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Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

vakharia

Supreme
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बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
अनुमौसी के ढिले पडे भोसडे और गांड को चोद कर शीला के कहने पर शीला के घर में रसिक ने अनुमौसी को चुदाई का एक नया पाठ पढा कर तृप्त कर दिया
बडा ही जबरदस्त अपडेट हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
Thanks Napster bhai💖❤️💖
 

Ek number

Well-Known Member
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इस तरफ अनुमौसी ने रसिक को सारी बात कर दी थी.. बता दिया था की अब वो अगले रविवार को जाएंगे क्योंकी इस रविवार को कविता अपने मायके जाने वाली है.. आज अनुमौसी ने शीला के घर सोने का सेटिंग कर दिया.. सिर्फ औपचारिकता के लिए उसने चिमनलाल को साथ चलने के लिए कहा.. पर उन्होंने मना कर दिया.. जब बेटिंग करनी ही न हो तब पिच पर जाकर क्या फायदा.. !!

मौसी को उससे कोई फरक नहीं पड़ा.. वो तो उल्टा खुश हो गई.. अब आराम से वो रसिक के साथ अपनी मर्जी से जो चाहे कर सकती थी.. वैसे अगर चिमनलाल साथ आए होते तो भी उसे दिक्कत नहीं थी.. वो जानती थी की चिमनलाल की नींद इतनी गहरी थी की अगर वो उनके बगल में लेट कर रसिक से चुदवा लेती तो भी उन्हें पता नहीं चलता..


रसिक के लिए सुबह जल्दी उठना था इसलिए मौसी निश्चिंत होकर सो गई..

दूसरी सुबह रसिक ने मौसी को, कविता के साथ सेटिंग हो जाने की आशा से, ज्यादा मजे से रौंदा.. और कुछ नई हकतें कर उन्हें हवस से पागल कर दिया.. रसिक जैसे जैसे अनुमौसी के भूखे शरीर को नए नए तरीकों से चोदता गया.. वैसे वैसे अनुमौसी रसिक को पाने के लिए ज्यादा रिस्क लेने के लिए ओर भी तत्पर हो रही थी.. मौसी को रसिक के साथ संभोग से जो आनंद मिल रहा था, जीवन का एक ऐसा नया अनुभव था.. जो आज तक उन्हें कभी नसीब नहीं हुआ था.. उसमें भी रसिक जिस तरह की कामुक बातें करते हुए उन्हें चोदता.. आहाहाहाहा.. उन्हें तो मज़ा ही आ जाता..!!

मौसी को धक्के लगाते हुए रसिक ने कहा "मौसी, मेरा तो मन कर रहा है की एक पूरा दिन आपकी टांगों के बीच ही बिताऊँ.. ये सारे झांटें साफ करके आपकी चूत की एकदम चिकनी चमेली बना दूँ.. और फिर चाटता रहूँ" ऐसी ऐसी बातें कर वो मौसी का मन लुभाता


चिमनलाल ने कभी ऐसा कुछ भी मौसी के साथ नहीं किया था.. करने की तो बात दूर.. कभी ऐसा कहा भी नहीं था.. चालीस सालों में मौसी ने कभी चिमनलाल को गाली देते हुए नहीं सुना था.. जब की रसिक तो खुलेआम भेनचोद-मादरचोद जैसे शब्द बोलता रहता.. उनकी उत्तेजना को बढ़ाने में रसिक की गालियां चाट-मसाले का काम करती.. रसिक ने उन्हें ऐसे अलग अलग तरीकों से मज़ा दिया था जो वो कभी भूलने नहीं वाली थी.. पसंद आ गया था रसिक उन्हें.. उसका मजबूत मोटा लंड.. उसका कसरती शरीर.. और उसकी चाटने की कला.. मौसी तो जैसे उसकी कायल हो चुकी थी

कहते है ना.. दिल लगा गधी से तो परी क्या चीज है.. !!

मौसी ने तय कर लिया था.. अब वो रसिक को किसी भी चीज के लिए मना नहीं करेगी..

कोई कुछ भी कहें.. सेक्स हमेशा से मानवजात के लिए रोमांच, उत्तेजना, आनंद और जीवन-मरण का विषय रहा है.. अच्छे से अच्छे लॉग.. कितने भी संस्कारी और खानदानी क्यों न हो.. इसके असर से बच नहीं पाए है.. ये स्प्रिंग तो ऐसी है जिसे जितना दबाओ उतना ही ज्यादा उछलती है.. सब से उत्तम रास्ता है की सेक्स को संतुलित मात्रा में भोगकर संतोष करना चाहिए.. "युक्तआहार विहारस्य" मतलब सब कुछ कंट्रोल में होना चाहिए.. और मर्यादा में.. सेक्स की भावनाओ को जितना साहजीकता से स्वीकार कर ले उतना वो काम परेशान करती है..

रसिक अपनी लीला करके मौसी को तृप्त करने के बाद.. दूध देकर चला गया उसके बाद मौसी को पता चला की कविता और पीयूष का प्रोग्राम तो केन्सल हो चुका है.. वो अपना सर पकड़कर बैठ गई.. इसका मतलब तो ये हुआ की अब कविता अगले रविवार को जाएगी.. !! फिर तो हमें प्रोग्राम इसी शनि-रवि को सेट करना होगा.. पर मैंने तो इस हफ्ते के लिए रसिक को पहले से मना कर रखा है.. अब क्या करूँ? रसिक को फोन करूँ?

मौसी ने रसिक को फोन लगाया और रसिक को प्रोग्राम चेंज करने के लिए कहा.. पर रसिक ने बताया की मौसी ने इस रविवार के लिए मना किया इसलिए उसने शहर से बाहर जाने का तय किया था.. अब तो इस शनि-रवि को उसका आना मुमकिन नहीं था.. !! मौसी निराश हो गई.. लाख मनाने पर भी रसिक नहीं माना.. रसिक ने कहा की वो सिर्फ आज का दिन शहर में था.. अगर शीला भाभी के घर कुछ सेट हो सके तो करें.. बाकी वो कल सुबह से बाहर निकल जाने वाला था..

मौसी का दिमाग काम नहीं कर रहा था.. इतनी अच्छी योजना पर पानी फिर गया था.. रसिक को बाद में फोन करने की बात कहकर वो शीला के घर से अपने घर चली गई.. जब वो घर के अंदर आई तब कविता किचन में खाना बना रही थी.. मौसी बाहर बरामदे में झूले पर बैठ गई.. वो झूला झूल रही थी तभी रसिक का फोन आया.. बाहर तेज धूप थी इसलिए स्क्रीन पर रसिक का नाम उन्हें दिखाई नहीं दिया.. उन्होंने सीधा फोन उठा लिया.. रसिक की आवाज सुनते ही उन्हों ने उसे होल्ड करने को कहा.. और उससे बात करने के लिए छत पर चली गई

किचन से कविता अपनी सास की सारी हरकतें देख रही थी.. अचानक ऐसा क्या हुआ जो वो झूले से उठकर छत पर चली गई? वो भी इस वक्त? जरूर रसिक का फोन होगा.. अब वो दोनों क्या खिचड़ी पका रहे है ये जानना बेहद आवश्यक था कविता के लिए.. क्यों की वो लॉग जो भी प्लान कर रहे थे वो उसके बारे में ही तो था

मौसी सीढ़ियाँ चढ़ते चढ़ते सोच रही थी.. चिमनलाल दुकान के काम से बाहर थे और कल आने वाले थे.. पीयूष भी सुबह बताकर गया था की आज उसे देर होगी ऑफिस में.. मौसी के मन मे खयाल आया की क्यों न यहीं घर पर ही प्लान को अंजाम दिया जाए.. !! उनके घर पर कोई नहीं होगा कविता के अलावा और शीला का घर भी खाली था.. आदिपुर जाकर जो करना था वो तो अब यहीं हो सकता था..

इस बारे में वो रसिक के साथ चर्चा करने लगी.. सीढ़ियों पर छुपकर खड़ी कविता अपनी सास की बातें सुनने का प्रयत्न कर रही थी.. ठीक से सुनाई नहीं दे रहा था पर इतना तो समझ गई की दोनों ने नए सिरे से कुछ योजना बनाई थी.. आखिर में उसने अनुमौसी को आइसक्रीम के बारे में बात करते हुए सुना.. कविता भी सोच में पड़ गई.. की वो किस बारे में बात कर रही थी और आइसक्रीम का जिक्र क्यों किया?? कहीं मम्मी जी ने मुझे फँसाने का प्लान तो नहीं बनाया?? इस वक्त तो शीला भाभी उसकी मदद के लिए नहीं थी.. और पीयूष भी आज देर रात तक या फिर कल सुबह तक नहीं आने वाला था.. कविता अब अकेली पड़ गई थी..

जैसे जैसे शाम ढलती गई.. कविता की घबराहट बढ़ती गई.. शाम का खाना भी उसने ठीक से नहीं खाया.. मौसी ने भी तबीयत का बहाना बनाकर ज्यादा नहीं खाया.. रात के आठ बजे थे और सास-बहु दोनों टीवी पर सीरीअल देख रही थी.. दोनों में से किसी का भी ध्यान टीवी में नहीं था..

घड़ी में नौ बजते ही.. मौसी अचानक उठी.. और घर के बाहर चली गई.. थोड़ी देर बाद जब वो वापिस लौटी तब उनके हाथ में आइसक्रीम के दो कप थे..

"मैंने कहा था ना तुझे की तबीयत ठीक नहीं है मेरी.. सुबह से ऐसीडीटी हो गई है.. छाती में जल रहा था मुझे.. तो बगल वाली दुकान से आइसक्रीम ले आई.. ले बेटा.. एक आइसक्रीम तू खा ले.. " कहते हुए मौसी ने एक कप कविता को थमाकर दूसरे कप से आइसक्रीम खाना शुरू कर दिया

आइसक्रीम को देखते ही कविता चौकन्नी हो गई.. कहीं ये दोनों मुझे आइसक्रीम में कुछ मिलाकर तो नहीं दे रहे? हे भगवान, अब.. !! मुझे बेहोश करके मेरे साथ कोई गंदी हरकत करने का तो नहीं सोचा होगा ना.. !! कविता पढ़ी लिखी और चालाक थी.. वो आइसक्रीम का कप लेकर किचन में गई.. और बर्तन माँजते हुए आइसक्रीम के कप को सिंक में खाली कर दिया.. बाहर आकर उसने ऐसा ही जताया की बर्तन माँजते माँजते उसने आइसक्रीम खा लिया था..

ये सुनते ही मौसी के चेहरे पर चमक आ गई.. सब कुछ उनके और रसिक के प्लान के मुताबिक चल रहा था.. उन्हों ने एक दो बार कविता को पूछा भी.. "बेटा, तुझे अगर नींद आ रही हो तो सो जा.. !!" अब कविता को यकीन हो गया.. मम्मी जी बार बार उसे सो जाने के लिए क्यों कह रही थी.. उसे विचार आया.. की झूठ मूठ सो जाती हूँ.. फिर देखती हूँ की क्या होता है!!

कविता बेडरूम में सोने के लिए गई तो मौसी भी उसके पीछे पीछे चली आई.. "मुझे भी नींद आ रही है.. आज तू अकेली है तो मैं भी तेरे साथ सो जाती हूँ.. " उन्हें मना करने का कविता के पास कोई कारण नहीं था..

सास और बहु एक ही बिस्तर पर लेटे हुए बातें करने लगे..

मौसी: "कविता बेटा.. अब पीयूष और तेरे बीच कोई तकलीफ तो नहीं है ना.. !! सब ठीक चल रहा है?"

कविता: "हाँ मम्मी जी.. सब ठीक चल रहा है.. वो तो हमारे बीच थोड़ी गलतफहमी थी जो दूर हो गई.. अब कोई प्रॉब्लेम नहीं है"

अनुमौसी: "चलो अच्छा हुआ.. अब तो यही आशा है की जल्दी से तेरी गोद भर जाएँ.. और हमें खेलने के लिए एक खिलौना मिल जाएँ.. बूढ़े माँ बाप को और क्या चाहिए.. !!"

सुनकर कविता शरमा गई.. मम्मी जी की बात तो सही थी पर अभी इस बारे में उसने या पीयूष ने सोचा नहीं था..

थोड़ी देर तक यहाँ वहाँ की बातें कर कविता ऐसे अभिनय करने लगी जैसे वो सो रही हो.. उसने अनुमौसी की बातों का जवाब देना ही बंद कर दिया ताकि उन्हें यकीन हो जाए की वो गहरी नींद सो गई थी..

कविता को सोता हुआ देख मौसी का चेहरा आनंद से खिल उठा.. तसल्ली करने के लिए उसने दो-तीन बार कविता को कुछ पूछा पर कविता ने जवाब नहीं दिया.. एक बार उसे कंधे से हिलाकर भी देखा पर कविता ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.. वो सोने का नाटक करती रही

मौसी बिस्तर से उठी और चुपके से दरवाजा खोलकर बाहर निकली.. वो घर के बाहर बरामदे में जाकर फोन पर बात करने लगी.. उनके पीछे पीछे कविता भी गई और चुपके से उनकी बातें सुनने लगी..

"हाँ.. सब हो चुका है प्लान के मुताबिक.. मैंने दरवाजा खुला ही छोड़ रखा है.. अब तू आजा.. !! आइसक्रीम खाते ही वो सो गई.. तू आकर अपना काम कर ले और जल्दी निकल जाना.. वैसे कविता कब तक बेहोश रहेगी??" सुनकर कांप उठी कविता.. !! अब क्या होगा?? उसका दिल किया की घर से भाग जाएँ.. !! पर इतनी रात को वो जाए तो जाए कहाँ.. अब रसिक के हाथों से उसे कोई बचाने वाला नहीं था..

कविता चुपचाप बेड पर आकर सो गई.. और मौसी के आने से पहले खर्राटे मरने लगी.. मौसी ने आकर कविता को एक बार फिर जगाने की कोशिश की.. पर अब वो कहाँ जागने वाली थी?? उसने तो अपना अभिनय जारी रखा

कविता को बेहोश देखकर मौसी के चेहरे पर कामुक मुस्कान आ गई.. मौसी ने अपनी साड़ी उतार दी.. कविता ने हल्के से आँख खोलकर उन्हें देखा.. लटका हुआ बेढंग पेट.. और घाघरे के अंदर लटक रहे बूढ़े कूल्हें.. ब्लाउस और घाघरे में तो कविता ने मौसी को काफी बार देखा था.. पर जैसे ही मौसी ने अपने ब्लाउस के सारे हुक खोल दीये.. उनके बिना ब्रा के निराधार स्तन लटकने लगे.. देखकर कविता शरमा गई.. कविता सोच रही थी की मम्मी जी घाघरा ना उतारें तो अच्छा वरना मैं सच में बेहोश हो जाऊँगी..!!

अचानक घर का दरवाजा बंद होने की आवाज आई.. कविता के दिल की धड़कनें तेज हो गई.. उसने अपनी आँखें बंद कर ली.. पर आँख बंद कर लेने से वास्तविकता से वो कहाँ बचने वाली थी?? रसिक कमरे मे आया और मौसी के साथ बात करने लगा

"सब कुछ ठीक ठाक है ना मौसी? कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं है ना??"

"हाँ हाँ सब ठीक है.. तू खुद चेक कर ले.. बेहोश पड़ी हुई है.. "

रसिक ने कविता की ओर देखा और उसके कोमल गोरे गालों को सहलाने लगा.. रसिक के स्पर्श से कविता सहम गई.. खुरदरी उंगलियों की रगड़ उसे बेहद घिनौनी लग रही थी..

अपनी मर्जी से किसी भी पुरुष के साथ.. फिर चाहे वो उसका पति ना भी हो.. औरत निःसंकोच पैर चौड़े कर सकती है.. पर उसकी मर्जी के खिलाफ अगर कोई उसे छु भी ले तो वो बर्दाश्त नहीं करती..

"आह्ह मौसी.. कितनी नाजुक और कोमल है आपकी बहु रानी.. !! गोरी गोरी.. अब तो अगर ये होश में आ भी गई तो भी मैं इसे नहीं छोड़ूँगा.. कितने दिनों से इसे देखकर तड़प रहा हूँ"

रसिक के लंड की हालत देखकर मौसी समझ गई की कविता के कमसिन जवान बदन का जादू उस पर छाने लगा था.. वरना मौसी को नंगा देखने के बावजूद भी इतना कडा कभी नहीं हुआ था रसिक का..

"जल्दबाजी मत करना रसिक.. कुछ ऊपर नीचे हो गया तो तेरे हाथ कुछ नहीं लगेगा..और मेरी भी इज्जत की धज्जियां उड़ जाएगी "

"अरे मौसी.. ऐसे छातियाँ खोलकर रात को दस बजे अपने बेटे की जोरू को.. मुझ जैसे गंवार के लिए तैयार रखे हुए हो.. और इज्जत की बात कर रही हो??" कहते हुए रसिक ने हँसते हँसते अनुमौसी को सुना दी..

अपना लंड खोलकर मौसी को थमाते हुए रसिक बोला "ये लीजिए मौसी.. जितना दिल करे खेल लीजिए आज तो.. तब तक मैं आपकी बहु को आराम से.. अपने तरीके से देख लूँ"



रसिक ने झुककर कविता के गालों को चूम लिया.. कविता का दिल धक धक कर रहा था..

रसिक का लंड मुठ्ठी में दबाकर आगे पीछे हिलाते हुए वासना में अंध सास ने अपनी जवान बहु को इस कसाई के हाथों बलि चढ़ा दिया था..



कविता मन ही मन प्रार्थना कर रही थी की ये समय जल्दी से जल्दी बीत जाए.. पर समय तो अपनी गति से ही चलने वाला था..

करवट लेकर सोई कविता को रसिक ने पकड़कर सीधा कर दिया.. सब से पहले तो उसने ड्रेस के ऊपर से ही कविता के बबलों को पकड़कर मसल दिया.. रसिक के विकराल हाथों तले कविता की चूचियाँ ऐसे दबी जैसे हाथी के पैरों तले गुलाब के फूल दब गए हो.. और स्तन होते भी बड़े नाजुक है..



कविता के सुंदर स्तनों का स्पर्श होते ही रसिक का लंड डंडे जैसा सख्त हो गया..

"हाय.. कितना कडक हो गया है तेरा आज तो.. डाल दे मेरे अंदर.. तो थोड़ा सा नरम हो जाएँ.. वरना ये तेरी नसें फट जाएगी" पर रसिक को आज अनुमौसी में कोई दिलचस्पी नहीं थी.. जब इंग्लिश शराब सामने पड़ी हो तब भला देसी ठर्रा कौन पिएगा?? एकटक वो कविता की छातियों को साँसों के साथ ऊपर नीचे होते हुए देखता रहा.. कभी वो अपनी पूरी हथेली से स्तनों को नापता.. तो कभी उसकी गोलाइयों पर हाथ फेरता.. रसिक जैसे कविता के जिस्म के जादू में खो सा गया था..

आँखें बंद कर पड़ी हुई कविता प्रार्थना कर रही थी की कोई मुझे बचा लो.. !!

अनुमौसी को तो रसिक का लंड मिल गया.. इसलिए उनका सारा ध्यान उससे खेलने में ही था.. उन्हें कोई परवाह नहीं थी की रसिक कविता के साथ क्या कर रहा था.. कभी वो अपनी निप्पलों से लंड को रगड़ती.. कभी चमड़ी को पीछे धकेलकर उसके टमाटर जैसे सुपाड़े को चूम लेती.. तो कभी उसके अंडकोशों को सहलाती.. जैसे जैसे वो लंड के साथ खेलती गई.. वैसे वैसे उत्तेजना के कारण उनकी सांसें और भारी होती गई..

रसिक ने कविता की छाती से दुपट्टा हटा दिया.. "आहहाहाहाहा.. " उसका दिल बाग बाग हो गया.. रोज सुबह.. जिन स्तनों को नाइट ड्रेस के पीछे छुपा हुआ देखकर आहें भरता था.. आज वही स्तन उसके सामने थे.. नजदीक से तो और सुंदर लग रहे थे.. वो जल्दबाजी करना नहीं चाहता था.. आराम से इन सुंदर स्तनों का लुत्फ उठाना चाहता था..

कविता सोच रही थी की अगर मैं होश में होती तो मजाल थी रसिक की जो मेरे सामने आँख उठाकर भी देखता.. !! ये तो मेरे घर के बुजुर्ग ने ही मेरी इज्जत नीलाम कर दी.. अपनी सास को मन ही मन कोसने लगी वो.. घर को लगा दी आग.. घर के ही चिरागों ने.. !!

ड्रेस का पहला हुक खुलते ही कविता रोने जैसी हो गई.. मौसी ने लाइट भी चालू रखी थी.. क्यों की रसिक ने ऐसा करने को कहा था.. वैसे मौसी तो लाइट को बंद करना चाहती थी पर रसिक तो उजाले में ही कविता के स्तनों के जलवे देखना चाहता था.. हमेशा देहाती बबलों से ही खेलता रहा रसिक.. आज शहरी मॉडर्न स्तनों को खोलकर देखने वाला था..

कविता ने बिल्कुल हल्की सी आँख खोल रखी थी.. उसे सिर्फ दो साये नजर आए.. मौसी घुटनों के बल बैठी हुई थी और रसिक का लंड निगल चुकी थी.. उसे रसिक का लंड देखना था पर वो तो अभी उसकी सास के मुंह के अंदर था.. !! बड़े ही मजे से अनुमौसी रसिक का लंड चूस रही थी.. कविता की तरफ अब रसिक की पीठ थी.. जो पसीने से तर हो चुकी थी.. कविता सोच रही थी की ज्यादा गर्मी तो थी नहीं तो फिर रसिक को इतना पसीना क्यों आ रहा था??

"रसिक, तू सारे कपड़े उतार दे.. तुझे नंगा देखना चाहती हूँ" रसिक का लंड मुंह से निकालकर मौसी ने कहा

"आप भी अपना घाघरा उतार दीजिए मौसी.. दोनों नंगे हो जाते है.. " रसिक ने फटाफट अपने कपड़े उतार फेंके.. दोनों जांघों के बीच झूल रहे उस शानदार लंड को और उसके तगड़े सुपाड़े को देखकर मौसी की सिसकियाँ निकलने लगी.. "कितना बड़ा है रे तेरा!! रूखी भी पागल है.. इतना मस्त लोडा छोड़कर दूसरों के लेने जाती है.. !!"

"मौसी, मैं कविता को भी नंगी देखना चाहता हूँ.. कुछ कीजिए ना.. " मौसी को आगोश में दबाते हुए उसका लंड भोसड़े पर रगड़ते हुए रसिक ने कहा.. उसके स्पर्श से मौसी की वासना चौगुनी हो गई.. रसिक की पीठ पर हाथ फेरते हुए.. उसके कंधों पर लगे पसीने को चाटकर.. अपने भोसड़े के द्वार पर दस्तक देते गरम लंड को घिसते हुए.. कुछ कहा नहीं.. वो सोच रही थी.. बेहोशी की इस हालत में कविता को नंगी कैसे कर दूँ?? अगर उसे होश आ गया तो?? शायद दवाई के असर के कारण वो होश में न भी आए.. पर अपने बेटे की पत्नी को अपनी नजरों के सामने नंगा होते देखूँ?? कविता ने मेरे सामने कभी अपनी छाती से पल्लू भी नहीं हटने दिया.. खैर.. अभी तो वो बेहोश है.. उसे कहाँ पता चलेगा की मैं ही उसके साथ ये सब कर रही हूँ.. !! आज बढ़िया मौका मिला है.. रसिक को हमेशा के लिए अपना बनाने का.. रसिक को बेहोश कविता के साथ जो मर्जी कर लेने देती हूँ.. इतना साहस करते हुए यहाँ तक आ ही गए है.. तो ये भी हो जाने देती हूँ.. किसी को कहाँ कुछ पता चलने वाला है.. !!

मौसी ने रसिक को इस तरह खड़ा कर दिया की उसका लंड बिल्कुल कविता के मुंह के सामने आ गया.. बस एक फुट का अंतर होगा.. हल्की सी आँख खोलकर ये सब चुपके से देख रही कविता की आँख थोड़ी सी ज्यादा खुल गई.. और रसिक के खूंखार लंड को एकदम निकट से देख सकी.. ये एक ऐसा नजारा था जो कविता देखना तो नहीं चाहती थी.. पर एक बार रसिक के तगड़े लंड को देखकर नजरें हटाना मुश्किल था.. इतना विकराल और मोटा लंड था.. पीयूष का लंड तो उसके आगे बाँसुरी बराबर था.. कविता सोच रही थी की ऐसा लंड जब अंदर जाएगा तो क्या हाल होता होगा.. !! अनुमौसी ने पकड़कर रसिक के लंड को नीचे की तरफ दबाया तो वो वापिस स्प्रिंग की तरह उछलकर ऊपर आ गया.. देखते ही कविता के जिस्म में एक मीठी से सुरसुरी चलने लगी..

मौसी ने फिर से रसिक के सुपाड़े को चूम लिया.. "ओह रसिक.. बड़ा जालिम है तेरा ये मूसल.. आह्ह" कहते हुए वो पूरे लंड को चाटने लगी.. रसिक का लंड अब मौसी की लार से सन चुका था.. गीला होकर वो काले नाग जैसा दिख रहा था.. पूरा दिन भजन गाती रहती अपनी सास को.. इस देहाती गंवार का लंड बेशर्मी से चाटते हुए देखकर कविता को कुछ कुछ होने लगा.. अपनी सासुमाँ का नया स्वरूप देखने मिला उसे.. बेशर्म और विकृत.. !!

कविता को पसीने छूटने लगे.. सासुमाँ की लार से सना हुआ रसिक का लंड.. ट्यूबलाइट की रोशनी में चमक रहा था.. कविता की कलाई से भी मोटा लंड जब अनुमौसी ने मुंह में लिया तब ये देखकर कविता की चूत पसीज गई.. पेन्टी का जो हिस्सा उसकी चूत की लकीर से चिपका हुआ था.. वो चिपचिपा और गीला हो गया.. उत्तेजना किसी की ग़ुलाम नहीं होती..

एक के बाद एक कविता के ड्रेस के हुक खोलने कलगा रसिक.. उस दौरान मौसी पागलों की तरह रसिक के सोंटे को चूस रही थी.. ड्रेस खुलते ही अंदर से सफेद जाली वाली ब्रा.. और बीचोंबीच नजर आती गुलाबी निप्पल.. देखते ही रसिक के लंड ने मौसी के मुंह में वीर्य की पिचकारी छोड़ दी.. मौसी को ताज्जुब हुआ.. खाँसते हुए उन्हों ने लंड मुंह से बाहर निकाला.. मौसी को खाँसता हुआ सुनकर कविता समझ गई की क्या हो गया था.. !!


मुंह में पिचकारी मारने की पुरुषों की आदत से कविता को सख्त नफरत थी.. जब कभी पीयूष ने ऐसा किया तब कविता उसे धमका देती.. ब्लू फिल्मों में देखकर जब पीयूष वहीं हरकत कविता के साथ करने की जिद करता तब वो साफ मना कर देती और कहती "तेरा लंड अगर इस ब्लू फिल्म के अंग्रेज की तरह गोरा-गुलाबी होता तो शायद मैं मान भी जाती.. ऐसे काले लंड को चूस लेती हूँ..वही बहोत है.. "

अनुमौसी का भोसड़ा भूख से तड़प रहा था.. और रसिक की पिचकारी निकल गई.. पर अभी उस पर गुस्सा करने का वक्त नहीं था.. मुंह फेरकर उन्होंने पास पड़े कविता के दुपट्टे से रसिक का वीर्य पोंछ दिया और अपनी भोस खुजाते हुए रसिक के लोड़े को प्यार करने लगी.. अभी तक स्खलन के नशे से रसिक का लंड उभरा नहीं था.. रह रहकर डिस्चार्ज के झटके खा रहा था..

मौसी इतनी गरम हो चुकी थी की उनका ध्यान केवल रसिक के लोड़े को फिर से जागृत करने में लग गया था.. रसिक कविता के बदन में ऐसा खो चुका था के आसपास के वातावरण को भूलकर.. सफेद रंग की ब्रा के ऊपर से कविता के अमरूद जैसे स्तनों को अपने खुरदरे हाथों से मसल रहा था.. उसके स्तनों की साइज़ और सख्ती देखकर रसिक सांड की तरह गुर्राने लगा.. अभी डिस्चार्ज होने के बावजूद वो उत्तेजित हो गया..

थोड़ी सी आँख खोलकर कविता, सासुमाँ और रसिक की कामुक हरकतों को देख रही थी.. इसका पता न मौसी को था और न ही रसिक को.. मौसी का सारा ध्यान रसिक के लंड पर था और रसिक का सारा ध्यान कविता की चूचियों पर.. रसिक अब कविता की चिकनी कमर.. हंस जैसी गर्दन और गोरे चमकीले गालों पर चूम रहा था.. कविता की नाभि में बार बार अपनी जीभ घुसेड़ रहा था.. इन चुंबनों से और पूरे बदन पर स्पर्श से कविता उत्तेजित हो रही थी.. चूत से तरल पदार्थ की धाराएं निकल रही थी.. रसिक के आगे पीछे हिलने के कारण.. एक दो बार उसका लंड कविता का स्पर्श कर गया और उस स्पर्श ने उसे झकझोर कर रख दिया..

"मुझे बाथरूम जाना है.. मैं अभी आई.. ध्यान रखना रसिक.. कहीं इसे होश न आ जाए" कहते हुए मौसी कविता के बेडरूम में बने अटैच टॉइलेट में घुस गई.. रसिक ने अब कविता की कमर उचककर उसकी सलवार उतार दी.. पेन्टी के ऊपर से स्पष्ट दिख रही चूत की लकीर को हल्के से छूने लगा.. यह पल रसिक के लिए अविस्मरणीय थी.. नाजुक सुंदर कविता.. पतली कमर और सख्त रसीले स्तनों वाली.. जिसे देखना भी रसिक के लिए भाग्य की बात थी.. पर आज तो वो उसकी चूत तक पहुँच गया था.. इस निजी अवयव पर रसिक हाथ फेरकर रगड़ता रहा..

बिना झांट की टाइट गोरी सुंदर चूत को देखकर रसिक को मौसी के झांटेंदार भोसड़े पर हंसी आ गई.. मौसी भी जवान रही होगी तब उनकी भी चूत ऐसी ही चिकनी होगी.. पर अब ये ऐसी क्यों हो गई?? आकर भी बदल गई.. चौड़ाई भी बढ़ गई.. और स्वच्छता के नाम पर शून्य.. अपने पति को जिस हिसाब से वो कोसती है.. लगता नहीं था की उन्होंने मौसी के भोसड़े का ये हाल किया होगा.. या हो सकता है की मुझ से पहले.. मौसी का खेत कोई ओर जोत चुका हो.. !! क्या पता.. !!

कविता की पेन्टी को एक तरफ करते हुए वो चूत के दर्शन कर धन्य हो गया.. कविता की हालत खराब हो रही थी.. वह उत्तेजित थी और कुछ कर भी नहीं पा रही थी.. उसकी चूत से खेल रहे रसिक का लंड उसे साफ नजर आ रहा था.. उसका कद और मोटाई देखकर उसे हैरत हो रही थी..


तभी अनुमौसी बाथरूम से निकले.. रसिक उनकी बहु के नंगे शरीर से जिस तरह खिलवाड़ कर रहा था वो उन्हों ने एक नजर देखा.. उनके चेहरे पर हवस का खुमार छा चुका था..क्यों की अब तक वो संतुष्ट नहीं हो पाई थी.. कविता की चूत पर हाथ सहला रहे रसिक का हाथ हटाकर उन्होंने अपनी भोस पर रख दिया.. रसिक ने तुरंत तीन उँगलियाँ उनकी गुफा में डाल दी.. रसिक की खुरदरी उंगलियों का घर्षण महसूस होते हुए मौसी के मुंह से "आह्ह" निकल गई.. रसिक के उंगलियों में.. चिमनलाल के लंड से सौ गुना ज्यादा मज़ा आ रहा था.. मौसी के ढीले भोसड़े को अपनी उंगलियों से पूरा भर दिया रसिक ने.. अब मौसी खुद ही कमर हिलाते हुए रसिक की उंगलियों को चोदने लगी..

रसिक के लंड को डिस्चार्ज हुए बीस मिनट का समय हो चुका था.. और अब वो नए सिरे से उत्तेजित होकर झूम रहा था.. इस बार तो वो पहले से ज्यादा कडक हो गया था.. और अब तो उसे जल्दी झड़ने का डर भी नहीं था क्योंकि थोड़ी देर पहले ही डिस्चार्ज हुआ था.. कविता के नंगे जिस्म का आनंद वो बड़े आराम से लेना चाहता था.. उसकी पेन्टी को घुटनों तक सरकाकर वो एकटक उसके संगेमरमरी बदन को देख रहा था.. गोरी चिकनी मस्त जांघें.. और बीच में गुलाबी चूत.. रसिक सोच रहा था की क्या सारी शहरी लड़कियां अंदर से ऐसी ही गोरी और नाजुक होगी?? क्या उनके स्तन भी कविता की तरह सख्त और टाइट होंगे?

उसकी जांघों को सहलाते हुए रसिक के लंड ने झटका खाया.. कविता अधखुली आँख से एकटक रसिक के लोड़े को देख रही थी.. वो उत्तेजित होने के बावजूद कुछ कर नहीं सकती थी.. उसमे भी जब रसिक के भूखे होंठों का कविता की चूत की लकीर से मिलन हुआ तब कविता ने बड़ी मुसीबत से अपने शरीर को स्थिर रखा.. ऐसा महसूस हो रहा था जैसे एक साथ हजारों चींटियाँ उसकी चूत में रेंगने लगी हो.. वो बेहद उत्तेजित हो गई..

पर ऐसा भी नहीं था की रसिक के चाटने से उसे मज़ा आ रहा था.. रसिक के करीब होने से भी उसे घिन आ रही थी.. पर वो क्या करती? एक तरफ उसका तंदूरस्त लंड झूल रहा था जो किसी भी स्त्री को ललचा दे.. खास कर उसका कद और मोटाई.. उस लंड को देखकर उसे डर तो लग ही रहा था पर अपनी सास का उसके प्रति आकर्षण देखकर उसे यकीन हो गया था की एक मादा को जो कुछ भी चाहिए.. वो सब कुछ था उस लंड में..

रसिक का हाथ कविता के कूल्हों तक पहुँच गया.. मजबूती से रसिक ने नीचे से कूल्हों को पकड़कर कविता की कमर को ऊपर की तरफ उठा लिया.. ऊपर उठते ही कविता की चूत फैल गई.. और अंदर का लाल गुलाबी हिस्सा दिखाई देने लगा.. रसिक ने झुककर अपना चेहरे से चूत का स्पर्श किया.. कामरस से लथबथ कविता की चूत ऐसे रस रही थी जैसे पके हुए आम को काटने पर रस टपकता है.. गुलाबी बिना झांटों वाली चूत.. एकदम टाइट.. गोरी और चिकनी.. ऊपर नजर आ रहा गुलाबी सा दाना.. और बीच में लसलसित लकीर.. देखकर ही रसिक अपने आप को रोक न पाया और उसने हल्के से चूत को काट लिया.. दर्द के कारण कविता सहम गई पर बेचारी कोई प्रतिक्रिया न दे पाई.. रसिक कविता की चूत की फाँकें चाटता रहा और कविता पानी बहाती रही..

देखते ही देखते कविता झड़ गई.. उसकी चूत खाली हो गई.. शरीर अकड़ कर ढीला हो गया..

मौसी को अपनी उंगलियों से ही स्खलित कर दिया रसिक ने.. वो जानता था की एक बार तो उसका लंड स्खलित हो चुका था.. दूसरी बार अगर वो मौसी को ठंडा करने में झड़ गया तो तीसरी बार तुरंत लंड खड़ा होना मुश्किल था.. और उतना समय भी नहीं था.. इस बार की उत्तेजना उसने कविता को चोदने के लिए आरक्षित रखी हुई थी.. उसकी उंगलियों ने मौसी का पानी निकाल दिया था इसलिए मौसी शांत थी..


अब रसिक कविता की जांघें फैलाकर बीच में बैठ गया.. उसकी इस हरकत से कविता इतनी डर गई की पूछो मत.. ऊपर से जब मौसी ने कहा "थोड़ा तेल लगा दे.. ऐसे सूखा तो अंदर नहीं जाएगा" तब कविता को यकीन हो गया की उसे अब कोई नहीं बचा सकता.. कविता विरोध करना चाहती तो भी रसिक अब ऐसे पड़ाव पर पहुँच चुका था की उसे चोदे बगैर छोड़ता नहीं ये कविता को भी पता था.. कविता जैसी फूल से लड़की.. रसिक के सांड जैसे शरीर से रौंदे जाने वाली थी..

अपनी चूत पर गरम अंगारे जैसा स्पर्श महसूस होते ही कविता समझ गई की रसिक का सुपाड़ा उसकी छोटी सी चूत पर दस्तक दे रहा था.. चूत के वर्टिकल होंठों को टाइट करते हुए कविता अपनी बर्बादी के लिए तैयार हो रही थी तभी..

तभी.. किसी ने दरवाजा खटखटाया.. रात के साढ़े ग्यारह बजे कौन होगा?? मौसी और रसिक दोनों ही डर गए.. रसिक भी कविता की जांघों के बीच से खड़ा हो गया.. उसका खतरनाक लंड चूत के सामने से हटा लिया.. कविता को ऐसा लगा.. मानों किसी देवदूत ने आकर उसकी इज्जत बचा ली हो..
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अपनी चूत पर गरम अंगारे जैसा स्पर्श महसूस होते ही कविता समझ गई की रसिक का सुपाड़ा उसकी छोटी सी चूत पर दस्तक दे रहा था.. चूत के वर्टिकल होंठों को टाइट करते हुए कविता अपनी बर्बादी के लिए तैयार हो रही थी तभी..

तभी.. किसी ने दरवाजा खटखटाया.. रात के साढ़े ग्यारह बजे कौन होगा?? मौसी और रसिक दोनों ही डर गए.. रसिक भी कविता की जांघों के बीच से खड़ा हो गया.. उसका खतरनाक लंड चूत के सामने से हटा लिया.. कविता को ऐसा लगा.. मानों किसी देवदूत ने आकर उसकी इज्जत बचा ली हो..

छलांग मारकर रसिक ने अपने कपड़े उठाए और जल्दी जल्दी पहन लिए.. एक पल पहले उसका थिरक रहा लंड अभी एकदम नरम हो गया था.. अनुमौसी और रसिक दोनों ही सकते में थे.. कविता के दिल को थोड़ा सा चैन मिला पर अभी भी उसे पक्का यकीन नहीं था की वो बच गई थी या नहीं..

"कौन होगा मौसी?" रसिक ने घबराते हुए कहा.. थरथर कांप रही मौसी के गले से आवाज ही नहीं निकली

"क्या पता.. रसिक!! अब इसका क्या करें? इसे कपड़े कैसे पहनाएंगे इतनी जल्दी? मैं मना कर रही थी इसे पूरा नंगा मत कर.. तुझे बड़ा शौक था इसे नंगी करने का.. !!"

"अरे मौसी.. अभी ये सब बातों का वक्त नहीं है.. पहले ये सोचो को कविता को छुपाएंगे कैसे?" रसिक के ये कहते ही मौसी ने एक चादर डाल दी कविता के नंगे जिस्म पर

कविता को अब चैन मिला था.. अधखुली आँखों से वो घबराए हुए रसिक और सासुमाँ को देखकर खुश हो रही थी.. मौसी की उत्तेजना और रसिक के लंड की सख्ती.. कब की गायब हो चुकी थी.. डर और सेक्स एक साथ होना असंभव सा है.. इस वक्त कौन होगा दरवाजे पर? पीयूष तो सुबह के तीन बजे से पहले नहीं आने वाला था और चिमनलाल को आने में और एक दिन का वक्त था.. कहीं कोई चोर या लुटेरा तो नहीं होगा.. !! पर चोर थोड़े ही दरवाजा खटखटाकर आएगा??

"मौसी, आप दरवाजा खोलिए.. फिर जो भी हो देख लेंगे" रसिक बहोत डरा हुआ था.. उसे डरा हुआ देखकर मौसी की भी फट गई..

"रसिक, तू खटिया की नीचे छुप जा.. यहाँ कोई नहीं आएगा.. " फटाफट कपड़े पहनकर उन्हों ने दरवाजा खोला

दरवाजे खुलते ही उसने देखा.. सामने शीला, मदन और वैशाली खड़े थे.. वैशाली तो मौसी को देखते ही उनके गले लग गई और रोने लगी.. उत्तेजना से अचानक उदासी के भाव धारण करना मौसी के लिए थोड़ा सा कठिन था.. पूरा माहोल ही बदल चुका था.. अंदर बिस्तर पर चादर ओढ़े लेटी कविता को.. शीला भाभी और वैशाली की आवाज सुनकर इतनी खुशी हो रही थी.. शीला भाभी ने आज मेरी लाज बचा ली.. वो चाहकर भी उठ न पाई क्योंकि उसके बिस्तर के नीचे ही रसिक छुपा हुआ था

तीनों मौसी के घर अंदर आकर सोफ़े पर बैठ गए.. मौसी जबरदस्त टेंशन में थी.. अब ये लोग कब उठेंगे क्या पता? इनके जाने से पहले रसिक को भी बाहर निकालना मुमकिन नहीं था.. उससे पहले कहीं उसे होश आ गया और अपने आप को नंगा देख लिया तो??? वो जरूर चिल्लाएगी.. मदन को पता चल गया तो? शीला को तो चलो वो समझा देगी.. पर मदन और वैशाली को क्या बताती??

रो रही वैशाली को देखकर मौसी को भी बहोत दुख हुआ.. पर वो फिलहाल अपना दुख व्यक्त करने की स्थिति में न थी.. उनका सम्पूर्ण ध्यान कविता के बेडरूम पर ही था.. शीला ने संक्षिप्त में कलकत्ता में घटी घटनाओं के बारे में बताया.. और फिर खड़े होते हुए बोली

"ठीक है मौसी.. चलते है.. फिर आराम से बात करेंगे.. ये तो चाबी लेनी थी इसलिए आपको जगाया.. हम भी थके हुए है.. घर जाकर सो जाएंगे.. फिर कल मिलकर आराम से बात करेंगे.. !!"

मौसी ने औपचारिकता दर्शाते हुए कहा "अरे शीला.. तुम लोग बैठो.. मैं चाय बनाती हूँ.. "

"कविता कहाँ है, मौसी?" वैशाली की आँखें अपनी सहेली को ढूंढ रही थी

घबराते हुए मौसी ने कहा "उसकी तबीयत ठीक नहीं है.. इसलिए आज जल्दी सो गई.. अपने कमरे में सो रही है.. " बात चल रही थी तभी कांच टूटने की आवाज आई.. सब के कान खड़े हो गए..

"लगता है बाहर से आवाज आई" मौसी ने सबका ध्यान भटकाने के इरादे से कहा

अनुमौसी, मदन और शीला के साथ बातों में व्यस्त थी तब वैशाली कब उठकर कविता के कमरे के तरफ चली गई.. मौसी को पता भी नहीं चला.. वैशाली को कविता के बेडरूम से बाहर निकलते हुए देख मौसी को डर के कारण चक्कर आने लगी.. मर गए.. !! वैशाली ने देख लिया सब.. अब क्या होगा?? मौसी बेचैन हो रही थी.. वैशाली से नजरें नहीं मिला पा रही थी.. पर वैशाली ने कुछ कहा नहीं..

शीला, मदन और वैशाली चले गए और दरवाजा लॉक करते हुए मौसी कविता के बेडरूम की ओर भागी.. उनके आश्चर्य के बीच देखा.. कविता आँखें मलते हुए अपने बालों में क्लिप लगा रही थी.. और सुस्ती भारी आवाज में बोली "क्या हुआ मम्मी जी, आप अब तक जाग रहे हो? कोई आया था क्या हमारे घर? मैंने आवाज सुनी इसलिए जाग गई.. पता नहीं आज इतनी नींद क्यों आ रही है मुझे.. मम्मी जी, आपको भी आइसक्रीम खाने के बाद ऐसा कुछ महसूस हुआ था क्या?"

"नहीं बेटा.. मैं तो कब से जाग रही हूँ.. मुझे तो ऐसा कुछ नहीं हुआ.. तू शायद पूरे दिन काम करके थक गई होगी इसलिए नींद आ रही होगी.. कोई बात नहीं.. वैशाली, शीला और मदन आए थे.. वो कलकत्ता से वापिस आ गए.. घर की चाबी लेने आए थे.. " मौसी की नजर बार बार कविता के दुपट्टे पर जा रही थी.. जिस पर वीर्य के धब्बे लगे हुए थे.. उन्हों ने ही रसिक का वीर्य दुपट्टे से पोंछा था..

"आप सो जाइए मम्मी जी.. मैं बाथरूम जाकर आती हूँ" कविता बाथरूम में घुसी और मौसी ने मुड़कर बेड के नीचे देखा.. पर रसिक वहाँ नहीं था.. गया कहाँ वो कमीना?? कहीं बाथरूम में तो नहीं छुपा होगा? बाप रे.. तब तो कविता को जरूर पता चल जाएगा.. !!

तभी कविता बाथरूम से निकलते हुए बोली "अरे मम्मी जी.. बाथरूम की खिड़की का कांच किसने तोड़ा?? लगता है बिल्ली ने तोड़ा होगा.. कांच के टुकड़े पड़े है बाथरूम में.. " सुनकर मौसी के दिल को चैन मिला.. जरूर रसिक कांच तोड़कर भाग गया होगा..

"बेटा कांच टूटना तो अच्छा शगुन माना जाता है.. तू चिंता मत कर और आराम से सो जा.. " कहते हुए मौसी अपने कमरे में चली गई और अंदर से दरवाजा बंद कर लिया.. कविता का ओर सामना करने की उनमें हिम्मत नहीं थी..रह रहकर एक ही सवाल उन्हें परेशान कर रहा था की कविता को कपड़े किसने पहनाये ?? क्या वैशाली ने पहनाए होंगे? वैशाली ने कमरे में कविता को नंगी पड़ी देखकर क्या सोचा होगा? या फिर शायद रसिक ने जाने से पहले कपड़े पहना दीये हो? रसिक को कांच तोड़ते हुए या फिर भागते हुए कविता ने देख तो नहीं लिया होगा?

ढेर सारे सवाल थे और जवाब एक भी नहीं था.. मौसी अपना सर पकड़कर सो गई..

इस तरफ कविता शीला भाभी के लिए मन से आभार प्रकाट कर रही थी.. सोच रही थी की आज तो उनके कारण इज्जत बच गई.. वरना आज तो रसिक का गधे जैसा लंड उसकी कोमल चूत के परखच्चे उड़ा ही देता.. कविता को उतना तो पता था की रसिक ने अपना सुपाड़ा चूत के अंदर डाल दिया था जब दरवाजे पर दस्तक सुनाई दी थी.. वो याद आते ही वह अपनी चूत पर हाथ फेरकर मुआयना करने लगी.. कहीं कोई नुकसान तो नहीं हुआ था.. !! हाथ फेरकर उसने तसल्ली कर ली.. सब कुछ ठीक था.. शरीर को तो नुकसान नहीं हुआ था.. पर उसका मन घायल हो चुका था उसका क्या?? अपनी चूत को सहलाते हुए वो सो गई.. और दूसरे दिन काफी देर से जागी.. जब वो उठी तब घड़ी में आठ बज रहे थे.. रोज ६ बजे जागने वाली कविता को आज उठने में देर हो गई.. शायद आसक्रीम में मिलाई दवा का असर था..

उठकर फटाफट किचन में गई.. मम्मी जी के लिए चाय बनानी थी.. पर किचन में जाते ही उसे पता चला की उसकी सास तो कब की चाय बना चुकी थी.. वो तुरंत बाथरूम में गई.. ब्रश किया और नहा कर फटाफट कपड़े पहने.. जल्दबाजी में आज वो ब्रा पहनना भूल गई थी.. उसने बाथरूम के कोने में देखा.. टूटे हुए कांच के टुकड़े मम्मी जी ने साइड में कर रखे थे.. और कांच के ढेर के बीच एक काला धागा था.. वही धागा उसने रसिक की कलाई पर अनगिनत बार देखा था..

कविता के मन में कल रात की घटनाएं फिर से ताज़ा हो गई.. चुपचाप वो कांच के ढेर को इकठ्ठा कर डस्टबिन में डालने गई तब एक कांच का टुकड़ा उसकी उंगली में घुस गया.. और खून टपकने लगा.. दर्द के मारे वो कराहने लगी.. खून टपकती उंगली को लेकर वो किचन में आई.. और घाव पर हल्दी लगाकर पट्टी बांध दी.. मन ही मन मम्मी जी को कोसते हुए कविता गुस्से से घर के काम में उलझ गई.. पीयूष का मेसेज था.. वो अब शाम को वापिस आने वाला था.. अनुमौसी कहीं बाहर गई हुई थी..

घर के काम निपटाकर वो दस बजे शीला भाभी के घर गई.. कविता को देखते ही वैशाली उसके गले लग गई और खूब रोई.. शीला भाभी ने भी उसे रोने दिया.. रोने से मन हल्का हो जाता है..

"मदन भैया कहीं नजर नहीं आ रहे??" कविता ने मदन को न देखकर शीला से पूछा

शीला: "मदन पुलिस स्टेशन गया है.. इंस्पेक्टर तपन से मिलने.. अब संजय से छुटकारा पाने के लिए कुछ तो कार्यवाही करनी पड़ेगी ना.. साले उस हरामजादे ने मेरी बेटी की ज़िंदगी तबाह कर दी.. पहली बार मुझे पुलिस स्टेशन की चौखट पर पैर रखने पड़े.. और कितना कुछ सहना पड़ा.. सब उस कमीने के कारण.. उस नालायक को तो अब मदन और इन्स्पेक्टर तपन ही सीधा करेंगे.. !!"

वैशाली: "कीड़े पड़ेंगे कीड़े.. उस हरामी को.. मैं तो वापिस जाने के लिए तैयार ही नहीं थी.. मुझे पता था की मैं वहाँ एक पल भी जी नहीं पाऊँगी.. इतना अच्छे से जानती हूँ मई उस नालायक को.. मुझे परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी उसने.. तू मानेगी नहीं कविता.. वो आदमी इतना हलकट है.. सारा दिन उसे अलग अलग औरतों के साथ बिस्तर पर पड़े रहने के अलावा और कुछ नहीं सूझता.. जब देखों तब सेक्स ही सेक्स.. चवन्नी की कमाई नहीं और पूरा दिन बस बिस्तर पर काटना होता है उसे.. अब तू ही बता.. ऐसे आदमी के साथ कैसे जीवन गुजारें?? उसकी जेब से प्रेमिकाओं की तस्वीरें तो अक्सर हाथ लगती.. बेग में जब देखों तब ढेर सारे कोंडम के पैकेट लेकर घूमता रहता है.. और कुछ पूछूँ तो उल्टा मुझ पर ही गुस्सा करता था.. बिजनेस ट्रिप के लिए शहर से बाहर जा रहा हूँ.. ये कहकर शहर की ही किसी होटल में किसी रांड को लेकर पड़ा रहता था.. और मैं घर पर उसका इंतज़ार करते हुए उसके बूढ़े माँ बाप की सेवा करती थी.. ये सब मम्मी को बताती तो उन्हें दुख होता.. कभी न कभी संजय सुधर जाएगा इस आशा में अब तक जीती रही.. पर ऐसा कब तक चलता.. !!" वैशाली की व्यथा आंसुओं के संग बह रही थी.. नॉन-स्टॉप.. !!

कविता: "एकदम सही बात है तेरी वैशाली.. ऐसी लोगों को तो जैल में ही बंद कर देना चाहिए.. वो मदन भैया के इंस्पेक्टर दोस्त है ना.. बराबर ट्रीटमेंट देंगे संजय को.. तू चिंता मत कर.. अब तू हम सब के बीच है.. एकदम सलामत.. जो भी हुआ.. बुरा सपना समझकर भूल जा.. और एक नई ज़िंदगी की शुरुआत कर.. !!"

वैशाली को कविता की बात सुनकर बहोत अच्छा लगा.. तभी मदन घर आ पहुंचा.. कविता से हाय-हैलो कहकर वो अपने कमरे मे चला गया.. कविता को भी ये महसूस हुआ की वो सब अपनी निजी बातें करना चाहते होंगे.. इसलिए निकल जाना ही बेहतर होगा.. वो उठकर घर चली आई.. दोपहर का खाना खाकर सास और बहु अपने अपने कमरे में आराम करने लगे..

शाम को दोनों जाग गए और बरामदे में बैठे हुए थे.. मौसी झूला झूल रही थी और कविता बैठे बैठे सब्जियां काट रही थी.. तभी कविता पर उसकी मम्मी का फोन आया.. और उन्होंने बताया की मौसम बहोत बीमार हो गई थी.. और अस्पताल में थी.. इसलिए रमिला बहन चाहती थी की कविता थोड़े दिनों के लिए वहाँ आ जाए तो घर के काम में.. और शादी की तैयार में उनकी मदद कर सकें.. सारी बातें मौसी की उपस्थिति में हुई थी इसलिए उन्हें बताने की कोई जरूरत नहीं थी.. कविता ने कहा की वो दोनों आज आने ही वाले थे पर पीयूष को ऑफिस में अर्जन्ट काम आ जाने के कारण नहीं आ पाए.. और ये भी कहा की शाम को पीयूष के आते ही.. उससे चर्चा करने के बाद तय करेंगे..

मम्मी का फोन काटते ही कविता ने मौसम को फोन लगाया.. मौसम ने भी कहा की उसकी तबीयत अब ठीक थी.. और वो जल्दबाजी न करें.. आराम से आए..

कविता की जान अब अपने मायके में अटक चुकी थी.. उसे मौसम की चिंता सताने लगी.. शाम को पीयूष घर आया.. खाना खाया.. फिर कविता ने उसे सारी बात बताई.. लेकिन पीयूष को मौसम ने पहले ही मना कर रखा था इसलिए वो जाना नहीं चाहता था.. उसने ऑफिस के काम का बहाना बनाते हुए कविता से कहा "तू सुबह ६ बजे की बस में निकल जाना.. "

कविता ने तुरंत अपनी पेकिंग शुरू कर दी.. रात को बेडरूम के दरवाजे बंद होते ही.. पीयूष ने आज जबरदस्त चुदाई की कविता के साथ.. वैसे कविता सेक्स के लिए उतनी उत्सुक नहीं लगी उसे.. वरना रोज तो वो भूखे भेड़िये की तरह पीयूष पर टूट पड़ती.. पर जैसे पीयूष के हाथ उसके जिस्म पर फिरने लगे.. उसे रसिक के स्पर्श की याद आ जाती और वो सहम जाती.. पीयूष ने सोचा की शायद कविता उसके मायके की चिंता के कारण ठीक से सहयोग नहीं कर पा रही है.. इसलिए उसने कुछ पूछा नहीं.. कविता इस टेंशन में थी की कहीं पीयूष की कल की घटना के बारे में कुछ पता न चल जाए.. वैसे रसिक ने कुछ किया तो नहीं था.. पर उसकी छाती पर और चूत पर काटने के निशान थे.. कहीं पीयूष ने देख लिए तो??

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जब पीयूष धक्के लगाकर.. उसकी चूत में वीर्य छोड़कर शांत होकर बगल में लेट गया.. तब जाकर कविता के मन को शांति मिली..

सुबह पाँच बजे कविता जाग गई.. और तैयार होकर उसने पीयूष को जगाया.. पीयूष उसे बस-अड्डे पर छोड़ आया.. कविता को तुरंत बस मिल गई.. सीट पर बैठकर.. टिकट को पर्स में रखकर उसने अपना मोबाइल निकाला और एक नंबर डायल किया.. डायल करते हुए कविता के चेहरे की मुस्कान देखने लायक थी.. ये नंबर ऐसा था जो उसने मोबाइल पर सेव नहीं किया था.. जरूरत भी नहीं थी.. उसके दिल में छपा हुआ था ये नंबर..

उसने पिंटू को फोन लगाया

सुबह साढ़े छह बजे कविता का नाम स्क्रीन पर देखकर पिंटू चोंक गया.. इतनी सुबह कविता ने क्यों फोन किया होगा? कहीं पीयूष से फिर से कोई झगड़ा तो नहीं हुआ??

"हैलो.. "

"गुड मॉर्निंग मेरी जान" कविता के मुंह से ये शब्द सुनकर पिंटू के चेहरे पर मुस्कान आ गई..

"क्या बात है कविता.. !! आज सुबह सुबह मुझे फोन करने का टाइम मिल गया तुझे? तेरे शोहर के लिए टिफिन तैयार नहीं करना क्या?"

"मुझे बोलने भी देगा या तू ही बकता रहेगा??" कविता इतनी जोर से बोली की सारे पेसेन्जर उसकी तरफ देखने लगे.. कविता शरमा गई..

"तू कहाँ है? इस शहर में या हमारे शहर में?" कविता ने पूछा.. पिंटू और कविता एक शहर में रहते थे.. कविता की शादी इस शहर में हुई और पिंटू की नौकरी भी इस शहर में थी..

"मैं हमारे शहर अपने घर पर ही हूँ.. बता.. कुछ प्रॉब्लेम हुई है क्या?"

"प्रॉब्लेम तो कुछ नहीं है.. मौसम की तबीयत ठीक नहीं है.. मम्मी को हेल्प करने में घर आ रही हूँ.. तू वहीं हो तो हम मिलेंगे.. मुझे तेरे साथ ढेर सारी बातें करनी है.. मैं लगभग बारह बजे बस स्टेशन पहुँच जाऊँगी.. हम दोनों दो-तीन घंटे साथ रहेंगे.. उसके बाद मैं घर जाऊँगी.. मम्मी को बोल दूँगी की बस रास्ते में खराब हो गई थी इसलिए देर हो गई.. वो मान जाएगी.. तू जगह का बंदोबस्त कर.. बहोत दिन हो गए यार.. !!"

"क्या बात है कविता.. मैं भी तुझे बहोत मिस करता हूँ.. आजा जल्दी.. बस के शहर में घुसते ही तू मुझे कॉल कर देना.. मैं तुझे लेने आ जाऊंगा.. "

"ओके जानु.. मैं तुझे पहुंचकर कॉल करती हूँ.. आई लव यू"

"आई लव यू टू, कविता"

पिंटू रोमांचित हो गया.. काफी दिनों के बाद कविता से अकेले मी मिलने का मौका मिलने वाला था.. पिंटू बस पहुँचने के दो घंटे पहले ही बस-अड्डे के बाहर बैठ गया.. बार बार घड़ी में देख रहा था.. कब कविता आए और कब उसे लेकर जाऊँ .. तभी कविता का कॉल आया

"बस अब पाँच मिनट में पहुँच जाएगी.. तू कहाँ है?"

"मैं तो कब से यहीं हूँ बस स्टेशन पर.. तेरा इंतज़ार कर रहा हूँ"

कविता जैसे ही बस से उतरी.. पिंटू ने उसका बेग हाथ से ले लिया.. दोनों बाइक की तरफ पहुंचे.. और कविता उसके पीछे बैठ गई.. उसे शादी से पहले के दिन याद आ गए.. तब भी वो पिंटू की बाइक की पीछे ऐसे ही घूमती थी.. फूल स्पीड में चल रही बाइक पर अपने स्तनों को पिंटू की पीठ पर दबाकर कविता खुद भी मजे ले रही थी और पिंटू को भी दे रही थी..

"इतनी चुप क्यों है तू? डर लग रहा है क्या? पीयूष से ज्यादा तेज चला रहा हूँ बाइक इसलिए?"

कविता: "पिंटू, आज मुझे किसी चीज का कोई डर नहीं है.. मन कर रहा है की बस पूरी ज़िंदगी यूं ही तेरे पीछे बैठी रहूँ"

पिंटू का बाइक अम्बर सिनेमा हॉल के बाहर पार्क करने के बाद पिंटू ने फटाफट टिकट ले ली.. मूवी शुरू हो चुका था.. दिन का समय था और फ्लॉप मूवी थी इसलिए अंदर आठ-दस लोग ही थे.. ज्यादातर कपल्स ही थे जो एकांत के लिए आए हुए थे..

कविता का हाथ पकड़कर अंधेरे में पिंटू उसे कॉर्नर सीट की तरफ ले गया.. और जो काम करने आए थे उसमे व्यस्त हो गए..

पिंटू ने कविता का हाथ अपने हाथ में लिया और उसे चूम लिया.. ये वही हथेली थी जिस पर कविता ने अनगिनत बार अपना नाम लिखका था.. कविता की ये आदत थी.. वे दोनों जब भी मिलते तब वो पिंटू की हथेली पर अपना नाम लिख देती.. अपना अधिकार भाव जताने के लिए.. पिंटू तो जैसे कविता की हथेली को पाकर तृप्त हो गया हो वैसे उसे पकड़कर काफी देर तक बैठा ही रहा..

आखिर कविता ने खुद उसका हाथ अपने मुलायम स्तनों से दबा दिया.. स्तनों का स्पर्श होते ही पिंटू के अंदर का पुरुष जाग उठा.. और उसने थोड़ा और दबाव बनाकर स्तनों को दबा दिया.. दो दिन पहले ही रसिक के काटने से कविता को स्तनों में थोड़ा दर्द हो रहा था.. पर फिर भी वह कुछ न बोली.. वो दर्द सहने को तैयार थी पर अपने प्रेमी को रोकना नहीं चाहती थी..

पिंटू ने अब दोनों हाथों से उसके स्तनों को जोर से दबाया.. दर्द के कारण कविता कराह उठी.. पिंटू ने तुरंत हाथ खींच लिए.. पर कविता ने उसके हाथ पकड़कर फिर से अपने स्तनों पर लगा दीये

कविता: "तू मेरी फिक्र मत कर.. इनका तो काम ही है दबना.. तेरे हाथों से दबना तो इनका सौभाग्य है.. मन से तो मैं अपना शरीर तेरे नाम कर चुकी हूँ पिंटू.. समाज भले ही मुझे पीयूष की पत्नी के रूप में जानता हो.. पर मेरा दिल तो तुझे ही अपना स्वामी मान चुका है.. तू घबरा मत.. जैसे मन करे दबा दे.. मसलकर रख दे इन्हें.. तेरा अधिकार है इन दोनों पर.. "

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उस रात की घटना ने कविता को धक्का पहुंचाया था.. जब वो दो कौड़ी का दूधवाला उसकी मर्जी दे खिलाफ मेरे जिस्म को रौंद गया.. तू मैं भला मेरे मनपसंद पिंटू को क्यों रोकूँ? वो तो मेरा अपना है.. कमबख्त मेरी सास ने.. अपनी हवस बुझाने के चक्कर में.. मेरे शरीर को अपवित्र कर दिया

जैसे जैसे कविता उस रात की घटना के बारे में सोचती गई.. उसका क्रोध और बढ़ता गया.. और वो पिंटू के हाथों को अपने स्तनों पर और मजबूती से दबाती गई.. दर्द इतना होने लगा की उसकी आँखों से आँसू निकल गए.. जो पिंटू को अंधेरे में नजर नहीं आए..

पिंटू आसानी से स्तनों को मज़ा ले सकें इसलिए कविता ने दो हुक खोलकर अपना एक स्तन बाहर खींच निकाला.. ए.सी. की ठंडक स्तन पर महसूस होते ही कविता को इतना अच्छा लगा की उसने जरूरत न होते हुए भी तीसरा हुक खोल दिया और दूसरा स्तन भी बाहर निकाल दिया.. साड़ी के पल्लू से स्तनों को ढँककर पिंटू का हाथ पल्लू के अंदर डाल दिया..

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जैसे जैसे पिंटू का हाथ उसके नग्न मांस के गोलों पर घूमने लगा.. कविता को बहोत मज़ा आने लगा.. पिंटू का स्पर्श उसे पागल बना रहा था.. पिंटू का लंड भी उसकी पतलून में उछलने लगा था.. कविता ने अधिकारपूर्वक पेंट के ऊपर से उसका लंड पकड़ लिया.. और पिंटू के कंधे पर सिर रख दिया.. लंड को पकड़ते ही कविता ने पिंटू के कान में कहा

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"यार किसी गेस्टहाउस का बंदोबस्त किया होता तो इसे आराम से अंदर ले पाती.. कितना सख्त हो गया है.. !! सिर्फ पकड़कर मैं क्या करूँ?" कविता की इस बात का कोई जवाब नहीं था पिंटू के पास.. वो मुसकुराता रहा और हॉल के अंधेरे में.. कविता के स्तनों को दबाता रहा..

कविता ने धीरे से पिंटू के पेंट की चैन खोल दी.. अन्डरवेर के ऊपर से भी उसे पिंटू के लंड की गर्मी और सख्ती का एहसास हो रहा था.. वस्त्र की एक परत कम होने से कविता और पीयूष दोनों की उत्तेजना बढ़ती गई.. एक दूसरे को नग्न कर भोगने की इच्छा तीव्रता से सताने लगी..

पीयूष के कंधे से सर हटाकर कविता ने उसके होंठों को चूम लिया.. पिंटू के गुलाबी होंठ कविता को बहोत पसंद थे.. कविता के स्तनों को मसलते हुए अपने होंठ उसे सौंपकर पिंटू आराम से मजे ले रहा था.. कविता कभी उसके होंठों को चूमती.. कभी चाटती और कभी मस्ती से काट भी लेती थी.. कविता का हाथ अब पिंटू की अन्डरवेर के अंदर घुस गया और मुठ्ठी में उस सुंदर लिंग को पकड़ लिया.. बेशक उनकी हरकतें ऐसी थी की आसपास के लोगों को पता चल जाए.. पर बाकी सारे कपल्स भी ऐसी ही मस्ती में लीन थे..

पिंटू का लंड हिलाते हुए कविता को अनायास ही रसिक के लंड की याद आ गई.. बाप रे.. कितना खतरनाक था रसिक का लंड..!! ऊपर चढ़कर पूरा डाल दिया होता तो मर ही जाती मैं.. अंदर उछल रहे लंड को अपनी कोमल हथेली से महसूस करते हुए कविता की चूत से कामरस बहने लगा.. सिनेमा हॉल के अंधेरे में कई कपल्स उत्तेजक हरकतें कर रहे थे.. कई लोगों की सिसकियाँ भी सुनाई पड़ रही थी.. कविता और पीयूष के आगे बैठा हुआ कपल तो सारी सीमाएं लांघ चुका था.. उस पुरुष की गोद में सर रखकर जिस तरह वो औरत ऊपर नीचे कर रही थी उससे साफ प्रतीत हो रहा था की वो लंड चूस रही थी..

ये देखते ही कविता ने पिंटू की और देखकर एक शरारती मुस्कान दी.. दोनों की नजरें चार हुई.. इशारों इशारों में पिंटू ने पेशकश कर दी और कविता ने स्वीकार भी कर लिया.. उसने अपने खुले हुए बाल रबरबैंड से बांध दीये.. और पिंटू की गोद में सर डालकर बैठ गई.. एक ही पल में लंड बाहर निकालकर कविता लोलिपोप की तरह चूसने लगी..

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पिंटू को आश्चर्य हुआ.. जब जब वो और कविता मिलते तब वो कितने मिन्नतें करता तब जाकर कविता उसका मुंह में लेती.. आज एक ही इशारे में मान गई.. कविता की इस हरकत से पिंटू बेहद उत्तेजित हो गया.. कविता अपने प्रेमी को महत्तम सुख देने के इरादे से पागलों की तरह लंड चूसने लगी.. गजब का करंट लग रहा था पिंटू को.. कविता के चूसने से.. थोड़ी ही देर मे वो कमर उठाकर.. कविता के सर को दोनों हाथों से पकड़ कर.. उसके मुंह में धक्के लगाने लगा.. और उसी के साथ ही उसके लंड ने कविता के मुख में उत्तेजना की बारिश कर दी.. कविता का मुंह पूरा वीर्य से भर गया..

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वैसे कविता को ये बिल्कुल ही पसंद नहीं था.. पर वो पिंटू को जरा भी नाराज करना नहीं चाहती थी.. उसे उलटी आ रही थी पर फिर भी उसने अपने आप को संभालें रखा.. और तब तक चूसती रही जब तक पिंटू शांत न हो गया..

संभालकर पिंटू का लंड मुंह से बाहर निकालकर कविता ने सारा वीर्य सीट के नीचे थूक दिया.. और रुमाल से अपना मुंह साफ कर दिया.. अब कविता अपनी सीट पर बैठ गई.. पिंटू ने अपना लंड अंदर रख दिया.. अब दूसरी मंजिल के लिए दोनों तैयार हुए.. और वो था कविता का ऑर्गजम..

कविता के गालों पर चूमते हुए उसने उसके घाघरे के अंदर हाथ डाल दिया.. उसकी चिकनी जांघों से होते हुए पिंटू की उँगलियाँ कविता की चूत तक जा पहुंची.. पिंटू आराम से अपनी उंगलियों का योनि प्रवेश कर सके इसलिए कविता ने अपना घाघरा ऊपर तक उठा दिया.. अब पिंटू का हाथ बड़ी आसानी से अंदर पहुँच रहा था.. साड़ी का पल्लू हटाकर अपने दोनों उरोजों को बाहर खुला छोड़ दिया कविता ने.. पिंटू कविता के गाल, गर्दन और होंठों पर पागलों की तरह चूमने लगा.. उसका एक हाथ कविता के स्तनों को मसल रहा था जबकी दूसरे हाथ की दो उँगलियाँ कविता की चूत में अंदर बाहर हो रही थी.. कविता के तो मजे मजे हो गए थे.. पिंटू का साथ उसे इतना पसंद था की उसने अपना पूरा बदन सीट पर ढीला छोड़कर उसे समर्पित कर दीया था..

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अत्यंत आवेश में आकर पिंटू ने फिंगरिंग की गति बढ़ा दी.. तेजी से उंगलियों को अंदर बाहर करते हुए कविता की भूख को शांत कर दिया.. कविता की चूत अपना अमृत रस सीट पर टपका रही थी..

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उसी अवस्था में थोड़ी देर तक कविता पड़ी रही.. ना ही उसने खुले स्तनों को ढंका और ना ही अपना घाघरा नीचे किया.. वैसे ही बैठे बैठे उसने पिंटू की चूत रस लगी उंगलियों को चूसना शुरु कर दिया..

अब जुदाई करीब थी.. दोनों जान गए थे की अब बिछड़ने का वक्त आ चुका था.. बार बार पिंटू की हथेली को चूम रही कविता के आँसू पिंटू के हाथ पर टपक रहे थे..

"उदास क्यों हो रही है? इतना मज़ा करने के बाद रो रही है तू?" पिंटू ने कहा.. जिसका कविता ने कोई उत्तर नहीं दिया.. वो तो बस पिंटू की हथेली को अपने होंठों से दबाकर बस चूमती रही.. काफी देर तक उसने हाथ पकड़े रखा

"अब चलें कविता.. ?? डेढ़ घंटा तो बीत चुका है.. अब तुम्हें घर चले जाना चाहिए वरना तेरी मम्मी चिंता करेगी" कविता बस पिंटू को देखती रही.. कितनी फिक्र है इस लड़के को मेरी..

अपने आंसुओं को पोंछ कर कविता सीट से खड़ी हो गई.. खड़े होने के बाद उसे याद आया.. दोनों स्तन तो अभी भी बाहर खुले लटक रहे थे.. !! उन्हें ब्लाउस में डालना तो भूल ही गई.. वो तुरंत बैठ गई और स्तनों को दोनों कटोरियों में बंद कर दिया.. सामने बैठे कापल ने कविता के स्तनों को देख लिया था.. पर वो दोनों खुद ही अधनंगी अवस्था में बैठे हुए थे.. कविता ने देखा.. कपल में जो युवती थी उसने अपने बॉयफ्रेंड का लंड हाथ में पकड़ रखा था.. उसके सामने देखकर कविता मुस्कुराई..


पिंटू और कविता खड़े हो गए और बाहर निकल गए.. कविता को ऑटो में बिठाकर पिंटू भी उदास मन से अपना बाइक लेकर निकल गया..
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रूखी गांड मरवाने के मूङ मे
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कविता घर पहुंची.. घर पर कोई नहीं था.. मम्मी अस्पताल गई हुई थी और पापा ऑफिस थे.. उसने पड़ोसी से चाबी मांगकर घर खोला..

अंदर कमरे में जाकर सब से पहले अपनी साड़ी उतारी.. और सिर्फ ब्लाउस और पेटीकोट में, आईने के सामने खड़ी हो गई.. उभरी हुई छाती को देखकर उसे पिंटू का हाथ याद आ गया.. एक के बाद एक उसने ब्लाउस के सारे हुक खोल दीये.. और पेटीकोट का नाड़ा भी खींच लिया.. मायके आकर लड़कियां पहला काम साड़ी बदलकर किसी आरामदायक वस्त्र को पहनने का करती है.. सिर्फ ब्रा और पेन्टी में अपने जिस्म को आईने में निहार रही थी कविता..


पेन्टी पर चूत वाले हिस्से पर चिपचिपे प्रवाही का सूखा हुआ धब्बा था.. उस हिस्से को छूकर कविता ने धीरे से दबाया.. सिनेमा हॉल में हुए ऑर्गजम की निशानी थी वो.. क्लिटोरिस को दबाते ही उसकी चूत में फिर से हरकत होने लगी.. कविता को अपनी चूत से खेलने की इच्छा होने लगी..




आदर्श वातावरण था.. घर पर कोई नहीं था.. आधे घंटे पहले ही अपने प्रेमी संग बिताएं पलों की ढेर सारी यादें थी.. और क्या चाहिए?? कविता ने पेन्टी उतारकर फेंक दी.. और हाथ पीछे ले जाकर ब्रा की क्लिप भी खोल दी.. उसके दूध जैसे गोरे स्तन खुल गए.. कविता को अपने स्तनों पर लाल निशान नजर आए.. जो रसिक के काटने के कारण बने थे.. साले ने कितनी क्रूरता से काटा था.. ये तो अच्छा हुआ की उस रात पीयूष के संग चुदाई और आज पिंटू के संग चुसाई.. अंधेरे में हुई थी.. इसलिए उसके पति या प्रेमी ने ये निशान नहीं देखें.. पिंटू को तो वो फिर भी समझा देती की ये पीयूष की हरकत है.. पर पीयूष को कैसे समझाती??

कविता ने अपनी एक उंगली को मुंह में डालकर चूसा और ठीक से गीला कर अपनी चूत के अंदर बाहर करने लगी.. पिंटू के संग गुजारें उन हसीन पलों को याद करते हुए वो एक हाथ से अपने जिस्म के विविध अंग सहला रही थी.. और दूसरी उंगली से अपने गुप्तांग को रगड़ रही थी..



इस बार का ऑर्गजम जबरदस्त और जोरदार था.. कविता की चूत ने इतना रस बहाया.. की उसे पोंछने के लिए उसे कपड़ा ढूँढना पड़ा.. आखिर उसने अपने पर्स से रुमाल निकाला.. वही रुमाल जिससे उसने पिंटू का वीर्य पोंछा था सिनेमा हॉल में.. चूत साफ करना भूलकर कविता उस वीर्य से सने रुमाल को सूंघने लगी.. और फिर उस रुमाल को चूमकर गले लगा दिया.. और फिर अपनी चूत पर लगा दिया..

काफी देर तक यूं ही नंगी पड़ी रहने के बाद वो खड़ी हुई.. बेग से निकालकर उसने बेहद टाइट केप्री.. और टाइट स्लीवलेस टीशर्ट पहन लिया.. टीशर्ट के नीचे उसने पैडिड ब्रा पहन ली.. जिससे उसके उभारों की साइज़ डबल दिख रही थी.. अपने कपड़ों के ऊपर से स्तनों को एड़जस्ट करते हुए वो मौसम की स्कूटी की चाबी लेकर बाहर आई..

स्कूटी लेकर वो अस्पताल की ओर जाने लगी.. सोसायटी के नुक्कड़ पर चाय की टपरी पर तीन चार लड़के खड़े हुए थे.. कविता की मादक जवानी और टाइट उभारों को वो लोग देखते ही रह गए.. उनकी तरफ देखे बगैर ही कविता तेज गति से निकल गई.. हालांकि उसे पता था की सब की नजर उसपर ही चिपकी हुई थी..

अस्पताल पहुंचते ही वो मौसम के कमरे में गई.. बिस्तर पर लेटी हुई मौसम के हाथ पर सुई लगाई हुई थी और ग्लूकोज का बोतल चढ़ाया जा रहा था.. मौसम को इस हाल में देखकर कविता की आँखें भर आई.. दोनों बहने भावुक हो गई.. मौसम का चेहरा सूख चुका था.. माउंट आबू वाली सारी चंचलता गायब हो चुकी थी.. बहोत ही अस्वस्थ लग रही थी.. बीमारी अच्छे अच्छों की हालत खराब कर देती है..

कविता को देखते ही मौसम खुश हो गई.. वो ज्यादा खुश इस आशा से थी की दीदी के साथ जीजू भी आए होंगे.. उसकी आँखें पीयूष को ढूंढ रही थी पर अफसोस.. उदास हो गई मौसम.. पर कविता को भनक न लगे इसलिए अपने चेहरे के भाव छुपाकर रखें उसने.. कविता ने अपनी मम्मी, रमिला बहन के साथ मौसम की तबीयत को लेकर विस्तृत चर्चा की.. फिर वो जाकर डॉक्टर से भी मिल आई.. डॉक्टर ने कहा की मौसम को मेलेरिया हुआ था.. और अब उसकी हालत स्थिर थी.. एक दो दिन में अस्पताल से डिस्चार्ज दे देंगे.. सुनकर कविता ने चैन की सांस ली.. वापिस मौसम के कमरे में आकर उसने रमिला बहन को घर जाने के लिए कहा.. अब वो जो आ गई थी..

रमिला बहन के जाते ही दोनों बहने बातें करने में व्यस्त हो गई.. कविता ने उसे वैशाली के साथ जो हुआ उसके बारे मी बताया.. फिर कविता ने तरुण को फोन लगाया.. मौसम के मना करने के बावजूद, कविता ने तरुण को अस्पताल बुलाया.. वो जानती थी की तन की बीमारी तो दवाइयों से ठीक हो जाएगा.. मौसम के उदास मन को प्रफुल्लित करने के लिए ही उसने तरुण को बुला लिया था.. वो चाहती थी की दोनों मिलें.. एक दूसरे से प्यार भरी बातें करें.. तो मौसम को अच्छा लगेगा और वो जल्दी ठीक हो जाएगी.. तरुण ने कविता से आज ही वहाँ आ जाने का वादा किया..

वैसे रमिला बहन ने काफी बार मौसम को कहा था की वो तरुण को फोन करें.. पर मौसम ने ही मना कर रखा था.. उसका कहना था की उसकी तबीयत की बात सुनकर, तरुण दौड़ा चला आएगा.. फिर मम्मी को उसकी खातिरदारी करनी पड़ेगी.. बेचारी वैसे ही अस्पताल की दौड़-भाग से परेशान थी.. क्योंकी पापा तो ऑफिस में बिजी थे.. वैसे मौसम के पापा, सुबोधकान्त हररोज शाम को मौसम से मिलने जरूर आते..

मौसम ने एक बात नोटिस की थी.. शाम के टाइम जब फाल्गुनी उसे मिलने आती थी.. तभी पापा भी आ जाते थे.. उसका कारण भी मौसम से अनजान नहीं था.. फाल्गुनी और उसके पापा के संबंधों की याद आते ही.. मौसम शरमा गई.. खास कर वो बात याद आई जब वो वैशाली के साथ पापा के ऑफिस पहुंची थी.. और छुपकर सारा सीन देखा था.. फाल्गुनी घोड़ी बनी हुई थी और पापा पीछे से शॉट लगा रहे थे.. फाल्गुनी के स्तन झूल रहे थे.. और पापा का कडक लोंडा अंदर बाहर हो रहा था.. याद आते ही मौसम ने शर्म से आँखें बंद कर दी..

फाल्गुनी और सुबोधकान्त का अब भी यही मानना था की उनके संबंधों के बारे में मौसम कुछ भी नहीं जानती.. जब सुबोधकांत मौसम से मिलने आते तब.. फाल्गुनी की मौजूदगी में.. उनकी आँखों की शरारत और हवस.. दोनों ही साफ नजर आती मौसम को.. पापा की नजर फाल्गुनी के स्तनों पर ही चिपकी रहती.. पिछले तीन दिनों के मुकाबले मौसम को आज कुछ अच्छा लग रहा था.. वो और कविता अकेले थे इसलिए बातें भी आराम से हो सकती थी..

मौसम: "दीदी.. मैं पिछले तीन दिनों से देख रही हूँ.. यहाँ एक डॉक्टर है.. उम्र पचास के करीब होगी.. उनका चक्कर यहाँ की एक जवान पच्चीस साल की नर्स के साथ चल रहा है.. उम्र में इतना फाँसला होने के बावजूद.. वो लड़की.. अपने से दोगुनी उम्र के मर्द के प्रति कैसी आकर्षित हो गई?" मौसम ने मनघडन्त कहानी सुनाई.. जवान लड़की और बुजुर्ग के बीच संबंधों के बारे में वो अपनी अनुभवी दीदी के विचार जानना चाहती थी.. अब फाल्गुनी और पापा का नाम वो कैसे लेती भला.. !! इसलिए डॉक्टर और नर्स की कहानी सुनाकर फाल्गुनी और पापा के चक्कर का पोस्टमॉर्टम शुरू किया मौसम ने

कविता: "हाँ ये मुमकिन है.. हम सीरीअलों में देखते ही है ना.. कई बार काम उम्र की लड़कियां.. अपने से कई ज्यादा बड़े मर्द के प्यार में पड़ जाती है.. उसका कोई एक ठोस कारण नहीं है.. बहोत से कारण होते है.. !!"

मौसम: "बहोत से कारण?? जैसे की..!!"

कविता: "जैसे की.. सिक्योरिटी.. ज्यादा उम्र के आदमी अक्सर अनुभवी और परिपक्व होते है.. इसलिए उनके आसपास लड़कियों को सलामती महसूस होती है.. कभी कभी मजबूरी इसका कारण होती है.. कुछ लड़कियों को ऐसे व्यक्ति की तलाश होती है जो उन्हें समझे.. जवान मर्दों में ये गुण अक्सर कम ही देखने को मिलता है.. जब की प्रौढ़ उम्र के अनुभवी मर्दों की समझदारी लड़कियों को आकर्षित करती है.. !!"

कविता ने बड़े प्रेम से समझाया.. उसका आशय यह भी था की भविष्य में मौसम को ये सारी सीख काम आएगी.. कविता से बात करके मौसम को ऐसा लगा मानों उसकी आधी बीमारी दूर हो गई हो.. कई दिनों बाद वो किसी से खुलकर बात कर पा रही थी.. वैसे फाल्गुनी रोज मिलने आती थी.. पर उस वक्त या तो पापा या मम्मी की मौजूदगी के कारण वो ज्यादा बात कर नहीं पाते थे..

फाल्गुनी ने पहले तो मौसम को ये भ्रम में रखा था की उसे सेक्स से बेहद डर लगता है.. पर उस दिन पापा की ऑफ़िस में उसे जिस तरह उछल उछलकर चुदते देखा.. उसके बाद मौसम का ये भ्रम टूट गया.. उससे पहले मौसम यही सोचती थी की पापा ने ही बेचारी फाल्गुनी को अपनी जाल में फँसाया था.. अगर मौसम ने उस दिन सब अपनी आँखों से देखा न होता तो वो हमेशा यही समझती रहती की फाल्गुनी निर्दोष थी और पापा ही हवसखोर थे.. वो सब तो ठीक था.. पर मौसम को ये ताज्जुब हो रहा था की फाल्गुनी और पापा के बीच वैशाली ने कितने आराम से एंट्री कर ली थी.. !! दूसरा.. अगर पापा ने फाल्गुनी को नहीं पटाया था तो क्या फाल्गुनी खुद चलकर उनके पास गई होगी?? नहीं नहीं.. फाल्गुनी इतनी हिम्मत तो नहीं कर सकती.. इस मामले में फाल्गुनी पहले से अनाड़ी थी.. तो इसका मतलब ये हुआ की जरूर पापा ने ही फाल्गुनी को मजबूर किया होगा.. आखिर ये सब शुरू हुआ कैसे होगा? पापा ने जब पहली बार फाल्गुनी को बाहों में लिया होगा तब फाल्गुनी को कैसा महसूस हुआ होगा? उसने विरोध किया होगा या समर्पण? या फिर पापा ने जबरदस्ती की होगी?? जानना तो पड़ेगा.. जानना जरूरी है.. पर किस्से पूछें? फाल्गुनी या पापा से तो पूछ नहीं सकती.. हाँ वैशाली के जरिए जानकारी प्राप्त की जा सकती थी.. वैशाली को ही फोन करती हूँ.. पर उस बेचारी की खुद की हालत अभी ठीक नहीं है.. पर मुझे उसकी तबीयत पूछने के लिए.. और सहानुभूति व्यक्त करने के लिए फोन करना ही चाहिए..

कविता मौसम को विचारों में खोया हुआ देखकर सोच में पड़ गई.. मौसम आज ऐसे सवाल क्यों पूछ रही है? कहीं उसे तो किसी बड़ी उम्र के मर्द के साथ प्यार नहीं हो गया होगा?? हो सकता है.. तरुण से सगाई और अपने प्रेम के बीच की खींचतान के कारण ही तो वो बीमार नहीं हो गई ना.. ??

सोचते सोचते मौसम की आँखें बंद हो गई.. मौसम डिस्टर्ब न हो इसलिए कविता खड़ी होकर बालकनी में गई और उसने पीयूष को फोन किया.. पीयूष ने फोन उठाया और शुरू हो गया

पीयूष: "मायके जाकर तू तो मुझे जैसे भूल ही गई.. कितने फोन किए तुझे? तू ठीकठाक पहुंची या नहीं ये जानने के लिए मैं फोन कर रहा था.. कितनी चिंता हो रही थी मुझे.. !! घर पर किसी ने फोन नहीं उठाया.. तेरा पापा को मोबाइल ट्राय किया तो उन्होंने भी नहीं उठाया.. और तूने भी जवाब नहीं दिया.. मेरे इतने सारे मिसकॉल भी नहीं नजर आए तुझे??"

कविता मन ही मन मुस्कुरा रही थी.. क्या जवाब देती वो पीयूष के सवाल का? ये तो कह नहीं सकती की मैं पिंटू के साथ सिनेमा हॉल में थी इसलिए फोन नहीं उठाया..

कविता: "शांत हो जा जानु.. मैं सारे जवाब दूँगी तुझे.. घर आकर.. बिस्तर पर लेटे लेटे.. चलेगा ना.. !! लव यू.. टाइम पर खाना खा लेना.. शीला भाभी और वैशाली का ध्यान रखना" शरारती अंदाज में जवाब देकर.. पीयूष की बोलती बंद कर दी कविता ने.. और वो भी.. किसी भी सवाल के जवाब दीये बगैर

पीयूष: "हाँ हाँ.. अब मुझे मत सीखा.. और सुन.. तू वक्त रहते घर नहीं लौटी.. तो मैं शीला भाभी के घर रहने चला जाऊंगा.. "

कविता: "हाँ तो चला जा.. वैसे भी मदन भैया को एक सेक्स पार्टनर की जरूरत है.. शीला भाभी तो पूरा दिन वैशाली को संभालने में व्यस्त रहती होगी.. इसलिए बेचारे मदन भैया अकेले पड़ गए होंगे.. तू चला जा उनकों कंपनी देने.. हा हा हा हा हा हा.. !!"

पीयूष: "मुझे क्या खुसरा समझ रखा है तूने? जो मदन भैया के पास गांड मरवाने जाऊंगा.. !! मैं उनके घर गया तो शीला भाभी और वैशाली.. दोनों का गेम बजाकर आऊँगा.. याद रखना तू.. " गुस्से से फोन कट कर दिया पीयूष ने

कविता ने हँसते हँसते फोन पर्स में रख दिया.. स्त्री को एक ऑर्गजम मिल जाए तो उसका नशा दो-तीन दिनों तक रहता है.. चेहरे पर चमक सी रहती है.. और ये तो अपने प्रेमी से प्राप्त हुआ ऑर्गजम था.. उसकी तो बात ही निराली होती है..

एक दिन पहले वो कितनी तनाव में थी !! निःसहाय और बेबस.. जब वो अनुमौसी और रसिक के सिकंजे में फंस गई थी.. पर आज कविता बेहद खुश थी.. बालकनी में खड़े हुए वो मुख्य सड़क पर आते जाते वाहनों को देख रही थी

तीसरे माले की बालकनी से कविता ने देखा.. सड़क के किनारे पापा की गाड़ी आकर खड़ी रही.. और अंदर से फाल्गुनी उतरी.. कविता को इसमें कुछ भी असामान्य नहीं लगा.. फाल्गुनी उनके घर के सदस्य जैसी थी और पापा अक्सर उसे अपनी गाड़ी में घर या कॉलेज छोड़ने जाते थे..

कविता अंदर कमरे में आई.. उनकी कोई पड़ोसी महिला मौसम की तबीयत पूछने आई थी.. कविता उनसे बातें करने में मशरूफ़ हो गई.. तभी सुबोधकांत कमरे में आए.. उनको देखते ही कविता ने उनके पैर छु लिए.. कविता को आशीर्वाद देते हुए उन्हों ने ससुराल के सारे सदस्यों के बारे मेंन साहजीक पूछताछ की.. और बगल में पड़े स्टूल पर बैठ गए

कविता को ताज्जुब हो रहा था की पापा आ गए.. पर फाल्गुनी क्यों नहीं आई अब तक?? पापा से तो उसे पहले आ जाना चाहिए था.. !! वो तो कब की उतर चुकी थी.. सीधे ऊपर आ सकती थी.. पापा को तो गाड़ी पार्क करनी थी.. पता नहीं कहाँ रह गई.. गई होगी कहीं काम से.. कविता अपने पापा से फाल्गुनी के बारे में पूछना चाहती थी पर उस पड़ोसी महिला की हाजरी में पूछना नहीं चाहती थी..

तभी फाल्गुनी ने कमरे में प्रवेश किया.. कविता को देखकर वो खुश हो गई.. "अरे दीदी.. आप कब आए? कितनी सुंदर लग रही हो आप इन कपड़ों में?"

टाइट टीशर्ट और पैडिड ब्रा की वजह से कविता के स्तन कुछ ज्यादा ही उभरकर बाहर दिख रहे थे.. कविता जान गई की फाल्गुनी का इशारा किस ओर था.. वैसे तो उसने तारीफ ही की थी.. पर पापा की मौजूदगी के कारण वो शरमा गई..



अनजान मौसम ने सवाल किया "कैसे आई तू फाल्गुनी? ऑटो से आई? या पिछली बार की तरह सिटी-बस में?"

"नहीं यार.. सिटी-बस में ही आई.. ऑटो वाला तो पचास से कम में राजी ही नहीं हुआ.. " फाल्गुनी का जवाब सुनकर कविता चोंक गई.. !! उसने अपनी सगी आँखों से फाल्गुनी को पापा की गाड़ी से उतरते हुए देखा था.. हो सकता है की वो सिटी-बस से आई हो.. और पापा ने उसे बस-स्टैन्ड से पीक-अप किया हो.. पर उस रोड पर तो गाड़ी खड़ी रख पाना नामुमकिन है.. ट्राफिक पुलिस वाले किसी को भी वहाँ गाड़ी रोकने नहीं देते..

"आप ऑफिस से सीधे यहाँ आए पापा?" कविता ने सुबोधकांत को ही प्रश्न पूछा

"हाँ बेटा.. आजकल काम का बोझ बहोत ज्यादा है.. अकेले थक जाता हूँ सब कुछ संभालते संभालते.. तू पीयूष कुमार को यहाँ क्यों नहीं भेज देती? वो मेरे साथ हो तो मैं बिजनेस को बहोत आगे तक ले जा सकता हूँ" सुबोधकांत ने उत्तर दिया

पापा ने तो फाल्गुनी को कार में बिठाने के बारे में कुछ कहा ही नहीं और अपनी बिजनेस की बातें लेकर बैठ गए..

"आप बिजनेस में.. मौसम और फाल्गुनी की मदद क्यों नहीं लेते? दोनों पढ़ी लिखी और होनहार है.. जब तक उनकी शादी नहीं हो जाती तब तक तो वो आप की मदद कर ही सकते है.. !!" कविता की ये बात सुनकर फाल्गुनी की आँखों में चमक और मौसम की आँखों में चिंता के भाव आ गए.. मौसम सोच रही थी की.. दीदी ने अनजाने में ये बोलकर कितनी बड़ी गलती कर दी ये वो नहीं जानती.. उन्हें तो पता भी नहीं है फाल्गुनी और पापा के बारे में.. अगर उन्हें पता चला तो क्या गुजरेगी उन पर?? पर मौसम अभी कुछ भी बॉल पाने की स्थिति में नहीं थी.. वो चुप रही

थोड़ी देर बैठकर सुबोधकांत काम का बहाना बनाकर निकल गए.. और वो पड़ोसी महिला भी चली गई थी.. अब फाल्गुनी, कविता और मौसम.. कमरे में अकेले थे.. कविता को खास ध्यान नहीं गया पर मौसम ने ये नोटिस किया की पापा के जाते ही फाल्गुनी भी उठ खड़ी हुई.. और बालकनी के पास जाकर खड़ी हो गई.. थोड़ी ही देर में वो वापिस आकर अपनी जगह पर बैठ गई..

फाल्गुनी के आते ही.. कविता ने उससे कहा "तू मौसम का ध्यान रख.. और हाँ तुझे जल्दी घर जाना हो तो मुझे फोन कर देना.. मैं आ जाऊँगी.. " कहते हुए कविता निकल गई.. और बाहर अस्पताल के वैटिंग रूम में बैठकर पिंटू से फोन पर चिपक गई..

इस तरफ मौसम ने तकिये के नीचे से फोन निकालकर वैशाली को कॉल किया.. वैशाली ने तुरंत फोन उठाया.. मौसम बीमार है ये बात वैशाली को अनुमौसी से जानने मिली थी.. दोनों ने काफी बातें की.. वैशाली ने शीला से भी मौसम की बात करवाई.. फिर मौसम ने फाल्गुनी को फोन दिया और उसने भी वैशाली के हालचाल पूछें..

शाम ढलने को थी.. फाल्गुनी को घर जाना था.. इसलिए उसने कविता को फोन कर बुला लिया और वो निकल गई..

उस रात अस्पताल मे मौसम के साथ, कविता और सुबोधकांत रुकें थे.. और फाल्गुनी को घर पर रमिला बहन के साथ रहने को कहा था.. रात को कविता और उसके पापा के बीच मौसम की शादी और सगाई को लेकर काफी चर्चा हुई.. देर तक दोनों बाप और बेटी बातें करते रहे.. सुबोधकांत को इस बात की चिंता थी.. की लड़के वाले पंद्रह दिन में सगाइ और एक महीने बाद शादी निपटाना चाहते थे.. पर मौसम की बीमारी के कारण सारा प्लैनिंग बिगड़ गया..

दूसरी सुबह मौसम के रिपोर्ट्स देखकर डॉक्टर ने कहा की उसकी तबीयत अब सुधर रही थी और उसे शाम को डिस्चार्ज किया जाएगा..

एकाध घंटे के बाद तरुण और उसकी माँ अस्पताल आ पहुंचे.. कविता ने उनका बड़े अच्छे से स्वागत किया.. और फिर तरुण की मम्मी को लेकर वो अपने घर की ओर निकल गई ताकि मौसम और तरुण को थोड़ा वक्त अकेले गुजारने के लिए मिलें..

तरुण ने मौसम के सर पर हाथ फेरते हुए कहा "अब कैसी है तबीयत?"

मौसम ने शरमाते हुए कहा "ठीक है.. !!"

तरुण का हाथ मौसम के सर को सहलाता रहा और मौसम के शरीर में शक्ति का संचार होने लगा.. तरुण के स्पर्श से मौसम को बहोत अच्छा लगने लगा.. तभी मौसम के मोबाइल पर पीयूष का फोन आया.. मौसम फोन उठाती उससे पहले ही तरुण ने फोन उठा लिया..

"हैलो" तरुण की आवाज को पीयूष पहचान नहीं सका

"हैलो, मैं मौसम का जीजू बोल रहा हूँ.. जरा मौसम को फोन दीजिए प्लीज.. मुझे उसकी तबीयत के बारे में पूछना है.. "

"ओह.. पीयूष भैया.. मैं तरुण बोल रहा हूँ.. मौसम अभी काफी कमजोर है.. वो बाद में बात करेगी आप से.. ठीक है ना.. !!"

"हाँ हाँ.. कोई बात नहीं.. मौसम को कहना की टाइम मिलें तब मुझे फोन करें.. मुझे तो सिर्फ उसकी तबीयत का हाल पूछना था.. " पीयूष ने फोन रख दिया

रूम के एकांत में पीयूष जीजू की आवाज स्पष्ट सुनाई दी मौसम को.. जीजू के आवाज में जो दर्द छुपा था वो भी पहचान लिया उसने.. पर वो बेचारी क्या कर सकती थी? उसके शरीर और मन पर अब तरुण का सम्पूर्ण अधिकार था.. जीजू के प्रति उसे खिंचाव तो बहोत था.. पर तरुण को जीवनसाथी के रूप में स्वीकार करने के बाद उसका हाल सेंडविच जैसा हो गया था.. आँखें बंद कर मौसम अफसोस करती रही और तरुण ने ये समझा की उसके सहलाने के कारण मौसम सो गई..

इस तरफ पीयूष को बहोत गुस्सा आ रहा था.. फोन काटते ही उसने उठाकर फेंक दिया.. अच्छा हुआ की उस वक्त ऑफिस में ओर कोई नजदीक नहीं था.. उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मौसम उसे इग्नोर कर रही थी.. पुरुष सब कुछ सह लेगा.. पर अपने प्रिय पात्र की अवहेलना बर्दाश्त नहीं करेगा.. हताश होकर उसने मोबाइल और उसकी निकली हुई बैटरी उठाई.. टूटे हुए मोबाइल के हिस्से तो इकठ्ठा कर लिए.. पर इस टूटे हुए दिल का क्या किया जाएँ?? मौसम ने तोड़ कर रख दिया था उसका दिल.. !!

बीमार मौसम.. बिस्तर पर लेटे हुए भी अपने जीजू की तड़प को महसूस कर रही थी.. उसे पता चल गया की जीजू को बहोत बुरा लगा था

"तरुण, मुझे ऑरेंज ज्यूस पीना है.. बाहर से लेकर आ न मेरे लिए प्लीज.. !!"

"तुम बस हुक्म करो.. तेरी सेवा करने के लिए तो इतनी दूर से आया हूँ मैं.. अभी लेकर आया"

जैसे ही तरुण ज्यूस लेने के लिए गया.. मौसम ने पीयूष को फोन किया

पर उसका फोन कहाँ लगने वाला था.. !!! फोन फेंकने के बाद, बैटरी और सिम-कार्ड अलग हो गए थे.. पीयूष का फोन आउट ऑफ कवरेज बता रहा था.. बहोत बार कोशिश करने पर भी जब फोन नहीं लगा तब मौसम ने वोइस मेसेज छोड़ दिया "जीजू, मेरी तबीयत अब अच्छी है.. मैंने आपको फोन ट्राय किया था पर नहीं लगा.. आप मेरी चिंता मत करना.. लव यू.. और हाँ जीजू.. मुझे मेरा वादा याद है.. और वो मैं पूरा करूंगी"

तरुण के आने से पहले उसने मोबाइल से सारे मेसेज डिलीट कर दीये.. और तरुण का इंतज़ार करने लगी.. अब उसे राहत हुई..

थोड़ी ही देर में तरुण ज्यूस के दो ग्लास लेकर लौटा.. एक ग्लास खुद के लिए और दूसरा मौसम के लिए.. ज्यूस पीते पीते तरुण अपने अभ्यास और केरियर के बारे में बता रहा था और मौसम पीयूष की यादों में खोई हुई थी.. मौसम तरुण की बातों से बोर हो रही थी.. वो चाहती थी की तरुण कोई ओर बात करें..

माउंट आबू में जीजू के संग जो पल बिताएं थे.. उसकी याद अब भी मौसम के दिल को झकझोर कर रख देती थी.. और वही यादें उसे बार बार जीजू की ओर आकर्षित कर रही थी.. उसका दिल और जिस्म दोनों पीयूष जीजू के लिए तड़प रहे थे.. मौसम के चेहरे पर ये सोचकर मुस्कान आ गई.. की अगर ऐसा एकांत उसे तरुण के बजाए जीजू के साथ मिल गया होता तो वो क्या करते? लीप किस करते.. स्तन दबाते.. उंगली डालते.. और उनका लंड भी पकड़ने को मिल जाता.. जीजू को वादा निभाने का प्रोमिस तो कर दिया था.. पर उसे निभाएगी कैसे?? कहाँ मिलेंगे वो दोनों? जैसे जैसे तरुण उसके करीब आता गया.. मौसम का अपराधभाव और तीव्र होता गया.. सगाई और शादी के बीच मुश्किल से २० दिनों का अंतर रहने वाला था.. जब जब मम्मी-पापा शादी के मुहूरत को लेकर चर्चा करते.. मौसम अपने जीजू से मिलने के मौके के बारे में मनोमंथन करने लगती.. वो जानती थी की ऐसा करने से वो तरुण और दीदी दोनों का विश्वास तोड़ रही है.. पर जीजू की हरकतें याद आते ही वो इस गुनाह के लिए भी तैयार हो जाती

शाम को सुबोधकांत और फाल्गुनी गाड़ी लेकर आए.. और मौसम को अस्पताल से घर ले जाने के लिए.. फाल्गुनी और सुबोधकांत आगे बैठे थे.. मौसम तरुण के साथ पीछे की सीट पर.. मौसम के ये राज नहीं आया.. फाल्गुनी क्यों पहले ही आगे बैठ गई? उसे पीछे मेरे साथ बैठना था और तरुण को आगे पापा के साथ बैठने देना चाहिए था.. !!

घर आकर मौसम अपने कमरे में जाकर लेट गई.. और बाकी लोग खाना खाने बैठे.. उस वक्त मौसम ने फिर से जीजू को कॉल किया लेकिन अब भी वो नोट रिचेबल बता रहा था.. जीजू ने कहीं कोई गलत कदम तो नहीं उठा लिया?? मौसम ये सोचकर ही डर गई.. इतने लंबे समय तक जीजू का फोन बंद क्यों आ रहा था? अब जीजू से कॉन्टेक्ट कैसे करूँ?

खाना खाने के बाद तरुण और सुबोधकांत बाहर गए.. कविता मौसम के पास आकर बैठ गई

"जीजू का फोन ही नहीं आया अब तक.. एक बार भी उन्हों ने मेरी तबीयत के बारे में नहीं पूछा.. किसी बात से नाराज है क्या? कहीं तुम दोनों के बीच फिर से कोई झगड़ा तो नहीं हो गया?" मौसम ने कविता से पूछा

"तू पीयूष की बात छोड़.. मायके में आने के बाद मुझे ससुराल का कोई टेंशन नहीं चाहिए.. मैं हूँ ना यहाँ तेरे पास.. फिर तुझे और किसकी जरूरत है?" पिंटू के साथ मेसेज पर चेट करते हुए कविता ने कहा.. अब इसके आगे मौसम क्या बोलती?? निराश हो गई मौसम

आखिर उसने फाल्गुनी को फोन किया.. फाल्गुनी अभी अभी अपने घर पहुंची थी और मौसम का फोन देखकर चिंतित हो गई..

"क्या हुआ मौसम?"

मौसम: "यार एक काम कर.. तू जीजू को फोन लगा न.. मैं कब से ट्राय कर रही हूँ पर उनका फोन लग ही नहीं रहा.. !! मोबाइल न लगे तो लेंडलाइन पर फोन कर और जीजू मिलें तो उन्हें बताना की आप से बात न हो पाई इसलिए मौसम नाराज है.. और उन्हें कहना की मुझे फोन करें"

फाल्गुनी: "ठीक है.. खाना खाकर फोन करती हूँ"

मौसम: "कोई बात नहीं.. आराम से करना.. और फिर मुझे बताना"

अब मौसम के दिल को चैन मिला.. उसे यकीन था की लेंडलाइन पर तो जीजू मिल ही जाएंगे.. पर लेंडलाइन पर मैं भी तो कॉल कर सकती हूँ.. मौसम ने तुरंत फोन लगाया.. फोन अनुमौसी ने उठाया.. यहाँ वहाँ की थोड़ी बातें करने के बाद उसने जीजू के बारे में पूछा

"रुक.. मैं उसे फोन देती हूँ"

"ठीक है आंटी.. !!"

थोड़ी देर बाद मौसी ने ही फोन पर बात की "बेटा.. वो लैपटॉप पर अपनी कंपनी का काम करने में व्यस्त है.. पर उसने कहा है की वो थोड़ी देर बाद तुझे फोन करेगा.. तू अपनी तबीयत का ध्यान रखना.. ठीक है.. !!"

मौसम को गुस्सा आया.. वो यहाँ जीजू के लिए तड़प रही थी और जीजू उसे बात करने के लिए भी नहीं आए.. पीयूष जीजू की नाराजगी का एहसास हो गया उसे.. अब क्या करूँ? देखती हूँ वो फाल्गुनी का फोन उठाते है या नहीं

थोड़ी देर बाद फाल्गुनी का फोन आया उसने कहा की अंकल ने फोन उठाया था.. और उन्हों ने कहा की जीजू सो गए थे.. मोबाइल नहीं लगा उनका

मौसम को फिर से कमजोरी महसूस होने लगी.. उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था.. तरुण से भी वो ज्यादा बात नहीं कर रही थी.. तरुण को लगा की बीमारी के कारण मौसम ऐसा कर रही होगी..

दूसरी सुबह तरुण अपनी मम्मी के साथ वापिस लौट गए.. तरुण मौसम की तबीयत को लेकर चिंतित था..

इस तरफ कविता ने भी पीयूष को फोन करने की बहोत कोशिश की.. पर लगा नहीं.. आखिर घर पर फोन करने पर पता चला की पीयूष का मोबाइल गिरने की वजह से टूट गया था..

कविता मन ही मन पीयूष को गालियां देने लगी.. ऐसे कैसे गिरा दिया फोन? छोटा बच्चा है क्या? एक फोन को नहीं संभाल पाया.. !! अभी ४ महीने पहले ही खरीदा था तीस हजार का फोन.. !! कर दिया नुकसान!! किसी चीज को ठीक से संभालकर रखना आता ही नहीं पीयूष को.. !! बड़बड़ाते हुए कविता घर के अंदर आई.. उसका गुस्से से तमतमाया हुआ चेहरा देखकर मौसम ने पूछा

"क्या हुआ दीदी? क्यों इतना तिलमिला रही हो?"

"अरे यार.. उस बेवकूफ ने फोन तोड़ दिया.. इसलिए बात नहीं हो पा रही है.. !!"

सुनकर मौसम के दिल को सुकून मिला.. चलो असली कारण तो जानने मिला.. शायद जीजू उससे नाराज नहीं थे पर फोन खराब होने की वजह से बात नहीं हो पा रही थी

मौसम: "तो दीदी.. तुम ऑफिस पर फोन क्यों नहीं करती? वहाँ तो बात हो पाएगी"

कविता: "ऐसी भी कोई ईमर्जन्सी नहीं है.. और ऑफिस के नंबर पर फोन करूंगी तो वो भड़केगा मुझ पर.. !!" वैसे कविता का मन तो कर रहा था ऑफिस पर फोन करने का.. शायद पिंटू फोन उठा लें.. !!

पीयूष के कानों में रह रहकर तरुण की आवाज गूंज रही थी.. मौसम को खुद से दूर करने वाला तरुण ही था.. वरना मौसम उससे बात जरूर करती.. अभी तो सगाई भी नहीं हुई और मौसम का मालिक बनकर बैठ गया कमीना.. तरुण के प्रति जबरदस्त नफरत हो गई पीयूष को.. गुस्से में वो ऑफिस से घर के लिए निकल गया.. उसको मन की शांति चाहिए थी.. और इस वक्त मौसम से मिलन के अलावा कोई भी चीज उसे शांत नहीं कर सकती थी

सोसायटी की गली से अंदर जाते ही अपने घर से पहले.. उसने शीला भाभी को घर के बरामदे में झाड़ू मारते हुए देखा.. झुककर झाड़ू लगा रही शीला के दोनों गजब के बड़े स्तन.. और मांसल कमर को देखकर अगर किसी पुरुष की नजर न जाएँ तो उसे अवश्य अपना मेडिकल चेकअप करवा लेना चाहिए..



पीयूष ने सोचा की चलो शीला भाभी से थोड़ी बात-चीत की जाएँ.. मौसम से ध्यान भी बँटेगा.. और दिमाग फ्रेश हो जाएगा.. अगर मदन भैया घर पर नहीं होते तो वो शीला की गोद में सर रखकर अपने सारे दुख उन्हें सुनाता और जी हल्का कर लेता.. मौसम के विचारों से मुक्त होने के लिए पीयूष को शीला भाभी के रूप में जैसे तारणहार मिल गई थी

"अरे पीयूष.. !! कैसे हो?" शीला भाभी ने पीयूष को देखते ही कहा

"ठीक हूँ भाभी, आप कैसे हो?"

"कुछ ठीक नहीं है पीयूष.. वैशाली का हाल देखा नहीं जाता.. बेचारी की पूरी ज़िंदगी तबाह हो गई" व्यथित होकर शीला ने कहा

शीला भाभी को यूं दुखी देखकर पीयूष के कदम अपने आप ही उनके घर की तरफ खींचे चले गए.. वो शीला के घर के बरामदे में गया और झूले पर बैठ गया.. तभी वैशाली घर से बाहर आई.. "ओह पीयूष.. कैसा है तू?" कहते हुए वो सामने रखी कुर्सी पर बैठ गई.. वैशाली के चेहरे से चमक गायब थी.. ऐसा लग रहा था जैसे उसके शरीर में खून है ही नहीं.. एकदम फीकी फीकी सी.. चेहरे पर उदासी के बादल छाए हुए थे

शीला ने अचानक झाड़ू लगाना छोड़ दिया, घर के अंदर गई.. और पीयूष को आवाज लगाई.. सुनते ही पीयूष अंदर शीला के पास गया

"हाँ कहिए भाभी.. " शीला की छातियों को देखते हुए पीयूष ने कहा

"वैशाली को इस सदमे से बाहर कैसे निकालूँ? देख उसकी हालत.. मुझ से तो देखा नहीं जाता.. तू कुछ कर ना जिससे की वो वापिस मूड में आ जाएँ.. !!" उदास शीला ने कहा

ये सुनकर मन ही मन पीयूष सोच रहा था.. शीला भाभी मेरी मदद मांग रही है वैशाली को सहारा देने के लिए.. पर उन्हें कहाँ पता है की फिलहाल मैं खुद ही सहारे की तलाश में हूँ.. !!

"जी जरूर.. आप ही बताइए.. कैसे मदद करूँ? आप जो कहोगे मैं करने के लिए तैयार हूँ"

"उसे कहीं गार्डन या रेस्टोरेंट में ले जा.. थोड़ा बाहर घूमेगी तो उसे अच्छा लगेगा और अपने सदमे से उभर पाएगी.. हम तो उसके माँ बाप है.. सलाह और सुझाव देने के अलावा ज्यादा कुछ कर नहीं सकते.. उसे जरूरत है दोस्त की.. कविता अभी मायके गई हुई है इसीलिए मुझे तेरी मदद लेनी पड़ रही है.. "

"ठीक है भाभी.. मैं कुछ करता हूँ" कहते हुए पीयूष घर के बाहर निकला

वैशाली कुर्सी पर गुमशुम बैठी हुई थी.. विचारों में खोई हुई सी..

"अरे वैशाली.. मुझे एक दोस्त के घर लैपटॉप देने जाना है.. लैपटॉप बेग का बेल्ट टूट गया है तो मैं उसे बाइक पर अकेले ले नहीं जा सकता.. तू मेरे साथ चलेगी? सिर्फ पीछे बैठना है बेग पकड़कर.. कविता घर पर ही नहीं इसलिए तुझे बोल रहा हूँ.. प्लीज.. !!"

वैशाली का जरा भी मन नहीं था जाने का.. वो मना करना चाहती थी पर बोल न पाई.. उसके पीयूष से संबंध ही कुछ ऐसे थे की वो मना नहीं कर पाई.. हाँ अगर वो किसी काम में व्यस्त होती तो अलग बात थी.. पर फिलहाल वो फ्री थी..

"ठीक है पीयूष.. चलते है.. वैसे भी घर पर बैठे बैठे बोर हो रही हूँ" वैशाली ने कहा "तू घर पहुँच.. मैं थोड़ी देर में ड्रेस चेंज कर के आती हूँ"

उनके इस संवाद को सुन रही शीला खुश हो गई.. मन ही मन वो पीयूष का आभार प्रकट करने लगी.. कितनी आसानी से मना लिया वैशाली को उसने.. !!

वैशाली कपड़े बदलकर बाहर आई.. और शीला को बताया कर पीयूष के घर चली गई.. अनुमौसी के साथ थोड़ी बातचीत करने के बाद वो पीयूष के पीछे लैपटॉप का बेग लेकर बैठ गई

"ठीक से पकड़ना.. अभी मेरी किस्मत थोड़ी ठीक नहीं चल रही.. अभी अभी मेरा मोबाइल टूट चुका है.. !!" फिर से मौसम का खयाल.. हवा के झोंके की तरह.. पीयूष के मन में आ ही गया

"अरे वो कोई छोटी बच्ची है क्या?? जो तू उसे ये सब समझा रहा है!! मोबाइल टूटा होगा तो तेरी गलती से.. उसमें इस बेचारी को क्यों सुना रहा है?? " अनुमौसी ने पीयूष को धमकाया.. वैशाली ये सुनकर हंस पड़ी.. कलकत्ता से लौटने के बाद.. शायद पहली बार उसके चेहरे पर मुस्कान आई थी.. अनुमौसी ने उसका पक्ष लिया ये देखकर उसे बहोत अच्छा महसूस हुआ.. सदमे से गुजर रहे किसी भी इंसान को अच्छा लगेगा..

पीयूष ने बाइक स्टार्ट की.. वैशाली पीछे बैठ गई..

पीयूष ने मन में सोचा.. वैशाली से पूछूँ की किसी अन्डर-कन्स्ट्रक्शन साइट की तरफ बाइक ले लूँ?? पर वैशाली को देखकर लग रहा था की वो शायद अभी मज़ाक के मूड में नहीं थी..

बारिश के कारण गड्ढे से भरे रास्ते पर पीयूष ने तेजी से बाइक को दौड़ा दिया.. देखकर शीला ने चैन की सांस ली.. चलो अच्छा हुआ.. ये घर के बाहर तो निकली.. !!

शीला ने घर के अंदर जाकर देखा.. मदन अपने लैपटॉप पर कुछ कर रहा था..

"क्या कब से लैपटॉप पर चिपका हुआ है तू? अच्छा सुन.. वैशाली को मैंने पीयूष के साथ बाहर भेजा है.. इसलिए अब कॉम्प्युटर से नजरें हटा और जरा मेरी तरफ भी देख.. अभी घर पर कोई नहीं है.. रात को खाने में क्या बनाउ?" साड़ी का पल्लू हटाकर अपने टाइट बबलों को दिखाते हुए कामुक अंदाज में उसने कहा.. वो बार बार मदन को ये इशारा दे रही थी की घर पर कोई नहीं है.. वो मदन को उत्तेजित कर रही थी..



मदन: "तेरे जो दिल में आए बना दे.. मैं खा लूँगा.. वैसे कुछ ज्यादा भूख नहीं है.. "

शीला मदन के पीछे इस तरह बैठ गई की उसके स्तनों का स्पर्श मदन के कंधों से हो.. और मदन लैपटॉप में क्या कर रहा था वो देखने लगी..

"उस मेरी से चैट कर रहा हूँ" शीला पूछती उससे पहले ही मदन ने बता दिया

"अच्छा.. !!! तभी कब से इस कॉम्प्युटर से चिपका बैठा है.. अब वो अंग्रेज रांड क्या तुझे कॉम्प्युटर स्क्रीन से दूध पिलाएगी?"

"दूध तो तू भी नहीं पीला सकती.. तेरे लिए तो अब ये मुमकिन ही नहीं है"

"वैशाली के जन्म के बाद तूने कहाँ कोई कमी छोड़ी थी मेरा दूध चूसने में.. !!! और अब तो तू दूध के बदले मेरा खून चूसता है वो कम है क्या? और दूध पीला नहीं सकती.. पर तेरा दूध और मलाई निकलवा तो सकती हूँ मैं.. " मदन के लंड पर हाथ रखते हुए बड़े ही कामुक अंदाज में शीला ने कहा



मदन: "शीला.. वैशाली के साथ जो कुछ भी हुआ उसके टेंशन की वजह से.. सेक्स को तो मैं भूल ही गया था.. कितने दिनों से कुछ मन ही नहीं कर रहा.. आज तू कुछ ऐसा कर की मेरी मरी हुई इच्छाएं फिर से जागृत हो जाएँ"

शीला: "ऐसा तो मैं क्या करूँ.. !!! मर्द तो तू है.. जो भी करना है तुझे ही करना होगा"

मदन: "मन तो मेरा बहोत कर रहा है.. पर अभी के हालात देखते हुए मैं सोच रहा था की मेरी ऐसी इच्छा प्रकट करूंगा तो तुझे अच्छा नहीं लगेगा.. और शायद मेरे बारे में तू क्या सोचेगी.. यही सोचकर मैं खामोश हूँ"

शीला: "मैं समझ सकती हूँ.. पर वैशाली के साथ ऐसा होने के कारां हमने खाना-पीना तो नहीं छोड़ दिया ना.. वैसे ही ये भी एक प्राकृतिक जरूरत ही है.. वैसा समझकर ही हमें स्वाभाविक होकर इसे स्वीकार करना ही होगा.. और किसी बात को लेकर तेरी कोई इच्छा थी तो मुझे बताना चाहिए था ना.. मैं तुझे कैसे भी संतुष्ट करने का प्रयत्न करती.. और तू मुझे एक बार छु लें.. बाद में मेरी इच्छा हो ही जाती है"

मदन: "मेरी कह रही है की वो मेरा लंड चूसना चाहती है.. और बदले में मुझे अपना दूध पिलाना चाहती है" तीरछी नज़रों से शीला की ओर देखते हुए मदन ने कहा और अपना लंड सहलाता रहा

शीला: "हाँ तो फिर डाल दे इस कॉम्प्युटर की स्क्रीन में अपना लंड.. " मदन को ताना मारते हुए उसने कहा "यहाँ तेरी पत्नी बिना लंड के तड़प रही है.. और तुझे उस मेरी की पड़ी है??" गुस्से में शीला ने लैपटॉप की पावर स्विच दबाकर बंद कर दिया

मदन: "अरे यार, क्या कर रही है तू? ऐसे बंद नहीं करते कभी.. विंडोज़ करप्ट हो जाएगा तो फिर से इंस्टॉल करना पड़ेगा मुझे " नाराज होते हुए उसने कहा

शीला: "अगर तू मेरे साथ अभी कुछ नहीं करेगा तो मैं भी करप्ट हो जाऊँगी.. इतना सेक्सी माल तेरे सामने चुदने के लिए बेकरार खड़ा है और तू कब से इस डिब्बे के साथ चिपका हुआ है.. !!"

मदन: "तू बेकार गुस्सा कर रही है.. बहोत दिन हो गए थे इसलिए चैटिंग करते हुए ठंडा होना चाहता था.. मुझे कहाँ पता था की तू टपक पड़ेगी बीच में.. !! और लैपटॉप का सत्यानाश कर देगी.. !!"

शीला: "और मेरे बदन और उसकी इच्छाओं का सत्यानाश हो रहा है उसका क्या?? तू तो कंप्यूटर में लंड डालकर मेरी को मुंह में देकर झड़ जाएगा.. पर मैं कहाँ जाऊँ? लगता है मुझे भी किसी सब्जीवाले या दूधवाले को ढूँढना ही पड़ेगा.. !!" छाती से पल्लू हटाते हुए मादक स्टाइल से मदन को ललचाते हुए कहा.. पिछले एक घंटे से मेरी के साथ चैट कर रहे मदन का लंड तो तैयार ही था..

अब लैपटॉप को रिस्टार्ट करने में बहोत वक्त लग जाता.. इसलिए मदन ने उसे साइड में रख दिया और शीला को बाहों में भर लिया.. दोनों काफी दिनों से भूखे थे..

"मेरी के साथ जो कुछ भी कर रहा था.. वो सब कुछ मेरे साथ भी कर.. देख.. मेरे बबले भी कितने भारी हो गए है.. तुझे पता है.. जब काफी दिनों तक इन्हें दबाया न जाए.. तब ऐसे ही सख्त और भारी लगते है.. मुझे वज़न लगता है इन छातियों का.. " ब्लाउस के तमाम हुक खोल दीये शीला ने..


ब्रा खुलते ही.. मदमस्त खरबूजों जैसे स्तन बाहर लटकने लगे.. एक इंच लंबी निप्पलें मदन का अभिवादन कर रही थी.. मदन ने शीला के दोनों स्तनों को मसलते हुए कहा

"ओह्ह शीला मेरी जान.. अगर वैशाली के आ जाने का डर नहीं होता तो आज मैं तुझे मेरी के साथ विडिओ-चैट करते हुए चोदता.. यहाँ मैं तेरे बबले मसलता और वहाँ मेरी के थनों से दूध निकलता.. !!"

मदन की जांघ पर बैठते हुए शीला ने कहा "मदन, तुझे दूध से भरे बबले बहोत पसंद है ना.. !! इसीलिए उस अंग्रेज मेरी के पीछे पागल हुआ पड़ा है.. पर वो यहाँ आकर तुझे दूध थोड़े ही पीला पाएगी??"

"आह्ह शीला.. तुझे क्या कहूँ यार.. !! सब पता होने के बावजूद मैं अपने आप पर कंट्रोल ही नहीं कर पाता.. दूध टपकती निप्पलें देखकर मैं होश खो बैठता हूँ.. !!" मेरी की दूध से भरी थैलियों को याद करते हुए मदन शीला की काँखों के नीचे से हाथ डालते हुए उसके स्तनों को दबाता रहा..

बहोत दिनों से भूखी थी शीला.. मदन के स्पर्श ने बेकाबू बना दिया उसे.. मदन के समक्ष अब वो निःसंकोच अपनी इच्छाएं व्यक्त कर रही थी

"ओह्ह मदन.. अब रहा नहीं जाता मुझसे.. तू जल्दी ही कुछ कर.. अभी वैशाली आ जाएगी तो सारा मज़ा खराब हो जाएगा.."

सुनते ही मदन ने शीला को धक्का देकर बेड पर लिटा दिया.. शीला की जांघें अपने आप चौड़ी हो गई.. जैसे छोटे बच्चे के आगे निवाला रखते ही उसका मुंह खुल जाता है.. बिल्कुल वैसे ही

नीचे झुककर शीला की भोस को चूमते हुए शीला मचल उठी.. "आह्ह मदन.. !!"



शीला की रग रग से वाकिफ मदन ने चाट चाटकर भोसड़े को गीला कर दिया.. और फिर उसके चूतड़ों के नीचे तकिया सटाकर रख दिया.. शीला का भोसड़ा ऐसे उभर गया जैसे दुनिया के सारे लंड एक साथ लेना चाहता हो.. शीला के भोसड़े का विश्वरूप दर्शन देखकर मदन भी बेचैन हो गया.. दोनों उंगलियों से शीला की भोस के वर्टिकल होंठों को चौड़ा कर अंदर के गुलाबी भाग को देखता ही रहा.. जैसे चेक कर रहा हो की उसकी नामौजूदगी में अंदर कितने लंड गए थे?? अपनी उंगलियों को गीली करते हुए मदन ने दो उंगलियों को शीला के गरम तंदूर जैसे छेद में डाल दी.. सिहर उठी शीला




शीला और मदन की सेक्स लाइफ इतनी उत्कृष्ट होने का एक कारण यह भी था की चुदाई के दौरान वो दोनों खुलकर बातें करते थे.. ऐसी नंगी बातों से दोनों को एक जबरदस्त किक मिलती थी.. और दोनों जंगलियों की तरह एक दूसरे को भोगते थे.. अपनी विकृतियों को जीवनसाथी के सामने निःसंकोच व्यक्त कर पाना.. हर किसी के नसीब में नहीं होता.. मदन ने भी काफी मेहनत के बाद शीला को इस तरह तैयार किया था.. वरना भारतीय स्त्री के मन में क्या क्या विकृत इच्छाएं है ये ९९% पतियों को पता ही नहीं होता.. !!

जैसे मर्दों की कई अदम्य इच्छाएं होती है.. वैसे औरतों के मन में भी कई ऐसी गुप्त कामेच्छाएं दबी पड़ी होती है.. जो अगर वो अपने पति को बताएं तो वो सुनकर ही बेहोश हो जाएँ.. मदन ने ये साहस किया था.. उसने अपनी पत्नी को पूर्णतः समझा था.. अपनी पत्नी की विकृत इच्छाओं का उसने स्वीकार किया था.. उसके चारित्र के बारे में गलत सोचें बगैर.. हर किसी के बस की बात नहीं है.. अगर पत्नी ग्रुप सेक्स की बात करें तो सुनकर पति को कैसा सदमा लगेगा? या फिर पार्टनर चेंज करने की बात अपनी पत्नी के मुंह से सुनकर कौन सा पति नहीं चौंकेगा?

रास्ते से गुजरते वक्त.. राह पर खड़े गधे के काले विकराल लंड को लटकता हुआ अहोभाव से देखने के बाद पत्नी जब रात को चुदाई के दौरान उस घटना का उल्लेख करें तब ज्यादातर मूर्ख पति यही सोचते है की उसकी पत्नी को लंबा और तगड़ा लंड लेने की ख्वाहिश है और वो उसके लंड से संतुष्ट नहीं है.. जब की मदन ये सोचता था की मेरी पत्नी कितनी हॉट है जो किसी प्राणी के अवयव के बारे में बात करते हुए सेक्स के दौरान एक्साइट हो रही है.. !! इसीलिए तो वो दोनों बेखौफ होकर अपनी विचित्र से विचित्र और विकृत से विकृत इच्छाओं को प्रकट करने से हिचकिचाते नहीं थे.. पति पत्नी के बीच पारदर्शिता का ये सब से उत्कृष्ट उदाहरण है.. शीला चुदाई करते हुए ऐसे ऐसे विचार प्रकट करती की सुनकर ही मदन का लाँड़ दोगुना सख्त हो जाता.. मदन भी सोचता की जब ये सब सुनकर मुझे इतना आनंद आ रहा है तो क्यों बेवजह पत्नी पर शक करके अपना मज़ा खराब करूँ??

शीला और मदन जब अकेले होते थे तब सेक्स से संलग्न किसी भी तरह की बात करने में शर्म महसूस नहीं करते थे.. किसी भी व्यक्ति को ईर्ष्या हो जाएँ ऐसा सुंदर सहजीवन व्यतीत कर रहे थे दोनों.. उत्कृष्ट सहजीवन जीने के लिए सुंदर पात्र की जरूरत नहीं होती.. बल्कि विकृत इच्छाओं की.. और उसे व्यक्त करने की आजादी होने की जरूरत होती है.. पत्नी कितनी भी सुंदर क्यों न हो.. अगर वो बेडरूम में भी वस्त्र उतारने से कतराती हो.. या फिर जब उसके हाथ में लंड हो तब.. सब्जियों के बढ़े हुए दाम.. और कल दूध टाइम पर आएगा या नहीं.. ऐसी बातें करती हो.. तब पात्र की सुंदरता निरर्थक बन जाती है.. भावनात्मक जुड़ाव के लिए सुंदरता मायने नहीं रखती..

पता नहीं क्यों.. पर मैंने ये अनुभव किया है की अति-सुंदर औरतों में कामुकता बहोत ही कम होती है.. स्त्री इतनी सुंदर हो की देखते ही लंड खड़ा हो जाए पर वो मुंह में लंड लेना नहीं चाहती.. चूत में डालो तो भी बार बार कहेगी की मुझे दर्द हो रहा है.. उससे तो अच्छा कम सौन्दर्य वाली स्त्री हो पर काम-कर्म में अपने मर्द को योग्य साथ दें.. ऐसी स्त्री लाख गुना बेहतर होती है.. पुस्तक दिखने में कितना सुंदर है ये मायने नहीं रखता.. अंदर लिखी कहानी कितनी रोचक है.. ये ज्यादा महत्वपूर्ण होता है.. !!

"मदन.. चल हम कहीं अकेले घूमने चलते है.. किसी मस्त जगह.. मुझे मुक्त मन से ज़िंदगी जीना है.. बिंदास होकर.. "उसका भोसड़ा चाट रहे मदन के सर के बाल पकड़कर खींचते हुए शीला ने कहा "आह्ह.. ये समाज और सोसायटी के नखरों से तंग आ गई हूँ मैं.. कहीं ऐसी जगह ले चल की जहां हमें कोई जानता न हो.. और हम बिना किसी शर्म या बंधन के जीवन जी सकें.. आह्ह मदन.. !!"

मदन को पता था की जब जब शीला दिन में चुदवाती तब बेकाबू होकर अनाब-शनाब बकने लगती थी.. कभी कभी शीला की ये सब व्यभिचारी बकवास सुनकर मदन को धक्का भी लगता.. पर वो ये सोचकर अपने आप को मनाता की पुरानी गाड़ी में दो पेसेन्जर ज्यादा बैठ भी गए तो क्या फरक पड़ता है!! मैंने भी तो वहाँ विदेश में मेरी के संग गुल खिलाए है.. !! और शीला मुझे सुख देने में कभी पीछे नहीं हटती.. यह सोचकर मदन शीला की बातों का बुरा न मानता.. और उसे सहकार भी देता..

"हाँ शीला.. मैं भी तुझे ऐसी किसी जगह ले जाना चाहता हूँ.. जहां हमें कोई न जानता हो.. मैं तो तुझे रंडी बनाकर बीच बाजार खड़ा करूंगा.. तू धंधा करें और मैं बैठकर पैसे गिनूँ.. ओह्ह.. !!" शीला को खुश करने के लिए मदन ने भी अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ा दीये

"ओह्ह मदन.. मैं तेरी रंडी ही तो हूँ.. मुझे एक साथ आठ-दस लोगों से चुदवाने की बहोत इच्छा है.. आह्ह जल्दी जल्दी चाट मदन.. अब रहा नहीं जाता.. घुसेड़ दे अपना लोडा अंदर.. और चोद दे मुझे.. आह्ह.. ला उससे पहले तेरा लंड चूस लूँ.. कितने दिन हो गए इसे मुंह में लिए हुए!! " शीला उठी और मदन को धक्का देकर बेड पर गिराते हुए उसके लंड पर कब्जा कर लिया.. अद्भुत उत्तेजना के साथ शीला ने मदन को मुख-मैथुन का आनंद देने की शुरुआत की.. शीला की इन गरम हरकतों को देखकर मदन सोच रहा था.. शीला की गर्मी के आगे मेरी का तो कोई मुकाबला नहीं है.. मेरी लंड चूसने में इतनी ऐक्टिव कभी नहीं थी..

मदन का पूरा लंड निगलकर उसके आँड़ों को मुठ्ठी में पकड़कर इतने जोर से शीला ने दबाया की मदन दर्द से कराह उठा.. वो सोच रहा था की शीला की हवस एक दिन उसकी जान ले लेगी..



"आह्ह.. जरा धीरे से कर, शीला.. " शीला को रोकते हुए मदन ने कहा..

शीला ने लंड मुंह से निकाला और छलांग लगाकर मदन पर सवार हो गई.. लंड का चूत के अंदर सरक जाना तो तय ही था.. पूरा लंड एक धक्के में अपने भोसड़े में ग्रहण करते हुए शीला कूदने लगी.. "आह्ह आह्ह.. ओह्ह ओह्ह" की सिसकियाँ कमरे में गूंजने लगी.. इन बदहवास धक्कों से मदन के लंड ने कुछ ही देर में पानी छोड़कर शीला के भोसड़े को पावन कर दिया.. पर जब तक शीला की आग नहीं बुझती वो मदन को छोड़ने वाली नहीं थी.. मदन के स्खलित होने के बाद भी करीब पाँच मिनट तक वो लंड पर उछलती रही.. जब तक उसके भोसड़े ने अपनी सारी खुजली, चिपचिपे प्रवाही के रूप में बाहर बहा न दी तब तक वो रुकी नहीं..



"ओह्ह चोद मुझे.. साले ढीले लंड.. इतनी जल्दी झड़ गया.. आह्ह.. ओह्ह.. आह्ह.. मैं भी गईईईईई........!!!!" कहते हुए वो निढाल होकर मदन की छाती पर गिर गई.. एक सुंदर ऑर्गजम प्राप्त कर शीला बेहद खुश हो गई थी..
 
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कविता घर पहुंची.. घर पर कोई नहीं था.. मम्मी अस्पताल गई हुई थी और पापा ऑफिस थे.. उसने पड़ोसी से चाबी मांगकर घर खोला..

अंदर कमरे में जाकर सब से पहले अपनी साड़ी उतारी.. और सिर्फ ब्लाउस और पेटीकोट में, आईने के सामने खड़ी हो गई.. उभरी हुई छाती को देखकर उसे पिंटू का हाथ याद आ गया.. एक के बाद एक उसने ब्लाउस के सारे हुक खोल दीये.. और पेटीकोट का नाड़ा भी खींच लिया.. मायके आकर लड़कियां पहला काम साड़ी बदलकर किसी आरामदायक वस्त्र को पहनने का करती है.. सिर्फ ब्रा और पेन्टी में अपने जिस्म को आईने में निहार रही थी कविता..


पेन्टी पर चूत वाले हिस्से पर चिपचिपे प्रवाही का सूखा हुआ धब्बा था.. उस हिस्से को छूकर कविता ने धीरे से दबाया.. सिनेमा हॉल में हुए ऑर्गजम की निशानी थी वो.. क्लिटोरिस को दबाते ही उसकी चूत में फिर से हरकत होने लगी.. कविता को अपनी चूत से खेलने की इच्छा होने लगी..




आदर्श वातावरण था.. घर पर कोई नहीं था.. आधे घंटे पहले ही अपने प्रेमी संग बिताएं पलों की ढेर सारी यादें थी.. और क्या चाहिए?? कविता ने पेन्टी उतारकर फेंक दी.. और हाथ पीछे ले जाकर ब्रा की क्लिप भी खोल दी.. उसके दूध जैसे गोरे स्तन खुल गए.. कविता को अपने स्तनों पर लाल निशान नजर आए.. जो रसिक के काटने के कारण बने थे.. साले ने कितनी क्रूरता से काटा था.. ये तो अच्छा हुआ की उस रात पीयूष के संग चुदाई और आज पिंटू के संग चुसाई.. अंधेरे में हुई थी.. इसलिए उसके पति या प्रेमी ने ये निशान नहीं देखें.. पिंटू को तो वो फिर भी समझा देती की ये पीयूष की हरकत है.. पर पीयूष को कैसे समझाती??

कविता ने अपनी एक उंगली को मुंह में डालकर चूसा और ठीक से गीला कर अपनी चूत के अंदर बाहर करने लगी.. पिंटू के संग गुजारें उन हसीन पलों को याद करते हुए वो एक हाथ से अपने जिस्म के विविध अंग सहला रही थी.. और दूसरी उंगली से अपने गुप्तांग को रगड़ रही थी..



इस बार का ऑर्गजम जबरदस्त और जोरदार था.. कविता की चूत ने इतना रस बहाया.. की उसे पोंछने के लिए उसे कपड़ा ढूँढना पड़ा.. आखिर उसने अपने पर्स से रुमाल निकाला.. वही रुमाल जिससे उसने पिंटू का वीर्य पोंछा था सिनेमा हॉल में.. चूत साफ करना भूलकर कविता उस वीर्य से सने रुमाल को सूंघने लगी.. और फिर उस रुमाल को चूमकर गले लगा दिया.. और फिर अपनी चूत पर लगा दिया..

काफी देर तक यूं ही नंगी पड़ी रहने के बाद वो खड़ी हुई.. बेग से निकालकर उसने बेहद टाइट केप्री.. और टाइट स्लीवलेस टीशर्ट पहन लिया.. टीशर्ट के नीचे उसने पैडिड ब्रा पहन ली.. जिससे उसके उभारों की साइज़ डबल दिख रही थी.. अपने कपड़ों के ऊपर से स्तनों को एड़जस्ट करते हुए वो मौसम की स्कूटी की चाबी लेकर बाहर आई..

स्कूटी लेकर वो अस्पताल की ओर जाने लगी.. सोसायटी के नुक्कड़ पर चाय की टपरी पर तीन चार लड़के खड़े हुए थे.. कविता की मादक जवानी और टाइट उभारों को वो लोग देखते ही रह गए.. उनकी तरफ देखे बगैर ही कविता तेज गति से निकल गई.. हालांकि उसे पता था की सब की नजर उसपर ही चिपकी हुई थी..

अस्पताल पहुंचते ही वो मौसम के कमरे में गई.. बिस्तर पर लेटी हुई मौसम के हाथ पर सुई लगाई हुई थी और ग्लूकोज का बोतल चढ़ाया जा रहा था.. मौसम को इस हाल में देखकर कविता की आँखें भर आई.. दोनों बहने भावुक हो गई.. मौसम का चेहरा सूख चुका था.. माउंट आबू वाली सारी चंचलता गायब हो चुकी थी.. बहोत ही अस्वस्थ लग रही थी.. बीमारी अच्छे अच्छों की हालत खराब कर देती है..

कविता को देखते ही मौसम खुश हो गई.. वो ज्यादा खुश इस आशा से थी की दीदी के साथ जीजू भी आए होंगे.. उसकी आँखें पीयूष को ढूंढ रही थी पर अफसोस.. उदास हो गई मौसम.. पर कविता को भनक न लगे इसलिए अपने चेहरे के भाव छुपाकर रखें उसने.. कविता ने अपनी मम्मी, रमिला बहन के साथ मौसम की तबीयत को लेकर विस्तृत चर्चा की.. फिर वो जाकर डॉक्टर से भी मिल आई.. डॉक्टर ने कहा की मौसम को मेलेरिया हुआ था.. और अब उसकी हालत स्थिर थी.. एक दो दिन में अस्पताल से डिस्चार्ज दे देंगे.. सुनकर कविता ने चैन की सांस ली.. वापिस मौसम के कमरे में आकर उसने रमिला बहन को घर जाने के लिए कहा.. अब वो जो आ गई थी..

रमिला बहन के जाते ही दोनों बहने बातें करने में व्यस्त हो गई.. कविता ने उसे वैशाली के साथ जो हुआ उसके बारे मी बताया.. फिर कविता ने तरुण को फोन लगाया.. मौसम के मना करने के बावजूद, कविता ने तरुण को अस्पताल बुलाया.. वो जानती थी की तन की बीमारी तो दवाइयों से ठीक हो जाएगा.. मौसम के उदास मन को प्रफुल्लित करने के लिए ही उसने तरुण को बुला लिया था.. वो चाहती थी की दोनों मिलें.. एक दूसरे से प्यार भरी बातें करें.. तो मौसम को अच्छा लगेगा और वो जल्दी ठीक हो जाएगी.. तरुण ने कविता से आज ही वहाँ आ जाने का वादा किया..

वैसे रमिला बहन ने काफी बार मौसम को कहा था की वो तरुण को फोन करें.. पर मौसम ने ही मना कर रखा था.. उसका कहना था की उसकी तबीयत की बात सुनकर, तरुण दौड़ा चला आएगा.. फिर मम्मी को उसकी खातिरदारी करनी पड़ेगी.. बेचारी वैसे ही अस्पताल की दौड़-भाग से परेशान थी.. क्योंकी पापा तो ऑफिस में बिजी थे.. वैसे मौसम के पापा, सुबोधकान्त हररोज शाम को मौसम से मिलने जरूर आते..

मौसम ने एक बात नोटिस की थी.. शाम के टाइम जब फाल्गुनी उसे मिलने आती थी.. तभी पापा भी आ जाते थे.. उसका कारण भी मौसम से अनजान नहीं था.. फाल्गुनी और उसके पापा के संबंधों की याद आते ही.. मौसम शरमा गई.. खास कर वो बात याद आई जब वो वैशाली के साथ पापा के ऑफिस पहुंची थी.. और छुपकर सारा सीन देखा था.. फाल्गुनी घोड़ी बनी हुई थी और पापा पीछे से शॉट लगा रहे थे.. फाल्गुनी के स्तन झूल रहे थे.. और पापा का कडक लोंडा अंदर बाहर हो रहा था.. याद आते ही मौसम ने शर्म से आँखें बंद कर दी..

फाल्गुनी और सुबोधकान्त का अब भी यही मानना था की उनके संबंधों के बारे में मौसम कुछ भी नहीं जानती.. जब सुबोधकांत मौसम से मिलने आते तब.. फाल्गुनी की मौजूदगी में.. उनकी आँखों की शरारत और हवस.. दोनों ही साफ नजर आती मौसम को.. पापा की नजर फाल्गुनी के स्तनों पर ही चिपकी रहती.. पिछले तीन दिनों के मुकाबले मौसम को आज कुछ अच्छा लग रहा था.. वो और कविता अकेले थे इसलिए बातें भी आराम से हो सकती थी..

मौसम: "दीदी.. मैं पिछले तीन दिनों से देख रही हूँ.. यहाँ एक डॉक्टर है.. उम्र पचास के करीब होगी.. उनका चक्कर यहाँ की एक जवान पच्चीस साल की नर्स के साथ चल रहा है.. उम्र में इतना फाँसला होने के बावजूद.. वो लड़की.. अपने से दोगुनी उम्र के मर्द के प्रति कैसी आकर्षित हो गई?" मौसम ने मनघडन्त कहानी सुनाई.. जवान लड़की और बुजुर्ग के बीच संबंधों के बारे में वो अपनी अनुभवी दीदी के विचार जानना चाहती थी.. अब फाल्गुनी और पापा का नाम वो कैसे लेती भला.. !! इसलिए डॉक्टर और नर्स की कहानी सुनाकर फाल्गुनी और पापा के चक्कर का पोस्टमॉर्टम शुरू किया मौसम ने

कविता: "हाँ ये मुमकिन है.. हम सीरीअलों में देखते ही है ना.. कई बार काम उम्र की लड़कियां.. अपने से कई ज्यादा बड़े मर्द के प्यार में पड़ जाती है.. उसका कोई एक ठोस कारण नहीं है.. बहोत से कारण होते है.. !!"

मौसम: "बहोत से कारण?? जैसे की..!!"

कविता: "जैसे की.. सिक्योरिटी.. ज्यादा उम्र के आदमी अक्सर अनुभवी और परिपक्व होते है.. इसलिए उनके आसपास लड़कियों को सलामती महसूस होती है.. कभी कभी मजबूरी इसका कारण होती है.. कुछ लड़कियों को ऐसे व्यक्ति की तलाश होती है जो उन्हें समझे.. जवान मर्दों में ये गुण अक्सर कम ही देखने को मिलता है.. जब की प्रौढ़ उम्र के अनुभवी मर्दों की समझदारी लड़कियों को आकर्षित करती है.. !!"

कविता ने बड़े प्रेम से समझाया.. उसका आशय यह भी था की भविष्य में मौसम को ये सारी सीख काम आएगी.. कविता से बात करके मौसम को ऐसा लगा मानों उसकी आधी बीमारी दूर हो गई हो.. कई दिनों बाद वो किसी से खुलकर बात कर पा रही थी.. वैसे फाल्गुनी रोज मिलने आती थी.. पर उस वक्त या तो पापा या मम्मी की मौजूदगी के कारण वो ज्यादा बात कर नहीं पाते थे..

फाल्गुनी ने पहले तो मौसम को ये भ्रम में रखा था की उसे सेक्स से बेहद डर लगता है.. पर उस दिन पापा की ऑफ़िस में उसे जिस तरह उछल उछलकर चुदते देखा.. उसके बाद मौसम का ये भ्रम टूट गया.. उससे पहले मौसम यही सोचती थी की पापा ने ही बेचारी फाल्गुनी को अपनी जाल में फँसाया था.. अगर मौसम ने उस दिन सब अपनी आँखों से देखा न होता तो वो हमेशा यही समझती रहती की फाल्गुनी निर्दोष थी और पापा ही हवसखोर थे.. वो सब तो ठीक था.. पर मौसम को ये ताज्जुब हो रहा था की फाल्गुनी और पापा के बीच वैशाली ने कितने आराम से एंट्री कर ली थी.. !! दूसरा.. अगर पापा ने फाल्गुनी को नहीं पटाया था तो क्या फाल्गुनी खुद चलकर उनके पास गई होगी?? नहीं नहीं.. फाल्गुनी इतनी हिम्मत तो नहीं कर सकती.. इस मामले में फाल्गुनी पहले से अनाड़ी थी.. तो इसका मतलब ये हुआ की जरूर पापा ने ही फाल्गुनी को मजबूर किया होगा.. आखिर ये सब शुरू हुआ कैसे होगा? पापा ने जब पहली बार फाल्गुनी को बाहों में लिया होगा तब फाल्गुनी को कैसा महसूस हुआ होगा? उसने विरोध किया होगा या समर्पण? या फिर पापा ने जबरदस्ती की होगी?? जानना तो पड़ेगा.. जानना जरूरी है.. पर किस्से पूछें? फाल्गुनी या पापा से तो पूछ नहीं सकती.. हाँ वैशाली के जरिए जानकारी प्राप्त की जा सकती थी.. वैशाली को ही फोन करती हूँ.. पर उस बेचारी की खुद की हालत अभी ठीक नहीं है.. पर मुझे उसकी तबीयत पूछने के लिए.. और सहानुभूति व्यक्त करने के लिए फोन करना ही चाहिए..

कविता मौसम को विचारों में खोया हुआ देखकर सोच में पड़ गई.. मौसम आज ऐसे सवाल क्यों पूछ रही है? कहीं उसे तो किसी बड़ी उम्र के मर्द के साथ प्यार नहीं हो गया होगा?? हो सकता है.. तरुण से सगाई और अपने प्रेम के बीच की खींचतान के कारण ही तो वो बीमार नहीं हो गई ना.. ??

सोचते सोचते मौसम की आँखें बंद हो गई.. मौसम डिस्टर्ब न हो इसलिए कविता खड़ी होकर बालकनी में गई और उसने पीयूष को फोन किया.. पीयूष ने फोन उठाया और शुरू हो गया

पीयूष: "मायके जाकर तू तो मुझे जैसे भूल ही गई.. कितने फोन किए तुझे? तू ठीकठाक पहुंची या नहीं ये जानने के लिए मैं फोन कर रहा था.. कितनी चिंता हो रही थी मुझे.. !! घर पर किसी ने फोन नहीं उठाया.. तेरा पापा को मोबाइल ट्राय किया तो उन्होंने भी नहीं उठाया.. और तूने भी जवाब नहीं दिया.. मेरे इतने सारे मिसकॉल भी नहीं नजर आए तुझे??"

कविता मन ही मन मुस्कुरा रही थी.. क्या जवाब देती वो पीयूष के सवाल का? ये तो कह नहीं सकती की मैं पिंटू के साथ सिनेमा हॉल में थी इसलिए फोन नहीं उठाया..

कविता: "शांत हो जा जानु.. मैं सारे जवाब दूँगी तुझे.. घर आकर.. बिस्तर पर लेटे लेटे.. चलेगा ना.. !! लव यू.. टाइम पर खाना खा लेना.. शीला भाभी और वैशाली का ध्यान रखना" शरारती अंदाज में जवाब देकर.. पीयूष की बोलती बंद कर दी कविता ने.. और वो भी.. किसी भी सवाल के जवाब दीये बगैर

पीयूष: "हाँ हाँ.. अब मुझे मत सीखा.. और सुन.. तू वक्त रहते घर नहीं लौटी.. तो मैं शीला भाभी के घर रहने चला जाऊंगा.. "

कविता: "हाँ तो चला जा.. वैसे भी मदन भैया को एक सेक्स पार्टनर की जरूरत है.. शीला भाभी तो पूरा दिन वैशाली को संभालने में व्यस्त रहती होगी.. इसलिए बेचारे मदन भैया अकेले पड़ गए होंगे.. तू चला जा उनकों कंपनी देने.. हा हा हा हा हा हा.. !!"

पीयूष: "मुझे क्या खुसरा समझ रखा है तूने? जो मदन भैया के पास गांड मरवाने जाऊंगा.. !! मैं उनके घर गया तो शीला भाभी और वैशाली.. दोनों का गेम बजाकर आऊँगा.. याद रखना तू.. " गुस्से से फोन कट कर दिया पीयूष ने

कविता ने हँसते हँसते फोन पर्स में रख दिया.. स्त्री को एक ऑर्गजम मिल जाए तो उसका नशा दो-तीन दिनों तक रहता है.. चेहरे पर चमक सी रहती है.. और ये तो अपने प्रेमी से प्राप्त हुआ ऑर्गजम था.. उसकी तो बात ही निराली होती है..

एक दिन पहले वो कितनी तनाव में थी !! निःसहाय और बेबस.. जब वो अनुमौसी और रसिक के सिकंजे में फंस गई थी.. पर आज कविता बेहद खुश थी.. बालकनी में खड़े हुए वो मुख्य सड़क पर आते जाते वाहनों को देख रही थी

तीसरे माले की बालकनी से कविता ने देखा.. सड़क के किनारे पापा की गाड़ी आकर खड़ी रही.. और अंदर से फाल्गुनी उतरी.. कविता को इसमें कुछ भी असामान्य नहीं लगा.. फाल्गुनी उनके घर के सदस्य जैसी थी और पापा अक्सर उसे अपनी गाड़ी में घर या कॉलेज छोड़ने जाते थे..

कविता अंदर कमरे में आई.. उनकी कोई पड़ोसी महिला मौसम की तबीयत पूछने आई थी.. कविता उनसे बातें करने में मशरूफ़ हो गई.. तभी सुबोधकांत कमरे में आए.. उनको देखते ही कविता ने उनके पैर छु लिए.. कविता को आशीर्वाद देते हुए उन्हों ने ससुराल के सारे सदस्यों के बारे मेंन साहजीक पूछताछ की.. और बगल में पड़े स्टूल पर बैठ गए

कविता को ताज्जुब हो रहा था की पापा आ गए.. पर फाल्गुनी क्यों नहीं आई अब तक?? पापा से तो उसे पहले आ जाना चाहिए था.. !! वो तो कब की उतर चुकी थी.. सीधे ऊपर आ सकती थी.. पापा को तो गाड़ी पार्क करनी थी.. पता नहीं कहाँ रह गई.. गई होगी कहीं काम से.. कविता अपने पापा से फाल्गुनी के बारे में पूछना चाहती थी पर उस पड़ोसी महिला की हाजरी में पूछना नहीं चाहती थी..

तभी फाल्गुनी ने कमरे में प्रवेश किया.. कविता को देखकर वो खुश हो गई.. "अरे दीदी.. आप कब आए? कितनी सुंदर लग रही हो आप इन कपड़ों में?"

टाइट टीशर्ट और पैडिड ब्रा की वजह से कविता के स्तन कुछ ज्यादा ही उभरकर बाहर दिख रहे थे.. कविता जान गई की फाल्गुनी का इशारा किस ओर था.. वैसे तो उसने तारीफ ही की थी.. पर पापा की मौजूदगी के कारण वो शरमा गई..



अनजान मौसम ने सवाल किया "कैसे आई तू फाल्गुनी? ऑटो से आई? या पिछली बार की तरह सिटी-बस में?"

"नहीं यार.. सिटी-बस में ही आई.. ऑटो वाला तो पचास से कम में राजी ही नहीं हुआ.. " फाल्गुनी का जवाब सुनकर कविता चोंक गई.. !! उसने अपनी सगी आँखों से फाल्गुनी को पापा की गाड़ी से उतरते हुए देखा था.. हो सकता है की वो सिटी-बस से आई हो.. और पापा ने उसे बस-स्टैन्ड से पीक-अप किया हो.. पर उस रोड पर तो गाड़ी खड़ी रख पाना नामुमकिन है.. ट्राफिक पुलिस वाले किसी को भी वहाँ गाड़ी रोकने नहीं देते..

"आप ऑफिस से सीधे यहाँ आए पापा?" कविता ने सुबोधकांत को ही प्रश्न पूछा

"हाँ बेटा.. आजकल काम का बोझ बहोत ज्यादा है.. अकेले थक जाता हूँ सब कुछ संभालते संभालते.. तू पीयूष कुमार को यहाँ क्यों नहीं भेज देती? वो मेरे साथ हो तो मैं बिजनेस को बहोत आगे तक ले जा सकता हूँ" सुबोधकांत ने उत्तर दिया

पापा ने तो फाल्गुनी को कार में बिठाने के बारे में कुछ कहा ही नहीं और अपनी बिजनेस की बातें लेकर बैठ गए..

"आप बिजनेस में.. मौसम और फाल्गुनी की मदद क्यों नहीं लेते? दोनों पढ़ी लिखी और होनहार है.. जब तक उनकी शादी नहीं हो जाती तब तक तो वो आप की मदद कर ही सकते है.. !!" कविता की ये बात सुनकर फाल्गुनी की आँखों में चमक और मौसम की आँखों में चिंता के भाव आ गए.. मौसम सोच रही थी की.. दीदी ने अनजाने में ये बोलकर कितनी बड़ी गलती कर दी ये वो नहीं जानती.. उन्हें तो पता भी नहीं है फाल्गुनी और पापा के बारे में.. अगर उन्हें पता चला तो क्या गुजरेगी उन पर?? पर मौसम अभी कुछ भी बॉल पाने की स्थिति में नहीं थी.. वो चुप रही

थोड़ी देर बैठकर सुबोधकांत काम का बहाना बनाकर निकल गए.. और वो पड़ोसी महिला भी चली गई थी.. अब फाल्गुनी, कविता और मौसम.. कमरे में अकेले थे.. कविता को खास ध्यान नहीं गया पर मौसम ने ये नोटिस किया की पापा के जाते ही फाल्गुनी भी उठ खड़ी हुई.. और बालकनी के पास जाकर खड़ी हो गई.. थोड़ी ही देर में वो वापिस आकर अपनी जगह पर बैठ गई..

फाल्गुनी के आते ही.. कविता ने उससे कहा "तू मौसम का ध्यान रख.. और हाँ तुझे जल्दी घर जाना हो तो मुझे फोन कर देना.. मैं आ जाऊँगी.. " कहते हुए कविता निकल गई.. और बाहर अस्पताल के वैटिंग रूम में बैठकर पिंटू से फोन पर चिपक गई..

इस तरफ मौसम ने तकिये के नीचे से फोन निकालकर वैशाली को कॉल किया.. वैशाली ने तुरंत फोन उठाया.. मौसम बीमार है ये बात वैशाली को अनुमौसी से जानने मिली थी.. दोनों ने काफी बातें की.. वैशाली ने शीला से भी मौसम की बात करवाई.. फिर मौसम ने फाल्गुनी को फोन दिया और उसने भी वैशाली के हालचाल पूछें..

शाम ढलने को थी.. फाल्गुनी को घर जाना था.. इसलिए उसने कविता को फोन कर बुला लिया और वो निकल गई..

उस रात अस्पताल मे मौसम के साथ, कविता और सुबोधकांत रुकें थे.. और फाल्गुनी को घर पर रमिला बहन के साथ रहने को कहा था.. रात को कविता और उसके पापा के बीच मौसम की शादी और सगाई को लेकर काफी चर्चा हुई.. देर तक दोनों बाप और बेटी बातें करते रहे.. सुबोधकांत को इस बात की चिंता थी.. की लड़के वाले पंद्रह दिन में सगाइ और एक महीने बाद शादी निपटाना चाहते थे.. पर मौसम की बीमारी के कारण सारा प्लैनिंग बिगड़ गया..

दूसरी सुबह मौसम के रिपोर्ट्स देखकर डॉक्टर ने कहा की उसकी तबीयत अब सुधर रही थी और उसे शाम को डिस्चार्ज किया जाएगा..

एकाध घंटे के बाद तरुण और उसकी माँ अस्पताल आ पहुंचे.. कविता ने उनका बड़े अच्छे से स्वागत किया.. और फिर तरुण की मम्मी को लेकर वो अपने घर की ओर निकल गई ताकि मौसम और तरुण को थोड़ा वक्त अकेले गुजारने के लिए मिलें..

तरुण ने मौसम के सर पर हाथ फेरते हुए कहा "अब कैसी है तबीयत?"

मौसम ने शरमाते हुए कहा "ठीक है.. !!"

तरुण का हाथ मौसम के सर को सहलाता रहा और मौसम के शरीर में शक्ति का संचार होने लगा.. तरुण के स्पर्श से मौसम को बहोत अच्छा लगने लगा.. तभी मौसम के मोबाइल पर पीयूष का फोन आया.. मौसम फोन उठाती उससे पहले ही तरुण ने फोन उठा लिया..

"हैलो" तरुण की आवाज को पीयूष पहचान नहीं सका

"हैलो, मैं मौसम का जीजू बोल रहा हूँ.. जरा मौसम को फोन दीजिए प्लीज.. मुझे उसकी तबीयत के बारे में पूछना है.. "

"ओह.. पीयूष भैया.. मैं तरुण बोल रहा हूँ.. मौसम अभी काफी कमजोर है.. वो बाद में बात करेगी आप से.. ठीक है ना.. !!"

"हाँ हाँ.. कोई बात नहीं.. मौसम को कहना की टाइम मिलें तब मुझे फोन करें.. मुझे तो सिर्फ उसकी तबीयत का हाल पूछना था.. " पीयूष ने फोन रख दिया

रूम के एकांत में पीयूष जीजू की आवाज स्पष्ट सुनाई दी मौसम को.. जीजू के आवाज में जो दर्द छुपा था वो भी पहचान लिया उसने.. पर वो बेचारी क्या कर सकती थी? उसके शरीर और मन पर अब तरुण का सम्पूर्ण अधिकार था.. जीजू के प्रति उसे खिंचाव तो बहोत था.. पर तरुण को जीवनसाथी के रूप में स्वीकार करने के बाद उसका हाल सेंडविच जैसा हो गया था.. आँखें बंद कर मौसम अफसोस करती रही और तरुण ने ये समझा की उसके सहलाने के कारण मौसम सो गई..

इस तरफ पीयूष को बहोत गुस्सा आ रहा था.. फोन काटते ही उसने उठाकर फेंक दिया.. अच्छा हुआ की उस वक्त ऑफिस में ओर कोई नजदीक नहीं था.. उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मौसम उसे इग्नोर कर रही थी.. पुरुष सब कुछ सह लेगा.. पर अपने प्रिय पात्र की अवहेलना बर्दाश्त नहीं करेगा.. हताश होकर उसने मोबाइल और उसकी निकली हुई बैटरी उठाई.. टूटे हुए मोबाइल के हिस्से तो इकठ्ठा कर लिए.. पर इस टूटे हुए दिल का क्या किया जाएँ?? मौसम ने तोड़ कर रख दिया था उसका दिल.. !!

बीमार मौसम.. बिस्तर पर लेटे हुए भी अपने जीजू की तड़प को महसूस कर रही थी.. उसे पता चल गया की जीजू को बहोत बुरा लगा था

"तरुण, मुझे ऑरेंज ज्यूस पीना है.. बाहर से लेकर आ न मेरे लिए प्लीज.. !!"

"तुम बस हुक्म करो.. तेरी सेवा करने के लिए तो इतनी दूर से आया हूँ मैं.. अभी लेकर आया"

जैसे ही तरुण ज्यूस लेने के लिए गया.. मौसम ने पीयूष को फोन किया

पर उसका फोन कहाँ लगने वाला था.. !!! फोन फेंकने के बाद, बैटरी और सिम-कार्ड अलग हो गए थे.. पीयूष का फोन आउट ऑफ कवरेज बता रहा था.. बहोत बार कोशिश करने पर भी जब फोन नहीं लगा तब मौसम ने वोइस मेसेज छोड़ दिया "जीजू, मेरी तबीयत अब अच्छी है.. मैंने आपको फोन ट्राय किया था पर नहीं लगा.. आप मेरी चिंता मत करना.. लव यू.. और हाँ जीजू.. मुझे मेरा वादा याद है.. और वो मैं पूरा करूंगी"

तरुण के आने से पहले उसने मोबाइल से सारे मेसेज डिलीट कर दीये.. और तरुण का इंतज़ार करने लगी.. अब उसे राहत हुई..

थोड़ी ही देर में तरुण ज्यूस के दो ग्लास लेकर लौटा.. एक ग्लास खुद के लिए और दूसरा मौसम के लिए.. ज्यूस पीते पीते तरुण अपने अभ्यास और केरियर के बारे में बता रहा था और मौसम पीयूष की यादों में खोई हुई थी.. मौसम तरुण की बातों से बोर हो रही थी.. वो चाहती थी की तरुण कोई ओर बात करें..

माउंट आबू में जीजू के संग जो पल बिताएं थे.. उसकी याद अब भी मौसम के दिल को झकझोर कर रख देती थी.. और वही यादें उसे बार बार जीजू की ओर आकर्षित कर रही थी.. उसका दिल और जिस्म दोनों पीयूष जीजू के लिए तड़प रहे थे.. मौसम के चेहरे पर ये सोचकर मुस्कान आ गई.. की अगर ऐसा एकांत उसे तरुण के बजाए जीजू के साथ मिल गया होता तो वो क्या करते? लीप किस करते.. स्तन दबाते.. उंगली डालते.. और उनका लंड भी पकड़ने को मिल जाता.. जीजू को वादा निभाने का प्रोमिस तो कर दिया था.. पर उसे निभाएगी कैसे?? कहाँ मिलेंगे वो दोनों? जैसे जैसे तरुण उसके करीब आता गया.. मौसम का अपराधभाव और तीव्र होता गया.. सगाई और शादी के बीच मुश्किल से २० दिनों का अंतर रहने वाला था.. जब जब मम्मी-पापा शादी के मुहूरत को लेकर चर्चा करते.. मौसम अपने जीजू से मिलने के मौके के बारे में मनोमंथन करने लगती.. वो जानती थी की ऐसा करने से वो तरुण और दीदी दोनों का विश्वास तोड़ रही है.. पर जीजू की हरकतें याद आते ही वो इस गुनाह के लिए भी तैयार हो जाती

शाम को सुबोधकांत और फाल्गुनी गाड़ी लेकर आए.. और मौसम को अस्पताल से घर ले जाने के लिए.. फाल्गुनी और सुबोधकांत आगे बैठे थे.. मौसम तरुण के साथ पीछे की सीट पर.. मौसम के ये राज नहीं आया.. फाल्गुनी क्यों पहले ही आगे बैठ गई? उसे पीछे मेरे साथ बैठना था और तरुण को आगे पापा के साथ बैठने देना चाहिए था.. !!

घर आकर मौसम अपने कमरे में जाकर लेट गई.. और बाकी लोग खाना खाने बैठे.. उस वक्त मौसम ने फिर से जीजू को कॉल किया लेकिन अब भी वो नोट रिचेबल बता रहा था.. जीजू ने कहीं कोई गलत कदम तो नहीं उठा लिया?? मौसम ये सोचकर ही डर गई.. इतने लंबे समय तक जीजू का फोन बंद क्यों आ रहा था? अब जीजू से कॉन्टेक्ट कैसे करूँ?

खाना खाने के बाद तरुण और सुबोधकांत बाहर गए.. कविता मौसम के पास आकर बैठ गई

"जीजू का फोन ही नहीं आया अब तक.. एक बार भी उन्हों ने मेरी तबीयत के बारे में नहीं पूछा.. किसी बात से नाराज है क्या? कहीं तुम दोनों के बीच फिर से कोई झगड़ा तो नहीं हो गया?" मौसम ने कविता से पूछा

"तू पीयूष की बात छोड़.. मायके में आने के बाद मुझे ससुराल का कोई टेंशन नहीं चाहिए.. मैं हूँ ना यहाँ तेरे पास.. फिर तुझे और किसकी जरूरत है?" पिंटू के साथ मेसेज पर चेट करते हुए कविता ने कहा.. अब इसके आगे मौसम क्या बोलती?? निराश हो गई मौसम

आखिर उसने फाल्गुनी को फोन किया.. फाल्गुनी अभी अभी अपने घर पहुंची थी और मौसम का फोन देखकर चिंतित हो गई..

"क्या हुआ मौसम?"

मौसम: "यार एक काम कर.. तू जीजू को फोन लगा न.. मैं कब से ट्राय कर रही हूँ पर उनका फोन लग ही नहीं रहा.. !! मोबाइल न लगे तो लेंडलाइन पर फोन कर और जीजू मिलें तो उन्हें बताना की आप से बात न हो पाई इसलिए मौसम नाराज है.. और उन्हें कहना की मुझे फोन करें"

फाल्गुनी: "ठीक है.. खाना खाकर फोन करती हूँ"

मौसम: "कोई बात नहीं.. आराम से करना.. और फिर मुझे बताना"

अब मौसम के दिल को चैन मिला.. उसे यकीन था की लेंडलाइन पर तो जीजू मिल ही जाएंगे.. पर लेंडलाइन पर मैं भी तो कॉल कर सकती हूँ.. मौसम ने तुरंत फोन लगाया.. फोन अनुमौसी ने उठाया.. यहाँ वहाँ की थोड़ी बातें करने के बाद उसने जीजू के बारे में पूछा

"रुक.. मैं उसे फोन देती हूँ"

"ठीक है आंटी.. !!"

थोड़ी देर बाद मौसी ने ही फोन पर बात की "बेटा.. वो लैपटॉप पर अपनी कंपनी का काम करने में व्यस्त है.. पर उसने कहा है की वो थोड़ी देर बाद तुझे फोन करेगा.. तू अपनी तबीयत का ध्यान रखना.. ठीक है.. !!"

मौसम को गुस्सा आया.. वो यहाँ जीजू के लिए तड़प रही थी और जीजू उसे बात करने के लिए भी नहीं आए.. पीयूष जीजू की नाराजगी का एहसास हो गया उसे.. अब क्या करूँ? देखती हूँ वो फाल्गुनी का फोन उठाते है या नहीं

थोड़ी देर बाद फाल्गुनी का फोन आया उसने कहा की अंकल ने फोन उठाया था.. और उन्हों ने कहा की जीजू सो गए थे.. मोबाइल नहीं लगा उनका

मौसम को फिर से कमजोरी महसूस होने लगी.. उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था.. तरुण से भी वो ज्यादा बात नहीं कर रही थी.. तरुण को लगा की बीमारी के कारण मौसम ऐसा कर रही होगी..

दूसरी सुबह तरुण अपनी मम्मी के साथ वापिस लौट गए.. तरुण मौसम की तबीयत को लेकर चिंतित था..

इस तरफ कविता ने भी पीयूष को फोन करने की बहोत कोशिश की.. पर लगा नहीं.. आखिर घर पर फोन करने पर पता चला की पीयूष का मोबाइल गिरने की वजह से टूट गया था..

कविता मन ही मन पीयूष को गालियां देने लगी.. ऐसे कैसे गिरा दिया फोन? छोटा बच्चा है क्या? एक फोन को नहीं संभाल पाया.. !! अभी ४ महीने पहले ही खरीदा था तीस हजार का फोन.. !! कर दिया नुकसान!! किसी चीज को ठीक से संभालकर रखना आता ही नहीं पीयूष को.. !! बड़बड़ाते हुए कविता घर के अंदर आई.. उसका गुस्से से तमतमाया हुआ चेहरा देखकर मौसम ने पूछा

"क्या हुआ दीदी? क्यों इतना तिलमिला रही हो?"

"अरे यार.. उस बेवकूफ ने फोन तोड़ दिया.. इसलिए बात नहीं हो पा रही है.. !!"

सुनकर मौसम के दिल को सुकून मिला.. चलो असली कारण तो जानने मिला.. शायद जीजू उससे नाराज नहीं थे पर फोन खराब होने की वजह से बात नहीं हो पा रही थी

मौसम: "तो दीदी.. तुम ऑफिस पर फोन क्यों नहीं करती? वहाँ तो बात हो पाएगी"

कविता: "ऐसी भी कोई ईमर्जन्सी नहीं है.. और ऑफिस के नंबर पर फोन करूंगी तो वो भड़केगा मुझ पर.. !!" वैसे कविता का मन तो कर रहा था ऑफिस पर फोन करने का.. शायद पिंटू फोन उठा लें.. !!

पीयूष के कानों में रह रहकर तरुण की आवाज गूंज रही थी.. मौसम को खुद से दूर करने वाला तरुण ही था.. वरना मौसम उससे बात जरूर करती.. अभी तो सगाई भी नहीं हुई और मौसम का मालिक बनकर बैठ गया कमीना.. तरुण के प्रति जबरदस्त नफरत हो गई पीयूष को.. गुस्से में वो ऑफिस से घर के लिए निकल गया.. उसको मन की शांति चाहिए थी.. और इस वक्त मौसम से मिलन के अलावा कोई भी चीज उसे शांत नहीं कर सकती थी

सोसायटी की गली से अंदर जाते ही अपने घर से पहले.. उसने शीला भाभी को घर के बरामदे में झाड़ू मारते हुए देखा.. झुककर झाड़ू लगा रही शीला के दोनों गजब के बड़े स्तन.. और मांसल कमर को देखकर अगर किसी पुरुष की नजर न जाएँ तो उसे अवश्य अपना मेडिकल चेकअप करवा लेना चाहिए..



पीयूष ने सोचा की चलो शीला भाभी से थोड़ी बात-चीत की जाएँ.. मौसम से ध्यान भी बँटेगा.. और दिमाग फ्रेश हो जाएगा.. अगर मदन भैया घर पर नहीं होते तो वो शीला की गोद में सर रखकर अपने सारे दुख उन्हें सुनाता और जी हल्का कर लेता.. मौसम के विचारों से मुक्त होने के लिए पीयूष को शीला भाभी के रूप में जैसे तारणहार मिल गई थी

"अरे पीयूष.. !! कैसे हो?" शीला भाभी ने पीयूष को देखते ही कहा

"ठीक हूँ भाभी, आप कैसे हो?"

"कुछ ठीक नहीं है पीयूष.. वैशाली का हाल देखा नहीं जाता.. बेचारी की पूरी ज़िंदगी तबाह हो गई" व्यथित होकर शीला ने कहा

शीला भाभी को यूं दुखी देखकर पीयूष के कदम अपने आप ही उनके घर की तरफ खींचे चले गए.. वो शीला के घर के बरामदे में गया और झूले पर बैठ गया.. तभी वैशाली घर से बाहर आई.. "ओह पीयूष.. कैसा है तू?" कहते हुए वो सामने रखी कुर्सी पर बैठ गई.. वैशाली के चेहरे से चमक गायब थी.. ऐसा लग रहा था जैसे उसके शरीर में खून है ही नहीं.. एकदम फीकी फीकी सी.. चेहरे पर उदासी के बादल छाए हुए थे

शीला ने अचानक झाड़ू लगाना छोड़ दिया, घर के अंदर गई.. और पीयूष को आवाज लगाई.. सुनते ही पीयूष अंदर शीला के पास गया

"हाँ कहिए भाभी.. " शीला की छातियों को देखते हुए पीयूष ने कहा

"वैशाली को इस सदमे से बाहर कैसे निकालूँ? देख उसकी हालत.. मुझ से तो देखा नहीं जाता.. तू कुछ कर ना जिससे की वो वापिस मूड में आ जाएँ.. !!" उदास शीला ने कहा

ये सुनकर मन ही मन पीयूष सोच रहा था.. शीला भाभी मेरी मदद मांग रही है वैशाली को सहारा देने के लिए.. पर उन्हें कहाँ पता है की फिलहाल मैं खुद ही सहारे की तलाश में हूँ.. !!

"जी जरूर.. आप ही बताइए.. कैसे मदद करूँ? आप जो कहोगे मैं करने के लिए तैयार हूँ"

"उसे कहीं गार्डन या रेस्टोरेंट में ले जा.. थोड़ा बाहर घूमेगी तो उसे अच्छा लगेगा और अपने सदमे से उभर पाएगी.. हम तो उसके माँ बाप है.. सलाह और सुझाव देने के अलावा ज्यादा कुछ कर नहीं सकते.. उसे जरूरत है दोस्त की.. कविता अभी मायके गई हुई है इसीलिए मुझे तेरी मदद लेनी पड़ रही है.. "

"ठीक है भाभी.. मैं कुछ करता हूँ" कहते हुए पीयूष घर के बाहर निकला

वैशाली कुर्सी पर गुमशुम बैठी हुई थी.. विचारों में खोई हुई सी..

"अरे वैशाली.. मुझे एक दोस्त के घर लैपटॉप देने जाना है.. लैपटॉप बेग का बेल्ट टूट गया है तो मैं उसे बाइक पर अकेले ले नहीं जा सकता.. तू मेरे साथ चलेगी? सिर्फ पीछे बैठना है बेग पकड़कर.. कविता घर पर ही नहीं इसलिए तुझे बोल रहा हूँ.. प्लीज.. !!"

वैशाली का जरा भी मन नहीं था जाने का.. वो मना करना चाहती थी पर बोल न पाई.. उसके पीयूष से संबंध ही कुछ ऐसे थे की वो मना नहीं कर पाई.. हाँ अगर वो किसी काम में व्यस्त होती तो अलग बात थी.. पर फिलहाल वो फ्री थी..

"ठीक है पीयूष.. चलते है.. वैसे भी घर पर बैठे बैठे बोर हो रही हूँ" वैशाली ने कहा "तू घर पहुँच.. मैं थोड़ी देर में ड्रेस चेंज कर के आती हूँ"

उनके इस संवाद को सुन रही शीला खुश हो गई.. मन ही मन वो पीयूष का आभार प्रकट करने लगी.. कितनी आसानी से मना लिया वैशाली को उसने.. !!

वैशाली कपड़े बदलकर बाहर आई.. और शीला को बताया कर पीयूष के घर चली गई.. अनुमौसी के साथ थोड़ी बातचीत करने के बाद वो पीयूष के पीछे लैपटॉप का बेग लेकर बैठ गई

"ठीक से पकड़ना.. अभी मेरी किस्मत थोड़ी ठीक नहीं चल रही.. अभी अभी मेरा मोबाइल टूट चुका है.. !!" फिर से मौसम का खयाल.. हवा के झोंके की तरह.. पीयूष के मन में आ ही गया

"अरे वो कोई छोटी बच्ची है क्या?? जो तू उसे ये सब समझा रहा है!! मोबाइल टूटा होगा तो तेरी गलती से.. उसमें इस बेचारी को क्यों सुना रहा है?? " अनुमौसी ने पीयूष को धमकाया.. वैशाली ये सुनकर हंस पड़ी.. कलकत्ता से लौटने के बाद.. शायद पहली बार उसके चेहरे पर मुस्कान आई थी.. अनुमौसी ने उसका पक्ष लिया ये देखकर उसे बहोत अच्छा महसूस हुआ.. सदमे से गुजर रहे किसी भी इंसान को अच्छा लगेगा..

पीयूष ने बाइक स्टार्ट की.. वैशाली पीछे बैठ गई..

पीयूष ने मन में सोचा.. वैशाली से पूछूँ की किसी अन्डर-कन्स्ट्रक्शन साइट की तरफ बाइक ले लूँ?? पर वैशाली को देखकर लग रहा था की वो शायद अभी मज़ाक के मूड में नहीं थी..

बारिश के कारण गड्ढे से भरे रास्ते पर पीयूष ने तेजी से बाइक को दौड़ा दिया.. देखकर शीला ने चैन की सांस ली.. चलो अच्छा हुआ.. ये घर के बाहर तो निकली.. !!

शीला ने घर के अंदर जाकर देखा.. मदन अपने लैपटॉप पर कुछ कर रहा था..

"क्या कब से लैपटॉप पर चिपका हुआ है तू? अच्छा सुन.. वैशाली को मैंने पीयूष के साथ बाहर भेजा है.. इसलिए अब कॉम्प्युटर से नजरें हटा और जरा मेरी तरफ भी देख.. अभी घर पर कोई नहीं है.. रात को खाने में क्या बनाउ?" साड़ी का पल्लू हटाकर अपने टाइट बबलों को दिखाते हुए कामुक अंदाज में उसने कहा.. वो बार बार मदन को ये इशारा दे रही थी की घर पर कोई नहीं है.. वो मदन को उत्तेजित कर रही थी..



मदन: "तेरे जो दिल में आए बना दे.. मैं खा लूँगा.. वैसे कुछ ज्यादा भूख नहीं है.. "

शीला मदन के पीछे इस तरह बैठ गई की उसके स्तनों का स्पर्श मदन के कंधों से हो.. और मदन लैपटॉप में क्या कर रहा था वो देखने लगी..

"उस मेरी से चैट कर रहा हूँ" शीला पूछती उससे पहले ही मदन ने बता दिया

"अच्छा.. !!! तभी कब से इस कॉम्प्युटर से चिपका बैठा है.. अब वो अंग्रेज रांड क्या तुझे कॉम्प्युटर स्क्रीन से दूध पिलाएगी?"

"दूध तो तू भी नहीं पीला सकती.. तेरे लिए तो अब ये मुमकिन ही नहीं है"

"वैशाली के जन्म के बाद तूने कहाँ कोई कमी छोड़ी थी मेरा दूध चूसने में.. !!! और अब तो तू दूध के बदले मेरा खून चूसता है वो कम है क्या? और दूध पीला नहीं सकती.. पर तेरा दूध और मलाई निकलवा तो सकती हूँ मैं.. " मदन के लंड पर हाथ रखते हुए बड़े ही कामुक अंदाज में शीला ने कहा



मदन: "शीला.. वैशाली के साथ जो कुछ भी हुआ उसके टेंशन की वजह से.. सेक्स को तो मैं भूल ही गया था.. कितने दिनों से कुछ मन ही नहीं कर रहा.. आज तू कुछ ऐसा कर की मेरी मरी हुई इच्छाएं फिर से जागृत हो जाएँ"

शीला: "ऐसा तो मैं क्या करूँ.. !!! मर्द तो तू है.. जो भी करना है तुझे ही करना होगा"

मदन: "मन तो मेरा बहोत कर रहा है.. पर अभी के हालात देखते हुए मैं सोच रहा था की मेरी ऐसी इच्छा प्रकट करूंगा तो तुझे अच्छा नहीं लगेगा.. और शायद मेरे बारे में तू क्या सोचेगी.. यही सोचकर मैं खामोश हूँ"

शीला: "मैं समझ सकती हूँ.. पर वैशाली के साथ ऐसा होने के कारां हमने खाना-पीना तो नहीं छोड़ दिया ना.. वैसे ही ये भी एक प्राकृतिक जरूरत ही है.. वैसा समझकर ही हमें स्वाभाविक होकर इसे स्वीकार करना ही होगा.. और किसी बात को लेकर तेरी कोई इच्छा थी तो मुझे बताना चाहिए था ना.. मैं तुझे कैसे भी संतुष्ट करने का प्रयत्न करती.. और तू मुझे एक बार छु लें.. बाद में मेरी इच्छा हो ही जाती है"

मदन: "मेरी कह रही है की वो मेरा लंड चूसना चाहती है.. और बदले में मुझे अपना दूध पिलाना चाहती है" तीरछी नज़रों से शीला की ओर देखते हुए मदन ने कहा और अपना लंड सहलाता रहा

शीला: "हाँ तो फिर डाल दे इस कॉम्प्युटर की स्क्रीन में अपना लंड.. " मदन को ताना मारते हुए उसने कहा "यहाँ तेरी पत्नी बिना लंड के तड़प रही है.. और तुझे उस मेरी की पड़ी है??" गुस्से में शीला ने लैपटॉप की पावर स्विच दबाकर बंद कर दिया

मदन: "अरे यार, क्या कर रही है तू? ऐसे बंद नहीं करते कभी.. विंडोज़ करप्ट हो जाएगा तो फिर से इंस्टॉल करना पड़ेगा मुझे " नाराज होते हुए उसने कहा

शीला: "अगर तू मेरे साथ अभी कुछ नहीं करेगा तो मैं भी करप्ट हो जाऊँगी.. इतना सेक्सी माल तेरे सामने चुदने के लिए बेकरार खड़ा है और तू कब से इस डिब्बे के साथ चिपका हुआ है.. !!"

मदन: "तू बेकार गुस्सा कर रही है.. बहोत दिन हो गए थे इसलिए चैटिंग करते हुए ठंडा होना चाहता था.. मुझे कहाँ पता था की तू टपक पड़ेगी बीच में.. !! और लैपटॉप का सत्यानाश कर देगी.. !!"

शीला: "और मेरे बदन और उसकी इच्छाओं का सत्यानाश हो रहा है उसका क्या?? तू तो कंप्यूटर में लंड डालकर मेरी को मुंह में देकर झड़ जाएगा.. पर मैं कहाँ जाऊँ? लगता है मुझे भी किसी सब्जीवाले या दूधवाले को ढूँढना ही पड़ेगा.. !!" छाती से पल्लू हटाते हुए मादक स्टाइल से मदन को ललचाते हुए कहा.. पिछले एक घंटे से मेरी के साथ चैट कर रहे मदन का लंड तो तैयार ही था..

अब लैपटॉप को रिस्टार्ट करने में बहोत वक्त लग जाता.. इसलिए मदन ने उसे साइड में रख दिया और शीला को बाहों में भर लिया.. दोनों काफी दिनों से भूखे थे..

"मेरी के साथ जो कुछ भी कर रहा था.. वो सब कुछ मेरे साथ भी कर.. देख.. मेरे बबले भी कितने भारी हो गए है.. तुझे पता है.. जब काफी दिनों तक इन्हें दबाया न जाए.. तब ऐसे ही सख्त और भारी लगते है.. मुझे वज़न लगता है इन छातियों का.. " ब्लाउस के तमाम हुक खोल दीये शीला ने..


ब्रा खुलते ही.. मदमस्त खरबूजों जैसे स्तन बाहर लटकने लगे.. एक इंच लंबी निप्पलें मदन का अभिवादन कर रही थी.. मदन ने शीला के दोनों स्तनों को मसलते हुए कहा

"ओह्ह शीला मेरी जान.. अगर वैशाली के आ जाने का डर नहीं होता तो आज मैं तुझे मेरी के साथ विडिओ-चैट करते हुए चोदता.. यहाँ मैं तेरे बबले मसलता और वहाँ मेरी के थनों से दूध निकलता.. !!"

मदन की जांघ पर बैठते हुए शीला ने कहा "मदन, तुझे दूध से भरे बबले बहोत पसंद है ना.. !! इसीलिए उस अंग्रेज मेरी के पीछे पागल हुआ पड़ा है.. पर वो यहाँ आकर तुझे दूध थोड़े ही पीला पाएगी??"

"आह्ह शीला.. तुझे क्या कहूँ यार.. !! सब पता होने के बावजूद मैं अपने आप पर कंट्रोल ही नहीं कर पाता.. दूध टपकती निप्पलें देखकर मैं होश खो बैठता हूँ.. !!" मेरी की दूध से भरी थैलियों को याद करते हुए मदन शीला की काँखों के नीचे से हाथ डालते हुए उसके स्तनों को दबाता रहा..

बहोत दिनों से भूखी थी शीला.. मदन के स्पर्श ने बेकाबू बना दिया उसे.. मदन के समक्ष अब वो निःसंकोच अपनी इच्छाएं व्यक्त कर रही थी

"ओह्ह मदन.. अब रहा नहीं जाता मुझसे.. तू जल्दी ही कुछ कर.. अभी वैशाली आ जाएगी तो सारा मज़ा खराब हो जाएगा.."

सुनते ही मदन ने शीला को धक्का देकर बेड पर लिटा दिया.. शीला की जांघें अपने आप चौड़ी हो गई.. जैसे छोटे बच्चे के आगे निवाला रखते ही उसका मुंह खुल जाता है.. बिल्कुल वैसे ही

नीचे झुककर शीला की भोस को चूमते हुए शीला मचल उठी.. "आह्ह मदन.. !!"



शीला की रग रग से वाकिफ मदन ने चाट चाटकर भोसड़े को गीला कर दिया.. और फिर उसके चूतड़ों के नीचे तकिया सटाकर रख दिया.. शीला का भोसड़ा ऐसे उभर गया जैसे दुनिया के सारे लंड एक साथ लेना चाहता हो.. शीला के भोसड़े का विश्वरूप दर्शन देखकर मदन भी बेचैन हो गया.. दोनों उंगलियों से शीला की भोस के वर्टिकल होंठों को चौड़ा कर अंदर के गुलाबी भाग को देखता ही रहा.. जैसे चेक कर रहा हो की उसकी नामौजूदगी में अंदर कितने लंड गए थे?? अपनी उंगलियों को गीली करते हुए मदन ने दो उंगलियों को शीला के गरम तंदूर जैसे छेद में डाल दी.. सिहर उठी शीला




शीला और मदन की सेक्स लाइफ इतनी उत्कृष्ट होने का एक कारण यह भी था की चुदाई के दौरान वो दोनों खुलकर बातें करते थे.. ऐसी नंगी बातों से दोनों को एक जबरदस्त किक मिलती थी.. और दोनों जंगलियों की तरह एक दूसरे को भोगते थे.. अपनी विकृतियों को जीवनसाथी के सामने निःसंकोच व्यक्त कर पाना.. हर किसी के नसीब में नहीं होता.. मदन ने भी काफी मेहनत के बाद शीला को इस तरह तैयार किया था.. वरना भारतीय स्त्री के मन में क्या क्या विकृत इच्छाएं है ये ९९% पतियों को पता ही नहीं होता.. !!

जैसे मर्दों की कई अदम्य इच्छाएं होती है.. वैसे औरतों के मन में भी कई ऐसी गुप्त कामेच्छाएं दबी पड़ी होती है.. जो अगर वो अपने पति को बताएं तो वो सुनकर ही बेहोश हो जाएँ.. मदन ने ये साहस किया था.. उसने अपनी पत्नी को पूर्णतः समझा था.. अपनी पत्नी की विकृत इच्छाओं का उसने स्वीकार किया था.. उसके चारित्र के बारे में गलत सोचें बगैर.. हर किसी के बस की बात नहीं है.. अगर पत्नी ग्रुप सेक्स की बात करें तो सुनकर पति को कैसा सदमा लगेगा? या फिर पार्टनर चेंज करने की बात अपनी पत्नी के मुंह से सुनकर कौन सा पति नहीं चौंकेगा?

रास्ते से गुजरते वक्त.. राह पर खड़े गधे के काले विकराल लंड को लटकता हुआ अहोभाव से देखने के बाद पत्नी जब रात को चुदाई के दौरान उस घटना का उल्लेख करें तब ज्यादातर मूर्ख पति यही सोचते है की उसकी पत्नी को लंबा और तगड़ा लंड लेने की ख्वाहिश है और वो उसके लंड से संतुष्ट नहीं है.. जब की मदन ये सोचता था की मेरी पत्नी कितनी हॉट है जो किसी प्राणी के अवयव के बारे में बात करते हुए सेक्स के दौरान एक्साइट हो रही है.. !! इसीलिए तो वो दोनों बेखौफ होकर अपनी विचित्र से विचित्र और विकृत से विकृत इच्छाओं को प्रकट करने से हिचकिचाते नहीं थे.. पति पत्नी के बीच पारदर्शिता का ये सब से उत्कृष्ट उदाहरण है.. शीला चुदाई करते हुए ऐसे ऐसे विचार प्रकट करती की सुनकर ही मदन का लाँड़ दोगुना सख्त हो जाता.. मदन भी सोचता की जब ये सब सुनकर मुझे इतना आनंद आ रहा है तो क्यों बेवजह पत्नी पर शक करके अपना मज़ा खराब करूँ??

शीला और मदन जब अकेले होते थे तब सेक्स से संलग्न किसी भी तरह की बात करने में शर्म महसूस नहीं करते थे.. किसी भी व्यक्ति को ईर्ष्या हो जाएँ ऐसा सुंदर सहजीवन व्यतीत कर रहे थे दोनों.. उत्कृष्ट सहजीवन जीने के लिए सुंदर पात्र की जरूरत नहीं होती.. बल्कि विकृत इच्छाओं की.. और उसे व्यक्त करने की आजादी होने की जरूरत होती है.. पत्नी कितनी भी सुंदर क्यों न हो.. अगर वो बेडरूम में भी वस्त्र उतारने से कतराती हो.. या फिर जब उसके हाथ में लंड हो तब.. सब्जियों के बढ़े हुए दाम.. और कल दूध टाइम पर आएगा या नहीं.. ऐसी बातें करती हो.. तब पात्र की सुंदरता निरर्थक बन जाती है.. भावनात्मक जुड़ाव के लिए सुंदरता मायने नहीं रखती..

पता नहीं क्यों.. पर मैंने ये अनुभव किया है की अति-सुंदर औरतों में कामुकता बहोत ही कम होती है.. स्त्री इतनी सुंदर हो की देखते ही लंड खड़ा हो जाए पर वो मुंह में लंड लेना नहीं चाहती.. चूत में डालो तो भी बार बार कहेगी की मुझे दर्द हो रहा है.. उससे तो अच्छा कम सौन्दर्य वाली स्त्री हो पर काम-कर्म में अपने मर्द को योग्य साथ दें.. ऐसी स्त्री लाख गुना बेहतर होती है.. पुस्तक दिखने में कितना सुंदर है ये मायने नहीं रखता.. अंदर लिखी कहानी कितनी रोचक है.. ये ज्यादा महत्वपूर्ण होता है.. !!

"मदन.. चल हम कहीं अकेले घूमने चलते है.. किसी मस्त जगह.. मुझे मुक्त मन से ज़िंदगी जीना है.. बिंदास होकर.. "उसका भोसड़ा चाट रहे मदन के सर के बाल पकड़कर खींचते हुए शीला ने कहा "आह्ह.. ये समाज और सोसायटी के नखरों से तंग आ गई हूँ मैं.. कहीं ऐसी जगह ले चल की जहां हमें कोई जानता न हो.. और हम बिना किसी शर्म या बंधन के जीवन जी सकें.. आह्ह मदन.. !!"

मदन को पता था की जब जब शीला दिन में चुदवाती तब बेकाबू होकर अनाब-शनाब बकने लगती थी.. कभी कभी शीला की ये सब व्यभिचारी बकवास सुनकर मदन को धक्का भी लगता.. पर वो ये सोचकर अपने आप को मनाता की पुरानी गाड़ी में दो पेसेन्जर ज्यादा बैठ भी गए तो क्या फरक पड़ता है!! मैंने भी तो वहाँ विदेश में मेरी के संग गुल खिलाए है.. !! और शीला मुझे सुख देने में कभी पीछे नहीं हटती.. यह सोचकर मदन शीला की बातों का बुरा न मानता.. और उसे सहकार भी देता..

"हाँ शीला.. मैं भी तुझे ऐसी किसी जगह ले जाना चाहता हूँ.. जहां हमें कोई न जानता हो.. मैं तो तुझे रंडी बनाकर बीच बाजार खड़ा करूंगा.. तू धंधा करें और मैं बैठकर पैसे गिनूँ.. ओह्ह.. !!" शीला को खुश करने के लिए मदन ने भी अपनी कल्पना के घोड़े दौड़ा दीये

"ओह्ह मदन.. मैं तेरी रंडी ही तो हूँ.. मुझे एक साथ आठ-दस लोगों से चुदवाने की बहोत इच्छा है.. आह्ह जल्दी जल्दी चाट मदन.. अब रहा नहीं जाता.. घुसेड़ दे अपना लोडा अंदर.. और चोद दे मुझे.. आह्ह.. ला उससे पहले तेरा लंड चूस लूँ.. कितने दिन हो गए इसे मुंह में लिए हुए!! " शीला उठी और मदन को धक्का देकर बेड पर गिराते हुए उसके लंड पर कब्जा कर लिया.. अद्भुत उत्तेजना के साथ शीला ने मदन को मुख-मैथुन का आनंद देने की शुरुआत की.. शीला की इन गरम हरकतों को देखकर मदन सोच रहा था.. शीला की गर्मी के आगे मेरी का तो कोई मुकाबला नहीं है.. मेरी लंड चूसने में इतनी ऐक्टिव कभी नहीं थी..

मदन का पूरा लंड निगलकर उसके आँड़ों को मुठ्ठी में पकड़कर इतने जोर से शीला ने दबाया की मदन दर्द से कराह उठा.. वो सोच रहा था की शीला की हवस एक दिन उसकी जान ले लेगी..



"आह्ह.. जरा धीरे से कर, शीला.. " शीला को रोकते हुए मदन ने कहा..

शीला ने लंड मुंह से निकाला और छलांग लगाकर मदन पर सवार हो गई.. लंड का चूत के अंदर सरक जाना तो तय ही था.. पूरा लंड एक धक्के में अपने भोसड़े में ग्रहण करते हुए शीला कूदने लगी.. "आह्ह आह्ह.. ओह्ह ओह्ह" की सिसकियाँ कमरे में गूंजने लगी.. इन बदहवास धक्कों से मदन के लंड ने कुछ ही देर में पानी छोड़कर शीला के भोसड़े को पावन कर दिया.. पर जब तक शीला की आग नहीं बुझती वो मदन को छोड़ने वाली नहीं थी.. मदन के स्खलित होने के बाद भी करीब पाँच मिनट तक वो लंड पर उछलती रही.. जब तक उसके भोसड़े ने अपनी सारी खुजली, चिपचिपे प्रवाही के रूप में बाहर बहा न दी तब तक वो रुकी नहीं..



"ओह्ह चोद मुझे.. साले ढीले लंड.. इतनी जल्दी झड़ गया.. आह्ह.. ओह्ह.. आह्ह.. मैं भी गईईईईई........!!!!" कहते हुए वो निढाल होकर मदन की छाती पर गिर गई.. एक सुंदर ऑर्गजम प्राप्त कर शीला बेहद खुश हो गई थी..
Nice update
 
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