सम्पूर्ण एकांत.. वो भी दो सालों की जुदाई के बाद.. दो साल नही.. चौबीस महीने.. चौबीस महीने नही सातसौ तीस दिन.. !!! जुदाई के अनगिनत घंटों के बाद जाकर एकांत मिला था शीला और मदन को.. ऐसा नही है की जुदाई में इंसान सिर्फ सेक्स को ही मिस करता है.. उसके अलावा भी काफी बातें होती है.. सेक्स तो केवल दो इंसानों के मिलन से जुड़ी भावनाओ की आग का नाम है.. मदन शीला की गोद में सर रखकर सो गया.. शीला मदन के सर और क्लीन शेव चेहरे पर हाथ सहलाने लगी.. मदन की आँख में आँसू आ गए.. शीला की आँखें भी नम थी.. दोनों बिना कुछ कहें बस एक दूसरे के स्पर्श को महसूस कर रहे थे.. जैसे जनम जनम के बाद मिल रहे हो.. !!
"||ये सब से अद्भुत अवस्था होती है मिलन की.. कहना तो बहुत कुछ है.. पर याद कुछ भी नही||"
शीला और मदन दोनों की स्थिति एक जैसी ही थी.. शीला का पल्लू सरककर मदन के चेहरे पर आ गिरा.. पल्लू ने आँसू तो सोख लिए पर पूर्णिमा के चंद्र जैसे शीला के स्तनों के उभारों को उजागर कर दिया.. और साथ ही साथ मदन के चेहरे को भी ढँक दिया
अजब लीला है कुदरत की.. जब मीठा खाने की उम्र और इच्छा दोनों हो तब जेब में पैसे नही होते.. जब इच्छा और पैसे दोनों होते है तब तक तो डॉक्टर ने मीठा खाने के लिए मना कर दिया होता है.. जीवन का दूसरा नाम ही है अभाव.. हर किसी को जीवन में कोई न कोई अभाव जरूर होता है
"जो चीज देखने के लिए मैं अमेरिका से यहाँ तक आया..वो देखने नही दोगी क्या!! दिखाने के लिए पल्लू हटाती हो.. और दूसरी तरफ मेरा चेहरा ढँक देती हो.. !!" बिना पल्लू हटाए मदन ने कहा
शीला की विशाल छातियाँ.. भारी साँसों के कारण ऊपर नीचे हो रही थी.. वासना के साथ साथ शर्म और हया भी पूरे शरीर में फैल चुकी थी..
आखिर मदन ने खुद ही अपने चेहरे से शीला का पल्लू हटा लिया.. अपनी पत्नी शीला के स्तन उसने सेंकड़ों बार चूसे, दबाए और मसले थे.. और अनगिनत बार उसके दो बबलों के बीच लंड घुसेड़कर स्तन-चुदाई भी की थी.. फिर भी.. उन स्तनों की साइज़ और परिधि को देखकर वो निःशब्द हो गया.. शीला के महंदी लगे सुंदर बाल.. गोरा चेहरा.. चमकती त्वचा.. गालों की लाली.. और ऊपर पहनी लाल रंग की सुंदर साड़ी.. अगर वैशाली यहाँ नही होती तो बड़े इत्मीनान से मदन शीला को चोदता..
अचानक शीला को याद आया की दरवाजा तो खुला था..
"मदन, मैं दरवाजा बंद कर दूँ? वैशाली एकदम से आ जाएगी तो अच्छा नही लगेगा"
"कोई नही आएगा शीला.. अब तुम मुझे छोड़कर कहीं मत जा.. प्लीज.. वैशाली सयानी और समझदार है.. हमें अकेला छोड़ने के लिए ही वो जान बूझकर बाहर गई है इसलिए वो तो अब नही आएगी.. बस मुझे प्यार कर और प्यार करने दे शीला" कहते हुए मदन ने शीला का मुख अपनी ओर खींचा और एक शानदार चुंबन के साथ उनके नए हनीमून की शुरुआत हुई..
"ओह शीला मेरी जान.. पूरी दुनिया घूम ली मैंने.. पर तेरे इन दमदार चूचियों जैसा रूप कहीं नही देखा.." शीला के ब्लाउस की एक कटोरी को दबाते हुए मदन ने कहा.. हर स्त्री को अपने पति की प्रशंसा अतिप्रिय होती है.. शीला की परिपक्व जवानी मदन के स्पर्श से खिल उठी.. उसकी आँखें अपने आप ही बंद हो गई.. उसने नीचे झुककर मदन के होंठों पर अपने होंठ रखकर उसकी बोलती बंद कर दी.. मदन शीला के विशाल स्तनों के भार तले दब गया.. और उसका लंड तनकर खड़ा हो गया.. मदन के लोडे का उभार देखकर शीला मुस्कुराई और बोली "बहोत जल्दी तैयार हो गया तेरा.. मेरे शरीर के प्रति तेरा आकर्षण अभी भी पहले जितना ही है.. मैं तो सोच रही थी की इतना समय विदेश रहने के बाद तुझे अब सिर्फ गोरी चमड़ी वाली मेमसाब ही पसंद आती होगी.. "
शीला के ब्लाउस के टाइट हुक.. एक के बाद एक खोलने लगा मदन..
मदन: "हाँ.. वहाँ की गोरी लड़कियां और औरतें बेहद सुंदर, सेक्सी और आकर्षक होती है.. अंग प्रदर्शन भी इतना करती है.. ऐसा नही था की मैं उनसे आकर्षित नही हुआ था.. पर मेरे दिल की रानी तो हमेशा तू ही रहेगी शीला.. !! तेरा स्थान और कोई ले नही सकता.. देख देख.. मेरा लंड भी इस बात की गँवाही दे रहा है.. !!"
शीला ने अपना हाथ लंबा कर मदन के पेंट के ऊपर से ही उसके लंड को सहलाया.. और उसकी सख्ती भी जांच ली.. लंड के ऊपर अन्डरवेर और पेंट का आवरण होने के बावजूद शीला को उसकी गर्मी का एहसास अपनी हथेली पर हो रहा था.. उसके जिस्म में वासना की भूख ऐसी जागी की वो बस इतना ही बोल पाई "मदन, तेरे जाने के बाद.. इसके बिना.. मत इतना तड़पी हूँ.. इतना तड़पी हूँ की बता नही सकती.. आज तो मुझे पूरा रगड़ दे.. ऐसा चोद.. ऐसा चोद मुझे की मेरी चीखें निकल जाएँ.. आह्ह" शीला के ब्लाउस के तमाम हुक खुलते ही उसके दोनों भारी भरकम खरबूजे मदन के मुख पर जा टकराए.. उस नरम मांसल स्पर्श ने मदन को बेहद उत्तेजित कर दिया.. शीला का जो हाथ मदन के लंड पर था उसने भी लोड़े की इस उत्तेजना को महसूस किया
शीला ने पेंट की चैन को नीचे सरकाते हुए कहा "मदन, अगर बीच कार्यक्रम में वैशाली आ गई तो मेरी सारी इच्छाएं दबी की दबी रह जाएगी.. इसलिए अभी फिलहाल तो तू मुझे जल्दी जल्दी ठंडी कर दे.. फिर रात को हम दोनों तसल्ली से चुदाई करेंगे.. मुझे तेरे साथ बड़े ही इत्मीनान से चुदवाना है आज.. !!"
पेंट की चैन सरकाकर.. शीला ने मदन का लंड बाहर निकाल दिया.. दिन के उजाले में इस सख्त खिले हुए लंड को देखकर शीला को सेंकड़ों विचार एक साथ आ गए.. रसिक का.. जीवा का.. रघु का.. पीयूष का.. संजय का.. सब के लंड उसकी नज़रों के सामने एक साथ नाचने लगे.. उस अंग्रेज जॉन के लंड की भी याद आ गई जो उसने गोवा में देखा था.. और हाफ़िज़ का भी
अपनी गोद से मदन का सर हटाकर तकिये पर रखकर शीला ने खड़ी होकर अपना घाघरा उठाया.. चुत के दोनों वर्टिकल होंठों को उंगलियों से चौड़ा कर अंदर का लाल गुलाबी हिस्सा मदन को दिखाने लगी..
"ओह्ह शीला.. करीब आ.. थोड़ी देर चाटने दे मुझे" मदन ने अपना सर उठाते हुए कहा
"नही मदन.. पहले मुझे ईसे चूसने दे.. फिर तू चाट लेना.. " कहते हुए शीला ने लंड को अपनी मुठ्ठी में पकड़कर आगे पीछे किया.. शीला की कोमल हथेली का अनुभवी स्पर्श मिलते ही मदन का लोडा ठुमकने लगा.. मोर की तरह नाचने लगा.. छत की तरफ तांकते हुए लहराने लगा..
"एक काम कर.. तू नीचे सोजा और मैं उल्टा होकर तेरे ऊपर लेट जाता हूँ.. मैं तेरी चाट लूँगा तू मेरा चूस लेना.. दोनों का काम एक साथ हो जाएगा " मदन ने उत्तम सुझाव दिया
शीला तुरंत बेड पर तकिये पर सर रखकर लेट गई.. और मदन उसके ऊपर उल्टा लेट गया.. दोनों 69 की पोजीशन में सेट हो गए.. अब संवाद के लिए कोई स्थान न था क्योंकि शीला के मुख के सामने मदन का आठ इंच का लंड था और मदन के मुंह के सामने शीला का रसीला रस टपकाता भोसड़ा.. जो मदन को चाटने के लिए ललचा रहा था.. मदन अपनी पत्नी की चूत पर ऐसे टूट पड़ा जैसे जनम जनम का भूखा हो.. तर्जनी जैसी शीला की फुली हुई क्लिटोरिस दोनों होंठों के बीच रखकर चॉकलेट की तरह चूसने लगा.. मदन की गरम जीभ का स्पर्श होते ही शीला एक पल के लीये उछल पड़ी.. और मदन के पूरे लंड को एक ही बार में.. मुंह के अंदर ले लिया.. और ऐसे चूसने लगी की मदन सारी गोरी राँडों को एक सेकंड में भूल गया..

शीला की लंड चुसाई से मदन ओर उत्तेजित होकर शीला के भोसड़े की गहराई में खो गया और अंदर के लाल हिस्से को अपनी जीभ से कुरेद कुरेदकर चाटने लगा.. शीला आज चौबीस महीनों के बाद.. बिना किसी डर या अपराधभाव के चुदाई का आनंद ले रही थी.. पिछले दो महीनों में उसे केवल गैर-कानूनी या यूं कहिए.. सामाजिक तौर पर अस्वीकृत सेक्स ही मिला था.. मदन के लंड को शीला जब चूसती थी तब कभी पूरे लंड को एक ही बार में अंदर डाल देती.. तो कभी लंड को चारों तरफ से चाटती.. मदन शीला की चूत को चाटते हुए.. बुर से रिस रहे शहद को भी चटकारे लेकर चूस रहा था..
मदन ने अब अपनी कमर हिलाते हुए शीला के मुंह को चोदना शुरू कर दिया.. उसकी चोदने की गति बढ़ने लगी.. शीला समझ गई की उसके वीर्य का फव्वारा बस छूटने को था.. वो भी ऑर्गैज़म की प्रतियोगित में पीछे रहना नही चाहती थी.. उसने भी मदन के चेहरे को अपनी गोरी मांसल गदराई जांघों के बीच ऐसे दबा दिया.. की मदन की सांस रुक गई.. थोड़ी ही देर में शीला का मुंह.. चिपचिपे गाढ़े सफेद वीर्य से भर गया.. तो बदले में उसने भी मदन का मुंह अपनी चुत के रसगुल्ले की चासनी जैसे शहद से भर दिया..

मदन हांफते हुए शीला पर धराशायी हो गया और उसका लंड शीला के मुख के अंदर नरम होकर दफन हो गया.. मदन के अंडकोश शीला की ठुड्डी पर दब रहे थे.. वीर्य खाली होते ही उसके आँड भी नरम होकर निर्जीव हो गए.. दोनों संतुष्ट हुए थी की किसी के आने की भनक लगी..
"लगता है वैशाली आ गई.. जल्दी जल्दी कपड़े पहन कर बाहर जा.. मुझे साड़ी और ब्लाउस पहनने में थोड़ी देर लगेगी.. और मुझे बाथरूम में जाकर मुंह भी साफ करना है.. " कहते ही शीला अपने कपड़े लेकर बाथरूम की तरफ भागी.. मदन ने फटाफट कपड़े पहन लिए और बाहर के कमरे में आ गया.. वैशाली, मौसम, फाल्गुनी और कविता.. चारों ड्रॉइंग रूम में बैठे थे..
"आप आ गए अंकल? कैसी है तबीयत आपकी? हमारे लिए क्या लाए?" कहते हुए कविता ने मदन के साथ बातें शुरू कर दी.. मौसम, फाल्गुनी और वैशाली मदन के चेहरे की ओर देखकर बार बार हंस रहे थे.. कविता भी बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी रोक रही थी..
तभी शीला बाथरूम से बाहर आई.. चारों लड़कियों को साथ देखकर वो खुश हो गई
"अरे तुम सब एक साथ!! चलो अच्छा हुआ.. अंकल से मिलने आ गई.. " शीला ने कहा.. पर मौसम, फाल्गुनी और कविता की हंसी देखकर उसे लगा की कहीं तो कुछ था जिसे देखकर इन लड़कियों को इतनी हंसी आ रही थी.. तभी उसकी नजर मदन के चेहरे पर गई और वो एकदम शर्मा गई.. वो भागकर किचन में आई और मदन को आवाज दी
मदन अंदर किचन में गया.. शीला ने उसके चेहरे पर चिपकी अपनी बिंदी निकाल दी..
"ये लड़कियां इतना हंस रही थी तो तुझे पता भी नही चला की क्यों हंस रही है? ये बिंदी देखकर हंस रही थी वो सब"
"अरे मुझे क्या पता!! मुझे थोड़े ही अपना चेहरा दिखता है जो मुझे तेरी बिंदी नजर आती?"
"अरे मेरे साहब.. बाहर आने से पहले एक बार आईने में देख तो लेते.. पता लग जाता की क्या चिपका है.. !! जा बाहर जाकर उनके साथ बैठ.. मैँ शर्बत बनाकर लाती हूँ सब के लिए"
मदन शरमाते हुए बाहर आकर बैठ गया.. जवान लड़कियों को पता चल गया था की अंकल-आंटी अभी अभी चुदाई का प्रोग्राम करके बाहर निकले थे.. पर अब कुछ नही हो सकता था.. बात को बदलना ही योग्य था
"तेरी तो बहोत सारी सहेलियाँ हो गई है, वैशाली.. मेरी बेटी है ही ऐसी.. सब के साथ सेट हो जाती है" मदन ने हँसते हुए कहा
"हाँ.. मेरे पीयूष के साथ भी जरूरत से ज्यादा सेट हो गई है आपकी बेटी" कविता के होंठों तक ये शब्द आ गए फिर खुद ही निगल गई.. और चेहरे पर झूठी मुस्कान का चोला पहन लिया
तभी शीला शर्बत के ग्लास की ट्रे ले कर आई और सब को एक एक ग्लास दिया.. बैठने की जगह थोड़ी कम थी इसलिए शीला उस सोफ़े पर दुबक कर बैठ गई जहां कविता और मौसम बैठे हुए थे.. इतनी सी जगह में बैठते हुए शीला के स्तन कविता के कंधे से दब गए.. कविता के पूरे जिस्म में झुंझुनाहट होने लगी.. पुरानी यादें ताज़ा हो गई.. पर अभी सब के सामने ऐसे किसी भी तरह के जज़्बात को व्यक्त करना मुमकिन नही था..
कविता: "शीला भाभी, आज सुबह मेरे पापा का फोन आया था.. मौसम को लड़के वाले देखने आ रहे है.. इसलिए मौसम को तुरंत घर वापिस जाना होगा.. आज शाम मौसम और फाल्गुनी को घर छोड़ने जाएगा पीयूष.. और कल लौटेगा.. इसलिए सोचा की दोनों को अंकल से आज ही मिलवा दूँ.. "
मदन: "अरे मौसम बेटा.. मैं आज आया और तुम जा रही हो.. ऐसा कैसे चलेगा?" मदन ने प्यार से कहा
मौसम ने मुस्कुराकर कहा "मैं भी यहाँ रुकना चाहती हूँ अंकल.. पर क्या करू.. मम्मी को मुझे घर से भगाने की बड़ी जल्दी है.. आए दिन लड़के वालों को देखने के लिए बुला लेती है.. मुझे तो अभी ओर पढ़ाई करनी है.. पर मम्मी पापा मुझे शादी के लिए फोर्स कर रहे है.. क्या करू??"
मदन: "अरे बेटा.. हर माँ बाप को अपनी बेटी की शादी की चिंता रात दिन रहती है.. इसमे गलत क्या है!! और अभी के अभी तेरी शादी थोड़े ही कर देंगे!! अभी तो लड़का देखने का सिलसिला शुरू हुआ है.. पसंद है या नही है.. वो ज्यादा जरूरी है"
वैशाली: "लड़का पसंद करने में जरा भी जल्दबाजी मत करना मौसम.. वरना बहोत पछताएगी बाद में.. सिर्फ दिखावे पर कभी मत जाना.. कितना कमाता है.. पढ़ा लिखा है भी या नही.. उसके दोस्त कैसे है.. इन सब की जानकारी लिए बगैर कुछ भी तय मत करना वरना लेने के देने पड़ जाएंगे.. आज कल तो ऐसे लड़कों की भरमार लगी हुई है जो बाप के पैसों पर उछलते रहते है और खुद तो एक ढेला भी नही कमाते.. " वैशाली नॉन-स्टॉप बोले जा रही थी.. वैशाली को ऐसा बोलते हुए मदन देखता ही रह गया
मौसम और फाल्गुनी को वैशाली की बातों में कुछ खास दिलचस्पी नही थी पर कविता, मदन और शीला को वैशाली की बातों में छुपा अर्थ और दर्द महसूस हो रहा था
कविता: "वैशाली, इससे अच्छा तो ये होगा की तुम ही मौसम के साथ चली जाओ.. इंसान को परखने का अनुभव तो तुझे है ही.. वैसे भी मौसम की तेरे साथ अच्छी पटती है.. फाल्गुनी के साथ तू भी उसकी फ्रेंड की तरह मीटिंग में साथ रहना"
"हाँ वैशाली.. दीदी की बात बिल्कुल सही है.. तुम भी मेरे साथ घर चलो.. हम दोनों ने तुम्हारे घर और तुम्हारे साथ कितने मजे कीये है!!! अब हमें भी आपकी खातिरदारी करने का मौका दो.. " मौसम तुरंत बोल पड़ी
"मौसम के बात बिलकूल सही है" फाल्गुनी ने भी मौसम का साथ दिया
वैशाली उलझन में पड़ गई.. क्या किया जाए?
अपनी बेटी के चेहरे को साफ पढ़ते हुए मदन ने हल निकाला "मुझे लगता है की तुम्हें मौसम के साथ जाना चाहिए, वैशाली। लड़की की पूरी ज़िंदगी का सवाल है.. सिर्फ सलाह देने से काम नही होता.. तुम्हें साथ रहकर प्रेकटिकली मदद करनी चाहिए उसकी.. "
शीला: "कई बार लड़कियां शरमाकर काफी सवाल पूछने की हिम्मत ही नही करती.. घरवाले भी ज्यादा पूछ नही सकते.. ऐसे में सहेलियाँ ही काम आती है.. जो उनको सटीक सवाल पूछकर सारी जानकारी हासिल कर सके.. !! तू जरूर जा मौसम के साथ"
वैशाली: "ठीक है मम्मी.. आप सब कह रहे है तो मैं तैयार हूँ जाने के लिए.. पर मेरी एक शर्त है"
मदन: "कौन सी शर्त, बेटा?"
वैशाली: "यही की आप और मम्मी मुझे वापिस लेने आएंगे.. वादा करो तो ही मैं जाऊँगी मौसम के साथ"
मदन: "अरे पगली.. तू क्या अब छोटी बच्ची है जो हम तुझे लेने आए!! तू कलकत्ता से अकेली यहाँ आती है.. और हम तुझे दो घंटों के बस के सफर के लिए लेने आए.. कैसी बचकानी बातें कर रही है तू वैशाली.. !!"
वैशाली: "पापा, आप और मम्मी कार लेकर मुझे लेने आओ तो मुझे बस के धक्के खाने न पड़े.. "
शीला: "दो घंटों में तुझे कौन से धक्के लग जाने वाले है?"
वैशाली: "वो सब मैं कुछ नही जानती.. आप दोनों मुझे लेने आओ तो ही मैं जाऊँगी वरना सॉरी मौसम.. !!"
मौसम: "अंकल.. आंटी.. प्लीज मान जाइए ना.. !!"
कविता: "अरे वो कहाँ मना करने वाले है.. वैशाली मैं तुझे गारंटी के साथ कहती हूँ.. ये दोनों तुझे लेने आएंगे कार लेकर.. तू चिंता मत कर.. दो जोड़ी कपड़े भर दे बेग में.. शाम को पाँच बजे निकलना है..तैयार रहना.. मौसम.. फाल्गुनी.. चलो उठो.. हमें बाजार जाना है.. मुझे तुम दोनों को शॉपिंग करवानी है"
कविता, फाल्गुनी और मौसम तीनों निकल गए.. और वैशाली अपने कमरे में पॅकिंग करने लगी.. मदन और शीला इस सोच में थे की मौसम के घर जाएँ या न जाएँ.. तभी संजय का फोन आया.. उसे काम आ गया था इसलिए वो तीन दिन तक घर वापिस नही आएगा.. वैशाली समझ गई की उसे कौनसा काम आ गया होगा
कविता ने वैशाली को फोन किया और कहा की अगर वो भी शॉपिंग में उन तीनों के साथ आना चाहती हो तो तैयार होकर आ जाए.. वैशाली फटाफट तैयार होकर निकल गई.. शॉपिंग के लिए कभी कोई लड़की मना करती है क्या.. !!