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Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

vakharia

Supreme
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सब अपने अपने घर पहुँच गए.. मदन अब कोई नया बिजनेस ढूंढ रहा था.. और वैशाली अपना जीवनसाथी.. !!!

संजय के साथ जो कुछ भी हुआ उसके बाद, इंस्पेक्टर तपन के कहने पर मदन ने शहर के एक बड़े वकील के द्वारा वैशाली के तलाक का केस दाखिल करवा दिया था.. जब तक ये मामला शांति से निपट नहीं जाता तब तक मदन ने वैशाली को इंतज़ार करने की हिदायत दी हुई थी..

कविता के लौट जाने के बाद, वैशाली पीयूष की कंपनी बहोत मिस कर रही थी.. जब कविता नहीं थी तब दोनों ने साथ में बड़े मजे कीये थे.. पर अब कविता की हाज़री में वो पीयूष से दूर ही रहने लगी थी.. पीयूष को भी इस बात का अंदाजा लग चुका था इसलिए वो भी सब के सामने वैशाली से अंतर बनाकर रखता था

मौसम की शादी की तारीख तय हो चुकी थी.. दीपावली के पंद्रह दिन बाद का मुहूरत था.. सुबोधकान्त और रमिलाबहन शादी की तैयारियों में व्यस्त हो गए थे.. कविता भी, जब मौका मिलता, अपनी बहन की शादी के लिए शॉपिंग करने निकल पड़ती.. और लड़कियों/औरतों को शॉपिंग पसंद भी इतना होती है.. भूख प्यास सब भूल जाते है.. अरे, मोहल्ले में कोई चूड़ी बेचने वाला भी आवाज लगाएं तो सब काम छोड़कर उसे मधूमक्खियों की तरह घेर लेती है.. रोज दोपहर को खाने के बाद, कविता वैशाली को लेकर शॉपिंग के लिए निकल जाती थी.. बहन की शादी थी इसलिए कविता का उत्साहित होना लाज़मी भी था..

पिछले हफ्ते जब कविता मायके में थी तब वो घंटों पिंटू के साथ बातें करती थी.. पर घर लौटने के बाद वो सब बंद हो गया था.. बहोत मिस कर रही थी वो पिंटू को.. पीयूष मौसम को मिस कर रहा था.. पति और पत्नी दोनों के दिलों में उदासी छाई हुई थी.. और उसका असर उनके सहजीवन पर भी पड़ रहा था.. रात को बिस्तर पर लेटकर न कविता सेक्स को याद करती और ना पीयूष याद दिलाता.. कविता को पीयूष का लंड पकड़ने का मन भी नहीं हो रहा था.. और पीयूष, मौसम के साथ गुजारें उन हसीन लम्हों को याद करते हुए कविता के बगल में ही सो जाता.. मौसम अब पराई हो गई थी ये सदमा पीयूष बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था.. अंदर ही अंदर वो तरुण के प्रति ईर्ष्या से जल रहा था..

एक दिन शीला और मदन घर के बाहर बरामदे में झूले पर बैठे हुए थे.. वैशाली अंदर मोबाइल पर चैट कर रही थी.. पिंटू के साथ.. पिंटू अब जैसे उसके जीवन का हिस्सा बन चुका था.. ऑफिस में तो खैर वो दोनों ज्यादा बातें नहीं करते थे.. पर घर पहुँचने के बाद दोनों मोबाइल पर भरपूर चैट करते थे.. चैट पर भी पिंटू ने कभी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया था.. और उसकी इस बात ने वैशाली को बेहद आकर्षित किया था.. अक्सर कविता उसके सामने पिंटू को बहोत तारीफ करती रहती थी.. और वैशाली ने खुद भी यह अनुभव किया था..

वैशाली ने शीला को भी यह बता दिया था की पिंटू के साथ उसकी अच्छी पटती थी.. शीला और मदन को इस बात से कोई दिक्कत नहीं थी.. उल्टा शीला ने उसे हिदायत देते हुए कहा था की उसका जब भी पिंटू से मिलने का मन करें तब वो दोनों घर पर ही मिलें.. समाज की नज़रों में वैशाली अब भी संजय की पत्नी थी.. वो लोग बाहर कहीं मिलते तो लोग हजार बातें बनाते..

शीला और मदन आराम से झूले पर झूल रहे थे

शीला: "मदन, घर पर बैठे बैठे बोर हो गई मैं तो.. कहीं जाने का मन कर रहा है यार.. सिर्फ हम दोनों.. !!"

मदन समझ गया की शीला का भोसड़ा चुदने के लिए फड़फड़ा रहा था.. इसलिए बेचैन हो रही थी शीला.. लंड लेने के लिए तड़प रही थी.. कुछ करना पड़ेगा.. !! शीला चोदते वक्त इतनी आवाज़ें करती थी की वैशाली दूसरे कमरे में भी आराम से सुन पाती.. इसलिए काफी दिनों से चुदाई का कोई कार्यक्रम नहीं हुआ था

मदन: "सही कहा तूने.. राजेश से बात करते है.. साथ में दो तीन दिनों के लिए कहीं घूम आते है.. फ्रेश हो जाएंगे"

शीला: "पर घूमने जाएंगे तो वैशाली को भी साथ ले जाना पड़ेगा ना.. उसे छोड़कर नहीं जा सकते"

मदन: "फिर तो वही बात हो गई.. !! वैशाली साथ मे होंगी तो फिर क्या फायदा.. !!"

शीला: "हम्म कुछ करना पड़ेगा.. कोई ऐसी जगह ढूँढ़नी पड़ेगी जहां हम दोनों खुलकर मजे कर सकें"

मदन: "अरे शीला.. वो दूधवाले की बीवी हमारी कुछ मदद कर सकती है क्या? उसका घर मिल सकता है क्या?"

शीला: "हम्म.. बात तो तेरी सही है.. पर उससे कैसे कहूँ?? कुछ सेटिंग तो करना पड़ेगा यार.. मैं कुछ करती हूँ.. उसे एक बार घर मिलने बुलाती हूँ.. नहीं तो मैं ही उसके घर मिलने चली जाती हूँ" शीला और मदन दोनों की आँखों मे चमक आ गई.. रूखी के दूध भरे बबलों के बारे मे सोचते ही मदन की आँखों मे सांप लोटने लगे..

शीला: "मुझे पता ही की तुझे वो दूधवाले की बीवी क्यों याद आई.. पर उसके इतने बड़े बड़े है की तेरे हाथ मे भी नहीं आएंगे" मदन की जांघ पर चिमटी काटते हुए शीला ने शरारती अंदाज मे कहा

मदन: "अरे यार, ऐसा नहीं है.. तू किसी और जगह का जुगाड़ कर दे.. मुझे प्रॉब्लेम नहीं है" अपनी चोरी पकड़े जाने पर मदन ने सफाई दी "अरे हाँ शीला.. राजेश के घर पर हो सकता है क्या?"

शीला: "नहीं यार.. अभी अभी उनसे मित्रता हुई है.. ऐसी बातों के लिए उनसे घर मांगने मे झिझक होगी"

मदन: "तो फिर उस दूधवाले के घर के अलावा और कोई चारा नहीं है"

शीला: "देखती हूँ, क्या हो सकता है"

उस रात को, हवस हद से ज्यादा बढ़ जाने पर.. शीला और मदन ने अपनी आवाजों को रोककर चुदाई की.. बगल के कमरे मे वैशाली सो रही थी इसलिए दोनों को चुपचाप चोदना पड़ा.. बिलकुल मज़ा नहीं आया..!!

सुबह साढ़े पाँच बजे, रसिक की साइकिल की घंटी सुनकर, शीला की आँख खुल गई.. शीला उठकर बेडरूम से बाहर आई.. और बेडरूम का दरवाजा बंद कर दिया.. वो बाहर आई और मुख्य दरवाजा खोला.. रसिक सामने ही खड़ा था

रसिक: "पतीला नहीं लाई भाभी?? दूध कैसे लोगी?"

शीला: "रोज सिर्फ दूध ही देगा?? या और कुछ भी है तेरे पास देने के लिए??" शीला ने अपना गाउन ऊपर किया.. अंदर न ब्रा पहनी थी और ना ही पेन्टी.. अपना भोसड़ा दिखाते हुए वो बोली "इसमें दूध लेना है मुझे.. बोल, कब देगा?"

शीला के मदमस्त नंगे बबलों को दोनों हथेलियों से दबाते हुए रसिक ने कहा "मैं तो मार रहा हूँ देने के लिए भाभी.. आप कहो तो अभी घुसा दूँ"

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शीला: "मेरी बात ध्यान से सुन.. आज अभी साढ़े दस बजे मैं तेरे घर आऊँगी.. रूखी को कहीं भेज देना एक घंटे के लिए.. किसी को पता नहीं लगना चाहिए.. तेरे माँ बाप तो आगे के कमरे मे रहेंगे.. मैं पीछे के रास्ते अंदर आ जाऊँगी.. तेरा घर तो काफी बड़ा है.. पीछे के कमरे मे करेंगे"

रसिक: "ठीक है भाभी" जाते जाते उसने शीला की निप्पलों को बारी बारी मुँह मे भरकर चूस लिया.. और शीला के हाथ मे अपना लोडा भी पकड़ा दिया.. खूँटे जैसे लंड को पकड़कर शीला थरथराने लगी.. रसिक चला गया

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रोज पीयूष के साथ ऑफिस जाती वैशाली... आज पीयूष के चले जाने के बाद अकेले ही ऑफिस जाने निकली.. रास्ते मे उसने पिंटू को फोन किया.. ऑफिस मे तो सब की मौजूदगी के कारण खुलकर बात नहीं हो पाती थी.. काफी दिनों से कविता का भी फोन नहीं आया था इसलिए वैशाली से बातें करना पिंटू को बहोत अच्छा लगता था.. दोनों यहाँ वहाँ की बातें करते थे.. ऑफिस पहुँचने तक वैशाली पिंटू से बात करती रहती.. यह रोज का नित्याक्रम बन चुका था..

वैशाली के जाने के बाद साढ़े नौ बजे, मदन को बताकर, शीला रसिक के घर जाने के लिए तैयार हो गई.. मदन सोच रहा था की शीला घर का सेटिंग करने जा रही है.. हालांकि शीला तो खुद का सेटिंग करने निकली थी

मदन: "हाँ जाकर आ.. तू कहें तो मैं भी साथ चलूँ?"

शीला: "पागल है क्या?? तेरी मौजूदगी मे रूखी से ऐसी बात भला कैसे पूछूँ?"

मदन: "ठीक है.. तू अकेली ही चली जा.. बेस्ट ऑफ लक"

घर से बाहर निकलते निकलते शीला को हंसी आ रही थी.. अब मदन को क्या कहें?? बाहर चुदवाने जा रही बीवी को ये बेवकूफ "बेस्ट ऑफ लक" कह रहा था..

वो फटाफट चलते चलते रसिक के घर की ओर जाने लगी.. रास्ते मे उसने एक कॉल किया.. कॉल खतम करके वो मुसकुराते हुए चल पड़ी.. रसिक के घर पहुंचकर.. वो पीछे के रास्ते चुपके से चली गई.. और दरवाजा खटखटाने लगी.. रसिक ने दरवाजा खोला और शीला को हाथ से पकड़कर अंदर खींच लिया.. और दरवाजा बंद कर उसे दबोच लिया

रसिक की बाहों मे शीला का बदन हवस से तपने लगा... जानबूझकर आज वो बिना ब्रा पहने आई थी.. रसिक के हाथ और उसके बबलों के बीच कुछ नहीं आना चाहिए..

"सब सलामत है ना.. !! कोई आ तो नहीं जाएगा?" शीला ने कहा

"चिंता मत कीजिए.. पीछे के कमरे मे कोई नहीं आता" रसिक ने शीला के बबलों को रौंदना शुरू कर दिया

रसिक का हाथ स्तनों पर फिरते ही शीला की जवानी उछलने लगी..

"यार तू ऊपर सहला रहा है और नीचे से मेरा पानी छूटना शुरू हो गया.. आह रसिक" पाजामे के ऊपर से रसिक का लंड पकड़ते हुए शीला ने कहा "ये तो तैयार ही खड़ा है"


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"अरे भाभी, सुबह से.. जब से आपने घर आने का कहा.. तब से ये तैयार है.. !! पर आप एक मिनट रुकिए भाभी" शीला का हाथ अपने लंड से हटाते हुए रसिक खड़ा हो गया

"अब क्या है यार? सारी तैयारी पहले से ही कर लेनी चाहिए तुझे.. इसलिए तो पहले से बताया था.. " चूत की खुजली से परेशान शीला ने कहा

रसिक छोटी से खिड़की को बंद कर रहा था.. पीछे से उसकी विशाल पीठ को देखकर शीला सोच रही थी की.. इसके पूर्वज जरूर असुर योनि से होंगे.. तभी ये इतना हट्टा-कट्टा राक्षस जैसा है.. साला जब ऊपर चढ़ता है तब पूरा जिस्म छील जाता है..

रसिक ने खटिया के सामने एक टेबल लगा दिया और उसपर नाश्ते की डिश सजा दी.. अगर कोई आ भी जाएँ तो दिखाने के लिए..

"अब सब ठीक है.. आप जैसे मर्जी करवा लीजिए.. कोई दिक्कत नहीं होगी"

रसिक की लंगोट मे हाथ डालकर उसके मूसल जैसे लंड को पकड़ते ही शीला के बदन मे सुरसुरी होने लगी.. मदन ने एक बार एक ब्लू फिल्म दिखाई थी जिसमे लड़कियां घोड़े के लंड से खेल रही थी.. घोड़े के चार पैरों के बीच बैठकर.. लड़किया उस विकराल तीन फुट लंबे लंड से विकृति पूर्वक खेल रही थी.. रसिक का लंड पकड़ते ही शीला को वो सीन की याद आ गई.. आँखें बंद कर वो रसिक के लंड को सहलाती रही..



"आह्ह भाभी, जल्दी कीजिए.. बाहर भी निकालिए इसे.. कब तक खेलती रहोगी" रसिक ने बेचैन होकर कहा

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शीला ने लंगोट से रसिक के लंड को बाहर निकाला.. आह्ह.. देखते ही शीला सिहर उठी.. विकराल अजगर जैसा रसिक का दमदार लंड.. टमाटर जितना बड़ा सुपाड़ा.. और लंड की फुली हुई नसें.. शीला की कलाई जितना मोटा था रसिक का लंड.. !! शीला की चूत ने रस और गंध छोड़ना शुरू कर दिया था.. जबरदस्त उत्तेजित हो गई थी वो.. उसके स्तन एकदम सख्त हो गए थे.. निप्पलें तनकर खड़ी हो गई थी..

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दोनों हाथों से लंड को जड़ से पकड़कर.. शीला ने अपने मुंह मे डाल दीया... आँखें बंद कर उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उस ब्लू फिल्म की हीरोइन की तरह वो भी घोड़े का लंड चूस रही है.. वो तब तक चूसती रही जब तक की उसका मुंह दर्द नहीं करने लगा.. रसिक के आँड़ भी अंडे की साइज़ के थे.. शीला उसके लंड और आँड पर टूट पड़ी थी.. कभी लंड को चूमती.. तो कभी आँड़ों को मुंह मे भरकर चूसती.. वैसे तो शीला को मदन का लंड चूसने मे भी मज़ा आता था.. पर रसिक के मूसल की बात ही निराली थी..

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शीला की चूत अब बगावत पर उतर आई थी.. इतनी तेज खुजली हो रही थी इस लंड को देखकर.. शीला ने ब्लाउस के हुक खोल दीये.. और अपने नारियल जैसे स्तनों को मुक्त कर दिया.. अत्यंत उत्तेजित होकर उसने अपने दोनों चुचे रसिक के लंड पर रगड़ दीये.. शीला के स्तनों से रगड़ खाकर रसिक का लंड लोहे के गरम सरिये जैसा हो गया था.. शीला ने अपने दोनों विराट स्तनों के बीच रसिक का लंड दबा दिया.. शीला की छातियों का नरम नरम स्पर्श मिलते ही रसिक का लोडा भी फुदकने लगा.. शीला के नखरे रसिक को पागल बना रहे थे..

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वो खड़े खड़े.. शीला के दूध जैसे गोरे बबलों को देख रहा था.. दीवार पर अपना सर टीकाकर बैठी शीला का घाघरा पूर्णतः ऊपर की तरफ उठ चुका था.. और शीला जितना हो सकें उतना पैर चौड़े कर.. अपनी भोस खुजाते हुए रसिक के लंड को प्यार करती रही.. उत्तेजित होकर जब रसिक बेकाबू हो जाता तब वो शीला के मुंह को ही चूत समझकर अपने लंड को बड़ी ही ताकत से अंदर धकेल देता.. पीछे दीवार और आगे लंड का आक्रामक हमला.. शीला की हवस संतुष्ट कर सकें उतना लंड उसके मुंह के अंदर दाखिल हो रहा था और रसिक के बड़े बड़े अंडकोश, शीला की ठुड्डी से टकरा रहे थे.. रसिक की धीरज अब जवाब दे रही थी..

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पागलों की तरह रसिक का लंड चूस रही शीला को रसिक ने झुककर कहा "बस भाभी.. आप ऐसे ही चूसती रही तो मेरा निकल जाएगा.. और अंदर डालने का मौका ही नहीं मिलेगा.. "

जैसे रसिक की बात सुनी ही न हो वैसे शीला लंड चूसती ही रही.. काफी देर तक चूसने के बाद जब उसका मन तृप्त हुआ तभी उसने मुंह से लंड निकाला.. और रसिक की जांघों के बीच से उठ खड़ी हुई..

शीला के बिखरे हुए बाल.. हवस टपकाती लाल लाल आँखें.. गाल पर चिपका हुआ रसिक का थोड़ा सा वीर्य..!! जबरदस्त लग रही थी शीला..!! रसिक अब शीला के मदमस्त उरोजों पर टूट पड़ा.. और उसके दोनों स्तनों को बेरहमी से मसल दिया.. एक के बाद एक दोनों स्तनों की निप्पलों को चूसते हुए रसिक ने शीला पर धाबा मोल दिया.. एक इंच लंबी निप्पल को काटते ही शीला की सिसकियाँ निकलने लगी.. रसिक शीला को जितना दर्द पहुंचाता उतना ही शीला और हिंसक हो रही थी.. रसिक के लंड को मुठ्ठी में पकड़कर शीला निचोड़ने लगी.. शीला के मांसल गोलों को रसिक जितनी बेरहमी से दबाता.. शीला की उत्तेजना घटने के बजाए और भड़क जाती..

एक दूसरे की बाहों में बाहें डालकर.. जितना हो सकता था उतनी आक्रामकता से एक दूसरे से शरीर का घर्षण कर रहें थे दोनों.. शीला ने अपना घाघरा उठाकर रसिक के लंड को अपनी चिपचिपी बुर पर रगड़ना शुरू कर दिया.. चूत की गर्मी का एहसास अपने लंड के सुपाड़े पर होते ही रसिक का लोडा शीला की मुठ्ठी मे ठुमकने लगा..

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शीला: "ओह्ह रसिक.. अब और नहीं रहा जाता.. जल्दी से मुझे खटिया पर पटककर चोद दें.. जरा भी रहम मत करना.. मर रही हूँ तेरे लंड से चुदने के लिए!! आज तो फाड़ ही डाल मेरी गुफा.. जल्दी जल्दी कर.. आह्ह.. !!"

रसिक: "हाँ भाभी... आपका बदन देखकर मेरा लोडा अब इतना तन चुका है की अब इसे बिना चोदे चैन नहीं मिलने वाला.. पर मैं दरवाजे की कुंडी ठीक से चेक कर लूँ.. कहीं रूखी बेवक्त न टपक पड़े"

रसिक दरवाजे की कुंडी चेक करने गया पर बेचारे नादान रसिक को कहाँ पता था की...

शीला ने रूखी को अपने घर भेजा था.. मदन के पास..!!! ताकि मदन उसके दूध भरे बबलों का लुत्फ उठा सकें.. और जब तक शीला का मिसकॉल नहीं जाता तब तक वो वापिस लौटने वाली नहीं थी.. वैसे शीला को मदन के साथ सेक्स करने मे उतनी दिक्कत नहीं थी.. रात को वैशाली की मौजूदगी के कारण कंट्रोल रखना पड़ता था.. पर दिन भर तो वैशाली ऑफिस रहती थी.. उस समय दोनों चाहें उतना चोद सकते थे.. लेकिन शीला चाहती ही थी की इसी बहाने रसिक के मूसल से ठुकवा सकें.. और मदन भी रूखी के दूध भरे स्तनों को देखकर होश खो बैठा था.. मदन की हवस को ही सीढ़ी बनाते हुए शीला रसिक के लंड तक पहुँच गई थी.. मदन उसी विश्वास में था की इतनी सुंदर, मॉडर्न और सम्पूर्ण संतुष्ट शीला, किसी मामूली से दूधवाले से थोड़े ही चुदवाएगी.. !! पर ऐसा गलत आत्मविश्वास कभी नहीं रखना चाहिए.. स्त्री कभी भी, कुछ भी कर सकती है

मदन बेचारे को कहाँ पता था की जब वो विदेश में मेरी के बबले चूस रहा था तब शीला रसिक के साथ रंगरेलियाँ मना रही थी.. !!

रसिक के सामने ही अपनी चूत खुजाते हुए शीला खटिया पर बैठ गई और अपने सारे वस्त्र उतार दीये.. कपड़े उसने संभालकर खटिया के बगल में इस तरह रखें की जरूरत पड़ने पर वो तुरंत उन्हें पहन सकें.. शीला के पीछे पीछे रसिक आया.. सामने से चलकर आ रहें रसिक की दोनों जांघों के बीच झूल रहें विकराल लोडे को देखकर.. किसी भी स्त्री की नियत बिगड़ सकती थी.. ऐसा मोटा और तगड़ा था उसका लंड.. शीला को नंगी बैठें देख.. रसिक उत्तेजित सांड की तरह बेकाबू हो गया.. और शीला के सामने अपनी बनियान उतार दी.. चौड़े कंधे.. काले घुँघराले बालों से भरी हुई छाती.. देहाती श्याम रंग.. अलमस्त काया.. और साढ़े छह फिट की ऊंचाई.. बड़ी बड़ी मूछें.. कान में चांदी की बाली.. कम से कम 90 किलो वज़न था रसिक का.. !!

शीला: "बाप रे, रसिक.. !! कितना बड़ा है ये तेरा.. !! किसी जवान लड़की के छेद में अगर तू ये तेरा लंड डालेगा तो उस बेचारी की वहीं जान निकल जाएगी.. "

रसिक को अपनी ओर आते देख.. शीला खटिया पर टांगें फैलाकर लेट गई.. उसने खुद ही अपने चूतड़ों के नीचे तकिया सटाकर रख दिया.. आज वो हफ्तों की भूख शांत करने आई थी..!!

धीरे धीरे रसिक शीला के करीब आया.. और खटिया के कोने पर बैठ गया.. शीला की मांसल गदराई जांघों पर हाथ फेरते हुए उसने कहा "कितनी चिकनी है आपकी जांघें, भाभी। इसपर तो मैं अपना लंड रगड़कर ही पानी गिरा सकता हूँ.. " कहते हुए शीला की भोस तक अपना हाथ ले गया.. शीला के पैर तो पहले से ही चौड़े थे.. इसलिए उसके भोसड़े तक पहुँचने में रसिक को जरा भी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा

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खुरदरे हाथों का स्पर्श शीला को और उत्तेजित कर गया.. वो नीचे से अपने चूतड़ उठाकर गोल गोल घुमाने लगी.. "सहलाना बंद कर रसिक.. अंदर चीटीयां काट रही है मुझे.. डाल दे तेरा लंड अंदर.. आह्ह मर गई.. !!"

शीला रूखी के बारे में सोचने लगी.. कितनी किस्मत वाली है वोह.. रोज ऐसे तगड़े लंड से चुदना नसीब हो रहा था उसे.. फिर भी कमीनी जीवा के लंड के पीछे पागल थी.. मायके और ससुराल दोनों में उसके पास उत्कृष्ट कक्षा के तगड़े लंड उपलब्ध थे..

रसिक ने शीला की दोनों जांघों के बीच पोजीशन ले ली.. जिस तरह लड़ाकू विमान टेक-ऑफ के लिए तैयार होते है, बिल्कुल वैसे ही.. रसिक का लंड, शीला की भोसड़े की गंध सूंघकर हिलोरे लेने लगा था..


रसिक ने दोनों हाथों को शीला के घुटनों पर रख दिया.. और दोनों पैरों को अपने कंधे पर ले लिया.. भोसड़े पर लंड टेककर अंदर डालने की कोशिश की.. पर उस तरह लंड अंदर घुस नहीं पा रहा था.. आखिर शीला ने अपने एक हाथ से स्तन मसलते हुए दूसरे हाथ से रसिक के लंड को हाथ में लिया और अपने गरम भांप छोड़ रहे सुराख पर रख दिया.. हल्के से गांड उचकते ही रसिक का सुपाड़ा अंदर घुस गया.. "अब मार धक्के.. जोर से.. फाड़ दे इसे.. आह्ह"

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अब रसिक भी कहाँ पीछे हटने वाला था.. !! उसने दबाकर एक जोरदार धक्का लगाया.. और शीला के भोसड़े को चीरते हुए उसका लंड बच्चेदानी के मुख पर जाकर टकराया..

"ऊईईई माँ... मर गई.. ओह्ह रसिक.. अपना लोडा बाहर निकाल और फिर से इसी तरह एक और धक्का लगा.. आह्ह मज़ा आ गया.. जरा जोर से.. !!" शीला की उत्तेजना बेकाबू हो रही थी.. "कौन जाने क्या खाकर तुझे तेरी माँ ने पैदा किया था.. कितना खूंखार लंड है रे तेरा... अब चोद डाल.. अपनी माँ की चूत समझ कर चोद दे मुझे.. !!"

रसिक ने शीला के पैरों को छोड़ दिया.. और शीला ने उसके कंधों पर दोनों पैरों से कुंडली मार दी.. रसिक ने शीला के दोनों बबलों को अपने हाथों से दबाते हुए.. अपनी अलमस्त काया का पूरा 90 किलो वजन एक साथ ही शीला के ऊपर थोप दिया.. नौ इंच का लंड और नब्बे किलो का वज़न.. बड़े आराम से झेल रही थी शीला.. !!

रसिक के वजनदार धक्कों को शीला ने बड़ी ही आसानी से झेल लिया.. पर खटिया के पैर इसे बर्दाश्त न कर पाएं.. कड़ाके की आवाज के साथ खटिया टूट गई.. "अरे अरे अरे... !!" कहते हुए रसिक शीला को संभालने गया.. पर आखिर न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियम की जीत हुई.. काबिल शीला ने इस स्थिति में भी रसिक का लंड बाहर निकलने नहीं दिया.. उसने अपने भोसड़े की मांसपेशियों के बीच रसिक के लोडे को ऐसा दबोच रखा था की उसके बाहर निकलने की कोई गुंजाइश नहीं थी..

टूटी हुई खटिया से उठने की कोशिश कर रहें रसिक को शीला ने अपनी बाहों में भरते हुए.. उसके पसीने से तर कंधों पर काटते हुए कहा "उठ मत.. चालू ही रख.. इसी स्थिति में धक्के लगाना शुरू कर दे.. मज़ा आ रहा है यार.. "

रसिक ने फिर आव देखा न ताव.. धनाधन धक्के लगाना शुरू कर दिया.. उसके प्रत्येक प्रहार से शीला की भूख और खुजली कुछ कुछ संतुष्ट हो रही थी.. रसिक के कूल्हों को अपने नाखूनों से कुरेदते हुए शीला उसे अपने जिस्म से और सख्ती से दबा रही थी.. रसिक बिना रुकें, शीला को पूरे जोश से चोद रहा था और शीला नीचे तृप्ति के महासागर में गोते लगा रही थी.. शीला भी पसीने से तरबतर हो गई थी जीवन के इस सर्वोच्च आनंद को महसूस करते हुए.. रसिक के पसीने की गंध शीला की हवस को ओर भड़का रही थी..


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टूटी हुई खटिया में चोदना असुविधाजनक तो था ही.. पर जब इच्छाशक्ति प्रबल हो तब कोई भी समस्या ज्यादा देर तक टिक नहीं पाती..

"आहहह रसिक.. लगा जोर से शॉट.. मार डाल मुझे.. ओह्ह आह्ह.. शाबाश.. और जोर से.. ऊईई माँ.. आह्ह अहह.. स्पीड बढ़ा.. मैं झड़ने वाली हूँ.. आ.. आ.. आ.. आ.. आ.... !!" शीला के स्खलन की अंतिम क्षणों में रसिक भी थककर चूर हो गया.. उसके विकराल लंड ने वीर्य की गरम गरम पिचकारी जब बुर के अंदर तक छोड़ी.. तब शीला ने अपने नाखून रसिक की पीठ पर गाड़ दीये.. रसिक की पीठ पर ऐसे निशान बन गए थे जैसे किसी खूंखार शेरनी ने अपना पंजा मार दिया हो.. !!

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शीला के बबले रसिक की छाती के बोझ तले दबकर चपटे हो गए थे.. बबलों की चर्बी का अतिरिक्त हिस्सा.. दोनों बगलों से बाहर झलक रहा था.. टूटी हुई खटिया में.. पैर फैलाकर लेटी शीला तभी शांत हुई जब उसका भोसड़ा पूर्णतः तृप्त हो गया.. रसिक को अपनी बाहों में भींचकर शीला तेजी से हांफने लगी.. बिखरे हुए बाल.. आँखों में तृप्ति के भाव के साथ शीला पड़ी रही.. और उसके ऊपर रसिक ऐसे गिरा हुआ था जैसे एनकाउंटर में मारे गए किसी गुंडे की लावारिस लाश हो..

थोड़ी देर तक दोनों उसी स्थिति में पड़े रहे.. शीला के तकियों जैसे स्तनों पर से उठने का भला कीसे मन होगा.. !! लेकिन रसिक उस स्थिति में भी समय को लेकर चौकन्ना था..

"अब आप मुझे छोड़िए तो मैं खड़ा हो सकूँ.. वैसे मज़ा आ गया आज तो भाभी.. ये रूखी पता नहीं अब तक क्यों नहीं लौटी?? अब तक तो उसे आ जाना चाहिए था.. !! वैसे देखने जाएँ तो अच्छा ही हुआ की वो अब तक नहीं लौटी.. वरना हमारे रंग में भंग पड़ता.. !!"

शीला: "हाँ हाँ उठ जा.. और अपने लोडे को बाहर निकाल.. अंदर एकदम फिट हो गया है.. कुत्तों की तरह.. तू भी कपड़े पहन ले और मैं भी तैयार हो जाती.. फिर कोई आ जाएँ तो भी प्रॉब्लेम नहीं होगा.. "

दोनों ने उठकर कपड़े पहने

रसिक: "अब इस टूटी हुई खटिया का क्या करूँ? घर में ये एक ही खटिया है.. रूखी तो ये देखकर ही मेरी जान निकाल देगी.. शाम तक इसे ठीक कराना ही होगा.. बेकार में खर्चा हो गया मेरा.. !!"

शीला ने तुरंत अपने पर्स से सौ सौ की तीन नोट निकालकर रसिक को थमा दी.. थोड़े से संकोच के साथ, रसिक ने पैसे ले लिए..

रसिक: "शुक्रिया भाभी.. वैसे आज आपके साथ जो मज़ा आया.. ऐसा मज़ा मुझे रूखी के साथ कभी नहीं आता है.. समझ में नहीं आ रहा की रूखी कहाँ मर गई?? कमीनी किसी ओर के साथ तो खटिया नहीं तोड़ रही होगी??"

शीला खिलखिलाकर हंस पड़ी "सब तेरे जैसे थोड़े ही होते है.. चल अब मैं चलती हूँ.. ज्यादा देर बैठूँगी तो फिर से मन हो जाएगा"

रसिक: "अरे भाभी, थोड़ी देर बैठिए ना.. जी करता है की पूरा दिन आपके सामने बैठकर देखता ही रहूँ.. कितनी सुंदर हो आप"

शीला: "ज्यादा रोमेन्टीक मत बन.. ऐसा तो क्या देख लिया तूने मेरे अंदर?"

रसिक: "एक बात कहूँ.. ?? जब हम कर रहे थे.. तब आपने कहा था की अगर मैं अपना ये लंड किसी जवान खूबसूरत लड़की के अंदर घुसा दूँ तो वो मर जाएगी.. उसी से याद आया.. मेरा बहोत मन कर रहा है.. किसी फेशनेबल जवान लड़की को चोदने का.. आप मेरी कुछ मदद करो ना.. !!"

शीला: "साले, मुझे क्या दलाल समझ रखा है तूने?? और तेरा रूप-रंग तो देख.. !! तुझे नंगा देखकर लड़कियां वहीं बेहोश हो जाएगी.. !!"

रसिक: "क्या भाभी आप भी.. !!!"

शीला: "तेरे लिए तो रूखी की गुफा ही ठीक है.. कागज की कश्ती जैसी नाजुक चूतें, तेरा ये मूसल बर्दाश्त ही नहीं कर पाएगी"

शीला के बबलों को दबाते हुए रसिक ने फिर से विनती की.. "कुछ कीजिए ना भाभी, प्लीज"

शीला: "अरे यार.. तू तो मेरे गले ही पड़ गया.. मैं कहाँ से लाऊँ तेरे लिए जवान फेशनेबल लड़की?? और मिल भी जाएँ तो मैं क्या कहूँ उसे?? की जा इस दूधवाले से चुद जा.. !! नहीं भाई नहीं.. मुझसे ये नहीं होगा"

रसिक: "आप को कहीं ढूँढने नहीं जाना है भाभी... आपको तो सिर्फ मुझे मदद करनी है"

शीला: "अच्छा... तूने ढूंढ भी ली है.. !! बता.. कौन है वो अभागी लड़की??"

कमर पर हाथ रखकर जबरदस्त स्टाइल में खड़ी थी शीला.. जिसे देखकर अच्छे से अच्छे मर्दों को छक्के छूट जाएँ..

रसिक: "भाभी.. अगर आप मुझे सहयोग दें तो बगल के चिमन काका के घर ही मेरा काम हो सकता है"

शीला: "मतलब?? तू कविता की बात कर रहा है??" चोंक उठी वो..

कविता से शीला बराबर परिचित थी.. उतना ही नहीं.. वो रसिक और कविता दोनों के शारीरिक भूगोल से भी वाकिफ थी.. इन दोनों के उम्र से लेकर लंड-चूत के नाप तक.. किसी भी चीज में कोई समानता नहीं थी.. ये तो ऐसा हाल होता जैसे किसी कुत्तिया पर गधा चढ़ने की बात कर रहा हो.. शीला की आँखों के सामने.. फटी हुई चूत के साथ.. लहू-लुहान लेटी हुई बेहोश कविता का द्रश्य आ गया.. बाहर खड़ी हुई एम्बुलेंस और पुलिस की गाड़ी भी दिखाई देने लगी.. शीला ने अगर थोड़ी ओर कल्पना की होती तो उसे रसिक की गिरफ़्तारी समेत और कई द्रश्य भी नजर आ जाते

कांप उठी शीला.. क्योंकि वो अच्छे से जानती थी.. कविता की तितली जैसी शोख चंचल काया.. रसिक नाम का सांड.. एक ही पल में रौंद देगा.. रसिक की बात सुनकर.. शीला का दिमाग.. कंप्यूटर से भी तेज चलने लगा.. वो सोचने लगी.. जब मैं कलकत्ता गई थी तब तो कहीं रसिक ने कविता के ऊपर नजर नहीं डाली होगी.. !! अनुमौसी भी रसिक के लंड की दीवानी है.. कहीं अपना भोसड़ा मरवाने के चक्कर में.. मौसी ने कविता का सौदा तो नहीं कर दिया रसिक के साथ.. !! नहीं नहीं.. ऐसा तो नहीं हुआ होगा.. वरना रसिक मुझे ये सब क्यों बताता.. !! सीधा मौसी के साथ ही कविता का सेटिंग कर लेता..

"क्या सोच रही हो भाभी? मेरी बात का बुरा लगा क्या आपको??" चुपचाप बैठकर सोच रही शीला को देखकर रसिक ने पूछा

शीला: "ऐसा कुछ नहीं है रसिक.. कविता का सेटिंग तो मैं नहीं करवा सकती.. पर अगर कोई नए जमाने की मॉडर्न लड़की का कॉन्टेक्ट होगा तो तुझसे मिलवा दूँगी जरूर.. अभी तो ऐसा कोई मेरे ध्यान में नहीं है.. शहर की लड़कियों को मॉडर्न हेंडसम रोमियो टाइप लड़के पसंद होते है.. उन्हें देसी नारियल के पानी से ज्यादा कोक और पेप्सी पसंद होती है.. शुद्ध घी का हलवा खाने से उनका फिगर खराब हो जाता है पर पीत्ज़ा, बर्गर इत्यादि खाने में उन्हें कोई हर्ज नहीं होता.. सब औरतें या लड़कियां मेरे जैसी नहीं होती.. की जिन्हें असली मर्द की परख हो.. अगर तू भी क्लीनशेव होकर मॉडर्न कपड़े पहन ले तो वो लड़कियां तेरे पीछे भागेगी.. हट्टा-कट्टा तो तू है ही.. आजकल दंभ और दिखावे का ज़माना है.. तेरे पास फूटी कौड़ी भी न हो तो चलेगा पर तुझे दिखावा ऐसा करना होगा की जैसे तू करोड़पति हो.. आज कल तो जहर भी अच्छे पेकिंग में डालकर बेच सकते है.. केसर युक्त गुटखा की तरह.. !!"

रसिक: "अरे भाभी.. मैं ठहरा दूधवाला.. अब सूट-बूट पहनकर दूध बेचने निकलूँगा तो कौन खरीदेगा?? ये तो बस एक मेरी ख्वाहिश थी जो मैंने आप को बताई.. वरना मैं कौन सा यहाँ मरा जा रहा हूँ.. और आप तो हो ही मेरे पास.. आप भी मॉडर्न ही हो.. पर कविता का गन्ने जैसा पतला शरीर देखता हूँ तो मन में खयाल आता है की ऐसी लड़की को चोदने में कितना मज़ा आएगा.. !! लंड घुसाने पर कैसे छटपटाएगी.. !!!"

शीला: "मैं समझ सकती हूँ तेरी बात रसिक.. तेरे लोडे में इतनी ताकत है की कोई भी तेरा लेकर छटपटाएगी..!! पर जरा कविता की चूत के बारे में तो सोच.. तू अंदर डालेगा तो बेचारी की फट के फ्लावर बन जाएगी.. मुश्किल से पच्चीस की है कविता.. तेरे जैसा लंड उसने सपने भी देखा नहीं होगा.. उसकी उम्र या अनुभव अधिक होने दे.. वो खुद-ब-खुद चलकर तेरे पास आएगी.. उसके साथ अच्छे संबंध रख.. अभी तो नहीं पर भविष्य में जरूर कुछ होगा.. " आश्वासन देते हुए शीला ने कहा

"वैसे तूने कभी कविता से इस बारे में कुछ बात की है क्या?" शीला का नार्को टेस्ट शुरू हो गया

"नहीं भाभी.. ऐसा तो कुछ नहीं कहा मैंने"

शीला: "तो फिर कविता तेरे दिमाग में कैसे आ गई एकदम से??"

रसिक: "कविता दूध लेते वक्त काफी मज़ाक मस्ती करती है मेरे साथ.. इसलिए मुझे लगा की....!!"

शीला: "रसिक, कविता ऐसी नहीं है.. कोई भी लड़की या स्त्री ऐसी नहीं होती.. जब तक वह खुद असन्तुष्ट हो... मज़ाक करने का मतलब ये नहीं होता की लड़की कुछ भी करने को तैयार है"

रसिक: "वैसे देखने जाए तो पुरुष भी ऐसा सब हालात के मारे ही तो करता है.. मैं आप से जिद नहीं कर रहा भाभी.. पर कभी कविता सामने से खुद अगर ऐसी कोई बात छेड़ें.. तो आप मुझे जरूर याद करना.. !!"

शीला: "पागलों जैसी बातें मत कर.. कविता कभी इस बात के लिए राजी नहीं होगी... और अगर राजी हो भी गई तो तेरा ये गधे जैसा लंड लेने की उसकी क्षमता ही नहीं है.. दो-तीन धक्कों में तो उसकी चूत फट जाएगी.. और तू फंस जाएगा.. गलती से भी ऐसा कुछ मत करना.. किस्मत में होगा तो वो सामने से आएगी.. पर अगर तू जबरदस्ती करने गया और कुछ उंच-नीच हो गई तो लेने के देने पड़ जाएंगे.. !! चल अब मैं चलती हूँ"


आखिरी बार सलाह देकर शीला खड़ी हो गई.. रसिक को एक किस करते हुए वो निकल गई.. घड़ी में देखा तो चालीस मिनट बीत चुके थे.. उतनी देर भी नहीं हुई थी.. वो तृप्त और खुश होते हुए घर पहुंची.. घर का दरवाजा बंद था.. और बाहर किसी की चप्पल पड़ी हुई थी.. शीला ने दरवाजा खटखटाया.. काफी देर के बाद मदन ने दरवाजा खोला.. मदन का हाल बेहाल था.. अस्त-व्यस्त बाल.. सिलवटों वाले कपड़े.. लाल चेहरा.. शीला बिना कुछ कहें घर के अंदर आ गई.. उसने अंदर जाकर बेडरूम में देखा तो बिस्तर पर रूखी बैठी हुई थी.. उसका रंग-रूप और हावभाव देखकर ये साफ प्रतीत हो रहा था की मदन के साथ गुलछर्रे उड़ा चुकी थी.. बिखरा हुआ बिस्तर इस बात की गँवाही दे रहा था..
 
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सब अपने अपने घर पहुँच गए.. मदन अब कोई नया बिजनेस ढूंढ रहा था.. और वैशाली अपना जीवनसाथी.. !!!

संजय के साथ जो कुछ भी हुआ उसके बाद, इंस्पेक्टर तपन के कहने पर मदन ने शहर के एक बड़े वकील के द्वारा वैशाली के तलाक का केस दाखिल करवा दिया था.. जब तक ये मामला शांति से निपट नहीं जाता तब तक मदन ने वैशाली को इंतज़ार करने की हिदायत दी हुई थी..

कविता के लौट जाने के बाद, वैशाली पीयूष की कंपनी बहोत मिस कर रही थी.. जब कविता नहीं थी तब दोनों ने साथ में बड़े मजे कीये थे.. पर अब कविता की हाज़री में वो पीयूष से दूर ही रहने लगी थी.. पीयूष को भी इस बात का अंदाजा लग चुका था इसलिए वो भी सब के सामने वैशाली से अंतर बनाकर रखता था

मौसम की शादी की तारीख तय हो चुकी थी.. दीपावली के पंद्रह दिन बाद का मुहूरत था.. सुबोधकान्त और रमिलाबहन शादी की तैयारियों में व्यस्त हो गए थे.. कविता भी, जब मौका मिलता, अपनी बहन की शादी के लिए शॉपिंग करने निकल पड़ती.. और लड़कियों/औरतों को शॉपिंग पसंद भी इतना होती है.. भूख प्यास सब भूल जाते है.. अरे, मोहल्ले में कोई चूड़ी बेचने वाला भी आवाज लगाएं तो सब काम छोड़कर उसे मधूमक्खियों की तरह घेर लेती है.. रोज दोपहर को खाने के बाद, कविता वैशाली को लेकर शॉपिंग के लिए निकल जाती थी.. बहन की शादी थी इसलिए कविता का उत्साहित होना लाज़मी भी था..

पिछले हफ्ते जब कविता मायके में थी तब वो घंटों पिंटू के साथ बातें करती थी.. पर घर लौटने के बाद वो सब बंद हो गया था.. बहोत मिस कर रही थी वो पिंटू को.. पीयूष मौसम को मिस कर रहा था.. पति और पत्नी दोनों के दिलों में उदासी छाई हुई थी.. और उसका असर उनके सहजीवन पर भी पड़ रहा था.. रात को बिस्तर पर लेटकर न कविता सेक्स को याद करती और ना पीयूष याद दिलाता.. कविता को पीयूष का लंड पकड़ने का मन भी नहीं हो रहा था.. और पीयूष, मौसम के साथ गुजारें उन हसीन लम्हों को याद करते हुए कविता के बगल में ही सो जाता.. मौसम अब पराई हो गई थी ये सदमा पीयूष बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था.. अंदर ही अंदर वो तरुण के प्रति ईर्ष्या से जल रहा था..

एक दिन शीला और मदन घर के बाहर बरामदे में झूले पर बैठे हुए थे.. वैशाली अंदर मोबाइल पर चैट कर रही थी.. पिंटू के साथ.. पिंटू अब जैसे उसके जीवन का हिस्सा बन चुका था.. ऑफिस में तो खैर वो दोनों ज्यादा बातें नहीं करते थे.. पर घर पहुँचने के बाद दोनों मोबाइल पर भरपूर चैट करते थे.. चैट पर भी पिंटू ने कभी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया था.. और उसकी इस बात ने वैशाली को बेहद आकर्षित किया था.. अक्सर कविता उसके सामने पिंटू को बहोत तारीफ करती रहती थी.. और वैशाली ने खुद भी यह अनुभव किया था..

वैशाली ने शीला को भी यह बता दिया था की पिंटू के साथ उसकी अच्छी पटती थी.. शीला और मदन को इस बात से कोई दिक्कत नहीं थी.. उल्टा शीला ने उसे हिदायत देते हुए कहा था की उसका जब भी पिंटू से मिलने का मन करें तब वो दोनों घर पर ही मिलें.. समाज की नज़रों में वैशाली अब भी संजय की पत्नी थी.. वो लोग बाहर कहीं मिलते तो लोग हजार बातें बनाते..

शीला और मदन आराम से झूले पर झूल रहे थे

शीला: "मदन, घर पर बैठे बैठे बोर हो गई मैं तो.. कहीं जाने का मन कर रहा है यार.. सिर्फ हम दोनों.. !!"

मदन समझ गया की शीला का भोसड़ा चुदने के लिए फड़फड़ा रहा था.. इसलिए बेचैन हो रही थी शीला.. लंड लेने के लिए तड़प रही थी.. कुछ करना पड़ेगा.. !! शीला चोदते वक्त इतनी आवाज़ें करती थी की वैशाली दूसरे कमरे में भी आराम से सुन पाती.. इसलिए काफी दिनों से चुदाई का कोई कार्यक्रम नहीं हुआ था

मदन: "सही कहा तूने.. राजेश से बात करते है.. साथ में दो तीन दिनों के लिए कहीं घूम आते है.. फ्रेश हो जाएंगे"

शीला: "पर घूमने जाएंगे तो वैशाली को भी साथ ले जाना पड़ेगा ना.. उसे छोड़कर नहीं जा सकते"

मदन: "फिर तो वही बात हो गई.. !! वैशाली साथ मे होंगी तो फिर क्या फायदा.. !!"

शीला: "हम्म कुछ करना पड़ेगा.. कोई ऐसी जगह ढूँढ़नी पड़ेगी जहां हम दोनों खुलकर मजे कर सकें"

मदन: "अरे शीला.. वो दूधवाले की बीवी हमारी कुछ मदद कर सकती है क्या? उसका घर मिल सकता है क्या?"

शीला: "हम्म.. बात तो तेरी सही है.. पर उससे कैसे कहूँ?? कुछ सेटिंग तो करना पड़ेगा यार.. मैं कुछ करती हूँ.. उसे एक बार घर मिलने बुलाती हूँ.. नहीं तो मैं ही उसके घर मिलने चली जाती हूँ" शीला और मदन दोनों की आँखों मे चमक आ गई.. रूखी के दूध भरे बबलों के बारे मे सोचते ही मदन की आँखों मे सांप लोटने लगे..

शीला: "मुझे पता ही की तुझे वो दूधवाले की बीवी क्यों याद आई.. पर उसके इतने बड़े बड़े है की तेरे हाथ मे भी नहीं आएंगे" मदन की जांघ पर चिमटी काटते हुए शीला ने शरारती अंदाज मे कहा

मदन: "अरे यार, ऐसा नहीं है.. तू किसी और जगह का जुगाड़ कर दे.. मुझे प्रॉब्लेम नहीं है" अपनी चोरी पकड़े जाने पर मदन ने सफाई दी "अरे हाँ शीला.. राजेश के घर पर हो सकता है क्या?"

शीला: "नहीं यार.. अभी अभी उनसे मित्रता हुई है.. ऐसी बातों के लिए उनसे घर मांगने मे झिझक होगी"

मदन: "तो फिर उस दूधवाले के घर के अलावा और कोई चारा नहीं है"

शीला: "देखती हूँ, क्या हो सकता है"

उस रात को, हवस हद से ज्यादा बढ़ जाने पर.. शीला और मदन ने अपनी आवाजों को रोककर चुदाई की.. बगल के कमरे मे वैशाली सो रही थी इसलिए दोनों को चुपचाप चोदना पड़ा.. बिलकुल मज़ा नहीं आया..!!

सुबह साढ़े पाँच बजे, रसिक की साइकिल की घंटी सुनकर, शीला की आँख खुल गई.. शीला उठकर बेडरूम से बाहर आई.. और बेडरूम का दरवाजा बंद कर दिया.. वो बाहर आई और मुख्य दरवाजा खोला.. रसिक सामने ही खड़ा था

रसिक: "पतीला नहीं लाई भाभी?? दूध कैसे लोगी?"

शीला: "रोज सिर्फ दूध ही देगा?? या और कुछ भी है तेरे पास देने के लिए??" शीला ने अपना गाउन ऊपर किया.. अंदर न ब्रा पहनी थी और ना ही पेन्टी.. अपना भोसड़ा दिखाते हुए वो बोली "इसमें दूध लेना है मुझे.. बोल, कब देगा?"

शीला के मदमस्त नंगे बबलों को दोनों हथेलियों से दबाते हुए रसिक ने कहा "मैं तो मार रहा हूँ देने के लिए भाभी.. आप कहो तो अभी घुसा दूँ"

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शीला: "मेरी बात ध्यान से सुन.. आज अभी साढ़े दस बजे मैं तेरे घर आऊँगी.. रूखी को कहीं भेज देना एक घंटे के लिए.. किसी को पता नहीं लगना चाहिए.. तेरे माँ बाप तो आगे के कमरे मे रहेंगे.. मैं पीछे के रास्ते अंदर आ जाऊँगी.. तेरा घर तो काफी बड़ा है.. पीछे के कमरे मे करेंगे"

रसिक: "ठीक है भाभी" जाते जाते उसने शीला की निप्पलों को बारी बारी मुँह मे भरकर चूस लिया.. और शीला के हाथ मे अपना लोडा भी पकड़ा दिया.. खूँटे जैसे लंड को पकड़कर शीला थरथराने लगी.. रसिक चला गया

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रोज पीयूष के साथ ऑफिस जाती वैशाली... आज पीयूष के चले जाने के बाद अकेले ही ऑफिस जाने निकली.. रास्ते मे उसने पिंटू को फोन किया.. ऑफिस मे तो सब की मौजूदगी के कारण खुलकर बात नहीं हो पाती थी.. काफी दिनों से कविता का भी फोन नहीं आया था इसलिए वैशाली से बातें करना पिंटू को बहोत अच्छा लगता था.. दोनों यहाँ वहाँ की बातें करते थे.. ऑफिस पहुँचने तक वैशाली पिंटू से बात करती रहती.. यह रोज का नित्याक्रम बन चुका था..

वैशाली के जाने के बाद साढ़े नौ बजे, मदन को बताकर, शीला रसिक के घर जाने के लिए तैयार हो गई.. मदन सोच रहा था की शीला घर का सेटिंग करने जा रही है.. हालांकि शीला तो खुद का सेटिंग करने निकली थी

मदन: "हाँ जाकर आ.. तू कहें तो मैं भी साथ चलूँ?"

शीला: "पागल है क्या?? तेरी मौजूदगी मे रूखी से ऐसी बात भला कैसे पूछूँ?"

मदन: "ठीक है.. तू अकेली ही चली जा.. बेस्ट ऑफ लक"

घर से बाहर निकलते निकलते शीला को हंसी आ रही थी.. अब मदन को क्या कहें?? बाहर चुदवाने जा रही बीवी को ये बेवकूफ "बेस्ट ऑफ लक" कह रहा था..

वो फटाफट चलते चलते रसिक के घर की ओर जाने लगी.. रास्ते मे उसने एक कॉल किया.. कॉल खतम करके वो मुसकुराते हुए चल पड़ी.. रसिक के घर पहुंचकर.. वो पीछे के रास्ते चुपके से चली गई.. और दरवाजा खटखटाने लगी.. रसिक ने दरवाजा खोला और शीला को हाथ से पकड़कर अंदर खींच लिया.. और दरवाजा बंद कर उसे दबोच लिया

रसिक की बाहों मे शीला का बदन हवस से तपने लगा... जानबूझकर आज वो बिना ब्रा पहने आई थी.. रसिक के हाथ और उसके बबलों के बीच कुछ नहीं आना चाहिए..

"सब सलामत है ना.. !! कोई आ तो नहीं जाएगा?" शीला ने कहा

"चिंता मत कीजिए.. पीछे के कमरे मे कोई नहीं आता" रसिक ने शीला के बबलों को रौंदना शुरू कर दिया

रसिक का हाथ स्तनों पर फिरते ही शीला की जवानी उछलने लगी..

"यार तू ऊपर सहला रहा है और नीचे से मेरा पानी छूटना शुरू हो गया.. आह रसिक" पाजामे के ऊपर से रसिक का लंड पकड़ते हुए शीला ने कहा "ये तो तैयार ही खड़ा है"


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"अरे भाभी, सुबह से.. जब से आपने घर आने का कहा.. तब से ये तैयार है.. !! पर आप एक मिनट रुकिए भाभी" शीला का हाथ अपने लंड से हटाते हुए रसिक खड़ा हो गया

"अब क्या है यार? सारी तैयारी पहले से ही कर लेनी चाहिए तुझे.. इसलिए तो पहले से बताया था.. " चूत की खुजली से परेशान शीला ने कहा

रसिक छोटी से खिड़की को बंद कर रहा था.. पीछे से उसकी विशाल पीठ को देखकर शीला सोच रही थी की.. इसके पूर्वज जरूर असुर योनि से होंगे.. तभी ये इतना हट्टा-कट्टा राक्षस जैसा है.. साला जब ऊपर चढ़ता है तब पूरा जिस्म छील जाता है..

रसिक ने खटिया के सामने एक टेबल लगा दिया और उसपर नाश्ते की डिश सजा दी.. अगर कोई आ भी जाएँ तो दिखाने के लिए..

"अब सब ठीक है.. आप जैसे मर्जी करवा लीजिए.. कोई दिक्कत नहीं होगी"

रसिक की लंगोट मे हाथ डालकर उसके मूसल जैसे लंड को पकड़ते ही शीला के बदन मे सुरसुरी होने लगी.. मदन ने एक बार एक ब्लू फिल्म दिखाई थी जिसमे लड़कियां घोड़े के लंड से खेल रही थी.. घोड़े के चार पैरों के बीच बैठकर.. लड़किया उस विकराल तीन फुट लंबे लंड से विकृति पूर्वक खेल रही थी.. रसिक का लंड पकड़ते ही शीला को वो सीन की याद आ गई.. आँखें बंद कर वो रसिक के लंड को सहलाती रही..



"आह्ह भाभी, जल्दी कीजिए.. बाहर भी निकालिए इसे.. कब तक खेलती रहोगी" रसिक ने बेचैन होकर कहा

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शीला ने लंगोट से रसिक के लंड को बाहर निकाला.. आह्ह.. देखते ही शीला सिहर उठी.. विकराल अजगर जैसा रसिक का दमदार लंड.. टमाटर जितना बड़ा सुपाड़ा.. और लंड की फुली हुई नसें.. शीला की कलाई जितना मोटा था रसिक का लंड.. !! शीला की चूत ने रस और गंध छोड़ना शुरू कर दिया था.. जबरदस्त उत्तेजित हो गई थी वो.. उसके स्तन एकदम सख्त हो गए थे.. निप्पलें तनकर खड़ी हो गई थी..

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दोनों हाथों से लंड को जड़ से पकड़कर.. शीला ने अपने मुंह मे डाल दीया... आँखें बंद कर उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उस ब्लू फिल्म की हीरोइन की तरह वो भी घोड़े का लंड चूस रही है.. वो तब तक चूसती रही जब तक की उसका मुंह दर्द नहीं करने लगा.. रसिक के आँड़ भी अंडे की साइज़ के थे.. शीला उसके लंड और आँड पर टूट पड़ी थी.. कभी लंड को चूमती.. तो कभी आँड़ों को मुंह मे भरकर चूसती.. वैसे तो शीला को मदन का लंड चूसने मे भी मज़ा आता था.. पर रसिक के मूसल की बात ही निराली थी..

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शीला की चूत अब बगावत पर उतर आई थी.. इतनी तेज खुजली हो रही थी इस लंड को देखकर.. शीला ने ब्लाउस के हुक खोल दीये.. और अपने नारियल जैसे स्तनों को मुक्त कर दिया.. अत्यंत उत्तेजित होकर उसने अपने दोनों चुचे रसिक के लंड पर रगड़ दीये.. शीला के स्तनों से रगड़ खाकर रसिक का लंड लोहे के गरम सरिये जैसा हो गया था.. शीला ने अपने दोनों विराट स्तनों के बीच रसिक का लंड दबा दिया.. शीला की छातियों का नरम नरम स्पर्श मिलते ही रसिक का लोडा भी फुदकने लगा.. शीला के नखरे रसिक को पागल बना रहे थे..

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वो खड़े खड़े.. शीला के दूध जैसे गोरे बबलों को देख रहा था.. दीवार पर अपना सर टीकाकर बैठी शीला का घाघरा पूर्णतः ऊपर की तरफ उठ चुका था.. और शीला जितना हो सकें उतना पैर चौड़े कर.. अपनी भोस खुजाते हुए रसिक के लंड को प्यार करती रही.. उत्तेजित होकर जब रसिक बेकाबू हो जाता तब वो शीला के मुंह को ही चूत समझकर अपने लंड को बड़ी ही ताकत से अंदर धकेल देता.. पीछे दीवार और आगे लंड का आक्रामक हमला.. शीला की हवस संतुष्ट कर सकें उतना लंड उसके मुंह के अंदर दाखिल हो रहा था और रसिक के बड़े बड़े अंडकोश, शीला की ठुड्डी से टकरा रहे थे.. रसिक की धीरज अब जवाब दे रही थी..

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पागलों की तरह रसिक का लंड चूस रही शीला को रसिक ने झुककर कहा "बस भाभी.. आप ऐसे ही चूसती रही तो मेरा निकल जाएगा.. और अंदर डालने का मौका ही नहीं मिलेगा.. "

जैसे रसिक की बात सुनी ही न हो वैसे शीला लंड चूसती ही रही.. काफी देर तक चूसने के बाद जब उसका मन तृप्त हुआ तभी उसने मुंह से लंड निकाला.. और रसिक की जांघों के बीच से उठ खड़ी हुई..

शीला के बिखरे हुए बाल.. हवस टपकाती लाल लाल आँखें.. गाल पर चिपका हुआ रसिक का थोड़ा सा वीर्य..!! जबरदस्त लग रही थी शीला..!! रसिक अब शीला के मदमस्त उरोजों पर टूट पड़ा.. और उसके दोनों स्तनों को बेरहमी से मसल दिया.. एक के बाद एक दोनों स्तनों की निप्पलों को चूसते हुए रसिक ने शीला पर धाबा मोल दिया.. एक इंच लंबी निप्पल को काटते ही शीला की सिसकियाँ निकलने लगी.. रसिक शीला को जितना दर्द पहुंचाता उतना ही शीला और हिंसक हो रही थी.. रसिक के लंड को मुठ्ठी में पकड़कर शीला निचोड़ने लगी.. शीला के मांसल गोलों को रसिक जितनी बेरहमी से दबाता.. शीला की उत्तेजना घटने के बजाए और भड़क जाती..

एक दूसरे की बाहों में बाहें डालकर.. जितना हो सकता था उतनी आक्रामकता से एक दूसरे से शरीर का घर्षण कर रहें थे दोनों.. शीला ने अपना घाघरा उठाकर रसिक के लंड को अपनी चिपचिपी बुर पर रगड़ना शुरू कर दिया.. चूत की गर्मी का एहसास अपने लंड के सुपाड़े पर होते ही रसिक का लोडा शीला की मुठ्ठी मे ठुमकने लगा..

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शीला: "ओह्ह रसिक.. अब और नहीं रहा जाता.. जल्दी से मुझे खटिया पर पटककर चोद दें.. जरा भी रहम मत करना.. मर रही हूँ तेरे लंड से चुदने के लिए!! आज तो फाड़ ही डाल मेरी गुफा.. जल्दी जल्दी कर.. आह्ह.. !!"

रसिक: "हाँ भाभी... आपका बदन देखकर मेरा लोडा अब इतना तन चुका है की अब इसे बिना चोदे चैन नहीं मिलने वाला.. पर मैं दरवाजे की कुंडी ठीक से चेक कर लूँ.. कहीं रूखी बेवक्त न टपक पड़े"

रसिक दरवाजे की कुंडी चेक करने गया पर बेचारे नादान रसिक को कहाँ पता था की...

शीला ने रूखी को अपने घर भेजा था.. मदन के पास..!!! ताकि मदन उसके दूध भरे बबलों का लुत्फ उठा सकें.. और जब तक शीला का मिसकॉल नहीं जाता तब तक वो वापिस लौटने वाली नहीं थी.. वैसे शीला को मदन के साथ सेक्स करने मे उतनी दिक्कत नहीं थी.. रात को वैशाली की मौजूदगी के कारण कंट्रोल रखना पड़ता था.. पर दिन भर तो वैशाली ऑफिस रहती थी.. उस समय दोनों चाहें उतना चोद सकते थे.. लेकिन शीला चाहती ही थी की इसी बहाने रसिक के मूसल से ठुकवा सकें.. और मदन भी रूखी के दूध भरे स्तनों को देखकर होश खो बैठा था.. मदन की हवस को ही सीढ़ी बनाते हुए शीला रसिक के लंड तक पहुँच गई थी.. मदन उसी विश्वास में था की इतनी सुंदर, मॉडर्न और सम्पूर्ण संतुष्ट शीला, किसी मामूली से दूधवाले से थोड़े ही चुदवाएगी.. !! पर ऐसा गलत आत्मविश्वास कभी नहीं रखना चाहिए.. स्त्री कभी भी, कुछ भी कर सकती है

मदन बेचारे को कहाँ पता था की जब वो विदेश में मेरी के बबले चूस रहा था तब शीला रसिक के साथ रंगरेलियाँ मना रही थी.. !!

रसिक के सामने ही अपनी चूत खुजाते हुए शीला खटिया पर बैठ गई और अपने सारे वस्त्र उतार दीये.. कपड़े उसने संभालकर खटिया के बगल में इस तरह रखें की जरूरत पड़ने पर वो तुरंत उन्हें पहन सकें.. शीला के पीछे पीछे रसिक आया.. सामने से चलकर आ रहें रसिक की दोनों जांघों के बीच झूल रहें विकराल लोडे को देखकर.. किसी भी स्त्री की नियत बिगड़ सकती थी.. ऐसा मोटा और तगड़ा था उसका लंड.. शीला को नंगी बैठें देख.. रसिक उत्तेजित सांड की तरह बेकाबू हो गया.. और शीला के सामने अपनी बनियान उतार दी.. चौड़े कंधे.. काले घुँघराले बालों से भरी हुई छाती.. देहाती श्याम रंग.. अलमस्त काया.. और साढ़े छह फिट की ऊंचाई.. बड़ी बड़ी मूछें.. कान में चांदी की बाली.. कम से कम 90 किलो वज़न था रसिक का.. !!

शीला: "बाप रे, रसिक.. !! कितना बड़ा है ये तेरा.. !! किसी जवान लड़की के छेद में अगर तू ये तेरा लंड डालेगा तो उस बेचारी की वहीं जान निकल जाएगी.. "

रसिक को अपनी ओर आते देख.. शीला खटिया पर टांगें फैलाकर लेट गई.. उसने खुद ही अपने चूतड़ों के नीचे तकिया सटाकर रख दिया.. आज वो हफ्तों की भूख शांत करने आई थी..!!

धीरे धीरे रसिक शीला के करीब आया.. और खटिया के कोने पर बैठ गया.. शीला की मांसल गदराई जांघों पर हाथ फेरते हुए उसने कहा "कितनी चिकनी है आपकी जांघें, भाभी। इसपर तो मैं अपना लंड रगड़कर ही पानी गिरा सकता हूँ.. " कहते हुए शीला की भोस तक अपना हाथ ले गया.. शीला के पैर तो पहले से ही चौड़े थे.. इसलिए उसके भोसड़े तक पहुँचने में रसिक को जरा भी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा

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खुरदरे हाथों का स्पर्श शीला को और उत्तेजित कर गया.. वो नीचे से अपने चूतड़ उठाकर गोल गोल घुमाने लगी.. "सहलाना बंद कर रसिक.. अंदर चीटीयां काट रही है मुझे.. डाल दे तेरा लंड अंदर.. आह्ह मर गई.. !!"

शीला रूखी के बारे में सोचने लगी.. कितनी किस्मत वाली है वोह.. रोज ऐसे तगड़े लंड से चुदना नसीब हो रहा था उसे.. फिर भी कमीनी जीवा के लंड के पीछे पागल थी.. मायके और ससुराल दोनों में उसके पास उत्कृष्ट कक्षा के तगड़े लंड उपलब्ध थे..

रसिक ने शीला की दोनों जांघों के बीच पोजीशन ले ली.. जिस तरह लड़ाकू विमान टेक-ऑफ के लिए तैयार होते है, बिल्कुल वैसे ही.. रसिक का लंड, शीला की भोसड़े की गंध सूंघकर हिलोरे लेने लगा था..


रसिक ने दोनों हाथों को शीला के घुटनों पर रख दिया.. और दोनों पैरों को अपने कंधे पर ले लिया.. भोसड़े पर लंड टेककर अंदर डालने की कोशिश की.. पर उस तरह लंड अंदर घुस नहीं पा रहा था.. आखिर शीला ने अपने एक हाथ से स्तन मसलते हुए दूसरे हाथ से रसिक के लंड को हाथ में लिया और अपने गरम भांप छोड़ रहे सुराख पर रख दिया.. हल्के से गांड उचकते ही रसिक का सुपाड़ा अंदर घुस गया.. "अब मार धक्के.. जोर से.. फाड़ दे इसे.. आह्ह"

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अब रसिक भी कहाँ पीछे हटने वाला था.. !! उसने दबाकर एक जोरदार धक्का लगाया.. और शीला के भोसड़े को चीरते हुए उसका लंड बच्चेदानी के मुख पर जाकर टकराया..

"ऊईईई माँ... मर गई.. ओह्ह रसिक.. अपना लोडा बाहर निकाल और फिर से इसी तरह एक और धक्का लगा.. आह्ह मज़ा आ गया.. जरा जोर से.. !!" शीला की उत्तेजना बेकाबू हो रही थी.. "कौन जाने क्या खाकर तुझे तेरी माँ ने पैदा किया था.. कितना खूंखार लंड है रे तेरा... अब चोद डाल.. अपनी माँ की चूत समझ कर चोद दे मुझे.. !!"

रसिक ने शीला के पैरों को छोड़ दिया.. और शीला ने उसके कंधों पर दोनों पैरों से कुंडली मार दी.. रसिक ने शीला के दोनों बबलों को अपने हाथों से दबाते हुए.. अपनी अलमस्त काया का पूरा 90 किलो वजन एक साथ ही शीला के ऊपर थोप दिया.. नौ इंच का लंड और नब्बे किलो का वज़न.. बड़े आराम से झेल रही थी शीला.. !!

रसिक के वजनदार धक्कों को शीला ने बड़ी ही आसानी से झेल लिया.. पर खटिया के पैर इसे बर्दाश्त न कर पाएं.. कड़ाके की आवाज के साथ खटिया टूट गई.. "अरे अरे अरे... !!" कहते हुए रसिक शीला को संभालने गया.. पर आखिर न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियम की जीत हुई.. काबिल शीला ने इस स्थिति में भी रसिक का लंड बाहर निकलने नहीं दिया.. उसने अपने भोसड़े की मांसपेशियों के बीच रसिक के लोडे को ऐसा दबोच रखा था की उसके बाहर निकलने की कोई गुंजाइश नहीं थी..

टूटी हुई खटिया से उठने की कोशिश कर रहें रसिक को शीला ने अपनी बाहों में भरते हुए.. उसके पसीने से तर कंधों पर काटते हुए कहा "उठ मत.. चालू ही रख.. इसी स्थिति में धक्के लगाना शुरू कर दे.. मज़ा आ रहा है यार.. "

रसिक ने फिर आव देखा न ताव.. धनाधन धक्के लगाना शुरू कर दिया.. उसके प्रत्येक प्रहार से शीला की भूख और खुजली कुछ कुछ संतुष्ट हो रही थी.. रसिक के कूल्हों को अपने नाखूनों से कुरेदते हुए शीला उसे अपने जिस्म से और सख्ती से दबा रही थी.. रसिक बिना रुकें, शीला को पूरे जोश से चोद रहा था और शीला नीचे तृप्ति के महासागर में गोते लगा रही थी.. शीला भी पसीने से तरबतर हो गई थी जीवन के इस सर्वोच्च आनंद को महसूस करते हुए.. रसिक के पसीने की गंध शीला की हवस को ओर भड़का रही थी..


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टूटी हुई खटिया में चोदना असुविधाजनक तो था ही.. पर जब इच्छाशक्ति प्रबल हो तब कोई भी समस्या ज्यादा देर तक टिक नहीं पाती..

"आहहह रसिक.. लगा जोर से शॉट.. मार डाल मुझे.. ओह्ह आह्ह.. शाबाश.. और जोर से.. ऊईई माँ.. आह्ह अहह.. स्पीड बढ़ा.. मैं झड़ने वाली हूँ.. आ.. आ.. आ.. आ.. आ.... !!" शीला के स्खलन की अंतिम क्षणों में रसिक भी थककर चूर हो गया.. उसके विकराल लंड ने वीर्य की गरम गरम पिचकारी जब बुर के अंदर तक छोड़ी.. तब शीला ने अपने नाखून रसिक की पीठ पर गाड़ दीये.. रसिक की पीठ पर ऐसे निशान बन गए थे जैसे किसी खूंखार शेरनी ने अपना पंजा मार दिया हो.. !!

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शीला के बबले रसिक की छाती के बोझ तले दबकर चपटे हो गए थे.. बबलों की चर्बी का अतिरिक्त हिस्सा.. दोनों बगलों से बाहर झलक रहा था.. टूटी हुई खटिया में.. पैर फैलाकर लेटी शीला तभी शांत हुई जब उसका भोसड़ा पूर्णतः तृप्त हो गया.. रसिक को अपनी बाहों में भींचकर शीला तेजी से हांफने लगी.. बिखरे हुए बाल.. आँखों में तृप्ति के भाव के साथ शीला पड़ी रही.. और उसके ऊपर रसिक ऐसे गिरा हुआ था जैसे एनकाउंटर में मारे गए किसी गुंडे की लावारिस लाश हो..

थोड़ी देर तक दोनों उसी स्थिति में पड़े रहे.. शीला के तकियों जैसे स्तनों पर से उठने का भला कीसे मन होगा.. !! लेकिन रसिक उस स्थिति में भी समय को लेकर चौकन्ना था..

"अब आप मुझे छोड़िए तो मैं खड़ा हो सकूँ.. वैसे मज़ा आ गया आज तो भाभी.. ये रूखी पता नहीं अब तक क्यों नहीं लौटी?? अब तक तो उसे आ जाना चाहिए था.. !! वैसे देखने जाएँ तो अच्छा ही हुआ की वो अब तक नहीं लौटी.. वरना हमारे रंग में भंग पड़ता.. !!"

शीला: "हाँ हाँ उठ जा.. और अपने लोडे को बाहर निकाल.. अंदर एकदम फिट हो गया है.. कुत्तों की तरह.. तू भी कपड़े पहन ले और मैं भी तैयार हो जाती.. फिर कोई आ जाएँ तो भी प्रॉब्लेम नहीं होगा.. "

दोनों ने उठकर कपड़े पहने

रसिक: "अब इस टूटी हुई खटिया का क्या करूँ? घर में ये एक ही खटिया है.. रूखी तो ये देखकर ही मेरी जान निकाल देगी.. शाम तक इसे ठीक कराना ही होगा.. बेकार में खर्चा हो गया मेरा.. !!"

शीला ने तुरंत अपने पर्स से सौ सौ की तीन नोट निकालकर रसिक को थमा दी.. थोड़े से संकोच के साथ, रसिक ने पैसे ले लिए..

रसिक: "शुक्रिया भाभी.. वैसे आज आपके साथ जो मज़ा आया.. ऐसा मज़ा मुझे रूखी के साथ कभी नहीं आता है.. समझ में नहीं आ रहा की रूखी कहाँ मर गई?? कमीनी किसी ओर के साथ तो खटिया नहीं तोड़ रही होगी??"

शीला खिलखिलाकर हंस पड़ी "सब तेरे जैसे थोड़े ही होते है.. चल अब मैं चलती हूँ.. ज्यादा देर बैठूँगी तो फिर से मन हो जाएगा"

रसिक: "अरे भाभी, थोड़ी देर बैठिए ना.. जी करता है की पूरा दिन आपके सामने बैठकर देखता ही रहूँ.. कितनी सुंदर हो आप"

शीला: "ज्यादा रोमेन्टीक मत बन.. ऐसा तो क्या देख लिया तूने मेरे अंदर?"

रसिक: "एक बात कहूँ.. ?? जब हम कर रहे थे.. तब आपने कहा था की अगर मैं अपना ये लंड किसी जवान खूबसूरत लड़की के अंदर घुसा दूँ तो वो मर जाएगी.. उसी से याद आया.. मेरा बहोत मन कर रहा है.. किसी फेशनेबल जवान लड़की को चोदने का.. आप मेरी कुछ मदद करो ना.. !!"

शीला: "साले, मुझे क्या दलाल समझ रखा है तूने?? और तेरा रूप-रंग तो देख.. !! तुझे नंगा देखकर लड़कियां वहीं बेहोश हो जाएगी.. !!"

रसिक: "क्या भाभी आप भी.. !!!"

शीला: "तेरे लिए तो रूखी की गुफा ही ठीक है.. कागज की कश्ती जैसी नाजुक चूतें, तेरा ये मूसल बर्दाश्त ही नहीं कर पाएगी"

शीला के बबलों को दबाते हुए रसिक ने फिर से विनती की.. "कुछ कीजिए ना भाभी, प्लीज"

शीला: "अरे यार.. तू तो मेरे गले ही पड़ गया.. मैं कहाँ से लाऊँ तेरे लिए जवान फेशनेबल लड़की?? और मिल भी जाएँ तो मैं क्या कहूँ उसे?? की जा इस दूधवाले से चुद जा.. !! नहीं भाई नहीं.. मुझसे ये नहीं होगा"

रसिक: "आप को कहीं ढूँढने नहीं जाना है भाभी... आपको तो सिर्फ मुझे मदद करनी है"

शीला: "अच्छा... तूने ढूंढ भी ली है.. !! बता.. कौन है वो अभागी लड़की??"

कमर पर हाथ रखकर जबरदस्त स्टाइल में खड़ी थी शीला.. जिसे देखकर अच्छे से अच्छे मर्दों को छक्के छूट जाएँ..

रसिक: "भाभी.. अगर आप मुझे सहयोग दें तो बगल के चिमन काका के घर ही मेरा काम हो सकता है"

शीला: "मतलब?? तू कविता की बात कर रहा है??" चोंक उठी वो..

कविता से शीला बराबर परिचित थी.. उतना ही नहीं.. वो रसिक और कविता दोनों के शारीरिक भूगोल से भी वाकिफ थी.. इन दोनों के उम्र से लेकर लंड-चूत के नाप तक.. किसी भी चीज में कोई समानता नहीं थी.. ये तो ऐसा हाल होता जैसे किसी कुत्तिया पर गधा चढ़ने की बात कर रहा हो.. शीला की आँखों के सामने.. फटी हुई चूत के साथ.. लहू-लुहान लेटी हुई बेहोश कविता का द्रश्य आ गया.. बाहर खड़ी हुई एम्बुलेंस और पुलिस की गाड़ी भी दिखाई देने लगी.. शीला ने अगर थोड़ी ओर कल्पना की होती तो उसे रसिक की गिरफ़्तारी समेत और कई द्रश्य भी नजर आ जाते

कांप उठी शीला.. क्योंकि वो अच्छे से जानती थी.. कविता की तितली जैसी शोख चंचल काया.. रसिक नाम का सांड.. एक ही पल में रौंद देगा.. रसिक की बात सुनकर.. शीला का दिमाग.. कंप्यूटर से भी तेज चलने लगा.. वो सोचने लगी.. जब मैं कलकत्ता गई थी तब तो कहीं रसिक ने कविता के ऊपर नजर नहीं डाली होगी.. !! अनुमौसी भी रसिक के लंड की दीवानी है.. कहीं अपना भोसड़ा मरवाने के चक्कर में.. मौसी ने कविता का सौदा तो नहीं कर दिया रसिक के साथ.. !! नहीं नहीं.. ऐसा तो नहीं हुआ होगा.. वरना रसिक मुझे ये सब क्यों बताता.. !! सीधा मौसी के साथ ही कविता का सेटिंग कर लेता..

"क्या सोच रही हो भाभी? मेरी बात का बुरा लगा क्या आपको??" चुपचाप बैठकर सोच रही शीला को देखकर रसिक ने पूछा

शीला: "ऐसा कुछ नहीं है रसिक.. कविता का सेटिंग तो मैं नहीं करवा सकती.. पर अगर कोई नए जमाने की मॉडर्न लड़की का कॉन्टेक्ट होगा तो तुझसे मिलवा दूँगी जरूर.. अभी तो ऐसा कोई मेरे ध्यान में नहीं है.. शहर की लड़कियों को मॉडर्न हेंडसम रोमियो टाइप लड़के पसंद होते है.. उन्हें देसी नारियल के पानी से ज्यादा कोक और पेप्सी पसंद होती है.. शुद्ध घी का हलवा खाने से उनका फिगर खराब हो जाता है पर पीत्ज़ा, बर्गर इत्यादि खाने में उन्हें कोई हर्ज नहीं होता.. सब औरतें या लड़कियां मेरे जैसी नहीं होती.. की जिन्हें असली मर्द की परख हो.. अगर तू भी क्लीनशेव होकर मॉडर्न कपड़े पहन ले तो वो लड़कियां तेरे पीछे भागेगी.. हट्टा-कट्टा तो तू है ही.. आजकल दंभ और दिखावे का ज़माना है.. तेरे पास फूटी कौड़ी भी न हो तो चलेगा पर तुझे दिखावा ऐसा करना होगा की जैसे तू करोड़पति हो.. आज कल तो जहर भी अच्छे पेकिंग में डालकर बेच सकते है.. केसर युक्त गुटखा की तरह.. !!"

रसिक: "अरे भाभी.. मैं ठहरा दूधवाला.. अब सूट-बूट पहनकर दूध बेचने निकलूँगा तो कौन खरीदेगा?? ये तो बस एक मेरी ख्वाहिश थी जो मैंने आप को बताई.. वरना मैं कौन सा यहाँ मरा जा रहा हूँ.. और आप तो हो ही मेरे पास.. आप भी मॉडर्न ही हो.. पर कविता का गन्ने जैसा पतला शरीर देखता हूँ तो मन में खयाल आता है की ऐसी लड़की को चोदने में कितना मज़ा आएगा.. !! लंड घुसाने पर कैसे छटपटाएगी.. !!!"

शीला: "मैं समझ सकती हूँ तेरी बात रसिक.. तेरे लोडे में इतनी ताकत है की कोई भी तेरा लेकर छटपटाएगी..!! पर जरा कविता की चूत के बारे में तो सोच.. तू अंदर डालेगा तो बेचारी की फट के फ्लावर बन जाएगी.. मुश्किल से पच्चीस की है कविता.. तेरे जैसा लंड उसने सपने भी देखा नहीं होगा.. उसकी उम्र या अनुभव अधिक होने दे.. वो खुद-ब-खुद चलकर तेरे पास आएगी.. उसके साथ अच्छे संबंध रख.. अभी तो नहीं पर भविष्य में जरूर कुछ होगा.. " आश्वासन देते हुए शीला ने कहा

"वैसे तूने कभी कविता से इस बारे में कुछ बात की है क्या?" शीला का नार्को टेस्ट शुरू हो गया

"नहीं भाभी.. ऐसा तो कुछ नहीं कहा मैंने"

शीला: "तो फिर कविता तेरे दिमाग में कैसे आ गई एकदम से??"

रसिक: "कविता दूध लेते वक्त काफी मज़ाक मस्ती करती है मेरे साथ.. इसलिए मुझे लगा की....!!"

शीला: "रसिक, कविता ऐसी नहीं है.. कोई भी लड़की या स्त्री ऐसी नहीं होती.. जब तक वह खुद असन्तुष्ट हो... मज़ाक करने का मतलब ये नहीं होता की लड़की कुछ भी करने को तैयार है"

रसिक: "वैसे देखने जाए तो पुरुष भी ऐसा सब हालात के मारे ही तो करता है.. मैं आप से जिद नहीं कर रहा भाभी.. पर कभी कविता सामने से खुद अगर ऐसी कोई बात छेड़ें.. तो आप मुझे जरूर याद करना.. !!"

शीला: "पागलों जैसी बातें मत कर.. कविता कभी इस बात के लिए राजी नहीं होगी... और अगर राजी हो भी गई तो तेरा ये गधे जैसा लंड लेने की उसकी क्षमता ही नहीं है.. दो-तीन धक्कों में तो उसकी चूत फट जाएगी.. और तू फंस जाएगा.. गलती से भी ऐसा कुछ मत करना.. किस्मत में होगा तो वो सामने से आएगी.. पर अगर तू जबरदस्ती करने गया और कुछ उंच-नीच हो गई तो लेने के देने पड़ जाएंगे.. !! चल अब मैं चलती हूँ"


आखिरी बार सलाह देकर शीला खड़ी हो गई.. रसिक को एक किस करते हुए वो निकल गई.. घड़ी में देखा तो चालीस मिनट बीत चुके थे.. उतनी देर भी नहीं हुई थी.. वो तृप्त और खुश होते हुए घर पहुंची.. घर का दरवाजा बंद था.. और बाहर किसी की चप्पल पड़ी हुई थी.. शीला ने दरवाजा खटखटाया.. काफी देर के बाद मदन ने दरवाजा खोला.. मदन का हाल बेहाल था.. अस्त-व्यस्त बाल.. सिलवटों वाले कपड़े.. लाल चेहरा.. शीला बिना कुछ कहें घर के अंदर आ गई.. उसने अंदर जाकर बेडरूम में देखा तो बिस्तर पर रूखी बैठी हुई थी.. उसका रंग-रूप और हावभाव देखकर ये साफ प्रतीत हो रहा था की मदन के साथ गुलछर्रे उड़ा चुकी थी.. बिखरा हुआ बिस्तर इस बात की गँवाही दे रहा था..

Wah vakharia Bhai Wah

Kya mast update post ki he...........

Rasik ke sath khatiya tod sex karke sheela ko maja hi aa gaya..............

Wahi Madan ne lage haath Rukhi ka ras bhi chakh liya.............

Rasik ka kavita ko chodne ki ichcha din ba din badhti hi ja rahi he........

Lekin jaise sheela ne samjhaya..........kavita bhi rasik ko jhel nahi payegi.............

Agli dhamakedar update ki pratiksha rahegi Bhai
 

pussylover1

Milf lover.
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सब अपने अपने घर पहुँच गए.. मदन अब कोई नया बिजनेस ढूंढ रहा था.. और वैशाली अपना जीवनसाथी.. !!!

संजय के साथ जो कुछ भी हुआ उसके बाद, इंस्पेक्टर तपन के कहने पर मदन ने शहर के एक बड़े वकील के द्वारा वैशाली के तलाक का केस दाखिल करवा दिया था.. जब तक ये मामला शांति से निपट नहीं जाता तब तक मदन ने वैशाली को इंतज़ार करने की हिदायत दी हुई थी..

कविता के लौट जाने के बाद, वैशाली पीयूष की कंपनी बहोत मिस कर रही थी.. जब कविता नहीं थी तब दोनों ने साथ में बड़े मजे कीये थे.. पर अब कविता की हाज़री में वो पीयूष से दूर ही रहने लगी थी.. पीयूष को भी इस बात का अंदाजा लग चुका था इसलिए वो भी सब के सामने वैशाली से अंतर बनाकर रखता था

मौसम की शादी की तारीख तय हो चुकी थी.. दीपावली के पंद्रह दिन बाद का मुहूरत था.. सुबोधकान्त और रमिलाबहन शादी की तैयारियों में व्यस्त हो गए थे.. कविता भी, जब मौका मिलता, अपनी बहन की शादी के लिए शॉपिंग करने निकल पड़ती.. और लड़कियों/औरतों को शॉपिंग पसंद भी इतना होती है.. भूख प्यास सब भूल जाते है.. अरे, मोहल्ले में कोई चूड़ी बेचने वाला भी आवाज लगाएं तो सब काम छोड़कर उसे मधूमक्खियों की तरह घेर लेती है.. रोज दोपहर को खाने के बाद, कविता वैशाली को लेकर शॉपिंग के लिए निकल जाती थी.. बहन की शादी थी इसलिए कविता का उत्साहित होना लाज़मी भी था..

पिछले हफ्ते जब कविता मायके में थी तब वो घंटों पिंटू के साथ बातें करती थी.. पर घर लौटने के बाद वो सब बंद हो गया था.. बहोत मिस कर रही थी वो पिंटू को.. पीयूष मौसम को मिस कर रहा था.. पति और पत्नी दोनों के दिलों में उदासी छाई हुई थी.. और उसका असर उनके सहजीवन पर भी पड़ रहा था.. रात को बिस्तर पर लेटकर न कविता सेक्स को याद करती और ना पीयूष याद दिलाता.. कविता को पीयूष का लंड पकड़ने का मन भी नहीं हो रहा था.. और पीयूष, मौसम के साथ गुजारें उन हसीन लम्हों को याद करते हुए कविता के बगल में ही सो जाता.. मौसम अब पराई हो गई थी ये सदमा पीयूष बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था.. अंदर ही अंदर वो तरुण के प्रति ईर्ष्या से जल रहा था..

एक दिन शीला और मदन घर के बाहर बरामदे में झूले पर बैठे हुए थे.. वैशाली अंदर मोबाइल पर चैट कर रही थी.. पिंटू के साथ.. पिंटू अब जैसे उसके जीवन का हिस्सा बन चुका था.. ऑफिस में तो खैर वो दोनों ज्यादा बातें नहीं करते थे.. पर घर पहुँचने के बाद दोनों मोबाइल पर भरपूर चैट करते थे.. चैट पर भी पिंटू ने कभी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया था.. और उसकी इस बात ने वैशाली को बेहद आकर्षित किया था.. अक्सर कविता उसके सामने पिंटू को बहोत तारीफ करती रहती थी.. और वैशाली ने खुद भी यह अनुभव किया था..

वैशाली ने शीला को भी यह बता दिया था की पिंटू के साथ उसकी अच्छी पटती थी.. शीला और मदन को इस बात से कोई दिक्कत नहीं थी.. उल्टा शीला ने उसे हिदायत देते हुए कहा था की उसका जब भी पिंटू से मिलने का मन करें तब वो दोनों घर पर ही मिलें.. समाज की नज़रों में वैशाली अब भी संजय की पत्नी थी.. वो लोग बाहर कहीं मिलते तो लोग हजार बातें बनाते..

शीला और मदन आराम से झूले पर झूल रहे थे

शीला: "मदन, घर पर बैठे बैठे बोर हो गई मैं तो.. कहीं जाने का मन कर रहा है यार.. सिर्फ हम दोनों.. !!"

मदन समझ गया की शीला का भोसड़ा चुदने के लिए फड़फड़ा रहा था.. इसलिए बेचैन हो रही थी शीला.. लंड लेने के लिए तड़प रही थी.. कुछ करना पड़ेगा.. !! शीला चोदते वक्त इतनी आवाज़ें करती थी की वैशाली दूसरे कमरे में भी आराम से सुन पाती.. इसलिए काफी दिनों से चुदाई का कोई कार्यक्रम नहीं हुआ था

मदन: "सही कहा तूने.. राजेश से बात करते है.. साथ में दो तीन दिनों के लिए कहीं घूम आते है.. फ्रेश हो जाएंगे"

शीला: "पर घूमने जाएंगे तो वैशाली को भी साथ ले जाना पड़ेगा ना.. उसे छोड़कर नहीं जा सकते"

मदन: "फिर तो वही बात हो गई.. !! वैशाली साथ मे होंगी तो फिर क्या फायदा.. !!"

शीला: "हम्म कुछ करना पड़ेगा.. कोई ऐसी जगह ढूँढ़नी पड़ेगी जहां हम दोनों खुलकर मजे कर सकें"

मदन: "अरे शीला.. वो दूधवाले की बीवी हमारी कुछ मदद कर सकती है क्या? उसका घर मिल सकता है क्या?"

शीला: "हम्म.. बात तो तेरी सही है.. पर उससे कैसे कहूँ?? कुछ सेटिंग तो करना पड़ेगा यार.. मैं कुछ करती हूँ.. उसे एक बार घर मिलने बुलाती हूँ.. नहीं तो मैं ही उसके घर मिलने चली जाती हूँ" शीला और मदन दोनों की आँखों मे चमक आ गई.. रूखी के दूध भरे बबलों के बारे मे सोचते ही मदन की आँखों मे सांप लोटने लगे..

शीला: "मुझे पता ही की तुझे वो दूधवाले की बीवी क्यों याद आई.. पर उसके इतने बड़े बड़े है की तेरे हाथ मे भी नहीं आएंगे" मदन की जांघ पर चिमटी काटते हुए शीला ने शरारती अंदाज मे कहा

मदन: "अरे यार, ऐसा नहीं है.. तू किसी और जगह का जुगाड़ कर दे.. मुझे प्रॉब्लेम नहीं है" अपनी चोरी पकड़े जाने पर मदन ने सफाई दी "अरे हाँ शीला.. राजेश के घर पर हो सकता है क्या?"

शीला: "नहीं यार.. अभी अभी उनसे मित्रता हुई है.. ऐसी बातों के लिए उनसे घर मांगने मे झिझक होगी"

मदन: "तो फिर उस दूधवाले के घर के अलावा और कोई चारा नहीं है"

शीला: "देखती हूँ, क्या हो सकता है"

उस रात को, हवस हद से ज्यादा बढ़ जाने पर.. शीला और मदन ने अपनी आवाजों को रोककर चुदाई की.. बगल के कमरे मे वैशाली सो रही थी इसलिए दोनों को चुपचाप चोदना पड़ा.. बिलकुल मज़ा नहीं आया..!!

सुबह साढ़े पाँच बजे, रसिक की साइकिल की घंटी सुनकर, शीला की आँख खुल गई.. शीला उठकर बेडरूम से बाहर आई.. और बेडरूम का दरवाजा बंद कर दिया.. वो बाहर आई और मुख्य दरवाजा खोला.. रसिक सामने ही खड़ा था

रसिक: "पतीला नहीं लाई भाभी?? दूध कैसे लोगी?"

शीला: "रोज सिर्फ दूध ही देगा?? या और कुछ भी है तेरे पास देने के लिए??" शीला ने अपना गाउन ऊपर किया.. अंदर न ब्रा पहनी थी और ना ही पेन्टी.. अपना भोसड़ा दिखाते हुए वो बोली "इसमें दूध लेना है मुझे.. बोल, कब देगा?"

शीला के मदमस्त नंगे बबलों को दोनों हथेलियों से दबाते हुए रसिक ने कहा "मैं तो मार रहा हूँ देने के लिए भाभी.. आप कहो तो अभी घुसा दूँ"

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शीला: "मेरी बात ध्यान से सुन.. आज अभी साढ़े दस बजे मैं तेरे घर आऊँगी.. रूखी को कहीं भेज देना एक घंटे के लिए.. किसी को पता नहीं लगना चाहिए.. तेरे माँ बाप तो आगे के कमरे मे रहेंगे.. मैं पीछे के रास्ते अंदर आ जाऊँगी.. तेरा घर तो काफी बड़ा है.. पीछे के कमरे मे करेंगे"

रसिक: "ठीक है भाभी" जाते जाते उसने शीला की निप्पलों को बारी बारी मुँह मे भरकर चूस लिया.. और शीला के हाथ मे अपना लोडा भी पकड़ा दिया.. खूँटे जैसे लंड को पकड़कर शीला थरथराने लगी.. रसिक चला गया

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रोज पीयूष के साथ ऑफिस जाती वैशाली... आज पीयूष के चले जाने के बाद अकेले ही ऑफिस जाने निकली.. रास्ते मे उसने पिंटू को फोन किया.. ऑफिस मे तो सब की मौजूदगी के कारण खुलकर बात नहीं हो पाती थी.. काफी दिनों से कविता का भी फोन नहीं आया था इसलिए वैशाली से बातें करना पिंटू को बहोत अच्छा लगता था.. दोनों यहाँ वहाँ की बातें करते थे.. ऑफिस पहुँचने तक वैशाली पिंटू से बात करती रहती.. यह रोज का नित्याक्रम बन चुका था..

वैशाली के जाने के बाद साढ़े नौ बजे, मदन को बताकर, शीला रसिक के घर जाने के लिए तैयार हो गई.. मदन सोच रहा था की शीला घर का सेटिंग करने जा रही है.. हालांकि शीला तो खुद का सेटिंग करने निकली थी

मदन: "हाँ जाकर आ.. तू कहें तो मैं भी साथ चलूँ?"

शीला: "पागल है क्या?? तेरी मौजूदगी मे रूखी से ऐसी बात भला कैसे पूछूँ?"

मदन: "ठीक है.. तू अकेली ही चली जा.. बेस्ट ऑफ लक"

घर से बाहर निकलते निकलते शीला को हंसी आ रही थी.. अब मदन को क्या कहें?? बाहर चुदवाने जा रही बीवी को ये बेवकूफ "बेस्ट ऑफ लक" कह रहा था..

वो फटाफट चलते चलते रसिक के घर की ओर जाने लगी.. रास्ते मे उसने एक कॉल किया.. कॉल खतम करके वो मुसकुराते हुए चल पड़ी.. रसिक के घर पहुंचकर.. वो पीछे के रास्ते चुपके से चली गई.. और दरवाजा खटखटाने लगी.. रसिक ने दरवाजा खोला और शीला को हाथ से पकड़कर अंदर खींच लिया.. और दरवाजा बंद कर उसे दबोच लिया

रसिक की बाहों मे शीला का बदन हवस से तपने लगा... जानबूझकर आज वो बिना ब्रा पहने आई थी.. रसिक के हाथ और उसके बबलों के बीच कुछ नहीं आना चाहिए..

"सब सलामत है ना.. !! कोई आ तो नहीं जाएगा?" शीला ने कहा

"चिंता मत कीजिए.. पीछे के कमरे मे कोई नहीं आता" रसिक ने शीला के बबलों को रौंदना शुरू कर दिया

रसिक का हाथ स्तनों पर फिरते ही शीला की जवानी उछलने लगी..

"यार तू ऊपर सहला रहा है और नीचे से मेरा पानी छूटना शुरू हो गया.. आह रसिक" पाजामे के ऊपर से रसिक का लंड पकड़ते हुए शीला ने कहा "ये तो तैयार ही खड़ा है"


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"अरे भाभी, सुबह से.. जब से आपने घर आने का कहा.. तब से ये तैयार है.. !! पर आप एक मिनट रुकिए भाभी" शीला का हाथ अपने लंड से हटाते हुए रसिक खड़ा हो गया

"अब क्या है यार? सारी तैयारी पहले से ही कर लेनी चाहिए तुझे.. इसलिए तो पहले से बताया था.. " चूत की खुजली से परेशान शीला ने कहा

रसिक छोटी से खिड़की को बंद कर रहा था.. पीछे से उसकी विशाल पीठ को देखकर शीला सोच रही थी की.. इसके पूर्वज जरूर असुर योनि से होंगे.. तभी ये इतना हट्टा-कट्टा राक्षस जैसा है.. साला जब ऊपर चढ़ता है तब पूरा जिस्म छील जाता है..

रसिक ने खटिया के सामने एक टेबल लगा दिया और उसपर नाश्ते की डिश सजा दी.. अगर कोई आ भी जाएँ तो दिखाने के लिए..

"अब सब ठीक है.. आप जैसे मर्जी करवा लीजिए.. कोई दिक्कत नहीं होगी"

रसिक की लंगोट मे हाथ डालकर उसके मूसल जैसे लंड को पकड़ते ही शीला के बदन मे सुरसुरी होने लगी.. मदन ने एक बार एक ब्लू फिल्म दिखाई थी जिसमे लड़कियां घोड़े के लंड से खेल रही थी.. घोड़े के चार पैरों के बीच बैठकर.. लड़किया उस विकराल तीन फुट लंबे लंड से विकृति पूर्वक खेल रही थी.. रसिक का लंड पकड़ते ही शीला को वो सीन की याद आ गई.. आँखें बंद कर वो रसिक के लंड को सहलाती रही..



"आह्ह भाभी, जल्दी कीजिए.. बाहर भी निकालिए इसे.. कब तक खेलती रहोगी" रसिक ने बेचैन होकर कहा

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शीला ने लंगोट से रसिक के लंड को बाहर निकाला.. आह्ह.. देखते ही शीला सिहर उठी.. विकराल अजगर जैसा रसिक का दमदार लंड.. टमाटर जितना बड़ा सुपाड़ा.. और लंड की फुली हुई नसें.. शीला की कलाई जितना मोटा था रसिक का लंड.. !! शीला की चूत ने रस और गंध छोड़ना शुरू कर दिया था.. जबरदस्त उत्तेजित हो गई थी वो.. उसके स्तन एकदम सख्त हो गए थे.. निप्पलें तनकर खड़ी हो गई थी..

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दोनों हाथों से लंड को जड़ से पकड़कर.. शीला ने अपने मुंह मे डाल दीया... आँखें बंद कर उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उस ब्लू फिल्म की हीरोइन की तरह वो भी घोड़े का लंड चूस रही है.. वो तब तक चूसती रही जब तक की उसका मुंह दर्द नहीं करने लगा.. रसिक के आँड़ भी अंडे की साइज़ के थे.. शीला उसके लंड और आँड पर टूट पड़ी थी.. कभी लंड को चूमती.. तो कभी आँड़ों को मुंह मे भरकर चूसती.. वैसे तो शीला को मदन का लंड चूसने मे भी मज़ा आता था.. पर रसिक के मूसल की बात ही निराली थी..

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शीला की चूत अब बगावत पर उतर आई थी.. इतनी तेज खुजली हो रही थी इस लंड को देखकर.. शीला ने ब्लाउस के हुक खोल दीये.. और अपने नारियल जैसे स्तनों को मुक्त कर दिया.. अत्यंत उत्तेजित होकर उसने अपने दोनों चुचे रसिक के लंड पर रगड़ दीये.. शीला के स्तनों से रगड़ खाकर रसिक का लंड लोहे के गरम सरिये जैसा हो गया था.. शीला ने अपने दोनों विराट स्तनों के बीच रसिक का लंड दबा दिया.. शीला की छातियों का नरम नरम स्पर्श मिलते ही रसिक का लोडा भी फुदकने लगा.. शीला के नखरे रसिक को पागल बना रहे थे..

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वो खड़े खड़े.. शीला के दूध जैसे गोरे बबलों को देख रहा था.. दीवार पर अपना सर टीकाकर बैठी शीला का घाघरा पूर्णतः ऊपर की तरफ उठ चुका था.. और शीला जितना हो सकें उतना पैर चौड़े कर.. अपनी भोस खुजाते हुए रसिक के लंड को प्यार करती रही.. उत्तेजित होकर जब रसिक बेकाबू हो जाता तब वो शीला के मुंह को ही चूत समझकर अपने लंड को बड़ी ही ताकत से अंदर धकेल देता.. पीछे दीवार और आगे लंड का आक्रामक हमला.. शीला की हवस संतुष्ट कर सकें उतना लंड उसके मुंह के अंदर दाखिल हो रहा था और रसिक के बड़े बड़े अंडकोश, शीला की ठुड्डी से टकरा रहे थे.. रसिक की धीरज अब जवाब दे रही थी..

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पागलों की तरह रसिक का लंड चूस रही शीला को रसिक ने झुककर कहा "बस भाभी.. आप ऐसे ही चूसती रही तो मेरा निकल जाएगा.. और अंदर डालने का मौका ही नहीं मिलेगा.. "

जैसे रसिक की बात सुनी ही न हो वैसे शीला लंड चूसती ही रही.. काफी देर तक चूसने के बाद जब उसका मन तृप्त हुआ तभी उसने मुंह से लंड निकाला.. और रसिक की जांघों के बीच से उठ खड़ी हुई..

शीला के बिखरे हुए बाल.. हवस टपकाती लाल लाल आँखें.. गाल पर चिपका हुआ रसिक का थोड़ा सा वीर्य..!! जबरदस्त लग रही थी शीला..!! रसिक अब शीला के मदमस्त उरोजों पर टूट पड़ा.. और उसके दोनों स्तनों को बेरहमी से मसल दिया.. एक के बाद एक दोनों स्तनों की निप्पलों को चूसते हुए रसिक ने शीला पर धाबा मोल दिया.. एक इंच लंबी निप्पल को काटते ही शीला की सिसकियाँ निकलने लगी.. रसिक शीला को जितना दर्द पहुंचाता उतना ही शीला और हिंसक हो रही थी.. रसिक के लंड को मुठ्ठी में पकड़कर शीला निचोड़ने लगी.. शीला के मांसल गोलों को रसिक जितनी बेरहमी से दबाता.. शीला की उत्तेजना घटने के बजाए और भड़क जाती..

एक दूसरे की बाहों में बाहें डालकर.. जितना हो सकता था उतनी आक्रामकता से एक दूसरे से शरीर का घर्षण कर रहें थे दोनों.. शीला ने अपना घाघरा उठाकर रसिक के लंड को अपनी चिपचिपी बुर पर रगड़ना शुरू कर दिया.. चूत की गर्मी का एहसास अपने लंड के सुपाड़े पर होते ही रसिक का लोडा शीला की मुठ्ठी मे ठुमकने लगा..

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शीला: "ओह्ह रसिक.. अब और नहीं रहा जाता.. जल्दी से मुझे खटिया पर पटककर चोद दें.. जरा भी रहम मत करना.. मर रही हूँ तेरे लंड से चुदने के लिए!! आज तो फाड़ ही डाल मेरी गुफा.. जल्दी जल्दी कर.. आह्ह.. !!"

रसिक: "हाँ भाभी... आपका बदन देखकर मेरा लोडा अब इतना तन चुका है की अब इसे बिना चोदे चैन नहीं मिलने वाला.. पर मैं दरवाजे की कुंडी ठीक से चेक कर लूँ.. कहीं रूखी बेवक्त न टपक पड़े"

रसिक दरवाजे की कुंडी चेक करने गया पर बेचारे नादान रसिक को कहाँ पता था की...

शीला ने रूखी को अपने घर भेजा था.. मदन के पास..!!! ताकि मदन उसके दूध भरे बबलों का लुत्फ उठा सकें.. और जब तक शीला का मिसकॉल नहीं जाता तब तक वो वापिस लौटने वाली नहीं थी.. वैसे शीला को मदन के साथ सेक्स करने मे उतनी दिक्कत नहीं थी.. रात को वैशाली की मौजूदगी के कारण कंट्रोल रखना पड़ता था.. पर दिन भर तो वैशाली ऑफिस रहती थी.. उस समय दोनों चाहें उतना चोद सकते थे.. लेकिन शीला चाहती ही थी की इसी बहाने रसिक के मूसल से ठुकवा सकें.. और मदन भी रूखी के दूध भरे स्तनों को देखकर होश खो बैठा था.. मदन की हवस को ही सीढ़ी बनाते हुए शीला रसिक के लंड तक पहुँच गई थी.. मदन उसी विश्वास में था की इतनी सुंदर, मॉडर्न और सम्पूर्ण संतुष्ट शीला, किसी मामूली से दूधवाले से थोड़े ही चुदवाएगी.. !! पर ऐसा गलत आत्मविश्वास कभी नहीं रखना चाहिए.. स्त्री कभी भी, कुछ भी कर सकती है

मदन बेचारे को कहाँ पता था की जब वो विदेश में मेरी के बबले चूस रहा था तब शीला रसिक के साथ रंगरेलियाँ मना रही थी.. !!

रसिक के सामने ही अपनी चूत खुजाते हुए शीला खटिया पर बैठ गई और अपने सारे वस्त्र उतार दीये.. कपड़े उसने संभालकर खटिया के बगल में इस तरह रखें की जरूरत पड़ने पर वो तुरंत उन्हें पहन सकें.. शीला के पीछे पीछे रसिक आया.. सामने से चलकर आ रहें रसिक की दोनों जांघों के बीच झूल रहें विकराल लोडे को देखकर.. किसी भी स्त्री की नियत बिगड़ सकती थी.. ऐसा मोटा और तगड़ा था उसका लंड.. शीला को नंगी बैठें देख.. रसिक उत्तेजित सांड की तरह बेकाबू हो गया.. और शीला के सामने अपनी बनियान उतार दी.. चौड़े कंधे.. काले घुँघराले बालों से भरी हुई छाती.. देहाती श्याम रंग.. अलमस्त काया.. और साढ़े छह फिट की ऊंचाई.. बड़ी बड़ी मूछें.. कान में चांदी की बाली.. कम से कम 90 किलो वज़न था रसिक का.. !!

शीला: "बाप रे, रसिक.. !! कितना बड़ा है ये तेरा.. !! किसी जवान लड़की के छेद में अगर तू ये तेरा लंड डालेगा तो उस बेचारी की वहीं जान निकल जाएगी.. "

रसिक को अपनी ओर आते देख.. शीला खटिया पर टांगें फैलाकर लेट गई.. उसने खुद ही अपने चूतड़ों के नीचे तकिया सटाकर रख दिया.. आज वो हफ्तों की भूख शांत करने आई थी..!!

धीरे धीरे रसिक शीला के करीब आया.. और खटिया के कोने पर बैठ गया.. शीला की मांसल गदराई जांघों पर हाथ फेरते हुए उसने कहा "कितनी चिकनी है आपकी जांघें, भाभी। इसपर तो मैं अपना लंड रगड़कर ही पानी गिरा सकता हूँ.. " कहते हुए शीला की भोस तक अपना हाथ ले गया.. शीला के पैर तो पहले से ही चौड़े थे.. इसलिए उसके भोसड़े तक पहुँचने में रसिक को जरा भी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा

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खुरदरे हाथों का स्पर्श शीला को और उत्तेजित कर गया.. वो नीचे से अपने चूतड़ उठाकर गोल गोल घुमाने लगी.. "सहलाना बंद कर रसिक.. अंदर चीटीयां काट रही है मुझे.. डाल दे तेरा लंड अंदर.. आह्ह मर गई.. !!"

शीला रूखी के बारे में सोचने लगी.. कितनी किस्मत वाली है वोह.. रोज ऐसे तगड़े लंड से चुदना नसीब हो रहा था उसे.. फिर भी कमीनी जीवा के लंड के पीछे पागल थी.. मायके और ससुराल दोनों में उसके पास उत्कृष्ट कक्षा के तगड़े लंड उपलब्ध थे..

रसिक ने शीला की दोनों जांघों के बीच पोजीशन ले ली.. जिस तरह लड़ाकू विमान टेक-ऑफ के लिए तैयार होते है, बिल्कुल वैसे ही.. रसिक का लंड, शीला की भोसड़े की गंध सूंघकर हिलोरे लेने लगा था..


रसिक ने दोनों हाथों को शीला के घुटनों पर रख दिया.. और दोनों पैरों को अपने कंधे पर ले लिया.. भोसड़े पर लंड टेककर अंदर डालने की कोशिश की.. पर उस तरह लंड अंदर घुस नहीं पा रहा था.. आखिर शीला ने अपने एक हाथ से स्तन मसलते हुए दूसरे हाथ से रसिक के लंड को हाथ में लिया और अपने गरम भांप छोड़ रहे सुराख पर रख दिया.. हल्के से गांड उचकते ही रसिक का सुपाड़ा अंदर घुस गया.. "अब मार धक्के.. जोर से.. फाड़ दे इसे.. आह्ह"

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अब रसिक भी कहाँ पीछे हटने वाला था.. !! उसने दबाकर एक जोरदार धक्का लगाया.. और शीला के भोसड़े को चीरते हुए उसका लंड बच्चेदानी के मुख पर जाकर टकराया..

"ऊईईई माँ... मर गई.. ओह्ह रसिक.. अपना लोडा बाहर निकाल और फिर से इसी तरह एक और धक्का लगा.. आह्ह मज़ा आ गया.. जरा जोर से.. !!" शीला की उत्तेजना बेकाबू हो रही थी.. "कौन जाने क्या खाकर तुझे तेरी माँ ने पैदा किया था.. कितना खूंखार लंड है रे तेरा... अब चोद डाल.. अपनी माँ की चूत समझ कर चोद दे मुझे.. !!"

रसिक ने शीला के पैरों को छोड़ दिया.. और शीला ने उसके कंधों पर दोनों पैरों से कुंडली मार दी.. रसिक ने शीला के दोनों बबलों को अपने हाथों से दबाते हुए.. अपनी अलमस्त काया का पूरा 90 किलो वजन एक साथ ही शीला के ऊपर थोप दिया.. नौ इंच का लंड और नब्बे किलो का वज़न.. बड़े आराम से झेल रही थी शीला.. !!

रसिक के वजनदार धक्कों को शीला ने बड़ी ही आसानी से झेल लिया.. पर खटिया के पैर इसे बर्दाश्त न कर पाएं.. कड़ाके की आवाज के साथ खटिया टूट गई.. "अरे अरे अरे... !!" कहते हुए रसिक शीला को संभालने गया.. पर आखिर न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियम की जीत हुई.. काबिल शीला ने इस स्थिति में भी रसिक का लंड बाहर निकलने नहीं दिया.. उसने अपने भोसड़े की मांसपेशियों के बीच रसिक के लोडे को ऐसा दबोच रखा था की उसके बाहर निकलने की कोई गुंजाइश नहीं थी..

टूटी हुई खटिया से उठने की कोशिश कर रहें रसिक को शीला ने अपनी बाहों में भरते हुए.. उसके पसीने से तर कंधों पर काटते हुए कहा "उठ मत.. चालू ही रख.. इसी स्थिति में धक्के लगाना शुरू कर दे.. मज़ा आ रहा है यार.. "

रसिक ने फिर आव देखा न ताव.. धनाधन धक्के लगाना शुरू कर दिया.. उसके प्रत्येक प्रहार से शीला की भूख और खुजली कुछ कुछ संतुष्ट हो रही थी.. रसिक के कूल्हों को अपने नाखूनों से कुरेदते हुए शीला उसे अपने जिस्म से और सख्ती से दबा रही थी.. रसिक बिना रुकें, शीला को पूरे जोश से चोद रहा था और शीला नीचे तृप्ति के महासागर में गोते लगा रही थी.. शीला भी पसीने से तरबतर हो गई थी जीवन के इस सर्वोच्च आनंद को महसूस करते हुए.. रसिक के पसीने की गंध शीला की हवस को ओर भड़का रही थी..


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टूटी हुई खटिया में चोदना असुविधाजनक तो था ही.. पर जब इच्छाशक्ति प्रबल हो तब कोई भी समस्या ज्यादा देर तक टिक नहीं पाती..

"आहहह रसिक.. लगा जोर से शॉट.. मार डाल मुझे.. ओह्ह आह्ह.. शाबाश.. और जोर से.. ऊईई माँ.. आह्ह अहह.. स्पीड बढ़ा.. मैं झड़ने वाली हूँ.. आ.. आ.. आ.. आ.. आ.... !!" शीला के स्खलन की अंतिम क्षणों में रसिक भी थककर चूर हो गया.. उसके विकराल लंड ने वीर्य की गरम गरम पिचकारी जब बुर के अंदर तक छोड़ी.. तब शीला ने अपने नाखून रसिक की पीठ पर गाड़ दीये.. रसिक की पीठ पर ऐसे निशान बन गए थे जैसे किसी खूंखार शेरनी ने अपना पंजा मार दिया हो.. !!

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शीला के बबले रसिक की छाती के बोझ तले दबकर चपटे हो गए थे.. बबलों की चर्बी का अतिरिक्त हिस्सा.. दोनों बगलों से बाहर झलक रहा था.. टूटी हुई खटिया में.. पैर फैलाकर लेटी शीला तभी शांत हुई जब उसका भोसड़ा पूर्णतः तृप्त हो गया.. रसिक को अपनी बाहों में भींचकर शीला तेजी से हांफने लगी.. बिखरे हुए बाल.. आँखों में तृप्ति के भाव के साथ शीला पड़ी रही.. और उसके ऊपर रसिक ऐसे गिरा हुआ था जैसे एनकाउंटर में मारे गए किसी गुंडे की लावारिस लाश हो..

थोड़ी देर तक दोनों उसी स्थिति में पड़े रहे.. शीला के तकियों जैसे स्तनों पर से उठने का भला कीसे मन होगा.. !! लेकिन रसिक उस स्थिति में भी समय को लेकर चौकन्ना था..

"अब आप मुझे छोड़िए तो मैं खड़ा हो सकूँ.. वैसे मज़ा आ गया आज तो भाभी.. ये रूखी पता नहीं अब तक क्यों नहीं लौटी?? अब तक तो उसे आ जाना चाहिए था.. !! वैसे देखने जाएँ तो अच्छा ही हुआ की वो अब तक नहीं लौटी.. वरना हमारे रंग में भंग पड़ता.. !!"

शीला: "हाँ हाँ उठ जा.. और अपने लोडे को बाहर निकाल.. अंदर एकदम फिट हो गया है.. कुत्तों की तरह.. तू भी कपड़े पहन ले और मैं भी तैयार हो जाती.. फिर कोई आ जाएँ तो भी प्रॉब्लेम नहीं होगा.. "

दोनों ने उठकर कपड़े पहने

रसिक: "अब इस टूटी हुई खटिया का क्या करूँ? घर में ये एक ही खटिया है.. रूखी तो ये देखकर ही मेरी जान निकाल देगी.. शाम तक इसे ठीक कराना ही होगा.. बेकार में खर्चा हो गया मेरा.. !!"

शीला ने तुरंत अपने पर्स से सौ सौ की तीन नोट निकालकर रसिक को थमा दी.. थोड़े से संकोच के साथ, रसिक ने पैसे ले लिए..

रसिक: "शुक्रिया भाभी.. वैसे आज आपके साथ जो मज़ा आया.. ऐसा मज़ा मुझे रूखी के साथ कभी नहीं आता है.. समझ में नहीं आ रहा की रूखी कहाँ मर गई?? कमीनी किसी ओर के साथ तो खटिया नहीं तोड़ रही होगी??"

शीला खिलखिलाकर हंस पड़ी "सब तेरे जैसे थोड़े ही होते है.. चल अब मैं चलती हूँ.. ज्यादा देर बैठूँगी तो फिर से मन हो जाएगा"

रसिक: "अरे भाभी, थोड़ी देर बैठिए ना.. जी करता है की पूरा दिन आपके सामने बैठकर देखता ही रहूँ.. कितनी सुंदर हो आप"

शीला: "ज्यादा रोमेन्टीक मत बन.. ऐसा तो क्या देख लिया तूने मेरे अंदर?"

रसिक: "एक बात कहूँ.. ?? जब हम कर रहे थे.. तब आपने कहा था की अगर मैं अपना ये लंड किसी जवान खूबसूरत लड़की के अंदर घुसा दूँ तो वो मर जाएगी.. उसी से याद आया.. मेरा बहोत मन कर रहा है.. किसी फेशनेबल जवान लड़की को चोदने का.. आप मेरी कुछ मदद करो ना.. !!"

शीला: "साले, मुझे क्या दलाल समझ रखा है तूने?? और तेरा रूप-रंग तो देख.. !! तुझे नंगा देखकर लड़कियां वहीं बेहोश हो जाएगी.. !!"

रसिक: "क्या भाभी आप भी.. !!!"

शीला: "तेरे लिए तो रूखी की गुफा ही ठीक है.. कागज की कश्ती जैसी नाजुक चूतें, तेरा ये मूसल बर्दाश्त ही नहीं कर पाएगी"

शीला के बबलों को दबाते हुए रसिक ने फिर से विनती की.. "कुछ कीजिए ना भाभी, प्लीज"

शीला: "अरे यार.. तू तो मेरे गले ही पड़ गया.. मैं कहाँ से लाऊँ तेरे लिए जवान फेशनेबल लड़की?? और मिल भी जाएँ तो मैं क्या कहूँ उसे?? की जा इस दूधवाले से चुद जा.. !! नहीं भाई नहीं.. मुझसे ये नहीं होगा"

रसिक: "आप को कहीं ढूँढने नहीं जाना है भाभी... आपको तो सिर्फ मुझे मदद करनी है"

शीला: "अच्छा... तूने ढूंढ भी ली है.. !! बता.. कौन है वो अभागी लड़की??"

कमर पर हाथ रखकर जबरदस्त स्टाइल में खड़ी थी शीला.. जिसे देखकर अच्छे से अच्छे मर्दों को छक्के छूट जाएँ..

रसिक: "भाभी.. अगर आप मुझे सहयोग दें तो बगल के चिमन काका के घर ही मेरा काम हो सकता है"

शीला: "मतलब?? तू कविता की बात कर रहा है??" चोंक उठी वो..

कविता से शीला बराबर परिचित थी.. उतना ही नहीं.. वो रसिक और कविता दोनों के शारीरिक भूगोल से भी वाकिफ थी.. इन दोनों के उम्र से लेकर लंड-चूत के नाप तक.. किसी भी चीज में कोई समानता नहीं थी.. ये तो ऐसा हाल होता जैसे किसी कुत्तिया पर गधा चढ़ने की बात कर रहा हो.. शीला की आँखों के सामने.. फटी हुई चूत के साथ.. लहू-लुहान लेटी हुई बेहोश कविता का द्रश्य आ गया.. बाहर खड़ी हुई एम्बुलेंस और पुलिस की गाड़ी भी दिखाई देने लगी.. शीला ने अगर थोड़ी ओर कल्पना की होती तो उसे रसिक की गिरफ़्तारी समेत और कई द्रश्य भी नजर आ जाते

कांप उठी शीला.. क्योंकि वो अच्छे से जानती थी.. कविता की तितली जैसी शोख चंचल काया.. रसिक नाम का सांड.. एक ही पल में रौंद देगा.. रसिक की बात सुनकर.. शीला का दिमाग.. कंप्यूटर से भी तेज चलने लगा.. वो सोचने लगी.. जब मैं कलकत्ता गई थी तब तो कहीं रसिक ने कविता के ऊपर नजर नहीं डाली होगी.. !! अनुमौसी भी रसिक के लंड की दीवानी है.. कहीं अपना भोसड़ा मरवाने के चक्कर में.. मौसी ने कविता का सौदा तो नहीं कर दिया रसिक के साथ.. !! नहीं नहीं.. ऐसा तो नहीं हुआ होगा.. वरना रसिक मुझे ये सब क्यों बताता.. !! सीधा मौसी के साथ ही कविता का सेटिंग कर लेता..

"क्या सोच रही हो भाभी? मेरी बात का बुरा लगा क्या आपको??" चुपचाप बैठकर सोच रही शीला को देखकर रसिक ने पूछा

शीला: "ऐसा कुछ नहीं है रसिक.. कविता का सेटिंग तो मैं नहीं करवा सकती.. पर अगर कोई नए जमाने की मॉडर्न लड़की का कॉन्टेक्ट होगा तो तुझसे मिलवा दूँगी जरूर.. अभी तो ऐसा कोई मेरे ध्यान में नहीं है.. शहर की लड़कियों को मॉडर्न हेंडसम रोमियो टाइप लड़के पसंद होते है.. उन्हें देसी नारियल के पानी से ज्यादा कोक और पेप्सी पसंद होती है.. शुद्ध घी का हलवा खाने से उनका फिगर खराब हो जाता है पर पीत्ज़ा, बर्गर इत्यादि खाने में उन्हें कोई हर्ज नहीं होता.. सब औरतें या लड़कियां मेरे जैसी नहीं होती.. की जिन्हें असली मर्द की परख हो.. अगर तू भी क्लीनशेव होकर मॉडर्न कपड़े पहन ले तो वो लड़कियां तेरे पीछे भागेगी.. हट्टा-कट्टा तो तू है ही.. आजकल दंभ और दिखावे का ज़माना है.. तेरे पास फूटी कौड़ी भी न हो तो चलेगा पर तुझे दिखावा ऐसा करना होगा की जैसे तू करोड़पति हो.. आज कल तो जहर भी अच्छे पेकिंग में डालकर बेच सकते है.. केसर युक्त गुटखा की तरह.. !!"

रसिक: "अरे भाभी.. मैं ठहरा दूधवाला.. अब सूट-बूट पहनकर दूध बेचने निकलूँगा तो कौन खरीदेगा?? ये तो बस एक मेरी ख्वाहिश थी जो मैंने आप को बताई.. वरना मैं कौन सा यहाँ मरा जा रहा हूँ.. और आप तो हो ही मेरे पास.. आप भी मॉडर्न ही हो.. पर कविता का गन्ने जैसा पतला शरीर देखता हूँ तो मन में खयाल आता है की ऐसी लड़की को चोदने में कितना मज़ा आएगा.. !! लंड घुसाने पर कैसे छटपटाएगी.. !!!"

शीला: "मैं समझ सकती हूँ तेरी बात रसिक.. तेरे लोडे में इतनी ताकत है की कोई भी तेरा लेकर छटपटाएगी..!! पर जरा कविता की चूत के बारे में तो सोच.. तू अंदर डालेगा तो बेचारी की फट के फ्लावर बन जाएगी.. मुश्किल से पच्चीस की है कविता.. तेरे जैसा लंड उसने सपने भी देखा नहीं होगा.. उसकी उम्र या अनुभव अधिक होने दे.. वो खुद-ब-खुद चलकर तेरे पास आएगी.. उसके साथ अच्छे संबंध रख.. अभी तो नहीं पर भविष्य में जरूर कुछ होगा.. " आश्वासन देते हुए शीला ने कहा

"वैसे तूने कभी कविता से इस बारे में कुछ बात की है क्या?" शीला का नार्को टेस्ट शुरू हो गया

"नहीं भाभी.. ऐसा तो कुछ नहीं कहा मैंने"

शीला: "तो फिर कविता तेरे दिमाग में कैसे आ गई एकदम से??"

रसिक: "कविता दूध लेते वक्त काफी मज़ाक मस्ती करती है मेरे साथ.. इसलिए मुझे लगा की....!!"

शीला: "रसिक, कविता ऐसी नहीं है.. कोई भी लड़की या स्त्री ऐसी नहीं होती.. जब तक वह खुद असन्तुष्ट हो... मज़ाक करने का मतलब ये नहीं होता की लड़की कुछ भी करने को तैयार है"

रसिक: "वैसे देखने जाए तो पुरुष भी ऐसा सब हालात के मारे ही तो करता है.. मैं आप से जिद नहीं कर रहा भाभी.. पर कभी कविता सामने से खुद अगर ऐसी कोई बात छेड़ें.. तो आप मुझे जरूर याद करना.. !!"

शीला: "पागलों जैसी बातें मत कर.. कविता कभी इस बात के लिए राजी नहीं होगी... और अगर राजी हो भी गई तो तेरा ये गधे जैसा लंड लेने की उसकी क्षमता ही नहीं है.. दो-तीन धक्कों में तो उसकी चूत फट जाएगी.. और तू फंस जाएगा.. गलती से भी ऐसा कुछ मत करना.. किस्मत में होगा तो वो सामने से आएगी.. पर अगर तू जबरदस्ती करने गया और कुछ उंच-नीच हो गई तो लेने के देने पड़ जाएंगे.. !! चल अब मैं चलती हूँ"


आखिरी बार सलाह देकर शीला खड़ी हो गई.. रसिक को एक किस करते हुए वो निकल गई.. घड़ी में देखा तो चालीस मिनट बीत चुके थे.. उतनी देर भी नहीं हुई थी.. वो तृप्त और खुश होते हुए घर पहुंची.. घर का दरवाजा बंद था.. और बाहर किसी की चप्पल पड़ी हुई थी.. शीला ने दरवाजा खटखटाया.. काफी देर के बाद मदन ने दरवाजा खोला.. मदन का हाल बेहाल था.. अस्त-व्यस्त बाल.. सिलवटों वाले कपड़े.. लाल चेहरा.. शीला बिना कुछ कहें घर के अंदर आ गई.. उसने अंदर जाकर बेडरूम में देखा तो बिस्तर पर रूखी बैठी हुई थी.. उसका रंग-रूप और हावभाव देखकर ये साफ प्रतीत हो रहा था की मदन के साथ गुलछर्रे उड़ा चुकी थी.. बिखरा हुआ बिस्तर इस बात की गँवाही दे रहा
Shandaar shila bhabhi jaisi maa ho to chidne me maja aa jaye
 

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राजेश सर की इनोवा में, कविता, पिंटू, वैशाली और पीयूष बैठे हुए थे.. पीयूष के दोस्त की कार में मदन, शीला, रेणुका और राजेश थे.. !!

पूरे रास्ते में सब ने बातें करते हुए बहोत मजे किए.. ये ट्रिप, वैशाली के लिए बड़ी ही यादगार थी.. पिंटू से करीबी होते ही वो संजय की कड़वी यादों को भुला रही थी..

मदन और राजेश की बीच भी अच्छी मित्रता हो गई थी.. रात को हाइवे की एक होटल में डिनर के लिए जब दोनों गाड़ियां रुकी.. तब शीला को अपने दामाद संजय और हाफ़िज़ के संग गुजारे हनीमून की याद आ गई.. संजय, हाफ़िज़, जॉन और चार्ली की याद आते ही शीला का भोसड़ा चुनमुनाने लगा..

सब लोग रेस्टोरेंट की तरफ जा रहे थे तब शीला, रेणुका को लेकर टॉइलेट की तरफ गई.. शीला और रेणुका तो पहले से ही बहोत अच्छी सखियाँ थी.. बाथरूम की तरफ जाते हुए, शीला ने अपनी बातों से रेणुका को भी बेहद गरम कर दिया.. उसने गोवा की ट्रिप के बारे में बताया.. पर ये नहीं बताया की वो अपने दामाद के साथ गई थी.. गोवा में कैसे उसने अंग्रेज जॉन का लंड लिया था.. रास्ते में कैसे कार के ड्राइवर ने उसके बबले दबाए थे.. और फिर ऐसी ही एक होटल के बाहर.. अंधेरे में कैसे उसने बाहर चुदवाया था..

मिर्च-मसाला लगाकर उसने सारी बातें रेणुका को बताई.. रेणुका की हालत खराब हो गई, ये सब सुनकर.. !! उसकी दोनों आँखों से हवस टपकने लगी.. !! शीला देखकर ही समझ गई की रेणुका को लंड की भूख सता रही थी.. टॉइलेट में दोनों अलग अलग क्यूबिकल में पेशाब करके बाहर निकली.. वॉशबेज़ीन में रेणुका जब झुककर अपने हाथ धो रही थी.. तब उसके पल्लू के नीचे से.. काँखों की बगल में.. उसके स्तन लटकते हुए नजर आने लगे..

लेडीज टॉइलेट में उन दोनों के अलावा और कोई नहीं था.. शीला भी बहोत उत्तेजित थी.. वो रेणुका के पीछे खड़ी हो गई और अपनी चूत को उसके चूतड़ों पर दबाकर.. दोनों हाथ आगे ले गई.. और उसके दोनों स्तनों को ब्लाउस के अंदर हाथ डालते हुए सख्ती से पकड़ लिए..!! और उसकी निप्पलों को मसलते हुए, मर्द की तरह धक्के लगाने लगी..

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अपने हाथ धोकर, रेणुका खड़ी हुई और हाथ पोंछे तब तक शीला उसकी गर्दन पर जीभ फेरते हुए चाटकर उसे उत्तेजित करने लगी थी.. वो शीला की तरफ मुड़ी.. और उसके गदराए जिस्म को बाहों मे भरकर उसके होंठों पर रेणुका ने एक उत्तेजक चुंबन कर दिया... शीला के आवेग भरे आक्रमण के आगे रेणुका ज्यादा देर तक खुद को संभाल नहीं पाई.. और शीला के थूक को चाटते चाटते वो अपनी जीभ को अंदर डाल डालकर चूसने लगी.. दोनों के बड़े बड़े स्तन, एकाकार हो गए थे.. !!

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रेणुका: "यार, पहले तो तूने मुझे अपनी बातों से गरम कर दिया.. और अब अपनी इन हरकतों से बेकाबू कर रही है.. !! इरादा क्या है तेरा शीला?? तुझे पता तो है की यहाँ पर कुछ भी ज्यादा कर पाना मुमकिन नहीं है.. !! फिर क्यों उकसा रही है मुझे??"

रेणुका के दोनों बबलों को हाथों से मसलते हुए शीला ने कहा "यार, मुझसे रहा ही नहीं गया.. तू अपने आप पर काबू कर सकती है.. पर मुझे तो एक बार लंड की तलब लग जाएँ फिर मैं कंट्रोल नहीं कर सकती.. मुझे लंड चाहिए ही चाहिए.. !! कैसे भी करके मुझे चुदवाना पड़ेगा.. !! देख तो.. नीचे क्या हालत हो रही है यार.. !!" रेणुका का हाथ पकड़कर अपने घाघरे के नीचे डालते हुए.. पेन्टी के अंदर.. अपनी रस से लसलसित भोसड़े पर दबा दिया..

रेणुका: "हाँ यार.. नीचे तो बवाल मचा हुआ है तेरे.. मेरा भी हाल कुछ ऐसा ही हो रहा है.. पर अब क्या करें?? यहाँ लंड कहाँ से लाएं??"

शीला: "अब तो और क्या हो सकता है.. !! तू तो घर जाकर.. बड़ी मस्ती से... टांगें फैलाकर.. राजेश के लंड से मस्त होकर चुदवा लेगी.. मुझे तो वैशाली के कारण बहोत कंट्रोल में रहना पड़ता है.. अपने आप को रोकते हुए चुदवाना मुझे जरा भी अच्छा नहीं लगता.. अपनी आवाज को रोककर रखना पड़ता है.. कहीं वैशाली सुन न ले.. ऐसे में कहाँ मज़ा आएगा..!! एक काम करते है रेणु.. !!"

शीला के रसद्रवित भोसड़े में तीन तीन उँगलियाँ एक साथ अंदर बाहर करते हुए रेणुका ने कहा "हाँ हाँ .. बोल ना.. !!"


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"खाना खाकर.. जब हम वापिस गाड़ी में बैठें.. तब तू पहले से ही राजेश के साथ आगे बैठ जाना.. मैं मदन के साथ पीछे बैठ जाऊँगी.. अंदर तो ले नहीं पाऊँगी.. पर मदन के हाथों मूठ मरवा लूँगी.. !! वो बॉल दबाते दबाते उंगली डालेगा तो मैं जल्दी फ्रेश हो जाऊँगी.. जब पूरी थाली नसीब न हो तब नाश्ते से ही काम चलाना पड़ता है..!!"

रेणुका: "कार में?? राजेश की मौजूदगी में तुझे शर्म नहीं आएगी??"

शीला: "उसका सारा ध्यान तो ड्राइविंग में ही होगा.. तुझे एक और काम करना होगा.. पास बैठे बैठे.. तू राजेश के साथ छेड़खानियाँ करती रहना.. मर्दों को ऐसा सब बहोत पसंद होता है.. तू चुपके से अंधेरे में उसके लंड पर हाथ रखकर सहलाते रहना.. उसका ध्यान फिर कहीं और भटकेगा ही नहीं.. और तुम दोनों की हरकतें देखकर, फिर हम दोनों शुरू हो जाएंगे.. !! जब हमाम में सब नंगे हो फिर भला शर्म कैसी??"

रेणुका: "साली, तू एक नंबर की शातिर है.. !!"

शीला: "और हाँ.. सिर्फ ऊपर ऊपर से ही मत सहलाना.. चैन खोलकर बाहर भी निकालना.. मैं भी तो देखूँ.. किस लंड से तू रोज चुदवाती है.. इसी बहाने राजेश का लंड देखने मिल जाएगा"

रेणुका: "सिर्फ देखने में क्या मज़ा आएगा तुझे.. !! मेरे पति का लंड देखकर तुझे कहाँ संतोष होने वाला है.. !! ये तो ऐसी चीज है जिसे देखकर बेचैनी और बढ़ जाती है.. शीला, अगर सही में मजे करने हो तो.. तू राजेश के साथ बैठ और मैं मदन के साथ बैठती हूँ.. जस्ट फॉर चेंज.. मज़ा आएगा"

हवसखोर शीला, रेणुका की यह बात सुनकर एकदम बेकाबू हो गई

"ओह्ह रेणुका.. ये तूने क्या कह दिया??? मेरा और मदन का बहोत पुराना सपना है.. पार्टनर बदल कर सेक्स करने का.. पर वो आज तक पूरा नहीं हुआ है.." शीला ने सिसकते हुए कहा.. रेणुका के हाथ को अपने भोसड़े पर और सख्ती से दबा दिया उसने

रेणुका: "क्या सच में?? हम दोनों भी ऐसे मौके की तलाश में है.. असल में.. राजेश के कॉन्टेक्ट में एक कपल है.. जो पार्टनर चेंज करने के लिए राजी है.. पर वो लोग बहोत घबरा रहे है.. इसलिए अबतक मिलना नहीं हुआ.. वेबसाइट पर कॉन्टेक्ट हुआ है.. वो लोग रोज मेसेज भेजते है.. राजेश बता रहा था की उस वेबसाइट पर ऐसे पचास से ज्यादा जोड़ों का ग्रुप है.. जो आपस में पार्टनर बदलते रहते है.. यार, मुझे तो सुनकर ही ऐसा मज़ा आ गया था.. पर अब तक कुछ हो नहीं पाया यार.. !!"

शीला: "ओह्ह रेणुका.. तू ऐसी सब बातें मत कर.. आह्ह.. तू एक काम कर.. राजेश को कोने में ले जाकर बता दे.. की वो मेरे साथ ही बैठें.. और वो निःसंकोच होकर मेरे बबले दबाएं.. और उसे जो मर्जी कर्रे मेरे साथ.. मुझे बुरा नहीं लगेगा.. मैं मदन को तैयार करती हूँ.. हम कार में ही पार्टनर बदल लेते है.. मस्त सेटिंग हो जाएगा.. !! अगर राजेश भी मेरे और मदन जैसा खुले विचारों वाला हो तो.. हम एक कमरे में ही ग्रुप सेक्स का सेटिंग कर सकते है.. "

रेणुका: "हाँ यार.. राजेश को वैसे तो कोई प्रॉब्लेम नहीं होना चाहिए.. तभी तो वो उस वेबसाइट पर कपल ढूंढ रहा था.. पर अनजाने लोगों के साथ यह सब करने में बड़ा जोखिम होता है.. इसलिए वो भी थोड़ा सा झिझक रहा था"

शीला: "हाँ, वो तो है.. पर हमारे साथ तो ये प्रॉब्लेम भी नहीं होगा.. किसी को कानोंकान खबर भी नहीं लगेगी.. चल अब चलते है.. कहीं कोई आ गया तो तकलीफ हो जाएगी"

रेणुका: "एक मिनट रुक जा शीला.. मेरे दिमाग में ओर एक आइडिया आ रहा है"

शीला: "अरे यार, जल्दी चल.. सब इंतज़ार कर रहे होंगे हमारा.. जाते जाते बताना तेरा आइडिया.. !!"

रेणुका ने शीला की चूत से उँगलियाँ बाहर निकाली और हाथ धो लिए.. दोनों टॉइलेट से बाहर निकली.. मदन और राजेश बातें कर रहे थे.. वैशाली और कविता भी बातों में उलझी हुई थी.. पीयूष अपने मोबाइल पर लगा हुआ था

चलते चलते शीला ने पूछा "अब बोल, क्या बता रही थी तू?"

रेणुका: "मैं ये सोच रही थी.. हम अभी अपने मर्दों को इस बारे में कुछ नहीं बताएंगे.. हम ऐसे पेश आएंगे जैसे हम खुद ही एक दूसरे के पतिओ को पटा रहे है.. उन्हें बिना कुछ कहें"

शीला: "कार में ये सब कैसे करेंगे?? उससे अच्छा तो बता कर ही करते है"

रेणुका: "मैं जैसे कह रही हूँ वैसा कर.. हम फिलहाल अपने अपने पार्टनर के साथ ही बैठेंगे"

शीला: "ठीक है यार.. जैसा तू कहें.. पर एक दूसरे के पति के साथ बातें तो कर सकते है ना.. !!"

रेणुका: "हाँ कर सकते है.. पर सिर्फ बातें ही करनी है अभी के लिए.. बाकी सब छुप छुपकर करना होगा.. कल से हम फोन पर शुरू करेंगे.. तू राजेश को फोन करना और मैं मदन को फोन करूंगी.. हम दोनों आपस में एक दूसरे को सब बता देंगे.. पर अपने पति को कुछ नहीं बताएंगे.. फिर देखते है.. हमारे मर्द कैसे पेश आते है"

शीला: "यार, गजब का आइडिया सोचा है तूने.. मतलब अब इस उम्र में हमें फ्लर्ट करना होगा.. वो भी एक दूसरे के पति के साथ.. !!"

रेणुका: "अरे यार, फ्लर्ट करने के लिए कोई उम्र थोड़े ही होती है.. !! वो तो कभी भी कर सकते है"

दोनों चलते चलते टेबल के पास आई.. अपने अपने पति के पास बैठ गई.. थोड़ी देर के बाद.. शीला ने कहा "यार यहाँ कोने में मुझे घुटन हो रही है.. रेणुका, तुझे प्रॉब्लेम न हो तो तू यहाँ बैठ जाएगी?" रेणुका तुरंत ही उठ खड़ी हुई और मदन के पास बैठ गई.. मुसकुराते हुए शीला राजेश के पास आकर बैठ गई

पीयूष, कविता, पिंटू और वैशाली एक टेबल पर थोड़े दूर बैठे थे.. उन्हें इन चारों में कोई दिलचस्पी नहीं थी.. कविता को जरा सा भी अंदाजा नहीं था की उसके प्रेमी पिंटू के प्रति, वैशाली आकर्षित हो चुकी थी.. आपस में बातें करते हुए, वैशाली और पिंटू और करीब आते जा रहे थे.. अठारह बीस साल की लड़की, लड़कों के दिखावे से आकर्षित होती थी.. पर तीस की उम्र पार कर चुकी लड़कियां, लड़के के विचार, सद्गुण और सलामती देखकर आकर्षित होती है..

राजेश: "ये तो आप दोनों ने अदला-बदली कर दी.. मेरे साथ शीला जी और मदन के साथ रेणुका.. हा हा हा हा"

रेणुका ने शर्म के मारे आँखें झुका दी..

राजेश: "अरे, मैं तो मज़ाक कर रहा था"

शैतानी मुस्कान के साथ शीला ने कहा "अच्छा मज़ाक था.. !!"

मदन ने चोंककर रेणुका के सामने देखा.. वो कनखियों से मदन को देख रही थी.. उसने अपनी नजरें फेर ली.. और खाना खाने पर ध्यान केंद्रित किया

खाना खाकर सब वापिस अपनी गाड़ियों में बैठ गए.. पीयूष की गाड़ी आगे जाने दी और मदन ड्राइविंग सीट पर बैठ गया..

रेणुका: "अरे राजेश, मदन कब से गाड़ी चला रहा है.. थक गया होगा.. थोड़ी देर तू गाड़ी चला ले"

राजेश" "मैं बस बोलने ही वाला था.. मैं चला लेता हूँ.. !!"

मदन को रेणुका की ये बात बहोत अच्छी लगी "थेंकस रेणुका.. मैं वाकई थक चुका हूँ"

राजेश ड्राइवर सीट पर बैठ गया और रेणुका उसके साथ.. शीला और मदन पीछे की सीट पर बैठ गए

जैसे ही गाड़ी चली.. शीला ने मदन की जांघों पर हाथ रख दिया.. और मदन के सामने देखकर, शैतानी भरी मुस्कान देते हुए आँख मारी.. धीरे से उसके लंड को सहला रही शीला का हाथ पकड़कर मदन ने उसके कान में कहा "यार, क्यों सो रहे सांप को जगा रही है?? ये जाग गया तो फिर शिकार मांगेगा.. "

शीला ने मदन के कान मे कहा "तेरे सांप में अब शिकार करने का दम ही कहाँ है.. !!"

शीला इतनी उत्तेजित थी की उसने मदन की मर्दानगी को ही ललकार दिया.. जब भी उसका भरपूर चुदाई का मन हो तब वो मदन को ऐसा ही कुछ बोलकर उकसाती.. और फिर मदन उसे बेरहमी से चोद देता.. !!

शीला की आँखों से टपकती वासना को देखकर मदन सोच में पड़ गया.. ये साली इस समय गरमाए बैठी हुई है?? यहाँ गाड़ी में, राजेश और रेणुका की मौजूदगी में.. इसे कैसे शांत करूँ.. !!

शीला: "बहोत गर्मी हो रही है यार.. रेणुका, जरा एसी तेज कर दे"

रेणुका ने मुसकुराते हुए कहा "अब तुझे इस उम्र में बड़ी गर्मी चढ़ रही है.. !! देखना.. कहीं घर जाकर मदन को अपनी आग में मत झोंक देना.. तेरी आग के बारे में, मैं अच्छे से जानती हूँ.. एसी की हवा से शांत नहीं होने वाली तू"

शीला: "चुप कर बदमाश.. कुछ भी बोलती रहती है.. वैसे गर्मी तो तेरे अंदर भी कुछ कम नहीं है.. अच्छे अच्छों को पिघलाने का हुनर है तुझ में.. !!"

रेणुका: "अब वो तो महसूस करने वाले को पता.. की मेरे अंदर कितनी गर्मी है.. पर हम भी अपनी गर्मी उन्हीं को दिखाते है जिसमे इस गर्मी को शांत करने की ताकत हो"

रेणुका और शीला, जान बूझकर खुलकर बातें कर रही थी.. उनकी बातें सुनकर मदन और राजेश को भी थोड़ा सा ताज्जुब हुआ.. धीरे धीरे दोनों ज्यादा से ज्यादा खुलने लगी..

ब्लाउस से एक स्तन बाहर निकालकर, ड्राइव कर रहे राजेश का हाथ खींचकर, उसपर रख दिया रेणुका ने.. टाइट ब्लाउस से पूरा स्तन तो बाहर नहीं निकाल पाई.. पर आधे स्तन की उभरी हुई निप्पल पर वो राजेश की हथेली को रगड़ने लगी.. इस हरकत से.. और रेणुका तथा शीला की उत्तेजक बातें सुनकर.. राजेश का लंड पतलून में तंबू बनाकर खड़ा हो गया

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रेणुका राजेश का लंड बाहर निकालना चाहती थी.. पर उसके पेंट की चैन खुल ही नहीं रही थी.. शीला की बातें सुनकर राजेश का लंड इतना सख्त होकर अंदर से दबाव बना रहा था की चैन खुलने ही नहीं दे रहा था.. रेणुका ऊपर ऊपर से ही.. उस कचौड़ी जैसे फुले हुए हिस्से को सहलाने लगी.. आखिर राजेश ने ही रेणुका का काम आसान करने के लिए.. अपने पेंट का एक बटन खोल दिया.. बटन खुलते ही.. आधी चैन अपने आप खुल गई.. वी शैप की अन्डरवेर के साइड से सख्त लोडे को बाहर निकालकर, राजेश ने रेणुका के हाथों में सौंप दिया.. जिसे पकड़ते ही रेणुका की आह्ह निकल गई..

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रेणुका ने अपना चेहरा राजेश के कान के करीब लाकर.. बिल्कुल धीमे से कहा "माय गॉड.. ये क्या है राजेश!! इतना टाइट तो आज तक कभी नहीं हुआ.. मैं नंगी होकर अपनी चूत फैलाकर तेरे मुंह पर रख देती हूँ तब भी इतना कडक नहीं होता है.. " रेणुका की इन हरकतों को देखकर शीला समझ गई की राजेश का लंड बाहर निकल चुका है.. मदन की मौजूदगी की जरा भी परवाह किए बगैर, शीला ने थोड़ा सा आगे आकर रेणुका के हाथ में जकड़े राजेश के लंड को देखा..

मदन: "क्या देख रही है शीला? शर्म नहीं आती तुझे?"

शीला ने बेधड़क होकर कहा "अच्छा.. अभी तू साइड से.. रेणुका के स्तन को देख रहा था.. तब तुझे शर्म नहीं आई थी?"

शीला ने मदन का लंड बाहर निकाला और झुककर चूसने लगी.. मदन की आँखें बंद हो गई.. शीला के कामुक होंठों ने लंड के इर्दगिर्द ऐसी पकड़ बना ली थी की वो अपने आपे से बाहर हो रहा था.. अपनी जीभ से शीला ऐसा कमाल कर रही थी की मदन से रहा नहीं जा रहा था.. ये तो मदन था जो शीला की इस कामुक चुसाई को बर्दाश्त कर पा रहा था.. और कोई होता तो उसके लंड ने कब का इस्तीफा दे दिया होता.. !!

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मदन ने शीला के सर को पकड़े रखा था.. जब वो लंड अंदर लेने के लिए झुकती तब वो अपनी गांड उठाकर उसके मुंह में अंदर तक अपना लंड पेल देता.. शीला के मुंह से विचित्र आवाज़ें निकल रही थी.. शीला जान बूझकर ज्यादा आवाज़ें कर रही थी.. वो चाहती थी की रेणुका और राजेश उसकी आवाजों को सुने.. पर मदन को बहोत शर्म आ रही थी.. शीला और रेणुका एक दूसरे के सामने देखते हुए बार बार हंस रही थी..

राजेश ने पीछे देखते हुए कहा : "अरे क्या हो रहा है पीछे?" राजेश को अंदाजा तो लग गया था पर फिर भी उसने पूछा

मदन ने आगे की सीट पर बैठे राजेश के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा "भाई, कुछ नहीं हो रहा है.. तुम अपना ध्यान ड्राइव करने पर ही रखो..वरना एक्सीडेंट हो जाएगा"

हँसते हुए राजेश ने ड्राइविंग पर ध्यान केंद्रित किया.. पर रेणुका को मदन कैसे रोकता?? वो तो पीछे देखने लगी.. झुकी हुई शीला को..

मदन ने शरमाते हुए कहा "वो जरा शीला सफर के कारण थक गई है इसलिए मेरी गोद में सो रही है.. थोड़ा सा वॉमीट जैसा हो रहा है उसे इसलिए ऐसी आवाज़ें निकाल रही है" वैसे रेणुका को पता ही था की शीला क्या कर रही थी..

रेणुका: "अच्छा.. ?? मुझे तो ऐसी आवाज़ें आई जैसे कोई कुल्फी चूस रहा हो"

राजेश: "कहीं कोई गुड न्यूज़ तो नहीं है ना शीला भाभी..!! मदन, हम सब का मुंह मीठा करवाना पड़ेगा.. इस बार तो पक्का लड़का ही होगा..!!" उसने हँसते हँसते कहा

मदन: "क्या राजेश तू भी?? इस उम्र में अगर तुझे मिठाई खानी हो तो मुझे किसी 20 साल की लड़की से ब्याहना पड़ेगा.. मेरी तलवार में तो अब भी वार करने की ताकत है.. पर तेरी भाभी की म्यान सूख चुकी है.. !!"

अपना सिर ऊपर नीचे करते हुए मदन के लंड को चूस रही शीला को रेणुका देखती ही रही.. मदन शर्म से पानी पानी हो रहा था.. रेणुका ने राजेश के लंड को अपनी मुठ्ठी में दबाकर हिलाते हुए शीला को देखने के लिए पलटी.. तब उसका खुला हुआ गोरा स्तन, मदन की आँखों के बिल्कुल सामने आ गया.. मदन को अपने बबले को तांकते हुए देखकर.. रेणुका ने बिना शरमाये, राजेश के गाल पर किस कर दिया.. और मदन की तरफ देखकर उसे आँख मारी.. और कहा.. "आप दोनों इतना सब कर सकते हो तो हम इतना तो कर ही सकते है ना.. !!" इतनी मादक आवाज में रेणुका ने आमंत्रण भरी आँखों से मदन की ओर देखकर कहा

मदन: "आप को जो करना हो कर सकते हो.. मैंने कब मना किया.. ?? अगर आप को भी वॉमीट होने जैसा हो रहा हो तो आप भी गोद में सो जाइए.. जो करना हो कीजिए.. बस पीछे मत देखिए"

रेणुका : "एक बार शीला का हो जाने दो.. फिर सोचती हूँ"

मदन चोंक गया "मतलब?? मैं मेरी गोद में सुलाने की बात नहीं कर रहा हूँ.. क्या आप भी!!!"

राजेश ड्राइविंग करते करते इन सारी बातों का मज़ा ले रहा था

मदन की गोद में मुंह डालकर चूस रही शीला ने मुंह से लंड निकाला और कहा "मुझे कोई प्रॉब्लेम नहीं है रेणुका.. तू मदन की गोद में मुंह डालेगी तो मैं भी राजेश की गोद में मुंह डाल दूँगी" इतना कहकर शीला फिर से मदन का लंड चूसने में मशरूफ़ हो गई..

रेणुका को महसूस हुआ.. की जब शीला ने राजेश की गोद में जाने की बात खी.. तब राजेश का लंड और कडा हो गया.. वो इस बारे में राजेश के कान में कुछ कहने ही वाली थी.. चेहरा उसके कान के करीब ले जाकर वो कुछ कहती.. उससे पहले ही मदन ने पीछे से रेणुका के गोरे चिकने गाल पर एक हल्की सी पप्पी कर दी.. रेणुका का पूरा शरीर सिहरने लगा.. सिर्फ आधी सेकंड में ये हो गया.. राजेश और शीला को तो इसके बारे में पता तक नहीं चला क्योंकि राजेश आगे बैठा था और शीला का चेहरा नीचे था.. रेणुका के जिस्म में रोमांच और उत्तेजना की एक लहर सी दौड़ गई.. अपने पति की मौजूदगी में किसी गैर मर्द से चूमे जाने का विचार भी रोमांचित कर देता है..

जैसे कुछ न हुआ हो वैसे रेणुका राजेश के लंड से खेलती रही..

पीछे की सीट पर मदन का पूरा शरीर तंग हो गया.. शीला मुंह से लंड निकालकर उठ गई.. और अपनी टांगों के बीच हाथ डालकर उसने पेन्टी उतारकर पर्स में रख दी.. फिर दोनों हाथों से उसने अपना घाघरा उठाया.. और अपनी नंगी चूत को खुद ही सहलाने लगी.. पूरी कार में शीला के भोसड़े की मादक गंध फैल गई.. आगे की सीट पर बैठा राजेश भी समझ गया की पीछे क्या हो रहा था..

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राजेश ने रेणुका से कहा : "अरे यार.. ठीक से बबले बाहर निकाल.. इस तरह आधे आधे में कुछ मज़ा नहीं आ रहा.. पीछे देखकर कुछ तो सीख.. !!"

रेणुका ने तुरंत अपने ब्लाउस के तमाम हुक खोल दीये.. और अपने दोनों खरगोशों को खोल दिया.. "पहले से बोलना चाहिए था ना तुझे.. !! बिना कहें मुझे कैसे पता चलता.. ले दबा ले.. जितना मन करें.. !!" रेणुका जान बूझकर थोड़ी ऊंची आवाज में बोली ताकि मदन को भी सुनाई दे..

राजेश ने भी ऊंची आवाज में.. शीला सुन सके उस तरह कहा "तुझे अपने बबलों को कभी ढंकना ही नहीं चाहिए.. कपड़ों के पीछे ये बिल्कुल भी अच्छे नहीं लगते"

"ऊँहहह.. जरा धीरे धीरे दबा यार.. तोड़ देगा क्या??" अंगड़ाई लेते हुए रेणुका ने कहा.. "और इन्हें जरूरत के समय ही खोल सकते है.. तुम्हारा भी हर वक्त खड़ा थोड़े ही रहता है?? जब जरूरत होती है तभी तो उठता है तुम्हारा.. !!"

"आह्ह रेणु... अब तो रहा नहीं जाता" राजेश ने सिसकते हुए कहा

"आज कुछ ज्यादा ही टाइट हो गया है तेरा.. डार्लिंग, परफ़ॉर्मन्स के टाइम तो इतना सख्त नहीं होता तेरा.. !! आज क्या खास हो गया??"

राजेश: "आज का माहोल ही कुछ ऐसा है जानु.. तू भी आज कितनी खिली खिली लग रही है.. इतना तो बेडरूम में कभी नहीं चमकती.. किसी और बेटसमेन का साथ इनिंग खेलना का मन तो नहीं बना लिया.. हा हा हा हा हा.. !!"

मदन: "नई जगह हो.. और नया क्लाइमेट हो तब खेलने में ज्यादा मज़ा आता है.. राजेश तुझे घास वाली पिच ज्यादा पसंद है या बिना घास की?"

राजेश: "मुझे घास से कोई मतलब नहीं.. हाँ अगर पिच नई मिल जाए तो बेटिंग करने का मज़ा आ जाएँ"

मदन और राजेश क्या बात कर रहे थे वो दोनों महिलायें अच्छी तरह समझ रही थी.. और वो भी मजे ले रही थी

कामुक हरकतें और बातें करते करते वो लोग कब शहर पहुँच गए, पता ही नहीं चला.. !!

राजेश ने रेणुका को एक आखिरी किस देकर कहा "चलो अब बाकी सब घर जाके करना.. हम पहुँच रहे है" राजेश ने अपना लंड रेणुका के हाथ से छुड़ाते हुए कहा और बड़ी मुश्किल से उसे पेंट में फिर से कैद किया..

शीला ने अपना घाघरा नीचे कर दिया.. इतना सब करने के बावजूद वो झड़ नहीं पाई थी.. ऐसे वातावरण में सबके सामने उसका झड़ना मुमकिन भी नहीं था.. उसे चाहिए था तड़कता-भड़कता स्खलन.. चीखते चिल्लाते हुए.. आवाज को रोककर झड़ना उसे बिल्कुल पसंद नहीं था..

चारों एकदम नॉर्मल होकर ठीक से बैठ गए.. शहर के अंदर घुसते ही.. एक होटल के पास, पीयूष गाड़ी खड़ी रखकर इन चारों का इंतज़ार कर रहा था.. राजेश और रेणुका गाड़ी से उतरे.. और अपनी गाड़ी में बैठ गए.. पीयूष, कविता और वैशाली उतरकर दूसरी गाड़ी में बैठ गए.. राजेश अपनी गाड़ी में पिंटू को ले गया.. क्योंकि दूसरी गाड़ी में जगह नहीं बची थी..

सब अपने अपने घर पहुँच गए.. मदन अब कोई नया बिजनेस ढूंढ रहा था.. और वैशाली अपना जीवनसाथी.. !!!
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
वाह वाह क्या मस्त तरीका अपनाया रेणुका और शीला ने अपने अपने साथी बदल कर चुदाई करने का
और उसकी कुछ हद तक शुरुवात भी कर ली चलती कार में और राजेश और मदन पुरी तरहा से एक दुसरे के साथ खुल भी गये
बहुत ही मस्त
 

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सब अपने अपने घर पहुँच गए.. मदन अब कोई नया बिजनेस ढूंढ रहा था.. और वैशाली अपना जीवनसाथी.. !!!

संजय के साथ जो कुछ भी हुआ उसके बाद, इंस्पेक्टर तपन के कहने पर मदन ने शहर के एक बड़े वकील के द्वारा वैशाली के तलाक का केस दाखिल करवा दिया था.. जब तक ये मामला शांति से निपट नहीं जाता तब तक मदन ने वैशाली को इंतज़ार करने की हिदायत दी हुई थी..

कविता के लौट जाने के बाद, वैशाली पीयूष की कंपनी बहोत मिस कर रही थी.. जब कविता नहीं थी तब दोनों ने साथ में बड़े मजे कीये थे.. पर अब कविता की हाज़री में वो पीयूष से दूर ही रहने लगी थी.. पीयूष को भी इस बात का अंदाजा लग चुका था इसलिए वो भी सब के सामने वैशाली से अंतर बनाकर रखता था

मौसम की शादी की तारीख तय हो चुकी थी.. दीपावली के पंद्रह दिन बाद का मुहूरत था.. सुबोधकान्त और रमिलाबहन शादी की तैयारियों में व्यस्त हो गए थे.. कविता भी, जब मौका मिलता, अपनी बहन की शादी के लिए शॉपिंग करने निकल पड़ती.. और लड़कियों/औरतों को शॉपिंग पसंद भी इतना होती है.. भूख प्यास सब भूल जाते है.. अरे, मोहल्ले में कोई चूड़ी बेचने वाला भी आवाज लगाएं तो सब काम छोड़कर उसे मधूमक्खियों की तरह घेर लेती है.. रोज दोपहर को खाने के बाद, कविता वैशाली को लेकर शॉपिंग के लिए निकल जाती थी.. बहन की शादी थी इसलिए कविता का उत्साहित होना लाज़मी भी था..

पिछले हफ्ते जब कविता मायके में थी तब वो घंटों पिंटू के साथ बातें करती थी.. पर घर लौटने के बाद वो सब बंद हो गया था.. बहोत मिस कर रही थी वो पिंटू को.. पीयूष मौसम को मिस कर रहा था.. पति और पत्नी दोनों के दिलों में उदासी छाई हुई थी.. और उसका असर उनके सहजीवन पर भी पड़ रहा था.. रात को बिस्तर पर लेटकर न कविता सेक्स को याद करती और ना पीयूष याद दिलाता.. कविता को पीयूष का लंड पकड़ने का मन भी नहीं हो रहा था.. और पीयूष, मौसम के साथ गुजारें उन हसीन लम्हों को याद करते हुए कविता के बगल में ही सो जाता.. मौसम अब पराई हो गई थी ये सदमा पीयूष बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था.. अंदर ही अंदर वो तरुण के प्रति ईर्ष्या से जल रहा था..

एक दिन शीला और मदन घर के बाहर बरामदे में झूले पर बैठे हुए थे.. वैशाली अंदर मोबाइल पर चैट कर रही थी.. पिंटू के साथ.. पिंटू अब जैसे उसके जीवन का हिस्सा बन चुका था.. ऑफिस में तो खैर वो दोनों ज्यादा बातें नहीं करते थे.. पर घर पहुँचने के बाद दोनों मोबाइल पर भरपूर चैट करते थे.. चैट पर भी पिंटू ने कभी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया था.. और उसकी इस बात ने वैशाली को बेहद आकर्षित किया था.. अक्सर कविता उसके सामने पिंटू को बहोत तारीफ करती रहती थी.. और वैशाली ने खुद भी यह अनुभव किया था..

वैशाली ने शीला को भी यह बता दिया था की पिंटू के साथ उसकी अच्छी पटती थी.. शीला और मदन को इस बात से कोई दिक्कत नहीं थी.. उल्टा शीला ने उसे हिदायत देते हुए कहा था की उसका जब भी पिंटू से मिलने का मन करें तब वो दोनों घर पर ही मिलें.. समाज की नज़रों में वैशाली अब भी संजय की पत्नी थी.. वो लोग बाहर कहीं मिलते तो लोग हजार बातें बनाते..

शीला और मदन आराम से झूले पर झूल रहे थे

शीला: "मदन, घर पर बैठे बैठे बोर हो गई मैं तो.. कहीं जाने का मन कर रहा है यार.. सिर्फ हम दोनों.. !!"

मदन समझ गया की शीला का भोसड़ा चुदने के लिए फड़फड़ा रहा था.. इसलिए बेचैन हो रही थी शीला.. लंड लेने के लिए तड़प रही थी.. कुछ करना पड़ेगा.. !! शीला चोदते वक्त इतनी आवाज़ें करती थी की वैशाली दूसरे कमरे में भी आराम से सुन पाती.. इसलिए काफी दिनों से चुदाई का कोई कार्यक्रम नहीं हुआ था

मदन: "सही कहा तूने.. राजेश से बात करते है.. साथ में दो तीन दिनों के लिए कहीं घूम आते है.. फ्रेश हो जाएंगे"

शीला: "पर घूमने जाएंगे तो वैशाली को भी साथ ले जाना पड़ेगा ना.. उसे छोड़कर नहीं जा सकते"

मदन: "फिर तो वही बात हो गई.. !! वैशाली साथ मे होंगी तो फिर क्या फायदा.. !!"

शीला: "हम्म कुछ करना पड़ेगा.. कोई ऐसी जगह ढूँढ़नी पड़ेगी जहां हम दोनों खुलकर मजे कर सकें"

मदन: "अरे शीला.. वो दूधवाले की बीवी हमारी कुछ मदद कर सकती है क्या? उसका घर मिल सकता है क्या?"

शीला: "हम्म.. बात तो तेरी सही है.. पर उससे कैसे कहूँ?? कुछ सेटिंग तो करना पड़ेगा यार.. मैं कुछ करती हूँ.. उसे एक बार घर मिलने बुलाती हूँ.. नहीं तो मैं ही उसके घर मिलने चली जाती हूँ" शीला और मदन दोनों की आँखों मे चमक आ गई.. रूखी के दूध भरे बबलों के बारे मे सोचते ही मदन की आँखों मे सांप लोटने लगे..

शीला: "मुझे पता ही की तुझे वो दूधवाले की बीवी क्यों याद आई.. पर उसके इतने बड़े बड़े है की तेरे हाथ मे भी नहीं आएंगे" मदन की जांघ पर चिमटी काटते हुए शीला ने शरारती अंदाज मे कहा

मदन: "अरे यार, ऐसा नहीं है.. तू किसी और जगह का जुगाड़ कर दे.. मुझे प्रॉब्लेम नहीं है" अपनी चोरी पकड़े जाने पर मदन ने सफाई दी "अरे हाँ शीला.. राजेश के घर पर हो सकता है क्या?"

शीला: "नहीं यार.. अभी अभी उनसे मित्रता हुई है.. ऐसी बातों के लिए उनसे घर मांगने मे झिझक होगी"

मदन: "तो फिर उस दूधवाले के घर के अलावा और कोई चारा नहीं है"

शीला: "देखती हूँ, क्या हो सकता है"

उस रात को, हवस हद से ज्यादा बढ़ जाने पर.. शीला और मदन ने अपनी आवाजों को रोककर चुदाई की.. बगल के कमरे मे वैशाली सो रही थी इसलिए दोनों को चुपचाप चोदना पड़ा.. बिलकुल मज़ा नहीं आया..!!

सुबह साढ़े पाँच बजे, रसिक की साइकिल की घंटी सुनकर, शीला की आँख खुल गई.. शीला उठकर बेडरूम से बाहर आई.. और बेडरूम का दरवाजा बंद कर दिया.. वो बाहर आई और मुख्य दरवाजा खोला.. रसिक सामने ही खड़ा था

रसिक: "पतीला नहीं लाई भाभी?? दूध कैसे लोगी?"

शीला: "रोज सिर्फ दूध ही देगा?? या और कुछ भी है तेरे पास देने के लिए??" शीला ने अपना गाउन ऊपर किया.. अंदर न ब्रा पहनी थी और ना ही पेन्टी.. अपना भोसड़ा दिखाते हुए वो बोली "इसमें दूध लेना है मुझे.. बोल, कब देगा?"

शीला के मदमस्त नंगे बबलों को दोनों हथेलियों से दबाते हुए रसिक ने कहा "मैं तो मार रहा हूँ देने के लिए भाभी.. आप कहो तो अभी घुसा दूँ"

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शीला: "मेरी बात ध्यान से सुन.. आज अभी साढ़े दस बजे मैं तेरे घर आऊँगी.. रूखी को कहीं भेज देना एक घंटे के लिए.. किसी को पता नहीं लगना चाहिए.. तेरे माँ बाप तो आगे के कमरे मे रहेंगे.. मैं पीछे के रास्ते अंदर आ जाऊँगी.. तेरा घर तो काफी बड़ा है.. पीछे के कमरे मे करेंगे"

रसिक: "ठीक है भाभी" जाते जाते उसने शीला की निप्पलों को बारी बारी मुँह मे भरकर चूस लिया.. और शीला के हाथ मे अपना लोडा भी पकड़ा दिया.. खूँटे जैसे लंड को पकड़कर शीला थरथराने लगी.. रसिक चला गया

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रोज पीयूष के साथ ऑफिस जाती वैशाली... आज पीयूष के चले जाने के बाद अकेले ही ऑफिस जाने निकली.. रास्ते मे उसने पिंटू को फोन किया.. ऑफिस मे तो सब की मौजूदगी के कारण खुलकर बात नहीं हो पाती थी.. काफी दिनों से कविता का भी फोन नहीं आया था इसलिए वैशाली से बातें करना पिंटू को बहोत अच्छा लगता था.. दोनों यहाँ वहाँ की बातें करते थे.. ऑफिस पहुँचने तक वैशाली पिंटू से बात करती रहती.. यह रोज का नित्याक्रम बन चुका था..

वैशाली के जाने के बाद साढ़े नौ बजे, मदन को बताकर, शीला रसिक के घर जाने के लिए तैयार हो गई.. मदन सोच रहा था की शीला घर का सेटिंग करने जा रही है.. हालांकि शीला तो खुद का सेटिंग करने निकली थी

मदन: "हाँ जाकर आ.. तू कहें तो मैं भी साथ चलूँ?"

शीला: "पागल है क्या?? तेरी मौजूदगी मे रूखी से ऐसी बात भला कैसे पूछूँ?"

मदन: "ठीक है.. तू अकेली ही चली जा.. बेस्ट ऑफ लक"

घर से बाहर निकलते निकलते शीला को हंसी आ रही थी.. अब मदन को क्या कहें?? बाहर चुदवाने जा रही बीवी को ये बेवकूफ "बेस्ट ऑफ लक" कह रहा था..

वो फटाफट चलते चलते रसिक के घर की ओर जाने लगी.. रास्ते मे उसने एक कॉल किया.. कॉल खतम करके वो मुसकुराते हुए चल पड़ी.. रसिक के घर पहुंचकर.. वो पीछे के रास्ते चुपके से चली गई.. और दरवाजा खटखटाने लगी.. रसिक ने दरवाजा खोला और शीला को हाथ से पकड़कर अंदर खींच लिया.. और दरवाजा बंद कर उसे दबोच लिया

रसिक की बाहों मे शीला का बदन हवस से तपने लगा... जानबूझकर आज वो बिना ब्रा पहने आई थी.. रसिक के हाथ और उसके बबलों के बीच कुछ नहीं आना चाहिए..

"सब सलामत है ना.. !! कोई आ तो नहीं जाएगा?" शीला ने कहा

"चिंता मत कीजिए.. पीछे के कमरे मे कोई नहीं आता" रसिक ने शीला के बबलों को रौंदना शुरू कर दिया

रसिक का हाथ स्तनों पर फिरते ही शीला की जवानी उछलने लगी..

"यार तू ऊपर सहला रहा है और नीचे से मेरा पानी छूटना शुरू हो गया.. आह रसिक" पाजामे के ऊपर से रसिक का लंड पकड़ते हुए शीला ने कहा "ये तो तैयार ही खड़ा है"


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"अरे भाभी, सुबह से.. जब से आपने घर आने का कहा.. तब से ये तैयार है.. !! पर आप एक मिनट रुकिए भाभी" शीला का हाथ अपने लंड से हटाते हुए रसिक खड़ा हो गया

"अब क्या है यार? सारी तैयारी पहले से ही कर लेनी चाहिए तुझे.. इसलिए तो पहले से बताया था.. " चूत की खुजली से परेशान शीला ने कहा

रसिक छोटी से खिड़की को बंद कर रहा था.. पीछे से उसकी विशाल पीठ को देखकर शीला सोच रही थी की.. इसके पूर्वज जरूर असुर योनि से होंगे.. तभी ये इतना हट्टा-कट्टा राक्षस जैसा है.. साला जब ऊपर चढ़ता है तब पूरा जिस्म छील जाता है..

रसिक ने खटिया के सामने एक टेबल लगा दिया और उसपर नाश्ते की डिश सजा दी.. अगर कोई आ भी जाएँ तो दिखाने के लिए..

"अब सब ठीक है.. आप जैसे मर्जी करवा लीजिए.. कोई दिक्कत नहीं होगी"

रसिक की लंगोट मे हाथ डालकर उसके मूसल जैसे लंड को पकड़ते ही शीला के बदन मे सुरसुरी होने लगी.. मदन ने एक बार एक ब्लू फिल्म दिखाई थी जिसमे लड़कियां घोड़े के लंड से खेल रही थी.. घोड़े के चार पैरों के बीच बैठकर.. लड़किया उस विकराल तीन फुट लंबे लंड से विकृति पूर्वक खेल रही थी.. रसिक का लंड पकड़ते ही शीला को वो सीन की याद आ गई.. आँखें बंद कर वो रसिक के लंड को सहलाती रही..



"आह्ह भाभी, जल्दी कीजिए.. बाहर भी निकालिए इसे.. कब तक खेलती रहोगी" रसिक ने बेचैन होकर कहा

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शीला ने लंगोट से रसिक के लंड को बाहर निकाला.. आह्ह.. देखते ही शीला सिहर उठी.. विकराल अजगर जैसा रसिक का दमदार लंड.. टमाटर जितना बड़ा सुपाड़ा.. और लंड की फुली हुई नसें.. शीला की कलाई जितना मोटा था रसिक का लंड.. !! शीला की चूत ने रस और गंध छोड़ना शुरू कर दिया था.. जबरदस्त उत्तेजित हो गई थी वो.. उसके स्तन एकदम सख्त हो गए थे.. निप्पलें तनकर खड़ी हो गई थी..

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दोनों हाथों से लंड को जड़ से पकड़कर.. शीला ने अपने मुंह मे डाल दीया... आँखें बंद कर उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उस ब्लू फिल्म की हीरोइन की तरह वो भी घोड़े का लंड चूस रही है.. वो तब तक चूसती रही जब तक की उसका मुंह दर्द नहीं करने लगा.. रसिक के आँड़ भी अंडे की साइज़ के थे.. शीला उसके लंड और आँड पर टूट पड़ी थी.. कभी लंड को चूमती.. तो कभी आँड़ों को मुंह मे भरकर चूसती.. वैसे तो शीला को मदन का लंड चूसने मे भी मज़ा आता था.. पर रसिक के मूसल की बात ही निराली थी..

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शीला की चूत अब बगावत पर उतर आई थी.. इतनी तेज खुजली हो रही थी इस लंड को देखकर.. शीला ने ब्लाउस के हुक खोल दीये.. और अपने नारियल जैसे स्तनों को मुक्त कर दिया.. अत्यंत उत्तेजित होकर उसने अपने दोनों चुचे रसिक के लंड पर रगड़ दीये.. शीला के स्तनों से रगड़ खाकर रसिक का लंड लोहे के गरम सरिये जैसा हो गया था.. शीला ने अपने दोनों विराट स्तनों के बीच रसिक का लंड दबा दिया.. शीला की छातियों का नरम नरम स्पर्श मिलते ही रसिक का लोडा भी फुदकने लगा.. शीला के नखरे रसिक को पागल बना रहे थे..

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वो खड़े खड़े.. शीला के दूध जैसे गोरे बबलों को देख रहा था.. दीवार पर अपना सर टीकाकर बैठी शीला का घाघरा पूर्णतः ऊपर की तरफ उठ चुका था.. और शीला जितना हो सकें उतना पैर चौड़े कर.. अपनी भोस खुजाते हुए रसिक के लंड को प्यार करती रही.. उत्तेजित होकर जब रसिक बेकाबू हो जाता तब वो शीला के मुंह को ही चूत समझकर अपने लंड को बड़ी ही ताकत से अंदर धकेल देता.. पीछे दीवार और आगे लंड का आक्रामक हमला.. शीला की हवस संतुष्ट कर सकें उतना लंड उसके मुंह के अंदर दाखिल हो रहा था और रसिक के बड़े बड़े अंडकोश, शीला की ठुड्डी से टकरा रहे थे.. रसिक की धीरज अब जवाब दे रही थी..

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पागलों की तरह रसिक का लंड चूस रही शीला को रसिक ने झुककर कहा "बस भाभी.. आप ऐसे ही चूसती रही तो मेरा निकल जाएगा.. और अंदर डालने का मौका ही नहीं मिलेगा.. "

जैसे रसिक की बात सुनी ही न हो वैसे शीला लंड चूसती ही रही.. काफी देर तक चूसने के बाद जब उसका मन तृप्त हुआ तभी उसने मुंह से लंड निकाला.. और रसिक की जांघों के बीच से उठ खड़ी हुई..

शीला के बिखरे हुए बाल.. हवस टपकाती लाल लाल आँखें.. गाल पर चिपका हुआ रसिक का थोड़ा सा वीर्य..!! जबरदस्त लग रही थी शीला..!! रसिक अब शीला के मदमस्त उरोजों पर टूट पड़ा.. और उसके दोनों स्तनों को बेरहमी से मसल दिया.. एक के बाद एक दोनों स्तनों की निप्पलों को चूसते हुए रसिक ने शीला पर धाबा मोल दिया.. एक इंच लंबी निप्पल को काटते ही शीला की सिसकियाँ निकलने लगी.. रसिक शीला को जितना दर्द पहुंचाता उतना ही शीला और हिंसक हो रही थी.. रसिक के लंड को मुठ्ठी में पकड़कर शीला निचोड़ने लगी.. शीला के मांसल गोलों को रसिक जितनी बेरहमी से दबाता.. शीला की उत्तेजना घटने के बजाए और भड़क जाती..

एक दूसरे की बाहों में बाहें डालकर.. जितना हो सकता था उतनी आक्रामकता से एक दूसरे से शरीर का घर्षण कर रहें थे दोनों.. शीला ने अपना घाघरा उठाकर रसिक के लंड को अपनी चिपचिपी बुर पर रगड़ना शुरू कर दिया.. चूत की गर्मी का एहसास अपने लंड के सुपाड़े पर होते ही रसिक का लोडा शीला की मुठ्ठी मे ठुमकने लगा..

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शीला: "ओह्ह रसिक.. अब और नहीं रहा जाता.. जल्दी से मुझे खटिया पर पटककर चोद दें.. जरा भी रहम मत करना.. मर रही हूँ तेरे लंड से चुदने के लिए!! आज तो फाड़ ही डाल मेरी गुफा.. जल्दी जल्दी कर.. आह्ह.. !!"

रसिक: "हाँ भाभी... आपका बदन देखकर मेरा लोडा अब इतना तन चुका है की अब इसे बिना चोदे चैन नहीं मिलने वाला.. पर मैं दरवाजे की कुंडी ठीक से चेक कर लूँ.. कहीं रूखी बेवक्त न टपक पड़े"

रसिक दरवाजे की कुंडी चेक करने गया पर बेचारे नादान रसिक को कहाँ पता था की...

शीला ने रूखी को अपने घर भेजा था.. मदन के पास..!!! ताकि मदन उसके दूध भरे बबलों का लुत्फ उठा सकें.. और जब तक शीला का मिसकॉल नहीं जाता तब तक वो वापिस लौटने वाली नहीं थी.. वैसे शीला को मदन के साथ सेक्स करने मे उतनी दिक्कत नहीं थी.. रात को वैशाली की मौजूदगी के कारण कंट्रोल रखना पड़ता था.. पर दिन भर तो वैशाली ऑफिस रहती थी.. उस समय दोनों चाहें उतना चोद सकते थे.. लेकिन शीला चाहती ही थी की इसी बहाने रसिक के मूसल से ठुकवा सकें.. और मदन भी रूखी के दूध भरे स्तनों को देखकर होश खो बैठा था.. मदन की हवस को ही सीढ़ी बनाते हुए शीला रसिक के लंड तक पहुँच गई थी.. मदन उसी विश्वास में था की इतनी सुंदर, मॉडर्न और सम्पूर्ण संतुष्ट शीला, किसी मामूली से दूधवाले से थोड़े ही चुदवाएगी.. !! पर ऐसा गलत आत्मविश्वास कभी नहीं रखना चाहिए.. स्त्री कभी भी, कुछ भी कर सकती है

मदन बेचारे को कहाँ पता था की जब वो विदेश में मेरी के बबले चूस रहा था तब शीला रसिक के साथ रंगरेलियाँ मना रही थी.. !!

रसिक के सामने ही अपनी चूत खुजाते हुए शीला खटिया पर बैठ गई और अपने सारे वस्त्र उतार दीये.. कपड़े उसने संभालकर खटिया के बगल में इस तरह रखें की जरूरत पड़ने पर वो तुरंत उन्हें पहन सकें.. शीला के पीछे पीछे रसिक आया.. सामने से चलकर आ रहें रसिक की दोनों जांघों के बीच झूल रहें विकराल लोडे को देखकर.. किसी भी स्त्री की नियत बिगड़ सकती थी.. ऐसा मोटा और तगड़ा था उसका लंड.. शीला को नंगी बैठें देख.. रसिक उत्तेजित सांड की तरह बेकाबू हो गया.. और शीला के सामने अपनी बनियान उतार दी.. चौड़े कंधे.. काले घुँघराले बालों से भरी हुई छाती.. देहाती श्याम रंग.. अलमस्त काया.. और साढ़े छह फिट की ऊंचाई.. बड़ी बड़ी मूछें.. कान में चांदी की बाली.. कम से कम 90 किलो वज़न था रसिक का.. !!

शीला: "बाप रे, रसिक.. !! कितना बड़ा है ये तेरा.. !! किसी जवान लड़की के छेद में अगर तू ये तेरा लंड डालेगा तो उस बेचारी की वहीं जान निकल जाएगी.. "

रसिक को अपनी ओर आते देख.. शीला खटिया पर टांगें फैलाकर लेट गई.. उसने खुद ही अपने चूतड़ों के नीचे तकिया सटाकर रख दिया.. आज वो हफ्तों की भूख शांत करने आई थी..!!

धीरे धीरे रसिक शीला के करीब आया.. और खटिया के कोने पर बैठ गया.. शीला की मांसल गदराई जांघों पर हाथ फेरते हुए उसने कहा "कितनी चिकनी है आपकी जांघें, भाभी। इसपर तो मैं अपना लंड रगड़कर ही पानी गिरा सकता हूँ.. " कहते हुए शीला की भोस तक अपना हाथ ले गया.. शीला के पैर तो पहले से ही चौड़े थे.. इसलिए उसके भोसड़े तक पहुँचने में रसिक को जरा भी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा

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खुरदरे हाथों का स्पर्श शीला को और उत्तेजित कर गया.. वो नीचे से अपने चूतड़ उठाकर गोल गोल घुमाने लगी.. "सहलाना बंद कर रसिक.. अंदर चीटीयां काट रही है मुझे.. डाल दे तेरा लंड अंदर.. आह्ह मर गई.. !!"

शीला रूखी के बारे में सोचने लगी.. कितनी किस्मत वाली है वोह.. रोज ऐसे तगड़े लंड से चुदना नसीब हो रहा था उसे.. फिर भी कमीनी जीवा के लंड के पीछे पागल थी.. मायके और ससुराल दोनों में उसके पास उत्कृष्ट कक्षा के तगड़े लंड उपलब्ध थे..

रसिक ने शीला की दोनों जांघों के बीच पोजीशन ले ली.. जिस तरह लड़ाकू विमान टेक-ऑफ के लिए तैयार होते है, बिल्कुल वैसे ही.. रसिक का लंड, शीला की भोसड़े की गंध सूंघकर हिलोरे लेने लगा था..


रसिक ने दोनों हाथों को शीला के घुटनों पर रख दिया.. और दोनों पैरों को अपने कंधे पर ले लिया.. भोसड़े पर लंड टेककर अंदर डालने की कोशिश की.. पर उस तरह लंड अंदर घुस नहीं पा रहा था.. आखिर शीला ने अपने एक हाथ से स्तन मसलते हुए दूसरे हाथ से रसिक के लंड को हाथ में लिया और अपने गरम भांप छोड़ रहे सुराख पर रख दिया.. हल्के से गांड उचकते ही रसिक का सुपाड़ा अंदर घुस गया.. "अब मार धक्के.. जोर से.. फाड़ दे इसे.. आह्ह"

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अब रसिक भी कहाँ पीछे हटने वाला था.. !! उसने दबाकर एक जोरदार धक्का लगाया.. और शीला के भोसड़े को चीरते हुए उसका लंड बच्चेदानी के मुख पर जाकर टकराया..

"ऊईईई माँ... मर गई.. ओह्ह रसिक.. अपना लोडा बाहर निकाल और फिर से इसी तरह एक और धक्का लगा.. आह्ह मज़ा आ गया.. जरा जोर से.. !!" शीला की उत्तेजना बेकाबू हो रही थी.. "कौन जाने क्या खाकर तुझे तेरी माँ ने पैदा किया था.. कितना खूंखार लंड है रे तेरा... अब चोद डाल.. अपनी माँ की चूत समझ कर चोद दे मुझे.. !!"

रसिक ने शीला के पैरों को छोड़ दिया.. और शीला ने उसके कंधों पर दोनों पैरों से कुंडली मार दी.. रसिक ने शीला के दोनों बबलों को अपने हाथों से दबाते हुए.. अपनी अलमस्त काया का पूरा 90 किलो वजन एक साथ ही शीला के ऊपर थोप दिया.. नौ इंच का लंड और नब्बे किलो का वज़न.. बड़े आराम से झेल रही थी शीला.. !!

रसिक के वजनदार धक्कों को शीला ने बड़ी ही आसानी से झेल लिया.. पर खटिया के पैर इसे बर्दाश्त न कर पाएं.. कड़ाके की आवाज के साथ खटिया टूट गई.. "अरे अरे अरे... !!" कहते हुए रसिक शीला को संभालने गया.. पर आखिर न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियम की जीत हुई.. काबिल शीला ने इस स्थिति में भी रसिक का लंड बाहर निकलने नहीं दिया.. उसने अपने भोसड़े की मांसपेशियों के बीच रसिक के लोडे को ऐसा दबोच रखा था की उसके बाहर निकलने की कोई गुंजाइश नहीं थी..

टूटी हुई खटिया से उठने की कोशिश कर रहें रसिक को शीला ने अपनी बाहों में भरते हुए.. उसके पसीने से तर कंधों पर काटते हुए कहा "उठ मत.. चालू ही रख.. इसी स्थिति में धक्के लगाना शुरू कर दे.. मज़ा आ रहा है यार.. "

रसिक ने फिर आव देखा न ताव.. धनाधन धक्के लगाना शुरू कर दिया.. उसके प्रत्येक प्रहार से शीला की भूख और खुजली कुछ कुछ संतुष्ट हो रही थी.. रसिक के कूल्हों को अपने नाखूनों से कुरेदते हुए शीला उसे अपने जिस्म से और सख्ती से दबा रही थी.. रसिक बिना रुकें, शीला को पूरे जोश से चोद रहा था और शीला नीचे तृप्ति के महासागर में गोते लगा रही थी.. शीला भी पसीने से तरबतर हो गई थी जीवन के इस सर्वोच्च आनंद को महसूस करते हुए.. रसिक के पसीने की गंध शीला की हवस को ओर भड़का रही थी..


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टूटी हुई खटिया में चोदना असुविधाजनक तो था ही.. पर जब इच्छाशक्ति प्रबल हो तब कोई भी समस्या ज्यादा देर तक टिक नहीं पाती..

"आहहह रसिक.. लगा जोर से शॉट.. मार डाल मुझे.. ओह्ह आह्ह.. शाबाश.. और जोर से.. ऊईई माँ.. आह्ह अहह.. स्पीड बढ़ा.. मैं झड़ने वाली हूँ.. आ.. आ.. आ.. आ.. आ.... !!" शीला के स्खलन की अंतिम क्षणों में रसिक भी थककर चूर हो गया.. उसके विकराल लंड ने वीर्य की गरम गरम पिचकारी जब बुर के अंदर तक छोड़ी.. तब शीला ने अपने नाखून रसिक की पीठ पर गाड़ दीये.. रसिक की पीठ पर ऐसे निशान बन गए थे जैसे किसी खूंखार शेरनी ने अपना पंजा मार दिया हो.. !!

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शीला के बबले रसिक की छाती के बोझ तले दबकर चपटे हो गए थे.. बबलों की चर्बी का अतिरिक्त हिस्सा.. दोनों बगलों से बाहर झलक रहा था.. टूटी हुई खटिया में.. पैर फैलाकर लेटी शीला तभी शांत हुई जब उसका भोसड़ा पूर्णतः तृप्त हो गया.. रसिक को अपनी बाहों में भींचकर शीला तेजी से हांफने लगी.. बिखरे हुए बाल.. आँखों में तृप्ति के भाव के साथ शीला पड़ी रही.. और उसके ऊपर रसिक ऐसे गिरा हुआ था जैसे एनकाउंटर में मारे गए किसी गुंडे की लावारिस लाश हो..

थोड़ी देर तक दोनों उसी स्थिति में पड़े रहे.. शीला के तकियों जैसे स्तनों पर से उठने का भला कीसे मन होगा.. !! लेकिन रसिक उस स्थिति में भी समय को लेकर चौकन्ना था..

"अब आप मुझे छोड़िए तो मैं खड़ा हो सकूँ.. वैसे मज़ा आ गया आज तो भाभी.. ये रूखी पता नहीं अब तक क्यों नहीं लौटी?? अब तक तो उसे आ जाना चाहिए था.. !! वैसे देखने जाएँ तो अच्छा ही हुआ की वो अब तक नहीं लौटी.. वरना हमारे रंग में भंग पड़ता.. !!"

शीला: "हाँ हाँ उठ जा.. और अपने लोडे को बाहर निकाल.. अंदर एकदम फिट हो गया है.. कुत्तों की तरह.. तू भी कपड़े पहन ले और मैं भी तैयार हो जाती.. फिर कोई आ जाएँ तो भी प्रॉब्लेम नहीं होगा.. "

दोनों ने उठकर कपड़े पहने

रसिक: "अब इस टूटी हुई खटिया का क्या करूँ? घर में ये एक ही खटिया है.. रूखी तो ये देखकर ही मेरी जान निकाल देगी.. शाम तक इसे ठीक कराना ही होगा.. बेकार में खर्चा हो गया मेरा.. !!"

शीला ने तुरंत अपने पर्स से सौ सौ की तीन नोट निकालकर रसिक को थमा दी.. थोड़े से संकोच के साथ, रसिक ने पैसे ले लिए..

रसिक: "शुक्रिया भाभी.. वैसे आज आपके साथ जो मज़ा आया.. ऐसा मज़ा मुझे रूखी के साथ कभी नहीं आता है.. समझ में नहीं आ रहा की रूखी कहाँ मर गई?? कमीनी किसी ओर के साथ तो खटिया नहीं तोड़ रही होगी??"

शीला खिलखिलाकर हंस पड़ी "सब तेरे जैसे थोड़े ही होते है.. चल अब मैं चलती हूँ.. ज्यादा देर बैठूँगी तो फिर से मन हो जाएगा"

रसिक: "अरे भाभी, थोड़ी देर बैठिए ना.. जी करता है की पूरा दिन आपके सामने बैठकर देखता ही रहूँ.. कितनी सुंदर हो आप"

शीला: "ज्यादा रोमेन्टीक मत बन.. ऐसा तो क्या देख लिया तूने मेरे अंदर?"

रसिक: "एक बात कहूँ.. ?? जब हम कर रहे थे.. तब आपने कहा था की अगर मैं अपना ये लंड किसी जवान खूबसूरत लड़की के अंदर घुसा दूँ तो वो मर जाएगी.. उसी से याद आया.. मेरा बहोत मन कर रहा है.. किसी फेशनेबल जवान लड़की को चोदने का.. आप मेरी कुछ मदद करो ना.. !!"

शीला: "साले, मुझे क्या दलाल समझ रखा है तूने?? और तेरा रूप-रंग तो देख.. !! तुझे नंगा देखकर लड़कियां वहीं बेहोश हो जाएगी.. !!"

रसिक: "क्या भाभी आप भी.. !!!"

शीला: "तेरे लिए तो रूखी की गुफा ही ठीक है.. कागज की कश्ती जैसी नाजुक चूतें, तेरा ये मूसल बर्दाश्त ही नहीं कर पाएगी"

शीला के बबलों को दबाते हुए रसिक ने फिर से विनती की.. "कुछ कीजिए ना भाभी, प्लीज"

शीला: "अरे यार.. तू तो मेरे गले ही पड़ गया.. मैं कहाँ से लाऊँ तेरे लिए जवान फेशनेबल लड़की?? और मिल भी जाएँ तो मैं क्या कहूँ उसे?? की जा इस दूधवाले से चुद जा.. !! नहीं भाई नहीं.. मुझसे ये नहीं होगा"

रसिक: "आप को कहीं ढूँढने नहीं जाना है भाभी... आपको तो सिर्फ मुझे मदद करनी है"

शीला: "अच्छा... तूने ढूंढ भी ली है.. !! बता.. कौन है वो अभागी लड़की??"

कमर पर हाथ रखकर जबरदस्त स्टाइल में खड़ी थी शीला.. जिसे देखकर अच्छे से अच्छे मर्दों को छक्के छूट जाएँ..

रसिक: "भाभी.. अगर आप मुझे सहयोग दें तो बगल के चिमन काका के घर ही मेरा काम हो सकता है"

शीला: "मतलब?? तू कविता की बात कर रहा है??" चोंक उठी वो..

कविता से शीला बराबर परिचित थी.. उतना ही नहीं.. वो रसिक और कविता दोनों के शारीरिक भूगोल से भी वाकिफ थी.. इन दोनों के उम्र से लेकर लंड-चूत के नाप तक.. किसी भी चीज में कोई समानता नहीं थी.. ये तो ऐसा हाल होता जैसे किसी कुत्तिया पर गधा चढ़ने की बात कर रहा हो.. शीला की आँखों के सामने.. फटी हुई चूत के साथ.. लहू-लुहान लेटी हुई बेहोश कविता का द्रश्य आ गया.. बाहर खड़ी हुई एम्बुलेंस और पुलिस की गाड़ी भी दिखाई देने लगी.. शीला ने अगर थोड़ी ओर कल्पना की होती तो उसे रसिक की गिरफ़्तारी समेत और कई द्रश्य भी नजर आ जाते

कांप उठी शीला.. क्योंकि वो अच्छे से जानती थी.. कविता की तितली जैसी शोख चंचल काया.. रसिक नाम का सांड.. एक ही पल में रौंद देगा.. रसिक की बात सुनकर.. शीला का दिमाग.. कंप्यूटर से भी तेज चलने लगा.. वो सोचने लगी.. जब मैं कलकत्ता गई थी तब तो कहीं रसिक ने कविता के ऊपर नजर नहीं डाली होगी.. !! अनुमौसी भी रसिक के लंड की दीवानी है.. कहीं अपना भोसड़ा मरवाने के चक्कर में.. मौसी ने कविता का सौदा तो नहीं कर दिया रसिक के साथ.. !! नहीं नहीं.. ऐसा तो नहीं हुआ होगा.. वरना रसिक मुझे ये सब क्यों बताता.. !! सीधा मौसी के साथ ही कविता का सेटिंग कर लेता..

"क्या सोच रही हो भाभी? मेरी बात का बुरा लगा क्या आपको??" चुपचाप बैठकर सोच रही शीला को देखकर रसिक ने पूछा

शीला: "ऐसा कुछ नहीं है रसिक.. कविता का सेटिंग तो मैं नहीं करवा सकती.. पर अगर कोई नए जमाने की मॉडर्न लड़की का कॉन्टेक्ट होगा तो तुझसे मिलवा दूँगी जरूर.. अभी तो ऐसा कोई मेरे ध्यान में नहीं है.. शहर की लड़कियों को मॉडर्न हेंडसम रोमियो टाइप लड़के पसंद होते है.. उन्हें देसी नारियल के पानी से ज्यादा कोक और पेप्सी पसंद होती है.. शुद्ध घी का हलवा खाने से उनका फिगर खराब हो जाता है पर पीत्ज़ा, बर्गर इत्यादि खाने में उन्हें कोई हर्ज नहीं होता.. सब औरतें या लड़कियां मेरे जैसी नहीं होती.. की जिन्हें असली मर्द की परख हो.. अगर तू भी क्लीनशेव होकर मॉडर्न कपड़े पहन ले तो वो लड़कियां तेरे पीछे भागेगी.. हट्टा-कट्टा तो तू है ही.. आजकल दंभ और दिखावे का ज़माना है.. तेरे पास फूटी कौड़ी भी न हो तो चलेगा पर तुझे दिखावा ऐसा करना होगा की जैसे तू करोड़पति हो.. आज कल तो जहर भी अच्छे पेकिंग में डालकर बेच सकते है.. केसर युक्त गुटखा की तरह.. !!"

रसिक: "अरे भाभी.. मैं ठहरा दूधवाला.. अब सूट-बूट पहनकर दूध बेचने निकलूँगा तो कौन खरीदेगा?? ये तो बस एक मेरी ख्वाहिश थी जो मैंने आप को बताई.. वरना मैं कौन सा यहाँ मरा जा रहा हूँ.. और आप तो हो ही मेरे पास.. आप भी मॉडर्न ही हो.. पर कविता का गन्ने जैसा पतला शरीर देखता हूँ तो मन में खयाल आता है की ऐसी लड़की को चोदने में कितना मज़ा आएगा.. !! लंड घुसाने पर कैसे छटपटाएगी.. !!!"

शीला: "मैं समझ सकती हूँ तेरी बात रसिक.. तेरे लोडे में इतनी ताकत है की कोई भी तेरा लेकर छटपटाएगी..!! पर जरा कविता की चूत के बारे में तो सोच.. तू अंदर डालेगा तो बेचारी की फट के फ्लावर बन जाएगी.. मुश्किल से पच्चीस की है कविता.. तेरे जैसा लंड उसने सपने भी देखा नहीं होगा.. उसकी उम्र या अनुभव अधिक होने दे.. वो खुद-ब-खुद चलकर तेरे पास आएगी.. उसके साथ अच्छे संबंध रख.. अभी तो नहीं पर भविष्य में जरूर कुछ होगा.. " आश्वासन देते हुए शीला ने कहा

"वैसे तूने कभी कविता से इस बारे में कुछ बात की है क्या?" शीला का नार्को टेस्ट शुरू हो गया

"नहीं भाभी.. ऐसा तो कुछ नहीं कहा मैंने"

शीला: "तो फिर कविता तेरे दिमाग में कैसे आ गई एकदम से??"

रसिक: "कविता दूध लेते वक्त काफी मज़ाक मस्ती करती है मेरे साथ.. इसलिए मुझे लगा की....!!"

शीला: "रसिक, कविता ऐसी नहीं है.. कोई भी लड़की या स्त्री ऐसी नहीं होती.. जब तक वह खुद असन्तुष्ट हो... मज़ाक करने का मतलब ये नहीं होता की लड़की कुछ भी करने को तैयार है"

रसिक: "वैसे देखने जाए तो पुरुष भी ऐसा सब हालात के मारे ही तो करता है.. मैं आप से जिद नहीं कर रहा भाभी.. पर कभी कविता सामने से खुद अगर ऐसी कोई बात छेड़ें.. तो आप मुझे जरूर याद करना.. !!"

शीला: "पागलों जैसी बातें मत कर.. कविता कभी इस बात के लिए राजी नहीं होगी... और अगर राजी हो भी गई तो तेरा ये गधे जैसा लंड लेने की उसकी क्षमता ही नहीं है.. दो-तीन धक्कों में तो उसकी चूत फट जाएगी.. और तू फंस जाएगा.. गलती से भी ऐसा कुछ मत करना.. किस्मत में होगा तो वो सामने से आएगी.. पर अगर तू जबरदस्ती करने गया और कुछ उंच-नीच हो गई तो लेने के देने पड़ जाएंगे.. !! चल अब मैं चलती हूँ"


आखिरी बार सलाह देकर शीला खड़ी हो गई.. रसिक को एक किस करते हुए वो निकल गई.. घड़ी में देखा तो चालीस मिनट बीत चुके थे.. उतनी देर भी नहीं हुई थी.. वो तृप्त और खुश होते हुए घर पहुंची.. घर का दरवाजा बंद था.. और बाहर किसी की चप्पल पड़ी हुई थी.. शीला ने दरवाजा खटखटाया.. काफी देर के बाद मदन ने दरवाजा खोला.. मदन का हाल बेहाल था.. अस्त-व्यस्त बाल.. सिलवटों वाले कपड़े.. लाल चेहरा.. शीला बिना कुछ कहें घर के अंदर आ गई.. उसने अंदर जाकर बेडरूम में देखा तो बिस्तर पर रूखी बैठी हुई थी.. उसका रंग-रूप और हावभाव देखकर ये साफ प्रतीत हो रहा था की मदन के साथ गुलछर्रे उड़ा चुकी थी.. बिखरा हुआ बिस्तर इस बात की गँवाही दे रहा था..
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सब अपने अपने घर पहुँच गए.. मदन अब कोई नया बिजनेस ढूंढ रहा था.. और वैशाली अपना जीवनसाथी.. !!!

संजय के साथ जो कुछ भी हुआ उसके बाद, इंस्पेक्टर तपन के कहने पर मदन ने शहर के एक बड़े वकील के द्वारा वैशाली के तलाक का केस दाखिल करवा दिया था.. जब तक ये मामला शांति से निपट नहीं जाता तब तक मदन ने वैशाली को इंतज़ार करने की हिदायत दी हुई थी..

कविता के लौट जाने के बाद, वैशाली पीयूष की कंपनी बहोत मिस कर रही थी.. जब कविता नहीं थी तब दोनों ने साथ में बड़े मजे कीये थे.. पर अब कविता की हाज़री में वो पीयूष से दूर ही रहने लगी थी.. पीयूष को भी इस बात का अंदाजा लग चुका था इसलिए वो भी सब के सामने वैशाली से अंतर बनाकर रखता था

मौसम की शादी की तारीख तय हो चुकी थी.. दीपावली के पंद्रह दिन बाद का मुहूरत था.. सुबोधकान्त और रमिलाबहन शादी की तैयारियों में व्यस्त हो गए थे.. कविता भी, जब मौका मिलता, अपनी बहन की शादी के लिए शॉपिंग करने निकल पड़ती.. और लड़कियों/औरतों को शॉपिंग पसंद भी इतना होती है.. भूख प्यास सब भूल जाते है.. अरे, मोहल्ले में कोई चूड़ी बेचने वाला भी आवाज लगाएं तो सब काम छोड़कर उसे मधूमक्खियों की तरह घेर लेती है.. रोज दोपहर को खाने के बाद, कविता वैशाली को लेकर शॉपिंग के लिए निकल जाती थी.. बहन की शादी थी इसलिए कविता का उत्साहित होना लाज़मी भी था..

पिछले हफ्ते जब कविता मायके में थी तब वो घंटों पिंटू के साथ बातें करती थी.. पर घर लौटने के बाद वो सब बंद हो गया था.. बहोत मिस कर रही थी वो पिंटू को.. पीयूष मौसम को मिस कर रहा था.. पति और पत्नी दोनों के दिलों में उदासी छाई हुई थी.. और उसका असर उनके सहजीवन पर भी पड़ रहा था.. रात को बिस्तर पर लेटकर न कविता सेक्स को याद करती और ना पीयूष याद दिलाता.. कविता को पीयूष का लंड पकड़ने का मन भी नहीं हो रहा था.. और पीयूष, मौसम के साथ गुजारें उन हसीन लम्हों को याद करते हुए कविता के बगल में ही सो जाता.. मौसम अब पराई हो गई थी ये सदमा पीयूष बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था.. अंदर ही अंदर वो तरुण के प्रति ईर्ष्या से जल रहा था..

एक दिन शीला और मदन घर के बाहर बरामदे में झूले पर बैठे हुए थे.. वैशाली अंदर मोबाइल पर चैट कर रही थी.. पिंटू के साथ.. पिंटू अब जैसे उसके जीवन का हिस्सा बन चुका था.. ऑफिस में तो खैर वो दोनों ज्यादा बातें नहीं करते थे.. पर घर पहुँचने के बाद दोनों मोबाइल पर भरपूर चैट करते थे.. चैट पर भी पिंटू ने कभी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया था.. और उसकी इस बात ने वैशाली को बेहद आकर्षित किया था.. अक्सर कविता उसके सामने पिंटू को बहोत तारीफ करती रहती थी.. और वैशाली ने खुद भी यह अनुभव किया था..

वैशाली ने शीला को भी यह बता दिया था की पिंटू के साथ उसकी अच्छी पटती थी.. शीला और मदन को इस बात से कोई दिक्कत नहीं थी.. उल्टा शीला ने उसे हिदायत देते हुए कहा था की उसका जब भी पिंटू से मिलने का मन करें तब वो दोनों घर पर ही मिलें.. समाज की नज़रों में वैशाली अब भी संजय की पत्नी थी.. वो लोग बाहर कहीं मिलते तो लोग हजार बातें बनाते..

शीला और मदन आराम से झूले पर झूल रहे थे

शीला: "मदन, घर पर बैठे बैठे बोर हो गई मैं तो.. कहीं जाने का मन कर रहा है यार.. सिर्फ हम दोनों.. !!"

मदन समझ गया की शीला का भोसड़ा चुदने के लिए फड़फड़ा रहा था.. इसलिए बेचैन हो रही थी शीला.. लंड लेने के लिए तड़प रही थी.. कुछ करना पड़ेगा.. !! शीला चोदते वक्त इतनी आवाज़ें करती थी की वैशाली दूसरे कमरे में भी आराम से सुन पाती.. इसलिए काफी दिनों से चुदाई का कोई कार्यक्रम नहीं हुआ था

मदन: "सही कहा तूने.. राजेश से बात करते है.. साथ में दो तीन दिनों के लिए कहीं घूम आते है.. फ्रेश हो जाएंगे"

शीला: "पर घूमने जाएंगे तो वैशाली को भी साथ ले जाना पड़ेगा ना.. उसे छोड़कर नहीं जा सकते"

मदन: "फिर तो वही बात हो गई.. !! वैशाली साथ मे होंगी तो फिर क्या फायदा.. !!"

शीला: "हम्म कुछ करना पड़ेगा.. कोई ऐसी जगह ढूँढ़नी पड़ेगी जहां हम दोनों खुलकर मजे कर सकें"

मदन: "अरे शीला.. वो दूधवाले की बीवी हमारी कुछ मदद कर सकती है क्या? उसका घर मिल सकता है क्या?"

शीला: "हम्म.. बात तो तेरी सही है.. पर उससे कैसे कहूँ?? कुछ सेटिंग तो करना पड़ेगा यार.. मैं कुछ करती हूँ.. उसे एक बार घर मिलने बुलाती हूँ.. नहीं तो मैं ही उसके घर मिलने चली जाती हूँ" शीला और मदन दोनों की आँखों मे चमक आ गई.. रूखी के दूध भरे बबलों के बारे मे सोचते ही मदन की आँखों मे सांप लोटने लगे..

शीला: "मुझे पता ही की तुझे वो दूधवाले की बीवी क्यों याद आई.. पर उसके इतने बड़े बड़े है की तेरे हाथ मे भी नहीं आएंगे" मदन की जांघ पर चिमटी काटते हुए शीला ने शरारती अंदाज मे कहा

मदन: "अरे यार, ऐसा नहीं है.. तू किसी और जगह का जुगाड़ कर दे.. मुझे प्रॉब्लेम नहीं है" अपनी चोरी पकड़े जाने पर मदन ने सफाई दी "अरे हाँ शीला.. राजेश के घर पर हो सकता है क्या?"

शीला: "नहीं यार.. अभी अभी उनसे मित्रता हुई है.. ऐसी बातों के लिए उनसे घर मांगने मे झिझक होगी"

मदन: "तो फिर उस दूधवाले के घर के अलावा और कोई चारा नहीं है"

शीला: "देखती हूँ, क्या हो सकता है"

उस रात को, हवस हद से ज्यादा बढ़ जाने पर.. शीला और मदन ने अपनी आवाजों को रोककर चुदाई की.. बगल के कमरे मे वैशाली सो रही थी इसलिए दोनों को चुपचाप चोदना पड़ा.. बिलकुल मज़ा नहीं आया..!!

सुबह साढ़े पाँच बजे, रसिक की साइकिल की घंटी सुनकर, शीला की आँख खुल गई.. शीला उठकर बेडरूम से बाहर आई.. और बेडरूम का दरवाजा बंद कर दिया.. वो बाहर आई और मुख्य दरवाजा खोला.. रसिक सामने ही खड़ा था

रसिक: "पतीला नहीं लाई भाभी?? दूध कैसे लोगी?"

शीला: "रोज सिर्फ दूध ही देगा?? या और कुछ भी है तेरे पास देने के लिए??" शीला ने अपना गाउन ऊपर किया.. अंदर न ब्रा पहनी थी और ना ही पेन्टी.. अपना भोसड़ा दिखाते हुए वो बोली "इसमें दूध लेना है मुझे.. बोल, कब देगा?"

शीला के मदमस्त नंगे बबलों को दोनों हथेलियों से दबाते हुए रसिक ने कहा "मैं तो मार रहा हूँ देने के लिए भाभी.. आप कहो तो अभी घुसा दूँ"

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शीला: "मेरी बात ध्यान से सुन.. आज अभी साढ़े दस बजे मैं तेरे घर आऊँगी.. रूखी को कहीं भेज देना एक घंटे के लिए.. किसी को पता नहीं लगना चाहिए.. तेरे माँ बाप तो आगे के कमरे मे रहेंगे.. मैं पीछे के रास्ते अंदर आ जाऊँगी.. तेरा घर तो काफी बड़ा है.. पीछे के कमरे मे करेंगे"

रसिक: "ठीक है भाभी" जाते जाते उसने शीला की निप्पलों को बारी बारी मुँह मे भरकर चूस लिया.. और शीला के हाथ मे अपना लोडा भी पकड़ा दिया.. खूँटे जैसे लंड को पकड़कर शीला थरथराने लगी.. रसिक चला गया

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रोज पीयूष के साथ ऑफिस जाती वैशाली... आज पीयूष के चले जाने के बाद अकेले ही ऑफिस जाने निकली.. रास्ते मे उसने पिंटू को फोन किया.. ऑफिस मे तो सब की मौजूदगी के कारण खुलकर बात नहीं हो पाती थी.. काफी दिनों से कविता का भी फोन नहीं आया था इसलिए वैशाली से बातें करना पिंटू को बहोत अच्छा लगता था.. दोनों यहाँ वहाँ की बातें करते थे.. ऑफिस पहुँचने तक वैशाली पिंटू से बात करती रहती.. यह रोज का नित्याक्रम बन चुका था..

वैशाली के जाने के बाद साढ़े नौ बजे, मदन को बताकर, शीला रसिक के घर जाने के लिए तैयार हो गई.. मदन सोच रहा था की शीला घर का सेटिंग करने जा रही है.. हालांकि शीला तो खुद का सेटिंग करने निकली थी

मदन: "हाँ जाकर आ.. तू कहें तो मैं भी साथ चलूँ?"

शीला: "पागल है क्या?? तेरी मौजूदगी मे रूखी से ऐसी बात भला कैसे पूछूँ?"

मदन: "ठीक है.. तू अकेली ही चली जा.. बेस्ट ऑफ लक"

घर से बाहर निकलते निकलते शीला को हंसी आ रही थी.. अब मदन को क्या कहें?? बाहर चुदवाने जा रही बीवी को ये बेवकूफ "बेस्ट ऑफ लक" कह रहा था..

वो फटाफट चलते चलते रसिक के घर की ओर जाने लगी.. रास्ते मे उसने एक कॉल किया.. कॉल खतम करके वो मुसकुराते हुए चल पड़ी.. रसिक के घर पहुंचकर.. वो पीछे के रास्ते चुपके से चली गई.. और दरवाजा खटखटाने लगी.. रसिक ने दरवाजा खोला और शीला को हाथ से पकड़कर अंदर खींच लिया.. और दरवाजा बंद कर उसे दबोच लिया

रसिक की बाहों मे शीला का बदन हवस से तपने लगा... जानबूझकर आज वो बिना ब्रा पहने आई थी.. रसिक के हाथ और उसके बबलों के बीच कुछ नहीं आना चाहिए..

"सब सलामत है ना.. !! कोई आ तो नहीं जाएगा?" शीला ने कहा

"चिंता मत कीजिए.. पीछे के कमरे मे कोई नहीं आता" रसिक ने शीला के बबलों को रौंदना शुरू कर दिया

रसिक का हाथ स्तनों पर फिरते ही शीला की जवानी उछलने लगी..

"यार तू ऊपर सहला रहा है और नीचे से मेरा पानी छूटना शुरू हो गया.. आह रसिक" पाजामे के ऊपर से रसिक का लंड पकड़ते हुए शीला ने कहा "ये तो तैयार ही खड़ा है"


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"अरे भाभी, सुबह से.. जब से आपने घर आने का कहा.. तब से ये तैयार है.. !! पर आप एक मिनट रुकिए भाभी" शीला का हाथ अपने लंड से हटाते हुए रसिक खड़ा हो गया

"अब क्या है यार? सारी तैयारी पहले से ही कर लेनी चाहिए तुझे.. इसलिए तो पहले से बताया था.. " चूत की खुजली से परेशान शीला ने कहा

रसिक छोटी से खिड़की को बंद कर रहा था.. पीछे से उसकी विशाल पीठ को देखकर शीला सोच रही थी की.. इसके पूर्वज जरूर असुर योनि से होंगे.. तभी ये इतना हट्टा-कट्टा राक्षस जैसा है.. साला जब ऊपर चढ़ता है तब पूरा जिस्म छील जाता है..

रसिक ने खटिया के सामने एक टेबल लगा दिया और उसपर नाश्ते की डिश सजा दी.. अगर कोई आ भी जाएँ तो दिखाने के लिए..

"अब सब ठीक है.. आप जैसे मर्जी करवा लीजिए.. कोई दिक्कत नहीं होगी"

रसिक की लंगोट मे हाथ डालकर उसके मूसल जैसे लंड को पकड़ते ही शीला के बदन मे सुरसुरी होने लगी.. मदन ने एक बार एक ब्लू फिल्म दिखाई थी जिसमे लड़कियां घोड़े के लंड से खेल रही थी.. घोड़े के चार पैरों के बीच बैठकर.. लड़किया उस विकराल तीन फुट लंबे लंड से विकृति पूर्वक खेल रही थी.. रसिक का लंड पकड़ते ही शीला को वो सीन की याद आ गई.. आँखें बंद कर वो रसिक के लंड को सहलाती रही..



"आह्ह भाभी, जल्दी कीजिए.. बाहर भी निकालिए इसे.. कब तक खेलती रहोगी" रसिक ने बेचैन होकर कहा

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शीला ने लंगोट से रसिक के लंड को बाहर निकाला.. आह्ह.. देखते ही शीला सिहर उठी.. विकराल अजगर जैसा रसिक का दमदार लंड.. टमाटर जितना बड़ा सुपाड़ा.. और लंड की फुली हुई नसें.. शीला की कलाई जितना मोटा था रसिक का लंड.. !! शीला की चूत ने रस और गंध छोड़ना शुरू कर दिया था.. जबरदस्त उत्तेजित हो गई थी वो.. उसके स्तन एकदम सख्त हो गए थे.. निप्पलें तनकर खड़ी हो गई थी..

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दोनों हाथों से लंड को जड़ से पकड़कर.. शीला ने अपने मुंह मे डाल दीया... आँखें बंद कर उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उस ब्लू फिल्म की हीरोइन की तरह वो भी घोड़े का लंड चूस रही है.. वो तब तक चूसती रही जब तक की उसका मुंह दर्द नहीं करने लगा.. रसिक के आँड़ भी अंडे की साइज़ के थे.. शीला उसके लंड और आँड पर टूट पड़ी थी.. कभी लंड को चूमती.. तो कभी आँड़ों को मुंह मे भरकर चूसती.. वैसे तो शीला को मदन का लंड चूसने मे भी मज़ा आता था.. पर रसिक के मूसल की बात ही निराली थी..

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शीला की चूत अब बगावत पर उतर आई थी.. इतनी तेज खुजली हो रही थी इस लंड को देखकर.. शीला ने ब्लाउस के हुक खोल दीये.. और अपने नारियल जैसे स्तनों को मुक्त कर दिया.. अत्यंत उत्तेजित होकर उसने अपने दोनों चुचे रसिक के लंड पर रगड़ दीये.. शीला के स्तनों से रगड़ खाकर रसिक का लंड लोहे के गरम सरिये जैसा हो गया था.. शीला ने अपने दोनों विराट स्तनों के बीच रसिक का लंड दबा दिया.. शीला की छातियों का नरम नरम स्पर्श मिलते ही रसिक का लोडा भी फुदकने लगा.. शीला के नखरे रसिक को पागल बना रहे थे..

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वो खड़े खड़े.. शीला के दूध जैसे गोरे बबलों को देख रहा था.. दीवार पर अपना सर टीकाकर बैठी शीला का घाघरा पूर्णतः ऊपर की तरफ उठ चुका था.. और शीला जितना हो सकें उतना पैर चौड़े कर.. अपनी भोस खुजाते हुए रसिक के लंड को प्यार करती रही.. उत्तेजित होकर जब रसिक बेकाबू हो जाता तब वो शीला के मुंह को ही चूत समझकर अपने लंड को बड़ी ही ताकत से अंदर धकेल देता.. पीछे दीवार और आगे लंड का आक्रामक हमला.. शीला की हवस संतुष्ट कर सकें उतना लंड उसके मुंह के अंदर दाखिल हो रहा था और रसिक के बड़े बड़े अंडकोश, शीला की ठुड्डी से टकरा रहे थे.. रसिक की धीरज अब जवाब दे रही थी..

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पागलों की तरह रसिक का लंड चूस रही शीला को रसिक ने झुककर कहा "बस भाभी.. आप ऐसे ही चूसती रही तो मेरा निकल जाएगा.. और अंदर डालने का मौका ही नहीं मिलेगा.. "

जैसे रसिक की बात सुनी ही न हो वैसे शीला लंड चूसती ही रही.. काफी देर तक चूसने के बाद जब उसका मन तृप्त हुआ तभी उसने मुंह से लंड निकाला.. और रसिक की जांघों के बीच से उठ खड़ी हुई..

शीला के बिखरे हुए बाल.. हवस टपकाती लाल लाल आँखें.. गाल पर चिपका हुआ रसिक का थोड़ा सा वीर्य..!! जबरदस्त लग रही थी शीला..!! रसिक अब शीला के मदमस्त उरोजों पर टूट पड़ा.. और उसके दोनों स्तनों को बेरहमी से मसल दिया.. एक के बाद एक दोनों स्तनों की निप्पलों को चूसते हुए रसिक ने शीला पर धाबा मोल दिया.. एक इंच लंबी निप्पल को काटते ही शीला की सिसकियाँ निकलने लगी.. रसिक शीला को जितना दर्द पहुंचाता उतना ही शीला और हिंसक हो रही थी.. रसिक के लंड को मुठ्ठी में पकड़कर शीला निचोड़ने लगी.. शीला के मांसल गोलों को रसिक जितनी बेरहमी से दबाता.. शीला की उत्तेजना घटने के बजाए और भड़क जाती..

एक दूसरे की बाहों में बाहें डालकर.. जितना हो सकता था उतनी आक्रामकता से एक दूसरे से शरीर का घर्षण कर रहें थे दोनों.. शीला ने अपना घाघरा उठाकर रसिक के लंड को अपनी चिपचिपी बुर पर रगड़ना शुरू कर दिया.. चूत की गर्मी का एहसास अपने लंड के सुपाड़े पर होते ही रसिक का लोडा शीला की मुठ्ठी मे ठुमकने लगा..

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शीला: "ओह्ह रसिक.. अब और नहीं रहा जाता.. जल्दी से मुझे खटिया पर पटककर चोद दें.. जरा भी रहम मत करना.. मर रही हूँ तेरे लंड से चुदने के लिए!! आज तो फाड़ ही डाल मेरी गुफा.. जल्दी जल्दी कर.. आह्ह.. !!"

रसिक: "हाँ भाभी... आपका बदन देखकर मेरा लोडा अब इतना तन चुका है की अब इसे बिना चोदे चैन नहीं मिलने वाला.. पर मैं दरवाजे की कुंडी ठीक से चेक कर लूँ.. कहीं रूखी बेवक्त न टपक पड़े"

रसिक दरवाजे की कुंडी चेक करने गया पर बेचारे नादान रसिक को कहाँ पता था की...

शीला ने रूखी को अपने घर भेजा था.. मदन के पास..!!! ताकि मदन उसके दूध भरे बबलों का लुत्फ उठा सकें.. और जब तक शीला का मिसकॉल नहीं जाता तब तक वो वापिस लौटने वाली नहीं थी.. वैसे शीला को मदन के साथ सेक्स करने मे उतनी दिक्कत नहीं थी.. रात को वैशाली की मौजूदगी के कारण कंट्रोल रखना पड़ता था.. पर दिन भर तो वैशाली ऑफिस रहती थी.. उस समय दोनों चाहें उतना चोद सकते थे.. लेकिन शीला चाहती ही थी की इसी बहाने रसिक के मूसल से ठुकवा सकें.. और मदन भी रूखी के दूध भरे स्तनों को देखकर होश खो बैठा था.. मदन की हवस को ही सीढ़ी बनाते हुए शीला रसिक के लंड तक पहुँच गई थी.. मदन उसी विश्वास में था की इतनी सुंदर, मॉडर्न और सम्पूर्ण संतुष्ट शीला, किसी मामूली से दूधवाले से थोड़े ही चुदवाएगी.. !! पर ऐसा गलत आत्मविश्वास कभी नहीं रखना चाहिए.. स्त्री कभी भी, कुछ भी कर सकती है

मदन बेचारे को कहाँ पता था की जब वो विदेश में मेरी के बबले चूस रहा था तब शीला रसिक के साथ रंगरेलियाँ मना रही थी.. !!

रसिक के सामने ही अपनी चूत खुजाते हुए शीला खटिया पर बैठ गई और अपने सारे वस्त्र उतार दीये.. कपड़े उसने संभालकर खटिया के बगल में इस तरह रखें की जरूरत पड़ने पर वो तुरंत उन्हें पहन सकें.. शीला के पीछे पीछे रसिक आया.. सामने से चलकर आ रहें रसिक की दोनों जांघों के बीच झूल रहें विकराल लोडे को देखकर.. किसी भी स्त्री की नियत बिगड़ सकती थी.. ऐसा मोटा और तगड़ा था उसका लंड.. शीला को नंगी बैठें देख.. रसिक उत्तेजित सांड की तरह बेकाबू हो गया.. और शीला के सामने अपनी बनियान उतार दी.. चौड़े कंधे.. काले घुँघराले बालों से भरी हुई छाती.. देहाती श्याम रंग.. अलमस्त काया.. और साढ़े छह फिट की ऊंचाई.. बड़ी बड़ी मूछें.. कान में चांदी की बाली.. कम से कम 90 किलो वज़न था रसिक का.. !!

शीला: "बाप रे, रसिक.. !! कितना बड़ा है ये तेरा.. !! किसी जवान लड़की के छेद में अगर तू ये तेरा लंड डालेगा तो उस बेचारी की वहीं जान निकल जाएगी.. "

रसिक को अपनी ओर आते देख.. शीला खटिया पर टांगें फैलाकर लेट गई.. उसने खुद ही अपने चूतड़ों के नीचे तकिया सटाकर रख दिया.. आज वो हफ्तों की भूख शांत करने आई थी..!!

धीरे धीरे रसिक शीला के करीब आया.. और खटिया के कोने पर बैठ गया.. शीला की मांसल गदराई जांघों पर हाथ फेरते हुए उसने कहा "कितनी चिकनी है आपकी जांघें, भाभी। इसपर तो मैं अपना लंड रगड़कर ही पानी गिरा सकता हूँ.. " कहते हुए शीला की भोस तक अपना हाथ ले गया.. शीला के पैर तो पहले से ही चौड़े थे.. इसलिए उसके भोसड़े तक पहुँचने में रसिक को जरा भी दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा

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खुरदरे हाथों का स्पर्श शीला को और उत्तेजित कर गया.. वो नीचे से अपने चूतड़ उठाकर गोल गोल घुमाने लगी.. "सहलाना बंद कर रसिक.. अंदर चीटीयां काट रही है मुझे.. डाल दे तेरा लंड अंदर.. आह्ह मर गई.. !!"

शीला रूखी के बारे में सोचने लगी.. कितनी किस्मत वाली है वोह.. रोज ऐसे तगड़े लंड से चुदना नसीब हो रहा था उसे.. फिर भी कमीनी जीवा के लंड के पीछे पागल थी.. मायके और ससुराल दोनों में उसके पास उत्कृष्ट कक्षा के तगड़े लंड उपलब्ध थे..

रसिक ने शीला की दोनों जांघों के बीच पोजीशन ले ली.. जिस तरह लड़ाकू विमान टेक-ऑफ के लिए तैयार होते है, बिल्कुल वैसे ही.. रसिक का लंड, शीला की भोसड़े की गंध सूंघकर हिलोरे लेने लगा था..


रसिक ने दोनों हाथों को शीला के घुटनों पर रख दिया.. और दोनों पैरों को अपने कंधे पर ले लिया.. भोसड़े पर लंड टेककर अंदर डालने की कोशिश की.. पर उस तरह लंड अंदर घुस नहीं पा रहा था.. आखिर शीला ने अपने एक हाथ से स्तन मसलते हुए दूसरे हाथ से रसिक के लंड को हाथ में लिया और अपने गरम भांप छोड़ रहे सुराख पर रख दिया.. हल्के से गांड उचकते ही रसिक का सुपाड़ा अंदर घुस गया.. "अब मार धक्के.. जोर से.. फाड़ दे इसे.. आह्ह"

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अब रसिक भी कहाँ पीछे हटने वाला था.. !! उसने दबाकर एक जोरदार धक्का लगाया.. और शीला के भोसड़े को चीरते हुए उसका लंड बच्चेदानी के मुख पर जाकर टकराया..

"ऊईईई माँ... मर गई.. ओह्ह रसिक.. अपना लोडा बाहर निकाल और फिर से इसी तरह एक और धक्का लगा.. आह्ह मज़ा आ गया.. जरा जोर से.. !!" शीला की उत्तेजना बेकाबू हो रही थी.. "कौन जाने क्या खाकर तुझे तेरी माँ ने पैदा किया था.. कितना खूंखार लंड है रे तेरा... अब चोद डाल.. अपनी माँ की चूत समझ कर चोद दे मुझे.. !!"

रसिक ने शीला के पैरों को छोड़ दिया.. और शीला ने उसके कंधों पर दोनों पैरों से कुंडली मार दी.. रसिक ने शीला के दोनों बबलों को अपने हाथों से दबाते हुए.. अपनी अलमस्त काया का पूरा 90 किलो वजन एक साथ ही शीला के ऊपर थोप दिया.. नौ इंच का लंड और नब्बे किलो का वज़न.. बड़े आराम से झेल रही थी शीला.. !!

रसिक के वजनदार धक्कों को शीला ने बड़ी ही आसानी से झेल लिया.. पर खटिया के पैर इसे बर्दाश्त न कर पाएं.. कड़ाके की आवाज के साथ खटिया टूट गई.. "अरे अरे अरे... !!" कहते हुए रसिक शीला को संभालने गया.. पर आखिर न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के नियम की जीत हुई.. काबिल शीला ने इस स्थिति में भी रसिक का लंड बाहर निकलने नहीं दिया.. उसने अपने भोसड़े की मांसपेशियों के बीच रसिक के लोडे को ऐसा दबोच रखा था की उसके बाहर निकलने की कोई गुंजाइश नहीं थी..

टूटी हुई खटिया से उठने की कोशिश कर रहें रसिक को शीला ने अपनी बाहों में भरते हुए.. उसके पसीने से तर कंधों पर काटते हुए कहा "उठ मत.. चालू ही रख.. इसी स्थिति में धक्के लगाना शुरू कर दे.. मज़ा आ रहा है यार.. "

रसिक ने फिर आव देखा न ताव.. धनाधन धक्के लगाना शुरू कर दिया.. उसके प्रत्येक प्रहार से शीला की भूख और खुजली कुछ कुछ संतुष्ट हो रही थी.. रसिक के कूल्हों को अपने नाखूनों से कुरेदते हुए शीला उसे अपने जिस्म से और सख्ती से दबा रही थी.. रसिक बिना रुकें, शीला को पूरे जोश से चोद रहा था और शीला नीचे तृप्ति के महासागर में गोते लगा रही थी.. शीला भी पसीने से तरबतर हो गई थी जीवन के इस सर्वोच्च आनंद को महसूस करते हुए.. रसिक के पसीने की गंध शीला की हवस को ओर भड़का रही थी..


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टूटी हुई खटिया में चोदना असुविधाजनक तो था ही.. पर जब इच्छाशक्ति प्रबल हो तब कोई भी समस्या ज्यादा देर तक टिक नहीं पाती..

"आहहह रसिक.. लगा जोर से शॉट.. मार डाल मुझे.. ओह्ह आह्ह.. शाबाश.. और जोर से.. ऊईई माँ.. आह्ह अहह.. स्पीड बढ़ा.. मैं झड़ने वाली हूँ.. आ.. आ.. आ.. आ.. आ.... !!" शीला के स्खलन की अंतिम क्षणों में रसिक भी थककर चूर हो गया.. उसके विकराल लंड ने वीर्य की गरम गरम पिचकारी जब बुर के अंदर तक छोड़ी.. तब शीला ने अपने नाखून रसिक की पीठ पर गाड़ दीये.. रसिक की पीठ पर ऐसे निशान बन गए थे जैसे किसी खूंखार शेरनी ने अपना पंजा मार दिया हो.. !!

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शीला के बबले रसिक की छाती के बोझ तले दबकर चपटे हो गए थे.. बबलों की चर्बी का अतिरिक्त हिस्सा.. दोनों बगलों से बाहर झलक रहा था.. टूटी हुई खटिया में.. पैर फैलाकर लेटी शीला तभी शांत हुई जब उसका भोसड़ा पूर्णतः तृप्त हो गया.. रसिक को अपनी बाहों में भींचकर शीला तेजी से हांफने लगी.. बिखरे हुए बाल.. आँखों में तृप्ति के भाव के साथ शीला पड़ी रही.. और उसके ऊपर रसिक ऐसे गिरा हुआ था जैसे एनकाउंटर में मारे गए किसी गुंडे की लावारिस लाश हो..

थोड़ी देर तक दोनों उसी स्थिति में पड़े रहे.. शीला के तकियों जैसे स्तनों पर से उठने का भला कीसे मन होगा.. !! लेकिन रसिक उस स्थिति में भी समय को लेकर चौकन्ना था..

"अब आप मुझे छोड़िए तो मैं खड़ा हो सकूँ.. वैसे मज़ा आ गया आज तो भाभी.. ये रूखी पता नहीं अब तक क्यों नहीं लौटी?? अब तक तो उसे आ जाना चाहिए था.. !! वैसे देखने जाएँ तो अच्छा ही हुआ की वो अब तक नहीं लौटी.. वरना हमारे रंग में भंग पड़ता.. !!"

शीला: "हाँ हाँ उठ जा.. और अपने लोडे को बाहर निकाल.. अंदर एकदम फिट हो गया है.. कुत्तों की तरह.. तू भी कपड़े पहन ले और मैं भी तैयार हो जाती.. फिर कोई आ जाएँ तो भी प्रॉब्लेम नहीं होगा.. "

दोनों ने उठकर कपड़े पहने

रसिक: "अब इस टूटी हुई खटिया का क्या करूँ? घर में ये एक ही खटिया है.. रूखी तो ये देखकर ही मेरी जान निकाल देगी.. शाम तक इसे ठीक कराना ही होगा.. बेकार में खर्चा हो गया मेरा.. !!"

शीला ने तुरंत अपने पर्स से सौ सौ की तीन नोट निकालकर रसिक को थमा दी.. थोड़े से संकोच के साथ, रसिक ने पैसे ले लिए..

रसिक: "शुक्रिया भाभी.. वैसे आज आपके साथ जो मज़ा आया.. ऐसा मज़ा मुझे रूखी के साथ कभी नहीं आता है.. समझ में नहीं आ रहा की रूखी कहाँ मर गई?? कमीनी किसी ओर के साथ तो खटिया नहीं तोड़ रही होगी??"

शीला खिलखिलाकर हंस पड़ी "सब तेरे जैसे थोड़े ही होते है.. चल अब मैं चलती हूँ.. ज्यादा देर बैठूँगी तो फिर से मन हो जाएगा"

रसिक: "अरे भाभी, थोड़ी देर बैठिए ना.. जी करता है की पूरा दिन आपके सामने बैठकर देखता ही रहूँ.. कितनी सुंदर हो आप"

शीला: "ज्यादा रोमेन्टीक मत बन.. ऐसा तो क्या देख लिया तूने मेरे अंदर?"

रसिक: "एक बात कहूँ.. ?? जब हम कर रहे थे.. तब आपने कहा था की अगर मैं अपना ये लंड किसी जवान खूबसूरत लड़की के अंदर घुसा दूँ तो वो मर जाएगी.. उसी से याद आया.. मेरा बहोत मन कर रहा है.. किसी फेशनेबल जवान लड़की को चोदने का.. आप मेरी कुछ मदद करो ना.. !!"

शीला: "साले, मुझे क्या दलाल समझ रखा है तूने?? और तेरा रूप-रंग तो देख.. !! तुझे नंगा देखकर लड़कियां वहीं बेहोश हो जाएगी.. !!"

रसिक: "क्या भाभी आप भी.. !!!"

शीला: "तेरे लिए तो रूखी की गुफा ही ठीक है.. कागज की कश्ती जैसी नाजुक चूतें, तेरा ये मूसल बर्दाश्त ही नहीं कर पाएगी"

शीला के बबलों को दबाते हुए रसिक ने फिर से विनती की.. "कुछ कीजिए ना भाभी, प्लीज"

शीला: "अरे यार.. तू तो मेरे गले ही पड़ गया.. मैं कहाँ से लाऊँ तेरे लिए जवान फेशनेबल लड़की?? और मिल भी जाएँ तो मैं क्या कहूँ उसे?? की जा इस दूधवाले से चुद जा.. !! नहीं भाई नहीं.. मुझसे ये नहीं होगा"

रसिक: "आप को कहीं ढूँढने नहीं जाना है भाभी... आपको तो सिर्फ मुझे मदद करनी है"

शीला: "अच्छा... तूने ढूंढ भी ली है.. !! बता.. कौन है वो अभागी लड़की??"

कमर पर हाथ रखकर जबरदस्त स्टाइल में खड़ी थी शीला.. जिसे देखकर अच्छे से अच्छे मर्दों को छक्के छूट जाएँ..

रसिक: "भाभी.. अगर आप मुझे सहयोग दें तो बगल के चिमन काका के घर ही मेरा काम हो सकता है"

शीला: "मतलब?? तू कविता की बात कर रहा है??" चोंक उठी वो..

कविता से शीला बराबर परिचित थी.. उतना ही नहीं.. वो रसिक और कविता दोनों के शारीरिक भूगोल से भी वाकिफ थी.. इन दोनों के उम्र से लेकर लंड-चूत के नाप तक.. किसी भी चीज में कोई समानता नहीं थी.. ये तो ऐसा हाल होता जैसे किसी कुत्तिया पर गधा चढ़ने की बात कर रहा हो.. शीला की आँखों के सामने.. फटी हुई चूत के साथ.. लहू-लुहान लेटी हुई बेहोश कविता का द्रश्य आ गया.. बाहर खड़ी हुई एम्बुलेंस और पुलिस की गाड़ी भी दिखाई देने लगी.. शीला ने अगर थोड़ी ओर कल्पना की होती तो उसे रसिक की गिरफ़्तारी समेत और कई द्रश्य भी नजर आ जाते

कांप उठी शीला.. क्योंकि वो अच्छे से जानती थी.. कविता की तितली जैसी शोख चंचल काया.. रसिक नाम का सांड.. एक ही पल में रौंद देगा.. रसिक की बात सुनकर.. शीला का दिमाग.. कंप्यूटर से भी तेज चलने लगा.. वो सोचने लगी.. जब मैं कलकत्ता गई थी तब तो कहीं रसिक ने कविता के ऊपर नजर नहीं डाली होगी.. !! अनुमौसी भी रसिक के लंड की दीवानी है.. कहीं अपना भोसड़ा मरवाने के चक्कर में.. मौसी ने कविता का सौदा तो नहीं कर दिया रसिक के साथ.. !! नहीं नहीं.. ऐसा तो नहीं हुआ होगा.. वरना रसिक मुझे ये सब क्यों बताता.. !! सीधा मौसी के साथ ही कविता का सेटिंग कर लेता..

"क्या सोच रही हो भाभी? मेरी बात का बुरा लगा क्या आपको??" चुपचाप बैठकर सोच रही शीला को देखकर रसिक ने पूछा

शीला: "ऐसा कुछ नहीं है रसिक.. कविता का सेटिंग तो मैं नहीं करवा सकती.. पर अगर कोई नए जमाने की मॉडर्न लड़की का कॉन्टेक्ट होगा तो तुझसे मिलवा दूँगी जरूर.. अभी तो ऐसा कोई मेरे ध्यान में नहीं है.. शहर की लड़कियों को मॉडर्न हेंडसम रोमियो टाइप लड़के पसंद होते है.. उन्हें देसी नारियल के पानी से ज्यादा कोक और पेप्सी पसंद होती है.. शुद्ध घी का हलवा खाने से उनका फिगर खराब हो जाता है पर पीत्ज़ा, बर्गर इत्यादि खाने में उन्हें कोई हर्ज नहीं होता.. सब औरतें या लड़कियां मेरे जैसी नहीं होती.. की जिन्हें असली मर्द की परख हो.. अगर तू भी क्लीनशेव होकर मॉडर्न कपड़े पहन ले तो वो लड़कियां तेरे पीछे भागेगी.. हट्टा-कट्टा तो तू है ही.. आजकल दंभ और दिखावे का ज़माना है.. तेरे पास फूटी कौड़ी भी न हो तो चलेगा पर तुझे दिखावा ऐसा करना होगा की जैसे तू करोड़पति हो.. आज कल तो जहर भी अच्छे पेकिंग में डालकर बेच सकते है.. केसर युक्त गुटखा की तरह.. !!"

रसिक: "अरे भाभी.. मैं ठहरा दूधवाला.. अब सूट-बूट पहनकर दूध बेचने निकलूँगा तो कौन खरीदेगा?? ये तो बस एक मेरी ख्वाहिश थी जो मैंने आप को बताई.. वरना मैं कौन सा यहाँ मरा जा रहा हूँ.. और आप तो हो ही मेरे पास.. आप भी मॉडर्न ही हो.. पर कविता का गन्ने जैसा पतला शरीर देखता हूँ तो मन में खयाल आता है की ऐसी लड़की को चोदने में कितना मज़ा आएगा.. !! लंड घुसाने पर कैसे छटपटाएगी.. !!!"

शीला: "मैं समझ सकती हूँ तेरी बात रसिक.. तेरे लोडे में इतनी ताकत है की कोई भी तेरा लेकर छटपटाएगी..!! पर जरा कविता की चूत के बारे में तो सोच.. तू अंदर डालेगा तो बेचारी की फट के फ्लावर बन जाएगी.. मुश्किल से पच्चीस की है कविता.. तेरे जैसा लंड उसने सपने भी देखा नहीं होगा.. उसकी उम्र या अनुभव अधिक होने दे.. वो खुद-ब-खुद चलकर तेरे पास आएगी.. उसके साथ अच्छे संबंध रख.. अभी तो नहीं पर भविष्य में जरूर कुछ होगा.. " आश्वासन देते हुए शीला ने कहा

"वैसे तूने कभी कविता से इस बारे में कुछ बात की है क्या?" शीला का नार्को टेस्ट शुरू हो गया

"नहीं भाभी.. ऐसा तो कुछ नहीं कहा मैंने"

शीला: "तो फिर कविता तेरे दिमाग में कैसे आ गई एकदम से??"

रसिक: "कविता दूध लेते वक्त काफी मज़ाक मस्ती करती है मेरे साथ.. इसलिए मुझे लगा की....!!"

शीला: "रसिक, कविता ऐसी नहीं है.. कोई भी लड़की या स्त्री ऐसी नहीं होती.. जब तक वह खुद असन्तुष्ट हो... मज़ाक करने का मतलब ये नहीं होता की लड़की कुछ भी करने को तैयार है"

रसिक: "वैसे देखने जाए तो पुरुष भी ऐसा सब हालात के मारे ही तो करता है.. मैं आप से जिद नहीं कर रहा भाभी.. पर कभी कविता सामने से खुद अगर ऐसी कोई बात छेड़ें.. तो आप मुझे जरूर याद करना.. !!"

शीला: "पागलों जैसी बातें मत कर.. कविता कभी इस बात के लिए राजी नहीं होगी... और अगर राजी हो भी गई तो तेरा ये गधे जैसा लंड लेने की उसकी क्षमता ही नहीं है.. दो-तीन धक्कों में तो उसकी चूत फट जाएगी.. और तू फंस जाएगा.. गलती से भी ऐसा कुछ मत करना.. किस्मत में होगा तो वो सामने से आएगी.. पर अगर तू जबरदस्ती करने गया और कुछ उंच-नीच हो गई तो लेने के देने पड़ जाएंगे.. !! चल अब मैं चलती हूँ"


आखिरी बार सलाह देकर शीला खड़ी हो गई.. रसिक को एक किस करते हुए वो निकल गई.. घड़ी में देखा तो चालीस मिनट बीत चुके थे.. उतनी देर भी नहीं हुई थी.. वो तृप्त और खुश होते हुए घर पहुंची.. घर का दरवाजा बंद था.. और बाहर किसी की चप्पल पड़ी हुई थी.. शीला ने दरवाजा खटखटाया.. काफी देर के बाद मदन ने दरवाजा खोला.. मदन का हाल बेहाल था.. अस्त-व्यस्त बाल.. सिलवटों वाले कपड़े.. लाल चेहरा.. शीला बिना कुछ कहें घर के अंदर आ गई.. उसने अंदर जाकर बेडरूम में देखा तो बिस्तर पर रूखी बैठी हुई थी.. उसका रंग-रूप और हावभाव देखकर ये साफ प्रतीत हो रहा था की मदन के साथ गुलछर्रे उड़ा चुकी थी.. बिखरा हुआ बिस्तर इस बात की गँवाही दे रहा था..
बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
ये वैशाली की पिंटू के साथ नजदीकीया बढ रही है
कहीं वो दोनों की विचारधारा मिल जाने के बाद शादी ना कर ले
इधर शीला ने मदन को रुखी के नाम से और मदमस्त चुदाई करने की जगह देखने के नाम से रसिक से चुदवाकर अपने भोसडे की आग शांत कर ली वहीं अपने घर रुखी को भेज कर मदन के भी मजे करवा दियें
बडा ही जबरदस्त अपडेट हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 
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