तीनों लड़कियां शांत होकर.. एक दूसरे की बाहों में बाहें डालकर सो गई..
सोने की कोशिश कर रही मौसम की आँखों के सामने बार बार सुबोधकांत का लंड आ जाता था.. उसका मन कर रहा था की फाल्गुनी को जागा कर उससे विडिओ दिखाने को कहें.. विडिओ में पापा को पूरा नंगा देख पाती.. और वो कैसे चोदते है वो भी पता चलता.. पूरे नंगे पापा कैसे लगते होंगे?? वो तो सब ठीक.. पर आज तो पापा ने ही उसे पूरी की पूरी नंगी देख ली थी.. वैशाली मेरी चूत चाट रही थी वो भी पापा ने देख लिया होगा क्या?? क्या सोच रहे होंगे वो मेरे बारे में?? हो सकता है की वो जीजू ही हो.. हो सकता है की वैशाली की पहचानने में गलती हुई हो?? सुबह उठकर वैशाली से पूछूँगी.. जानना तो पड़ेगा.. !! पापा भी बड़े शातिर खिलाड़ी निकलें.. वैशाली और फाल्गुनी दोनों को साथ में चोदते है.. पापा ने आज तक कितनी औरतों और लड़कियों को चोदा होगा??
लंड का स्वाद चखते ही.. मौसम को अपने बाप के लंड के बारे में अजीब अजीब खयाल आने लगे थे.. और उसे इस बात से कोई गिल्ट भी महसूस नहीं हो रहा था.. जवानी की दहलीज पर खड़ी लड़की को अगर संयम का पाठ न पढ़ाया जाए तो वो किसी भी हद तक जा सकती है.. उम्र ही ऐसी होती है.. वासना, संवेदना और उत्तेजना की उछलती हुई लहरों में जो खुद पर अंकुश न रख पाएं.. वह निश्चित तौर पर बर्बादी के रास्ते चल पड़ता है..
जो मौसम, फाल्गुनी और अपने पापा के काम संबंधों को घृणा की नज़रों से देखती आई थी.. वही मौसम अब सेक्स और सहवास को लेकर कुछ भी सोचने से कतराती नहीं थी.. उसे सिर्फ लंड चाहिए था.. जीजू का लंड जब चूत के अंदर बाहर हुआ और तब जो सुख मिला.. उसे सिर्फ याद करते हुए भी वो बेकाबू हो जाती थी.. और उसे बार बार पुरुष के संग सहवास की इच्छा हो रही थी.. यहाँ तक की वो अपने बाप के बारे में गंदे से गंदा विचार करने पर भी अपने मन को रोक नहीं पा रही थी.. फाल्गुनी को लेकर उसके मन में अब सहानुभूति हो रही थी.. वो भी बेचारी इसी तड़प के मारे बार बार पापा से चुदवा रही होगी.. अनगिनत सवालों के घेरे में फंसी मौसम जब सुबह उठी तब उसका सर दर्द कर रहा था.. सिर्फ दो घंटों की नींद ही नसीब हुई थी.. !! देर तक जागने के कारण नींद पूरी नहीं हुई थी.. अरे देर तक क्या.. लगभग पूरी रात ही जागकर गुजार दी थी..
मौसम फटाफट तैयार हो गई और सगाई के मुहूरत की राह देखते हुए ऊपर बने गेस्टरूम में इंतज़ार करने लगी.. दुल्हन की तरह सजधज कर तैयार हुई थी मौसम.. इतनी सुंदर लग रही थी की देखने वाला बस देखता ही रह जाए.. !!
सोने की कोशिश कर रही मौसम की आँखों के सामने बार बार सुबोधकांत का लंड आ जाता था.. उसका मन कर रहा था की फाल्गुनी को जागा कर उससे विडिओ दिखाने को कहें.. विडिओ में पापा को पूरा नंगा देख पाती.. और वो कैसे चोदते है वो भी पता चलता.. पूरे नंगे पापा कैसे लगते होंगे?? वो तो सब ठीक.. पर आज तो पापा ने ही उसे पूरी की पूरी नंगी देख ली थी.. वैशाली मेरी चूत चाट रही थी वो भी पापा ने देख लिया होगा क्या?? क्या सोच रहे होंगे वो मेरे बारे में?? हो सकता है की वो जीजू ही हो.. हो सकता है की वैशाली की पहचानने में गलती हुई हो?? सुबह उठकर वैशाली से पूछूँगी.. जानना तो पड़ेगा.. !! पापा भी बड़े शातिर खिलाड़ी निकलें.. वैशाली और फाल्गुनी दोनों को साथ में चोदते है.. पापा ने आज तक कितनी औरतों और लड़कियों को चोदा होगा??
लंड का स्वाद चखते ही.. मौसम को अपने बाप के लंड के बारे में अजीब अजीब खयाल आने लगे थे.. और उसे इस बात से कोई गिल्ट भी महसूस नहीं हो रहा था.. जवानी की दहलीज पर खड़ी लड़की को अगर संयम का पाठ न पढ़ाया जाए तो वो किसी भी हद तक जा सकती है.. उम्र ही ऐसी होती है.. वासना, संवेदना और उत्तेजना की उछलती हुई लहरों में जो खुद पर अंकुश न रख पाएं.. वह निश्चित तौर पर बर्बादी के रास्ते चल पड़ता है..
जो मौसम, फाल्गुनी और अपने पापा के काम संबंधों को घृणा की नज़रों से देखती आई थी.. वही मौसम अब सेक्स और सहवास को लेकर कुछ भी सोचने से कतराती नहीं थी.. उसे सिर्फ लंड चाहिए था.. जीजू का लंड जब चूत के अंदर बाहर हुआ और तब जो सुख मिला.. उसे सिर्फ याद करते हुए भी वो बेकाबू हो जाती थी.. और उसे बार बार पुरुष के संग सहवास की इच्छा हो रही थी.. यहाँ तक की वो अपने बाप के बारे में गंदे से गंदा विचार करने पर भी अपने मन को रोक नहीं पा रही थी.. फाल्गुनी को लेकर उसके मन में अब सहानुभूति हो रही थी.. वो भी बेचारी इसी तड़प के मारे बार बार पापा से चुदवा रही होगी.. अनगिनत सवालों के घेरे में फंसी मौसम जब सुबह उठी तब उसका सर दर्द कर रहा था.. सिर्फ दो घंटों की नींद ही नसीब हुई थी.. !! देर तक जागने के कारण नींद पूरी नहीं हुई थी.. अरे देर तक क्या.. लगभग पूरी रात ही जागकर गुजार दी थी..
मौसम फटाफट तैयार हो गई और सगाई के मुहूरत की राह देखते हुए ऊपर बने गेस्टरूम में इंतज़ार करने लगी.. दुल्हन की तरह सजधज कर तैयार हुई थी मौसम.. इतनी सुंदर लग रही थी की देखने वाला बस देखता ही रह जाए.. !!
हाथ की महंदी का एकदम गाढ़ा रंग आ गया था.. गोरे चिकने हाथ पर कुहनी तक लगी महंदी उसके सौन्दर्य पर चार चाँद लगा रही थी.. ताजे खिले गुलाब जैसा उसका चेहरा.. चमकती आँखें.. अपने भविष्य के रंगीन सपने सँजोये बैठी थी.. तरुण के साथ अब तक कुछ ज्यादा बातचीत का मौका नहीं मिला था उसे.. पर अब तक जितनी भी बातें हुई उससे ये तो साफ हो गया था की वो बड़ा ही शांत और समझदार होनहार लड़का था.. जमाने का रंग उस पर चढ़ा नहीं था..
तभी पीयूष उस कमरे में दाखिल हुआ.. मौसम का ये सुंदर रूप वो बस देखता ही रहा.. मेकअप में और भी खूबसूरत लग रही थी मौसम.. !!
"अरे जीजू आप?? आइए आइए.. कैसी लग रही हूँ मैं?" कोयल जैसी मधुर आवाज में मौसम ने कहा
पीयूष अपनी नज़रों से मौसम की खूबसूरती के जाम पीते हुए उसका हाथ अपने हाथ में लेकर बोला "ब्यूटीफुल यार.. बेहद खूबसूरत लग रही है तू.. !!"
"थेंक यू जीजू.. जरा ठीक से बैठिए.. कोई देख लेगा.. दरवाजा खुला है" मौसम ने थोड़ी घबराहट से कहा
पीयूष खड़ा हुआ और वो दरवाजा बंद करने ही वाला था तब उसने फाल्गुनी को ऊपर आते हुए देखा.. पीयूष को दरवाजा बंद करते देख.. फाल्गुनी वहीं से मुड़ गई..
दरवाजा बंद करने के बाद, पीयूष मौसम के लबों को चूमना चाहता था.. पर चूमने से लिपस्टिक खराब हो जाती इसलिए कुछ हो नहीं पाया..
"जीजू, आज मैंने आपकी दी हुई ब्रा पहनी है.. "
"क्या बात है.. !! कंफर्टेबल तो है ना..?? चलो मेरी कोई चीज तो तेरे सुंदर बूब्स के करीब है.. "
"अच्छा.. तो फिर साथ में पेन्टी भी गिफ्ट करनी थी.. !!" मौसम ने कहा
हंसकर पीयूष ने कहा "यार वो मुझे याद नहीं आया.. वरना जरूर ले आता.. पर अगर तेरी चूत के करीब कोई चीज रखने का चांस मिलें तो मैं पेन्टी को हरगिज वो मौका नहीं दूंगा.. !!" पीयूष क्या कहना चाहता था वो मौसम समझ रही थी
"आपको कल मज़ा आया जीजू?"
"हाँ यार.. बहोत मज़ा आया.. थोड़ा सा टाइम कम पड़ गया.. पूरी रात मिली होती तो अब तक तीन चार बार तो कर ही लेता.. !!"
"जो मिलें उसमे ही संतोष करना चाहिए.. वरना ये भी नसीब कहाँ होने वाला था.. !! पिछली बार मैंने आपको फोन करके बुलाया और मैं खुद ही बीमार हो गई.. उस बात का बहोत अफसोस है मुझे"
"वो तो है.. पर कल रात तूने ठीक से इन्जॉय तो किया था ना.. !! तेरी कोई इच्छा अधूरी तो नहीं रह गई?? अगर ऐसा हो तो अभी बता दे.. !"
"मुझे तो बहोत मज़ा आया था.. जिंदगी में पहली बार इतना मज़ा आया.. बार बार करने को मन करने लगा है.. एक बार से जैसे मन ही नहीं भरा.. करने के बाद शरीर इतना हल्का हल्का महसूस हो रहा था.. !!!जीजू, पता नहीं.. तरुण के साथ भी ऐसा ही मज़ा मिलेगा या नहीं"
पीयूष: "अगर तेरा बहोत मन कर रहा हो तो.. चल अभी एक राउंड हो जाए.. मैं तैयार हूँ.. मेहमान भी अभी आए नहीं है.. पापा और मदन भैया लंच ऑर्डर करने गए है.. अभी निपटा लेते है.. और हाँ.. शादी के बाद अगर तरुण के साथ मज़ा न आए तो मुझे बुला लेना.. !!"
मौसम: "जीजू, अभी तो मैं उस बारे में ज्यादा सोचना नहीं चाहती"
पीयूष: "ओह मौसम.. पूरी रात मुझे सपने में तेरे बूब्स ही नजर आ रहे थे.. सच कहूँ तो अभी मैं तेरे दबाने के लिए ही आया हूँ.. मुझे एक बार तसल्ली से देख लेने दे.. दबा लेने दे.. चूस लेने दे.. !!" कहते हुए उसने मौसम के गालों को सहला दिया..
मौसम ने कोई विरोध नहीं किया बल्कि पीयूष का हाथ पकड़कर चूम लिया.. और अपने गोरे गालों पर पीयूष का हाथ रगड़ते हुए बोली
मौसम: "ओह्ह जीजू.. प्लीज.. ऐसा मत कीजिए.. मुझे वापिस कुछ कुछ होने लगा है.. मन तो मेरा भी बहोत है.. पर ये कपड़े और मेकअप खराब हो जाने का डर है"
पीयूष: "कुछ भी खराब नहीं होगा.. क्या यार तू भी नखरे कर रही है.. !! देख.. ये मेरा कैसे तैयार होकर खड़ा है.. अकेले मौका मिला है तो मजे कर लेते है यार..!!"
मौसम: "नहीं जीजू.. मुझे बहोत डर लग रहा है.. कोई आ गया तो हंगामा हो जाएगा" मौसम ने मना किया पर फिर भी पीयूष का हाथ नहीं छोड़ा
पीयूष: "तो फिर मैं जाऊँ नीचे? वक्त बर्बाद करने का क्या मतलब!!" नाराज होकर पीयूष ने कहा
मौसम से पीयूष की नाराजगी देखी नहीं गई..
"जीजू प्लीज.. समझने की कोशिश कीजिए.. मन तो मेरा भी.. !!" मौसम ने वाक्य अधूरा ही छोड़ दिया
पीयूष: "तेरा भी मन क्या करने को कर रहा है??"
मौसम: "कुछ नहीं.. आप जाइए यहाँ से.. !!" मौसम ने परेशान होकर आँखें बंद कर दी और अपने दोनों हाथों से सर पकड़ लिया
पीयूष: "अरे रुक क्यों गई? बोल दे जो भी कहना हो.. गेटआउट कह दे मुझे.. मैं चला जाऊंगा " अब भी नाराज था पीयूष
मौसम: "जीजू प्लीज यार.. ऐसा नहीं है.. !! मुझे भी आपका देखने का बड़ा ही मन है" आखिर उसके मुंह से सच निकल ही गया
कोल्डप्ले की टिकट की वैटिंग लिस्ट में नंबर आ जाने पर जो खुशी होती है वही खुशी पीयूष के चेहरे पर भी छा गई..
पीयूष: "ओह, तो उसमें कौन सी बड़ी बात है.. !! ले देख ले.. पर देख के करेगी क्या? खाने को देखने से पेट थोड़े ही भर जाता है.. !! उसके लिए तो निवाला लेकर मुंह में डालना पड़ता है.. !!"
साढ़े छह इंच का एकदम मस्त कडक लोडा बाहर निकालकर मौसम के सामने पेश कर दिया पीयूष ने..
मौसम के दिल की धड़कने चार गुना तेज हो गई "ओह माय गॉड जीजू.. कितना मस्त लग रहा है यार.. !!"
पीयूष ने लंड को मुठ्ठी में पकड़कर चमड़ी को पीछे सरकाते ही.. उसका छोटे टमाटर जैसे लाल सुपाड़ा दिखने लगा.. वो चमड़ी को आगे पीछे करते हुए हिलाने लगा.. और सुपाड़े की दिखने-छुपने की कवायत शुरू हो गई.. मौसम अपने जीजू का लंड टकटकी लगाए देख रही थी..
मौसम एकदम से खड़ी हो गई.. यह सुनिश्चित करने के लिए की आसपास कोई था या नहीं.. उसने दरवाजा खोलकर देखा.. सीढ़ियों पर फाल्गुनी खड़ी थी.. मौसम को देखते ही उसने अपना अंगूठा दिखाकर थम्स-अप का इशारा करते हुए ये कह दिया की वो निगरानी रखे हुए है.. किसी को ऊपर नहीं आने देगी.. और अगर कोई आ गया तो उसे अलर्ट कर देगी.. मौसम को अब इत्मीनान हो गया
मौसम ने दरवाजा बंद कर लिया और पीयूष का लंड अपने महंदी लगे हाथों से पकड़ लिया.. आह्ह.. लंड की गर्मी का एहसास अपनी कोमल हथेलियों पर होते ही मौसम की आँखें बंद हो गई.. हीना लगे हाथों में कडक लंड का होना.. ये दुनिया के सबसे हसीन द्रश्य में से एक होता है.. उससे सुंदर और कामुक सीन ढूँढना वाकई में मुश्किल है..
पीयूष ने लंड को मुठ्ठी में पकड़कर चमड़ी को पीछे सरकाते ही.. उसका छोटे टमाटर जैसे लाल सुपाड़ा दिखने लगा.. वो चमड़ी को आगे पीछे करते हुए हिलाने लगा.. और सुपाड़े की दिखने-छुपने की कवायत शुरू हो गई.. मौसम अपने जीजू का लंड टकटकी लगाए देख रही थी..
मौसम एकदम से खड़ी हो गई.. यह सुनिश्चित करने के लिए की आसपास कोई था या नहीं.. उसने दरवाजा खोलकर देखा.. सीढ़ियों पर फाल्गुनी खड़ी थी.. मौसम को देखते ही उसने अपना अंगूठा दिखाकर थम्स-अप का इशारा करते हुए ये कह दिया की वो निगरानी रखे हुए है.. किसी को ऊपर नहीं आने देगी.. और अगर कोई आ गया तो उसे अलर्ट कर देगी.. मौसम को अब इत्मीनान हो गया
मौसम ने दरवाजा बंद कर लिया और पीयूष का लंड अपने महंदी लगे हाथों से पकड़ लिया.. आह्ह.. लंड की गर्मी का एहसास अपनी कोमल हथेलियों पर होते ही मौसम की आँखें बंद हो गई.. हीना लगे हाथों में कडक लंड का होना.. ये दुनिया के सबसे हसीन द्रश्य में से एक होता है.. उससे सुंदर और कामुक सीन ढूँढना वाकई में मुश्किल है..
मौसम के हाथ अपने जीजू के लंड को सहला रहे थे और पीयूष उसके बदन से इस तरह खेल रहा था जिससे की उसका मेकअप और ड्रेसिंग खराब न हो जाएँ..
पीयूष: "किस करने का बड़ा मन कर रहा है मौसम.. आह्ह.. एक बार चुनरी हटाकर अपने बूब्स तो दिखा.. मैंने दी हुई ब्रा कैसे लग रही है.. एक बार मैं भी तो देखूँ.. !!"
मौसम: "आह्ह जीजू.. मैं भी काफी एक्साइट हो गई हो और मेरी भी बड़ी इच्छा हो रही है.. पर क्या करूँ.. !! हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है.. इसलिए ऊपर ऊपर से करके ही संतोष करना पड़ेगा.. आप मुझे ज्यादा छूना मत वरना मेकअप खराब हो जाएगा.. !!"
पीयूष: "ओह मौसम.. तेरे इस रूप को देखने के बाद अपने आप को रोक पाना बड़ा ही मुश्किल है.. मुझे अब रोक मत यार.. मुझसे रहा नहीं जाता" पीयूष मौसम को अपनी बाहों में भरने गया..
मौसम: "जीजू प्लीज.. मत करो.. आपकी दूसरी कोई भी इच्छा मैं पूरी कर दूँगी.. मेरे कपड़े खराब हो जाएंगे"
मौसम पीयूष का लंड बड़ी उत्तेजना से मसल रही थी..
पीयूष: "फिर तो एक ही चीज बचती है.. तू मेरा मुंह में लेकर चूस ले.. इफ यू डॉन्ट माइंड.. कुछ नहीं होगा.. बड़ा मज़ा आएगा.. अगर ना पसंद आए तो निकाल देना.. कल रात को ही मेरा बड़ा मन था तेरे मुंह में देने का.. पर तुझे अच्छा नहीं लगेगा सोचकर मैंने कहा नहीं.. !!"
मौसम: "पर जीजू.. मेरी लिपस्टिक खराब हो जाएगी उसका क्या?? और मुझे आता भी नहीं है चूसना.. " परोक्ष रूप से मौसम ने जता दिया की उसे चूसने में कोई हर्ज नहीं है.. सिर्फ लिपस्टिक खराब हो जाने का डर है
पीयूष: "यार, लिपस्टिक तुम फिर से लगा लेना.. कौन सी बड़ी बात है.. मैं लगा दूंगा तुझे.. और तुझे कहाँ अपने होंठ रगड़ने है.. !! सिर्फ मुंह के अंदर ही तो लेना है.. ले जल्दी.. और चूसना शुरू कर"
पिछली रात से मौसम खुद जीजू का लंड मुंह में लेना चाहती थी.. वो इच्छा अभी पूरी होने वाली थी.. कपड़ों के कारण घुटनों के बल बैठना मुमकिन नहीं था.. और बेड पर बैठे बैठे कैसे चूसती?? आखिर पीयूष कोने में पड़ी कुर्सी ले आया.. और उस पर खड़ा हो गया.. अपना लंड सीधा मौसम के मुंह के सामने धर दिया.. मौसम की हालत देखने जैसी हो गई.. एक तरफ उसकी चूत बगावत पर उतर आई थी.. दूसरी तरफ इतना मस्त लोडा सामने होने के बावजूद वो अंदर ले नहीं पा रही थी उस बात का मलाल था..
नीचे के कमरों से हल्के हल्के शोर-शराबे की आवाज़ें आने लगी थी
"लगता है की मेहमान आ गए है जीजू.. !!"
पीयूष: "कोई बात नहीं.. वो सीधा ऊपर थोड़ी चले आएंगे.. !! तू जल्दी कर यार.. !!" मौका हाथ से जाते हुए देख पीयूष भी बेचैन हो गया और मौसम को ललचाने के लिए उसके गालों पर अपना लंड रगड़ने लगा.. जब तक मौसम अपना मुंह नहीं खोलती.. तब तक अंदर डालना संभव नहीं था.. उसकी लिपस्टिक के कारण.. वरना पीयूष इतना उत्तेजित था की मौसम के होंठों पर जबरदस्ती दबाकर अपना लंड घुसेड़ देता..
आखिर मौसम ने पीयूष का लंड मुठ्ठी में पकड़कर उसकी नोक पर अपनी जीभ का स्पर्श किया..
"ओह्ह मेरी जान.. !!" पीयूष कराह उठा..
मौसम का मुंह खुलते ही उसने हल्का सा धकेल दिया अपना लंड.. और मौसम का सुंदर मुखड़ा अपने मजबूत लोड़े से भर दिया.. मौसम को तो पता ही नहीं था की मुंह में डालने के बाद आगे क्या करना था.. मुंह के अंदर विचित्र स्वाद की अनुभूति हो रही थी.. कुछ मज़ा नहीं आ रहा था लेकिन अरुचि भी नहीं हो रही थी..
"अब गुड़िया की तरह बैठी क्या है?? अंदर बाहर करना शुरू कर.. !! मुंह में भरकर नहीं रखना है इसे.. चूसना है" पीयूष इस नासमझी से परेशान होकर बोला..
पीयूष की निर्देशानुसार मौसम ने लंड को मुंह के अंदर आगे पीछे करना शुरू किया.. और चूसने लगी.. अब उसे धीरे धीरे अंदाजा लगने लगा था की चूसते कैसे है.. चूसने में आसानी हो इसलिए मौसम ने लंड को जड़ से मजबूती से दबाकर पकड़ रखा था.. दबाने के कारण पीयूष का सुपाड़ा मौसम के मुंह के अंदर एकदम फुल गया.. मस्त टाइट लोड़े को चूसने में अब मौसम को भी मज़ा आ रहा था..
पीयूष: "किस करने का बड़ा मन कर रहा है मौसम.. आह्ह.. एक बार चुनरी हटाकर अपने बूब्स तो दिखा.. मैंने दी हुई ब्रा कैसे लग रही है.. एक बार मैं भी तो देखूँ.. !!"
मौसम: "आह्ह जीजू.. मैं भी काफी एक्साइट हो गई हो और मेरी भी बड़ी इच्छा हो रही है.. पर क्या करूँ.. !! हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है.. इसलिए ऊपर ऊपर से करके ही संतोष करना पड़ेगा.. आप मुझे ज्यादा छूना मत वरना मेकअप खराब हो जाएगा.. !!"
पीयूष: "ओह मौसम.. तेरे इस रूप को देखने के बाद अपने आप को रोक पाना बड़ा ही मुश्किल है.. मुझे अब रोक मत यार.. मुझसे रहा नहीं जाता" पीयूष मौसम को अपनी बाहों में भरने गया..
मौसम: "जीजू प्लीज.. मत करो.. आपकी दूसरी कोई भी इच्छा मैं पूरी कर दूँगी.. मेरे कपड़े खराब हो जाएंगे"
मौसम पीयूष का लंड बड़ी उत्तेजना से मसल रही थी..
पीयूष: "फिर तो एक ही चीज बचती है.. तू मेरा मुंह में लेकर चूस ले.. इफ यू डॉन्ट माइंड.. कुछ नहीं होगा.. बड़ा मज़ा आएगा.. अगर ना पसंद आए तो निकाल देना.. कल रात को ही मेरा बड़ा मन था तेरे मुंह में देने का.. पर तुझे अच्छा नहीं लगेगा सोचकर मैंने कहा नहीं.. !!"
मौसम: "पर जीजू.. मेरी लिपस्टिक खराब हो जाएगी उसका क्या?? और मुझे आता भी नहीं है चूसना.. " परोक्ष रूप से मौसम ने जता दिया की उसे चूसने में कोई हर्ज नहीं है.. सिर्फ लिपस्टिक खराब हो जाने का डर है
पीयूष: "यार, लिपस्टिक तुम फिर से लगा लेना.. कौन सी बड़ी बात है.. मैं लगा दूंगा तुझे.. और तुझे कहाँ अपने होंठ रगड़ने है.. !! सिर्फ मुंह के अंदर ही तो लेना है.. ले जल्दी.. और चूसना शुरू कर"
पिछली रात से मौसम खुद जीजू का लंड मुंह में लेना चाहती थी.. वो इच्छा अभी पूरी होने वाली थी.. कपड़ों के कारण घुटनों के बल बैठना मुमकिन नहीं था.. और बेड पर बैठे बैठे कैसे चूसती?? आखिर पीयूष कोने में पड़ी कुर्सी ले आया.. और उस पर खड़ा हो गया.. अपना लंड सीधा मौसम के मुंह के सामने धर दिया.. मौसम की हालत देखने जैसी हो गई.. एक तरफ उसकी चूत बगावत पर उतर आई थी.. दूसरी तरफ इतना मस्त लोडा सामने होने के बावजूद वो अंदर ले नहीं पा रही थी उस बात का मलाल था..
नीचे के कमरों से हल्के हल्के शोर-शराबे की आवाज़ें आने लगी थी
"लगता है की मेहमान आ गए है जीजू.. !!"
पीयूष: "कोई बात नहीं.. वो सीधा ऊपर थोड़ी चले आएंगे.. !! तू जल्दी कर यार.. !!" मौका हाथ से जाते हुए देख पीयूष भी बेचैन हो गया और मौसम को ललचाने के लिए उसके गालों पर अपना लंड रगड़ने लगा.. जब तक मौसम अपना मुंह नहीं खोलती.. तब तक अंदर डालना संभव नहीं था.. उसकी लिपस्टिक के कारण.. वरना पीयूष इतना उत्तेजित था की मौसम के होंठों पर जबरदस्ती दबाकर अपना लंड घुसेड़ देता..
आखिर मौसम ने पीयूष का लंड मुठ्ठी में पकड़कर उसकी नोक पर अपनी जीभ का स्पर्श किया..
"ओह्ह मेरी जान.. !!" पीयूष कराह उठा..
मौसम का मुंह खुलते ही उसने हल्का सा धकेल दिया अपना लंड.. और मौसम का सुंदर मुखड़ा अपने मजबूत लोड़े से भर दिया.. मौसम को तो पता ही नहीं था की मुंह में डालने के बाद आगे क्या करना था.. मुंह के अंदर विचित्र स्वाद की अनुभूति हो रही थी.. कुछ मज़ा नहीं आ रहा था लेकिन अरुचि भी नहीं हो रही थी..
"अब गुड़िया की तरह बैठी क्या है?? अंदर बाहर करना शुरू कर.. !! मुंह में भरकर नहीं रखना है इसे.. चूसना है" पीयूष इस नासमझी से परेशान होकर बोला..
पीयूष की निर्देशानुसार मौसम ने लंड को मुंह के अंदर आगे पीछे करना शुरू किया.. और चूसने लगी.. अब उसे धीरे धीरे अंदाजा लगने लगा था की चूसते कैसे है.. चूसने में आसानी हो इसलिए मौसम ने लंड को जड़ से मजबूती से दबाकर पकड़ रखा था.. दबाने के कारण पीयूष का सुपाड़ा मौसम के मुंह के अंदर एकदम फुल गया.. मस्त टाइट लोड़े को चूसने में अब मौसम को भी मज़ा आ रहा था..
दोनों इस आनंददायक प्रक्रिया में लीन थे तभी मौसम के मोबाइल पर एक मिस-कॉल आकर चला गया.. लंड चूसते चूसते ही मौसम ने नोटीफिकेशन खोलकर देखा तो फाल्गुनी का मिस-कॉल था.. मतलब खतरे की घंटी.. !!
मौसम ने तुरंत लंड को मुंह से बाहर निकालते हुए कहा.. "जीजू, फाल्गुनी का कॉल था.. आप नीचे जाइए.. !! थोड़ी देर में सगाई की रसम शुरू हो जाएगी"
पीयूष बेचैन होकर बोला "यार, अब इस खड़े लंड का क्या करूँ?? ये तो अब ढीला होने से रहा.. एक काम कर.. तू उल्टा लेट जा.. मैं पीछे से डाल देता हूँ.. तेरा ड्रेस खराब नहीं होगा"
मौसम: "नहीं जीजू.. अब कुछ नहीं हो सकता.. आप जाइए प्लीज.. कोई आ गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे"
तभी तरुण का कॉल आया और मिस-कॉल हो गया.. अपनी होने वाली मंगेतर को वो याद कर रहा था.. पर उसे कहाँ पता था की मौसम तो अपने जीजू के संग जीवन के सर्वोच्च आनंद को प्राप्त करने में मशरूफ़ थी..
"जीजू, तरुण का भी मिस-कॉल आ गया.. प्लीज अब आप जाइए और इसे कैसे भी करके अंदर पेंट में डाल दीजिए.. " बेहद उत्तेजित मौसम ने एक बार और लंड को चूस लिया..
तरुण का नाम सुनते ही पीयूष का दिमाग खराब हो गया.. साला तरुण भेनचोद.. !! इसी तरुण ने उस दिन फोन पर मुझे अपमानित किया था.. उससे तो बराबर बदला लूँगा मैं.. करते रहने दो उसे इंतज़ार.. मौसम जब अस्पताल में थी और पीयूष ने फोन किया था तब तरुण ने फोन उठाया था और ये कहकर मौसम को फोन नहीं दिया था की उसकी चिंता करने के लिए वो बैठा था.. इस बात का बहोत बुरा लगा था पीयूष को.. साला कल का लौंडा मुझे सीखा रहा था.. आज उसे हिसाब बराबर करने का मौका मिल गया था
पीयूष ने आखिरी दांव आजमाते हुए कहा "मौसम, हो सकता है की इस तरह हम आखिरी बार मिल रहे हो.. ऐसा मौका दोबारा कभी नसीब नहीं होगा.. तू जल्दी जल्दी उल्टा होकर लेट जा.. मैं पीछे से डालकर फटाफट चोद दूंगा.. मज़ा आ जाएगा.. ये देख यार.. कितना मस्त टाइट हो गया है.. बातों में टाइम वेस्ट मत कर मेरी जान.. तेरे कपड़े खराब नहीं होंगे और तेरे नीचे की आग भी बुझ जाएगी.. " कहते हुए पीयूष ने उसकी चुनरी हटाकर टाइट चोली के ऊपर से ही उसके दोनों स्तन दबा दीये..
मौसम ने तुरंत लंड को मुंह से बाहर निकालते हुए कहा.. "जीजू, फाल्गुनी का कॉल था.. आप नीचे जाइए.. !! थोड़ी देर में सगाई की रसम शुरू हो जाएगी"
पीयूष बेचैन होकर बोला "यार, अब इस खड़े लंड का क्या करूँ?? ये तो अब ढीला होने से रहा.. एक काम कर.. तू उल्टा लेट जा.. मैं पीछे से डाल देता हूँ.. तेरा ड्रेस खराब नहीं होगा"
मौसम: "नहीं जीजू.. अब कुछ नहीं हो सकता.. आप जाइए प्लीज.. कोई आ गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे"
तभी तरुण का कॉल आया और मिस-कॉल हो गया.. अपनी होने वाली मंगेतर को वो याद कर रहा था.. पर उसे कहाँ पता था की मौसम तो अपने जीजू के संग जीवन के सर्वोच्च आनंद को प्राप्त करने में मशरूफ़ थी..
"जीजू, तरुण का भी मिस-कॉल आ गया.. प्लीज अब आप जाइए और इसे कैसे भी करके अंदर पेंट में डाल दीजिए.. " बेहद उत्तेजित मौसम ने एक बार और लंड को चूस लिया..
तरुण का नाम सुनते ही पीयूष का दिमाग खराब हो गया.. साला तरुण भेनचोद.. !! इसी तरुण ने उस दिन फोन पर मुझे अपमानित किया था.. उससे तो बराबर बदला लूँगा मैं.. करते रहने दो उसे इंतज़ार.. मौसम जब अस्पताल में थी और पीयूष ने फोन किया था तब तरुण ने फोन उठाया था और ये कहकर मौसम को फोन नहीं दिया था की उसकी चिंता करने के लिए वो बैठा था.. इस बात का बहोत बुरा लगा था पीयूष को.. साला कल का लौंडा मुझे सीखा रहा था.. आज उसे हिसाब बराबर करने का मौका मिल गया था
पीयूष ने आखिरी दांव आजमाते हुए कहा "मौसम, हो सकता है की इस तरह हम आखिरी बार मिल रहे हो.. ऐसा मौका दोबारा कभी नसीब नहीं होगा.. तू जल्दी जल्दी उल्टा होकर लेट जा.. मैं पीछे से डालकर फटाफट चोद दूंगा.. मज़ा आ जाएगा.. ये देख यार.. कितना मस्त टाइट हो गया है.. बातों में टाइम वेस्ट मत कर मेरी जान.. तेरे कपड़े खराब नहीं होंगे और तेरे नीचे की आग भी बुझ जाएगी.. " कहते हुए पीयूष ने उसकी चुनरी हटाकर टाइट चोली के ऊपर से ही उसके दोनों स्तन दबा दीये..
मौसम: "जिद मत कीजिए जीजू.. प्लीज.. !! आप जाइए.. मुझे नहीं करवाना"
पीयूष: "चल छोड़.. अंदर ना लेना हो तो कोई बात नहीं.. मुझे एक बार तेरी चाट लेने दे.. तेरी चूत की मस्त गंध मैं अपने दिल में हमेशा के लिए बसाकर रखना चाहता हूँ.. मौसम, आई लव यू यार.. मेरा दिल मत तोड़ प्लीज.. एक आखिरी बार तेरी चूत चाटने दे"
चूत चटाई का नाम सुनकर, मौसम के दिल की अरमान उछलने लगे.. उसका विरोध लगभग गायब सा हो गया.. बस अब थोड़ी बहोत शर्म बची थी.. परिस्थिति भयानक थी.. फाल्गुनी ने इशारा कर दिया था.. मेहमान आ चुके थे.. तरुण नीचे से कॉल पर कॉल किए जा रहा था.. कोई भी कभी भी ऊपर आ सकता था.. पर चूत चटवाने की लालच ने मौसम के दिल-ओ-दिमाग पर कब्जा कर लिया था..!!!
मौसम: "जीजू आपने तो मुझे भी गरम कर दिया.. यार आप समझते क्यों नहीं? फाल्गुनी ने पहले ही कॉल करके बता दिया है.. तरुण के फोन पर फोन आ रहा है.. इस स्थति में अगर कोई ऊपर आ गया तो क्या होगा?? आप तो मर्द हो.. निकल जाओगे.. फंसना तो मुझे ही है ना.. !!"
अवैद्य संबंधों की सब से बड़ी तकलीफ और हकीकत.. पकड़े जाने पर ज्यादातर बदनामी लड़की/स्त्री की ही होती है.. !!
पीयूष: "अब चुप भी कर.. ये सब उपदेश बाद में देना.. अभी उसके लिए टाइम नहीं है.. "
पीयूष ने मौसम को बेड के ऊपर खड़ा कर दिया.. वो जानता था की मौसम सिर्फ दिखाने के लिए विरोध कर रही थी.. मन तो उसका भी बड़ा हो रहा था.. पर अब वो मना नहीं कर पाएगी.. लोहा गरम हो चुका था.. !!
पीछे से मौसम का घाघरा उठा दिया पीयूष ने .. गुलाबी रंग की पेन्टी में गोरे जवान कूल्हों को देखकर पीयूष मदहोश हो गया.. उसका लंड उत्तेजना से इतना फुल चुका था की उसे डर लग रहा था की कहीं लंड की नसें फट न जाएँ.. उसने चूत चाटने के लिए मौसम की पेन्टी को एक साइड पर किया और खड़े होकर वो मौसम को पीछे खड़ा हो गया.. पेन्टी को सरकाकर अपने टाइट लंड को कूल्हों से रगड़ने के बाद.. टोपे को मौसम के गरम सुराख पर घिस दिया..
"ऊई माँ.. मर गई.. क्या कर रहे हो जीजू??" मौसम अपनी गांड को लंड के ऊपर गोल गोल घुमाने लगी
पीयूष ने मौसम की कमसिन बुर की फाँकों के बीच अपना सुपाड़ा फँसाकर लंड को थोड़ा सा अंदर डाल ही दिया..
पीयूष: "चल छोड़.. अंदर ना लेना हो तो कोई बात नहीं.. मुझे एक बार तेरी चाट लेने दे.. तेरी चूत की मस्त गंध मैं अपने दिल में हमेशा के लिए बसाकर रखना चाहता हूँ.. मौसम, आई लव यू यार.. मेरा दिल मत तोड़ प्लीज.. एक आखिरी बार तेरी चूत चाटने दे"
चूत चटाई का नाम सुनकर, मौसम के दिल की अरमान उछलने लगे.. उसका विरोध लगभग गायब सा हो गया.. बस अब थोड़ी बहोत शर्म बची थी.. परिस्थिति भयानक थी.. फाल्गुनी ने इशारा कर दिया था.. मेहमान आ चुके थे.. तरुण नीचे से कॉल पर कॉल किए जा रहा था.. कोई भी कभी भी ऊपर आ सकता था.. पर चूत चटवाने की लालच ने मौसम के दिल-ओ-दिमाग पर कब्जा कर लिया था..!!!
मौसम: "जीजू आपने तो मुझे भी गरम कर दिया.. यार आप समझते क्यों नहीं? फाल्गुनी ने पहले ही कॉल करके बता दिया है.. तरुण के फोन पर फोन आ रहा है.. इस स्थति में अगर कोई ऊपर आ गया तो क्या होगा?? आप तो मर्द हो.. निकल जाओगे.. फंसना तो मुझे ही है ना.. !!"
अवैद्य संबंधों की सब से बड़ी तकलीफ और हकीकत.. पकड़े जाने पर ज्यादातर बदनामी लड़की/स्त्री की ही होती है.. !!
पीयूष: "अब चुप भी कर.. ये सब उपदेश बाद में देना.. अभी उसके लिए टाइम नहीं है.. "
पीयूष ने मौसम को बेड के ऊपर खड़ा कर दिया.. वो जानता था की मौसम सिर्फ दिखाने के लिए विरोध कर रही थी.. मन तो उसका भी बड़ा हो रहा था.. पर अब वो मना नहीं कर पाएगी.. लोहा गरम हो चुका था.. !!
पीछे से मौसम का घाघरा उठा दिया पीयूष ने .. गुलाबी रंग की पेन्टी में गोरे जवान कूल्हों को देखकर पीयूष मदहोश हो गया.. उसका लंड उत्तेजना से इतना फुल चुका था की उसे डर लग रहा था की कहीं लंड की नसें फट न जाएँ.. उसने चूत चाटने के लिए मौसम की पेन्टी को एक साइड पर किया और खड़े होकर वो मौसम को पीछे खड़ा हो गया.. पेन्टी को सरकाकर अपने टाइट लंड को कूल्हों से रगड़ने के बाद.. टोपे को मौसम के गरम सुराख पर घिस दिया..
"ऊई माँ.. मर गई.. क्या कर रहे हो जीजू??" मौसम अपनी गांड को लंड के ऊपर गोल गोल घुमाने लगी
पीयूष ने मौसम की कमसिन बुर की फाँकों के बीच अपना सुपाड़ा फँसाकर लंड को थोड़ा सा अंदर डाल ही दिया..
मौसम: "नहीं जीजू.. मत करो ऐसा.. ऊईईई माँ.. !!" आनंद भरी कराहों से सिसकने लगी मौसम.. उसके विरोध में भी अब कुछ दम नहीं था.. बस थोड़ी सी स्त्री-सहज आनाकानी थी.. पर आज तो पीयूष इतना उत्तेजित था की मौसम सच में विरोध करती तो भी वो सुनने वाला नहीं था.. तरुण के अपमान का बदला लेने का इससे बेहतर मौका कहाँ मिलता.. !! सूत समेत हिसाब बराबर करने का अवसर था.. मौसम के भव्य कूल्हों को दोनों हथेलियों से सपोर्ट देते हुए उसका डेढ़ इंच जितना लंड चूत के अंदर घुस चुका था..
"नहीं जीजू प्लीज.. अब बर्दाश्त नहीं होगा मुझसे.. फिर कभी करेंगे.. आज नहीं.. ओह्ह ओह्ह.. !!" इतनी उत्तेजित हो गई की अपने कपड़ों की परवाह किए बगैर ही चोली के ऊपर से अपने स्तनों को मसलने लगी वो.. और बोली "आप ने तो चाटने की बात की थी.. और डालने लगे.. प्लीज यार.. थोड़ी सी जीभ तो फेर दो एक बार.. !!"
पीयूष भी शातिर खिलाड़ी था.. मौसम की बात को इग्नोर करते हुए उसने एक जोर का धक्का लगाया और अपना पूरा लंड उसकी चूत में बच्चेदानी तक घुसेड़ दिया..
"नहीं जीजू प्लीज.. अब बर्दाश्त नहीं होगा मुझसे.. फिर कभी करेंगे.. आज नहीं.. ओह्ह ओह्ह.. !!" इतनी उत्तेजित हो गई की अपने कपड़ों की परवाह किए बगैर ही चोली के ऊपर से अपने स्तनों को मसलने लगी वो.. और बोली "आप ने तो चाटने की बात की थी.. और डालने लगे.. प्लीज यार.. थोड़ी सी जीभ तो फेर दो एक बार.. !!"
पीयूष भी शातिर खिलाड़ी था.. मौसम की बात को इग्नोर करते हुए उसने एक जोर का धक्का लगाया और अपना पूरा लंड उसकी चूत में बच्चेदानी तक घुसेड़ दिया..
और कुछ पल तक ऐसे ही खड़ा रहा.. उसके लंड ने मौसम की चूत की दीवारों को चीरते हुए अपना स्थान अंदर बना लिया था.. मौसम की चूत से अब रस टपक रहा था.. और उसके छींटें नीचे बिस्तर पर पड़ रहे थे.. इतना मज़ा आ रहा था मौसम को की उसने अब किसी भी प्रकार का विरोध करना बंद कर दिया.. पर उसी वक्त पीयूष ने झटके से लंड को बाहर निकाल दिया.. और मौसम की चुनरी से अपना लंड पोंछ लिया..
"ओह्ह जीजू.. अब ये क्या?? आपने बाहर क्यों निकाल दिया?? प्लीज अंदर डाल दीजिए वापिस.."
मौसम की बात को अनसुनी कर पीयूष नीचे झुककर मौसम की चूत चाटने लगा.. जैसे ही फाँकों पर जीभ का स्पर्श हुआ, मौसम सिहरने लगी.. लंड के अभाव से छटपटती रही उसकी मुनिया जीभ छूते ही एकदम मदहोश हो गई..
पर मोटा लंड जब चूत की दीवारों को खिसकाकर अंदर घुसकर जो मजे देता है.. वो मज़ा अब मौसम को चाहिए था.. शेर ने अब खून चख लिया था..
"नहीं जीजू प्लीज.. अब अंदर ही डाल दो.. मुझे नहीं चटवानी.. अंदर डालने से ही मज़ा आएगा"
पीयूष ने उसकी एक न सुनी.. और चूत चाटता ही रहा.. एक पल पहले ही लंड के घर्षण का मज़ा ले चुकी मौसम अब बेचैनी से तरस रही थी.. मौसम लंड अंदर लेना चाहती थी और पीयूष चूत चाट रहा था.. तभी मौसम के मोबाइल की रिंग बजी.. फोन उठाना जरूरी था.. नहीं उठाती तो देखने के लिए कोई न कोई ऊपर चला आता..
सुबोधकांत का फोन था.. मौसम ने उठाया और कहा "हाँ पापा.. !!" जीजा चूत चाट रहा था और साली अपने बाप से बात कर रही थी.. बड़ा ही एरोटिक सीन था.. !!
"तैयार हो गई बेटा?? और कितनी देर?? मेहमान इंतज़ार कर रहें है.. थोड़ी देर में पंडित आ जाएगा और विधि शुरू कर देगा.. जल्दी कर बेटा"
पीयूष के मुंह पर अपनी चूत दबाते हुए.. और अपने कूल्हें रगड़ते हुए मौसम ने कहा "जी पापा.. मैं तैयार ही हूँ.. बस मेकअप का टचिंग कर रही हूँ.. "
"जो भी कर रही हो, जरा जल्दी करना बेटा.. !! कहीं मुहूरत का समय न निकल जाए" सुबोधकांत ने फोन रख दिया
बगल में खड़ी शीला ने हसंकर कहा "मैंने कहा था ना आप से.. लड़कियों को कितना भी वक्त दो.. उनकी तैयारी कभी खत्म ही नहीं होगी.. " बड़े ही नशीले अंदाज मे आँख मटकाते हुए उसने कहा
सुबोधकांत: "सारी लड़कियां ऐसी नहीं होती.. कुछ तो बहोत जल्दी तैयार हो जाती है" आँख मारकर सुबोधकांत ने भी सिक्सर लगा दिया..
ऊपर के कमरे में पीयूष.. मौसम की चूत की गुलाबी फाँकों को उंगलियों से अलग करते हुए अंदर के लाल हिस्से को जीभ डालकर चाटे जा रहा था.. पीयूष की इस अदा पर मौसम फ़ीदा हो गई.. चूत से रस ऐसे टपक रहा था जैसे बिन बादल बरसात की बूंदें गिर रही हो.. और अब उसकी चूत, चुदाई मांग रही थी.. अब लंड बिना उसका उद्धार नहीं था.. पीयूष अपने खड़े लंड को मुठ्ठी में पकड़कर खुद ही हिलाते सहलाते.. जैसे लोरी सुनाकर मना रहा था..
दोनों तब चोंक उठे जब नीचे से रमिलाबहन की आवाज सुनी "अरे फाल्गुनी.. बेटा मौसम को बोल, की जल्दी से नीचे आ जाएँ.. पण्डितजी भी आ चुके है.. मुहूरत का समय निकला जा रहा है"
मौसम जबरदस्त उत्तेजित थी और लंड लेने के लिए बेबस थी.. उसकी चूत अपना रस उँड़ेलने के लिए मचल रही थी.. पर अपनी माँ की आवाज सुनते ही उसके सारे मूड पर पानी फिर गया.. लेकिन पीयूष खुद को और मौसम को मझधार में छोड़ना नहीं चाहता था.. उसका दृढ़ता से मानना था की जो पुरुष अपनी हमबिस्तर स्त्री को बीच रास्ते, बिना संतुष्ट किए छोड़ देता है.. वह स्त्री भी उसे, जीवन की मझधार में छोड़कर चली जाएगी.. और जल्द ही खुद के लिए नया रास्ता ढूंढ लेगी..
मौसम ने अपनी चूत चाट रहे पीयूष से कहा "बस जीजू.. टाइम खत्म.. छोड़ो मुझे.. अब तो हमें नीचे जाना ही होगा.. पहले मैं नीचे जाती हूँ.. और आप थोड़ी देर बाद आना.. ताकि किसीको शक न हो.. !!"
लेकिन पीयूष इन आखिरी क्षणों का पूर्ण इस्तेमाल कर लेना चाहता था.. अपनी चूत चटाई की तमाम कला को एक साथ काम पर लगाकर उसने मौसम को लाल-गरम कर दिया..
पीयूष के मुंह पर अपनी चूत दबाते हुए.. और अपने कूल्हें रगड़ते हुए मौसम ने कहा "जी पापा.. मैं तैयार ही हूँ.. बस मेकअप का टचिंग कर रही हूँ.. "
"जो भी कर रही हो, जरा जल्दी करना बेटा.. !! कहीं मुहूरत का समय न निकल जाए" सुबोधकांत ने फोन रख दिया
बगल में खड़ी शीला ने हसंकर कहा "मैंने कहा था ना आप से.. लड़कियों को कितना भी वक्त दो.. उनकी तैयारी कभी खत्म ही नहीं होगी.. " बड़े ही नशीले अंदाज मे आँख मटकाते हुए उसने कहा
सुबोधकांत: "सारी लड़कियां ऐसी नहीं होती.. कुछ तो बहोत जल्दी तैयार हो जाती है" आँख मारकर सुबोधकांत ने भी सिक्सर लगा दिया..
ऊपर के कमरे में पीयूष.. मौसम की चूत की गुलाबी फाँकों को उंगलियों से अलग करते हुए अंदर के लाल हिस्से को जीभ डालकर चाटे जा रहा था.. पीयूष की इस अदा पर मौसम फ़ीदा हो गई.. चूत से रस ऐसे टपक रहा था जैसे बिन बादल बरसात की बूंदें गिर रही हो.. और अब उसकी चूत, चुदाई मांग रही थी.. अब लंड बिना उसका उद्धार नहीं था.. पीयूष अपने खड़े लंड को मुठ्ठी में पकड़कर खुद ही हिलाते सहलाते.. जैसे लोरी सुनाकर मना रहा था..
दोनों तब चोंक उठे जब नीचे से रमिलाबहन की आवाज सुनी "अरे फाल्गुनी.. बेटा मौसम को बोल, की जल्दी से नीचे आ जाएँ.. पण्डितजी भी आ चुके है.. मुहूरत का समय निकला जा रहा है"
मौसम जबरदस्त उत्तेजित थी और लंड लेने के लिए बेबस थी.. उसकी चूत अपना रस उँड़ेलने के लिए मचल रही थी.. पर अपनी माँ की आवाज सुनते ही उसके सारे मूड पर पानी फिर गया.. लेकिन पीयूष खुद को और मौसम को मझधार में छोड़ना नहीं चाहता था.. उसका दृढ़ता से मानना था की जो पुरुष अपनी हमबिस्तर स्त्री को बीच रास्ते, बिना संतुष्ट किए छोड़ देता है.. वह स्त्री भी उसे, जीवन की मझधार में छोड़कर चली जाएगी.. और जल्द ही खुद के लिए नया रास्ता ढूंढ लेगी..
मौसम ने अपनी चूत चाट रहे पीयूष से कहा "बस जीजू.. टाइम खत्म.. छोड़ो मुझे.. अब तो हमें नीचे जाना ही होगा.. पहले मैं नीचे जाती हूँ.. और आप थोड़ी देर बाद आना.. ताकि किसीको शक न हो.. !!"
लेकिन पीयूष इन आखिरी क्षणों का पूर्ण इस्तेमाल कर लेना चाहता था.. अपनी चूत चटाई की तमाम कला को एक साथ काम पर लगाकर उसने मौसम को लाल-गरम कर दिया..
"ओह्ह जीजू.. ये क्या किया आपने.. !! उफ्फ़.. अब तो मुझसे भी रहा नहीं जाता.. जरा और दबाकर चाटों.. हाय.. ऊई माँ.. !!" मौसम भी चटाई के आखिरी पड़ाव पर थी.. और जाने से पहले झड़ जाना चाहती थी.. तभी.. !!
अचानक फाल्गुनी दरवाजा खोलकर अंदर आ गई.. और खड़ी हुई मौसम के घाघरे में घुसकर चूत चाट रहे पीयूष को देखकर वो जोर जोर से हंसने लगी.. उसे कोई ताज्जुब तो नहीं हुआ था क्यों की अंदर क्या चल रहा होगा, उसका उसे पहले से ही अंदाजा था..
मौसम को भी कोई खास झिझक नहीं हुई.. पर पीयूष बेचारा सकपका गया.. लेकिन मौसम के एक ही वाक्य ने पीयूष के संकोच और शर्म को आश्चर्य में तब्दील कर दिया
"देख लो मम्मी.. एक बार मैंने तुम्हें करते हुए देख लिया था.. आज तुमने मुझे देख लिया.. हिसाब बराबर" हँसते हुए मौसम ने कहा.. फाल्गुनी और मौसम के आपस में सारे पत्ते खुल चुके थे इसलिए दोनों में से किसी को भी एक दूसरे का कोई डर नहीं तहा..
"अरे बाप रे.. जीजू.. आप मेरी बेटी के साथ, ये क्या कर रहे है??" फाल्गुनी ने शरारत करते हुए कहा
पीयूष बेचारे को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था.. की ये मौसम और फाल्गुनी एक दूसरे को आपस में मम्मी-बेटी कहकर क्यों बुला रहे थे.. !! वो कुछ पूछता उससे पहले मौसम ने झुककर पीयूष के लंड को अपने मुख तक ला दिया और बोली "फाल्गुनी, तू हम दोनों का विडिओ बना.. इस यादगार पल को रिकॉर्ड कर हम इसे और भी रोमांचक बना देते है.. और जल्दी कर.. नीचे जाना पड़ेगा" मौसम के इस रूप को देखकर पीयूष के तो होश ही उड़ गए.. मौसम ने पीयूष का लंड चूसना शुरू कर दिया और फाल्गुनी अपने मोबाइल से विडिओ बनाने लगी..
अचानक फाल्गुनी दरवाजा खोलकर अंदर आ गई.. और खड़ी हुई मौसम के घाघरे में घुसकर चूत चाट रहे पीयूष को देखकर वो जोर जोर से हंसने लगी.. उसे कोई ताज्जुब तो नहीं हुआ था क्यों की अंदर क्या चल रहा होगा, उसका उसे पहले से ही अंदाजा था..
मौसम को भी कोई खास झिझक नहीं हुई.. पर पीयूष बेचारा सकपका गया.. लेकिन मौसम के एक ही वाक्य ने पीयूष के संकोच और शर्म को आश्चर्य में तब्दील कर दिया
"देख लो मम्मी.. एक बार मैंने तुम्हें करते हुए देख लिया था.. आज तुमने मुझे देख लिया.. हिसाब बराबर" हँसते हुए मौसम ने कहा.. फाल्गुनी और मौसम के आपस में सारे पत्ते खुल चुके थे इसलिए दोनों में से किसी को भी एक दूसरे का कोई डर नहीं तहा..
"अरे बाप रे.. जीजू.. आप मेरी बेटी के साथ, ये क्या कर रहे है??" फाल्गुनी ने शरारत करते हुए कहा
पीयूष बेचारे को कुछ भी समझ नहीं आ रहा था.. की ये मौसम और फाल्गुनी एक दूसरे को आपस में मम्मी-बेटी कहकर क्यों बुला रहे थे.. !! वो कुछ पूछता उससे पहले मौसम ने झुककर पीयूष के लंड को अपने मुख तक ला दिया और बोली "फाल्गुनी, तू हम दोनों का विडिओ बना.. इस यादगार पल को रिकॉर्ड कर हम इसे और भी रोमांचक बना देते है.. और जल्दी कर.. नीचे जाना पड़ेगा" मौसम के इस रूप को देखकर पीयूष के तो होश ही उड़ गए.. मौसम ने पीयूष का लंड चूसना शुरू कर दिया और फाल्गुनी अपने मोबाइल से विडिओ बनाने लगी..
अब मौसम को लिपस्टिक बिगड़ जाने का डर नहीं था.. फाल्गुनी जो आ चुकी थी.. वो उसका मेकअप ठीक करने में मदद करेगी
थोड़ी देर तक लंड चूसकर मौसम खड़ी हो गई और फाल्गुनी से कहा.. "मम्मी, जीजू को अंदर डालकर चोदने की बड़ी ही तीव्र इच्छा है.. मन तो मेरा भी है.. पर ये कपड़े खराब हो जाने का डर है.. अगर हम चोद ले तो क्या तू मेरा ड्रेस ठीक कर पाएगी? नहीं तो फिर तू ही घोड़ी बन जा, जीजू के लिए"
फाल्गुनी ये सुनकर शर्मा गई "क्या यार मौसम.. कुछ भी बोलती है.. चिंता मत कर.. करवा ले जो मन करें.. पर दो मिनट के अंदर.. नहीं तो नीचे से सब लोग ऊपर आ जाएंगे.. !!!"
मौसम ने पेन्टी घुटनों तक उतार दी.. अपना घाघरा ऊपर कर घोड़ी बनकर.. बेशर्मी से अपनी खुली गांड पीयूष को दिखाते हुए बोली "फाल्गुनी से डरने की कोई जरूरत नहीं है जीजू.. आप डाल दो अंदर.. इतनी देर हो ही गई है तो थोड़ी ओर सही.. मैं तो पहले से ही मना कर रही थी.. पर आपने एक न सुनी.. और मुझे गरम करते ही गए.. मन में इच्छा जागृत करवाते हो और आखिर मेरे ही मुंह से सब बुलवाते हो.. !!"
एक तरफ जीजू की जिद, एक तरफ चूत की खुजली और एक तरफ सगाई का मुहूरत.. दुविधाओं के त्रिवेणी संगम के बीच फंस चुकी थी मौसम
"देख क्या रहे हो जीजू.. डाल दो अंदर.. हो जाने दो थोड़ी देर.. निकल जाने दो मुहूरत का समय.. पर हाँ.. जरा कस के धक्के लगाना.. ऐसा ना हो की मुर्गे की जान भी जाए और खाने वाले को मज़ा भी न आए.."
फाल्गुनी की उपस्थिति की परवाह कीये बगैर पीयूष ने मौसम की दोनों जांघों के संगम पर अपने लोडे को टीका दिया और धक्के पर धक्के लगाने लगा.. उसके प्रत्येक धक्के से मौसम की चूत के साथ.. फाल्गुनी की चूत में भी सुरसुरी हो रही थी.. पीयूष के जोरदार लंड को अंदर बाहर होता देख फाल्गुनी का गला सूख रहा था..
थोड़ी देर तक लंड चूसकर मौसम खड़ी हो गई और फाल्गुनी से कहा.. "मम्मी, जीजू को अंदर डालकर चोदने की बड़ी ही तीव्र इच्छा है.. मन तो मेरा भी है.. पर ये कपड़े खराब हो जाने का डर है.. अगर हम चोद ले तो क्या तू मेरा ड्रेस ठीक कर पाएगी? नहीं तो फिर तू ही घोड़ी बन जा, जीजू के लिए"
फाल्गुनी ये सुनकर शर्मा गई "क्या यार मौसम.. कुछ भी बोलती है.. चिंता मत कर.. करवा ले जो मन करें.. पर दो मिनट के अंदर.. नहीं तो नीचे से सब लोग ऊपर आ जाएंगे.. !!!"
मौसम ने पेन्टी घुटनों तक उतार दी.. अपना घाघरा ऊपर कर घोड़ी बनकर.. बेशर्मी से अपनी खुली गांड पीयूष को दिखाते हुए बोली "फाल्गुनी से डरने की कोई जरूरत नहीं है जीजू.. आप डाल दो अंदर.. इतनी देर हो ही गई है तो थोड़ी ओर सही.. मैं तो पहले से ही मना कर रही थी.. पर आपने एक न सुनी.. और मुझे गरम करते ही गए.. मन में इच्छा जागृत करवाते हो और आखिर मेरे ही मुंह से सब बुलवाते हो.. !!"
एक तरफ जीजू की जिद, एक तरफ चूत की खुजली और एक तरफ सगाई का मुहूरत.. दुविधाओं के त्रिवेणी संगम के बीच फंस चुकी थी मौसम
"देख क्या रहे हो जीजू.. डाल दो अंदर.. हो जाने दो थोड़ी देर.. निकल जाने दो मुहूरत का समय.. पर हाँ.. जरा कस के धक्के लगाना.. ऐसा ना हो की मुर्गे की जान भी जाए और खाने वाले को मज़ा भी न आए.."
फाल्गुनी की उपस्थिति की परवाह कीये बगैर पीयूष ने मौसम की दोनों जांघों के संगम पर अपने लोडे को टीका दिया और धक्के पर धक्के लगाने लगा.. उसके प्रत्येक धक्के से मौसम की चूत के साथ.. फाल्गुनी की चूत में भी सुरसुरी हो रही थी.. पीयूष के जोरदार लंड को अंदर बाहर होता देख फाल्गुनी का गला सूख रहा था..
मदहोश होकर फाल्गुनी भी सुबोधकांत की घनघोर चुदाई को याद करते हुए विडिओ बना रही थी.. उसका ऐसा मन कर रहा था की मौसम को धक्का देकर वो खुद घोड़ी बन जाए और जीजू का लंड अंदर ले ले.. डॉगी स्टाइल सुबोधकांत और फाल्गुनी की सबसे पसंदीदा पोजीशन थी.. अलग अलग आसनों में चुदाई के बाद.. फाल्गुनी और सुबोधकांत का मन तब ही भरता था जब वो लोग डॉगी स्टाइल में चुदाई करते थे.. शुरू शुरू में फाल्गुनी इन सारी बातों में अनाड़ी थी.. उसे बड़ा ही विचित्र लगा था पहली बार इस तरह चुदवाने में.. फिर धीरे धीरे मौसम के पापा ने चुदाई के सारे पाठ सीखा दीये.. और वो सिख गई की हर आसान में कैसे लुत्फ उठाया जा सकता है.. अब वो चुदाई की ऐसी आदि हो चुकी थी की सुबोधकांत को किसी भी चीज के लिए मना न करती..
मौसम के दोनों गोरे चूतड़ों को पकड़कर, बीच की दरार में धनाधन लंड डालकर चोदते पीयूष को देखकर, फाल्गुनी का अनायास ही अपनी चूत पर चला गया.. मोबाइल पर जीजू-साली की मस्त चुदाई को शूट करते करते फाल्गुनी खुद अपनी चूत को खुजाने लगी..
मौसम इतनी उत्तेजित हो गई थी की अपनी गांड को गोल गोल घुमाते हुए पीयूष के लंड का घर्षण अपनी चूत के सभी हिस्सों पर, अधिक से अधिक महसूस कर रही थी.. कामुक घोड़ी की तरह चुदवा रही मौसम को देखकर भला कौन कह सकता था की नीचे उस लड़की की सगाई की तैयारियां चल रही थी.. !!
"आह्ह जीजू.. फक मी हार्ड.. ओहह गॉड.. बहोत मज़ा आ रहा है.. यस.. उफ्फ़.. हाँ वही स्पॉट है.. उसी जगह धक्के मारो.. उफ्फ़ उफ्फ़ उफ्फ़.. !!" मौसम सातवे आसमान में उड़ रही थी.. बढ़िया सी रिधम में जीजू के बेरहम धक्कों से हिल रहे उसके गोरे कूल्हें.. फाल्गुनी ज़ूम इन ज़ूम आउट करके शूट कर रही थी..
लगातार तीस-पैंतीस धक्के लगाने के बाद पीयूष ने अपना लंड मौसम की पुच्ची से बाहर खींच निकाला और फर्श पर अपने लंड के गाढ़े सफेद वीर्य से रंगोली बना दी..
लगातार तीस-पैंतीस धक्के लगाने के बाद पीयूष ने अपना लंड मौसम की पुच्ची से बाहर खींच निकाला और फर्श पर अपने लंड के गाढ़े सफेद वीर्य से रंगोली बना दी..
पिछली रात के संभोग के दौरान.. अपने जीजू के लंड से छूटे फव्वारे को देखकर मौसम पागल हो गई थी.. पर आज वो यह नजारा देख नहीं पाई थी.. क्योंकि पीयूष उसके पीछे था.. आँख बंद कर.. बड़ी मुसीबत से प्राप्त हुए.. अनमोल ऑर्गजम के मजे ले रही थी..
मौसम तो नहीं देख पाई.. पर फाल्गुनी ने मौसम की चूत रस से सराबोर, पीयूष के वीर्य टपकाते लंड को रूबरू देखा.. उतना ही नहीं.. उसने ज़ूम करके लंड के क्लोजअप शॉट्स भी लिए.. शूटिंग में मशरूफ़ फाल्गुनी का दुपट्टा सरक जाने के कारण उसका एक उरोज गाड़ी की हेडलाइट की तरह चमक रहा था.. जीजू के विकराल लंड को आखिरी क्षणों में ठुमकते देखकर फाल्गुनी की जवानी, लंड का स्वाद चखने को बेताब हो गई थी.. फटी आँखों से लंड और चूत के भीषण युद्ध के बाद हांफ रहे सैनिक जैसे पीयूष के लंड को वो देखती ही रही.. पीयूष आँखें बंद कर उस दिव्य स्खलन के आनंद को महसूस कर रहा था..
आधी मिनट के अंतराल के बाद, मौसम को वास्तविकता का ज्ञान हुआ.. वो खड़ी हुई.. अपनी पेन्टी पहनी.. और घाघरा नीचे कर दिया.. उसने खुद ही अपना मेकअप ठीक किया और लिपस्टिक का टच-अप कर लिया.. पीयूष ने मौसम के साइलन्ट पर रखे मोबाइल के स्क्रीन को देखा.. तरुण की उन्नीस मिस-कॉल आ चुके थे.. मन ही मन वो बहोत खुश हुआ..
फाल्गुनी: "बस यार, अब तो हद ही हो गई है.. नीचे चलें?? आप लोगों ने तो मुझे भी गरम कर दिया यार" पीयूष की नज़रों के सामने ही फाल्गुनी अपनी चूत खुजाते हुए बोली "अब मुझे भी किसी को ऊपर लेकर आना पड़ेगा" और फिर पीयूष के सामने देखकर आँख मारी
पीयूष: "अगर ऐसा है, तो फिर मैं ऊपर ही रहता हूँ.. अभी और एकाध चूत को तो ये शांत कर ही देगा.. !!" मौसम की मस्त चूत को चोदकर.. चुदाई के नशे में झूल रहे लंड को दिखाते हुए पीयूष ने कहा
"एक नंबर के बेशर्म है आप जीजू.. अब हटिए.. मुझे मौसम को लेकर नीचे जाना होगा" कृत्रिम क्रोध के साथ फाल्गुनी ने कहा "और हाँ.. आप यहीं रहिए.. मैं मौसम को लेकर नीचे पहुँच जाऊँ उसके पाँच मिनट बाद आप नीचे आना" फिर मौसम की ओर देखकर बोली "चलो बेटा.. अब नीचे चलें?"
पीयूष पूछना चाहता था की वो दोनों आपस में माँ-बेटी का सम्बोधन क्यों कर रही थी.. !! पर अभी कसी भी बात करने का वक्त नहीं था.. वो जा रही मौसम की पीठ को देख रहा था.. मौसम हमेशा के लिए उससे दूर जा रही थी.. वो उसकी छोटी हो रही परछाई से साफ प्रतीत हो रहा था..