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Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

Sanju@

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बड़ी मुश्किल से पटरी पर आई हुई उसकी और कविता की प्रेम-गाड़ी को दूसरा कोई अवरोध न आए इसलिए पीयूष ने अपने दिमाग से मौसम के खयालों को फिलहाल निकाल फेंका.. और कविता के साथ बातें और मस्ती करते हुए घर की ओर जाने लगा..

कविता और पीयूष की हंसी खुशी घर के अंदर प्रवेश करता देख अनुमौसी के दिल को चैन मिला.. वो सोच रही थी.. शीला को कोई भी केस हाथ में दो तो वो उसका हल निकाल ही लेती है.. कितने अच्छे लग रहे है ये दोनों.. इसी कारण वश मौसी ने कविता को शीला और मदन के साथ मौसम के घर भेजा था.. उसे यकीन था की शीला कुछ न कुछ करके दोनों का मिलाप करवा ही देगी.. वैसे शीला का तो इसमें कोई हाथ नहीं था.. पर मौसी को ये कहाँ पता था.. !! बिना कुछ किए ही शीला को क्रेडिट मिल गया..

अनुमौसी ने मस्त कडक चाय बनाई सब के लिए.. चाय पीकर वैशाली, शीला और मदन अपने घर चले गए.. कविता किचन में बर्तन माँजने चली गई और पीयूष सीधा अपने बेडरूम मे आ गया..

बेडरूम में पहुंचते ही उसने सब से पहला काम मौसम को मेसेज करने का किया "ब्लेन्क मेसेज क्यों भेजा था जान.. !! हम बस अभी अभी घर पहुंचे.. !!" काफी देर तक मौसम का रिप्लाइ नहीं आया और पीयूष परेशान होकर बैठा रहा

फिर उसने अपने ससुराल की लेंडलाइन पर फोन किया.. फोन रमिला बहन ने उठाया.. पीयूष ने उन सब के पहुँच जाने की खबर दी.. उसका इरादा तो मौसम के बारे में जानने का था.. पर वो पूछ नहीं पाया और फोन रख दिया.. एक महीने के बाद जब पीयूष बेड पर पड़ा तो उसे मौसम की जुदाई का एहसास हुआ.. पिछले के महीने से.. वो किसी न किसी बहाने मौसम के आसपास ही रहता.. और उसके सुंदर चेहरे को देखकर खुश रहता.. पर अब मौसम नहीं थी.. पीयूष ने मोबाइल फोन की गॅलरी खोली और मौसम की तस्वीरों को देखता ही रहा.. उसे ऐसा लग रहा था जैसे तस्वीर से भी मौसम उसकी उदासी का मज़ाक उड़ा रही हो.. गुस्से में पीयूष ने फ़ोटो डिलीट कर दिया..

और तभी मौसम का रिप्लाइ आया.. "जीजू.. आई मिस यू अ लॉट.. आप के जाने के बाद मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा.. !!" मौसम का मेसेज पढ़ते ही पीयूष खुश हो गया.. एक मिनट पहले जो उदासी के बादल उसके चेहरे पर छाए थे वह सारे छट गए.. वो खड़ा होकर बाहर निकल रहा था तभी मौसी ने उसे टोका.. "कहाँ जा रहा है? सफर कर के आया है.. थोड़ा सा आराम कर ले"

"अभी आया मम्मी.. एक दोस्त का फोन था.. उसे कुछ काम है इसलिए मिलने बुलाया है.. " कहते हुए तेजी से बाहर निकल गया.. गली के नुक्कड़ पर आकार उसने मौसम को फोन किया

"हैलो.. " आहहहा.. मौसम की सुरीली आवाज को सुनकर पीयूष के मन का मोर नाचने लगा..

"मौसम.. आई लव यू यार.. तेरे बिना एक पल भी मेरा दिल नहीं लगता.. कैसी है तू?"

जीजू के मुंह से "आई लव यू" सुनकर मौसम के रोंगटे खड़े हो गए.. उसका रोम रोम पुलकित हो उठा

"मौसम.. मैं बस थोड़े समय के लिए ही बाहर निकला हूँ.. कविता मुझे ढूंढ रही होगी.. अभी ज्यादा बातें नहीं हो पाएगी.. कल ऑफिस जाने से पहले मैं तुझे कॉल करूंगा.. और तुझे अपना वादा तो याद है ना.. !! भूल मत जाना" पीयूष ने एक ही सांस में बहुत कुछ कह दिया

"याद है जीजू.. आप अभी घर जाइए.. कल बात करेंगे.. बाय जीजू"

"बाय जान.. लव यू.. " पियूँ ने फोन कट कर दिया और कॉल-लॉग से मेसेज और कॉल को डिलीट कर दिया और घर आ गया..

साढ़े सात बजे के करीब पीयूष को मदन का फोन आया "खाना खा लिया हो तो वॉक पर चलें??"

पीयूष: "हाँ चलना तो है.. पर अभी खाना बाकी है.. थोड़ी देर रुकिए.. मैं अभी खाकर आता हूँ" मदन के साथ संबंध आगे बड़ाने का ये अच्छा मौका दिखा पीयूष को

"ठीक है.. मैं गली के नुक्कड़ पर तेरा इंतज़ार करता हूँ.. जल्दी आना" मदन ने फोन काट दिया..

थोड़ी देर बाद दोनों साथ चलते चलते एक लंबा राउंड लगाकर लौटे.. मदन का घर पहला आता था इसलिए वो अंदर चला गया.. पीयूष की नजर शीला भाभी के दर्शन के लिए तरस रही थी.. छत पर बैठे बैठे शीला ये देखकर मुस्कुरा रही थी.. पीयूष बेचारा पागल हो गया है मेरे पीछे.. कैसे ढूंढ रहा है.. !!

शीला पीयूष को घर के अंदर जाने तक देखती रही..

रात के साढ़े आठ बज गए थे.. शीला छत से नीचे उतरी.. ड्रॉइंग रूम में वैशाली और मदन टीवी पर "तारक मेहता का उल्टा चश्मा" धारावाहिक देख रहे थे..

"मम्मी.. ये जेठालाल कितना क्यूट है ना.. जेठा-दया की जोड़ी देखकर मुझे तुम और पापा ही नजर आते हो.. "

"मुझे तो बबीता बहोत पसंद है.. " मदन के सामने देखकर मज़ाक करते हुए शीला ने कहा.. बबीता का जिक्र हमेशा उसके बड़े बड़े स्तनों के लिए ही होता है.. बाकी उसमें और कुछ खास तो है नहीं..

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"मुझे तो माधवी भाभी बहोत पसंद है.. इतनी स्वीट स्माइल है उनकी.. " मदन ने एकमेव सेक्रेटरी की बीवी को लपेट लिया..

तीनों मस्ती भरी बातें कर रहे थे तभी घर की डोरबेल बजी.. शीला ने दरवाजा खोला और देखा तो इंस्पेक्टर तपन और उनके साथ संजय था.. मदन और शीला के साथ साथ वैशाली भी ये देखकर डर गई.. घबराहट के मारे वो भागकर किचन में चली गई..

मदन: "अरे इंस्पेक्टर साहब आप.. अभी, इस वक्त? क्या बात है?"

शीला भी पुलिस के साथ संजय को देखकर बहोत डर गई थी.. पता नहीं संजय ने क्या क्या बता दिया होगा.. !!

शीला ने घबराते हुए कहा "कहिए तपन जी.. कैसे आना हुआ?"

किचन के अंदर खड़ी वैशाली को ये सुनकर बेहद आश्चर्य हुआ.. भला मम्मी इंपेक्टर को नाम से कैसे जानती है.. !! हो सकता है की उनकी पहचान का हो.. वैशाली का डर थोड़ा कम हो गया.. उसने चुपके से किचन से बाहर देखा..

इंस्पेक्टर तपन ने मज़ाक किया "ये बहनजी बार बार किचन से क्यों झांक रही है?" वैशाली डर गई और अपना चेहरा वापिस खींच लिया

मदन ने कहा "वैशाली बेटा.. ये तपन अंकल है.. डरने की कोई बात नहीं है.. बाहर आजा.. मैं तेरी पहचान कराता हूँ.. "

बड़े ही संकोच के साथ वैशाली बाहर आई.. साथ ही ट्रे में पानी के ग्लास भरकर.. पानी सिर्फ मदन, इंस्पेक्टर और शीला को दिया.. संजय को नहीं.. इससे इन्स्पेक्टर तपन को भी साफ तौर पर पता चल गया की मियां बीवी के बीच सब कुछ ठीक नहीं था.. इस अपमान के बाद भी संजय चुप बैठा रहा क्योंकि इन्स्पेक्टर सामने खड़ा था

पानी पीकर ग्लास ट्रे में रखते हुए इंस्पेक्टर तपन ने कहा "मदन, बात दरअसल ये है की अभी एकाध घंटे पहले इन महाशय के मोबाइल पर फोन आया.. कलकत्ता से.. उनके पापा को हार्ट एटेक आया है और उनकी हालत गंभीर है.. मैंने सोच तुम्हें बता दूँ.. अब बोल.. क्या करना है? वरना जो गुनाह इसने किया है उसका अगर केस बनाऊँगा तो ये दस साल तक सलाखों के पीछे से बाहर नहीं आएगा"

वैशाली स्तब्ध हो कर सुनती ही रही.. इस संजय ने तो मायके में भी मेरी इज्जत की धज्जियां उड़ा दी.. अब ऐसा तो कौन सा गुनाह कर दिया इसने? कहीं रोज का मर्डर तो नहीं कर दिया??

धीमी आवाज में वैशाली ने शीला से पूछा.. शीला ने उसे सारी हकीकत बताई..

शीला: "तपन भैया.. आप बैठिए.. मैं चाय बनाकर लाती हूँ"

वैशाली का हाथ पकड़कर शीला उसे किचन में ले गई..

शीला: "देख बेटा.. तेरे और संजय कुमार के बीच जो कुछ भी तकलीफें हो.. पर तेरे ससुर की इस हालत के वक्त.. एक बहु होने के नाते तेरा वहाँ जाना जरूरी है.. !!"

वैशाली: "मैं इस नालायक के साथ कहीं नहीं जाने वाली.. मुझे अब उसके साथ रहना ही नहीं है.. इतना सब कुछ तो तुम देख ही रही हो.. देखे ना उसके कारनामे!! फिर भी उसके साथ जाने के लिए कह रही हो.. ?? तुझे मेरी जरा सी भी फिक्र नहीं है.. एकदम थर्ड क्लास आदमी है.. प्लीज मम्मी.. मुझे यहीं रहने दो.. " हाथ जोड़कर रो पड़ी वैशाली

शीला: "बेटा.. ये घर तेरा ही है.. तू एक बार वहाँ जा.. अपने ससुरजी की तबीयत ठीक होने तक रहना.. फिर आ जाना वापिस.. !!"

वैशाली: "मुझे बहोत डर लग रहा है मम्मी.. तुझे पता है ना.. कलकत्ता कितना दूर है? वहाँ मेरा अपना कोई है भी नहीं.. और ये संजय वहाँ मेरे साथ क्या क्या करेगा कुछ कह नहीं सकते.. प्लीज मम्मी.. तुम भी चलो मेरे साथ.. मैं अकेली नहीं जाऊँगी"

शीला: "बेटा.. मैं जरूर तेरे साथ चलती.. पर वहाँ कितने दिनों तक रुकना पड़े.. क्या पता.. !! तू पहले वहाँ जा.. थोड़े दिनों बाद मैं और तेरे पापा वहाँ आएंगे.. और लौटते वक्त तुझे साथ यहीं वापिस ले आएंगे.. ठीक है.. !!"

शीला ने वैशाली को समझा ही लिया

चाय पीकर इंस्पेक्टर तपन जाने के लिए खड़े हुए.. जाने से पहले उन्हों ने संजय का गिरहबान पकड़कर धमकाया "कुछ भी उल्टा सीधा किया ना.. तो कहीं से भी ढूंढ निकालूँगा तुझे.. इतना याद रखना.. मदन के कारण आज तुझे छोड़ रहा हूँ.. दूसरी बार हाथ में आया तो उल्टा लटकाकर डंडा घुसा दूंगा.. समझा.. !!"

संजय कुछ भी नहीं बोला..

इंस्पेक्टर तपन निकल गए.. मदन ने तुरंत अपने ट्रैवल एजेंट को फोन लगाया और कलकत्ता की फ्लाइट की दो टिकट बुक करवा दी.. साढ़े बारह की फ्लाइट थी.. वैशाली और संजय को तुरंत निकलना था..

शीला ने तुरंत वैशाली को सामान पेक करने में मदद की.. संजय बेशर्म होकर टेबल पर पैर पसारकर सिगरेट फूँक रहा था.. पुलिस की मार खाकर उसका चेहरा सूझ गया था.. शीला उसके करीब से एक बार गुजरी पर संजय ने उसकी तरफ देखा तक नहीं.. रोज क्लीन शेवड और चकाचक होकर घूमता संजय.. ४-५ दिन की बढ़ी हुई दाढ़ी और गंदे बदबूदार कपड़ों के साथ बड़ा ही घिनौना लग रहा था

शीला ने वैशाली को इशारा करते हुए कहा की वो संजय से नहाने के लिए कहे.. पर वैशाली ने उससे बात करने से साफ इनकार कर दिया

आखिर मदन ने कहा "संजय कुमार.. आप जरा नहा-धोकर फ्रेश हो जाइए.. "

गुस्से से तिमिलाते हुए संजय खड़ा होकर बाथरूम चला गया.. और थोड़ी देर में तैयार होकर बाहर निकला..

घर से निकलते वक्त वैशाली खूब रोई.. घर की एक एक चीज को जैसे आखिरी बार देख रही हो वैसी व्यथा थी उसकी आँखों में.. सामान लेकर टेकसी में सब बैठ गए.. एयरपोर्ट पहुंचते ही, वैशाली और संजय अंदर गए.. शीला और मदन बाहर इंतज़ार करते रहे.. जैसे ही उनकी फ्लाइट छूती.. मदन के सब्र का बांध टूट गया.. वो फुटफुटकर रोने लगा.. शीला ने सांत्वना देते हुए उसे बिठाया.. उसे शांत करने के बाद दोनों घर वापिस लौटे

अब फिर से मदन और शीला अकेले थे.. पर आज का एकांत न शीला को उत्तेजित कर रहा था और ना ही मदन को.. वैशाली के भविष्य की चिंता दोनों को खाए जा रही थी..

बेटी ससुराल में दुखी हो तो माँ बाप बेचारे कैसे खुश रह सकते है.. !!

रात के एक बजे शीला गाउन पहनकर मदन की बगल में सो गई.. उसका हाथ सीधा मदन की शॉर्ट्स के अंदर चला गया.. पर दोनों में से किसी को भी सेक्स का मूड नहीं था.. ये तो बस सोने के लिए एक आरामदायक पोजीशन थी.. मदन शीला के स्तनों को सहलाते हुए सो गया.. मदन हमेशा से ऐसे ही सोता था.. जब से उन दोनों की शादी हुई थी, तब से.. !!

सुबह दोनों काफी देर से जागे.. शीला ने घड़ी में समय देखा और चोंक गई.. अरे बाप रे.. आठ बज गए.. !!! रसिक ने आज डोरबेल भी नहीं बजाई.. ?? अब बिना दूध के चाय कैसे बनाउ?? शीला उठकर बाहर गई और चारों तरफ देखा.. फिर जल्दबाजी में दरवाजा बंद तो किया पर लोक करना भूल गई.. बेडरूम मे आकर उसने मदन को सोते हुए देखा और सोचा.. अच्छा हुआ जो आज रसिक से मुलाकात नहीं हुई.. वैसे भी कल रात की घटना के बाद आज उसका मूड नहीं था.. अब संजय कुमार कलकत्ता जा कर कोई नया गुल ना खिलाए तो अच्छा..

मदन ने आँखें मलते हुए कहा "अब शहर में एक रसिक अकेला तो नहीं है दूध देने वाला.. मैं अभी दुकान से दूध लेकर आता हूँ.. हम दो दिन से घर पर थे नहीं.. तो बेचारे ने दरवाजा नहीं खटखटाया होगा.. लगता है तुझे रसिक का दूध पसंद आ गया है" मदन ने मज़ाक करते हुए कहा

शीला ने भी जवाब में सिक्सर लगाई.. "हाँ.. जैसे तुझे उस अंग्रेजी मेरी का दूध पसंद आ गया था.. " मदन के गाल खींचकर शीला ने कहा "उस फिरंगी का दूध पीकर तेरे गाल फूल गए है.. " रसिक वाली बात को बदलने के लिए शीला ने ये चाल चली

"इतनी सुबह सुबह तुझे मेरी की याद कहाँ से आई?" शीला के गोलमटोल स्तनों से खेलते हुए मदन ने कहा

"अभी तूने पूरी बात बताई कहाँ है.. उसके बॉयफ्रेंड से मिलने का सेटिंग करवाया था तूने अपनी ऑफिस में.. फिर अपना ये बाम्बू उस गोरी की चूत में कैसे घुसा दिया वो कहानी अभी बाकी है.. " कहते हुए शीला ने मदन की शॉर्ट्स में हाथ डालकर उसका लंड पकड़ लिया..


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शीला ने ये महसूस किया था की जब जब वो मेरी की बात करती थी तब मदन की पकड़ उसके स्तनों पर और सख्त हो जाती थी.. मतलब मदन मेरी को अब तक भुला नहीं था.. वैसे तो शीला भी.. जीवा, रघु और रसिक को कहाँ भूल पाई थी.. !!

शॉर्ट्स से निकले लंड को एक प्रेमभरा स्पर्श देकर उसने जीवित कर दिया.. जैसे गहरी नींद से जाग रहा हो.. वैसे अंगड़ाई भरकर मदन का लंड खड़ा हो गया.. शीला मदन के लंड से खेल रही थी और मदन शीला के स्तनों को मसल रहा था..

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तभी घर के अंदर अनुमौसी ने, दूध की पतीली हाथ में लेकर, प्रवेश किया और सीधे बेडरूम में घुस आई.. ये तो अच्छा हुआ की दोनों की हरकतें चादर के भीतर चल रही थी.. वरना अनुमौसी के सामने अनर्थ हो जाता

अनुमौसी: "शीला, ये ले.. रसिक आज दूध मेरे घर देकर गया था.. रसिक बेचारा बेल बजा बजाकर थक गया.. पर आप दोनों में से कोई जागा ही नहीं.. आखिर वो मेरे घर ही तुम्हारा दूध देकर चला गया.. "

"मौसी, आप बैठिए शीला के साथ" संभालकर अपने खड़े लंड को छुपाते हुए मदन खड़ा हुआ और ब्रश करने चला गया.. अनुमौसी भी रुकी नहीं

"ढेर सारे काम है घर पर.. मैं चलती हूँ शीला" कहते हुए मौसी भी चली गई

चलो, अच्छा हुआ.. दूध का प्रॉब्लेम तो सॉल्व हो गया.. शीला ने किचन मे जाकर चाय बनाई..

चाय पीकर मदन अखबार पढ़ रहा था और शीला किचन में मशरूफ़ हो गई..

दोपहर के एक बजे वैशाली का शीला पर फोन आया..

वैशाली: "मम्मी.. मेरे ससुरजी का देहांत हो गया.. यहाँ का वातावरण बिल्कुल भी ठीक नहीं है.. संजय मुझे बहोत परेशान कर रहा है.. तुम जल्दी यहाँ आओ और मुझे यहाँ से ले जाओ.. !!"

शीला और मदन स्तब्ध हो गए.. उनके समधीजी की मृत्यु हुई थी.. इसलिए उनका कलकत्ता जाना जरूरी था.. मदन ने वैशाली को फोन पर आश्वासन देते हुए कहा की वो दोनों जल्द से जल्द वहाँ पहुँच जाएंगे.. ऐसे मौकों पर क्या किया जाए उसका मदन को भी ज्ञान नहीं था.. आखिर उन्होंने अनुभवी अनुमौसी को बुलाया.. बुजुर्गों को इस बारे में सारी जानकारी होती है.. जब बेटी के ससुराल में इस तरह की घटना हो तो क्या करना चाहिए.. कोई धार्मिक विधि होती है या नहीं.. वैशाली को वहाँ नहीं रहना है.. तो इस परिस्थिति में उसे यहाँ लेकर आना चाहिए या नहीं..

सारी चर्चाओ के बाद ये तय हुआ की शीला और मदन परसों कलकत्ता जाने के लिए निकलेंगे.. पर ससुर की तेरहवीं खतम होने तक वैशाली का वहाँ रहना जरूरी था.. उसके बाद मदन वापिस कलकत्ता जाकर उसे यहाँ ले आएगा..

मदन के एजेंट का फोन नहीं लग रहा था इसलिए उसने पीयूष से फोन करके टिकट बुक करवाने के लिए कहा.. पीयूष ने अपने दोस्तों की मदद से दूसरे दिन की दो टिकट बुक करवा भी दी..

मदन: "मौसी, एक विनती है.. आजकल चोरियाँ बहोत हो रही है.. हमें आते आते शायद दो-तीन दिन लग जाए.. तब तक पीयूष या तो चिमनलाल क्या मेरे घर पर सोएंगे रात को?"

अनुमौसी: "तुम दोनों निश्चिंत होकर जाओ.. यहाँ की कोई चिंता मत करो.. हम सब है ना.. !! सब कुछ देख लेंगे"

शीला और मदन जाने की तैयारी में जुट गए.. पूरा दिन दोनों ने एक दूसरे से कोई ओर बात तक नहीं की.. दूसरे दिन सुबह पाँच बजे की फ्लाइट थी.. इसलिए घर से रात के तीन बजे निकले.. जाने से पहले शीला ने अपने घर की चाबी देने के लिए मौसी को जगाया.. चाबी देते वक्त उसने मौसी के कानों में कुछ कहा.. सुनते ही मौसी की आँखें चमकने लगी..

जैसे ही शीला और मदन, ऑटो में बैठकर निकले.. मौसी भी घर के अंदर घुस गई.. थोड़ी देर बाद वो बाहर आई.. और शीला के घर चली गई.. मदन और शीला के बेड पर टांगें फैलाकर लेट गई.. इतनी रात को शीला ने जब उन्हें नींद से जगाया तब उनका थोड़ा गुस्सा आया था.. पर जब शीला ने उनके कान में वो बात कही.. सुनकर उनका सारा क्रोध हवा हो गया.. लेटी हुई अनुमौसी को नींद नहीं आ रही थी.. साढ़े तीन बज रहे थे फिर भी उनकी आँख में अब नींद का नामोनिशान नहीं था.. हर थोड़ी देर में वो घड़ी देख रही थी.. उन्हें लग रहा था जैसे समय थम सा गया था.. शीला की बात सुनने के बाद उनका जिस्म तापने लगा था.. शीला ने उसे फोन करके बता तो दिया होगा ना.. !!

शीला के घर की लेंडलाइन से अनुमौसी ने शीला को मोबाइल पर फोन लगाया.. शीला के फोन की घंटी बजी.. मदन बिल्कुल उसके बगल में खड़ा था.. शीला थोड़ी दूर चली गई और फोन पर बात करने लगी.. फिर फोन काटकर उसने दूसरा फोन मिलाया.. और बात करने के बाद वो वापिस लौटी.. शीला को सुबह चार बजे किसी से फोन पर बातें करते देख मदन को आश्चर्य हुआ..

मदन: "किसका फोन था शीला??"

शीला: "अनुमौसी का फोन था.. तुमने कहा था इसलिए वो आज से ही हमारे घर सोने चली आई.. "

मदन: "अच्छा.. अच्छा.. फिर ठीक है.. इतनी सुबह फोन आया ये देखकर मुझे चिंता होने लगी.. "

फोन खतम करके शीला वापिस लौट रही थी तब उसने कॉल-लॉग से आखिरी फोन की एंट्री डिलीट कर दी थी.. दोनों कुर्सी पर बैठे बैठे बोर्डिंग की राह देखने लगे..

सुबह के साढ़े चार बजे भी एयरपोर्ट पर काफी भीड़ थी.. छोटे तंग वस्त्रों में एयर-होस्टेस भी अपनी जिस्म का जादू बिखेरते हुए मदन के दिल को बाग बाग कर रही थी.. खूबसूरती और खुशबू.. कभी छुपाये नहीं छुपती..

मदन की नजर बचाकर शीला ने अनुमौसी को फोन करके बता दिया "मैंने बात कर ली है" और फोन काट दिया

मदन को थोड़ा आश्चर्य जरूर हुआ.. फिर उसने सोचा.. होगी कोई औरतों की अपनी बात.. !! मदन फिर से एयर-होस्टेस के जलवों को देखने में मशरूफ़ हो गया.. खूबसूरती को ताड़ना मदन का पुराना शोख था.. मदन सोच रहा था.. ये एयरपोर्ट वाले.. मेरी शीला जैसी गदराई एयर-होस्टेस क्यों नहीं रखते.. !! इन पतली लड़कियों को देखकर तो फ्लाइट के पैसे भी वसूल नहीं होते.. भरे भरे जिस्म और मदमस्त जोबन वाली एयर-होस्टेस हो तो देखने वालों का भी दिल लगा रहें.. !! बड़े स्तनों वाली को देखकर सफर करने का मज़ा ही अलग होता.. !! बाकी इन सुखी भिंडियों की तो सिर्फ शक्ल ही अच्छी होती है.. बाकी उनकी हड्डियाँ देखने में कोई मज़ा नहीं आता..

फ्लाइट का टाइम हो गया.. और शीला तथा मदन बैठकर निकल भी गए
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इस तरफ अनुमौसी की आँखों में इंतज़ार था.. और वो घड़ी आखिर आ ही पहुंची.. डोरबेल बजते ही उन्होंने तुरंत दरवाजा खोला.. सामने रसिक खड़ा था

"अरे मौसी आप यहाँ कैसे? भाभी जी कहाँ गई?" जल्दबाजी में शीला रसिक को ये बताना भूल गई थी की अनुमौसी को इस आयोजन के बारे में पहले से पता था..

अनुमौसी चोंक गई.. अरे बाप रे.. इस मुए को तो कुछ पता ही नहीं है.. अब क्या करूँ!! बेहद इंतज़ार के बाद जब आखिर भारत-पाकिस्तान का मैच होने वाला हो और उसी दिन बरसात गिर जाएँ तब जैसा महसूस होता है वैसा ही कुछ हो रहा था मौसी को.. एक ही पल में न जाने कितने विचार आ गए मौसी के मन में..

"तुझे शीला का कॉल नहीं आया था क्या?? अंदर आ.. बैठकर बात करते है" रसिक का हाथ पकड़कर अंदर खींच लिया मौसी ने

"मुझे फोन तो आया था भाभी का.. पर उन्होंने ये नहीं कहा था की आप यहाँ होंगे.. !!"

"तू वो सब बातें छोड़.. और शीला ने जो करने के लिए कहा है वो कर.. समय मत बिगाड़.. !!"

रसिक के जलवों की बातें मौसी ने शीला से सुन रखी थी.. बस सामने से पहल करने में घबरा रही थी.. उनके पति चिमनलाल ने जब से सेक्स में रिटाइरमेंट ले लिया था तब से मौसी की हालत खराब हो गई थी.. पिछले पाँच सालों से मौसी तड़प रही थी.. पति के होते हुए ये दिन देखने पड़ रहे थे इस बात का मलाल था उन्हें.. उनकी उम्र के चलते वो किसी और से मुंह मारने की सोच भी नहीं सकती थी.. लेकिन आज शीला की बदौलत उन्हें ये मौका मिला था.. अगर आज ये मौका गंवाया तो न जाने फिर कब लंड नसीब होगा.. !!

रसिक की चौड़ी छाती पर हाथ फेरते हुए उन्होंने कहा

"रसिक, तू शीला के साथ जो कुछ करता है.. वो सब आज मेरे साथ कर.. शीला शहर से बाहर गई है और मैं यहाँ उसके घर का खयाल रख रही हूँ.. अब शीला ने तुझे फोन करके बता तो दिया है सब.. फिर क्यों टाइम-पास कर रहा है??"

सुबह के पाँच बजे.. जब लगभग सारे लोग.. चैन की नींद सो रहे होते है.. तब अनुमौसी अपने जिस्म की भूख मिटाने के चक्कर में रसिक के सामने गिड़गिड़ा रहे थे.. वैसे रसिक ने मौसी को कभी उस नजर से पहले देखा नहीं था.. इसलिए उसे भी संकोच हो रहा था..

अनुमौसी ने रसिक को रिझाने की सारी तरकीबें आजमा ली.. रसिक बेचारा.. खाने आया था रसगुल्ला.. अब चीनी चाटनी पड़ेगी.. अनुमौसी की बूढ़ी छातियों में वो शीला के गदराएं स्तनों का अंदाज तराश रहा था.. उत्तेजना के कारण ऊपर नीचे हो रही मौसी की छातियों को देखकर रसिक को कुछ खास मज़ा नहीं आया.. पर अनुमौसी आज तय कर चुके थे.. उन्होंने रसिक का हाथ पकड़कर अपने स्तनों पर रख दिया.. और उसके हाथों को दबाते हुए बोली

"ओह्ह रसिक.. जल्दी जल्दी कुछ कर न यार.. " ऐसा कौन सा मर्द होगा जो स्त्री की इन हरकतों के बाद भी अड़ग रह पाए.. !! नरम मांस के गोले हाथ में आते ही उसका लंड फुदकने लगा.. शरमाते हुए रसिक ने अनुमौसी को अपनी ताकतवर भुजाओं में जकड़ लिया.. और उनकी पीठ पर हाथ सहलाने लगा..

मर्द के शरीर का स्पर्श होते ही मौसी के जिस्म में भूचाल सा आ गया.. स्त्री और पुरुष के शरीर जब एक दूजे के साथ कामुक स्पर्श करते है तब दोनों पात्रों के लिए दुनिया की सारी बातें गौण हो जाती है.. काम-वासना का इतना जबरदस्त प्रभाव होता है.. देखते ही देखते अनुमौसी के जिस्म पर हवस ने कब्जा कर लिया

अनुमौसी का हाथ पकड़कर रसिक ने अपने लंड पर रख दिया.. रसिक का मूसल पकड़कर अनुमौसी धन्य हो गई.. उनकी आँखों में आँसू आ गए.. रसिक के लंड की सख्ती को महसूस करते हुए वो सिसकने लगी.. मन ही मन अपने पति चिमनलाल को गालियां देते हुए अनुमौसी ने रसिक के लंड को हिलाना शुरू कर दिया..


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उनके अनुभवी भोंसड़े से काम-रस टपकने लगा.. और पूरे कमरे में चूत-रस की विचित्र गंध फैल गई..

चूत की मांसल गंध को सूंघकर सांड की तरह उत्तेजित हो गया रसिक.. अपना पाजामा उतारते हुए उसने अनुमौसी के कानों में कुछ कहा.. सुनकर अनुमौसी तुरंत ही घुटनों के बल बैठ गई.. और रसिक के फुँकारते लंड को बड़े ही अहोभाव से देखने लगी.. जैसे छोटा बच्चा किसी नए खिलौने को कुतूहल से देखता है.. बिल्कुल वैसे ही.. !! गजब की उत्तेजना थी अनुमौसी के चेहरे पर.. अपने भोसड़े को खुजाते हुए वो बिना पलक झपकाए इस लंड की भव्यता और सख्ती को देखती ही रह गई.. एक ही पल में उनके दिमाग में अनगिनत विचार आ गए.. इस लंड से क्या क्या काम लिया जा सकता है वह सारी संभावनाएं सोचने लगा उनका दिमाग.. !! कहाँ चिमनलाल का मेले में मिलती पाँच रुपये की बाँसुरी जैसा लंड..और कहाँ रसिक का विकराल मूसल.. कोई मुकाबला ही नहीं था..!!

हतप्रभ होकर देख रही अनुमौसी के सामने रसिक अपना लंड थोड़ा सा आगे की ओर ले गया और उसके सुपाड़े ने अनुमौसी को होंठों का स्पर्श किया.. अनुमौसी ने अपना मुख खोला और उसी के साथ नो-एंट्री का बोर्ड हट गया.. एक ही धक्के में रसिक ने अपना अंगारे जैसा लाल सुपाड़ा मौसी के मुंह में डाल दिया..

अब मौसी की तकलीफ ये थी की उन्हें लंड ठीक से चूसना आता ही नहीं था.. पर शीला को उन्होंने जिस तरह लंड चूसते देखा था उसका अनुकरण करने लगी.. रसिक के लंड को स्त्री के कोमल होंठों का स्पर्श मिलते ही वो खिलने लगा.. उत्तेजित रसिक "आह्ह-आह्ह" करते हुए मौसी के मुंह को पेलने लगा.. सेक्स के अभाव से तड़प रही अनुमौसी ने जैसा समझ में आया वैसा चूसना चालू कर दिया.. इस अनोखे लंड को प्यार करना.. वो चूसते चूसते सीख गई.. और रसिक के काले चूतड़ों को अपनी हथेलियों से दबाते हुए वो लंड का ज्यादा से ज्यादा हिस्सा अपने मुंह मे लेने लगी..

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वह रोमांचक क्षण आ गई जब रसिक का मोटे डंडे जैसा लंड और अनुमौसी का भूखा मुंह.. दोनों एकाकार हो गए.. हवा जाने की भी जगह नहीं थी.. परिणाम स्वरूप.. अनुमौसी का दम घूँटने लगा.. वो गॉन्गियाने लगी.. उन्होंने लंड को अपने कंठ से निकालने की भरसक कोशिश की.. पर वो भूल गई थी की अब उनकी मर्जी चलने नहीं वाली थी..

पिछले कई दिनों से रोज सुबह.. रसिक शीला के जिस्म से खिलवाड़ करने के इरादे से आ रहा था.. पर उसके हाथों सिर्फ निराशा ही लग रही थी.. आज शीला नहीं तो कोई और सही.. इसी सोच के साथ उसने अनुमौसी पर हमला कर दिया था.. अनुमौसी के अंदर सालों से कैद रति..और रसिक का काम देव.. दोनों पूर्णतः जागृत हो चुके थे..

अब तक खामोश रहकर कमर हिला रहा रसिक.. अनुमौसी के अपरिपक्व मुख-मैथुन से जबरदस्त उत्तेजित हो कर मौसी का हाथ पकड़कर उन्हें शीला के बिस्तर तक खींच गया.. वही बिस्तर पर जहां वो अनगिनत बार शीला को चोद चुका था.. लगभग हररोज पाँच बजे रसिक और शीला का काम उत्सव शुरू हो जाता और साढ़े पाँच तक चलता रहता.. और रसिक के सहारे ही शीला ने मदन की जुदाई को बर्दाश्त किया था.. वरना कभी कभी शीला को डर लगा रहता की चूत की आग की वजह से वो कहीं कोई गलत कदम न उठा ले.. अच्छा हुआ जो शीला को रसिक मिल गया.. किसी को शक भी नहीं हुआ और शीला की भूख भी मिटती रही..

शीला को याद करते हुए रसिक ने अनुमौसी को बेड पर पटक दिया और उन पर सवार हो गया.. भूखे भेड़िये की तरह वो मौसी पर टूट पड़ा.. हवस से पागल हुआ रसिक, मौसी के घाघरे के अंदर घुस गया और उनके चिपचिपे भोसड़े को चूमकर चाटने लगा.. रसिक की जीभ छेद में घुसते ही.. मौसी सिहरने लगी.. सातवे आसमान पर पहुँच गई..


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"आह रसिक.. बड़ा मज़ा आ रहा है यार.. एक बार और जोर से चाट.. आह्ह.. चौड़ी करके चाट नीचे.. ओह्ह कितने दिनों से तड़प रही थी मैं.. आह्ह.. जैसे शीला की चाटता है बिल्कुल वैसे ही मेरी चाट.. ऊईईई.. !!"

मौसी की बातों से रसिक को ये पता चल गया.. की उसके और शीला भाभी के कारनामों के बारे में मौसी को सब कुछ पता था.. तो उसमे क्या हो गया.. !! इस हमाम में तो सब नंगे थे.. मौसी भी.. !! तू भी चोर और मैं भी चोर.. !! अब न तो रसिक को किसी बात की फिक्र था और ना ही मौसी को कोई चिंता.. !! चिमनलाल के साथ मौसी को इतने सालों में ये सुख कभी नहीं मिला था.. उस चूतिये को ये नहीं पता था की संभोग का मतलब सिर्फ चूत में लंड डालकर हिलाना नहीं होता.. उसके अलावा भी की सारी हरकतें होती है जो स्त्री को तृप्त करने के लिए करनी जरूरी होती है.. अगर चिमनलाल को ये सब आता तो.. इस उम्र में अनुमौसी को एक मामूली दूधवाले के सामने टांगें फैलाने की नोबत नहीं आती..

रसिक की जीभ जैसे जैसे अनुमौसी के भोसड़े पर घूमती गई.. मौसी के मन में चिमनलाल के प्रति नफरत और तीव्र होती गई.. उन्हें यही मलाल था की शादी के पचास सालों तक उस कमीने चिमनलाल ने मुझे चूत-चटाई की इस अद्भुत सुख से वंचित क्यों रखा.. !!

कामदेव के अद्वितीय रूप से अभिभूत होकर अनुमौसी बिस्तर पर टांगें खोलकर अपना भोसड़ा चटवा रही थी.. दो उंगलियों से मौसी की चूत के होंठों को चौड़ा करके रसिक अंदर के लाल गुलाबी भाग पर अपनी खुरदरी जीभ रगड़ रहा था.. बीच बीच में वो अनुमौसी की जामुन जैसी बड़ी क्लिटोरिस में मुख में लेकर दबा देता था..

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"ओह्ह रसिक.. ये तूने अभी क्या किया?? एक बार फिर से कर.. आह्ह आज तो मार ही देगा मुझे तू.. बहोत मज़ा आ रहा है.. रसिक.. इतनी तेज खाज हो रही है अंदर.. तू जितना चाट रहा है उतनी ही खुजली तेज होती जा रही है.. ओह्ह माँ.. " अपने चूतड़ों को उछाल उछलकर मौसी अपनी क्लिटोरिस को रसिक के चेहरे से रगड़ने लगी

रसिक के पास अब ज्यादा समय नहीं था.. उसने दो-तीन मिनट में ही अनुमौसी के तरसते भोसड़े को अपने थूक से सींच दिया.. फिर मौसी की दोनों जांघों को चौड़ा कर बीच में बाइओथ गया.. पैरों के बीच उस विकराल लंड को देखकर अनुमौसी को बेहद प्यार आ गया.. तेज हवा में जैसे पतंग लहराती है बिल्कुल वैसे ही रसिक का मजबूत लोडा लहरा रहा था.. उत्तेजना के कारण खंभे जैसे लंड को अनुमौसी देखती ही रह गई.. लाल सुपाड़े की नोक पर वीर्य की एक बूंद भी प्रकट हो चुकी थी..

"ओह्ह रसिक.. कितना मस्त है रे तेरा.. !!! इसे कहते है असली लंड.. पीयूष के पापा का तो इसकी तुलना में नुन्नी जैसा लगेगा.. अब मुझे समझ में आया की वो शीला तेरे पीछे क्यों इतनी पागल है.. ऐसा सांड जैसा मर्द मिल जाए.. और साथ में मूसल जैसा लंड.. आह्ह.. फिर जीवन में और चाहिए ही क्या.. !!" चूतड़ उठाकर अनुमौसी ने अपनी भोस का स्पर्श करवाया लंड से.. जैसे दो अनजान लोगों की पहचान करा रही हो..

रसिक का लंड अब फुँकारने लगा..

"सोच क्या रहा है.. डाल दे अंदर जल्दी.. नहीं तो तेरे लंड को मेरी ही नजर लग जाएगी.. " अनुमौसी के इस रूप को देखकर रसिक भी स्तब्ध था.. रोज भजन करती मौसी का कौन सा रूप असली था??

वैसे देखने जाए तो हर व्यक्ति के कितने अलग अलग रूप होते है.. !!

चाय की टपरी पर पॉलिटिक्स या क्रिकेट की चर्चा करते वक्त हम विवेचक होते है..

मंदिर में पूजा करते वक्त हम भक्त बन जाते है

बच्चों को उनकी गलतियों के लिए डांटते वक्त हम सर्वगुण सम्पन्न महसूस करते है..

ग्राहक को मीठी जबान से फुलसाकर माल बेचते वक्त हम होशियार होने का दावा करते है..

और बीवी या गर्लफ्रेंड की चूत चाटते वक्त हम उनके वफादार प्रेमी होने का ढोंग भी कर लेते है..

एक ही व्यक्ति.. और उसके ढेर सारे व्यक्तित्व.. कौन सा सही.. कौन सा गलत.. कीसे पता.. !!

रसिक ने मौसी के दोनों स्वरूप देखे हुए थे.. एक तो पूरे दिन भक्तिभाव में डूबी रहती स्त्री का और आज उसके सामने भोसड़ा चौड़ा कर लेटी.. चुदने के लिए बेकरार एक भूखी औरत का..

अपने लंड को टकटकी लगाकर देखती हुई मौसी को देख रहा था रसिक.. मौसी के ढल चुके स्तन देखकर उसे शीला के मदमस्त बबलों की याद आ गई.. पता नहीं क्यों.. शीला का खयाल आते ही लंड की सख्ती दोगुनी हो जाती थी.. शीला के साथ हुए संबंधों के बाद ऐसा हो रहा था.. ऐसा नहीं था.. पहली बार जब वो दूध देने आया और शीला को देखा तब से वो उसके दिमाग में बस गई थी.. उसे तब सपने में भी अंदाजा नहीं था की दूध लेते वक्त झुककर अपने स्तनों को दिखाती भाभी के दोनों बबलों के बीच लंड घुसाने का मौका मिलेगा..

शीला के विचारों में सख्त हुए लंड को देखकर अनुमौसी को ये गलतफहमी हो गई की रसिक उनको देखकर इतना उत्तेजित हो रहा था.. गर्व से उन्होंने अपने जिस्म को थोड़ा और ऊपर किया और रसिक को याद दिलाया की सिर्फ देखते रहने से काम नहीं बनेगा..

रसिक ने नीचे झुककर मौसी के दोनों पिचके स्तनों को पकड़ लिया और एक जबरदस्त धक्का लगाया..

"ओह माँ.." अनुमौसी की चीख निकल गई.. एक ही धक्के ने उन्हे अपनी जवानी की दिनों की याद दिला दी.. अनुभवी चौड़े भोसड़े वाली अनुमौसी को दर्द होने का कोई सवाल ही नहीं था.. पर रसिक का लंड काफी तगड़ा और मोटा था.. इसलिए उनके भोसड़े की दीवारों को खुरेचते हुए वो अंदर जाकर फिट हो गया.. मौसी के भोंसड़े और दिल दोनों को ठंडक मिली..

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रसिक अपने विशाल जिस्म के बोझ तले अनुमौसी को कुचले जा रहा था.. और पूरी ताकत लगाकर लंड को अंदर बाहर करने लगा.. कामरस से चिपचिपी हो चुकी अनुमौसी की बूढ़ी भोस.. उत्तेजना के कारण खुल रही थी और बंद हो रही थी.. रसिक बेरहमी से पेलने लगा.. और काफी समय से बिना चुदे तड़प रही मौसी को स्खलित होने में देर नहीं लगी..

पर रसिक को मौसी के ढले हुए बदन में जरा भी दिलचस्पी नहीं थी.. काफी धक्के लगाने के बावजूद उसका लंड झड़ने से इनकार कर रहा था.. बेचारा रसिक.. लंड का जहर निकालने के लिए.. वो मन मे शीला और रूखी को याद करते हुए तेजी से धक्के लगा रहा था.. पर लगातार दस मिनट तक चोदने पर भी रसिक के लंड ने वीर्य नहीं निकाला.. बूढ़ी फैली हुई चूत में वो दम कहाँ जो रसिक के लंड को दबोचकर उसका पानी निकाल दे.. !!

आखिर रसिक धक्के लगा लगा कर परेशान हो गया.. मौसी तो अब तक खुश हो ही चुकी थी.. उसने अपना लंड बाहर निकाल लिया

"मौसी, मज़ा आ गया आज तो.. ऐसा मज़ा मुझे कभी नहीं आया पहले.. " रसिक ने झूठी तारीफ की

"पर तेरा पानी क्यों नहीं निकल??" मौसी ने पूछा

"बात दरअसल ये है की जब शीला भाभी का फोन आया तब मैं रूखी को चोद रहा था.. उसने मेरा सारा रस चूस लिया.. इसलिए अभी पानी नहीं निकला.. वैसे आपको तो मज़ा आया ना.. ??"

रसिक के विकराल चमकते लंड को अहोभाव से देखते हुए मौसी ने कहा "मुझे पता है रसिक.. की ये सब तू मुझे खुश करने के लिए बोल रहा है.. पर मैं इतनी मतलबी भी नहीं हूँ.. की मेरा काम हो जाए और मैं तुझे भूल जाऊ.." ये कहते ही अनुमौसी घूमकर घोड़ी बन गई और अपनी गांड रसिक के सामने पेश कर दी

उत्तेजित रसिक को मज़ा आ गया.. मौसी की टाइट गांड में अब उसका लंड जरूर झड़ जाएगा.. लंड तो उसका पहले से ही गीला था.. अपनी हथेली में मुंह से लार निकालकर उसने अनुमौसी की गांड के छेद पर लगा दी.. फिर अपनी एक उंगली डालकर छेद के कसाव को चेक करने लगा.. जैसे मुख्यमंत्री के आने से पहले उनके सिक्योरिटी वाले स्थल का मुआयना करते है बिल्कुल वैसे ही..

अनुमौसी के कूल्हों पर अपना सुपाड़ा रगड़कर छेद पर रख दिया.. और हल्के से दबाया.. थोड़ा और दबाव बनाते ही उसका सुपाड़ा मौसी की गांड के अंदर चला गया.. अब उसने एक जोर का धक्का लगाकर मौसी की गांड में आधा लंड घुसा दिया.. अनुमौसी का बूढ़ा चेहरा पीड़ा के कारण लाल हो गया

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"मर गई.. जरा धीरे धीरे डाल रसिक.. फट जाएगी मेरी.. !!" अनुमौसी की सिसकियों में दर्द से ज्यादा आनंद का भाव था.. इसलिए अब रसिक ने बिना कुछ ज्यादा सोचें दूसरा धक्का लगाया और अनुमौसी की गांड की भूगोल बदल दी..

"दर्द तो बहोत हो रहा है रसिक.. पर तू चिंता मत कर.. और अपना काम निपटा ले.. फिकर मत कर और अपना पानी निकाल.. आह्ह बहुत तगड़ा है रे तेरा तो.. "

इस पल का महीनों से इंतज़ार कर रही थी अनुमौसी.. जब से उन्हें पता चला था की शीला मदन की जुदाई का गम रसिक के साथ हल्का कर रही थी.. तब से उनकी बड़ी इच्छा थी.. पर ऐसी बातों में जल्दबाजी करना योग्य न था.. इसलिए जब तक उन्होंने अपनी सगी आँखों से रसिक और शीला के गुलछर्रों को देख नहीं लिया तब तक उन्हों ने शीला से इस बारे में कोई बात नहीं की थी.. अपने हिसाब से ही छानबीन करती रही और जब उन्हें पूरी तसल्ली हो गई तब ही उन्हों ने शीला से इस बारे में बात की.. हालांकि शीला ने पहले तो काफी शर्म और संकोच दिखाया था.. और बात को टाल दी थी.. पर उसके ध्यान में सारी बातें थी.. मौका मिलते ही शीला ने अनुमौसी के भोसड़े की भूख शांत करने का प्रबंध कर ही दिया..

मन ही मन शीला का आभार मान रही अनुमौसी की गांड में रसिक के लंड ने गरमागरम वीर्य की पिचकारी छोड़ दी.. सालों बाद अपने जिस्म के अंदर ये गुनगुना एहसास महसूस करते हुए अनुमौसी चिहुँक उठी..

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रसिक के चेहरे पर तृप्ति के भाव देखकर वो और खुश हो गई.. दोनों पात्रों को संतुष्टि मिलें वहीं सम्पूर्ण संभोग कहलाता है.. अभी भी उत्तेजित रसिक अपने लंड से मौसी की गांड को ड्रिल कर रहा था.. उसका निकल गया होने के बावजूद.. टाइट गांड में धक्के लगाने मे उसे मज़ा आ रहा था..

थोड़ा सा नरम हुआ लंड अभी भी गांड के अंदर था और अप-डाउन हो रहा था.. और उसके ऊपर नीचे होने के कारण अनुमौसी के भोसड़े में कुछ कुछ होने लगा था.. मौसी के जीवन का ये एक यादगार दिवस था.. वो तो चाहती थी की ऐसा मौका उन्हें बार-बार मिले पर उसकी संभावना काफी कम थी.. वैसे रसिक को भी कहाँ अनुमौसी में ज्यादा दिलचस्पी थी.. !!! पर चूत ढीली हो या टाइट.. चेहरा सुंदर हो या कुरूप.. मर्द कभी भी अपनी हवस को संतुष्ट करने से पीछे नहीं हटता.. वो तो आँखें बंद कर अपने मनपसंद फिगर को याद करते हुए.. चूत के अंदर लंड के नृत्य का आनंद प्राप्त कर लेता है.. दोनों जिस्म शांत होने के बाद लगभग दस मिनट पश्चात.. रसिक ने हथियार डाल दीये..

दोनों के अवयव ढीले पड़ते ही.. कमरे में ऐसा सन्नाटा छा गया जैसा युद्ध-समाप्ति की घोषणा के बाद हो जाता है.. वासना का उफान उतरते ही मौसी को अपने जिस्म पर रसिक का शरीर बोझ सा लगने लगा.. मौसी की गांड से लंड बाहर निकलते ही रसिक उनके शरीर से नीचे उतरा और फटाफट कपड़े पहनने लगा.. पाजामा चढ़ा रहे रसिक का हाफ-टाइट लंड देखकर मौसी सोच रही थी.. कितना अच्छा होता अगर वो जब चाहे तब रसिक के लंड का आनंद ले सकती.. !! अनुमौसी ने भी कपड़े पहने और रसिक को गले लगा लिया

"मौसी.. अब मुझे जाना होगा.. सब जगह दूध देने जाना है.. उजाला होने से पहले मुझे निकल जाना चाहिए.. " रसिक ने कहा

"ठीक है रसिक.. आज तो मुझे बड़ा मज़ा आया.. फिर कभी मौका मिले तो जरूर आना.. पीयूष का बाप तो मुझे खुश करने से रहा.. और शीला को अब उसका पति मिल गया है.. उसकी तरफ थोड़ा कम ध्यान देगा तो भी चलेगा.. पर मुझे मत तड़पाना.. तेरा कुछ भी काम हो मैं कर दूँगी.. पर तू मुझे खुश करते रहना.. भले ही मेरा जिस्म शीला जितना सुंदर न हो.. पर मेरी भूख शीला से भी ज्यादा है.. " भावुक होकर मौसी ने फिर से रसिक को गले से लगा लिया..

"कोई बात नहीं मौसी.. आप चिंता मत कीजिए.. जब भी मौका मिलेगा मैं आपको खुश करूंगा.. चलिए मैं अब चलता हूँ.. !!"


रसिक के जाते ही मौसी ने दरवाजा बंद किया और बिस्तर को ठीक करने लगी.. मौसी का हाथ अनायास ही उनकी गांड पर चला गया.. अभी भी दर्द हो रहा था.. मौसी बिस्तर पर लेट गई.. सुबह के छह बजे थे.. रोज जल्दी जागकर घर के काम निपटाने वाली मौसी का जिस्म आज सुस्त था.. थोड़ी देर तक सो कर अपनी थकान उतारकर वो घर चली गई..
बहुत ही कामुक गरमागरम और उत्तेजना से भरपूर अपडेट है वैशाली के ससुर के मरने के कारण शीला और मदन को कलकत्ता जाना पड़ा लेकिन जाने से पहले शीला अनु मौसी के लिए लण्ङ का जुगाड कर गई अनु मौसी की राशिक ने दमदार चूदाई करके अनु मौसी की प्यास बुझा दी है
 

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के जाते ही मौसी ने दरवाजा बंद किया और बिस्तर को ठीक करने लगी.. मौसी का हाथ अनायास ही उनकी गांड पर चला गया.. अभी भी दर्द हो रहा था.. मौसी बिस्तर पर लेट गई.. सुबह के छह बजे थे.. रोज जल्दी जागकर घर के काम निपटाने वाली मौसी का जिस्म आज सुस्त था.. थोड़ी देर तक सो कर अपनी थकान उतारी और फिर वो घर चली गई..

घर के अंदर प्रवेश करते हुए.. सामने बैठे चिमनलाल से नजरें नहीं मिला पा रही थी मौसी.. उनके लिए चाय बनाकर वो वापिस घर के कामों में व्यस्त हो गई.. चाय नाश्ता करके चिमनलाल बाहर चले गए.. फिर पीयूष भी ऑफिस चला गया.. अब कविता और मौसी दोनों घर पर अकेले थे

कविता आज बहोत खुश दिख रही थी.. ये देखकर मौसी के दिल को चैन मिला.. चलो अच्छा हुआ जो पति-पत्नी में सुलह हो गई.. अनुमौसी भी आज रोज के मुकाबले काफी फ्रेश लग रही थी.. रसिक से चुदवाकर उनके जिस्म की आग ठंडी जो हो गई थी.. वो नहाने के लिए बाथरूम मे गई तब अपने भोसड़े को सहलाते हुए उन्हें रसिक का मूसल याद आ गया.. फिर उनकी चूत ने संतुष्टि का डकार लिया.. उसे सहलाकर मौसी ने शांत किया और तैयार होकर बाहर निकली

शाम को जब पीयूष आया तब कविता ने उसे कहा की उसके पापा का फोन आया था.. पंद्रह दिनों में ही मौसम की शादी होनी थी.. तरुण को बेंगलोर की एक बड़ी कंपनी में जॉब मिल गई थी.. बहोत अच्छी तनख्वाह मिलने वाली थी.. इसलिए उनकी इच्छा थी की तरुण के बेंगलोर जाने से पहले ही शादी निपटा ली जाए..

सुनकर पीयूष बेहद निराश हो गया.. सिर्फ पंद्रह दिन??

"अरे.. इतने दिनों में कैसे सारी तैयारियां होंगी? कपड़े, साड़ियाँ, जेवर और बहोत सारी चीजें लेनी होगी.. हॉल बुक करना पड़ेगा.. और भी ढेर सारी तैयारियां करनी होगी.. कैसे होगा सब??"

कविता: "पापा कह रहे थे की शॉपिंग में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा.. जेवर खरीदना भी सिर्फ एक दिन का काम है.. पर सब से जरूरी है मौसम को इस के लिए मनाना.. मम्मी पापा तो तैयार है.. वो कह रहे थे की सब को थोड़ी सी दौड़-भाग होगी पर इतना अच्छा लड़का हाथ से चला जाएँ उससे तो अच्छा है की हम सब इस बात के लिए राजी हो जाए.. "

पीयूष: "मैं समझ गया कविता, लेकिन.... !!!"

कविता: "लेकिन-वेकीन कुछ नहीं.. हम सब है ना पापा मम्मी की मदद के लिए.. सब साथ मिलकर जुट जाएंगे तो हो जाएगा.. कोई बड़ी बात नहीं है"

पीयूष उदास हो गया.. इतने काम वक्त में तैयारियां तो हो जाएगी.. पर उसका और मौसम को मिलने का वक्त मिलना अब असंभव था

रात के खाने के बाद, कविता और पीयूष छत पर अंधेरे में बैठे हुए थे.. कविता ने पीयूष की शॉर्ट्स में हाथ डालकर उसके लंड को मसाज देते हुए ये चर्चा छेड़ी थी.. कविता के हाथों का स्पर्श और उसके सुंदर स्तनों का शरीर पर दबाव महसूस करते ही पीयूष का जवान लंड सरसराने लगा.. रोज तो कविता के छूते ही खड़ा हो जाने वाला लंड अभी भी अर्ध-जागृत अवस्था में था.. कविता का हाथ पीयूष के लंड को नरम नहीं होने दे रहा था और मौसम की याद उसे ठीक से सख्त नहीं होने दे रही थी..

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मौसम के प्रति पीयूष के आकर्षण से बेखबर कविता बेचारी अपने पापा के दृष्टिकोण से सोचकर बातें कीये जा रही थी.. और पीयूष का दिमाग बातों में कम और मौसम के विचारों में ज्यादा उलझा हुआ था.. मौसम की जल्द शादी होने की बात से उसे गहरा सदमा पहुंचा था.. अगर इस बारे में पहले पता चला होता तो वो मौसम से फोन पर बात करता.. उस बेचारी ने तो आज तीन बार फोन कीये थे.. पर काम में व्यस्त होने के कारण वो बात नहीं कर पाया था.. और जब फ्री होकर पीयूष ने फोन किया तब मौसम ने कट कर दिया था.. शायद उसने इसी बात के लिए फोन किया होगा.. वरना मौसम उसे ऑफिस के टाइम पर कॉल नहीं करती थी

ये सब क्या हो गया अचानक?? पीयूष को अपनी किस्मत पर गुस्सा आ रहा था.. पीयूष के लंड को सहलाते हुए कविता मौसम को मनाने के तरीके सोच रही थी.. पर न कोई उपाय मिला और ना ही पीयूष का लंड सख्त हुआ.. आखिर थककर दोनों बेडरूम में आकर सो गए.. कविता बार बार पीयूष के शरीर को छेड़ती रही.. पर पीयूष के दिल के शेयर की किंमतें इतनी गिर चुकी थी की कितनी कोशिशों के बावजूद उसके लंड का सेंसेक्स ऊपर नहीं आया..

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आखिर कविता भी थककर दुसरें विचारों में खो गई.. और इसी विचारों में ही तो कविता की सब से बड़ी दौलत छुपी हुई थी.. पिंटू को मिलने का बड़ा मन कर रहा था कविता को.. माउंट आबू से लौटने के बाद एक बार भी बात नहीं हुई थी पिंटू से.. पहले तो जब कविता का मन करता वो पिंटू से बात कर लेती..पर अब पिंटू को काम की ज़िम्मेदारियाँ बढ़ गई थी.. और जब वो फ्री होता तब पीयूष उसके साथ होता.. इसलिए बात करना मुश्किल हो जाता.. पिंटू जब ऑफिस से निकलता तब कविता घर के काम में बिजी हो जाती और फिर पीयूष के घर आ जाने के बाद सब कुछ ब्लॉक.. !!

कविता सोच रही थी की मौसम की शादी के बहाने जब वो मायके जाएगी तब पिंटू से मिलने का मौका जरूर मिल जाएगा.. इस विचार मात्र से उसकी जांघें भीड़ गई.. उसकी बगल में पीयूष ऐसे निश्चेतन होकर पड़ा था जैसे उसकी सारी दुनिया लूट चुकी हो.. पर कविता का जिस्म हवस की आग में तपने लगा था.. ये ऐसी हवस थी जिसमे केवल जिस्म की भूख ही नहीं पर अपने प्रेमी से मिलने की तड़प भी शामिल थी..

कविता का हाथ उसकी चूत पर पहुँच गया.. एक हाथ से नाइटड्रेस से उसने अपना स्तन बाहर निकाला.. और पिंटू को याद करते हुए दबाने लगी..


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मज़ा तो आया पर जितना आना चाहिए था उतना नहीं आया.. प्रेमी के हाथ से स्तन दबने पर जो मज़ा आता है वो तो अभी आना मुमकिन नहीं था.. और वो ये नहीं चाहती थी की इस वक्त पीयूष का हाथ उसके जिस्म को छूए.. फिलहाल वो अपने सपनों की दुनिया में.. अपने प्रेमी के संग मस्त थी.. ऐसी दुनिया जहां समाज का डर नहीं था.. ज़िम्मेदारियाँ नहीं थी.. कोई रोक-टॉक नहीं थी.. सिर्फ वो और पिंटू दोनों थे.. जैसे कविता की अपनी सपनों की अनोखी दुनिया थी.. वैसी ही अपनी दुनिया पीयूष की भी थी ही.. !! ये बात ओर थी की फिलहाल वो मौसम के बारे में रोमेन्टीक विचार करने की स्थिति में नहीं था.. अभी कुछ दिनों पहले ही वो मौसम के प्यार में सराबोर था और कविता पिंटू के नजदीक होते हुए भी दूर थी.. और दुखी भी.. कविता के लिए माउंट आबू की यात्रा एक दुःखद याद बनकर रह गई थी.. लेकिन पीयूष के लिए माउंट आबू की यादें अनमोल थी.. ऐसी याद जो भुलाएं नहीं भूलती थी.. आबू में ही तो उसे मौसम के जबरदस्त आकर्षक कच्चे कुँवारे उरोजों को दबाने का मौका मिला था.. उसके गुलाबी अधरों को चूमने का अहोभाग्य भी प्राप्त हुआ था.. पर अभी वो यादें उसके किसी काम की नहीं थी..

पर कविता आज फूल-फॉर्म में थी.. अपने स्तनों को दबाते हुए वो पिंटू को याद करने लगी.. उसका मन अब लंड चूसने का कर रहा था.. कविता की इच्छा इतनी तीव्र थी की अगर उसे पंख होते तो अभी उड़कर पिंटू के पास चली जाती.. कुछ भी हो जाए.. बस एक बार.. पिंटू के साथ मन भरकर ज़िंदगी जी लेनी है.. मौसम की शादी के बहाने कम से कम एक हफ्ते के लिए मायके जाना होगा.. उस समय का भरपूर लाभ उठाने का मन बना लिया कविता ने.. मिलना तो हो जाएगा.. पर पिंटू के साथ वक्त बिताऊँ कहाँ? कोई घर तो होना चाहिए अकेले मिलने के लिए.. !! पर किसी के घर पिंटू से मिलना खतरे से खाली नहीं था.. कुछ तो सेटिंग करना पड़ेगा

कविता के हाथ लगातार उसके शरीर पर चल रहे थे.. वो ऐसा महसूस कर रही थी जैसे पिंटू उसके जिस्म को मसल रहा हो.. एक साथ दो उँगलियाँ उसने अंदर डाल दी थी.. आगे पीछे करते हुए वो झड़कर ठंडी हो गई.. और दो मिनट में गहरी नींद सो गई

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अनुमौसी की किस्मत चमक गई थी.. चिमनलाल अपने दोस्त की बेटी की शादी में शहर से बाहर गए थे.. कविता और पीयूष को बताकर मौसी शीला के घर सोने चली गई.. जैसे ही शीला के घर का दरवाजा बंद किया.. उन्हें रसिक के लंड की याद सताने लगी.. एकांत कितना भयानक होता है.. !! सज्जन से सज्जन आदमी अकेला होते ही विचारों में बह जाता है.. हकीकत में चारित्रवान उसे ही कहा जा सकता है जो अकेले में मौका होने के बावजूद भी ईमानदार रह सके.. बाकी ५० की उम्र में ड़ायाबिटिस के कारण लंड खड़ा ही न होता हो.. वैसे लोग अगर चारित्रवान होने का दावा करें तो उसका कोई अर्थ नहीं होता.. वो तो मजबूरी के मारे धारण की हुई सज्जनता कहलाएगी.. जिसका लंड दिन में दस बार टाइट होता हो.. वो इंसान अकेले में किसी सुंदर स्त्री को भोगने के बजाए उसे अपनी बहन मान सके.. वही सच्चा सज्जन.. !!

मौसी ने टीवी चालू किया.. खाना तो वो घर से खाकर आई थी.. बैठे बैठे वो "अनुपमा" के जीवन की समस्याओं को देख रही थी.. तभी लेंडलाइन की घंटी बजी.. मौसी ने फोन उठाया.. शीला का कॉल था

"कैसी हो मौसी? सब ठीक ठाक??"

मौसी: "हाँ शीला.. सब ठीक है.. तू कैसी है? वहाँ सब ठीक है? तुम्हारे समधी की अंतिम विधि हो गई? "

शीला: "हाँ मौसी.. अंतिम विधि तो हो गई.. अब बाकी सारी विधियाँ चल रही है.. वैशाली का प्रश्न बार बार परेशान कर रहा है.. समझ में नहीं आता की क्या करें.. कोई हाल सूझ नहीं रहा था तो सोचा आपसे बात करूँ और आपकी राय ले लूँ.. !!"

"क्यों? अब क्या हुआ वैशाली को?"

शीला: "होना क्या था मौसी.. मेरी वैशाली को वो नालायक बहोत परेशान कर रहा है.. उसके बाप की मौत हुई है.. ऐसे गंभीर वातावरण में भी घर में झगड़े कर रहा है.. "

अनुमौसी: "क्या बात कर रही है.. !! ये तो एक नंबर का कमीना निकला.. !!"

शीला: "हम यहाँ पहुंचे तब वैशाली उसके पापा के गले लगकर इतना रोई की क्या बताऊँ.. मेरा तो दिल ही बैठ गया.. मैंने बेटी को ससुराल भेजा है या कसाई के पास.. यही पता नहीं चल रहा.. !!"

अनुमौसी: "देख शीला.. अगर वैशाली को वहाँ नहीं रहना हो तो सारी विधि खतम होने के बाद उसे यहाँ वापिस ले आओ.. जो होगा देखा जाएगा..बेटी को ऐसी हालत में उस दरिंदे के पास छोड़ना ठीक नहीं.. "

शीला: "पर उनकी तेरहवीं को तो अभी बहोत दिन बाकी है.. तब तक हम यहाँ क्या करें?? यहाँ तो एक दिन रहना भी मुश्किल है.. मदन तो कब से वापिस जाने के लिए उतावला हो रहा है.. यहाँ संजय तो अपने बाप को जलाकर कहाँ गायब हो गया पता नहीं.. कौन जाने कहाँ भटक रहा होगा साला!!"

अनुमौसी: "गया होगा अपने लफंगे दोस्तों के साथ या फिर कहीं रंगरेलियाँ मनाने.. कुछ भी हो जाए तुम लोग वैशाली को वहाँ उस हेवान के साथ अकेला मत छोड़ना.. तुम एक काम करो.. मदन चाहे वापिस लौट जाएँ.. तुम वैशाली के साथ ही रहो.. तेरहवीं खतम होने के बाद मदन वहाँ आएगा और तुम दोनों को साथ लेकर वापिस.. "

मौसी का ये सुझाव शीला के गले उतर गया.. वो इस बारे में सोचेगी.. ऐसा कहकर फोन काट दिया.. फोन रखकर मौसी भी वैशाली के बारे में सोच में पड़ गई थी.. चेनल बदलते बदलते एक अंग्रेजी सेक्सी सीन पर आकर वो रुक गई.. वैशाली के सारे विचार दिमाग से निकल गए.. आधे नंगे कपड़ों में एक अंग्रेज लड़की उसके बॉयफ्रेंड के होंठों पर किस कर रही थी.. उसके मस्त स्तनों को देखकर मौसी को ईर्ष्या होने लगी.. अपने ब्लाउस के बटन खोलकर.. लटके हुए स्तनों को दोनों हाथों से जोड़कर अपने जवानी के दिनों को याद करने लगी मौसी..

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यही स्तन.. जवानी में कितने सख्त और मस्त थे!! ब्याह कर ससुराल आई तब वो कुंवारी थी.. उसके अक्षत कौमार्य को चिमनलाल ने भंग किया था और फिर बड़े मजे से उसके जिस्म का आनंद लिया था.. पर चिमनलाल सेक्स के मामले में काफी ठंडे थे.. जिस आक्रामकता की उम्मीद मौसी को थी वो कभी दिखा नहीं पाए.. जो आखिरकार मौसी को रसिक से मिली.. शादी के शुरुआती सालों में चिमनलाल ने मौसी की भरपूर चुदाई की थी.. और तब वह संतुष्ट भी थी.. पर आज जो ताकत रसिक ने दिखाई थी वो तो चिमनलाल में कभी नहीं थी.. जब चिमनलल से बेहतर कुछ मिला तब उसे ज्ञात हुआ की अब तक जिस तरह का सेक्स उन्होंने किया वो तो कुछ भी नहीं था.. आज जाकर उन्हें पता चला की जिस अभाव से अबतक वो झुझ रही थी.. वो कमी थी आक्रामक सेक्स की.. कभी कभी औरतों की ऐसी इच्छा होती है की मर्द उन्हें बेरहमी से भोगें.. गालियां बकते हुए.. उनके जिस्म को रौंदते हुए.. उसके जिस्म के साथ ऐसे ऐसे खिलवाड़ हो जो उसकी कल्पना के परे हो.. एक कुंवारी लड़की का.. और एक परिपक्व अनुभवी ढलती उम्र वाली स्त्री का.. रोमांस का खयाल अलग अलग होता है.. उम्र के साथ साथ अपेक्षा और व्याख्या बदलती रहती है..

नई नवेली दुल्हन की रोमांस की व्याख्या कुछ ऐसी होती है.. की उसका पति ऑफिस के टाइम पर उसे फोन करे.. घर पर मेहमान आए हो तब कैसे भी साथ सोने का सेटिंग करे.. सब की मौजूदगी में उसे छेड़े.. एक कोल्डड्रिंक में दो स्ट्रॉ डालकर साथ पियें.. आस पास कोई न हो तब चुपके से उसके स्तन दबा दे.. बस यही अपेक्षा और उम्मीद रहती है.. पर उम्र के अनुभवी मकाम पर पहुंची हुई औरतों के लिए रोमांस का मतलब होता है.. साहचर्य, विचारों का तालमेल और आक्रामक सेक्स.. ऐसा सेक्स जो उनके हड्डियों को झकझोर कर रख दे.. और उनके ढीले भोसड़े को सख्त लंड से चोदकर छील दे.. चुदाई के दौरान बेहद कामुक होकर नए नए आसन करे.. ऐसा सेक्स करे की दो दिन तक उसकी थकान महसूस हो.. ये सारी बातें एक वयस्क स्त्री की रोमांस की व्याख्या हो सकती है..

अनुमौसी को खुद की किस्मत पर गर्व हो रहा था क्योंकि आज उनके मन में छुपी हुई उस गहरी इच्छा को बाहर लाकर रसिक ने संतुष्ट किया था..

एकांत.. टीवी पर चल रहा रोमेन्टीक द्रश्य.. और सुबह के संभोग का सुरूर.. ये सब मिल जाएँ तो नतीजा क्या हो सकता है? देखते ही देखते अनुमौसी के सारे कपड़े उतर गए.. भोसड़े में चार उँगलियाँ एक साथ डालकर ऐसे आगे पीछे कर रही थी जैसे गीले गड्ढे से मिट्टी खोद रही हो.. उँगलियाँ डाल डालकर वो रसिक का दिया हुआ ऑर्गजम ढूंढ रही थी.. ढीले भोसड़े को उंगलियों से ठंडा करना संभव नहीं था.. थोड़ी देर कोशिश करने के बाद वो थक गई.. हारकर वो खड़ी हो गई.. और यहाँ वहाँ देखने लगी.. उनकी नजर किसी ऐसी वस्तु की खोज कर रही थी जो आसानी से उपलब्ध नहीं थी.. भोसड़े में आग लगी हुई थी.. रसिक तो दूसरे दिन सुबह आने वाला था.. बीच में पड़ी इस पूरी रात को इस सुलगते हुए बदन के साथ गुजारना उनके लिए नामुमकिन था..

मौसी की नजर सब जगह दौड़ने लगी.. वो कुछ ऐसा ढूंढ रही थी जो उनके भोसड़े में फिट बैठे और रसिक के मोटे लोड़े की कमी पूरी कर सके.. पर उन्हें ऐसा कुछ नहीं मिला.. आखिर वो वापिस बिस्तर पर लेट गई.. और गोल तकिये को अपनी दोनों जांघों के बीच दबाकर पड़ी रही.. भड़कते भोसड़े को थोड़ी राहत जरूर मिली पर सिर्फ ऊपर ऊपर से.. अंदर जो ज्वालामुखी सक्रिय हो चुका था उसका क्या करें???

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अनजाने में ही वो कमर हिलाने लगी और सिसकियाँ भरते हुए रसिक के कसरती मजबूत बदन को याद करते हुए तकिये पर जोर-जबरदस्ती करने लगी.. जैसे जैसे वो तकिये से भोस रगड़ती गई वैसे वैसे परिस्थिति बद से बदतर होने लगी.. एक समय तो ऐसा आया की हताश होकर उन्होंने तकिये को उठाकर दूर फेंक दिया.. निर्जीव तकिया बेचारा दीवार से टकराकर फर्श पर गिर गया..

अब अनुमौसी ने टीवी का रिमोट ही अपने भोसड़े में घुसेड़ दिया.. और अंदर तक घुसाकर फिर बाहर खींचा.. और वैसे ही अंदर बाहर करती रही.. रिमोट पर लगे खुरदरे प्लास्टिक के घर्षण से उनके भोसड़े में बहार आ गई.. रिमोट के बटनों को अपनी क्लिटोरिस पर रगड़ते ही उन्हें यकीन हो गया की यही उनकी आग बुझाएगा.. उन्होंने अंदर बाहर करने की गति ओर तेज कर दी.. उनका हाथ इस परिश्रम से थक चुका था पर उस थकान की परवाह किए बिना.. वो इस चरमोत्कर्ष प्राप्त करने के आंदोलन में डटी रही.. आखिर घिसते रगड़ते उनके भोसड़े का कल्याण हो गया.. बेहद थक चुकी थी मौसी.. उनका सारा बदन कांप रहा था.. रिमोट को भोसड़े से निकालने तक का होश नहीं रहा और उनकी आँख लग गई..

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करीब दो बजे उनकी आँख खुली.. आँखें मलते हुए उन्हों ने अपने नग्न शरीर को देखा और शर्मा गई.. लाइट भी चालू थी और टीवी भी.. टीवी बंद करने के लिए यहाँ वहाँ रिमोट ढूंढती रही पर आसपास कहीं नहीं दिखा.. ढूँढने के लिए वो खड़ी होने लगी तो एकदम से भोसड़े में रिमोट घुसे होने का एहसास हुआ.. मौसी बहोत ही शर्मा गई.. उन्हों ने रिमोट बाहर निकाला.. रिमोट पर चूत के सफेद रस का लेमिनेशन हो चुका था

अरे बाप रे.. इतनी देर तक ये अंदर ही था.. !! सोचते हुए उन्होंने टीवी बंद करने के लिए लाल बटन दबाया पर बंद नहीं हुआ.. रिमोट को किसी काम का नहीं छोड़ा था मौसी ने.. मन ही मन हंसने लगी मौसी.. ये चूत चीज ही ऐसी है.. अंदर जो भी जाता है.. बाहर निकलने के बाद किसी काम का नहीं रहता.. फिर वो रिमोट हो या लोडा.. रिमोट को टेबल पर रखते हुए टीवी की स्विच बंद कर दी और कपड़े पहन लिए.. लाइट ऑफ करके वो फिर से बिस्तर पर लेट गई

थोड़ी ही देर में उन्हें फिर से नींद आ गई.. कहते है की नींद आने की पूर्वशर्त होती है थकान.. और आज मौसी पूरी तरह से थक चुकी थी.. बूढ़ी घोड़ी जब रेस जीत जाए तब कितनी थक जाती है.. !!

रोज की तरह आज भी सुबह पाँच बजे डोरबेल बजी.. चीते की फुर्ती से अनुमौसी बिस्तर से भागकर गई और दरवाजा खोला.. रसिक को देखते ही वो सहम गई.. नई दुल्हन की तरह.. पर रसिक ने काजू की गैरमौजूदगी में मूंगफली से काम चला लेने का मन बना लिया था.. वो सीधे घर में घुस गया और दरवाजा बंद कर मौसी के होंठों को चूसने लग गया.. उनके गालों पर काटते हुए रसिक जंगली बन गया.. और जैसे वो दूध बेचने के लिए नहीं पर मौसी को छोड़ने आया हो उतना उतावला हो गया.. मौसी रसिक की इसी अदा की तो दीवानी थी.. चिमनलाल की लोकल ट्रेन उन्हें मंजिल पर बहोत देर से पहुंचाती थी.. और कभी कभी तो बीच रास्ते ही खराब हो जाती और मौसी को खुद के बलबूते पर ही मंजिल तक जाना पड़ता.. लेकिन रसिक के साथ ये प्रॉब्लेम नहीं थी.. वो तो बुलेट ट्रेन की गति से ऐसे शुरू हो जाता.. की एक ही सफर में मौसी तीन तीन मंज़िलें हासिल कर लेती..

रसिक के लोड़े को तुरंत पकड़ लिया मौसी ने.. पाजामे के बाहर निकालते हुए वो ऐसे हिलाने लगी जैसे थन से दूध दुह रही हो.. लंड से खेलने के लिए वो इतनी उतावली हो गई थी की प्राकृतिक रूप से लंड को खड़ा होने में जितना वक्त लगता है तब तक भी उनसे इंतज़ार नहीं हो रहा था.. चेहरे पर बेसब्री साफ झलक रही थी

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"मौसी, आपको इतना पसंद है मेरा??" जवान घोड़ी की तरह उछल रही मौसी के ढीले स्तनों को ब्लाउस के ऊपर से दबाते हुए रसिक ने पूछा

"रसिक, मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी में ऐसे सुख का अनुभव नहीं किया है.. पीयूष के पापा इस मामले में शून्य बंटा सन्नाटा जैसे है.. अगर तू मुझे मेरी जवानी में मिल गया होता तो क्या बात होती.. तेरा ये बड़ा ही मस्त है रसिक.. एक बार तेरे नीचे लेटी हुई औरत तुझे कभी भूल नहीं सकती.. आह्ह!!"

अपने लंड की तारीफ सुनते ही रसिक का लंड कडक हो गया बल्कि होना चाहिए उससे भी ज्यादा सख्त हो गया.. हवस और अहंकार दोनों की सहायता से.. मौसी की शादी जिस समय हुई थी उस समय स्त्रीयां लज्जा का अतिरेक करती थी.. वो समय ऐसा था जब पत्नी अपने पति का नाम भी नहीं लेती थी.. ऐसे में वो कैसे भला अपने पति से कह पाती की मेरी चूत चाटिए.. !! पुरुष को जैसे आता वैसे चोदकर अपना पानी छोड़कर बगल में खर्राटे भरने लगता था.. और औरत भी समझती थी की.. बस यही था, जो था.. !! औरतों का जीवन बस यही था की जब उसका पति कहे तब घाघरा उठा कर लंड लेने के लिए तैयार रहना.. और पति बस इतना ही समझता था की रोज रात होते ही अपनी पत्नी की चूत में लंड डालकर धक्के लगाना और जब पानी निकल जाए तब सो जाना..

शायद वात्स्यायन ने ऐसे पुरुषों के लिए ही संभोग पर पूरा ग्रंथ लिखना पड़ा.. उन्हें स्त्रीयों की इस दशा पर रहम आ गया होगा.. उन्हों ने सोचा होगा की अगर मैं इन तोतों को नहीं सिखाऊँगा तो कोयलें बेचारी कुंजना भूल जाएगी.. उनकी ज़िंदगी की जीवंतता कहीं खो जाएगी और वो पूरे जीवन में एक बार भी चरमोत्कर्ष को प्राप्त नहीं कर पाएगी.. हँसते हुए अपने मर्द की सारी इच्छाओं को पूरी करती रहेगी..

भला हो उस क्रांतिकारी वात्स्यायन का.. जिसने मानवजात को इस अनमोल ग्रंथ की भेंट दी.. और चोदना सिखाया.. ये भी सिखाया की संभोग के दौरान पहले स्त्री को उसकी चरमसीमा तक पहुंचाना चाहिए और उसके पश्चात ही पुरुष को झड़ना चाहिए.. नहीं तो आज भी पुरुष स्त्री को केवल भोगने का और बच्चे पैदा करने का साधन ही मान रहा होता.. चूत के थोड़े से ऊपर दो सुंदर स्तन होते है.. और उस स्तनों के पीछे एक नाजुक ह्रदय होता है.. और उस ह्रदय में कोमल भावनाएं बसी होती है.. जिन्हें समझना पुरुष के लिए बेहद जरूरी होता है.. शर्मीली प्रकृति वाली स्त्री उसे कभी खुद जाहीर नहीं कर पाती

आज के मुक्त समाज में किसी भी धर्म या संलग्न व्यक्ति को सेक्स की बात करते हुए देख समाज बर्दाश्त नहीं कर सकता.. तो सोचिए की इतनी सदियों पहले, एक महात्मा ने सेक्स के बारे में इतना विस्तृत ग्रंथ लिखा तब समाज ने उसे कैसे स्वीकार किया होगा.. !! कितनी आलोचना सहनी पड़ी होगी?? फिर भी उस ग्रंथ की रचना हुई और वो अब तक यथार्थ है इसका मतलब तो यही होता है की आज के मुकाबले उस समय का समाज ज्यादा मुक्त विचारों वाला था..

मौसी सोच रही थी की काश उनकी शादी रसिक से हुई होती तो कितना अच्छा होता.. !!! गरीबी में जीना पड़ता.. कपड़े धोने पड़ते.. दूध दुहना पड़ता.. पर जीवन के इस सर्वोच्च आनंद से वो वंचित तो न रहती.. !!! रसिक भी हिंसक होकर मौसी के विविध अंगों को मसलने मरोड़ने लगा था..

मौसी की निप्पलों को खींचते हुए रसिक ने कहा "चलिए मौसी.. जल्दी कीजिए.. फिर दूध देने भी जाना है"

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रसिक के लोड़े को तैयार देखकर मौसी खुश हो गई.. नीचे झुककर उन्हों ने टोपे को चूम लिया और बोली "कितना मस्त है.. मन तो करता है की टांगें फैलाकर पूरी रात डलवाती रहूँ"


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रसिक ने सोचा.. मौसी इतनी बूढ़ी है फिर भी मेरा लंड उन्हें खुश कर देता है.. तो मेरी रूखी को क्यों ये लंड छोटा पड़ता है? साली जब देखो तब ताने मारती रहती है की और धक्के लगाओ.. मज़ा नहीं आ रहा.. क्या नामर्दों की तरह चोद रहे हो.. !!! उससे तो शीला भाभी अच्छी.. कभी मेरे लंड से नाखुश नहीं होती.. जब से रूखी ने नामर्द कहा है तब से उसे रांड को छूने का मन ही नहीं करता.. पर ये कमबख्त लोडा मेरा.. रूखी के बबलों को देखते ही डोलने लगता है.. शीला भाभी मिल गई उसके बाद तो मैंने रूखी की तरफ देखा ही कहाँ है.. !! पर शीला भाभी के साथ सब बंद होने के बाद वापिस उस रूखी की शरण में जाना पड़ा.. हरामजादी को इससे बड़ा कैसा लंड चाहिए?? इतना मोटा और लंबा घुसाता हूँ फिर भी उसे कम पड़ता है.. कम ही पड़ेगा ना.. उसके वो यार जीवा का तगड़ा लंड लेने की आदत जो पड़ गई है उसे.. माँ चुदाने जाए रूखी.. अब तो यहाँ मौसी भी तैयार हो गई है.. शीला भाभी या तो मौसी.. दोनों में से एक तो जब चाहे मिल ही जाएगी मुझे.. पर जब तक शीला भाभी मिल रही हो तब तक मौसी को देखने का मतलब नहीं.. शीला भाभी के बॉल भी रूखी जैसे है.. बड़े बड़े.. और भाभी कितना मस्त चूसती है.. !! उस मामले में रूखी को कुछ नहीं आता.. साली को बस अपने भोसड़ा चटवाकर चुदवाना ही आता है.. शीला भाभी का पति और दो साल विदेश रुक गया होता तो कितना अच्छा होता..

"आह्ह रसिक.. तेरी याद में मुझे पूरी रात ठीक से नींद भी नहीं आई.. " मौसी पर अब हवस का बुखार चढ़ चुका था..

"मौसी, आज आपकी चाटूँ या सीधा घुसा दूँ?"

"चाटनी तो पड़ेगी बेटा.. वही तो सबसे बड़ा सुख है.. ले मेरी.. और आजा.. चाट चाटकर लाल कर दे मेरी.. आह रसिक.. मुझे तो तेरे साथ करवाने पर पता चला की यहाँ भी चाटते है.. मुझे सब से ज्यादा मज़ा उसी में आता है.. !!"

फर्श पर दोनों जांघें फैलाकर जितनी हो सके चौड़ी कर, मौसी ने अपनी झांटों वाले भोसड़े का नजारा दिखाया.. इस घनघोर जंगल में भोसड़े का प्रवेशद्वार ढूँढना मतलब समंदर में घुसकर मोती ढूँढने जैसा कठिन काम था.. रसिक ने डुबकी लगाई और मौसी के भोसड़े में खो गया.. जैसे ही उसकी जीभ मौसी की क्लिटोरिस पर जा टकराई.. मौसी का शरीर तंग हो गया..

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"आह्ह रसिक.. बस वहीं पर.. ओह्ह.. चाट वहाँ पर.. बहोत मज़ा आ रहा है मुझे" पैर ऊपर उठाते हुए भोसड़े को पूर्णतः चौड़ा कर वो कराहने लगी

मौसी की चूत के अंदर अपनी जीभ की कारीगरी दिखाते हुए रसिक ने उन्हें इतना नचाया.. इतना नचाया.. की अनुमौसी "ओह्ह--उहह--आह्ह" करते हुए झड़ गए.. उनका पानी रिस गया था और वो बेहद आनंदित थी.. उनको एक बार ठंडा करने के बाद भी रसिक ने चाटना नहीं छोड़ा.. और मौसी ने भी उसे रोका नहीं.. अब वो भोस के साथ जांघों को और क्लिटोरिस को चाट रहा था.. पर जब रसिक की जीभ भोसड़े की सरहद लांघ कर गांड के छेद पर जा पहुंची तब अनुमौसी की चूत नए सिरे से पानी बहाने लगी.. मौसी को ये क्रिया बेहद घिनौनी लग रही थी पर पुरुषों की अमर्याद कामुक क्रियाएं ही आखिर औरतों को तेजी से ऑर्गजम प्रदान करती है..

जितनी बार रसिक की जीभ अति उत्तेजना ने मौसी की गांड के छेद पर पहुँचती उतनी बार उनकी चूत संकुचित होकर रस छोड़ती.. पाँच से छह बार मौसी गरम होकर झड़ गई.. तब जाकर रसिक ने उनकी जांघों के बीच से अपना मुंह हटाया.. मौसी के चिपचिपे अमृतरस से लिप्त रसिक का मुंह ऐसा लग रहा था जैसे जंगल का राजा शेर, अभी शिकार को खाकर बैठा हो..

"मौसी, आपको तो मैंने खुश कर दिया.. अब आप मेरी एक इच्छा पूरी करेगी?" रसिक ने मौसी के बबले दबाते हुए कहा

"पहले तेरे इस मूसल की इच्छा पूरी कर रसिक.. देख कैसा तड़प रहा है.. मैं तो पाँच-छह बार ठंडी हो गई.. बता.. कौनसे छेद में डालेगा?? उस हिसाब से मैं तैयार रहूँ.. !!"

"आपकी भोस तो चाटकर तृप्त कर दिया आपको.. अब मेरी बारी है.. अब आप मेरा मुंह में लेकर चुसिए.. आज आपके मुंह में पानी निकालने का मन कर रहा है.. निकालने दोगे ना.. ??"

"छी छी.. ऐसा गंदा गंदा कोई करता है भला?? मुझे तो उलटी आ जाएगी.. मैं मुंह में तो नहीं निकालने दूँगी.. हाँ तेरा चूस सकती हूँ" कहते हुए मौसी पूरी तन्मयता और समर्पण के भाव से घुटनों के बल बैठ गई और चूसने लगी.. उन्हें चूसते हुए देख रसिक सोच रहा था.. दो ही दिन में मौसी लंड चूसने में एक्सपर्ट हो गई.. रसिक को मज़ा तो आ रहा था पर एक ही तकलीफ हो रही थी.. जब भी वो मौसी के मुंह में धक्का लगाता और उनके कंठ तक लंड घुसेड़ने की कोशिश करता.. तब मौसी अपना सर पीछे खींच लेती और रसिक का मूड ऑफ हो जाता..

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इसलिए रसिक ने अब दोनों हाथों से मौसी का सर जकड़ लिया.. और धक्के लगाने लगा.. अब मौसी हिल भी नहीं पा रही थी और उसे जबरदस्त मज़ा आना शुरू हो गया था.. जब वह अपने उत्तेजित लंड को पूरी ताकत से अंदर धकेलता तब मौसी के गले तक लंड उतर जाता..मौसी का दम घुटने लगा.. वो बिलबिलाने लगी.. वो रसिक की पकड़ से छूटने के लिए जोर लगाती रही.. पर कसरती शरीर वाले रसिक के आगे भला मौसी का जोर कैसे चलता.. !! रसिक दोनों हाथों से उनके बालों को पकड़ कर धमाधम धक्के लगा रही था और उसके आँड मौसी की ठुड्डी से टकरा रहे थे.. मौसी का नाक रसिक के झांटों के बीच आक्सिजन तलाश रहा था.. और तभी उन्हें एहसास हुआ की कुछ गरम तरल प्रवाही उनके कंठ से होते हुए पेट तक जाने लगा..

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अब तक जिस प्रवाही की गंध भी उन्होंने नहीं परखी थी वो चीज सीधे उनके मुंह के अंदर होते हुए पेट में जा रही थी.. मौसी को उलटी आ रही थी.. वो रसिक की पकड़ से छूटने के लिए मचल रही थी.. पर उत्तेजित मर्द को स्खलन की आखिरी पलों में अंकुश में करना बड़ा मुश्किल होता है..

मौसी की छटपटाहट की परवाह किए बिना रसिक अपने वीर्य के फव्वारे उनके गले के अंदर मारे जा रहा था.. जैसे विरोध पक्ष विरोध करते रहते है और शासक पक्ष विधेयक पास करवा लेते है.. वैसे ही अपना सारा लोड मौसी के हलक के नीचे उतार दिया और तब तक उन्हें नहीं छोड़ा जब तक उसके लंड की आखिरी बूंद अंदर उतर नहीं गई..

रसिक की पकड़ से छूटते ही मौसी अपना सर झटकते हुए मुंह के वीर्य के स्वाद को हटाने की व्यर्थ कोशिशें करती रही.. उनकी सांस फूल गई और वो वहीं फर्श पर ढल पड़ी.. देखकर रसिक घबरा गया.. कहीं बुढ़िया टपक तो नहीं गई.. !! बाप रे.. !! वो लेटी हुई मौसी के शरीर के आजूबाजू पैर रखकर खड़ा हो गया.. नंगी निश्चेतन मौसी उसकी दोनों टांगों के बीच लाश की तरह पड़ी हुई थी.. उसके लटकते हुए लंड से कुछ आखिरी बूंदें मौसी के स्तनों पर टपक पड़ी.. छाती पर गरम गरम एहसास होते ही मौसी ने अपनी आँखें खोली और नज़रों के सामने रसिक के विकराल लंड को ठुमकते हुए देखती रही.. घबराकर उन्होंने फिर से आँखें बंद कर ली..

थोड़ी देर बाद होश आते ही वो बैठ गई और रसिक पर गुस्सा करने लगी.. "नालायक.. ऐसे भी कोई करता है क्या?? अभी मेरी जान निकल जाती.. जा.. अब मुझे तेरे साथ नहीं करवाना.. " कहते हुए वो करवट बदल कर सो गई.. बात को बिगड़ता देख चिंतित रसिक उनकी जंघाओं को चौड़ी कर लेट गया और फिरसे मौसी की चूत चाटने लगा.. उन्हें रिझाने के लिए..

"छोड़ दे रसिक.. मुझे नहीं चटवानी.. तू जा यहाँ से.. " पर रसिक ने मौसी को रिझाने के प्रयास जारी रखें.. जैसे जैसे रसिक की जीभ मौसी की चूत की परतों को चाटती गई.. वैसे वैसे मौसी का गुस्सा, उत्तेजना में परिवर्तित होने लगा.. पर नाराज तो वो अब भी थी.. "मेरा हो चुका है.. अब मुझे कुछ नहीं करवाना तुझसे.. छोड़ मुझे.. और जा यहाँ से.. !!"

रसिक ने एक न सुनी.. और चाटता ही गया.. अब मौसी के दिमाग पर सुरूर छाने लगा था "आह्ह रसिक.. छोड़ दे.. पर चले मत जाना.. तू चला जाएगा तो फिर मैं क्या करूंगी? जो शुरू किया है वो पहले खतम कर.. !!" सारांश सिर्फ इतना था की मौसी फिर से उत्तेजित हो गई थी "साले फिर से क्यों ये सब शुरू किया? मैं ठंडी हो गई थी और तेरा भी निकल चुका था.. अब वापिस मुझे गरम कर दिया.. अब ये आग कौन बुझाएगा?? चल चाट अब इसे " उत्तेजित होकर मौसी अब खूंखार स्वरूप धारण करने लगी थी.. लेटे हुए रसिक की छाती पर सवार होकर वो हिंसक रूप से रसिक के होंठों पर अपनी भोस रगड़ने लगी..

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मौसी के भोसड़े के भीतर तक जीभ डालते हुए रसिक चाटता रहा और थोड़ी ही देर में मौसी फिर से झड़ गई.. जैसी जबरदस्ती रसिक ने उनके साथ की वैसा ही कुछ उन्होंने भी रसिक के साथ किया.. इस एहसास ने उनका गुस्सा कम कर दिया.. हिसाब बराबर हो चुका था.. मुसकुराते हुए मौसी ने रसिक से कहा "देखा कैसा होता है जब कोई जबरदस्ती कुछ करता है तब"

मौसी की दोनों निप्पलों को खींचते हुए रसिक ने कहा "मुझे तो इसमे भी बहोत मज़ा आया.. आपको भी मज़ा आया.. बेकार में हंगामा कर दिया उस वक्त आपने "

मौसी: "अरे कमीने, उस वक्त तो ऐसा लग रहा था की जैसे मेरे प्राण ही निकल जाएंगे.. तू इसी इच्छा की बात कर रहा था ?"

रसिक: "हाँ मौसी.. आपके मुंह में पानी गिराने में तो बहोत मज़ा आया.. पर मेरा मन कर रहा है किसी जवान छातियों को दबाने का.. बहोत समय से इच्छा है.. पर कीसे कहूँ? आपके ध्यान में अगर कोई इसी जवान चूत हो तो मुझे बताना.. "

मौसी: "मर जा मुएं बेशर्म.. अब मैं तेरे दबाने के लिए जवान छातियाँ ढूँढने बैठूँ.. !! ये शीला के तो रोज दबाता है तू.. मैं सब जानती हूँ.. मेरे मुकाबले तो वो काफी जवान है.. और सख्त भी.. और रूखी भी उससे बढ़कर है.. एक एक स्तन दो लीटर दूध समा सकें उतने बड़े है उसके.. फिर तू क्यों बाहर ढूँढता रहता है? इससे बेहतर और कौनसी छातियाँ चाहिए तुझे? घर पर रूखी के दबाता है और यहाँ शीला के.. मन नहीं भरता क्या?"

रसिक: "उस हरामजादी रूखी का नाम मत लो मेरे सामने.. मादरचोद ने मुझे नामर्द कहा था.. "

मौसी चोंक उठी "क्या बात कर रहा है? इतना बड़ा अजगर जैसा लंड है तेरा और फिर भी उसने तुझे नामर्द कहा??"

रसिक: "ये लंड आपको अजगर जैसा लगता है.. पर उसे तो ये भी छोटा पड़ता है.. और कहती है की मुझे ठीक से धक्के लगाना नहीं आता.. अब आप ही बताइए.. दो दिन से आपको चोद रहा हूँ.. आप को कोई कमी महसूस हुई क्या??"

मौसी: 'क्या बात कर रहा है, रसिक!! तेरे लंड के धक्के तो मुझे छातियों तक महसूस होते है.. मैं बूढ़ी हूँ फिर भी मेरी चीखें निकल जाती है.. कोई छोटी उम्र वाली की तो तू जान ही निकाल दे.. !!"

रसिक: 'और उस कमीनी को ये छोटा पड़ता है.. इसलिए साली किसी और का लंड लेती है"

अनुमौसी की आँखों में एक अजीब सी चमक आ गई.. रूखी को किसी गैर-मर्द के गधे जैसे लंड से चुदते हुए देखने की कल्पना करते हुए..

मौसी: "मुझे पता है वो किसका डलवाती है.. वो जिस से चुदवाती है उसका तुझसे भी बड़ा है रसिक.. पर तेरा भी कुछ कम नहीं है.. पीयूष के पापा से तो बड़ा ही है.. "

रसिक सुनता रहा.. वैसे उसे रूखी और जीवा के छक्का के बारे में मालूम ही था.. पर आश्चर्य इस बात से था की अनुमौसी को इस बारे में कैसे पता चला.. !!

"कौन है वो, मौसी?"

"रूखी के मायके का दोस्त है.. जीवा.. मैं और शीला, दोनों उसको जानते है" अनुमौसी ने अपने साथ साथ शीला का पेपर भी लीक कर दिया

"पर मौसी, आप को कैसे पता चला की उसका मुझसे भी बड़ा और मोटा है? इसका मतलब ये हुआ की आपने उसका देखा है"

मौसी ने बात टालने की कोशिश तो की पर अब रसिक को पता चल ही चुका था तो छुपाने का कोई मतलब नहीं था..और वो रसिक को अपने राज की बातें बता कर.. अपनी ओर खींचना चाहती थी.. इसलिए उन्होंने बता दिया

मौसी की नंगी भोस में रसिक ने दो उँगलियाँ अंदर बाहर करते हुए कहा "सच सच बता दो मौसी.. आप ने उस मादरचोद जीवा का सिर्फ देखा है या फिर अंदर लिया भी है? वो हरामखोर जब घर आता है तब तो रूखी उसे "मेरा भाई मेरा भाई" कहकर बुलाती है"

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"देख बेटा.. अब जमाना बदल गया है.. बहन बहन कहकर लॉग भांजे पैदा कर देते है.. आज कल के मर्द और औरत.. अपना पाप छुपाने के लिए मुंह बोली बहन या भाई का रिश्ता बनाकर इस पवित्र संबंध का दुरुपयोग करते है.. मैंने और शीला ने जीवा के साथ सब कुछ किया हुआ है.. तेरी बीवी ही उसे यहाँ लेकर आई थी.. जीवा उसके मायके का यार है और वो कुंवारी थी तब से उन दोनों का चक्कर चल रहा है.. रूखी को तो उसका लिए बिना चलता ही नहीं है.. तू शहर से बाहर था तब रूखी, जीवा का लंड लेने के लिए तरस रही थी.. घर पर तो तेरे माँ बाप रहते है इसलिए वहाँ तो बात बन न पाई.. आखिर रूखी ने शीला को बताया.. फिर शीला ने उन दोनों के मिलने का सेटिंग यहीं करवा दिया.. इसी बिस्तर पर जीवा ने तेरी बीवी की टांगें चौड़ी कर अपने गधे जैसे लंड से चोद दीया था.. मैंने और शीला ने जब जीवा का तगड़ा लंड देखा तब हम से भी रहा नहीं गया.. इसलिए मैंने और शीला ने जीवा और उसके दोस्त रघु से करवाया था.. बोल, और कुछ जानना है तुझे?"

"और तो कुछ नहीं जानना मौसी.. पर जैसे आप जीवा का लंड देखकर खुद को रोक नहीं पाई.. वैसे ही जवान छोटी छोटी छातियाँ देखकर मुझसे भी रहा नहीं जाता.. एक बार मुझे जवान बबलों की सेटिंग करवा दीजिए मौसी.. बदले में.. मैं सारी ज़िंदगी आपकी सेवा करूंगा.. !!"

अनुमौसी: "पर मैं कहाँ ढूँढने जाऊ तेरे लिए जवान छातियाँ?"

रसिक: 'कहीं ढूँढने जाने की जरूरत नहीं है.. आप के घर पर ही तो है.. कविता.. आपकी बहु.. !!"

अनुमौसी: "चुप हो जा कमीने.. कुछ पता भी है तू क्या बक रहा है?? सास होकर क्या मैं अपनी बहु से कहूँ की किसी अनजान मर्द के सामने अपनी छातियाँ खोल दे.. ?? वो क्या सोचेगी मेरे बारे में.. ??"

रसिक: "आप समझ नहीं रही है मौसी.. मैंने ये कब कहा की आप कविता से इस बारे में कहिए.. आपको तो बस मुझे आशीर्वाद देना है.. और बीच में टांग नहीं अड़ानी है.. बाकी सब मैं देख लूँगा.. आप देखकर अनदेखा तो कर सकती हो ना.. !!"

अनुमौसी: "अरे पर पीयूष को पता चल गया तो गजब हो जाएगा.. मैं माँ होकर अपने बेटे की ज़िंदगी में जहर नहीं घोल सकती.. ऐसा तो मैं होने नहीं दूँगी.. तू मुझे आज के बात कभी नहीं करेगा तो भी मुझे चलेगा.. पर फिर कभी ऐसी बात की ना तो तेरी खैर नहीं.. याद रखना तू.. !! हाँ अगर कोई बिन-ब्याही या विधवा होगी तो उसके साथ मैं तेरा सेटिंग करवा दूँगी.. ठीक है.. !!"

रसिक ने उदास होकर कहा "ठीक है मौसी.. चलो मैं अब चलता हूँ.. बहोत देर हो गई आज तो.. " मुंह फुलाकर नाराज होते हुए रसिक खड़ा हुआ.. मौसी सोच रही थी की जाते जाते रसिक उन्हें बाहों में भरकर चूमेगा.. पर रसिक ने ऐसा कुछ नहीं किया और गुस्से में चला गया.. मौसी का भी मूड ऑफ हो गया.. रसिक के जाने के बाद मौसी ने सोचा.. शीला का खाली घर अभी कुछ दिनों तक उनके कब्जे में थे.. रसिक को झूठ-मूठ की आशा देकर मना लेती तो तीन-चार दिन तक चुदाई का भरपूर लाभ मिल जाता.. बेकार में रसिक को नाराज कर दिया.. शीला होती तो यही करती.. मुझ में और शीला में यही तो फरक है.. शीला ने कलकत्ता बैठे बैठे मेरी यहाँ सेटिंग कर दी.. और मैं यहाँ रहते हुई भी उसे संभाल नहीं पाई.. अपने आप पर गुस्सा आ रहा था.. निराश होकर वह उठी और कपड़े पहन कर घर जाने लगी..


दरवाजा खोलते ही उन्हों ने देखा की उनके घर के बाहर रसिक कविता को दूध दे रहा था.. दोनों हंस हंस कर बातें कर रहे थे.. इतनी सुबह सुबह कविता क्या बात कर रही होगी इस दूधवाले से.. !! और ऐसा तो क्या कहा होगा रसिक ने जो कविता इतना हंस रही थी.. ?? रोज के मुकाबले रसिक आज कुछ ज्यादा ही समय ले रहा था दूध देने में.. मौसी के दिमाग में हजार खयाल आने लगे.. मौसी को यकीन हो गया की रसिक कविता को दाने डालकर पटाने की कोशिश कर रहा होगा..
बहुत ही कामुक गरमागरम और उत्तेजना से भरपूर अपडेट है अनु मौसी की फिर से दमदार चूदाई कर दी रसिक ने लेकिन जो मजा शीला के साथ आता है वह अनु मौसी के साथ नहीं आया
 

vakharia

Supreme
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एक गरम मर्द से यारी हो, उसी रात में उसकी बारी हो

बस हवसखोरी सारी हो, नोट आउट उसकी पारी हो

कभी उपर कभी नीचे, कभी आगे कभी पीछे

कभी ढीला कभी अक्कड कभी गाली कभी थप्पड़

आंह्...उंह्....आंह्..... उंह्..... आंह्... उंह्.आह्हहह....!!!!

ये जान कि मदन का भी विदेश में किसी महिला का साथ शारीरिक संबंध था...शीला के मन में जो आतमगलानी थी वो कम हो गई है। अपने किये का शायद अब कोई पछतावा नहीं और शायद भविष्य में कभी ऐसा करने का मौका मिले तो वो नहीं सोचेगी। बहुत बढ़िया अपडेट।
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Thanks a ton for the awesome poetic comments ♥️ :heart: ♥️
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Ek number

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रसिक के जाते ही मौसी ने दरवाजा बंद किया और बिस्तर को ठीक करने लगी.. मौसी का हाथ अनायास ही उनकी गांड पर चला गया.. अभी भी दर्द हो रहा था.. मौसी बिस्तर पर लेट गई.. सुबह के छह बजे थे.. रोज जल्दी जागकर घर के काम निपटाने वाली मौसी का जिस्म आज सुस्त था.. थोड़ी देर तक सो कर अपनी थकान उतारी और फिर वो घर चली गई..

घर के अंदर प्रवेश करते हुए.. सामने बैठे चिमनलाल से नजरें नहीं मिला पा रही थी मौसी.. उनके लिए चाय बनाकर वो वापिस घर के कामों में व्यस्त हो गई.. चाय नाश्ता करके चिमनलाल बाहर चले गए.. फिर पीयूष भी ऑफिस चला गया.. अब कविता और मौसी दोनों घर पर अकेले थे

कविता आज बहोत खुश दिख रही थी.. ये देखकर मौसी के दिल को चैन मिला.. चलो अच्छा हुआ जो पति-पत्नी में सुलह हो गई.. अनुमौसी भी आज रोज के मुकाबले काफी फ्रेश लग रही थी.. रसिक से चुदवाकर उनके जिस्म की आग ठंडी जो हो गई थी.. वो नहाने के लिए बाथरूम मे गई तब अपने भोसड़े को सहलाते हुए उन्हें रसिक का मूसल याद आ गया.. फिर उनकी चूत ने संतुष्टि का डकार लिया.. उसे सहलाकर मौसी ने शांत किया और तैयार होकर बाहर निकली

शाम को जब पीयूष आया तब कविता ने उसे कहा की उसके पापा का फोन आया था.. पंद्रह दिनों में ही मौसम की शादी होनी थी.. तरुण को बेंगलोर की एक बड़ी कंपनी में जॉब मिल गई थी.. बहोत अच्छी तनख्वाह मिलने वाली थी.. इसलिए उनकी इच्छा थी की तरुण के बेंगलोर जाने से पहले ही शादी निपटा ली जाए..

सुनकर पीयूष बेहद निराश हो गया.. सिर्फ पंद्रह दिन??

"अरे.. इतने दिनों में कैसे सारी तैयारियां होंगी? कपड़े, साड़ियाँ, जेवर और बहोत सारी चीजें लेनी होगी.. हॉल बुक करना पड़ेगा.. और भी ढेर सारी तैयारियां करनी होगी.. कैसे होगा सब??"

कविता: "पापा कह रहे थे की शॉपिंग में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा.. जेवर खरीदना भी सिर्फ एक दिन का काम है.. पर सब से जरूरी है मौसम को इस के लिए मनाना.. मम्मी पापा तो तैयार है.. वो कह रहे थे की सब को थोड़ी सी दौड़-भाग होगी पर इतना अच्छा लड़का हाथ से चला जाएँ उससे तो अच्छा है की हम सब इस बात के लिए राजी हो जाए.. "

पीयूष: "मैं समझ गया कविता, लेकिन.... !!!"

कविता: "लेकिन-वेकीन कुछ नहीं.. हम सब है ना पापा मम्मी की मदद के लिए.. सब साथ मिलकर जुट जाएंगे तो हो जाएगा.. कोई बड़ी बात नहीं है"

पीयूष उदास हो गया.. इतने काम वक्त में तैयारियां तो हो जाएगी.. पर उसका और मौसम को मिलने का वक्त मिलना अब असंभव था

रात के खाने के बाद, कविता और पीयूष छत पर अंधेरे में बैठे हुए थे.. कविता ने पीयूष की शॉर्ट्स में हाथ डालकर उसके लंड को मसाज देते हुए ये चर्चा छेड़ी थी.. कविता के हाथों का स्पर्श और उसके सुंदर स्तनों का शरीर पर दबाव महसूस करते ही पीयूष का जवान लंड सरसराने लगा.. रोज तो कविता के छूते ही खड़ा हो जाने वाला लंड अभी भी अर्ध-जागृत अवस्था में था.. कविता का हाथ पीयूष के लंड को नरम नहीं होने दे रहा था और मौसम की याद उसे ठीक से सख्त नहीं होने दे रही थी..

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मौसम के प्रति पीयूष के आकर्षण से बेखबर कविता बेचारी अपने पापा के दृष्टिकोण से सोचकर बातें कीये जा रही थी.. और पीयूष का दिमाग बातों में कम और मौसम के विचारों में ज्यादा उलझा हुआ था.. मौसम की जल्द शादी होने की बात से उसे गहरा सदमा पहुंचा था.. अगर इस बारे में पहले पता चला होता तो वो मौसम से फोन पर बात करता.. उस बेचारी ने तो आज तीन बार फोन कीये थे.. पर काम में व्यस्त होने के कारण वो बात नहीं कर पाया था.. और जब फ्री होकर पीयूष ने फोन किया तब मौसम ने कट कर दिया था.. शायद उसने इसी बात के लिए फोन किया होगा.. वरना मौसम उसे ऑफिस के टाइम पर कॉल नहीं करती थी

ये सब क्या हो गया अचानक?? पीयूष को अपनी किस्मत पर गुस्सा आ रहा था.. पीयूष के लंड को सहलाते हुए कविता मौसम को मनाने के तरीके सोच रही थी.. पर न कोई उपाय मिला और ना ही पीयूष का लंड सख्त हुआ.. आखिर थककर दोनों बेडरूम में आकर सो गए.. कविता बार बार पीयूष के शरीर को छेड़ती रही.. पर पीयूष के दिल के शेयर की किंमतें इतनी गिर चुकी थी की कितनी कोशिशों के बावजूद उसके लंड का सेंसेक्स ऊपर नहीं आया..

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आखिर कविता भी थककर दुसरें विचारों में खो गई.. और इसी विचारों में ही तो कविता की सब से बड़ी दौलत छुपी हुई थी.. पिंटू को मिलने का बड़ा मन कर रहा था कविता को.. माउंट आबू से लौटने के बाद एक बार भी बात नहीं हुई थी पिंटू से.. पहले तो जब कविता का मन करता वो पिंटू से बात कर लेती..पर अब पिंटू को काम की ज़िम्मेदारियाँ बढ़ गई थी.. और जब वो फ्री होता तब पीयूष उसके साथ होता.. इसलिए बात करना मुश्किल हो जाता.. पिंटू जब ऑफिस से निकलता तब कविता घर के काम में बिजी हो जाती और फिर पीयूष के घर आ जाने के बाद सब कुछ ब्लॉक.. !!

कविता सोच रही थी की मौसम की शादी के बहाने जब वो मायके जाएगी तब पिंटू से मिलने का मौका जरूर मिल जाएगा.. इस विचार मात्र से उसकी जांघें भीड़ गई.. उसकी बगल में पीयूष ऐसे निश्चेतन होकर पड़ा था जैसे उसकी सारी दुनिया लूट चुकी हो.. पर कविता का जिस्म हवस की आग में तपने लगा था.. ये ऐसी हवस थी जिसमे केवल जिस्म की भूख ही नहीं पर अपने प्रेमी से मिलने की तड़प भी शामिल थी..

कविता का हाथ उसकी चूत पर पहुँच गया.. एक हाथ से नाइटड्रेस से उसने अपना स्तन बाहर निकाला.. और पिंटू को याद करते हुए दबाने लगी..


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मज़ा तो आया पर जितना आना चाहिए था उतना नहीं आया.. प्रेमी के हाथ से स्तन दबने पर जो मज़ा आता है वो तो अभी आना मुमकिन नहीं था.. और वो ये नहीं चाहती थी की इस वक्त पीयूष का हाथ उसके जिस्म को छूए.. फिलहाल वो अपने सपनों की दुनिया में.. अपने प्रेमी के संग मस्त थी.. ऐसी दुनिया जहां समाज का डर नहीं था.. ज़िम्मेदारियाँ नहीं थी.. कोई रोक-टॉक नहीं थी.. सिर्फ वो और पिंटू दोनों थे.. जैसे कविता की अपनी सपनों की अनोखी दुनिया थी.. वैसी ही अपनी दुनिया पीयूष की भी थी ही.. !! ये बात ओर थी की फिलहाल वो मौसम के बारे में रोमेन्टीक विचार करने की स्थिति में नहीं था.. अभी कुछ दिनों पहले ही वो मौसम के प्यार में सराबोर था और कविता पिंटू के नजदीक होते हुए भी दूर थी.. और दुखी भी.. कविता के लिए माउंट आबू की यात्रा एक दुःखद याद बनकर रह गई थी.. लेकिन पीयूष के लिए माउंट आबू की यादें अनमोल थी.. ऐसी याद जो भुलाएं नहीं भूलती थी.. आबू में ही तो उसे मौसम के जबरदस्त आकर्षक कच्चे कुँवारे उरोजों को दबाने का मौका मिला था.. उसके गुलाबी अधरों को चूमने का अहोभाग्य भी प्राप्त हुआ था.. पर अभी वो यादें उसके किसी काम की नहीं थी..

पर कविता आज फूल-फॉर्म में थी.. अपने स्तनों को दबाते हुए वो पिंटू को याद करने लगी.. उसका मन अब लंड चूसने का कर रहा था.. कविता की इच्छा इतनी तीव्र थी की अगर उसे पंख होते तो अभी उड़कर पिंटू के पास चली जाती.. कुछ भी हो जाए.. बस एक बार.. पिंटू के साथ मन भरकर ज़िंदगी जी लेनी है.. मौसम की शादी के बहाने कम से कम एक हफ्ते के लिए मायके जाना होगा.. उस समय का भरपूर लाभ उठाने का मन बना लिया कविता ने.. मिलना तो हो जाएगा.. पर पिंटू के साथ वक्त बिताऊँ कहाँ? कोई घर तो होना चाहिए अकेले मिलने के लिए.. !! पर किसी के घर पिंटू से मिलना खतरे से खाली नहीं था.. कुछ तो सेटिंग करना पड़ेगा

कविता के हाथ लगातार उसके शरीर पर चल रहे थे.. वो ऐसा महसूस कर रही थी जैसे पिंटू उसके जिस्म को मसल रहा हो.. एक साथ दो उँगलियाँ उसने अंदर डाल दी थी.. आगे पीछे करते हुए वो झड़कर ठंडी हो गई.. और दो मिनट में गहरी नींद सो गई

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अनुमौसी की किस्मत चमक गई थी.. चिमनलाल अपने दोस्त की बेटी की शादी में शहर से बाहर गए थे.. कविता और पीयूष को बताकर मौसी शीला के घर सोने चली गई.. जैसे ही शीला के घर का दरवाजा बंद किया.. उन्हें रसिक के लंड की याद सताने लगी.. एकांत कितना भयानक होता है.. !! सज्जन से सज्जन आदमी अकेला होते ही विचारों में बह जाता है.. हकीकत में चारित्रवान उसे ही कहा जा सकता है जो अकेले में मौका होने के बावजूद भी ईमानदार रह सके.. बाकी ५० की उम्र में ड़ायाबिटिस के कारण लंड खड़ा ही न होता हो.. वैसे लोग अगर चारित्रवान होने का दावा करें तो उसका कोई अर्थ नहीं होता.. वो तो मजबूरी के मारे धारण की हुई सज्जनता कहलाएगी.. जिसका लंड दिन में दस बार टाइट होता हो.. वो इंसान अकेले में किसी सुंदर स्त्री को भोगने के बजाए उसे अपनी बहन मान सके.. वही सच्चा सज्जन.. !!

मौसी ने टीवी चालू किया.. खाना तो वो घर से खाकर आई थी.. बैठे बैठे वो "अनुपमा" के जीवन की समस्याओं को देख रही थी.. तभी लेंडलाइन की घंटी बजी.. मौसी ने फोन उठाया.. शीला का कॉल था

"कैसी हो मौसी? सब ठीक ठाक??"

मौसी: "हाँ शीला.. सब ठीक है.. तू कैसी है? वहाँ सब ठीक है? तुम्हारे समधी की अंतिम विधि हो गई? "

शीला: "हाँ मौसी.. अंतिम विधि तो हो गई.. अब बाकी सारी विधियाँ चल रही है.. वैशाली का प्रश्न बार बार परेशान कर रहा है.. समझ में नहीं आता की क्या करें.. कोई हाल सूझ नहीं रहा था तो सोचा आपसे बात करूँ और आपकी राय ले लूँ.. !!"

"क्यों? अब क्या हुआ वैशाली को?"

शीला: "होना क्या था मौसी.. मेरी वैशाली को वो नालायक बहोत परेशान कर रहा है.. उसके बाप की मौत हुई है.. ऐसे गंभीर वातावरण में भी घर में झगड़े कर रहा है.. "

अनुमौसी: "क्या बात कर रही है.. !! ये तो एक नंबर का कमीना निकला.. !!"

शीला: "हम यहाँ पहुंचे तब वैशाली उसके पापा के गले लगकर इतना रोई की क्या बताऊँ.. मेरा तो दिल ही बैठ गया.. मैंने बेटी को ससुराल भेजा है या कसाई के पास.. यही पता नहीं चल रहा.. !!"

अनुमौसी: "देख शीला.. अगर वैशाली को वहाँ नहीं रहना हो तो सारी विधि खतम होने के बाद उसे यहाँ वापिस ले आओ.. जो होगा देखा जाएगा..बेटी को ऐसी हालत में उस दरिंदे के पास छोड़ना ठीक नहीं.. "

शीला: "पर उनकी तेरहवीं को तो अभी बहोत दिन बाकी है.. तब तक हम यहाँ क्या करें?? यहाँ तो एक दिन रहना भी मुश्किल है.. मदन तो कब से वापिस जाने के लिए उतावला हो रहा है.. यहाँ संजय तो अपने बाप को जलाकर कहाँ गायब हो गया पता नहीं.. कौन जाने कहाँ भटक रहा होगा साला!!"

अनुमौसी: "गया होगा अपने लफंगे दोस्तों के साथ या फिर कहीं रंगरेलियाँ मनाने.. कुछ भी हो जाए तुम लोग वैशाली को वहाँ उस हेवान के साथ अकेला मत छोड़ना.. तुम एक काम करो.. मदन चाहे वापिस लौट जाएँ.. तुम वैशाली के साथ ही रहो.. तेरहवीं खतम होने के बाद मदन वहाँ आएगा और तुम दोनों को साथ लेकर वापिस.. "

मौसी का ये सुझाव शीला के गले उतर गया.. वो इस बारे में सोचेगी.. ऐसा कहकर फोन काट दिया.. फोन रखकर मौसी भी वैशाली के बारे में सोच में पड़ गई थी.. चेनल बदलते बदलते एक अंग्रेजी सेक्सी सीन पर आकर वो रुक गई.. वैशाली के सारे विचार दिमाग से निकल गए.. आधे नंगे कपड़ों में एक अंग्रेज लड़की उसके बॉयफ्रेंड के होंठों पर किस कर रही थी.. उसके मस्त स्तनों को देखकर मौसी को ईर्ष्या होने लगी.. अपने ब्लाउस के बटन खोलकर.. लटके हुए स्तनों को दोनों हाथों से जोड़कर अपने जवानी के दिनों को याद करने लगी मौसी..

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यही स्तन.. जवानी में कितने सख्त और मस्त थे!! ब्याह कर ससुराल आई तब वो कुंवारी थी.. उसके अक्षत कौमार्य को चिमनलाल ने भंग किया था और फिर बड़े मजे से उसके जिस्म का आनंद लिया था.. पर चिमनलाल सेक्स के मामले में काफी ठंडे थे.. जिस आक्रामकता की उम्मीद मौसी को थी वो कभी दिखा नहीं पाए.. जो आखिरकार मौसी को रसिक से मिली.. शादी के शुरुआती सालों में चिमनलाल ने मौसी की भरपूर चुदाई की थी.. और तब वह संतुष्ट भी थी.. पर आज जो ताकत रसिक ने दिखाई थी वो तो चिमनलाल में कभी नहीं थी.. जब चिमनलल से बेहतर कुछ मिला तब उसे ज्ञात हुआ की अब तक जिस तरह का सेक्स उन्होंने किया वो तो कुछ भी नहीं था.. आज जाकर उन्हें पता चला की जिस अभाव से अबतक वो झुझ रही थी.. वो कमी थी आक्रामक सेक्स की.. कभी कभी औरतों की ऐसी इच्छा होती है की मर्द उन्हें बेरहमी से भोगें.. गालियां बकते हुए.. उनके जिस्म को रौंदते हुए.. उसके जिस्म के साथ ऐसे ऐसे खिलवाड़ हो जो उसकी कल्पना के परे हो.. एक कुंवारी लड़की का.. और एक परिपक्व अनुभवी ढलती उम्र वाली स्त्री का.. रोमांस का खयाल अलग अलग होता है.. उम्र के साथ साथ अपेक्षा और व्याख्या बदलती रहती है..

नई नवेली दुल्हन की रोमांस की व्याख्या कुछ ऐसी होती है.. की उसका पति ऑफिस के टाइम पर उसे फोन करे.. घर पर मेहमान आए हो तब कैसे भी साथ सोने का सेटिंग करे.. सब की मौजूदगी में उसे छेड़े.. एक कोल्डड्रिंक में दो स्ट्रॉ डालकर साथ पियें.. आस पास कोई न हो तब चुपके से उसके स्तन दबा दे.. बस यही अपेक्षा और उम्मीद रहती है.. पर उम्र के अनुभवी मकाम पर पहुंची हुई औरतों के लिए रोमांस का मतलब होता है.. साहचर्य, विचारों का तालमेल और आक्रामक सेक्स.. ऐसा सेक्स जो उनके हड्डियों को झकझोर कर रख दे.. और उनके ढीले भोसड़े को सख्त लंड से चोदकर छील दे.. चुदाई के दौरान बेहद कामुक होकर नए नए आसन करे.. ऐसा सेक्स करे की दो दिन तक उसकी थकान महसूस हो.. ये सारी बातें एक वयस्क स्त्री की रोमांस की व्याख्या हो सकती है..

अनुमौसी को खुद की किस्मत पर गर्व हो रहा था क्योंकि आज उनके मन में छुपी हुई उस गहरी इच्छा को बाहर लाकर रसिक ने संतुष्ट किया था..

एकांत.. टीवी पर चल रहा रोमेन्टीक द्रश्य.. और सुबह के संभोग का सुरूर.. ये सब मिल जाएँ तो नतीजा क्या हो सकता है? देखते ही देखते अनुमौसी के सारे कपड़े उतर गए.. भोसड़े में चार उँगलियाँ एक साथ डालकर ऐसे आगे पीछे कर रही थी जैसे गीले गड्ढे से मिट्टी खोद रही हो.. उँगलियाँ डाल डालकर वो रसिक का दिया हुआ ऑर्गजम ढूंढ रही थी.. ढीले भोसड़े को उंगलियों से ठंडा करना संभव नहीं था.. थोड़ी देर कोशिश करने के बाद वो थक गई.. हारकर वो खड़ी हो गई.. और यहाँ वहाँ देखने लगी.. उनकी नजर किसी ऐसी वस्तु की खोज कर रही थी जो आसानी से उपलब्ध नहीं थी.. भोसड़े में आग लगी हुई थी.. रसिक तो दूसरे दिन सुबह आने वाला था.. बीच में पड़ी इस पूरी रात को इस सुलगते हुए बदन के साथ गुजारना उनके लिए नामुमकिन था..

मौसी की नजर सब जगह दौड़ने लगी.. वो कुछ ऐसा ढूंढ रही थी जो उनके भोसड़े में फिट बैठे और रसिक के मोटे लोड़े की कमी पूरी कर सके.. पर उन्हें ऐसा कुछ नहीं मिला.. आखिर वो वापिस बिस्तर पर लेट गई.. और गोल तकिये को अपनी दोनों जांघों के बीच दबाकर पड़ी रही.. भड़कते भोसड़े को थोड़ी राहत जरूर मिली पर सिर्फ ऊपर ऊपर से.. अंदर जो ज्वालामुखी सक्रिय हो चुका था उसका क्या करें???

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अनजाने में ही वो कमर हिलाने लगी और सिसकियाँ भरते हुए रसिक के कसरती मजबूत बदन को याद करते हुए तकिये पर जोर-जबरदस्ती करने लगी.. जैसे जैसे वो तकिये से भोस रगड़ती गई वैसे वैसे परिस्थिति बद से बदतर होने लगी.. एक समय तो ऐसा आया की हताश होकर उन्होंने तकिये को उठाकर दूर फेंक दिया.. निर्जीव तकिया बेचारा दीवार से टकराकर फर्श पर गिर गया..

अब अनुमौसी ने टीवी का रिमोट ही अपने भोसड़े में घुसेड़ दिया.. और अंदर तक घुसाकर फिर बाहर खींचा.. और वैसे ही अंदर बाहर करती रही.. रिमोट पर लगे खुरदरे प्लास्टिक के घर्षण से उनके भोसड़े में बहार आ गई.. रिमोट के बटनों को अपनी क्लिटोरिस पर रगड़ते ही उन्हें यकीन हो गया की यही उनकी आग बुझाएगा.. उन्होंने अंदर बाहर करने की गति ओर तेज कर दी.. उनका हाथ इस परिश्रम से थक चुका था पर उस थकान की परवाह किए बिना.. वो इस चरमोत्कर्ष प्राप्त करने के आंदोलन में डटी रही.. आखिर घिसते रगड़ते उनके भोसड़े का कल्याण हो गया.. बेहद थक चुकी थी मौसी.. उनका सारा बदन कांप रहा था.. रिमोट को भोसड़े से निकालने तक का होश नहीं रहा और उनकी आँख लग गई..

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करीब दो बजे उनकी आँख खुली.. आँखें मलते हुए उन्हों ने अपने नग्न शरीर को देखा और शर्मा गई.. लाइट भी चालू थी और टीवी भी.. टीवी बंद करने के लिए यहाँ वहाँ रिमोट ढूंढती रही पर आसपास कहीं नहीं दिखा.. ढूँढने के लिए वो खड़ी होने लगी तो एकदम से भोसड़े में रिमोट घुसे होने का एहसास हुआ.. मौसी बहोत ही शर्मा गई.. उन्हों ने रिमोट बाहर निकाला.. रिमोट पर चूत के सफेद रस का लेमिनेशन हो चुका था

अरे बाप रे.. इतनी देर तक ये अंदर ही था.. !! सोचते हुए उन्होंने टीवी बंद करने के लिए लाल बटन दबाया पर बंद नहीं हुआ.. रिमोट को किसी काम का नहीं छोड़ा था मौसी ने.. मन ही मन हंसने लगी मौसी.. ये चूत चीज ही ऐसी है.. अंदर जो भी जाता है.. बाहर निकलने के बाद किसी काम का नहीं रहता.. फिर वो रिमोट हो या लोडा.. रिमोट को टेबल पर रखते हुए टीवी की स्विच बंद कर दी और कपड़े पहन लिए.. लाइट ऑफ करके वो फिर से बिस्तर पर लेट गई

थोड़ी ही देर में उन्हें फिर से नींद आ गई.. कहते है की नींद आने की पूर्वशर्त होती है थकान.. और आज मौसी पूरी तरह से थक चुकी थी.. बूढ़ी घोड़ी जब रेस जीत जाए तब कितनी थक जाती है.. !!

रोज की तरह आज भी सुबह पाँच बजे डोरबेल बजी.. चीते की फुर्ती से अनुमौसी बिस्तर से भागकर गई और दरवाजा खोला.. रसिक को देखते ही वो सहम गई.. नई दुल्हन की तरह.. पर रसिक ने काजू की गैरमौजूदगी में मूंगफली से काम चला लेने का मन बना लिया था.. वो सीधे घर में घुस गया और दरवाजा बंद कर मौसी के होंठों को चूसने लग गया.. उनके गालों पर काटते हुए रसिक जंगली बन गया.. और जैसे वो दूध बेचने के लिए नहीं पर मौसी को छोड़ने आया हो उतना उतावला हो गया.. मौसी रसिक की इसी अदा की तो दीवानी थी.. चिमनलाल की लोकल ट्रेन उन्हें मंजिल पर बहोत देर से पहुंचाती थी.. और कभी कभी तो बीच रास्ते ही खराब हो जाती और मौसी को खुद के बलबूते पर ही मंजिल तक जाना पड़ता.. लेकिन रसिक के साथ ये प्रॉब्लेम नहीं थी.. वो तो बुलेट ट्रेन की गति से ऐसे शुरू हो जाता.. की एक ही सफर में मौसी तीन तीन मंज़िलें हासिल कर लेती..

रसिक के लोड़े को तुरंत पकड़ लिया मौसी ने.. पाजामे के बाहर निकालते हुए वो ऐसे हिलाने लगी जैसे थन से दूध दुह रही हो.. लंड से खेलने के लिए वो इतनी उतावली हो गई थी की प्राकृतिक रूप से लंड को खड़ा होने में जितना वक्त लगता है तब तक भी उनसे इंतज़ार नहीं हो रहा था.. चेहरे पर बेसब्री साफ झलक रही थी

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"मौसी, आपको इतना पसंद है मेरा??" जवान घोड़ी की तरह उछल रही मौसी के ढीले स्तनों को ब्लाउस के ऊपर से दबाते हुए रसिक ने पूछा

"रसिक, मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी में ऐसे सुख का अनुभव नहीं किया है.. पीयूष के पापा इस मामले में शून्य बंटा सन्नाटा जैसे है.. अगर तू मुझे मेरी जवानी में मिल गया होता तो क्या बात होती.. तेरा ये बड़ा ही मस्त है रसिक.. एक बार तेरे नीचे लेटी हुई औरत तुझे कभी भूल नहीं सकती.. आह्ह!!"

अपने लंड की तारीफ सुनते ही रसिक का लंड कडक हो गया बल्कि होना चाहिए उससे भी ज्यादा सख्त हो गया.. हवस और अहंकार दोनों की सहायता से.. मौसी की शादी जिस समय हुई थी उस समय स्त्रीयां लज्जा का अतिरेक करती थी.. वो समय ऐसा था जब पत्नी अपने पति का नाम भी नहीं लेती थी.. ऐसे में वो कैसे भला अपने पति से कह पाती की मेरी चूत चाटिए.. !! पुरुष को जैसे आता वैसे चोदकर अपना पानी छोड़कर बगल में खर्राटे भरने लगता था.. और औरत भी समझती थी की.. बस यही था, जो था.. !! औरतों का जीवन बस यही था की जब उसका पति कहे तब घाघरा उठा कर लंड लेने के लिए तैयार रहना.. और पति बस इतना ही समझता था की रोज रात होते ही अपनी पत्नी की चूत में लंड डालकर धक्के लगाना और जब पानी निकल जाए तब सो जाना..

शायद वात्स्यायन ने ऐसे पुरुषों के लिए ही संभोग पर पूरा ग्रंथ लिखना पड़ा.. उन्हें स्त्रीयों की इस दशा पर रहम आ गया होगा.. उन्हों ने सोचा होगा की अगर मैं इन तोतों को नहीं सिखाऊँगा तो कोयलें बेचारी कुंजना भूल जाएगी.. उनकी ज़िंदगी की जीवंतता कहीं खो जाएगी और वो पूरे जीवन में एक बार भी चरमोत्कर्ष को प्राप्त नहीं कर पाएगी.. हँसते हुए अपने मर्द की सारी इच्छाओं को पूरी करती रहेगी..

भला हो उस क्रांतिकारी वात्स्यायन का.. जिसने मानवजात को इस अनमोल ग्रंथ की भेंट दी.. और चोदना सिखाया.. ये भी सिखाया की संभोग के दौरान पहले स्त्री को उसकी चरमसीमा तक पहुंचाना चाहिए और उसके पश्चात ही पुरुष को झड़ना चाहिए.. नहीं तो आज भी पुरुष स्त्री को केवल भोगने का और बच्चे पैदा करने का साधन ही मान रहा होता.. चूत के थोड़े से ऊपर दो सुंदर स्तन होते है.. और उस स्तनों के पीछे एक नाजुक ह्रदय होता है.. और उस ह्रदय में कोमल भावनाएं बसी होती है.. जिन्हें समझना पुरुष के लिए बेहद जरूरी होता है.. शर्मीली प्रकृति वाली स्त्री उसे कभी खुद जाहीर नहीं कर पाती

आज के मुक्त समाज में किसी भी धर्म या संलग्न व्यक्ति को सेक्स की बात करते हुए देख समाज बर्दाश्त नहीं कर सकता.. तो सोचिए की इतनी सदियों पहले, एक महात्मा ने सेक्स के बारे में इतना विस्तृत ग्रंथ लिखा तब समाज ने उसे कैसे स्वीकार किया होगा.. !! कितनी आलोचना सहनी पड़ी होगी?? फिर भी उस ग्रंथ की रचना हुई और वो अब तक यथार्थ है इसका मतलब तो यही होता है की आज के मुकाबले उस समय का समाज ज्यादा मुक्त विचारों वाला था..

मौसी सोच रही थी की काश उनकी शादी रसिक से हुई होती तो कितना अच्छा होता.. !!! गरीबी में जीना पड़ता.. कपड़े धोने पड़ते.. दूध दुहना पड़ता.. पर जीवन के इस सर्वोच्च आनंद से वो वंचित तो न रहती.. !!! रसिक भी हिंसक होकर मौसी के विविध अंगों को मसलने मरोड़ने लगा था..

मौसी की निप्पलों को खींचते हुए रसिक ने कहा "चलिए मौसी.. जल्दी कीजिए.. फिर दूध देने भी जाना है"

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रसिक के लोड़े को तैयार देखकर मौसी खुश हो गई.. नीचे झुककर उन्हों ने टोपे को चूम लिया और बोली "कितना मस्त है.. मन तो करता है की टांगें फैलाकर पूरी रात डलवाती रहूँ"


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रसिक ने सोचा.. मौसी इतनी बूढ़ी है फिर भी मेरा लंड उन्हें खुश कर देता है.. तो मेरी रूखी को क्यों ये लंड छोटा पड़ता है? साली जब देखो तब ताने मारती रहती है की और धक्के लगाओ.. मज़ा नहीं आ रहा.. क्या नामर्दों की तरह चोद रहे हो.. !!! उससे तो शीला भाभी अच्छी.. कभी मेरे लंड से नाखुश नहीं होती.. जब से रूखी ने नामर्द कहा है तब से उसे रांड को छूने का मन ही नहीं करता.. पर ये कमबख्त लोडा मेरा.. रूखी के बबलों को देखते ही डोलने लगता है.. शीला भाभी मिल गई उसके बाद तो मैंने रूखी की तरफ देखा ही कहाँ है.. !! पर शीला भाभी के साथ सब बंद होने के बाद वापिस उस रूखी की शरण में जाना पड़ा.. हरामजादी को इससे बड़ा कैसा लंड चाहिए?? इतना मोटा और लंबा घुसाता हूँ फिर भी उसे कम पड़ता है.. कम ही पड़ेगा ना.. उसके वो यार जीवा का तगड़ा लंड लेने की आदत जो पड़ गई है उसे.. माँ चुदाने जाए रूखी.. अब तो यहाँ मौसी भी तैयार हो गई है.. शीला भाभी या तो मौसी.. दोनों में से एक तो जब चाहे मिल ही जाएगी मुझे.. पर जब तक शीला भाभी मिल रही हो तब तक मौसी को देखने का मतलब नहीं.. शीला भाभी के बॉल भी रूखी जैसे है.. बड़े बड़े.. और भाभी कितना मस्त चूसती है.. !! उस मामले में रूखी को कुछ नहीं आता.. साली को बस अपने भोसड़ा चटवाकर चुदवाना ही आता है.. शीला भाभी का पति और दो साल विदेश रुक गया होता तो कितना अच्छा होता..

"आह्ह रसिक.. तेरी याद में मुझे पूरी रात ठीक से नींद भी नहीं आई.. " मौसी पर अब हवस का बुखार चढ़ चुका था..

"मौसी, आज आपकी चाटूँ या सीधा घुसा दूँ?"

"चाटनी तो पड़ेगी बेटा.. वही तो सबसे बड़ा सुख है.. ले मेरी.. और आजा.. चाट चाटकर लाल कर दे मेरी.. आह रसिक.. मुझे तो तेरे साथ करवाने पर पता चला की यहाँ भी चाटते है.. मुझे सब से ज्यादा मज़ा उसी में आता है.. !!"

फर्श पर दोनों जांघें फैलाकर जितनी हो सके चौड़ी कर, मौसी ने अपनी झांटों वाले भोसड़े का नजारा दिखाया.. इस घनघोर जंगल में भोसड़े का प्रवेशद्वार ढूँढना मतलब समंदर में घुसकर मोती ढूँढने जैसा कठिन काम था.. रसिक ने डुबकी लगाई और मौसी के भोसड़े में खो गया.. जैसे ही उसकी जीभ मौसी की क्लिटोरिस पर जा टकराई.. मौसी का शरीर तंग हो गया..

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"आह्ह रसिक.. बस वहीं पर.. ओह्ह.. चाट वहाँ पर.. बहोत मज़ा आ रहा है मुझे" पैर ऊपर उठाते हुए भोसड़े को पूर्णतः चौड़ा कर वो कराहने लगी

मौसी की चूत के अंदर अपनी जीभ की कारीगरी दिखाते हुए रसिक ने उन्हें इतना नचाया.. इतना नचाया.. की अनुमौसी "ओह्ह--उहह--आह्ह" करते हुए झड़ गए.. उनका पानी रिस गया था और वो बेहद आनंदित थी.. उनको एक बार ठंडा करने के बाद भी रसिक ने चाटना नहीं छोड़ा.. और मौसी ने भी उसे रोका नहीं.. अब वो भोस के साथ जांघों को और क्लिटोरिस को चाट रहा था.. पर जब रसिक की जीभ भोसड़े की सरहद लांघ कर गांड के छेद पर जा पहुंची तब अनुमौसी की चूत नए सिरे से पानी बहाने लगी.. मौसी को ये क्रिया बेहद घिनौनी लग रही थी पर पुरुषों की अमर्याद कामुक क्रियाएं ही आखिर औरतों को तेजी से ऑर्गजम प्रदान करती है..

जितनी बार रसिक की जीभ अति उत्तेजना ने मौसी की गांड के छेद पर पहुँचती उतनी बार उनकी चूत संकुचित होकर रस छोड़ती.. पाँच से छह बार मौसी गरम होकर झड़ गई.. तब जाकर रसिक ने उनकी जांघों के बीच से अपना मुंह हटाया.. मौसी के चिपचिपे अमृतरस से लिप्त रसिक का मुंह ऐसा लग रहा था जैसे जंगल का राजा शेर, अभी शिकार को खाकर बैठा हो..

"मौसी, आपको तो मैंने खुश कर दिया.. अब आप मेरी एक इच्छा पूरी करेगी?" रसिक ने मौसी के बबले दबाते हुए कहा

"पहले तेरे इस मूसल की इच्छा पूरी कर रसिक.. देख कैसा तड़प रहा है.. मैं तो पाँच-छह बार ठंडी हो गई.. बता.. कौनसे छेद में डालेगा?? उस हिसाब से मैं तैयार रहूँ.. !!"

"आपकी भोस तो चाटकर तृप्त कर दिया आपको.. अब मेरी बारी है.. अब आप मेरा मुंह में लेकर चुसिए.. आज आपके मुंह में पानी निकालने का मन कर रहा है.. निकालने दोगे ना.. ??"

"छी छी.. ऐसा गंदा गंदा कोई करता है भला?? मुझे तो उलटी आ जाएगी.. मैं मुंह में तो नहीं निकालने दूँगी.. हाँ तेरा चूस सकती हूँ" कहते हुए मौसी पूरी तन्मयता और समर्पण के भाव से घुटनों के बल बैठ गई और चूसने लगी.. उन्हें चूसते हुए देख रसिक सोच रहा था.. दो ही दिन में मौसी लंड चूसने में एक्सपर्ट हो गई.. रसिक को मज़ा तो आ रहा था पर एक ही तकलीफ हो रही थी.. जब भी वो मौसी के मुंह में धक्का लगाता और उनके कंठ तक लंड घुसेड़ने की कोशिश करता.. तब मौसी अपना सर पीछे खींच लेती और रसिक का मूड ऑफ हो जाता..

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इसलिए रसिक ने अब दोनों हाथों से मौसी का सर जकड़ लिया.. और धक्के लगाने लगा.. अब मौसी हिल भी नहीं पा रही थी और उसे जबरदस्त मज़ा आना शुरू हो गया था.. जब वह अपने उत्तेजित लंड को पूरी ताकत से अंदर धकेलता तब मौसी के गले तक लंड उतर जाता..मौसी का दम घुटने लगा.. वो बिलबिलाने लगी.. वो रसिक की पकड़ से छूटने के लिए जोर लगाती रही.. पर कसरती शरीर वाले रसिक के आगे भला मौसी का जोर कैसे चलता.. !! रसिक दोनों हाथों से उनके बालों को पकड़ कर धमाधम धक्के लगा रही था और उसके आँड मौसी की ठुड्डी से टकरा रहे थे.. मौसी का नाक रसिक के झांटों के बीच आक्सिजन तलाश रहा था.. और तभी उन्हें एहसास हुआ की कुछ गरम तरल प्रवाही उनके कंठ से होते हुए पेट तक जाने लगा..

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अब तक जिस प्रवाही की गंध भी उन्होंने नहीं परखी थी वो चीज सीधे उनके मुंह के अंदर होते हुए पेट में जा रही थी.. मौसी को उलटी आ रही थी.. वो रसिक की पकड़ से छूटने के लिए मचल रही थी.. पर उत्तेजित मर्द को स्खलन की आखिरी पलों में अंकुश में करना बड़ा मुश्किल होता है..

मौसी की छटपटाहट की परवाह किए बिना रसिक अपने वीर्य के फव्वारे उनके गले के अंदर मारे जा रहा था.. जैसे विरोध पक्ष विरोध करते रहते है और शासक पक्ष विधेयक पास करवा लेते है.. वैसे ही अपना सारा लोड मौसी के हलक के नीचे उतार दिया और तब तक उन्हें नहीं छोड़ा जब तक उसके लंड की आखिरी बूंद अंदर उतर नहीं गई..

रसिक की पकड़ से छूटते ही मौसी अपना सर झटकते हुए मुंह के वीर्य के स्वाद को हटाने की व्यर्थ कोशिशें करती रही.. उनकी सांस फूल गई और वो वहीं फर्श पर ढल पड़ी.. देखकर रसिक घबरा गया.. कहीं बुढ़िया टपक तो नहीं गई.. !! बाप रे.. !! वो लेटी हुई मौसी के शरीर के आजूबाजू पैर रखकर खड़ा हो गया.. नंगी निश्चेतन मौसी उसकी दोनों टांगों के बीच लाश की तरह पड़ी हुई थी.. उसके लटकते हुए लंड से कुछ आखिरी बूंदें मौसी के स्तनों पर टपक पड़ी.. छाती पर गरम गरम एहसास होते ही मौसी ने अपनी आँखें खोली और नज़रों के सामने रसिक के विकराल लंड को ठुमकते हुए देखती रही.. घबराकर उन्होंने फिर से आँखें बंद कर ली..

थोड़ी देर बाद होश आते ही वो बैठ गई और रसिक पर गुस्सा करने लगी.. "नालायक.. ऐसे भी कोई करता है क्या?? अभी मेरी जान निकल जाती.. जा.. अब मुझे तेरे साथ नहीं करवाना.. " कहते हुए वो करवट बदल कर सो गई.. बात को बिगड़ता देख चिंतित रसिक उनकी जंघाओं को चौड़ी कर लेट गया और फिरसे मौसी की चूत चाटने लगा.. उन्हें रिझाने के लिए..

"छोड़ दे रसिक.. मुझे नहीं चटवानी.. तू जा यहाँ से.. " पर रसिक ने मौसी को रिझाने के प्रयास जारी रखें.. जैसे जैसे रसिक की जीभ मौसी की चूत की परतों को चाटती गई.. वैसे वैसे मौसी का गुस्सा, उत्तेजना में परिवर्तित होने लगा.. पर नाराज तो वो अब भी थी.. "मेरा हो चुका है.. अब मुझे कुछ नहीं करवाना तुझसे.. छोड़ मुझे.. और जा यहाँ से.. !!"

रसिक ने एक न सुनी.. और चाटता ही गया.. अब मौसी के दिमाग पर सुरूर छाने लगा था "आह्ह रसिक.. छोड़ दे.. पर चले मत जाना.. तू चला जाएगा तो फिर मैं क्या करूंगी? जो शुरू किया है वो पहले खतम कर.. !!" सारांश सिर्फ इतना था की मौसी फिर से उत्तेजित हो गई थी "साले फिर से क्यों ये सब शुरू किया? मैं ठंडी हो गई थी और तेरा भी निकल चुका था.. अब वापिस मुझे गरम कर दिया.. अब ये आग कौन बुझाएगा?? चल चाट अब इसे " उत्तेजित होकर मौसी अब खूंखार स्वरूप धारण करने लगी थी.. लेटे हुए रसिक की छाती पर सवार होकर वो हिंसक रूप से रसिक के होंठों पर अपनी भोस रगड़ने लगी..

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मौसी के भोसड़े के भीतर तक जीभ डालते हुए रसिक चाटता रहा और थोड़ी ही देर में मौसी फिर से झड़ गई.. जैसी जबरदस्ती रसिक ने उनके साथ की वैसा ही कुछ उन्होंने भी रसिक के साथ किया.. इस एहसास ने उनका गुस्सा कम कर दिया.. हिसाब बराबर हो चुका था.. मुसकुराते हुए मौसी ने रसिक से कहा "देखा कैसा होता है जब कोई जबरदस्ती कुछ करता है तब"

मौसी की दोनों निप्पलों को खींचते हुए रसिक ने कहा "मुझे तो इसमे भी बहोत मज़ा आया.. आपको भी मज़ा आया.. बेकार में हंगामा कर दिया उस वक्त आपने "

मौसी: "अरे कमीने, उस वक्त तो ऐसा लग रहा था की जैसे मेरे प्राण ही निकल जाएंगे.. तू इसी इच्छा की बात कर रहा था ?"

रसिक: "हाँ मौसी.. आपके मुंह में पानी गिराने में तो बहोत मज़ा आया.. पर मेरा मन कर रहा है किसी जवान छातियों को दबाने का.. बहोत समय से इच्छा है.. पर कीसे कहूँ? आपके ध्यान में अगर कोई इसी जवान चूत हो तो मुझे बताना.. "

मौसी: "मर जा मुएं बेशर्म.. अब मैं तेरे दबाने के लिए जवान छातियाँ ढूँढने बैठूँ.. !! ये शीला के तो रोज दबाता है तू.. मैं सब जानती हूँ.. मेरे मुकाबले तो वो काफी जवान है.. और सख्त भी.. और रूखी भी उससे बढ़कर है.. एक एक स्तन दो लीटर दूध समा सकें उतने बड़े है उसके.. फिर तू क्यों बाहर ढूँढता रहता है? इससे बेहतर और कौनसी छातियाँ चाहिए तुझे? घर पर रूखी के दबाता है और यहाँ शीला के.. मन नहीं भरता क्या?"

रसिक: "उस हरामजादी रूखी का नाम मत लो मेरे सामने.. मादरचोद ने मुझे नामर्द कहा था.. "

मौसी चोंक उठी "क्या बात कर रहा है? इतना बड़ा अजगर जैसा लंड है तेरा और फिर भी उसने तुझे नामर्द कहा??"

रसिक: "ये लंड आपको अजगर जैसा लगता है.. पर उसे तो ये भी छोटा पड़ता है.. और कहती है की मुझे ठीक से धक्के लगाना नहीं आता.. अब आप ही बताइए.. दो दिन से आपको चोद रहा हूँ.. आप को कोई कमी महसूस हुई क्या??"

मौसी: 'क्या बात कर रहा है, रसिक!! तेरे लंड के धक्के तो मुझे छातियों तक महसूस होते है.. मैं बूढ़ी हूँ फिर भी मेरी चीखें निकल जाती है.. कोई छोटी उम्र वाली की तो तू जान ही निकाल दे.. !!"

रसिक: 'और उस कमीनी को ये छोटा पड़ता है.. इसलिए साली किसी और का लंड लेती है"

अनुमौसी की आँखों में एक अजीब सी चमक आ गई.. रूखी को किसी गैर-मर्द के गधे जैसे लंड से चुदते हुए देखने की कल्पना करते हुए..

मौसी: "मुझे पता है वो किसका डलवाती है.. वो जिस से चुदवाती है उसका तुझसे भी बड़ा है रसिक.. पर तेरा भी कुछ कम नहीं है.. पीयूष के पापा से तो बड़ा ही है.. "

रसिक सुनता रहा.. वैसे उसे रूखी और जीवा के छक्का के बारे में मालूम ही था.. पर आश्चर्य इस बात से था की अनुमौसी को इस बारे में कैसे पता चला.. !!

"कौन है वो, मौसी?"

"रूखी के मायके का दोस्त है.. जीवा.. मैं और शीला, दोनों उसको जानते है" अनुमौसी ने अपने साथ साथ शीला का पेपर भी लीक कर दिया

"पर मौसी, आप को कैसे पता चला की उसका मुझसे भी बड़ा और मोटा है? इसका मतलब ये हुआ की आपने उसका देखा है"

मौसी ने बात टालने की कोशिश तो की पर अब रसिक को पता चल ही चुका था तो छुपाने का कोई मतलब नहीं था..और वो रसिक को अपने राज की बातें बता कर.. अपनी ओर खींचना चाहती थी.. इसलिए उन्होंने बता दिया

मौसी की नंगी भोस में रसिक ने दो उँगलियाँ अंदर बाहर करते हुए कहा "सच सच बता दो मौसी.. आप ने उस मादरचोद जीवा का सिर्फ देखा है या फिर अंदर लिया भी है? वो हरामखोर जब घर आता है तब तो रूखी उसे "मेरा भाई मेरा भाई" कहकर बुलाती है"

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"देख बेटा.. अब जमाना बदल गया है.. बहन बहन कहकर लॉग भांजे पैदा कर देते है.. आज कल के मर्द और औरत.. अपना पाप छुपाने के लिए मुंह बोली बहन या भाई का रिश्ता बनाकर इस पवित्र संबंध का दुरुपयोग करते है.. मैंने और शीला ने जीवा के साथ सब कुछ किया हुआ है.. तेरी बीवी ही उसे यहाँ लेकर आई थी.. जीवा उसके मायके का यार है और वो कुंवारी थी तब से उन दोनों का चक्कर चल रहा है.. रूखी को तो उसका लिए बिना चलता ही नहीं है.. तू शहर से बाहर था तब रूखी, जीवा का लंड लेने के लिए तरस रही थी.. घर पर तो तेरे माँ बाप रहते है इसलिए वहाँ तो बात बन न पाई.. आखिर रूखी ने शीला को बताया.. फिर शीला ने उन दोनों के मिलने का सेटिंग यहीं करवा दिया.. इसी बिस्तर पर जीवा ने तेरी बीवी की टांगें चौड़ी कर अपने गधे जैसे लंड से चोद दीया था.. मैंने और शीला ने जब जीवा का तगड़ा लंड देखा तब हम से भी रहा नहीं गया.. इसलिए मैंने और शीला ने जीवा और उसके दोस्त रघु से करवाया था.. बोल, और कुछ जानना है तुझे?"

"और तो कुछ नहीं जानना मौसी.. पर जैसे आप जीवा का लंड देखकर खुद को रोक नहीं पाई.. वैसे ही जवान छोटी छोटी छातियाँ देखकर मुझसे भी रहा नहीं जाता.. एक बार मुझे जवान बबलों की सेटिंग करवा दीजिए मौसी.. बदले में.. मैं सारी ज़िंदगी आपकी सेवा करूंगा.. !!"

अनुमौसी: "पर मैं कहाँ ढूँढने जाऊ तेरे लिए जवान छातियाँ?"

रसिक: 'कहीं ढूँढने जाने की जरूरत नहीं है.. आप के घर पर ही तो है.. कविता.. आपकी बहु.. !!"

अनुमौसी: "चुप हो जा कमीने.. कुछ पता भी है तू क्या बक रहा है?? सास होकर क्या मैं अपनी बहु से कहूँ की किसी अनजान मर्द के सामने अपनी छातियाँ खोल दे.. ?? वो क्या सोचेगी मेरे बारे में.. ??"

रसिक: "आप समझ नहीं रही है मौसी.. मैंने ये कब कहा की आप कविता से इस बारे में कहिए.. आपको तो बस मुझे आशीर्वाद देना है.. और बीच में टांग नहीं अड़ानी है.. बाकी सब मैं देख लूँगा.. आप देखकर अनदेखा तो कर सकती हो ना.. !!"

अनुमौसी: "अरे पर पीयूष को पता चल गया तो गजब हो जाएगा.. मैं माँ होकर अपने बेटे की ज़िंदगी में जहर नहीं घोल सकती.. ऐसा तो मैं होने नहीं दूँगी.. तू मुझे आज के बात कभी नहीं करेगा तो भी मुझे चलेगा.. पर फिर कभी ऐसी बात की ना तो तेरी खैर नहीं.. याद रखना तू.. !! हाँ अगर कोई बिन-ब्याही या विधवा होगी तो उसके साथ मैं तेरा सेटिंग करवा दूँगी.. ठीक है.. !!"

रसिक ने उदास होकर कहा "ठीक है मौसी.. चलो मैं अब चलता हूँ.. बहोत देर हो गई आज तो.. " मुंह फुलाकर नाराज होते हुए रसिक खड़ा हुआ.. मौसी सोच रही थी की जाते जाते रसिक उन्हें बाहों में भरकर चूमेगा.. पर रसिक ने ऐसा कुछ नहीं किया और गुस्से में चला गया.. मौसी का भी मूड ऑफ हो गया.. रसिक के जाने के बाद मौसी ने सोचा.. शीला का खाली घर अभी कुछ दिनों तक उनके कब्जे में थे.. रसिक को झूठ-मूठ की आशा देकर मना लेती तो तीन-चार दिन तक चुदाई का भरपूर लाभ मिल जाता.. बेकार में रसिक को नाराज कर दिया.. शीला होती तो यही करती.. मुझ में और शीला में यही तो फरक है.. शीला ने कलकत्ता बैठे बैठे मेरी यहाँ सेटिंग कर दी.. और मैं यहाँ रहते हुई भी उसे संभाल नहीं पाई.. अपने आप पर गुस्सा आ रहा था.. निराश होकर वह उठी और कपड़े पहन कर घर जाने लगी..


दरवाजा खोलते ही उन्हों ने देखा की उनके घर के बाहर रसिक कविता को दूध दे रहा था.. दोनों हंस हंस कर बातें कर रहे थे.. इतनी सुबह सुबह कविता क्या बात कर रही होगी इस दूधवाले से.. !! और ऐसा तो क्या कहा होगा रसिक ने जो कविता इतना हंस रही थी.. ?? रोज के मुकाबले रसिक आज कुछ ज्यादा ही समय ले रहा था दूध देने में.. मौसी के दिमाग में हजार खयाल आने लगे.. मौसी को यकीन हो गया की रसिक कविता को दाने डालकर पटाने की कोशिश कर रहा होगा..
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