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Super duper sexyyyy updateचाय को गेस की धीमी आंच पर उबालने के लिए रखकर वो बाथरूम में नहाने के लिए चली गई.. नहा-धो कर एकदम टंच माल बनकर आईने के सामने खड़ी हो गई.. मांग में सिंदूर भरते वक्त वो सोच रही थी.. किसके नाम का सिंदूर अपनी मांग में भरूँ ?? मदन के नाम का.. या पीयूष के.. या जीवा के.. या रघु के.. या रूखी के ससुर के नाम का.. या पिंटू के नाम का.. या संजय कुमार के नाम का.. या फिर उस हाफ़िज़ के नाम का.. हम्म या फिर जॉन के नाम का??? जॉन की गिनती ना करे तो चलता क्योंकि वो तो सिर्फ मेहमान था..
"यूं ही कोई.. मिल गया था.. सरे राह चलते चलते.. सरे राह चलते चलते.. "
अपनी हंसी रोक न पाई शीला..
"अकेले अकेले हंस क्यों रही है, शीला?" मदन ने जागकर रिमोट से टीवी चालू किया और म्यूज़िक चेनल लगाई.. टीवी पर कोई गाना बजने लगा
"ये गाना सुनकर मुझे वो विदेशी मेरी और तेरी पौष्टिक चुदाई याद आ गई" शीला ने कहा
"पौष्टिक चुदाई?? वो भला कैसे होती है?" मदन ने आश्चर्य से पूछा
"अरे पागल.. दूध का आहार तो पौष्टिक ही होता है ना.. मेरी का दूध चूसते हुए तूने चोदा था.. तो हो गई ना पौष्टिक चुदाई.. !!" कहते हुए हंसने लगी शीला
शीला ने चालाकी से मदन का ध्यान भटका दिया.. औरतें अपने पतियों को कितनी आसानी से चोदू बना सकती है.. !! दुनिया भर के सारे पति यही सोचते है की उनकी पत्नी सती-सावित्री है.. और वो उनके अलावा किसी और के बारे में नही सोचती.. वैसे पिछली सदी तक ये बात सच भी थी.. पर जैसे ही पश्चिमी हवा का रंग चढ़ने लगा.. तबसे माहोल में तबदीली आ गई है.. और बाकी की कसर मोबाइल ने पूरी कर दी.. एक जमाने में नग्नता चार दीवारों के बीच.. बंद कमरे में देखी जाती थी.. अब तो खुलेआम देखी जा सकती है.. हाईवे पर पार्क गाड़ी के अंदर.. बाग-बगीचे में.. सिनेमा हॉल के अंदर.. हॉटेलों में.. घूमने फिरने की जगहों पर.. पहले के जमाने में स्त्री अपने पति के सामने घूँघट उठाने में भी शरमाती थी.. और आज कल की मॉडर्न लड़कियां.. अपना टॉप उतारने में भी झिझकती नही है.. नौजवान पीढ़ी अपनी उत्तेजना को भी बड़ी ही आसानी से व्यक्त कर लेती है.. वैसे पहले के समय में भी ये सब था पर काफी सीमित मात्रा में.. आज कल जो काम हाईवे पर पार्क गाड़ियों में होता है.. वह पहले खेत की झाड़ियों में होता था.. समय बदला है.. पर हवस वैसे की वैसी ही है.. !!
शीला: "मदन, हमें कविता के मायके जाना है.. वैशाली को लेने.. याद है ना.. !! अगर नही जाएंगे तो लड़की कोहराम मचा देगी.. कविता भी हमारे साथ आने वाली है"
मदन: "कविता कल ही क्यों नही चली गई?? उसे उनके साथ ही जाना चाहिए था.. "
शीला: "अरे पागल.. हमने कविता का घर देखा नही है.. इसलिए वो हमारे साथ आने वाली है.. अकेले जाने में हमें संकोच भी होता.. वो तो बेचारी हमारे भले के लिए रुक गई थी.. अच्छा हुआ.. इस बहाने गाड़ी में उसके और पीयूष के प्रॉब्लेम के बारे में डिस्कस भी कर लेंगे"
मदन: "हाँ, वो भी सही है.. कितने बजे निकलना है? दस बजे निकलें??"
शीला: "अब मुझे क्या पता यार.. की कविता का मायका कितना दूर है? मैं तो दस सालों से अपने खुद के मायके नही गई हूँ.. !!"
"वैसे तेरे मायके में, है भी कौन, जाने के लिए?" शेविंग ब्रश पर क्रीम लगाते हुए मदन ने कहा
शीला: "क्यों नही है.. !! माँ बाप मर गए मतलब सब से रिश्ता कट गया क्या मेरा?? मेरी सगी बहन तो है ना.. !! जब तू विदेश में उस मेरी की चूत में घुसा हुआ था तब उसने ही मेरा खयाल रखा था.. समझा.. !! तुम्हें तो उसे शुक्रिया कहना चाहिए"
मदन: "तेरी बहन मोहिनी को तो मैं गले लगाकर पर्सनली थेंक्स कहूँगा.. आखिर मेरी साली है.. उसके साथ तो मुझे भी ढेर सारी बातें करनी है"
शीला और मदन बातों में व्यस्त थे तभी कविता आई.. उसके हाथ में गरमागरम पकोड़े की प्लेट थी.. "अंकल, मम्मी जी ने खास आपके लिए भिजवाएं है.. एकदम गरम है.. अभी खा लीजिए.. ठंडे हो जाएंगे फिर मज़ा नही आएगा" एकदम सीधे मतलब से कविता ने कही हुई बात का उल्टा अर्थ निकालकर शीला और मदन दोनों हंसने लगे.. उनको हँसता देख कविता को भी एकदम से खयाल आया की उसकी बात का कौनसा मतलब निकाला गया था.. वो भी शरमा गई..
वैसे शीला के साथ तो वो हर किस्म की बात कर सकती थी.. पर मदन के सामने ऐसा करना मुमकिन नही था.. वो मदन को अभी अभी ही तो मिली थी.. जब वो शादी करके आई तब से मदन विदेश था..
शीला ने कविता को आँख मारकर हँसते हुए कहा "हाँ सही बात है.. कोई भी चीज गरम हो तभी मज़ा आता है.. एक बार ठंडी हो जाएँ फिर कोई मतलब नही रहता.."
अब कविता की हालत खराब हो गई.. बेचारी मदन की मौजूदगी में बहोत ही शरमा गई.. एक तो मदन अनजान भी था.. और उससे उम्र में काफी बड़ा भी..
उसने तुरंत बात बदल दी.. "मैँ चलूँ भाभी?? आप खा लेना" शर्म से लाल चेहरे के साथ वो बाहर जाने लगी तभी शीला ने उसे आवाज दी "कहाँ जा रही है.. !! सुन तो ले मेरी बात"
रुक गई कविता.. और मुड़कर शीला की तरफ देखते हुए बोली "हाँ भाभी बताइए.. क्या बात है ?"
"यहाँ आ.. और बैठ जा.. मुझे एक काम है तुझसे " आदेशात्मक आवाज में शीला ने कहा
"भाभी.. गैस पर सब्जी रखकर आई हूँ.. अभी नही बैठ सकती" कविता ने कहा
"नही.. तू बैठ.. मैं फोन कर देती हूँ अनुमौसी को.. वो गेस बंद कर देगी.. यहाँ बैठ जा शांति से.. जब भी आती है, भागी-भागी ही आती है!! " शीला ने हाथ पकड़कर कविता को सोफ़े पर बैठा दिया..
मदन ने शेविंग कर ली थी.. मुंह धोकर वो भी कविता के सामने बैठ गया..
"अब ये पकोड़े खाने में, तू भी हमें कंपनी दे.. " एक पकोड़ा कविता के हाथ में देते हुए शीला ने कहा
शीला: "तेरा मायका यहाँ से कितना दूर है? कितने बजे निकलना चाहिए?"
कविता: "डेढ़-सौ किलोमीटर दूर है.. साढ़े नौ को निकलें तो साढ़े बारह तक पहुँच जाएंगे.. और वहाँ से शाम के ६ बजे निकलेंगे.. तो साढ़े नौ बजे तक घर वापिस.. "
मदन: "हाँ.. वैसे ही ठीक रहेगा "
कविता: 'ठीक है.. तो आप लोग तैयार हो जाइए अंकल.. मैं नौ बजे आ जाऊँगी.. पीयूष ने अपने एक दोस्त की कार मँगवाई है.. आप ड्राइव कर लोगे ना अंकल?"
मदन: "हाँ हाँ.. बड़े आराम से.. विदेश जाकर सब सिख गया हूँ.. कोई भी गाड़ी हो.. चला लेता हूँ"
शीला: "हाँ कविता.. मदन विदेश जाकर सब तरह की गाड़ियां चलाना सिख गया है.. है ना मदन!!" अपने पैर से मदन के पैर के अंगूठे को दबाते हुए शीला ने मदन को आँख मारी.. उसका इशारा उस विदेश मेरी पर था..
कविता शीला की इस द्विअर्थी बात को समझ नही पाई.. उसने कहा "अरे वाह अंकल.. मुझे भी गाड़ी चलाना सीखना है.. आप सिखाओगे मुझे?? पीयूष को बोल बोलकर थक गई पर वो सुनता ही नही है"
मदन: "अच्छा? क्यों नही सिखाता? मना करता है क्या?"
कविता: "अरे, उसे मेरे लिए टाइम ही कहाँ है !! आप भाभी से पूछिए.. जब भी कहूँ तो कहता है की टाइम नही है"
मदन: "ये तो गलत बात है.. अपनी पत्नी को कार चलाना सिखाने का टाइम न हो.. ऐसा कैसे चलेगा??"
शीला: "वो नही सिखाएगा तो कोई और सीखा देगा.. क्यों चिंता करती है?? पर तुझे सीखकर काम क्या है? गाड़ी चलाकर कहाँ जाना है तुझे?"
कविता: "ऐसा नही भाभी.. गाड़ी चलाना आना तो चाहिए.. भले जरूरत हो या ना हो.. कभी भी काम आ सकता है.. वैसे स्टियरिंग और क्लच-ब्रेक के बारे में सब जानती हूँ.. बस गियर चलाना नही आता"
मदन: "गियर चेंज करना सीखना तो काफी आसान है.. और सब गाड़ियों में थोड़ा बहोत ऊपर नीचे होता है.. बाकी गियर सब का एक जैसा ही होता है"
ये आखिरी वाक्य सुनकर शीला के फिर शरारत सूझी.. " समझ गई ना कविता.. !! गियर सब का एक जैसा ही होता है.. सिर्फ हिलाना आना चाहिए" और हंसने लगी
शीला की बात का मतलब कविता समझ गई.. वो गियर की तुलना लंड से कर रही थी.. कविता नाम की नाजुक कली फिर से शरमा गई.. उसने तीरछी नज़रों से मदन की ओर देखा.. मदन ये जानता था की जब दो औरतें बात करती है तब उनके बीच द्विअर्थी संवाद हमेशा होते है.. घर के काम के बोझ तले दबी औरतें.. ऐसी हंसी-ठिठोली से अपना मन हल्का कर लेती है..
कविता: "आप और अंकल तैयार हो जाइए.. मैं तो तैयार ही हूँ.. बस कपड़े बदलने है.. भाभी, मौसम को देखने जो लड़का आने वाला है वो सी.ए. है.. बहोत ही अच्छे खानदान से है.. मौसम के नखरे बहोत है.. देखते है, उसे पसंद आता है या नही.. भगवान करें की दोनों एक दूसरे को पसंद कर लें.. और ये रिश्ता हो जाएँ.. पापा के सर से एक बड़ा टेंशन उतर जाएगा"
मदन: "अरे कविता.. रिश्ता होने पर टेंशन कम नही होता.. बल्कि शुरू होता है.. "
कविता ने हँसकर कहा "हाँ अंकल, आपकी बात बिल्कुल सही है.. "
कविता चली गई और शीला तथा मदन तैयार होकर बाहर निकले.. पीयूष के दोस्त की गाड़ी में मदन ड्राइवर सीट पर बैठ गया.. कविता को अकेला न लगे इसलिए शीला उसके साथ पीछे बैठ गई.. मदन ड्राइव करने लगा.. मस्त म्यूज़िक भी बज रहा था.. तीनों फ्रेश मूड में बातें कर रहे थे.. शीला ने अपने अंदाज में नॉन-वेज बातें करते हुए कविता की पेन्टी गीली कर दी थी.. कविता हंस हँसकर पागल हो गई थी.. इस मज़ाक मस्ती में वो पीयूष के साथ हुए झगड़े को भी भूल गई थी.. मदन भी बीच बीच में जोक सुनाकर हँसाता.. उसका सेंस ऑफ ह्यूमर कविता को पसंद आ गया
"आपका स्वभाव बड़ा ही मशखरा है मदन भैया" अपने शहरे में गाड़ी का प्रवेश होते ही कविता खिल उठी.. और क्यों न खिलती!! मायके की बात सुनकर ही हर स्त्री रोमांचित हो जाती है.. यहाँ तो कविता खुद अपने मायके पहुँचने वाली थी.. जाहीर सी बात है की वो बहोत खुश थी.. शहर के अंदर प्रवेश होते ही मदन ने कविता से कहा
"कविता, तू आगे आजा.. ताकि मुझे रास्ता ढूँढने में मदद कर सके"
मदन के साथ बैठना कविता को थोड़ा सा अटपटा तो लगा पर फिर भी वो आगे की सीट पर आ गई और रास्ता दिखाने लगी.. मदन धीरे धीरे कविता के घर की ओर गाड़ी चलाने लगा.. तभी उसकी नजर रीअर व्यू मिरर पर गई.. पीछे बैठी शीला ने अपना पल्लू गिरा दिया था और अपने दोनों दूध के कनस्तर उजागर कर रखे थे.. देखकर ही मदन को खांसी आ गई.. दोनों की नजर मिरर में एक होते ही शीला ने आँख मारते हुए एक कामुक मुस्कान दी.. मदन भी मुस्कुरा उठा.. शीला मदन को चिढ़ा रही थी
"हम पहुँच गए भैया.. गाड़ी यहाँ साइड में लगा दीजिए.. भाभी.. वो दो मंज़िली इमारत देख रही है?? वही है मेरा घर.. चलिए !!" कहते हुए कविता गाड़ी का दरवाजा खोलकर अपने घर की ओर दौड़ी..
मदन और शीला, कविता के पीछे पीछे घर के अंदर गए
"आइए.. आइए" कविता के माता पिता ने दोनों का स्वागत किया.. कविता ने सबकी पहचान करवाई.. मौसम और फाल्गुनी कहीं नजर नही आ रहे थे.. शीला को कविता के पापा की नजर कुछ ठीक नही लगी.. वह अपने कपड़ों को ठीक करके सोफ़े पर कोने में बैठ गई.. मौसम के पापा सुबोध ने मदन को सोफ़े पर बैठाया और किचन में चले गए..
थोड़ी ही देर में मौसम की माँ, रमिला पानी लेकर आई.. कविता ने अपने आने की खबर पहले ही फोन पर दे दी थी इसलिए उसकी माँ ने खाना तैयार रखा था.. तब तक चाय पानी पीकर सब बातें करने लगे.. तभी मौसम और फाल्गुनी वहाँ आ पहुंची.. उनके पीछे वैशाली और पीयूष ने भी प्रवेश किया.. वो दोनों किसी बात को लेकर हंस रहे थे.. कविता भी अपने कमरे से दौड़ी चली आई.. मौसम को देखने जो लड़का आ रहा था उसे देखने के लिए वो बड़ी उत्सुक थी
मौसम: "अरे दीदी!! आप लोग कब आए?? आइए आइए भाभी.. कैसे हो भैया?" मौसम के चेहरे पर जवानी छलक रही थी..
कविता ने इशारे से मौसम से पूछा.. की वो लड़के से मिली या नही? जवाब में मौसम ने शरमाकर अपनी आँखें झुका ली.. मतलब मीटिंग हो चुकी थी.. वैशाली का ध्यान बार बार मौसम के पापा की ओर जा रहा था.. करीब ५० की उम्र के सुबोधकांत दिखने में प्रभावशाली और हेंडसम थे.. उनके चेहरे पर बेफिक्री साफ नजर आ रही थी.. जब की उनकी पत्नी रमिला बहन, गोरी और भारी कदकाठी वाली.. धीर गंभीर औरत थी.. देखने से ही पता चलता था की रमिला बहन काफी शांत और धार्मिक स्वभाव की थी..
सुबोधकांत की नजर बार बार शीला के मदमस्त जिस्म और चुंबकीय व्यक्तित्व की ओर खींची चली आती.. भँवरा कितना भी खुद को रोक क्यों न ले.. खुश्बूदार फूल देखकर वह आकर्षित हो ही जाता है.. सुबोधकांत काफी रंगीन मिजाज थे और आए दिन बिजनेस टूर के नाम पर अपनी रंगरेलियाँ मना ही लेते थे.. जो आनंद उसकी शांत बीवी उसे कभी न दे पाती.. वह वो बाहर से प्राप्त कर लेते.. ऐसा रंगीन इंसान, शीला को देखकर कैसे कंट्रोल में रहता?? किसी गंभीर या शांत स्वभाव के इंसान का भी, अपनी हरकतों से, एक सेकंड में लंड टाइट करने की शक्ति थी शीला के गदराए जिस्म में.. सुबोधकांत हतप्रभ होकर शीला के सौन्दर्य का रसपान कर रहे थे..
शीला के बिल्कुल पीछे, वैशाली और फाल्गुनी खड़े थे.. सुबोधकांत जब भी शीला की ओर देखते.. उनकी आँखें कम पड़ जाती.. इतना जबरदस्त सौन्दर्य सिर्फ दो आँखों से ही कैसे देखें?? एक तो शीला बैठी थी.. पीछे बड़े स्तनों वाली वैशाली.. और कमसिन बदन वाली फाल्गुनी.. आहाहा
शीला जिस कोने में बैठी थी उस कोने पर, सारे पुष्प, जैसे एक साथ इकठ्ठा हो गए थे.. सामने खड़ी मौसम, अपने बाप की रसीली नजर देखकर शरमा गई.. उसे पता था की उसके पापा शीला भाभी, वैशाली और फाल्गुनी को ताड़ रहे थे.. अब ये बात तो वैशाली को भी नही पता थी की मौसम को अपने पापा की असलियत का पता चल चुका था.. मौसम अपने पापा की हर नजर को बड़ी ही विचित्रता से देख रही थी
शीला समझ गई.. की बाकी सारे मर्दों की तरह, सुबोधकांत भी उसके दोनों स्तनों के बीच की खाई में धँसते जा रहे थे.. उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वो सिर्फ अपनी नज़रों से ही उसके स्तनों को चूस रहे थे.. जैसे भँवरा फूल से रस चूस रहा हो..
मौसम ये सोच रही थी की पापा देख कीसे रहे है? फाल्गुनी को, वैशाली को या शीला भाभी को? इन सारी बातों से बेखबर होकर पीयूष कोने में बैठकर अखबार के पीछे मुंह छुपाकर सोच रहा था.. अरे यार.. मेरी कच्ची कुंवारी साली को चोदने की इच्छा, ख्वाब बनकर ही रह गई.. किनारे पर आते आते मेरी नाव डूब गई.. जवानी में पहला कदम रख रही मौसम ने इतनी जल्दी अपने मांझी को ढूंढ लिया.. !! काश वो ओर थोड़ा तड़पी होती तो पके हुए फल की तरह, मेरी गोद में आ गिरती.. माउंट आबू की उस दुकान के बाहर.. बंद रेहड़ी के पीछे.. कैसे मौसम ने मेरा लोडा पकड़ लिया था..!! आह्ह..
मस्त काले बादल छाए हो.. और बारिश की अपेक्षा में.. छत पर नहाने की तैयारी के साथ पहुंचे.. और तभी चमचमाती धूप निकल आए..तब जो हालत होती है.. वही हालत पीयूष की थी.. और मजे की बात तो यह थी.. की अभी कमरे में मौजूद.. मौसम, शीला, वैशाली और कविता.. सब के स्तनों को वो दबा चुका था.. फाल्गुनी को कभी पीयूष ने उस नजर से देखा नही था.. या यूं कह सकते है की फाल्गुनी के बारे में इस तरह से सोचने का उसे मौका ही नही मिला था.. माउंट आबू के आह्लादक वातावरण में.. उसके हाथों मौसम जैसा जेकपोट लग जाने के बाद.. जाहीर सी बात थी की उसे और किसी में दिलचस्पी नही रही थी.. पर मौसम नाम का प्याला.. लबों से लगने से पहले ही छीन गया था.. इस बात से लगा सदमा.. पीयूष के चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा था और उसी भाव को छुपाने के लिए वो अखबार खोलकर बैठ गया था..
कविता, वैशाली, फाल्गुनी और मौसम.. बगल के कमरे में घुस गए.. चारों लड़कियां अपनी प्राइवेट बातें करने के लिए चली गई.. अब पीयूष के सामने केवल शीला थी.. अखबार को साइड में रखकर उसने शीला की ओर देखा.. आसपास कोई देख तो नही रहा.. ये चेक करने के शीला ने चुपके से पीयूष को आँख मारी.. इस शरारत से पीयूष अपनी सीट पर सीधा हो गया.. यार.. ये कैसी गजब स्त्री है!! शांत बैठे आदमी को एक पल में उत्तेजित करने की अनोखी कला थी शीला में..
मदन और सुबोधकांत, बिजनेस और राजनीति से जुड़ी बातें कर रहे थे.. एक बात मदन के ध्यान में आई.. बातों के बीच में.. सुबोधकांत बार बार शीला की ओर देख लेते थे.. मदन मन ही मन में हंस पड़ा.. हाय मेरी शीला.. तेरे जादू से बच पाना नामुमकिन है.. अपनी खुशकिस्मती पर आनंद प्रकट करते हुए मदन वापिस सुबोधकांत को बातों में उलझा देता..
पीयूष बेचैन हो रहा था.. बार बार पूछने के बावजूद मौसम ने उसे ये नही बताया था की जिस लड़के से उसकी मीटिंग हुई थी, वो उसे कैसा लगा था!!! आखिर परेशान होकर वो उस कमरे की ओर गया जहां वो चारों लड़कियां बैठी हुई थी.. तभी शीला भी किचन में जाने के लिए खड़ी हुई और बीच पेसेज में उसने चुपके से पीयूष का लंड दबा दिया और किचन में चली गई.. पीयूष को पता नहीं चल रहा था की शीला भाभी उसे क्यों उकसा रही थी.. उनके विचार को दिमाग से झटक कर वो कमरे की तरफ गया.. कमरे में प्रवेश करते ही उसके कानों ने सुना..
कविता मौसम को सब कुछ पूछ रही थी और मौसम शरमाते हुए धीमी आवाज में उत्तर दे रही थी..
"आइए जीजू" पीयूष को देखते ही फाल्गुनी ने कहा.. इन चारों ने पूरे बेड पर कब्जा जमाया हुआ था.. बैठने की जगह नही थी.. फाल्गुनी खड़ी होकर बोली "मैं आंटी को किचन में मदद करने जा रही हूँ.. आप यहाँ बैठिए जीजू.. " पीयूष वहाँ बैठ गया
फाल्गुनी ने किचन में जाते हुए सुबोधकांत की तरफ देखा... सुबोधकांत ने भी मदन के साथ बातों में व्यस्त होने के बावजूद फाल्गुनी को एक हल्की सी स्माइल दी..
उधर कमरे में.. चर्चा-विचार के बाद.. मौसम अपना निर्णय सब को बताने के लिए तैयार थी.. पीयूष अपने नाखून चबा रहा था..
कविता: "मौसम, जल्दी जल्दी बता.. क्या क्या बातें हुई उसके साथ? तुझे कैसे लगा? पसंद आया? क्या सोचा तूने फिर?"
पीयूष के दिल की धड़कनें तेज हो गई.. अब क्या कहेगी मौसम? वो जो कहने वाली थी उसकी अपेक्षा से ही पीयूष का दिल बैठा जा रहा था ..
पीयूष मौसम के तंदूरस्त उभारों को ऊपर नीचे होते हुए देखता रहा.. उसके ड्रेस से छोटी सी क्लीवेज भी नजर आ रही थी.. यार.. सिर्फ एक रात के लिए इस जोबन का लुत्फ उठाने का मौका मिल जाए, बस.. !! ये दोनों सुंदर नाजुक स्तनों के बीच की लकीर में लंड घिसने का अवसर मिलें तो जीवन सफल हो जाएगा.. ये हाथ से चली जाएँ इससे पहले सिर्फ एक मौका मिल जाएँ.. बस.. !! मौसम उस चूतिये को रिजेक्ट कर दे तो मज़ा ही आ जाएँ.. !!
जब फाल्गुनी कमरे से बाहर निकली तब वैशाली भी उसके पीछे गई.. फाल्गुनी को किचन में जाते देख वो वापिस लौट आई और बेड पर पीयूष के पीछे ऐसे बैठ गई की उसके घुटनें पीयूष को छुने लगे.. पर इस स्पर्श से पीयूष को कोई फरक नही पड़ा.. कहाँ से पड़ता?? मस्त रसगुल्ले की चासनी को वो चूस पाता इससे पहले ही हाथ से गिर गया.. !!
"लड़का तो अच्छा है, दीदी!!" मौसम ने कहा "सी.ए. की परीक्षा पास कर ली है.. एकाध महीने में डिग्री भी आ जाएगी.. बहोत ही समझदार है"
"दिखने में कैसा है? क्या नाम है उसका?" कविता ने पूछा
मौसम: "दिखने में तो बड़ा हेंडसम है यार!!" मौसम के एक एक शब्द से पीयूष के दिल पर आरी चल रही थी..
कविता: "जरा खुलकर बता.. मुझे सब कुछ जानना है उसके बारे में"
वैशाली अपने घुटने को पीयूष की पीठ पर रगड़ रही थी.. इस बात से अनजान के पीयूष को आज उसके हरकतों से कोई फरक नही पड़ रहा था.. कविता का सारा ध्यान मौसम की ओर था इसलिए उसे वैशाली की छेड़खानियाँ दिख नही रही थी.. वो तो मौसम के आने वाले सुनहरे कल के सपने देख रही थी..
वैशाली: "हाँ यार.. जरा विस्तार से बता.. हेंडसम है.. पर पर्सनालिटी कैसी है? तेरे साथ उसकी जोड़ी कैसी लगती थी?"
वैशाली जैसे जानबूझकर पीयूष के घावों पर नमक छिड़क रही थी.. उसने खुद पीयूष की मौसम के लिए लट्टूगिरी देख रखी थी माउंट आबू में.. इसीलिए वो चाहती थी की मौसम नाम का कांटा.. उसके और पीयूष के बीच से जल्द से जल्द हट जाए.. और पीयूष का ध्यान फिर से उसकी ओर आकर्षित हो.. कितनी ईर्ष्या होती है औरतों में.. !!
मौसम: "दीदी.. उसका नाम तरुण है.. जीजू जैसा ही दिखता है.. उनके जैसी ही पर्सनालिटी है.. कद काठी में भी सैम टू सैम.. मुझे तो वो पसंद है.. अब प्रश्न ये है की क्या मैं भी उसे पसंद आती हूँ या नही.. !! अगर उसे पसंद हो तो मेरी तरफ से हाँ है.. !!"
पीयूष का सारा शरीर एकदम ठंडा पड़ गया.. काटो तो खून ना निकले.. पीयूष के प्रेम की छत्री का कौवा बन गया था
वैशाली: "कैसी बात करती है तू मौसम? तुझ जैसी सुंदर लड़की को भला कौन रिजेक्ट कर सकता है?? क्यों ठीक कहा ना मैंने पीयूष!! बोलता क्यों नही है.. क्या तू ये नही चाहता की मौसम का रिश्ता किसी अच्छे लड़के से हो जाए!!"
"अरे.. नही नही.. ऐसा कुछ नही है.. मैं कोई उसका दुश्मन थोड़े ही हूँ.. !! पर मुझे विश्वास है.. की अगर उस लड़के ने रिजेक्ट किया भी तो मौसम को उससे कई गुना अच्छा लड़का मिल जाएगा.. मौसम तो लाखों में एक है.. " अपने सारे गम को छुपाकर.. कृत्रिम मुस्कुराहट धारण करते हुए पीयूष ने कहा.. एक एक शब्द बोलते हुए, कितना कष्ट हो रहा था, वो सिर्फ पीयूष ही जानता था..
कविता: "तुम दोनों की मीटिंग कितने वक्त तक चली? कहाँ मिले थे तुम दोनों?"
मौसम: "वो मुझे सुबह दस बजे लेने आया था.. फिर हम होटल रंगोली में गए और कॉफी पी.. करीब दो घंटों तक हम वहीं थे.. बहोत सारी बातें की.. आप लोग आए उससे कुछ देर पहले ही वो मुझे छोड़ गया.. वो उनके किसी रिश्तेदार के घर रुके है.. शायद दोपहर के बाद फिर से मिलना होगा.. "
रमिला बहन ने कमरे में आकर कहा "खाना तैयार है.. चलिए सब.. !!"
उस आनंद भरे वातावरण में सब डाइनिंग टेबल पर जा बैठे.. पूरा घर उन लड़कियों की किलकीलारियों से गूंज रहा था..
रमिला बहन और सुबोधकांत ने सब को आग्रह कर खिलाया.. सब खुश थे.. सिवाय पीयूष के.. !! खाना खतम हुआ और सब खड़े हुए
तभी एक फोन आया और बात करके सुबोधकांत ने कविता से कहा "अरे कविता बेटा.. लड़के वालों का फोन था.. वह एक बार ओर मीटिंग करना चाहते है.. उनके रिश्तेदार के घर बुलाया है.. आप सब में से कौन कौन जाएगा मौसम के साथ?"
रमिला बहन: "अरे कविता है ना.. वो और फाल्गुनी साथ जाएंगे"
सुबोधकांत: "अरे.. सब चले जाएंगे तो यहाँ मेहमानों को अकेला महसूस होगा.. एक काम करते है.. पीयूषकुमार को गाड़ी लेकर भेज देते है.. साथ में कविता और मौसम.. फाल्गुनी को यही रहने दो.. " फाल्गुनी का चेहरा शर्म से लाल हो गया.. उसका चेहरा देखकर मौसम और वैशाली समझ गए की सुबोधकांत अपनी नजर से फाल्गुनी को दूर रखना नही चाहते थे.. लेकिन किसी और को इस बारे में कुछ पता नही चला
"आप चिंता मत कीजिए पापा.. मैं मौसम के साथ चला जाऊंगा.. और उसे वापिस भी सही सलामत ले आऊँगा.. मेरे होते हुए आपको किसी चिंता करने की कोई जरूरत नही है" पीयूष ने कहा
ये सब सुन रही वैशाली सोच रही थी.. की यहाँ इतनी भीड़ भाड़ में सुबोधकांत के बारे में कुछ पता तो चलने वाला था नही
वैशाली: "एक काम करें?? अगर आपको प्रॉब्लेम न हो तो मैं भी मौसम के साथ जाऊँ? हो सकता है की मौसम को मेरी सलाह की जरूरत पड़ जाए.. !!"
मौसम: "हाँ हाँ वैशाली.. तुम साथ चलो.. फाल्गुनी को यही रहने दो.. तुम साथ रहोगी तो अच्छा रहेगा"
मौसम, वैशाली और कविता को गाड़ी में बिठाकर पीयूष ले चला..
गाड़ी चलाते हुए पीयूष.. मिरर से अपनी दोनों प्रेमिकाएं.. मौसम और वैशाली को बेबस नज़रों से देख रहा था.. पर फिलहाल देखने के अलावा वो और कुछ कर पाने की स्थिति में नही थी.. कविता जो उसके बगल में बैठी थी..
जिस गति से कार दौड़ रही थी उससे दोगुनी गति से पीयूष का दिल धडक रहा था.. क्या होगा.. !!! जो होगा देखा जाएगा.. !!
गाड़ी तरुण के रिश्तेदार के घर के पास आ पहुंची.. मौसम के गाल कश्मीरी सेब की तरह लाल हो गए.. कविता और वैशाली भी बेहद उत्सुक थे.. तरुण को देखते ही कविता और वैशाली तो ऐसा ही मान बैठे की यही है मौसम का होने वाला पति.. सपनों का राजकुमार.. !!
वैशाली ने कुहनी मारकर कविता को कहा "कितना हेंडसम है यार!! एकदम डैशिंग है.." कविता ने भी मौसम की आँखों में देखकर हामी भरी.. की वो जैसा बता रही थी.. लड़का वैसा ही था
तरुण दिखने में सौम्य.. और स्वभाव से शांत था.. उसके चेहरे पर चार्टर्ड अकाउन्टन्ट वाली गंभीरता भी थी.. कविता ने कुछ सवाल पूछे.. वैशाली ने भी दो-तीन सवाल पूछ लिए.. अब बारी पीयूष की थी.. पर वो बेचारा क्या पूछता..!! उसकी हालत बस वही जानता था.. विनेश फोगाट जैसी हालत थी उसकी.. १०० ग्राम वज़न के कारण मेडल गंवाना पड़ रहा था.. एक-दो सवाल पूछकर पीयूष कमरे से बाहर चला गया.. बेचैनी बर्दाश्त के बाहर हो रही थी.. कविता और वैशाली भी दोनों को बातें करने अकेला छोड़कर कमरे से बाहर निकले..
मौसम और तरुण की मीटिंग चल रही थी.. उस दौरान.. कविता, मौसम और पीयूष बाहर सड़क पर टहलने लगे.. तीनों की बातों का टोपिक एक ही था.. मौसम.. !! काफी देर हो गई और फिर भी मौसम घर के बाहर नही निकली थी
पीयूष का मन प्रेशर कुकर की तरह सीटियाँ बजा रहा था.. भेनचोद चूतिया तरुण.. क्या कर रहा होगा अंदर मौसम के साथ?? मन ही मन तरुण को गालियां देते हुए.. ना चाहते हुए भी वैशाली और कविता की बातों में शामिल हो रहा था..
वैशाली: "यार लगता है इन्हें और देर लगेगी.. यहाँ खड़े खड़े क्या करेंगे हम लोग? पीयूष, तू एक काम कर.. तू हम दोनों को वापिस घर छोड़ दे.. और फिर मौसम को लेने आ जाना.. पता नही मीटिंग और कितनी देर तक चलेगी.. मैं तो बोर हो रही हूँ"
कविता: "यार उसकी ज़िंदगी का सवाल है.. पूछ लेने दे.. कर लेने दे दोनों को बातें.. शादी करना कोई मज़ाक तो है नही.. चलने दे उनकी मीटिंग.. पीयूष, तू हमें घर छोड़ दे.. और फिर मौसम को लेने आ जाना.. तब तक शायद उनकी मीटिंग खतम हो जाएगी.. "
दोनों को लेकर पीयूष ने गाड़ी घुमाई और उन्हें कविता के घर ड्रॉप करने के बाद वापिस आ गया..
वो बरामदे में लगे झूले पर बैठे बैठे सोच रहा था.. कैसी ड्यूटी आ गई सर पर? जिस सेक्सी जिस्म को मैं चोदने के ख्वाब देख रहा था.. वो अंदर बंद कमरे में अनजान लड़के के साथ बैठी है.. और मैं यहाँ इंतज़ार करते हुए अपनी गांड मरवा रहा हूँ.. इससे तो मर जाना बेहतर होगा.. अपने आप पर गुस्सा आ रहा था पीयूष को.. प्रेमी बनने के चक्कर में अपनी साली का चौकीदार बन गया था वोह.. पर करता भी क्या!! मौसम अब उससे बहोत दूर चली जाने वाली थी.. !!
"कहाँ गए दीदी और वैशाली? चलिए जीजू.. चलते है.. बहोत देर हो गई.. मम्मी पापा चिंता कर रहे होंगे.. !!"
पीयूष: "उन दोनों को तो मैं घर छोड़ आया.. बहोत देर हो गई इसलिए.. फिर तुझे लेने वापिस आया.. चल चलते है घर.. !!"
दोनों फटाफट कार में बैठ गए.. कविता का घर पहुँचने में लगभग बीस मिनट का समय लगता था.. तभी मौसम पर उसके पापा का फोन आया और वो पूछने लगे की और कितनी देर होगी..!! जवाब में मौसम ने कहा की बस आधे घंटे में पहुँच जाएंगे..
थोड़ी देर तक पीयूष और मौसम दोनों मौन ही रहे.. मौसम जानती थी अपने जीजू के दिल का हाल.. !!
आखिरी मौसम ने चुप्पी तोड़ी.. "जीजू.. उस गार्डन के पास गाड़ी रोकिए"
रोड के उस तरफ सुंदर बगीचा था.. कार खड़ी होते ही मौसम उतर गई.. और साथ में पीयूष भी.. !!
गार्डन के अंदर जाकर एक कोने में खड़े होकर मौसम ने कहा "जीजू, उस दिन माउंट आबू में हम दोनों के बीच जो कुछ भी हुआ उसके बाद मैं आपकी और जबरदस्त आकर्षण महसूस कर रही हूँ.. एक तरफ आपकी ओर ये खिंचाव.. दूसरी ओर दीदी के साथ धोखा करने का अपराधभाव.. और तीसरी ओर ये तरुण.. !!! मैं क्या करूँ मुझे कुछ समझ में नही आता.. !!"
पीयूष: "मौसम, दिल पर किसी का जोर नही चलता.. दिल को कितना भी समझा लो पर वो नही मानता.. मैं भी क्या करूँ? मेरी हालत भी खराब है.. क्या मैं तुझे कभी पा नही सकूँगा?? ये रिश्ता हो गया तो तू तरुण की होकर रह जाएगी.. हमारी लव स्टोरी बस यही तक थी " बोलते बोलते पीयूष की आँखों से आँसू गिरने लगे.. अब तक जिस दर्द को वो छुपा रहा था.. व्यक्त हो गया
मौसम ने अपने रुमाल से पीयूष की आँखें पोंछ ली.. पूरा रुमाल गीला हो गया.. पीयूष की इस स्थिति में दोनों घर जाते को सब को पता चल जाने का डर था..
बड़े भारी दिल से उसने पीयूष के हाथ को अपने हाथ में लेकर कहा "जीजू.. मैं भी तो इस कशमकश से गुजर रही हूँ.. !! पर वास्तविकता को सवेकार्ने के अलावा और कोई चारा भी तो नही है.. मैं आप से शादी तो कर नही सकती.. आप को चाहे कितना भी प्यार करूँ.. ब्याह तो मुझे किसी और के साथ.. कभी ना कभी तो करना ही होगा.. !! तो फिर तरुण से बेहतर और कौन हो सकता है.. !! प्लीज आप मेरी हालत को समझने की कोशिश कीजिए.. !!"
पीयूष: "तेरी बात मैं समझ रहा हूँ.. मैं ही बेकार में हवा को मुठ्ठी में कैद करने की जिद ले बैठा.. बट आई लव यू मौसम.. बस यही बात मुझे खाए जा रही है की तू मुझे एक बार भी नही मिली.. "
मौसम: "जीजू प्लीज.. आप उदास मत हो.. मैं आपको प्रोमिस करती हूँ.. आप से मैं एक बार एकांत में जरूर मिलूँगी.. पर सिर्फ एक बार.. !! और वो भी मेरी सगाई से पहले.. ताकि मुझे तरुण को धोखा देने का दुख न हो.. आई ऑलसों लव यू जीजू.. अब हम घर जाए उससे पहले आप नॉर्मल हो जाओ ताकि किसी को शक न हो.. अब इससे ज्यादा मैं आपकी उदासी के लिए कुछ नही कर सकती.. प्लीज" कहते हुए मौसम रोने लगी.. उसे रोती देख पीयूष अपनी उदासी भूल गया
पीयूष: 'मौसम, तू रो मत यार.. मुझे तेरी बात मंजूर है.. मुझे पता है की शादी तो तुझे किसी ओर से करनी ही होगी.. और तू मुझे इससे ज्यादा कुछ दे नही पाएगी, ये भी समझता हूँ.. चल रोना छोड़.. अब चलते है वापिस"
दोनों बाहर निकलें.. स्टोर से मिनरल वॉटर की बोतल लेकर उन्होंने मुंह साफ किया.. और फ्रेश होकर घर की ओर निकल गए.. पीयूष मन ही मन खुश हो रहा था की आखिर मौसम ने उसके प्यार की लाज रख ली.. एक बार के लिए हाथ में आएगी जरूर..
गाड़ी कविता के घर पास पहुंची.. गाड़ी से उतरने से पहले मौसम ने आसपास देखा.. फिर उसने पीयूष के होंठों पर किस कर दी..और उसका हाथ अपने मस्त स्तनों पर रख दिया.. कडक मांसल गोले हाथ में आते ही पीयूष के अंदर का पुरुष जाग उठा.. जोर से स्तनों को मसलते हुए पीयूष ने मौसम के होंठों पर एक मजबूत चुंबन दिया.. एक पल के लिए गाड़ी के अंदर हवस और उत्तेजना की तेज आंधी से उठने लगी..
किस तोड़कर पीयूष ने अपने लंड का उभार मौसम को दिखाया और बोला "ये देख मौसम.. तेरी चूत में घुसने के लिए कितना उतावला हो रहा है.. और तू मुझे रोता छोड़कर शादी करने चली है.. !!"
पीयूष के लंड के उभार को प्यार से अपनी हथेली से दबा दिया.. "सब्र का फल मीठा होता है.. थोड़ा इंतज़ार कीजिए जनाब" शायराना अंदाज मे मौसम ने कहा
पीयूष: "मौसम, मुझे तेरे बूब्स चूसने है.. यहाँ आसपास कोई नही है.. अपना टॉप थोड़ा सा ऊपर कर.. मैं फटाफट चूस लूँगा"
मौसम ने शरमाते हुए अपना टॉप ऊपर कर दिया.. मदमस्त दूधरंगी कडक स्तन बाहर निकल आए.. एक स्तन को हाथ से मसलते हुए दूसरे स्तन को झुककर चूसने लगा पीयूष.. निप्पल पर जीभ का स्पर्श होते ही मौसम बेकाबू हो गई.. और पीयूष का सर अपनी छाती से दबाकर आहें भरने लगी..
एक दो मिनट तक ये खेल चला.. मौसम ने अपने स्तनों को फिर से टॉप के अंदर पेक कर दिया.. पीयूष ने भी अपने बाल और चेहरे को ठीक कर लिया.. पीयूष अब गाड़ी का दरवाजा खोलकर बाहर निकलने ही जा रहा था तभी मौसम ने उसका हाथ पकड़कर रोक लिया
मौसम: "जीजू मुझे आपका वो.. देखना है एक बार.. दिखाइए ना प्लीज!!"
पीयूष: "ओह माय गॉड मौसम.. तेरी ये बातें सुनकर.. मन करता है की अभी गाड़ी में तुझे भगा ले चलूँ.. कहीं दूर ले जाकर घंटों तक बस प्यार करता रहूँ.. फिर आगे जो होना हो सो हो.. !!"
पीयूष की जांघ पर हाथ फेरते हुए मौसम ने कहा "प्लीज जीजू.. वक्त बर्बाद मत कीजिए.. जल्दी बाहर निकालिए.. मुझे देखना है.. इससे पहले कोई आ जाए यहाँ.. !!"
ड्राइवर सीट पर बैठे हुए खड़े लंड को टाइट जीन्स से बाहर निकालना बड़ा मुश्किल काम है.. बड़ी मुसीबत से पीयूष ने अपना विकराल लंड बाहर निकाला.. लंड को देखकर मौसम कांपने लगी.. "बाप रे.. जीजू.. ये तो कितना बड़ा है.. !!" कहते हुए उसने लंड को मुठ्ठी में लेकर पकड़ा और चमड़ी को नीचे उतारते ही लाल सुपाड़ा बाहर निकल आया "इशशशश.. जीजू, कितना कडक है ये यार" मौसम का हाथ अब और मजबूती से लंड को जकड़े हुए था.. दिन के उजाले में ये सारा खेल चल रहा था
तभी पीछे से ऑटो-रिक्शा के आने की आवाज आई.. मौसम ने लंड छोड़ दिया.. और पीयूष ने अपने सांप को फिर से पेंट के अंदर डाल दिया.. फटाफट गाड़ी से निकलकर दोनों घर के अंदर घुस गए
घर पहुंचते ही मौसम ने चरण स्पर्श करके सब बड़ों का आशीर्वाद लेते हुए कहा "मुझे लड़का पसंद है और उसकी भी हाँ है.. " सुनते ही मौसम के पापा सुबोधकांत ने कहा "बहोत अच्छा हुआ.. " उनकी आँखें भर आई.. बेटी अब पराये घर जाने वाली थी इस बात का दर्द उनके चेहरे पर साफ झलक रहा था.. ये देखते ही रमिला बहन की आँखों से भी आँसू छलकने लगे..
"अरे मम्मी, अभी तो केवल शुरुआत है.. आप तो अभी से रोने लगे?? मौसम को बिदा करते वक्त क्या होगा फिर??" अपनी माँ की पीठ को सहलाकर उन्हें सांत्वना देते हुए कविता ने कहा.. उसकी आँखें भी नम हो गई थी
तभी फलगुगनी सब के लिए चाय लेकर आई.. सब अपनी जगह बैठ गए.. फाल्गुनी ने सुबोधकांत के हाथ में चाय का कप दिया तब सुबोधकांत ने उसका हाथ छु लिया और ये वैशाली और मौसम दोनों ने नोटिस किया..
सुबोधकांत: "मदन जी, आप हमारे घर पहली बार पधारे है.. अब वापिस जाने की जल्दी मत करना.. !! मैं आपको रात में ड्राइविंग करके जाने नही दूंगा.. मैं अभी ऑफिस जा रहा हूँ.. आप सब पीयूष कुमार के साथ शहर घूम लीजिए.. शाम को खाना खाकर आप रात को यहीं रुक जाना.. इसी बहाने कविता भी एक पूरा दिन हमारे साथ रहेगी.. !!"
मदन ने बहोत आनाकानी की पर रमिला बहन और सुबोधकांत ने एक न सुनी.. आखिर उन्हें मानना पड़ा.. तय ये हुआ की पीयूष गाड़ी में कविता, मदन, शीला और फाल्गुनी के साथ घूमने जाएगा.. मौसम नही जाने वाली थी.. शायद शाम को फिर से तरुण का कॉल आ जाए.. !! पर तभी फाल्गुनी ने कहा "मैं साथ नही चलूँगी.. मुझे घर जाना होगा"
सुबोधकांत के पीछे पीछे फाल्गुनी भी बाहर निकल गई.. ये देखते ही वैशाली के दिमाग में शक का कीड़ा जाग गया.. कहीं दोनों साथ तो नही गए?!! जो विचार वैशाली को आया वही बात मौसम के दिमाग में भी आ गई.. उसने तुरंत एक आइडिया आया॥
"जीजू, हम सब एक गाड़ी में नही आ पाएंगे.. आप एक काम कीजिए.. आप कविता दीदी, मदन भैया और शीला भाभी को घूमने ले जाइए.. वैशाली यहाँ मेरे साथ ही रुकेगी"
सुनते ही वैशाली की आँखों में चमक आ गई.. मौका मिले तो वो फाल्गुनी का पीछा करना चाहती थी.. पर उसने इस शहर में कुछ देखा नही था.. अगर मौसम से पूछती तो उसे शक हो जाता.. क्या करूँ? मस्त चांस था दोनों को रंगेहाथों पकड़ने का.. पर इस अनजान शहर में वो कहाँ जाती?
कविता, मदन और शीला को लेकर जैसे ही पीयूष की गाड़ी निकली.. मौसम ने अपनी स्कूटी बाहर निकाली "मम्मी, मैं और वैशाली थोड़ा सा घूम कर आते है"
मौसम ने स्कूटी को स्टार्ट किया और वैशाली को पीछे बैठ जाने का इशारा किया.. माउंट आबू में लेस्बियन सेक्स के बाद, मौसम वैशाली के साथ काफी खुल चुकी थी.. वैशाली ने अपने मस्त बबले मौसम की पीठ के साथ दबा दिए..
"अरे यार, तूने तो ऐसे अपनी छाती चिपका दी, जैसे किसी मर्द के पीछे बैठी हो" स्कूटी को मेइन रोड पर लेते हुए मौसम ने कहा.. जवाब में वैशाली ने मौसम को कमर से पकड़कर दबाते हुए कहा "फाल्गुनी को भी साथ ले लेते तो और मज़ा आता.. है ना मौसम?"
वैशाली के दिमाग से फाल्गुनी और सुबोधकांत हट ही नही रहे थे.. इधर मौसम का दिमाग भी घूम रहा था..
मौसम तेजी से स्कूटी दौड़ा रही थी.. शहर से बाहर जाते हाइवे की ओर चलाने लगी..
वैशाली: "कहाँ लेकर जा रही है? हाइवे पर कौन सा काम है तुझे? कहीं बाजार में ले चल.. थोड़ी शॉपिंग कर लेते.. यहाँ क्या देखना है?"
मौसम: "तू चुप बैठ वैशाली.. मुझे कुछ चेक करना है"
सुनकर वैशाली चोंक गई.. ईसे क्या चेक करना है? कहाँ ले जा रही है ये?
मौसम: "हाँ वैशाली.. जरा गंभीर और सीक्रेट बात है"
वैशाली को बड़ा आश्चर्य हो रहा था.. कहीं मौसम को फाल्गुनी और उसके पापा के बारे में पता तो नही चल गया होगा.. !! उस दिन जब फाल्गुनी के साथ बाथरूम में बातें हुई थी तब कहीं मौसम ने सुन तो नही ली थी!! या फिर मौसम किसी और काम से ले जा रही हो?? पर किसी और काम के लिए वो मुझे क्यों साथ ले जा रही है?? पर लगता तो यही है की मौसम को पता चल गया है.. और वो ये भी जान चुकी है की मुझे इस बात का पता पहले से है.. इसीलिए तो मुझे साथ लिया है..!!
Ek pal mein kisi ko bhi uttejit karne ki kshamta hai heroine Shila mein