• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

sunoanuj

Well-Known Member
3,227
8,563
159
बहुत ही कामुक अपडेट !
 
Last edited:

pussylover1

Milf lover.
1,139
1,504
143
Bahut badhiya
अपनी चूत पर गरम अंगारे जैसा स्पर्श महसूस होते ही कविता समझ गई की रसिक का सुपाड़ा उसकी छोटी सी चूत पर दस्तक दे रहा था.. चूत के वर्टिकल होंठों को टाइट करते हुए कविता अपनी बर्बादी के लिए तैयार हो रही थी तभी..

तभी.. किसी ने दरवाजा खटखटाया.. रात के साढ़े ग्यारह बजे कौन होगा?? मौसी और रसिक दोनों ही डर गए.. रसिक भी कविता की जांघों के बीच से खड़ा हो गया.. उसका खतरनाक लंड चूत के सामने से हटा लिया.. कविता को ऐसा लगा.. मानों किसी देवदूत ने आकर उसकी इज्जत बचा ली हो..

छलांग मारकर रसिक ने अपने कपड़े उठाए और जल्दी जल्दी पहन लिए.. एक पल पहले उसका थिरक रहा लंड अभी एकदम नरम हो गया था.. अनुमौसी और रसिक दोनों ही सकते में थे.. कविता के दिल को थोड़ा सा चैन मिला पर अभी भी उसे पक्का यकीन नहीं था की वो बच गई थी या नहीं..

"कौन होगा मौसी?" रसिक ने घबराते हुए कहा.. थरथर कांप रही मौसी के गले से आवाज ही नहीं निकली

"क्या पता.. रसिक!! अब इसका क्या करें? इसे कपड़े कैसे पहनाएंगे इतनी जल्दी? मैं मना कर रही थी इसे पूरा नंगा मत कर.. तुझे बड़ा शौक था इसे नंगी करने का.. !!"

"अरे मौसी.. अभी ये सब बातों का वक्त नहीं है.. पहले ये सोचो को कविता को छुपाएंगे कैसे?" रसिक के ये कहते ही मौसी ने एक चादर डाल दी कविता के नंगे जिस्म पर

कविता को अब चैन मिला था.. अधखुली आँखों से वो घबराए हुए रसिक और सासुमाँ को देखकर खुश हो रही थी.. मौसी की उत्तेजना और रसिक के लंड की सख्ती.. कब की गायब हो चुकी थी.. डर और सेक्स एक साथ होना असंभव सा है.. इस वक्त कौन होगा दरवाजे पर? पीयूष तो सुबह के तीन बजे से पहले नहीं आने वाला था और चिमनलाल को आने में और एक दिन का वक्त था.. कहीं कोई चोर या लुटेरा तो नहीं होगा.. !! पर चोर थोड़े ही दरवाजा खटखटाकर आएगा??

"मौसी, आप दरवाजा खोलिए.. फिर जो भी हो देख लेंगे" रसिक बहोत डरा हुआ था.. उसे डरा हुआ देखकर मौसी की भी फट गई..

"रसिक, तू खटिया की नीचे छुप जा.. यहाँ कोई नहीं आएगा.. " फटाफट कपड़े पहनकर उन्हों ने दरवाजा खोला

दरवाजे खुलते ही उसने देखा.. सामने शीला, मदन और वैशाली खड़े थे.. वैशाली तो मौसी को देखते ही उनके गले लग गई और रोने लगी.. उत्तेजना से अचानक उदासी के भाव धारण करना मौसी के लिए थोड़ा सा कठिन था.. पूरा माहोल ही बदल चुका था.. अंदर बिस्तर पर चादर ओढ़े लेटी कविता को.. शीला भाभी और वैशाली की आवाज सुनकर इतनी खुशी हो रही थी.. शीला भाभी ने आज मेरी लाज बचा ली.. वो चाहकर भी उठ न पाई क्योंकि उसके बिस्तर के नीचे ही रसिक छुपा हुआ था

तीनों मौसी के घर अंदर आकर सोफ़े पर बैठ गए.. मौसी जबरदस्त टेंशन में थी.. अब ये लोग कब उठेंगे क्या पता? इनके जाने से पहले रसिक को भी बाहर निकालना मुमकिन नहीं था.. उससे पहले कहीं उसे होश आ गया और अपने आप को नंगा देख लिया तो??? वो जरूर चिल्लाएगी.. मदन को पता चल गया तो? शीला को तो चलो वो समझा देगी.. पर मदन और वैशाली को क्या बताती??

रो रही वैशाली को देखकर मौसी को भी बहोत दुख हुआ.. पर वो फिलहाल अपना दुख व्यक्त करने की स्थिति में न थी.. उनका सम्पूर्ण ध्यान कविता के बेडरूम पर ही था.. शीला ने संक्षिप्त में कलकत्ता में घटी घटनाओं के बारे में बताया.. और फिर खड़े होते हुए बोली

"ठीक है मौसी.. चलते है.. फिर आराम से बात करेंगे.. ये तो चाबी लेनी थी इसलिए आपको जगाया.. हम भी थके हुए है.. घर जाकर सो जाएंगे.. फिर कल मिलकर आराम से बात करेंगे.. !!"

मौसी ने औपचारिकता दर्शाते हुए कहा "अरे शीला.. तुम लोग बैठो.. मैं चाय बनाती हूँ.. "

"कविता कहाँ है, मौसी?" वैशाली की आँखें अपनी सहेली को ढूंढ रही थी

घबराते हुए मौसी ने कहा "उसकी तबीयत ठीक नहीं है.. इसलिए आज जल्दी सो गई.. अपने कमरे में सो रही है.. " बात चल रही थी तभी कांच टूटने की आवाज आई.. सब के कान खड़े हो गए..

"लगता है बाहर से आवाज आई" मौसी ने सबका ध्यान भटकाने के इरादे से कहा

अनुमौसी, मदन और शीला के साथ बातों में व्यस्त थी तब वैशाली कब उठकर कविता के कमरे के तरफ चली गई.. मौसी को पता भी नहीं चला.. वैशाली को कविता के बेडरूम से बाहर निकलते हुए देख मौसी को डर के कारण चक्कर आने लगी.. मर गए.. !! वैशाली ने देख लिया सब.. अब क्या होगा?? मौसी बेचैन हो रही थी.. वैशाली से नजरें नहीं मिला पा रही थी.. पर वैशाली ने कुछ कहा नहीं..

शीला, मदन और वैशाली चले गए और दरवाजा लॉक करते हुए मौसी कविता के बेडरूम की ओर भागी.. उनके आश्चर्य के बीच देखा.. कविता आँखें मलते हुए अपने बालों में क्लिप लगा रही थी.. और सुस्ती भारी आवाज में बोली "क्या हुआ मम्मी जी, आप अब तक जाग रहे हो? कोई आया था क्या हमारे घर? मैंने आवाज सुनी इसलिए जाग गई.. पता नहीं आज इतनी नींद क्यों आ रही है मुझे.. मम्मी जी, आपको भी आइसक्रीम खाने के बाद ऐसा कुछ महसूस हुआ था क्या?"

"नहीं बेटा.. मैं तो कब से जाग रही हूँ.. मुझे तो ऐसा कुछ नहीं हुआ.. तू शायद पूरे दिन काम करके थक गई होगी इसलिए नींद आ रही होगी.. कोई बात नहीं.. वैशाली, शीला और मदन आए थे.. वो कलकत्ता से वापिस आ गए.. घर की चाबी लेने आए थे.. " मौसी की नजर बार बार कविता के दुपट्टे पर जा रही थी.. जिस पर वीर्य के धब्बे लगे हुए थे.. उन्हों ने ही रसिक का वीर्य दुपट्टे से पोंछा था..

"आप सो जाइए मम्मी जी.. मैं बाथरूम जाकर आती हूँ" कविता बाथरूम में घुसी और मौसी ने मुड़कर बेड के नीचे देखा.. पर रसिक वहाँ नहीं था.. गया कहाँ वो कमीना?? कहीं बाथरूम में तो नहीं छुपा होगा? बाप रे.. तब तो कविता को जरूर पता चल जाएगा.. !!

तभी कविता बाथरूम से निकलते हुए बोली "अरे मम्मी जी.. बाथरूम की खिड़की का कांच किसने तोड़ा?? लगता है बिल्ली ने तोड़ा होगा.. कांच के टुकड़े पड़े है बाथरूम में.. " सुनकर मौसी के दिल को चैन मिला.. जरूर रसिक कांच तोड़कर भाग गया होगा..

"बेटा कांच टूटना तो अच्छा शगुन माना जाता है.. तू चिंता मत कर और आराम से सो जा.. " कहते हुए मौसी अपने कमरे में चली गई और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया.. कविता का ओर सामना करने की उनमें हिम्मत नहीं थी..रह रहकर एक ही सवाल उन्हें परेशान कर रहा था की कविता को कपड़े किसने पहनाये ?? क्या वैशाली ने पहनाए होंगे? वैशाली ने कमरे में कविता को नंगी पड़ी देखकर क्या सोचा होगा? या फिर शायद रसिक ने जाने से पहले कपड़े पहना दीये हो? रसिक को कांच तोड़ते हुए या फिर भागते हुए कविता ने देख तो नहीं लिया होगा?

ढेर सारे सवाल थे और जवाब एक भी नहीं था.. मौसी अपना सर पकड़कर सो गई..

इस तरफ कविता शीला भाभी के लिए मन से आभार प्रकाट कर रही थी.. सोच रही थी की आज तो उनके कारण इज्जत बच गई.. वरना आज तो रसिक का गधे जैसा लंड उसकी कोमल चूत के परखच्चे उड़ा ही देता.. कविता को उतना तो पता था की रसिक ने अपना सुपाड़ा चूत के अंदर डाल दिया था जब दरवाजे पर दस्तक सुनाई दी थी.. वो याद आते ही वह अपनी चूत पर हाथ फेरकर मुआयना करने लगी.. कहीं कोई नुकसान तो नहीं हुआ था.. !! हाथ फेरकर उसने तसल्ली कर ली.. सब कुछ ठीक था.. शरीर को तो नुकसान नहीं हुआ था.. पर उसका मन घायल हो चुका था उसका क्या?? अपनी चूत को सहलाते हुए वो सो गई.. और दूसरे दिन काफी देर से जागी.. जब वो उठी तब घड़ी में आठ बज रहे थे.. रोज ६ बजे जागने वाली कविता को आज उठने में देर हो गई.. शायद आसक्रीम में मिलाई दवा का असर था..

उठकर फटाफट किचन में गई.. मम्मी जी के लिए चाय बनानी थी.. पर किचन में जाते ही उसे पता चला की उसकी सास तो कब की चाय बना चुकी थी.. वो तुरंत बाथरूम में गई.. ब्रश किया और नहा कर फटाफट कपड़े पहने.. जल्दबाजी में आज वो ब्रा पहनना भूल गई थी.. उसने बाथरूम के कोने में देखा.. टूटे हुए कांच के टुकड़े मम्मी जी ने साइड में कर रखे थे.. और कांच के ढेर के बीच एक काला धागा था.. वही धागा उसने रसिक की कलाई पर अनगिनत बार देखा था..

कविता के मन में कल रात की घटनाएं फिर से ताज़ा हो गई.. चुपचाप वो कांच के ढेर को इकठ्ठा कर डस्टबिन में डालने गई तब एक कांच का टुकड़ा उसकी उंगली में घुस गया.. और खून टपकने लगा.. दर्द के मारे वो कराहने लगी.. खून टपकती उंगली को लेकर वो किचन में आई.. और घाव पर हल्दी लगाकर पट्टी बांध दी.. मन ही मन मम्मी जी को कोसते हुए कविता गुस्से से घर के काम में उलझ गई.. पीयूष का मेसेज था.. वो अब शाम को वापिस आने वाला था.. अनुमौसी कहीं बाहर गई हुई थी..

घर के काम निपटाकर वो दस बजे शीला भाभी के घर गई.. कविता को देखते ही वैशाली उसके गले लग गई और खूब रोई.. शीला भाभी ने भी उसे रोने दिया.. रोने से मन हल्का हो जाता है..

"मदन भैया कहीं नजर नहीं आ रहे??" कविता ने मदन को न देखकर शीला से पूछा

शीला: "मदन पुलिस स्टेशन गया है.. इंस्पेक्टर तपन से मिलने.. अब संजय से छुटकारा पाने के लिए कुछ तो कार्यवाही करनी पड़ेगी ना.. साले उस हरामजादे ने मेरी बेटी की ज़िंदगी तबाह कर दी.. पहली बार मुझे पुलिस स्टेशन की चौखट पर पैर रखने पड़े.. और कितना कुछ सहना पड़ा.. सब उस कमीने के कारण.. उस नालायक को तो अब मदन और इन्स्पेक्टर तपन ही सीधा करेंगे.. !!"

वैशाली: "कीड़े पड़ेंगे कीड़े.. उस हरामी को.. मैं तो वापिस जाने के लिए तैयार ही नहीं थी.. मुझे पता था की मैं वहाँ एक पल भी जी नहीं पाऊँगी.. इतना अच्छे से जानती हूँ मई उस नालायक को.. मुझे परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी उसने.. तू मानेगी नहीं कविता.. वो आदमी इतना हलकट है.. सारा दिन उसे अलग अलग औरतों के साथ बिस्तर पर पड़े रहने के अलावा और कुछ नहीं सूझता.. जब देखों तब सेक्स ही सेक्स.. चवन्नी की कमाई नहीं और पूरा दिन बस बिस्तर पर काटना होता है उसे.. अब तू ही बता.. ऐसे आदमी के साथ कैसे जीवन गुजारें?? उसकी जेब से प्रेमिकाओं की तस्वीरें तो अक्सर हाथ लगती.. बेग में जब देखों तब ढेर सारे कोंडम के पैकेट लेकर घूमता रहता है.. और कुछ पूछूँ तो उल्टा मुझ पर ही गुस्सा करता था.. बिजनेस ट्रिप के लिए शहर से बाहर जा रहा हूँ.. ये कहकर शहर की ही किसी होटल में किसी रांड को लेकर पड़ा रहता था.. और मैं घर पर उसका इंतज़ार करते हुए उसके बूढ़े माँ बाप की सेवा करती थी.. ये सब मम्मी को बताती तो उन्हें दुख होता.. कभी न कभी संजय सुधर जाएगा इस आशा में अब तक जीती रही.. पर ऐसा कब तक चलता.. !!" वैशाली की व्यथा आंसुओं के संग बह रही थी.. नॉन-स्टॉप.. !!

कविता: "एकदम सही बात है तेरी वैशाली.. ऐसी लोगों को तो जैल में ही बंद कर देना चाहिए.. वो मदन भैया के इंस्पेक्टर दोस्त है ना.. बराबर ट्रीटमेंट देंगे संजय को.. तू चिंता मत कर.. अब तू हम सब के बीच है.. एकदम सलामत.. जो भी हुआ.. बुरा सपना समझकर भूल जा.. और एक नई ज़िंदगी की शुरुआत कर.. !!"

वैशाली को कविता की बात सुनकर बहोत अच्छा लगा.. तभी मदन घर आ पहुंचा.. कविता से हाय-हैलो कहकर वो अपने कमरे मे चला गया.. कविता को भी ये महसूस हुआ की वो सब अपनी निजी बातें करना चाहते होंगे.. इसलिए निकल जाना ही बेहतर होगा.. वो उठकर घर चली आई.. दोपहर का खाना खाकर सास और बहु अपने अपने कमरे में आराम करने लगे..

शाम को दोनों जाग गए और बरामदे में बैठे हुए थे.. मौसी झूला झूल रही थी और कविता बैठे बैठे सब्जियां काट रही थी.. तभी कविता पर उसकी मम्मी का फोन आया.. और उन्होंने बताया की मौसम बहोत बीमार हो गई थी.. और अस्पताल में थी.. इसलिए रमिला बहन चाहती थी की कविता थोड़े दिनों के लिए वहाँ आ जाए तो घर के काम में.. और शादी की तैयार में उनकी मदद कर सकें.. सारी बातें मौसी की उपस्थिति में हुई थी इसलिए उन्हें बताने की कोई जरूरत नहीं थी.. कविता ने कहा की वो दोनों आज आने ही वाले थे पर पीयूष को ऑफिस में अर्जन्ट काम आ जाने के कारण नहीं आ पाए.. और ये भी कहा की शाम को पीयूष के आते ही.. उससे चर्चा करने के बाद तय करेंगे..

मम्मी का फोन काटते ही कविता ने मौसम को फोन लगाया.. मौसम ने भी कहा की उसकी तबीयत अब ठीक थी.. और वो जल्दबाजी न करें.. आराम से आए..

कविता की जान अब अपने मायके में अटक चुकी थी.. उसे मौसम की चिंता सताने लगी.. शाम को पीयूष घर आया.. खाना खाया.. फिर कविता ने उसे सारी बात बताई.. लेकिन पीयूष को मौसम ने पहले ही मना कर रखा था इसलिए वो जाना नहीं चाहता था.. उसने ऑफिस के काम का बहाना बनाते हुए कविता से कहा "तू सुबह ६ बजे की बस में निकल जाना.. "

कविता ने तुरंत अपनी पेकिंग शुरू कर दी.. रात को बेडरूम के दरवाजे बंद होते ही.. पीयूष ने आज जबरदस्त चुदाई की कविता के साथ.. वैसे कविता सेक्स के लिए उतनी उत्सुक नहीं लगी उसे.. वरना रोज तो वो भूखे भेड़िये की तरह पीयूष पर टूट पड़ती.. पर जैसे पीयूष के हाथ उसके जिस्म पर फिरने लगे.. उसे रसिक के स्पर्श की याद आ जाती और वो सहम जाती.. पीयूष ने सोचा की शायद कविता उसके मायके की चिंता के कारण ठीक से सहयोग नहीं कर पा रही है.. इसलिए उसने कुछ पूछा नहीं.. कविता इस टेंशन में थी की कहीं पीयूष की कल की घटना के बारे में कुछ पता न चल जाए.. वैसे रसिक ने कुछ किया तो नहीं था.. पर उसकी छाती पर और चूत पर काटने के निशान थे.. कहीं पीयूष ने देख लिए तो??

unin

जब पीयूष धक्के लगाकर.. उसकी चूत में वीर्य छोड़कर शांत होकर बगल में लेट गया.. तब जाकर कविता के मन को शांति मिली..

सुबह पाँच बजे कविता जाग गई.. और तैयार होकर उसने पीयूष को जगाया.. पीयूष उसे बस-अड्डे पर छोड़ आया.. कविता को तुरंत बस मिल गई.. सीट पर बैठकर.. टिकट को पर्स में रखकर उसने अपना मोबाइल निकाला और एक नंबर डायल किया.. डायल करते हुए कविता के चेहरे की मुस्कान देखने लायक थी.. ये नंबर ऐसा था जो उसने मोबाइल पर सेव नहीं किया था.. जरूरत भी नहीं थी.. उसके दिल में छपा हुआ था ये नंबर..

उसने पिंटू को फोन लगाया

सुबह साढ़े छह बजे कविता का नाम स्क्रीन पर देखकर पिंटू चोंक गया.. इतनी सुबह कविता ने क्यों फोन किया होगा? कहीं पीयूष से फिर से कोई झगड़ा तो नहीं हुआ??

"हैलो.. "

"गुड मॉर्निंग मेरी जान" कविता के मुंह से ये शब्द सुनकर पिंटू के चेहरे पर मुस्कान आ गई..

"क्या बात है कविता.. !! आज सुबह सुबह मुझे फोन करने का टाइम मिल गया तुझे? तेरे शोहर के लिए टिफिन तैयार नहीं करना क्या?"

"मुझे बोलने भी देगा या तू ही बकता रहेगा??" कविता इतनी जोर से बोली की सारे पेसेन्जर उसकी तरफ देखने लगे.. कविता शरमा गई..

"तू कहाँ है? इस शहर में या हमारे शहर में?" कविता ने पूछा.. पिंटू और कविता एक शहर में रहते थे.. कविता की शादी इस शहर में हुई और पिंटू की नौकरी भी इस शहर में थी..

"मैं हमारे शहर अपने घर पर ही हूँ.. बता.. कुछ प्रॉब्लेम हुई है क्या?"

"प्रॉब्लेम तो कुछ नहीं है.. मौसम की तबीयत ठीक नहीं है.. मम्मी को हेल्प करने में घर आ रही हूँ.. तू वहीं हो तो हम मिलेंगे.. मुझे तेरे साथ ढेर सारी बातें करनी है.. मैं लगभग बारह बजे बस स्टेशन पहुँच जाऊँगी.. हम दोनों दो-तीन घंटे साथ रहेंगे.. उसके बाद मैं घर जाऊँगी.. मम्मी को बोल दूँगी की बस रास्ते में खराब हो गई थी इसलिए देर हो गई.. वो मान जाएगी.. तू जगह का बंदोबस्त कर.. बहोत दिन हो गए यार.. !!"

"क्या बात है कविता.. मैं भी तुझे बहोत मिस करता हूँ.. आजा जल्दी.. बस के शहर में घुसते ही तू मुझे कॉल कर देना.. मैं तुझे लेने आ जाऊंगा.. "

"ओके जानु.. मैं तुझे पहुंचकर कॉल करती हूँ.. आई लव यू"

"आई लव यू टू, कविता"

पिंटू रोमांचित हो गया.. काफी दिनों के बाद कविता से अकेले मी मिलने का मौका मिलने वाला था.. पिंटू बस पहुँचने के दो घंटे पहले ही बस-अड्डे के बाहर बैठ गया.. बार बार घड़ी में देख रहा था.. कब कविता आए और कब उसे लेकर जाऊँ .. तभी कविता का कॉल आया

"बस अब पाँच मिनट में पहुँच जाएगी.. तू कहाँ है?"

"मैं तो कब से यहीं हूँ बस स्टेशन पर.. तेरा इंतज़ार कर रहा हूँ"

कविता जैसे ही बस से उतरी.. पिंटू ने उसका बेग हाथ से ले लिया.. दोनों बाइक की तरफ पहुंचे.. और कविता उसके पीछे बैठ गई.. उसे शादी से पहले के दिन याद आ गए.. तब भी वो पिंटू की बाइक की पीछे ऐसे ही घूमती थी.. फूल स्पीड में चल रही बाइक पर अपने स्तनों को पिंटू की पीठ पर दबाकर कविता खुद भी मजे ले रही थी और पिंटू को भी दे रही थी..

"इतनी चुप क्यों है तू? डर लग रहा है क्या? पीयूष से ज्यादा तेज चला रहा हूँ बाइक इसलिए?"

कविता: "पिंटू, आज मुझे किसी चीज का कोई डर नहीं है.. मन कर रहा है की बस पूरी ज़िंदगी यूं ही तेरे पीछे बैठी रहूँ"

पिंटू का बाइक अम्बर सिनेमा हॉल के बाहर पार्क करने के बाद पिंटू ने फटाफट टिकट ले ली.. मूवी शुरू हो चुका था.. दिन का समय था और फ्लॉप मूवी थी इसलिए अंदर आठ-दस लोग ही थे.. ज्यादातर कपल्स ही थे जो एकांत के लिए आए हुए थे..

कविता का हाथ पकड़कर अंधेरे में पिंटू उसे कॉर्नर सीट की तरफ ले गया.. और जो काम करने आए थे उसमे व्यस्त हो गए..

पिंटू ने कविता का हाथ अपने हाथ में लिया और उसे चूम लिया.. ये वही हथेली थी जिस पर कविता ने अनगिनत बार अपना नाम लिखका था.. कविता की ये आदत थी.. वे दोनों जब भी मिलते तब वो पिंटू की हथेली पर अपना नाम लिख देती.. अपना अधिकार भाव जताने के लिए.. पिंटू तो जैसे कविता की हथेली को पाकर तृप्त हो गया हो वैसे उसे पकड़कर काफी देर तक बैठा ही रहा..

आखिर कविता ने खुद उसका हाथ अपने मुलायम स्तनों से दबा दिया.. स्तनों का स्पर्श होते ही पिंटू के अंदर का पुरुष जाग उठा.. और उसने थोड़ा और दबाव बनाकर स्तनों को दबा दिया.. दो दिन पहले ही रसिक के काटने से कविता को स्तनों में थोड़ा दर्द हो रहा था.. पर फिर भी वह कुछ न बोली.. वो दर्द सहने को तैयार थी पर अपने प्रेमी को रोकना नहीं चाहती थी..

पिंटू ने अब दोनों हाथों से उसके स्तनों को जोर से दबाया.. दर्द के कारण कविता कराह उठी.. पिंटू ने तुरंत हाथ खींच लिए.. पर कविता ने उसके हाथ पकड़कर फिर से अपने स्तनों पर लगा दीये

कविता: "तू मेरी फिक्र मत कर.. इनका तो काम ही है दबना.. तेरे हाथों से दबना तो इनका सौभाग्य है.. मन से तो मैं अपना शरीर तेरे नाम कर चुकी हूँ पिंटू.. समाज भले ही मुझे पीयूष की पत्नी के रूप में जानता हो.. पर मेरा दिल तो तुझे ही अपना स्वामी मान चुका है.. तू घबरा मत.. जैसे मन करे दबा दे.. मसलकर रख दे इन्हें.. तेरा अधिकार है इन दोनों पर.. "

bf

उस रात की घटना ने कविता को धक्का पहुंचाया था.. जब वो दो कौड़ी का दूधवाला उसकी मर्जी दे खिलाफ मेरे जिस्म को रौंद गया.. तू मैं भला मेरे मनपसंद पिंटू को क्यों रोकूँ? वो तो मेरा अपना है.. कमबख्त मेरी सास ने.. अपनी हवस बुझाने के चक्कर में.. मेरे शरीर को अपवित्र कर दिया

जैसे जैसे कविता उस रात की घटना के बारे में सोचती गई.. उसका क्रोध और बढ़ता गया.. और वो पिंटू के हाथों को अपने स्तनों पर और मजबूती से दबाती गई.. दर्द इतना होने लगा की उसकी आँखों से आँसू निकल गए.. जो पिंटू को अंधेरे में नजर नहीं आए..

पिंटू आसानी से स्तनों को मज़ा ले सकें इसलिए कविता ने दो हुक खोलकर अपना एक स्तन बाहर खींच निकाला.. ए.सी. की ठंडक स्तन पर महसूस होते ही कविता को इतना अच्छा लगा की उसने जरूरत न होते हुए भी तीसरा हुक खोल दिया और दूसरा स्तन भी बाहर निकाल दिया.. साड़ी के पल्लू से स्तनों को ढँककर पिंटू का हाथ पल्लू के अंदर डाल दिया..

ob

जैसे जैसे पिंटू का हाथ उसके नग्न मांस के गोलों पर घूमने लगा.. कविता को बहोत मज़ा आने लगा.. पिंटू का स्पर्श उसे पागल बना रहा था.. पिंटू का लंड भी उसकी पतलून में उछलने लगा था.. कविता ने अधिकारपूर्वक पेंट के ऊपर से उसका लंड पकड़ लिया.. और पिंटू के कंधे पर सिर रख दिया.. लंड को पकड़ते ही कविता ने पिंटू के कान में कहा

dm

"यार किसी गेस्टहाउस का बंदोबस्त किया होता तो इसे आराम से अंदर ले पाती.. कितना सख्त हो गया है.. !! सिर्फ पकड़कर मैं क्या करूँ?" कविता की इस बात का कोई जवाब नहीं था पिंटू के पास.. वो मुसकुराता रहा और हॉल के अंधेरे में.. कविता के स्तनों को दबाता रहा..

कविता ने धीरे से पिंटू के पेंट की चैन खोल दी.. अन्डरवेर के ऊपर से भी उसे पिंटू के लंड की गर्मी और सख्ती का एहसास हो रहा था.. वस्त्र की एक परत कम होने से कविता और पीयूष दोनों की उत्तेजना बढ़ती गई.. एक दूसरे को नग्न कर भोगने की इच्छा तीव्रता से सताने लगी..

पीयूष के कंधे से सर हटाकर कविता ने उसके होंठों को चूम लिया.. पिंटू के गुलाबी होंठ कविता को बहोत पसंद थे.. कविता के स्तनों को मसलते हुए अपने होंठ उसे सौंपकर पिंटू आराम से मजे ले रहा था.. कविता कभी उसके होंठों को चूमती.. कभी चाटती और कभी मस्ती से काट भी लेती थी.. कविता का हाथ अब पिंटू की अन्डरवेर के अंदर घुस गया और मुठ्ठी में उस सुंदर लिंग को पकड़ लिया.. बेशक उनकी हरकतें ऐसी थी की आसपास के लोगों को पता चल जाए.. पर बाकी सारे कपल्स भी ऐसी ही मस्ती में लीन थे..

पिंटू का लंड हिलाते हुए कविता को अनायास ही रसिक के लंड की याद आ गई.. बाप रे.. कितना खतरनाक था रसिक का लंड..!! ऊपर चढ़कर पूरा डाल दिया होता तो मर ही जाती मैं.. अंदर उछल रहे लंड को अपनी कोमल हथेली से महसूस करते हुए कविता की चूत से कामरस बहने लगा.. सिनेमा हॉल के अंधेरे में कई कपल्स उत्तेजक हरकतें कर रहे थे.. कई लोगों की सिसकियाँ भी सुनाई पड़ रही थी.. कविता और पीयूष के आगे बैठा हुआ कपल तो सारी सीमाएं लांघ चुका था.. उस पुरुष की गोद में सर रखकर जिस तरह वो औरत ऊपर नीचे कर रही थी उससे साफ प्रतीत हो रहा था की वो लंड चूस रही थी..

ये देखते ही कविता ने पिंटू की और देखकर एक शरारती मुस्कान दी.. दोनों की नजरें चार हुई.. इशारों इशारों में पिंटू ने पेशकश कर दी और कविता ने स्वीकार भी कर लिया.. उसने अपने खुले हुए बाल रबरबैंड से बांध दीये.. और पिंटू की गोद में सर डालकर बैठ गई.. एक ही पल में लंड बाहर निकालकर कविता लोलिपोप की तरह चूसने लगी..

cb

पिंटू को आश्चर्य हुआ.. जब जब वो और कविता मिलते तब वो कितने मिन्नतें करता तब जाकर कविता उसका मुंह में लेती.. आज एक ही इशारे में मान गई.. कविता की इस हरकत से पिंटू बेहद उत्तेजित हो गया.. कविता अपने प्रेमी को महत्तम सुख देने के इरादे से पागलों की तरह लंड चूसने लगी.. गजब का करंट लग रहा था पिंटू को.. कविता के चूसने से.. थोड़ी ही देर मे वो कमर उठाकर.. कविता के सर को दोनों हाथों से पकड़ कर.. उसके मुंह में धक्के लगाने लगा.. और उसी के साथ ही उसके लंड ने कविता के मुख में उत्तेजना की बारिश कर दी.. कविता का मुंह पूरा वीर्य से भर गया..

cum-in-mouth2

वैसे कविता को ये बिल्कुल ही पसंद नहीं था.. पर वो पिंटू को जरा भी नाराज करना नहीं चाहती थी.. उसे उलटी आ रही थी पर फिर भी उसने अपने आप को संभालें रखा.. और तब तक चूसती रही जब तक पिंटू शांत न हो गया..

संभालकर पिंटू का लंड मुंह से बाहर निकालकर कविता ने सारा वीर्य सीट के नीचे थूक दिया.. और रुमाल से अपना मुंह साफ कर दिया.. अब कविता अपनी सीट पर बैठ गई.. पिंटू ने अपना लंड अंदर रख दिया.. अब दूसरी मंजिल के लिए दोनों तैयार हुए.. और वो था कविता का ऑर्गजम..

कविता के गालों पर चूमते हुए उसने उसके घाघरे के अंदर हाथ डाल दिया.. उसकी चिकनी जांघों से होते हुए पिंटू की उँगलियाँ कविता की चूत तक जा पहुंची.. पिंटू आराम से अपनी उंगलियों का योनि प्रवेश कर सके इसलिए कविता ने अपना घाघरा ऊपर तक उठा दिया.. अब पिंटू का हाथ बड़ी आसानी से अंदर पहुँच रहा था.. साड़ी का पल्लू हटाकर अपने दोनों उरोजों को बाहर खुला छोड़ दिया कविता ने.. पिंटू कविता के गाल, गर्दन और होंठों पर पागलों की तरह चूमने लगा.. उसका एक हाथ कविता के स्तनों को मसल रहा था जबकी दूसरे हाथ की दो उँगलियाँ कविता की चूत में अंदर बाहर हो रही थी.. कविता के तो मजे मजे हो गए थे.. पिंटू का साथ उसे इतना पसंद था की उसने अपना पूरा बदन सीट पर ढीला छोड़कर उसे समर्पित कर दीया था..

cf0cf

अत्यंत आवेश में आकर पिंटू ने फिंगरिंग की गति बढ़ा दी.. तेजी से उंगलियों को अंदर बाहर करते हुए कविता की भूख को शांत कर दिया.. कविता की चूत अपना अमृत रस सीट पर टपका रही थी..

cf2

उसी अवस्था में थोड़ी देर तक कविता पड़ी रही.. ना ही उसने खुले स्तनों को ढंका और ना ही अपना घाघरा नीचे किया.. वैसे ही बैठे बैठे उसने पिंटू की चूत रस लगी उंगलियों को चूसना शुरु कर दिया..

अब जुदाई करीब थी.. दोनों जान गए थे की अब बिछड़ने का वक्त आ चुका था.. बार बार पिंटू की हथेली को चूम रही कविता के आँसू पिंटू के हाथ पर टपक रहे थे..

"उदास क्यों हो रही है? इतना मज़ा करने के बाद रो रही है तू?" पिंटू ने कहा.. जिसका कविता ने कोई उत्तर नहीं दिया.. वो तो बस पिंटू की हथेली को अपने होंठों से दबाकर बस चूमती रही.. काफी देर तक उसने हाथ पकड़े रखा

"अब चलें कविता.. ?? डेढ़ घंटा तो बीत चुका है.. अब तुम्हें घर चले जाना चाहिए वरना तेरी मम्मी चिंता करेगी" कविता बस पिंटू को देखती रही.. कितनी फिक्र है इस लड़के को मेरी..

अपने आंसुओं को पोंछ कर कविता सीट से खड़ी हो गई.. खड़े होने के बाद उसे याद आया.. दोनों स्तन तो अभी भी बाहर खुले लटक रहे थे.. !! उन्हें ब्लाउस में डालना तो भूल ही गई.. वो तुरंत बैठ गई और स्तनों को दोनों कटोरियों में बंद कर दिया.. सामने बैठे कापल ने कविता के स्तनों को देख लिया था.. पर वो दोनों खुद ही अधनंगी अवस्था में बैठे हुए थे.. कविता ने देखा.. कपल में जो युवती थी उसने अपने बॉयफ्रेंड का लंड हाथ में पकड़ रखा था.. उसके सामने देखकर कविता मुस्कुराई..


पिंटू और कविता खड़े हो गए और बाहर निकल गए.. कविता को ऑटो में बिठाकर पिंटू भी उदास मन से अपना बाइक लेकर निकल गया..
 

Rajizexy

Punjabi Doc
Supreme
45,826
47,549
304
अपनी चूत पर गरम अंगारे जैसा स्पर्श महसूस होते ही कविता समझ गई की रसिक का सुपाड़ा उसकी छोटी सी चूत पर दस्तक दे रहा था.. चूत के वर्टिकल होंठों को टाइट करते हुए कविता अपनी बर्बादी के लिए तैयार हो रही थी तभी..

तभी.. किसी ने दरवाजा खटखटाया.. रात के साढ़े ग्यारह बजे कौन होगा?? मौसी और रसिक दोनों ही डर गए.. रसिक भी कविता की जांघों के बीच से खड़ा हो गया.. उसका खतरनाक लंड चूत के सामने से हटा लिया.. कविता को ऐसा लगा.. मानों किसी देवदूत ने आकर उसकी इज्जत बचा ली हो..

छलांग मारकर रसिक ने अपने कपड़े उठाए और जल्दी जल्दी पहन लिए.. एक पल पहले उसका थिरक रहा लंड अभी एकदम नरम हो गया था.. अनुमौसी और रसिक दोनों ही सकते में थे.. कविता के दिल को थोड़ा सा चैन मिला पर अभी भी उसे पक्का यकीन नहीं था की वो बच गई थी या नहीं..

"कौन होगा मौसी?" रसिक ने घबराते हुए कहा.. थरथर कांप रही मौसी के गले से आवाज ही नहीं निकली

"क्या पता.. रसिक!! अब इसका क्या करें? इसे कपड़े कैसे पहनाएंगे इतनी जल्दी? मैं मना कर रही थी इसे पूरा नंगा मत कर.. तुझे बड़ा शौक था इसे नंगी करने का.. !!"

"अरे मौसी.. अभी ये सब बातों का वक्त नहीं है.. पहले ये सोचो को कविता को छुपाएंगे कैसे?" रसिक के ये कहते ही मौसी ने एक चादर डाल दी कविता के नंगे जिस्म पर

कविता को अब चैन मिला था.. अधखुली आँखों से वो घबराए हुए रसिक और सासुमाँ को देखकर खुश हो रही थी.. मौसी की उत्तेजना और रसिक के लंड की सख्ती.. कब की गायब हो चुकी थी.. डर और सेक्स एक साथ होना असंभव सा है.. इस वक्त कौन होगा दरवाजे पर? पीयूष तो सुबह के तीन बजे से पहले नहीं आने वाला था और चिमनलाल को आने में और एक दिन का वक्त था.. कहीं कोई चोर या लुटेरा तो नहीं होगा.. !! पर चोर थोड़े ही दरवाजा खटखटाकर आएगा??

"मौसी, आप दरवाजा खोलिए.. फिर जो भी हो देख लेंगे" रसिक बहोत डरा हुआ था.. उसे डरा हुआ देखकर मौसी की भी फट गई..

"रसिक, तू खटिया की नीचे छुप जा.. यहाँ कोई नहीं आएगा.. " फटाफट कपड़े पहनकर उन्हों ने दरवाजा खोला

दरवाजे खुलते ही उसने देखा.. सामने शीला, मदन और वैशाली खड़े थे.. वैशाली तो मौसी को देखते ही उनके गले लग गई और रोने लगी.. उत्तेजना से अचानक उदासी के भाव धारण करना मौसी के लिए थोड़ा सा कठिन था.. पूरा माहोल ही बदल चुका था.. अंदर बिस्तर पर चादर ओढ़े लेटी कविता को.. शीला भाभी और वैशाली की आवाज सुनकर इतनी खुशी हो रही थी.. शीला भाभी ने आज मेरी लाज बचा ली.. वो चाहकर भी उठ न पाई क्योंकि उसके बिस्तर के नीचे ही रसिक छुपा हुआ था

तीनों मौसी के घर अंदर आकर सोफ़े पर बैठ गए.. मौसी जबरदस्त टेंशन में थी.. अब ये लोग कब उठेंगे क्या पता? इनके जाने से पहले रसिक को भी बाहर निकालना मुमकिन नहीं था.. उससे पहले कहीं उसे होश आ गया और अपने आप को नंगा देख लिया तो??? वो जरूर चिल्लाएगी.. मदन को पता चल गया तो? शीला को तो चलो वो समझा देगी.. पर मदन और वैशाली को क्या बताती??

रो रही वैशाली को देखकर मौसी को भी बहोत दुख हुआ.. पर वो फिलहाल अपना दुख व्यक्त करने की स्थिति में न थी.. उनका सम्पूर्ण ध्यान कविता के बेडरूम पर ही था.. शीला ने संक्षिप्त में कलकत्ता में घटी घटनाओं के बारे में बताया.. और फिर खड़े होते हुए बोली

"ठीक है मौसी.. चलते है.. फिर आराम से बात करेंगे.. ये तो चाबी लेनी थी इसलिए आपको जगाया.. हम भी थके हुए है.. घर जाकर सो जाएंगे.. फिर कल मिलकर आराम से बात करेंगे.. !!"

मौसी ने औपचारिकता दर्शाते हुए कहा "अरे शीला.. तुम लोग बैठो.. मैं चाय बनाती हूँ.. "

"कविता कहाँ है, मौसी?" वैशाली की आँखें अपनी सहेली को ढूंढ रही थी

घबराते हुए मौसी ने कहा "उसकी तबीयत ठीक नहीं है.. इसलिए आज जल्दी सो गई.. अपने कमरे में सो रही है.. " बात चल रही थी तभी कांच टूटने की आवाज आई.. सब के कान खड़े हो गए..

"लगता है बाहर से आवाज आई" मौसी ने सबका ध्यान भटकाने के इरादे से कहा

अनुमौसी, मदन और शीला के साथ बातों में व्यस्त थी तब वैशाली कब उठकर कविता के कमरे के तरफ चली गई.. मौसी को पता भी नहीं चला.. वैशाली को कविता के बेडरूम से बाहर निकलते हुए देख मौसी को डर के कारण चक्कर आने लगी.. मर गए.. !! वैशाली ने देख लिया सब.. अब क्या होगा?? मौसी बेचैन हो रही थी.. वैशाली से नजरें नहीं मिला पा रही थी.. पर वैशाली ने कुछ कहा नहीं..

शीला, मदन और वैशाली चले गए और दरवाजा लॉक करते हुए मौसी कविता के बेडरूम की ओर भागी.. उनके आश्चर्य के बीच देखा.. कविता आँखें मलते हुए अपने बालों में क्लिप लगा रही थी.. और सुस्ती भारी आवाज में बोली "क्या हुआ मम्मी जी, आप अब तक जाग रहे हो? कोई आया था क्या हमारे घर? मैंने आवाज सुनी इसलिए जाग गई.. पता नहीं आज इतनी नींद क्यों आ रही है मुझे.. मम्मी जी, आपको भी आइसक्रीम खाने के बाद ऐसा कुछ महसूस हुआ था क्या?"

"नहीं बेटा.. मैं तो कब से जाग रही हूँ.. मुझे तो ऐसा कुछ नहीं हुआ.. तू शायद पूरे दिन काम करके थक गई होगी इसलिए नींद आ रही होगी.. कोई बात नहीं.. वैशाली, शीला और मदन आए थे.. वो कलकत्ता से वापिस आ गए.. घर की चाबी लेने आए थे.. " मौसी की नजर बार बार कविता के दुपट्टे पर जा रही थी.. जिस पर वीर्य के धब्बे लगे हुए थे.. उन्हों ने ही रसिक का वीर्य दुपट्टे से पोंछा था..

"आप सो जाइए मम्मी जी.. मैं बाथरूम जाकर आती हूँ" कविता बाथरूम में घुसी और मौसी ने मुड़कर बेड के नीचे देखा.. पर रसिक वहाँ नहीं था.. गया कहाँ वो कमीना?? कहीं बाथरूम में तो नहीं छुपा होगा? बाप रे.. तब तो कविता को जरूर पता चल जाएगा.. !!

तभी कविता बाथरूम से निकलते हुए बोली "अरे मम्मी जी.. बाथरूम की खिड़की का कांच किसने तोड़ा?? लगता है बिल्ली ने तोड़ा होगा.. कांच के टुकड़े पड़े है बाथरूम में.. " सुनकर मौसी के दिल को चैन मिला.. जरूर रसिक कांच तोड़कर भाग गया होगा..

"बेटा कांच टूटना तो अच्छा शगुन माना जाता है.. तू चिंता मत कर और आराम से सो जा.. " कहते हुए मौसी अपने कमरे में चली गई और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया.. कविता का ओर सामना करने की उनमें हिम्मत नहीं थी..रह रहकर एक ही सवाल उन्हें परेशान कर रहा था की कविता को कपड़े किसने पहनाये ?? क्या वैशाली ने पहनाए होंगे? वैशाली ने कमरे में कविता को नंगी पड़ी देखकर क्या सोचा होगा? या फिर शायद रसिक ने जाने से पहले कपड़े पहना दीये हो? रसिक को कांच तोड़ते हुए या फिर भागते हुए कविता ने देख तो नहीं लिया होगा?

ढेर सारे सवाल थे और जवाब एक भी नहीं था.. मौसी अपना सर पकड़कर सो गई..

इस तरफ कविता शीला भाभी के लिए मन से आभार प्रकाट कर रही थी.. सोच रही थी की आज तो उनके कारण इज्जत बच गई.. वरना आज तो रसिक का गधे जैसा लंड उसकी कोमल चूत के परखच्चे उड़ा ही देता.. कविता को उतना तो पता था की रसिक ने अपना सुपाड़ा चूत के अंदर डाल दिया था जब दरवाजे पर दस्तक सुनाई दी थी.. वो याद आते ही वह अपनी चूत पर हाथ फेरकर मुआयना करने लगी.. कहीं कोई नुकसान तो नहीं हुआ था.. !! हाथ फेरकर उसने तसल्ली कर ली.. सब कुछ ठीक था.. शरीर को तो नुकसान नहीं हुआ था.. पर उसका मन घायल हो चुका था उसका क्या?? अपनी चूत को सहलाते हुए वो सो गई.. और दूसरे दिन काफी देर से जागी.. जब वो उठी तब घड़ी में आठ बज रहे थे.. रोज ६ बजे जागने वाली कविता को आज उठने में देर हो गई.. शायद आसक्रीम में मिलाई दवा का असर था..

उठकर फटाफट किचन में गई.. मम्मी जी के लिए चाय बनानी थी.. पर किचन में जाते ही उसे पता चला की उसकी सास तो कब की चाय बना चुकी थी.. वो तुरंत बाथरूम में गई.. ब्रश किया और नहा कर फटाफट कपड़े पहने.. जल्दबाजी में आज वो ब्रा पहनना भूल गई थी.. उसने बाथरूम के कोने में देखा.. टूटे हुए कांच के टुकड़े मम्मी जी ने साइड में कर रखे थे.. और कांच के ढेर के बीच एक काला धागा था.. वही धागा उसने रसिक की कलाई पर अनगिनत बार देखा था..

कविता के मन में कल रात की घटनाएं फिर से ताज़ा हो गई.. चुपचाप वो कांच के ढेर को इकठ्ठा कर डस्टबिन में डालने गई तब एक कांच का टुकड़ा उसकी उंगली में घुस गया.. और खून टपकने लगा.. दर्द के मारे वो कराहने लगी.. खून टपकती उंगली को लेकर वो किचन में आई.. और घाव पर हल्दी लगाकर पट्टी बांध दी.. मन ही मन मम्मी जी को कोसते हुए कविता गुस्से से घर के काम में उलझ गई.. पीयूष का मेसेज था.. वो अब शाम को वापिस आने वाला था.. अनुमौसी कहीं बाहर गई हुई थी..

घर के काम निपटाकर वो दस बजे शीला भाभी के घर गई.. कविता को देखते ही वैशाली उसके गले लग गई और खूब रोई.. शीला भाभी ने भी उसे रोने दिया.. रोने से मन हल्का हो जाता है..

"मदन भैया कहीं नजर नहीं आ रहे??" कविता ने मदन को न देखकर शीला से पूछा

शीला: "मदन पुलिस स्टेशन गया है.. इंस्पेक्टर तपन से मिलने.. अब संजय से छुटकारा पाने के लिए कुछ तो कार्यवाही करनी पड़ेगी ना.. साले उस हरामजादे ने मेरी बेटी की ज़िंदगी तबाह कर दी.. पहली बार मुझे पुलिस स्टेशन की चौखट पर पैर रखने पड़े.. और कितना कुछ सहना पड़ा.. सब उस कमीने के कारण.. उस नालायक को तो अब मदन और इन्स्पेक्टर तपन ही सीधा करेंगे.. !!"

वैशाली: "कीड़े पड़ेंगे कीड़े.. उस हरामी को.. मैं तो वापिस जाने के लिए तैयार ही नहीं थी.. मुझे पता था की मैं वहाँ एक पल भी जी नहीं पाऊँगी.. इतना अच्छे से जानती हूँ मई उस नालायक को.. मुझे परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी उसने.. तू मानेगी नहीं कविता.. वो आदमी इतना हलकट है.. सारा दिन उसे अलग अलग औरतों के साथ बिस्तर पर पड़े रहने के अलावा और कुछ नहीं सूझता.. जब देखों तब सेक्स ही सेक्स.. चवन्नी की कमाई नहीं और पूरा दिन बस बिस्तर पर काटना होता है उसे.. अब तू ही बता.. ऐसे आदमी के साथ कैसे जीवन गुजारें?? उसकी जेब से प्रेमिकाओं की तस्वीरें तो अक्सर हाथ लगती.. बेग में जब देखों तब ढेर सारे कोंडम के पैकेट लेकर घूमता रहता है.. और कुछ पूछूँ तो उल्टा मुझ पर ही गुस्सा करता था.. बिजनेस ट्रिप के लिए शहर से बाहर जा रहा हूँ.. ये कहकर शहर की ही किसी होटल में किसी रांड को लेकर पड़ा रहता था.. और मैं घर पर उसका इंतज़ार करते हुए उसके बूढ़े माँ बाप की सेवा करती थी.. ये सब मम्मी को बताती तो उन्हें दुख होता.. कभी न कभी संजय सुधर जाएगा इस आशा में अब तक जीती रही.. पर ऐसा कब तक चलता.. !!" वैशाली की व्यथा आंसुओं के संग बह रही थी.. नॉन-स्टॉप.. !!

कविता: "एकदम सही बात है तेरी वैशाली.. ऐसी लोगों को तो जैल में ही बंद कर देना चाहिए.. वो मदन भैया के इंस्पेक्टर दोस्त है ना.. बराबर ट्रीटमेंट देंगे संजय को.. तू चिंता मत कर.. अब तू हम सब के बीच है.. एकदम सलामत.. जो भी हुआ.. बुरा सपना समझकर भूल जा.. और एक नई ज़िंदगी की शुरुआत कर.. !!"

वैशाली को कविता की बात सुनकर बहोत अच्छा लगा.. तभी मदन घर आ पहुंचा.. कविता से हाय-हैलो कहकर वो अपने कमरे मे चला गया.. कविता को भी ये महसूस हुआ की वो सब अपनी निजी बातें करना चाहते होंगे.. इसलिए निकल जाना ही बेहतर होगा.. वो उठकर घर चली आई.. दोपहर का खाना खाकर सास और बहु अपने अपने कमरे में आराम करने लगे..

शाम को दोनों जाग गए और बरामदे में बैठे हुए थे.. मौसी झूला झूल रही थी और कविता बैठे बैठे सब्जियां काट रही थी.. तभी कविता पर उसकी मम्मी का फोन आया.. और उन्होंने बताया की मौसम बहोत बीमार हो गई थी.. और अस्पताल में थी.. इसलिए रमिला बहन चाहती थी की कविता थोड़े दिनों के लिए वहाँ आ जाए तो घर के काम में.. और शादी की तैयार में उनकी मदद कर सकें.. सारी बातें मौसी की उपस्थिति में हुई थी इसलिए उन्हें बताने की कोई जरूरत नहीं थी.. कविता ने कहा की वो दोनों आज आने ही वाले थे पर पीयूष को ऑफिस में अर्जन्ट काम आ जाने के कारण नहीं आ पाए.. और ये भी कहा की शाम को पीयूष के आते ही.. उससे चर्चा करने के बाद तय करेंगे..

मम्मी का फोन काटते ही कविता ने मौसम को फोन लगाया.. मौसम ने भी कहा की उसकी तबीयत अब ठीक थी.. और वो जल्दबाजी न करें.. आराम से आए..

कविता की जान अब अपने मायके में अटक चुकी थी.. उसे मौसम की चिंता सताने लगी.. शाम को पीयूष घर आया.. खाना खाया.. फिर कविता ने उसे सारी बात बताई.. लेकिन पीयूष को मौसम ने पहले ही मना कर रखा था इसलिए वो जाना नहीं चाहता था.. उसने ऑफिस के काम का बहाना बनाते हुए कविता से कहा "तू सुबह ६ बजे की बस में निकल जाना.. "

कविता ने तुरंत अपनी पेकिंग शुरू कर दी.. रात को बेडरूम के दरवाजे बंद होते ही.. पीयूष ने आज जबरदस्त चुदाई की कविता के साथ.. वैसे कविता सेक्स के लिए उतनी उत्सुक नहीं लगी उसे.. वरना रोज तो वो भूखे भेड़िये की तरह पीयूष पर टूट पड़ती.. पर जैसे पीयूष के हाथ उसके जिस्म पर फिरने लगे.. उसे रसिक के स्पर्श की याद आ जाती और वो सहम जाती.. पीयूष ने सोचा की शायद कविता उसके मायके की चिंता के कारण ठीक से सहयोग नहीं कर पा रही है.. इसलिए उसने कुछ पूछा नहीं.. कविता इस टेंशन में थी की कहीं पीयूष की कल की घटना के बारे में कुछ पता न चल जाए.. वैसे रसिक ने कुछ किया तो नहीं था.. पर उसकी छाती पर और चूत पर काटने के निशान थे.. कहीं पीयूष ने देख लिए तो??

unin

जब पीयूष धक्के लगाकर.. उसकी चूत में वीर्य छोड़कर शांत होकर बगल में लेट गया.. तब जाकर कविता के मन को शांति मिली..

सुबह पाँच बजे कविता जाग गई.. और तैयार होकर उसने पीयूष को जगाया.. पीयूष उसे बस-अड्डे पर छोड़ आया.. कविता को तुरंत बस मिल गई.. सीट पर बैठकर.. टिकट को पर्स में रखकर उसने अपना मोबाइल निकाला और एक नंबर डायल किया.. डायल करते हुए कविता के चेहरे की मुस्कान देखने लायक थी.. ये नंबर ऐसा था जो उसने मोबाइल पर सेव नहीं किया था.. जरूरत भी नहीं थी.. उसके दिल में छपा हुआ था ये नंबर..

उसने पिंटू को फोन लगाया

सुबह साढ़े छह बजे कविता का नाम स्क्रीन पर देखकर पिंटू चोंक गया.. इतनी सुबह कविता ने क्यों फोन किया होगा? कहीं पीयूष से फिर से कोई झगड़ा तो नहीं हुआ??

"हैलो.. "

"गुड मॉर्निंग मेरी जान" कविता के मुंह से ये शब्द सुनकर पिंटू के चेहरे पर मुस्कान आ गई..

"क्या बात है कविता.. !! आज सुबह सुबह मुझे फोन करने का टाइम मिल गया तुझे? तेरे शोहर के लिए टिफिन तैयार नहीं करना क्या?"

"मुझे बोलने भी देगा या तू ही बकता रहेगा??" कविता इतनी जोर से बोली की सारे पेसेन्जर उसकी तरफ देखने लगे.. कविता शरमा गई..

"तू कहाँ है? इस शहर में या हमारे शहर में?" कविता ने पूछा.. पिंटू और कविता एक शहर में रहते थे.. कविता की शादी इस शहर में हुई और पिंटू की नौकरी भी इस शहर में थी..

"मैं हमारे शहर अपने घर पर ही हूँ.. बता.. कुछ प्रॉब्लेम हुई है क्या?"

"प्रॉब्लेम तो कुछ नहीं है.. मौसम की तबीयत ठीक नहीं है.. मम्मी को हेल्प करने में घर आ रही हूँ.. तू वहीं हो तो हम मिलेंगे.. मुझे तेरे साथ ढेर सारी बातें करनी है.. मैं लगभग बारह बजे बस स्टेशन पहुँच जाऊँगी.. हम दोनों दो-तीन घंटे साथ रहेंगे.. उसके बाद मैं घर जाऊँगी.. मम्मी को बोल दूँगी की बस रास्ते में खराब हो गई थी इसलिए देर हो गई.. वो मान जाएगी.. तू जगह का बंदोबस्त कर.. बहोत दिन हो गए यार.. !!"

"क्या बात है कविता.. मैं भी तुझे बहोत मिस करता हूँ.. आजा जल्दी.. बस के शहर में घुसते ही तू मुझे कॉल कर देना.. मैं तुझे लेने आ जाऊंगा.. "

"ओके जानु.. मैं तुझे पहुंचकर कॉल करती हूँ.. आई लव यू"

"आई लव यू टू, कविता"

पिंटू रोमांचित हो गया.. काफी दिनों के बाद कविता से अकेले मी मिलने का मौका मिलने वाला था.. पिंटू बस पहुँचने के दो घंटे पहले ही बस-अड्डे के बाहर बैठ गया.. बार बार घड़ी में देख रहा था.. कब कविता आए और कब उसे लेकर जाऊँ .. तभी कविता का कॉल आया

"बस अब पाँच मिनट में पहुँच जाएगी.. तू कहाँ है?"

"मैं तो कब से यहीं हूँ बस स्टेशन पर.. तेरा इंतज़ार कर रहा हूँ"

कविता जैसे ही बस से उतरी.. पिंटू ने उसका बेग हाथ से ले लिया.. दोनों बाइक की तरफ पहुंचे.. और कविता उसके पीछे बैठ गई.. उसे शादी से पहले के दिन याद आ गए.. तब भी वो पिंटू की बाइक की पीछे ऐसे ही घूमती थी.. फूल स्पीड में चल रही बाइक पर अपने स्तनों को पिंटू की पीठ पर दबाकर कविता खुद भी मजे ले रही थी और पिंटू को भी दे रही थी..

"इतनी चुप क्यों है तू? डर लग रहा है क्या? पीयूष से ज्यादा तेज चला रहा हूँ बाइक इसलिए?"

कविता: "पिंटू, आज मुझे किसी चीज का कोई डर नहीं है.. मन कर रहा है की बस पूरी ज़िंदगी यूं ही तेरे पीछे बैठी रहूँ"

पिंटू का बाइक अम्बर सिनेमा हॉल के बाहर पार्क करने के बाद पिंटू ने फटाफट टिकट ले ली.. मूवी शुरू हो चुका था.. दिन का समय था और फ्लॉप मूवी थी इसलिए अंदर आठ-दस लोग ही थे.. ज्यादातर कपल्स ही थे जो एकांत के लिए आए हुए थे..

कविता का हाथ पकड़कर अंधेरे में पिंटू उसे कॉर्नर सीट की तरफ ले गया.. और जो काम करने आए थे उसमे व्यस्त हो गए..

पिंटू ने कविता का हाथ अपने हाथ में लिया और उसे चूम लिया.. ये वही हथेली थी जिस पर कविता ने अनगिनत बार अपना नाम लिखका था.. कविता की ये आदत थी.. वे दोनों जब भी मिलते तब वो पिंटू की हथेली पर अपना नाम लिख देती.. अपना अधिकार भाव जताने के लिए.. पिंटू तो जैसे कविता की हथेली को पाकर तृप्त हो गया हो वैसे उसे पकड़कर काफी देर तक बैठा ही रहा..

आखिर कविता ने खुद उसका हाथ अपने मुलायम स्तनों से दबा दिया.. स्तनों का स्पर्श होते ही पिंटू के अंदर का पुरुष जाग उठा.. और उसने थोड़ा और दबाव बनाकर स्तनों को दबा दिया.. दो दिन पहले ही रसिक के काटने से कविता को स्तनों में थोड़ा दर्द हो रहा था.. पर फिर भी वह कुछ न बोली.. वो दर्द सहने को तैयार थी पर अपने प्रेमी को रोकना नहीं चाहती थी..

पिंटू ने अब दोनों हाथों से उसके स्तनों को जोर से दबाया.. दर्द के कारण कविता कराह उठी.. पिंटू ने तुरंत हाथ खींच लिए.. पर कविता ने उसके हाथ पकड़कर फिर से अपने स्तनों पर लगा दीये

कविता: "तू मेरी फिक्र मत कर.. इनका तो काम ही है दबना.. तेरे हाथों से दबना तो इनका सौभाग्य है.. मन से तो मैं अपना शरीर तेरे नाम कर चुकी हूँ पिंटू.. समाज भले ही मुझे पीयूष की पत्नी के रूप में जानता हो.. पर मेरा दिल तो तुझे ही अपना स्वामी मान चुका है.. तू घबरा मत.. जैसे मन करे दबा दे.. मसलकर रख दे इन्हें.. तेरा अधिकार है इन दोनों पर.. "

bf

उस रात की घटना ने कविता को धक्का पहुंचाया था.. जब वो दो कौड़ी का दूधवाला उसकी मर्जी दे खिलाफ मेरे जिस्म को रौंद गया.. तू मैं भला मेरे मनपसंद पिंटू को क्यों रोकूँ? वो तो मेरा अपना है.. कमबख्त मेरी सास ने.. अपनी हवस बुझाने के चक्कर में.. मेरे शरीर को अपवित्र कर दिया

जैसे जैसे कविता उस रात की घटना के बारे में सोचती गई.. उसका क्रोध और बढ़ता गया.. और वो पिंटू के हाथों को अपने स्तनों पर और मजबूती से दबाती गई.. दर्द इतना होने लगा की उसकी आँखों से आँसू निकल गए.. जो पिंटू को अंधेरे में नजर नहीं आए..

पिंटू आसानी से स्तनों को मज़ा ले सकें इसलिए कविता ने दो हुक खोलकर अपना एक स्तन बाहर खींच निकाला.. ए.सी. की ठंडक स्तन पर महसूस होते ही कविता को इतना अच्छा लगा की उसने जरूरत न होते हुए भी तीसरा हुक खोल दिया और दूसरा स्तन भी बाहर निकाल दिया.. साड़ी के पल्लू से स्तनों को ढँककर पिंटू का हाथ पल्लू के अंदर डाल दिया..

ob

जैसे जैसे पिंटू का हाथ उसके नग्न मांस के गोलों पर घूमने लगा.. कविता को बहोत मज़ा आने लगा.. पिंटू का स्पर्श उसे पागल बना रहा था.. पिंटू का लंड भी उसकी पतलून में उछलने लगा था.. कविता ने अधिकारपूर्वक पेंट के ऊपर से उसका लंड पकड़ लिया.. और पिंटू के कंधे पर सिर रख दिया.. लंड को पकड़ते ही कविता ने पिंटू के कान में कहा

dm

"यार किसी गेस्टहाउस का बंदोबस्त किया होता तो इसे आराम से अंदर ले पाती.. कितना सख्त हो गया है.. !! सिर्फ पकड़कर मैं क्या करूँ?" कविता की इस बात का कोई जवाब नहीं था पिंटू के पास.. वो मुसकुराता रहा और हॉल के अंधेरे में.. कविता के स्तनों को दबाता रहा..

कविता ने धीरे से पिंटू के पेंट की चैन खोल दी.. अन्डरवेर के ऊपर से भी उसे पिंटू के लंड की गर्मी और सख्ती का एहसास हो रहा था.. वस्त्र की एक परत कम होने से कविता और पीयूष दोनों की उत्तेजना बढ़ती गई.. एक दूसरे को नग्न कर भोगने की इच्छा तीव्रता से सताने लगी..

पीयूष के कंधे से सर हटाकर कविता ने उसके होंठों को चूम लिया.. पिंटू के गुलाबी होंठ कविता को बहोत पसंद थे.. कविता के स्तनों को मसलते हुए अपने होंठ उसे सौंपकर पिंटू आराम से मजे ले रहा था.. कविता कभी उसके होंठों को चूमती.. कभी चाटती और कभी मस्ती से काट भी लेती थी.. कविता का हाथ अब पिंटू की अन्डरवेर के अंदर घुस गया और मुठ्ठी में उस सुंदर लिंग को पकड़ लिया.. बेशक उनकी हरकतें ऐसी थी की आसपास के लोगों को पता चल जाए.. पर बाकी सारे कपल्स भी ऐसी ही मस्ती में लीन थे..

पिंटू का लंड हिलाते हुए कविता को अनायास ही रसिक के लंड की याद आ गई.. बाप रे.. कितना खतरनाक था रसिक का लंड..!! ऊपर चढ़कर पूरा डाल दिया होता तो मर ही जाती मैं.. अंदर उछल रहे लंड को अपनी कोमल हथेली से महसूस करते हुए कविता की चूत से कामरस बहने लगा.. सिनेमा हॉल के अंधेरे में कई कपल्स उत्तेजक हरकतें कर रहे थे.. कई लोगों की सिसकियाँ भी सुनाई पड़ रही थी.. कविता और पीयूष के आगे बैठा हुआ कपल तो सारी सीमाएं लांघ चुका था.. उस पुरुष की गोद में सर रखकर जिस तरह वो औरत ऊपर नीचे कर रही थी उससे साफ प्रतीत हो रहा था की वो लंड चूस रही थी..

ये देखते ही कविता ने पिंटू की और देखकर एक शरारती मुस्कान दी.. दोनों की नजरें चार हुई.. इशारों इशारों में पिंटू ने पेशकश कर दी और कविता ने स्वीकार भी कर लिया.. उसने अपने खुले हुए बाल रबरबैंड से बांध दीये.. और पिंटू की गोद में सर डालकर बैठ गई.. एक ही पल में लंड बाहर निकालकर कविता लोलिपोप की तरह चूसने लगी..

cb

पिंटू को आश्चर्य हुआ.. जब जब वो और कविता मिलते तब वो कितने मिन्नतें करता तब जाकर कविता उसका मुंह में लेती.. आज एक ही इशारे में मान गई.. कविता की इस हरकत से पिंटू बेहद उत्तेजित हो गया.. कविता अपने प्रेमी को महत्तम सुख देने के इरादे से पागलों की तरह लंड चूसने लगी.. गजब का करंट लग रहा था पिंटू को.. कविता के चूसने से.. थोड़ी ही देर मे वो कमर उठाकर.. कविता के सर को दोनों हाथों से पकड़ कर.. उसके मुंह में धक्के लगाने लगा.. और उसी के साथ ही उसके लंड ने कविता के मुख में उत्तेजना की बारिश कर दी.. कविता का मुंह पूरा वीर्य से भर गया..

cum-in-mouth2

वैसे कविता को ये बिल्कुल ही पसंद नहीं था.. पर वो पिंटू को जरा भी नाराज करना नहीं चाहती थी.. उसे उलटी आ रही थी पर फिर भी उसने अपने आप को संभालें रखा.. और तब तक चूसती रही जब तक पिंटू शांत न हो गया..

संभालकर पिंटू का लंड मुंह से बाहर निकालकर कविता ने सारा वीर्य सीट के नीचे थूक दिया.. और रुमाल से अपना मुंह साफ कर दिया.. अब कविता अपनी सीट पर बैठ गई.. पिंटू ने अपना लंड अंदर रख दिया.. अब दूसरी मंजिल के लिए दोनों तैयार हुए.. और वो था कविता का ऑर्गजम..

कविता के गालों पर चूमते हुए उसने उसके घाघरे के अंदर हाथ डाल दिया.. उसकी चिकनी जांघों से होते हुए पिंटू की उँगलियाँ कविता की चूत तक जा पहुंची.. पिंटू आराम से अपनी उंगलियों का योनि प्रवेश कर सके इसलिए कविता ने अपना घाघरा ऊपर तक उठा दिया.. अब पिंटू का हाथ बड़ी आसानी से अंदर पहुँच रहा था.. साड़ी का पल्लू हटाकर अपने दोनों उरोजों को बाहर खुला छोड़ दिया कविता ने.. पिंटू कविता के गाल, गर्दन और होंठों पर पागलों की तरह चूमने लगा.. उसका एक हाथ कविता के स्तनों को मसल रहा था जबकी दूसरे हाथ की दो उँगलियाँ कविता की चूत में अंदर बाहर हो रही थी.. कविता के तो मजे मजे हो गए थे.. पिंटू का साथ उसे इतना पसंद था की उसने अपना पूरा बदन सीट पर ढीला छोड़कर उसे समर्पित कर दीया था..

cf0cf

अत्यंत आवेश में आकर पिंटू ने फिंगरिंग की गति बढ़ा दी.. तेजी से उंगलियों को अंदर बाहर करते हुए कविता की भूख को शांत कर दिया.. कविता की चूत अपना अमृत रस सीट पर टपका रही थी..

cf2

उसी अवस्था में थोड़ी देर तक कविता पड़ी रही.. ना ही उसने खुले स्तनों को ढंका और ना ही अपना घाघरा नीचे किया.. वैसे ही बैठे बैठे उसने पिंटू की चूत रस लगी उंगलियों को चूसना शुरु कर दिया..

अब जुदाई करीब थी.. दोनों जान गए थे की अब बिछड़ने का वक्त आ चुका था.. बार बार पिंटू की हथेली को चूम रही कविता के आँसू पिंटू के हाथ पर टपक रहे थे..

"उदास क्यों हो रही है? इतना मज़ा करने के बाद रो रही है तू?" पिंटू ने कहा.. जिसका कविता ने कोई उत्तर नहीं दिया.. वो तो बस पिंटू की हथेली को अपने होंठों से दबाकर बस चूमती रही.. काफी देर तक उसने हाथ पकड़े रखा

"अब चलें कविता.. ?? डेढ़ घंटा तो बीत चुका है.. अब तुम्हें घर चले जाना चाहिए वरना तेरी मम्मी चिंता करेगी" कविता बस पिंटू को देखती रही.. कितनी फिक्र है इस लड़के को मेरी..

अपने आंसुओं को पोंछ कर कविता सीट से खड़ी हो गई.. खड़े होने के बाद उसे याद आया.. दोनों स्तन तो अभी भी बाहर खुले लटक रहे थे.. !! उन्हें ब्लाउस में डालना तो भूल ही गई.. वो तुरंत बैठ गई और स्तनों को दोनों कटोरियों में बंद कर दिया.. सामने बैठे कापल ने कविता के स्तनों को देख लिया था.. पर वो दोनों खुद ही अधनंगी अवस्था में बैठे हुए थे.. कविता ने देखा.. कपल में जो युवती थी उसने अपने बॉयफ्रेंड का लंड हाथ में पकड़ रखा था.. उसके सामने देखकर कविता मुस्कुराई..


पिंटू और कविता खड़े हो गए और बाहर निकल गए.. कविता को ऑटो में बिठाकर पिंटू भी उदास मन से अपना बाइक लेकर निकल गया..
Super erotic update
✅✅✅✅✅✅
👌👌👌👌👌
💦💦💦💦
 

vakharia

Supreme
4,975
11,400
144
बहुत ही शानदार अपडेट । 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻

200 पेज पूरे होने की बहुत बहुत शुभकामनाएँ आपको 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
शुक्रिया भाई। बहुत दिनों बाद आप थ्रेड पर नज़र आए। आते रहिएगा 🙏
 

Rajpoot MS

I love my family and friends ....
381
636
93
बहुत ही कामुक और उत्तेजना से भरपूर अपडेट
 
  • Like
Reactions: Napster
Top