बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गयाइस तरफ अनुमौसी ने रसिक को सारी बात कर दी थी.. बता दिया था की अब वो अगले रविवार को जाएंगे क्योंकी इस रविवार को कविता अपने मायके जाने वाली है.. आज अनुमौसी ने शीला के घर सोने का सेटिंग कर दिया.. सिर्फ औपचारिकता के लिए उसने चिमनलाल को साथ चलने के लिए कहा.. पर उन्होंने मना कर दिया.. जब बेटिंग करनी ही न हो तब पिच पर जाकर क्या फायदा.. !!
मौसी को उससे कोई फरक नहीं पड़ा.. वो तो उल्टा खुश हो गई.. अब आराम से वो रसिक के साथ अपनी मर्जी से जो चाहे कर सकती थी.. वैसे अगर चिमनलाल साथ आए होते तो भी उसे दिक्कत नहीं थी.. वो जानती थी की चिमनलाल की नींद इतनी गहरी थी की अगर वो उनके बगल में लेट कर रसिक से चुदवा लेती तो भी उन्हें पता नहीं चलता..
रसिक के लिए सुबह जल्दी उठना था इसलिए मौसी निश्चिंत होकर सो गई..
दूसरी सुबह रसिक ने मौसी को, कविता के साथ सेटिंग हो जाने की आशा से, ज्यादा मजे से रौंदा.. और कुछ नई हकतें कर उन्हें हवस से पागल कर दिया.. रसिक जैसे जैसे अनुमौसी के भूखे शरीर को नए नए तरीकों से चोदता गया.. वैसे वैसे अनुमौसी रसिक को पाने के लिए ज्यादा रिस्क लेने के लिए ओर भी तत्पर हो रही थी.. मौसी को रसिक के साथ संभोग से जो आनंद मिल रहा था, जीवन का एक ऐसा नया अनुभव था.. जो आज तक उन्हें कभी नसीब नहीं हुआ था.. उसमें भी रसिक जिस तरह की कामुक बातें करते हुए उन्हें चोदता.. आहाहाहाहा.. उन्हें तो मज़ा ही आ जाता..!!
मौसी को धक्के लगाते हुए रसिक ने कहा "मौसी, मेरा तो मन कर रहा है की एक पूरा दिन आपकी टांगों के बीच ही बिताऊँ.. ये सारे झांटें साफ करके आपकी चूत की एकदम चिकनी चमेली बना दूँ.. और फिर चाटता रहूँ" ऐसी ऐसी बातें कर वो मौसी का मन लुभाता
चिमनलाल ने कभी ऐसा कुछ भी मौसी के साथ नहीं किया था.. करने की तो बात दूर.. कभी ऐसा कहा भी नहीं था.. चालीस सालों में मौसी ने कभी चिमनलाल को गाली देते हुए नहीं सुना था.. जब की रसिक तो खुलेआम भेनचोद-मादरचोद जैसे शब्द बोलता रहता.. उनकी उत्तेजना को बढ़ाने में रसिक की गालियां चाट-मसाले का काम करती.. रसिक ने उन्हें ऐसे अलग अलग तरीकों से मज़ा दिया था जो वो कभी भूलने नहीं वाली थी.. पसंद आ गया था रसिक उन्हें.. उसका मजबूत मोटा लंड.. उसका कसरती शरीर.. और उसकी चाटने की कला.. मौसी तो जैसे उसकी कायल हो चुकी थी
कहते है ना.. दिल लगा गधी से तो परी क्या चीज है.. !!
मौसी ने तय कर लिया था.. अब वो रसिक को किसी भी चीज के लिए मना नहीं करेगी..
कोई कुछ भी कहें.. सेक्स हमेशा से मानवजात के लिए रोमांच, उत्तेजना, आनंद और जीवन-मरण का विषय रहा है.. अच्छे से अच्छे लॉग.. कितने भी संस्कारी और खानदानी क्यों न हो.. इसके असर से बच नहीं पाए है.. ये स्प्रिंग तो ऐसी है जिसे जितना दबाओ उतना ही ज्यादा उछलती है.. सब से उत्तम रास्ता है की सेक्स को संतुलित मात्रा में भोगकर संतोष करना चाहिए.. "युक्तआहार विहारस्य" मतलब सब कुछ कंट्रोल में होना चाहिए.. और मर्यादा में.. सेक्स की भावनाओ को जितना साहजीकता से स्वीकार कर ले उतना वो काम परेशान करती है..
रसिक अपनी लीला करके मौसी को तृप्त करने के बाद.. दूध देकर चला गया उसके बाद मौसी को पता चला की कविता और पीयूष का प्रोग्राम तो केन्सल हो चुका है.. वो अपना सर पकड़कर बैठ गई.. इसका मतलब तो ये हुआ की अब कविता अगले रविवार को जाएगी.. !! फिर तो हमें प्रोग्राम इसी शनि-रवि को सेट करना होगा.. पर मैंने तो इस हफ्ते के लिए रसिक को पहले से मना कर रखा है.. अब क्या करूँ? रसिक को फोन करूँ?
मौसी ने रसिक को फोन लगाया और रसिक को प्रोग्राम चेंज करने के लिए कहा.. पर रसिक ने बताया की मौसी ने इस रविवार के लिए मना किया इसलिए उसने शहर से बाहर जाने का तय किया था.. अब तो इस शनि-रवि को उसका आना मुमकिन नहीं था.. !! मौसी निराश हो गई.. लाख मनाने पर भी रसिक नहीं माना.. रसिक ने कहा की वो सिर्फ आज का दिन शहर में था.. अगर शीला भाभी के घर कुछ सेट हो सके तो करें.. बाकी वो कल सुबह से बाहर निकल जाने वाला था..
मौसी का दिमाग काम नहीं कर रहा था.. इतनी अच्छी योजना पर पानी फिर गया था.. रसिक को बाद में फोन करने की बात कहकर वो शीला के घर से अपने घर चली गई.. जब वो घर के अंदर आई तब कविता किचन में खाना बना रही थी.. मौसी बाहर बरामदे में झूले पर बैठ गई.. वो झूला झूल रही थी तभी रसिक का फोन आया.. बाहर तेज धूप थी इसलिए स्क्रीन पर रसिक का नाम उन्हें दिखाई नहीं दिया.. उन्होंने सीधा फोन उठा लिया.. रसिक की आवाज सुनते ही उन्हों ने उसे होल्ड करने को कहा.. और उससे बात करने के लिए छत पर चली गई
किचन से कविता अपनी सास की सारी हरकतें देख रही थी.. अचानक ऐसा क्या हुआ जो वो झूले से उठकर छत पर चली गई? वो भी इस वक्त? जरूर रसिक का फोन होगा.. अब वो दोनों क्या खिचड़ी पका रहे है ये जानना बेहद आवश्यक था कविता के लिए.. क्यों की वो लॉग जो भी प्लान कर रहे थे वो उसके बारे में ही तो था
मौसी सीढ़ियाँ चढ़ते चढ़ते सोच रही थी.. चिमनलाल दुकान के काम से बाहर थे और कल आने वाले थे.. पीयूष भी सुबह बताकर गया था की आज उसे देर होगी ऑफिस में.. मौसी के मन मे खयाल आया की क्यों न यहीं घर पर ही प्लान को अंजाम दिया जाए.. !! उनके घर पर कोई नहीं होगा कविता के अलावा और शीला का घर भी खाली था.. आदिपुर जाकर जो करना था वो तो अब यहीं हो सकता था..
इस बारे में वो रसिक के साथ चर्चा करने लगी.. सीढ़ियों पर छुपकर खड़ी कविता अपनी सास की बातें सुनने का प्रयत्न कर रही थी.. ठीक से सुनाई नहीं दे रहा था पर इतना तो समझ गई की दोनों ने नए सिरे से कुछ योजना बनाई थी.. आखिर में उसने अनुमौसी को आइसक्रीम के बारे में बात करते हुए सुना.. कविता भी सोच में पड़ गई.. की वो किस बारे में बात कर रही थी और आइसक्रीम का जिक्र क्यों किया?? कहीं मम्मी जी ने मुझे फँसाने का प्लान तो नहीं बनाया?? इस वक्त तो शीला भाभी उसकी मदद के लिए नहीं थी.. और पीयूष भी आज देर रात तक या फिर कल सुबह तक नहीं आने वाला था.. कविता अब अकेली पड़ गई थी..
जैसे जैसे शाम ढलती गई.. कविता की घबराहट बढ़ती गई.. शाम का खाना भी उसने ठीक से नहीं खाया.. मौसी ने भी तबीयत का बहाना बनाकर ज्यादा नहीं खाया.. रात के आठ बजे थे और सास-बहु दोनों टीवी पर सीरीअल देख रही थी.. दोनों में से किसी का भी ध्यान टीवी में नहीं था..
घड़ी में नौ बजते ही.. मौसी अचानक उठी.. और घर के बाहर चली गई.. थोड़ी देर बाद जब वो वापिस लौटी तब उनके हाथ में आइसक्रीम के दो कप थे..
"मैंने कहा था ना तुझे की तबीयत ठीक नहीं है मेरी.. सुबह से ऐसीडीटी हो गई है.. छाती में जल रहा था मुझे.. तो बगल वाली दुकान से आइसक्रीम ले आई.. ले बेटा.. एक आइसक्रीम तू खा ले.. " कहते हुए मौसी ने एक कप कविता को थमाकर दूसरे कप से आइसक्रीम खाना शुरू कर दिया
आइसक्रीम को देखते ही कविता चौकन्नी हो गई.. कहीं ये दोनों मुझे आइसक्रीम में कुछ मिलाकर तो नहीं दे रहे? हे भगवान, अब.. !! मुझे बेहोश करके मेरे साथ कोई गंदी हरकत करने का तो नहीं सोचा होगा ना.. !! कविता पढ़ी लिखी और चालाक थी.. वो आइसक्रीम का कप लेकर किचन में गई.. और बर्तन माँजते हुए आइसक्रीम के कप को सिंक में खाली कर दिया.. बाहर आकर उसने ऐसा ही जताया की बर्तन माँजते माँजते उसने आइसक्रीम खा लिया था..
ये सुनते ही मौसी के चेहरे पर चमक आ गई.. सब कुछ उनके और रसिक के प्लान के मुताबिक चल रहा था.. उन्हों ने एक दो बार कविता को पूछा भी.. "बेटा, तुझे अगर नींद आ रही हो तो सो जा.. !!" अब कविता को यकीन हो गया.. मम्मी जी बार बार उसे सो जाने के लिए क्यों कह रही थी.. उसे विचार आया.. की झूठ मूठ सो जाती हूँ.. फिर देखती हूँ की क्या होता है!!
कविता बेडरूम में सोने के लिए गई तो मौसी भी उसके पीछे पीछे चली आई.. "मुझे भी नींद आ रही है.. आज तू अकेली है तो मैं भी तेरे साथ सो जाती हूँ.. " उन्हें मना करने का कविता के पास कोई कारण नहीं था..
सास और बहु एक ही बिस्तर पर लेटे हुए बातें करने लगे..
मौसी: "कविता बेटा.. अब पीयूष और तेरे बीच कोई तकलीफ तो नहीं है ना.. !! सब ठीक चल रहा है?"
कविता: "हाँ मम्मी जी.. सब ठीक चल रहा है.. वो तो हमारे बीच थोड़ी गलतफहमी थी जो दूर हो गई.. अब कोई प्रॉब्लेम नहीं है"
अनुमौसी: "चलो अच्छा हुआ.. अब तो यही आशा है की जल्दी से तेरी गोद भर जाएँ.. और हमें खेलने के लिए एक खिलौना मिल जाएँ.. बूढ़े माँ बाप को और क्या चाहिए.. !!"
सुनकर कविता शरमा गई.. मम्मी जी की बात तो सही थी पर अभी इस बारे में उसने या पीयूष ने सोचा नहीं था..
थोड़ी देर तक यहाँ वहाँ की बातें कर कविता ऐसे अभिनय करने लगी जैसे वो सो रही हो.. उसने अनुमौसी की बातों का जवाब देना ही बंद कर दिया ताकि उन्हें यकीन हो जाए की वो गहरी नींद सो गई थी..
कविता को सोता हुआ देख मौसी का चेहरा आनंद से खिल उठा.. तसल्ली करने के लिए उसने दो-तीन बार कविता को कुछ पूछा पर कविता ने जवाब नहीं दिया.. एक बार उसे कंधे से हिलाकर भी देखा पर कविता ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.. वो सोने का नाटक करती रही
मौसी बिस्तर से उठी और चुपके से दरवाजा खोलकर बाहर निकली.. वो घर के बाहर बरामदे में जाकर फोन पर बात करने लगी.. उनके पीछे पीछे कविता भी गई और चुपके से उनकी बातें सुनने लगी..
"हाँ.. सब हो चुका है प्लान के मुताबिक.. मैंने दरवाजा खुला ही छोड़ रखा है.. अब तू आजा.. !! आइसक्रीम खाते ही वो सो गई.. तू आकर अपना काम कर ले और जल्दी निकल जाना.. वैसे कविता कब तक बेहोश रहेगी??" सुनकर कांप उठी कविता.. !! अब क्या होगा?? उसका दिल किया की घर से भाग जाएँ.. !! पर इतनी रात को वो जाए तो जाए कहाँ.. अब रसिक के हाथों से उसे कोई बचाने वाला नहीं था..
कविता चुपचाप बेड पर आकर सो गई.. और मौसी के आने से पहले खर्राटे मरने लगी.. मौसी ने आकर कविता को एक बार फिर जगाने की कोशिश की.. पर अब वो कहाँ जागने वाली थी?? उसने तो अपना अभिनय जारी रखा
कविता को बेहोश देखकर मौसी के चेहरे पर कामुक मुस्कान आ गई.. मौसी ने अपनी साड़ी उतार दी.. कविता ने हल्के से आँख खोलकर उन्हें देखा.. लटका हुआ बेढंग पेट.. और घाघरे के अंदर लटक रहे बूढ़े कूल्हें.. ब्लाउस और घाघरे में तो कविता ने मौसी को काफी बार देखा था.. पर जैसे ही मौसी ने अपने ब्लाउस के सारे हुक खोल दीये.. उनके बिना ब्रा के निराधार स्तन लटकने लगे.. देखकर कविता शरमा गई.. कविता सोच रही थी की मम्मी जी घाघरा ना उतारें तो अच्छा वरना मैं सच में बेहोश हो जाऊँगी..!!
अचानक घर का दरवाजा बंद होने की आवाज आई.. कविता के दिल की धड़कनें तेज हो गई.. उसने अपनी आँखें बंद कर ली.. पर आँख बंद कर लेने से वास्तविकता से वो कहाँ बचने वाली थी?? रसिक कमरे मे आया और मौसी के साथ बात करने लगा
"सब कुछ ठीक ठाक है ना मौसी? कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं है ना??"
"हाँ हाँ सब ठीक है.. तू खुद चेक कर ले.. बेहोश पड़ी हुई है.. "
रसिक ने कविता की ओर देखा और उसके कोमल गोरे गालों को सहलाने लगा.. रसिक के स्पर्श से कविता सहम गई.. खुरदरी उंगलियों की रगड़ उसे बेहद घिनौनी लग रही थी..
अपनी मर्जी से किसी भी पुरुष के साथ.. फिर चाहे वो उसका पति ना भी हो.. औरत निःसंकोच पैर चौड़े कर सकती है.. पर उसकी मर्जी के खिलाफ अगर कोई उसे छु भी ले तो वो बर्दाश्त नहीं करती..
"आह्ह मौसी.. कितनी नाजुक और कोमल है आपकी बहु रानी.. !! गोरी गोरी.. अब तो अगर ये होश में आ भी गई तो भी मैं इसे नहीं छोड़ूँगा.. कितने दिनों से इसे देखकर तड़प रहा हूँ"
रसिक के लंड की हालत देखकर मौसी समझ गई की कविता के कमसिन जवान बदन का जादू उस पर छाने लगा था.. वरना मौसी को नंगा देखने के बावजूद भी इतना कडा कभी नहीं हुआ था रसिक का..
"जल्दबाजी मत करना रसिक.. कुछ ऊपर नीचे हो गया तो तेरे हाथ कुछ नहीं लगेगा..और मेरी भी इज्जत की धज्जियां उड़ जाएगी "
"अरे मौसी.. ऐसे छातियाँ खोलकर रात को दस बजे अपने बेटे की जोरू को.. मुझ जैसे गंवार के लिए तैयार रखे हुए हो.. और इज्जत की बात कर रही हो??" कहते हुए रसिक ने हँसते हँसते अनुमौसी को सुना दी..
अपना लंड खोलकर मौसी को थमाते हुए रसिक बोला "ये लीजिए मौसी.. जितना दिल करे खेल लीजिए आज तो.. तब तक मैं आपकी बहु को आराम से.. अपने तरीके से देख लूँ"
रसिक ने झुककर कविता के गालों को चूम लिया.. कविता का दिल धक धक कर रहा था..
रसिक का लंड मुठ्ठी में दबाकर आगे पीछे हिलाते हुए वासना में अंध सास ने अपनी जवान बहु को इस कसाई के हाथों बलि चढ़ा दिया था..
कविता मन ही मन प्रार्थना कर रही थी की ये समय जल्दी से जल्दी बीत जाए.. पर समय तो अपनी गति से ही चलने वाला था..
करवट लेकर सोई कविता को रसिक ने पकड़कर सीधा कर दिया.. सब से पहले तो उसने ड्रेस के ऊपर से ही कविता के बबलों को पकड़कर मसल दिया.. रसिक के विकराल हाथों तले कविता की चूचियाँ ऐसे दबी जैसे हाथी के पैरों तले गुलाब के फूल दब गए हो.. और स्तन होते भी बड़े नाजुक है..
कविता के सुंदर स्तनों का स्पर्श होते ही रसिक का लंड डंडे जैसा सख्त हो गया..
"हाय.. कितना कडक हो गया है तेरा आज तो.. डाल दे मेरे अंदर.. तो थोड़ा सा नरम हो जाएँ.. वरना ये तेरी नसें फट जाएगी" पर रसिक को आज अनुमौसी में कोई दिलचस्पी नहीं थी.. जब इंग्लिश शराब सामने पड़ी हो तब भला देसी ठर्रा कौन पिएगा?? एकटक वो कविता की छातियों को साँसों के साथ ऊपर नीचे होते हुए देखता रहा.. कभी वो अपनी पूरी हथेली से स्तनों को नापता.. तो कभी उसकी गोलाइयों पर हाथ फेरता.. रसिक जैसे कविता के जिस्म के जादू में खो सा गया था..
आँखें बंद कर पड़ी हुई कविता प्रार्थना कर रही थी की कोई मुझे बचा लो.. !!
अनुमौसी को तो रसिक का लंड मिल गया.. इसलिए उनका सारा ध्यान उससे खेलने में ही था.. उन्हें कोई परवाह नहीं थी की रसिक कविता के साथ क्या कर रहा था.. कभी वो अपनी निप्पलों से लंड को रगड़ती.. कभी चमड़ी को पीछे धकेलकर उसके टमाटर जैसे सुपाड़े को चूम लेती.. तो कभी उसके अंडकोशों को सहलाती.. जैसे जैसे वो लंड के साथ खेलती गई.. वैसे वैसे उत्तेजना के कारण उनकी सांसें और भारी होती गई..
रसिक ने कविता की छाती से दुपट्टा हटा दिया.. "आहहाहाहाहा.. " उसका दिल बाग बाग हो गया.. रोज सुबह.. जिन स्तनों को नाइट ड्रेस के पीछे छुपा हुआ देखकर आहें भरता था.. आज वही स्तन उसके सामने थे.. नजदीक से तो और सुंदर लग रहे थे.. वो जल्दबाजी करना नहीं चाहता था.. आराम से इन सुंदर स्तनों का लुत्फ उठाना चाहता था..
कविता सोच रही थी की अगर मैं होश में होती तो मजाल थी रसिक की जो मेरे सामने आँख उठाकर भी देखता.. !! ये तो मेरे घर के बुजुर्ग ने ही मेरी इज्जत नीलाम कर दी.. अपनी सास को मन ही मन कोसने लगी वो.. घर को लगा दी आग.. घर के ही चिरागों ने.. !!
ड्रेस का पहला हुक खुलते ही कविता रोने जैसी हो गई.. मौसी ने लाइट भी चालू रखी थी.. क्यों की रसिक ने ऐसा करने को कहा था.. वैसे मौसी तो लाइट को बंद करना चाहती थी पर रसिक तो उजाले में ही कविता के स्तनों के जलवे देखना चाहता था.. हमेशा देहाती बबलों से ही खेलता रहा रसिक.. आज शहरी मॉडर्न स्तनों को खोलकर देखने वाला था..
कविता ने बिल्कुल हल्की सी आँख खोल रखी थी.. उसे सिर्फ दो साये नजर आए.. मौसी घुटनों के बल बैठी हुई थी और रसिक का लंड निगल चुकी थी.. उसे रसिक का लंड देखना था पर वो तो अभी उसकी सास के मुंह के अंदर था.. !! बड़े ही मजे से अनुमौसी रसिक का लंड चूस रही थी.. कविता की तरफ अब रसिक की पीठ थी.. जो पसीने से तर हो चुकी थी.. कविता सोच रही थी की ज्यादा गर्मी तो थी नहीं तो फिर रसिक को इतना पसीना क्यों आ रहा था??
"रसिक, तू सारे कपड़े उतार दे.. तुझे नंगा देखना चाहती हूँ" रसिक का लंड मुंह से निकालकर मौसी ने कहा
"आप भी अपना घाघरा उतार दीजिए मौसी.. दोनों नंगे हो जाते है.. " रसिक ने फटाफट अपने कपड़े उतार फेंके.. दोनों जांघों के बीच झूल रहे उस शानदार लंड को और उसके तगड़े सुपाड़े को देखकर मौसी की सिसकियाँ निकलने लगी.. "कितना बड़ा है रे तेरा!! रूखी भी पागल है.. इतना मस्त लोडा छोड़कर दूसरों के लेने जाती है.. !!"
"मौसी, मैं कविता को भी नंगी देखना चाहता हूँ.. कुछ कीजिए ना.. " मौसी को आगोश में दबाते हुए उसका लंड भोसड़े पर रगड़ते हुए रसिक ने कहा.. उसके स्पर्श से मौसी की वासना चौगुनी हो गई.. रसिक की पीठ पर हाथ फेरते हुए.. उसके कंधों पर लगे पसीने को चाटकर.. अपने भोसड़े के द्वार पर दस्तक देते गरम लंड को घिसते हुए.. कुछ कहा नहीं.. वो सोच रही थी.. बेहोशी की इस हालत में कविता को नंगी कैसे कर दूँ?? अगर उसे होश आ गया तो?? शायद दवाई के असर के कारण वो होश में न भी आए.. पर अपने बेटे की पत्नी को अपनी नजरों के सामने नंगा होते देखूँ?? कविता ने मेरे सामने कभी अपनी छाती से पल्लू भी नहीं हटने दिया.. खैर.. अभी तो वो बेहोश है.. उसे कहाँ पता चलेगा की मैं ही उसके साथ ये सब कर रही हूँ.. !! आज बढ़िया मौका मिला है.. रसिक को हमेशा के लिए अपना बनाने का.. रसिक को बेहोश कविता के साथ जो मर्जी कर लेने देती हूँ.. इतना साहस करते हुए यहाँ तक आ ही गए है.. तो ये भी हो जाने देती हूँ.. किसी को कहाँ कुछ पता चलने वाला है.. !!
मौसी ने रसिक को इस तरह खड़ा कर दिया की उसका लंड बिल्कुल कविता के मुंह के सामने आ गया.. बस एक फुट का अंतर होगा.. हल्की सी आँख खोलकर ये सब चुपके से देख रही कविता की आँख थोड़ी सी ज्यादा खुल गई.. और रसिक के खूंखार लंड को एकदम निकट से देख सकी.. ये एक ऐसा नजारा था जो कविता देखना तो नहीं चाहती थी.. पर एक बार रसिक के तगड़े लंड को देखकर नजरें हटाना मुश्किल था.. इतना विकराल और मोटा लंड था.. पीयूष का लंड तो उसके आगे बाँसुरी बराबर था.. कविता सोच रही थी की ऐसा लंड जब अंदर जाएगा तो क्या हाल होता होगा.. !! अनुमौसी ने पकड़कर रसिक के लंड को नीचे की तरफ दबाया तो वो वापिस स्प्रिंग की तरह उछलकर ऊपर आ गया.. देखते ही कविता के जिस्म में एक मीठी से सुरसुरी चलने लगी..
मौसी ने फिर से रसिक के सुपाड़े को चूम लिया.. "ओह रसिक.. बड़ा जालिम है तेरा ये मूसल.. आह्ह" कहते हुए वो पूरे लंड को चाटने लगी.. रसिक का लंड अब मौसी की लार से सन चुका था.. गीला होकर वो काले नाग जैसा दिख रहा था.. पूरा दिन भजन गाती रहती अपनी सास को.. इस देहाती गंवार का लंड बेशर्मी से चाटते हुए देखकर कविता को कुछ कुछ होने लगा.. अपनी सासुमाँ का नया स्वरूप देखने मिला उसे.. बेशर्म और विकृत.. !!
कविता को पसीने छूटने लगे.. सासुमाँ की लार से सना हुआ रसिक का लंड.. ट्यूबलाइट की रोशनी में चमक रहा था.. कविता की कलाई से भी मोटा लंड जब अनुमौसी ने मुंह में लिया तब ये देखकर कविता की चूत पसीज गई.. पेन्टी का जो हिस्सा उसकी चूत की लकीर से चिपका हुआ था.. वो चिपचिपा और गीला हो गया.. उत्तेजना किसी की ग़ुलाम नहीं होती..
एक के बाद एक कविता के ड्रेस के हुक खोलने कलगा रसिक.. उस दौरान मौसी पागलों की तरह रसिक के सोंटे को चूस रही थी.. ड्रेस खुलते ही अंदर से सफेद जाली वाली ब्रा.. और बीचोंबीच नजर आती गुलाबी निप्पल.. देखते ही रसिक के लंड ने मौसी के मुंह में वीर्य की पिचकारी छोड़ दी.. मौसी को ताज्जुब हुआ.. खाँसते हुए उन्हों ने लंड मुंह से बाहर निकाला.. मौसी को खाँसता हुआ सुनकर कविता समझ गई की क्या हो गया था.. !!
मुंह में पिचकारी मारने की पुरुषों की आदत से कविता को सख्त नफरत थी.. जब कभी पीयूष ने ऐसा किया तब कविता उसे धमका देती.. ब्लू फिल्मों में देखकर जब पीयूष वहीं हरकत कविता के साथ करने की जिद करता तब वो साफ मना कर देती और कहती "तेरा लंड अगर इस ब्लू फिल्म के अंग्रेज की तरह गोरा-गुलाबी होता तो शायद मैं मान भी जाती.. ऐसे काले लंड को चूस लेती हूँ..वही बहोत है.. "
अनुमौसी का भोसड़ा भूख से तड़प रहा था.. और रसिक की पिचकारी निकल गई.. पर अभी उस पर गुस्सा करने का वक्त नहीं था.. मुंह फेरकर उन्होंने पास पड़े कविता के दुपट्टे से रसिक का वीर्य पोंछ दिया और अपनी भोस खुजाते हुए रसिक के लोड़े को प्यार करने लगी.. अभी तक स्खलन के नशे से रसिक का लंड उभरा नहीं था.. रह रहकर डिस्चार्ज के झटके खा रहा था..
मौसी इतनी गरम हो चुकी थी की उनका ध्यान केवल रसिक के लोड़े को फिर से जागृत करने में लग गया था.. रसिक कविता के बदन में ऐसा खो चुका था के आसपास के वातावरण को भूलकर.. सफेद रंग की ब्रा के ऊपर से कविता के अमरूद जैसे स्तनों को अपने खुरदरे हाथों से मसल रहा था.. उसके स्तनों की साइज़ और सख्ती देखकर रसिक सांड की तरह गुर्राने लगा.. अभी डिस्चार्ज होने के बावजूद वो उत्तेजित हो गया..
थोड़ी सी आँख खोलकर कविता, सासुमाँ और रसिक की कामुक हरकतों को देख रही थी.. इसका पता न मौसी को था और न ही रसिक को.. मौसी का सारा ध्यान रसिक के लंड पर था और रसिक का सारा ध्यान कविता की चूचियों पर.. रसिक अब कविता की चिकनी कमर.. हंस जैसी गर्दन और गोरे चमकीले गालों पर चूम रहा था.. कविता की नाभि में बार बार अपनी जीभ घुसेड़ रहा था.. इन चुंबनों से और पूरे बदन पर स्पर्श से कविता उत्तेजित हो रही थी.. चूत से तरल पदार्थ की धाराएं निकल रही थी.. रसिक के आगे पीछे हिलने के कारण.. एक दो बार उसका लंड कविता का स्पर्श कर गया और उस स्पर्श ने उसे झकझोर कर रख दिया..
"मुझे बाथरूम जाना है.. मैं अभी आई.. ध्यान रखना रसिक.. कहीं इसे होश न आ जाए" कहते हुए मौसी कविता के बेडरूम में बने अटैच टॉइलेट में घुस गई.. रसिक ने अब कविता की कमर उचककर उसकी सलवार उतार दी.. पेन्टी के ऊपर से स्पष्ट दिख रही चूत की लकीर को हल्के से छूने लगा.. यह पल रसिक के लिए अविस्मरणीय थी.. नाजुक सुंदर कविता.. पतली कमर और सख्त रसीले स्तनों वाली.. जिसे देखना भी रसिक के लिए भाग्य की बात थी.. पर आज तो वो उसकी चूत तक पहुँच गया था.. इस निजी अवयव पर रसिक हाथ फेरकर रगड़ता रहा..
बिना झांट की टाइट गोरी सुंदर चूत को देखकर रसिक को मौसी के झांटेंदार भोसड़े पर हंसी आ गई.. मौसी भी जवान रही होगी तब उनकी भी चूत ऐसी ही चिकनी होगी.. पर अब ये ऐसी क्यों हो गई?? आकर भी बदल गई.. चौड़ाई भी बढ़ गई.. और स्वच्छता के नाम पर शून्य.. अपने पति को जिस हिसाब से वो कोसती है.. लगता नहीं था की उन्होंने मौसी के भोसड़े का ये हाल किया होगा.. या हो सकता है की मुझ से पहले.. मौसी का खेत कोई ओर जोत चुका हो.. !! क्या पता.. !!
कविता की पेन्टी को एक तरफ करते हुए वो चूत के दर्शन कर धन्य हो गया.. कविता की हालत खराब हो रही थी.. वह उत्तेजित थी और कुछ कर भी नहीं पा रही थी.. उसकी चूत से खेल रहे रसिक का लंड उसे साफ नजर आ रहा था.. उसका कद और मोटाई देखकर उसे हैरत हो रही थी..
तभी अनुमौसी बाथरूम से निकले.. रसिक उनकी बहु के नंगे शरीर से जिस तरह खिलवाड़ कर रहा था वो उन्हों ने एक नजर देखा.. उनके चेहरे पर हवस का खुमार छा चुका था..क्यों की अब तक वो संतुष्ट नहीं हो पाई थी.. कविता की चूत पर हाथ सहला रहे रसिक का हाथ हटाकर उन्होंने अपनी भोस पर रख दिया.. रसिक ने तुरंत तीन उँगलियाँ उनकी गुफा में डाल दी.. रसिक की खुरदरी उंगलियों का घर्षण महसूस होते हुए मौसी के मुंह से "आह्ह" निकल गई.. रसिक के उंगलियों में.. चिमनलाल के लंड से सौ गुना ज्यादा मज़ा आ रहा था.. मौसी के ढीले भोसड़े को अपनी उंगलियों से पूरा भर दिया रसिक ने.. अब मौसी खुद ही कमर हिलाते हुए रसिक की उंगलियों को चोदने लगी..
रसिक के लंड को डिस्चार्ज हुए बीस मिनट का समय हो चुका था.. और अब वो नए सिरे से उत्तेजित होकर झूम रहा था.. इस बार तो वो पहले से ज्यादा कडक हो गया था.. और अब तो उसे जल्दी झड़ने का डर भी नहीं था क्योंकि थोड़ी देर पहले ही डिस्चार्ज हुआ था.. कविता के नंगे जिस्म का आनंद वो बड़े आराम से लेना चाहता था.. उसकी पेन्टी को घुटनों तक सरकाकर वो एकटक उसके संगेमरमरी बदन को देख रहा था.. गोरी चिकनी मस्त जांघें.. और बीच में गुलाबी चूत.. रसिक सोच रहा था की क्या सारी शहरी लड़कियां अंदर से ऐसी ही गोरी और नाजुक होगी?? क्या उनके स्तन भी कविता की तरह सख्त और टाइट होंगे?
उसकी जांघों को सहलाते हुए रसिक के लंड ने झटका खाया.. कविता अधखुली आँख से एकटक रसिक के लोड़े को देख रही थी.. वो उत्तेजित होने के बावजूद कुछ कर नहीं सकती थी.. उसमे भी जब रसिक के भूखे होंठों का कविता की चूत की लकीर से मिलन हुआ तब कविता ने बड़ी मुसीबत से अपने शरीर को स्थिर रखा.. ऐसा महसूस हो रहा था जैसे एक साथ हजारों चींटियाँ उसकी चूत में रेंगने लगी हो.. वो बेहद उत्तेजित हो गई..
पर ऐसा भी नहीं था की रसिक के चाटने से उसे मज़ा आ रहा था.. रसिक के करीब होने से भी उसे घिन आ रही थी.. पर वो क्या करती? एक तरफ उसका तंदूरस्त लंड झूल रहा था जो किसी भी स्त्री को ललचा दे.. खास कर उसका कद और मोटाई.. उस लंड को देखकर उसे डर तो लग ही रहा था पर अपनी सास का उसके प्रति आकर्षण देखकर उसे यकीन हो गया था की एक मादा को जो कुछ भी चाहिए.. वो सब कुछ था उस लंड में..
रसिक का हाथ कविता के कूल्हों तक पहुँच गया.. मजबूती से रसिक ने नीचे से कूल्हों को पकड़कर कविता की कमर को ऊपर की तरफ उठा लिया.. ऊपर उठते ही कविता की चूत फैल गई.. और अंदर का लाल गुलाबी हिस्सा दिखाई देने लगा.. रसिक ने झुककर अपना चेहरे से चूत का स्पर्श किया.. कामरस से लथबथ कविता की चूत ऐसे रस रही थी जैसे पके हुए आम को काटने पर रस टपकता है.. गुलाबी बिना झांटों वाली चूत.. एकदम टाइट.. गोरी और चिकनी.. ऊपर नजर आ रहा गुलाबी सा दाना.. और बीच में लसलसित लकीर.. देखकर ही रसिक अपने आप को रोक न पाया और उसने हल्के से चूत को काट लिया.. दर्द के कारण कविता सहम गई पर बेचारी कोई प्रतिक्रिया न दे पाई.. रसिक कविता की चूत की फाँकें चाटता रहा और कविता पानी बहाती रही..
देखते ही देखते कविता झड़ गई.. उसकी चूत खाली हो गई.. शरीर अकड़ कर ढीला हो गया..
मौसी को अपनी उंगलियों से ही स्खलित कर दिया रसिक ने.. वो जानता था की एक बार तो उसका लंड स्खलित हो चुका था.. दूसरी बार अगर वो मौसी को ठंडा करने में झड़ गया तो तीसरी बार तुरंत लंड खड़ा होना मुश्किल था.. और उतना समय भी नहीं था.. इस बार की उत्तेजना उसने कविता को चोदने के लिए आरक्षित रखी हुई थी.. उसकी उंगलियों ने मौसी का पानी निकाल दिया था इसलिए मौसी शांत थी..
अब रसिक कविता की जांघें फैलाकर बीच में बैठ गया.. उसकी इस हरकत से कविता इतनी डर गई की पूछो मत.. ऊपर से जब मौसी ने कहा "थोड़ा तेल लगा दे.. ऐसे सूखा तो अंदर नहीं जाएगा" तब कविता को यकीन हो गया की उसे अब कोई नहीं बचा सकता.. कविता विरोध करना चाहती तो भी रसिक अब ऐसे पड़ाव पर पहुँच चुका था की उसे चोदे बगैर छोड़ता नहीं ये कविता को भी पता था.. कविता जैसी फूल से लड़की.. रसिक के सांड जैसे शरीर से रौंदे जाने वाली थी..
अपनी चूत पर गरम अंगारे जैसा स्पर्श महसूस होते ही कविता समझ गई की रसिक का सुपाड़ा उसकी छोटी सी चूत पर दस्तक दे रहा था.. चूत के वर्टिकल होंठों को टाइट करते हुए कविता अपनी बर्बादी के लिए तैयार हो रही थी तभी..
तभी.. किसी ने दरवाजा खटखटाया.. रात के साढ़े ग्यारह बजे कौन होगा?? मौसी और रसिक दोनों ही डर गए.. रसिक भी कविता की जांघों के बीच से खड़ा हो गया.. उसका खतरनाक लंड चूत के सामने से हटा लिया.. कविता को ऐसा लगा.. मानों किसी देवदूत ने आकर उसकी इज्जत बचा ली हो..
अनुमौसी ने अपने भोसडे की आग को रसिक के तगडे और लंबे लंड से शांत करने के चक्कर में रसिक के अनुरोध पर अपनी बहू कविता को उससे चुदवाने के लिये अपने घर बुला ली और फिर खेल शुरु भी हो गया लेकीन भला हो उस दरवाजा खटखटाने वाले का वरना रसिक के लंड से कविता की कोमल चुद का पुरा भोसडा बन जाता
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा