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Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

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उस रात डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाना खाते हुए वैशाली ने मदन से पूछा.. "पापा, इस क्रिसमस के वेकेशन मे क्या मैं अपने दोस्तों के साथ घूमने जाऊँ?? ३१ दिसंबर मनाने के लिए वह सब किसी हिल-स्टेशन पर जाने का सोच रहे है.. !!"

मदन: "तू जाना चाहती है तो जरूर जा.. पर मेरा मानना है की न्यू-यर की पार्टी किसी फ्रेंड के घर पर ही इन्जॉय करो तो बेहतर रहेगा.. बेटा, तेरे साथ एक दुर्घटना तो घट चुकी है.. कुछ उन्नीस-बीस हो गया तो तेरी बाकी की ज़िंदगी बर्बाद हो जाएगी.. और ३१ दिसंबर को बाहर क्या क्या होता है ये तू भी जानती है और मैं भी अच्छी तरह जानता हूँ.. अच्छे घर की लड़कियों के साथ हेवानियत भरे जो किस्से घटते है.. वो अक्सर अखबार में पढ़ता हूँ.. आश्चर्य की बात तो ये है की जिन लड़कों पर वो भरोसा कर निकलती है.. वहीं लड़के उनके साथ यह दुर्व्यवहार करते है.. और इन्जॉय करने के लिए बाहर ही जाना जरूरी थोड़े ही है.. !! किसी सलामत जगह भी मजे कीये जा सकते है.. अनजानी दूर जगह पर मिलती स्वतंत्रता, कब स्वेच्छाचार का स्वरूप धारण कर लेती है, कुछ कह नहीं सकते"

वैशाली अपने पापा की हिदायतों को बड़े ही ध्यान से सुन रही थी.. उसने तुरंत जवाब नहीं दिया और चुपचाप खाती रही.. खाना खतम करने के बाद हाथ ढोते हुए उसने मदन से कहा "आप ठीक कह रहे हो पापा.. वैसे अभी कुछ तय नहीं हुआ है.. दो-तीन दिनों में हम सब सोच के फाइनल करेंगे.. "

मदन ने स्माइल देकर बात को वहीं विराम दिया.. वैशाली बाहर चली गई और तभी शीला बाहर आई और बोली "मैं भी अपनी सहेली के घर इन्जॉय करने वाली हूँ.. हम सब महिलायें साथ मिलकर न्यू-यर की पार्टी मनाने वाले है"

मदन: "ओहोहों.. क्या बात है.. फिर मैं भी क्यों पीछे रहूँ?? मैं भी राजेश के साथ मिलकर कोई प्रोग्राम बना लेता हूँ.. !!"

शीला ने बेफिक्री से कहा "तेरी मर्जी.. तुझे जो करना हो वो कर.. बस इकत्तीस तारीख को मुझे डिस्टर्ब मत करना.. !!"

मदन: "हम्म.. लगता है कुछ बड़ा प्लान किया है आप लोगों ने.. किस तरह की पार्टी है?? बता तो सही.. !!"

शीला: "तू समझ रहा है ऐसी कोई फ्री-सेक्स पार्टी नहीं है.. जिसके लिए मुझे घर पर झूठ बोलकर.. मीटिंग का बहाना बनाकर जाना पड़े.. !!"

मदन की बोलती बंद हो गई.. शीला नटखट मुस्कान के साथ, मदन को ध्वस्त कर, किचन में बर्तन रखने चली गई..

मदन ने शीला के सामने ही राजेश को फोन किया.. और ३१ दिसंबर के प्लान के बारे में पूछा.. पर राजेश ने बताया की उसका तो पहले से ही अन्य दोस्तों के साथ पार्टी का प्लान बन चुका था.. और वो फ्री नहीं था.. !!

मदन ने और एक-दो दोस्तों को फोन किया.. पर सब का कुछ न कुछ प्लान बन चुका था.. निराश होकर मदन अपने बिस्तर पर लेट गया और सोचता रहा.. भेनचोद, ३१ दिसंबर को मैं अकेला बैठकर क्या मुठठ मारूँगा.. ?? पूरी दुनिया मजे कर रही होगी और मैं घर पर बैठे बैठे टीवी पर अनुपमा देखूँगा क्या.. !!

रात को मदन और वैशाली सोफ़े पर बैठकर टीवी देख रहे थे.. घर का सारा काम निपटाकर शीला भी टीवी देखने बैठ गई.. तीनों साथ बैठकर तारक मेहता का उल्टा चश्मा देख रहे थे.. ब्रेक के दौरान शीला ने वैशाली को मौसम और तरुण की सगाई टूटने के कारण के बारे मैं पूछा.. यह सोचकर की शायद वैशाली को कुछ पता हो.. पर वैशाली इस बारे में कुछ भी नहीं जानती थी.. बल्कि उसने तो यह भी कहा की वह खुद असली कारण जानने के लिए उत्सुक थी..

वैशाली की ओर से कुछ मदद की आशा न दिखाई दी तो शीला ने मदन की तरफ रुख किया "मदन, क्यों न तू ही फोन लगाकर तरुण से इसका कारण पूछ लेता.. !! उस घटना को भी काफी समय हो गया है.. हो सकता है की वो थोड़ा सा नरम हुआ हो और वो तुझे बता दे.. !!"

वैशाली सुन न सके उस तरह मदन ने शीला के कान मे कहा "वो आदमी है.. कोई लंड नहीं.. जो नरम हो जाए"

सुनकर शीला हंस पड़ी.. मदन की जांघ पर चिमटी काटते हुए उसने अपने मोबाइल में सेव तरुण का नंबर मदन को दिया..

मदन ने तरुण को फोन लगाया.. फोन उठाते ही मदन ने अपनी पहचान दी.. तरुण ने उसे तुरंत पहचान लिया..

मदन के एक बार पूछने पर ही तरुण ने उसे सारी बात बता दी.. और फोन रख दिया..

वैशाली ने उत्सुकतावश पूछा "क्या हुआ पापा? उसने कुछ बताया??"

एक भारी सांस छोड़कर मदन ने कहा "नहीं बेटा.. वो कुछ भी कहने के लिए तैयार नहीं है"

लेकिन शीला समझ गई की मदन झूठ बोल रहा था.. मदन के चेहरे के हाव भाव से यह स्पष्ट था की तरुण ने उसे हकीकत बता दी थी

बात जानने के लिए शीला को चटपटी होने लगी.. रात को बेडरूम मे जाते ही उसने मदन से पूछा "तूने वैशाली से झूठ क्यों बोला ??"

मदन: "अब उसे कैसे बताता की सुबोधकांत सेक्स-रैकिट की रैड में रंगेहाथों पकड़ा गया था.. इस बात का तरुण के परिवार को पता लग गया था.. इसलिए उन्हों ने रिश्ता तोड़ दिया.. और यार, तरुण के पास तो ये बात भी आई है की सुबोधकांत और फाल्गुनी के बीच नाजायज संबंध थे.. !!"

मम्मी और पापा के बेडरूम के दरवाजे पर कान लगाकर सुन रही वैशाली स्तब्ध हो गई.. !!! वैसे उसे तभी अंदाज लग चुका था की तरुण ने पापा को सब बता दिया था.. इसीलिए तो उनका फोन इतना लंबा चला था.. किसी कारणवश उन्हों ने वैशाली को सच नहीं बताया था पर वैशाली को यकीन था की बेडरूम में जाते ही मम्मी और पापा के बीच इस बारे में जरूर बात होगी.. !!!

वैशाली का दिमाग चक्कर खाने लगा.. पापा को तो चलो तरुण ने बताया.. पर तरुण को फाल्गुनी और सुबोधकांत के बारे में किसने बताया होगा?? वो सोच रही थी.. क्या फाल्गुनी को इस बारे में मुझे आगाह करना चाहिए??

रात को अपने कमरे से वैशाली ने पिंटू को फोन पर सारी बात बता दी.. वो तो तभी कविता को भी सारी बात बताना चाहती थी.. पर यह सोचकर नहीं फोन किया क्यों की उसे मालूम था की वो इस वक्त पीयूष के साथ होगी.. कविता के साथ सुबह बात करेगी ये सोचकर वैशाली सोने की कोशिश करने लगी.. पर मम्मी-पापा की बातों ने उसे सोच में डाल दिया था.. बाप के दुष्कर्मों की सजा संतानों को भुगतनी पड़ सकती है.. वैशाली के केस में उसके पति के कुकर्मों की सजा भुगतना लिखा था.. बिना किसी गुनाह के वैशाली को इस कठिन परिस्थिति से गुजरना पड़ रहा था.. ज़माना कितना भी आगे क्यों न बढ़ जाए.. कितनी भी तरक्की क्यों न कर ले.. लोग जवान लड़कियों के प्रति कभी अपनी संकुचित विचारधारा नहीं छोड़ेंगे.. किसी लड़की की सगाई टूटी हो.. या उसका तलाक हुआ हो.. उसका हर कोई मूल्यांकन करने लगता है..

वैशाली का मन किया की वो अभी के अभी तरुण को फोन लगाकर झाड दे.. !! की उसने बाप के गुनाहों की सजा उनकी बेटी की क्यों दी? पर तब उसे एहसास हुआ.. की बात सिर्फ मौसम से शादी की नहीं थी.. हमारे समाज में शादी सिर्फ दो इंसानों का मिलाप नहीं होता.. दो परिवारों का.. दो समाजों का मिलन होता है.. जाहीर सी बात थी की सुबोधकांत के बारे में यह सब जानकर तरुण के परिवार वालों को या रिश्ता मंजूर न हो.. सोचते सोचते वैशाली सो गई

सुबह ऑफिस जाते हुए रास्ते में वैशाली ने कविता और बाद में मौसम को फोन करके तरुण के सगाई तोड़ने का असली कारण बता दिया.. हालांकि उसने सिर्फ सुबोधकांत की रंगरेलियों के बारे में ही बताया और फाल्गुनी वाली बात नहीं बताई

मौसम तो अपने बाप के रंगीन किस्सों के बारे में फाल्गुनी से जान ही चुकी थी.. उसे तो पापा और फाल्गुनी के संबंधों के बारे में भी पता था इसलिए उसे कोई खास ताज्जुब नहीं हुआ.. पर कविता को जबरदस्त सदमा पहुंचा.. !!! क्या मेरे पापा इतने गिरे हुए थे?? वैशाली ने तो पूरी बात खतम कर फोन रख दिया था

पर कविता से रहा नहीं गया.. उसने सीधा तरुण को फोन लगाया.. सुबह सुबह तरुण अभी बस ऑफिस पहुंचा ही था की कविता का फोन आया.. सगाई तोड़ने के बाद तरुण ने मौसम के परिवार के सारे नंबर डिलीट कर दीये थे

तरुण: "हैलो.. कौन बात कर रहा है"

कविता: "गुड मॉर्निंग तरुण.. मैं कविता बोल रही हूँ.. मौसम की बड़ी बहन"

तारुण: "ओह हाय दीदी.. कैसी है आप??"

कविता: "बस ठीक ही हूँ.. तुम कैसे हो?"

तरुण: "ठीक न भी हो तो भी "ठीक हूँ" कहने का तो हमारा जैसे रिवाज ही है.. हैं ना दीदी..!!

कविता: "तरुण अगर आसपास कोई न हो तो मैं तुमसे एक बात पूछना चाहती हूँ.. क्या पूछ सकती हूँ?"

तरुण: "हाँ पूछिए ना दीदी.. वैसे ऑफिस में हूँ पर अकेला हूँ इसलिए कोई दिक्कत नहीं है"

कविता: "तरुण, पापा के चारित्र को लेकर जिन अफवाहों के कारण तुमने सगाई तोड़ दी.. उसका मुझे पता चला.. तुमने जो भी निर्णय लिया वो अब पुरानी बात हो चुकी है.. पर मुझे ये समझ मे नहीं आ रहा की इतने पढे लिखे और समझदार होने के बावजूद तुमने ऐसी वाहियात अफवाहों को मानकर मौसम जैसी निर्दोष लड़की के साथ इतना बड़ा अन्याय कर दिया.. !!!"

तरुण: "दीदी, मैं पागल नहीं हूँ की सिर्फ कही-सुनी बातों पर विश्वास कर इतना बड़ा कदम उठाता.. मैं खुद मौसम को बेहद पसंद करता हूँ.. और यह निर्णय मेरे लिए भी उतना ही कठिन था जितना मौसम के लिए.. !!"

कविता: "तरुण, तुम्हारी सगाई तो टूट चुकी है.. इसलिए तुझे यह कहना चाहिए की "मौसम को पसंद करता था "

तरुण: "दीदी, मैं झूठ नहीं बोलूँगा.. मुझे यह फैसला अपने परिवार के दबाव में आकर लेना पड़ा पर उसका मतलब यह नहीं की मुझे मौसम पसंद नहीं है.. कॉलेज के वक्त जब सारे लड़के-लड़कियां जवानी के जोश में मजे कर रहे थे.. तब मैं किताब में मुंह छुपाकर पढ़ रहा था.. अगर वैसा न किया होता तो आज सी.ए. नहीं बन पाता.. पढ़ाई खत्म करने के बाद, मौसम वो पहली लड़की थी जो मेरी ज़िंदगी में आई और मौसम में ऐसा एक नुक्स नहीं है जिस में बता सकूँ.. किसी नसीबवाले को ही मौसम जैसी लड़की मिलेगी.. और मेरे भाग्य में मौसम नहीं है, उसका मुझे बेहद अफसोस है"

कविता समझ गई की सगाई तोड़कर तरुण भी काफी दुखी था.. और वो अब तक मौसम को भूल नहीं सका है

कविता: "फिर भी.. मुझे लगता है तुमने मेरे पापा के बारे में जो भी बातें सुनी.. उसकी चर्चा तुम्हें एक बार मौसम से करनी चाहिए थी"

तरुण: "मुझे वह बात करना इसलिए जरूरी नहीं लगा क्यों की मुझे यकीन था की मौसम को पहले से ही उस बात का पता था"

चोंक गई कविता... !!! मौसम को मालूम था.. !!!! कैसे??

कविता: "मैं नहीं मानती ये बात.. क्योंकी मौसम खुद अभी इस कारण को तलाश रही है.. यही जानने के लिए उसने तुम्हें कितनी बार फोन कीये है ये तो तुम्हें पता ही होगा"

तरुण: "हाँ दीदी.. बहोत बार फोन आए.. पर मैंने उठाए नहीं.. उठाकर क्या कहता?? की तेरे पापा एक रंगीन मिजाज और अईयाश किस्म के आदमी है.. ये कहता???"

अपने स्वर्गीय पापा के बारे में ऐसी बात सुनकर कविता का खून घौल उठा..

तरुण: " दीदी, आपके पापा के बारे में खराब बोलकर मैं आपको दुख देना नहीं चाहता.. पर मुझे लगता है की आपको भी पूरी बात मालूम होनी ही चाहिए"

कविता: "देख तरुण.. तुझे पता तो लग गया होगा की आधी बात तो मैं जान ही गई हूँ.. तू मुझे दिल खोलकर साफ साफ सब बता दे.. जिससे की हम आगे मौसम के जीवन के बारे में कुछ भी फैसला लेने से पहले... इस पहलू को ध्यान में रख सकें"

तरुण खामोश हो गई

कविता: "बता ना तरुण?? प्लीज ऐसे चुप मत हो जा"

एक लंबी सांस लेकर तरुण ने कहा "दीदी, आप के पापा और फाल्गुनी के बीच अवैद्य संबंध थे.. जिस्मानी संबंध.. !! उतना ही नहीं.. आपके पापा एक होटल में चल रही ग्रुप सेक्स पार्टी में पड़ी रैड के दौरान पुलिस द्वारा पकड़े गए थे.. और ये सब मैं ऐसे ही नहीं कह रहा.. अखबार में उनके नाम के साथ पूरा आर्टिकल छपा था.. शायद आपने पढ़ा न हो.. पूरी रात लॉक-अप में बंद थे आपके पापा.. बड़े चर्चे हुए थे उस घटना के.. और स्थानिक अखबारों में तो दो दिन तक सब छपता रहा था.. ये तो अच्छा हुआ की यह घटना सिर्फ हमारे शहर के लोकल अखबार में ही छपी थी.. वरना आपके शहर में लोगों को पता चलता तो आप सबका जीना दुसवार हो जाता.. मेरे रिश्तेदारों ने यह खबर पढ़ी.. आपके पापा का नाम पढ़ा.. अरे, मेरे एक चाचा तो पुलिस स्टेशन जाकर तसल्ली भी कर चुके है.. अब आप ही बताइए..कौन से शरीफ माँ-बाप, अपने बेटे का रिश्ता ऐसे इंसान की बेटी के साथ करना चाहेंगे?"

कविता ने परेशान होकर बेतुकी बात कह दी "तुम आरोप पर आरोप लगा रहे हो.. पर तुम्हारे पास इस बात का कोई सबूत भी है??"

तरुण: "वो आर्टिकल जिस अखबार में छपा था उसका कटिंग अभी भी मैंने संभाल कर रखा हुआ है.. और तो और.. मेरे पापा के साथ तुम्हारे पापा की फोन पर जो बातें हुई उसका रेकॉर्डिंग भी है मेरे पास.. आप सुनना चाहेगी??"

कविता: "हाँ, मुझे सुनना है.. प्लीज तरुण.. क्या तुम मुझे वो भेज सकते हो?"

तरुण: "भेज तो नहीं सकता पर आपको सुना जरूर सकता हूँ.. उसके अलावा भी मेरे पास एक रेकॉर्डिग है जिससे साबित होता था की तुम्हारे पापा कितने बड़े अईयाश थे.. और ढेर सारी गंदी आदतों के शिकार भी थे"

सुनकर कविता के आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा... एक और टेप???

तरुण: "हाँ दीदी.. आज तो मैं आपको सब कुछ साफ साफ बता देना चाहता हूँ.. जिससे कम से कम आप तो मुझे गलत न समझो.. क्यों की यही कारण जानने के लिए कल रात फाल्गुनी का फोन आया था.. फिर मदन भैया ने फोन किया था.. और हाँ.. आपका फोन आया उससे थोड़ी देर पहले ही वैशाली का भी फोन आया था.. मैं कितने लोगों को सफाई देता रहूँ?? उससे अच्छा तो यही होगा की मैं आपको सब कुछ सच सच बता दूँ.. ताकि आप बाकी सब लोगों को बता सकें.. मौसम के लिए मेरे दिल में बहोत हमदर्दी है.. उसे कहना की वो मुझे माफ कर दे.. मैं अपने माँ-बाप की इच्छा के विरुद्ध नहीं जा सका.. मैं अब ये फोन कट कर रहा हूँ.. क्यों की वो वोइस रेकॉर्डिंग ईसी फोन में है.. मैं आपको लेंडलाइन से फोन करता हूँ और फिर वो दोनों रेकॉर्डिंग सुनाता हूँ.. आप अकेले में सुनिएगा.. कुछ आपत्तिजनक शब्द और बातें भी होगी.. उसके लिए क्षमा चाहूँगा.. आप दोनों क्लिप सुन लीजिएगा.. सारे सवालों का जवाब मिल जाएगा"

जिस आत्मविश्वास के साथ तरुण बोल रहा था.. उससे साफ प्रतीत हो रहा था की तरुण के पास पुख्ता सबूत थे और वो शत-प्रतिशत सच बोल रहा था.. कविता के चेहरा सफेद पड़ गया.. पापा.. जो मौसम की शादी के लिए इतने उत्साहित थे.. उनकी गलत हरकतों की वजह से आज मौसम की ज़िंदगी तबाह हो गई... तरुण जैसा होनहार लड़का गंवाना पड़ा.. पापा.. पापा... ये आपने क्या किया?? और क्यों किया???

तभी लेंडलाइन से तरुण का फोन आया..

तरुण: "दीदी, अब मैं मोबाइल पर वो क्लिप प्ले कर रहा हूँ.. आप ध्यान से सुनिए"

रेकॉर्डिंग:

तरुण: "सॉरी पापा.. पर मेरे घर वाले अब इस सगाई को तोड़ना चाहते है.. होल्ड कीजिए.. मैं मेरे पापा को फोन देता हूँ"

सुबोधकांत: "भाई साहब.. आपको मौसम से कोई शिकायत है क्या?? ये मैं क्या सुन रहा हूँ?"

तरुण के पापा: "शिकायत मौसम से नहीं.. आप से है सुबोधकांत.. आपकी हरकतें ही ऐसी है की मैं तो क्या कोई भी आपकी बेटी का हाथ न पकड़ें"

सुबोधकांत: "मुंह संभाल कर बात कीजिए... "

तरुण के पापा: "संभालने की जरूरत मुझे नहीं.. आपको थी.. सुबोधकांत.. इस उम्र में अपनी बेटी की उम्र की लड़की के साथ होटल में रंगरेलियाँ मनाते हुए शर्म नहीं आती??"

सुबोधकांत: "आपको कुछ गलतफहमी हुई है समधी जी.. !!"

तरुण के पापा: "पुलिसस्टेशन में जाकर सारी जानकारी लेकर ही बोल रहा हूँ.. यहाँ के अखबार में भी आपके कारनामे छपे थे.. आपके नाम के साथ.. होटल का नाम.. लड़की का नाम.. कमरे का रूम नंबर.. सब मालूम है.. बताऊँ आपको?? राँडों के साथ इस उम्र में मुंह काला करते हुए आपको शर्म नहीं आई??"

तरुण के पापा की बात सुनकर कविता स्तब्ध हो गई.. वो अब अपने पापा के जवाब का इंतज़ार कर रही थी

सुबोधकांत: "देखिए भाई साहब.. अब जब आपको सबकुछ पता चल ही गया तो फिर मेरे आगे बात करने का कोई मतलब नहीं है.. मैं अपना गुनाह कुबूल करता हूँ.. आपको सगाई तोड़ने से मैं नहीं रोकूँगा..पर मेरी आप से एक विनती है.. !! महरबानी करके प्लीज आप ये बात मेरे परिवार वालों को मत बताना.. आपकी नज़रों से तो मैं गिर ही चुका हूँ.. अपनी बेटियों की नजर में, मैं नहीं गिरना चाहता.. मेरी भोली पत्नी तो ये बर्दाश्त ही नहीं कर पाएगी.. वैसे भी वो दिल की मरीज है और अगर उसे कुछ हो गया तो हमारा पूरा परिवार बिखर जाएगा"

तरुण के पापा: "मुझे कोई शौक नहीं है आपके परिवार वालों के ये सब बताने का.. आप का प्रॉब्लेम है और आप ही जानों.. दोबारा यहाँ फोन मत करना और आपके परिवार के सदस्यों को भी कहना की सफाई मांगने के लिए फोन न करे.. मैं आपके बेटी से हुई सगाई तोड़ रहा हूँ.. और आप को भी सलाह देता हूँ... की सुधर जाइए... वरना बर्बाद हो जाएंगे.. अपनी बेटी को ब्याहने की उम्र में यह सब शोभा नहीं देता.. !!"

फोन कट हो गया..

तरुण: "सुना आपने दीदी??"

कविता सुबक सुबककर रो रही थी..

तरुण: "दीदी प्लीज आप रोइए मत.. मौसम को मुझसे भी अच्छा लड़का मिल जाएगा.. अरे, आप कहेंगे तो मैं ढूँढूँगा मौसम के लिए लड़का.."

तरुण की सज्जनता देखकर कविता को बहोत अच्छा लगा.. रोते रोते उसने कहा :तरुण, पापा की नादानी सजा आज मौसम को भुगतनी पड़ रही है"

तरुण: "हाँ दीदी.. मुझे भी मौसम को लेकर बड़ा दुख हो रहा है पर अब मैं कुछ कर नहीं सकता"

थोड़ी देर रोने के बाद कविता शांत हो गई.. इसलिए तरुण ने कहा "आप दूसरी क्लिप सुनना चाहेगी, दीदी?"

अपनी नाक पोंछते हुए कविता ने कहा "हाँ.. सुना.. !!"

तरुण ने क्लिप प्ले कर दी.. सुबोधकांत और किसी अनजान शख्स के बीच बात चल रही थी..

शख्स: "हैलो.. !!"

सुबोधकांत: "हाँ बोलीये.. "

शख्स: "जी मैं हेमंत बोल रहा हूँ.. होटल का मेनेजर.. पहचाना.. ??"

सुबोधकांत: "अरे तुम्हें तो मैं कैसे भूल सकता हूँ?? तेरी वजह से ही तो मेरी ज़िंदगी आज रंगीन है.. एक मिनट लाइन पर रहना हेमंत.. !!"

हेमंत: "ठीक है सर.. !"

सुबोधकांत: "अरे यार.. मेरे आसपास लोग खड़े थे इसलिए मुझे बाहर आना पड़ा"

हेमंत: "सर, मैंने याद दिलाने के लिए फोन किया की आज की पार्टी तय है.. आप जॉइन कर रहे है ना.. ??"

सुबोधकांत: "अरे यार थोड़ा पहले से बताना चाहिए ना.. तू अभी बता रहा है.. अब मैं पार्टनर कैसे अरेंज करू?"

हेमंत: "क्यों आपके साथ वो जवान लड़की आती है ना.. जिसे आप अक्सर होटल पर लेकर आते है.. !!"

सुबोधकांत: "अरे वो लड़की फाल्गुनी तो मेरी पर्सनल माल है यार.. उसे मैं ऐसी ग्रुप सेक्स पार्टी में नहीं लेकर आ सकता.. और वैसे भी वो अभी कच्ची कली है.. वो ये सब देखेगी तो डर जाएगी.. ऐसी पार्टी के लिए तो कोई बाजारू माल का बंदोबस्त करना पड़ेगा"

हेमंत: "तो अब क्या करेंगे सर?"

सुबोधकांत: "तू ही बता.. हर बार तू ही कुछ सेटिंग करता है"

हेमंत: "हाँ सर.. लेकिन ऐसी पार्टी के लिए लड़कियां बहोत ज्यादा पैसा चार्ज करती है.. "

सुबोधकांत: "जो भी हो तू ही कुछ जुगाड़ कर.. अभी मैं लड़की ढूँढने कहाँ जाऊँ?? होटल पहुँचने में भी मुझे तीन घंटों का समय लगेगा.. "

हेमंत: "सर, दो औरतें यहाँ आई है जो पार्टी जॉइन करना चाहती है.. लेकिन उनके पार्टनर नहीं है.. मैंने उनको अभी रोक कर रखा है.. सोचा अप से बात कर लूँ.. फिर उन्हें जवाब दूँ.. आप कहें तो एक आप के लिए रख लूँ?? वैसे उम्र थोड़ी सी ज्यादा है"

सुबोधकांत: "कितनी उम्र होगी??"

हेमंत: "४०-४५ के करीब.. पर दोनों गजब का माल है सर"

सुबोधकांत: "चलेगा.. पैसा कितना लेगी?"

हेमंत: "पच्चीस हजार.. !!"

सुबोधकांत: "ओके.. वैसे भी पार्टी में कौन किसके पास जाएगा क्या पता.. !! कोई फ़र्क नहीं पड़ता.. कर दे फिक्स उसे.. !!"

हेमंत: "ठीक है सर.. दूसरी वाली के साथ मैं पार्टनर बन जाऊंगा"

सुबोधकांत: "ठीक है.. अब रखता हूँ... मुझे अभी निकलना होगा.. तीन घंटे का रास्ता है"

हेमंत: "ओके सर.. "

क्लिप खतम हो गई.. कविता को खड़े खड़े चक्कर आने लगे...

तरुण: "हैलो... हैलो दीदी.. आप लाइन पर है??" कविता की ओर से कोई रिस्पॉन्स न मिलने पर तरुण ने कहा

कविता: "सुन रही हूँ तरुण.. पर अब बोलने जैसा कुछ रहा ही नहीं.. मैं तुमसे बाद मैं बात करती हूँ"

तरुण: "ओके दीदी.. आपका खयाल रखिएगा.. और मौसम का भी... बाय"

फोन खतम होते ही कविता सोफे पर धम्म से बैठ गई.. पापा का आज नया ही रूप सामने आया था.. सारे सबूत सामने होने के बावजूद उसका मन इससे मनने को तैयार ही नहीं था.. पापा की इस रास-लीला का फल मौसम को भुगतना पड़ा था..

भयानक गुस्से के साथ कविता ने फाल्गुनी को फोन लगाया

फाल्गुनी कॉलेज में थी और लेक्चर चल रहा था इसलिए उसने फोन काट दिया.. बाहर आकर उसने कविता को फोन लगाया

फाल्गुनी: "हैलो दीदी.. मैं लेक्चर में थी इसलिए फोन काट दिया.. बताइए क्या काम था??"

कविता: "कॉलेज से निकलकर तू सीधे मेरे घर आना.. मुझे अकेले में तुझ से कुछ बातें करनी है.. और हाँ.. मौसम को इस बारे में कुछ भी मत बताना.. "

इतना कहकर कविता ने फोन काट दिया..

फाल्गुनी सोच में पड़ गई.. दीदी को आखिर ऐसा क्या काम होगा?? और मौसम को बताने से क्यों मना किया होगा?

कॉलेज के बाकी लेक्चर छोड़कर फाल्गुनी सीधे कविता के घर पहुँच गई..

ड्रॉइंग रूम के अंदर आते ही सोफ़े पर बैठकर फाल्गुनी ने पूछा "क्या काम था दीदी?"

कविता के दिमाग में विचारों का ज्वालामुखी सा फट रहा था.. उसने तय तो किया था की साफ साफ शब्दों में फाल्गुनी को बता देगी की आज के बाद उसका मम्मी के घर आना जाना बंद.. पापा के साथ उसके नाजायज संबंधों के कारण मौसम की सगाई टूटी थी.. इसलिए अब से वो मौसम से मिलने कभी नहीं आएगी..

पर अचानक उसके विचार बदल गए.. दिमाग में कुछ सुझा और उसने पूरी बात ही बदल दी

कविता: "काम तो कुछ खास नहीं था.. तुझे मिलें हुए बहोत दिन हो गए थे.. पापा के जाने के बाद तो तूने घर आना ही बंद कर दिया" ताना मारते हुए कविता ने कहा

सुनकर एक पल के लिए फाल्गुनी सकपका गई.. फिर अपने आप को संभालते हुए उसने कहा

"ऐसा कुछ नहीं है दीदी.. मैं और मौसम तो अक्सर मिलते रहते है"

कविता: "पता नहीं क्यों.. पर आज पापा की बहोत याद आ रही है.. कितने अच्छे थे मेरे पापा.. !! तुझे भी अपनी बेटी मानते थे"

अब फाल्गुनी का दिमाग जागृत हो गया.. जरूर दीदी को कुछ शक हुआ है.. वरना वो ऐसे लहजे में कभी बात नहीं करती थी..

सिर्फ दो ही प्रहारों में फाल्गुनी का मुंह लटक गया.. और उसका अब कविता के सामने ज्यादा देर बैठ पाना मुश्किल था..

फाल्गुनी: "दीदी, मुझे घर जाना पड़ेगा.. रास्ते में ही मम्मी का फोन आया था.. उनका बीपी बढ़ गया है.. मैं घर जाने ही वाली थी की तब आपका फोन आ गया इसलिए यहाँ आ गई.. अगर कुछ अर्जेंट न हो तो मैं निकलूँ??"

कविता जवाब देती उससे पहले फाल्गुनी अपना पर्स उठाकर भाग गई

उसे जाता हुआ खिड़की से देखते हुए कविता मन ही मन हंसने लगी.. कविता ने देखा की फाल्गुनी चलते चलते मौसम के घर के पास गई.. मौसम बाहर ही खड़ी थी.. दोनों बातें करते हुए आगे चल दीये

मौसम: "क्या काम था दीदी को??"

फाल्गुनी: "कुछ खास नहीं.. ऐसे ही मिलने बुलाया था.. !!"

मौसम: "सच सच बता फाल्गुनी.. मुझे बेवकूफ मत बना"

फाल्गुनी: "यार मौसम, मुझे लगता है की अंकल और मेरे संबंधों के बारे में दीदी को शक हो गया है.. आज जिस टोन में उन्हों ने मुझसे बात की.. मुझे पक्का यकीन है यार"

मौसम सोच में पड़ गई.. दीदी को इसके बारे में कैसे पता चला होगा??

मौसम: "हो सकता है वैशाली ने पिंटू को बताया हो.. और पिंटू ने दीदी को बता दिया हो.. !!"

फाल्गुनी: "मुझे क्या पता यार.. "

मौसम: "चल छोड़ वो सब.. जो होना था वो हो गया.. जब पापा ही नहीं रहे तो उन सब पुरानी बातों से डरने का कोई मतलब नहीं है.. भूल जा सब... कल शाम को मैं अपनी ऑफिस गई थी.. जीजू से मिलने.. कितने महीनों के बाद गई वहाँ यार.. !!"

फाल्गुनी: "अंकल के जाने के बाद.. मैं उस रास्ते से गुजरी भी नहीं हूँ"

मौसम: "वहाँ ऑफिस में एक लड़का काम करता है.. विशाल नाम है उसका.. बहोत ही हेंडसम है यार"

फाल्गुनी: "अरे वाह.. बोल दे जीजू को.. की तेरी बात चलाएं उसके साथ"

मौसम: "वक्त आने दे.. वो भी करूंगी.. मैं तुझे ये बताने वाली थी की जीजू ने ३१ दिसंबर को अपने घर पर ही मस्त पार्टी करने का प्लान बनाया है.. वैशाली और पिंटू को भी बुलाने वाले है.. और दीदी से छुपकर रखा है.. उन्हें सरप्राइज़ देना का विचार है"

यह सुनकर फाल्गुनी की उदासी थोड़ी कम हुई..

फाल्गुनी: "अरे वाह.. तब तो बड़ा मज़ा आएगा, मौसम.. !! काफी टाइम हो गया.. किसी पार्टी में गए हुए.. !!"

मौसम: "और ये सब मेरी बदौलत हुआ है.. मैंने ऑफिस जाकर जीजू को झाड ही दिया तब जाकर वो तैयार हुए.. बाकी उन्हें बिजनेस से फुरसत ही कहाँ मिलती है.. !! जीजू ने प्लान बनाया और फिर विशाल और फोरम को भी न्योता दे दिया पार्टी में आने का.. मज़ा आएगा फ्लर्ट करने का.. और हाँ फाल्गुनी. पहले से बोल देती हूँ.. तू विशाल से दूर ही रहना"

फाल्गुनी: "अरे बाबा.. तू कहेगी तो मैं उसे पार्टी से पहले ही राखी बांध दूँगी... पर ये फोरम कौन है?"

मौसम: "जीजू की ऑफिस की रीसेप्शनिस्ट.. जैसे अंकल ने तुझे जुगाड़कर रखा हुआ था वैसे जीजू ने इस फोरम को रखा होगा.. आज कल तो सभी गाड़ियों में स्पेर-व्हील की सुविधा होती ही है ना.. हा हा हा हा.. !"

फाल्गुनी: "तो फोरम की जगह तुझे रीसेप्शनिस्ट बन जाना चाहिए था.. जीजू का अनुभव तो तू पहले ही कर चुकी है.. !!"

मौसम: "हम्म विचार तो अच्छा है.. ये कॉलेज का आखिरी साल खत्म हो जाने दे.. अब और पढ़ाई नहीं करनी है.. बस पापा की ऑफिस में आराम से बैठना है"

फाल्गुनी: "बात तो सही है.. तू वहाँ बैठकर ऑफिस का ध्यान भी रखेगी और जीजू का भी.. !!"

मौसम: "और साथ में विशाल का भी.. !!"

फाल्गुनी: "देखना पड़ेगा इस विशाल को.. उसका नाम बोलते बोलते तेरे गाल लाल हो जा रहे है"


दोनों बातें करते करते घूम कर वापिस आ गई.. मौसम अपने घर चली गई और फाल्गुनी अपने घर..
खूबसूरत update
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Arunpandal

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उस रात डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाना खाते हुए वैशाली ने मदन से पूछा.. "पापा, इस क्रिसमस के वेकेशन मे क्या मैं अपने दोस्तों के साथ घूमने जाऊँ?? ३१ दिसंबर मनाने के लिए वह सब किसी हिल-स्टेशन पर जाने का सोच रहे है.. !!"

मदन: "तू जाना चाहती है तो जरूर जा.. पर मेरा मानना है की न्यू-यर की पार्टी किसी फ्रेंड के घर पर ही इन्जॉय करो तो बेहतर रहेगा.. बेटा, तेरे साथ एक दुर्घटना तो घट चुकी है.. कुछ उन्नीस-बीस हो गया तो तेरी बाकी की ज़िंदगी बर्बाद हो जाएगी.. और ३१ दिसंबर को बाहर क्या क्या होता है ये तू भी जानती है और मैं भी अच्छी तरह जानता हूँ.. अच्छे घर की लड़कियों के साथ हेवानियत भरे जो किस्से घटते है.. वो अक्सर अखबार में पढ़ता हूँ.. आश्चर्य की बात तो ये है की जिन लड़कों पर वो भरोसा कर निकलती है.. वहीं लड़के उनके साथ यह दुर्व्यवहार करते है.. और इन्जॉय करने के लिए बाहर ही जाना जरूरी थोड़े ही है.. !! किसी सलामत जगह भी मजे कीये जा सकते है.. अनजानी दूर जगह पर मिलती स्वतंत्रता, कब स्वेच्छाचार का स्वरूप धारण कर लेती है, कुछ कह नहीं सकते"

वैशाली अपने पापा की हिदायतों को बड़े ही ध्यान से सुन रही थी.. उसने तुरंत जवाब नहीं दिया और चुपचाप खाती रही.. खाना खतम करने के बाद हाथ ढोते हुए उसने मदन से कहा "आप ठीक कह रहे हो पापा.. वैसे अभी कुछ तय नहीं हुआ है.. दो-तीन दिनों में हम सब सोच के फाइनल करेंगे.. "

मदन ने स्माइल देकर बात को वहीं विराम दिया.. वैशाली बाहर चली गई और तभी शीला बाहर आई और बोली "मैं भी अपनी सहेली के घर इन्जॉय करने वाली हूँ.. हम सब महिलायें साथ मिलकर न्यू-यर की पार्टी मनाने वाले है"

मदन: "ओहोहों.. क्या बात है.. फिर मैं भी क्यों पीछे रहूँ?? मैं भी राजेश के साथ मिलकर कोई प्रोग्राम बना लेता हूँ.. !!"

शीला ने बेफिक्री से कहा "तेरी मर्जी.. तुझे जो करना हो वो कर.. बस इकत्तीस तारीख को मुझे डिस्टर्ब मत करना.. !!"

मदन: "हम्म.. लगता है कुछ बड़ा प्लान किया है आप लोगों ने.. किस तरह की पार्टी है?? बता तो सही.. !!"

शीला: "तू समझ रहा है ऐसी कोई फ्री-सेक्स पार्टी नहीं है.. जिसके लिए मुझे घर पर झूठ बोलकर.. मीटिंग का बहाना बनाकर जाना पड़े.. !!"

मदन की बोलती बंद हो गई.. शीला नटखट मुस्कान के साथ, मदन को ध्वस्त कर, किचन में बर्तन रखने चली गई..

मदन ने शीला के सामने ही राजेश को फोन किया.. और ३१ दिसंबर के प्लान के बारे में पूछा.. पर राजेश ने बताया की उसका तो पहले से ही अन्य दोस्तों के साथ पार्टी का प्लान बन चुका था.. और वो फ्री नहीं था.. !!

मदन ने और एक-दो दोस्तों को फोन किया.. पर सब का कुछ न कुछ प्लान बन चुका था.. निराश होकर मदन अपने बिस्तर पर लेट गया और सोचता रहा.. भेनचोद, ३१ दिसंबर को मैं अकेला बैठकर क्या मुठठ मारूँगा.. ?? पूरी दुनिया मजे कर रही होगी और मैं घर पर बैठे बैठे टीवी पर अनुपमा देखूँगा क्या.. !!

रात को मदन और वैशाली सोफ़े पर बैठकर टीवी देख रहे थे.. घर का सारा काम निपटाकर शीला भी टीवी देखने बैठ गई.. तीनों साथ बैठकर तारक मेहता का उल्टा चश्मा देख रहे थे.. ब्रेक के दौरान शीला ने वैशाली को मौसम और तरुण की सगाई टूटने के कारण के बारे मैं पूछा.. यह सोचकर की शायद वैशाली को कुछ पता हो.. पर वैशाली इस बारे में कुछ भी नहीं जानती थी.. बल्कि उसने तो यह भी कहा की वह खुद असली कारण जानने के लिए उत्सुक थी..

वैशाली की ओर से कुछ मदद की आशा न दिखाई दी तो शीला ने मदन की तरफ रुख किया "मदन, क्यों न तू ही फोन लगाकर तरुण से इसका कारण पूछ लेता.. !! उस घटना को भी काफी समय हो गया है.. हो सकता है की वो थोड़ा सा नरम हुआ हो और वो तुझे बता दे.. !!"

वैशाली सुन न सके उस तरह मदन ने शीला के कान मे कहा "वो आदमी है.. कोई लंड नहीं.. जो नरम हो जाए"

सुनकर शीला हंस पड़ी.. मदन की जांघ पर चिमटी काटते हुए उसने अपने मोबाइल में सेव तरुण का नंबर मदन को दिया..

मदन ने तरुण को फोन लगाया.. फोन उठाते ही मदन ने अपनी पहचान दी.. तरुण ने उसे तुरंत पहचान लिया..

मदन के एक बार पूछने पर ही तरुण ने उसे सारी बात बता दी.. और फोन रख दिया..

वैशाली ने उत्सुकतावश पूछा "क्या हुआ पापा? उसने कुछ बताया??"

एक भारी सांस छोड़कर मदन ने कहा "नहीं बेटा.. वो कुछ भी कहने के लिए तैयार नहीं है"

लेकिन शीला समझ गई की मदन झूठ बोल रहा था.. मदन के चेहरे के हाव भाव से यह स्पष्ट था की तरुण ने उसे हकीकत बता दी थी

बात जानने के लिए शीला को चटपटी होने लगी.. रात को बेडरूम मे जाते ही उसने मदन से पूछा "तूने वैशाली से झूठ क्यों बोला ??"

मदन: "अब उसे कैसे बताता की सुबोधकांत सेक्स-रैकिट की रैड में रंगेहाथों पकड़ा गया था.. इस बात का तरुण के परिवार को पता लग गया था.. इसलिए उन्हों ने रिश्ता तोड़ दिया.. और यार, तरुण के पास तो ये बात भी आई है की सुबोधकांत और फाल्गुनी के बीच नाजायज संबंध थे.. !!"

मम्मी और पापा के बेडरूम के दरवाजे पर कान लगाकर सुन रही वैशाली स्तब्ध हो गई.. !!! वैसे उसे तभी अंदाज लग चुका था की तरुण ने पापा को सब बता दिया था.. इसीलिए तो उनका फोन इतना लंबा चला था.. किसी कारणवश उन्हों ने वैशाली को सच नहीं बताया था पर वैशाली को यकीन था की बेडरूम में जाते ही मम्मी और पापा के बीच इस बारे में जरूर बात होगी.. !!!

वैशाली का दिमाग चक्कर खाने लगा.. पापा को तो चलो तरुण ने बताया.. पर तरुण को फाल्गुनी और सुबोधकांत के बारे में किसने बताया होगा?? वो सोच रही थी.. क्या फाल्गुनी को इस बारे में मुझे आगाह करना चाहिए??

रात को अपने कमरे से वैशाली ने पिंटू को फोन पर सारी बात बता दी.. वो तो तभी कविता को भी सारी बात बताना चाहती थी.. पर यह सोचकर नहीं फोन किया क्यों की उसे मालूम था की वो इस वक्त पीयूष के साथ होगी.. कविता के साथ सुबह बात करेगी ये सोचकर वैशाली सोने की कोशिश करने लगी.. पर मम्मी-पापा की बातों ने उसे सोच में डाल दिया था.. बाप के दुष्कर्मों की सजा संतानों को भुगतनी पड़ सकती है.. वैशाली के केस में उसके पति के कुकर्मों की सजा भुगतना लिखा था.. बिना किसी गुनाह के वैशाली को इस कठिन परिस्थिति से गुजरना पड़ रहा था.. ज़माना कितना भी आगे क्यों न बढ़ जाए.. कितनी भी तरक्की क्यों न कर ले.. लोग जवान लड़कियों के प्रति कभी अपनी संकुचित विचारधारा नहीं छोड़ेंगे.. किसी लड़की की सगाई टूटी हो.. या उसका तलाक हुआ हो.. उसका हर कोई मूल्यांकन करने लगता है..

वैशाली का मन किया की वो अभी के अभी तरुण को फोन लगाकर झाड दे.. !! की उसने बाप के गुनाहों की सजा उनकी बेटी की क्यों दी? पर तब उसे एहसास हुआ.. की बात सिर्फ मौसम से शादी की नहीं थी.. हमारे समाज में शादी सिर्फ दो इंसानों का मिलाप नहीं होता.. दो परिवारों का.. दो समाजों का मिलन होता है.. जाहीर सी बात थी की सुबोधकांत के बारे में यह सब जानकर तरुण के परिवार वालों को या रिश्ता मंजूर न हो.. सोचते सोचते वैशाली सो गई

सुबह ऑफिस जाते हुए रास्ते में वैशाली ने कविता और बाद में मौसम को फोन करके तरुण के सगाई तोड़ने का असली कारण बता दिया.. हालांकि उसने सिर्फ सुबोधकांत की रंगरेलियों के बारे में ही बताया और फाल्गुनी वाली बात नहीं बताई

मौसम तो अपने बाप के रंगीन किस्सों के बारे में फाल्गुनी से जान ही चुकी थी.. उसे तो पापा और फाल्गुनी के संबंधों के बारे में भी पता था इसलिए उसे कोई खास ताज्जुब नहीं हुआ.. पर कविता को जबरदस्त सदमा पहुंचा.. !!! क्या मेरे पापा इतने गिरे हुए थे?? वैशाली ने तो पूरी बात खतम कर फोन रख दिया था

पर कविता से रहा नहीं गया.. उसने सीधा तरुण को फोन लगाया.. सुबह सुबह तरुण अभी बस ऑफिस पहुंचा ही था की कविता का फोन आया.. सगाई तोड़ने के बाद तरुण ने मौसम के परिवार के सारे नंबर डिलीट कर दीये थे

तरुण: "हैलो.. कौन बात कर रहा है"

कविता: "गुड मॉर्निंग तरुण.. मैं कविता बोल रही हूँ.. मौसम की बड़ी बहन"

तारुण: "ओह हाय दीदी.. कैसी है आप??"

कविता: "बस ठीक ही हूँ.. तुम कैसे हो?"

तरुण: "ठीक न भी हो तो भी "ठीक हूँ" कहने का तो हमारा जैसे रिवाज ही है.. हैं ना दीदी..!!

कविता: "तरुण अगर आसपास कोई न हो तो मैं तुमसे एक बात पूछना चाहती हूँ.. क्या पूछ सकती हूँ?"

तरुण: "हाँ पूछिए ना दीदी.. वैसे ऑफिस में हूँ पर अकेला हूँ इसलिए कोई दिक्कत नहीं है"

कविता: "तरुण, पापा के चारित्र को लेकर जिन अफवाहों के कारण तुमने सगाई तोड़ दी.. उसका मुझे पता चला.. तुमने जो भी निर्णय लिया वो अब पुरानी बात हो चुकी है.. पर मुझे ये समझ मे नहीं आ रहा की इतने पढे लिखे और समझदार होने के बावजूद तुमने ऐसी वाहियात अफवाहों को मानकर मौसम जैसी निर्दोष लड़की के साथ इतना बड़ा अन्याय कर दिया.. !!!"

तरुण: "दीदी, मैं पागल नहीं हूँ की सिर्फ कही-सुनी बातों पर विश्वास कर इतना बड़ा कदम उठाता.. मैं खुद मौसम को बेहद पसंद करता हूँ.. और यह निर्णय मेरे लिए भी उतना ही कठिन था जितना मौसम के लिए.. !!"

कविता: "तरुण, तुम्हारी सगाई तो टूट चुकी है.. इसलिए तुझे यह कहना चाहिए की "मौसम को पसंद करता था "

तरुण: "दीदी, मैं झूठ नहीं बोलूँगा.. मुझे यह फैसला अपने परिवार के दबाव में आकर लेना पड़ा पर उसका मतलब यह नहीं की मुझे मौसम पसंद नहीं है.. कॉलेज के वक्त जब सारे लड़के-लड़कियां जवानी के जोश में मजे कर रहे थे.. तब मैं किताब में मुंह छुपाकर पढ़ रहा था.. अगर वैसा न किया होता तो आज सी.ए. नहीं बन पाता.. पढ़ाई खत्म करने के बाद, मौसम वो पहली लड़की थी जो मेरी ज़िंदगी में आई और मौसम में ऐसा एक नुक्स नहीं है जिस में बता सकूँ.. किसी नसीबवाले को ही मौसम जैसी लड़की मिलेगी.. और मेरे भाग्य में मौसम नहीं है, उसका मुझे बेहद अफसोस है"

कविता समझ गई की सगाई तोड़कर तरुण भी काफी दुखी था.. और वो अब तक मौसम को भूल नहीं सका है

कविता: "फिर भी.. मुझे लगता है तुमने मेरे पापा के बारे में जो भी बातें सुनी.. उसकी चर्चा तुम्हें एक बार मौसम से करनी चाहिए थी"

तरुण: "मुझे वह बात करना इसलिए जरूरी नहीं लगा क्यों की मुझे यकीन था की मौसम को पहले से ही उस बात का पता था"

चोंक गई कविता... !!! मौसम को मालूम था.. !!!! कैसे??

कविता: "मैं नहीं मानती ये बात.. क्योंकी मौसम खुद अभी इस कारण को तलाश रही है.. यही जानने के लिए उसने तुम्हें कितनी बार फोन कीये है ये तो तुम्हें पता ही होगा"

तरुण: "हाँ दीदी.. बहोत बार फोन आए.. पर मैंने उठाए नहीं.. उठाकर क्या कहता?? की तेरे पापा एक रंगीन मिजाज और अईयाश किस्म के आदमी है.. ये कहता???"

अपने स्वर्गीय पापा के बारे में ऐसी बात सुनकर कविता का खून घौल उठा..

तरुण: " दीदी, आपके पापा के बारे में खराब बोलकर मैं आपको दुख देना नहीं चाहता.. पर मुझे लगता है की आपको भी पूरी बात मालूम होनी ही चाहिए"

कविता: "देख तरुण.. तुझे पता तो लग गया होगा की आधी बात तो मैं जान ही गई हूँ.. तू मुझे दिल खोलकर साफ साफ सब बता दे.. जिससे की हम आगे मौसम के जीवन के बारे में कुछ भी फैसला लेने से पहले... इस पहलू को ध्यान में रख सकें"

तरुण खामोश हो गई

कविता: "बता ना तरुण?? प्लीज ऐसे चुप मत हो जा"

एक लंबी सांस लेकर तरुण ने कहा "दीदी, आप के पापा और फाल्गुनी के बीच अवैद्य संबंध थे.. जिस्मानी संबंध.. !! उतना ही नहीं.. आपके पापा एक होटल में चल रही ग्रुप सेक्स पार्टी में पड़ी रैड के दौरान पुलिस द्वारा पकड़े गए थे.. और ये सब मैं ऐसे ही नहीं कह रहा.. अखबार में उनके नाम के साथ पूरा आर्टिकल छपा था.. शायद आपने पढ़ा न हो.. पूरी रात लॉक-अप में बंद थे आपके पापा.. बड़े चर्चे हुए थे उस घटना के.. और स्थानिक अखबारों में तो दो दिन तक सब छपता रहा था.. ये तो अच्छा हुआ की यह घटना सिर्फ हमारे शहर के लोकल अखबार में ही छपी थी.. वरना आपके शहर में लोगों को पता चलता तो आप सबका जीना दुसवार हो जाता.. मेरे रिश्तेदारों ने यह खबर पढ़ी.. आपके पापा का नाम पढ़ा.. अरे, मेरे एक चाचा तो पुलिस स्टेशन जाकर तसल्ली भी कर चुके है.. अब आप ही बताइए..कौन से शरीफ माँ-बाप, अपने बेटे का रिश्ता ऐसे इंसान की बेटी के साथ करना चाहेंगे?"

कविता ने परेशान होकर बेतुकी बात कह दी "तुम आरोप पर आरोप लगा रहे हो.. पर तुम्हारे पास इस बात का कोई सबूत भी है??"

तरुण: "वो आर्टिकल जिस अखबार में छपा था उसका कटिंग अभी भी मैंने संभाल कर रखा हुआ है.. और तो और.. मेरे पापा के साथ तुम्हारे पापा की फोन पर जो बातें हुई उसका रेकॉर्डिंग भी है मेरे पास.. आप सुनना चाहेगी??"

कविता: "हाँ, मुझे सुनना है.. प्लीज तरुण.. क्या तुम मुझे वो भेज सकते हो?"

तरुण: "भेज तो नहीं सकता पर आपको सुना जरूर सकता हूँ.. उसके अलावा भी मेरे पास एक रेकॉर्डिग है जिससे साबित होता था की तुम्हारे पापा कितने बड़े अईयाश थे.. और ढेर सारी गंदी आदतों के शिकार भी थे"

सुनकर कविता के आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा... एक और टेप???

तरुण: "हाँ दीदी.. आज तो मैं आपको सब कुछ साफ साफ बता देना चाहता हूँ.. जिससे कम से कम आप तो मुझे गलत न समझो.. क्यों की यही कारण जानने के लिए कल रात फाल्गुनी का फोन आया था.. फिर मदन भैया ने फोन किया था.. और हाँ.. आपका फोन आया उससे थोड़ी देर पहले ही वैशाली का भी फोन आया था.. मैं कितने लोगों को सफाई देता रहूँ?? उससे अच्छा तो यही होगा की मैं आपको सब कुछ सच सच बता दूँ.. ताकि आप बाकी सब लोगों को बता सकें.. मौसम के लिए मेरे दिल में बहोत हमदर्दी है.. उसे कहना की वो मुझे माफ कर दे.. मैं अपने माँ-बाप की इच्छा के विरुद्ध नहीं जा सका.. मैं अब ये फोन कट कर रहा हूँ.. क्यों की वो वोइस रेकॉर्डिंग ईसी फोन में है.. मैं आपको लेंडलाइन से फोन करता हूँ और फिर वो दोनों रेकॉर्डिंग सुनाता हूँ.. आप अकेले में सुनिएगा.. कुछ आपत्तिजनक शब्द और बातें भी होगी.. उसके लिए क्षमा चाहूँगा.. आप दोनों क्लिप सुन लीजिएगा.. सारे सवालों का जवाब मिल जाएगा"

जिस आत्मविश्वास के साथ तरुण बोल रहा था.. उससे साफ प्रतीत हो रहा था की तरुण के पास पुख्ता सबूत थे और वो शत-प्रतिशत सच बोल रहा था.. कविता के चेहरा सफेद पड़ गया.. पापा.. जो मौसम की शादी के लिए इतने उत्साहित थे.. उनकी गलत हरकतों की वजह से आज मौसम की ज़िंदगी तबाह हो गई... तरुण जैसा होनहार लड़का गंवाना पड़ा.. पापा.. पापा... ये आपने क्या किया?? और क्यों किया???

तभी लेंडलाइन से तरुण का फोन आया..

तरुण: "दीदी, अब मैं मोबाइल पर वो क्लिप प्ले कर रहा हूँ.. आप ध्यान से सुनिए"

रेकॉर्डिंग:

तरुण: "सॉरी पापा.. पर मेरे घर वाले अब इस सगाई को तोड़ना चाहते है.. होल्ड कीजिए.. मैं मेरे पापा को फोन देता हूँ"

सुबोधकांत: "भाई साहब.. आपको मौसम से कोई शिकायत है क्या?? ये मैं क्या सुन रहा हूँ?"

तरुण के पापा: "शिकायत मौसम से नहीं.. आप से है सुबोधकांत.. आपकी हरकतें ही ऐसी है की मैं तो क्या कोई भी आपकी बेटी का हाथ न पकड़ें"

सुबोधकांत: "मुंह संभाल कर बात कीजिए... "

तरुण के पापा: "संभालने की जरूरत मुझे नहीं.. आपको थी.. सुबोधकांत.. इस उम्र में अपनी बेटी की उम्र की लड़की के साथ होटल में रंगरेलियाँ मनाते हुए शर्म नहीं आती??"

सुबोधकांत: "आपको कुछ गलतफहमी हुई है समधी जी.. !!"

तरुण के पापा: "पुलिसस्टेशन में जाकर सारी जानकारी लेकर ही बोल रहा हूँ.. यहाँ के अखबार में भी आपके कारनामे छपे थे.. आपके नाम के साथ.. होटल का नाम.. लड़की का नाम.. कमरे का रूम नंबर.. सब मालूम है.. बताऊँ आपको?? राँडों के साथ इस उम्र में मुंह काला करते हुए आपको शर्म नहीं आई??"

तरुण के पापा की बात सुनकर कविता स्तब्ध हो गई.. वो अब अपने पापा के जवाब का इंतज़ार कर रही थी

सुबोधकांत: "देखिए भाई साहब.. अब जब आपको सबकुछ पता चल ही गया तो फिर मेरे आगे बात करने का कोई मतलब नहीं है.. मैं अपना गुनाह कुबूल करता हूँ.. आपको सगाई तोड़ने से मैं नहीं रोकूँगा..पर मेरी आप से एक विनती है.. !! महरबानी करके प्लीज आप ये बात मेरे परिवार वालों को मत बताना.. आपकी नज़रों से तो मैं गिर ही चुका हूँ.. अपनी बेटियों की नजर में, मैं नहीं गिरना चाहता.. मेरी भोली पत्नी तो ये बर्दाश्त ही नहीं कर पाएगी.. वैसे भी वो दिल की मरीज है और अगर उसे कुछ हो गया तो हमारा पूरा परिवार बिखर जाएगा"

तरुण के पापा: "मुझे कोई शौक नहीं है आपके परिवार वालों के ये सब बताने का.. आप का प्रॉब्लेम है और आप ही जानों.. दोबारा यहाँ फोन मत करना और आपके परिवार के सदस्यों को भी कहना की सफाई मांगने के लिए फोन न करे.. मैं आपके बेटी से हुई सगाई तोड़ रहा हूँ.. और आप को भी सलाह देता हूँ... की सुधर जाइए... वरना बर्बाद हो जाएंगे.. अपनी बेटी को ब्याहने की उम्र में यह सब शोभा नहीं देता.. !!"

फोन कट हो गया..

तरुण: "सुना आपने दीदी??"

कविता सुबक सुबककर रो रही थी..

तरुण: "दीदी प्लीज आप रोइए मत.. मौसम को मुझसे भी अच्छा लड़का मिल जाएगा.. अरे, आप कहेंगे तो मैं ढूँढूँगा मौसम के लिए लड़का.."

तरुण की सज्जनता देखकर कविता को बहोत अच्छा लगा.. रोते रोते उसने कहा :तरुण, पापा की नादानी सजा आज मौसम को भुगतनी पड़ रही है"

तरुण: "हाँ दीदी.. मुझे भी मौसम को लेकर बड़ा दुख हो रहा है पर अब मैं कुछ कर नहीं सकता"

थोड़ी देर रोने के बाद कविता शांत हो गई.. इसलिए तरुण ने कहा "आप दूसरी क्लिप सुनना चाहेगी, दीदी?"

अपनी नाक पोंछते हुए कविता ने कहा "हाँ.. सुना.. !!"

तरुण ने क्लिप प्ले कर दी.. सुबोधकांत और किसी अनजान शख्स के बीच बात चल रही थी..

शख्स: "हैलो.. !!"

सुबोधकांत: "हाँ बोलीये.. "

शख्स: "जी मैं हेमंत बोल रहा हूँ.. होटल का मेनेजर.. पहचाना.. ??"

सुबोधकांत: "अरे तुम्हें तो मैं कैसे भूल सकता हूँ?? तेरी वजह से ही तो मेरी ज़िंदगी आज रंगीन है.. एक मिनट लाइन पर रहना हेमंत.. !!"

हेमंत: "ठीक है सर.. !"

सुबोधकांत: "अरे यार.. मेरे आसपास लोग खड़े थे इसलिए मुझे बाहर आना पड़ा"

हेमंत: "सर, मैंने याद दिलाने के लिए फोन किया की आज की पार्टी तय है.. आप जॉइन कर रहे है ना.. ??"

सुबोधकांत: "अरे यार थोड़ा पहले से बताना चाहिए ना.. तू अभी बता रहा है.. अब मैं पार्टनर कैसे अरेंज करू?"

हेमंत: "क्यों आपके साथ वो जवान लड़की आती है ना.. जिसे आप अक्सर होटल पर लेकर आते है.. !!"

सुबोधकांत: "अरे वो लड़की फाल्गुनी तो मेरी पर्सनल माल है यार.. उसे मैं ऐसी ग्रुप सेक्स पार्टी में नहीं लेकर आ सकता.. और वैसे भी वो अभी कच्ची कली है.. वो ये सब देखेगी तो डर जाएगी.. ऐसी पार्टी के लिए तो कोई बाजारू माल का बंदोबस्त करना पड़ेगा"

हेमंत: "तो अब क्या करेंगे सर?"

सुबोधकांत: "तू ही बता.. हर बार तू ही कुछ सेटिंग करता है"

हेमंत: "हाँ सर.. लेकिन ऐसी पार्टी के लिए लड़कियां बहोत ज्यादा पैसा चार्ज करती है.. "

सुबोधकांत: "जो भी हो तू ही कुछ जुगाड़ कर.. अभी मैं लड़की ढूँढने कहाँ जाऊँ?? होटल पहुँचने में भी मुझे तीन घंटों का समय लगेगा.. "

हेमंत: "सर, दो औरतें यहाँ आई है जो पार्टी जॉइन करना चाहती है.. लेकिन उनके पार्टनर नहीं है.. मैंने उनको अभी रोक कर रखा है.. सोचा अप से बात कर लूँ.. फिर उन्हें जवाब दूँ.. आप कहें तो एक आप के लिए रख लूँ?? वैसे उम्र थोड़ी सी ज्यादा है"

सुबोधकांत: "कितनी उम्र होगी??"

हेमंत: "४०-४५ के करीब.. पर दोनों गजब का माल है सर"

सुबोधकांत: "चलेगा.. पैसा कितना लेगी?"

हेमंत: "पच्चीस हजार.. !!"

सुबोधकांत: "ओके.. वैसे भी पार्टी में कौन किसके पास जाएगा क्या पता.. !! कोई फ़र्क नहीं पड़ता.. कर दे फिक्स उसे.. !!"

हेमंत: "ठीक है सर.. दूसरी वाली के साथ मैं पार्टनर बन जाऊंगा"

सुबोधकांत: "ठीक है.. अब रखता हूँ... मुझे अभी निकलना होगा.. तीन घंटे का रास्ता है"

हेमंत: "ओके सर.. "

क्लिप खतम हो गई.. कविता को खड़े खड़े चक्कर आने लगे...

तरुण: "हैलो... हैलो दीदी.. आप लाइन पर है??" कविता की ओर से कोई रिस्पॉन्स न मिलने पर तरुण ने कहा

कविता: "सुन रही हूँ तरुण.. पर अब बोलने जैसा कुछ रहा ही नहीं.. मैं तुमसे बाद मैं बात करती हूँ"

तरुण: "ओके दीदी.. आपका खयाल रखिएगा.. और मौसम का भी... बाय"

फोन खतम होते ही कविता सोफे पर धम्म से बैठ गई.. पापा का आज नया ही रूप सामने आया था.. सारे सबूत सामने होने के बावजूद उसका मन इससे मनने को तैयार ही नहीं था.. पापा की इस रास-लीला का फल मौसम को भुगतना पड़ा था..

भयानक गुस्से के साथ कविता ने फाल्गुनी को फोन लगाया

फाल्गुनी कॉलेज में थी और लेक्चर चल रहा था इसलिए उसने फोन काट दिया.. बाहर आकर उसने कविता को फोन लगाया

फाल्गुनी: "हैलो दीदी.. मैं लेक्चर में थी इसलिए फोन काट दिया.. बताइए क्या काम था??"

कविता: "कॉलेज से निकलकर तू सीधे मेरे घर आना.. मुझे अकेले में तुझ से कुछ बातें करनी है.. और हाँ.. मौसम को इस बारे में कुछ भी मत बताना.. "

इतना कहकर कविता ने फोन काट दिया..

फाल्गुनी सोच में पड़ गई.. दीदी को आखिर ऐसा क्या काम होगा?? और मौसम को बताने से क्यों मना किया होगा?

कॉलेज के बाकी लेक्चर छोड़कर फाल्गुनी सीधे कविता के घर पहुँच गई..

ड्रॉइंग रूम के अंदर आते ही सोफ़े पर बैठकर फाल्गुनी ने पूछा "क्या काम था दीदी?"

कविता के दिमाग में विचारों का ज्वालामुखी सा फट रहा था.. उसने तय तो किया था की साफ साफ शब्दों में फाल्गुनी को बता देगी की आज के बाद उसका मम्मी के घर आना जाना बंद.. पापा के साथ उसके नाजायज संबंधों के कारण मौसम की सगाई टूटी थी.. इसलिए अब से वो मौसम से मिलने कभी नहीं आएगी..

पर अचानक उसके विचार बदल गए.. दिमाग में कुछ सुझा और उसने पूरी बात ही बदल दी

कविता: "काम तो कुछ खास नहीं था.. तुझे मिलें हुए बहोत दिन हो गए थे.. पापा के जाने के बाद तो तूने घर आना ही बंद कर दिया" ताना मारते हुए कविता ने कहा

सुनकर एक पल के लिए फाल्गुनी सकपका गई.. फिर अपने आप को संभालते हुए उसने कहा

"ऐसा कुछ नहीं है दीदी.. मैं और मौसम तो अक्सर मिलते रहते है"

कविता: "पता नहीं क्यों.. पर आज पापा की बहोत याद आ रही है.. कितने अच्छे थे मेरे पापा.. !! तुझे भी अपनी बेटी मानते थे"

अब फाल्गुनी का दिमाग जागृत हो गया.. जरूर दीदी को कुछ शक हुआ है.. वरना वो ऐसे लहजे में कभी बात नहीं करती थी..

सिर्फ दो ही प्रहारों में फाल्गुनी का मुंह लटक गया.. और उसका अब कविता के सामने ज्यादा देर बैठ पाना मुश्किल था..

फाल्गुनी: "दीदी, मुझे घर जाना पड़ेगा.. रास्ते में ही मम्मी का फोन आया था.. उनका बीपी बढ़ गया है.. मैं घर जाने ही वाली थी की तब आपका फोन आ गया इसलिए यहाँ आ गई.. अगर कुछ अर्जेंट न हो तो मैं निकलूँ??"

कविता जवाब देती उससे पहले फाल्गुनी अपना पर्स उठाकर भाग गई

उसे जाता हुआ खिड़की से देखते हुए कविता मन ही मन हंसने लगी.. कविता ने देखा की फाल्गुनी चलते चलते मौसम के घर के पास गई.. मौसम बाहर ही खड़ी थी.. दोनों बातें करते हुए आगे चल दीये

मौसम: "क्या काम था दीदी को??"

फाल्गुनी: "कुछ खास नहीं.. ऐसे ही मिलने बुलाया था.. !!"

मौसम: "सच सच बता फाल्गुनी.. मुझे बेवकूफ मत बना"

फाल्गुनी: "यार मौसम, मुझे लगता है की अंकल और मेरे संबंधों के बारे में दीदी को शक हो गया है.. आज जिस टोन में उन्हों ने मुझसे बात की.. मुझे पक्का यकीन है यार"

मौसम सोच में पड़ गई.. दीदी को इसके बारे में कैसे पता चला होगा??

मौसम: "हो सकता है वैशाली ने पिंटू को बताया हो.. और पिंटू ने दीदी को बता दिया हो.. !!"

फाल्गुनी: "मुझे क्या पता यार.. "

मौसम: "चल छोड़ वो सब.. जो होना था वो हो गया.. जब पापा ही नहीं रहे तो उन सब पुरानी बातों से डरने का कोई मतलब नहीं है.. भूल जा सब... कल शाम को मैं अपनी ऑफिस गई थी.. जीजू से मिलने.. कितने महीनों के बाद गई वहाँ यार.. !!"

फाल्गुनी: "अंकल के जाने के बाद.. मैं उस रास्ते से गुजरी भी नहीं हूँ"

मौसम: "वहाँ ऑफिस में एक लड़का काम करता है.. विशाल नाम है उसका.. बहोत ही हेंडसम है यार"

फाल्गुनी: "अरे वाह.. बोल दे जीजू को.. की तेरी बात चलाएं उसके साथ"

मौसम: "वक्त आने दे.. वो भी करूंगी.. मैं तुझे ये बताने वाली थी की जीजू ने ३१ दिसंबर को अपने घर पर ही मस्त पार्टी करने का प्लान बनाया है.. वैशाली और पिंटू को भी बुलाने वाले है.. और दीदी से छुपकर रखा है.. उन्हें सरप्राइज़ देना का विचार है"

यह सुनकर फाल्गुनी की उदासी थोड़ी कम हुई..

फाल्गुनी: "अरे वाह.. तब तो बड़ा मज़ा आएगा, मौसम.. !! काफी टाइम हो गया.. किसी पार्टी में गए हुए.. !!"

मौसम: "और ये सब मेरी बदौलत हुआ है.. मैंने ऑफिस जाकर जीजू को झाड ही दिया तब जाकर वो तैयार हुए.. बाकी उन्हें बिजनेस से फुरसत ही कहाँ मिलती है.. !! जीजू ने प्लान बनाया और फिर विशाल और फोरम को भी न्योता दे दिया पार्टी में आने का.. मज़ा आएगा फ्लर्ट करने का.. और हाँ फाल्गुनी. पहले से बोल देती हूँ.. तू विशाल से दूर ही रहना"

फाल्गुनी: "अरे बाबा.. तू कहेगी तो मैं उसे पार्टी से पहले ही राखी बांध दूँगी... पर ये फोरम कौन है?"

मौसम: "जीजू की ऑफिस की रीसेप्शनिस्ट.. जैसे अंकल ने तुझे जुगाड़कर रखा हुआ था वैसे जीजू ने इस फोरम को रखा होगा.. आज कल तो सभी गाड़ियों में स्पेर-व्हील की सुविधा होती ही है ना.. हा हा हा हा.. !"

फाल्गुनी: "तो फोरम की जगह तुझे रीसेप्शनिस्ट बन जाना चाहिए था.. जीजू का अनुभव तो तू पहले ही कर चुकी है.. !!"

मौसम: "हम्म विचार तो अच्छा है.. ये कॉलेज का आखिरी साल खत्म हो जाने दे.. अब और पढ़ाई नहीं करनी है.. बस पापा की ऑफिस में आराम से बैठना है"

फाल्गुनी: "बात तो सही है.. तू वहाँ बैठकर ऑफिस का ध्यान भी रखेगी और जीजू का भी.. !!"

मौसम: "और साथ में विशाल का भी.. !!"

फाल्गुनी: "देखना पड़ेगा इस विशाल को.. उसका नाम बोलते बोलते तेरे गाल लाल हो जा रहे है"


दोनों बातें करते करते घूम कर वापिस आ गई.. मौसम अपने घर चली गई और फाल्गुनी अपने घर..
Dear
वैसे तो ऐसी stories में emotions की जगह नहीं होती
लेकिन फिर भी अगर हो सके तो मौसम और तरुण का patchup करवाओ यार ..
उन दोनों की relationship continue कराओ ...
धीरे धीरे तरुण को भी कविता की तरफ attraction बढ़ा देना ओर तरुण पीयूष कविता मौसम का भी घुल मिलाप करवा कर उन्हें भी आपस मे group में ले आओ ( एक बढ़िया सा wife swap का foursome🥰

ओर तरुण को अपने जाल में फंसाने के लिए शीला डार्लिंग है ही
तरुण की tarining शीला से जरूर करवाना
 
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उस रात डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाना खाते हुए वैशाली ने मदन से पूछा.. "पापा, इस क्रिसमस के वेकेशन मे क्या मैं अपने दोस्तों के साथ घूमने जाऊँ?? ३१ दिसंबर मनाने के लिए वह सब किसी हिल-स्टेशन पर जाने का सोच रहे है.. !!"

मदन: "तू जाना चाहती है तो जरूर जा.. पर मेरा मानना है की न्यू-यर की पार्टी किसी फ्रेंड के घर पर ही इन्जॉय करो तो बेहतर रहेगा.. बेटा, तेरे साथ एक दुर्घटना तो घट चुकी है.. कुछ उन्नीस-बीस हो गया तो तेरी बाकी की ज़िंदगी बर्बाद हो जाएगी.. और ३१ दिसंबर को बाहर क्या क्या होता है ये तू भी जानती है और मैं भी अच्छी तरह जानता हूँ.. अच्छे घर की लड़कियों के साथ हेवानियत भरे जो किस्से घटते है.. वो अक्सर अखबार में पढ़ता हूँ.. आश्चर्य की बात तो ये है की जिन लड़कों पर वो भरोसा कर निकलती है.. वहीं लड़के उनके साथ यह दुर्व्यवहार करते है.. और इन्जॉय करने के लिए बाहर ही जाना जरूरी थोड़े ही है.. !! किसी सलामत जगह भी मजे कीये जा सकते है.. अनजानी दूर जगह पर मिलती स्वतंत्रता, कब स्वेच्छाचार का स्वरूप धारण कर लेती है, कुछ कह नहीं सकते"

वैशाली अपने पापा की हिदायतों को बड़े ही ध्यान से सुन रही थी.. उसने तुरंत जवाब नहीं दिया और चुपचाप खाती रही.. खाना खतम करने के बाद हाथ ढोते हुए उसने मदन से कहा "आप ठीक कह रहे हो पापा.. वैसे अभी कुछ तय नहीं हुआ है.. दो-तीन दिनों में हम सब सोच के फाइनल करेंगे.. "

मदन ने स्माइल देकर बात को वहीं विराम दिया.. वैशाली बाहर चली गई और तभी शीला बाहर आई और बोली "मैं भी अपनी सहेली के घर इन्जॉय करने वाली हूँ.. हम सब महिलायें साथ मिलकर न्यू-यर की पार्टी मनाने वाले है"

मदन: "ओहोहों.. क्या बात है.. फिर मैं भी क्यों पीछे रहूँ?? मैं भी राजेश के साथ मिलकर कोई प्रोग्राम बना लेता हूँ.. !!"

शीला ने बेफिक्री से कहा "तेरी मर्जी.. तुझे जो करना हो वो कर.. बस इकत्तीस तारीख को मुझे डिस्टर्ब मत करना.. !!"

मदन: "हम्म.. लगता है कुछ बड़ा प्लान किया है आप लोगों ने.. किस तरह की पार्टी है?? बता तो सही.. !!"

शीला: "तू समझ रहा है ऐसी कोई फ्री-सेक्स पार्टी नहीं है.. जिसके लिए मुझे घर पर झूठ बोलकर.. मीटिंग का बहाना बनाकर जाना पड़े.. !!"

मदन की बोलती बंद हो गई.. शीला नटखट मुस्कान के साथ, मदन को ध्वस्त कर, किचन में बर्तन रखने चली गई..

मदन ने शीला के सामने ही राजेश को फोन किया.. और ३१ दिसंबर के प्लान के बारे में पूछा.. पर राजेश ने बताया की उसका तो पहले से ही अन्य दोस्तों के साथ पार्टी का प्लान बन चुका था.. और वो फ्री नहीं था.. !!

मदन ने और एक-दो दोस्तों को फोन किया.. पर सब का कुछ न कुछ प्लान बन चुका था.. निराश होकर मदन अपने बिस्तर पर लेट गया और सोचता रहा.. भेनचोद, ३१ दिसंबर को मैं अकेला बैठकर क्या मुठठ मारूँगा.. ?? पूरी दुनिया मजे कर रही होगी और मैं घर पर बैठे बैठे टीवी पर अनुपमा देखूँगा क्या.. !!

रात को मदन और वैशाली सोफ़े पर बैठकर टीवी देख रहे थे.. घर का सारा काम निपटाकर शीला भी टीवी देखने बैठ गई.. तीनों साथ बैठकर तारक मेहता का उल्टा चश्मा देख रहे थे.. ब्रेक के दौरान शीला ने वैशाली को मौसम और तरुण की सगाई टूटने के कारण के बारे मैं पूछा.. यह सोचकर की शायद वैशाली को कुछ पता हो.. पर वैशाली इस बारे में कुछ भी नहीं जानती थी.. बल्कि उसने तो यह भी कहा की वह खुद असली कारण जानने के लिए उत्सुक थी..

वैशाली की ओर से कुछ मदद की आशा न दिखाई दी तो शीला ने मदन की तरफ रुख किया "मदन, क्यों न तू ही फोन लगाकर तरुण से इसका कारण पूछ लेता.. !! उस घटना को भी काफी समय हो गया है.. हो सकता है की वो थोड़ा सा नरम हुआ हो और वो तुझे बता दे.. !!"

वैशाली सुन न सके उस तरह मदन ने शीला के कान मे कहा "वो आदमी है.. कोई लंड नहीं.. जो नरम हो जाए"

सुनकर शीला हंस पड़ी.. मदन की जांघ पर चिमटी काटते हुए उसने अपने मोबाइल में सेव तरुण का नंबर मदन को दिया..

मदन ने तरुण को फोन लगाया.. फोन उठाते ही मदन ने अपनी पहचान दी.. तरुण ने उसे तुरंत पहचान लिया..

मदन के एक बार पूछने पर ही तरुण ने उसे सारी बात बता दी.. और फोन रख दिया..

वैशाली ने उत्सुकतावश पूछा "क्या हुआ पापा? उसने कुछ बताया??"

एक भारी सांस छोड़कर मदन ने कहा "नहीं बेटा.. वो कुछ भी कहने के लिए तैयार नहीं है"

लेकिन शीला समझ गई की मदन झूठ बोल रहा था.. मदन के चेहरे के हाव भाव से यह स्पष्ट था की तरुण ने उसे हकीकत बता दी थी

बात जानने के लिए शीला को चटपटी होने लगी.. रात को बेडरूम मे जाते ही उसने मदन से पूछा "तूने वैशाली से झूठ क्यों बोला ??"

मदन: "अब उसे कैसे बताता की सुबोधकांत सेक्स-रैकिट की रैड में रंगेहाथों पकड़ा गया था.. इस बात का तरुण के परिवार को पता लग गया था.. इसलिए उन्हों ने रिश्ता तोड़ दिया.. और यार, तरुण के पास तो ये बात भी आई है की सुबोधकांत और फाल्गुनी के बीच नाजायज संबंध थे.. !!"

मम्मी और पापा के बेडरूम के दरवाजे पर कान लगाकर सुन रही वैशाली स्तब्ध हो गई.. !!! वैसे उसे तभी अंदाज लग चुका था की तरुण ने पापा को सब बता दिया था.. इसीलिए तो उनका फोन इतना लंबा चला था.. किसी कारणवश उन्हों ने वैशाली को सच नहीं बताया था पर वैशाली को यकीन था की बेडरूम में जाते ही मम्मी और पापा के बीच इस बारे में जरूर बात होगी.. !!!

वैशाली का दिमाग चक्कर खाने लगा.. पापा को तो चलो तरुण ने बताया.. पर तरुण को फाल्गुनी और सुबोधकांत के बारे में किसने बताया होगा?? वो सोच रही थी.. क्या फाल्गुनी को इस बारे में मुझे आगाह करना चाहिए??

रात को अपने कमरे से वैशाली ने पिंटू को फोन पर सारी बात बता दी.. वो तो तभी कविता को भी सारी बात बताना चाहती थी.. पर यह सोचकर नहीं फोन किया क्यों की उसे मालूम था की वो इस वक्त पीयूष के साथ होगी.. कविता के साथ सुबह बात करेगी ये सोचकर वैशाली सोने की कोशिश करने लगी.. पर मम्मी-पापा की बातों ने उसे सोच में डाल दिया था.. बाप के दुष्कर्मों की सजा संतानों को भुगतनी पड़ सकती है.. वैशाली के केस में उसके पति के कुकर्मों की सजा भुगतना लिखा था.. बिना किसी गुनाह के वैशाली को इस कठिन परिस्थिति से गुजरना पड़ रहा था.. ज़माना कितना भी आगे क्यों न बढ़ जाए.. कितनी भी तरक्की क्यों न कर ले.. लोग जवान लड़कियों के प्रति कभी अपनी संकुचित विचारधारा नहीं छोड़ेंगे.. किसी लड़की की सगाई टूटी हो.. या उसका तलाक हुआ हो.. उसका हर कोई मूल्यांकन करने लगता है..

वैशाली का मन किया की वो अभी के अभी तरुण को फोन लगाकर झाड दे.. !! की उसने बाप के गुनाहों की सजा उनकी बेटी की क्यों दी? पर तब उसे एहसास हुआ.. की बात सिर्फ मौसम से शादी की नहीं थी.. हमारे समाज में शादी सिर्फ दो इंसानों का मिलाप नहीं होता.. दो परिवारों का.. दो समाजों का मिलन होता है.. जाहीर सी बात थी की सुबोधकांत के बारे में यह सब जानकर तरुण के परिवार वालों को या रिश्ता मंजूर न हो.. सोचते सोचते वैशाली सो गई

सुबह ऑफिस जाते हुए रास्ते में वैशाली ने कविता और बाद में मौसम को फोन करके तरुण के सगाई तोड़ने का असली कारण बता दिया.. हालांकि उसने सिर्फ सुबोधकांत की रंगरेलियों के बारे में ही बताया और फाल्गुनी वाली बात नहीं बताई

मौसम तो अपने बाप के रंगीन किस्सों के बारे में फाल्गुनी से जान ही चुकी थी.. उसे तो पापा और फाल्गुनी के संबंधों के बारे में भी पता था इसलिए उसे कोई खास ताज्जुब नहीं हुआ.. पर कविता को जबरदस्त सदमा पहुंचा.. !!! क्या मेरे पापा इतने गिरे हुए थे?? वैशाली ने तो पूरी बात खतम कर फोन रख दिया था

पर कविता से रहा नहीं गया.. उसने सीधा तरुण को फोन लगाया.. सुबह सुबह तरुण अभी बस ऑफिस पहुंचा ही था की कविता का फोन आया.. सगाई तोड़ने के बाद तरुण ने मौसम के परिवार के सारे नंबर डिलीट कर दीये थे

तरुण: "हैलो.. कौन बात कर रहा है"

कविता: "गुड मॉर्निंग तरुण.. मैं कविता बोल रही हूँ.. मौसम की बड़ी बहन"

तारुण: "ओह हाय दीदी.. कैसी है आप??"

कविता: "बस ठीक ही हूँ.. तुम कैसे हो?"

तरुण: "ठीक न भी हो तो भी "ठीक हूँ" कहने का तो हमारा जैसे रिवाज ही है.. हैं ना दीदी..!!

कविता: "तरुण अगर आसपास कोई न हो तो मैं तुमसे एक बात पूछना चाहती हूँ.. क्या पूछ सकती हूँ?"

तरुण: "हाँ पूछिए ना दीदी.. वैसे ऑफिस में हूँ पर अकेला हूँ इसलिए कोई दिक्कत नहीं है"

कविता: "तरुण, पापा के चारित्र को लेकर जिन अफवाहों के कारण तुमने सगाई तोड़ दी.. उसका मुझे पता चला.. तुमने जो भी निर्णय लिया वो अब पुरानी बात हो चुकी है.. पर मुझे ये समझ मे नहीं आ रहा की इतने पढे लिखे और समझदार होने के बावजूद तुमने ऐसी वाहियात अफवाहों को मानकर मौसम जैसी निर्दोष लड़की के साथ इतना बड़ा अन्याय कर दिया.. !!!"

तरुण: "दीदी, मैं पागल नहीं हूँ की सिर्फ कही-सुनी बातों पर विश्वास कर इतना बड़ा कदम उठाता.. मैं खुद मौसम को बेहद पसंद करता हूँ.. और यह निर्णय मेरे लिए भी उतना ही कठिन था जितना मौसम के लिए.. !!"

कविता: "तरुण, तुम्हारी सगाई तो टूट चुकी है.. इसलिए तुझे यह कहना चाहिए की "मौसम को पसंद करता था "

तरुण: "दीदी, मैं झूठ नहीं बोलूँगा.. मुझे यह फैसला अपने परिवार के दबाव में आकर लेना पड़ा पर उसका मतलब यह नहीं की मुझे मौसम पसंद नहीं है.. कॉलेज के वक्त जब सारे लड़के-लड़कियां जवानी के जोश में मजे कर रहे थे.. तब मैं किताब में मुंह छुपाकर पढ़ रहा था.. अगर वैसा न किया होता तो आज सी.ए. नहीं बन पाता.. पढ़ाई खत्म करने के बाद, मौसम वो पहली लड़की थी जो मेरी ज़िंदगी में आई और मौसम में ऐसा एक नुक्स नहीं है जिस में बता सकूँ.. किसी नसीबवाले को ही मौसम जैसी लड़की मिलेगी.. और मेरे भाग्य में मौसम नहीं है, उसका मुझे बेहद अफसोस है"

कविता समझ गई की सगाई तोड़कर तरुण भी काफी दुखी था.. और वो अब तक मौसम को भूल नहीं सका है

कविता: "फिर भी.. मुझे लगता है तुमने मेरे पापा के बारे में जो भी बातें सुनी.. उसकी चर्चा तुम्हें एक बार मौसम से करनी चाहिए थी"

तरुण: "मुझे वह बात करना इसलिए जरूरी नहीं लगा क्यों की मुझे यकीन था की मौसम को पहले से ही उस बात का पता था"

चोंक गई कविता... !!! मौसम को मालूम था.. !!!! कैसे??

कविता: "मैं नहीं मानती ये बात.. क्योंकी मौसम खुद अभी इस कारण को तलाश रही है.. यही जानने के लिए उसने तुम्हें कितनी बार फोन कीये है ये तो तुम्हें पता ही होगा"

तरुण: "हाँ दीदी.. बहोत बार फोन आए.. पर मैंने उठाए नहीं.. उठाकर क्या कहता?? की तेरे पापा एक रंगीन मिजाज और अईयाश किस्म के आदमी है.. ये कहता???"

अपने स्वर्गीय पापा के बारे में ऐसी बात सुनकर कविता का खून घौल उठा..

तरुण: " दीदी, आपके पापा के बारे में खराब बोलकर मैं आपको दुख देना नहीं चाहता.. पर मुझे लगता है की आपको भी पूरी बात मालूम होनी ही चाहिए"

कविता: "देख तरुण.. तुझे पता तो लग गया होगा की आधी बात तो मैं जान ही गई हूँ.. तू मुझे दिल खोलकर साफ साफ सब बता दे.. जिससे की हम आगे मौसम के जीवन के बारे में कुछ भी फैसला लेने से पहले... इस पहलू को ध्यान में रख सकें"

तरुण खामोश हो गई

कविता: "बता ना तरुण?? प्लीज ऐसे चुप मत हो जा"

एक लंबी सांस लेकर तरुण ने कहा "दीदी, आप के पापा और फाल्गुनी के बीच अवैद्य संबंध थे.. जिस्मानी संबंध.. !! उतना ही नहीं.. आपके पापा एक होटल में चल रही ग्रुप सेक्स पार्टी में पड़ी रैड के दौरान पुलिस द्वारा पकड़े गए थे.. और ये सब मैं ऐसे ही नहीं कह रहा.. अखबार में उनके नाम के साथ पूरा आर्टिकल छपा था.. शायद आपने पढ़ा न हो.. पूरी रात लॉक-अप में बंद थे आपके पापा.. बड़े चर्चे हुए थे उस घटना के.. और स्थानिक अखबारों में तो दो दिन तक सब छपता रहा था.. ये तो अच्छा हुआ की यह घटना सिर्फ हमारे शहर के लोकल अखबार में ही छपी थी.. वरना आपके शहर में लोगों को पता चलता तो आप सबका जीना दुसवार हो जाता.. मेरे रिश्तेदारों ने यह खबर पढ़ी.. आपके पापा का नाम पढ़ा.. अरे, मेरे एक चाचा तो पुलिस स्टेशन जाकर तसल्ली भी कर चुके है.. अब आप ही बताइए..कौन से शरीफ माँ-बाप, अपने बेटे का रिश्ता ऐसे इंसान की बेटी के साथ करना चाहेंगे?"

कविता ने परेशान होकर बेतुकी बात कह दी "तुम आरोप पर आरोप लगा रहे हो.. पर तुम्हारे पास इस बात का कोई सबूत भी है??"

तरुण: "वो आर्टिकल जिस अखबार में छपा था उसका कटिंग अभी भी मैंने संभाल कर रखा हुआ है.. और तो और.. मेरे पापा के साथ तुम्हारे पापा की फोन पर जो बातें हुई उसका रेकॉर्डिंग भी है मेरे पास.. आप सुनना चाहेगी??"

कविता: "हाँ, मुझे सुनना है.. प्लीज तरुण.. क्या तुम मुझे वो भेज सकते हो?"

तरुण: "भेज तो नहीं सकता पर आपको सुना जरूर सकता हूँ.. उसके अलावा भी मेरे पास एक रेकॉर्डिग है जिससे साबित होता था की तुम्हारे पापा कितने बड़े अईयाश थे.. और ढेर सारी गंदी आदतों के शिकार भी थे"

सुनकर कविता के आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा... एक और टेप???

तरुण: "हाँ दीदी.. आज तो मैं आपको सब कुछ साफ साफ बता देना चाहता हूँ.. जिससे कम से कम आप तो मुझे गलत न समझो.. क्यों की यही कारण जानने के लिए कल रात फाल्गुनी का फोन आया था.. फिर मदन भैया ने फोन किया था.. और हाँ.. आपका फोन आया उससे थोड़ी देर पहले ही वैशाली का भी फोन आया था.. मैं कितने लोगों को सफाई देता रहूँ?? उससे अच्छा तो यही होगा की मैं आपको सब कुछ सच सच बता दूँ.. ताकि आप बाकी सब लोगों को बता सकें.. मौसम के लिए मेरे दिल में बहोत हमदर्दी है.. उसे कहना की वो मुझे माफ कर दे.. मैं अपने माँ-बाप की इच्छा के विरुद्ध नहीं जा सका.. मैं अब ये फोन कट कर रहा हूँ.. क्यों की वो वोइस रेकॉर्डिंग ईसी फोन में है.. मैं आपको लेंडलाइन से फोन करता हूँ और फिर वो दोनों रेकॉर्डिंग सुनाता हूँ.. आप अकेले में सुनिएगा.. कुछ आपत्तिजनक शब्द और बातें भी होगी.. उसके लिए क्षमा चाहूँगा.. आप दोनों क्लिप सुन लीजिएगा.. सारे सवालों का जवाब मिल जाएगा"

जिस आत्मविश्वास के साथ तरुण बोल रहा था.. उससे साफ प्रतीत हो रहा था की तरुण के पास पुख्ता सबूत थे और वो शत-प्रतिशत सच बोल रहा था.. कविता के चेहरा सफेद पड़ गया.. पापा.. जो मौसम की शादी के लिए इतने उत्साहित थे.. उनकी गलत हरकतों की वजह से आज मौसम की ज़िंदगी तबाह हो गई... तरुण जैसा होनहार लड़का गंवाना पड़ा.. पापा.. पापा... ये आपने क्या किया?? और क्यों किया???

तभी लेंडलाइन से तरुण का फोन आया..

तरुण: "दीदी, अब मैं मोबाइल पर वो क्लिप प्ले कर रहा हूँ.. आप ध्यान से सुनिए"

रेकॉर्डिंग:

तरुण: "सॉरी पापा.. पर मेरे घर वाले अब इस सगाई को तोड़ना चाहते है.. होल्ड कीजिए.. मैं मेरे पापा को फोन देता हूँ"

सुबोधकांत: "भाई साहब.. आपको मौसम से कोई शिकायत है क्या?? ये मैं क्या सुन रहा हूँ?"

तरुण के पापा: "शिकायत मौसम से नहीं.. आप से है सुबोधकांत.. आपकी हरकतें ही ऐसी है की मैं तो क्या कोई भी आपकी बेटी का हाथ न पकड़ें"

सुबोधकांत: "मुंह संभाल कर बात कीजिए... "

तरुण के पापा: "संभालने की जरूरत मुझे नहीं.. आपको थी.. सुबोधकांत.. इस उम्र में अपनी बेटी की उम्र की लड़की के साथ होटल में रंगरेलियाँ मनाते हुए शर्म नहीं आती??"

सुबोधकांत: "आपको कुछ गलतफहमी हुई है समधी जी.. !!"

तरुण के पापा: "पुलिसस्टेशन में जाकर सारी जानकारी लेकर ही बोल रहा हूँ.. यहाँ के अखबार में भी आपके कारनामे छपे थे.. आपके नाम के साथ.. होटल का नाम.. लड़की का नाम.. कमरे का रूम नंबर.. सब मालूम है.. बताऊँ आपको?? राँडों के साथ इस उम्र में मुंह काला करते हुए आपको शर्म नहीं आई??"

तरुण के पापा की बात सुनकर कविता स्तब्ध हो गई.. वो अब अपने पापा के जवाब का इंतज़ार कर रही थी

सुबोधकांत: "देखिए भाई साहब.. अब जब आपको सबकुछ पता चल ही गया तो फिर मेरे आगे बात करने का कोई मतलब नहीं है.. मैं अपना गुनाह कुबूल करता हूँ.. आपको सगाई तोड़ने से मैं नहीं रोकूँगा..पर मेरी आप से एक विनती है.. !! महरबानी करके प्लीज आप ये बात मेरे परिवार वालों को मत बताना.. आपकी नज़रों से तो मैं गिर ही चुका हूँ.. अपनी बेटियों की नजर में, मैं नहीं गिरना चाहता.. मेरी भोली पत्नी तो ये बर्दाश्त ही नहीं कर पाएगी.. वैसे भी वो दिल की मरीज है और अगर उसे कुछ हो गया तो हमारा पूरा परिवार बिखर जाएगा"

तरुण के पापा: "मुझे कोई शौक नहीं है आपके परिवार वालों के ये सब बताने का.. आप का प्रॉब्लेम है और आप ही जानों.. दोबारा यहाँ फोन मत करना और आपके परिवार के सदस्यों को भी कहना की सफाई मांगने के लिए फोन न करे.. मैं आपके बेटी से हुई सगाई तोड़ रहा हूँ.. और आप को भी सलाह देता हूँ... की सुधर जाइए... वरना बर्बाद हो जाएंगे.. अपनी बेटी को ब्याहने की उम्र में यह सब शोभा नहीं देता.. !!"

फोन कट हो गया..

तरुण: "सुना आपने दीदी??"

कविता सुबक सुबककर रो रही थी..

तरुण: "दीदी प्लीज आप रोइए मत.. मौसम को मुझसे भी अच्छा लड़का मिल जाएगा.. अरे, आप कहेंगे तो मैं ढूँढूँगा मौसम के लिए लड़का.."

तरुण की सज्जनता देखकर कविता को बहोत अच्छा लगा.. रोते रोते उसने कहा :तरुण, पापा की नादानी सजा आज मौसम को भुगतनी पड़ रही है"

तरुण: "हाँ दीदी.. मुझे भी मौसम को लेकर बड़ा दुख हो रहा है पर अब मैं कुछ कर नहीं सकता"

थोड़ी देर रोने के बाद कविता शांत हो गई.. इसलिए तरुण ने कहा "आप दूसरी क्लिप सुनना चाहेगी, दीदी?"

अपनी नाक पोंछते हुए कविता ने कहा "हाँ.. सुना.. !!"

तरुण ने क्लिप प्ले कर दी.. सुबोधकांत और किसी अनजान शख्स के बीच बात चल रही थी..

शख्स: "हैलो.. !!"

सुबोधकांत: "हाँ बोलीये.. "

शख्स: "जी मैं हेमंत बोल रहा हूँ.. होटल का मेनेजर.. पहचाना.. ??"

सुबोधकांत: "अरे तुम्हें तो मैं कैसे भूल सकता हूँ?? तेरी वजह से ही तो मेरी ज़िंदगी आज रंगीन है.. एक मिनट लाइन पर रहना हेमंत.. !!"

हेमंत: "ठीक है सर.. !"

सुबोधकांत: "अरे यार.. मेरे आसपास लोग खड़े थे इसलिए मुझे बाहर आना पड़ा"

हेमंत: "सर, मैंने याद दिलाने के लिए फोन किया की आज की पार्टी तय है.. आप जॉइन कर रहे है ना.. ??"

सुबोधकांत: "अरे यार थोड़ा पहले से बताना चाहिए ना.. तू अभी बता रहा है.. अब मैं पार्टनर कैसे अरेंज करू?"

हेमंत: "क्यों आपके साथ वो जवान लड़की आती है ना.. जिसे आप अक्सर होटल पर लेकर आते है.. !!"

सुबोधकांत: "अरे वो लड़की फाल्गुनी तो मेरी पर्सनल माल है यार.. उसे मैं ऐसी ग्रुप सेक्स पार्टी में नहीं लेकर आ सकता.. और वैसे भी वो अभी कच्ची कली है.. वो ये सब देखेगी तो डर जाएगी.. ऐसी पार्टी के लिए तो कोई बाजारू माल का बंदोबस्त करना पड़ेगा"

हेमंत: "तो अब क्या करेंगे सर?"

सुबोधकांत: "तू ही बता.. हर बार तू ही कुछ सेटिंग करता है"

हेमंत: "हाँ सर.. लेकिन ऐसी पार्टी के लिए लड़कियां बहोत ज्यादा पैसा चार्ज करती है.. "

सुबोधकांत: "जो भी हो तू ही कुछ जुगाड़ कर.. अभी मैं लड़की ढूँढने कहाँ जाऊँ?? होटल पहुँचने में भी मुझे तीन घंटों का समय लगेगा.. "

हेमंत: "सर, दो औरतें यहाँ आई है जो पार्टी जॉइन करना चाहती है.. लेकिन उनके पार्टनर नहीं है.. मैंने उनको अभी रोक कर रखा है.. सोचा अप से बात कर लूँ.. फिर उन्हें जवाब दूँ.. आप कहें तो एक आप के लिए रख लूँ?? वैसे उम्र थोड़ी सी ज्यादा है"

सुबोधकांत: "कितनी उम्र होगी??"

हेमंत: "४०-४५ के करीब.. पर दोनों गजब का माल है सर"

सुबोधकांत: "चलेगा.. पैसा कितना लेगी?"

हेमंत: "पच्चीस हजार.. !!"

सुबोधकांत: "ओके.. वैसे भी पार्टी में कौन किसके पास जाएगा क्या पता.. !! कोई फ़र्क नहीं पड़ता.. कर दे फिक्स उसे.. !!"

हेमंत: "ठीक है सर.. दूसरी वाली के साथ मैं पार्टनर बन जाऊंगा"

सुबोधकांत: "ठीक है.. अब रखता हूँ... मुझे अभी निकलना होगा.. तीन घंटे का रास्ता है"

हेमंत: "ओके सर.. "

क्लिप खतम हो गई.. कविता को खड़े खड़े चक्कर आने लगे...

तरुण: "हैलो... हैलो दीदी.. आप लाइन पर है??" कविता की ओर से कोई रिस्पॉन्स न मिलने पर तरुण ने कहा

कविता: "सुन रही हूँ तरुण.. पर अब बोलने जैसा कुछ रहा ही नहीं.. मैं तुमसे बाद मैं बात करती हूँ"

तरुण: "ओके दीदी.. आपका खयाल रखिएगा.. और मौसम का भी... बाय"

फोन खतम होते ही कविता सोफे पर धम्म से बैठ गई.. पापा का आज नया ही रूप सामने आया था.. सारे सबूत सामने होने के बावजूद उसका मन इससे मनने को तैयार ही नहीं था.. पापा की इस रास-लीला का फल मौसम को भुगतना पड़ा था..

भयानक गुस्से के साथ कविता ने फाल्गुनी को फोन लगाया

फाल्गुनी कॉलेज में थी और लेक्चर चल रहा था इसलिए उसने फोन काट दिया.. बाहर आकर उसने कविता को फोन लगाया

फाल्गुनी: "हैलो दीदी.. मैं लेक्चर में थी इसलिए फोन काट दिया.. बताइए क्या काम था??"

कविता: "कॉलेज से निकलकर तू सीधे मेरे घर आना.. मुझे अकेले में तुझ से कुछ बातें करनी है.. और हाँ.. मौसम को इस बारे में कुछ भी मत बताना.. "

इतना कहकर कविता ने फोन काट दिया..

फाल्गुनी सोच में पड़ गई.. दीदी को आखिर ऐसा क्या काम होगा?? और मौसम को बताने से क्यों मना किया होगा?

कॉलेज के बाकी लेक्चर छोड़कर फाल्गुनी सीधे कविता के घर पहुँच गई..

ड्रॉइंग रूम के अंदर आते ही सोफ़े पर बैठकर फाल्गुनी ने पूछा "क्या काम था दीदी?"

कविता के दिमाग में विचारों का ज्वालामुखी सा फट रहा था.. उसने तय तो किया था की साफ साफ शब्दों में फाल्गुनी को बता देगी की आज के बाद उसका मम्मी के घर आना जाना बंद.. पापा के साथ उसके नाजायज संबंधों के कारण मौसम की सगाई टूटी थी.. इसलिए अब से वो मौसम से मिलने कभी नहीं आएगी..

पर अचानक उसके विचार बदल गए.. दिमाग में कुछ सुझा और उसने पूरी बात ही बदल दी

कविता: "काम तो कुछ खास नहीं था.. तुझे मिलें हुए बहोत दिन हो गए थे.. पापा के जाने के बाद तो तूने घर आना ही बंद कर दिया" ताना मारते हुए कविता ने कहा

सुनकर एक पल के लिए फाल्गुनी सकपका गई.. फिर अपने आप को संभालते हुए उसने कहा

"ऐसा कुछ नहीं है दीदी.. मैं और मौसम तो अक्सर मिलते रहते है"

कविता: "पता नहीं क्यों.. पर आज पापा की बहोत याद आ रही है.. कितने अच्छे थे मेरे पापा.. !! तुझे भी अपनी बेटी मानते थे"

अब फाल्गुनी का दिमाग जागृत हो गया.. जरूर दीदी को कुछ शक हुआ है.. वरना वो ऐसे लहजे में कभी बात नहीं करती थी..

सिर्फ दो ही प्रहारों में फाल्गुनी का मुंह लटक गया.. और उसका अब कविता के सामने ज्यादा देर बैठ पाना मुश्किल था..

फाल्गुनी: "दीदी, मुझे घर जाना पड़ेगा.. रास्ते में ही मम्मी का फोन आया था.. उनका बीपी बढ़ गया है.. मैं घर जाने ही वाली थी की तब आपका फोन आ गया इसलिए यहाँ आ गई.. अगर कुछ अर्जेंट न हो तो मैं निकलूँ??"

कविता जवाब देती उससे पहले फाल्गुनी अपना पर्स उठाकर भाग गई

उसे जाता हुआ खिड़की से देखते हुए कविता मन ही मन हंसने लगी.. कविता ने देखा की फाल्गुनी चलते चलते मौसम के घर के पास गई.. मौसम बाहर ही खड़ी थी.. दोनों बातें करते हुए आगे चल दीये

मौसम: "क्या काम था दीदी को??"

फाल्गुनी: "कुछ खास नहीं.. ऐसे ही मिलने बुलाया था.. !!"

मौसम: "सच सच बता फाल्गुनी.. मुझे बेवकूफ मत बना"

फाल्गुनी: "यार मौसम, मुझे लगता है की अंकल और मेरे संबंधों के बारे में दीदी को शक हो गया है.. आज जिस टोन में उन्हों ने मुझसे बात की.. मुझे पक्का यकीन है यार"

मौसम सोच में पड़ गई.. दीदी को इसके बारे में कैसे पता चला होगा??

मौसम: "हो सकता है वैशाली ने पिंटू को बताया हो.. और पिंटू ने दीदी को बता दिया हो.. !!"

फाल्गुनी: "मुझे क्या पता यार.. "

मौसम: "चल छोड़ वो सब.. जो होना था वो हो गया.. जब पापा ही नहीं रहे तो उन सब पुरानी बातों से डरने का कोई मतलब नहीं है.. भूल जा सब... कल शाम को मैं अपनी ऑफिस गई थी.. जीजू से मिलने.. कितने महीनों के बाद गई वहाँ यार.. !!"

फाल्गुनी: "अंकल के जाने के बाद.. मैं उस रास्ते से गुजरी भी नहीं हूँ"

मौसम: "वहाँ ऑफिस में एक लड़का काम करता है.. विशाल नाम है उसका.. बहोत ही हेंडसम है यार"

फाल्गुनी: "अरे वाह.. बोल दे जीजू को.. की तेरी बात चलाएं उसके साथ"

मौसम: "वक्त आने दे.. वो भी करूंगी.. मैं तुझे ये बताने वाली थी की जीजू ने ३१ दिसंबर को अपने घर पर ही मस्त पार्टी करने का प्लान बनाया है.. वैशाली और पिंटू को भी बुलाने वाले है.. और दीदी से छुपकर रखा है.. उन्हें सरप्राइज़ देना का विचार है"

यह सुनकर फाल्गुनी की उदासी थोड़ी कम हुई..

फाल्गुनी: "अरे वाह.. तब तो बड़ा मज़ा आएगा, मौसम.. !! काफी टाइम हो गया.. किसी पार्टी में गए हुए.. !!"

मौसम: "और ये सब मेरी बदौलत हुआ है.. मैंने ऑफिस जाकर जीजू को झाड ही दिया तब जाकर वो तैयार हुए.. बाकी उन्हें बिजनेस से फुरसत ही कहाँ मिलती है.. !! जीजू ने प्लान बनाया और फिर विशाल और फोरम को भी न्योता दे दिया पार्टी में आने का.. मज़ा आएगा फ्लर्ट करने का.. और हाँ फाल्गुनी. पहले से बोल देती हूँ.. तू विशाल से दूर ही रहना"

फाल्गुनी: "अरे बाबा.. तू कहेगी तो मैं उसे पार्टी से पहले ही राखी बांध दूँगी... पर ये फोरम कौन है?"

मौसम: "जीजू की ऑफिस की रीसेप्शनिस्ट.. जैसे अंकल ने तुझे जुगाड़कर रखा हुआ था वैसे जीजू ने इस फोरम को रखा होगा.. आज कल तो सभी गाड़ियों में स्पेर-व्हील की सुविधा होती ही है ना.. हा हा हा हा.. !"

फाल्गुनी: "तो फोरम की जगह तुझे रीसेप्शनिस्ट बन जाना चाहिए था.. जीजू का अनुभव तो तू पहले ही कर चुकी है.. !!"

मौसम: "हम्म विचार तो अच्छा है.. ये कॉलेज का आखिरी साल खत्म हो जाने दे.. अब और पढ़ाई नहीं करनी है.. बस पापा की ऑफिस में आराम से बैठना है"

फाल्गुनी: "बात तो सही है.. तू वहाँ बैठकर ऑफिस का ध्यान भी रखेगी और जीजू का भी.. !!"

मौसम: "और साथ में विशाल का भी.. !!"

फाल्गुनी: "देखना पड़ेगा इस विशाल को.. उसका नाम बोलते बोलते तेरे गाल लाल हो जा रहे है"

दोनों बातें करते करते घूम कर वापिस आ गई.. मौसम अपने घर चली गई और फाल्गुनी अपने घर..
बहुत ही शानदार और जानदार अपडेट हैं भाई मजा आ गया
सुबोधकांत के कांड लगभग सभी को तरुण के व्दारा बताने ने से पता चल गये
बेचारा तरुण आज भी मौसम को चाहता है लेकीन अपने घर के लोगों का मान रख कर वो शांत हैं
ये 31 दिसंबर को जो पार्टी पियुष ने रखी हैं वो काफी धमाकेदार होने की संभावना लगती हैं
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

kamdev99008

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बहुत बढ़िया
अब लगभग सब को सुबोधकांत का राज पता चल गया कविता की मॉं के अलावा
लेकिन अभी सब आपस में खुले नहीं

देखते हैं कविता क्या प्लानिंग कर रही है फाल्गुनी को लेकर
 

Bulbul_Rani

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"अरे, उसमें कौन सी बड़ी बात है!! मुझे तो इतना दूध आता है की मेरे लल्ला का पेट भर जाता है फिर भी बचता है। कभी कभी तो लल्ला पीते पीते सो जाता है... और छाती पूरी खाली न हो जाए तो इतना दर्द होता है की कपड़ा रखकर दबाकर दूध निकालना पड़ता है... लल्ला का बाप अगर जाग रहा हो तो वो भी थोड़ा बहुत चूस लेता है" इतने कहते ही रूखी शरमा गई

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"आप चिंता मत करो भाभी, में वैसे भी दिन में कई दफा यहाँ से गुजरती हूँ.. आते जाते एक कटोरी में दूध निकाल दूँगी... बेचारे उन नन्हें पिल्लों को ओर चाहिए भी कितना!!! दो तीन घूंट में तो उनका छोटा सा पेट भर जाएगा.. लाइये कटोरी.. ये तो बड़े पुण्य का काम है... अब छाती में इतना दूध बनता ही है तो फिर इस्तेमाल करने में भला क्या हर्ज??"

इतना कहते ही रूखी ने अपने ब्लाउस के दो हुक खोल दिए... शीला दो घड़ी देखती ही रह गई... बड़े बड़े पके हुए नारियल जैसे बोबलों में से एक स्तन रूखी ने बाहर खींचा... दूसरी तरफ का दूध से भरा हुआ थन भी आधा बाहर लटक गया... देखते ही शीला के भोसड़े में खुजली शुरू हो गई।

rukhib
शीला भागकर किचन से कटोरी लेकर आई और कटोरी को रूखी के स्तन के नीचे रख दिया। रूखी ने निप्पल को दबाया पर दूध नही निकला

"अरे भाभी, पता नही आज क्यों दूध नही निकल रहा? वैसे तो रोज, दबाते ही फव्वारा छूट जाता है..."

"आएगा रूखी... थोड़ा इंतज़ार तो कर!!"

"भाभी, आप दबाकर देखो... शायद दूध निकले"

शीला जबरदस्त उत्तेजित हो गई.. पर उसने थोड़ा सा नाटक किया..

"मुझे तो शर्म आती है रूखी"

"क्या भाभी, इसमे भला कौनसी शर्म? आपने भी तो अपने बच्चों को दूध पिलाया ही होगा ना!!"

"हाँ, वो बात तो सही है तेरी... पर उसे भी बहोत वक्त हो गया न रूखी..."

"जल्दी निकालिए न भाभी" कहते हुए रूखी ने शीला का हाथ पकड़कर अपने दूध से भरे स्तन पर रख दिया।

आहह... पत्थर जैसा सख्त और कडा स्तन!! उसे छूते ही शीला की चुत का दूध टपकने लगा..कुछ देर के लिए तो शीला रूखी के स्तन को बस सहलाती ही रही..

"सहला क्यों रही हो भाभी? दबाओ ना!!" रूखी ने कहा

शीला रूखी की बगल में बैठ गई.. और धीरे धीरे रूखी के स्तन को दबाने लगी.. शीला ने ब्लू फिल्मों में कई बार लेस्बियन द्रश्य देखे थे... और दो साल से, अपनी पति की गैर-मौजूदगी में उसकी हालत खराब हो गई थी... जैसा आपने पहले पढ़ा ही है

बिना रूखी की अनुमति के शीला ने उसका दूसरा स्तन भी चोली से बाहर निकाल दिया... रूखी की निप्पल पर दूध की बूंद उभर आई...

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"आया आया दूध... अब निकलेगा... और दबाइए भाभी पर जरा धीरे से.. दर्द हो रहा है... और ध्यान से... कहीं इसकी पिचकारी आपकी साड़ी पर ना गिरे.."

रूखी ने अपनी आँखें बंद कर ली। शीला अब स्तनों को दबाने के साथ साथ खेल भी रही थी। रूखी की बंद आँखें देखकर वह समझ गई की वह भी उत्तेजित हो गई थी।

शीला ने पूछा "क्या हुआ रूखी? आँखें क्यों बंद कर दी? बहोत दर्द हो रहा है क्या?"

"नही नही भाभी... अमम कुछ नही.. "

"नही, पहले तू बता... आँखें क्यों बंद कर दी?" शीला अड़ी रही

"वो तो.. ही ही ही.. जाने भी दीजिए न.. आप समझ रही है फिर भला क्यों पूछ रही हो?"

"सच बता... मजा आ रहा है.. अपने पति की याद आ रही है... है ना..!!"

"वो तो भाभी... काफी महीनों के बाद किसी के हाथ ने छातियों को छुआ.. तो थोड़ा बहोत तो होगा ही ना!"

"क्यों? तेरा मरद दबाता नही है क्या?"

"क्या बताऊँ भाभी!! वो तो पूरा दिन खेत में काम करके ऐसा थक जाता है की रात होते ही घोड़े बेचकर सो जाता है.. कभी कभी जब छाती में ज्यादा दूध भर जाएँ और में उन्हे जगाऊँ तो थोड़ा बहोत चूस लेते है... बस इतना ही"

"पर मरद जब दबाता है तब मजा तो बहोत आता है... है ना!!"

"वो तो है... आप भी कैसा सहला रही हो.. क्या क्या याद आ गया मुझे" रूखी ने शरमाते हुए कहा

"रूखी, मेरा पति दो सालों से देश के बाहर है.. मुझे याद नही आता होगा.. सोच जरा!!"

"याद तो आपको जरूर आता होगा भाभीजी"

"रूखी, में तेरा दूध चखकर देखूँ? मैंने कभी खुद का दूध भी कभी नही चखा था.. पता नही कैसा स्वाद होगा इसका?"

"थोड़ा सा मीठा मीठा लगता है भाभी"

शीला जानबूझकर यह सारी बातें कर रही थी ताकि रूखी को गरम कर सके... और फिर वह अपना दांव खेल पाएं

रूखी की आँखें फिर से लगभग बंद हो गई.. तभी शीला ने रूखी की सख्त निप्पल को अंगूठे और उंगली के बीच दबाकर मसल दिया..

"ओह्ह भाभी... पता नही आज क्या हो रहा है मुझे!!!" रूखी ने शीला की जांघों पर हाथ रखते हुए कहा

शीला के शरीर को किसी ने दो सालों से छुआ नही था... शीला की जिस्म की आग भड़क गई.. उसने रूखी की निप्पल को पकड़कर खींचा

"ऊई माँ... भाभी.. दुखता है मुझे" रूखी ने कहा

शीला की हथेली रूखी के दूध से भर गई.. उस दूध को शीला ने रूखी के गालों पर चुपड़ दिया... जैसे दोनों हाथों से रंग लगा रही हो.. गाल पर नाक पर होंठ पर... पूरे चेहरे पर उसने रूखी के दूध को मल दिया.।

पिछले चार महीनों से दबी हुई रूखी की चुत की खुजली की स्प्रिंग, इसके साथ ही उछल पड़ी

उसने शीला से कहा.. "भाभी, आप दूध चखना चाहती थी तो... चखिए ना..!!"

शीला समझ गई... की रूखी उसे अपने स्तन चूसने का खुला निमंत्रण दे रही थी.. पर शीला एक नंबर की मादरचोद है.. वह ऐसे अपने पत्ते खोलने वालों में से नही थी

शीला ने रूखी के गालों पर लगे दूध को अपनी जीभ से चाटना शुरू कर दिया... शीला की गरम जीभ का स्पर्श अपने गालों पर होती ही रूखी बेकाबू होने लगी। उसने शीला के सिर को पकड़ लिया और फिर "आहह आहहह ओह्ह ओह्ह" करते सिसकियाँ भरने लगी।

"रूखी, तू भी मेरे दबा दे" शीला ने फुसफुसाते हुए रूखी के कानों में कहा

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"ओह भाभी... मन तो मेरा कर रहा था पर आपसे कहने में शर्म आ रही थी" कहते ही रूखी ने शीला के गाउन में हाथ घुसाकर उसके मम्मों को पकड़ लिया

कुछ महीनों पहले ही हुई डिलीवरी के कारण.. रूखी भी काफी महीनों से बिना चुदे तड़प रही थी... उसने शीला के दोनों बबलों को दबाते हुए अपने चूतड़ को.. नीचे सोफ़े पर रगड़ना शुरू कर दिया... इतनी तेज खुजली होने लगी थी उसे... शीला सब समझ गई.. और अब वह दोनों अपनी भूख और आग को शांत करने में मशरूफ़ हो गई।

शीला अब खड़ी हो गई... और उसने अपना गाउन उतार दिया... और मादरजात नंगी हो गई। शीला के गोरे गदराए बदन को रूखी देखती ही रह गई।

"रूखी, में दो साल से भूखी हूँ.. मुझसे अब ओर रहा नही जाता... आहहह" कहते ही शीला ने झुककर रूखी के होंठों को एक गाढ़ चुंबन दे दिया।

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"भाभी, आहहह... मुझे भी... आहह.. कुछ कुछ हो रहा है.. हाये.. मर गई.."

शीला ने रूखी का हाथ पकड़कर अपनी बिना झांटों वाली बुर पर रख दिया.. "ओह रूखी... इसके अंदर आग लगी हुई है.. ऐसा लग रहा है जैसे ज्वालाएं निकल रही है.. कुछ कर रूखी.. आहहह"

रूखी ने शीला की कामरस से गीली हो चुकी चुत पर हाथ फेरा.. दूसरे हाथ से उसने शीला के कूल्हों को चौड़ा कर उसकी गाँड़ के छेद पर उंगली फेर दी.. और शीला को अपनी ओर खींच लिया.. और बोली

"भाभी... मेरे भी कपड़े उतार दो न!!"

शीला को बस इसी पल का इंतज़ार था.. उसने तुरंत रूखी की चोली के बचे-कूचे हुक निकाल कर उतार दिया... और उसकी चुनरी घाघरा भी उतरवा दिया.. और रूखी को सम्पूर्ण नंगी कर दी..

शीला ने रूखी को अपनी बाहों में कसकर जकड़ लिया.. दोनों औरतें... हवस में इतनी लिप्त हो गई की शीला अपनी चुत पर रूखी की कडक निप्पल को रगड़ने लगी... और रूखी, शीला के स्तनों को चाटते हुए निप्पल को चूसने लगी।

"भाभी, अब और बर्दाश्त नही होगा.. बहोत दिन हो गए है.. अपनी उँगलियाँ डाल दीजिए अंदर.. ओह ओह्ह.. भ.. भाभी.. ऊई माँ... पता नही क्यों आज इतनी चूल मची हुई है अंदर!! रहा ही नही जाता.. हायय..." रूखी तीव्रता से अपनी चुत को शीला के स्तनों पर रगड़ते हुए उल-जुलूल बकवास कर रही थी।

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शीला भी... रूखी की चुत में दो उँगलियाँ डालकर अंदर बाहर कर रही थी... साथ ही वह रूखी की मांसल जांघों को अपनी मुठ्ठी से नोच रही थी। रूखी भी अब शीला के स्तनों पर टूट पड़ी.. इस हमले से शीला बेहद उत्तेजित हो गई.. कूदकर अपने दोनों पैर उसने रूखी के कंधों के इर्दगिर्द लगा दिए.. और वहीं लेट गई.. शीला का भोसड़ा रूखी के मुंह के करीब आ गया।

रूखी कुछ समझ सके उससे पहले शीला ने अपना तपता हुआ भोसड़ा रूखी के मुंह पर दबा दिया.. अब रूखी के पास उसे चाटने के अलावा ओर कोई विकल्प नही था। उसकी जीभ काम पर लग गई और शीला के गुलाबी भोसड़े को चाटने लगी। चाटते चाटते रूखी ने अपने चूतड़ों को एक फुट ऊपर कर दिया... शीला समझ गई की रूखी भी उसकी तरह झड़ने की कगार पर थी। शीला ने रूखी की चुत में एक साथ चार उँगलियाँ घोंप दी.. और रूखी का क्लिटोरिस मुंह में लेकर अपनी जीभ से ठेलने लगी..

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"ऊई.. भाभी... हाँ बस वहीं पर... वैसे ही करते रहिए.. याईईई... मसल दो मेरे बेर को.. हाँ वहीं पर.. हाय.. बहोत खुजली हो रही है.. आज तो चबा चबा कर मेरे जामुन को चूस लो भाभी... ऐसा मजा तो पहले कभी भी नही आया... हाय भाभी... ऊई माँ.. में गई भाभीईईईईई... !!" कहते हुए रूखी थरथराने लगी और झड़ गई

शीला भी कहाँ पीछे रहने वाली थी!! उसने भी रूखी के मुंह पर चुत रखकर अपनी टंकी खाली कर दी..

दोनों औरतें काफी वक्त तक ऐसे ही पस्त पड़ी रही

"मज़ा या गया भाभी... कितने दिनों से कुछ करने का मन कर रहा था... पर क्या करती!! कीससे कहती!!" रूखी ने कहा

"रूखी, तेरा जोबन तो इतने कमाल का है... तेरा पति तुझे नंगी देखकर जबरदस्त गरम हो जाता होगा!!"

"भाभी, शुरू शुरू में तो वह दिन में तीन बार, मेरी टांगें चौड़ी कर गपागप चोदता था... पर जब में पेट से हो गई.. तब से उसने चोदना बंद कर दिया.. बच्चा हुए इतने महीने हो गए फिर भी अब तक हरामी ने नीचे एक बार ठीक से हाथ तक नही फेरा है"


ऐसे ही बातचीत करते रहने के बाद रूखी चली गई। उसके साथ हुए इस मजेदार संभोग को याद करते करते शीला ने रात का खाना खाया और सो गई। बिस्तर पर लेटकर आँखें बंद करते ही उसे रूखी के मदमस्त गदराए मोटे मोटे स्तन नजर आने लगे... आहह.. कितने बड़े थे उसके स्तन... उसकी नंगी छातियों के उभार को देखकर ही मर्दों के कच्छे गीले हो जाएँ.. नीलगिरी के पेड़ के तने जैसी उसकी जांघें.. बड़े बड़े कूल्हें.. भारी कमर.. आहह.. सबकुछ अद्भुत था... !! हालांकि गंवार रूखी को ठीक से चुंबन करना नही आता था.. और वह चुत चाटने में भी अनाड़ी थी.. यह बात शीला को खटकी जरूर थी.. हो सकता है लंड चूसने में माहिर हो.. पर क्या रूखी ने कभी लेस्बियन अनुभव कीया होगा पहले? वैसे तो शीला के लिए भी यह प्रथम अनुभव था.. पर उसने ब्लू फिल्मों में ऐसे कई द्रश्य पहले देखे हुए थे.. तो उसे प्राथमिक अंदाजा तो था ही.. हो सकता है रूखी ने भी कभी ऐसी फिल्में देखी हो..उसके पति ने उसे इतनी बार ठोका है तो मोबाइल में बी.पी. भी दिखाया ही होगा..

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Ek number

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उस रात डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाना खाते हुए वैशाली ने मदन से पूछा.. "पापा, इस क्रिसमस के वेकेशन मे क्या मैं अपने दोस्तों के साथ घूमने जाऊँ?? ३१ दिसंबर मनाने के लिए वह सब किसी हिल-स्टेशन पर जाने का सोच रहे है.. !!"

मदन: "तू जाना चाहती है तो जरूर जा.. पर मेरा मानना है की न्यू-यर की पार्टी किसी फ्रेंड के घर पर ही इन्जॉय करो तो बेहतर रहेगा.. बेटा, तेरे साथ एक दुर्घटना तो घट चुकी है.. कुछ उन्नीस-बीस हो गया तो तेरी बाकी की ज़िंदगी बर्बाद हो जाएगी.. और ३१ दिसंबर को बाहर क्या क्या होता है ये तू भी जानती है और मैं भी अच्छी तरह जानता हूँ.. अच्छे घर की लड़कियों के साथ हेवानियत भरे जो किस्से घटते है.. वो अक्सर अखबार में पढ़ता हूँ.. आश्चर्य की बात तो ये है की जिन लड़कों पर वो भरोसा कर निकलती है.. वहीं लड़के उनके साथ यह दुर्व्यवहार करते है.. और इन्जॉय करने के लिए बाहर ही जाना जरूरी थोड़े ही है.. !! किसी सलामत जगह भी मजे कीये जा सकते है.. अनजानी दूर जगह पर मिलती स्वतंत्रता, कब स्वेच्छाचार का स्वरूप धारण कर लेती है, कुछ कह नहीं सकते"

वैशाली अपने पापा की हिदायतों को बड़े ही ध्यान से सुन रही थी.. उसने तुरंत जवाब नहीं दिया और चुपचाप खाती रही.. खाना खतम करने के बाद हाथ ढोते हुए उसने मदन से कहा "आप ठीक कह रहे हो पापा.. वैसे अभी कुछ तय नहीं हुआ है.. दो-तीन दिनों में हम सब सोच के फाइनल करेंगे.. "

मदन ने स्माइल देकर बात को वहीं विराम दिया.. वैशाली बाहर चली गई और तभी शीला बाहर आई और बोली "मैं भी अपनी सहेली के घर इन्जॉय करने वाली हूँ.. हम सब महिलायें साथ मिलकर न्यू-यर की पार्टी मनाने वाले है"

मदन: "ओहोहों.. क्या बात है.. फिर मैं भी क्यों पीछे रहूँ?? मैं भी राजेश के साथ मिलकर कोई प्रोग्राम बना लेता हूँ.. !!"

शीला ने बेफिक्री से कहा "तेरी मर्जी.. तुझे जो करना हो वो कर.. बस इकत्तीस तारीख को मुझे डिस्टर्ब मत करना.. !!"

मदन: "हम्म.. लगता है कुछ बड़ा प्लान किया है आप लोगों ने.. किस तरह की पार्टी है?? बता तो सही.. !!"

शीला: "तू समझ रहा है ऐसी कोई फ्री-सेक्स पार्टी नहीं है.. जिसके लिए मुझे घर पर झूठ बोलकर.. मीटिंग का बहाना बनाकर जाना पड़े.. !!"

मदन की बोलती बंद हो गई.. शीला नटखट मुस्कान के साथ, मदन को ध्वस्त कर, किचन में बर्तन रखने चली गई..

मदन ने शीला के सामने ही राजेश को फोन किया.. और ३१ दिसंबर के प्लान के बारे में पूछा.. पर राजेश ने बताया की उसका तो पहले से ही अन्य दोस्तों के साथ पार्टी का प्लान बन चुका था.. और वो फ्री नहीं था.. !!

मदन ने और एक-दो दोस्तों को फोन किया.. पर सब का कुछ न कुछ प्लान बन चुका था.. निराश होकर मदन अपने बिस्तर पर लेट गया और सोचता रहा.. भेनचोद, ३१ दिसंबर को मैं अकेला बैठकर क्या मुठठ मारूँगा.. ?? पूरी दुनिया मजे कर रही होगी और मैं घर पर बैठे बैठे टीवी पर अनुपमा देखूँगा क्या.. !!

रात को मदन और वैशाली सोफ़े पर बैठकर टीवी देख रहे थे.. घर का सारा काम निपटाकर शीला भी टीवी देखने बैठ गई.. तीनों साथ बैठकर तारक मेहता का उल्टा चश्मा देख रहे थे.. ब्रेक के दौरान शीला ने वैशाली को मौसम और तरुण की सगाई टूटने के कारण के बारे मैं पूछा.. यह सोचकर की शायद वैशाली को कुछ पता हो.. पर वैशाली इस बारे में कुछ भी नहीं जानती थी.. बल्कि उसने तो यह भी कहा की वह खुद असली कारण जानने के लिए उत्सुक थी..

वैशाली की ओर से कुछ मदद की आशा न दिखाई दी तो शीला ने मदन की तरफ रुख किया "मदन, क्यों न तू ही फोन लगाकर तरुण से इसका कारण पूछ लेता.. !! उस घटना को भी काफी समय हो गया है.. हो सकता है की वो थोड़ा सा नरम हुआ हो और वो तुझे बता दे.. !!"

वैशाली सुन न सके उस तरह मदन ने शीला के कान मे कहा "वो आदमी है.. कोई लंड नहीं.. जो नरम हो जाए"

सुनकर शीला हंस पड़ी.. मदन की जांघ पर चिमटी काटते हुए उसने अपने मोबाइल में सेव तरुण का नंबर मदन को दिया..

मदन ने तरुण को फोन लगाया.. फोन उठाते ही मदन ने अपनी पहचान दी.. तरुण ने उसे तुरंत पहचान लिया..

मदन के एक बार पूछने पर ही तरुण ने उसे सारी बात बता दी.. और फोन रख दिया..

वैशाली ने उत्सुकतावश पूछा "क्या हुआ पापा? उसने कुछ बताया??"

एक भारी सांस छोड़कर मदन ने कहा "नहीं बेटा.. वो कुछ भी कहने के लिए तैयार नहीं है"

लेकिन शीला समझ गई की मदन झूठ बोल रहा था.. मदन के चेहरे के हाव भाव से यह स्पष्ट था की तरुण ने उसे हकीकत बता दी थी

बात जानने के लिए शीला को चटपटी होने लगी.. रात को बेडरूम मे जाते ही उसने मदन से पूछा "तूने वैशाली से झूठ क्यों बोला ??"

मदन: "अब उसे कैसे बताता की सुबोधकांत सेक्स-रैकिट की रैड में रंगेहाथों पकड़ा गया था.. इस बात का तरुण के परिवार को पता लग गया था.. इसलिए उन्हों ने रिश्ता तोड़ दिया.. और यार, तरुण के पास तो ये बात भी आई है की सुबोधकांत और फाल्गुनी के बीच नाजायज संबंध थे.. !!"

मम्मी और पापा के बेडरूम के दरवाजे पर कान लगाकर सुन रही वैशाली स्तब्ध हो गई.. !!! वैसे उसे तभी अंदाज लग चुका था की तरुण ने पापा को सब बता दिया था.. इसीलिए तो उनका फोन इतना लंबा चला था.. किसी कारणवश उन्हों ने वैशाली को सच नहीं बताया था पर वैशाली को यकीन था की बेडरूम में जाते ही मम्मी और पापा के बीच इस बारे में जरूर बात होगी.. !!!

वैशाली का दिमाग चक्कर खाने लगा.. पापा को तो चलो तरुण ने बताया.. पर तरुण को फाल्गुनी और सुबोधकांत के बारे में किसने बताया होगा?? वो सोच रही थी.. क्या फाल्गुनी को इस बारे में मुझे आगाह करना चाहिए??

रात को अपने कमरे से वैशाली ने पिंटू को फोन पर सारी बात बता दी.. वो तो तभी कविता को भी सारी बात बताना चाहती थी.. पर यह सोचकर नहीं फोन किया क्यों की उसे मालूम था की वो इस वक्त पीयूष के साथ होगी.. कविता के साथ सुबह बात करेगी ये सोचकर वैशाली सोने की कोशिश करने लगी.. पर मम्मी-पापा की बातों ने उसे सोच में डाल दिया था.. बाप के दुष्कर्मों की सजा संतानों को भुगतनी पड़ सकती है.. वैशाली के केस में उसके पति के कुकर्मों की सजा भुगतना लिखा था.. बिना किसी गुनाह के वैशाली को इस कठिन परिस्थिति से गुजरना पड़ रहा था.. ज़माना कितना भी आगे क्यों न बढ़ जाए.. कितनी भी तरक्की क्यों न कर ले.. लोग जवान लड़कियों के प्रति कभी अपनी संकुचित विचारधारा नहीं छोड़ेंगे.. किसी लड़की की सगाई टूटी हो.. या उसका तलाक हुआ हो.. उसका हर कोई मूल्यांकन करने लगता है..

वैशाली का मन किया की वो अभी के अभी तरुण को फोन लगाकर झाड दे.. !! की उसने बाप के गुनाहों की सजा उनकी बेटी की क्यों दी? पर तब उसे एहसास हुआ.. की बात सिर्फ मौसम से शादी की नहीं थी.. हमारे समाज में शादी सिर्फ दो इंसानों का मिलाप नहीं होता.. दो परिवारों का.. दो समाजों का मिलन होता है.. जाहीर सी बात थी की सुबोधकांत के बारे में यह सब जानकर तरुण के परिवार वालों को या रिश्ता मंजूर न हो.. सोचते सोचते वैशाली सो गई

सुबह ऑफिस जाते हुए रास्ते में वैशाली ने कविता और बाद में मौसम को फोन करके तरुण के सगाई तोड़ने का असली कारण बता दिया.. हालांकि उसने सिर्फ सुबोधकांत की रंगरेलियों के बारे में ही बताया और फाल्गुनी वाली बात नहीं बताई

मौसम तो अपने बाप के रंगीन किस्सों के बारे में फाल्गुनी से जान ही चुकी थी.. उसे तो पापा और फाल्गुनी के संबंधों के बारे में भी पता था इसलिए उसे कोई खास ताज्जुब नहीं हुआ.. पर कविता को जबरदस्त सदमा पहुंचा.. !!! क्या मेरे पापा इतने गिरे हुए थे?? वैशाली ने तो पूरी बात खतम कर फोन रख दिया था

पर कविता से रहा नहीं गया.. उसने सीधा तरुण को फोन लगाया.. सुबह सुबह तरुण अभी बस ऑफिस पहुंचा ही था की कविता का फोन आया.. सगाई तोड़ने के बाद तरुण ने मौसम के परिवार के सारे नंबर डिलीट कर दीये थे

तरुण: "हैलो.. कौन बात कर रहा है"

कविता: "गुड मॉर्निंग तरुण.. मैं कविता बोल रही हूँ.. मौसम की बड़ी बहन"

तारुण: "ओह हाय दीदी.. कैसी है आप??"

कविता: "बस ठीक ही हूँ.. तुम कैसे हो?"

तरुण: "ठीक न भी हो तो भी "ठीक हूँ" कहने का तो हमारा जैसे रिवाज ही है.. हैं ना दीदी..!!

कविता: "तरुण अगर आसपास कोई न हो तो मैं तुमसे एक बात पूछना चाहती हूँ.. क्या पूछ सकती हूँ?"

तरुण: "हाँ पूछिए ना दीदी.. वैसे ऑफिस में हूँ पर अकेला हूँ इसलिए कोई दिक्कत नहीं है"

कविता: "तरुण, पापा के चारित्र को लेकर जिन अफवाहों के कारण तुमने सगाई तोड़ दी.. उसका मुझे पता चला.. तुमने जो भी निर्णय लिया वो अब पुरानी बात हो चुकी है.. पर मुझे ये समझ मे नहीं आ रहा की इतने पढे लिखे और समझदार होने के बावजूद तुमने ऐसी वाहियात अफवाहों को मानकर मौसम जैसी निर्दोष लड़की के साथ इतना बड़ा अन्याय कर दिया.. !!!"

तरुण: "दीदी, मैं पागल नहीं हूँ की सिर्फ कही-सुनी बातों पर विश्वास कर इतना बड़ा कदम उठाता.. मैं खुद मौसम को बेहद पसंद करता हूँ.. और यह निर्णय मेरे लिए भी उतना ही कठिन था जितना मौसम के लिए.. !!"

कविता: "तरुण, तुम्हारी सगाई तो टूट चुकी है.. इसलिए तुझे यह कहना चाहिए की "मौसम को पसंद करता था "

तरुण: "दीदी, मैं झूठ नहीं बोलूँगा.. मुझे यह फैसला अपने परिवार के दबाव में आकर लेना पड़ा पर उसका मतलब यह नहीं की मुझे मौसम पसंद नहीं है.. कॉलेज के वक्त जब सारे लड़के-लड़कियां जवानी के जोश में मजे कर रहे थे.. तब मैं किताब में मुंह छुपाकर पढ़ रहा था.. अगर वैसा न किया होता तो आज सी.ए. नहीं बन पाता.. पढ़ाई खत्म करने के बाद, मौसम वो पहली लड़की थी जो मेरी ज़िंदगी में आई और मौसम में ऐसा एक नुक्स नहीं है जिस में बता सकूँ.. किसी नसीबवाले को ही मौसम जैसी लड़की मिलेगी.. और मेरे भाग्य में मौसम नहीं है, उसका मुझे बेहद अफसोस है"

कविता समझ गई की सगाई तोड़कर तरुण भी काफी दुखी था.. और वो अब तक मौसम को भूल नहीं सका है

कविता: "फिर भी.. मुझे लगता है तुमने मेरे पापा के बारे में जो भी बातें सुनी.. उसकी चर्चा तुम्हें एक बार मौसम से करनी चाहिए थी"

तरुण: "मुझे वह बात करना इसलिए जरूरी नहीं लगा क्यों की मुझे यकीन था की मौसम को पहले से ही उस बात का पता था"

चोंक गई कविता... !!! मौसम को मालूम था.. !!!! कैसे??

कविता: "मैं नहीं मानती ये बात.. क्योंकी मौसम खुद अभी इस कारण को तलाश रही है.. यही जानने के लिए उसने तुम्हें कितनी बार फोन कीये है ये तो तुम्हें पता ही होगा"

तरुण: "हाँ दीदी.. बहोत बार फोन आए.. पर मैंने उठाए नहीं.. उठाकर क्या कहता?? की तेरे पापा एक रंगीन मिजाज और अईयाश किस्म के आदमी है.. ये कहता???"

अपने स्वर्गीय पापा के बारे में ऐसी बात सुनकर कविता का खून घौल उठा..

तरुण: " दीदी, आपके पापा के बारे में खराब बोलकर मैं आपको दुख देना नहीं चाहता.. पर मुझे लगता है की आपको भी पूरी बात मालूम होनी ही चाहिए"

कविता: "देख तरुण.. तुझे पता तो लग गया होगा की आधी बात तो मैं जान ही गई हूँ.. तू मुझे दिल खोलकर साफ साफ सब बता दे.. जिससे की हम आगे मौसम के जीवन के बारे में कुछ भी फैसला लेने से पहले... इस पहलू को ध्यान में रख सकें"

तरुण खामोश हो गई

कविता: "बता ना तरुण?? प्लीज ऐसे चुप मत हो जा"

एक लंबी सांस लेकर तरुण ने कहा "दीदी, आप के पापा और फाल्गुनी के बीच अवैद्य संबंध थे.. जिस्मानी संबंध.. !! उतना ही नहीं.. आपके पापा एक होटल में चल रही ग्रुप सेक्स पार्टी में पड़ी रैड के दौरान पुलिस द्वारा पकड़े गए थे.. और ये सब मैं ऐसे ही नहीं कह रहा.. अखबार में उनके नाम के साथ पूरा आर्टिकल छपा था.. शायद आपने पढ़ा न हो.. पूरी रात लॉक-अप में बंद थे आपके पापा.. बड़े चर्चे हुए थे उस घटना के.. और स्थानिक अखबारों में तो दो दिन तक सब छपता रहा था.. ये तो अच्छा हुआ की यह घटना सिर्फ हमारे शहर के लोकल अखबार में ही छपी थी.. वरना आपके शहर में लोगों को पता चलता तो आप सबका जीना दुसवार हो जाता.. मेरे रिश्तेदारों ने यह खबर पढ़ी.. आपके पापा का नाम पढ़ा.. अरे, मेरे एक चाचा तो पुलिस स्टेशन जाकर तसल्ली भी कर चुके है.. अब आप ही बताइए..कौन से शरीफ माँ-बाप, अपने बेटे का रिश्ता ऐसे इंसान की बेटी के साथ करना चाहेंगे?"

कविता ने परेशान होकर बेतुकी बात कह दी "तुम आरोप पर आरोप लगा रहे हो.. पर तुम्हारे पास इस बात का कोई सबूत भी है??"

तरुण: "वो आर्टिकल जिस अखबार में छपा था उसका कटिंग अभी भी मैंने संभाल कर रखा हुआ है.. और तो और.. मेरे पापा के साथ तुम्हारे पापा की फोन पर जो बातें हुई उसका रेकॉर्डिंग भी है मेरे पास.. आप सुनना चाहेगी??"

कविता: "हाँ, मुझे सुनना है.. प्लीज तरुण.. क्या तुम मुझे वो भेज सकते हो?"

तरुण: "भेज तो नहीं सकता पर आपको सुना जरूर सकता हूँ.. उसके अलावा भी मेरे पास एक रेकॉर्डिग है जिससे साबित होता था की तुम्हारे पापा कितने बड़े अईयाश थे.. और ढेर सारी गंदी आदतों के शिकार भी थे"

सुनकर कविता के आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा... एक और टेप???

तरुण: "हाँ दीदी.. आज तो मैं आपको सब कुछ साफ साफ बता देना चाहता हूँ.. जिससे कम से कम आप तो मुझे गलत न समझो.. क्यों की यही कारण जानने के लिए कल रात फाल्गुनी का फोन आया था.. फिर मदन भैया ने फोन किया था.. और हाँ.. आपका फोन आया उससे थोड़ी देर पहले ही वैशाली का भी फोन आया था.. मैं कितने लोगों को सफाई देता रहूँ?? उससे अच्छा तो यही होगा की मैं आपको सब कुछ सच सच बता दूँ.. ताकि आप बाकी सब लोगों को बता सकें.. मौसम के लिए मेरे दिल में बहोत हमदर्दी है.. उसे कहना की वो मुझे माफ कर दे.. मैं अपने माँ-बाप की इच्छा के विरुद्ध नहीं जा सका.. मैं अब ये फोन कट कर रहा हूँ.. क्यों की वो वोइस रेकॉर्डिंग ईसी फोन में है.. मैं आपको लेंडलाइन से फोन करता हूँ और फिर वो दोनों रेकॉर्डिंग सुनाता हूँ.. आप अकेले में सुनिएगा.. कुछ आपत्तिजनक शब्द और बातें भी होगी.. उसके लिए क्षमा चाहूँगा.. आप दोनों क्लिप सुन लीजिएगा.. सारे सवालों का जवाब मिल जाएगा"

जिस आत्मविश्वास के साथ तरुण बोल रहा था.. उससे साफ प्रतीत हो रहा था की तरुण के पास पुख्ता सबूत थे और वो शत-प्रतिशत सच बोल रहा था.. कविता के चेहरा सफेद पड़ गया.. पापा.. जो मौसम की शादी के लिए इतने उत्साहित थे.. उनकी गलत हरकतों की वजह से आज मौसम की ज़िंदगी तबाह हो गई... तरुण जैसा होनहार लड़का गंवाना पड़ा.. पापा.. पापा... ये आपने क्या किया?? और क्यों किया???

तभी लेंडलाइन से तरुण का फोन आया..

तरुण: "दीदी, अब मैं मोबाइल पर वो क्लिप प्ले कर रहा हूँ.. आप ध्यान से सुनिए"

रेकॉर्डिंग:

तरुण: "सॉरी पापा.. पर मेरे घर वाले अब इस सगाई को तोड़ना चाहते है.. होल्ड कीजिए.. मैं मेरे पापा को फोन देता हूँ"

सुबोधकांत: "भाई साहब.. आपको मौसम से कोई शिकायत है क्या?? ये मैं क्या सुन रहा हूँ?"

तरुण के पापा: "शिकायत मौसम से नहीं.. आप से है सुबोधकांत.. आपकी हरकतें ही ऐसी है की मैं तो क्या कोई भी आपकी बेटी का हाथ न पकड़ें"

सुबोधकांत: "मुंह संभाल कर बात कीजिए... "

तरुण के पापा: "संभालने की जरूरत मुझे नहीं.. आपको थी.. सुबोधकांत.. इस उम्र में अपनी बेटी की उम्र की लड़की के साथ होटल में रंगरेलियाँ मनाते हुए शर्म नहीं आती??"

सुबोधकांत: "आपको कुछ गलतफहमी हुई है समधी जी.. !!"

तरुण के पापा: "पुलिसस्टेशन में जाकर सारी जानकारी लेकर ही बोल रहा हूँ.. यहाँ के अखबार में भी आपके कारनामे छपे थे.. आपके नाम के साथ.. होटल का नाम.. लड़की का नाम.. कमरे का रूम नंबर.. सब मालूम है.. बताऊँ आपको?? राँडों के साथ इस उम्र में मुंह काला करते हुए आपको शर्म नहीं आई??"

तरुण के पापा की बात सुनकर कविता स्तब्ध हो गई.. वो अब अपने पापा के जवाब का इंतज़ार कर रही थी

सुबोधकांत: "देखिए भाई साहब.. अब जब आपको सबकुछ पता चल ही गया तो फिर मेरे आगे बात करने का कोई मतलब नहीं है.. मैं अपना गुनाह कुबूल करता हूँ.. आपको सगाई तोड़ने से मैं नहीं रोकूँगा..पर मेरी आप से एक विनती है.. !! महरबानी करके प्लीज आप ये बात मेरे परिवार वालों को मत बताना.. आपकी नज़रों से तो मैं गिर ही चुका हूँ.. अपनी बेटियों की नजर में, मैं नहीं गिरना चाहता.. मेरी भोली पत्नी तो ये बर्दाश्त ही नहीं कर पाएगी.. वैसे भी वो दिल की मरीज है और अगर उसे कुछ हो गया तो हमारा पूरा परिवार बिखर जाएगा"

तरुण के पापा: "मुझे कोई शौक नहीं है आपके परिवार वालों के ये सब बताने का.. आप का प्रॉब्लेम है और आप ही जानों.. दोबारा यहाँ फोन मत करना और आपके परिवार के सदस्यों को भी कहना की सफाई मांगने के लिए फोन न करे.. मैं आपके बेटी से हुई सगाई तोड़ रहा हूँ.. और आप को भी सलाह देता हूँ... की सुधर जाइए... वरना बर्बाद हो जाएंगे.. अपनी बेटी को ब्याहने की उम्र में यह सब शोभा नहीं देता.. !!"

फोन कट हो गया..

तरुण: "सुना आपने दीदी??"

कविता सुबक सुबककर रो रही थी..

तरुण: "दीदी प्लीज आप रोइए मत.. मौसम को मुझसे भी अच्छा लड़का मिल जाएगा.. अरे, आप कहेंगे तो मैं ढूँढूँगा मौसम के लिए लड़का.."

तरुण की सज्जनता देखकर कविता को बहोत अच्छा लगा.. रोते रोते उसने कहा :तरुण, पापा की नादानी सजा आज मौसम को भुगतनी पड़ रही है"

तरुण: "हाँ दीदी.. मुझे भी मौसम को लेकर बड़ा दुख हो रहा है पर अब मैं कुछ कर नहीं सकता"

थोड़ी देर रोने के बाद कविता शांत हो गई.. इसलिए तरुण ने कहा "आप दूसरी क्लिप सुनना चाहेगी, दीदी?"

अपनी नाक पोंछते हुए कविता ने कहा "हाँ.. सुना.. !!"

तरुण ने क्लिप प्ले कर दी.. सुबोधकांत और किसी अनजान शख्स के बीच बात चल रही थी..

शख्स: "हैलो.. !!"

सुबोधकांत: "हाँ बोलीये.. "

शख्स: "जी मैं हेमंत बोल रहा हूँ.. होटल का मेनेजर.. पहचाना.. ??"

सुबोधकांत: "अरे तुम्हें तो मैं कैसे भूल सकता हूँ?? तेरी वजह से ही तो मेरी ज़िंदगी आज रंगीन है.. एक मिनट लाइन पर रहना हेमंत.. !!"

हेमंत: "ठीक है सर.. !"

सुबोधकांत: "अरे यार.. मेरे आसपास लोग खड़े थे इसलिए मुझे बाहर आना पड़ा"

हेमंत: "सर, मैंने याद दिलाने के लिए फोन किया की आज की पार्टी तय है.. आप जॉइन कर रहे है ना.. ??"

सुबोधकांत: "अरे यार थोड़ा पहले से बताना चाहिए ना.. तू अभी बता रहा है.. अब मैं पार्टनर कैसे अरेंज करू?"

हेमंत: "क्यों आपके साथ वो जवान लड़की आती है ना.. जिसे आप अक्सर होटल पर लेकर आते है.. !!"

सुबोधकांत: "अरे वो लड़की फाल्गुनी तो मेरी पर्सनल माल है यार.. उसे मैं ऐसी ग्रुप सेक्स पार्टी में नहीं लेकर आ सकता.. और वैसे भी वो अभी कच्ची कली है.. वो ये सब देखेगी तो डर जाएगी.. ऐसी पार्टी के लिए तो कोई बाजारू माल का बंदोबस्त करना पड़ेगा"

हेमंत: "तो अब क्या करेंगे सर?"

सुबोधकांत: "तू ही बता.. हर बार तू ही कुछ सेटिंग करता है"

हेमंत: "हाँ सर.. लेकिन ऐसी पार्टी के लिए लड़कियां बहोत ज्यादा पैसा चार्ज करती है.. "

सुबोधकांत: "जो भी हो तू ही कुछ जुगाड़ कर.. अभी मैं लड़की ढूँढने कहाँ जाऊँ?? होटल पहुँचने में भी मुझे तीन घंटों का समय लगेगा.. "

हेमंत: "सर, दो औरतें यहाँ आई है जो पार्टी जॉइन करना चाहती है.. लेकिन उनके पार्टनर नहीं है.. मैंने उनको अभी रोक कर रखा है.. सोचा अप से बात कर लूँ.. फिर उन्हें जवाब दूँ.. आप कहें तो एक आप के लिए रख लूँ?? वैसे उम्र थोड़ी सी ज्यादा है"

सुबोधकांत: "कितनी उम्र होगी??"

हेमंत: "४०-४५ के करीब.. पर दोनों गजब का माल है सर"

सुबोधकांत: "चलेगा.. पैसा कितना लेगी?"

हेमंत: "पच्चीस हजार.. !!"

सुबोधकांत: "ओके.. वैसे भी पार्टी में कौन किसके पास जाएगा क्या पता.. !! कोई फ़र्क नहीं पड़ता.. कर दे फिक्स उसे.. !!"

हेमंत: "ठीक है सर.. दूसरी वाली के साथ मैं पार्टनर बन जाऊंगा"

सुबोधकांत: "ठीक है.. अब रखता हूँ... मुझे अभी निकलना होगा.. तीन घंटे का रास्ता है"

हेमंत: "ओके सर.. "

क्लिप खतम हो गई.. कविता को खड़े खड़े चक्कर आने लगे...

तरुण: "हैलो... हैलो दीदी.. आप लाइन पर है??" कविता की ओर से कोई रिस्पॉन्स न मिलने पर तरुण ने कहा

कविता: "सुन रही हूँ तरुण.. पर अब बोलने जैसा कुछ रहा ही नहीं.. मैं तुमसे बाद मैं बात करती हूँ"

तरुण: "ओके दीदी.. आपका खयाल रखिएगा.. और मौसम का भी... बाय"

फोन खतम होते ही कविता सोफे पर धम्म से बैठ गई.. पापा का आज नया ही रूप सामने आया था.. सारे सबूत सामने होने के बावजूद उसका मन इससे मनने को तैयार ही नहीं था.. पापा की इस रास-लीला का फल मौसम को भुगतना पड़ा था..

भयानक गुस्से के साथ कविता ने फाल्गुनी को फोन लगाया

फाल्गुनी कॉलेज में थी और लेक्चर चल रहा था इसलिए उसने फोन काट दिया.. बाहर आकर उसने कविता को फोन लगाया

फाल्गुनी: "हैलो दीदी.. मैं लेक्चर में थी इसलिए फोन काट दिया.. बताइए क्या काम था??"

कविता: "कॉलेज से निकलकर तू सीधे मेरे घर आना.. मुझे अकेले में तुझ से कुछ बातें करनी है.. और हाँ.. मौसम को इस बारे में कुछ भी मत बताना.. "

इतना कहकर कविता ने फोन काट दिया..

फाल्गुनी सोच में पड़ गई.. दीदी को आखिर ऐसा क्या काम होगा?? और मौसम को बताने से क्यों मना किया होगा?

कॉलेज के बाकी लेक्चर छोड़कर फाल्गुनी सीधे कविता के घर पहुँच गई..

ड्रॉइंग रूम के अंदर आते ही सोफ़े पर बैठकर फाल्गुनी ने पूछा "क्या काम था दीदी?"

कविता के दिमाग में विचारों का ज्वालामुखी सा फट रहा था.. उसने तय तो किया था की साफ साफ शब्दों में फाल्गुनी को बता देगी की आज के बाद उसका मम्मी के घर आना जाना बंद.. पापा के साथ उसके नाजायज संबंधों के कारण मौसम की सगाई टूटी थी.. इसलिए अब से वो मौसम से मिलने कभी नहीं आएगी..

पर अचानक उसके विचार बदल गए.. दिमाग में कुछ सुझा और उसने पूरी बात ही बदल दी

कविता: "काम तो कुछ खास नहीं था.. तुझे मिलें हुए बहोत दिन हो गए थे.. पापा के जाने के बाद तो तूने घर आना ही बंद कर दिया" ताना मारते हुए कविता ने कहा

सुनकर एक पल के लिए फाल्गुनी सकपका गई.. फिर अपने आप को संभालते हुए उसने कहा

"ऐसा कुछ नहीं है दीदी.. मैं और मौसम तो अक्सर मिलते रहते है"

कविता: "पता नहीं क्यों.. पर आज पापा की बहोत याद आ रही है.. कितने अच्छे थे मेरे पापा.. !! तुझे भी अपनी बेटी मानते थे"

अब फाल्गुनी का दिमाग जागृत हो गया.. जरूर दीदी को कुछ शक हुआ है.. वरना वो ऐसे लहजे में कभी बात नहीं करती थी..

सिर्फ दो ही प्रहारों में फाल्गुनी का मुंह लटक गया.. और उसका अब कविता के सामने ज्यादा देर बैठ पाना मुश्किल था..

फाल्गुनी: "दीदी, मुझे घर जाना पड़ेगा.. रास्ते में ही मम्मी का फोन आया था.. उनका बीपी बढ़ गया है.. मैं घर जाने ही वाली थी की तब आपका फोन आ गया इसलिए यहाँ आ गई.. अगर कुछ अर्जेंट न हो तो मैं निकलूँ??"

कविता जवाब देती उससे पहले फाल्गुनी अपना पर्स उठाकर भाग गई

उसे जाता हुआ खिड़की से देखते हुए कविता मन ही मन हंसने लगी.. कविता ने देखा की फाल्गुनी चलते चलते मौसम के घर के पास गई.. मौसम बाहर ही खड़ी थी.. दोनों बातें करते हुए आगे चल दीये

मौसम: "क्या काम था दीदी को??"

फाल्गुनी: "कुछ खास नहीं.. ऐसे ही मिलने बुलाया था.. !!"

मौसम: "सच सच बता फाल्गुनी.. मुझे बेवकूफ मत बना"

फाल्गुनी: "यार मौसम, मुझे लगता है की अंकल और मेरे संबंधों के बारे में दीदी को शक हो गया है.. आज जिस टोन में उन्हों ने मुझसे बात की.. मुझे पक्का यकीन है यार"

मौसम सोच में पड़ गई.. दीदी को इसके बारे में कैसे पता चला होगा??

मौसम: "हो सकता है वैशाली ने पिंटू को बताया हो.. और पिंटू ने दीदी को बता दिया हो.. !!"

फाल्गुनी: "मुझे क्या पता यार.. "

मौसम: "चल छोड़ वो सब.. जो होना था वो हो गया.. जब पापा ही नहीं रहे तो उन सब पुरानी बातों से डरने का कोई मतलब नहीं है.. भूल जा सब... कल शाम को मैं अपनी ऑफिस गई थी.. जीजू से मिलने.. कितने महीनों के बाद गई वहाँ यार.. !!"

फाल्गुनी: "अंकल के जाने के बाद.. मैं उस रास्ते से गुजरी भी नहीं हूँ"

मौसम: "वहाँ ऑफिस में एक लड़का काम करता है.. विशाल नाम है उसका.. बहोत ही हेंडसम है यार"

फाल्गुनी: "अरे वाह.. बोल दे जीजू को.. की तेरी बात चलाएं उसके साथ"

मौसम: "वक्त आने दे.. वो भी करूंगी.. मैं तुझे ये बताने वाली थी की जीजू ने ३१ दिसंबर को अपने घर पर ही मस्त पार्टी करने का प्लान बनाया है.. वैशाली और पिंटू को भी बुलाने वाले है.. और दीदी से छुपकर रखा है.. उन्हें सरप्राइज़ देना का विचार है"

यह सुनकर फाल्गुनी की उदासी थोड़ी कम हुई..

फाल्गुनी: "अरे वाह.. तब तो बड़ा मज़ा आएगा, मौसम.. !! काफी टाइम हो गया.. किसी पार्टी में गए हुए.. !!"

मौसम: "और ये सब मेरी बदौलत हुआ है.. मैंने ऑफिस जाकर जीजू को झाड ही दिया तब जाकर वो तैयार हुए.. बाकी उन्हें बिजनेस से फुरसत ही कहाँ मिलती है.. !! जीजू ने प्लान बनाया और फिर विशाल और फोरम को भी न्योता दे दिया पार्टी में आने का.. मज़ा आएगा फ्लर्ट करने का.. और हाँ फाल्गुनी. पहले से बोल देती हूँ.. तू विशाल से दूर ही रहना"

फाल्गुनी: "अरे बाबा.. तू कहेगी तो मैं उसे पार्टी से पहले ही राखी बांध दूँगी... पर ये फोरम कौन है?"

मौसम: "जीजू की ऑफिस की रीसेप्शनिस्ट.. जैसे अंकल ने तुझे जुगाड़कर रखा हुआ था वैसे जीजू ने इस फोरम को रखा होगा.. आज कल तो सभी गाड़ियों में स्पेर-व्हील की सुविधा होती ही है ना.. हा हा हा हा.. !"

फाल्गुनी: "तो फोरम की जगह तुझे रीसेप्शनिस्ट बन जाना चाहिए था.. जीजू का अनुभव तो तू पहले ही कर चुकी है.. !!"

मौसम: "हम्म विचार तो अच्छा है.. ये कॉलेज का आखिरी साल खत्म हो जाने दे.. अब और पढ़ाई नहीं करनी है.. बस पापा की ऑफिस में आराम से बैठना है"

फाल्गुनी: "बात तो सही है.. तू वहाँ बैठकर ऑफिस का ध्यान भी रखेगी और जीजू का भी.. !!"

मौसम: "और साथ में विशाल का भी.. !!"

फाल्गुनी: "देखना पड़ेगा इस विशाल को.. उसका नाम बोलते बोलते तेरे गाल लाल हो जा रहे है"


दोनों बातें करते करते घूम कर वापिस आ गई.. मौसम अपने घर चली गई और फाल्गुनी अपने घर..
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