रसिक के जाते ही मौसी ने दरवाजा बंद किया और बिस्तर को ठीक करने लगी.. मौसी का हाथ अनायास ही उनकी गांड पर चला गया.. अभी भी दर्द हो रहा था.. मौसी बिस्तर पर लेट गई.. सुबह के छह बजे थे.. रोज जल्दी जागकर घर के काम निपटाने वाली मौसी का जिस्म आज सुस्त था.. थोड़ी देर तक सो कर अपनी थकान उतारी और फिर वो घर चली गई..
घर के अंदर प्रवेश करते हुए.. सामने बैठे चिमनलाल से नजरें नहीं मिला पा रही थी मौसी.. उनके लिए चाय बनाकर वो वापिस घर के कामों में व्यस्त हो गई.. चाय नाश्ता करके चिमनलाल बाहर चले गए.. फिर पीयूष भी ऑफिस चला गया.. अब कविता और मौसी दोनों घर पर अकेले थे
कविता आज बहोत खुश दिख रही थी.. ये देखकर मौसी के दिल को चैन मिला.. चलो अच्छा हुआ जो पति-पत्नी में सुलह हो गई.. अनुमौसी भी आज रोज के मुकाबले काफी फ्रेश लग रही थी.. रसिक से चुदवाकर उनके जिस्म की आग ठंडी जो हो गई थी.. वो नहाने के लिए बाथरूम मे गई तब अपने भोसड़े को सहलाते हुए उन्हें रसिक का मूसल याद आ गया.. फिर उनकी चूत ने संतुष्टि का डकार लिया.. उसे सहलाकर मौसी ने शांत किया और तैयार होकर बाहर निकली
शाम को जब पीयूष आया तब कविता ने उसे कहा की उसके पापा का फोन आया था.. पंद्रह दिनों में ही मौसम की शादी होनी थी.. तरुण को बेंगलोर की एक बड़ी कंपनी में जॉब मिल गई थी.. बहोत अच्छी तनख्वाह मिलने वाली थी.. इसलिए उनकी इच्छा थी की तरुण के बेंगलोर जाने से पहले ही शादी निपटा ली जाए..
सुनकर पीयूष बेहद निराश हो गया.. सिर्फ पंद्रह दिन??
"अरे.. इतने दिनों में कैसे सारी तैयारियां होंगी? कपड़े, साड़ियाँ, जेवर और बहोत सारी चीजें लेनी होगी.. हॉल बुक करना पड़ेगा.. और भी ढेर सारी तैयारियां करनी होगी.. कैसे होगा सब??"
कविता: "पापा कह रहे थे की शॉपिंग में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा.. जेवर खरीदना भी सिर्फ एक दिन का काम है.. पर सब से जरूरी है मौसम को इस के लिए मनाना.. मम्मी पापा तो तैयार है.. वो कह रहे थे की सब को थोड़ी सी दौड़-भाग होगी पर इतना अच्छा लड़का हाथ से चला जाएँ उससे तो अच्छा है की हम सब इस बात के लिए राजी हो जाए.. "
पीयूष: "मैं समझ गया कविता, लेकिन.... !!!"
कविता: "लेकिन-वेकीन कुछ नहीं.. हम सब है ना पापा मम्मी की मदद के लिए.. सब साथ मिलकर जुट जाएंगे तो हो जाएगा.. कोई बड़ी बात नहीं है"
पीयूष उदास हो गया.. इतने काम वक्त में तैयारियां तो हो जाएगी.. पर उसका और मौसम को मिलने का वक्त मिलना अब असंभव था
रात के खाने के बाद, कविता और पीयूष छत पर अंधेरे में बैठे हुए थे.. कविता ने पीयूष की शॉर्ट्स में हाथ डालकर उसके लंड को मसाज देते हुए ये चर्चा छेड़ी थी.. कविता के हाथों का स्पर्श और उसके सुंदर स्तनों का शरीर पर दबाव महसूस करते ही पीयूष का जवान लंड सरसराने लगा.. रोज तो कविता के छूते ही खड़ा हो जाने वाला लंड अभी भी अर्ध-जागृत अवस्था में था.. कविता का हाथ पीयूष के लंड को नरम नहीं होने दे रहा था और मौसम की याद उसे ठीक से सख्त नहीं होने दे रही थी..
मौसम के प्रति पीयूष के आकर्षण से बेखबर कविता बेचारी अपने पापा के दृष्टिकोण से सोचकर बातें कीये जा रही थी.. और पीयूष का दिमाग बातों में कम और मौसम के विचारों में ज्यादा उलझा हुआ था.. मौसम की जल्द शादी होने की बात से उसे गहरा सदमा पहुंचा था.. अगर इस बारे में पहले पता चला होता तो वो मौसम से फोन पर बात करता.. उस बेचारी ने तो आज तीन बार फोन कीये थे.. पर काम में व्यस्त होने के कारण वो बात नहीं कर पाया था.. और जब फ्री होकर पीयूष ने फोन किया तब मौसम ने कट कर दिया था.. शायद उसने इसी बात के लिए फोन किया होगा.. वरना मौसम उसे ऑफिस के टाइम पर कॉल नहीं करती थी
ये सब क्या हो गया अचानक?? पीयूष को अपनी किस्मत पर गुस्सा आ रहा था.. पीयूष के लंड को सहलाते हुए कविता मौसम को मनाने के तरीके सोच रही थी.. पर न कोई उपाय मिला और ना ही पीयूष का लंड सख्त हुआ.. आखिर थककर दोनों बेडरूम में आकर सो गए.. कविता बार बार पीयूष के शरीर को छेड़ती रही.. पर पीयूष के दिल के शेयर की किंमतें इतनी गिर चुकी थी की कितनी कोशिशों के बावजूद उसके लंड का सेंसेक्स ऊपर नहीं आया..
आखिर कविता भी थककर दुसरें विचारों में खो गई.. और इसी विचारों में ही तो कविता की सब से बड़ी दौलत छुपी हुई थी.. पिंटू को मिलने का बड़ा मन कर रहा था कविता को.. माउंट आबू से लौटने के बाद एक बार भी बात नहीं हुई थी पिंटू से.. पहले तो जब कविता का मन करता वो पिंटू से बात कर लेती..पर अब पिंटू को काम की ज़िम्मेदारियाँ बढ़ गई थी.. और जब वो फ्री होता तब पीयूष उसके साथ होता.. इसलिए बात करना मुश्किल हो जाता.. पिंटू जब ऑफिस से निकलता तब कविता घर के काम में बिजी हो जाती और फिर पीयूष के घर आ जाने के बाद सब कुछ ब्लॉक.. !!
कविता सोच रही थी की मौसम की शादी के बहाने जब वो मायके जाएगी तब पिंटू से मिलने का मौका जरूर मिल जाएगा.. इस विचार मात्र से उसकी जांघें भीड़ गई.. उसकी बगल में पीयूष ऐसे निश्चेतन होकर पड़ा था जैसे उसकी सारी दुनिया लूट चुकी हो.. पर कविता का जिस्म हवस की आग में तपने लगा था.. ये ऐसी हवस थी जिसमे केवल जिस्म की भूख ही नहीं पर अपने प्रेमी से मिलने की तड़प भी शामिल थी..
कविता का हाथ उसकी चूत पर पहुँच गया.. एक हाथ से नाइटड्रेस से उसने अपना स्तन बाहर निकाला.. और पिंटू को याद करते हुए दबाने लगी..
मज़ा तो आया पर जितना आना चाहिए था उतना नहीं आया.. प्रेमी के हाथ से स्तन दबने पर जो मज़ा आता है वो तो अभी आना मुमकिन नहीं था.. और वो ये नहीं चाहती थी की इस वक्त पीयूष का हाथ उसके जिस्म को छूए.. फिलहाल वो अपने सपनों की दुनिया में.. अपने प्रेमी के संग मस्त थी.. ऐसी दुनिया जहां समाज का डर नहीं था.. ज़िम्मेदारियाँ नहीं थी.. कोई रोक-टॉक नहीं थी.. सिर्फ वो और पिंटू दोनों थे.. जैसे कविता की अपनी सपनों की अनोखी दुनिया थी.. वैसी ही अपनी दुनिया पीयूष की भी थी ही.. !! ये बात ओर थी की फिलहाल वो मौसम के बारे में रोमेन्टीक विचार करने की स्थिति में नहीं था.. अभी कुछ दिनों पहले ही वो मौसम के प्यार में सराबोर था और कविता पिंटू के नजदीक होते हुए भी दूर थी.. और दुखी भी.. कविता के लिए माउंट आबू की यात्रा एक दुःखद याद बनकर रह गई थी.. लेकिन पीयूष के लिए माउंट आबू की यादें अनमोल थी.. ऐसी याद जो भुलाएं नहीं भूलती थी.. आबू में ही तो उसे मौसम के जबरदस्त आकर्षक कच्चे कुँवारे उरोजों को दबाने का मौका मिला था.. उसके गुलाबी अधरों को चूमने का अहोभाग्य भी प्राप्त हुआ था.. पर अभी वो यादें उसके किसी काम की नहीं थी..
पर कविता आज फूल-फॉर्म में थी.. अपने स्तनों को दबाते हुए वो पिंटू को याद करने लगी.. उसका मन अब लंड चूसने का कर रहा था.. कविता की इच्छा इतनी तीव्र थी की अगर उसे पंख होते तो अभी उड़कर पिंटू के पास चली जाती.. कुछ भी हो जाए.. बस एक बार.. पिंटू के साथ मन भरकर ज़िंदगी जी लेनी है.. मौसम की शादी के बहाने कम से कम एक हफ्ते के लिए मायके जाना होगा.. उस समय का भरपूर लाभ उठाने का मन बना लिया कविता ने.. मिलना तो हो जाएगा.. पर पिंटू के साथ वक्त बिताऊँ कहाँ? कोई घर तो होना चाहिए अकेले मिलने के लिए.. !! पर किसी के घर पिंटू से मिलना खतरे से खाली नहीं था.. कुछ तो सेटिंग करना पड़ेगा
कविता के हाथ लगातार उसके शरीर पर चल रहे थे.. वो ऐसा महसूस कर रही थी जैसे पिंटू उसके जिस्म को मसल रहा हो.. एक साथ दो उँगलियाँ उसने अंदर डाल दी थी.. आगे पीछे करते हुए वो झड़कर ठंडी हो गई.. और दो मिनट में गहरी नींद सो गई
अनुमौसी की किस्मत चमक गई थी.. चिमनलाल अपने दोस्त की बेटी की शादी में शहर से बाहर गए थे.. कविता और पीयूष को बताकर मौसी शीला के घर सोने चली गई.. जैसे ही शीला के घर का दरवाजा बंद किया.. उन्हें रसिक के लंड की याद सताने लगी.. एकांत कितना भयानक होता है.. !! सज्जन से सज्जन आदमी अकेला होते ही विचारों में बह जाता है.. हकीकत में चारित्रवान उसे ही कहा जा सकता है जो अकेले में मौका होने के बावजूद भी ईमानदार रह सके.. बाकी ५० की उम्र में ड़ायाबिटिस के कारण लंड खड़ा ही न होता हो.. वैसे लोग अगर चारित्रवान होने का दावा करें तो उसका कोई अर्थ नहीं होता.. वो तो मजबूरी के मारे धारण की हुई सज्जनता कहलाएगी.. जिसका लंड दिन में दस बार टाइट होता हो.. वो इंसान अकेले में किसी सुंदर स्त्री को भोगने के बजाए उसे अपनी बहन मान सके.. वही सच्चा सज्जन.. !!
मौसी ने टीवी चालू किया.. खाना तो वो घर से खाकर आई थी.. बैठे बैठे वो "अनुपमा" के जीवन की समस्याओं को देख रही थी.. तभी लेंडलाइन की घंटी बजी.. मौसी ने फोन उठाया.. शीला का कॉल था
"कैसी हो मौसी? सब ठीक ठाक??"
मौसी: "हाँ शीला.. सब ठीक है.. तू कैसी है? वहाँ सब ठीक है? तुम्हारे समधी की अंतिम विधि हो गई? "
शीला: "हाँ मौसी.. अंतिम विधि तो हो गई.. अब बाकी सारी विधियाँ चल रही है.. वैशाली का प्रश्न बार बार परेशान कर रहा है.. समझ में नहीं आता की क्या करें.. कोई हाल सूझ नहीं रहा था तो सोचा आपसे बात करूँ और आपकी राय ले लूँ.. !!"
"क्यों? अब क्या हुआ वैशाली को?"
शीला: "होना क्या था मौसी.. मेरी वैशाली को वो नालायक बहोत परेशान कर रहा है.. उसके बाप की मौत हुई है.. ऐसे गंभीर वातावरण में भी घर में झगड़े कर रहा है.. "
अनुमौसी: "क्या बात कर रही है.. !! ये तो एक नंबर का कमीना निकला.. !!"
शीला: "हम यहाँ पहुंचे तब वैशाली उसके पापा के गले लगकर इतना रोई की क्या बताऊँ.. मेरा तो दिल ही बैठ गया.. मैंने बेटी को ससुराल भेजा है या कसाई के पास.. यही पता नहीं चल रहा.. !!"
अनुमौसी: "देख शीला.. अगर वैशाली को वहाँ नहीं रहना हो तो सारी विधि खतम होने के बाद उसे यहाँ वापिस ले आओ.. जो होगा देखा जाएगा..बेटी को ऐसी हालत में उस दरिंदे के पास छोड़ना ठीक नहीं.. "
शीला: "पर उनकी तेरहवीं को तो अभी बहोत दिन बाकी है.. तब तक हम यहाँ क्या करें?? यहाँ तो एक दिन रहना भी मुश्किल है.. मदन तो कब से वापिस जाने के लिए उतावला हो रहा है.. यहाँ संजय तो अपने बाप को जलाकर कहाँ गायब हो गया पता नहीं.. कौन जाने कहाँ भटक रहा होगा साला!!"
अनुमौसी: "गया होगा अपने लफंगे दोस्तों के साथ या फिर कहीं रंगरेलियाँ मनाने.. कुछ भी हो जाए तुम लोग वैशाली को वहाँ उस हेवान के साथ अकेला मत छोड़ना.. तुम एक काम करो.. मदन चाहे वापिस लौट जाएँ.. तुम वैशाली के साथ ही रहो.. तेरहवीं खतम होने के बाद मदन वहाँ आएगा और तुम दोनों को साथ लेकर वापिस.. "
मौसी का ये सुझाव शीला के गले उतर गया.. वो इस बारे में सोचेगी.. ऐसा कहकर फोन काट दिया.. फोन रखकर मौसी भी वैशाली के बारे में सोच में पड़ गई थी.. चेनल बदलते बदलते एक अंग्रेजी सेक्सी सीन पर आकर वो रुक गई.. वैशाली के सारे विचार दिमाग से निकल गए.. आधे नंगे कपड़ों में एक अंग्रेज लड़की उसके बॉयफ्रेंड के होंठों पर किस कर रही थी.. उसके मस्त स्तनों को देखकर मौसी को ईर्ष्या होने लगी.. अपने ब्लाउस के बटन खोलकर.. लटके हुए स्तनों को दोनों हाथों से जोड़कर अपने जवानी के दिनों को याद करने लगी मौसी..
यही स्तन.. जवानी में कितने सख्त और मस्त थे!! ब्याह कर ससुराल आई तब वो कुंवारी थी.. उसके अक्षत कौमार्य को चिमनलाल ने भंग किया था और फिर बड़े मजे से उसके जिस्म का आनंद लिया था.. पर चिमनलाल सेक्स के मामले में काफी ठंडे थे.. जिस आक्रामकता की उम्मीद मौसी को थी वो कभी दिखा नहीं पाए.. जो आखिरकार मौसी को रसिक से मिली.. शादी के शुरुआती सालों में चिमनलाल ने मौसी की भरपूर चुदाई की थी.. और तब वह संतुष्ट भी थी.. पर आज जो ताकत रसिक ने दिखाई थी वो तो चिमनलाल में कभी नहीं थी.. जब चिमनलल से बेहतर कुछ मिला तब उसे ज्ञात हुआ की अब तक जिस तरह का सेक्स उन्होंने किया वो तो कुछ भी नहीं था.. आज जाकर उन्हें पता चला की जिस अभाव से अबतक वो झुझ रही थी.. वो कमी थी आक्रामक सेक्स की.. कभी कभी औरतों की ऐसी इच्छा होती है की मर्द उन्हें बेरहमी से भोगें.. गालियां बकते हुए.. उनके जिस्म को रौंदते हुए.. उसके जिस्म के साथ ऐसे ऐसे खिलवाड़ हो जो उसकी कल्पना के परे हो.. एक कुंवारी लड़की का.. और एक परिपक्व अनुभवी ढलती उम्र वाली स्त्री का.. रोमांस का खयाल अलग अलग होता है.. उम्र के साथ साथ अपेक्षा और व्याख्या बदलती रहती है..
नई नवेली दुल्हन की रोमांस की व्याख्या कुछ ऐसी होती है.. की उसका पति ऑफिस के टाइम पर उसे फोन करे.. घर पर मेहमान आए हो तब कैसे भी साथ सोने का सेटिंग करे.. सब की मौजूदगी में उसे छेड़े.. एक कोल्डड्रिंक में दो स्ट्रॉ डालकर साथ पियें.. आस पास कोई न हो तब चुपके से उसके स्तन दबा दे.. बस यही अपेक्षा और उम्मीद रहती है.. पर उम्र के अनुभवी मकाम पर पहुंची हुई औरतों के लिए रोमांस का मतलब होता है.. साहचर्य, विचारों का तालमेल और आक्रामक सेक्स.. ऐसा सेक्स जो उनके हड्डियों को झकझोर कर रख दे.. और उनके ढीले भोसड़े को सख्त लंड से चोदकर छील दे.. चुदाई के दौरान बेहद कामुक होकर नए नए आसन करे.. ऐसा सेक्स करे की दो दिन तक उसकी थकान महसूस हो.. ये सारी बातें एक वयस्क स्त्री की रोमांस की व्याख्या हो सकती है..
अनुमौसी को खुद की किस्मत पर गर्व हो रहा था क्योंकि आज उनके मन में छुपी हुई उस गहरी इच्छा को बाहर लाकर रसिक ने संतुष्ट किया था..
एकांत.. टीवी पर चल रहा रोमेन्टीक द्रश्य.. और सुबह के संभोग का सुरूर.. ये सब मिल जाएँ तो नतीजा क्या हो सकता है? देखते ही देखते अनुमौसी के सारे कपड़े उतर गए.. भोसड़े में चार उँगलियाँ एक साथ डालकर ऐसे आगे पीछे कर रही थी जैसे गीले गड्ढे से मिट्टी खोद रही हो.. उँगलियाँ डाल डालकर वो रसिक का दिया हुआ ऑर्गजम ढूंढ रही थी.. ढीले भोसड़े को उंगलियों से ठंडा करना संभव नहीं था.. थोड़ी देर कोशिश करने के बाद वो थक गई.. हारकर वो खड़ी हो गई.. और यहाँ वहाँ देखने लगी.. उनकी नजर किसी ऐसी वस्तु की खोज कर रही थी जो आसानी से उपलब्ध नहीं थी.. भोसड़े में आग लगी हुई थी.. रसिक तो दूसरे दिन सुबह आने वाला था.. बीच में पड़ी इस पूरी रात को इस सुलगते हुए बदन के साथ गुजारना उनके लिए नामुमकिन था..
मौसी की नजर सब जगह दौड़ने लगी.. वो कुछ ऐसा ढूंढ रही थी जो उनके भोसड़े में फिट बैठे और रसिक के मोटे लोड़े की कमी पूरी कर सके.. पर उन्हें ऐसा कुछ नहीं मिला.. आखिर वो वापिस बिस्तर पर लेट गई.. और गोल तकिये को अपनी दोनों जांघों के बीच दबाकर पड़ी रही.. भड़कते भोसड़े को थोड़ी राहत जरूर मिली पर सिर्फ ऊपर ऊपर से.. अंदर जो ज्वालामुखी सक्रिय हो चुका था उसका क्या करें???
अनजाने में ही वो कमर हिलाने लगी और सिसकियाँ भरते हुए रसिक के कसरती मजबूत बदन को याद करते हुए तकिये पर जोर-जबरदस्ती करने लगी.. जैसे जैसे वो तकिये से भोस रगड़ती गई वैसे वैसे परिस्थिति बद से बदतर होने लगी.. एक समय तो ऐसा आया की हताश होकर उन्होंने तकिये को उठाकर दूर फेंक दिया.. निर्जीव तकिया बेचारा दीवार से टकराकर फर्श पर गिर गया..
अब अनुमौसी ने टीवी का रिमोट ही अपने भोसड़े में घुसेड़ दिया.. और अंदर तक घुसाकर फिर बाहर खींचा.. और वैसे ही अंदर बाहर करती रही.. रिमोट पर लगे खुरदरे प्लास्टिक के घर्षण से उनके भोसड़े में बहार आ गई.. रिमोट के बटनों को अपनी क्लिटोरिस पर रगड़ते ही उन्हें यकीन हो गया की यही उनकी आग बुझाएगा.. उन्होंने अंदर बाहर करने की गति ओर तेज कर दी.. उनका हाथ इस परिश्रम से थक चुका था पर उस थकान की परवाह किए बिना.. वो इस चरमोत्कर्ष प्राप्त करने के आंदोलन में डटी रही.. आखिर घिसते रगड़ते उनके भोसड़े का कल्याण हो गया.. बेहद थक चुकी थी मौसी.. उनका सारा बदन कांप रहा था.. रिमोट को भोसड़े से निकालने तक का होश नहीं रहा और उनकी आँख लग गई..
करीब दो बजे उनकी आँख खुली.. आँखें मलते हुए उन्हों ने अपने नग्न शरीर को देखा और शर्मा गई.. लाइट भी चालू थी और टीवी भी.. टीवी बंद करने के लिए यहाँ वहाँ रिमोट ढूंढती रही पर आसपास कहीं नहीं दिखा.. ढूँढने के लिए वो खड़ी होने लगी तो एकदम से भोसड़े में रिमोट घुसे होने का एहसास हुआ.. मौसी बहोत ही शर्मा गई.. उन्हों ने रिमोट बाहर निकाला.. रिमोट पर चूत के सफेद रस का लेमिनेशन हो चुका था
अरे बाप रे.. इतनी देर तक ये अंदर ही था.. !! सोचते हुए उन्होंने टीवी बंद करने के लिए लाल बटन दबाया पर बंद नहीं हुआ.. रिमोट को किसी काम का नहीं छोड़ा था मौसी ने.. मन ही मन हंसने लगी मौसी.. ये चूत चीज ही ऐसी है.. अंदर जो भी जाता है.. बाहर निकलने के बाद किसी काम का नहीं रहता.. फिर वो रिमोट हो या लोडा.. रिमोट को टेबल पर रखते हुए टीवी की स्विच बंद कर दी और कपड़े पहन लिए.. लाइट ऑफ करके वो फिर से बिस्तर पर लेट गई
थोड़ी ही देर में उन्हें फिर से नींद आ गई.. कहते है की नींद आने की पूर्वशर्त होती है थकान.. और आज मौसी पूरी तरह से थक चुकी थी.. बूढ़ी घोड़ी जब रेस जीत जाए तब कितनी थक जाती है.. !!
रोज की तरह आज भी सुबह पाँच बजे डोरबेल बजी.. चीते की फुर्ती से अनुमौसी बिस्तर से भागकर गई और दरवाजा खोला.. रसिक को देखते ही वो सहम गई.. नई दुल्हन की तरह.. पर रसिक ने काजू की गैरमौजूदगी में मूंगफली से काम चला लेने का मन बना लिया था.. वो सीधे घर में घुस गया और दरवाजा बंद कर मौसी के होंठों को चूसने लग गया.. उनके गालों पर काटते हुए रसिक जंगली बन गया.. और जैसे वो दूध बेचने के लिए नहीं पर मौसी को छोड़ने आया हो उतना उतावला हो गया.. मौसी रसिक की इसी अदा की तो दीवानी थी.. चिमनलाल की लोकल ट्रेन उन्हें मंजिल पर बहोत देर से पहुंचाती थी.. और कभी कभी तो बीच रास्ते ही खराब हो जाती और मौसी को खुद के बलबूते पर ही मंजिल तक जाना पड़ता.. लेकिन रसिक के साथ ये प्रॉब्लेम नहीं थी.. वो तो बुलेट ट्रेन की गति से ऐसे शुरू हो जाता.. की एक ही सफर में मौसी तीन तीन मंज़िलें हासिल कर लेती..
रसिक के लोड़े को तुरंत पकड़ लिया मौसी ने.. पाजामे के बाहर निकालते हुए वो ऐसे हिलाने लगी जैसे थन से दूध दुह रही हो.. लंड से खेलने के लिए वो इतनी उतावली हो गई थी की प्राकृतिक रूप से लंड को खड़ा होने में जितना वक्त लगता है तब तक भी उनसे इंतज़ार नहीं हो रहा था.. चेहरे पर बेसब्री साफ झलक रही थी
"मौसी, आपको इतना पसंद है मेरा??" जवान घोड़ी की तरह उछल रही मौसी के ढीले स्तनों को ब्लाउस के ऊपर से दबाते हुए रसिक ने पूछा
"रसिक, मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी में ऐसे सुख का अनुभव नहीं किया है.. पीयूष के पापा इस मामले में शून्य बंटा सन्नाटा जैसे है.. अगर तू मुझे मेरी जवानी में मिल गया होता तो क्या बात होती.. तेरा ये बड़ा ही मस्त है रसिक.. एक बार तेरे नीचे लेटी हुई औरत तुझे कभी भूल नहीं सकती.. आह्ह!!"
अपने लंड की तारीफ सुनते ही रसिक का लंड कडक हो गया बल्कि होना चाहिए उससे भी ज्यादा सख्त हो गया.. हवस और अहंकार दोनों की सहायता से.. मौसी की शादी जिस समय हुई थी उस समय स्त्रीयां लज्जा का अतिरेक करती थी.. वो समय ऐसा था जब पत्नी अपने पति का नाम भी नहीं लेती थी.. ऐसे में वो कैसे भला अपने पति से कह पाती की मेरी चूत चाटिए.. !! पुरुष को जैसे आता वैसे चोदकर अपना पानी छोड़कर बगल में खर्राटे भरने लगता था.. और औरत भी समझती थी की.. बस यही था, जो था.. !! औरतों का जीवन बस यही था की जब उसका पति कहे तब घाघरा उठा कर लंड लेने के लिए तैयार रहना.. और पति बस इतना ही समझता था की रोज रात होते ही अपनी पत्नी की चूत में लंड डालकर धक्के लगाना और जब पानी निकल जाए तब सो जाना..
शायद वात्स्यायन ने ऐसे पुरुषों के लिए ही संभोग पर पूरा ग्रंथ लिखना पड़ा.. उन्हें स्त्रीयों की इस दशा पर रहम आ गया होगा.. उन्हों ने सोचा होगा की अगर मैं इन तोतों को नहीं सिखाऊँगा तो कोयलें बेचारी कुंजना भूल जाएगी.. उनकी ज़िंदगी की जीवंतता कहीं खो जाएगी और वो पूरे जीवन में एक बार भी चरमोत्कर्ष को प्राप्त नहीं कर पाएगी.. हँसते हुए अपने मर्द की सारी इच्छाओं को पूरी करती रहेगी..
भला हो उस क्रांतिकारी वात्स्यायन का.. जिसने मानवजात को इस अनमोल ग्रंथ की भेंट दी.. और चोदना सिखाया.. ये भी सिखाया की संभोग के दौरान पहले स्त्री को उसकी चरमसीमा तक पहुंचाना चाहिए और उसके पश्चात ही पुरुष को झड़ना चाहिए.. नहीं तो आज भी पुरुष स्त्री को केवल भोगने का और बच्चे पैदा करने का साधन ही मान रहा होता.. चूत के थोड़े से ऊपर दो सुंदर स्तन होते है.. और उस स्तनों के पीछे एक नाजुक ह्रदय होता है.. और उस ह्रदय में कोमल भावनाएं बसी होती है.. जिन्हें समझना पुरुष के लिए बेहद जरूरी होता है.. शर्मीली प्रकृति वाली स्त्री उसे कभी खुद जाहीर नहीं कर पाती
आज के मुक्त समाज में किसी भी धर्म या संलग्न व्यक्ति को सेक्स की बात करते हुए देख समाज बर्दाश्त नहीं कर सकता.. तो सोचिए की इतनी सदियों पहले, एक महात्मा ने सेक्स के बारे में इतना विस्तृत ग्रंथ लिखा तब समाज ने उसे कैसे स्वीकार किया होगा.. !! कितनी आलोचना सहनी पड़ी होगी?? फिर भी उस ग्रंथ की रचना हुई और वो अब तक यथार्थ है इसका मतलब तो यही होता है की आज के मुकाबले उस समय का समाज ज्यादा मुक्त विचारों वाला था..
मौसी सोच रही थी की काश उनकी शादी रसिक से हुई होती तो कितना अच्छा होता.. !!! गरीबी में जीना पड़ता.. कपड़े धोने पड़ते.. दूध दुहना पड़ता.. पर जीवन के इस सर्वोच्च आनंद से वो वंचित तो न रहती.. !!! रसिक भी हिंसक होकर मौसी के विविध अंगों को मसलने मरोड़ने लगा था..
मौसी की निप्पलों को खींचते हुए रसिक ने कहा "चलिए मौसी.. जल्दी कीजिए.. फिर दूध देने भी जाना है"
रसिक के लोड़े को तैयार देखकर मौसी खुश हो गई.. नीचे झुककर उन्हों ने टोपे को चूम लिया और बोली "कितना मस्त है.. मन तो करता है की टांगें फैलाकर पूरी रात डलवाती रहूँ"
रसिक ने सोचा.. मौसी इतनी बूढ़ी है फिर भी मेरा लंड उन्हें खुश कर देता है.. तो मेरी रूखी को क्यों ये लंड छोटा पड़ता है? साली जब देखो तब ताने मारती रहती है की और धक्के लगाओ.. मज़ा नहीं आ रहा.. क्या नामर्दों की तरह चोद रहे हो.. !!! उससे तो शीला भाभी अच्छी.. कभी मेरे लंड से नाखुश नहीं होती.. जब से रूखी ने नामर्द कहा है तब से उसे रांड को छूने का मन ही नहीं करता.. पर ये कमबख्त लोडा मेरा.. रूखी के बबलों को देखते ही डोलने लगता है.. शीला भाभी मिल गई उसके बाद तो मैंने रूखी की तरफ देखा ही कहाँ है.. !! पर शीला भाभी के साथ सब बंद होने के बाद वापिस उस रूखी की शरण में जाना पड़ा.. हरामजादी को इससे बड़ा कैसा लंड चाहिए?? इतना मोटा और लंबा घुसाता हूँ फिर भी उसे कम पड़ता है.. कम ही पड़ेगा ना.. उसके वो यार जीवा का तगड़ा लंड लेने की आदत जो पड़ गई है उसे.. माँ चुदाने जाए रूखी.. अब तो यहाँ मौसी भी तैयार हो गई है.. शीला भाभी या तो मौसी.. दोनों में से एक तो जब चाहे मिल ही जाएगी मुझे.. पर जब तक शीला भाभी मिल रही हो तब तक मौसी को देखने का मतलब नहीं.. शीला भाभी के बॉल भी रूखी जैसे है.. बड़े बड़े.. और भाभी कितना मस्त चूसती है.. !! उस मामले में रूखी को कुछ नहीं आता.. साली को बस अपने भोसड़ा चटवाकर चुदवाना ही आता है.. शीला भाभी का पति और दो साल विदेश रुक गया होता तो कितना अच्छा होता..
"आह्ह रसिक.. तेरी याद में मुझे पूरी रात ठीक से नींद भी नहीं आई.. " मौसी पर अब हवस का बुखार चढ़ चुका था..
"मौसी, आज आपकी चाटूँ या सीधा घुसा दूँ?"
"चाटनी तो पड़ेगी बेटा.. वही तो सबसे बड़ा सुख है.. ले मेरी.. और आजा.. चाट चाटकर लाल कर दे मेरी.. आह रसिक.. मुझे तो तेरे साथ करवाने पर पता चला की यहाँ भी चाटते है.. मुझे सब से ज्यादा मज़ा उसी में आता है.. !!"
फर्श पर दोनों जांघें फैलाकर जितनी हो सके चौड़ी कर, मौसी ने अपनी झांटों वाले भोसड़े का नजारा दिखाया.. इस घनघोर जंगल में भोसड़े का प्रवेशद्वार ढूँढना मतलब समंदर में घुसकर मोती ढूँढने जैसा कठिन काम था.. रसिक ने डुबकी लगाई और मौसी के भोसड़े में खो गया.. जैसे ही उसकी जीभ मौसी की क्लिटोरिस पर जा टकराई.. मौसी का शरीर तंग हो गया..
"आह्ह रसिक.. बस वहीं पर.. ओह्ह.. चाट वहाँ पर.. बहोत मज़ा आ रहा है मुझे" पैर ऊपर उठाते हुए भोसड़े को पूर्णतः चौड़ा कर वो कराहने लगी
मौसी की चूत के अंदर अपनी जीभ की कारीगरी दिखाते हुए रसिक ने उन्हें इतना नचाया.. इतना नचाया.. की अनुमौसी "ओह्ह--उहह--आह्ह" करते हुए झड़ गए.. उनका पानी रिस गया था और वो बेहद आनंदित थी.. उनको एक बार ठंडा करने के बाद भी रसिक ने चाटना नहीं छोड़ा.. और मौसी ने भी उसे रोका नहीं.. अब वो भोस के साथ जांघों को और क्लिटोरिस को चाट रहा था.. पर जब रसिक की जीभ भोसड़े की सरहद लांघ कर गांड के छेद पर जा पहुंची तब अनुमौसी की चूत नए सिरे से पानी बहाने लगी.. मौसी को ये क्रिया बेहद घिनौनी लग रही थी पर पुरुषों की अमर्याद कामुक क्रियाएं ही आखिर औरतों को तेजी से ऑर्गजम प्रदान करती है..
जितनी बार रसिक की जीभ अति उत्तेजना ने मौसी की गांड के छेद पर पहुँचती उतनी बार उनकी चूत संकुचित होकर रस छोड़ती.. पाँच से छह बार मौसी गरम होकर झड़ गई.. तब जाकर रसिक ने उनकी जांघों के बीच से अपना मुंह हटाया.. मौसी के चिपचिपे अमृतरस से लिप्त रसिक का मुंह ऐसा लग रहा था जैसे जंगल का राजा शेर, अभी शिकार को खाकर बैठा हो..
"मौसी, आपको तो मैंने खुश कर दिया.. अब आप मेरी एक इच्छा पूरी करेगी?" रसिक ने मौसी के बबले दबाते हुए कहा
"पहले तेरे इस मूसल की इच्छा पूरी कर रसिक.. देख कैसा तड़प रहा है.. मैं तो पाँच-छह बार ठंडी हो गई.. बता.. कौनसे छेद में डालेगा?? उस हिसाब से मैं तैयार रहूँ.. !!"
"आपकी भोस तो चाटकर तृप्त कर दिया आपको.. अब मेरी बारी है.. अब आप मेरा मुंह में लेकर चुसिए.. आज आपके मुंह में पानी निकालने का मन कर रहा है.. निकालने दोगे ना.. ??"
"छी छी.. ऐसा गंदा गंदा कोई करता है भला?? मुझे तो उलटी आ जाएगी.. मैं मुंह में तो नहीं निकालने दूँगी.. हाँ तेरा चूस सकती हूँ" कहते हुए मौसी पूरी तन्मयता और समर्पण के भाव से घुटनों के बल बैठ गई और चूसने लगी.. उन्हें चूसते हुए देख रसिक सोच रहा था.. दो ही दिन में मौसी लंड चूसने में एक्सपर्ट हो गई.. रसिक को मज़ा तो आ रहा था पर एक ही तकलीफ हो रही थी.. जब भी वो मौसी के मुंह में धक्का लगाता और उनके कंठ तक लंड घुसेड़ने की कोशिश करता.. तब मौसी अपना सर पीछे खींच लेती और रसिक का मूड ऑफ हो जाता..
इसलिए रसिक ने अब दोनों हाथों से मौसी का सर जकड़ लिया.. और धक्के लगाने लगा.. अब मौसी हिल भी नहीं पा रही थी और उसे जबरदस्त मज़ा आना शुरू हो गया था.. जब वह अपने उत्तेजित लंड को पूरी ताकत से अंदर धकेलता तब मौसी के गले तक लंड उतर जाता..मौसी का दम घुटने लगा.. वो बिलबिलाने लगी.. वो रसिक की पकड़ से छूटने के लिए जोर लगाती रही.. पर कसरती शरीर वाले रसिक के आगे भला मौसी का जोर कैसे चलता.. !! रसिक दोनों हाथों से उनके बालों को पकड़ कर धमाधम धक्के लगा रही था और उसके आँड मौसी की ठुड्डी से टकरा रहे थे.. मौसी का नाक रसिक के झांटों के बीच आक्सिजन तलाश रहा था.. और तभी उन्हें एहसास हुआ की कुछ गरम तरल प्रवाही उनके कंठ से होते हुए पेट तक जाने लगा..
अब तक जिस प्रवाही की गंध भी उन्होंने नहीं परखी थी वो चीज सीधे उनके मुंह के अंदर होते हुए पेट में जा रही थी.. मौसी को उलटी आ रही थी.. वो रसिक की पकड़ से छूटने के लिए मचल रही थी.. पर उत्तेजित मर्द को स्खलन की आखिरी पलों में अंकुश में करना बड़ा मुश्किल होता है..
मौसी की छटपटाहट की परवाह किए बिना रसिक अपने वीर्य के फव्वारे उनके गले के अंदर मारे जा रहा था.. जैसे विरोध पक्ष विरोध करते रहते है और शासक पक्ष विधेयक पास करवा लेते है.. वैसे ही अपना सारा लोड मौसी के हलक के नीचे उतार दिया और तब तक उन्हें नहीं छोड़ा जब तक उसके लंड की आखिरी बूंद अंदर उतर नहीं गई..
रसिक की पकड़ से छूटते ही मौसी अपना सर झटकते हुए मुंह के वीर्य के स्वाद को हटाने की व्यर्थ कोशिशें करती रही.. उनकी सांस फूल गई और वो वहीं फर्श पर ढल पड़ी.. देखकर रसिक घबरा गया.. कहीं बुढ़िया टपक तो नहीं गई.. !! बाप रे.. !! वो लेटी हुई मौसी के शरीर के आजूबाजू पैर रखकर खड़ा हो गया.. नंगी निश्चेतन मौसी उसकी दोनों टांगों के बीच लाश की तरह पड़ी हुई थी.. उसके लटकते हुए लंड से कुछ आखिरी बूंदें मौसी के स्तनों पर टपक पड़ी.. छाती पर गरम गरम एहसास होते ही मौसी ने अपनी आँखें खोली और नज़रों के सामने रसिक के विकराल लंड को ठुमकते हुए देखती रही.. घबराकर उन्होंने फिर से आँखें बंद कर ली..
थोड़ी देर बाद होश आते ही वो बैठ गई और रसिक पर गुस्सा करने लगी.. "नालायक.. ऐसे भी कोई करता है क्या?? अभी मेरी जान निकल जाती.. जा.. अब मुझे तेरे साथ नहीं करवाना.. " कहते हुए वो करवट बदल कर सो गई.. बात को बिगड़ता देख चिंतित रसिक उनकी जंघाओं को चौड़ी कर लेट गया और फिरसे मौसी की चूत चाटने लगा.. उन्हें रिझाने के लिए..
"छोड़ दे रसिक.. मुझे नहीं चटवानी.. तू जा यहाँ से.. " पर रसिक ने मौसी को रिझाने के प्रयास जारी रखें.. जैसे जैसे रसिक की जीभ मौसी की चूत की परतों को चाटती गई.. वैसे वैसे मौसी का गुस्सा, उत्तेजना में परिवर्तित होने लगा.. पर नाराज तो वो अब भी थी.. "मेरा हो चुका है.. अब मुझे कुछ नहीं करवाना तुझसे.. छोड़ मुझे.. और जा यहाँ से.. !!"
रसिक ने एक न सुनी.. और चाटता ही गया.. अब मौसी के दिमाग पर सुरूर छाने लगा था "आह्ह रसिक.. छोड़ दे.. पर चले मत जाना.. तू चला जाएगा तो फिर मैं क्या करूंगी? जो शुरू किया है वो पहले खतम कर.. !!" सारांश सिर्फ इतना था की मौसी फिर से उत्तेजित हो गई थी "साले फिर से क्यों ये सब शुरू किया? मैं ठंडी हो गई थी और तेरा भी निकल चुका था.. अब वापिस मुझे गरम कर दिया.. अब ये आग कौन बुझाएगा?? चल चाट अब इसे " उत्तेजित होकर मौसी अब खूंखार स्वरूप धारण करने लगी थी.. लेटे हुए रसिक की छाती पर सवार होकर वो हिंसक रूप से रसिक के होंठों पर अपनी भोस रगड़ने लगी..
मौसी के भोसड़े के भीतर तक जीभ डालते हुए रसिक चाटता रहा और थोड़ी ही देर में मौसी फिर से झड़ गई.. जैसी जबरदस्ती रसिक ने उनके साथ की वैसा ही कुछ उन्होंने भी रसिक के साथ किया.. इस एहसास ने उनका गुस्सा कम कर दिया.. हिसाब बराबर हो चुका था.. मुसकुराते हुए मौसी ने रसिक से कहा "देखा कैसा होता है जब कोई जबरदस्ती कुछ करता है तब"
मौसी की दोनों निप्पलों को खींचते हुए रसिक ने कहा "मुझे तो इसमे भी बहोत मज़ा आया.. आपको भी मज़ा आया.. बेकार में हंगामा कर दिया उस वक्त आपने "
मौसी: "अरे कमीने, उस वक्त तो ऐसा लग रहा था की जैसे मेरे प्राण ही निकल जाएंगे.. तू इसी इच्छा की बात कर रहा था ?"
रसिक: "हाँ मौसी.. आपके मुंह में पानी गिराने में तो बहोत मज़ा आया.. पर मेरा मन कर रहा है किसी जवान छातियों को दबाने का.. बहोत समय से इच्छा है.. पर कीसे कहूँ? आपके ध्यान में अगर कोई इसी जवान चूत हो तो मुझे बताना.. "
मौसी: "मर जा मुएं बेशर्म.. अब मैं तेरे दबाने के लिए जवान छातियाँ ढूँढने बैठूँ.. !! ये शीला के तो रोज दबाता है तू.. मैं सब जानती हूँ.. मेरे मुकाबले तो वो काफी जवान है.. और सख्त भी.. और रूखी भी उससे बढ़कर है.. एक एक स्तन दो लीटर दूध समा सकें उतने बड़े है उसके.. फिर तू क्यों बाहर ढूँढता रहता है? इससे बेहतर और कौनसी छातियाँ चाहिए तुझे? घर पर रूखी के दबाता है और यहाँ शीला के.. मन नहीं भरता क्या?"
रसिक: "उस हरामजादी रूखी का नाम मत लो मेरे सामने.. मादरचोद ने मुझे नामर्द कहा था.. "
मौसी चोंक उठी "क्या बात कर रहा है? इतना बड़ा अजगर जैसा लंड है तेरा और फिर भी उसने तुझे नामर्द कहा??"
रसिक: "ये लंड आपको अजगर जैसा लगता है.. पर उसे तो ये भी छोटा पड़ता है.. और कहती है की मुझे ठीक से धक्के लगाना नहीं आता.. अब आप ही बताइए.. दो दिन से आपको चोद रहा हूँ.. आप को कोई कमी महसूस हुई क्या??"
मौसी: 'क्या बात कर रहा है, रसिक!! तेरे लंड के धक्के तो मुझे छातियों तक महसूस होते है.. मैं बूढ़ी हूँ फिर भी मेरी चीखें निकल जाती है.. कोई छोटी उम्र वाली की तो तू जान ही निकाल दे.. !!"
रसिक: 'और उस कमीनी को ये छोटा पड़ता है.. इसलिए साली किसी और का लंड लेती है"
अनुमौसी की आँखों में एक अजीब सी चमक आ गई.. रूखी को किसी गैर-मर्द के गधे जैसे लंड से चुदते हुए देखने की कल्पना करते हुए..
मौसी: "मुझे पता है वो किसका डलवाती है.. वो जिस से चुदवाती है उसका तुझसे भी बड़ा है रसिक.. पर तेरा भी कुछ कम नहीं है.. पीयूष के पापा से तो बड़ा ही है.. "
रसिक सुनता रहा.. वैसे उसे रूखी और जीवा के छक्का के बारे में मालूम ही था.. पर आश्चर्य इस बात से था की अनुमौसी को इस बारे में कैसे पता चला.. !!
"कौन है वो, मौसी?"
"रूखी के मायके का दोस्त है.. जीवा.. मैं और शीला, दोनों उसको जानते है" अनुमौसी ने अपने साथ साथ शीला का पेपर भी लीक कर दिया
"पर मौसी, आप को कैसे पता चला की उसका मुझसे भी बड़ा और मोटा है? इसका मतलब ये हुआ की आपने उसका देखा है"
मौसी ने बात टालने की कोशिश तो की पर अब रसिक को पता चल ही चुका था तो छुपाने का कोई मतलब नहीं था..और वो रसिक को अपने राज की बातें बता कर.. अपनी ओर खींचना चाहती थी.. इसलिए उन्होंने बता दिया
मौसी की नंगी भोस में रसिक ने दो उँगलियाँ अंदर बाहर करते हुए कहा "सच सच बता दो मौसी.. आप ने उस मादरचोद जीवा का सिर्फ देखा है या फिर अंदर लिया भी है? वो हरामखोर जब घर आता है तब तो रूखी उसे "मेरा भाई मेरा भाई" कहकर बुलाती है"
"देख बेटा.. अब जमाना बदल गया है.. बहन बहन कहकर लॉग भांजे पैदा कर देते है.. आज कल के मर्द और औरत.. अपना पाप छुपाने के लिए मुंह बोली बहन या भाई का रिश्ता बनाकर इस पवित्र संबंध का दुरुपयोग करते है.. मैंने और शीला ने जीवा के साथ सब कुछ किया हुआ है.. तेरी बीवी ही उसे यहाँ लेकर आई थी.. जीवा उसके मायके का यार है और वो कुंवारी थी तब से उन दोनों का चक्कर चल रहा है.. रूखी को तो उसका लिए बिना चलता ही नहीं है.. तू शहर से बाहर था तब रूखी, जीवा का लंड लेने के लिए तरस रही थी.. घर पर तो तेरे माँ बाप रहते है इसलिए वहाँ तो बात बन न पाई.. आखिर रूखी ने शीला को बताया.. फिर शीला ने उन दोनों के मिलने का सेटिंग यहीं करवा दिया.. इसी बिस्तर पर जीवा ने तेरी बीवी की टांगें चौड़ी कर अपने गधे जैसे लंड से चोद दीया था.. मैंने और शीला ने जब जीवा का तगड़ा लंड देखा तब हम से भी रहा नहीं गया.. इसलिए मैंने और शीला ने जीवा और उसके दोस्त रघु से करवाया था.. बोल, और कुछ जानना है तुझे?"
"और तो कुछ नहीं जानना मौसी.. पर जैसे आप जीवा का लंड देखकर खुद को रोक नहीं पाई.. वैसे ही जवान छोटी छोटी छातियाँ देखकर मुझसे भी रहा नहीं जाता.. एक बार मुझे जवान बबलों की सेटिंग करवा दीजिए मौसी.. बदले में.. मैं सारी ज़िंदगी आपकी सेवा करूंगा.. !!"
अनुमौसी: "पर मैं कहाँ ढूँढने जाऊ तेरे लिए जवान छातियाँ?"
रसिक: 'कहीं ढूँढने जाने की जरूरत नहीं है.. आप के घर पर ही तो है.. कविता.. आपकी बहु.. !!"
अनुमौसी: "चुप हो जा कमीने.. कुछ पता भी है तू क्या बक रहा है?? सास होकर क्या मैं अपनी बहु से कहूँ की किसी अनजान मर्द के सामने अपनी छातियाँ खोल दे.. ?? वो क्या सोचेगी मेरे बारे में.. ??"
रसिक: "आप समझ नहीं रही है मौसी.. मैंने ये कब कहा की आप कविता से इस बारे में कहिए.. आपको तो बस मुझे आशीर्वाद देना है.. और बीच में टांग नहीं अड़ानी है.. बाकी सब मैं देख लूँगा.. आप देखकर अनदेखा तो कर सकती हो ना.. !!"
अनुमौसी: "अरे पर पीयूष को पता चल गया तो गजब हो जाएगा.. मैं माँ होकर अपने बेटे की ज़िंदगी में जहर नहीं घोल सकती.. ऐसा तो मैं होने नहीं दूँगी.. तू मुझे आज के बात कभी नहीं करेगा तो भी मुझे चलेगा.. पर फिर कभी ऐसी बात की ना तो तेरी खैर नहीं.. याद रखना तू.. !! हाँ अगर कोई बिन-ब्याही या विधवा होगी तो उसके साथ मैं तेरा सेटिंग करवा दूँगी.. ठीक है.. !!"
रसिक ने उदास होकर कहा "ठीक है मौसी.. चलो मैं अब चलता हूँ.. बहोत देर हो गई आज तो.. " मुंह फुलाकर नाराज होते हुए रसिक खड़ा हुआ.. मौसी सोच रही थी की जाते जाते रसिक उन्हें बाहों में भरकर चूमेगा.. पर रसिक ने ऐसा कुछ नहीं किया और गुस्से में चला गया.. मौसी का भी मूड ऑफ हो गया.. रसिक के जाने के बाद मौसी ने सोचा.. शीला का खाली घर अभी कुछ दिनों तक उनके कब्जे में थे.. रसिक को झूठ-मूठ की आशा देकर मना लेती तो तीन-चार दिन तक चुदाई का भरपूर लाभ मिल जाता.. बेकार में रसिक को नाराज कर दिया.. शीला होती तो यही करती.. मुझ में और शीला में यही तो फरक है.. शीला ने कलकत्ता बैठे बैठे मेरी यहाँ सेटिंग कर दी.. और मैं यहाँ रहते हुई भी उसे संभाल नहीं पाई.. अपने आप पर गुस्सा आ रहा था.. निराश होकर वह उठी और कपड़े पहन कर घर जाने लगी..
दरवाजा खोलते ही उन्हों ने देखा की उनके घर के बाहर रसिक कविता को दूध दे रहा था.. दोनों हंस हंस कर बातें कर रहे थे.. इतनी सुबह सुबह कविता क्या बात कर रही होगी इस दूधवाले से.. !! और ऐसा तो क्या कहा होगा रसिक ने जो कविता इतना हंस रही थी.. ?? रोज के मुकाबले रसिक आज कुछ ज्यादा ही समय ले रहा था दूध देने में.. मौसी के दिमाग में हजार खयाल आने लगे.. मौसी को यकीन हो गया की रसिक कविता को दाने डालकर पटाने की कोशिश कर रहा होगा..