मिलने आ गई.. " शीला ने कहा.. पर मौसम, फाल्गुनी और कविता की हंसी देखकर उसे लगा की कहीं तो कुछ था जिसे देखकर इन लड़कियों को इतनी हंसी आ रही थी.. तभी उसकी नजर मदन के चेहरे पर गई और वो एकदम शर्मा गई.. वो भागकर किचन में आई और मदन को आवाज दी
मदन अंदर किचन में गया.. शीला ने उसके चेहरे पर चिपकी अपनी बिंदी निकाल दी..
"ये लड़कियां इतना हंस रही थी तो तुझे पता भी नही चला की क्यों हंस रही है? ये बिंदी देखकर हंस रही थी वो सब"
"अरे मुझे क्या पता!! मुझे थोड़े ही अपना चेहरा दिखता है जो मुझे तेरी बिंदी नजर आती?"
"अरे मेरे साहब.. बाहर आने से पहले एक बार आईने में देख तो लेते.. पता लग जाता की क्या चिपका है.. !! जा बाहर जाकर उनके साथ बैठ.. मैँ शर्बत बनाकर लाती हूँ सब के लिए"
मदन शरमाते हुए बाहर आकर बैठ गया.. जवान लड़कियों को पता चल गया था की अंकल-आंटी अभी अभी चुदाई का प्रोग्राम करके बाहर निकले थे.. पर अब कुछ नही हो सकता था.. बात को बदलना ही योग्य था
"तेरी तो बहोत सारी सहेलियाँ हो गई है, वैशाली.. मेरी बेटी है ही ऐसी.. सब के साथ सेट हो जाती है" मदन ने हँसते हुए कहा
"हाँ.. मेरे पीयूष के साथ भी जरूरत से ज्यादा सेट हो गई है आपकी बेटी" कविता के होंठों तक ये शब्द आ गए फिर खुद ही निगल गई.. और चेहरे पर झूठी मुस्कान का चोला पहन लिया
तभी शीला शर्बत के ग्लास की ट्रे ले कर आई और सब को एक एक ग्लास दिया.. बैठने की जगह थोड़ी कम थी इसलिए शीला उस सोफ़े पर दुबक कर बैठ गई जहां कविता और मौसम बैठे हुए थे.. इतनी सी जगह में बैठते हुए शीला के स्तन कविता के कंधे से दब गए.. कविता के पूरे जिस्म में झुंझुनाहट होने लगी.. पुरानी यादें ताज़ा हो गई.. पर अभी सब के सामने ऐसे किसी भी तरह के जज़्बात को व्यक्त करना मुमकिन नही था..
कविता: "शीला भाभी, आज सुबह मेरे पापा का फोन आया था.. मौसम को लड़के वाले देखने आ रहे है.. इसलिए मौसम को तुरंत घर वापिस जाना होगा.. आज शाम मौसम और फाल्गुनी को घर छोड़ने जाएगा पीयूष.. और कल लौटेगा.. इसलिए सोचा की दोनों को अंकल से आज ही मिलवा दूँ.. "
मदन: "अरे मौसम बेटा.. मैं आज आया और तुम जा रही हो.. ऐसा कैसे चलेगा?" मदन ने प्यार से कहा
मौसम ने मुस्कुराकर कहा "मैं भी यहाँ रुकना चाहती हूँ अंकल.. पर क्या करू.. मम्मी को मुझे घर से भगाने की बड़ी जल्दी है.. आए दिन लड़के वालों को देखने के लिए बुला लेती है.. मुझे तो अभी ओर पढ़ाई करनी है.. पर मम्मी पापा मुझे शादी के लिए फोर्स कर रहे है.. क्या करू??"
मदन: "अरे बेटा.. हर माँ बाप को अपनी बेटी की शादी की चिंता रात दिन रहती है.. इसमे गलत क्या है!! और अभी के अभी तेरी शादी थोड़े ही कर देंगे!! अभी तो लड़का देखने का सिलसिला शुरू हुआ है.. पसंद है या नही है.. वो ज्यादा जरूरी है"
वैशाली: "लड़का पसंद करने में जरा भी जल्दबाजी मत करना मौसम.. वरना बहोत पछताएगी बाद में.. सिर्फ दिखावे पर कभी मत जाना.. कितना कमाता है.. पढ़ा लिखा है भी या नही.. उसके दोस्त कैसे है.. इन सब की जानकारी लिए बगैर कुछ भी तय मत करना वरना लेने के देने पड़ जाएंगे.. आज कल तो ऐसे लड़कों की भरमार लगी हुई है जो बाप के पैसों पर उछलते रहते है और खुद तो एक ढेला भी नही कमाते.. " वैशाली नॉन-स्टॉप बोले जा रही थी.. वैशाली को ऐसा बोलते हुए मदन देखता ही रह गया
मौसम और फाल्गुनी को वैशाली की बातों में कुछ खास दिलचस्पी नही थी पर कविता, मदन और शीला को वैशाली की बातों में छुपा अर्थ और दर्द महसूस हो रहा था
कविता: "वैशाली, इससे अच्छा तो ये होगा की तुम ही मौसम के साथ चली जाओ.. इंसान को परखने का अनुभव तो तुझे है ही.. वैसे भी मौसम की तेरे साथ अच्छी पटती है.. फाल्गुनी के साथ तू भी उसकी फ्रेंड की तरह मीटिंग में साथ रहना"
"हाँ वैशाली.. दीदी की बात बिल्कुल सही है.. तुम भी मेरे साथ घर चलो.. हम दोनों ने तुम्हारे घर और तुम्हारे साथ कितने मजे कीये है!!! अब हमें भी आपकी खातिरदारी करने का मौका दो.. " मौसम तुरंत बोल पड़ी
"मौसम के बात बिलकूल सही है" फाल्गुनी ने भी मौसम का साथ दिया
वैशाली उलझन में पड़ गई.. क्या किया जाए?
अपनी बेटी के चेहरे को साफ पढ़ते हुए मदन ने हल निकाला "मुझे लगता है की तुम्हें मौसम के साथ जाना चाहिए, वैशाली। लड़की की पूरी ज़िंदगी का सवाल है.. सिर्फ सलाह देने से काम नही होता.. तुम्हें साथ रहकर प्रेकटिकली मदद करनी चाहिए उसकी.. "
शीला: "कई बार लड़कियां शरमाकर काफी सवाल पूछने की हिम्मत ही नही करती.. घरवाले भी ज्यादा पूछ नही सकते.. ऐसे में सहेलियाँ ही काम आती है.. जो उनको सटीक सवाल पूछकर सारी जानकारी हासिल कर सके.. !! तू जरूर जा मौसम के साथ"
वैशाली: "ठीक है मम्मी.. आप सब कह रहे है तो मैं तैयार हूँ जाने के लिए.. पर मेरी एक शर्त है"
मदन: "कौन सी शर्त, बेटा?"
वैशाली: "यही की आप और मम्मी मुझे वापिस लेने आएंगे.. वादा करो तो ही मैं जाऊँगी मौसम के साथ"
मदन: "अरे पगली.. तू क्या अब छोटी बच्ची है जो हम तुझे लेने आए!! तू कलकत्ता से अकेली यहाँ आती है.. और हम तुझे दो घंटों के बस के सफर के लिए लेने आए.. कैसी बचकानी बातें कर रही है तू वैशाली.. !!"
वैशाली: "पापा, आप और मम्मी कार लेकर मुझे लेने आओ तो मुझे बस के धक्के खाने न पड़े.. "
शीला: "दो घंटों में तुझे कौन से धक्के लग जाने वाले है?"
वैशाली: "वो सब मैं कुछ नही जानती.. आप दोनों मुझे लेने आओ तो ही मैं जाऊँगी वरना सॉरी मौसम.. !!"
मौसम: "अंकल.. आंटी.. प्लीज मान जाइए ना.. !!"
कविता: "अरे वो कहाँ मना करने वाले है.. वैशाली मैं तुझे गारंटी के साथ कहती हूँ.. ये दोनों तुझे लेने आएंगे कार लेकर.. तू चिंता मत कर.. दो जोड़ी कपड़े भर दे बेग में.. शाम को पाँच बजे निकलना है..तैयार रहना.. मौसम.. फाल्गुनी.. चलो उठो.. हमें बाजार जाना है.. मुझे तुम दोनों को शॉपिंग करवानी है"
कविता, फाल्गुनी और मौसम तीनों निकल गए.. और वैशाली अपने कमरे में पॅकिंग करने लगी.. मदन और शीला इस सोच में थे की मौसम के घर जाएँ या न जाएँ.. तभी संजय का फोन आया.. उसे काम आ गया था इसलिए वो तीन दिन तक घर वापिस नही आएगा.. वैशाली समझ गई की उसे कौनसा काम आ गया होगा
कविता ने वैशाली को फोन किया और कहा की अगर वो भी शॉपिंग में उन तीनों के साथ आना चाहती हो तो तैयार होकर आ जाए.. वैशाली फटाफट तैयार होकर निकल गई.. शॉपिंग के लिए कभी कोई लड़की मना करती है क्या.. !!
वाह.. अद्भुत.. अप्रतिम.. अद्वितीय..आत्मग्लानी से भरी हुई शीला यूं करने लगी विचार
काम वासना में डूब के वो कैसे भूल गई सब संस्कार
काम ज्वाला ने दो जांघोंके बीच में ऐसी आग लगाई
दो साल में कितनी गैर मर्दो वो करवा बैठी चुदावाई
घर की चारदवारी में ही जब तन का सुख मिल जाए
कोई औरत गैरमर्द के आगे फ़िर क्यो तां तांगे फेलाए
ड्राइवर गवाला पडोसी जमाई सब से चुद गई शीला
सबने चोद चोद के उसका हर एकछेद कर दिया ढीला
ढीली हो गयी चूत में रतन को खाक मजा अब आएगा
दोनों हाथों को वो डाल चूत में ताली हर रात बजाएगा
Excellent update. Maja aa gaya padne me
सलाहियत की कील से तराशें लब्जों का तराना, 𝄞⨾𓍢ִ໋♬⋆.˚𝄢ᡣ𐭩वैशाली के जाते शीला और मदन को जैसा ही मिलाएकांत
दो महीने से भूखे और प्यासे बदन फिर कब तक रहते शांत
पलू सरक गया शीला का और भारीभारी चूचे दिये दिखायी
जिनके बीच में रख लौड़ा मदन ना जाने कितनी करीठुकाई
शीला ने भी हाथ बढ़ा कर रतन का थाम लिया लम्बालौड़ा
नीचे झुक कर अपने प्यासे होठों को रतन के होठों से जोड़ा
रतन ने शीला का भोसड़ा चाटमे की जाहिर की अब चाहत 69 में चाट एकदूजे के अंग अब प्यास को मिलि कुछराहत
चाट चाट शीला की चुत मदन तो चुत का रस पी गया सारा
चोद चोद शीला का गोरा मुँह लंड का छोड़ दिया फव्वारा
वैशाली के जाते शीला और मदन को जैसा ही मिलाएकांत
दो महीने से भूखे और प्यासे बदन फिर कब तक रहते शांत
पलू सरक गया शीला का और भारीभारी चूचे दिये दिखायी
जिनके बीच में रख लौड़ा मदन ना जाने कितनी करीठुकाई
शीला ने भी हाथ बढ़ा कर रतन का थाम लिया लम्बालौड़ा
नीचे झुक कर अपने प्यासे होठों को रतन के होठों से जोड़ा
रतन ने शीला का भोसड़ा चाटमे की जाहिर की अब चाहत 69 में चाट एकदूजे के अंग अब प्यास को मिलि कुछराहत
चाट चाट शीला की चुत मदन तो चुत का रस पी गया सारा
चोद चोद शीला का गोरा मुँह लंड का छोड़ दिया फव्वारा
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Thanks a lot Napster bhaiबहुत ही सुंदर लाजवाब और मदमस्त अपडेट है भाई मजा आ गया
Thanks a lot bhaiबहुत ही गरमागरम कामुक और जबरदस्त अपडेट हैं भाई मजा आ गया