चेतना: "बेटा.. डरने की जरूरत नहीं है.. देख कितनी मस्त गीली हो गई है शीला की चुत!! जा.. उसके छेद में अपना लंड पेल दे.. और धीरे धीरे अंदर बाहर करना शुरू कर.. और सुन.. पूरा जोर लगाना.. ठीक है.. तुझे बस ऐसा सोचना है की ट्यूशन पहुँचने में देर हो गई है और तू तेज गति से साइकिल के पेडल लगा रहा है.. जा जल्दी कर"
चेतना की बात सुनकर पिंटू खड़ा हुआ.. और शीला के दो पैरों के बीच सटकर.. लंड घुसाते हुए अंदर बाहर करने लगा.. शीला को पिंटू के चोदने से कोई फरक नहीं पड़ा.. उसकी चुत में अब तक काफी लोग निवेश कर चुके थे.. और ये तो अग्रीमन्ट भी घबराते हुए कर रहा था.. बिना हिले डुले लाश की तरह पड़ी रही शीला.. और पिंटू उस पर कूदता रहा.. जैसे बिना हवा के पतंग उड़ाने का प्रयत्न कर रहा हो!!
दो तीन मिनट तक ऐसे ही बेजान धक्के लगाकर.. वह बेचारा छोकरा थक गया.. चेतन कमरे के कोने में नंगी बैठी हुई चुत में उंगली कर रही थी.. शीला बिस्तर पर नंगी पड़ी थी.. और नंगा पिंटू झड़कर शीला के जिस्म के ऊपर गिरा हुआ था.. तीनों स्खलित होकर तंद्रावस्था में पहुँच गए थे..
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तभी डोरबेल बजने की आवाज आई.. डींग डोंगगगग.. !!
तीनों नंगे थे.. तेजी से कपड़े पहनने लगे.. शीला ने भागकर दरवाजा खोल दिया.. दरवाजे पर अनुमौसी थी.. कविता की सास..
अनुमौसी: "इतनी देर क्यों लगा दी दरवाजा खोलने में?" शक की निगाह से देखते हुए वह बोली
शीला: "अरे मौसी.. मेरी सहेली आई है.. हम दोनों बातों में ऐसी उलझ गई थी की डोरबेल की आवाज ही नहीं सुनी मैंने.. आइए ना अंदर"
अनुमौसी अंदर आ गई.. "दूध फट गया था.. थोड़ा सा मिलेगा तेरे पास?"
शीला ने फ्रिज से पतीली निकाली और अनुमौसी को दूध दिया.. अनुमौसी से उनके बीमार भाई की तबीयत के बारे में भी पूछा.. थोड़ी देर यहाँ वहाँ की बातें करने के बाद अनुमौसी निकल गई.. पर सोफ़े पर कुशन के पीछे पड़ी हुई गीली पेन्टी.. उनकी नज़रों से बच ना सकी.. वह कुछ बोली नहीं.. और चुपचाप वहाँ से चली गई..
पिछले ६० सालों में मौसी ने भी की खेल खेले थे.. वह इतनी नादान तो थी नहीं की चुत के स्खलन की और पुरुष के वीर्य की गंध को पहचान ना सके.. शीला के घर में जरूर कुछ पक रहा था.. पर अनुभवी मौसी फिलहाल बिना कुछ कहे दूध लेकर चली गई.. डोरबेल बजते ही चेतना और पिंटू बाथरूम में छुप गए थे.. जब तक अनुमौसी शीला से बातें कर रही थी.. तब तक वह दोनों चुपचाप अंदर खड़े रहे..
चेतना ने इस मौके का फायदा उठाया.. पिंटू को बाहों में लेकर अपने स्तनों को उसकी छाती पर रगड़कर.. उस नादान लड़के को उत्तेजित कर दिया.. पिंटू भी चेतना की छातियाँ दबाते हुए उसके होंठ चूस रहा था.. चेतना ने पिंटू के पेंट में हाथ डालकर उसका लंड मसलना शुरू किया.. पिंटू भी चेतना के पेटीकोट में हाथ डालकर उसकी गरम चुत में उंगली अंदर बाहर करने लगा.. कामरस से गीली हो रखी चुत में बड़े ही आराम से उंगली जा रही थी।
शीला ने बाथरूम को दरवाजा खटखटाकर खोलने के लिए हरी झंडी दिखाई.. चेतना ने पिंटू को चूमते हुए दरवाजे की कुंडी खोल दी.. इन दोनों को लिपटे हुए देखकर शीला ने कहा
शीला: "क्या बात है!! तुम दोनों तो बाथरूम में ही शुरू हो गए!! बड़ी जल्दी सिख गया तू पिंटू.. औरत को खुश रखने का दूसरा नियम जान ले.. जहां और जब मौका मिले.. चोद देना.. "
चेतना: "देख शीला.. तूने अभी अभी चटवा ली है.. और झड भी चुकी है.. अब मुझे अपनी चटवाने दे.. फिर मैं घर के लिए निकलूँ.. मुझे देर हो रही है"
शीला: "अरे, पर मेरा अभी भी बाकी है.. उसका क्या?? तेरे घर तो तेरा पति भी है.. मेरे वाला तो चार महीने बाद आने वाला है"
चेतना: "वो सब मैं नहीं जानती.. पिंटू अब मेरी चुत चाटेगा.. बस.. !! बड़ी लालची है तू शीला.. एक बार पानी निकलवा लिया फिर भी तसल्ली नहीं हुई तुझे.."
पिंटू के छोटे से लंड के लिए दोनों झगड़ने लगी..
चेतना: "क्या बताऊँ तुझे शीला!! मेरे पति को डायाबीटीस है.. काफी समय हो गया.. वो बेचारे अब पहले की तरह.. नहीं कर पाते है"
शीला: "मतलब? उनका खड़ा नहीं होता क्या?"
चेतना: "बड़ी मुश्किल से खड़ा होता है.. वो भी काफी देर तक चूसने के बाद.. अब क्या करू मैं.. किससे कहूँ? रोज मुझे बाहों में भरकर चूम चूम कर गरम कर देते है.. पर उनका लोंडा साथ ही नहीं देता.. इसलिए करवट बदलकर सो जाते है बेचारे.. प्लीज.. अभी मुझे चटवा लेने दे" कहकर चेतना ने बाथरूम में ही अपना घाघरा ऊपर कर लिया.. और अपने एक पैर को कमोड पर रख दिया.. अपनी चुत खुजाते हुए उसने पिंटू को गिरहबान से पकड़कर खींचा और नीचे बैठा दिया.. पिंटू पालतू कुत्ते की तरह चेतना की बुर की फाँकें चाटने लगा.. शीला ने चेतना के बाहर लटक रहे पपीते जैसे स्तनों को मसलते हुए.. उसकी बादामी रंग की निप्पल को दांतों के बीच दबाते हुए काट लिया..
दर्द से कराह उठी चेतना.. फिर भी शीला और पिंटू ने अपना काम जारी रखा.. शीला अपने दूसरे हाथ से अपनी बुर खुजाने लगी.. पिंटू ने भी शीला की गुफा को सहला दिया.. "आह्ह.. शाबाश पिंटू मेरे लाल.. बिना कहे ही समझ गया तू मेरे बेटे.. सहला और सहला वहाँ.. आह्ह.. "
शीला भी अपनी चुत खुजाते हुए आनंद के महासागर में गोते खाने लगी.. और डूब गई.. शीला ने चेतना के होंठों पर कामुक चुंबन जड़ दिया.. चेतना भी वासना के सागर में अपनी पतवार चलाते हुए किसी दूसरी दुनिया में पहुँच गई.. पिंटू को अपनी दोनों जांघों के बीच दबोच कर.. शीला के चुचे दबाते हुए.. जोर से हांफने लगी.. पिंटू का पूरा मुंह.. चेतना के चिपचिपे चुत-रस से भर गया। उस छोटे लड़के ने अपने छोटे लंड के उपयोग के बिना ही चेतना को ठंडी कर दिया..
स्खलित हुई चेतना की सांसें बड़ी ही तेज चल रही थी.. उसकी हांफती हुई बड़ी बड़ी छाती.. और बिखरे हुए बाल.. बड़े ही सुंदर लग रहे थे। उसका काम निपट गया था.. उसने अपने कपड़े उठाए और बाथरूम के बाहर निकली तब शीला.. कोने में पड़ी कपड़े धोने की थप्पी का मोटा हेंडल तेजी से अपनी चुत में घुसेड़कर मूठ मार रही थी।
पिंटू बड़े ही आश्चर्य से शीला के भोसड़े में उस मोटे डंडे को अंदर बाहर होते हुए देखता रहा.. इतना मोटा डंडा भी बड़े आराम से अंदर ले रही शीला को देखकर पिंटू को अपने छोटे से औज़ार की मर्यादा का एहसास हुआ.. फिर भी बिना निराश हुए.. उसने शीला के हाथ से उस थप्पी को खींचकर बगल में रख दिया.. शीला को पलटा कर झुका दिया.. शीला कमोड पर हाथ टिकाते हुए झुक गई.. उसके नरम गोल बड़े बड़े उरोज बड़ी सुंदरता से लटक रहे थे.. जैसे खुद के स्तनों का ही भार लग रहा हो.. शीला ने अपने एक स्तन को हाथों में पकड़ लिया और फ्लश टँक पर हाथ टेक कर अपने चूतड़ उठाकर खड़ी हो गई।
अब पिंटू.. उकड़ूँ होकर नीचे बैठ गया.. शीला के भव्य कूल्हों को दोनों हाथों से अलग करते ही.. उसे शीला का गुलाबी रंग का गांड का छेद दिखने लगा.. शीला को खुश करने के लिए पिंटू के पास उस थप्पी के हेंडल जैसा मोटा हथियार तो नहीं था.. उसे अपने छोटे से मर्यादित कद के हथियार से ही युद्ध लड़ना था.. और जीतना भी था.. हालांकि.. इस युद्ध मैं पिंटू की दशा.. अमरीका के सामने बांग्लादेश जैसी थी..
बिना एक पल का विलंब किए.. पिंटू ने शीला की गांड के छेद को उत्तेजना से चूम लिया.. और अपनी जीभ की नोक उस छेद पर फेर दी.. फिर उसने थोड़ा सा नीचे जाकर.. शीला की लसलसित चुत की लकीर पर आक्रमण शुरू किया.. उस दौरान उसने शीला के दोनों चूतड़ों को फैलाकर पकड़ रखा था.. जैसे किसी मोटे ग्रंथ की किताब को खोलकर पढ़ रहा हो..
चुत की लकीर चौड़ी होते ही.. अंदर का लाल गुलाबी विश्व द्रश्यमान होने लगा.. देखते ही पिंटू की सांसें फूल गई.. पिंटू चुत पर जीभ फेरने लगा और शीला तड़पने लगी.. और वासना से बेबस हो गई.. उत्तेजना के कारण शीला के पैर कांप रहे थे.. और वह बड़ी हिंसक तरीके से अपने स्तन मसल रही थी.. निप्पल तो ऐसे खींच रही थी मानों उसे अपने स्तन से अलग कर देना चाहती हो..
तीन घंटे पहले.. शीला के घर आया ये नादान छोकरा.. अब किसी अनुभवी मर्द की अदा से शीला की रसभरी.. स्ट्रॉबेरी जैसी चुत को चाट रहा था। शीला के स्तन उत्तेजना के कारण कठोर हो गए थे.. और निप्पल सख्त होकर बेर जैसी हो गई थी.. पिंटू को इतना तो पता चल गया की उसकी छिपकली जैसी लोड़ी से शीला के किले को फतह कर पाना नामुमकिन सा था.. इसी लिए वो उसे चाट चाटकर शांत करने का प्रयास कर रहा था।
वो कहावत तो सुनी ही होगी "काम ही काम को सिखाता है" बस उसी तर्ज पर.. पिंटू के दिमाग में कुछ आया.. और उसने शीला की गांड में अपनी उंगली घुसा दी.. शीला को अपनी गांड में जबरदस्त खुजली हो रही थी.. बिना सिखाए की गई इस हरकत से शीला खुश हो गई.. और खुद ही अपनी गांड को आगे पीछे करते हुए पिंटू की उंगली को चोदने लगी..
"आह्ह.. ओह्ह.. ओह्ह.. चाट पिंटू.. अंदर तक जीभ डाल दे.. ऊईई..मर गई.. मज़ा आ रहा है.. उईई माँ.. तेज तेज डाल.. जीभ फेर जल्दी.. मैं झड़नेवाली हूँ.. आह्ह आह्ह आह्ह.. मैं गईईईईईई......!!!!!!!!" कहते ही शीला का शरीर ऐसे कांपने लगा जैसे उसे बिजली का झटका लगा हो.. उसका पूरा शरीर खींचकर तन गया.. और दूसरे ही पल एकदम ढीला हो गया.. शीला वहीं फर्श पर ढेर होकर गिर गई.. पिंटू भी चाट चाट कर थक गया था.. शीला के अनुभवी भोसड़े को शांत करना मतलब.. शातिर गुनेहगार से अपने जुर्म का इकरार करवाने जितना कठिन काम था.. पर पिंटू की महेनत रंग लाई.. शीला और चेतना.. दोनों को मज़ा आया..
चेतना तो कपड़े पहनकर कब से ड्रॉइंगरूम में इन दोनों का इंतज़ार कर रही थी.. उसकी चुत मस्त ठंडी हो चुकी थी.. वह जानती थी की शीला तब तक बाहर नहीं निकलेगी जब तक की उसके भोसड़े को ठंडक नहीं मिल जाती!!
"पिंटू.. मेरे हुक बंद कर दे.. मुझे ओर भी काम है बेटा.. " कहते हुए शीला घूम गई.. पिंटू उनकी संगेमरमर जैसी पीठ को देखतय ही रह गया.. उस चिकनी पीठ पर हाथ फेरते हुए उसने ब्रा के दोनों छोर को पकड़कर खींचा ताकि हुक बंद कर सकें.. ब्रा के पट्टों को खींचकर करीब लाते हुए ऐसा महसूस हो रहा था जैसे रस्साकशी का खेल चल रहा हो!! पिंटू को हंसी आ गई.. आईने में पिंटू को देख रही शीला ने पूछा..
"क्यों रे छोकरे? हंस क्यों रहा है?"
"भाभी, मैं ये सोचकर हंस रहा था की इतनी छोटी सी ब्रा में इतने बड़े बड़े गोले कैसे समाएंगे भला??"
शीला: "भोसडी के..मादरचोद.. उसमें हसने वाली क्या बात है!!"
पिंटू: "भाभी.. ऐसे ही बड़े बड़े बबलों ने मुझे हिन्दी की परीक्षा में १५ मार्क दिलवाए थे.. "
शीला (आश्चर्य से): "वो कैसे?"
पिंटू: "बोर्ड की परीक्षा में हिन्दी के पेपर में एक निबंध पूछा गया था "बढ़ती हुई आबादी से होते नुकसान".. क्या लिखूँ कुछ सूझ ही नहीं रहा था.. इतने में मेरी नजर सुपरवाइज़र मैडम पर पड़ी.. उनके स्तन भी आपकी तरह बड़े बड़े थे और ब्लाउस मैं संभल नहीं रहे थे.. उन्हे देखकर मैंने निबंध लिखना शुरू कर दिया.. आबादी के बढ़ने से लोगों को होती परेशानियाँ.. दो तीन वाक्य लिखने के बाद.. मैंने दूसरा अनुच्छेद छोटे से घर में ज्यादा लोगों को रहने पर पड़ती तकलीफ की ऊपर लिख दिया.. और उपसंहार आबादी के चलते जरूरत की चीजों की किल्लत पर लिख दिया.. सब कुछ उस सुपरवाइज़र मैडम के मम्मों की प्रेरणा की वजह से.. वो बात याद आ गई.. इसलिए हंसी आई.. वो बात छोड़िए.. आप ये बताइए की अब ब्रा के हुक को बंद कैसे करू? ज्यादा खिचूँगा तो टूट जाएंगे.."
पिंटू की बकवास सुनकर बोर हो चुकी शीला ने अपनी दोनों कटोरियों में से स्तनों को निकाल दिया.. उसके उरोज ब्रा के नीचे झूलने लगे.. स्टेशन आते ही जैसे लोकल ट्रेन में जगह हो जाती है वैसे ही अब जगह हो गई और हुक आसानी से बंद हो गए.. शीला के स्तन अभी भी ब्रा के बाहर झूल रहे थे।
शीला: "चल पिंटू.. अब इन दोनों को अंदर डाल दे.. "
पिंटू ने शीला का दोनों स्तनों को पकड़कर पहले तो थोड़ी देर दबाया.. शीला आँखें बंद करके स्तन मर्दन का आनद लेने लगी
शीला: "जरा जोर से मसल.. आह्ह!!"
पिंटू ने शीला को अपनी ओर खींच लिया.. और उसके गालों को चूम कर अपने होंठों को शीला के कान के करीब ले गया और फुसफुसाते हुए बोला
पिंटू: "आप का तो हो गया भाभी.. पर मेरा अभी बाकी है.. मेरा पानी निकलवाने का भी कोई जुगाड़ लगाइए.."
शीला अपना हाथ नीचे ले गई और पिंटू का लंड पकड़कर बोली " सच कहूँ पिंटू?? तू मेरे बच्चों से भी छोटा है.. तेरी नुन्नी से छेड़खानी करते हुए भी मुझे शर्म आ रही है.. पर क्या करती? ये सब इतना अचानक हो गया की.. वरना तेरे ये सीटी जैसे लंड से मेरा क्या भला होगा!! अभी देखा था ना तूने.. उस थप्पी का हेंडल कैसे अंदर समा गया था!! अब तू ही बता.. तेरी छोटी सी लोड़ी से मुझे कैसे संतोष मिलेगा??"
पिंटू: "पर उसमें मेरी क्या गलती है? मैंने आपको और चेतना भाभी को.. मुझे जितना आता था वह सब कर के दिया ना!! और ठंडा भी कर दिया!!"
शीला: "तेरी बात सही है पिंटू.. पर तेरा छोटा सा लंड पकड़ने में मुझे शर्म आती है.. तू खुद ही इसे हिला ले.. क्यों की अगर मैं गरम हो गई.. तो फिर तुझे चूस लूँगी पूरा.. इससे अच्छा तो तू मेरे स्तनों को चूसते हुए अपना लंड हिलाते हुए पानी गिरा दे" कहते ही शीला ने अपना एक स्तन पिंटू के मुंह में दे दिया.. बेचारा पिंटू!! शीला की निप्पल चूसते हुए अपना लंड हिलाए जा रहा था..
शीला: "जल्दी जल्दी कर.. मेरी चुत में फिर से खाज होनी शुरू हो गई है"
"उहह भाभी.. आह्ह.. ओह्ह.. " पिंटू स्खलित हो गया.. शीला बड़े ताज्जुब से देखती रही.. इतने छोटे लंड की पिचकारी दो फुट दूर जाकर गिरी!! उस फेविकोल जैसे वीर्य को देखकर शीला की चुत में झटका लगा.. अंदर दलवाया होता तो मज़ा आता.. कितने फोर्स से पिचकारी लगाई इसने!! अंदर बच्चेदानी तक जाकर लगती.. मज़ा आ जाता.. पर उसके ये सिगरेट जैसे लंड से वह कहाँ ठंडी होने वाली थी!! चलो, जो हुआ अच्छा ही हुआ!!
शीला और पिंटू कपड़े पहनकर ड्रॉइंगरूम में आए.. चेतना सोफ़े पर बैठे बैठे आराम से अखबार पढ़ रही थी..
शीला: "आप दोनों बातें करो.. मैं अभी कुछ नाश्ता बना कर लाती हूँ.. बेचारे पिंटू को भूख लगी होगी"
पिंटू: "नहीं नहीं.. मुझे भूख नहीं लगी.. मैं अब निकलता हूँ.. घर पहुँचने में देर होगी तो मम्मी डाँटेगी.. "
शीला: "अब आधे घंटे में कोई देरी नहीं हो जाने वाली.. आराम से बैठ.. नाश्ता कर के ही जा.. आज तो तुझे पूरा निचोड़ दिया हमने!!"
चेतना जिस अखबार को पढ़ रही थी उसमें एक इश्तिहार छपा हुआ था.. जिसमें एक मॉडल छोटी सी ब्रा पहने अपने बड़े बड़े उभार दिखा रही थी..
चेतना: "ये अखबार वाले भी कैसी कैसी अधनंगी एडवर्टाइज़मेंट छापते है!! फिर खुद ही बीभत्सता के खिलाफ लंबे लंबे आर्टिकल लिखते है.. और इन मॉडलों को तो देखो.. कैसे अपने बबले दिखाकर फ़ोटो खिंचवाई है!! इन्हे देखकर तो मर्दों के लंड पतलून फाड़कर बाहर निकल जाते होंगे!! खुद ही आधे कपड़ों में घूमेगी.. फिर कुछ उंच-नीच हो जाए तो चिल्लाएगी.. "
पिंटू आराम से सुनता रहा.. अखबार पढ़ रही चेतना का पल्लू नीचे गिर गया था.. उसकी ओर इशारा करते हुए उसने कहा
पिंटू: "भाभी.. पहले तो आप अपनी दोनों हेडलाइट को ढँक लो.. कहीं मैं ही कुछ कर बैठा तो यहीं पर उंच-नीच हो जाएगी और आप चिल्लाएगी"
चेतना: "तुझे जो मन में आए वो कर इनके साथ... मैं कहाँ मना कर रही हूँ!!" कहते हुए चेतना ने पिंटू की जांघ को सहलाया और उसके करीब आ गई.. अपने आप को थोड़ा सा ऊपर किया.. और अपनी छाती से पल्लू गिरा दिया.. कमर के ऊपर अब केवल ब्लाउस के अंदर कैद स्तनों का उभार देखकर कोई भी बेकाबू बन जाता.. चेतना ने बड़ी ही कातिल अदा से अंगड़ाई ली.. और मदहोश कामुक नज़रों से.. अपने निचले होंठ को दांतों तले दबाया,. होंठों पर अपनी जीभ फेर ली.. और अपने स्लीवलेसस ब्लाउस में से पसीनेदार काँखों को दिखाकर.. पिंटू की मर्दानगी को.. एक ही पल में नीलाम कर दीया।
अखबार को सोफ़े पर फेंककर चेतना पिंटू की जांघों पर सवार हो गई.. और उसके बिल्कुल सामने की तरफ हो गई। पिंटू के मासूम चेहरे को अपनी दोनों हथेलियों में भरते हुए उसके गालों को सहलाने लगी और बड़ी ही कामुक अदा से बोली
चेतना: "हाय रे पिंटू.. कितना चिकना है रे तू!! तुझे कच्चा चबा जाने का मन कर रहा है मेरा" कहते हुए चेतना ने पिंटू के होंठों को चूम लिया.. चिंटू ने अपने दोनों हाथों से चेतना के कूल्हें पकड़ लिए.. और उन्हे सहलाने लगा..
चेतना ने पिंटू के पतलून की चैन खोली और उसके सख्त लंड को बाहर निकाला.. बिना वक्त गँवाए उसने अपना घाघरा उठाया और अपनी रसीली चुत की दरार पर पिंटू के सुपाड़े को सेट करते हुए अपने जिस्म का वज़न पिंटू की जांघों पर रख दिया.. पिंटू का लंड चेतना की चुत में ऐसे गायब हो गया जैसे गधे के सर से सिंग!!
शीला एक प्लेट में गरमागरम पकोड़े लेकर बाहर आई तब इन दोनों को चुदाई करते हुए देखकर हंस पड़ी.. और मन ही मन बोली.. साली ये चेतना भी.. इस बेचारे बच्चे की जान ही ले लेगी आज.. शीला ने एक गरम पकोड़ा लिया और चेतना के खुले नितंब पर दबा दिया
चेतना: "उईई माँ.. क्या कर रही है हरामी साली!!!" बोलते हुए चेतन उछल पड़ी.. उसके उछलते ही पिंटू का लंड उसकी चुत से बाहर निकल गया.. वह उत्तेजना से थर-थर कांप रही थी.. पिंटू का लंड भी झूल रहा था..
शीला ने पकोड़े की डिश को टेबल पर रखा और पिंटू के लंड को मुंह में लेकर चूसने लगी.. शीला के मुंह की गर्मी.. पिंटू और बर्दाश्त न कर सका.. और बस दस सेकंड में उसके लंड ने इस्तीफा दे दिया.. पिंटू का वीर्य मुंह में भरकर शीला किचन में चली गई। चेतन से अब और रहा न गया.. अपना घाघरा ऊपर करते हुए वह क्लिटोरिस को रगड़ने लगी.. अपनी चुत की आग को बुझाने की भरसक कोशिश कारणे लगी.. पर उसकी चुत झड़ने का नाम ही नहीं ले रही थी।
आखिरकार उसने पिंटू को सोफ़े पर लिटा दिया और उसके मुंह पर सवार हो गई.. और इससे पहले की पिंटू कुछ कर पाता.. वह उसके मुंह पर अपनी चुत रगड़ने लगी.. करीब पाँच मिनट तक असहाय पिंटू के मुंह पर चुत रगड़ते रहने के बाद.. उसकी चुत का फव्वारा निकल गया.. बेचारा पिंटू.. चेतना के इस अचानक हमले से हतप्रभ सा रह गया..
थोड़ी देर यूं ही लेते रहने के बाद वह उठा और कपड़े ठीक किए.. उसकी हालत खराब हो गई थी.. वह बुरी तरह थक चुका था.. अपने लंड को पेंट में डालकर उसने चैन बंद की और बिना कुछ कहे वह दरवाजा खोलकार चला गया.. नाश्ता करने भी नहीं रुका.. इन दोनों भूखे भोसड़ों की कामवासना ने उसे डरा दिया था... वह दुम दबाकर भाग गया
शीला और चेतना ने उसे रोकने की कोशिश भी नहीं की.. क्यों करती!! उनका काम तो हो गया था.. अनमोल ऑर्गैज़म प्राप्त कर दोनों सहेलियाँ पकोड़े खाते हुए बातों में मशरूफ़ हो गई।
चेतना: "मस्त पकोड़े बनाए है तूने" खाते हुए बोली
शीला: "चेतना.. क्या सच में तेरे पति का खड़ा नहीं होता?"
चेतना: "इतना निकम्मा भी नहीं हुआ है अब तक.. पर हाँ.. पहले की तरह जल्दी सख्त नहीं होता.. और होता भी है तो एकाध मिनट में बैठ जाता है"
कहते हुए चेतना उदास हो गई.. शीला ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा.. "मैं समझ सकती हूँ की तुझ पर क्या बीत रही होगी.. मैंने भी मदन की गैरमौजूदगी में दो साल बिताए है.. तू अब से मेरे घर आया कर.. तुझे तड़पना नहीं पड़ेगा.. "
चेतना: "इसी लिए तो मैं घर पर आकर बात करने के लिए बोल रही थी.. ऐसी बातें बाहर खुले में करना ठीक नहीं"
शीला: "सच कहा तूने चेतना.. इस उम्र में जब जिस्म की भूख सताती है तब ऐसी स्थिति होती है की ना सहा जाता है और ना कहा जाता है"
चेतना: "एक बात पूछूँ शीला? सच सच बताना.. मदन भाई दो साल से गए हुए.. इतने समय तू बिना कुछ किए रह पाई यह बात मैं मान नहीं सकती"
शीला: "सच कह रही है तू.. मैंने तो अपने दूधवाले को जुगाड़ लिया है.. रोज सुबह सुबह तगड़ा लंड मिल जाता है"
चेतना: "मेरा भी उसके साथ कुछ चक्कर चला दे शीला.. " विनती करते हुए चेतना ने कहा.. तगड़े लंड का नाम सुनकर उसके दो पैरों के बीच के तंदूर से धुआँ निकलने लगा
शीला: "अरे तू भी ना.. ऐसे कैसे सेटिंग करवा दूँ.. मैंने भी अभी अभी शुरू किया है उसके साथ!!"
थोड़ी देर के लिए दोनों में से कोई कुछ नहीं बोला
चेतना एकदम धीमी आवाज में बोली "बेटे से तो बाप अच्छा है"
"मतलब??" शीला समझ नहीं पाई
"कुछ नहीं.. जाने दे यार.. चलती हूँ.. वरना मेरी सास फिर से चिल्लाएगी... जैसे मैं किसी के साथ भाग जाने वाली हूँ" चेतना ने एक भारी सांस छोड़कर कहा
"तो बोल दे अपनी सास को.. की अपने बेटे से कहे की तुझे ठीक से चोदे.. वरना सचमुच भाग जाऊँगी.. एक औरत बिना आटे के जीवन गुजार लेगी पर बिना खूँटे के तो एक पल नहीं चलेगा" शीला ने कहा
"बिना खूँटे के तो मेरी सास को भी नहीं चलता.. दिन में दो दो बार अपनी चुत चटवाती है मेरे ससुर से.. "
"बाप रे!! क्या बात कर रही है तू!! तुझे कैसे पता चला?" शीला आश्चर्यसह चेतन की ओर देखती रही
"कई बार रात को उनके कमरे में चल रही गुसपुस सुनती हूँ.. मेरा ससुर भी कुछ काम नहीं है.. खड़े हुए ऊंट की गांड मार ले ऐसा वाला हरामी है कुत्ता.. साला" चेतना ने कहा
"कमाल है यार!! इस उम्र में भी!! तेरा ससुर रंगीला तो था ही.. याद है.. तेरे देवर की शादी में मेरे बूब्स को कैसे घूर घूर कर देख रहा था" शीला ने कहा
"हाँ यार.. चल अब मैं चलती हूँ.. बहोत देर हो गई.. घर पर सब इंतज़ार कर रहे होंगे मेरा.. "
"ठीक है.. पर आती रहना.. "
"तू बुलाएगी तो जरूर आऊँगी.. और ऐसा कुछ भी मौका मिले तो मुझे याद करना.. अकेली अकेली मजे करती रहेगी तो एड्स से मर जाएगी.. मिल बांटकर खाने में ही मज़ा है.. मेरी चुत का भला करेगी तो उपरवाला तेरा भी ध्यान रखेगा" हँसते हुए चेतना ने कहा और चली गई
शीला फिर से अकेली हो गई.. उसे चेतना पर बहोत दया आ रही थी.. बेचारी.. कैसे मदद करू चेतना की?? शीला सोचती रही