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Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

vakharia

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Ajju Landwalia

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हवालदार ड्राइवर और गाड़ी लेकर शीला तथा मदन को उनके घर छोड़ आया.. इस बार हवालदार ने शीला के पैरों को छूने की हिम्मत नही की.. बड़ी ही शालीनता से बर्ताव करने लगा..

घर के अंदर पहुंचकर.. दरवाजा बंद कर.. शीला मदन के गले लगकर रोने लगी.. इतना रोई.. इतना रोई की मदन को भी ताज्जुब हो रहा था

रात के तीन बज रहे थे.. चुदाई के कार्यक्रम का सत्यानाश हो चुका था.. दोनों का मूड ऑफ हो गया था.. मदन शीला को सांत्वना देते देते थक गया पर शीला का रोना अब भी बंद नही हुआ था..

आखिर शीला को शांत करने के लिए मदन अपनी अलमारी से इंपोर्टेड जोहनी वॉकर ब्लैक लेबल की बोतल ले आया.. दो पटियाला पेग बनाकर उसमें आइसक्यूब डालकर.. उसने शीला के सामने रख दिए.. साथ ही साथ अपनी बेग से उसने सिगार का बॉक्स भी निकाला.. ये कोई पार्टी करने का समय नही था.. पर शीला को शांत करने के लीये.. और इस गहरे सदमे से उसे बाहर निकालने के लिए जरूरी था..

मदन को सिगार जलाते देख.. शीला को जॉन और चार्ली की याद आ गई.. जलती हुई सिगार को एश-ट्रे में रखकर मदन खड़ा हो गया और अपने कपड़े उतार दिए "जो भी हुआ सब भूल जा शीला.. और अपने कपड़े उतार दे.. इस स्ट्रेस को भूलने के लिए यही सब से बेहतरीन इलाज है"

मदन के नरम लंड को देखकर.. बिना उसके साथ "चीयर्स" कीये उसने ग्लास उठाया और बड़ा घूंट गले के नीचे उतार दिया.. उसके पूरे शरीर में गर्माहट का एहसास होने लगा.. एश-ट्रे से सिगार उठाकर एक लंबा कश खींचकर वो आराम से बैठ गई.. मदन को शीला का ये स्वरूप बेहद पसंद था.. जब शीला शर्म छोड़कर बिंदास बन जाती थी.. और खुली नंगी बातें करने लगती थी तब मदन को बहोत अच्छा लगता था..

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"ये अच्छा किया तूने मदन.. इसके अलावा हमारा टेंशन दूर नही होने वाला.. लव यू डार्लिंग!!" शीला ने पास खड़े नंगे मदन का नरम लंड दारू के ग्लास में डुबोया.. और फिर ग्लास हटाकर उसके लंड पर लगी शराब को जीभ से चाट गई..

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"ओह्ह शीला.. मज़ा आ गया यार.. !!" आखिर रात के चार बजे.. मदन और शीला का हनीमून.. शराब और सिगार के साथ शुरू हो गया

शीला की जीभ छूते ही मदन का लंड सरसराने लगा.. शीला बार बार उसका लंड शराब में डुबोती थी और फिर चूसती थी.. मदन शीला के इस कामुक स्वरूप के बड़े ही अहोभाव से देखता रहा.. वो सोच रहा था की इतनी कामुक स्त्री.. दो साल तक बिना लंड के कैसे रही होगी??

शीला ने खड़े होकर अपनी साड़ी निकाल दी.. ब्लाउस और घाघरे में बड़ी ही कातिल लग रही थी.. उसने शराब की बोतल उठाई और ढक्कन खोलकर थोड़ी थोड़ी दारू स्तनों की निप्पल पर गिरा दी.. कॉटन का ब्लाउस गीला होते ही निप्पल उभरकर आरपार दिखने लगी.. बोतल वापिस टेबल पर रखकर शीला ने कहा

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"मदन.. ले मेरे बॉल चूस ले.. दूध तो नही निकलेगा पर शराब का मज़ा जरूर मिलेगा.. !!"

मदन ने शीला के दोनों स्तनों को बारी बारी ब्लाउस के उपर से चाट लिया और बोला "ये जबरदस्त है.. अगर औरतों को बच्चा बड़ा हो जाने पर स्तनों से शराब निकलती होती तो कितना मज़ा आता.. !! ओह शीला मेरी जान.. " एक स्तन को चूसते हुए वो दूसरे स्तन को दबा रहा था.. तो शीला ने भी मदन के फुले हुए लोड़े को पकड़कर उसके आँड दबा दिए.. मदन शीला के गाल पर शराब की धार करते हुए उसके गोरे गालों को चाटने लगा.. अब शीला के ब्लाउस के हुक खोलकर मदन ने उन मांस के गोलों को बाहर निकाला.. और उन्हें दोनों हाथों से मसलने लगा..

शीला: "मदन, मेरे बबलों पर शराब गिरा.. " मदन शराब गिराता रहा और चाटता रहा.. शराब की धारा नीचे उतरते हुए चूत तक पहुँच गई.. मदन की जीभ वहाँ भी पहुँच गई.. जोहनी वॉकर से भी कीमती चूत का रस और शराब चाटकर मदन मस्त हो गया.. उसकी जीभ शीला की चूत पर रगड़ रही थी.. इस हरकत का पूर्ण आनंद उठाते हुए शीला मदन के बालों में उँगलियाँ फेर रही थी.. मदन शीला के जिस्म के अलग अलग हिस्सों को चाट रहा था.. शीला की कमर की चर्बी के बीच अपना लाल सुपाड़ा रखकर वो रगड़ने लगा..

"आह्ह बहोत गरम लग रहा है, मदन!! ईसे यहाँ वहाँ रगड़ने छोड़ और अंदर डाल दे जान" अब सही अर्थ में उनका हनीमून शुरू हुआ था

मदन की गैर-मौजूदगी में यही बात शीला सब से ज्यादा मिस करती थी.. लंड दिखाकर अलग अलग हरकतें करते हुए वो जिस तरह उसे तड़पाता था वो शीला को बहोत पसंद था.. मदन के लंड को शराब में डुबोकर चूसते हुए शीला को रघु और जीव के संग की चुदाई याद आ रही थी.. उन दोनों ने भी ऐसे ही शराब के साथ उसकी चुदाई की थी.. !! बाप रे.. !! कितना मोटा था जीवा का लंड.. !! सिर्फ रूखी ही बर्दाश्त कर सकती है उसका.. !! मुझे तो उसके धक्कों से ही दर्द हो रहा था.. निर्दयी होकर चोदता था.. ऐसे धक्के लगाता था जैसे शरीर के अंगों को अलग कर देना चाहता हो..

मदन को बेड पर लैटाकर उसकी गांड के छेद को चूम लिया.. शीला को ऐसा करना पसंद था.. जरा भी घिन नही आती थी उसे.. अपने पसंदीदा मर्द के साथ.. !! मदन के लटक रहे अंडकोशों को मुंह में भरकर मस्ती से चूसने लगी.. उस पर लगी हुई शराब शीला की उत्तेजना को ओर बढ़ा रही थी.. मदन बेड पर पैर चौड़े कर लेट गया.. और शीला के इस रंभा स्वरूप को चकित होकर देखता रहा.. उसके बदन के हर मरोड़ में कामुकता छुपी हुई थी.. मदन के लंड को काफी देर तक चूसते रहने के बाद जब उसने मुंह से बाहर निकाला तब शीला के थूक से पूर्णतः गीला हो चुका था..

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बिना समय गँवाएं शीला मदन पर सवार हो गई.. और उसके लंड को अपने भोसड़े की गहराई में उतार दिया.. उत्तेजना से चिपचिपी चूत में लंड ऐसे सरक गया जैसे पानी में सांप सरक रहा हो.. मिलन के आनंद से शीला की आँखें और चूत के होंठ एक साथ बंद हो गए.. मदन के दोनों हाथ शीला के नग्न उरोजों पर पहुँच गए.. अभी भी उसकी निप्पलों पर शराब लगी हुई थी..

मदन के लंड को अपनी चूत के काफी अंदर उतारकर अंदर बाहर करते हुए शीला हल्के हल्के अपनी पतवार चला रही थी क्योंकि उसे किनारे पर पहुँचने की कोई जल्दी नही थी.. और क्यों होती?? अब तक तो उसे जल्दी इसलीये होती थी क्योंकी किसी के आने का डर रहता था.. अपने पति के साथ उसे यह दिक्कत नही थी.. इसलिए वो धीरे धीरे अपना काम कर रही थी

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शीला की निप्पल को मसलते हुए मदन बोला "आह्ह शीला.. कितनी सेक्सी है तू.. !! तुझे इतनी बार चोदने के बाद भी मेरा आवेग काम नही हुआ.. इतनी मदमस्त जवानी को भोगने का अवसर किसी किस्मत वाले को ही मिल सकता है.. तुझे पाकर मैं वाकई धन्य हो गया.. "

चूत की मांसपेशियों को और टाइट करते हुए शीला ने अपने अनोखे अंदाज में मदन की प्रशंसा का उत्तर दिया.. मदन के लंड पर दबाव बढ़ते ही उसकी "आह्ह" निकल गई..

"ऐसी भूखी कामुक जवानी को तू दो सालों के लिए छोड़कर चला गया था.. कभी ये नही सोचा की बिना लंड के मैं कैसे रह पाऊँगी?? तुझे ये अंदाजा नही है मदन.. तेरे इस लंड की याद में मैंने कैसे अपनी रातें काटी है.. !! कितना तड़पी हूँ.. सिर्फ मेरा मन जानता है.. अब तो मुझे छोड़कर कहीं नही जाएगा ना.. ??"

"शीला तुझे छोड़कर जाना मुझे भी अच्छा नही लगा था.. पर जाना मेरी मजबूरी थी.. वरना तुझे यहाँ छोड़कर जाने में.. मुझे कितना दुख हुआ था ये तू नही जानती.. कितने महीनों तक ये लंड तड़पता रहा.. फिर किस्मत से मेरी के साथ सेक्स करने का मौका मिला.. बाकी मैं उसे सामने से पटाने नही गया था" मदन ने कहा

शीला: "क्या नाम बताया तूने अपने मकान मालिक की पत्नी का??"

मदन: "मेरी था उसका नाम"

शीला: "हम्म अच्छा नाम है मेरी.. कैसी लगती थी वो? तुम दोनों की सेटिंग कैसे हुई?"

मदन: "क्या कहूँ यार..!! उसकी चार महीने की बेटी थी.. रोजी.. बड़ी ही क्यूट सी थी.. उसे देखकर ही मुझे वैशाली का बचपन याद आ जाता.. शीला.. तुझे पता है ना मेरी कमजोरी??"

मदन के लंड प आर ऊपर नीचे होते हुए शीला ने झुककर अपने स्तन प्रदेश से मदन का मुंह ढँकते हुए कहा "हाँ मदन.. जानती हूँ.. दूध भरे स्तनों को देखकर तेरा क्या हाल हो जाता है, मुझे पता है"

शीला के उन्नत पयोधरों को बारी बारी चूसते हुए मदन ने शीला की पीठ को अपने नाखूनों से कुरेद दिया.. उस वक्त शीला को महसूस हुआ की उसके भोसड़े के अंदर मदन का लंड और कठोर हो गया.. शीला समझ गई की मदन को मेरी के दूध भरे स्तनों की याद आ रही थी.. मदन पागलों की तरह शीला की निप्पलों को चूस रहा था

"मदन.. तू चाहे जितना चूस ले.. फिर भी दूध नही निकलने वाला"

"बस यही बात मुझे मेरी के पास घसीटकर ले गई.. वरना मैं तुझे कभी धोखा नही दे सकता.. " मदन ने अपना कुबुलातनामा फिर से शुरू कर दिया

"शीला, मैं तेरे इन बबलों को याद करते हुए.. दूरबीन से आती जाती विदेशी लड़कियों और औरतों को देखते हुए मूठ मार रहा था.. तभी मेरी ने मुझे देख लिया.. वो बहोत ही सुंदर और गोरी थी.. डिलीवरी के बाद उसका पूरा बदन गदराया हुआ था.. और ये बड़े बड़े स्तन.. उसके टॉप की स्तन वाली नोक हमेशा दूध से गीली रहती थी.. वो ब्रा भी नही पहनती थी"

"अच्छा.. मतलब उसके दूध भरे स्तनों को दिखाकर उसने तुझे पटा लिया.. " मदन की छाती के बाल खींचते हुए शीला ने कहा

"हाँ शीला.. एक दिन उसने मुझे कहा "मदन.. तुम्हें रोड पर जा रही लड़कियों को देखने में बहोत मज़ा आता है?" तब मैंने जवाब दिया की नही.. मैं तो केवल उन लड़कियों को देखकर.. अपनी बीवी को याद करते हुए खुद को शांत करने की बस कोशिश कर रहा हूँ.. फिर मेरी ने पूछा की क्या मुझे अपनी पत्नी की बहोत याद आ रही है? जिसके जवाब में मैंने कहा की हाँ.. बहोत याद आती है.. उसकी भी और उसके संग बिताए समय की भी"

शीला मदन के लंड पर उछलते हुए उसकी बातें बड़े चाव से सुन रही थी

मदन: "फिर मेरी ने मुझसे कहा.. 'देखो.. तुम एक अच्छे आदमी हो.. तुमने मुझे कभी गलत नजर से नही देखा.. इसलिए मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूँ पर बदले में तुम्हें भी मेरी मदद करनी होगी'.. शीला.. विश्वास करो.. मैंने तब तक मेरी को कभी गलत नज़रों से नही देखा था.. पर मेरी ने जिस तरह मुझसे बात की थी.. मेरा दिल कर रहा था की उसे एक रीक्वेस्ट करूँ.. जिससे मेरा लंड भी शांत हो जाए और तेरा विश्वासघात भी न हो.. "

शीला: "अच्छा? फिर क्या किया तूने?" शीला को बहोत मज़ा आ रहा था.. वो हौले हौले मदन के लंड पर ऊपर नीचे हो रही थी

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मदन: "मेरी ने अपनी कहानी सुनाई..

"एक लड़का था जिसका नाम था पीटर.. हम दोनों एक दूसरे को बहोत चाहते थे.. हम लोग शादी करने ही वाले थे की अचानक वो गायब हो गया.. मैंने उसे बहोत खोजा पर काफी समय तक ना वो मुझे मिला और ना ही उसका कोई फोन आया.. एक साल तक जब उसका कोई पता न चला तब मैंने अपने ऑफिस के साथी से शादी कर ली.. तुम देख ही रहे हो की वो मुझे और रोजी को कितना चाहता है.. !! पर रोजी के जनम के बाद उसके बर्ताव में काफी परिवर्तन आया है.. खैर वो बात फिर कभी.. कल मुझे पीटर मिला मार्केट में.. मैं उसे देखकर चोंक गई.. उसने मुझे अपना नंबर दिया और चला गया.. मैं बड़ी उलझन में हूँ.. कॉल करूँ या ना करूँ!! क्या तुम उसे कॉल करके सारी बात जान सकते हो?? मैं उसे बेहद प्यार करती हूँ पर अब मेरी शादी हो गई है इसलिए मेरा उससे संपर्क करना उचित नही होगा.. पर मैं सिर्फ इतना जानना चाहती हूँ की वो आखिर कहा चला गया था मुझे बिना कुछ बताएं.. जाते जाते उसने कहा था की वो मुझे मिलना चाहता है.. मैं भी उससे मिलना चाहती हूँ मगर मेरे पति के डर से ऐसा नही कर पा रही हूँ.. आपको मित्रभाव से ये बता दूँ.. रोजी के जनम के बाद उसे मेरे में कोई रुचि ही नही रही है.. मैं बहोत असन्तुष्ट हूँ.. पता नही क्यों मेरे साथ ठीक से बात भी नही करते.. ऐसे में अगर मैं पीटर से मिलने गई और कहीं पुरानी बातों की याद आ गई तो मैं अपने आप को रोक नही पाऊँगी.. मैं अपने पति से बहोत प्यार करती हूँ पर मेरे प्यार को भी ठुकरा नही सकती.. और उसे अभी तक भूल नही पाई.. जैसे आप अपनी पत्नी को नही भूल पाए बिल्कुल वैसे ही.. मेरे दिल की कशमकश को आप समझ सकेंगे.. मिस्टर मदन.. वो एक हफ्ते में चला जाने वाला है.. मेरा उससे मिलना जरूरी है.. अगर अभी नही मिली तो उसके सारे राज, राज बनकर ही रह जाएंगे.. प्लीज तुम मेरी हेल्प करो..' "

मदन की बात को शीला बड़े ध्यान से सुन रही थी.. उसे ये जानने में दिलचस्पी थी की आखिर दोनों के बीच चुदाई शुरू कैसे हुई!! अभी तो उसकी चूत में मजेदार खुजली हो रही थी और मदन का सख्त लंड अंदर बाहर करते हुए वो अपनी खुजाल मिटा रही थी.. सुकून से चुदवाने में शीला को बहोत मज़ा आ रहा था..

वैसे देखा जाएँ तो शीला और मदन के बीच आदर्श संभोग हो रहा था.. परिपक्व उम्र के संभोग और नादान उम्र के संभोग में यही फरक होता है.. अनुभवी संभोग में दोनों पात्र इतने मेच्योर होते है.. की किसी पराए पात्र संग हुए संभोग को भी बड़ी निखालसता से याद कर सकते है.. और विकृतियों का भी आनंद ले सकते है.. जब की नादान उम्र का संभोग.. रस्सी पर बिना सहारे चलने जितना कठिन काम होता है.. नादान पात्रों को संभोग के दौरान कब किस बात का बुरा लग जाएँ.. पता ही नही चलता.. एक छोटी से गलतफहमी ही काफी होती है पूरे संभोग की माँ चोद देने के लिए.. दोनों पात्र करवट बदलकर सो जाते है और एक रात कम हो जाती है

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शीला के भव्य कूल्हों को हाथों से दबाते हुए मदन ने बात आगे बढ़ाई

"शीला, उस दिन वो पहली बार मेरी नजदीक आकर खड़ी हुई.. उसके दूध से भरे हुए सुंदर रसीले बबलों को इतने करीब से मैंने पहली बार देखा था.. और तुझे पता है.. ये एक ऐसा आकर्षण है जिसके लिए मैं कुछ भी कर सकता हूँ.. मैंने हिम्मत की और मेरी से कहा 'मैं आपकी हेल्प कर सकता हूँ पर बदले में आपको मेरी एक हेल्प करनी होगी.. मैं अपनी बीवी को याद करते हुए मास्टरबेट कर रहा था कल.. तब तुमने देख लिया था.. मुझे दूरबीन से देखते हुए ये सब क्यों करना पड़ता है ये जानती हो तुम? वैसे चाहता तो ब्लू फिल्म भी देख सकता हूँ' तब मेरी ने मुझे जवाब दिया की 'हाँ.. मुझे पता है.. तुम्हें असली चीज देखकर ही मज़ा आता है.. ' मेरी बात को अच्छे से समझती थी.. मैंने कहा 'बिल्कुल सही कहा मेरी.. आप अपनी बेटी रोजी को फीडिंग कराने के लिए किचन में बैठती हो.. और मैं यहाँ बालकनी में काम करता हूँ.. तो क्यों न ऐसा किया जाए की तुम ड्रॉइंग रूम में बैठकर ही बच्ची को दूध पिलाओ और तुम्हारी बॉडी को देखकर मैं अपना काम निपटा लूँ?? मैं प्रोमिस करता हूँ.. तुम्हें टच नही करूंगा' "

शीला: "अरे वाह मदन.. जबरदस्त दांव खेला तूने.. तुझे पता था की तेरे इस खूँटे जैसे लंड को एक बार देख लेने के बाद मेरी तो क्या.. उसकी माँ भी तुझसे चुदवाने में मना नही करती.. खिलाड़ी है तू तो.. " शीला धीरे धीरे लय में आकर अपनी गांड को मदन के लंड पर गोल गोल घुमा रही थी और अपनी चूत का मक्खन गिरा रही थी

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मदन: "अरे यार.. तीन महीनों से मैं उसे दूध पिलाते देखने के लिए छुप छुपकर कोशिश करता था.. अब ऐसा मौका मिल गया तो मैंने पूछ लिया.. इसमें गलत क्या है.. !!"

शीला: "हाँ हाँ साले कमीने.. मेरी की चूत में लंड डाल आया और कहता है की गलत क्या है.. !! मैं भी तेरी तरह ऐसा कुछ करूँ और कहूँ की इसमे गलत क्या है, तो चलेगा?"

मदन: "हाँ उसमें भी कुछ गलत नही होगा.. बस किसी के साथ जबरदस्ती करना गलत है.. बाकी सब चलता है.. जब मियां बीवी राजी तो क्या करेगा काजी.. !!"

शीला ने मदन के होंठों पर एक कातिल किस की और जबरदस्त दस-पंद्रह धक्के लगाए.. मदन की बातें सुनकर उसकी चूत में जो भूकंप आया था वो थोड़ा सा शांत हुआ.. और वो फिर से अपनी रिधम में आ गई.. शीला चाहती थी की उसका ऑर्गैज़म तभी हो जब मदन अपनी बात खतम करे.. नही तो चुदाई के अंतिम क्षणों में इतनी रसीली कथा अधूरी रह जाएगी.. साथ ही साथ वह ये सावधानी भी रख रही थी की कहीं मदन उत्तेजित होकर बीच में ही झड़ न जाएँ

शीला: "फिर क्या जवाब दिया मेरी ने?"

मदन: "अपने पुराने प्रेमी पीटर से मिलने के लिए वह इतनी बेचैन थी की अगर मैंने उसे चोदने के लिए कहा होता तो वो भी मान जाती.. पर मैं तुझसे धोखा करना नही चाहता था शीला.. इसीलिए मैंने मेरी को दूध पिलाते देखकर मूठ मारने की पेशकश की.. अगर चाहता तो उसके बॉल दबाने की डिमांड भी कर सकता था और वो मान भी जाती.. "

शीला: "तो रखनी थी ना डिमांड? क्यों नही रखी?" शीला भी मदन के सुर में साथ दे रही थी "मदन, सच सच बताना.. वैशाली के जनम के बाद जैसे तू बार बार मेरी छातियाँ चूसने की जिद करता था वैसे ही मेरी के पीछे पड़ गया था क्या?? आखिर थककर उसने तुझसे चुदवा लिया होगा"

मदन: "अरे मेरी रानी.. ऐसा कुछ नही हुआ था.. " शराब के ग्लास का आखिरी घूंट हलक के नीचे उतारते हुए मदन ने कहा

शीला और मदन एक ही ग्लास में से पी रहे थे.. और दूसरा ग्लास भरा हुआ पड़ा था.. खाली ग्लास को दूर धकेलकर शीला ने मदन के नग्न शरीर पर सवारी करते हुए भरा हुआ ग्लास उठाया.. एक घूंट भरा और सिगार का एक कश लिया.. एक के बाद एक.. दोनों ने तीन सिगार खतम कर दी थी अब तक.. सिगार खतम हो जाती थी पर पति पत्नी के बीच का रोमांस अभी भी प्रज्वलित था.. मदन के लंड को अपने तरीके से आराम पूर्वक भोग रही थी शीला.. पिछले पौने घंटे से उसकी लंड सवारी चल रही थी.. जाहीर था की मदन को उसके शरीर का वज़न महसूस हो रहा था.. भारी भरकम थी शीला.. पर लंड को इतना आनंद मिल रहा था की उसके सामने ये तकलीफ तो कुछ भी नही थी.. शीला की सुंदर बड़ी छातियों में मेरी के स्तन नजर आ रहे थे मदन को

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मदन ने शीला का सिगार वाला हाथ अपने मुंह तक खींचा और एक जबरदस्त दम भर लिया.. मुंह से धुआँ छोड़ते ही उस धुएं की चादर के पीछे शीला के स्तन छुप गए.. दो-तीन सेकंड में ही धुआँ फैल गया और उसके पसंदीदा स्तन वापिस नजर आने लगे..

मदन: "मेरी के कहने के मुताबिक मैंने उसके प्रेमी पीटर को फोन किया.. और उसे मेरी ऑफिस पर मिलने बुलाया.. मैंने उसे सब बता दिया की मैं मेरी का पेइंग गेस्ट हूँ और उसके पति से छुपकर उनके मिलने का सेटिंग कर रहा हूँ.. उसने आभार प्रकट किया.. ऑफिस में मेरी कैबिन सब से आखिर में थी.. और जब तक बेल दबाकर बुलाऊँ नही तब तक पयुन आता भी नही था.. इसलिए मुझे कोई चिंता नही थी.. मेरी ने मुझे ये भी कहा था की उनकी मीटिंग के वक्त अगर मैं मौजूद रहूँगा तो पीटर मेरे साथ कोई हरकत नही करेगा..वरना एक बार अगर पीटर ने मुझे छु लिया तो मैं अपने आप को रोक नही पाऊँगी.."

शराब के घूंट भरते हुए शीला बड़े ध्यान से सुन रही थी.. शीला को इतनी मस्ती से सुनते हुए देखकर मदन खुल गया और सारी बातें बताने लगा.. उसे यकीन हो गया था की शीला इस बात को धोखा नही समझ रही.. उल्टा मजे लेकर सुन रही है..

"शाम को लगभग साढ़े पाँच बजे सारा स्टाफ जाने की तैयारी में था.. तभी मेरी अपनी बेटी रोजी के साथ ऑफिस पहुंची.. उसके पीछे पीछे पीटर भी आ पहुंचा.. बहोत समय के बाद मिल रहे दो प्रेमियों को कभी देखा है तूने शीला?"

शीला ने गर्दन हिलाकर "ना" कहा

"बड़ा अनोखा होता ही वो द्रश्य.. इतना प्रेम.. इतने जज़्बात.. मेरी पीटर को देखकर जो रोई थी.. जो रोई थी.. तुझे क्या बताऊँ यार.. !! देखकर मेरी आँखों में आँसू आ गए.. मैं सोच रहा था की इतना प्यार करने वाले को ऊपर वाला क्यों जुड़ा करता होगा.. !! मेरी कैबिन में आकर वो दोनों एक दूसरे को किस करने लगे.. गले लगाने लगे.. फिर अचानक मेरी ने पीटर के लंड पर हाथ रख दिया.. फिर दोनों ने अंग्रेजी में क्या गुसपुस की ये तो पता नही चला पर मैं इतना समझ पाया की मेरी पीटर से एक आखिरी बार चुदना चाहती थी.. मैं समझ गया.. और रोजी को गोद में उठाकर बाहर चला गया.. उस दौरान दोनों ने अपना काम खतम कर लिया.. फिर पीटर तुरंत चला गया.. और उसके जाने के बाद मेरी हालत खराब हो गई.. पीटर ने चोदते हुए मेरी के बबलों को जोर से दबाया होगा.. सारा दूध निकल रहा था..

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उसका पूरा टॉप भीग गया था.. ये देखते ही मेरा लंड खड़ा हो गया.. बार बार उसके स्तनों पर नजर जाती.. मेरी शरमा रही थी.. और बोली 'जो काम में नही करना चाहती थी वो मुझसे हो गया.. आई एम सॉरी.. तुमने अपना काम कर लिया और अब मैं आज शाम को तुम्हारी इच्छा पूरी कर दूँगी.. जब तुम कहोगे.. ठीक है.. अब मैं चलूँ?'"

"तो फिर तूने अपने खड़े लंड का क्या किया? उसे जाने क्यों दिया?"

"अरे मैं पागल थोड़ी न हूँ.. मैंने मेरी से कहा..जब तुम अपने आप पर कंट्रोल न कर पाई तो मैं अपने आप पर अब कंट्रोल कैसे कर सकता हूँ? प्लीज तुम यहीं पर रोजी को दूध पिलाओ.. मैं देखते हुए अपना काम निपटा लूँगा.. मेरी बड़े ही संकोच के साथ कैबिन के सोफ़े पर बैठ गई और टॉप को ऊपर करने लगी.. मैंने पेंट से अपना लंड बाहर निकाल लिया.. मेरी को मेरा लंड नही दिख रहा था क्योंकि बीच में मेरा ऑफिस टेबल था.. जैसे ही मेरी ने अपना एक बबला बाहर निकाला.. और मेरे लंड ने पिचकारी मार दी.. पूरे इक्कीस महीनों के बाद मैंने खुला स्तन देखा था.. मैं इतनी जल्दी झड गया ये देखकर मेरी को ताज्जुब हुआ.. पर उसने मुझसे कोई सवाल नही किया और वहाँ से चली गई"

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इस रोचक कहानी को सुनकर शीला सिहर उठी.. मदन के लंड पर उसके भारी कूल्हें पटक पटककर उसके लंड की चटनी बनाने लगी.. मदन भी मेरी के स्तनों का वर्णन करते हुए उत्तेजित होकर शीला के मदमस्त उरोजों का मसल मसलकर नीचे से अपनी गांड उछालकर शीला को सहयोग दे रहा था.. मेरी की सूक्ष्म हाजरी को दोनों उस कमरे में महसूस कर रहे थे.. सिगार जैसे जैसे खतम हो रही थी.. वैसे ही शराब और शीला की उत्तेजना भी अपने अंतिम चरण पर पहुँच रही थी.. ज्यादातर पुरुष हमेशा एक्टिव पार्टनर होता है और स्त्री पेसिव रहती है.. पर काफी पुरुषों के ये अंदाजा नही होगा की पेसिव पार्टनर बनकर स्त्री के सामने घुटने टेक देने में कितना मज़ा आता है

संभोग.. !!! कितना सुंदर शब्द है.. आह.. !!

इस एक ही शब्द में अपने साथी को तृप्त करने का भाव छुपा हुआ है.. सम + भोग = संभोग.. जिसमे दोनों पात्रा समान तरीके से भोग का आनंद ले उसे संभोग कहते ही.. अत्यंत प्रेम हो तो ही अपने साथी की भूख को.. केवल चेहरा देखकर पहचान सकते है.. वरना ऐसे लोगों की भी कमी नही है जिनके सामने पत्नी दांतों तले होंठ दबाते हुए इशारा करे फिर भी वो पागल इंस्टाग्राम की रील्स ही देखता रहे..

शीला की हवस अब सारी हदें पार कर चुकी थी.. मेरी के दूध भरे स्तनों की बात.. शराब और सिगार का संग.. और साथ में मदन का कडक लंड.. सब से ऊपर था.. उन दोनों के बीच का प्रगाढ़ प्रेम.. और संवादों का सेतू.. एक आदर्श जोड़ी थी शीला और मदन की

आदर्श जोड़ी कीसे कहते है?

दोनों आपस में जो मन में हो वो बेझिझक कह सके.. गलतफहमियों के लिए कोई स्थान न हो.. बिना कहें बहुत कुछ समझ ले.. वही होती है आदर्श जोड़ी.. इस आदर्शता को प्राप्त करने के लिए अगर कोई चीज सब से जरूरी होती है तो वो है.. एक दूसरे के प्रति अंधा विश्वास.. बदनसीबी से आजकल के जोड़ों के बीच जो विश्वास होता है वो नकली घी जैसा.. देखने में तो पौष्टिक होता है पर अंत में हार्ट अटैक ही देता है.. शुरू शुरू में जो कपल.. Made for each other नजर आता है.. वो थोड़े समय के बाद.. अपेक्षाओं के बोझ के तले दबकर.. एक दूजे से असन्तुष्ट रहने लगता है.. विश्वास डगमगा जाता है और अविश्वास की खाई में गिर पड़ते है..

सुबह के साढ़े चार बजे तक शीला और मदन.. मेरी की बातें करते हुए संभोग और शराब की महफ़िल में मशरूफ़ थे.. शीला ने मदन के लंड को अपने भोसड़े में दबोच रखा था.. उसका सारा वीर्य निचोड़ लिया था.. मदन शीला के जिस्म को अपनी भुजाओं में जकड़कर थोड़ी देर सो गया.. और उसी के साथ शीला के शरीर पर भी निंद्रा का असर होने लगा था.. शराब का नशा.. सिगार का नशा और सब से बड़ा.. संभोग की पराकाष्ठा का नशा..

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संभोग की पराकाष्ठा का अर्थ क्या होता है?

योगी पुरुष सालों की तपस्या के बाद समाधि में जिस अवस्था को महसूस करते है उसी अनुभूति को स्त्री और पुरुष भी ऑर्गजम के वक्त महसूस करते है.. प्राणायाम का शिखर, समाधि होती है.. वैसे ही संभोग का शिखर उसकी पराकाष्ठा होती है.. पराकाष्ठा.. !! संसार को त्यागकर सिर्फ आत्मकेंद्री बनकर.. सामाजिक जिम्मेदारियों से डर कर जो सन्यास लेते हुए उसे पलायनवाद कहते है..

असल सन्यासी तो वो होता है जो संसार में रहकर अपनी पत्नी और बच्चों की एक मुस्कान के लिए.. उनके सुख चैन के लिए रात दिन काम करता है.. लोन की किश्तें भरता है.. इसीलिए ऊपर वाले ने.. बड़ी ही ईमानदारी से सांसारिक जीवन जी रहे स्त्री और पुरुषों को ऑर्गजम रूपी समाधि अवस्था की भेंट दी.. जो किसी पलायनवादी को सालों की तपस्या के बाद भी प्राप्त नही होती.. किसी दंभी सन्यासी के मुकाबले.. हर रात पति के सर में प्यार से उँगलियाँ फेरती.. उसके लंड पर चूत दबाती पत्नी.. या पत्नी की चूत में आखिरी धक्के लगाकर परम सुख पाता हुआ पति.. कुदरत को शायद ज्यादा प्रिय होते है.. क्यों की उनकी प्रजोत्पति के कारण ही तो सृष्टि इतनी आगे तक पहुंची है.. अगर हर कोई सन्यास लेकर संसार त्याग दे तो प्रजोत्पति का क्या होगा? नसलें आगे कैसे बढ़ेगी? जिसका व्यवहार शुद्ध होता है उसे ही परमार्थ प्राप्त होता है.. बाकी सारा भ्रम ही है

इतना उत्तम कामसुख भोगने के बाद नींद आने में ज्यादा देर नही लगती.. दोनों गाढ़ी नींद सो रहे थे तभी डोरबेल बजी.. शीला को डोरबेल की आवाज बड़ी सुहानी लगी.. और क्यों न लगती.. मदन की गैर-मौजूदगी में इसी आवाज के सहारे तो उसने दिन और रात काटे थे.. !! लड़खड़ाते हुए आधी नींद में.. और पूरे नशे में शीला नंगी ही खड़ी हुई.. अगर सारे कपड़े पहन ने जाती तो रसिक डोरबेल बजा बजा कर मदन की नींद खराब करता.. इसलिए उसने कल रात का.. संजय वाला टॉप पहन लिया.. और जाकर दरवाजा खोला.. सामने रसिक खड़ा था.. हाथ में दूध का कनस्तर लेकर खड़ा रसिक.. शीला के दूध के कनस्तर देखकर चकित हो गया.. उसने शीला को इस रूप में देखने की कभी कल्पना भी नही की थी.. असल में पिछले काफी दिनों से उसने शीला को देखा ही नही था..

"अरे भाभी.. आप कहाँ थे इतने दिनों से?? और ये क्या पहना है? जबरदस्त लग रही हो.. " रसिक ने होंठों पर अपनी जीभ फेरते हुए कहा

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"चुप मर रसिक.. अब मैं अकेली नही हूँ.. तेरा बाप आ गया है.. अंदर सो रहा है.. इसलिए तू लिमिट में रहना.. और अपने लोड़े को भी रोज रोज घुसाने की जिद मत करना.. वरना तकलीफ हो जाएगी.. एक लीटर दूध दे और चलता बन.. और सुन.. मैं जल्द ही कुछ सेटिंग करती हूँ.. उतावला होकर कोई गलती मत करना.. समझा.. !! मेरी इशारे का इंतज़ार करना.. जब तक मैं ना कहूँ तब तक तू मुझसे बात करने की भी कोशिश मत करना "

उदास होकर रसिक ने कहा "ठीक है भाभी.. जैसा आप कहो" इतना जबरदस्त माल ऐसे ही हाथ से चला जाएगा ये सोचा नही था रसिक ने.. इतने दिनों के बाद आज भाभी नजर आई.. और ऐसे सेक्सी टॉप में.. उसे आशा थी की आज कुछ तो होगा.. पर ये तो सब कुछ खोने की नोबत आन पड़ी थी.. रसिक का मुंह लटक गया.. शीला से ये देखा न गया.. उसने रसिक के पाजामे में हाथ डालकर उसका लंड पकड़ लिया और थोड़ी देर सहलाते हुए उसके बगल में खड़ी रही.. रसिक का हाथ पकड़कर अपने बोबले पर रखते हुए बोली

"क्या तू छोटे बच्चों की तरह रूठ गया?? मैंने कहा ना की कुछ सेटिंग करूंगी जल्दी है.. ले अब दबा ले थोड़ी देर और फिर निकल.. मेरा पति विदेश से लौट चुका है.. अंदर सो रहा है" शीला ने एक सांस में ही बोल दिया..

रसिक शीला के बबलों को टॉप के ऊपर से ही दबाकर बोला "आह्ह भाभी.. आपको क्या पता.. मुझे क्या क्या हो रहा है.. !! आप तो मुझे बीच रेगिस्तान में भूखा प्यासा छोड़कर चले जाने की बात कर रही हो.. फिर मेरे इस लोड़े का क्या होगा??"

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"तो तेरी बीवी रूखी है ना.. तेरे इस लोड़े के धक्के खाने के लिए.. उसे चोदता नही है क्या? मना करती है क्या तुझे? वो वहाँ भूखी प्यासी बिलखती रहती है और तू यहाँ मेरे चक्कर में पड़ा है"

"नही भाभी.. उसे गरम करके संभालना मेरे बस की बात नही है.. उसे तो उसका मायके वाला दोस्त जीवा ही शांत कर सकता है"

शीला चोंक गई.. "मतलब? तू जानता है सब कुछ?" तभी उसे बेडरूम से मदन के उठने की आवाज आई.. शीला ने रसिक का लंड छोड़ दिया और अपने स्तनों से उसका हाथ हटा दिया.. उसे धकेलकर बाहर करते हुए उसने दरवाजा बंद कर दिया..

सच में.. मदन जाग गया था.. अच्छा हुआ जो रसिक चला गया..

मदन नंगा ही शीला की तरफ आया और बोला "गुड मॉर्निंग मेरी जान.. !! किसके साथ बात कर रही थी सुबह सुबह?"

"लगता है कल रात की तुझे उतरी नही अब तक.. देख रहा है ना.. दरवाजा बंद है.. तुझे क्या लगा.. ये बंद दरवाजे से मैं किसी का लंड पकड़कर हिला रही थी?? पागल.. मैं तो ऐसे ही गाना गा रही थी"

"मज़ाक कर रहा हूँ यार.. मैं तो पेशाब करने के लिए उठा था.. देख.. क्या हालत कर दी तूने मेरे लंड की? सुखी भिंडी जैसा हो गया है.. दो साल की कसर एक रात में निकाल दी तूने.. " शीला के स्तन पर चिमटी काटते हुए प्यार से मदन ने कहा और बाथरूम की तरफ चला गया..

शीला सोच रही थी.. मेरी के दूध भरे स्तनों को याद कर के मेरे बबलों की माँ चोद दी कल रात.. जरा सा चांस मिला नही की मेरे बॉल पर टूट पड़ता है.. जब इतने पसंद थे तो दो साल तक छोड़कर क्यों गया था??

शीला दूध की पतीली लेकर किचन में आई.. गेस जलाकर उसने दूध गरम करने के लिए रख दिया.. किचन की खिड़की खोलते ही उसने देखा.. अनुमौसी और रसिक हंस हँसकर बातें कर रहे थे.. रसिक उनकी पतीली में दूध भर रहा था..

अनुमौसी को देखकर.. उनकी की हुई अरज याद आ गई शीला को.. और उसके दिमाग में एक चिनगारी हुई

रसिक रोज अपनी साइकिल शीला के घर के पास रखकर अनुमौसी के घर दूध देने जाता था.. फिर दूध देकर वापिस शीला के घर से साइकिल लेकर आगे निकल जाता.. शीला ने सोचा.. रसिक के लोड़े के चक्कर में.. मुख्य बात तो बताना भूल ही गई.. मदन जल्दी बाथरूम से निकलकर सो जाए तो अच्छा.. रसिक साइकिल लेने आएगा तब उसे बता दूँगी.. और वैसा ही हुआ.. बाथरूम से निकलकर मदन वापिस बिस्तर पर लेट गया. शीला किचन के दरवाजे से बाहर आई और अपने घर के मैन गेट पर खड़ी हो गई.. अभी भी काफी अंधेरा था.. रसिक की साइकिल के पास जाकर वो उसका इंतज़ार करने लगी.. जैसे ही रसिक आया.. सब से पहले तो शीला ने उसे पकड़कर किस कर दी.. और लंड को पकड़कर खेल लिया.. रसिक के लंड को शीला कभी भूल नही सकती थी.. इसी लंड ने ही अकेलेपन में उसकी खुजली मिटाई थी.. !!

"भाभी, आप यहाँ क्यों आई? वो भी मेरी साइकिल के पास?" रसिक को आश्चर्य हुआ

"रसिक, तुझे एक बात बताना भूल गई थी इसलिए आई हूँ"

"हाँ बताओ ना भाभी"

"रूखी को बोलना की कल दोपहर से पहले मुझे मिलने आए.. मुझे कुछ काम है उसका"

"हाँ हाँ जरूर भेज दूंगा.. आज ही भेज दूँ?.. आप कहों तो मैं आ जाऊँ.. आपका जो भी काम होगा, निपटा दूंगा" नटखट अंदाज में हँसते हुए रसिक ने कहा

"अरे बेवकूफ, तेरा काम तो मुझे पड़ेगा ही.. पर अभी नही.. जब जरूरत पड़ेगी और मौका मिलेगा तब बुलाऊँगी.. आ जाना.. वैसे तो मैं रूखी को आज ही बुलाने वाली थी पर आज हम शहर से बाहर जाने वाले है.. इसलिए उसे कल भेजना.. "

"ठीक है भाभी.. " शीला वापिस घर के अंदर जाने लगी..

रसिक: "एक मिनट भाभी!!"

शीला ने पलटकर पूछा "अब क्या है?"

रसिक: "भाभी, अभी भी काफी अंधेरा है.. थोड़ी देर चूस देती तो.. कितने दिन हो गए!! आप को तो याद नही आती होगी पर मैं रोज याद करता हूँ"

शीला: "जा जा नालायक.. यहाँ बीच सड़क पर मैं पागल हूँ जो तेरा लोडा चुसूँगी?? भड़वे, एक दिन तू भी मरेगा और मुझे भी मरवाएगा.. "

रसिक का चेहरा उतर गया.. शीला वापिस जाने लगी.. और फिर से पलटकर रसिक की ओर आई

"तेरा उतरा हुआ चेहरा मुझसे देखा नही जाता " घुटनों पर बैठकर उसने कहा "बात बात पर लड़कियों की तरह रूठ जाता है तू.. " एक ही पल में उसने पाजामे से रसिक का लंड बाहर निकाला और तेजी से मुंह में डालकर अंदर बाहर करने लगी..

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रसिक को मज़ा आ गया.. एक ही मिनट में उसका लंड मूसल सा हो गया.. खड़े लंड को देख शीला से रहा न गया.. रसिक के आँड मुठ्ठी में पकड़कर मसलते हुए वो ऐसे चूसने लगी की रसिक की आँखों का आगे अंधेरा छा गया.. पर मदन के डर से शीला झड़ने तक चूस नही पाई.. रसिक का स्खलन होने ही वाला था तभी मुंह में से लंड निकालकर घर भाग गई.. चकराया हुआ रसिक देखता ही रह गया.. डंडे जैसा लंड हाथ में लिए हुए!!

किचन में आकर शीला ने धीरे से अपने बेडरूम में देखा.. मदन अभी भी शराब के नशे में सो रहा था.. शीला को देखकर राहत हुई.. चलो सब कुछ ठीक तरीके से हो गया.. बुरे समय में रसिक ने ही मेरे जिस्म की आग बुझाकर बाहर मुंह मारने के जोखिम से बचाया था.. उसे नाराज कैसे करती!!

चाय को गेस की धीमी आंच पर उबालने के लिए रखकर वो बाथरूम में नहाने के लिए चली गई.. नहा-धो कर एकदम टंच माल बनकर आईने के सामने खड़ी हो गई.. मांग में सिंदूर भरते वक्त वो सोच रही थी.. किसके नाम का सिंदूर अपनी मांग में भरूँ ?? मदन के नाम का.. या पीयूष के.. या जीवा के.. या रघु के.. या रूखी के ससुर के नाम का.. या पिंटू के नाम का.. या संजय कुमार के नाम का.. या फिर उस हाफ़िज़ के नाम का.. हम्म या फिर जॉन के नाम का??? जॉन की गिनती ना करे तो चलता क्योंकि वो तो सिर्फ मेहमान था..

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तभी रेडियो पर गाना बजा...

♬⋆.˚ "यूं ही कोई.. मिल गया था.. ♫♫ सरे राह चलते चलते.. सरे राह चलते चलते..𝄞⨾𓍢ִ໋♬⋆.˚𝄢ᡣ𐭩 "

सुनकर अपनी हंसी रोक न पाई शीला.. !!

Gazab ki update he vakharia Bhai,

Uttejna aur kamukta se bharpur.........

Sheela aur Madan ke sensual sex scene me to maja hi aa gaya

Keep rocking Bro
 

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शीला और मदन फिर से अकेले पड़े.. दोनों वापिस कुछ रोमेन्टीक सा करने ही वाले थे तब अचानक अनुमौसी टपक पड़ी.. मदन का मूड ऑफ हो गया और वो पैर पटकते हुए खड़ा हुआ और बोला "आप दोनों बातें करो.. मैं जरा बाहर घूम कर आता हूँ " कहकर वो निकल गया

अनुमौसी: "शीला.. मदनभैया के आने की खुशी तेरे चेहरे पर साफ साफ दिख रही है.. !!"

शीला ने शरमाते हुए नजरें झुका ली

अनुमौसी: "अरे.. शर्मा क्यों रही है.. पहले जब पीयूष के पापा काम के सिलसिले में दो दिन के लिए भी बाहर जाते थे तब मुझे भी इतना सुना सुना लगता था.." अनुमौसी अपनी जवानी के दिनों की बातें करने लगी फिर बोली "असल में मैं तुझसे एक खास बात करने आई हूँ "

शीला: "हाँ.. बताइए ना मौसी"

अनुमौसी: "पहली बात तो ये है की.. पीयूष और कविता के बीच कुछ कहा-सुनी हो रखी है.. दोनों एक दूसरे से बात तक नही कर रहे.. वैसे तो सुबह की चाय पीते पीते दोनों ढेर सारी बातें करते है.. लेकिन आज तो दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा तक नही.. कविता से तेरी अच्छी बनती है.. जरा पूछ के देख.. क्या प्रॉब्लेम है? और कुछ रास्ता निकाल.. पूरा घर शमशान जैसा लगता है दोनों की अनबन के कारण.. वैसे तो उन दोनों की बहोत अच्छी पटती है.. पर पता नही एकदम से क्या हो गया!!"

शीला: "मौसी, पति पत्नी के बीच ज्यादातर झगड़े रात के प्रोग्राम को लेकर होते है.. शायद पीयूष ने करने के लिए जिद की होगी और कविता बेचारी थक गई होगी इसलिए साथ नही दिया होगा.. उसी बात को लेकर टेंशन हुआ होगा.. ऐसा मेरा मानना है.. बाकी असल में क्या हुआ होगा वो तो पीयूष या कविता ही बता सकते है"

अनुमौसी: "यहाँ तो मिल नही रहा उस बात को लेकर झगड़े होते है.. और जिसे मिल रहा है उसे उसकी कदर नही है.. अजीब है आजकल के नौजवान"

शीला: "सही कहा आपने, मौसी.. मदन की गैर-मौजूदगी में मैंने कैसे दिन गुजारे है.. ये बस मैं ही जानती हूँ.. याद है ना.. उस दिन रूखी के दो दोस्तों के साथ हम क्या क्या कर बैठे थे.. !!! पता था की ये गलत है फिर भी.. !!!"

अनुमौसी: "हाय शीला.. उस दिन की याद मत दिला.. मुझे तो कुछ कुछ होने लगता है.. तू तो इसलिए भूखी थी क्योंकी मदन विदेश था.. मेरा हाल पूछ.. पति साथ में होते हुए भी भूखी तड़पती हूँ.. पता नही उन्हें क्या हो गया है !! मुझे छूते तक नही.. कभी कभी तो दिमाग ऐसा गरम हो जाता है की क्या क्या कर दूँ.. पर उन्होंने तो बिस्तर पर आते ही खर्राटे मारने के अलावा ओर कुछ नही सूझता.. तंग आ गई हूँ मैं, शीला.. इस बेजान ज़िंदगी से"

शीला: "आप मुझसे कोई दूसरी बात भी करने वाली थी.. बताइए.. !!"

अनुमौसी: "अरे हाँ.. वो बात ऐसी थी की.. !!" बोलते बोलते वो रुक गई और खड़ी होकर दरवाजा बंद कर आई और खिड़की भी बंद कर ली.. और शीला के करीब जाकर उसके कान में कुछ फुसफुसाई..

शीला चोंक गई.. "क्या बात कर रही हो मौसी? ऐसा कैसे हो सकता है?"

अनुमौसी: "मना मत कर शीला.. मेरा इतना काम कर दे प्लीज.. तुझे मेरी हालत के बारे में पता तो है.. मैं पागल तो नही हूँ जो इस उम्र में तुझसे ऐसी बात करूंगी.. ये तो तू मेरी अपनी है इसलिए बता रही हूँ.. तू ये सोच की मेरी बर्दाश्त की कैसी हद पार हो गई होगी जो मुझे तुझसे ऐसी बात करनी पड़ रही है!! किसी और से तो इस बात का जिक्र करने की मैं सोच भी नही सकती.. और मैं जो भी कह रही हूँ उसमें तेरा तो कोई नुकसान नही है.. ऊपर से फायदा ही होगा तेरा.. कभी तुझे भी.. !!!"

शीला: "वो सब तो ठीक है मौसी.. मुझे कोई प्रॉब्लेम नही है.. पर कैसे कहूँ?? शर्म आएगी"

तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया और दोनों चुप हो गए.. शीला ने उठकर दरवाजा खोला.. सामने पीयूष खड़ा था..

पीयूष ने अनुमौसी की तरफ देखकर कहा "मम्मी, मुझे घर की चाबी दीजिए.. कपड़े बदलने है मुझे.. मैंने आस-पड़ोस में देखा पर तुम कहीं नजर नही आई.. फिर सोचा तुम यहीं मिलोगी.. "

शीला: "कैसा चल रहा है पीयूष? आजकल बहोत खोया खोया सा लगता है तू.. !! क्या बात है? कहीं मेरी किसी बात का तो बुरा नही लग गया तुझे!! मुझसे बात भी नही कर रहा.. !! मुझसे कोई गलती हो गई हो तो माफ कर देना.. " अपने खास अंदाज में आँखें मटकाते हुए शीला ने कहा.. प्यार से सुना भी दिया पीयूष को..

पीयूष: "अरे.. आप कैसी हो भाभी? मैं थोड़ी जल्दी में था इसलिए आपसे बात करना रह गया.. कैसा चल रहा है सब? मदन भैया आ गए वापिस? कैसी है उनकी तबीयत?" शीला के सवालों के हमले से बोखला गया पीयूष

शीला ने आँखों से मौसी को इशारा किया.. मौसी समझ गई

अनुमौसी: "मैं घर खोलती हूँ.. मुझे भी लड़कियों के लिए खाना पकाना है.. मैं चलती हूँ" और वहाँ से निकल गई..

शीला: "अब आ ही गया है तो बैठ थोड़ी देर.. ऐसी भी क्या जल्दी है? वैशाली घर पर हो तो ही तू बैठेगा.. कहीं ऐसा तो नही है ना.. !!"

पीयूष: "अरे नही नही भाभी.. ऐसा तो कुछ नही है.. क्या आप भी !!" शीला की बात सुनकर पीयूष शरमा गया.. हर किसी की नब्ज दबाना जानती थी शीला..

पीयूष सोचने लगा.. शीला भाभी ने वैशाली का जिक्र क्यों किया होगा?? कहीं मेरे और वैशाली के संबंधों के बारे में उनको पता तो नही चल गया न?

वो कुछ ओर सोचता उससे पहले ही शीला ने पल्लू हटाकर.. अपने मदमस्त, गोलमटोल.. तंग ब्लाउस में कैद स्तनों की झलक दिखाते हुए कहा

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शीला: "अब तुझे ये भी पसंद नही पीयूष? एक टाइम था जब तू इनकी झलक पाने के लिए घंटों छत पर कसरत करने के बहाने खड़ा रहता था.. भूल गया क्या?? मैं कपड़े सुखाने बाहर आती थी तब ऊपर से तू कैसे देखता रहता था.. !! उस दिन मूवी देखने गए तब दबा लेने के बाद तेरा मन भर गया क्या?? या फिर किसी ओर जवान लड़की के साथ.. !!!" शीला ने अपना वाक्य अधूरा ही छोड़ दिया

पीयूष: "भाभी, आप भी कैसी बातें करती हो.. !! उस दिन मूवी देखते वक्त जो हुआ वो तो मेरे लिए सपना पूरा होने जैसा था.. मैं तो सोच रहा था की फिर कभी मुझे ऐसा मौका नही मिलेगा.. इसीलिए आप से दूर भाग रहा था.. आप के करीब आने के बाद मैं खुद पर कंट्रोल नही कर पाता हूँ.. सच कह रहा हूँ.. आपको देखते ही मूवी वाला दिन याद आ जाता है और मन करता है की आपको बाहों में लेकर दबा दूँ.. मुझसे कुछ गलती न हो जाए इसलिए आप से दूरी बनाकर रखता हूँ"

शीला: "अरे बेवकूफ.. !! अभी घर पर कोई नही है.. पूरी कर ले अपनी मन की इच्छा.. !!" कहते हुए शीला ने पीयूष के दोनों हाथ पकड़कर अपने स्तनों के शिखर पर रख दिए.. और बोली "दबा ले जीतने जोर से दबाने हो तुझे.. लेकिन पहले दरवाजा बंद कर दे.. नही तो कोई आ गया तो.. "

पीयूष: "पर.. घर पर मम्मी इंतज़ार कर रही होगी"

शीला: "अबे चोदूनंदन.. मौका मिले तब उसका फायदा उठाना सिख.. नही तो पूरी ज़िंदगी बस देखकर ही खुश रहना पड़ेगा.. "

पीयूष ने तुरंत ही दरवाजा लॉक कर दिया और वापिस आकर शीला से लिपट पड़ा.. शीला के स्तनों को ब्लाउस की कटोरियों के ऊपर से दबाते हुए बड़ी आतुरता पूर्वक उसके होंठों को चूसने लगा.. शीला ने भी तुरंत पीयूष का लंड पकड़कर दबा दिया

पीयूष: "आह्ह.. जरा धीरे से.. भाभी"

शीला: "अच्छा.. तुझे दर्द हो रहा है.. तू जब मेरी छातियों को इतने जोर से मसलता है तब मुझे दर्द नही होता होगा.. !!!"

शीला के हाथों में बरकत थी.. एक ही पल में पीयूष का लंड उसकी पतलून में तंबू बनाकर खड़ा हो गया.. पेंट के ऊपर से ही उस गन्ने जैसे लंड को सहलाते हुए शीला ने कहा "पीयूष.. ये तो चूत मांग रहा है.. चल डाल दे जल्दी"


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कहते हुए शीला घूम गई और अपना घाघरा ऊपर कर दिया.. सोफ़े का सहारा लेते हुए योनिप्रवेश के लिए आदर्श स्थिति में आ गई.. अपने चूतड़ उठाकर उसने पीयूष के सामने पेश कर दिए.. पीयूष का लंड खुश होकर ऐसे लहराने लगा जैसे पहली बारिश में खेत की फसल लहराती है

"आज चुसोगी नही भाभी? उस दिन मूवी देखते हुए आपने जिस तरह लिया था वैसे ही मुंह में लीजिए न.. !! मुझे बहोत अच्छा लगता है.. प्लीज!!" शीला के स्तनों को दबाते हुए पीयूष ने कहा

"वो सब अभी नही.. कभी मदन कहीं बाहर गया होगा तब शांति से करेंगे.. अभी वो वापिस आ गया तो ये भी नही हो पाएगा.. इसलिए मैं जैसा कहती हूँ वैसा कर.. और तेरा लंड मेरी चूत में घुसा दे.. जल्दी कर अब!!" शीला ने थोड़े गुस्से से कहा

पीयूष ने अपना लंड हाथ में लिया.. उलटी लैटी शीला के भव्य कूल्हों पर लंड रगड़ते हुए अप्रतिम आनंद लेने लगा..

"वक्त बर्बाद मत कर.. कितनी बार समझाऊँ तुझे?? मदन कहीं आसपास ही होगा.. कभी भी आ जाएगा.. और घर पर तेरी मम्मी भी इंतज़ार कर रही है.. ये सब करने का समय नही है अभी.. जल्दी कर यार.. और न करना हो तो रहने दे.. ये तो मौका मिला तो मैंने सोचा की जल्दी जल्दी मजे कर लेते है.. तुझे ये सब फॉरप्ले ही करना हो तो छोड़ दे.. !!" शीला ने तंग आकर कहा.. वाकई, शीला इतना जोखिम उठा रही थी.. और नादान पीयूष बिना इस बात को समझे.. लंड डाल कर धुआंधार चुदाई करने के बदले शीला के कूल्हें छेद रहा था..

बाजी बिगड़ने से पहले.. पीयूष ने एक ही धक्के में पूरा लंड डाल दिया और धक्के लगाने लगा.. शीला की चूत टाइट तो थी नही.. की डालने में तकलीफ होती.. बड़ी ही आरामदायक चुदाई शुरू हो गई.. कच्ची कुंवारी लड़कियों के मुकाबले भाभियों को चोदने में यहीं लाब है.. नादान कुंवारी लड़कियों की चूत टाइट होती है.. इसलिए डालने में दिक्कत होती है.. पहले उनको तैयार करनें के लिए पापड़ बेलों.. फिर चुदाते वक्त भी चिल्लाने का डर.. लेकिन भाभी तैयार भी जल्दी हो जाती है.. और बिना किसी शोर-शराबे के लंड आराम से उनकी गुफा में घुसकर अपनी तपस्या कर सकता है.. कुंवारी लड़कियों के हावभाव देखें तो ये नही कह सकते की उन्हें मज़ा आ रहा होगा.. जबकी भाभी तो लंड लेते ही ऐसे सिहरती है जैसे सातवे आसमान पर हो...

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शीला का जिस्म, पीयूष के लयबद्ध धक्कों से आगे पीछे हो रहा था.. दोनों बेहद उत्तेजित होकर एक दुसरें को भोगने के लिए उतावले हो गए थे.. तभी डोरबेल बजी.. बेल की आवाज सुनते ही.. एक झटके में दोनों अलग हो गए..

"जरूर मदन ही होगा.. तू जल्दी कपड़े पहन ले.. अच्छा हुआ ना जो मैंने कपड़े नही उतारे थे.. ब्लाउस खोला होता तो अभी ये मेरे दोनों को अंदर फिट करने में ही ३-४ मिनट निकल जाते.. आईने में अपनी शक्ल देखकर तसल्ली कर ली शीला ने.. फिर उसने दरवाजा खोला.. मदन को देखकर वो थोड़ी सी बोखला जरूर गई पर किसी भी हाल में मदन को जरा सी भी भनक न लगे उसका ध्यान रखा शीला ने..

पीयूष को देखकर थोड़ा सा चकित होते हुए मदन सोफे पर बैठा.. की तुरंत शीला शुरू हो गई.. वह दिखावा ऐसा कर रही थी की मदन के आने से पहले वो और पीयूष कोई गंभीर चर्चा कर रहे थे..

"सच सच बता पीयूष.. तेरे और कविता के बीच क्या तकलीफ हुई है? तुझे पता है तेरी मम्मी कितनी चिंता कर रही थी? बेचारी रो रही थी.. " शीला ने बखूबी अभिनय किया

मदन शीला और पीयूष की तरफ देखता ही रहा.. बंद दरवाजे के पीछे शीला और पीयूष को देखकर उसके दिमाग में जो शक हुआ था.. वो ये सुनते ही दूर हो गया.. शक के पन्ने और फड़फड़ाते उससे पहले ही उसपर विश्वास का पेपरवेइट रख दिया शीला ने..

"क्या बात है पीयूष?? ये सब क्या माजरा है? " मदन ने पूछा

"कुछ नही मदन भैया.. मेरे और कविता के बीच कुछ दिनों से अनबन चल रही है.. यह बात मम्मी के ध्यान में आई होगी इसलिए उन्होंने भाभी से शिकायत कर दी.. और भाभी मुझ पर टूट ही पड़ी.. मेरी कोई गलती नही है इसमे.. " एक ही सांस में पीयूष ने कहा.. अच्छा हुआ की मदन की नजर पीयूष के पेंट की खुली चैन पर नही गई.. वरना पीयूष और शीला का नाटक वहीं समाप्त हो जाता.. जल्दी जल्दी में बंद करने पर पेंट की चैन टूट गई थी.. और पीयूष का भूखा लंड अभी भी उभार बनाते हुए अपनी नाराजगी जाहीर कर रहा था.. ये तो अच्छा हुआ की कुछ ही पलों में उसका लंड बैठ गया.. !!

"तूने खुद ही कैसे तय कर लिया की तेरी कोई गलती नही है ??? प्रत्येक गुनहगार के पास अपने निर्दोष होने के सबूत होते ही है" मदन ने कहा

शीला: "बिल्कुल सही कहा मदन ने.. तुझे इतना समझना चाहिए की पति पत्नी के बीच छोटे मोटे झगड़े और मन-मुटाव तो चलते रहते है.. जरूरी है की उन्हे समय रहते खतम कर दिया जाए.. वरना आगे जाकर वो बड़ा स्वरूप धारण कर लेते है.. और ऐसा तो क्या हो गया तुम दोनों के बीच की एक दूसरे की शक्ल तक देखना नही चाहते.. !!"

मदन थोड़ा चोंक गया "बात यहाँ तक पहुँच गई है???"

मदन की बातों से शीला को यकीन हो गया की उसके मन में पीयूष की हाजरी को लेकर कोई शक नही रहा था.. उसने राहत की सांस ली.. रंगेहाथों पकड़े जाते बच गए दोनों.. लेकिन वो काफी डर गई इस घटना से.. अब से सावधान रहना पड़ेगा..

मदन: "अरे तुम दोनों की अभी अभी तो शादी हुई है.. ये देख.. शादी के इतने सालों के बाद भी तेरी भाभी कैसी खिले हुए गुलाब जैसी है.. क्यों? क्योंकि मैं उसे इतना प्रेम देता हूँ की वो हमेशा खुश ही रहती है.. जीवन के बाग को हमेशा तरोताजा रखने के लिए निरंतर प्रेम की पानी से उसे सींचना चाहिए.. नही तो वो बाग मुरझाने लगता है.. फिर उसे जीवंत करना कठिन हो जाता है.. मेरी बात करूँ तो.. मुझे वहाँ विदेश में कितनी गोरीओ ने ललचाया था.. ऐसी ऐसी रूपसुंदरियाँ होती है वहाँ.. अच्छे अच्छों को नियत बदल जाए.. पर तेरी भाभी का चेहरा सामने आते ही मन पर लगाम लगा लेता था.. वो यहाँ अकेले मेरे बगैर तड़प रही हो.. और मैं वहाँ गुलछर्रे उड़ाऊँ.. !! ये कैसे हो सकता है.. !! तुरंत ही गोरी चमड़ी का सारा आकर्षण खतम हो जाता था.. इच्छा तो बहोत सारी होती है मन में.. पर जो मन में आयें वो सब करना ठीक नही.. समझा तू??"

मदन के प्रत्येक शब्द शीला के दिल पर कटार बनकर घाव बना रहे थे.. अपने आप पर धिक्कार हो गया शीला को.. शर्म आने लगी उसे.. मदन बेचारा इन दो सालों में कितना वफादार रहा उसके प्रति..!! और यहाँ मैं ??? एक स्त्री होने के बावजूद.. संयम खो बैठी.. लानत है तुझ पर शीला.. तू मदन के लायक ही नही है.. शीला के चेहरे से नूर उड़ गया.. उसका सुंदर मुख फीका पड़ गया.. जैसे पूनम के चाँद को ग्रहण लग गया हो.. !!

पीयूष: "आप सही कह रहे है मदन भैया.. पर कविता को भी थोड़ा समझना चाहिए ना.. !! जब देखो तब मुझे किसी न किसी बात पर बस टोकती ही रहती है.. क्या अपने पति के आत्म-सन्मान का ध्यान रखना उसकी जिम्मेदारी नही है?"

मदन: " मैं समझ सकता हूँ.. पर तुम दोनों के बीच असल में आखिर क्या हुआ है जो दोनों ऐसे रूठ गए हो.. !! तुम मर्ज बताओगे तो मैं तुम्हें इलाज बता सकता हूँ.. "

पीयूष ने माउंट आबू में जो हुआ था वो सब बताया.. कैसे कविता ने अधनंगे कपड़ों में सब के सामने आकर उसकी इज्जत की धज्जियां उड़ा दी थी.. पर उसने ये नही बताया की उसके वैशाली के प्रति आकर्षण के कारण कविता रूठ गई थी.. एक समय था जब पीयूष कविता कितने प्यार से एक दूसरे के साथ रहते थे.. पर हकीकत ये थी की जब से शीला के कारण कविता की ज़िंदगी में पिंटू की एंट्री हुई थी.. तब से कविता नाम के पंछी को पंख लग गए थे.. जाहीर सी बात थी की मदन इन सारी बातों से अनजान था.. इसलिए वो सोच में डूब गया.. पीयूष की बात उसके दिमाग में उतर नही रही थी..

मदन: "देख पीयूष.. कविता बहोत अच्छी लड़की है.. तुझे गई गुजरी भूल जानी चाहिए.. उसे फिर से पहले की तरह प्यार देना शुरू कर दे.. रिश्तों का व्यापार ऐसे ही चलता है.. प्यार दो और प्यार लो"

शीला: "पीयूष, तू कविता को प्यार तो करता ही है.. जरूरत है बस उसे व्यक्त करने की.. सिर्फ प्यार होना ही काफी नही है.. उसे वक्त वक्त पर जताना भी पड़ता है"

पीयूष: "हाँ भाभी.. आपकी बात सही है.. पर ताली कभी एक हाथ से नही बजती.. सारी गलती मेरी तो नही हो सकती ना.. उसका भी तो थोड़ा दोष होगा ही ना.. !!"

शीला: "कहाँ मना किया मैंने?? मैं कविता को भी समझाऊँगी.. सब ठीक हो जाएगा.. आज रात जब तू मौसम को छोड़ने उसके घर जाएगा.. तब मैं और मदन, कविता से बात करेंगे.. जो होगा सब अच्छा ही होगा.. अब तू मुझे वचन दे.. की पुरानी बातों को कुरेदेगा नही.. और उन बातों को लेकर उसे ताने नही मारेगा.. !!"

पीयूष नीचे देखने लगा और धीरे से बोला "कोशिश करूंगा भाभी.. पर कुछ बातें ऐसी है जो भुलाएं नही भुलाती.. !! वक्त तो लगेगा"

वास्तव में पीयूष इस बात को लेकर परेशान था की मौसम को देखने लड़के वाले आ रहे थे.. बेचैन और उदास हो गया था.. मुंह तक आया हुआ निवाला खाने से पहले ही छीन गया.. !! मौसम की कच्ची कुंवारी जवानी को भोगने का सुवर्ण अवसर इतना जल्दी हाथ से चला जाएगा उसका अंदाजा नही था उसे.. मौसम भी लगभग तैयार हो गई थी.. तभी उसके माँ-बाप को क्या सुझा जो लड़के वालों को बुला लिया.. !! थोड़े दिन रुक जाते तो मौसम की कच्ची चूत को चोद लेता..

इसके बारे में तो शीला को भी कुछ पता नही था.. की पीयूष मौसम के शबाब में डूबा हुआ था..

मदन: "ऐसा कैसे चलेगा पीयूष?? तुझे कोई प्राइवेट प्रॉब्लेम हो तो निःसंकोच मुझे बता.. "

पीयूष: "नही भैया.. ऐसा तो कुछ नही है"

शीला, मदन और पीयूष चर्चा कर रहे थे तभी मदन के किसी दोस्त का मोबाइल पर फोन आया.. मदन बात करते हुए घर के बाहर बगीचे में पहुँच गया.. उसी दौरान एकांत में पीयूष और शीला के बीच गुपचुप बातें हुई.. और मदन के वापिस आते ही दोनों नॉर्मल होकर बैठ गए..

पीयूष ने खड़ा होते हुए कहा "मम्मी राह देख रही है.. मैं चलता हूँ.. मुझे शाम को जाना भी है इसलिए तैयारी करनी है.. भाभी, वैशाली को बता देना.. पाँच बजे निकलना है.. और कल दोपहर को आप दोनों लेने आ जाना.. "

मदन: "हाँ हाँ.. मैंने वैशाली को वादा किया है.. हम कार लेकर कल लेने आ पहुंचेंगे"

शीला: "हाँ, भाड़े पर कोई न कोई गाड़ी मिल ही जाएगी.. !!"

मदन: "अरे, कहीं ढूँढने जाने की जरूरत नही है.. मैं जिस गाड़ी में आया था.. उस ड्राइवर हाफ़िज़ का नंबर मैंने स्टोर कर लिया था.. उसे ही बुला लेंगी.. गाड़ी भी मस्त है और चलाता भी अच्छा है.. !!"

शीला: "नही नही.. उसे नही.. किसी ओर को बुला लो" हाफ़िज़ का नाम सुनते ही शीला कांप उठी.. शीला सोचने लगी.. मदन, वो गाड़ी तो अच्छी चलाएगा पर साथ ही साथ तेरी बीवी को भी घोड़ी बनाकर चोद देगा..

पीयूष चला गया..

मदन: "क्यों? हाफ़िज़ के साथ जाने में क्या तकलीफ है तुझे?" कहते हुए उसने शीला को बाहों में भर लिया.. एकांत मिलते ही.. मदन ५८ से २८ साल का बन गया.. पीयूष के संग उस अधूरे सेक्स के प्रोग्राम के बाद शीला बहोत ही उत्तेजित थी.. मदन के अचानक आ जाने से अधूरे रहे कार्यक्रम को फिर से आगे चलाने का सोच रही थी शीला.. शुरुआत पीयूष के साथ हुई थी और खतम मदन के साथ होगा.. इससे मदन के मन का शक भी दूर हो जाएगा और भोसड़े की खुजली भी शांत हो जाएगी..

शीला ने भी मदन के आलिंगन का जवाब उसे चूमकर दिया..

शीला: "नही यार.. मुझे कोई तकलीफ नही है.. !! उस दो कौड़ी के ड्राइवर से मुझे भला क्या प्रॉब्लेम?? मैं तो ये सोचकर मना कर रही थी की उसकी गाड़ी बड़ी है.. तो हमें महंगा पड़ेगा.. इतनी बड़ी गाड़ी की हमें क्या जरूरत?? कोई छोटी गाड़ी ले लेते है न.. !!" शीला मदन को बेड तक ले गई और धक्का देकर बेड पर सुला दिया.. बड़ी ही कामुक अदा से शीला उसके बगल में लेट गई.. शीला के जिस्म के गदराए अंग उसके साथ ही उजागर हो गए.. शीला के गोल खरबूजे जैसे स्तनों को देखकर ही मदन के मुंह में पानी आ गया.. उसका चेहरा उत्तेजना से लाल लाल हो गया..

मदन को और अधिक उत्तेजित करने के लिए शीला ने शब्दों का सहारा लिया.. किसी भी पुरुष को उत्तेजित करने के लिए सिर्फ जिस्म काफी नही होता.. संभोग के दौरान, जिस्म के साथ साथ उत्तेजक भाषा का भी जब प्रयोग होता है तब पुरुष की उत्तेजना, सारी हदें पार कर जाती है..

शीला: "जानु.. तेरी शीला बहोत तरसी है.. आज ऐसा चोद.. ऐसा चोद.. की पिछले दो सालों की भूख शांत हो जाए.. वैशाली शॉपिंग करने गई है इसलिए उसके आ जाने की भी चिंता नही है.. चल मदन.. आज तो मुझे रंडी बनाकर चोद.. मैं भी तो देखूँ.. विदेश की ठंडी हवाओ ने कहीं तेरे लंड को भी ठंडा तो नही कर दिया ना.. !! और हाँ.. तुझे बता देती हूँ.. अगर आज अभी तूने मुझे ठंडा नही किया ना.. तो मैं उस ड्राइवर हाफ़िज़ से भी चुदवाने में नही हिचकिचाऊँगी.. देख क्या रहा है.. मुझे नंगी कर.. नीचे जोर की खुजली हो रही है मुझे.. चाटकर उसे शांत कर.. और फिर तेरे लोडे से धक्के लगाकर तृप्त कर मुझे.. " शीला का एक एक शब्द मदन के लिए वियाग्रा का काम कर रहा था.. शीला की कामुक बातें सुनते ही मदन इंसान से जानवर बन गया.. मादरजात नंगा होकर वो शीला के बदन पर छा गया..

दोनों एक दूसरे को चूमते हुए प्रेमालाप में खो गए.. शीला के सुंदर कटीले बदन पर उसके पति मदन का हाथ फिरने लगा.. उसके सहलाते हुए शीला का पूरा जिस्म खिल उठा.. दोनों अत्यंत उत्कट प्रेम से एक दूसरे के भीतर समाने को बेताब होकर उत्तेजित होते हुए अंग मर्दन करने लगे

मदन: "ओह्ह शीला.. इस उम्र में भी तेरे अंदर कितनी गर्मी है.. मुझे तेरे अलावा कोई ओर इतना मज़ा दे ही नही सकता.. तू एक सम्पूर्ण स्त्री है.. जैसे हर मर्द की अपेक्षा होती है वैसी ही है तू.. शयनेषु रंभा.. का प्रत्यक्ष उदाहरण है तू!!" मदन अपनी पत्नी के उरोजों को पकड़कर.. अंगूठे और पहली उंगली से उसकी निप्पलों को मसलते हुए बोला

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मदन के मस्त कडक लंड को शीला बेताबी से मुठ्ठी में पकड़कर सहला रही थी.. उसके हाथ का हलन-चलन इतना लयबद्ध था की मदन के लंड को स्वर्गीय सुख मिल रहा था.. एक उत्तम कपल था शीला और मदन का

शीला: "मदन, तू दो सालों तक वहाँ क्या कर रहा था? ये तेरा मस्त लंड, बिना चुत के कैसे रह पाया?? "

मदन: "ओह्ह शीला.. तुझे याद करके मैं रोज मूठ मारता था.. और ईमानदारी से कहूँ तो.. जिस घर में, मैं पेइंग गेस्ट था उसके मालिक की पत्नी के साथ मेरे सेक्स-संबंध थे.. बाकी के समय..हम दोनों के जो वीडियोज़ बनाकर ले गया था.. उसे लैपटॉप में देखते हुए.. हाथ से हिलाकर मैं ईसे ठंडा कर देता था"

शीला वास्तव में चोंक गई "क्या?? सच कह रहा है तू? पीयूष को तो ऐसे बोल रहा था तू मुझे वहाँ मिस करता था और मुझे ही वफादार रहा था"

मदन: "शीला, अब तुझसे क्या छुपाना.. !! पर तू भी सोच जरा.. दो साल का समय बड़ा लंबा होता है.. और इतने लंबे समय तक बिना सेक्स के रह पाना कितना मुश्किल होता है ये तू भी जानती है.. और फिर भी.. मैं तो तुझसे वफादार ही रहा था.. पर बात ही कुछ ऐसी हो गई की मुझे उस लैडी से सेक्स संबंध बनाना पड़ा.. मैं अपने आप की वकालत नही कर रहा.. पर मैं तुझे धोखे में रखना नही चाहता हूँ.. मैं तुझसे बेंतहाँ प्यार करता हूँ.. इसलिए मेरा मानना है की एक बार फिसल जाने को धोखा नही कह सकते.. और जो भी हुआ था वो जरूरत के आधार पर हुआ था.. अपने पार्टनर की गैर-मौजूदगी में जब कुदरती इच्छाएं चरमसीमा पर पहुँच जाएँ तब ऐसा होना स्वाभाविक है.. कोई बड़ी बात नही है.. !!"

शीला की छाती पर से एक बड़ा बोझ हल्का हो गया.. अपने कारनामों के चलते जो अपराधभाव जागृत हुआ था वो भांप बनकर उड़ गया.. चुदाई के दौरान ऐसी गंभीर चर्चा का नतीजा ये हुआ की मदन का लंड मुरझा गया.. शीला के हाथों में होने के बावजूद.. ये बात को शीला को राज न आई.. ईसे खड़ा करके ही वो अपने भोसड़े की खाज मिटाने वाली थी.. नरम लोडा स्त्री के किस काम का.. !! उससे तो पेशाब करने के अलावा और कोई काम नही हो सकता.. ज्यादातर औरतों को नरम लोडा देखने का अवसर नही मिलता.. क्योंकि जैसे ही किसी स्त्री के सामने लंड खुलता है.. वो खड़ा हो ही जाता है.. सच बात तो ये है की नरम लंड देखने में भी पसंद नही आता.. वो सुंदर तभी लगता है जब उत्तेजित होकर खड़ा हो जाए.. पुरुष भी होशियार होते है.. वो अपने कपड़े उतारने से पहले ही स्त्री को नंगी कर देते है.. और फिर उस निर्वस्त्र शरीर को देखकर.. सहला कर मसल कर.. अपने लंड को खड़ा करते है और फिर उसे स्त्री के सामने पेश करते है..

वैसे शीला ने मदन के नरम लंड को अनगिनत बार देखा था.. पर उत्तेजित होकर संभोग के लिए बेकरार हो तब नरम लंड देखना.. किसी सदमे से कम नही होता..

कुंवारी नादान लड़कियां जब पहली बार कडक लंड देखती है.. तो उनके दिमाग में यही गलतफहमी हो जाती है की लंड हमेशा ऐसे ही रहता होगा.. कडक और खड़ा.. !! और फिर उन्हे ये ताज्जुब होने लगता है की इतना बड़ा लंड पेंट में फिट कैसे रहता होगा??

शीला को इस बात की तसल्ली हो गई.. की मदन उसे अब भी बेहद प्यार करता है.. वरना गीले भोसड़े को चोदने के बजाए.. इतनी सच्चाई से क्यों अपना जुर्म कुबुलता.. !! और अगर उसने बताया न होता तो शीला को पता भी नही चलने वाला था.. जिस तरह मदन ने खुले दिल से उसे सारी बात बता दी थी.. शीला की नज़रों में मदन का कद और बड़ा हो गया था.. अब ये शीला को तय करना था.. मदन की एक गलती को दिमाग में रखकर सारी ज़िंदगी रोते रहना था या फिर बड़ा मन रखकर.. उसे स्वीकार कर भूल जाना था..

"क्या सोच रही हो शीला?? मुझे पता है.. ये जानकर तुझे बहोत दुख हुआ है.. पर तेरी इन छातियों को छोड़कर मैंने अपने आप को २१ महीने तक अपने आप को किसी तरह कंट्रोल में ही रखा हुआ था.. पर पता नही.. उस दिन मुझे क्या हो गया.. मैं अपने आप को रोक ही नही पाया.. अब मुझे माफ करना या न करना वो तुझ पर निर्भर है.. तू जो सजा देगी मुझे वो मंजूर है.. पर दिल में ये बोझ लिए जीना मुझे पसंद नही.. " इतना अच्छा उत्तेजना सभर वक्त बर्बाद हो रहा था.. शीला गंभीरता से सोचती रही

उसके दिमाग में विचारों का तूफान उमड़ पड़ा था.. अगर मैं मदन को अपने कारनामों के बारे में बता दु तो क्या होगा?? वो क्या सोचेगा मेरे बारे में?? क्या वो मुझे कभी माफ कर पाएगा?? एक गलती उसने की और एक गलती मैंने की.. क्या इस तरह हिसाब बराबर मान सकते है?? शीला के होंठों तक ये बात आ गई.. उसका दिल कर रहा था पिछले दो महीनों के दौरान उसने जो कुछ भी किया वो सब कुछ मदन को बता दे और अपने दिल का बोझ भी हल्का कर ले.. पर गलती का इकरार करना बेहद कठिन होता है.. किसी की हत्या करने से भी ज्यादा कठिन.. जबरदस्त हिम्मत चाहिए अपनी गलती मानने के लिए.. हर किसी के बस की बात नही है.. लाख कोशिशों के बावजूद उसकी जबान नही चली.. मन ही मन वो सब समझती थी.. वो मदन को माफ क्यों न करें? अरे, मदन को माफ करने का उसे हक था ही कहाँ? हक तो तब होता अगर वो भी मदन के प्रति वफादार रही होती.. जब मदन से सौ गुना ज्यादा गलती खुद ही कर चुकी हो.. तब वो किस मुंह से मदन की माफी कुबूल करती??

बेड के एक कोने पर मदन बैठा हुआ था.. उसका लंड ऐसे निस्तेज होकर पड़ा था जैसे किसी काम का न हो.. शीला की नजर उस लंड पर पड़ते ही उसे दया आ गई.. अरे रे.. !! मेरी मौजूदगी में लंड की ये हालत!!! मैंने अच्छे अच्छे लंडों को पलक झपकते ही टाइट कर दिया है और मैं यहाँ पूरी की पूरी नंगी बैठी हूँ फिर भी ये निर्जीव हुआ पड़ा है.. !! ये तो मेरे सुंदर शरीर का.. मेरे स्त्रीयत्व का.. मेरी पत्नीत्व का.. अपमान है..

शीला उठकर किचन में गई और पानी पीकर वापिस आई.. आकर उसने मदन को कंधे से पकड़कर खड़ा किया..

शीला: "मदन.. जिंदगी में ऐसे कई मोड आएंगे जहां पर ऐसी घटनाएं घटेंगी जो हमने सपने में भी ना सोची हो.. " शीला ने जिस तरह उस अंग्रेज जॉन का इंग्लिश लंड अपने भोसड़े में लिया था वो याद करते हुए वो मदन के लंड को हल्के हाथों से मसाज करने लगी..

मदन: "तेरी बात बिल्कुल सही है शीला.. मैंने भी ये सपने में नही सोचा था की मैं किसी विदेश औरत से शरीर संबंध स्थापित करूंगा "

शीला को ऐसा लगा.. जैसे मदन खुद की नही.. पर शीला की बात कर रहा हो..

शीला ने मदन को एक प्रेमभरी चुम्मी देकर अपनी ओर खींचा और फिर से एक बार संभोग का मुक प्रस्ताव उसके सामने रखा.. जिसे मदन ने.. उसके स्तनों को दबाते हुए स्वीकार किया.. दोनों फिर से अपनी पसंदीदा प्रवृत्ति में खो गए.. शीला ने अपनी अनूठी काम कला का उपयोग कर.. अपने पति के चौबीस महीनों के विदेश प्रवास की थकान उतार दी.. उसके लंड के विदेशीपने को अपनी देसी चुत के कामरस से नामशेष कर दिया..

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एक जबरदस्त ठुकाई के बाद.. जब दोनों शांत हुए तब उनके चेहरे खिले हुए ताजे गुलाब जैसे हो गए.. दोपहर को जल्दबाजी में जो कसर रह गई थी वो सब शीला ने एक साथ निकाल दी.. जब शीला आँखें बंद कर मदन के लंड को पूर्ण उत्तेजना से मुख-मैथुन का आनंद दे रही थी तभी उसका दिमाग यह कल्पना कर रहा था की वह विदेश जॉन का लंड चूस रही है.. कभी संजय के लंड की याद आ जाती तब वो हल्के से अपने दांत मदन के लंड पर गाड़ देती और मदन की धीमी चीख निकल जाती.. पर मदन शीला के गदराए जिस्म की मस्ती में कुछ ऐसा खो चुका था की उस बेवकूफ को ये विचार भी नही आया की पिछले दो सालों में.. उसकी गरम पत्नी ने अपनी चुत की आग बुझाने के लिए क्या क्या किया होगा.. !!

शीला अब मदन की कमजोरी बन चुकी थी.. उसके नंगे बदन को देखकर मदन अपनी विचारशक्ति खो बैठता था..

मादरजात नग्न पति-पत्नी.. दुनिया से बेखबर.. एक दूजे में खोए हुए थे और अपनी भूख को संतुष्ट करने के पश्चात कपड़े पहन कर.. तैयार होकर.. मदन शीला की गोद में सर रखकर सोया हुआ था.. अभी भी ऑर्गैज़म के कारण तेज हुई साँसों से शीला की छाती हांफ रही थी.. हर सांस के साथ ऊपर नीचे होते हुए वह मांसल स्तनों की भव्यता को मदन मन भरकर देखता ही रहा..

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शीला: "तुझे मेरे बॉल बहोत पसंद है ना.. मदन!! वो विदेशी औरत के स्तन मेरे स्तन से भी ज्यादा खूबसूरत थे क्या?"

मदन: "शीला, यह विदेशी लोग दिखने में जीतने सुंदर होते है.. उससे कई ज्यादा अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में मानती थी.. अपनी किसी भी इच्छा को बिना छुपायें खुलकर बोलने की क्षमता.. और उस इच्छा को किसी भी हाल में पूरा करने का मनोबल.. उनकी यह बात मुझे बहोत अच्छी लगी.."


शीला: "क्या नाम था उसका? तुम्हारे संबंध शुरू कैसे हुए? ये मत समझना की मैं कोई तहकीकात कर रही हूँ.. ये तो मैं अपनी उत्तेजना के कारण पूछ रही हूँ.. मुझे किसी की सेक्स स्टोरी सुनने में बड़ा मज़ा आता है.. इसलिए तू निःसंकोच सब कुछ बता.. मैं प्रोमिस करती हूँ.. तेरे इस भूतकाल के कारण हमारे वर्तमान पर मैं आंच भी नही आने दूँगी.. मैं तेरी पत्नी हूँ.. अर्धांगिनी.. तेरी खुशी में ही मेरी खुशी है.. तुझे जो हसीन पल भोगने का अवसर मिला.. उसका वर्णन सुनकर ही मैं खुश हो जाऊँगी.. " गोद में सो रहे मदन के होंठों को हल्की सी चुम्मी देते हुए शीला ने कहा
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
 
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