• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

vakharia

Supreme
5,092
11,819
174
आखिरी बार सलाह देकर शीला खड़ी हो गई.. रसिक को एक किस करते हुए वो निकल गई.. घड़ी में देखा तो चालीस मिनट बीत चुके थे.. उतनी देर भी नहीं हुई थी.. वो तृप्त और खुश होते हुए घर पहुंची.. घर का दरवाजा बंद था.. और बाहर किसी की चप्पल पड़ी हुई थी.. शीला ने दरवाजा खटखटाया.. काफी देर के बाद मदन ने दरवाजा खोला.. मदन का हाल बेहाल था..

अस्त-व्यस्त बाल.. सिलवटों वाले कपड़े.. लाल चेहरा.. शीला बिना कुछ कहें घर के अंदर आ गई.. उसने अंदर जाकर बेडरूम में देखा तो बिस्तर पर रूखी बैठी हुई थी.. उसका रंग-रूप और हावभाव देखकर ये साफ प्रतीत हो रहा था की मदन के साथ गुलछर्रे उड़ा चुकी थी.. बिखरा हुआ बिस्तर इस बात की गँवाही दे रहा था..


"ये क्या है रूखी?" शीला ने गुस्सा करते हुए कहा

"कुछ नहीं भाभी.. मैं तो आप से मिलने आई थी.. पर आप बाहर गई हुई थी इसलिए भैया ने मुझे यहाँ बैठने को कहा.. मैं तो आपका इंतज़ार कर रही थी" रूखी ने जवाब दिया

"तो क्या ये तेरे भैया ने तुझे बिस्तर पर बैठने को कहा था?? और वो भी ब्लाउस के तीन हुक खोलकर??" शीला ने लाल आँख करते हुए मदन की तरफ देखा

वैसे ये शीला का ही प्रपंच था.. रूखी को उसने ही फोन कर यहाँ घर पर बुलाया था.. उसे पक्का यकीन था की रूखी को अकेले पाकर मदन अपने आप को रोक नहीं पाएगा.. और रूखी भी जनम जनम की भूखी थी.. वो जानबूझकर गुस्सा इसलिए जता रही थी ताकि मदन उसके नियंत्रण मे रहे.. दूसरा, जितनी देर तक मदन रूखी के साथ उलझा रहता, उतनी ही ज्यादा देर तक उसे रसिक के मजेदार लंड से चुदने का समय मिलता..

"अरे भाभी, मैं तो सोफ़े पर ही बैठी थी.. पर भैया ने मुझे अंदर बुला लिया.. मैंने सोचा उन्हें कुछ काम होगा.. मुझे कहाँ पता था की भैया मेरे साथ ऐसा कुछ करेंगे.. " रूखी ने ब्लाउस के बटन बंद करते हुए सफाई दी

शीला ने क्रोधित होकर मदन के सामने देखा.. मदन चुपचाप नजरें झुकाएं खड़ा था.. रूखी जल्दबाजी में ब्लाउस के बटन बंद करने गई.. पर बड़े बड़े.. दूध भरे स्तनों को ताकत से ब्लाउस में बंद करते हुए उसकी दोनों निप्पलों से दूध टपक पड़ा.. जिसे देखकर मदन के मुंह से सिसकी निकल गई.. आह्ह!!

शीला रूखी के मदमस्त स्तनों को देखती ही रही.. मदन भी स्तब्ध होकर देख रहा था.. पीले रंग के पतले ब्लाउस की कटोरियों का आगे का हिस्सा दूध निकलने के कारण गीला हो रखा था.. और ब्लाउस गीला होकर पारदर्शक हो गया था.. रूखी की निप्पल ब्लाउस में से भी साफ नजर आने लगी थी.. स्तन को नीचे से दबा रही रूखी.. ढंकने के चक्कर में और दूध बहा रही थी..

rk


"रहने दे रूखी.. अब क्यों छुपा रही है.. जो देखना था वो तो मदन ने सब कुछ देख ही लिया है.. और मैंने भी.. !! अब छुपाने का कोई मतलब नहीं है" शीला ने रूखी से कहा

यह सुनते ही रूखी ने अपने निरर्थक प्रयत्नों पर रोक लगा दी.. और ब्लाउस के हुक को छोड़ दिया.. उसी के साथ.. उसके दोनों स्तन लटक गए.. दो भव्य स्तनों और निप्पलों के ऊपर लगी दूध की बूंदों का सौन्दर्य देखकर जो होना था वहीं हुआ..

रुखी का ये रूप देखकर शीला भी अचंभित हो गई.. वो समझ गई की इसमें बेचारे मदन की कोई गलती नहीं थी.. यह सीन देखकर मिट्टी का पुतला भी उत्तेजित हो जाता.. !!

मदन से रहा नहीं गया.. और शीला की मौजूदगी में ही.. उसकी जरा भी परवाह कीये बगैर.. वो रूखी के करीब गया.. और उसकी एक निप्पल को मुंह में भरकर.. छोटे बच्चे की तरह दूध चूसने लगा..

bf

"ओह्ह भैया.. छोड़ भी दीजिए.. अरे भाभी, आप भैया को कुछ कहिए ना.. !! ये क्या कर रहे हो भैया.. !! भाभी गुस्सा करेगी.. छोड़ दो मुझे.. आह्ह" शीला के सामने ही मदन की इन हरकतों से रूखी शर्म से लाल हो गई.. और मदन को अपने शरीर से दूर धकेलने की कोशिश करने लगी..

पर मदन इस मौके को छोड़ने वाला नहीं था.. वो जानता था की शीला चाहें जितना गुस्सा कर लें.. अभी ये सब देखकर उसकी चूत में चुनचुनी होना शुरू हो जाएगी.. और जैसे मैं रूखी के बबले देखकर तड़प रहा हूँ.. वैसे ही वो लंड लेने के लिए तड़पने लगेगी.. !! और हुआ भी वैसा ही.. शीला आगे बढ़ी और ऐसे खड़ी हो गई जिससे उसे सारा द्रश्य आराम से नजर आए.. तीरछी नज़रों से शीला की ओर देखकर रूखी मुस्करा रही थी और मदन दोनों हाथों से उसके स्तन को दबाकर दूध निकाल रहा था..

mt2

शीला बेडरूम से बाहर आई और तसल्ली कर ली की मुख्य दरवाजा ठीक से लॉक था.. और बेडरूम में चली आई.. फिर रूखी को आँख मारते हुए उसने विजयी मुद्रा में अंगूठा दिखाकर आगे बढ़ने की अनुमति दे दी.. और रूखी के सामने ही अपने घाघरे के ऊपर से भोसड़े को खुजाते हुए.. अपने ब्लाउस के तमाम हुक खोल दीये.. और उन दोनों के साथ शरीक हो गई..

मदन के पास शीला की तरफ देखने का भी समय नहीं था.. रूखी के स्तनों को पच-पच की आवाज के साथ चूस रहें मदन की पेंट से शीला ने उसका लंड बाहर निकाला और चूसने लगी.. उसके लंड के स्वाद से वो पिछले तीस साल से परिचित थी.. पर आज उसका स्वाद कुछ अलग ही था.. वो समझ गई की उसके लंड पर रूखी के मदमस्त भोसड़े का शहद लगा हुआ था.. इसलिए स्वाद अलग लग रहा था.. रूखी ने मदन के लंड की तरफ नजर भी नहीं डाली.. ये देखकर ही शीला समझ गई की उसके आने से पहले चुदाई का एक राउन्ड हो चुका था.. मदन की कामुकता को वो बखूबी जानती थी..

शीला को शामिल हुआ देख मदन जोश में आ गया.. और टेंशन-मुक्त होकर उसने रूखी के बदन को सहलाना शुरू कर दिया.. बिस्तर पर लेट चुकी रूखी की दोनों टांगें खोल दी शीला ने.. भरपूर झांटों के जंगल में छुपी हुई चूत खुल गई.. मदन इतना उत्तेजित था की उसे रूखी के अलावा और कुछ नजर ही नहीं आ रहा था.. उसके लंड की सख्ती देखकर ही पता चलता था की आज उसका सुरूर कुछ अलग ही था..

शीला ने मदन को खड़ा किया और रूखी की फैली हुई जांघों के बीच बिठा दिया.. और वो खुद रूखी के मुंह पर अपनी चूत लगाते हुए.. मदन के सामने मुंह रखकर बैठ गई.. मदन ने रूखी की दोनों जांघों को चौड़ा किया.. और एक ही धक्के में अपना पूरा लंड उसके गीले गुलिस्तान में डाल दिया..


fr pp

धक्के लगाते हुए वो शीला को चूम रहा था.. रूखी नीचे से गांड उछाल उछालकर चुदवा रही थी.. और शीला रूखी से अपनी चूत चटवा रही थी.. मदन के लंड ने रूखी को तृप्त करके ही दम लिया.. और संतोष के भाव रूखी के चेहरे पर छलक उठें.. शीला भी अपना भोसड़ा रगड़ते हुए झड़ गई.. और शीला रूखी के ऊपर से उतर गई..

रूखी अब धीरे से खड़ी हुई.. और कपड़े पहनने लगी.. तैयार होकर वो चुपचाप चली गई.. शीला या मदन से बिना कुछ बात किए.. मदन का लंड मुरझाने के बाद उसे खयाल आया की अब शीला का क्या करें?? आज से पहले दोनों के बीच ऐसी स्थिति नहीं आई थी.. उसे पता था की शीला उसकी कोई सफाई सुनने वाली नहीं थी.. दूध भरे बबलों के प्रति उसका जुनून शीला जानती थी.. पर अब शीला क्या कहेगी वो उसके इंतज़ार में था.. शीला भी मदन की ओर तीखी नज़रों से देख रही थी..

काफी देर तक शीला कुछ नहीं बोली.. फिर मदन की तरफ उसका पतलून फेंकते हुए कहा "ले मदन.. कम से कम पेंट तो पहन ले.. अभी कविता या अनुमौसी मे से कोई आ गया तो उनको देखकर ये तेरी लुल्ली फिर से खड़ी हो जाएगी.. और वो ये सोचेंगे की इसका ऐसा हाल मुझे चोदकर हुआ है.. मेरी चुदाई हुई भी है या नहीं वो उन्हें कहाँ पता चलेगा.. !!"

मदन ने चुपचाप पेंट पहन लिया और धीमे से बोला "सॉरी यार.. पर मुझे ये पता नहीं चला की गुस्सा होने के बावजूद तू हमारे साथ शामिल कैसे हो गई?"

शीला गुस्से से कांपते हुए बोली: "मेरी गांड मरवाने शामिल हुई मैं.. !!! साले चूतिये.. तू और रूखी मजे उड़ाओ.. तो मैं क्या क्या खड़े खड़े देखती रहती.. ?? गुस्सा तो ऐसा आ रहा था.. मन कर रहा था की रसिक को अभी के अभी यहाँ बुलाऊँ.. और तेरे सामने ही उससे मेरा भोसड़ा फड़वा लूँ.. पर हम दोनों की लड़ाई में.. ओह आई एम सॉरी..!! अब तो रूखी भी शामिल हो चुकी है.. हम तीनों की लड़ाई में.. बेकार में रसिक से क्यों चुदवाऊँ.. !! मुझे कोई अपनी मर्जी का मर्द मिलने दे.. फिर देखना.. तेरी आँखों के सामने अगर मैंने अपनी चूत न मरवाई.. तो मेरा नाम बदल देना.. !!"

मदन: "शीलु मेरी जान... यार मुझसे गलती हो गई.. अगर मेरा विश्वास करे तो एक बात कहूँ.. ?? उस रूखी ने आकर मेरे सामने ऐसे ऐसे नखरे कीये.. जैसे मेरा तपोभंग करने आई हो.. झुक झुककर अपने बबले दिखा रही थी.. मैं कितना कंट्रोल करता यार.. !!"

शीला: "तू वहाँ विदेश में जब अपनी मकान-मालकिन के बबले चूस रहा था तब यहाँ मुझे देखकर कितने मर्द अपने लंड खुजाते थे.. तो क्या मैं उन सब के सामने टांगें फैलाकर चुद जाती.. !! एक बार तो एक सांड हमारे घर के बाहर खड़ा था.. इतना बड़ा लंड था उसका.. तो क्या मैं उसके नीचे सो जाती??" शीला जब बोलने बैठती तब कोई उसका मुकाबला नहीं कर सकता था..

मदन: "अरे यार तुम औरत हो.. औरतों में तो कंट्रोल होता है.. मर्द ही कंट्रोल नहीं कर सकते"

शीला: "कुछ भी हो मदन.. पर तूने जो कुछ भी किया वो ठीक नहीं किया.. अभी के अभी मेरी चूत ठंडी करनी है मुझे.. बता कैसे करेगा?? तू तो पिचकारी मारकर शांत हो गया.. उस रूखी की चूत में.. अब मैं क्या करूँ??"

मदन: "आई एम सॉरी यार.. अब छोड़ ना.. वो है ही ऐसी की देखकर लंड तैयार हो गया मेरा.. ऊपर से उसके दूध भरे बबलों की लालच.. तुझे तो पता है मेरी कमजोरी.. "

शीला जानबूझकर गुस्सा कर रही थी और मदन के मजे ले रही थी.. उसी वक्त दस्तक देकर कविता ने घर में प्रवेश किया..

"कैसे हो मदन भैया?" कोयल सी मीठी आवाज में कविता ने कहा

"अरे कविता.. आजा अंदर.. ये देख तेरी भाभी कब से क्लास ले रही है मेरी.. " मदन ने कहा.. कविता के आने से उसने राहत की सांस ली

कविता: "क्या हो गया भाभी? क्यूँ डांट रही हो भैया को?"

शीला ने मुंह बिगाड़कर कहा "अपने भैया से ही पूछ...!!"

मदन: "अरे ऐसी कोई खास बात नहीं है.. बेकार में तू बात का बतंगड़ बना रही है"

कविता: "अरे पर कोई मुझे बताएगा की आखिर बात क्या है?"

शीला और मदन दोनों चुप हो गए.. क्या बताते?? की मदन रूखी के बबले चूसते हुए रंगेहाथों पकड़ा गया.. ??

शीला: "कुछ नहीं है कविता.. ये तो मियां-बीवी की रोज की नोंकझोंक है.. तू बता.. कैसे आना हुआ? कैसी चल रही ही मौसम की शादी की तैयारी?" बोलते बोलते शीला किचन में गई और कविता उसके पीछे पीछे

कविता: "बस चल रही है तैयारी.. मौसम की शादी के लिए पापा ने आपको और भैया को एक हफ्ते पहले से आने के लिए कहा है" फिर अचानक कविता ने कहा "एक मिनट भाभी... आज सुबह सुबह ही रोमांस का मुड़ बन गया था क्या?"

शीला: "क्यों?"

कविता धीरे से शीला के कान में कुछ फुसफुसाई

शीला: "नहीं रे नहीं.. ऐसा तो कुछ नहीं हुआ..पर क्यों पूछा??"

कविता: "आपके पेटीकोट के पीछे ये जो धब्बा है.. देखकर ही पता चलता है.. झूठ क्यों बोल रही हो भाभी.. आप के जितना अनुभव भले ही ना हो.. पर इतना तो मैं समझ ही सकती हूँ की ऐसे धब्बे कब बन जाते है कपड़ों पर"

चोंककर शीला ने अपने पीछे हाथ लगाकर देखा.. गिलेपन का एहसास होते ही वो शरमा गई.. रसिक के लोडे की दमदार पिचकारी से निकला वीर्य.. रह रहकर उसकी चूत से रिसकर पेटीकोट को गीला कर रहा था.. अच्छा हुआ जब वो मदन से झगड़ रही थी तब मदन का ध्यान नहीं गया..

शीला ने कविता को अपने करीब खींचा और उसके कान में कहा "ये धब्बा तुम्हारे भैया की वजह से नहीं बना है"

कविता चोंककर जोर से बोली "क्या??????" आँखें फटी की फटी रह गई उसकी.. और अपने चेहरे को शर्म के मारे हाथों से ढँकते हुए वो बोली "तो फिर किसका है?"

शीला: "वो मैं नहीं बता सकती.. टॉप सीक्रेट है.. जैसे तेरे और पिंटू का सीक्रेट है ना.. वैसा ही कुछ.. "

कविता: "अरे वाह भाभी.. आपने तो पहले कभी बताया ही नहीं.. बताइए ना.. कौन है वो?"

शीला: "अभी चुप मर.. फिर कभी बताऊँगी"

कविता ने शीला के पीछे जाकर फिर से वो धब्बा देखते हुए कहा "इतना बड़ा धब्बा?? मेरे कपड़ों पर तो बस छोटा सा दाग ही होता है.. आप तो जैसे पानी के पोखर में बैठकर आई हो इतना गीला हो गया है.. "

शीला ने कुहनी तक हाथ दिखाकर इशारा करते हुए कहा "इतना बड़ा है उसका.. देखा है कभी इतना बड़ा लंड??" फिर अपने दोनों हथेलियों को जोड़कर बोली "इतना सारा निकला था.. तभी तो बड़ा धब्बा बना हुआ है.. थोड़ी सी पिचकारी से कभी ऐसा धब्बा थोड़े ही बनता है"

"बाप रे भाभी.. क्या आप भी.. !!" "लंड" शब्द सुनकर कविता का गोरा मुखड़ा शर्म से लाल लाल हो गया.. इतना बड़ा लंड कैसे हो सकता है??

अचानक कविता के हावभाव बदल गए.. उसे वो मनहूस रात याद आ गई जब उसकी सास ने आइसक्रीम में दवाई मिलाकर उसे बेहोश करने की कोशिश की थी.. और रसिक के साथ उसके जिस्म का सौदा कर दिया था.. और रसिक ने उसकी चूचियाँ भी दबा दी थी.. आज तक पीयूष और पिंटू के अलावा किसी ने उसके नंगे जिस्म को हाथ नहीं लगाया था.. रसिक का लंड जब उसने देखा तब उसका दिल बैठ गया था.. कितना बड़ा था.. !!! बाप रे बाप.. !! वो शीला को कहना चाहती थी की.. हाँ.. उतना बड़ा लंड मैंने देखा है.. पर फिर आगे क्या बताती?

शीला: "क्या हुआ? चुप क्यों हो गई?? यही सोच रही है ना की इतना बड़ा लंड कैसे हो सकता है.. !! अरे भाई.. तुम आजकल की लड़कियों ने दुनिया देखी ही कहाँ है.. !! गाँव के देसी घी की ताकत का तुम्हें अंदाजा भी नहीं है"

कविता: "भाभी... !! आपने कितनों के देख रखे है??"

शीला: "चुप कर.. अब तू मेरी तहकीकात मत कर.. बात मेरी नहीं हो रही अभी.. बात बड़े लंड की हो रही है.. " मदन घर में मौजूद था इसलिए दोनों चुपके चुपके बात कर रही थी

शीला बड़े लंड का विवरण दे रही थी.. और कविता को शीला के प्रत्येक शब्द सुनकर रसिक का डरावना लंड याद आ रहा था.. देसी घी?? कविता सोच में पड़ गई.. उसकी सास भी रसिक के प्यार में पागल थी.. अब शीला भाभी भी वहीं भाषा में बात कर रही थी.. सासु माँ तो प्यार में ऐसी पागल हो गई थी की मेरे जिस्म का ही सौदा कर बैठी थी रसिक के साथ.. इस बुढ़ापे में इतनी नीच हरकत करने के लिए वो तैयार हो गई.. मतलब कुछ तो खास बात होगी उसमें..

शीला: "तेरे भैया जब बाहर जाए.. तब ये बात याद दिलाना मुझे.. अभी ज्यादा बात करना ठीक नहीं होगा.. !!"

कविता और शीला किचन में बातें कर रही थी उस वक्त.. मदन को राजेश का फोन आया.. बात करने के बाद.. फोन कट करने से पहले उसने राजेश से कहा "मैं शीला को पूछकर अभी दो मिनट में बताता हूँ"

मदन: "शीला, राजेश बिजनेस के काम से चार दिनों के लिए बेंगलोर जा रहा है.. अकेला ही है और मुझे साथ ले जाना चाहता है.. अगर तुझे प्रॉब्लेम न हो तो मैं चला जाऊँ उसके साथ?"

शीला: "कब जाना है?? तू यार एन मौके पर ऐसे प्रोग्राम बनाएगा तो कैसे चलेगा?? फिर मैं यहाँ चार दिन तक क्या करूँ?"

कविता खिलखिलाकर हंस पड़ी.. "चार दिन तक क्या करूँ" इस वाक्य का सही अर्थ वो समझ रही थी

मदन: "अरे यार.. तू गुस्सा मत कर.. मैं मना कर देता हूँ राजेश को.. " थोड़ी नाराजगी के साथ मदन ने कहा

कविता: "अरे भाभी.. प्लान बन रहा है तो जाने दो भैया को.. राजेश सर की कंपनी भी है.. क्या आप भी.. !!"

शीला: "अरे वाह.. बड़ी तरफदारी कर रही है अपने भैया की.." कविता का कान खींचते हुए शीला ने कहा

कविता: "वो इसलिए की अगर मदन भैया नहीं गए.. तो राजेश सर जरूर पीयूष को अपने साथ बेंगलोर ले जाएंगे.. फिर चार दिन तक मैं क्या करूँ??" हँसते हुए कविता ने कहा

शीला: "कमीनी.. एक नंबर की चैप्टर है तू.. ठीक है.. तू कह रही है इसलिए जाने देती हूँ.. वरना इन पतियों को ज्यादा छूट देनी नहीं चाहिए.. वरना साले हमारी आँखों के सामने ही इनकी रास-लीला शुरू हो जाएगी"

मदन ने तुरंत फॉन पर राजेश को बता दिया की वो साथ चलेगा.. राजेश ने मदन को चार बजे उसकी ऑफिस पर पहुँचने के लिए कहा

तुरंत ही मदन ने पेकिंग शुरू कर दी.. कुछ जरूरी सामान लेने वो बाहर गया

कृत्रिम क्रोध के साथ शीला ने कहा "कविता, अब तू मेरे साथ ही रहेगी.. तूने मुझे अकेला कर दिया.. अब मैं भी तुझे पीयूष के साथ नहीं रहने दूँगी.. मेरा उपवास होगा तो तुझे भी खाने नहीं दूँगी मैं.. !!"

कविता: "कोई बात नहीं भाभी.. मैं मम्मीजी को बताकर आती हूँ की आज आपके साथ ही खाना खाऊँगी.. मैं आई दो मिनट में"

कविता गई.. कमर तक लटक रही चोटी को हिलाते हुए.. अपनी पतली कमर मटकाते जा रही कविता को पीछे से देखती रही शीला.. और सोच रही थी.. हे भगवान.. इस पतली सी लड़की पर अगर रसिक चढ़ेगा तो इसका क्या हाल होगा?? कविता की चोटी जितनी लंबी है उतना ही लंबा लोडा है रसिक का..

कविता जल्दी जल्दी घर गई और तुरंत वापिस लौट आई.. दरवाजा अंदर से लॉक करके सोफ़े पर बैठ गई.. खाना तैयार था और दोनों मदन के आने का इंतज़ार करने लगे..

शीला: "दरवाजा क्यों बंद किया?? मदन अभी आता ही होगा? शेविंग क्रीम लेने ही तो गया है"

कविता: "हमारी बातें डिस्टर्ब न हो इसलिए मैंने दरवाजा बंद कर दिया है.. मदन भैया आएंगे तब खोल देंगे.. "

शीला वापिस बड़े लंड की बात शुरू करेगी इस इंतज़ार में कविता थोड़ी देर बैठी रही.. फिर बात की शुरुआत करने के लिए उसने कहा

कविता: "भाभी, मौसम की सगाई के दिन आप बहोत सुंदर लग रही थी"

शीला: "हाँ और तू भी बहोत प्यारी लग रही थी.. जब पिंटू के साथ खड़ी थी"

कविता: "क्या सच में?? हम दोनों की जोड़ी इतनी सुंदर लगती है भाभी?"

शीला: "हाँ बहोत ही अच्छी लग रही थी.. पीयूष से तलाक लेकर पिंटू से शादी कर ले"

कविता ने एक गहरी सांस छोड़ी.. और चुप हो गई

कविता: "रेणुका जी और राजेश सर की जोड़ी भी बहोत मस्त लग रही थी.. हैं ना भाभी?"

शीला: "अरे तेरी बात से मुझे याद आया.. राजेश बिजनेस टूर पर जा रहा है तो रेणुका भी घर पर अकेली होगी.. उसके घर ही चली जाती हूँ.. पर.. फिर वैशाली अकेली हो जाएगी.. रेणुका को ही यहाँ बुला लेती हूँ"

कविता बैठे बैठे टीवी देख रही थी तब शीला ने रेणुका के मोबाइल पर कॉल लगाया.. रेणुका ने तुरंत उठाया

रेणुका: "हाई शीला.. मैं तुझे ही याद कर रही थी.. कितने दिन हो गए हमें मिलें हुए.. तू तो मुझे भूल ही गई है"

शीला: "नहीं यार.. भूल गई होती तो फोन क्यों करती तुझे.. !! बोल क्या कर रही है? अकेली है?"

रेणुका: "दिन के समय तो मैं अकेली ही होती हूँ.. क्यों पूछा.. ?? कोई आया है क्या??" रेणुका का इशारा रसिक की तरफ था

शीला: "नहीं यार.. वैसे कल तेरा क्या प्रोग्राम है?"

रेणुका: "कुछ खास नहीं.. राजेश के साथ मूवी देखने जाने का प्लान है"

शीला: "क्यों?? राजेश बेंगलोर नहीं जाने वाला?? मदन को तो उसने कॉल किया था की वो चार दिनों के लिए जा रहा है और मदन भी उसके साथ जाने वाला है.. अभी खाना खाकर मदन निकलने ही वाला है"

तभी घर की डोरबेल बजी..

रेणुका से बातें करते हुए शीला ने दरवाजा खोला.. मदन के अंदर आते ही उसने दरवाजा बंद कर दिया.. बातें करते करते शीला ने खाना परोसा.. और फिर मदन ने खाना फटाफट खतम किया और अपना बेग लेकर तुरंत निकल गया

शीला: "मतलब तुझे पता ही नहीं है की राजेश बेंगलोर जाने वाला है??"

रेणुका: "वैसे तो मुझे बताकर जाता है.. पर हो सकता है की कोई अर्जेंट काम निकल आया हो" रेणुका काफी मुक्त विचारों वाली थी.. उसे राजेश पर पूरा भरोसा था..

दोनों की बातें चल रही थी तब रेणुका के बेडरूम में किसी ओर मोबाइल की रिंग सुनाई दी

रेणुका: "अरे, राजेश अपना दूसरा मोबाइल घर पर ही भूल गया है.. किसी का कॉल आ रहा है.. तू फोन चालू रख.. " रेणुका ने दूसरे फोन पर बात करते हुए कहा "ओके, थेंकस.. मैं उन्हें बता दूँगी" कहते हुए दूसरा फोन कट कर दिया

रेणुका: "शीला.. यार मुझे तो दाल में कुछ काला लग रहा है"

शीला: "क्यों?? क्या हुआ?"

रेणुका: "एक काम कर.. तू मेरे घर आजा.. फिर सब बताती हूँ"

शीला: "अरे यार.. मैं अभी कविता के साथ हूँ.. और शाम को वैशाली भी घर आ जाएगी.. मैं नहीं आ सकती"

रेणुका: "कविता शाम तक थोड़े ही तेरे साथ रहेगी.. !! वो तो पीयूष के आते ही घुस जाएगी उसकी बाहों में.. सर्दी कितनी है.. !! सब को अपना अपना हीटर याद आ जाता है रात को.. तू एक काम कर.. कविता को निपटाकर घर भेज दें.. और तू यहाँ चली आ.. मैं पिंटू को फोन करके बता देती हूँ को वो शाम को वैशाली को यहाँ छोड़ जाएँ.. तीनों साथ डिनर करेंगे.. !!"

शीला: "ठीक है.. मैं एक घंटे में फोन करती हूँ.. तब तक देख.. शायद राजेश तुझे फोन करें.. !!"

रेणुका: "ओके.. ठीक है.. बाय.. मैं इंतज़ार करूंगी तेरा.. !!"

रेणुका ने फोन रख दिया..

कविता और शीला ने एकाध घंटे तक काफी बातें की.. कविता के सवालों में.. देसी घी और बड़े लंड का बार बार जिक्र होता था.. उसकी तमाम बातें कामअग्नि को भड़काने वाली थी..पेट्रोल से आग बुझाने की कोशिश कर रही थी कविता... ऊपर से शीला की गरम बातें उसे और उत्तेजित कर रही थी.. कविता के चेहरे के खुमार को देखकर मन ही मन खुश हो रही थी शीला.. कविता के सवालों का जवाब देते देते शीला भी गरम हो गई थी..

कविता: "भाभी, अब तो मदन भैया भी चले गए.. मैं दरवाजा बंद कर देती हूँ.. अब सारी बातें विस्तार से बताइए मुझे.. मुझे सुनने में बहोत मज़ा आ रहा है"

शीला: "तू अभी नादान है कविता.. तेरी उम्र की थी तब मैं भी ऐसी ही थी.. मैंने खुद ही सेक्स के सारे पाठ पढ़ें.. और ऐसी माहिर हो गई की आज भी मदन को खुश रख पाती हूँ.. हम औरतें पति की खुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार होते है.. उनको पूरा संतोष मिलें.. उनका दिल ना दुखें.. इसका पूरा पूरा ध्यान रखते है.. पर क्या हम अपनी खुशी के लिए भी कभी जीते है क्या?? सब कुछ वहीं करते है जो पति को पसंद हो.. एक बात बता.. तू पीयूष का लंड चूसती है क्या??"

शीला के इस अचानक सवाल से कविता शर्म से पानी पानी हो गई

"हाँ भाभी.. " कविता ने सिर्फ इतना ही कहा

"कितनी देर तक?"

"थोड़ी देर के लिए ही भाभी"

शीला: "क्यों? ज्यादा देर तक क्यों नहीं चूसती?"

"अच्छा नहीं लगता भाभी.. मुंह दुखने लगता है"

शीला: "मैं तेरे भैया का लंड तब तक चूसती हूँ जब तक की वो हाथ जोड़कर बाहर निकालने के लिए विनती न करें.. ऐसी चुसाई करो तो पति खुश होगा ही होगा.. अरे खुश क्या होगा.. हमारा गुलाम बन कर रहेगा.. अगर ठीक से चूसना आता हो तो.. !! अच्छा.. ये बता.. तुझे अपनी चूत चटवाने में मज़ा आता है?"

कविता: "बहोत मज़ा आता है भाभी.. इतना मज़ा आता है की उसके अंदर डालने से पहले ही मैं झड़ जाती हूँ.. सिर्फ चटवाकर ही मैं पूरी संतुष्ट हो जाती हूँ"

शीला: "अच्छा.. मान ले अगर पीयूष को चाटना पसंद न हो.. तो??"

कविता: "पर उसे तो बहोत पसंद है भाभी.. मुझे इन सब चीजों के बारे में कहाँ पता ही था?? शादी करके आई तब मुझे सिर्फ किस और बूब्स दबाने के अलावा और कुछ पता नहीं था"

शीला: "झूठ मत बोल.. शादी के पहले पिंटू के साथ कुछ नहीं किया था क्या?? उसका देखा तो होगा ही तूने.. !!"

कविता: "देखने में और चूसने में फरक होता है ना भाभी.. !! मेरा पिंटू तो इतना अच्छा है की मेरी कितनी मिन्नतों बाद उसने मुझे अपना लंड दिखाया था.. मैं जबरदस्ती उसका हाथ अपने बूब्स पर रख दूँ तभी वो दबाता था"

शीला: "क्यों भला.. !! उसका खड़ा नहीं होता है क्या?? पिंटू को तुझे चोदने का मन नहीं करता था क्या? तेरे जैसी सुंदर लड़की अकेले में मिल जाएँ तो अच्छे अच्छों की नियत खराब हो जाएँ"

कविता: "खड़ा भी होता था.. और पत्थर जैसा सख्त भी हो जाता था.. कभी कभी मैं जिद करके पेंट के ऊपर से उसका पकड़ लेती थी तब पता चलता था की कितना टाइट हो जाता उसका लंड.. पर थोड़ी देर सहलाने के बाद वो मेरा हाथ हटा देता था"

शीला: "अजीब बात है.. !! मैंने आज तक ऐसा मर्द नहीं देखा.. जो इतने टाइट माल को चोदने से अपने आप को रोक सकें.. !!"

कविता: "मैं भी वहीं कहती थी उसे भाभी.. तो वो बोलता.. की मेरी शादी हो जाएँ उसके बाद हम सब कुछ करेंगे.. वो चाहता था की मुझे पहली बार मेरा पति ही चोदे.. मेरा बहोत मन था की मैं अपना सील पिंटू से तुड़वाऊँ.. पर वो माना ही नहीं.. !!"

शीला: "तूने पहली बार पिंटू का लंड देखा तब कैसा महसूस हुआ था? शादी के आखिरी हफ्ते तक उसने तुझे अपना लंड क्यों नहीं दिखाया?"

कविता: "वो तो दिखाना चाहता ही नहीं था.. पर हमारी किसी बात को लेकर शर्त लगी थी जो मैं जीत गई और बदले में मैंने उसे अपना लंड दिखाने के लिए कहा"

शीला: "पागल.. सिर्फ लंड देखने के लिए क्यों कहा? चुदवा ही लेती.. !!"

कविता: "तब मेरे दिमाग में नहीं आई ये बात.. वरना मज़ा आ जाता भाभी.. "

बात करते करते शीला खड़ी हुई और कविता के करीब आई.. कविता की छाती से उसका पल्लू हटा दिया.. ब्लाउस में कैद अमरूद जैसे उसके स्तनों को पकड़ते हुए.. झुककर उसने अत्यंत कामुकता से कविता के लाल होंठों को चूम लिया..

tt

शीला: "सिर्फ बातें करते करते हम कितनी गरम हो गई.. !! सच बता.. नीचे गीला हो रहा है या नहीं?"

कविता: "ओह भाभी.. जरा जोर से दबाइए ना.. हाँ.. नीचे गीली हो गई है मेरी.. और चूल भी मच रही है.. आपने चाटने की बात की और मेरी वो.. नीचे पानी छोड़ने लगी.. आह्ह.. अभी कोई आकर चाटने को तैयार हो तो मैं अभी अपनी टांगें फैलाकर लेट जाऊँ.."

शीला: "जैसा मन तुझे अभी कर रहा है.. पुरुषों को चौबीसों घंटे होता रहता है.. की काश कोई आकर उनका लंड चूसें.. इसलिए.. लंड चूसने के लिए कभी खुद का मूड नहीं देखना चाहिए.. बस सहूलियत देखनी चाहिए.. उनकी इच्छा तो हमेशा होगी.. और हमारा मूड कभी नहीं होगा.. समझी?? मरने की हालत में पड़े हुए मर्द का लंड अगर कोई चूस ले तो वो तब भी मना नहीं करेगा.. बल्कि बच जाएगा"

कविता ने शीला के खरबूजे जैसे स्तनों पर चेहरा रख दिया.. और उसकी गदराई कमर को दोनों हाथों से लपेट लिया.. शीला के विशाल स्तनों पर अपना गाल रगड़ने लगी कविता

शीला: "जब हमें पता है की हमारे पति को इससे खुशी मिलती है.. फिर उन्हें क्यों उस सुख से वंचित रखना.. !!"

कविता: "पता नहीं भाभी.. पर मुझे लंड चूसना ज्यादा पसंद नहीं है.. हाँ चूत चटवाना बहोत अच्छा लगता है"

शीला ने धीरे से अपने ब्लाउस के दो हुक खोलकर अपना एक स्तन बाहर निकाला.. और कविता के बालों में उँगलियाँ फेरते हुए कहा "ले कविता.. चूस ले इसे.. देख.. बातें करते हुए कितने सख्त हो गए है ये.. मैं जब भी गर्म हो जाती है तब ये सख्त पत्थर जैसे हो जाते है.. मदन होता तो दोनों हाथों से मसल मसलकर इन्हें ढीले कर देता.. आज यह जिम्मेदारी तेरी है.. चल अब तू मदन बन जा.. और इन्हें मसल दे.. फट रही है छातियाँ मेरी.. आह्ह.. जल्दी जल्दी कर यार.. !!"

कविता के मुंह में निप्पल देकर शीला ने बात आगे बढ़ाई..

sn2 sn3

शीला: "कविता, अभी तू नाजुक है.. तेरी चूत सिर्फ पीयूष का लंड अंदर ले सकें उतनी ही चौड़ी हुई होगी.. पर तुझे पता है.. सब लंड एक जैसे नहीं होते.. अलग अलग रंग.. अलग अलग साइज़.. अलग अलग मोटाई होती है सब की"

शीला की एक इंच लंबी निप्पल को मुंह से निकालकर कविता ने कहा "हाँ भाभी, पीयूष कभी कभी तीन तीन उँगलियाँ एक साथ डाल देता है..तब दर्द होता है.. मैं मुश्किल से दो उँगलियाँ ही अंदर ले पाती हूँ.. पिंटू और पीयूष के लंड की साइज़ एक सी है.. !!"

शीला: "मेरे छेद में तो मदन चार उँगलियाँ डाल दे तो भी कम पड़ जाती है मुझे.. आह्ह कविता.. मोटा तगड़ा लंड अंदर डलवाने में जो मज़ा आता है.. वो मैं बता नहीं सकती.. अंदर ऐसे घुसता है.. चूत की दीवारों से रगड़ खाता हुआ.. आह्ह.. दिल गार्डन गार्डन हो जाता है"

"दर्द नहीं होता आपको??" कविता ने फिर से निप्पल मुंह में लेकर चूसते हुए कहा

शीला ने कविता के सर को अपने स्तनों से दबाते हुए कहा "अरे मेरी जान.. उसी में तो असली मज़ा आता है.. उस दुख में जो सुख है वो ओर किसी में नहीं.. चल अब नीचे भी थोड़ा सा सहला दें.. " कविता का हाथ पकड़कर शीला ने अपने घाघरे के अंदर डालकर.. भोसड़े पर दबा दिया..

pfo

"ओह्ह भाभी.. कितनी गरम है आपकी तो.. !! बाप रे.. !!" शीला के भोसड़े के वर्टिकल होंठों पर लगे चिपचिपे प्रवाही को हथेली से पूरी भोस पर रगड़ते हुए कविता ने कहा

"बस बस.. ओर नहीं कविता.. फिर मेरा मन हो गया तो लंड कहाँ से लाएंगे?? प्लीज रहने दे.. !!" शीला ने सिसकते हुए कहा

कविता को बेहद उत्तेजित करने के बाद शीला ने कहा "कविता, अब मुझे रेणुका के घर जाना होगा.. तू अपने घर जा और मैं रेणुका के घर के लिए निकलती हूँ.. इस बारे में हम कभी विस्तार से बात करेंगे.. जब किसी दिन पीयूष और मदन दोनों न हों, तब तू रात को सोने आ जान.. सब समझूँगी.. ठीक है.. !!"

कविता को गर्म करके मजधार में छोड़ दिया शीला ने.. और मन ही मन खुश होते हुए वो कपड़े बदलने गई.. कविता के सामने ही वो कपड़े बदल रही थी.. जब शीला अपने सारे कपड़े उतारकर मादरजात नंगी हो गई तब उसे देखकर कविता का गला सूखने लगा.. बेड के कोने पर एक पैर टिकाकर शीला ने कविता की आँखों के सामने ही.. अपना भोसड़ा दबा दिया.. और तेजी से उंगलियों को अंदर बाहर करते हुए.. भोसड़े का सारा पानी अपनी हथेली में ले लिया..

wp2

और फिर कविता के पल्लू से उसे पोंछ दिया.. और कपड़े पहन लिए.. चूत की असन्तुष्ट भूख से परेशान होते हुए कविता अपने घर चली गई.. अच्छा तो शीला को भी नहीं लगा था.. कविता को यूं गर्म कर छोड़ देना.. पर अभी उसकी चूत को ठंडा करने का समय नहीं था.. फिलहाल रेणुका के घर जल्दी पहुंचना जरूरी था.. अगर जल्दी न होती तो वो कविता की चूत को ठंडा जरूर कर देती..

कविता के जाने के बाद, शीला ने वैशाली को फोन कर बता दिया की वो रेणुका के घर जा रही है और उसे भी शाम को ऑफिस से छूटकर वहीं पहुंचना है..

शीला तैयार होकर, अपना पर्स लेकर निकल पड़ी, रेणुका के घर जाने के लिए..
 

vakharia

Supreme
5,092
11,819
174
Story updated

Napster Ajju Landwalia Rajizexy Smith_15 krish1152 Rocky9i crucer97 Gauravv liverpool244 urc4me SKYESH sunoanuj Sanjay dham normal_boy Raja1239 Haseena Khan CuriousOne sab ka pyra Raj dulara 8cool9 Dharmendra Kumar Patel surekha1986 CHAVDAKARUNA Delta101 rahul 23 SONU69@INDORE randibaaz chora Rahul Chauhan DEVIL MAXIMUM Pras3232 Baadshahkhan1111 pussylover1 Ek number Pk8566 Premkumar65 @Baribar Raja thakur Iron Man DINNA Rajpoot MS Hardwrick22 Raj3465 Rohitjony Dirty_mind Nikunjbaba @brij728 Rajesh Sarhadi ROB177A Raja1239 Tri2010 rhyme_boy Sanju@ Sauravb Bittoo raghw249 Coolraj839 Jassybabra rtnalkumar avi345 Nileshmckn kamdev99008 SANJU ( V. R. ) Neha tyagi Rishiii Aeron Boy Bhatakta Rahi 1234 kasi_babu Sutradhar dangerlund Arjun125 Gentleman Radha Shama nb836868 Monster Dick Rajgoa anitarani Jlodhi35 Raj_sharma Mukesh singh Pradeep paswan अंजुम Loveforyou Neelamptjoshi sandy1684 Royal boy034 mastmast123 Rajsingh Kahal Mr. Unique Vikas@170 DB Singh trick1w Vincenzo rahulg123 Lord haram Rishi_J flyingsara messyroy SKY is black Ayhina Pooja Vaishnav moms_bachha himansh Kamini sucksena Jay1990 rkv66 Ek number Hot&sexyboy Ben Tennyson Jay1990 sunitasbs 111ramjain Rocky9i krish1152 U.and.me archana sexy Gauravv vishali robby1611 Amisha2 Tiger 786 rahul198848 Sing is king 42 Tri2010 ellysperry Raja1239 macssm Slut Queen Anjali Ragini Ragini Karim Saheb rrpr Ayesha952 sameer26.shah26 rahuliscool smash001 rajeev13 Luv69 kingkhankar arushi_dayal rangeeladesi Mastmalang 695 Rumana001 rangeeladesi sushilk Rishiii satya18 Rowdy Pandu1990 small babe
 

Sushil@10

Active Member
507
464
63
आखिरी बार सलाह देकर शीला खड़ी हो गई.. रसिक को एक किस करते हुए वो निकल गई.. घड़ी में देखा तो चालीस मिनट बीत चुके थे.. उतनी देर भी नहीं हुई थी.. वो तृप्त और खुश होते हुए घर पहुंची.. घर का दरवाजा बंद था.. और बाहर किसी की चप्पल पड़ी हुई थी.. शीला ने दरवाजा खटखटाया.. काफी देर के बाद मदन ने दरवाजा खोला.. मदन का हाल बेहाल था..

अस्त-व्यस्त बाल.. सिलवटों वाले कपड़े.. लाल चेहरा.. शीला बिना कुछ कहें घर के अंदर आ गई.. उसने अंदर जाकर बेडरूम में देखा तो बिस्तर पर रूखी बैठी हुई थी.. उसका रंग-रूप और हावभाव देखकर ये साफ प्रतीत हो रहा था की मदन के साथ गुलछर्रे उड़ा चुकी थी.. बिखरा हुआ बिस्तर इस बात की गँवाही दे रहा था..


"ये क्या है रूखी?" शीला ने गुस्सा करते हुए कहा

"कुछ नहीं भाभी.. मैं तो आप से मिलने आई थी.. पर आप बाहर गई हुई थी इसलिए भैया ने मुझे यहाँ बैठने को कहा.. मैं तो आपका इंतज़ार कर रही थी" रूखी ने जवाब दिया

"तो क्या ये तेरे भैया ने तुझे बिस्तर पर बैठने को कहा था?? और वो भी ब्लाउस के तीन हुक खोलकर??" शीला ने लाल आँख करते हुए मदन की तरफ देखा

वैसे ये शीला का ही प्रपंच था.. रूखी को उसने ही फोन कर यहाँ घर पर बुलाया था.. उसे पक्का यकीन था की रूखी को अकेले पाकर मदन अपने आप को रोक नहीं पाएगा.. और रूखी भी जनम जनम की भूखी थी.. वो जानबूझकर गुस्सा इसलिए जता रही थी ताकि मदन उसके नियंत्रण मे रहे.. दूसरा, जितनी देर तक मदन रूखी के साथ उलझा रहता, उतनी ही ज्यादा देर तक उसे रसिक के मजेदार लंड से चुदने का समय मिलता..

"अरे भाभी, मैं तो सोफ़े पर ही बैठी थी.. पर भैया ने मुझे अंदर बुला लिया.. मैंने सोचा उन्हें कुछ काम होगा.. मुझे कहाँ पता था की भैया मेरे साथ ऐसा कुछ करेंगे.. " रूखी ने ब्लाउस के बटन बंद करते हुए सफाई दी

शीला ने क्रोधित होकर मदन के सामने देखा.. मदन चुपचाप नजरें झुकाएं खड़ा था.. रूखी जल्दबाजी में ब्लाउस के बटन बंद करने गई.. पर बड़े बड़े.. दूध भरे स्तनों को ताकत से ब्लाउस में बंद करते हुए उसकी दोनों निप्पलों से दूध टपक पड़ा.. जिसे देखकर मदन के मुंह से सिसकी निकल गई.. आह्ह!!

शीला रूखी के मदमस्त स्तनों को देखती ही रही.. मदन भी स्तब्ध होकर देख रहा था.. पीले रंग के पतले ब्लाउस की कटोरियों का आगे का हिस्सा दूध निकलने के कारण गीला हो रखा था.. और ब्लाउस गीला होकर पारदर्शक हो गया था.. रूखी की निप्पल ब्लाउस में से भी साफ नजर आने लगी थी.. स्तन को नीचे से दबा रही रूखी.. ढंकने के चक्कर में और दूध बहा रही थी..

rk


"रहने दे रूखी.. अब क्यों छुपा रही है.. जो देखना था वो तो मदन ने सब कुछ देख ही लिया है.. और मैंने भी.. !! अब छुपाने का कोई मतलब नहीं है" शीला ने रूखी से कहा

यह सुनते ही रूखी ने अपने निरर्थक प्रयत्नों पर रोक लगा दी.. और ब्लाउस के हुक को छोड़ दिया.. उसी के साथ.. उसके दोनों स्तन लटक गए.. दो भव्य स्तनों और निप्पलों के ऊपर लगी दूध की बूंदों का सौन्दर्य देखकर जो होना था वहीं हुआ..

रुखी का ये रूप देखकर शीला भी अचंभित हो गई.. वो समझ गई की इसमें बेचारे मदन की कोई गलती नहीं थी.. यह सीन देखकर मिट्टी का पुतला भी उत्तेजित हो जाता.. !!

मदन से रहा नहीं गया.. और शीला की मौजूदगी में ही.. उसकी जरा भी परवाह कीये बगैर.. वो रूखी के करीब गया.. और उसकी एक निप्पल को मुंह में भरकर.. छोटे बच्चे की तरह दूध चूसने लगा..

bf

"ओह्ह भैया.. छोड़ भी दीजिए.. अरे भाभी, आप भैया को कुछ कहिए ना.. !! ये क्या कर रहे हो भैया.. !! भाभी गुस्सा करेगी.. छोड़ दो मुझे.. आह्ह" शीला के सामने ही मदन की इन हरकतों से रूखी शर्म से लाल हो गई.. और मदन को अपने शरीर से दूर धकेलने की कोशिश करने लगी..

पर मदन इस मौके को छोड़ने वाला नहीं था.. वो जानता था की शीला चाहें जितना गुस्सा कर लें.. अभी ये सब देखकर उसकी चूत में चुनचुनी होना शुरू हो जाएगी.. और जैसे मैं रूखी के बबले देखकर तड़प रहा हूँ.. वैसे ही वो लंड लेने के लिए तड़पने लगेगी.. !! और हुआ भी वैसा ही.. शीला आगे बढ़ी और ऐसे खड़ी हो गई जिससे उसे सारा द्रश्य आराम से नजर आए.. तीरछी नज़रों से शीला की ओर देखकर रूखी मुस्करा रही थी और मदन दोनों हाथों से उसके स्तन को दबाकर दूध निकाल रहा था..

mt2

शीला बेडरूम से बाहर आई और तसल्ली कर ली की मुख्य दरवाजा ठीक से लॉक था.. और बेडरूम में चली आई.. फिर रूखी को आँख मारते हुए उसने विजयी मुद्रा में अंगूठा दिखाकर आगे बढ़ने की अनुमति दे दी.. और रूखी के सामने ही अपने घाघरे के ऊपर से भोसड़े को खुजाते हुए.. अपने ब्लाउस के तमाम हुक खोल दीये.. और उन दोनों के साथ शरीक हो गई..

मदन के पास शीला की तरफ देखने का भी समय नहीं था.. रूखी के स्तनों को पच-पच की आवाज के साथ चूस रहें मदन की पेंट से शीला ने उसका लंड बाहर निकाला और चूसने लगी.. उसके लंड के स्वाद से वो पिछले तीस साल से परिचित थी.. पर आज उसका स्वाद कुछ अलग ही था.. वो समझ गई की उसके लंड पर रूखी के मदमस्त भोसड़े का शहद लगा हुआ था.. इसलिए स्वाद अलग लग रहा था.. रूखी ने मदन के लंड की तरफ नजर भी नहीं डाली.. ये देखकर ही शीला समझ गई की उसके आने से पहले चुदाई का एक राउन्ड हो चुका था.. मदन की कामुकता को वो बखूबी जानती थी..

शीला को शामिल हुआ देख मदन जोश में आ गया.. और टेंशन-मुक्त होकर उसने रूखी के बदन को सहलाना शुरू कर दिया.. बिस्तर पर लेट चुकी रूखी की दोनों टांगें खोल दी शीला ने.. भरपूर झांटों के जंगल में छुपी हुई चूत खुल गई.. मदन इतना उत्तेजित था की उसे रूखी के अलावा और कुछ नजर ही नहीं आ रहा था.. उसके लंड की सख्ती देखकर ही पता चलता था की आज उसका सुरूर कुछ अलग ही था..

शीला ने मदन को खड़ा किया और रूखी की फैली हुई जांघों के बीच बिठा दिया.. और वो खुद रूखी के मुंह पर अपनी चूत लगाते हुए.. मदन के सामने मुंह रखकर बैठ गई.. मदन ने रूखी की दोनों जांघों को चौड़ा किया.. और एक ही धक्के में अपना पूरा लंड उसके गीले गुलिस्तान में डाल दिया..


fr pp

धक्के लगाते हुए वो शीला को चूम रहा था.. रूखी नीचे से गांड उछाल उछालकर चुदवा रही थी.. और शीला रूखी से अपनी चूत चटवा रही थी.. मदन के लंड ने रूखी को तृप्त करके ही दम लिया.. और संतोष के भाव रूखी के चेहरे पर छलक उठें.. शीला भी अपना भोसड़ा रगड़ते हुए झड़ गई.. और शीला रूखी के ऊपर से उतर गई..

रूखी अब धीरे से खड़ी हुई.. और कपड़े पहनने लगी.. तैयार होकर वो चुपचाप चली गई.. शीला या मदन से बिना कुछ बात किए.. मदन का लंड मुरझाने के बाद उसे खयाल आया की अब शीला का क्या करें?? आज से पहले दोनों के बीच ऐसी स्थिति नहीं आई थी.. उसे पता था की शीला उसकी कोई सफाई सुनने वाली नहीं थी.. दूध भरे बबलों के प्रति उसका जुनून शीला जानती थी.. पर अब शीला क्या कहेगी वो उसके इंतज़ार में था.. शीला भी मदन की ओर तीखी नज़रों से देख रही थी..

काफी देर तक शीला कुछ नहीं बोली.. फिर मदन की तरफ उसका पतलून फेंकते हुए कहा "ले मदन.. कम से कम पेंट तो पहन ले.. अभी कविता या अनुमौसी मे से कोई आ गया तो उनको देखकर ये तेरी लुल्ली फिर से खड़ी हो जाएगी.. और वो ये सोचेंगे की इसका ऐसा हाल मुझे चोदकर हुआ है.. मेरी चुदाई हुई भी है या नहीं वो उन्हें कहाँ पता चलेगा.. !!"

मदन ने चुपचाप पेंट पहन लिया और धीमे से बोला "सॉरी यार.. पर मुझे ये पता नहीं चला की गुस्सा होने के बावजूद तू हमारे साथ शामिल कैसे हो गई?"

शीला गुस्से से कांपते हुए बोली: "मेरी गांड मरवाने शामिल हुई मैं.. !!! साले चूतिये.. तू और रूखी मजे उड़ाओ.. तो मैं क्या क्या खड़े खड़े देखती रहती.. ?? गुस्सा तो ऐसा आ रहा था.. मन कर रहा था की रसिक को अभी के अभी यहाँ बुलाऊँ.. और तेरे सामने ही उससे मेरा भोसड़ा फड़वा लूँ.. पर हम दोनों की लड़ाई में.. ओह आई एम सॉरी..!! अब तो रूखी भी शामिल हो चुकी है.. हम तीनों की लड़ाई में.. बेकार में रसिक से क्यों चुदवाऊँ.. !! मुझे कोई अपनी मर्जी का मर्द मिलने दे.. फिर देखना.. तेरी आँखों के सामने अगर मैंने अपनी चूत न मरवाई.. तो मेरा नाम बदल देना.. !!"

मदन: "शीलु मेरी जान... यार मुझसे गलती हो गई.. अगर मेरा विश्वास करे तो एक बात कहूँ.. ?? उस रूखी ने आकर मेरे सामने ऐसे ऐसे नखरे कीये.. जैसे मेरा तपोभंग करने आई हो.. झुक झुककर अपने बबले दिखा रही थी.. मैं कितना कंट्रोल करता यार.. !!"

शीला: "तू वहाँ विदेश में जब अपनी मकान-मालकिन के बबले चूस रहा था तब यहाँ मुझे देखकर कितने मर्द अपने लंड खुजाते थे.. तो क्या मैं उन सब के सामने टांगें फैलाकर चुद जाती.. !! एक बार तो एक सांड हमारे घर के बाहर खड़ा था.. इतना बड़ा लंड था उसका.. तो क्या मैं उसके नीचे सो जाती??" शीला जब बोलने बैठती तब कोई उसका मुकाबला नहीं कर सकता था..

मदन: "अरे यार तुम औरत हो.. औरतों में तो कंट्रोल होता है.. मर्द ही कंट्रोल नहीं कर सकते"

शीला: "कुछ भी हो मदन.. पर तूने जो कुछ भी किया वो ठीक नहीं किया.. अभी के अभी मेरी चूत ठंडी करनी है मुझे.. बता कैसे करेगा?? तू तो पिचकारी मारकर शांत हो गया.. उस रूखी की चूत में.. अब मैं क्या करूँ??"

मदन: "आई एम सॉरी यार.. अब छोड़ ना.. वो है ही ऐसी की देखकर लंड तैयार हो गया मेरा.. ऊपर से उसके दूध भरे बबलों की लालच.. तुझे तो पता है मेरी कमजोरी.. "

शीला जानबूझकर गुस्सा कर रही थी और मदन के मजे ले रही थी.. उसी वक्त दस्तक देकर कविता ने घर में प्रवेश किया..

"कैसे हो मदन भैया?" कोयल सी मीठी आवाज में कविता ने कहा

"अरे कविता.. आजा अंदर.. ये देख तेरी भाभी कब से क्लास ले रही है मेरी.. " मदन ने कहा.. कविता के आने से उसने राहत की सांस ली

कविता: "क्या हो गया भाभी? क्यूँ डांट रही हो भैया को?"

शीला ने मुंह बिगाड़कर कहा "अपने भैया से ही पूछ...!!"

मदन: "अरे ऐसी कोई खास बात नहीं है.. बेकार में तू बात का बतंगड़ बना रही है"

कविता: "अरे पर कोई मुझे बताएगा की आखिर बात क्या है?"

शीला और मदन दोनों चुप हो गए.. क्या बताते?? की मदन रूखी के बबले चूसते हुए रंगेहाथों पकड़ा गया.. ??

शीला: "कुछ नहीं है कविता.. ये तो मियां-बीवी की रोज की नोंकझोंक है.. तू बता.. कैसे आना हुआ? कैसी चल रही ही मौसम की शादी की तैयारी?" बोलते बोलते शीला किचन में गई और कविता उसके पीछे पीछे

कविता: "बस चल रही है तैयारी.. मौसम की शादी के लिए पापा ने आपको और भैया को एक हफ्ते पहले से आने के लिए कहा है" फिर अचानक कविता ने कहा "एक मिनट भाभी... आज सुबह सुबह ही रोमांस का मुड़ बन गया था क्या?"

शीला: "क्यों?"

कविता धीरे से शीला के कान में कुछ फुसफुसाई

शीला: "नहीं रे नहीं.. ऐसा तो कुछ नहीं हुआ..पर क्यों पूछा??"

कविता: "आपके पेटीकोट के पीछे ये जो धब्बा है.. देखकर ही पता चलता है.. झूठ क्यों बोल रही हो भाभी.. आप के जितना अनुभव भले ही ना हो.. पर इतना तो मैं समझ ही सकती हूँ की ऐसे धब्बे कब बन जाते है कपड़ों पर"

चोंककर शीला ने अपने पीछे हाथ लगाकर देखा.. गिलेपन का एहसास होते ही वो शरमा गई.. रसिक के लोडे की दमदार पिचकारी से निकला वीर्य.. रह रहकर उसकी चूत से रिसकर पेटीकोट को गीला कर रहा था.. अच्छा हुआ जब वो मदन से झगड़ रही थी तब मदन का ध्यान नहीं गया..

शीला ने कविता को अपने करीब खींचा और उसके कान में कहा "ये धब्बा तुम्हारे भैया की वजह से नहीं बना है"

कविता चोंककर जोर से बोली "क्या??????" आँखें फटी की फटी रह गई उसकी.. और अपने चेहरे को शर्म के मारे हाथों से ढँकते हुए वो बोली "तो फिर किसका है?"

शीला: "वो मैं नहीं बता सकती.. टॉप सीक्रेट है.. जैसे तेरे और पिंटू का सीक्रेट है ना.. वैसा ही कुछ.. "

कविता: "अरे वाह भाभी.. आपने तो पहले कभी बताया ही नहीं.. बताइए ना.. कौन है वो?"

शीला: "अभी चुप मर.. फिर कभी बताऊँगी"

कविता ने शीला के पीछे जाकर फिर से वो धब्बा देखते हुए कहा "इतना बड़ा धब्बा?? मेरे कपड़ों पर तो बस छोटा सा दाग ही होता है.. आप तो जैसे पानी के पोखर में बैठकर आई हो इतना गीला हो गया है.. "

शीला ने कुहनी तक हाथ दिखाकर इशारा करते हुए कहा "इतना बड़ा है उसका.. देखा है कभी इतना बड़ा लंड??" फिर अपने दोनों हथेलियों को जोड़कर बोली "इतना सारा निकला था.. तभी तो बड़ा धब्बा बना हुआ है.. थोड़ी सी पिचकारी से कभी ऐसा धब्बा थोड़े ही बनता है"

"बाप रे भाभी.. क्या आप भी.. !!" "लंड" शब्द सुनकर कविता का गोरा मुखड़ा शर्म से लाल लाल हो गया.. इतना बड़ा लंड कैसे हो सकता है??

अचानक कविता के हावभाव बदल गए.. उसे वो मनहूस रात याद आ गई जब उसकी सास ने आइसक्रीम में दवाई मिलाकर उसे बेहोश करने की कोशिश की थी.. और रसिक के साथ उसके जिस्म का सौदा कर दिया था.. और रसिक ने उसकी चूचियाँ भी दबा दी थी.. आज तक पीयूष और पिंटू के अलावा किसी ने उसके नंगे जिस्म को हाथ नहीं लगाया था.. रसिक का लंड जब उसने देखा तब उसका दिल बैठ गया था.. कितना बड़ा था.. !!! बाप रे बाप.. !! वो शीला को कहना चाहती थी की.. हाँ.. उतना बड़ा लंड मैंने देखा है.. पर फिर आगे क्या बताती?

शीला: "क्या हुआ? चुप क्यों हो गई?? यही सोच रही है ना की इतना बड़ा लंड कैसे हो सकता है.. !! अरे भाई.. तुम आजकल की लड़कियों ने दुनिया देखी ही कहाँ है.. !! गाँव के देसी घी की ताकत का तुम्हें अंदाजा भी नहीं है"

कविता: "भाभी... !! आपने कितनों के देख रखे है??"

शीला: "चुप कर.. अब तू मेरी तहकीकात मत कर.. बात मेरी नहीं हो रही अभी.. बात बड़े लंड की हो रही है.. " मदन घर में मौजूद था इसलिए दोनों चुपके चुपके बात कर रही थी

शीला बड़े लंड का विवरण दे रही थी.. और कविता को शीला के प्रत्येक शब्द सुनकर रसिक का डरावना लंड याद आ रहा था.. देसी घी?? कविता सोच में पड़ गई.. उसकी सास भी रसिक के प्यार में पागल थी.. अब शीला भाभी भी वहीं भाषा में बात कर रही थी.. सासु माँ तो प्यार में ऐसी पागल हो गई थी की मेरे जिस्म का ही सौदा कर बैठी थी रसिक के साथ.. इस बुढ़ापे में इतनी नीच हरकत करने के लिए वो तैयार हो गई.. मतलब कुछ तो खास बात होगी उसमें..

शीला: "तेरे भैया जब बाहर जाए.. तब ये बात याद दिलाना मुझे.. अभी ज्यादा बात करना ठीक नहीं होगा.. !!"

कविता और शीला किचन में बातें कर रही थी उस वक्त.. मदन को राजेश का फोन आया.. बात करने के बाद.. फोन कट करने से पहले उसने राजेश से कहा "मैं शीला को पूछकर अभी दो मिनट में बताता हूँ"

मदन: "शीला, राजेश बिजनेस के काम से चार दिनों के लिए बेंगलोर जा रहा है.. अकेला ही है और मुझे साथ ले जाना चाहता है.. अगर तुझे प्रॉब्लेम न हो तो मैं चला जाऊँ उसके साथ?"

शीला: "कब जाना है?? तू यार एन मौके पर ऐसे प्रोग्राम बनाएगा तो कैसे चलेगा?? फिर मैं यहाँ चार दिन तक क्या करूँ?"

कविता खिलखिलाकर हंस पड़ी.. "चार दिन तक क्या करूँ" इस वाक्य का सही अर्थ वो समझ रही थी

मदन: "अरे यार.. तू गुस्सा मत कर.. मैं मना कर देता हूँ राजेश को.. " थोड़ी नाराजगी के साथ मदन ने कहा

कविता: "अरे भाभी.. प्लान बन रहा है तो जाने दो भैया को.. राजेश सर की कंपनी भी है.. क्या आप भी.. !!"

शीला: "अरे वाह.. बड़ी तरफदारी कर रही है अपने भैया की.." कविता का कान खींचते हुए शीला ने कहा

कविता: "वो इसलिए की अगर मदन भैया नहीं गए.. तो राजेश सर जरूर पीयूष को अपने साथ बेंगलोर ले जाएंगे.. फिर चार दिन तक मैं क्या करूँ??" हँसते हुए कविता ने कहा

शीला: "कमीनी.. एक नंबर की चैप्टर है तू.. ठीक है.. तू कह रही है इसलिए जाने देती हूँ.. वरना इन पतियों को ज्यादा छूट देनी नहीं चाहिए.. वरना साले हमारी आँखों के सामने ही इनकी रास-लीला शुरू हो जाएगी"

मदन ने तुरंत फॉन पर राजेश को बता दिया की वो साथ चलेगा.. राजेश ने मदन को चार बजे उसकी ऑफिस पर पहुँचने के लिए कहा

तुरंत ही मदन ने पेकिंग शुरू कर दी.. कुछ जरूरी सामान लेने वो बाहर गया

कृत्रिम क्रोध के साथ शीला ने कहा "कविता, अब तू मेरे साथ ही रहेगी.. तूने मुझे अकेला कर दिया.. अब मैं भी तुझे पीयूष के साथ नहीं रहने दूँगी.. मेरा उपवास होगा तो तुझे भी खाने नहीं दूँगी मैं.. !!"

कविता: "कोई बात नहीं भाभी.. मैं मम्मीजी को बताकर आती हूँ की आज आपके साथ ही खाना खाऊँगी.. मैं आई दो मिनट में"

कविता गई.. कमर तक लटक रही चोटी को हिलाते हुए.. अपनी पतली कमर मटकाते जा रही कविता को पीछे से देखती रही शीला.. और सोच रही थी.. हे भगवान.. इस पतली सी लड़की पर अगर रसिक चढ़ेगा तो इसका क्या हाल होगा?? कविता की चोटी जितनी लंबी है उतना ही लंबा लोडा है रसिक का..

कविता जल्दी जल्दी घर गई और तुरंत वापिस लौट आई.. दरवाजा अंदर से लॉक करके सोफ़े पर बैठ गई.. खाना तैयार था और दोनों मदन के आने का इंतज़ार करने लगे..

शीला: "दरवाजा क्यों बंद किया?? मदन अभी आता ही होगा? शेविंग क्रीम लेने ही तो गया है"

कविता: "हमारी बातें डिस्टर्ब न हो इसलिए मैंने दरवाजा बंद कर दिया है.. मदन भैया आएंगे तब खोल देंगे.. "

शीला वापिस बड़े लंड की बात शुरू करेगी इस इंतज़ार में कविता थोड़ी देर बैठी रही.. फिर बात की शुरुआत करने के लिए उसने कहा

कविता: "भाभी, मौसम की सगाई के दिन आप बहोत सुंदर लग रही थी"

शीला: "हाँ और तू भी बहोत प्यारी लग रही थी.. जब पिंटू के साथ खड़ी थी"

कविता: "क्या सच में?? हम दोनों की जोड़ी इतनी सुंदर लगती है भाभी?"

शीला: "हाँ बहोत ही अच्छी लग रही थी.. पीयूष से तलाक लेकर पिंटू से शादी कर ले"

कविता ने एक गहरी सांस छोड़ी.. और चुप हो गई

कविता: "रेणुका जी और राजेश सर की जोड़ी भी बहोत मस्त लग रही थी.. हैं ना भाभी?"

शीला: "अरे तेरी बात से मुझे याद आया.. राजेश बिजनेस टूर पर जा रहा है तो रेणुका भी घर पर अकेली होगी.. उसके घर ही चली जाती हूँ.. पर.. फिर वैशाली अकेली हो जाएगी.. रेणुका को ही यहाँ बुला लेती हूँ"

कविता बैठे बैठे टीवी देख रही थी तब शीला ने रेणुका के मोबाइल पर कॉल लगाया.. रेणुका ने तुरंत उठाया

रेणुका: "हाई शीला.. मैं तुझे ही याद कर रही थी.. कितने दिन हो गए हमें मिलें हुए.. तू तो मुझे भूल ही गई है"

शीला: "नहीं यार.. भूल गई होती तो फोन क्यों करती तुझे.. !! बोल क्या कर रही है? अकेली है?"

रेणुका: "दिन के समय तो मैं अकेली ही होती हूँ.. क्यों पूछा.. ?? कोई आया है क्या??" रेणुका का इशारा रसिक की तरफ था

शीला: "नहीं यार.. वैसे कल तेरा क्या प्रोग्राम है?"

रेणुका: "कुछ खास नहीं.. राजेश के साथ मूवी देखने जाने का प्लान है"

शीला: "क्यों?? राजेश बेंगलोर नहीं जाने वाला?? मदन को तो उसने कॉल किया था की वो चार दिनों के लिए जा रहा है और मदन भी उसके साथ जाने वाला है.. अभी खाना खाकर मदन निकलने ही वाला है"

तभी घर की डोरबेल बजी..

रेणुका से बातें करते हुए शीला ने दरवाजा खोला.. मदन के अंदर आते ही उसने दरवाजा बंद कर दिया.. बातें करते करते शीला ने खाना परोसा.. और फिर मदन ने खाना फटाफट खतम किया और अपना बेग लेकर तुरंत निकल गया

शीला: "मतलब तुझे पता ही नहीं है की राजेश बेंगलोर जाने वाला है??"

रेणुका: "वैसे तो मुझे बताकर जाता है.. पर हो सकता है की कोई अर्जेंट काम निकल आया हो" रेणुका काफी मुक्त विचारों वाली थी.. उसे राजेश पर पूरा भरोसा था..

दोनों की बातें चल रही थी तब रेणुका के बेडरूम में किसी ओर मोबाइल की रिंग सुनाई दी

रेणुका: "अरे, राजेश अपना दूसरा मोबाइल घर पर ही भूल गया है.. किसी का कॉल आ रहा है.. तू फोन चालू रख.. " रेणुका ने दूसरे फोन पर बात करते हुए कहा "ओके, थेंकस.. मैं उन्हें बता दूँगी" कहते हुए दूसरा फोन कट कर दिया

रेणुका: "शीला.. यार मुझे तो दाल में कुछ काला लग रहा है"

शीला: "क्यों?? क्या हुआ?"

रेणुका: "एक काम कर.. तू मेरे घर आजा.. फिर सब बताती हूँ"

शीला: "अरे यार.. मैं अभी कविता के साथ हूँ.. और शाम को वैशाली भी घर आ जाएगी.. मैं नहीं आ सकती"

रेणुका: "कविता शाम तक थोड़े ही तेरे साथ रहेगी.. !! वो तो पीयूष के आते ही घुस जाएगी उसकी बाहों में.. सर्दी कितनी है.. !! सब को अपना अपना हीटर याद आ जाता है रात को.. तू एक काम कर.. कविता को निपटाकर घर भेज दें.. और तू यहाँ चली आ.. मैं पिंटू को फोन करके बता देती हूँ को वो शाम को वैशाली को यहाँ छोड़ जाएँ.. तीनों साथ डिनर करेंगे.. !!"

शीला: "ठीक है.. मैं एक घंटे में फोन करती हूँ.. तब तक देख.. शायद राजेश तुझे फोन करें.. !!"

रेणुका: "ओके.. ठीक है.. बाय.. मैं इंतज़ार करूंगी तेरा.. !!"

रेणुका ने फोन रख दिया..

कविता और शीला ने एकाध घंटे तक काफी बातें की.. कविता के सवालों में.. देसी घी और बड़े लंड का बार बार जिक्र होता था.. उसकी तमाम बातें कामअग्नि को भड़काने वाली थी..पेट्रोल से आग बुझाने की कोशिश कर रही थी कविता... ऊपर से शीला की गरम बातें उसे और उत्तेजित कर रही थी.. कविता के चेहरे के खुमार को देखकर मन ही मन खुश हो रही थी शीला.. कविता के सवालों का जवाब देते देते शीला भी गरम हो गई थी..

कविता: "भाभी, अब तो मदन भैया भी चले गए.. मैं दरवाजा बंद कर देती हूँ.. अब सारी बातें विस्तार से बताइए मुझे.. मुझे सुनने में बहोत मज़ा आ रहा है"

शीला: "तू अभी नादान है कविता.. तेरी उम्र की थी तब मैं भी ऐसी ही थी.. मैंने खुद ही सेक्स के सारे पाठ पढ़ें.. और ऐसी माहिर हो गई की आज भी मदन को खुश रख पाती हूँ.. हम औरतें पति की खुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार होते है.. उनको पूरा संतोष मिलें.. उनका दिल ना दुखें.. इसका पूरा पूरा ध्यान रखते है.. पर क्या हम अपनी खुशी के लिए भी कभी जीते है क्या?? सब कुछ वहीं करते है जो पति को पसंद हो.. एक बात बता.. तू पीयूष का लंड चूसती है क्या??"

शीला के इस अचानक सवाल से कविता शर्म से पानी पानी हो गई

"हाँ भाभी.. " कविता ने सिर्फ इतना ही कहा

"कितनी देर तक?"

"थोड़ी देर के लिए ही भाभी"

शीला: "क्यों? ज्यादा देर तक क्यों नहीं चूसती?"

"अच्छा नहीं लगता भाभी.. मुंह दुखने लगता है"

शीला: "मैं तेरे भैया का लंड तब तक चूसती हूँ जब तक की वो हाथ जोड़कर बाहर निकालने के लिए विनती न करें.. ऐसी चुसाई करो तो पति खुश होगा ही होगा.. अरे खुश क्या होगा.. हमारा गुलाम बन कर रहेगा.. अगर ठीक से चूसना आता हो तो.. !! अच्छा.. ये बता.. तुझे अपनी चूत चटवाने में मज़ा आता है?"

कविता: "बहोत मज़ा आता है भाभी.. इतना मज़ा आता है की उसके अंदर डालने से पहले ही मैं झड़ जाती हूँ.. सिर्फ चटवाकर ही मैं पूरी संतुष्ट हो जाती हूँ"

शीला: "अच्छा.. मान ले अगर पीयूष को चाटना पसंद न हो.. तो??"

कविता: "पर उसे तो बहोत पसंद है भाभी.. मुझे इन सब चीजों के बारे में कहाँ पता ही था?? शादी करके आई तब मुझे सिर्फ किस और बूब्स दबाने के अलावा और कुछ पता नहीं था"

शीला: "झूठ मत बोल.. शादी के पहले पिंटू के साथ कुछ नहीं किया था क्या?? उसका देखा तो होगा ही तूने.. !!"

कविता: "देखने में और चूसने में फरक होता है ना भाभी.. !! मेरा पिंटू तो इतना अच्छा है की मेरी कितनी मिन्नतों बाद उसने मुझे अपना लंड दिखाया था.. मैं जबरदस्ती उसका हाथ अपने बूब्स पर रख दूँ तभी वो दबाता था"

शीला: "क्यों भला.. !! उसका खड़ा नहीं होता है क्या?? पिंटू को तुझे चोदने का मन नहीं करता था क्या? तेरे जैसी सुंदर लड़की अकेले में मिल जाएँ तो अच्छे अच्छों की नियत खराब हो जाएँ"

कविता: "खड़ा भी होता था.. और पत्थर जैसा सख्त भी हो जाता था.. कभी कभी मैं जिद करके पेंट के ऊपर से उसका पकड़ लेती थी तब पता चलता था की कितना टाइट हो जाता उसका लंड.. पर थोड़ी देर सहलाने के बाद वो मेरा हाथ हटा देता था"

शीला: "अजीब बात है.. !! मैंने आज तक ऐसा मर्द नहीं देखा.. जो इतने टाइट माल को चोदने से अपने आप को रोक सकें.. !!"

कविता: "मैं भी वहीं कहती थी उसे भाभी.. तो वो बोलता.. की मेरी शादी हो जाएँ उसके बाद हम सब कुछ करेंगे.. वो चाहता था की मुझे पहली बार मेरा पति ही चोदे.. मेरा बहोत मन था की मैं अपना सील पिंटू से तुड़वाऊँ.. पर वो माना ही नहीं.. !!"

शीला: "तूने पहली बार पिंटू का लंड देखा तब कैसा महसूस हुआ था? शादी के आखिरी हफ्ते तक उसने तुझे अपना लंड क्यों नहीं दिखाया?"

कविता: "वो तो दिखाना चाहता ही नहीं था.. पर हमारी किसी बात को लेकर शर्त लगी थी जो मैं जीत गई और बदले में मैंने उसे अपना लंड दिखाने के लिए कहा"

शीला: "पागल.. सिर्फ लंड देखने के लिए क्यों कहा? चुदवा ही लेती.. !!"

कविता: "तब मेरे दिमाग में नहीं आई ये बात.. वरना मज़ा आ जाता भाभी.. "

बात करते करते शीला खड़ी हुई और कविता के करीब आई.. कविता की छाती से उसका पल्लू हटा दिया.. ब्लाउस में कैद अमरूद जैसे उसके स्तनों को पकड़ते हुए.. झुककर उसने अत्यंत कामुकता से कविता के लाल होंठों को चूम लिया..

tt

शीला: "सिर्फ बातें करते करते हम कितनी गरम हो गई.. !! सच बता.. नीचे गीला हो रहा है या नहीं?"

कविता: "ओह भाभी.. जरा जोर से दबाइए ना.. हाँ.. नीचे गीली हो गई है मेरी.. और चूल भी मच रही है.. आपने चाटने की बात की और मेरी वो.. नीचे पानी छोड़ने लगी.. आह्ह.. अभी कोई आकर चाटने को तैयार हो तो मैं अभी अपनी टांगें फैलाकर लेट जाऊँ.."

शीला: "जैसा मन तुझे अभी कर रहा है.. पुरुषों को चौबीसों घंटे होता रहता है.. की काश कोई आकर उनका लंड चूसें.. इसलिए.. लंड चूसने के लिए कभी खुद का मूड नहीं देखना चाहिए.. बस सहूलियत देखनी चाहिए.. उनकी इच्छा तो हमेशा होगी.. और हमारा मूड कभी नहीं होगा.. समझी?? मरने की हालत में पड़े हुए मर्द का लंड अगर कोई चूस ले तो वो तब भी मना नहीं करेगा.. बल्कि बच जाएगा"

कविता ने शीला के खरबूजे जैसे स्तनों पर चेहरा रख दिया.. और उसकी गदराई कमर को दोनों हाथों से लपेट लिया.. शीला के विशाल स्तनों पर अपना गाल रगड़ने लगी कविता

शीला: "जब हमें पता है की हमारे पति को इससे खुशी मिलती है.. फिर उन्हें क्यों उस सुख से वंचित रखना.. !!"

कविता: "पता नहीं भाभी.. पर मुझे लंड चूसना ज्यादा पसंद नहीं है.. हाँ चूत चटवाना बहोत अच्छा लगता है"

शीला ने धीरे से अपने ब्लाउस के दो हुक खोलकर अपना एक स्तन बाहर निकाला.. और कविता के बालों में उँगलियाँ फेरते हुए कहा "ले कविता.. चूस ले इसे.. देख.. बातें करते हुए कितने सख्त हो गए है ये.. मैं जब भी गर्म हो जाती है तब ये सख्त पत्थर जैसे हो जाते है.. मदन होता तो दोनों हाथों से मसल मसलकर इन्हें ढीले कर देता.. आज यह जिम्मेदारी तेरी है.. चल अब तू मदन बन जा.. और इन्हें मसल दे.. फट रही है छातियाँ मेरी.. आह्ह.. जल्दी जल्दी कर यार.. !!"

कविता के मुंह में निप्पल देकर शीला ने बात आगे बढ़ाई..

sn2 sn3

शीला: "कविता, अभी तू नाजुक है.. तेरी चूत सिर्फ पीयूष का लंड अंदर ले सकें उतनी ही चौड़ी हुई होगी.. पर तुझे पता है.. सब लंड एक जैसे नहीं होते.. अलग अलग रंग.. अलग अलग साइज़.. अलग अलग मोटाई होती है सब की"

शीला की एक इंच लंबी निप्पल को मुंह से निकालकर कविता ने कहा "हाँ भाभी, पीयूष कभी कभी तीन तीन उँगलियाँ एक साथ डाल देता है..तब दर्द होता है.. मैं मुश्किल से दो उँगलियाँ ही अंदर ले पाती हूँ.. पिंटू और पीयूष के लंड की साइज़ एक सी है.. !!"

शीला: "मेरे छेद में तो मदन चार उँगलियाँ डाल दे तो भी कम पड़ जाती है मुझे.. आह्ह कविता.. मोटा तगड़ा लंड अंदर डलवाने में जो मज़ा आता है.. वो मैं बता नहीं सकती.. अंदर ऐसे घुसता है.. चूत की दीवारों से रगड़ खाता हुआ.. आह्ह.. दिल गार्डन गार्डन हो जाता है"

"दर्द नहीं होता आपको??" कविता ने फिर से निप्पल मुंह में लेकर चूसते हुए कहा

शीला ने कविता के सर को अपने स्तनों से दबाते हुए कहा "अरे मेरी जान.. उसी में तो असली मज़ा आता है.. उस दुख में जो सुख है वो ओर किसी में नहीं.. चल अब नीचे भी थोड़ा सा सहला दें.. " कविता का हाथ पकड़कर शीला ने अपने घाघरे के अंदर डालकर.. भोसड़े पर दबा दिया..

pfo

"ओह्ह भाभी.. कितनी गरम है आपकी तो.. !! बाप रे.. !!" शीला के भोसड़े के वर्टिकल होंठों पर लगे चिपचिपे प्रवाही को हथेली से पूरी भोस पर रगड़ते हुए कविता ने कहा

"बस बस.. ओर नहीं कविता.. फिर मेरा मन हो गया तो लंड कहाँ से लाएंगे?? प्लीज रहने दे.. !!" शीला ने सिसकते हुए कहा

कविता को बेहद उत्तेजित करने के बाद शीला ने कहा "कविता, अब मुझे रेणुका के घर जाना होगा.. तू अपने घर जा और मैं रेणुका के घर के लिए निकलती हूँ.. इस बारे में हम कभी विस्तार से बात करेंगे.. जब किसी दिन पीयूष और मदन दोनों न हों, तब तू रात को सोने आ जान.. सब समझूँगी.. ठीक है.. !!"

कविता को गर्म करके मजधार में छोड़ दिया शीला ने.. और मन ही मन खुश होते हुए वो कपड़े बदलने गई.. कविता के सामने ही वो कपड़े बदल रही थी.. जब शीला अपने सारे कपड़े उतारकर मादरजात नंगी हो गई तब उसे देखकर कविता का गला सूखने लगा.. बेड के कोने पर एक पैर टिकाकर शीला ने कविता की आँखों के सामने ही.. अपना भोसड़ा दबा दिया.. और तेजी से उंगलियों को अंदर बाहर करते हुए.. भोसड़े का सारा पानी अपनी हथेली में ले लिया..

wp2

और फिर कविता के पल्लू से उसे पोंछ दिया.. और कपड़े पहन लिए.. चूत की असन्तुष्ट भूख से परेशान होते हुए कविता अपने घर चली गई.. अच्छा तो शीला को भी नहीं लगा था.. कविता को यूं गर्म कर छोड़ देना.. पर अभी उसकी चूत को ठंडा करने का समय नहीं था.. फिलहाल रेणुका के घर जल्दी पहुंचना जरूरी था.. अगर जल्दी न होती तो वो कविता की चूत को ठंडा जरूर कर देती..

कविता के जाने के बाद, शीला ने वैशाली को फोन कर बता दिया की वो रेणुका के घर जा रही है और उसे भी शाम को ऑफिस से छूटकर वहीं पहुंचना है..


शीला तैयार होकर, अपना पर्स लेकर निकल पड़ी, रेणुका के घर जाने के लिए..
Awesome update and nice story
 

CHETANSONI

KING of milf😎
Prime
1,251
2,778
144
आखिरी बार सलाह देकर शीला खड़ी हो गई.. रसिक को एक किस करते हुए वो निकल गई.. घड़ी में देखा तो चालीस मिनट बीत चुके थे.. उतनी देर भी नहीं हुई थी.. वो तृप्त और खुश होते हुए घर पहुंची.. घर का दरवाजा बंद था.. और बाहर किसी की चप्पल पड़ी हुई थी.. शीला ने दरवाजा खटखटाया.. काफी देर के बाद मदन ने दरवाजा खोला.. मदन का हाल बेहाल था..

अस्त-व्यस्त बाल.. सिलवटों वाले कपड़े.. लाल चेहरा.. शीला बिना कुछ कहें घर के अंदर आ गई.. उसने अंदर जाकर बेडरूम में देखा तो बिस्तर पर रूखी बैठी हुई थी.. उसका रंग-रूप और हावभाव देखकर ये साफ प्रतीत हो रहा था की मदन के साथ गुलछर्रे उड़ा चुकी थी.. बिखरा हुआ बिस्तर इस बात की गँवाही दे रहा था..


"ये क्या है रूखी?" शीला ने गुस्सा करते हुए कहा

"कुछ नहीं भाभी.. मैं तो आप से मिलने आई थी.. पर आप बाहर गई हुई थी इसलिए भैया ने मुझे यहाँ बैठने को कहा.. मैं तो आपका इंतज़ार कर रही थी" रूखी ने जवाब दिया

"तो क्या ये तेरे भैया ने तुझे बिस्तर पर बैठने को कहा था?? और वो भी ब्लाउस के तीन हुक खोलकर??" शीला ने लाल आँख करते हुए मदन की तरफ देखा

वैसे ये शीला का ही प्रपंच था.. रूखी को उसने ही फोन कर यहाँ घर पर बुलाया था.. उसे पक्का यकीन था की रूखी को अकेले पाकर मदन अपने आप को रोक नहीं पाएगा.. और रूखी भी जनम जनम की भूखी थी.. वो जानबूझकर गुस्सा इसलिए जता रही थी ताकि मदन उसके नियंत्रण मे रहे.. दूसरा, जितनी देर तक मदन रूखी के साथ उलझा रहता, उतनी ही ज्यादा देर तक उसे रसिक के मजेदार लंड से चुदने का समय मिलता..

"अरे भाभी, मैं तो सोफ़े पर ही बैठी थी.. पर भैया ने मुझे अंदर बुला लिया.. मैंने सोचा उन्हें कुछ काम होगा.. मुझे कहाँ पता था की भैया मेरे साथ ऐसा कुछ करेंगे.. " रूखी ने ब्लाउस के बटन बंद करते हुए सफाई दी

शीला ने क्रोधित होकर मदन के सामने देखा.. मदन चुपचाप नजरें झुकाएं खड़ा था.. रूखी जल्दबाजी में ब्लाउस के बटन बंद करने गई.. पर बड़े बड़े.. दूध भरे स्तनों को ताकत से ब्लाउस में बंद करते हुए उसकी दोनों निप्पलों से दूध टपक पड़ा.. जिसे देखकर मदन के मुंह से सिसकी निकल गई.. आह्ह!!

शीला रूखी के मदमस्त स्तनों को देखती ही रही.. मदन भी स्तब्ध होकर देख रहा था.. पीले रंग के पतले ब्लाउस की कटोरियों का आगे का हिस्सा दूध निकलने के कारण गीला हो रखा था.. और ब्लाउस गीला होकर पारदर्शक हो गया था.. रूखी की निप्पल ब्लाउस में से भी साफ नजर आने लगी थी.. स्तन को नीचे से दबा रही रूखी.. ढंकने के चक्कर में और दूध बहा रही थी..

rk


"रहने दे रूखी.. अब क्यों छुपा रही है.. जो देखना था वो तो मदन ने सब कुछ देख ही लिया है.. और मैंने भी.. !! अब छुपाने का कोई मतलब नहीं है" शीला ने रूखी से कहा

यह सुनते ही रूखी ने अपने निरर्थक प्रयत्नों पर रोक लगा दी.. और ब्लाउस के हुक को छोड़ दिया.. उसी के साथ.. उसके दोनों स्तन लटक गए.. दो भव्य स्तनों और निप्पलों के ऊपर लगी दूध की बूंदों का सौन्दर्य देखकर जो होना था वहीं हुआ..

रुखी का ये रूप देखकर शीला भी अचंभित हो गई.. वो समझ गई की इसमें बेचारे मदन की कोई गलती नहीं थी.. यह सीन देखकर मिट्टी का पुतला भी उत्तेजित हो जाता.. !!

मदन से रहा नहीं गया.. और शीला की मौजूदगी में ही.. उसकी जरा भी परवाह कीये बगैर.. वो रूखी के करीब गया.. और उसकी एक निप्पल को मुंह में भरकर.. छोटे बच्चे की तरह दूध चूसने लगा..

bf

"ओह्ह भैया.. छोड़ भी दीजिए.. अरे भाभी, आप भैया को कुछ कहिए ना.. !! ये क्या कर रहे हो भैया.. !! भाभी गुस्सा करेगी.. छोड़ दो मुझे.. आह्ह" शीला के सामने ही मदन की इन हरकतों से रूखी शर्म से लाल हो गई.. और मदन को अपने शरीर से दूर धकेलने की कोशिश करने लगी..

पर मदन इस मौके को छोड़ने वाला नहीं था.. वो जानता था की शीला चाहें जितना गुस्सा कर लें.. अभी ये सब देखकर उसकी चूत में चुनचुनी होना शुरू हो जाएगी.. और जैसे मैं रूखी के बबले देखकर तड़प रहा हूँ.. वैसे ही वो लंड लेने के लिए तड़पने लगेगी.. !! और हुआ भी वैसा ही.. शीला आगे बढ़ी और ऐसे खड़ी हो गई जिससे उसे सारा द्रश्य आराम से नजर आए.. तीरछी नज़रों से शीला की ओर देखकर रूखी मुस्करा रही थी और मदन दोनों हाथों से उसके स्तन को दबाकर दूध निकाल रहा था..

mt2

शीला बेडरूम से बाहर आई और तसल्ली कर ली की मुख्य दरवाजा ठीक से लॉक था.. और बेडरूम में चली आई.. फिर रूखी को आँख मारते हुए उसने विजयी मुद्रा में अंगूठा दिखाकर आगे बढ़ने की अनुमति दे दी.. और रूखी के सामने ही अपने घाघरे के ऊपर से भोसड़े को खुजाते हुए.. अपने ब्लाउस के तमाम हुक खोल दीये.. और उन दोनों के साथ शरीक हो गई..

मदन के पास शीला की तरफ देखने का भी समय नहीं था.. रूखी के स्तनों को पच-पच की आवाज के साथ चूस रहें मदन की पेंट से शीला ने उसका लंड बाहर निकाला और चूसने लगी.. उसके लंड के स्वाद से वो पिछले तीस साल से परिचित थी.. पर आज उसका स्वाद कुछ अलग ही था.. वो समझ गई की उसके लंड पर रूखी के मदमस्त भोसड़े का शहद लगा हुआ था.. इसलिए स्वाद अलग लग रहा था.. रूखी ने मदन के लंड की तरफ नजर भी नहीं डाली.. ये देखकर ही शीला समझ गई की उसके आने से पहले चुदाई का एक राउन्ड हो चुका था.. मदन की कामुकता को वो बखूबी जानती थी..

शीला को शामिल हुआ देख मदन जोश में आ गया.. और टेंशन-मुक्त होकर उसने रूखी के बदन को सहलाना शुरू कर दिया.. बिस्तर पर लेट चुकी रूखी की दोनों टांगें खोल दी शीला ने.. भरपूर झांटों के जंगल में छुपी हुई चूत खुल गई.. मदन इतना उत्तेजित था की उसे रूखी के अलावा और कुछ नजर ही नहीं आ रहा था.. उसके लंड की सख्ती देखकर ही पता चलता था की आज उसका सुरूर कुछ अलग ही था..

शीला ने मदन को खड़ा किया और रूखी की फैली हुई जांघों के बीच बिठा दिया.. और वो खुद रूखी के मुंह पर अपनी चूत लगाते हुए.. मदन के सामने मुंह रखकर बैठ गई.. मदन ने रूखी की दोनों जांघों को चौड़ा किया.. और एक ही धक्के में अपना पूरा लंड उसके गीले गुलिस्तान में डाल दिया..


fr pp

धक्के लगाते हुए वो शीला को चूम रहा था.. रूखी नीचे से गांड उछाल उछालकर चुदवा रही थी.. और शीला रूखी से अपनी चूत चटवा रही थी.. मदन के लंड ने रूखी को तृप्त करके ही दम लिया.. और संतोष के भाव रूखी के चेहरे पर छलक उठें.. शीला भी अपना भोसड़ा रगड़ते हुए झड़ गई.. और शीला रूखी के ऊपर से उतर गई..

रूखी अब धीरे से खड़ी हुई.. और कपड़े पहनने लगी.. तैयार होकर वो चुपचाप चली गई.. शीला या मदन से बिना कुछ बात किए.. मदन का लंड मुरझाने के बाद उसे खयाल आया की अब शीला का क्या करें?? आज से पहले दोनों के बीच ऐसी स्थिति नहीं आई थी.. उसे पता था की शीला उसकी कोई सफाई सुनने वाली नहीं थी.. दूध भरे बबलों के प्रति उसका जुनून शीला जानती थी.. पर अब शीला क्या कहेगी वो उसके इंतज़ार में था.. शीला भी मदन की ओर तीखी नज़रों से देख रही थी..

काफी देर तक शीला कुछ नहीं बोली.. फिर मदन की तरफ उसका पतलून फेंकते हुए कहा "ले मदन.. कम से कम पेंट तो पहन ले.. अभी कविता या अनुमौसी मे से कोई आ गया तो उनको देखकर ये तेरी लुल्ली फिर से खड़ी हो जाएगी.. और वो ये सोचेंगे की इसका ऐसा हाल मुझे चोदकर हुआ है.. मेरी चुदाई हुई भी है या नहीं वो उन्हें कहाँ पता चलेगा.. !!"

मदन ने चुपचाप पेंट पहन लिया और धीमे से बोला "सॉरी यार.. पर मुझे ये पता नहीं चला की गुस्सा होने के बावजूद तू हमारे साथ शामिल कैसे हो गई?"

शीला गुस्से से कांपते हुए बोली: "मेरी गांड मरवाने शामिल हुई मैं.. !!! साले चूतिये.. तू और रूखी मजे उड़ाओ.. तो मैं क्या क्या खड़े खड़े देखती रहती.. ?? गुस्सा तो ऐसा आ रहा था.. मन कर रहा था की रसिक को अभी के अभी यहाँ बुलाऊँ.. और तेरे सामने ही उससे मेरा भोसड़ा फड़वा लूँ.. पर हम दोनों की लड़ाई में.. ओह आई एम सॉरी..!! अब तो रूखी भी शामिल हो चुकी है.. हम तीनों की लड़ाई में.. बेकार में रसिक से क्यों चुदवाऊँ.. !! मुझे कोई अपनी मर्जी का मर्द मिलने दे.. फिर देखना.. तेरी आँखों के सामने अगर मैंने अपनी चूत न मरवाई.. तो मेरा नाम बदल देना.. !!"

मदन: "शीलु मेरी जान... यार मुझसे गलती हो गई.. अगर मेरा विश्वास करे तो एक बात कहूँ.. ?? उस रूखी ने आकर मेरे सामने ऐसे ऐसे नखरे कीये.. जैसे मेरा तपोभंग करने आई हो.. झुक झुककर अपने बबले दिखा रही थी.. मैं कितना कंट्रोल करता यार.. !!"

शीला: "तू वहाँ विदेश में जब अपनी मकान-मालकिन के बबले चूस रहा था तब यहाँ मुझे देखकर कितने मर्द अपने लंड खुजाते थे.. तो क्या मैं उन सब के सामने टांगें फैलाकर चुद जाती.. !! एक बार तो एक सांड हमारे घर के बाहर खड़ा था.. इतना बड़ा लंड था उसका.. तो क्या मैं उसके नीचे सो जाती??" शीला जब बोलने बैठती तब कोई उसका मुकाबला नहीं कर सकता था..

मदन: "अरे यार तुम औरत हो.. औरतों में तो कंट्रोल होता है.. मर्द ही कंट्रोल नहीं कर सकते"

शीला: "कुछ भी हो मदन.. पर तूने जो कुछ भी किया वो ठीक नहीं किया.. अभी के अभी मेरी चूत ठंडी करनी है मुझे.. बता कैसे करेगा?? तू तो पिचकारी मारकर शांत हो गया.. उस रूखी की चूत में.. अब मैं क्या करूँ??"

मदन: "आई एम सॉरी यार.. अब छोड़ ना.. वो है ही ऐसी की देखकर लंड तैयार हो गया मेरा.. ऊपर से उसके दूध भरे बबलों की लालच.. तुझे तो पता है मेरी कमजोरी.. "

शीला जानबूझकर गुस्सा कर रही थी और मदन के मजे ले रही थी.. उसी वक्त दस्तक देकर कविता ने घर में प्रवेश किया..

"कैसे हो मदन भैया?" कोयल सी मीठी आवाज में कविता ने कहा

"अरे कविता.. आजा अंदर.. ये देख तेरी भाभी कब से क्लास ले रही है मेरी.. " मदन ने कहा.. कविता के आने से उसने राहत की सांस ली

कविता: "क्या हो गया भाभी? क्यूँ डांट रही हो भैया को?"

शीला ने मुंह बिगाड़कर कहा "अपने भैया से ही पूछ...!!"

मदन: "अरे ऐसी कोई खास बात नहीं है.. बेकार में तू बात का बतंगड़ बना रही है"

कविता: "अरे पर कोई मुझे बताएगा की आखिर बात क्या है?"

शीला और मदन दोनों चुप हो गए.. क्या बताते?? की मदन रूखी के बबले चूसते हुए रंगेहाथों पकड़ा गया.. ??

शीला: "कुछ नहीं है कविता.. ये तो मियां-बीवी की रोज की नोंकझोंक है.. तू बता.. कैसे आना हुआ? कैसी चल रही ही मौसम की शादी की तैयारी?" बोलते बोलते शीला किचन में गई और कविता उसके पीछे पीछे

कविता: "बस चल रही है तैयारी.. मौसम की शादी के लिए पापा ने आपको और भैया को एक हफ्ते पहले से आने के लिए कहा है" फिर अचानक कविता ने कहा "एक मिनट भाभी... आज सुबह सुबह ही रोमांस का मुड़ बन गया था क्या?"

शीला: "क्यों?"

कविता धीरे से शीला के कान में कुछ फुसफुसाई

शीला: "नहीं रे नहीं.. ऐसा तो कुछ नहीं हुआ..पर क्यों पूछा??"

कविता: "आपके पेटीकोट के पीछे ये जो धब्बा है.. देखकर ही पता चलता है.. झूठ क्यों बोल रही हो भाभी.. आप के जितना अनुभव भले ही ना हो.. पर इतना तो मैं समझ ही सकती हूँ की ऐसे धब्बे कब बन जाते है कपड़ों पर"

चोंककर शीला ने अपने पीछे हाथ लगाकर देखा.. गिलेपन का एहसास होते ही वो शरमा गई.. रसिक के लोडे की दमदार पिचकारी से निकला वीर्य.. रह रहकर उसकी चूत से रिसकर पेटीकोट को गीला कर रहा था.. अच्छा हुआ जब वो मदन से झगड़ रही थी तब मदन का ध्यान नहीं गया..

शीला ने कविता को अपने करीब खींचा और उसके कान में कहा "ये धब्बा तुम्हारे भैया की वजह से नहीं बना है"

कविता चोंककर जोर से बोली "क्या??????" आँखें फटी की फटी रह गई उसकी.. और अपने चेहरे को शर्म के मारे हाथों से ढँकते हुए वो बोली "तो फिर किसका है?"

शीला: "वो मैं नहीं बता सकती.. टॉप सीक्रेट है.. जैसे तेरे और पिंटू का सीक्रेट है ना.. वैसा ही कुछ.. "

कविता: "अरे वाह भाभी.. आपने तो पहले कभी बताया ही नहीं.. बताइए ना.. कौन है वो?"

शीला: "अभी चुप मर.. फिर कभी बताऊँगी"

कविता ने शीला के पीछे जाकर फिर से वो धब्बा देखते हुए कहा "इतना बड़ा धब्बा?? मेरे कपड़ों पर तो बस छोटा सा दाग ही होता है.. आप तो जैसे पानी के पोखर में बैठकर आई हो इतना गीला हो गया है.. "

शीला ने कुहनी तक हाथ दिखाकर इशारा करते हुए कहा "इतना बड़ा है उसका.. देखा है कभी इतना बड़ा लंड??" फिर अपने दोनों हथेलियों को जोड़कर बोली "इतना सारा निकला था.. तभी तो बड़ा धब्बा बना हुआ है.. थोड़ी सी पिचकारी से कभी ऐसा धब्बा थोड़े ही बनता है"

"बाप रे भाभी.. क्या आप भी.. !!" "लंड" शब्द सुनकर कविता का गोरा मुखड़ा शर्म से लाल लाल हो गया.. इतना बड़ा लंड कैसे हो सकता है??

अचानक कविता के हावभाव बदल गए.. उसे वो मनहूस रात याद आ गई जब उसकी सास ने आइसक्रीम में दवाई मिलाकर उसे बेहोश करने की कोशिश की थी.. और रसिक के साथ उसके जिस्म का सौदा कर दिया था.. और रसिक ने उसकी चूचियाँ भी दबा दी थी.. आज तक पीयूष और पिंटू के अलावा किसी ने उसके नंगे जिस्म को हाथ नहीं लगाया था.. रसिक का लंड जब उसने देखा तब उसका दिल बैठ गया था.. कितना बड़ा था.. !!! बाप रे बाप.. !! वो शीला को कहना चाहती थी की.. हाँ.. उतना बड़ा लंड मैंने देखा है.. पर फिर आगे क्या बताती?

शीला: "क्या हुआ? चुप क्यों हो गई?? यही सोच रही है ना की इतना बड़ा लंड कैसे हो सकता है.. !! अरे भाई.. तुम आजकल की लड़कियों ने दुनिया देखी ही कहाँ है.. !! गाँव के देसी घी की ताकत का तुम्हें अंदाजा भी नहीं है"

कविता: "भाभी... !! आपने कितनों के देख रखे है??"

शीला: "चुप कर.. अब तू मेरी तहकीकात मत कर.. बात मेरी नहीं हो रही अभी.. बात बड़े लंड की हो रही है.. " मदन घर में मौजूद था इसलिए दोनों चुपके चुपके बात कर रही थी

शीला बड़े लंड का विवरण दे रही थी.. और कविता को शीला के प्रत्येक शब्द सुनकर रसिक का डरावना लंड याद आ रहा था.. देसी घी?? कविता सोच में पड़ गई.. उसकी सास भी रसिक के प्यार में पागल थी.. अब शीला भाभी भी वहीं भाषा में बात कर रही थी.. सासु माँ तो प्यार में ऐसी पागल हो गई थी की मेरे जिस्म का ही सौदा कर बैठी थी रसिक के साथ.. इस बुढ़ापे में इतनी नीच हरकत करने के लिए वो तैयार हो गई.. मतलब कुछ तो खास बात होगी उसमें..

शीला: "तेरे भैया जब बाहर जाए.. तब ये बात याद दिलाना मुझे.. अभी ज्यादा बात करना ठीक नहीं होगा.. !!"

कविता और शीला किचन में बातें कर रही थी उस वक्त.. मदन को राजेश का फोन आया.. बात करने के बाद.. फोन कट करने से पहले उसने राजेश से कहा "मैं शीला को पूछकर अभी दो मिनट में बताता हूँ"

मदन: "शीला, राजेश बिजनेस के काम से चार दिनों के लिए बेंगलोर जा रहा है.. अकेला ही है और मुझे साथ ले जाना चाहता है.. अगर तुझे प्रॉब्लेम न हो तो मैं चला जाऊँ उसके साथ?"

शीला: "कब जाना है?? तू यार एन मौके पर ऐसे प्रोग्राम बनाएगा तो कैसे चलेगा?? फिर मैं यहाँ चार दिन तक क्या करूँ?"

कविता खिलखिलाकर हंस पड़ी.. "चार दिन तक क्या करूँ" इस वाक्य का सही अर्थ वो समझ रही थी

मदन: "अरे यार.. तू गुस्सा मत कर.. मैं मना कर देता हूँ राजेश को.. " थोड़ी नाराजगी के साथ मदन ने कहा

कविता: "अरे भाभी.. प्लान बन रहा है तो जाने दो भैया को.. राजेश सर की कंपनी भी है.. क्या आप भी.. !!"

शीला: "अरे वाह.. बड़ी तरफदारी कर रही है अपने भैया की.." कविता का कान खींचते हुए शीला ने कहा

कविता: "वो इसलिए की अगर मदन भैया नहीं गए.. तो राजेश सर जरूर पीयूष को अपने साथ बेंगलोर ले जाएंगे.. फिर चार दिन तक मैं क्या करूँ??" हँसते हुए कविता ने कहा

शीला: "कमीनी.. एक नंबर की चैप्टर है तू.. ठीक है.. तू कह रही है इसलिए जाने देती हूँ.. वरना इन पतियों को ज्यादा छूट देनी नहीं चाहिए.. वरना साले हमारी आँखों के सामने ही इनकी रास-लीला शुरू हो जाएगी"

मदन ने तुरंत फॉन पर राजेश को बता दिया की वो साथ चलेगा.. राजेश ने मदन को चार बजे उसकी ऑफिस पर पहुँचने के लिए कहा

तुरंत ही मदन ने पेकिंग शुरू कर दी.. कुछ जरूरी सामान लेने वो बाहर गया

कृत्रिम क्रोध के साथ शीला ने कहा "कविता, अब तू मेरे साथ ही रहेगी.. तूने मुझे अकेला कर दिया.. अब मैं भी तुझे पीयूष के साथ नहीं रहने दूँगी.. मेरा उपवास होगा तो तुझे भी खाने नहीं दूँगी मैं.. !!"

कविता: "कोई बात नहीं भाभी.. मैं मम्मीजी को बताकर आती हूँ की आज आपके साथ ही खाना खाऊँगी.. मैं आई दो मिनट में"

कविता गई.. कमर तक लटक रही चोटी को हिलाते हुए.. अपनी पतली कमर मटकाते जा रही कविता को पीछे से देखती रही शीला.. और सोच रही थी.. हे भगवान.. इस पतली सी लड़की पर अगर रसिक चढ़ेगा तो इसका क्या हाल होगा?? कविता की चोटी जितनी लंबी है उतना ही लंबा लोडा है रसिक का..

कविता जल्दी जल्दी घर गई और तुरंत वापिस लौट आई.. दरवाजा अंदर से लॉक करके सोफ़े पर बैठ गई.. खाना तैयार था और दोनों मदन के आने का इंतज़ार करने लगे..

शीला: "दरवाजा क्यों बंद किया?? मदन अभी आता ही होगा? शेविंग क्रीम लेने ही तो गया है"

कविता: "हमारी बातें डिस्टर्ब न हो इसलिए मैंने दरवाजा बंद कर दिया है.. मदन भैया आएंगे तब खोल देंगे.. "

शीला वापिस बड़े लंड की बात शुरू करेगी इस इंतज़ार में कविता थोड़ी देर बैठी रही.. फिर बात की शुरुआत करने के लिए उसने कहा

कविता: "भाभी, मौसम की सगाई के दिन आप बहोत सुंदर लग रही थी"

शीला: "हाँ और तू भी बहोत प्यारी लग रही थी.. जब पिंटू के साथ खड़ी थी"

कविता: "क्या सच में?? हम दोनों की जोड़ी इतनी सुंदर लगती है भाभी?"

शीला: "हाँ बहोत ही अच्छी लग रही थी.. पीयूष से तलाक लेकर पिंटू से शादी कर ले"

कविता ने एक गहरी सांस छोड़ी.. और चुप हो गई

कविता: "रेणुका जी और राजेश सर की जोड़ी भी बहोत मस्त लग रही थी.. हैं ना भाभी?"

शीला: "अरे तेरी बात से मुझे याद आया.. राजेश बिजनेस टूर पर जा रहा है तो रेणुका भी घर पर अकेली होगी.. उसके घर ही चली जाती हूँ.. पर.. फिर वैशाली अकेली हो जाएगी.. रेणुका को ही यहाँ बुला लेती हूँ"

कविता बैठे बैठे टीवी देख रही थी तब शीला ने रेणुका के मोबाइल पर कॉल लगाया.. रेणुका ने तुरंत उठाया

रेणुका: "हाई शीला.. मैं तुझे ही याद कर रही थी.. कितने दिन हो गए हमें मिलें हुए.. तू तो मुझे भूल ही गई है"

शीला: "नहीं यार.. भूल गई होती तो फोन क्यों करती तुझे.. !! बोल क्या कर रही है? अकेली है?"

रेणुका: "दिन के समय तो मैं अकेली ही होती हूँ.. क्यों पूछा.. ?? कोई आया है क्या??" रेणुका का इशारा रसिक की तरफ था

शीला: "नहीं यार.. वैसे कल तेरा क्या प्रोग्राम है?"

रेणुका: "कुछ खास नहीं.. राजेश के साथ मूवी देखने जाने का प्लान है"

शीला: "क्यों?? राजेश बेंगलोर नहीं जाने वाला?? मदन को तो उसने कॉल किया था की वो चार दिनों के लिए जा रहा है और मदन भी उसके साथ जाने वाला है.. अभी खाना खाकर मदन निकलने ही वाला है"

तभी घर की डोरबेल बजी..

रेणुका से बातें करते हुए शीला ने दरवाजा खोला.. मदन के अंदर आते ही उसने दरवाजा बंद कर दिया.. बातें करते करते शीला ने खाना परोसा.. और फिर मदन ने खाना फटाफट खतम किया और अपना बेग लेकर तुरंत निकल गया

शीला: "मतलब तुझे पता ही नहीं है की राजेश बेंगलोर जाने वाला है??"

रेणुका: "वैसे तो मुझे बताकर जाता है.. पर हो सकता है की कोई अर्जेंट काम निकल आया हो" रेणुका काफी मुक्त विचारों वाली थी.. उसे राजेश पर पूरा भरोसा था..

दोनों की बातें चल रही थी तब रेणुका के बेडरूम में किसी ओर मोबाइल की रिंग सुनाई दी

रेणुका: "अरे, राजेश अपना दूसरा मोबाइल घर पर ही भूल गया है.. किसी का कॉल आ रहा है.. तू फोन चालू रख.. " रेणुका ने दूसरे फोन पर बात करते हुए कहा "ओके, थेंकस.. मैं उन्हें बता दूँगी" कहते हुए दूसरा फोन कट कर दिया

रेणुका: "शीला.. यार मुझे तो दाल में कुछ काला लग रहा है"

शीला: "क्यों?? क्या हुआ?"

रेणुका: "एक काम कर.. तू मेरे घर आजा.. फिर सब बताती हूँ"

शीला: "अरे यार.. मैं अभी कविता के साथ हूँ.. और शाम को वैशाली भी घर आ जाएगी.. मैं नहीं आ सकती"

रेणुका: "कविता शाम तक थोड़े ही तेरे साथ रहेगी.. !! वो तो पीयूष के आते ही घुस जाएगी उसकी बाहों में.. सर्दी कितनी है.. !! सब को अपना अपना हीटर याद आ जाता है रात को.. तू एक काम कर.. कविता को निपटाकर घर भेज दें.. और तू यहाँ चली आ.. मैं पिंटू को फोन करके बता देती हूँ को वो शाम को वैशाली को यहाँ छोड़ जाएँ.. तीनों साथ डिनर करेंगे.. !!"

शीला: "ठीक है.. मैं एक घंटे में फोन करती हूँ.. तब तक देख.. शायद राजेश तुझे फोन करें.. !!"

रेणुका: "ओके.. ठीक है.. बाय.. मैं इंतज़ार करूंगी तेरा.. !!"

रेणुका ने फोन रख दिया..

कविता और शीला ने एकाध घंटे तक काफी बातें की.. कविता के सवालों में.. देसी घी और बड़े लंड का बार बार जिक्र होता था.. उसकी तमाम बातें कामअग्नि को भड़काने वाली थी..पेट्रोल से आग बुझाने की कोशिश कर रही थी कविता... ऊपर से शीला की गरम बातें उसे और उत्तेजित कर रही थी.. कविता के चेहरे के खुमार को देखकर मन ही मन खुश हो रही थी शीला.. कविता के सवालों का जवाब देते देते शीला भी गरम हो गई थी..

कविता: "भाभी, अब तो मदन भैया भी चले गए.. मैं दरवाजा बंद कर देती हूँ.. अब सारी बातें विस्तार से बताइए मुझे.. मुझे सुनने में बहोत मज़ा आ रहा है"

शीला: "तू अभी नादान है कविता.. तेरी उम्र की थी तब मैं भी ऐसी ही थी.. मैंने खुद ही सेक्स के सारे पाठ पढ़ें.. और ऐसी माहिर हो गई की आज भी मदन को खुश रख पाती हूँ.. हम औरतें पति की खुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार होते है.. उनको पूरा संतोष मिलें.. उनका दिल ना दुखें.. इसका पूरा पूरा ध्यान रखते है.. पर क्या हम अपनी खुशी के लिए भी कभी जीते है क्या?? सब कुछ वहीं करते है जो पति को पसंद हो.. एक बात बता.. तू पीयूष का लंड चूसती है क्या??"

शीला के इस अचानक सवाल से कविता शर्म से पानी पानी हो गई

"हाँ भाभी.. " कविता ने सिर्फ इतना ही कहा

"कितनी देर तक?"

"थोड़ी देर के लिए ही भाभी"

शीला: "क्यों? ज्यादा देर तक क्यों नहीं चूसती?"

"अच्छा नहीं लगता भाभी.. मुंह दुखने लगता है"

शीला: "मैं तेरे भैया का लंड तब तक चूसती हूँ जब तक की वो हाथ जोड़कर बाहर निकालने के लिए विनती न करें.. ऐसी चुसाई करो तो पति खुश होगा ही होगा.. अरे खुश क्या होगा.. हमारा गुलाम बन कर रहेगा.. अगर ठीक से चूसना आता हो तो.. !! अच्छा.. ये बता.. तुझे अपनी चूत चटवाने में मज़ा आता है?"

कविता: "बहोत मज़ा आता है भाभी.. इतना मज़ा आता है की उसके अंदर डालने से पहले ही मैं झड़ जाती हूँ.. सिर्फ चटवाकर ही मैं पूरी संतुष्ट हो जाती हूँ"

शीला: "अच्छा.. मान ले अगर पीयूष को चाटना पसंद न हो.. तो??"

कविता: "पर उसे तो बहोत पसंद है भाभी.. मुझे इन सब चीजों के बारे में कहाँ पता ही था?? शादी करके आई तब मुझे सिर्फ किस और बूब्स दबाने के अलावा और कुछ पता नहीं था"

शीला: "झूठ मत बोल.. शादी के पहले पिंटू के साथ कुछ नहीं किया था क्या?? उसका देखा तो होगा ही तूने.. !!"

कविता: "देखने में और चूसने में फरक होता है ना भाभी.. !! मेरा पिंटू तो इतना अच्छा है की मेरी कितनी मिन्नतों बाद उसने मुझे अपना लंड दिखाया था.. मैं जबरदस्ती उसका हाथ अपने बूब्स पर रख दूँ तभी वो दबाता था"

शीला: "क्यों भला.. !! उसका खड़ा नहीं होता है क्या?? पिंटू को तुझे चोदने का मन नहीं करता था क्या? तेरे जैसी सुंदर लड़की अकेले में मिल जाएँ तो अच्छे अच्छों की नियत खराब हो जाएँ"

कविता: "खड़ा भी होता था.. और पत्थर जैसा सख्त भी हो जाता था.. कभी कभी मैं जिद करके पेंट के ऊपर से उसका पकड़ लेती थी तब पता चलता था की कितना टाइट हो जाता उसका लंड.. पर थोड़ी देर सहलाने के बाद वो मेरा हाथ हटा देता था"

शीला: "अजीब बात है.. !! मैंने आज तक ऐसा मर्द नहीं देखा.. जो इतने टाइट माल को चोदने से अपने आप को रोक सकें.. !!"

कविता: "मैं भी वहीं कहती थी उसे भाभी.. तो वो बोलता.. की मेरी शादी हो जाएँ उसके बाद हम सब कुछ करेंगे.. वो चाहता था की मुझे पहली बार मेरा पति ही चोदे.. मेरा बहोत मन था की मैं अपना सील पिंटू से तुड़वाऊँ.. पर वो माना ही नहीं.. !!"

शीला: "तूने पहली बार पिंटू का लंड देखा तब कैसा महसूस हुआ था? शादी के आखिरी हफ्ते तक उसने तुझे अपना लंड क्यों नहीं दिखाया?"

कविता: "वो तो दिखाना चाहता ही नहीं था.. पर हमारी किसी बात को लेकर शर्त लगी थी जो मैं जीत गई और बदले में मैंने उसे अपना लंड दिखाने के लिए कहा"

शीला: "पागल.. सिर्फ लंड देखने के लिए क्यों कहा? चुदवा ही लेती.. !!"

कविता: "तब मेरे दिमाग में नहीं आई ये बात.. वरना मज़ा आ जाता भाभी.. "

बात करते करते शीला खड़ी हुई और कविता के करीब आई.. कविता की छाती से उसका पल्लू हटा दिया.. ब्लाउस में कैद अमरूद जैसे उसके स्तनों को पकड़ते हुए.. झुककर उसने अत्यंत कामुकता से कविता के लाल होंठों को चूम लिया..

tt

शीला: "सिर्फ बातें करते करते हम कितनी गरम हो गई.. !! सच बता.. नीचे गीला हो रहा है या नहीं?"

कविता: "ओह भाभी.. जरा जोर से दबाइए ना.. हाँ.. नीचे गीली हो गई है मेरी.. और चूल भी मच रही है.. आपने चाटने की बात की और मेरी वो.. नीचे पानी छोड़ने लगी.. आह्ह.. अभी कोई आकर चाटने को तैयार हो तो मैं अभी अपनी टांगें फैलाकर लेट जाऊँ.."

शीला: "जैसा मन तुझे अभी कर रहा है.. पुरुषों को चौबीसों घंटे होता रहता है.. की काश कोई आकर उनका लंड चूसें.. इसलिए.. लंड चूसने के लिए कभी खुद का मूड नहीं देखना चाहिए.. बस सहूलियत देखनी चाहिए.. उनकी इच्छा तो हमेशा होगी.. और हमारा मूड कभी नहीं होगा.. समझी?? मरने की हालत में पड़े हुए मर्द का लंड अगर कोई चूस ले तो वो तब भी मना नहीं करेगा.. बल्कि बच जाएगा"

कविता ने शीला के खरबूजे जैसे स्तनों पर चेहरा रख दिया.. और उसकी गदराई कमर को दोनों हाथों से लपेट लिया.. शीला के विशाल स्तनों पर अपना गाल रगड़ने लगी कविता

शीला: "जब हमें पता है की हमारे पति को इससे खुशी मिलती है.. फिर उन्हें क्यों उस सुख से वंचित रखना.. !!"

कविता: "पता नहीं भाभी.. पर मुझे लंड चूसना ज्यादा पसंद नहीं है.. हाँ चूत चटवाना बहोत अच्छा लगता है"

शीला ने धीरे से अपने ब्लाउस के दो हुक खोलकर अपना एक स्तन बाहर निकाला.. और कविता के बालों में उँगलियाँ फेरते हुए कहा "ले कविता.. चूस ले इसे.. देख.. बातें करते हुए कितने सख्त हो गए है ये.. मैं जब भी गर्म हो जाती है तब ये सख्त पत्थर जैसे हो जाते है.. मदन होता तो दोनों हाथों से मसल मसलकर इन्हें ढीले कर देता.. आज यह जिम्मेदारी तेरी है.. चल अब तू मदन बन जा.. और इन्हें मसल दे.. फट रही है छातियाँ मेरी.. आह्ह.. जल्दी जल्दी कर यार.. !!"

कविता के मुंह में निप्पल देकर शीला ने बात आगे बढ़ाई..

sn2 sn3

शीला: "कविता, अभी तू नाजुक है.. तेरी चूत सिर्फ पीयूष का लंड अंदर ले सकें उतनी ही चौड़ी हुई होगी.. पर तुझे पता है.. सब लंड एक जैसे नहीं होते.. अलग अलग रंग.. अलग अलग साइज़.. अलग अलग मोटाई होती है सब की"

शीला की एक इंच लंबी निप्पल को मुंह से निकालकर कविता ने कहा "हाँ भाभी, पीयूष कभी कभी तीन तीन उँगलियाँ एक साथ डाल देता है..तब दर्द होता है.. मैं मुश्किल से दो उँगलियाँ ही अंदर ले पाती हूँ.. पिंटू और पीयूष के लंड की साइज़ एक सी है.. !!"

शीला: "मेरे छेद में तो मदन चार उँगलियाँ डाल दे तो भी कम पड़ जाती है मुझे.. आह्ह कविता.. मोटा तगड़ा लंड अंदर डलवाने में जो मज़ा आता है.. वो मैं बता नहीं सकती.. अंदर ऐसे घुसता है.. चूत की दीवारों से रगड़ खाता हुआ.. आह्ह.. दिल गार्डन गार्डन हो जाता है"

"दर्द नहीं होता आपको??" कविता ने फिर से निप्पल मुंह में लेकर चूसते हुए कहा

शीला ने कविता के सर को अपने स्तनों से दबाते हुए कहा "अरे मेरी जान.. उसी में तो असली मज़ा आता है.. उस दुख में जो सुख है वो ओर किसी में नहीं.. चल अब नीचे भी थोड़ा सा सहला दें.. " कविता का हाथ पकड़कर शीला ने अपने घाघरे के अंदर डालकर.. भोसड़े पर दबा दिया..

pfo

"ओह्ह भाभी.. कितनी गरम है आपकी तो.. !! बाप रे.. !!" शीला के भोसड़े के वर्टिकल होंठों पर लगे चिपचिपे प्रवाही को हथेली से पूरी भोस पर रगड़ते हुए कविता ने कहा

"बस बस.. ओर नहीं कविता.. फिर मेरा मन हो गया तो लंड कहाँ से लाएंगे?? प्लीज रहने दे.. !!" शीला ने सिसकते हुए कहा

कविता को बेहद उत्तेजित करने के बाद शीला ने कहा "कविता, अब मुझे रेणुका के घर जाना होगा.. तू अपने घर जा और मैं रेणुका के घर के लिए निकलती हूँ.. इस बारे में हम कभी विस्तार से बात करेंगे.. जब किसी दिन पीयूष और मदन दोनों न हों, तब तू रात को सोने आ जान.. सब समझूँगी.. ठीक है.. !!"

कविता को गर्म करके मजधार में छोड़ दिया शीला ने.. और मन ही मन खुश होते हुए वो कपड़े बदलने गई.. कविता के सामने ही वो कपड़े बदल रही थी.. जब शीला अपने सारे कपड़े उतारकर मादरजात नंगी हो गई तब उसे देखकर कविता का गला सूखने लगा.. बेड के कोने पर एक पैर टिकाकर शीला ने कविता की आँखों के सामने ही.. अपना भोसड़ा दबा दिया.. और तेजी से उंगलियों को अंदर बाहर करते हुए.. भोसड़े का सारा पानी अपनी हथेली में ले लिया..

wp2

और फिर कविता के पल्लू से उसे पोंछ दिया.. और कपड़े पहन लिए.. चूत की असन्तुष्ट भूख से परेशान होते हुए कविता अपने घर चली गई.. अच्छा तो शीला को भी नहीं लगा था.. कविता को यूं गर्म कर छोड़ देना.. पर अभी उसकी चूत को ठंडा करने का समय नहीं था.. फिलहाल रेणुका के घर जल्दी पहुंचना जरूरी था.. अगर जल्दी न होती तो वो कविता की चूत को ठंडा जरूर कर देती..

कविता के जाने के बाद, शीला ने वैशाली को फोन कर बता दिया की वो रेणुका के घर जा रही है और उसे भी शाम को ऑफिस से छूटकर वहीं पहुंचना है..


शीला तैयार होकर, अपना पर्स लेकर निकल पड़ी, रेणुका के घर जाने के लिए..
Wow wonderful update wow 🔥
 

Ek number

Well-Known Member
8,383
17,996
173
आखिरी बार सलाह देकर शीला खड़ी हो गई.. रसिक को एक किस करते हुए वो निकल गई.. घड़ी में देखा तो चालीस मिनट बीत चुके थे.. उतनी देर भी नहीं हुई थी.. वो तृप्त और खुश होते हुए घर पहुंची.. घर का दरवाजा बंद था.. और बाहर किसी की चप्पल पड़ी हुई थी.. शीला ने दरवाजा खटखटाया.. काफी देर के बाद मदन ने दरवाजा खोला.. मदन का हाल बेहाल था..

अस्त-व्यस्त बाल.. सिलवटों वाले कपड़े.. लाल चेहरा.. शीला बिना कुछ कहें घर के अंदर आ गई.. उसने अंदर जाकर बेडरूम में देखा तो बिस्तर पर रूखी बैठी हुई थी.. उसका रंग-रूप और हावभाव देखकर ये साफ प्रतीत हो रहा था की मदन के साथ गुलछर्रे उड़ा चुकी थी.. बिखरा हुआ बिस्तर इस बात की गँवाही दे रहा था..


"ये क्या है रूखी?" शीला ने गुस्सा करते हुए कहा

"कुछ नहीं भाभी.. मैं तो आप से मिलने आई थी.. पर आप बाहर गई हुई थी इसलिए भैया ने मुझे यहाँ बैठने को कहा.. मैं तो आपका इंतज़ार कर रही थी" रूखी ने जवाब दिया

"तो क्या ये तेरे भैया ने तुझे बिस्तर पर बैठने को कहा था?? और वो भी ब्लाउस के तीन हुक खोलकर??" शीला ने लाल आँख करते हुए मदन की तरफ देखा

वैसे ये शीला का ही प्रपंच था.. रूखी को उसने ही फोन कर यहाँ घर पर बुलाया था.. उसे पक्का यकीन था की रूखी को अकेले पाकर मदन अपने आप को रोक नहीं पाएगा.. और रूखी भी जनम जनम की भूखी थी.. वो जानबूझकर गुस्सा इसलिए जता रही थी ताकि मदन उसके नियंत्रण मे रहे.. दूसरा, जितनी देर तक मदन रूखी के साथ उलझा रहता, उतनी ही ज्यादा देर तक उसे रसिक के मजेदार लंड से चुदने का समय मिलता..

"अरे भाभी, मैं तो सोफ़े पर ही बैठी थी.. पर भैया ने मुझे अंदर बुला लिया.. मैंने सोचा उन्हें कुछ काम होगा.. मुझे कहाँ पता था की भैया मेरे साथ ऐसा कुछ करेंगे.. " रूखी ने ब्लाउस के बटन बंद करते हुए सफाई दी

शीला ने क्रोधित होकर मदन के सामने देखा.. मदन चुपचाप नजरें झुकाएं खड़ा था.. रूखी जल्दबाजी में ब्लाउस के बटन बंद करने गई.. पर बड़े बड़े.. दूध भरे स्तनों को ताकत से ब्लाउस में बंद करते हुए उसकी दोनों निप्पलों से दूध टपक पड़ा.. जिसे देखकर मदन के मुंह से सिसकी निकल गई.. आह्ह!!

शीला रूखी के मदमस्त स्तनों को देखती ही रही.. मदन भी स्तब्ध होकर देख रहा था.. पीले रंग के पतले ब्लाउस की कटोरियों का आगे का हिस्सा दूध निकलने के कारण गीला हो रखा था.. और ब्लाउस गीला होकर पारदर्शक हो गया था.. रूखी की निप्पल ब्लाउस में से भी साफ नजर आने लगी थी.. स्तन को नीचे से दबा रही रूखी.. ढंकने के चक्कर में और दूध बहा रही थी..

rk


"रहने दे रूखी.. अब क्यों छुपा रही है.. जो देखना था वो तो मदन ने सब कुछ देख ही लिया है.. और मैंने भी.. !! अब छुपाने का कोई मतलब नहीं है" शीला ने रूखी से कहा

यह सुनते ही रूखी ने अपने निरर्थक प्रयत्नों पर रोक लगा दी.. और ब्लाउस के हुक को छोड़ दिया.. उसी के साथ.. उसके दोनों स्तन लटक गए.. दो भव्य स्तनों और निप्पलों के ऊपर लगी दूध की बूंदों का सौन्दर्य देखकर जो होना था वहीं हुआ..

रुखी का ये रूप देखकर शीला भी अचंभित हो गई.. वो समझ गई की इसमें बेचारे मदन की कोई गलती नहीं थी.. यह सीन देखकर मिट्टी का पुतला भी उत्तेजित हो जाता.. !!

मदन से रहा नहीं गया.. और शीला की मौजूदगी में ही.. उसकी जरा भी परवाह कीये बगैर.. वो रूखी के करीब गया.. और उसकी एक निप्पल को मुंह में भरकर.. छोटे बच्चे की तरह दूध चूसने लगा..

bf

"ओह्ह भैया.. छोड़ भी दीजिए.. अरे भाभी, आप भैया को कुछ कहिए ना.. !! ये क्या कर रहे हो भैया.. !! भाभी गुस्सा करेगी.. छोड़ दो मुझे.. आह्ह" शीला के सामने ही मदन की इन हरकतों से रूखी शर्म से लाल हो गई.. और मदन को अपने शरीर से दूर धकेलने की कोशिश करने लगी..

पर मदन इस मौके को छोड़ने वाला नहीं था.. वो जानता था की शीला चाहें जितना गुस्सा कर लें.. अभी ये सब देखकर उसकी चूत में चुनचुनी होना शुरू हो जाएगी.. और जैसे मैं रूखी के बबले देखकर तड़प रहा हूँ.. वैसे ही वो लंड लेने के लिए तड़पने लगेगी.. !! और हुआ भी वैसा ही.. शीला आगे बढ़ी और ऐसे खड़ी हो गई जिससे उसे सारा द्रश्य आराम से नजर आए.. तीरछी नज़रों से शीला की ओर देखकर रूखी मुस्करा रही थी और मदन दोनों हाथों से उसके स्तन को दबाकर दूध निकाल रहा था..

mt2

शीला बेडरूम से बाहर आई और तसल्ली कर ली की मुख्य दरवाजा ठीक से लॉक था.. और बेडरूम में चली आई.. फिर रूखी को आँख मारते हुए उसने विजयी मुद्रा में अंगूठा दिखाकर आगे बढ़ने की अनुमति दे दी.. और रूखी के सामने ही अपने घाघरे के ऊपर से भोसड़े को खुजाते हुए.. अपने ब्लाउस के तमाम हुक खोल दीये.. और उन दोनों के साथ शरीक हो गई..

मदन के पास शीला की तरफ देखने का भी समय नहीं था.. रूखी के स्तनों को पच-पच की आवाज के साथ चूस रहें मदन की पेंट से शीला ने उसका लंड बाहर निकाला और चूसने लगी.. उसके लंड के स्वाद से वो पिछले तीस साल से परिचित थी.. पर आज उसका स्वाद कुछ अलग ही था.. वो समझ गई की उसके लंड पर रूखी के मदमस्त भोसड़े का शहद लगा हुआ था.. इसलिए स्वाद अलग लग रहा था.. रूखी ने मदन के लंड की तरफ नजर भी नहीं डाली.. ये देखकर ही शीला समझ गई की उसके आने से पहले चुदाई का एक राउन्ड हो चुका था.. मदन की कामुकता को वो बखूबी जानती थी..

शीला को शामिल हुआ देख मदन जोश में आ गया.. और टेंशन-मुक्त होकर उसने रूखी के बदन को सहलाना शुरू कर दिया.. बिस्तर पर लेट चुकी रूखी की दोनों टांगें खोल दी शीला ने.. भरपूर झांटों के जंगल में छुपी हुई चूत खुल गई.. मदन इतना उत्तेजित था की उसे रूखी के अलावा और कुछ नजर ही नहीं आ रहा था.. उसके लंड की सख्ती देखकर ही पता चलता था की आज उसका सुरूर कुछ अलग ही था..

शीला ने मदन को खड़ा किया और रूखी की फैली हुई जांघों के बीच बिठा दिया.. और वो खुद रूखी के मुंह पर अपनी चूत लगाते हुए.. मदन के सामने मुंह रखकर बैठ गई.. मदन ने रूखी की दोनों जांघों को चौड़ा किया.. और एक ही धक्के में अपना पूरा लंड उसके गीले गुलिस्तान में डाल दिया..


fr pp

धक्के लगाते हुए वो शीला को चूम रहा था.. रूखी नीचे से गांड उछाल उछालकर चुदवा रही थी.. और शीला रूखी से अपनी चूत चटवा रही थी.. मदन के लंड ने रूखी को तृप्त करके ही दम लिया.. और संतोष के भाव रूखी के चेहरे पर छलक उठें.. शीला भी अपना भोसड़ा रगड़ते हुए झड़ गई.. और शीला रूखी के ऊपर से उतर गई..

रूखी अब धीरे से खड़ी हुई.. और कपड़े पहनने लगी.. तैयार होकर वो चुपचाप चली गई.. शीला या मदन से बिना कुछ बात किए.. मदन का लंड मुरझाने के बाद उसे खयाल आया की अब शीला का क्या करें?? आज से पहले दोनों के बीच ऐसी स्थिति नहीं आई थी.. उसे पता था की शीला उसकी कोई सफाई सुनने वाली नहीं थी.. दूध भरे बबलों के प्रति उसका जुनून शीला जानती थी.. पर अब शीला क्या कहेगी वो उसके इंतज़ार में था.. शीला भी मदन की ओर तीखी नज़रों से देख रही थी..

काफी देर तक शीला कुछ नहीं बोली.. फिर मदन की तरफ उसका पतलून फेंकते हुए कहा "ले मदन.. कम से कम पेंट तो पहन ले.. अभी कविता या अनुमौसी मे से कोई आ गया तो उनको देखकर ये तेरी लुल्ली फिर से खड़ी हो जाएगी.. और वो ये सोचेंगे की इसका ऐसा हाल मुझे चोदकर हुआ है.. मेरी चुदाई हुई भी है या नहीं वो उन्हें कहाँ पता चलेगा.. !!"

मदन ने चुपचाप पेंट पहन लिया और धीमे से बोला "सॉरी यार.. पर मुझे ये पता नहीं चला की गुस्सा होने के बावजूद तू हमारे साथ शामिल कैसे हो गई?"

शीला गुस्से से कांपते हुए बोली: "मेरी गांड मरवाने शामिल हुई मैं.. !!! साले चूतिये.. तू और रूखी मजे उड़ाओ.. तो मैं क्या क्या खड़े खड़े देखती रहती.. ?? गुस्सा तो ऐसा आ रहा था.. मन कर रहा था की रसिक को अभी के अभी यहाँ बुलाऊँ.. और तेरे सामने ही उससे मेरा भोसड़ा फड़वा लूँ.. पर हम दोनों की लड़ाई में.. ओह आई एम सॉरी..!! अब तो रूखी भी शामिल हो चुकी है.. हम तीनों की लड़ाई में.. बेकार में रसिक से क्यों चुदवाऊँ.. !! मुझे कोई अपनी मर्जी का मर्द मिलने दे.. फिर देखना.. तेरी आँखों के सामने अगर मैंने अपनी चूत न मरवाई.. तो मेरा नाम बदल देना.. !!"

मदन: "शीलु मेरी जान... यार मुझसे गलती हो गई.. अगर मेरा विश्वास करे तो एक बात कहूँ.. ?? उस रूखी ने आकर मेरे सामने ऐसे ऐसे नखरे कीये.. जैसे मेरा तपोभंग करने आई हो.. झुक झुककर अपने बबले दिखा रही थी.. मैं कितना कंट्रोल करता यार.. !!"

शीला: "तू वहाँ विदेश में जब अपनी मकान-मालकिन के बबले चूस रहा था तब यहाँ मुझे देखकर कितने मर्द अपने लंड खुजाते थे.. तो क्या मैं उन सब के सामने टांगें फैलाकर चुद जाती.. !! एक बार तो एक सांड हमारे घर के बाहर खड़ा था.. इतना बड़ा लंड था उसका.. तो क्या मैं उसके नीचे सो जाती??" शीला जब बोलने बैठती तब कोई उसका मुकाबला नहीं कर सकता था..

मदन: "अरे यार तुम औरत हो.. औरतों में तो कंट्रोल होता है.. मर्द ही कंट्रोल नहीं कर सकते"

शीला: "कुछ भी हो मदन.. पर तूने जो कुछ भी किया वो ठीक नहीं किया.. अभी के अभी मेरी चूत ठंडी करनी है मुझे.. बता कैसे करेगा?? तू तो पिचकारी मारकर शांत हो गया.. उस रूखी की चूत में.. अब मैं क्या करूँ??"

मदन: "आई एम सॉरी यार.. अब छोड़ ना.. वो है ही ऐसी की देखकर लंड तैयार हो गया मेरा.. ऊपर से उसके दूध भरे बबलों की लालच.. तुझे तो पता है मेरी कमजोरी.. "

शीला जानबूझकर गुस्सा कर रही थी और मदन के मजे ले रही थी.. उसी वक्त दस्तक देकर कविता ने घर में प्रवेश किया..

"कैसे हो मदन भैया?" कोयल सी मीठी आवाज में कविता ने कहा

"अरे कविता.. आजा अंदर.. ये देख तेरी भाभी कब से क्लास ले रही है मेरी.. " मदन ने कहा.. कविता के आने से उसने राहत की सांस ली

कविता: "क्या हो गया भाभी? क्यूँ डांट रही हो भैया को?"

शीला ने मुंह बिगाड़कर कहा "अपने भैया से ही पूछ...!!"

मदन: "अरे ऐसी कोई खास बात नहीं है.. बेकार में तू बात का बतंगड़ बना रही है"

कविता: "अरे पर कोई मुझे बताएगा की आखिर बात क्या है?"

शीला और मदन दोनों चुप हो गए.. क्या बताते?? की मदन रूखी के बबले चूसते हुए रंगेहाथों पकड़ा गया.. ??

शीला: "कुछ नहीं है कविता.. ये तो मियां-बीवी की रोज की नोंकझोंक है.. तू बता.. कैसे आना हुआ? कैसी चल रही ही मौसम की शादी की तैयारी?" बोलते बोलते शीला किचन में गई और कविता उसके पीछे पीछे

कविता: "बस चल रही है तैयारी.. मौसम की शादी के लिए पापा ने आपको और भैया को एक हफ्ते पहले से आने के लिए कहा है" फिर अचानक कविता ने कहा "एक मिनट भाभी... आज सुबह सुबह ही रोमांस का मुड़ बन गया था क्या?"

शीला: "क्यों?"

कविता धीरे से शीला के कान में कुछ फुसफुसाई

शीला: "नहीं रे नहीं.. ऐसा तो कुछ नहीं हुआ..पर क्यों पूछा??"

कविता: "आपके पेटीकोट के पीछे ये जो धब्बा है.. देखकर ही पता चलता है.. झूठ क्यों बोल रही हो भाभी.. आप के जितना अनुभव भले ही ना हो.. पर इतना तो मैं समझ ही सकती हूँ की ऐसे धब्बे कब बन जाते है कपड़ों पर"

चोंककर शीला ने अपने पीछे हाथ लगाकर देखा.. गिलेपन का एहसास होते ही वो शरमा गई.. रसिक के लोडे की दमदार पिचकारी से निकला वीर्य.. रह रहकर उसकी चूत से रिसकर पेटीकोट को गीला कर रहा था.. अच्छा हुआ जब वो मदन से झगड़ रही थी तब मदन का ध्यान नहीं गया..

शीला ने कविता को अपने करीब खींचा और उसके कान में कहा "ये धब्बा तुम्हारे भैया की वजह से नहीं बना है"

कविता चोंककर जोर से बोली "क्या??????" आँखें फटी की फटी रह गई उसकी.. और अपने चेहरे को शर्म के मारे हाथों से ढँकते हुए वो बोली "तो फिर किसका है?"

शीला: "वो मैं नहीं बता सकती.. टॉप सीक्रेट है.. जैसे तेरे और पिंटू का सीक्रेट है ना.. वैसा ही कुछ.. "

कविता: "अरे वाह भाभी.. आपने तो पहले कभी बताया ही नहीं.. बताइए ना.. कौन है वो?"

शीला: "अभी चुप मर.. फिर कभी बताऊँगी"

कविता ने शीला के पीछे जाकर फिर से वो धब्बा देखते हुए कहा "इतना बड़ा धब्बा?? मेरे कपड़ों पर तो बस छोटा सा दाग ही होता है.. आप तो जैसे पानी के पोखर में बैठकर आई हो इतना गीला हो गया है.. "

शीला ने कुहनी तक हाथ दिखाकर इशारा करते हुए कहा "इतना बड़ा है उसका.. देखा है कभी इतना बड़ा लंड??" फिर अपने दोनों हथेलियों को जोड़कर बोली "इतना सारा निकला था.. तभी तो बड़ा धब्बा बना हुआ है.. थोड़ी सी पिचकारी से कभी ऐसा धब्बा थोड़े ही बनता है"

"बाप रे भाभी.. क्या आप भी.. !!" "लंड" शब्द सुनकर कविता का गोरा मुखड़ा शर्म से लाल लाल हो गया.. इतना बड़ा लंड कैसे हो सकता है??

अचानक कविता के हावभाव बदल गए.. उसे वो मनहूस रात याद आ गई जब उसकी सास ने आइसक्रीम में दवाई मिलाकर उसे बेहोश करने की कोशिश की थी.. और रसिक के साथ उसके जिस्म का सौदा कर दिया था.. और रसिक ने उसकी चूचियाँ भी दबा दी थी.. आज तक पीयूष और पिंटू के अलावा किसी ने उसके नंगे जिस्म को हाथ नहीं लगाया था.. रसिक का लंड जब उसने देखा तब उसका दिल बैठ गया था.. कितना बड़ा था.. !!! बाप रे बाप.. !! वो शीला को कहना चाहती थी की.. हाँ.. उतना बड़ा लंड मैंने देखा है.. पर फिर आगे क्या बताती?

शीला: "क्या हुआ? चुप क्यों हो गई?? यही सोच रही है ना की इतना बड़ा लंड कैसे हो सकता है.. !! अरे भाई.. तुम आजकल की लड़कियों ने दुनिया देखी ही कहाँ है.. !! गाँव के देसी घी की ताकत का तुम्हें अंदाजा भी नहीं है"

कविता: "भाभी... !! आपने कितनों के देख रखे है??"

शीला: "चुप कर.. अब तू मेरी तहकीकात मत कर.. बात मेरी नहीं हो रही अभी.. बात बड़े लंड की हो रही है.. " मदन घर में मौजूद था इसलिए दोनों चुपके चुपके बात कर रही थी

शीला बड़े लंड का विवरण दे रही थी.. और कविता को शीला के प्रत्येक शब्द सुनकर रसिक का डरावना लंड याद आ रहा था.. देसी घी?? कविता सोच में पड़ गई.. उसकी सास भी रसिक के प्यार में पागल थी.. अब शीला भाभी भी वहीं भाषा में बात कर रही थी.. सासु माँ तो प्यार में ऐसी पागल हो गई थी की मेरे जिस्म का ही सौदा कर बैठी थी रसिक के साथ.. इस बुढ़ापे में इतनी नीच हरकत करने के लिए वो तैयार हो गई.. मतलब कुछ तो खास बात होगी उसमें..

शीला: "तेरे भैया जब बाहर जाए.. तब ये बात याद दिलाना मुझे.. अभी ज्यादा बात करना ठीक नहीं होगा.. !!"

कविता और शीला किचन में बातें कर रही थी उस वक्त.. मदन को राजेश का फोन आया.. बात करने के बाद.. फोन कट करने से पहले उसने राजेश से कहा "मैं शीला को पूछकर अभी दो मिनट में बताता हूँ"

मदन: "शीला, राजेश बिजनेस के काम से चार दिनों के लिए बेंगलोर जा रहा है.. अकेला ही है और मुझे साथ ले जाना चाहता है.. अगर तुझे प्रॉब्लेम न हो तो मैं चला जाऊँ उसके साथ?"

शीला: "कब जाना है?? तू यार एन मौके पर ऐसे प्रोग्राम बनाएगा तो कैसे चलेगा?? फिर मैं यहाँ चार दिन तक क्या करूँ?"

कविता खिलखिलाकर हंस पड़ी.. "चार दिन तक क्या करूँ" इस वाक्य का सही अर्थ वो समझ रही थी

मदन: "अरे यार.. तू गुस्सा मत कर.. मैं मना कर देता हूँ राजेश को.. " थोड़ी नाराजगी के साथ मदन ने कहा

कविता: "अरे भाभी.. प्लान बन रहा है तो जाने दो भैया को.. राजेश सर की कंपनी भी है.. क्या आप भी.. !!"

शीला: "अरे वाह.. बड़ी तरफदारी कर रही है अपने भैया की.." कविता का कान खींचते हुए शीला ने कहा

कविता: "वो इसलिए की अगर मदन भैया नहीं गए.. तो राजेश सर जरूर पीयूष को अपने साथ बेंगलोर ले जाएंगे.. फिर चार दिन तक मैं क्या करूँ??" हँसते हुए कविता ने कहा

शीला: "कमीनी.. एक नंबर की चैप्टर है तू.. ठीक है.. तू कह रही है इसलिए जाने देती हूँ.. वरना इन पतियों को ज्यादा छूट देनी नहीं चाहिए.. वरना साले हमारी आँखों के सामने ही इनकी रास-लीला शुरू हो जाएगी"

मदन ने तुरंत फॉन पर राजेश को बता दिया की वो साथ चलेगा.. राजेश ने मदन को चार बजे उसकी ऑफिस पर पहुँचने के लिए कहा

तुरंत ही मदन ने पेकिंग शुरू कर दी.. कुछ जरूरी सामान लेने वो बाहर गया

कृत्रिम क्रोध के साथ शीला ने कहा "कविता, अब तू मेरे साथ ही रहेगी.. तूने मुझे अकेला कर दिया.. अब मैं भी तुझे पीयूष के साथ नहीं रहने दूँगी.. मेरा उपवास होगा तो तुझे भी खाने नहीं दूँगी मैं.. !!"

कविता: "कोई बात नहीं भाभी.. मैं मम्मीजी को बताकर आती हूँ की आज आपके साथ ही खाना खाऊँगी.. मैं आई दो मिनट में"

कविता गई.. कमर तक लटक रही चोटी को हिलाते हुए.. अपनी पतली कमर मटकाते जा रही कविता को पीछे से देखती रही शीला.. और सोच रही थी.. हे भगवान.. इस पतली सी लड़की पर अगर रसिक चढ़ेगा तो इसका क्या हाल होगा?? कविता की चोटी जितनी लंबी है उतना ही लंबा लोडा है रसिक का..

कविता जल्दी जल्दी घर गई और तुरंत वापिस लौट आई.. दरवाजा अंदर से लॉक करके सोफ़े पर बैठ गई.. खाना तैयार था और दोनों मदन के आने का इंतज़ार करने लगे..

शीला: "दरवाजा क्यों बंद किया?? मदन अभी आता ही होगा? शेविंग क्रीम लेने ही तो गया है"

कविता: "हमारी बातें डिस्टर्ब न हो इसलिए मैंने दरवाजा बंद कर दिया है.. मदन भैया आएंगे तब खोल देंगे.. "

शीला वापिस बड़े लंड की बात शुरू करेगी इस इंतज़ार में कविता थोड़ी देर बैठी रही.. फिर बात की शुरुआत करने के लिए उसने कहा

कविता: "भाभी, मौसम की सगाई के दिन आप बहोत सुंदर लग रही थी"

शीला: "हाँ और तू भी बहोत प्यारी लग रही थी.. जब पिंटू के साथ खड़ी थी"

कविता: "क्या सच में?? हम दोनों की जोड़ी इतनी सुंदर लगती है भाभी?"

शीला: "हाँ बहोत ही अच्छी लग रही थी.. पीयूष से तलाक लेकर पिंटू से शादी कर ले"

कविता ने एक गहरी सांस छोड़ी.. और चुप हो गई

कविता: "रेणुका जी और राजेश सर की जोड़ी भी बहोत मस्त लग रही थी.. हैं ना भाभी?"

शीला: "अरे तेरी बात से मुझे याद आया.. राजेश बिजनेस टूर पर जा रहा है तो रेणुका भी घर पर अकेली होगी.. उसके घर ही चली जाती हूँ.. पर.. फिर वैशाली अकेली हो जाएगी.. रेणुका को ही यहाँ बुला लेती हूँ"

कविता बैठे बैठे टीवी देख रही थी तब शीला ने रेणुका के मोबाइल पर कॉल लगाया.. रेणुका ने तुरंत उठाया

रेणुका: "हाई शीला.. मैं तुझे ही याद कर रही थी.. कितने दिन हो गए हमें मिलें हुए.. तू तो मुझे भूल ही गई है"

शीला: "नहीं यार.. भूल गई होती तो फोन क्यों करती तुझे.. !! बोल क्या कर रही है? अकेली है?"

रेणुका: "दिन के समय तो मैं अकेली ही होती हूँ.. क्यों पूछा.. ?? कोई आया है क्या??" रेणुका का इशारा रसिक की तरफ था

शीला: "नहीं यार.. वैसे कल तेरा क्या प्रोग्राम है?"

रेणुका: "कुछ खास नहीं.. राजेश के साथ मूवी देखने जाने का प्लान है"

शीला: "क्यों?? राजेश बेंगलोर नहीं जाने वाला?? मदन को तो उसने कॉल किया था की वो चार दिनों के लिए जा रहा है और मदन भी उसके साथ जाने वाला है.. अभी खाना खाकर मदन निकलने ही वाला है"

तभी घर की डोरबेल बजी..

रेणुका से बातें करते हुए शीला ने दरवाजा खोला.. मदन के अंदर आते ही उसने दरवाजा बंद कर दिया.. बातें करते करते शीला ने खाना परोसा.. और फिर मदन ने खाना फटाफट खतम किया और अपना बेग लेकर तुरंत निकल गया

शीला: "मतलब तुझे पता ही नहीं है की राजेश बेंगलोर जाने वाला है??"

रेणुका: "वैसे तो मुझे बताकर जाता है.. पर हो सकता है की कोई अर्जेंट काम निकल आया हो" रेणुका काफी मुक्त विचारों वाली थी.. उसे राजेश पर पूरा भरोसा था..

दोनों की बातें चल रही थी तब रेणुका के बेडरूम में किसी ओर मोबाइल की रिंग सुनाई दी

रेणुका: "अरे, राजेश अपना दूसरा मोबाइल घर पर ही भूल गया है.. किसी का कॉल आ रहा है.. तू फोन चालू रख.. " रेणुका ने दूसरे फोन पर बात करते हुए कहा "ओके, थेंकस.. मैं उन्हें बता दूँगी" कहते हुए दूसरा फोन कट कर दिया

रेणुका: "शीला.. यार मुझे तो दाल में कुछ काला लग रहा है"

शीला: "क्यों?? क्या हुआ?"

रेणुका: "एक काम कर.. तू मेरे घर आजा.. फिर सब बताती हूँ"

शीला: "अरे यार.. मैं अभी कविता के साथ हूँ.. और शाम को वैशाली भी घर आ जाएगी.. मैं नहीं आ सकती"

रेणुका: "कविता शाम तक थोड़े ही तेरे साथ रहेगी.. !! वो तो पीयूष के आते ही घुस जाएगी उसकी बाहों में.. सर्दी कितनी है.. !! सब को अपना अपना हीटर याद आ जाता है रात को.. तू एक काम कर.. कविता को निपटाकर घर भेज दें.. और तू यहाँ चली आ.. मैं पिंटू को फोन करके बता देती हूँ को वो शाम को वैशाली को यहाँ छोड़ जाएँ.. तीनों साथ डिनर करेंगे.. !!"

शीला: "ठीक है.. मैं एक घंटे में फोन करती हूँ.. तब तक देख.. शायद राजेश तुझे फोन करें.. !!"

रेणुका: "ओके.. ठीक है.. बाय.. मैं इंतज़ार करूंगी तेरा.. !!"

रेणुका ने फोन रख दिया..

कविता और शीला ने एकाध घंटे तक काफी बातें की.. कविता के सवालों में.. देसी घी और बड़े लंड का बार बार जिक्र होता था.. उसकी तमाम बातें कामअग्नि को भड़काने वाली थी..पेट्रोल से आग बुझाने की कोशिश कर रही थी कविता... ऊपर से शीला की गरम बातें उसे और उत्तेजित कर रही थी.. कविता के चेहरे के खुमार को देखकर मन ही मन खुश हो रही थी शीला.. कविता के सवालों का जवाब देते देते शीला भी गरम हो गई थी..

कविता: "भाभी, अब तो मदन भैया भी चले गए.. मैं दरवाजा बंद कर देती हूँ.. अब सारी बातें विस्तार से बताइए मुझे.. मुझे सुनने में बहोत मज़ा आ रहा है"

शीला: "तू अभी नादान है कविता.. तेरी उम्र की थी तब मैं भी ऐसी ही थी.. मैंने खुद ही सेक्स के सारे पाठ पढ़ें.. और ऐसी माहिर हो गई की आज भी मदन को खुश रख पाती हूँ.. हम औरतें पति की खुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार होते है.. उनको पूरा संतोष मिलें.. उनका दिल ना दुखें.. इसका पूरा पूरा ध्यान रखते है.. पर क्या हम अपनी खुशी के लिए भी कभी जीते है क्या?? सब कुछ वहीं करते है जो पति को पसंद हो.. एक बात बता.. तू पीयूष का लंड चूसती है क्या??"

शीला के इस अचानक सवाल से कविता शर्म से पानी पानी हो गई

"हाँ भाभी.. " कविता ने सिर्फ इतना ही कहा

"कितनी देर तक?"

"थोड़ी देर के लिए ही भाभी"

शीला: "क्यों? ज्यादा देर तक क्यों नहीं चूसती?"

"अच्छा नहीं लगता भाभी.. मुंह दुखने लगता है"

शीला: "मैं तेरे भैया का लंड तब तक चूसती हूँ जब तक की वो हाथ जोड़कर बाहर निकालने के लिए विनती न करें.. ऐसी चुसाई करो तो पति खुश होगा ही होगा.. अरे खुश क्या होगा.. हमारा गुलाम बन कर रहेगा.. अगर ठीक से चूसना आता हो तो.. !! अच्छा.. ये बता.. तुझे अपनी चूत चटवाने में मज़ा आता है?"

कविता: "बहोत मज़ा आता है भाभी.. इतना मज़ा आता है की उसके अंदर डालने से पहले ही मैं झड़ जाती हूँ.. सिर्फ चटवाकर ही मैं पूरी संतुष्ट हो जाती हूँ"

शीला: "अच्छा.. मान ले अगर पीयूष को चाटना पसंद न हो.. तो??"

कविता: "पर उसे तो बहोत पसंद है भाभी.. मुझे इन सब चीजों के बारे में कहाँ पता ही था?? शादी करके आई तब मुझे सिर्फ किस और बूब्स दबाने के अलावा और कुछ पता नहीं था"

शीला: "झूठ मत बोल.. शादी के पहले पिंटू के साथ कुछ नहीं किया था क्या?? उसका देखा तो होगा ही तूने.. !!"

कविता: "देखने में और चूसने में फरक होता है ना भाभी.. !! मेरा पिंटू तो इतना अच्छा है की मेरी कितनी मिन्नतों बाद उसने मुझे अपना लंड दिखाया था.. मैं जबरदस्ती उसका हाथ अपने बूब्स पर रख दूँ तभी वो दबाता था"

शीला: "क्यों भला.. !! उसका खड़ा नहीं होता है क्या?? पिंटू को तुझे चोदने का मन नहीं करता था क्या? तेरे जैसी सुंदर लड़की अकेले में मिल जाएँ तो अच्छे अच्छों की नियत खराब हो जाएँ"

कविता: "खड़ा भी होता था.. और पत्थर जैसा सख्त भी हो जाता था.. कभी कभी मैं जिद करके पेंट के ऊपर से उसका पकड़ लेती थी तब पता चलता था की कितना टाइट हो जाता उसका लंड.. पर थोड़ी देर सहलाने के बाद वो मेरा हाथ हटा देता था"

शीला: "अजीब बात है.. !! मैंने आज तक ऐसा मर्द नहीं देखा.. जो इतने टाइट माल को चोदने से अपने आप को रोक सकें.. !!"

कविता: "मैं भी वहीं कहती थी उसे भाभी.. तो वो बोलता.. की मेरी शादी हो जाएँ उसके बाद हम सब कुछ करेंगे.. वो चाहता था की मुझे पहली बार मेरा पति ही चोदे.. मेरा बहोत मन था की मैं अपना सील पिंटू से तुड़वाऊँ.. पर वो माना ही नहीं.. !!"

शीला: "तूने पहली बार पिंटू का लंड देखा तब कैसा महसूस हुआ था? शादी के आखिरी हफ्ते तक उसने तुझे अपना लंड क्यों नहीं दिखाया?"

कविता: "वो तो दिखाना चाहता ही नहीं था.. पर हमारी किसी बात को लेकर शर्त लगी थी जो मैं जीत गई और बदले में मैंने उसे अपना लंड दिखाने के लिए कहा"

शीला: "पागल.. सिर्फ लंड देखने के लिए क्यों कहा? चुदवा ही लेती.. !!"

कविता: "तब मेरे दिमाग में नहीं आई ये बात.. वरना मज़ा आ जाता भाभी.. "

बात करते करते शीला खड़ी हुई और कविता के करीब आई.. कविता की छाती से उसका पल्लू हटा दिया.. ब्लाउस में कैद अमरूद जैसे उसके स्तनों को पकड़ते हुए.. झुककर उसने अत्यंत कामुकता से कविता के लाल होंठों को चूम लिया..

tt

शीला: "सिर्फ बातें करते करते हम कितनी गरम हो गई.. !! सच बता.. नीचे गीला हो रहा है या नहीं?"

कविता: "ओह भाभी.. जरा जोर से दबाइए ना.. हाँ.. नीचे गीली हो गई है मेरी.. और चूल भी मच रही है.. आपने चाटने की बात की और मेरी वो.. नीचे पानी छोड़ने लगी.. आह्ह.. अभी कोई आकर चाटने को तैयार हो तो मैं अभी अपनी टांगें फैलाकर लेट जाऊँ.."

शीला: "जैसा मन तुझे अभी कर रहा है.. पुरुषों को चौबीसों घंटे होता रहता है.. की काश कोई आकर उनका लंड चूसें.. इसलिए.. लंड चूसने के लिए कभी खुद का मूड नहीं देखना चाहिए.. बस सहूलियत देखनी चाहिए.. उनकी इच्छा तो हमेशा होगी.. और हमारा मूड कभी नहीं होगा.. समझी?? मरने की हालत में पड़े हुए मर्द का लंड अगर कोई चूस ले तो वो तब भी मना नहीं करेगा.. बल्कि बच जाएगा"

कविता ने शीला के खरबूजे जैसे स्तनों पर चेहरा रख दिया.. और उसकी गदराई कमर को दोनों हाथों से लपेट लिया.. शीला के विशाल स्तनों पर अपना गाल रगड़ने लगी कविता

शीला: "जब हमें पता है की हमारे पति को इससे खुशी मिलती है.. फिर उन्हें क्यों उस सुख से वंचित रखना.. !!"

कविता: "पता नहीं भाभी.. पर मुझे लंड चूसना ज्यादा पसंद नहीं है.. हाँ चूत चटवाना बहोत अच्छा लगता है"

शीला ने धीरे से अपने ब्लाउस के दो हुक खोलकर अपना एक स्तन बाहर निकाला.. और कविता के बालों में उँगलियाँ फेरते हुए कहा "ले कविता.. चूस ले इसे.. देख.. बातें करते हुए कितने सख्त हो गए है ये.. मैं जब भी गर्म हो जाती है तब ये सख्त पत्थर जैसे हो जाते है.. मदन होता तो दोनों हाथों से मसल मसलकर इन्हें ढीले कर देता.. आज यह जिम्मेदारी तेरी है.. चल अब तू मदन बन जा.. और इन्हें मसल दे.. फट रही है छातियाँ मेरी.. आह्ह.. जल्दी जल्दी कर यार.. !!"

कविता के मुंह में निप्पल देकर शीला ने बात आगे बढ़ाई..

sn2 sn3

शीला: "कविता, अभी तू नाजुक है.. तेरी चूत सिर्फ पीयूष का लंड अंदर ले सकें उतनी ही चौड़ी हुई होगी.. पर तुझे पता है.. सब लंड एक जैसे नहीं होते.. अलग अलग रंग.. अलग अलग साइज़.. अलग अलग मोटाई होती है सब की"

शीला की एक इंच लंबी निप्पल को मुंह से निकालकर कविता ने कहा "हाँ भाभी, पीयूष कभी कभी तीन तीन उँगलियाँ एक साथ डाल देता है..तब दर्द होता है.. मैं मुश्किल से दो उँगलियाँ ही अंदर ले पाती हूँ.. पिंटू और पीयूष के लंड की साइज़ एक सी है.. !!"

शीला: "मेरे छेद में तो मदन चार उँगलियाँ डाल दे तो भी कम पड़ जाती है मुझे.. आह्ह कविता.. मोटा तगड़ा लंड अंदर डलवाने में जो मज़ा आता है.. वो मैं बता नहीं सकती.. अंदर ऐसे घुसता है.. चूत की दीवारों से रगड़ खाता हुआ.. आह्ह.. दिल गार्डन गार्डन हो जाता है"

"दर्द नहीं होता आपको??" कविता ने फिर से निप्पल मुंह में लेकर चूसते हुए कहा

शीला ने कविता के सर को अपने स्तनों से दबाते हुए कहा "अरे मेरी जान.. उसी में तो असली मज़ा आता है.. उस दुख में जो सुख है वो ओर किसी में नहीं.. चल अब नीचे भी थोड़ा सा सहला दें.. " कविता का हाथ पकड़कर शीला ने अपने घाघरे के अंदर डालकर.. भोसड़े पर दबा दिया..

pfo

"ओह्ह भाभी.. कितनी गरम है आपकी तो.. !! बाप रे.. !!" शीला के भोसड़े के वर्टिकल होंठों पर लगे चिपचिपे प्रवाही को हथेली से पूरी भोस पर रगड़ते हुए कविता ने कहा

"बस बस.. ओर नहीं कविता.. फिर मेरा मन हो गया तो लंड कहाँ से लाएंगे?? प्लीज रहने दे.. !!" शीला ने सिसकते हुए कहा

कविता को बेहद उत्तेजित करने के बाद शीला ने कहा "कविता, अब मुझे रेणुका के घर जाना होगा.. तू अपने घर जा और मैं रेणुका के घर के लिए निकलती हूँ.. इस बारे में हम कभी विस्तार से बात करेंगे.. जब किसी दिन पीयूष और मदन दोनों न हों, तब तू रात को सोने आ जान.. सब समझूँगी.. ठीक है.. !!"

कविता को गर्म करके मजधार में छोड़ दिया शीला ने.. और मन ही मन खुश होते हुए वो कपड़े बदलने गई.. कविता के सामने ही वो कपड़े बदल रही थी.. जब शीला अपने सारे कपड़े उतारकर मादरजात नंगी हो गई तब उसे देखकर कविता का गला सूखने लगा.. बेड के कोने पर एक पैर टिकाकर शीला ने कविता की आँखों के सामने ही.. अपना भोसड़ा दबा दिया.. और तेजी से उंगलियों को अंदर बाहर करते हुए.. भोसड़े का सारा पानी अपनी हथेली में ले लिया..

wp2

और फिर कविता के पल्लू से उसे पोंछ दिया.. और कपड़े पहन लिए.. चूत की असन्तुष्ट भूख से परेशान होते हुए कविता अपने घर चली गई.. अच्छा तो शीला को भी नहीं लगा था.. कविता को यूं गर्म कर छोड़ देना.. पर अभी उसकी चूत को ठंडा करने का समय नहीं था.. फिलहाल रेणुका के घर जल्दी पहुंचना जरूरी था.. अगर जल्दी न होती तो वो कविता की चूत को ठंडा जरूर कर देती..

कविता के जाने के बाद, शीला ने वैशाली को फोन कर बता दिया की वो रेणुका के घर जा रही है और उसे भी शाम को ऑफिस से छूटकर वहीं पहुंचना है..


शीला तैयार होकर, अपना पर्स लेकर निकल पड़ी, रेणुका के घर जाने के लिए..
Nice update
 
Top