Thanks a lot Napster bhaiबहुत ही मस्त और शानदार अपडेट है भाई मजा आ गया
Thanks a lot Napster bhaiबहुत ही मस्त और शानदार अपडेट है भाई मजा आ गया
बहुत ही सुंदर लाजवाब और गजब का खतरनाक अपडेट है भाई मजा आ गयादरवाजा खोलते ही उन्हों ने देखा की उनके घर के बाहर रसिक कविता को दूध दे रहा था.. दोनों हंस हंस कर बातें कर रहे थे.. इतनी सुबह सुबह कविता क्या बात कर रही होगी इस दूधवाले से.. !! और ऐसा तो क्या कहा होगा रसिक ने जो कविता इतना हंस रही थी.. ?? रोज के मुकाबले रसिक आज कुछ ज्यादा ही समय ले रहा था दूध देने में.. मौसी के दिमाग में हजार खयाल आने लगे.. मौसी को यकीन हो गया की रसिक कविता को दाने डालकर पटाने की कोशिश कर रहा होगा..
वैसे तो उन्हें इस परिस्थिति में तुरंत घर पहुंचकर दोनों को अलग करना चाहिए था.. पर पता नहीं उन्हें क्या हुआ की वो दरवाजा बंद कर अंदर गई.. और शीला के किचन की खिड़की से दोनों को देखने लगी.. रसिक दूध देकर चला गया और कविता शरमाते हुए घर के अंदर चली गई.. उसके बाद अनुमौसी ने शीला के घर को ताला लगाया और अपने घर पहुंची.. कविता को इतना खुश देखकर उन्हें पक्का संदेह हुआ की जरूर रसिक ने कुछ कहा होगा कविता से.. पर पूछती कैसे??"
हकीकत में कविता ने सिर्फ निर्दोष बातचीत ही की थी रसिक से.. उस बेचारी को क्या दिलचस्पी होगी एक मामूली से दूधवाले में.. ?? वैसे रसिक का ये सौभाग्य था की उसके धंधे में सारी ग्राहक औरतें और भाभीयां ही थी.. सुबह सुबह बिना मेकअप के अस्तव्यस्त कपड़ों में.. ज्यादातर बिना ब्रा के सिर्फ गाउन पहने औरतें मिलती थी.. रोज नई नई साइज़ और आकार के स्तनों को प्राकृतिक अवस्था में देखने का मौका मिलता.. हाँ उन स्तनों को नंगे देखने की ख्वाहिश सिर्फ मन में ही रह जाती.. और इसीलिए उन औरतों के पीछे रसिक भागता नहीं था.. हाँ, उसका मन जरूर करता की ऐसी मॉडर्न फेशनेबल भाभियों और लड़कियों के मस्त स्तनों को एक बार रगड़ने का मौका मिल जाएँ..
रसिक साइकिल लेकर घूमता तब एक्टिवा पर लटक-मटक तैयार होकर.. टाइट टीशर्ट और जीन्स पहनकर आती जाती लड़कियों को देखकर उसका दिल डोल जाता.. जैसे कोई गरीब आदमी, मर्सिडीज के शोरूम के बाहर खड़ा रहकर अहोभाव से महंगी गाड़ियों को देखता है.. वैसे ही रसिक देखता रहता.. और सोचता की ये लड़कियां नंगी हो तब कैसी दिखती होगी!! कितनी गोरी और सुंदर है.. टाइट जीन्स से साफ दिखते कूल्हों वाली इन लड़कियों की चूत कितनी टाइट होगी.. !! उस बेचारे को एहसास भी नहीं था की असली सुंदरता तो उसके घर पर बैठे बैठे उसके बेटे को अपने तड़बुच जैसे स्तनों से दूध पीला रही थी.. रूखी के पाँच लीटर वाले मदमस्त स्तन थे.. पेड़ के तने जैसी मस्त मोटी चिकनी जांघें थी.. गदराई गांड थी.. और चेहरे के नक्शा भी काफी सुंदर था.. सही अर्थ में वह पूर्ण रूपसुन्दरी थी.. और उसका देसी स्टाइल उस रूप में चार चाँद लगा देता था.. पर इंसान का स्वभाव ही ऐसा है.. घर की मुर्गी दाल बराबर लगती है..
बड़े बड़े स्तनों वाली और थोड़े भारी भरकम शरीर वाली.. रूखी या शीला जैसी पत्नियों के पतिदेवों को.. नोरा फतेही जैसी ज़ीरो फिगर वाली लड़कियों में स्वर्ग नजर आता है.. वो अपनी गदराई पत्नियों को ताने मारते है.. कितनी मोटी है तू.. ऊपर चढ़ती है तब वज़न लगता है.. हर वक्त तेरे बदन पर पसीना रहता है.. तेरा पेट कितना बाहर आ गया है.. चूत तक लंड पहुंचाने के लिए मुझे एक्सटेंशन लगाना पड़ेगा.. वगैरह वगैरह.. और जिसकी पत्नी एकदम पतली होती है उनके पति की ये शिकायतें होती है की.. यार तुझसे ज्यादा बड़े बॉल तो मेरे है.. कितने छोटे है तेरे.. कुछ हाथ में ही नहीं आता.. तेरे ऊपर चढ़कर शॉट लगाता हूँ तब हड्डियाँ टकराती है मेरे शरीर से.. तेरा तो शरीर है या चलता फिरता कंकाल.. !! पतली पत्नियों के चूतिये पति.. गदराई औरतों को देखकर आहें भरते है.. और भारी शरीर वाली पत्नियों के पति.. जीरो फिगर को देखकर भद्दे शरीर वाली अपनी बीवी को मन ही मन कोसते है.. सब को दूसरे का माल ही बेहतर लगता है..
जब कविता रसिक से दूध ले रही थी.. तब उसके पतले नाइट ड्रेस से दिख रहे अद्भुत बिना ब्रा के स्तनों को देखकर रसिक स्तब्ध रह गया..
सोच रहा था.. काश एक बार दबाने मिल जाएँ!! कितने मस्त है.. मेरी एक हथेली से मैं इसके दोनों स्तन साथ में दबा दूँ.. रूखी का तो एक स्तन मेरी दोनों हथेलियों में भी नहीं समाता.. उसका तो सब कुछ बड़ा बड़ा ही है.. छातियाँ बड़ी.. गांड बड़ी.. जांघें भी बड़ी.. इसलिए साली को लोडा भी बड़ा चाहिए.. जिस तरह शीला भाभी ने मुझे करने दिया.. उस तरह क्या इसे भी पता लूँ तो मज़ा आ जाए.. कितनी नाजुक है!! आह्ह.. इसे तो मेरे लंड पर बिठाकर गली गली घूमता फिरूँ फिर भी मुझे इसका वज़न न लगे.. और इसकी चूत कैसी होगी.. छोटी सी.. टाइट टाइट.. मोगरे के ताजे खिले हुए फूल जैसी.. पर क्या उसके अंदर मेरा जाएगा??
जैसे जैसे रसिक, कविता के कमसिन जोबन के बारे में सोचता गया वैसे वैसे उसकी बेसब्री बढ़ती गई.. आज रसिक ने काफी घरों में दूध दिया और हर दूध लेने वाली स्त्री में वो कविता को खोज रहा था.. अनुमौसी के साथ वो जानबूझकर नाराज होकर निकला था.. वो जानता था की उसे नाराज देखकर मौसी बेचैन हो जाएगी.. और मेरे लिए कुछ न कुछ जरूर करेगी.. कविता की चूत तक पहुँचने के लिए मौसी की गटर में लंड डालना ही होगा.. मौसी को भी मेरे जैसा लंड कहाँ मिलेगा!! वो मुझे छोड़ तो पाएगी नहीं.. मुझे मनाने आएगी तब मैं अपनी मनमानी करूंगा..
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जब से कविता ने मौसम की शादी की बात सुनी थी तब से वो हवा में उड़ने लगी थी.. शादी में वो क्या पहनेगी.. मौसम को क्या गिफ्ट देगी.. संगीत संध्या में कौनसे रंग की चोली पहनेगी.. !! किचन में चाय बनाने गेस पर रखकर.. बिना नहाए धोए कविता चाय उबलने का इंतज़ार कर रही थी.. तभी उसने अपनी सास को घर में आते देखा.. मम्मीजी इस उम्र में भी कितनी फिट है.. !! वैसे कहने को दोनों सास-बहु थे पर दोनों में बहोत प्यार था.. अनुमौसी ने हमेशा से कविता को अपनी बेटी समान माना था.. वो कभी उसपर गुस्सा नहीं करती थी और गलती करने पर भी प्यार से समझाती थी..
"कैसी है बेटा? नींद आई थी ठीक से?" कविता को पूछकर.. उसके उत्तर का इंतेज़ार कीये बिना ही मौसी बाथरूम में घुस गई.. तभी पीयूष नींद से जागकर आँखें मलते हुए बाहर निकला.. रोज की तरह सब से पहले उसकी नजर शीला के घर की तरफ गई.. दरवाजा पर ताला देखकर उसका मुंह उतर गया.. वरना रोज सुबह शीला भाभी का चाँद जैसा चेहरा देखकर उसका मन प्रफुल्लित हो जाता.. आखिर उसने कविता को पीछे से पकड़ लिया और उसके गोलमटोल स्तनों को दबाते हुए कहा "गुड मॉर्निंग डार्लिंग.. !!"
"छोड़ नालायक.. मम्मीजी बाथरूम में है.. कभी भी बाहर आ जाएंगे.. " कविता ने अपने आप को छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा.. कविता की गर्दन को चूमते हुए पीयूष उससे अपनी मतलब की बात जानने के लिए पूछने लगा "मदन भैया के बगैर कितना सूना सुना लग रहा है.. कब लौटने वाले है वो लोग?"
कविता ने भी मौका देखकर चौका लगा दिया "मदन भैया के बगैर सूना सुना लग रहा है या शीला भाभी के बगैर? या फिर वैशाली की याद आ रही है?"
पीयूष ने स्तनों को जोर से दबाते हुए कहा "अब इसमें शीला भाभी और वैशाली कहाँ से आ गई बीच में.. ये तो मदन भैया की कंपनी में मज़ा आ रहा था इसलिए पूछा.. भाभी और वैशाली का नाम लेकर तू कहना क्या चाहती है?" कविता की निप्पल मरोड़ दी गुस्से में पीयूष ने
"छोड़ दे.. वरना में चीख दूँगी.. और मम्मी नहाते नहाते बाहर आ जाएगी.. छोड़ साले" दोनों के बीच मज़ाक मस्ती चल रही थी तभी मौसी बाथरूम से बाहर आए.. और पीयूष ने कविता को छोड़ दिया.. और टॉइलेट में घुस गया..
चाय पीते पीते कविता ने मौसम की जल्द होने वाली शादी के बारे में अनुमौसी को बताया
अनुमौसी: "देख बेटा.. तेरे पापा को भागदौड़ तो होगी.. पर सब साथ मिलकर करेंगे तो सब कुछ हो जाएगा.. पापा से कहना की वो चिंता न करें.. हम सब मिलकर मौसम की शादी बड़ी धूमधाम से करेंगे"
वॉश-बेज़ीन पर ब्रश कर रहा पीयूष बड़े ध्यान से सास-बहु की बातचीत को सुन रहा था.. जिस बात को वो भूलने की कोशिश कर रहा था उसका जिक्र सुबह सुबह ही हो गया.. उसका मूड खराब हो गया.. मौसम के साथ आज बात करनी ही होगी.. ऐसा सोचते हुए वो जैसे तैसे नहाकर, बिना नाश्ता कीये.. ऑफिस के लिए निकल गया..
घर से बाहर निकलते ही पीयूष ने मौसम को फोन किया..
मौसम: "हैलो जीजू.. पापा अभी यहीं है.. वो बस ऑफिस जा रहे है.. उनके जाते ही पाँच मिनट में कॉल करती हूँ.. ठीक है!!"
पीयूष: "ओके.. पर जल्दी करना.. एक बार ऑफिस पहुँच गया फिर बात करना मुश्किल हो जाएगा"
मौसम: "हाँ जीजू.. तुरंत करूंगी.. "
पीयूष: "लव यू मौसम"
मौसम: "ठीक है, रखती हूँ"
मौसम ने उसके "लव यू" का जवाब नहीं दिया इस बात का बुरा लगा पीयूष को.. पर फिर उसने अपने मन को मनाया.. हो सकता है की पापा आजूबाजू ही हो.. इसलिए बेचारी मौसम चाह कर भी बोल न पाई हो.. अपनी नादानी पर हँसते हुए वो बाइक चलाते हुए मुख्य सड़क पर आ गया.. आगे जाकर उसने बाइक रोक दी और मौसम के फोन की राह देखने लगा.. आधा घंटा बीत गया पर मौसम का फोन नहीं आया.. आखिर पीयूष थक कर ऑफिस की ओर निकल गया.. ऑफिस के दरवाजे पर पहुँचने पर भी फोन नहीं आया.. जैसे ही उसने अंदर प्रवेश किया.. मौसम का फोन आ गया.. पीयूष को बड़ा गुस्सा आया.. पाँच मिनट का बोलकर एक घंटे बाद फोन किया मौसम ने.. उसने सोचा की फोन कट कर दूँ.. पर फिर फोन उठा ही लिया..
मौसम: "हाँ जीजू.. "
पीयूष: "यार, तेरे फोन का इंतज़ार करते करते मैं ऑफिस पहुँच गया.. कितनी देर लगा दी तूने?? जल्दी बात कर.. मुझे अंदर जाना होगा.. सब देख रहे है मुझे"
मौसम: "सॉरी जीजू.. पर मैं क्या करती? पापा ऑफिस गए और तरुण का फोन आ गया.. उसी से अब तक बात कर रही थी इसलिए देर हो गई.. बताइए क्यों फोन किया था?"
तरुण का नाम सुनते ही पीयूष का खून घोलने लगा.. तरुण का फोन आ गया इसलिए मौसम ने मुझे होल्ड पर रख दिया.. !! प्रेमियों को नजरंदाजी बिल्कुल पसंद नहीं होती.. खासकर अपने साथी से.. कभी कभी तो वो अपने साथी की मजबूरी को भी उपेक्षा मानकर रूठ जाते है..गुस्से से पीयूष ने फोन काट दिया.. मौसम को लगा की नेटवर्क प्रॉब्लेम के कारण फोन कट गया.. मौसम ने फिर से फोन किया
गुस्से से पीयूष स्क्रीन पर मौसम का नाम देखकर कांप रहा था..
"क्यों भाई?? क्या हुआ? किस टेंशन में है??" पीछे से कंधे पर हाथ रखते हुए पिंटू ने कहा
"कुछ नहीं यार.. ऐसे ही थोड़ा सा टेंशन चल रहा है"
"घर पर कुछ हुआ? या राजेश सर ने कुछ बोल दिया?" पिंटू को ये जानना था की कहीं पीयूष और कविता के बीच तो कुछ नहीं हुआ ना.. !! पीयूष का जो होना हो सो हो.. पर कविता डिस्टर्ब नहीं होनी चाहिए.. पीयूष के टेंशन का कारण जानने के लिए पिंटू बेसब्र हो गया
पर पीयूष की समस्या ये थी की वो असली कारण पिंटू को बता नहीं पाएगा.. बात टालने के लिए उसने कहा "यार वही कविता के साथ का प्रॉब्लेम.. अभी सॉल्व कहाँ हुआ है.. !! बहोत तंग करती है वो मुझे.. जो मन में आए वो बोलती है.. सुबह सुबह मम्मी के साथ झगड़ पड़ी.. इसलिए टेंशन में था" पीयूष ने अपनी बात छुपाने के लिए कविता को बलि चढ़ा दिया
सुनकर पिंटू सोच में पड़ गया.. मेरी कविता ऐसा तो नहीं कर सकती.. जरूर पीयूष ने ही कुछ किया होगा पर बता नहीं रहा.. कविता को पिंटू इतना चाहता था की हर वक्त उसकी फिक्र लगी रहती.. पीयूष से बात करके वो बाहर निकल गया.. पीयूष ने भी चैन की सांस ली.. वो थोड़ी देर अकेला रहना चाहता था..
उदास होकर पीयूष कुर्सी पर बैठ गया.. चपरासी ने पानी का ग्लास उसके टेबल पर रखा और चला गया..
पिंटू ने बाहर जाकर कविता को फोन किया और उससे पूछा.. कविता का जवाब सुनकर वो चकित रह गया.. कविता ने कहा की उसके और पीयूष के बीच सब सही चल रहा था.. और घर पर आज कोई झगड़ा भी नहीं हुआ था.. फिर पीयूष झूठ क्यों बोला? शातिर दिमाग वाले पिंटू को ये शक होने लगा की पीयूष जरूर कोई ऐसे कारणवश परेशान था जो अनैतिक या असामाजिक हो.. पर आखिर कारण होगा क्या? पिंटू उसके ऑफिस का साथी और दोस्त भी था.. पर जब तक पीयूष असली कारण नहीं बताता उसकी मदद कर पाना मुमकिन नहीं था.. पिंटू ऑफिस में अपने काम में व्यस्त हो गया..
मौसम से बात करने के बाद बहोत उदास था पीयूष.. उसका किसी काम में मन नहीं लग रहा था.. दोपहर के बाद उसने राजेश सर से आधे दिन की छुट्टी मांग ली और ऑफिस से निकल गया..
ऑफिस के बाहर निकल तो गया पर कहाँ जाए ये तय नहीं कर पा रहा था.. बाइक को ऑफिस पर ही छोड़कर वो सड़क पर चलता गया.. घर तो जाना नहीं था.. क्या करता इतनी जल्दी जाकर?? मौसम के खयालों में खोया हुआ वो चलता जा रहा था और उसे पता भी नहीं चला की कब रेणुका की गाड़ी उसके करीब से होकर गुजर गई..
गाड़ी थोड़ी सी आगे जाने पर रेणुका ने रिवर्स ली और पीयूष को रोकते हुए कहा "हाई हेंडसम.. कहाँ भटक रहा है मजनू की तरह?? "
पीयूष चोंक गया "अरे मैडम आप? मैंने आज ऑफिस से आधे दिन की छुट्टी ली है.. थोड़ा सा काम था इसलिए.. वैसे आप यहाँ कैसे?"
"बातें बंद कर और गाड़ी में बैठ जा.. फिर मैं बताती हूँ की कहाँ जा रही हूँ.. कार में बैठकर भी तो बात हो सकती है"
पीयूष थोड़े संकोच के साथ रेणुका की गाड़ी में बैठ गया.. जैसे ही वो बगल में बैठ रेणुका ने पीयूष की जांघ पर हाथ रखते हुए कहा "दरअसल में ऐसे ही सैर-सपाटे के लिए निकली हूँ.. घर पर बैठे बोर हो रही थी.. तू मानेगा नहीं.. मैंने आज ही तुझे याद किया था"
"क्या बात है.. !! चलो अच्छा हुआ.. कोई तो है जो मुझे याद कर रहा है.. वैसे याद क्यों आई थी मेरी?" पीयूष के दिमाग में अभी भी मौसम को लेकर कड़वाहट थी..
रेणुका ने पीयूष की जांघ को सहलाते हुए कहा "अरे यार.. दोपहर बैठे बैठे इतनी बोर हो गई थी.. तभी मुझे विचार आया की जैसे उस दिन राजेश ने तुझे पैसे लेने घर भेजा था वैसा ही कुछ आज भी हो जाए तो मज़ा आ जाए"
पीयूष हंसने लगा "अच्छा अच्छा.. उस दिन आपके घर पचास हजार लेने आया तब जो हुआ था उसकी बात कर रही है आप"
धीरे धीरे रेणुका ने पीयूष की जांघ को दबाना शुरू कर दिया.. कार के ए.सी. की ठंडी हवा.. और साथ में रेणुका के जिस्म से आ रही परफ्यूम की मादक खुशबू.. पीयूष एक ही पल में मौसम को भूल गया
"बोल.. गाड़ी किस तरफ घुमाऊ?? कहाँ जाना है तुझे? तूने अभी कहा ना की किसी काम के लिए निकला है!!" निर्दोष भाव से रेणुका ने पूछा.. रेणुका को पता नहीं था की पीयूष ऐसे ही भटक रहा था और उसे कहीं जाना नहीं था.. दोनों बिना मंजिल के मुसाफिर थे.. अजीब बात यह थी की ऐसे दो मुसाफिरों के मिलने से अब उनकी मंजिल तय हो रही थी
"अब बोल भी दे.. कहाँ जाना है तुझे?" रेणुका रोमांचित हो गई थी.. पीयूष की कंपनी यूं अचानक मिल जाने से.. शरारती अंदाज मे रेणुका ने अपना पल्लू थोड़ा सा हटा दिया.. इस तरह हटाया की साइड से पीयूष को उसके स्तनों की गोलाई नजर आ सके..
"दरअसल मुझे कोई काम नहीं था.. ऑफिस में बोर हो रहा था तो बाहर टहलने निकल गया.. आपको गाड़ी जहां लेनी हो ले जाइए"
"ये आप-आप क्या लगा रखा है?? याद है ना.. उस दिन जब तू पैसे लेने घर आया तब हम कितने करीब आ गए थे!! जब हम अकेले हो तब मुझे "तू" कहकर ही पुकारा कर.. आप-आप कहता है तो ऐसा लगता है जैसे मैं कोई बूढ़ी हूँ.. " रेणुका ने पीयूष को रिझाना शुरू कर दिया.
पीयूष रास्ते से गुजर रही गाड़ियों को देख रहा था.. उसने रेणुका की बात का कोई जवाब नहीं दिया..
रास्ते पर इधर उधर देख रहे पीयूष की जांघ पर चिमटी काटते हुए रेणुका ने कहा "कहाँ देख रहा है तू? पहले कभी गाड़ियां देखी नहीं है क्या? यहाँ तेरे बगल में, मैं बैठी हूँ और तू मुझे देख नहीं रहा.. !! देख.. तेरी पसंदीदा चीज दिखाने के लिए मैंने पल्लू भी सरका दिया है.. "
पीयूष ने रेणुका के स्तनों की तरफ देखा.. ब्लाउस में कैद उन अद्भुत गोलाइयों को वो देखता ही रह गया.. उसके चेहरे पर अब शैतानी मुस्कुराहट आ गई..
"याद है वो दिन.. तेरे घर के पीछे.. जब तू मेरे स्तन को चूसने के लिए गिड़गिड़ा रहा था.. " रेणुका ये सब बातें करते हुए पीयूष को उत्तेजित करना चाहती थी.. "अब आज मैं सामने से तुझे कह रही हूँ तो इंतज़ार क्यों कर रहा है!! अभी हम दोनों अकेले है.. चल आज गाड़ी में ही दोपहर को रंगीन बना देते है" खुला आमंत्रण दे दिया रेणुका ने.. पीयूष की जांघ पर घूमते हुए उसके हाथ ने उसका लंड पकड़ लिया..
शीला भाभी की सहेली होने के नाते पीयूष से पहचान हुई थी.. तब से लेकर बेडरूम तक का सफर पीयूष याद करने लगा.. मौसम के नाम की उदासी मन से हटाते हुए उसने रेणुका पर अपना सारा ध्यान केंद्रित किया.. अपने लंड पर रेणुका के हाथ को पीयूष ने दबा दिया.. लंड का टोपा हाथ में आते ही गाड़ी ड्राइव कर रही रेणुका ने पीयूष को तिरछी नज़रों से देखा.. "वाह.. इसे कहते है असली हथियार.. !! जो एक बार छूते ही तैयार हो जाए.. !!" हँसते हुए रेणुका ने वापिस ड्राइविंग पर अपना ध्यान केंद्रित किया..
गाड़ी धीरे धीरे सरकती हुई शहर से बाहर निकलकर हाइवे पर आ पहुंची.. दोपहर का समय था.. इक्का-दुक्का ट्रक के सिवा.. रोड पर कोई नजर नहीं आ रहा था.. पीयूष ने चैन खोलकर अपना लंड बाहर निकाला..और रेणुका के हाथों में उसे थमाते हुए.. ब्लाउस के ऊपर से उसके गोल स्तनों को मींजने लगा..
"आह्ह.. बेशर्म.. इसे अंदर रख.. भरी दोपहर में.. खुली सड़क पर बाहर निकाल कर बैठा है.. गाड़ी को बेडरूम समझ रखा है क्या?? और छाती से हाथ हटा.. " औरतों की ये बड़ी तकलीफ है.. जब से उन्हें पता चल गया है की सेक्स की दौरान उनकी आनाकानी करना मर्दों को बेहद पसंद है.. तब से वो हर ऐसे मौके पर झूठी झिझक का प्रदर्शन करती रहती है.. पैसों के लिए अपनी चूत फड़वाती रंडियाँ भी लंड चूसने के नाम पर पहले तो मना ही करती है.. फिर थोड़ी सी आनाकानी के बाद लोलिपोप की तरह चुसेगी भी और गांड भी मरवाएगी.. नखरे करना स्त्री जाती का जन्मसिद्ध हक होता है.. वेश्या का तो सिर्फ उदाहरण दिया है.. ये बात सब पर लागू होती है..
चौड़े हाइवे पर नकली शर्म का झण्डा पकड़कर रेणुका ने पीयूष को धमका तो दिया पर हाथ से उसका लंड नहीं छोड़ा.. सख्त लकड़े जैसा हो गया था पीयूष का लंड.. जैसे जैसे उसकी कोमल हथेली उसके साथ खेलती गई.. वैसे वैसे पीयूष का लंड इस्तेमाल के लिए तैयार होने लगा.. रास्ते पर एक सुमसान जगह पर रेणुका ने पेड़ की छाँव में गाड़ी रोक दी..
गाड़ी को रोककर रेणुका ने पीयूष को गिरहबान से पकड़कर चूम लिया.. और फिर नीचे झुककर उसके लंड को मुंह में लेकर चूसने लगी..डर डर कर ये सब करने में मज़ा नहीं आया.. वो बोली "ओह्ह पीयूष.. देख तो यार.. ये तेरा डंडा.. इसे देखकर मुझे नीचे मीठी खुजली होने लगी है.. यहाँ और कुछ तो हो नहीं सकता.. क्या करें? मेरे घर चलें?"
पीयूष: "मैं ऑफिस से बहाना बनाकर निकला हूँ.. आपके घर कोई देख लेगा तो प्रॉब्लेम हो जाएगा.. कहीं और चलें?"
रेणुका: "और तो कहाँ जा सकते है? गेस्टहाउस में जाने से मुझे डर लगता है.. कहीं पुलिस की रेड पड़ गई तो लेने के देने पड़ जाएंगे.. मेरे घर जैसी सेफ जगह और कोई नहीं है"
थोड़ा सोचने के बाद पीयूष मान गया "ठीक है.. चलो तुम्हारे घर ही चलते है.. मुझसे भी अब रहा नहीं जाता"
रेणुका ने तुरंत यु-टर्न लिया और घर के तरफ गाड़ी घुमाई.. शहर के अंदर गाड़ी घुसते ही दोनों संभल संभलकर एक दूसरे को छेद रहे थे.. पर जैसे ही ट्राफिक बढ़ा.. दोनों शरीफ बनकर चुपचाप बैठ गए..
गाड़ी रेणुका के घर के पास पहुँच ही गई थी की तब..
रेणुका: "मर गए.. !! राजेश की गाड़ी घर पर.. !!! इस वक्त.. !!" दोनों की उत्तेजना एक ही पल में हवा बन कर उड़ गई
"पीयूष, तू यहीं उतर जा.. मैं तुझे फोन करूँ उसके बाद ही घर आना.. आधे घंटे में अगर मेरा फोन न आए तो घर चले जाना.. किसी और दिन करेंगे" कहते हुए रेणुका ने पीयूष को घर से थोड़े दूर ड्रॉप किया
अपने घर के पार्किंग में गाड़ी लगाकर रेणुका ने सब से पहले साड़ी और ब्लाउस को ठीक किया.. मिरर में देखकर ये तसल्ली कर ली की सब ठीक था या नहीं.. पीयूष से किस करने के कारण खराब हो चुकी लिपस्टिक को फिर से लगा दिया..
पल्लू को ठीक करते हुए जब वो घर के अंदर पहुंची तब राजेश बैठकर पैसे गिन रहा था..
"अरे राजेश तू यहाँ? इस वक्त? सब ठीक तो है ना..!! मैं अकेले बोर हो रही थी तो थोड़ी देर के लिए घूमने चली गई थी"
"हाँ यार.. मुझे एक पार्टी को पेमेंट करना था.. और पैसे थोड़े कम पड़ रहे थे.. आज पीयूष भी छुट्टी पर है इसलिए मुझे आना पड़ा.. "
रेणुका को अपनी किस्मत पर गुस्सा आ रहा था.. पीयूष ने अगर छुट्टी न ली होती तो राजेश उसे ही पैसे लेने भेजता और वो आराम से अपनी आग बुझा पाती.. चलो.. जो हुआ सो हुआ
"तू आराम से पैसे गिन.. मैं चाय बनाकर लाती हूँ" कहते हुए रेणुका किचन में चली गई
किचन में आते ही उसने पीयूष को फोन किया.. और कहा की वो उनके घर से थोड़ा दूर चला जाए.. ताकि ऑफिस जाते वक्त राजेश की नजर न पड़े.. उसके जाने के बाद.. ग्रीन सिग्नल मिलते ही वो घर आ जाए
पर पीयूष ने ये कहते हुए इनकार कर दिया की काफी देर हो चुकी थी इसलिए वो वापिस जा रहा था.. उसे अभी ऑफिस से बाइक भी लेनी थी..
एक मस्त सेटिंग होते होते रह गया.. इस अफसोस के साथ पीयूष ऑटो में ऑफिस की ओर निकल गया.. असल में.. अकेले पड़ते ही उसे फिर से मौसम की यादों ने घेर लिया था.. और फिर उसका मूड ऑफ हो गया इसलिए उसने रेणुका को मना कर दिया था.. अपनी बेकार किस्मत को कोसते हुए वो बाइक लेकर घर पहुंचा.. घर आकर मोबाइल को चार्जिंग में रखते हुए उसने देखा की मौसम के दस मिसकॉल आ चुके थे.. अरे बाप रे.. ये रेणुका के चक्कर में फोन साइलेंट किया था तो पता ही नहीं चला.. !! मौसम क्या सोच रही होगी?? मेसेज करूँ की नहीं? उसे मेसेज करते हुए कविता ने देख लिया तो?? तभी सामने से कविता को पानी का ग्लास लेकर आता हुआ देख.. पीयूष ने मोबाइल से मौसम के सारे कॉल डिलीट कर दीये..
पानी का ग्लास पीयूष को देते हुए कविता ने कहा "मौसम का फोन था.. कह रही थी की जीजू को बहोत बार फोन लगाए पर उन्होंने रिसीव नहीं कीये.. उससे कुछ बात करनी थी.. कुछ काम था तेरा.. "
"अरे हाँ यार,.. मैं मीटिंग में बिजी था इसलिए फोन उठा नहीं पाया.. " झूठ बोल रहा था पीयूष.. किस प्रकार की मीटिंग थी वो तो सिर्फ वो जानता था या रेणुका..
तभी अनुमौसी बाहर आए "बेटा.. शीला को फोन तो कर.. पूछ उसे की कब आ रही है? वहाँ की क्या खबर है? वैशाली बेचारी उसके पति से तंग आ गई है..बात कर और बता"
"हाँ मम्मी.. कपड़े बदलकर फ्रेश हो जाऊँ.. फिर फोन करता हूँ"
कपड़े बदलकर वो फोन लेकर मौसी के रूम मे गया जहां वो बैठे बैठे भजन सुन रही थी.. पीयूष ने शीला को फोन लगाया पर उसने उठाया नहीं.. फिर उसने मदन को लगाया.. पर उसका फोन आउट ऑफ कवरेज था.. अब क्या करूँ? वैशाली को फोन लगाऊँ??
मौसी: "हाँ वैशाली को लगा.. पता तो चलें.. कुछ उल्टा सीधा तो नहीं हुआ वहाँ.. कोई फोन लग क्यों नहीं रहा?"
पीयूष ने वैशाली को फोन लगाया तो किसी पुलिस वाले ने उठाया.. बात करने के बजाए वो पुलिस वाला पीयूष को धमकाने लगा.. अब बंगाली भाषा में वो क्या पूछ रहा था, पीयूष की कुछ समझ में नहीं आ रहा था.. फिर पीयूष के कहने पर उसने हिन्दी में बात की.. सुनकर स्तब्ध हो गया पीयूष.. काफी देर तक फोन चला.. अनुमौसी और कविता भी टेंशन में आ गए.. दोनों को शक था की कहीं कुछ बड़ी गड़बड़ हुई थी वहाँ.. अनुमौसी का शक सही निकला..
"ओके ओके सर.. !!" कहते हुए पीयूष ने फोन काट दिया.. उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी..
"क्या हुआ ये तो बता?? कौन था फोन पर? तू इतना घबराया हुआ क्यों है? बता न पीयूष? कुछ बोल क्यों नहीं रहा.. वैशाली को कुछ हुआ क्या? या शीला भाभी को?" मौसी और कविता ने प्रश्नों की लाइन लगा दी
आखिर पीयूष ने कहा "मम्मी, संजयकुमार और मदन भैया का जबरदस्त झगड़ा हुआ था.. और संजय ने शीला भाभी और मदन भैया को शिकायत दर्ज कर जैल में बंद करवा दिया है.. वैशाली ने खुदकुशी करने की कोशिश की थी.. और फिलहाल वो अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झूल रही है.. !!"
"अरे बाप रे.. !!" सुनकर अनुमौसी थरथर कांपने लगी.. और कविता तो वैशाली के बारे में सुन कर रोने लग गई..
"शीला का दामाद है ही एक नंबर का कमीना.. बेचारी फूल सी वैशाली का जीवन बर्बाद कर दिया उसने.. " मौसी ने कहा
"पीयूष.. मुझे वैशाली से बात करनी है" कविता ने जिद पकड़ ली..
इस गंभीर चर्चा के दौरान, मौसम का कॉल आया.. पीयूष फोन पर बात करने की स्थिति में नहीं था.. इसलिए मौसी ने फोन उठाया और थोड़ा बहोत बता कर फोन काट दिया..
कविता को विचार आया "पीयूष.. यहाँ के पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर, मदन भैया के दोस्त है.. तू उनसे जाकर मिल.. वो इस बारे में जरूर कुछ मदद करेंगे" वैशाली ने जाने से पहले.. कविता को सब बातें बताई थी इसलिए कविता को इस बारे में मालूम था.. कविता ने वो सारी बात बताई और ये भी बताया की उन्होंने ही संजय को जैल में बंद किया था
"अरे पर उस इंस्पेक्टर का नंबर मैं लाऊँ कहाँ से? मुझे तो पुलिस के नाम से ही डर लगता है.. !!" पीयूष ने कहा.. उसकी बात भी सही था.. सीधा साधा आदमी पुलिस स्टेशन में जाने से पहले सौ बार सोचेगा.. निर्दोष होने के बावजूद एक विचित्र सा डर लगता है पुलिस से..
पर बात आखिर वैशाली की थी.. और शीला भाभी की भी. बड़े एहसान थे शीला के पीयूष पर.. जो सिर्फ वो दोनों ही जानते थे.. शीला भाभी और वैशाली के लिए अब साहस करना पड़ेगा.. ये सोचकर पीयूष तैयार हो गया
कविता: "तू डर मत पीयूष.. मैं भी चलूँगी तेरे साथ पुलिस स्टेशन.. अगर अकेले जाने में तुझे डर लग रहा हो तो.. कुछ भी हो जाए.. इस स्थिति में हमें शीला भाभी, मदन भैया और वैशाली की मदद तो करनी ही चाहिए.. वैशाली वहाँ मौत के सामने झुझ रही हो और हम यहाँ हाथ पर हाथ धरे बैठ कैसे सकते है.. !!" जबरदस्त हिम्मत दिखाते हुए कविता ने कहा
अनुमौसी: "कविता.. आज पीयूष के पापा लौटने वाले है तो मैं घर पर ही रहूँगी.. तुम दोनों आज शीला के घर सो जाना.. "
कविता: "ठीक है मम्मी जी.. चल पीयूष.. हम शीला भाभी के घर ढूंढते है.. हो सकता है डायरी से उस इंस्पेक्टर का नंबर मिल जाएँ.. !!"
"ठीक कह रही हो तुम.. " पीयूष ने हामी भरी और दोनों शीला के घर जा पहुंचे..
यहाँ-वहाँ ढूँढने के बाद पीयूष को टीवी के पास फोन-डायरी दिखाई दी और उसकी आँखों में चमक आ गई.. पर काफी ढूँढने के बाद भी इंस्पेक्टर का नंबर नहीं मिला..
तभी पीयूष के मोबाइल पर एक अनजान नंबर से मेसेज आया.. किसने भेजा होगा? और ये किसका नंबर है?
कागजों के बीच नंबर ढूंढ रही कविता को अपना फोन दिखाते हुए पीयूष ने कहा "कविता, ये देख.. मेरे मोबाइल पर किसी अनजान व्यक्ति ने एक नंबर भेजा है.. क्या करूँ?"
"अरे सोच मत.. और फोन लगा.. ज्यादा से ज्यादा क्या होगा.. !! रोंग नंबर कहकर फोन काट देगा.. !! तू लगा फोन" कविता ने कहा
काफी विचार करने के बाद पीयूष ने वो नंबर लगाया.. चार पाँच रिंग के बाद किसी ने फोन उठाया और कडक आवाज में कहा
"हैलो.. इंस्पेक्टर तपन देसाई स्पीकिंग.. !!"
"स..स.. सर.. मैं पीयूष बोल रहा हूँ" बोलते हुए भी पीयूष की फट रही थी
"कौन पीयूष? मैं किसी पीयूष को नहीं जानता.. टू ध पॉइंट बात करो.. क्या काम है??" एकदम खुरदरे टोन में इंस्पेक्टर ने कहा
"सर.. मैं आपके दोस्त मदन भैया का पड़ोसी हूँ"
"आपको कैसे पता की मैं मदन का दोस्त हूँ?" पुलिस वालों की फितरत होती है.. किसी बात को सीधे स्वीकार ही नहीं करते
"सर मेरी वाइफ कविता और मदन भैया के बेटी वैशाली दोनों अच्छी सहेलियाँ है.. और मुझे वैशाली के बारे में अर्जन्ट बात करनी थी.. फोन पर करू या वहाँ आकर आप से मिलूँ? दरअसल मदन भैया और शीला भाभी बहोत बड़ी मुसीबत में है.. और आप चाहें तो उनकी हेल्प कर सकते है"
"हम्ममम.. तुम वहीं रुको.. मैं मदन के घर आता हूँ.. पंद्रह मिनट में.. !!"
"ओके ओके सर.. थेंक यू सर.. " पीयूष ने राहत की सांस ली और सोफ़े पर बैठ गया
"बात हो गई कविता.. वो यहाँ आ रहे है.. तू उनके लिए चाय बना.. और हाँ.. उनके सामने कुछ भी मत बोलना.. सारी बातें मैं ही करूंगा.. कहीं कुछ उल्टा सीधा मुंह से निकल गया तो प्रॉब्लेम हो जाएगा.. पुलिस वालों से सब बातें संभल कर करनी चाहिए.. एक बात के सौ मतलब निकालते है वो लोग.. और सुन.. दुपट्टा डाल ले.. वो पुलिसवाला तेरे बबले देखने नहीं आ रहा.. समझी.. अगर उसकी नजर पड़ गई तो किसी भी गुनाह के सिलसिले में तुझे थाने ले जाएगा और पूरी रात चूसता रहेगा!!"
"हट बदमाश.. !!" अपने स्तनों पर हाथ फेर रहे पीयूष का हाथ झटकाकर कविता ने भी सुना दी "अच्छा होगा ऐसा हुआ तो.. पूरी रात तक चूस सके ऐसा मर्द तो मिल जाएगा मुझे.. फिर मेरे भी शीला भाभी जीतने बड़े हो जाएंगे.. और तुझे पड़ोस में नजर मारनी नहीं पड़ेगी" वातावरण को नॉर्मल रखने के लिए दोनों हंसी-मज़ाक कर रहे थे..
तभी डोरबेल बजने की आवाज आई और दोनों सतर्क हो गए.. कविता दरवाजा खोलने जा ही रही थी तब पीयूष ने उसे इशारे से रोकते हुए खुद ही दरवाजा खोला.. ६ फिट की हाइट वाला एक तगड़ा पुलिस वाला घर में दाखिल हुआ.. पीयूष ने हाथ मिलाना चाहा पर इंस्पेक्टर ने कहा "जो भी बात हो जल्दी बताओ.. मैं एक दूसरे केस की तहकीकात के लिए निकला हूँ.. ज्यादा वक्त नहीं है मेरे पास"
पीयूष ने सारी बात इन्स्पेक्टर को बता दी.. कविता किचन में थी इस बात का पता इन्स्पेक्टर को नहीं था.. सुनते ही इंस्पेक्टर का पारा चढ़ गया
"एक नंबर का मादरचोद है मदन का दामाद.. भेनचोद को मैंने दया खाकर छोड़ दिया वो बड़ी गलती कर दी.. उसकी तो बहन को चोदूँ.. ऐसा केस बनाऊँगा की उसकी साथ पुश्तें जैल की चक्की पिसेगी.. !!"
इंस्पेक्टर की भाषा सुनकर कविता किचन में शर्म से लाल हो गई.. ये पुलिस वाले कितनी गंदी भाषा बोलते है.. !! बिना गाली के क्या बात नहीं हो सकती?? मन ही मन पुलिसवालों के प्रति तिरस्कार के भाव से वो चाय उबालने लगी.. चाय तैयार होते ही दो कप में भरकर वो ड्रॉइंग रूम मे आई
इंस्पेक्टर कविता को देखकर ही सहम गया.. वैसे उनकी कोई गलती नहीं थी.. उन्हें कहाँ पता था की कविता अंदर थी.. !! और जो गालियां उसने दी थी वो संजय को दी थी.. इसलिए वो निश्चिंत थे..
"आई एम सॉरी मैडम.. लगता है आप इनकी वाइफ हो.. माफ करना.. बेवजह आपको मेरी गालियां सुननी पड़ी..पर क्या करें.. !! हमारा काम है ही ऐसा.. दिन रात गुनहगारों से पाला पड़ता है.. और वो सब यहीं भाषा समझते है.. इसलिए आदत हो चुकी है.. मेरी वाइफ भी अक्सर टोका करती है की घर पर मैं सभ्य भाषा में बात करूँ.. पर आदत से मजबूर हूँ.. छोड़िए वो सब.. पर आपने ये सब मुझे बताकर अच्छा किया.. अब आप चिंता मत कीजिए और घर जाइए.. बाकी सब मुझ पर छोड़ दीजिए.. मैं संभाल लूँगा"
कविता: "सर.. वैशाली मेरी खास सहेली है.. उसने खुदकुशी करने की कोशिश की है.. अभी उसकी हालत कैसी है ये जाने बगैर मुझे चैन नहीं पड़ेगा.. आप जरा पूछिए ना.. हमें तो कोई जवाब ही नहीं देगा.. !!"
"ओके.. रुकिए एक मिनट.. !!" कहते ही इन्स्पेक्टर ने किसी को फोन लगाया और सारी बात की "थोड़ी देर में सब पता चल जाएगा.. मैं आप को फोन करके बता दूंगा.. क्या नाम बताया था आपने.. मिस्टर पीयूष.. आपका नंबर तो है ही मेरे पास.. मुझे एक दूसरे जरूरी काम से जाना होगा फिलहाल" कहते हुए वो निकल गए..
पीयूष और कविता के दिल से बड़ा बोझ उतर गया.. मामला अब पुलिस के हाथ में था इसलिए उन्हें अब चिंता नहीं थी.. अपनी जिम्मेदारी निभाने का संतोष भी हुआ
पीयूष: "वैशाली को कुछ न हुआ हो तो अच्छा है.. बेचारी की ज़िंदगी हराम हो गई है"
कविता: "एक नंबर की पागल है वो.. खुदकुशी करने की क्या जरूरत थी.. !! उस भड़वे को ही खतम कर देती.. !!"
पीयूष: "कहना आसान है कविता.. पर घर से हजारों किलोमीटर दूर अकेली लड़की पर जब गुजरती है ना तब ऐसी हिम्मत नहीं होती.. "
इन्स्पेक्टर बिना चाय पियें चले गए.. इसलिए पीयूष और कविता ने मिलकर चाय खत्म की.. तभी लेंडलाइन की रिंग बजी.. उत्सुकतावश पीयूष ने फोन उठाया.. अनुमौसी का फोन था.. यहाँ का हाल जानने के लिए फोन किया था.. पीयूष ने सारी बात बताई तब मौसी के दिल को ठंडक मिली
पीयूष को एक ही विचार बार बार सता रहा था.. अगर वैशाली को कुछ हो गया.. तो मदन भैया संजय का खून कर देंगे.. और उन्हों ने ऐसा कुछ कर दिया तो शीला भाभी का जीवन नष्ट हो जाएगा.. मदन का गुस्सा बड़ा ही खराब था इस बात का पीयूष को पता था.. गुस्से में आदमी का दिमाग काम नहीं करता और वो सही और गलत की परख भूल जाता है.. और बात जब अपनी संतान की हो तो किसी भी बाप को गुस्सा आना लाज़मी था..
कविता और पीयूष एक दूसरे से लिपटकर शीला के बिस्तर पर सो गए.. आधी रात को लगभग तीन बजे पीयूष के मोबाइल की रिंग बजी.. वैशाली के बारे में कोई कॉल आया होगा सोचकर पीयूष ने फोन उठाया.. सामने से कोई अंग्रेजी में बात कर रहा था
"यस सर.. ओके सर.. आई सी.. " पीयूष का चेहरा गंभीर हो रहा था.. सामने से फोन कट हो गया.. पीयूष स्तब्ध होकर दीवार पर टंगी वैशाली की तस्वीर को देखता ही रहा.. फ़ोटो में वैशाली मुस्कुराकर पीयूष को छेड रही हो ऐसा एहसास हो रहा था पीयूष को.. आँखों में आँसू आ गए पीयूष के.. बचपन से लेकर आज तक की सारी बातें याद आ गई.. वो सारे पल जो उन्हों ने साथ बिताए थे.. उस खंडहर में रेत के ढेर पर किया हुआ संभोग भी.. हाथ जोड़कर उसने मन ही मन प्रार्थना की.. "हे भगवान.. वैशाली की रक्षा करना.. बचा लेना उसे.. !!"
कविता तो नींद में थी.. पीयूष फोन पर बात कर रहा था फिर भी वो गहरी नींद सोती रही..
पीयूष ने कविता के कंधे पर हाथ रखकर उसे जगाने की कोशिश की.. आधी नींद से जागते हुए कविता ने पूछा "क्या हुआ पीयूष?"
"कलकत्ता से किसी का फोन आया था.. वैशाली ने खुदकुशी की कोशईह नींद की गोलियां खाकर की थी.. अभी फिलहाल वो होश में नहीं है और डॉक्टर उसकी जान बचाने की कोशिश कर रहे है"
"पर पीयूष.. तेरा नंबर उनके पास कैसे आया?" कविता ने पूछा
"पता नहीं.. हो सकता है वो इंस्पेक्टर ने दिया हो.. और तो ज्यादा कुछ नहीं बताया उन्हों ने.. अब तो वो इंस्पेक्टर से पता चलेगी आगे की सब बात..!! और हाँ ये भी बताया की मदन भैया और शीला भाभी जैल से छूट गए है और संजय फरार है.. पुलिस उसे ढूंढ रही है.. "
"तो तू मदन भैया का फोन ट्राय कर.. शायद लग जाए"
"हाँ.. ये भी सही है.. " कहते हुए पीयूष ने मदन को फोन लगाया.. एक ही रिंग में मदन ने फोन उठाया
"हैलो मदन भैया.. मैं पीयूष बोल रहा हूँ.. आप कैसे है? क्या हालात हैं वहाँ? वैशाली के बारे में सुनकर हम सब चोंक गए"
मदन: "यहाँ के हालात बिल्कुल ठीक नहीं है यार.. सब लोग बकवास है हाँ.. मैं यहाँ अकेला पड़ गया हूँ पीयूष.. ये तो अच्छा हुआ की इंस्पेक्टर तपन की पहचान से हम जैल से बाहर आ पाए.. पर यहाँ के लोगों ने तेरी भाभी के साथ बहोत बुरा बर्ताव किया.. सब कुछ वहाँ आकर बताऊँगा तुझे.. अब मैं यहाँ एक पल भी रुकना नहीं चाहता.. और वैशाली को भी यहाँ रहने नहीं दूंगा.. उसकी हालत बहोत नाजुक है.. " कहते हुए मदन की आवाज भारी हो गई.. वो आगे बात न कर सका "ले शीला से बात कर.. !!" कहते हुए उसने शीला को फोन थमा दिया..
कविता ने पीयूष के हाथ से फोन छीन लिया..
शीला: "हैलो? कविता.. मेरी वैशाली.. हे भगवान.. !!" कहते हुए शीला फुटफुट कर रोने लगी.. "हम बड़ी मुसीबत में फंस गए है कविता.. भगवान जाने क्या होगा हमारा.. !!"
कविता को पता नहीं चल रहा था की कैसे बात करें.. किस तरह शीला भाभी को सांत्वना दें.. अपने से बड़ी उम्र की व्यक्ति को दिलासा देना बड़ा ही कठिन होता है..
कविता: "भाभी.. आपने वैशाली को देखा?"
शीला: "अब तक नहीं देखा.. हम जैल से अभी अभी बाहर आए.. उस कमीने ने झूठी कंप्लेन करके हमे बंद करवा दिया था.. बड़ी मुश्किल से बाहर निकले.. हमें तो जैल में पता चला की वैशाली ने ऐसा किया था.. अब अस्पताल जा रहे है.. पता नहीं जिंदा भी या नहीं.. मेरी फूल जैसी बच्ची की ज़िंदगी नरक बन गई.. ये तो अच्छा हुआ की इंस्पेक्टर ने फोन किया.. वरना पता नहीं जैल में हमारा क्या होता.. !!"
कविता: "आप चिंता मत कीजिए भाभी.. वैशाली ठीक हो जाएगी.. मैंने मन्नत मांग ली है.. मुझे विश्वास है की उसे कुछ नहीं होगा.. "
शीला: "हाँ कविता.. ईश्वर करें की ऐसा ही हो.. मैं फोन रखती हूँ अब.. !!"
कविता: "ठीक है भाभी.. और आप चिंता मत कीजिए.. इंस्पेक्टर के जरिए हमें सारे समाचार मिलते रहेंगे.. "
शीला: "हाँ कविता.. भला हो उस इंस्पेक्टर का जिसकी बदौलत हम छूट गए.. जैल में इन हरामजादों ने हमारे साथ क्या क्या किया.. वो सब वहाँ आकर बताऊँगी तुझे.. "
पीयूष को बहोत दुख हो रहा था.. सुख के समय वो हमेशा शीला भाभी के साथ थी.. अब तकलीफ के वक्त वो उनके साथ नहीं था उस बात का उसे बेहद अफसोस हो रहा था.. सीधी-साधी औरतों के लिए पुलिस स्टेशन में रहना.. और वो भी लॉकअप में.. उन पर क्या बीती होगी.. सोचकर ही पीयूष के रोंगटे खड़े हो रहे थे..
फोन रखकर कविता रोने लगी.. बड़ी ही मुश्किल से पीयूष ने उसे शांत किया.. आखिर दोनों थककर सो गए.. उन्हें सोये हुए एकाध घंटा हुआ होगा तभी डोरबेल बजी.. जागकर पीयूष ने दरवाजा खोला.. आज रसिक के बदले रूखी दूध देने आई थी..
रूखी का अद्भुत सौन्दर्य देखकर पीयूष की सारी नींद उड़ गई.. एक पल के लिए उसे लगा की वो सपना देख रहा था और उसी सपने में ये अप्सरा आ गई.. रूखी के भव्य जोबन से पीयूष की नजर ही नहीं हट रही थी.. साढ़े पाँच बजे हर मर्द नींद में होता है पर उसका हथियार जागा हुआ होता है.. पीयूष का भी यही हाल था जब वो जागा..
पीयूष की शॉर्ट्स में उसका लंड उभार बनाते हुए रूखी को छूने की कोशिश कर रहा था.. जिसे बड़ी मुश्किल से पीयूष ने संभाले रखा था.. रूखी इस बात से अनजान थी.. उसने चुपचाप दूध दिया.. पर पीयूष की नजर उसके स्तनों पर थी इस बात से रूखी बेखबर तो नहीं थी.. अपने पल्लू को ठीक करते हुए वो खड़ी हो गई.. पर पतले से पल्लू के पीछे इतने बड़े स्तन भला कैसे छुपते?? उसकी ज्यादातर गोलाइयाँ आराम से नजर आ रही थी.. छोटी से चोली में दबाए हुए उस स्तनों का ५० प्रतिशत हिस्सा तो ऊपर से नजर आ रहा था.. पीयूष ने अंदाजा लगाया.. रूखी के दोनों स्तनों के बीच की लकीर कम से कम दस इंच लंबी थी.. बाप रे.. !! पीयूष का रोम रोम उत्तेजित हो गया ये देखकर..
पीयूष की नज़रों से रूखी शरमा गई.. शीला भाभी के घर इस नए चेहरे को देखकर वो अचंभित थी.. एक बार के लिए उसने सोचा की भाभी के पट्टी होंगे जो विदेश से लौटे थे.. पर पीयूष की उम्र देखकर वो खयाल भी रिजेक्ट हो गया.. ये था कौन? शीला भाभी का बेटा? पर उन्हें तो सिर्फ एक बेटी ही है.. !! तो ये कौन होगा? जरूर कोई मेहमान होगा.. सोचते सोचते रूखी वापिस लौट रही थी..
रूखी के हर कदम के साथ लयबद्ध तरीके से मटकते कूल्हों को और लचकती कमर को.. पीछे से देखता ही रहा पीयूष.. ऐसा रूप उसने जीवन में पहले कभी देखा नहीं था.. वाह.. !! ये तो शीला भाभी से भी बढ़कर है.. इतना सौन्दर्य? इन सब बातों से अनजान रूखी लटक-मटक चलते हुए निकल गई.. उसके जाने के बाद भी पीयूष मूर्ति की तरह दरवाजे पर खड़ा रहा.. उसके पैर फर्श पर जैसे चिपक गए थे.. रूखी के रूप से प्रभावित होकर वो दूध रखने किचन में गया तब कविता जाग गई.. और वो अपने घर चली गई.. सुबह के काम निपटाने.. पीछे पीछे पीयूष भी ताला लगाकर अपने घर गया..
Shandaar updateदरवाजा खोलते ही उन्हों ने देखा की उनके घर के बाहर रसिक कविता को दूध दे रहा था.. दोनों हंस हंस कर बातें कर रहे थे.. इतनी सुबह सुबह कविता क्या बात कर रही होगी इस दूधवाले से.. !! और ऐसा तो क्या कहा होगा रसिक ने जो कविता इतना हंस रही थी.. ?? रोज के मुकाबले रसिक आज कुछ ज्यादा ही समय ले रहा था दूध देने में.. मौसी के दिमाग में हजार खयाल आने लगे.. मौसी को यकीन हो गया की रसिक कविता को दाने डालकर पटाने की कोशिश कर रहा होगा..
वैसे तो उन्हें इस परिस्थिति में तुरंत घर पहुंचकर दोनों को अलग करना चाहिए था.. पर पता नहीं उन्हें क्या हुआ की वो दरवाजा बंद कर अंदर गई.. और शीला के किचन की खिड़की से दोनों को देखने लगी.. रसिक दूध देकर चला गया और कविता शरमाते हुए घर के अंदर चली गई.. उसके बाद अनुमौसी ने शीला के घर को ताला लगाया और अपने घर पहुंची.. कविता को इतना खुश देखकर उन्हें पक्का संदेह हुआ की जरूर रसिक ने कुछ कहा होगा कविता से.. पर पूछती कैसे??"
हकीकत में कविता ने सिर्फ निर्दोष बातचीत ही की थी रसिक से.. उस बेचारी को क्या दिलचस्पी होगी एक मामूली से दूधवाले में.. ?? वैसे रसिक का ये सौभाग्य था की उसके धंधे में सारी ग्राहक औरतें और भाभीयां ही थी.. सुबह सुबह बिना मेकअप के अस्तव्यस्त कपड़ों में.. ज्यादातर बिना ब्रा के सिर्फ गाउन पहने औरतें मिलती थी.. रोज नई नई साइज़ और आकार के स्तनों को प्राकृतिक अवस्था में देखने का मौका मिलता.. हाँ उन स्तनों को नंगे देखने की ख्वाहिश सिर्फ मन में ही रह जाती.. और इसीलिए उन औरतों के पीछे रसिक भागता नहीं था.. हाँ, उसका मन जरूर करता की ऐसी मॉडर्न फेशनेबल भाभियों और लड़कियों के मस्त स्तनों को एक बार रगड़ने का मौका मिल जाएँ..
रसिक साइकिल लेकर घूमता तब एक्टिवा पर लटक-मटक तैयार होकर.. टाइट टीशर्ट और जीन्स पहनकर आती जाती लड़कियों को देखकर उसका दिल डोल जाता.. जैसे कोई गरीब आदमी, मर्सिडीज के शोरूम के बाहर खड़ा रहकर अहोभाव से महंगी गाड़ियों को देखता है.. वैसे ही रसिक देखता रहता.. और सोचता की ये लड़कियां नंगी हो तब कैसी दिखती होगी!! कितनी गोरी और सुंदर है.. टाइट जीन्स से साफ दिखते कूल्हों वाली इन लड़कियों की चूत कितनी टाइट होगी.. !! उस बेचारे को एहसास भी नहीं था की असली सुंदरता तो उसके घर पर बैठे बैठे उसके बेटे को अपने तड़बुच जैसे स्तनों से दूध पीला रही थी.. रूखी के पाँच लीटर वाले मदमस्त स्तन थे.. पेड़ के तने जैसी मस्त मोटी चिकनी जांघें थी.. गदराई गांड थी.. और चेहरे के नक्शा भी काफी सुंदर था.. सही अर्थ में वह पूर्ण रूपसुन्दरी थी.. और उसका देसी स्टाइल उस रूप में चार चाँद लगा देता था.. पर इंसान का स्वभाव ही ऐसा है.. घर की मुर्गी दाल बराबर लगती है..
बड़े बड़े स्तनों वाली और थोड़े भारी भरकम शरीर वाली.. रूखी या शीला जैसी पत्नियों के पतिदेवों को.. नोरा फतेही जैसी ज़ीरो फिगर वाली लड़कियों में स्वर्ग नजर आता है.. वो अपनी गदराई पत्नियों को ताने मारते है.. कितनी मोटी है तू.. ऊपर चढ़ती है तब वज़न लगता है.. हर वक्त तेरे बदन पर पसीना रहता है.. तेरा पेट कितना बाहर आ गया है.. चूत तक लंड पहुंचाने के लिए मुझे एक्सटेंशन लगाना पड़ेगा.. वगैरह वगैरह.. और जिसकी पत्नी एकदम पतली होती है उनके पति की ये शिकायतें होती है की.. यार तुझसे ज्यादा बड़े बॉल तो मेरे है.. कितने छोटे है तेरे.. कुछ हाथ में ही नहीं आता.. तेरे ऊपर चढ़कर शॉट लगाता हूँ तब हड्डियाँ टकराती है मेरे शरीर से.. तेरा तो शरीर है या चलता फिरता कंकाल.. !! पतली पत्नियों के चूतिये पति.. गदराई औरतों को देखकर आहें भरते है.. और भारी शरीर वाली पत्नियों के पति.. जीरो फिगर को देखकर भद्दे शरीर वाली अपनी बीवी को मन ही मन कोसते है.. सब को दूसरे का माल ही बेहतर लगता है..
जब कविता रसिक से दूध ले रही थी.. तब उसके पतले नाइट ड्रेस से दिख रहे अद्भुत बिना ब्रा के स्तनों को देखकर रसिक स्तब्ध रह गया..
सोच रहा था.. काश एक बार दबाने मिल जाएँ!! कितने मस्त है.. मेरी एक हथेली से मैं इसके दोनों स्तन साथ में दबा दूँ.. रूखी का तो एक स्तन मेरी दोनों हथेलियों में भी नहीं समाता.. उसका तो सब कुछ बड़ा बड़ा ही है.. छातियाँ बड़ी.. गांड बड़ी.. जांघें भी बड़ी.. इसलिए साली को लोडा भी बड़ा चाहिए.. जिस तरह शीला भाभी ने मुझे करने दिया.. उस तरह क्या इसे भी पता लूँ तो मज़ा आ जाए.. कितनी नाजुक है!! आह्ह.. इसे तो मेरे लंड पर बिठाकर गली गली घूमता फिरूँ फिर भी मुझे इसका वज़न न लगे.. और इसकी चूत कैसी होगी.. छोटी सी.. टाइट टाइट.. मोगरे के ताजे खिले हुए फूल जैसी.. पर क्या उसके अंदर मेरा जाएगा??
जैसे जैसे रसिक, कविता के कमसिन जोबन के बारे में सोचता गया वैसे वैसे उसकी बेसब्री बढ़ती गई.. आज रसिक ने काफी घरों में दूध दिया और हर दूध लेने वाली स्त्री में वो कविता को खोज रहा था.. अनुमौसी के साथ वो जानबूझकर नाराज होकर निकला था.. वो जानता था की उसे नाराज देखकर मौसी बेचैन हो जाएगी.. और मेरे लिए कुछ न कुछ जरूर करेगी.. कविता की चूत तक पहुँचने के लिए मौसी की गटर में लंड डालना ही होगा.. मौसी को भी मेरे जैसा लंड कहाँ मिलेगा!! वो मुझे छोड़ तो पाएगी नहीं.. मुझे मनाने आएगी तब मैं अपनी मनमानी करूंगा..
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जब से कविता ने मौसम की शादी की बात सुनी थी तब से वो हवा में उड़ने लगी थी.. शादी में वो क्या पहनेगी.. मौसम को क्या गिफ्ट देगी.. संगीत संध्या में कौनसे रंग की चोली पहनेगी.. !! किचन में चाय बनाने गेस पर रखकर.. बिना नहाए धोए कविता चाय उबलने का इंतज़ार कर रही थी.. तभी उसने अपनी सास को घर में आते देखा.. मम्मीजी इस उम्र में भी कितनी फिट है.. !! वैसे कहने को दोनों सास-बहु थे पर दोनों में बहोत प्यार था.. अनुमौसी ने हमेशा से कविता को अपनी बेटी समान माना था.. वो कभी उसपर गुस्सा नहीं करती थी और गलती करने पर भी प्यार से समझाती थी..
"कैसी है बेटा? नींद आई थी ठीक से?" कविता को पूछकर.. उसके उत्तर का इंतेज़ार कीये बिना ही मौसी बाथरूम में घुस गई.. तभी पीयूष नींद से जागकर आँखें मलते हुए बाहर निकला.. रोज की तरह सब से पहले उसकी नजर शीला के घर की तरफ गई.. दरवाजा पर ताला देखकर उसका मुंह उतर गया.. वरना रोज सुबह शीला भाभी का चाँद जैसा चेहरा देखकर उसका मन प्रफुल्लित हो जाता.. आखिर उसने कविता को पीछे से पकड़ लिया और उसके गोलमटोल स्तनों को दबाते हुए कहा "गुड मॉर्निंग डार्लिंग.. !!"
"छोड़ नालायक.. मम्मीजी बाथरूम में है.. कभी भी बाहर आ जाएंगे.. " कविता ने अपने आप को छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा.. कविता की गर्दन को चूमते हुए पीयूष उससे अपनी मतलब की बात जानने के लिए पूछने लगा "मदन भैया के बगैर कितना सूना सुना लग रहा है.. कब लौटने वाले है वो लोग?"
कविता ने भी मौका देखकर चौका लगा दिया "मदन भैया के बगैर सूना सुना लग रहा है या शीला भाभी के बगैर? या फिर वैशाली की याद आ रही है?"
पीयूष ने स्तनों को जोर से दबाते हुए कहा "अब इसमें शीला भाभी और वैशाली कहाँ से आ गई बीच में.. ये तो मदन भैया की कंपनी में मज़ा आ रहा था इसलिए पूछा.. भाभी और वैशाली का नाम लेकर तू कहना क्या चाहती है?" कविता की निप्पल मरोड़ दी गुस्से में पीयूष ने
"छोड़ दे.. वरना में चीख दूँगी.. और मम्मी नहाते नहाते बाहर आ जाएगी.. छोड़ साले" दोनों के बीच मज़ाक मस्ती चल रही थी तभी मौसी बाथरूम से बाहर आए.. और पीयूष ने कविता को छोड़ दिया.. और टॉइलेट में घुस गया..
चाय पीते पीते कविता ने मौसम की जल्द होने वाली शादी के बारे में अनुमौसी को बताया
अनुमौसी: "देख बेटा.. तेरे पापा को भागदौड़ तो होगी.. पर सब साथ मिलकर करेंगे तो सब कुछ हो जाएगा.. पापा से कहना की वो चिंता न करें.. हम सब मिलकर मौसम की शादी बड़ी धूमधाम से करेंगे"
वॉश-बेज़ीन पर ब्रश कर रहा पीयूष बड़े ध्यान से सास-बहु की बातचीत को सुन रहा था.. जिस बात को वो भूलने की कोशिश कर रहा था उसका जिक्र सुबह सुबह ही हो गया.. उसका मूड खराब हो गया.. मौसम के साथ आज बात करनी ही होगी.. ऐसा सोचते हुए वो जैसे तैसे नहाकर, बिना नाश्ता कीये.. ऑफिस के लिए निकल गया..
घर से बाहर निकलते ही पीयूष ने मौसम को फोन किया..
मौसम: "हैलो जीजू.. पापा अभी यहीं है.. वो बस ऑफिस जा रहे है.. उनके जाते ही पाँच मिनट में कॉल करती हूँ.. ठीक है!!"
पीयूष: "ओके.. पर जल्दी करना.. एक बार ऑफिस पहुँच गया फिर बात करना मुश्किल हो जाएगा"
मौसम: "हाँ जीजू.. तुरंत करूंगी.. "
पीयूष: "लव यू मौसम"
मौसम: "ठीक है, रखती हूँ"
मौसम ने उसके "लव यू" का जवाब नहीं दिया इस बात का बुरा लगा पीयूष को.. पर फिर उसने अपने मन को मनाया.. हो सकता है की पापा आजूबाजू ही हो.. इसलिए बेचारी मौसम चाह कर भी बोल न पाई हो.. अपनी नादानी पर हँसते हुए वो बाइक चलाते हुए मुख्य सड़क पर आ गया.. आगे जाकर उसने बाइक रोक दी और मौसम के फोन की राह देखने लगा.. आधा घंटा बीत गया पर मौसम का फोन नहीं आया.. आखिर पीयूष थक कर ऑफिस की ओर निकल गया.. ऑफिस के दरवाजे पर पहुँचने पर भी फोन नहीं आया.. जैसे ही उसने अंदर प्रवेश किया.. मौसम का फोन आ गया.. पीयूष को बड़ा गुस्सा आया.. पाँच मिनट का बोलकर एक घंटे बाद फोन किया मौसम ने.. उसने सोचा की फोन कट कर दूँ.. पर फिर फोन उठा ही लिया..
मौसम: "हाँ जीजू.. "
पीयूष: "यार, तेरे फोन का इंतज़ार करते करते मैं ऑफिस पहुँच गया.. कितनी देर लगा दी तूने?? जल्दी बात कर.. मुझे अंदर जाना होगा.. सब देख रहे है मुझे"
मौसम: "सॉरी जीजू.. पर मैं क्या करती? पापा ऑफिस गए और तरुण का फोन आ गया.. उसी से अब तक बात कर रही थी इसलिए देर हो गई.. बताइए क्यों फोन किया था?"
तरुण का नाम सुनते ही पीयूष का खून घोलने लगा.. तरुण का फोन आ गया इसलिए मौसम ने मुझे होल्ड पर रख दिया.. !! प्रेमियों को नजरंदाजी बिल्कुल पसंद नहीं होती.. खासकर अपने साथी से.. कभी कभी तो वो अपने साथी की मजबूरी को भी उपेक्षा मानकर रूठ जाते है..गुस्से से पीयूष ने फोन काट दिया.. मौसम को लगा की नेटवर्क प्रॉब्लेम के कारण फोन कट गया.. मौसम ने फिर से फोन किया
गुस्से से पीयूष स्क्रीन पर मौसम का नाम देखकर कांप रहा था..
"क्यों भाई?? क्या हुआ? किस टेंशन में है??" पीछे से कंधे पर हाथ रखते हुए पिंटू ने कहा
"कुछ नहीं यार.. ऐसे ही थोड़ा सा टेंशन चल रहा है"
"घर पर कुछ हुआ? या राजेश सर ने कुछ बोल दिया?" पिंटू को ये जानना था की कहीं पीयूष और कविता के बीच तो कुछ नहीं हुआ ना.. !! पीयूष का जो होना हो सो हो.. पर कविता डिस्टर्ब नहीं होनी चाहिए.. पीयूष के टेंशन का कारण जानने के लिए पिंटू बेसब्र हो गया
पर पीयूष की समस्या ये थी की वो असली कारण पिंटू को बता नहीं पाएगा.. बात टालने के लिए उसने कहा "यार वही कविता के साथ का प्रॉब्लेम.. अभी सॉल्व कहाँ हुआ है.. !! बहोत तंग करती है वो मुझे.. जो मन में आए वो बोलती है.. सुबह सुबह मम्मी के साथ झगड़ पड़ी.. इसलिए टेंशन में था" पीयूष ने अपनी बात छुपाने के लिए कविता को बलि चढ़ा दिया
सुनकर पिंटू सोच में पड़ गया.. मेरी कविता ऐसा तो नहीं कर सकती.. जरूर पीयूष ने ही कुछ किया होगा पर बता नहीं रहा.. कविता को पिंटू इतना चाहता था की हर वक्त उसकी फिक्र लगी रहती.. पीयूष से बात करके वो बाहर निकल गया.. पीयूष ने भी चैन की सांस ली.. वो थोड़ी देर अकेला रहना चाहता था..
उदास होकर पीयूष कुर्सी पर बैठ गया.. चपरासी ने पानी का ग्लास उसके टेबल पर रखा और चला गया..
पिंटू ने बाहर जाकर कविता को फोन किया और उससे पूछा.. कविता का जवाब सुनकर वो चकित रह गया.. कविता ने कहा की उसके और पीयूष के बीच सब सही चल रहा था.. और घर पर आज कोई झगड़ा भी नहीं हुआ था.. फिर पीयूष झूठ क्यों बोला? शातिर दिमाग वाले पिंटू को ये शक होने लगा की पीयूष जरूर कोई ऐसे कारणवश परेशान था जो अनैतिक या असामाजिक हो.. पर आखिर कारण होगा क्या? पिंटू उसके ऑफिस का साथी और दोस्त भी था.. पर जब तक पीयूष असली कारण नहीं बताता उसकी मदद कर पाना मुमकिन नहीं था.. पिंटू ऑफिस में अपने काम में व्यस्त हो गया..
मौसम से बात करने के बाद बहोत उदास था पीयूष.. उसका किसी काम में मन नहीं लग रहा था.. दोपहर के बाद उसने राजेश सर से आधे दिन की छुट्टी मांग ली और ऑफिस से निकल गया..
ऑफिस के बाहर निकल तो गया पर कहाँ जाए ये तय नहीं कर पा रहा था.. बाइक को ऑफिस पर ही छोड़कर वो सड़क पर चलता गया.. घर तो जाना नहीं था.. क्या करता इतनी जल्दी जाकर?? मौसम के खयालों में खोया हुआ वो चलता जा रहा था और उसे पता भी नहीं चला की कब रेणुका की गाड़ी उसके करीब से होकर गुजर गई..
गाड़ी थोड़ी सी आगे जाने पर रेणुका ने रिवर्स ली और पीयूष को रोकते हुए कहा "हाई हेंडसम.. कहाँ भटक रहा है मजनू की तरह?? "
पीयूष चोंक गया "अरे मैडम आप? मैंने आज ऑफिस से आधे दिन की छुट्टी ली है.. थोड़ा सा काम था इसलिए.. वैसे आप यहाँ कैसे?"
"बातें बंद कर और गाड़ी में बैठ जा.. फिर मैं बताती हूँ की कहाँ जा रही हूँ.. कार में बैठकर भी तो बात हो सकती है"
पीयूष थोड़े संकोच के साथ रेणुका की गाड़ी में बैठ गया.. जैसे ही वो बगल में बैठ रेणुका ने पीयूष की जांघ पर हाथ रखते हुए कहा "दरअसल में ऐसे ही सैर-सपाटे के लिए निकली हूँ.. घर पर बैठे बोर हो रही थी.. तू मानेगा नहीं.. मैंने आज ही तुझे याद किया था"
"क्या बात है.. !! चलो अच्छा हुआ.. कोई तो है जो मुझे याद कर रहा है.. वैसे याद क्यों आई थी मेरी?" पीयूष के दिमाग में अभी भी मौसम को लेकर कड़वाहट थी..
रेणुका ने पीयूष की जांघ को सहलाते हुए कहा "अरे यार.. दोपहर बैठे बैठे इतनी बोर हो गई थी.. तभी मुझे विचार आया की जैसे उस दिन राजेश ने तुझे पैसे लेने घर भेजा था वैसा ही कुछ आज भी हो जाए तो मज़ा आ जाए"
पीयूष हंसने लगा "अच्छा अच्छा.. उस दिन आपके घर पचास हजार लेने आया तब जो हुआ था उसकी बात कर रही है आप"
धीरे धीरे रेणुका ने पीयूष की जांघ को दबाना शुरू कर दिया.. कार के ए.सी. की ठंडी हवा.. और साथ में रेणुका के जिस्म से आ रही परफ्यूम की मादक खुशबू.. पीयूष एक ही पल में मौसम को भूल गया
"बोल.. गाड़ी किस तरफ घुमाऊ?? कहाँ जाना है तुझे? तूने अभी कहा ना की किसी काम के लिए निकला है!!" निर्दोष भाव से रेणुका ने पूछा.. रेणुका को पता नहीं था की पीयूष ऐसे ही भटक रहा था और उसे कहीं जाना नहीं था.. दोनों बिना मंजिल के मुसाफिर थे.. अजीब बात यह थी की ऐसे दो मुसाफिरों के मिलने से अब उनकी मंजिल तय हो रही थी
"अब बोल भी दे.. कहाँ जाना है तुझे?" रेणुका रोमांचित हो गई थी.. पीयूष की कंपनी यूं अचानक मिल जाने से.. शरारती अंदाज मे रेणुका ने अपना पल्लू थोड़ा सा हटा दिया.. इस तरह हटाया की साइड से पीयूष को उसके स्तनों की गोलाई नजर आ सके..
"दरअसल मुझे कोई काम नहीं था.. ऑफिस में बोर हो रहा था तो बाहर टहलने निकल गया.. आपको गाड़ी जहां लेनी हो ले जाइए"
"ये आप-आप क्या लगा रखा है?? याद है ना.. उस दिन जब तू पैसे लेने घर आया तब हम कितने करीब आ गए थे!! जब हम अकेले हो तब मुझे "तू" कहकर ही पुकारा कर.. आप-आप कहता है तो ऐसा लगता है जैसे मैं कोई बूढ़ी हूँ.. " रेणुका ने पीयूष को रिझाना शुरू कर दिया.
पीयूष रास्ते से गुजर रही गाड़ियों को देख रहा था.. उसने रेणुका की बात का कोई जवाब नहीं दिया..
रास्ते पर इधर उधर देख रहे पीयूष की जांघ पर चिमटी काटते हुए रेणुका ने कहा "कहाँ देख रहा है तू? पहले कभी गाड़ियां देखी नहीं है क्या? यहाँ तेरे बगल में, मैं बैठी हूँ और तू मुझे देख नहीं रहा.. !! देख.. तेरी पसंदीदा चीज दिखाने के लिए मैंने पल्लू भी सरका दिया है.. "
पीयूष ने रेणुका के स्तनों की तरफ देखा.. ब्लाउस में कैद उन अद्भुत गोलाइयों को वो देखता ही रह गया.. उसके चेहरे पर अब शैतानी मुस्कुराहट आ गई..
"याद है वो दिन.. तेरे घर के पीछे.. जब तू मेरे स्तन को चूसने के लिए गिड़गिड़ा रहा था.. " रेणुका ये सब बातें करते हुए पीयूष को उत्तेजित करना चाहती थी.. "अब आज मैं सामने से तुझे कह रही हूँ तो इंतज़ार क्यों कर रहा है!! अभी हम दोनों अकेले है.. चल आज गाड़ी में ही दोपहर को रंगीन बना देते है" खुला आमंत्रण दे दिया रेणुका ने.. पीयूष की जांघ पर घूमते हुए उसके हाथ ने उसका लंड पकड़ लिया..
शीला भाभी की सहेली होने के नाते पीयूष से पहचान हुई थी.. तब से लेकर बेडरूम तक का सफर पीयूष याद करने लगा.. मौसम के नाम की उदासी मन से हटाते हुए उसने रेणुका पर अपना सारा ध्यान केंद्रित किया.. अपने लंड पर रेणुका के हाथ को पीयूष ने दबा दिया.. लंड का टोपा हाथ में आते ही गाड़ी ड्राइव कर रही रेणुका ने पीयूष को तिरछी नज़रों से देखा.. "वाह.. इसे कहते है असली हथियार.. !! जो एक बार छूते ही तैयार हो जाए.. !!" हँसते हुए रेणुका ने वापिस ड्राइविंग पर अपना ध्यान केंद्रित किया..
गाड़ी धीरे धीरे सरकती हुई शहर से बाहर निकलकर हाइवे पर आ पहुंची.. दोपहर का समय था.. इक्का-दुक्का ट्रक के सिवा.. रोड पर कोई नजर नहीं आ रहा था.. पीयूष ने चैन खोलकर अपना लंड बाहर निकाला..और रेणुका के हाथों में उसे थमाते हुए.. ब्लाउस के ऊपर से उसके गोल स्तनों को मींजने लगा..
"आह्ह.. बेशर्म.. इसे अंदर रख.. भरी दोपहर में.. खुली सड़क पर बाहर निकाल कर बैठा है.. गाड़ी को बेडरूम समझ रखा है क्या?? और छाती से हाथ हटा.. " औरतों की ये बड़ी तकलीफ है.. जब से उन्हें पता चल गया है की सेक्स की दौरान उनकी आनाकानी करना मर्दों को बेहद पसंद है.. तब से वो हर ऐसे मौके पर झूठी झिझक का प्रदर्शन करती रहती है.. पैसों के लिए अपनी चूत फड़वाती रंडियाँ भी लंड चूसने के नाम पर पहले तो मना ही करती है.. फिर थोड़ी सी आनाकानी के बाद लोलिपोप की तरह चुसेगी भी और गांड भी मरवाएगी.. नखरे करना स्त्री जाती का जन्मसिद्ध हक होता है.. वेश्या का तो सिर्फ उदाहरण दिया है.. ये बात सब पर लागू होती है..
चौड़े हाइवे पर नकली शर्म का झण्डा पकड़कर रेणुका ने पीयूष को धमका तो दिया पर हाथ से उसका लंड नहीं छोड़ा.. सख्त लकड़े जैसा हो गया था पीयूष का लंड.. जैसे जैसे उसकी कोमल हथेली उसके साथ खेलती गई.. वैसे वैसे पीयूष का लंड इस्तेमाल के लिए तैयार होने लगा.. रास्ते पर एक सुमसान जगह पर रेणुका ने पेड़ की छाँव में गाड़ी रोक दी..
गाड़ी को रोककर रेणुका ने पीयूष को गिरहबान से पकड़कर चूम लिया.. और फिर नीचे झुककर उसके लंड को मुंह में लेकर चूसने लगी..डर डर कर ये सब करने में मज़ा नहीं आया.. वो बोली "ओह्ह पीयूष.. देख तो यार.. ये तेरा डंडा.. इसे देखकर मुझे नीचे मीठी खुजली होने लगी है.. यहाँ और कुछ तो हो नहीं सकता.. क्या करें? मेरे घर चलें?"
पीयूष: "मैं ऑफिस से बहाना बनाकर निकला हूँ.. आपके घर कोई देख लेगा तो प्रॉब्लेम हो जाएगा.. कहीं और चलें?"
रेणुका: "और तो कहाँ जा सकते है? गेस्टहाउस में जाने से मुझे डर लगता है.. कहीं पुलिस की रेड पड़ गई तो लेने के देने पड़ जाएंगे.. मेरे घर जैसी सेफ जगह और कोई नहीं है"
थोड़ा सोचने के बाद पीयूष मान गया "ठीक है.. चलो तुम्हारे घर ही चलते है.. मुझसे भी अब रहा नहीं जाता"
रेणुका ने तुरंत यु-टर्न लिया और घर के तरफ गाड़ी घुमाई.. शहर के अंदर गाड़ी घुसते ही दोनों संभल संभलकर एक दूसरे को छेद रहे थे.. पर जैसे ही ट्राफिक बढ़ा.. दोनों शरीफ बनकर चुपचाप बैठ गए..
गाड़ी रेणुका के घर के पास पहुँच ही गई थी की तब..
रेणुका: "मर गए.. !! राजेश की गाड़ी घर पर.. !!! इस वक्त.. !!" दोनों की उत्तेजना एक ही पल में हवा बन कर उड़ गई
"पीयूष, तू यहीं उतर जा.. मैं तुझे फोन करूँ उसके बाद ही घर आना.. आधे घंटे में अगर मेरा फोन न आए तो घर चले जाना.. किसी और दिन करेंगे" कहते हुए रेणुका ने पीयूष को घर से थोड़े दूर ड्रॉप किया
अपने घर के पार्किंग में गाड़ी लगाकर रेणुका ने सब से पहले साड़ी और ब्लाउस को ठीक किया.. मिरर में देखकर ये तसल्ली कर ली की सब ठीक था या नहीं.. पीयूष से किस करने के कारण खराब हो चुकी लिपस्टिक को फिर से लगा दिया..
पल्लू को ठीक करते हुए जब वो घर के अंदर पहुंची तब राजेश बैठकर पैसे गिन रहा था..
"अरे राजेश तू यहाँ? इस वक्त? सब ठीक तो है ना..!! मैं अकेले बोर हो रही थी तो थोड़ी देर के लिए घूमने चली गई थी"
"हाँ यार.. मुझे एक पार्टी को पेमेंट करना था.. और पैसे थोड़े कम पड़ रहे थे.. आज पीयूष भी छुट्टी पर है इसलिए मुझे आना पड़ा.. "
रेणुका को अपनी किस्मत पर गुस्सा आ रहा था.. पीयूष ने अगर छुट्टी न ली होती तो राजेश उसे ही पैसे लेने भेजता और वो आराम से अपनी आग बुझा पाती.. चलो.. जो हुआ सो हुआ
"तू आराम से पैसे गिन.. मैं चाय बनाकर लाती हूँ" कहते हुए रेणुका किचन में चली गई
किचन में आते ही उसने पीयूष को फोन किया.. और कहा की वो उनके घर से थोड़ा दूर चला जाए.. ताकि ऑफिस जाते वक्त राजेश की नजर न पड़े.. उसके जाने के बाद.. ग्रीन सिग्नल मिलते ही वो घर आ जाए
पर पीयूष ने ये कहते हुए इनकार कर दिया की काफी देर हो चुकी थी इसलिए वो वापिस जा रहा था.. उसे अभी ऑफिस से बाइक भी लेनी थी..
एक मस्त सेटिंग होते होते रह गया.. इस अफसोस के साथ पीयूष ऑटो में ऑफिस की ओर निकल गया.. असल में.. अकेले पड़ते ही उसे फिर से मौसम की यादों ने घेर लिया था.. और फिर उसका मूड ऑफ हो गया इसलिए उसने रेणुका को मना कर दिया था.. अपनी बेकार किस्मत को कोसते हुए वो बाइक लेकर घर पहुंचा.. घर आकर मोबाइल को चार्जिंग में रखते हुए उसने देखा की मौसम के दस मिसकॉल आ चुके थे.. अरे बाप रे.. ये रेणुका के चक्कर में फोन साइलेंट किया था तो पता ही नहीं चला.. !! मौसम क्या सोच रही होगी?? मेसेज करूँ की नहीं? उसे मेसेज करते हुए कविता ने देख लिया तो?? तभी सामने से कविता को पानी का ग्लास लेकर आता हुआ देख.. पीयूष ने मोबाइल से मौसम के सारे कॉल डिलीट कर दीये..
पानी का ग्लास पीयूष को देते हुए कविता ने कहा "मौसम का फोन था.. कह रही थी की जीजू को बहोत बार फोन लगाए पर उन्होंने रिसीव नहीं कीये.. उससे कुछ बात करनी थी.. कुछ काम था तेरा.. "
"अरे हाँ यार,.. मैं मीटिंग में बिजी था इसलिए फोन उठा नहीं पाया.. " झूठ बोल रहा था पीयूष.. किस प्रकार की मीटिंग थी वो तो सिर्फ वो जानता था या रेणुका..
तभी अनुमौसी बाहर आए "बेटा.. शीला को फोन तो कर.. पूछ उसे की कब आ रही है? वहाँ की क्या खबर है? वैशाली बेचारी उसके पति से तंग आ गई है..बात कर और बता"
"हाँ मम्मी.. कपड़े बदलकर फ्रेश हो जाऊँ.. फिर फोन करता हूँ"
कपड़े बदलकर वो फोन लेकर मौसी के रूम मे गया जहां वो बैठे बैठे भजन सुन रही थी.. पीयूष ने शीला को फोन लगाया पर उसने उठाया नहीं.. फिर उसने मदन को लगाया.. पर उसका फोन आउट ऑफ कवरेज था.. अब क्या करूँ? वैशाली को फोन लगाऊँ??
मौसी: "हाँ वैशाली को लगा.. पता तो चलें.. कुछ उल्टा सीधा तो नहीं हुआ वहाँ.. कोई फोन लग क्यों नहीं रहा?"
पीयूष ने वैशाली को फोन लगाया तो किसी पुलिस वाले ने उठाया.. बात करने के बजाए वो पुलिस वाला पीयूष को धमकाने लगा.. अब बंगाली भाषा में वो क्या पूछ रहा था, पीयूष की कुछ समझ में नहीं आ रहा था.. फिर पीयूष के कहने पर उसने हिन्दी में बात की.. सुनकर स्तब्ध हो गया पीयूष.. काफी देर तक फोन चला.. अनुमौसी और कविता भी टेंशन में आ गए.. दोनों को शक था की कहीं कुछ बड़ी गड़बड़ हुई थी वहाँ.. अनुमौसी का शक सही निकला..
"ओके ओके सर.. !!" कहते हुए पीयूष ने फोन काट दिया.. उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी..
"क्या हुआ ये तो बता?? कौन था फोन पर? तू इतना घबराया हुआ क्यों है? बता न पीयूष? कुछ बोल क्यों नहीं रहा.. वैशाली को कुछ हुआ क्या? या शीला भाभी को?" मौसी और कविता ने प्रश्नों की लाइन लगा दी
आखिर पीयूष ने कहा "मम्मी, संजयकुमार और मदन भैया का जबरदस्त झगड़ा हुआ था.. और संजय ने शीला भाभी और मदन भैया को शिकायत दर्ज कर जैल में बंद करवा दिया है.. वैशाली ने खुदकुशी करने की कोशिश की थी.. और फिलहाल वो अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झूल रही है.. !!"
"अरे बाप रे.. !!" सुनकर अनुमौसी थरथर कांपने लगी.. और कविता तो वैशाली के बारे में सुन कर रोने लग गई..
"शीला का दामाद है ही एक नंबर का कमीना.. बेचारी फूल सी वैशाली का जीवन बर्बाद कर दिया उसने.. " मौसी ने कहा
"पीयूष.. मुझे वैशाली से बात करनी है" कविता ने जिद पकड़ ली..
इस गंभीर चर्चा के दौरान, मौसम का कॉल आया.. पीयूष फोन पर बात करने की स्थिति में नहीं था.. इसलिए मौसी ने फोन उठाया और थोड़ा बहोत बता कर फोन काट दिया..
कविता को विचार आया "पीयूष.. यहाँ के पुलिस स्टेशन के इंस्पेक्टर, मदन भैया के दोस्त है.. तू उनसे जाकर मिल.. वो इस बारे में जरूर कुछ मदद करेंगे" वैशाली ने जाने से पहले.. कविता को सब बातें बताई थी इसलिए कविता को इस बारे में मालूम था.. कविता ने वो सारी बात बताई और ये भी बताया की उन्होंने ही संजय को जैल में बंद किया था
"अरे पर उस इंस्पेक्टर का नंबर मैं लाऊँ कहाँ से? मुझे तो पुलिस के नाम से ही डर लगता है.. !!" पीयूष ने कहा.. उसकी बात भी सही था.. सीधा साधा आदमी पुलिस स्टेशन में जाने से पहले सौ बार सोचेगा.. निर्दोष होने के बावजूद एक विचित्र सा डर लगता है पुलिस से..
पर बात आखिर वैशाली की थी.. और शीला भाभी की भी. बड़े एहसान थे शीला के पीयूष पर.. जो सिर्फ वो दोनों ही जानते थे.. शीला भाभी और वैशाली के लिए अब साहस करना पड़ेगा.. ये सोचकर पीयूष तैयार हो गया
कविता: "तू डर मत पीयूष.. मैं भी चलूँगी तेरे साथ पुलिस स्टेशन.. अगर अकेले जाने में तुझे डर लग रहा हो तो.. कुछ भी हो जाए.. इस स्थिति में हमें शीला भाभी, मदन भैया और वैशाली की मदद तो करनी ही चाहिए.. वैशाली वहाँ मौत के सामने झुझ रही हो और हम यहाँ हाथ पर हाथ धरे बैठ कैसे सकते है.. !!" जबरदस्त हिम्मत दिखाते हुए कविता ने कहा
अनुमौसी: "कविता.. आज पीयूष के पापा लौटने वाले है तो मैं घर पर ही रहूँगी.. तुम दोनों आज शीला के घर सो जाना.. "
कविता: "ठीक है मम्मी जी.. चल पीयूष.. हम शीला भाभी के घर ढूंढते है.. हो सकता है डायरी से उस इंस्पेक्टर का नंबर मिल जाएँ.. !!"
"ठीक कह रही हो तुम.. " पीयूष ने हामी भरी और दोनों शीला के घर जा पहुंचे..
यहाँ-वहाँ ढूँढने के बाद पीयूष को टीवी के पास फोन-डायरी दिखाई दी और उसकी आँखों में चमक आ गई.. पर काफी ढूँढने के बाद भी इंस्पेक्टर का नंबर नहीं मिला..
तभी पीयूष के मोबाइल पर एक अनजान नंबर से मेसेज आया.. किसने भेजा होगा? और ये किसका नंबर है?
कागजों के बीच नंबर ढूंढ रही कविता को अपना फोन दिखाते हुए पीयूष ने कहा "कविता, ये देख.. मेरे मोबाइल पर किसी अनजान व्यक्ति ने एक नंबर भेजा है.. क्या करूँ?"
"अरे सोच मत.. और फोन लगा.. ज्यादा से ज्यादा क्या होगा.. !! रोंग नंबर कहकर फोन काट देगा.. !! तू लगा फोन" कविता ने कहा
काफी विचार करने के बाद पीयूष ने वो नंबर लगाया.. चार पाँच रिंग के बाद किसी ने फोन उठाया और कडक आवाज में कहा
"हैलो.. इंस्पेक्टर तपन देसाई स्पीकिंग.. !!"
"स..स.. सर.. मैं पीयूष बोल रहा हूँ" बोलते हुए भी पीयूष की फट रही थी
"कौन पीयूष? मैं किसी पीयूष को नहीं जानता.. टू ध पॉइंट बात करो.. क्या काम है??" एकदम खुरदरे टोन में इंस्पेक्टर ने कहा
"सर.. मैं आपके दोस्त मदन भैया का पड़ोसी हूँ"
"आपको कैसे पता की मैं मदन का दोस्त हूँ?" पुलिस वालों की फितरत होती है.. किसी बात को सीधे स्वीकार ही नहीं करते
"सर मेरी वाइफ कविता और मदन भैया के बेटी वैशाली दोनों अच्छी सहेलियाँ है.. और मुझे वैशाली के बारे में अर्जन्ट बात करनी थी.. फोन पर करू या वहाँ आकर आप से मिलूँ? दरअसल मदन भैया और शीला भाभी बहोत बड़ी मुसीबत में है.. और आप चाहें तो उनकी हेल्प कर सकते है"
"हम्ममम.. तुम वहीं रुको.. मैं मदन के घर आता हूँ.. पंद्रह मिनट में.. !!"
"ओके ओके सर.. थेंक यू सर.. " पीयूष ने राहत की सांस ली और सोफ़े पर बैठ गया
"बात हो गई कविता.. वो यहाँ आ रहे है.. तू उनके लिए चाय बना.. और हाँ.. उनके सामने कुछ भी मत बोलना.. सारी बातें मैं ही करूंगा.. कहीं कुछ उल्टा सीधा मुंह से निकल गया तो प्रॉब्लेम हो जाएगा.. पुलिस वालों से सब बातें संभल कर करनी चाहिए.. एक बात के सौ मतलब निकालते है वो लोग.. और सुन.. दुपट्टा डाल ले.. वो पुलिसवाला तेरे बबले देखने नहीं आ रहा.. समझी.. अगर उसकी नजर पड़ गई तो किसी भी गुनाह के सिलसिले में तुझे थाने ले जाएगा और पूरी रात चूसता रहेगा!!"
"हट बदमाश.. !!" अपने स्तनों पर हाथ फेर रहे पीयूष का हाथ झटकाकर कविता ने भी सुना दी "अच्छा होगा ऐसा हुआ तो.. पूरी रात तक चूस सके ऐसा मर्द तो मिल जाएगा मुझे.. फिर मेरे भी शीला भाभी जीतने बड़े हो जाएंगे.. और तुझे पड़ोस में नजर मारनी नहीं पड़ेगी" वातावरण को नॉर्मल रखने के लिए दोनों हंसी-मज़ाक कर रहे थे..
तभी डोरबेल बजने की आवाज आई और दोनों सतर्क हो गए.. कविता दरवाजा खोलने जा ही रही थी तब पीयूष ने उसे इशारे से रोकते हुए खुद ही दरवाजा खोला.. ६ फिट की हाइट वाला एक तगड़ा पुलिस वाला घर में दाखिल हुआ.. पीयूष ने हाथ मिलाना चाहा पर इंस्पेक्टर ने कहा "जो भी बात हो जल्दी बताओ.. मैं एक दूसरे केस की तहकीकात के लिए निकला हूँ.. ज्यादा वक्त नहीं है मेरे पास"
पीयूष ने सारी बात इन्स्पेक्टर को बता दी.. कविता किचन में थी इस बात का पता इन्स्पेक्टर को नहीं था.. सुनते ही इंस्पेक्टर का पारा चढ़ गया
"एक नंबर का मादरचोद है मदन का दामाद.. भेनचोद को मैंने दया खाकर छोड़ दिया वो बड़ी गलती कर दी.. उसकी तो बहन को चोदूँ.. ऐसा केस बनाऊँगा की उसकी साथ पुश्तें जैल की चक्की पिसेगी.. !!"
इंस्पेक्टर की भाषा सुनकर कविता किचन में शर्म से लाल हो गई.. ये पुलिस वाले कितनी गंदी भाषा बोलते है.. !! बिना गाली के क्या बात नहीं हो सकती?? मन ही मन पुलिसवालों के प्रति तिरस्कार के भाव से वो चाय उबालने लगी.. चाय तैयार होते ही दो कप में भरकर वो ड्रॉइंग रूम मे आई
इंस्पेक्टर कविता को देखकर ही सहम गया.. वैसे उनकी कोई गलती नहीं थी.. उन्हें कहाँ पता था की कविता अंदर थी.. !! और जो गालियां उसने दी थी वो संजय को दी थी.. इसलिए वो निश्चिंत थे..
"आई एम सॉरी मैडम.. लगता है आप इनकी वाइफ हो.. माफ करना.. बेवजह आपको मेरी गालियां सुननी पड़ी..पर क्या करें.. !! हमारा काम है ही ऐसा.. दिन रात गुनहगारों से पाला पड़ता है.. और वो सब यहीं भाषा समझते है.. इसलिए आदत हो चुकी है.. मेरी वाइफ भी अक्सर टोका करती है की घर पर मैं सभ्य भाषा में बात करूँ.. पर आदत से मजबूर हूँ.. छोड़िए वो सब.. पर आपने ये सब मुझे बताकर अच्छा किया.. अब आप चिंता मत कीजिए और घर जाइए.. बाकी सब मुझ पर छोड़ दीजिए.. मैं संभाल लूँगा"
कविता: "सर.. वैशाली मेरी खास सहेली है.. उसने खुदकुशी करने की कोशिश की है.. अभी उसकी हालत कैसी है ये जाने बगैर मुझे चैन नहीं पड़ेगा.. आप जरा पूछिए ना.. हमें तो कोई जवाब ही नहीं देगा.. !!"
"ओके.. रुकिए एक मिनट.. !!" कहते ही इन्स्पेक्टर ने किसी को फोन लगाया और सारी बात की "थोड़ी देर में सब पता चल जाएगा.. मैं आप को फोन करके बता दूंगा.. क्या नाम बताया था आपने.. मिस्टर पीयूष.. आपका नंबर तो है ही मेरे पास.. मुझे एक दूसरे जरूरी काम से जाना होगा फिलहाल" कहते हुए वो निकल गए..
पीयूष और कविता के दिल से बड़ा बोझ उतर गया.. मामला अब पुलिस के हाथ में था इसलिए उन्हें अब चिंता नहीं थी.. अपनी जिम्मेदारी निभाने का संतोष भी हुआ
पीयूष: "वैशाली को कुछ न हुआ हो तो अच्छा है.. बेचारी की ज़िंदगी हराम हो गई है"
कविता: "एक नंबर की पागल है वो.. खुदकुशी करने की क्या जरूरत थी.. !! उस भड़वे को ही खतम कर देती.. !!"
पीयूष: "कहना आसान है कविता.. पर घर से हजारों किलोमीटर दूर अकेली लड़की पर जब गुजरती है ना तब ऐसी हिम्मत नहीं होती.. "
इन्स्पेक्टर बिना चाय पियें चले गए.. इसलिए पीयूष और कविता ने मिलकर चाय खत्म की.. तभी लेंडलाइन की रिंग बजी.. उत्सुकतावश पीयूष ने फोन उठाया.. अनुमौसी का फोन था.. यहाँ का हाल जानने के लिए फोन किया था.. पीयूष ने सारी बात बताई तब मौसी के दिल को ठंडक मिली
पीयूष को एक ही विचार बार बार सता रहा था.. अगर वैशाली को कुछ हो गया.. तो मदन भैया संजय का खून कर देंगे.. और उन्हों ने ऐसा कुछ कर दिया तो शीला भाभी का जीवन नष्ट हो जाएगा.. मदन का गुस्सा बड़ा ही खराब था इस बात का पीयूष को पता था.. गुस्से में आदमी का दिमाग काम नहीं करता और वो सही और गलत की परख भूल जाता है.. और बात जब अपनी संतान की हो तो किसी भी बाप को गुस्सा आना लाज़मी था..
कविता और पीयूष एक दूसरे से लिपटकर शीला के बिस्तर पर सो गए.. आधी रात को लगभग तीन बजे पीयूष के मोबाइल की रिंग बजी.. वैशाली के बारे में कोई कॉल आया होगा सोचकर पीयूष ने फोन उठाया.. सामने से कोई अंग्रेजी में बात कर रहा था
"यस सर.. ओके सर.. आई सी.. " पीयूष का चेहरा गंभीर हो रहा था.. सामने से फोन कट हो गया.. पीयूष स्तब्ध होकर दीवार पर टंगी वैशाली की तस्वीर को देखता ही रहा.. फ़ोटो में वैशाली मुस्कुराकर पीयूष को छेड रही हो ऐसा एहसास हो रहा था पीयूष को.. आँखों में आँसू आ गए पीयूष के.. बचपन से लेकर आज तक की सारी बातें याद आ गई.. वो सारे पल जो उन्हों ने साथ बिताए थे.. उस खंडहर में रेत के ढेर पर किया हुआ संभोग भी.. हाथ जोड़कर उसने मन ही मन प्रार्थना की.. "हे भगवान.. वैशाली की रक्षा करना.. बचा लेना उसे.. !!"
कविता तो नींद में थी.. पीयूष फोन पर बात कर रहा था फिर भी वो गहरी नींद सोती रही..
पीयूष ने कविता के कंधे पर हाथ रखकर उसे जगाने की कोशिश की.. आधी नींद से जागते हुए कविता ने पूछा "क्या हुआ पीयूष?"
"कलकत्ता से किसी का फोन आया था.. वैशाली ने खुदकुशी की कोशईह नींद की गोलियां खाकर की थी.. अभी फिलहाल वो होश में नहीं है और डॉक्टर उसकी जान बचाने की कोशिश कर रहे है"
"पर पीयूष.. तेरा नंबर उनके पास कैसे आया?" कविता ने पूछा
"पता नहीं.. हो सकता है वो इंस्पेक्टर ने दिया हो.. और तो ज्यादा कुछ नहीं बताया उन्हों ने.. अब तो वो इंस्पेक्टर से पता चलेगी आगे की सब बात..!! और हाँ ये भी बताया की मदन भैया और शीला भाभी जैल से छूट गए है और संजय फरार है.. पुलिस उसे ढूंढ रही है.. "
"तो तू मदन भैया का फोन ट्राय कर.. शायद लग जाए"
"हाँ.. ये भी सही है.. " कहते हुए पीयूष ने मदन को फोन लगाया.. एक ही रिंग में मदन ने फोन उठाया
"हैलो मदन भैया.. मैं पीयूष बोल रहा हूँ.. आप कैसे है? क्या हालात हैं वहाँ? वैशाली के बारे में सुनकर हम सब चोंक गए"
मदन: "यहाँ के हालात बिल्कुल ठीक नहीं है यार.. सब लोग बकवास है हाँ.. मैं यहाँ अकेला पड़ गया हूँ पीयूष.. ये तो अच्छा हुआ की इंस्पेक्टर तपन की पहचान से हम जैल से बाहर आ पाए.. पर यहाँ के लोगों ने तेरी भाभी के साथ बहोत बुरा बर्ताव किया.. सब कुछ वहाँ आकर बताऊँगा तुझे.. अब मैं यहाँ एक पल भी रुकना नहीं चाहता.. और वैशाली को भी यहाँ रहने नहीं दूंगा.. उसकी हालत बहोत नाजुक है.. " कहते हुए मदन की आवाज भारी हो गई.. वो आगे बात न कर सका "ले शीला से बात कर.. !!" कहते हुए उसने शीला को फोन थमा दिया..
कविता ने पीयूष के हाथ से फोन छीन लिया..
शीला: "हैलो? कविता.. मेरी वैशाली.. हे भगवान.. !!" कहते हुए शीला फुटफुट कर रोने लगी.. "हम बड़ी मुसीबत में फंस गए है कविता.. भगवान जाने क्या होगा हमारा.. !!"
कविता को पता नहीं चल रहा था की कैसे बात करें.. किस तरह शीला भाभी को सांत्वना दें.. अपने से बड़ी उम्र की व्यक्ति को दिलासा देना बड़ा ही कठिन होता है..
कविता: "भाभी.. आपने वैशाली को देखा?"
शीला: "अब तक नहीं देखा.. हम जैल से अभी अभी बाहर आए.. उस कमीने ने झूठी कंप्लेन करके हमे बंद करवा दिया था.. बड़ी मुश्किल से बाहर निकले.. हमें तो जैल में पता चला की वैशाली ने ऐसा किया था.. अब अस्पताल जा रहे है.. पता नहीं जिंदा भी या नहीं.. मेरी फूल जैसी बच्ची की ज़िंदगी नरक बन गई.. ये तो अच्छा हुआ की इंस्पेक्टर ने फोन किया.. वरना पता नहीं जैल में हमारा क्या होता.. !!"
कविता: "आप चिंता मत कीजिए भाभी.. वैशाली ठीक हो जाएगी.. मैंने मन्नत मांग ली है.. मुझे विश्वास है की उसे कुछ नहीं होगा.. "
शीला: "हाँ कविता.. ईश्वर करें की ऐसा ही हो.. मैं फोन रखती हूँ अब.. !!"
कविता: "ठीक है भाभी.. और आप चिंता मत कीजिए.. इंस्पेक्टर के जरिए हमें सारे समाचार मिलते रहेंगे.. "
शीला: "हाँ कविता.. भला हो उस इंस्पेक्टर का जिसकी बदौलत हम छूट गए.. जैल में इन हरामजादों ने हमारे साथ क्या क्या किया.. वो सब वहाँ आकर बताऊँगी तुझे.. "
पीयूष को बहोत दुख हो रहा था.. सुख के समय वो हमेशा शीला भाभी के साथ थी.. अब तकलीफ के वक्त वो उनके साथ नहीं था उस बात का उसे बेहद अफसोस हो रहा था.. सीधी-साधी औरतों के लिए पुलिस स्टेशन में रहना.. और वो भी लॉकअप में.. उन पर क्या बीती होगी.. सोचकर ही पीयूष के रोंगटे खड़े हो रहे थे..
फोन रखकर कविता रोने लगी.. बड़ी ही मुश्किल से पीयूष ने उसे शांत किया.. आखिर दोनों थककर सो गए.. उन्हें सोये हुए एकाध घंटा हुआ होगा तभी डोरबेल बजी.. जागकर पीयूष ने दरवाजा खोला.. आज रसिक के बदले रूखी दूध देने आई थी..
रूखी का अद्भुत सौन्दर्य देखकर पीयूष की सारी नींद उड़ गई.. एक पल के लिए उसे लगा की वो सपना देख रहा था और उसी सपने में ये अप्सरा आ गई.. रूखी के भव्य जोबन से पीयूष की नजर ही नहीं हट रही थी.. साढ़े पाँच बजे हर मर्द नींद में होता है पर उसका हथियार जागा हुआ होता है.. पीयूष का भी यही हाल था जब वो जागा..
पीयूष की शॉर्ट्स में उसका लंड उभार बनाते हुए रूखी को छूने की कोशिश कर रहा था.. जिसे बड़ी मुश्किल से पीयूष ने संभाले रखा था.. रूखी इस बात से अनजान थी.. उसने चुपचाप दूध दिया.. पर पीयूष की नजर उसके स्तनों पर थी इस बात से रूखी बेखबर तो नहीं थी.. अपने पल्लू को ठीक करते हुए वो खड़ी हो गई.. पर पतले से पल्लू के पीछे इतने बड़े स्तन भला कैसे छुपते?? उसकी ज्यादातर गोलाइयाँ आराम से नजर आ रही थी.. छोटी से चोली में दबाए हुए उस स्तनों का ५० प्रतिशत हिस्सा तो ऊपर से नजर आ रहा था.. पीयूष ने अंदाजा लगाया.. रूखी के दोनों स्तनों के बीच की लकीर कम से कम दस इंच लंबी थी.. बाप रे.. !! पीयूष का रोम रोम उत्तेजित हो गया ये देखकर..
पीयूष की नज़रों से रूखी शरमा गई.. शीला भाभी के घर इस नए चेहरे को देखकर वो अचंभित थी.. एक बार के लिए उसने सोचा की भाभी के पट्टी होंगे जो विदेश से लौटे थे.. पर पीयूष की उम्र देखकर वो खयाल भी रिजेक्ट हो गया.. ये था कौन? शीला भाभी का बेटा? पर उन्हें तो सिर्फ एक बेटी ही है.. !! तो ये कौन होगा? जरूर कोई मेहमान होगा.. सोचते सोचते रूखी वापिस लौट रही थी..
रूखी के हर कदम के साथ लयबद्ध तरीके से मटकते कूल्हों को और लचकती कमर को.. पीछे से देखता ही रहा पीयूष.. ऐसा रूप उसने जीवन में पहले कभी देखा नहीं था.. वाह.. !! ये तो शीला भाभी से भी बढ़कर है.. इतना सौन्दर्य? इन सब बातों से अनजान रूखी लटक-मटक चलते हुए निकल गई.. उसके जाने के बाद भी पीयूष मूर्ति की तरह दरवाजे पर खड़ा रहा.. उसके पैर फर्श पर जैसे चिपक गए थे.. रूखी के रूप से प्रभावित होकर वो दूध रखने किचन में गया तब कविता जाग गई.. और वो अपने घर चली गई.. सुबह के काम निपटाने.. पीछे पीछे पीयूष भी ताला लगाकर अपने घर गया..
Thanks a lot bhaiKya shandaar update hai bhai love u
Thanks a lot Ajju Landwalia bhaiGazab ki update he vakharia Bhai,
Uttejna aur kamukta se bharpur.........
Sheela aur Madan ke sensual sex scene me to maja hi aa gaya
Keep rocking Bro
Thanks a lot Napster bhaiबहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
Thank you so much for the lovely comments Napster bhaiबहुत ही मस्त और लाजवाब अपडेट है भाई मजा आ गया
ये बहनचोद संजय ने ये कौनसा नया कांड कर दिया
लगता हैं साला शीला को ब्लँक मेल करने अपने को पुलिस से छुडाने के लिये शीला के कांड ना उजागर कर दे
खैर देखते हैं आगे
Thanks a lot Ek number bhaiShandaar update
Thanks a lot dearest Raji bhabhi for the lovely commentSuper duper sexyyyy update
Ek pal mein kisi ko bhi uttejit karne ki kshamta hai heroine Shila mein