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Badiya update but thoda chota rahe gyaमौसम के घर से निकलकर अपने घर की ओर जाते हुए फाल्गुनी सोच रही थी.. इतने लंबे अंतराल के बाद आखिर राजेश अंकल ने क्यों फोन किया होगा.. !! कहीं उनके हाथ मेरे और अंकल के फ़ोटो-विडिओ तो नहीं लग गए.. !! अंकल के फोन में सब कुछ था ही और वो फोन राजेश अंकल के पास दो दिनों तक रहा था.. पर अगर ऐसा होता तो राजेश अंकल ने एक साल का इंतज़ार क्यों किया?? हो सकता है की सही समय का इंतज़ार कर रहे हो या फिर हिम्मत न जुटा पा रहे हो.. जो भी था.. उनसे बात करना जरूरी था.. और यह जानना भी की आखिर वो क्या क्या जानते है
रास्ते पर चलते चलते जा रही फाल्गुनी ने आखिरकार राजेश को फोन लगाया
राजेश: "मेरा फोन क्यों नहीं उठा रही थी फाल्गुनी??? नाराज है क्या मुझसे"
फाल्गुनी: "नहीं ऐसा कुछ नहीं है.. असल में जब भी आपका फोन आता तब कोई न कोई आसपास होता था.. इसलिए उठा नहीं सकी.. सॉरी.. कहिए कुछ अर्जेंट काम था?? पहले कभी नहीं और अब क्यों आप फोन पर फोन कर रहे है?" बिंदास होकर फाल्गुनी ने पूछ लिया.. अनुभव ने उसे सिखाया था की झाड़ू को गोल गोल घुमाने से कुछ नहीं होता.. सीधा मकड़ी पर ही झाड़ू मारने से काम होता है
राजेश: "देख फाल्गुनी.. मैं घुमा-फिराकर बात नहीं करूंगा.. मेरी बात का बुरा मत मानना.. पर सुबोधकांत के मोबाइल से मुझे तुम्हारे और उनके काफी आपत्तिजनक फोटोस और विडिओ मिले.. फाल्गुनी, तुझे तो मुझे थेंकस कहना चाहिए.. मैंने वो सब डिलीट कर दिया और किसी को इस बारे में नहीं बताया अब तक.. चाहता तो उसी वक्त तुम्हारा भंडाफोड़ कर सकता था.. पर वक्त की नजाकत को देखते हुए मैंने अब तक इंतज़ार करने में ही भलाई समझी.. पिछले एक साल से मुझे यही प्रश्न सता रहा है की तुझ जैसी सुंदर और जवान लड़की को उस बूढ़े में क्या नजर आ गया भला??"
फाल्गुनी: "माउंट आबू के टॉइलेट में जब वैशाली ने आपको अंदर खींच लिया था.. तब उसे आप के अंदर क्या नजर आ गया था?" बेवाक होकर फाल्गुनी ने कह दिया..
एक पल के लिए राजेश की बोलती बंद हो गई.. पर वो तुरंत पटरी पर आ गया
राजेश: "समझ गया तेरी बात.. अब मैं तुझसे जो भी कहूँगा.. आशा रखता हूँ की उसके बारे मैं तू खुले मन से सोचेगी और सही निर्णय लेगी.. मैं तेरे ऊपर किसी भी प्रकार का दबाव नहीं डाल रहा"
फाल्गुनी: "कहिए अंकल.. मैं सुन रही हूँ.."
राजेश: "वैशाली ने मेरे साथ आबू में जो कुछ भी किया उससे तुम यह बात तो मानेगी ही.. की मेरे अंदर भी वो सारी खूबियाँ होगी जो लड़कियों और औरतों को मेरी ओर आकर्षित करे"
फाल्गुनी: "जरूर होगी.. वरना इतनी सुंदर और सेक्सी वैशाली.. आपको घास क्यों डालती?? पार्टी में उस वक्त कई हेंडसम जवान लड़के थे.. सो आई बिलिव की आप मैं भी वो सारी खूबियाँ होंगी जिनके कारण मैं सुबोध अंकल के प्रति आकर्षित हुई थी.. "
राजेश: "देख फाल्गुनी.. तेरे वो सुबोध अंकल तो अब इस दुनिया में नहीं रहें.. और मैंने तेरे और उनके जो सारे विडिओ देखे है.. उससे यह साफ प्रतीत होता है की सेक्शुअल इच्छाएं काफी प्रबल है.. जिस तरह तू उनके साथ सेक्स कर रही थी उसे देखकर यही विचार आता है की अब तक तू बिना किसी के सहारे कैसे रह पाती होगी?? उंगली चलाने से लंड जैसा मज़ा तो आता नहीं होगा तुझे.. !!"
एक साल के बाद, फाल्गुनी किसी मर्द के मुंह से सेक्स जैसा शब्द सुन रही थी.. उस दौरान वो चलते चलते अपने घर तक पहुँच गई थी.. वो फटाफट अपने कमरे में घुस गई और दरवाजा अंदर से बंद कर दिया
राजेश: "चुप क्यों हो गई?"
फाल्गुनी: "दरअसल मैं मौसम के घर से निकली और अभी अपने घर पहुंची.. ड्रॉइंगरूम में मम्मी थी इसलिए चुप हो गई थी.. अब बोलीये अंकल.. आपने ठीक कहा.. अंकल के साथ मैंने बहुत मजे किए है.. पर अब क्या हो सकता है.. !!"
राजेश: "तो शादी क्यों नहीं कर लेती तू?"
फाल्गुनी: "मेरे मम्मी-पापा काफी समय से मेरे लिए लड़के देख रहे है.. पर मेरा ही मन नहीं करता.. ऊपर से मौसम के साथ तरुण ने जो किया उसके बाद से शादी करने से जी घबरा रहा है"
राजेश: "सुबोधकांत के लिए तेरे मन में जो जज़्बात है उसे मैं समझ सकता हूँ.. पर कब तक उनकी याद में तड़पती रहेगी?? कभी न कभी तो तुझे उन्हें भूलना ही पड़ेगा और नई ज़िंदगी की शुरुआत करनी ही होगी"
फाल्गुनी: "वो तो है ही, अंकल.. पर भूलना कहाँ आसान है.. !! और किसी को याद करना या भूलना ये हमारे बस में तो होता नहीं है.. फिलहाल मैं और मौसम एक दूसरे के सहारे जी रहे है.. हम दोनों को नए साथी की तलाश है.. जो सुबोध अंकल की तरह समजदार हो.. मेच्योर हो.. आई मिस हीम वेरी मच.. उनके साथ बिताया एक एक पल मुझे हरदम याद आता है.. !!"
राजेश: "उनका टच भी तो याद आता होगा.. है ना.. !!"
अब ये एकदम पर्सनल सवाल था जिसका जवाब फाल्गुनी देना नहीं नहीं चाहती थी.. पर राजेश ने उसके और अंकल के चुदाई के विडिओ तो देख ही लिए थे.. इसलिए अब औपचारिकता दिखाने की कोई जरूरत नहीं थी..
बिंदास होकर फाल्गुनी ने जवाब दिया.. "ऑफ कोर्स.. याद क्यों नहीं आएगा.. !! उस मामले मे वो एकदम परफेक्ट थे.. उन्हें कभी कुछ कहना नहीं पड़ता था.. वो सब समझ जाते थे.. उनके पास से मुझे जो मिला.. वो अप्रतिम था.. मैं कभी भूल नहीं पाऊँगी" फाल्गुनी की आवाज और आँखें नम हो गई..
राजेश: "फाल्गुनी, अब मैं और क्या कहूँ? पर अगर तुझे या मौसम को मेरा कुछ भी काम हो तो बेझिझक बताना.. तुम दोनों मुझसे या रेणुका से बात कर सकती हो.. वैसे मैंने रेणुका को तुम्हारे और सुबोधकांत के संबंधों के बारे में कुछ नहीं बताया है इसलिए वो बात मत करना.. वैशाली और उसकी मम्मी भी है.. कविता और पीयूष वहाँ शिफ्ट हो गए उसका ये मतलब नहीं की हमें भूल जाओ.. याद है ना.. एक साल पहले हम सब माउंट आबू गए थे रेणुका के बर्थडे पर तब कितना मज़ा किया था??"
फाल्गुनी: "हाँ अंकल याद है.. पर ऐसा कोई फ़ंक्शन हो तो आ सकते है.. आप फिर से रेणुका भाभी का बर्थडे सेलिब्रेट करेंगे तो हम जरूर आएंगे"
राजेश: "वैसे मजे करने के लिए मौकों का इंतज़ार नहीं करते.. मौके बनाने पड़ते है.. तुझे साथ लेकर घुमाने के लिए सुबोधकांत बिजनेस मीटिंग का बहाना बनाते ही थे ना.. !!"
फाल्गुनी: "वैसे बिजनेस आपका भी है.. तो क्या आप भी मीटिंग के नाम पर ये सब करते हो?"
राजेश: "सिर्फ मैं ही नहीं.. मेरे जैसे काफी लोग ऐसा करते है.. अगर सुबोधकांत अपनी पत्नी से ये कहते की मैं फाल्गुनी के साथ सेक्स करने जा रहा हूँ, तो क्या वो उन्हें जाने देती??"
फाल्गुनी: "हम्म.. मैं समझ गई अंकल"
राजेश: "डॉन्ट वरी.. मैं कुछ जुगाड़ करता हूँ मिलने का"
फाल्गुनी: "मैं फोन रखती हूँ"
राजेश: "रखने से पहले मैं तुम्हें पूछना चाहता हूँ.. क्या आगे से मैं तुम्हें फोन कर सकता हूँ? और क्या तुम मेरा फोन उठाओगी?"
फाल्गुनी: "हाँ अंकल.. पर कॉल करने से पहले मेसेज कर देना.."
राजेश: "उससे बेहतर यही होगा की तू ही सामने से मुझे फोन करना... जब तू अकेली हो.. सुबह नौ बजे से लेकर रात के आठ बजे तक मैं ऑफिस में होता हूँ.. उस समय तुम मुझे फोन कर सकती हो"
फाल्गुनी: "ठीक है अंकल"
राजेश: "बाय डीयर.. !!"
राजेश ने फोन रख दिया और आगे की रणनीति के बारे में सोचने लगा..
फाल्गुनी ने तुरंत मौसम को फोन लगाया और राजेश के फोन के बारे में बता दिया..
वैसे फाल्गुनी को राजेश से बात करने के बाद बहुत अच्छा लगा.. अंकल के जाने के बाद जो खालीपन महसूस हो रहा था.. उसमें कहीं न कहीं राजेश फिट होता नजर आने लगा था
मौसम से बात करने के बाद.. फाल्गुनी ने शीला को फोन लगाया और उन्हें बताया की तरुण के लिए मौसम के दिल में अभी भी जज़्बात है.. और हो सकें तो वो एक बार तरुण से बात करें.. शीला भी अब गंभीरता से इस बारे में सोचने लगी थी
मौसम के घर में अब केवल वो और उसकी मम्मी ही बचे थे.. कविता और पीयूष नजदीक ही रहते थे और आते जाते रहते थे.. पर सुबोधकांत का इतना बड़ा कारोबार अकेले संभालते हुए पीयूष के नाक में दम हो जाता.. पीयूष अक्सर सोचता की इतना बड़ा बिजनेस संभालने के बाद भी ससुरजी को गुलछर्रे उड़ाने का समय कैसे मिल जाता था.. !!!
कविता के पास अब ढेर सारा पैसा था.. वो जैसे चाहती उड़ा सकती थी.. उसे काफी बार पिंटू की याद आ जाती.. और पीयूष जब बेहद व्यस्त होता तब पुराने दिन भी याद आ जाते जब पीयूष राजेश की ऑफिस मे सिर्फ एक मुलाजिम था.. कम से कम शाम के सात बजे घर तो आ जाता था.. दौलत तो बहोत आ गई थी पर पति का साथ नहीं मिल रहा था.. काफी समय हो गया था कविता और पीयूष की शादी को.. अनुमौसी की आँखें उनके संतान को देखने के लिए तरस रही थी.. कविता को भी अक्सर अपनी सुनी कोख सताती रहती थी..
ऐसी ही एक शाम को कविता उदास मन से.. बरामदे में झूले पर बैठकर सब्जी काट रही थी..
तभी मौसम वहाँ पहुंची..
मौसम: "मुंह लटकाकर क्यों बैठी हो दीदी? जीजू ने रात को ठीक से डोज़ नहीं दिया क्या?" पिछले एक साल में मौसम और फाल्गुनी, कविता के साथ काफी बिंदास हो गए थे.. और सारी बातें खुलकर करते थे.. कविता और मौसम बहनों की तरह नहीं पर सहेलियों की तरह बन गई थी
कविता: "तेरे जीजू को टाइम ही कहाँ है मुझ डोज़ देने का.. पहले तो पीयूष रोज रात को सेक्स करने के लिए मुझे इतना तंग करता था.. मैं तो यही सोचती की इन मर्दों को सेक्स के अलावा और कुछ सूझता ही नहीं होगा क्या.. !! चौबीसों घंटे खड़ा ही रहता था उसका.. मौका मिलते ही बाहर निकालकर खड़ा हो जाता था वो.. शादी के शुरुआती समय में तो मैं ऐसा ही सोचती थी की लंड हमेशा सख्त ही रहता होगा क्योंकी नरम लंड मैंने कभी देखा ही नहीं था.. वही पीयूष आज बिजनेस में इतना डूब चुका है की मुझे कई बार ताज्जुब होता है.. इसे मेरी याद आती भी है या नहीं?"
मौसम: "दीदी... जीजू ने पापा का इतना बड़ा कारोबार इतने कम समय में संभाल लिया वही बहोत बड़ी बात है.. वरना सब कुछ बिखर जाता"
कविता: "वो सब तो ठीक है मौसम.. पर बिजनेस के चक्कर में घर-गृहस्थी बिखर जाएगी उसका क्या??"
मौसम किचन में पानी लेने चली गई इसलिए उसने सुना नहीं..
अपने दिल की भड़ास निकाल रही कविता पर पीयूष को फोन आया और उसने कहा की उसे देर हो जाएगी और खाना ऑफिस में ही खा लेगा..
कविता ने फोन रख दिया.. अभी अभी उसने फूलगोभी काटी थी सब्जी बनाने के लिए.. काटी हुई सब्जी की थाली उसने कंपाउंड के बाहर खड़े सांड के सामने उंडेल दी.. और उस विशालकाय सांड को खाते हुए देखती रही.. मन ही मन वो हंस रही थी.. पीयूष को फूलगोभी की सब्जी बहोत पसंद थी.. इसलिए मार्केट जाकर वो खास उसके लिए खरीद कर लाई थी.. पर पीयूष के पास समय ही कहाँ है.. !! फूलगोभी किसके लिए लाई थी और कौन खा रहा है.. !!
कहते है ना.. दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम.. !! फूलगोभी को चट करने के बाद वो सांड आभारवश कविता के सामने देख रहा था
"अरे दीदी.. ये क्या किया?? इतनी महंगी सब्जी आपने गाय को खिला दी?" मौसम ने बाहर आकर कहा
"वो गाय नहीं.. सांड है मौसम.. !!" कविता ने कहा
"अरे यार.. गाय हो या सांड.. क्या फरक पड़ता है?" मौसम का संकेत फूलगोभी की सब्जी की ओर था
"सांड सांड होता है और गाय गाय होती है.. फरक तू नहीं समझेगी.. जो काम सांड कर सकता है वो गाय कभी नहीं कर सकती.. !!" शादी-शुदा दीदी की अनुभवयुक्त वाणी सुनकर मौसम के गाल शर्म से लाल लाल हो गए.. दीदी के कहने का अर्थ भलीभाँति समझ रही थी मौसम
"हाँ दीदी.. मुझे कैसे समझ आएगा.. मैं ठहरी अनपढ़ और गंवार.. " दीदी की उदासी छटते देखकर मौसम ने मज़ाक जारी रखा
"मैंने कब कहा की तू अनपढ़ गंवार है.. !! हा सामाजिक तौर पर तुझ में अनुभव की कमी जरूर है.. पर आज कल की इंटरनेट जनरेशन बहोत जल्दी बड़ी हो जाती है.. अठारह की उम्र में ही लड़कियों को सारे अनुभव हो जाते है.. मेरी भी तो फ्रेंडशिप हो गई थी ना उस पिंटू के साथ"
मौसम ने कविता के कंधे से कंधा टकराते हुए शरारती अंदाज में कहा "तो क्या वो पिंटू के साथ भी तुमने अनुभव कर लिया था क्या?"
कविता: "मैं तो तैयार थी.. पर वो बेवकूफ ही नहीं माना.. !!"
मौसम: "अरे हाँ दीदी.. आपको बताना भूल गई.. मेरे खयाल से पिंटू अब वैशाली के साथ है.. और शायद वो दोनों जल्द ही शादी करने वाले है.. " मौसम ने बॉम्ब फोड़ दिया.. जिसने कविता के दिल के चींथड़े उड़ा दीये.. दिल बैठ गया उसका.. पर फिर उसे खयाल आया की उसके भरोसे पिंटू थोड़े ही पूरी ज़िंदगी कुंवारा बैठा रहेगा.. !!
कविता: "क्या सच मे?? मुझे तो पता ही नहीं था.. ये सब कब तय हुआ?? और तुझे किसने बताया?"
मौसम: "वो तो एक दिन वैशाली से बात करने के लिए फोन किया तो शीला भाभी ने उठाया.. बातों बातों में पता चला की वैशाली पिंटू के साथ घूमने गई हुई थी.. जिस साहजीकता से उन्होंने यह बात बताई उससे साफ जाहीर है की उनके संबंधों पर शीला भाभी और मदन भैया का ठप्पा लग चुका है"
कविता: "वो क्यों मना करेंगे भला.. पिंटू जैसा लड़का तो नसीब से ही मिलता है"
मौसम के गाल खींचकर कविता ने कहा "अब तेरी बारी है.. मैंने एक लड़का ढूंढ लिया है तेरे लिए"
मौसम ने थोड़े से गुस्से के साथ कहा "क्या दीदी आप भी.. मुझे नहीं करनी कोई शादी-वादी.. मैं तो जीजू से मिलने ऑफिस जा रही हूँ.. बहोत दिन हो गए उनसे मिले हुए.. जाकर पूछती हूँ.. की उन्हें अपनी ये सुंदर साली याद भी है या भूल गए?? तुम चलोगी?"
कविता: "नहीं यार.. तू जा.. शायद तुझे देखकर उसे अपनी मर्दानगी की याद आ जाए"
मौसम ठहाका मारकर हंसने लगी.. "क्या दीदी तुम भी.. !! अगर जीजू को अपनी मर्दानगी की याद आ गई तो ऑफिस में मेरा क्या हाल करेंगे?" स्कूटी स्टार्ट करके मौसम निकल गई.. कविता उसे पीछे से देखती रही.. सुंदर गुड़िया जैसी मौसम.. ऐसे रूप के खजाने को तरुण ने छोड़ दिया..
मौसम के जाने के बाद कविता घर के अंदर आई और शीला को फोन लगाया
शीला: "ओह्ह कविता.. साली भेनचोद... कहाँ है तू??" अपने खास अंदाज में शीला ने कहा.. शीला की आवाज सुनते ही कविता की सारी उदासी एक पल में गायब हो गई..
कविता: "क्या भाभी.. मैं तो यहीं हूँ.. आप ही मुझे भूल गई हो.. !!"
शीला: "हम्म.. मैं तो भूल गई हूँ तुझे.. पर वो बेचारा रसिक बहोत याद करता है"
कविता: "तो यहाँ का पता देकर भेज दो उसे मेरे पास.. मुझे वैसे भी बहोत जरूरत है"
शीला: "क्यों?? वो पीयूष विदेश चला गया क्या मेरे मदन की तरह??"
कविता: "जिसका पति विदेश हो उसे ही सर्विस देता है क्या रसिक?? तो मैं भी भेज देती हूँ पीयूष को विदेश.. पीयूष यहीं है लेकिन उसके पास बिजनेस से फुरसत ही नहीं है मेरे लिए.. इसलिए कह रही हूँ.. रसिक को भेज दो यहाँ.. हा हा हा हा हा ... !!"
शीला: "भूल जा.. रसिक को बर्दाश्त करना, तेरे बस की बात नहीं है"
कविता: "क्यों भला??"
शीला: "क्योंकि उसका सामान बहोत भारी है.. मुझ जैसी बड़ी सूटकेस भी उसके सामान को संभाल नहीं पाती.. तो तेरा क्या हाल करेगा?? रसिक से एक बार करवाने के बाद.. नीचे एक हफ्ते तक ताला लग जाता है.. ताकि उसके दीये हुए घाव ठीक हो सके.. तू बोल.. अचानक रसिक की इतनी जरूरत क्यों आन पड़ी?? और फोन भी इसीलिए किया था क्या?" कविता के शरीर को पाने के लिए रसिक कितना उत्सुक था वो शीला जानती थी.. और कविता भी तो जानती थी
कविता: "नहीं भाभी.. वो देसी पट्ठा मुझे तोड़-मरोड़कर रख देगा.. मेरे लिए तो पीयूष ही ठीक है.. रसिक आपको मुबारक.. !!"
शीला: "हाँ कविता.. उसे झेलना तेरे बस का नहीं है.. और मुझ जैसी को उसके अलावा और कोई राज नहीं आता.. मदन भी आठ महीनों के लिए विदेश गया था.. एक प्रोजेक्ट के सिलसिले मे.. तब रसिक से ही मेरा गुजारा चलता था.. मैं तो कहती हूँ की अच्छा हुआ जो तूने उसे अब तक चखा नहीं.. वरना और कोई पसंद ही न आता.. !!"
कविता: "इतना स्वादिष्ट है क्या रसिक?? फिर तो एक बार चखना पड़ेगा.. !!"
शीला: "तो आजा इधर एक दिन.. कर देती हूँ सेटिंग.. वो तो कब से तेरे पीछे पड़ा है.. तुझे तो पता ही होगा.. !!"
सुनकर कविता चोंक गई.. शीला को इस बारे में कैसे पता चला.. !! कहीं रसिक ने तो उस रात के बारे में शीला को बता तो नहीं दिया.. !!
कविता: "कितना भी मन क्यों न हो.. पर आने का मौका ही कहाँ मिलता है भाभी.. !! अक्सर मैं पुराने समय के बारे में सोचती हूँ.. आपके साथ थी तब जो मज़ा आता था.. वो सब तो गायब ही हो गया ज़िंदगी से"
हकीकत में कविता ने बड़े मजे कीये थे शीला के साथ.. दिन भर शीला भाभी की सेक्सी बातें.. नॉन-वेज जोक्स.. कामुक छेड़खानियाँ.. और एक दो बार का वो लेस्बियन सेक्स.. शीला भाभी के साथ रहकर कविता इतनी उत्तेजित हो जाती की वो इंतज़ार करती.. कब पीयूष आए और कब उससे लिपट कर चुदवाऊँ.. !! और पीयूष तो शीला भाभी को देखकर ऐसे उत्तेजित हो जाता जैसे अभी अभी वायग्रा की गोली खाई हो
कविता: "यहाँ और सब कुछ है भाभी.. सिर्फ आप नहीं हो.. बहोत मिस करती हूँ आपको"
शीला: "तो मैं भी यहाँ पर अकेली ही हूँ.. आप सब को याद करके कई बार रोना आ जाता है मुझे.. !!"
कविता: "एकाद बार आप क्यों नहीं आ जाती यहाँ?? उसी बहाने मेरा घर भी देख लोगी.. इतना बड़ा घर है मेरा.. आप और मदन भैया अलग अलग कमरे में सो सकते हो.. !!"
शीला: "आऊँगी.. जरूर आऊँगी.. और जब भी आऊँगी.. तेरे और पीयूष के बीच में सोऊँगी.. हा हा हा हा हा.. !! और बता.. सब ठीक चल रहा है बाकी सब?"
कविता: "दरअसल एक काम था इसलिए फोन किया था.. आप तरुण का नंबर नोट कीजिए.. उससे बात कीजिए और किसी भी तरह जानने की कोशिश कीजिए की उसने आखिर सगाई तोड़ क्यों दी थी.. !! बात बात में ये भी बताना है की मौसम अब भी बिन-ब्याही है.. और अगर उसकी इच्छा हो तो फिर से एक बार सोच लें इस बारे में"
शीला सोचने लगी.. पिछले दिन फाल्गुनी का इसी काम के लिए फोन आया था.. अब कविता भी वही बात कह रही है.. जो रिश्ता तरुण एक साले पहले तोड़ चुका था.. उससे फिर से जोड़ने के लिए कैसे कहें?? समाज क्या कहेगा? और अभी सगाई तोड़ने की असली वजह का तो पता भी नहीं है
शीला: "तू चिंता मत कर कविता.. मैं और मदन कुछ करेंगे इस बारे में"
शीला भाभी के आत्मीयता भरे आश्वासन से कविता का दिल भर आया.. पीयूष के बीजी होने से जो असंतोष था वो सब शीला भाभी को बताना चाहती थी.. पर तभी अचानक मदन आ गया और शीला ने फोन रख दिया..
मदन कपड़े बदलने लगा.. शायद कहीं जाने की तैयारी कर रहा था.. मदन को नंगा देखकर शीला के दिल के अरमान जाग उठे.. शीला अपनी कमर मटकाती हुई बेडरूम के अंदर आई.. तब मदन वॉर्डरोब से कपड़े निकाल रहा था..
मदन सुबोधकांत के निधन के बाद, एक प्रोजेक्ट के लिए कन्सल्टन्ट के तौर पर आठ महीनों के लिए फिर विदेश चला गया था.. वापिस लौटने के बाद भी शीला ने अपना गुस्सा नहीं छोड़ा था.. वो अब भी उस रात की बात निकालकर मदन को ताने मारती रहती थी.. अब भी मदन के साथ संबंध उसने सामान्य होने ही नहीं दीये थे.. तो मदन ने भी गुस्से में आकर शीला के साथ सेक्स करना बंद कर दिया था.. उसे बराबर पता था की बिना सेक्स के शीला ज्यादा दिन रह नहीं पाएगी और लँड लेने के चक्कर में उसके पास सामने से चलकर आएगी
अपनी आदत के अनुसार.. शीला को रोज रात चुदाई की इच्छा होती.. पर मदन करवट लेकर सो जाता और वो मन ही मन भड़कती रहती.. तकलीफ तो मदन को भी बहोत हो रही थी.. ठंड का वक्त था.. और बगल में गरम तंदूर जैसी बीवी सो रही हो.. और बिना कुछ कीये रात बिताने में उसी भी बड़ी तकलीफ हो रही थी.. आखिर वो बाथरूम में जाकर मूठ लगाकर सो जाता.. जिस आग में मदन जल रहा था उस आग ने शीला का कई ज्यादा नुकसान कर दिया था..
बेडरूम में घुसते ही शीला ने अपना पल्लू गिरा दिया.. और मदन के बिल्कुल करीब खड़े रहकर ऐसा अभिनय करने लगी जैसे वो भी वॉर्डरोब में कुछ ढूंढ रही हो..
♩♫ प्यास भड़की है सरे शाम से जल रहा है बदन,
इश्क से कह दो की ले आए कहीं से सावन..♫
शीला ये गीत गुनगुना कर मदन को उकसा रही थी.. जिसे सुनकर मदन का दृढ़ निश्चय चकनाचूर हो रहा था.. मदन वहाँ से हटकर शीला से दूर जाना चाहता था पर कमबख्त पेंट ही नहीं मिल रहा था.. उसने तिरछी नज़रों से कपड़े ढूंढ रही शीला की काँखों से नजर आ रहे खरबूजे जैसे स्तनों को देखा.. इतनी ठंड में भी शीला के जिस्म पर पसीना आ रहा था.. गोरी गर्दन से पसीने की धारा उसकी क्लीवेज के बीच जा रहा था.. वही क्लीवेज जिसमें कई मर्दों की मर्दानगी दफन पड़ी थी..
♫पिया तू... अब तो आजा..
शोला सा मन भड़के.. आ के बुझा जा..
तन की ज्वाला ठंडी हो जाए.. ऐसे गले लगा जा♬
शीला ने दूसरा गीत गाकर आग में पेट्रोल डालने का काम कर दिया..!!!
शीला के गूँदाज बबलों को देखकर मदन मन ही मन आहें भर रहा था.. सोच रहा था.. भेनचोद.. ये मेरे ही है.. बाकायदा ब्याह किया है मैंने.. फिर भी दबाने के लिए तरस रहा हूँ?? शीला की भव्य कमर और गहरी सेक्सी नाभि को देखता रहा मदन.. शीला के रूप.. और उसके गानों ने मदन के मन मे हवस की आग को हवा तो दे ही दी थी.. ऊपर से अकेलेपन ने आग में घी का काम किया.. और काम-यज्ञ शुरू हो गया.. मदन का सारा अहंकार एक ही पल में भांप बनकर उड़ गया..
आखिर आग और घी के मिलने से जो होता है वही हुआ
"मादरचोद.. कितने महीने हो गए.. साली तू तो सामने भी नहीं देखती?? बहोत चर्बी चढ़ी है तुझे रंडी.. आजा, आज तुझे दिखाता हूँ" कहते हुए मदन ने शीला को अपनी बाहों में जकड़ लिया
मन ही मन अपने विजय पर खुश हो रही शीला ने चेहरे पर अब भी क्रोध के भाव धारण कर रखे थे.. वो मदन की पकड़ से छूटने की नाकाम कोशिश करती रही.. वैसे वो छूटना चाहती ही नहीं थी.. सिर्फ नाटक कर रही थी..
"नालायक, भड़वे.. छोड़ मुझे.. राँडों को लेकर चोदने गया था तब मेरी याद नहीं आई तुझे.. साले हिजड़े.. !!" शीला की ये स्टाइल थी.. मदन की मर्दानगी को ललकारने पर वो बेकाबू हो जाता.. शीला के पुष्ट पयोधर स्तन मदन की छाती से दबकर चपटे हो गए थे.. शीला के गोरे गुलाबी गालों पर मदन ने उत्तेजनावश काट लिया..
"आह्ह छोड़ मुझे.. मर गई.. छोड़ दे मुझे भेनचोद.. जा उस बार्बी और सुनंदा को पकड़.. मुझे छोड़.." जैसे जैसे शीला नखरे करती गई वैसे वैसे मदन और हिंसक होता गया.. वो एक साल से भूखा था.. आज वो ऐसे गुर्रा रहा था जैसे लाल कपड़ा देखकर कोई सांड भड़क रहा हो.. उसने एक झटके में शीला का ब्लाउज फाड़ दिया.. कपड़ा फटते ही उसमें कैद मोटे खरगोश जैसे स्तन बाहर झूलने लगे.. उन्मुक्त मदन बेपरवाह होकर शीला के जिस्म पर हमले कर रहा था.. शीला को मदन का यह रूप बेहद पसंद था.. कभी कभी तो वो मदन को सामने से जोर-जबरदस्ती करने के लिए कहती.. इस तरह संभोग का पिशाची आनंद लेने में शीला को बहोत मज़ा आता.. आज कितने महीनों के बाद उसे मदन का यह रूप देखने मिला था.. अगर वो सहयोग देने लगती.. तो जोर-जबरदस्ती का सिलसिला रुक जाता.. जो वो नहीं चाहती थी.. वो तो चाहती थी की मदन ज्यादा से ज्यादा आक्रामक हो.. हिंसक हो.. और इसके लिए यह बेरुखी का नाटक जारी रखना बेहद जरूरी था.. ताकि मदन उसे काबू में करने के लिए और जोर आजमाए.. !!
मदन की राक्षसी पकड़ से शीला जैसे तैसे छूट तो गई.. पर भाग कर जाती कहाँ.. !! वैसे वो कहीं भागकर जाना चाहती भी नहीं थी.. दूसरे ही पल मदन ने झपट्टा मारकर उसे पकड़ लिया और शीला को बिस्तर पर गिराकर.. उसके ऊपर चढ़ गया.. !!! जबरदस्त उत्तेजित था मदन.. पूरे एक साल की सारी कसर वो आज शीला पर निकालना चाहता था.. शीला का फटा हुआ ब्लाउज.. जांघों तक ऊपर चढ़ चुका पेटीकोट.. शीला के जिस्म को रति जैसा सौन्दर्य प्रदान कर रहे थे.. शीला के पेट पर सवार होकर दोनों हाथों से स्तन पकड़कर मदन ने मसलते हुए चूस लिए..
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मदन की जीभ का स्पर्श निप्पल पर महसूस होते ही शीला का विरोध पचास प्रतिशत कम हो गया.. उसकी ताकत कमजोर हो गई और एक जबरदस्त सिसकी के साथ उसने काम-यज्ञ में आहुति देने का कार्य शुरू किया.. शीला खुद ही बड़ी उत्तेजना से मदन के लंड को जांघिये के ऊपर से ही पकड़ लिया.. इस खेल में.. कौन जीता, कौन हारा.. उसका फैसला करने के लिए मदन ने शीला की तरफ एक नजर देखा.. पर शीला ने मदन को सर के बालों से पकड़कर अपनी ओर खींचा और वासना सभर चुंबनों से पिछला तमाम हिसाब चुका दिया.. !!
पति-पत्नी के सामान्य झगड़ों और मन-मुटाव का अंत हमेशा कुछ ऐसा ही होता है.. और ऐसा ही अंत होना भी चाहिए..!! दो जिस्म जब एक हो जाए, फिर किसी भी गीले-शिकवे की कोई गुंजाइश नहीं बचती.. जरूरत होती है पहल करने की.. और छोटी-मोटी अनबनों को हद से ज्यादा न खींचने की..
शीला के गरम तंदूर जैसे भोसड़े से, मदन के प्रति प्रेम के कारण, बहोत ही जल्दी गीलापन रिसने लगा था.. केवल जाँघिया पहनकर शीला के शरीर पर सवार मदन के लंड को उकसाने का काम शीला ने शुरू कर दिया था.. जब उसे तसल्ली हो गई की उसका लंड पूरी तरह तनकर टाइट हो चुका था.. तब उसने जाँघिया सरकाकर लंड को बाहर निकाला..
"आह्हहहह...!!" शीला के मुख से.. मदन के लंड को देखकर ही आह निकल गई.. लंबा सख्त लोडा देखकर शीला को अनायास ही सुबोधकांत और राजेश के मोटे तगड़े लंड की याद आ गई.. उसे अब इतना मज़ा आ रहा था की उसने पलटी मारकर मदन को लिटा दिया और वो खुद उस पर सवार हो गई.. बिना किसी झिझक या शर्म के शीला ने मदन का लंड पकड़ा और अपने चूत के होंठों की बीच टिकाकर.. जिस्म का पूरा वज़न डालते हुए बैठ गई.. !!
बड़े ही आराम से मदन के लंड को अपने भोसड़े में छुपाकर वह अपने विशाल स्तनों से मदन के मुंह को दबाते हुए बोली
"साले भड़वे.. तू क्या मुझे चोदेगा.. !! देख मैं तुझे कैसे चोदती हूँ अब.." कहते हुए वो गुर्राकर मदन के लंड पर उछलने लगी
दोनों एक दूसरे में इतने मशरूफ़ थे की भूल ही गए.. मुख्य दरवाजा लॉक नहीं किया था.. और जब वैशाली ऑफिस से आई और इन दोनों की काम-क्रीडा में लिप्त देखा तब उसके पैर जमीन से जैसे चिपक से गए.. !! वो सोच रही थी.. की अगर ५५ की उम्र में भी मम्मी इतनी कामुक और हवसखोर ही की दरवाजा बंद करना भूल गई.. तो अपने जवानी के दिनों में वो क्या क्या नहीं करती होगी.. !! जिस पोजीशन में चुदाई चल रही थी.. वह वैशाली की पसंदीदा सेक्स पोजीशन थी.. स्त्री ऊपर और मर्द नीचे.. !! वो बेडरूम के दरवाजे के पीछे छुप गई.. मम्मी-पापा का सेशन खतम होने के बाद ही वो अपनी मौजूदगी जताना चाहती थी.. पर इस दौरान अगर कोई और घर के अंदर आ गया तो.. ?? दरवाजा तो अभी भी खुला था क्योंकि अब अगर वो बंद करने जाती तो उसकी आवाज से शीला और मदन को पता लग जाता और उनकी चुदाई के बीच बाधा पड़ती..
वैशाली चाहती थी की किसी तरह मम्मी और पापा को सचेत किया जाए.. पर ऐसा करने मे उसकी मौजूदगी जाहीर हो जाने का खतरा था.. तभी वैशाली के फोन पर पिंटू का फोन आया.. रिंगटोन सुनते ही शीला मदन के शरीर से छलांग मारकर बेड से उतर गई और पास पड़ी साड़ी से अपने तन को ढँक लिया.. मदन अपनी नग्नता को छुपाने के लिए दौड़कर बाथरूम में घुस गया.. गनीमत थी की फोन की रिंग बजते ही वैशाली उनके बेडरूम के दरवाजे से हटकर तुरंत ड्रॉइंगरूम में चली गई.. इसलिए शीला और मदन को किसी शर्मनाक परिस्थिति का सामना न करना पड़ा..
शीला ने फटाफट कपड़े पहने और बाहर आई.. उसने देखा की बेखबर होकर वैशाली सोफ़े पर बैठकर फोन पर बात कर रही थी.. शीला ने चैन की सांस ली.. उसने अंदर बेडरूम मे जाकर मदन का पेंट उठाया.. और बाथरूम के दरवाजे पर दस्तक देकर.. मदन को थमा दिया..
शीला वापिस ड्रॉइंग रूम में आई उससे पहले वैशाली अपने कमरे में जा चुकी थी.. बेड पर आँखें बंद कर लेटी हुई वैशाली की आँखों के सामने से वह द्रश्य हट ही नहीं रहा था जो उसने कुछ पलों पहले देखा था.. मम्मी के उछलते हुए स्तन... उनके भारी भरकम चूतड़.. बिखरे हुए बाल.. और नीचे पुचूक पुचूक कर रहा पापा का लंड.. आह्ह.. !! वैशाली को न चाहते हुए भी अपनी उंगली पेन्टी में डालनी पड़ी.. जब मम्मी पापा के लंड के ऊपर से छलांग लगाकर उठी तब पापा के लंड की जो हालत थी वो बार बार याद आ रही थी वैशाली को.. !!! क्यों की उनका पूरा लंड मम्मी की योनि के स्खलन-जल से लिप्त होकर चमक रहा था.. और अपने आप ऊपर नीचे हो रहा था.. वैशाली सोच रही थी की ऐसा तो क्या हो गया होगा जो वो लोग दरवाजा खुला छोड़कर ही शुरू हो गए?? नए कुँवारे जोड़ों के साथ ऐसा होना मुमकिन था.. पर शादी के तीस साल बीता चुके जोड़ों का संभोग पूरे प्लैनिंग के साथ होता है.. वक्त का सही चयन और परिस्थिति के पूर्ण आकलन के बाद ही अनुभवी विवाहित जोड़ें संभोग में रत होते है..
पेन्टी के अंदर अपनी उंगली से भगोष्ठ को रगड़ते हुए वैशाली सोच रही थी.. पिंटू के साथ ऐसा सुख मुझे न जाने कब मिलेगा.. !!! वैशाली का जिस्म अब पुरुष का भोग मांग रहा था.. शारीरिक भूख अब उसकी बर्दाश्त के बाहर होती जा रही थी
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Bahut ही खूबसूरतमौसम के घर से निकलकर अपने घर की ओर जाते हुए फाल्गुनी सोच रही थी.. इतने लंबे अंतराल के बाद आखिर राजेश अंकल ने क्यों फोन किया होगा.. !! कहीं उनके हाथ मेरे और अंकल के फ़ोटो-विडिओ तो नहीं लग गए.. !! अंकल के फोन में सब कुछ था ही और वो फोन राजेश अंकल के पास दो दिनों तक रहा था.. पर अगर ऐसा होता तो राजेश अंकल ने एक साल का इंतज़ार क्यों किया?? हो सकता है की सही समय का इंतज़ार कर रहे हो या फिर हिम्मत न जुटा पा रहे हो.. जो भी था.. उनसे बात करना जरूरी था.. और यह जानना भी की आखिर वो क्या क्या जानते है
रास्ते पर चलते चलते जा रही फाल्गुनी ने आखिरकार राजेश को फोन लगाया
राजेश: "मेरा फोन क्यों नहीं उठा रही थी फाल्गुनी??? नाराज है क्या मुझसे"
फाल्गुनी: "नहीं ऐसा कुछ नहीं है.. असल में जब भी आपका फोन आता तब कोई न कोई आसपास होता था.. इसलिए उठा नहीं सकी.. सॉरी.. कहिए कुछ अर्जेंट काम था?? पहले कभी नहीं और अब क्यों आप फोन पर फोन कर रहे है?" बिंदास होकर फाल्गुनी ने पूछ लिया.. अनुभव ने उसे सिखाया था की झाड़ू को गोल गोल घुमाने से कुछ नहीं होता.. सीधा मकड़ी पर ही झाड़ू मारने से काम होता है
राजेश: "देख फाल्गुनी.. मैं घुमा-फिराकर बात नहीं करूंगा.. मेरी बात का बुरा मत मानना.. पर सुबोधकांत के मोबाइल से मुझे तुम्हारे और उनके काफी आपत्तिजनक फोटोस और विडिओ मिले.. फाल्गुनी, तुझे तो मुझे थेंकस कहना चाहिए.. मैंने वो सब डिलीट कर दिया और किसी को इस बारे में नहीं बताया अब तक.. चाहता तो उसी वक्त तुम्हारा भंडाफोड़ कर सकता था.. पर वक्त की नजाकत को देखते हुए मैंने अब तक इंतज़ार करने में ही भलाई समझी.. पिछले एक साल से मुझे यही प्रश्न सता रहा है की तुझ जैसी सुंदर और जवान लड़की को उस बूढ़े में क्या नजर आ गया भला??"
फाल्गुनी: "माउंट आबू के टॉइलेट में जब वैशाली ने आपको अंदर खींच लिया था.. तब उसे आप के अंदर क्या नजर आ गया था?" बेवाक होकर फाल्गुनी ने कह दिया..
एक पल के लिए राजेश की बोलती बंद हो गई.. पर वो तुरंत पटरी पर आ गया
राजेश: "समझ गया तेरी बात.. अब मैं तुझसे जो भी कहूँगा.. आशा रखता हूँ की उसके बारे मैं तू खुले मन से सोचेगी और सही निर्णय लेगी.. मैं तेरे ऊपर किसी भी प्रकार का दबाव नहीं डाल रहा"
फाल्गुनी: "कहिए अंकल.. मैं सुन रही हूँ.."
राजेश: "वैशाली ने मेरे साथ आबू में जो कुछ भी किया उससे तुम यह बात तो मानेगी ही.. की मेरे अंदर भी वो सारी खूबियाँ होगी जो लड़कियों और औरतों को मेरी ओर आकर्षित करे"
फाल्गुनी: "जरूर होगी.. वरना इतनी सुंदर और सेक्सी वैशाली.. आपको घास क्यों डालती?? पार्टी में उस वक्त कई हेंडसम जवान लड़के थे.. सो आई बिलिव की आप मैं भी वो सारी खूबियाँ होंगी जिनके कारण मैं सुबोध अंकल के प्रति आकर्षित हुई थी.. "
राजेश: "देख फाल्गुनी.. तेरे वो सुबोध अंकल तो अब इस दुनिया में नहीं रहें.. और मैंने तेरे और उनके जो सारे विडिओ देखे है.. उससे यह साफ प्रतीत होता है की सेक्शुअल इच्छाएं काफी प्रबल है.. जिस तरह तू उनके साथ सेक्स कर रही थी उसे देखकर यही विचार आता है की अब तक तू बिना किसी के सहारे कैसे रह पाती होगी?? उंगली चलाने से लंड जैसा मज़ा तो आता नहीं होगा तुझे.. !!"
एक साल के बाद, फाल्गुनी किसी मर्द के मुंह से सेक्स जैसा शब्द सुन रही थी.. उस दौरान वो चलते चलते अपने घर तक पहुँच गई थी.. वो फटाफट अपने कमरे में घुस गई और दरवाजा अंदर से बंद कर दिया
राजेश: "चुप क्यों हो गई?"
फाल्गुनी: "दरअसल मैं मौसम के घर से निकली और अभी अपने घर पहुंची.. ड्रॉइंगरूम में मम्मी थी इसलिए चुप हो गई थी.. अब बोलीये अंकल.. आपने ठीक कहा.. अंकल के साथ मैंने बहुत मजे किए है.. पर अब क्या हो सकता है.. !!"
राजेश: "तो शादी क्यों नहीं कर लेती तू?"
फाल्गुनी: "मेरे मम्मी-पापा काफी समय से मेरे लिए लड़के देख रहे है.. पर मेरा ही मन नहीं करता.. ऊपर से मौसम के साथ तरुण ने जो किया उसके बाद से शादी करने से जी घबरा रहा है"
राजेश: "सुबोधकांत के लिए तेरे मन में जो जज़्बात है उसे मैं समझ सकता हूँ.. पर कब तक उनकी याद में तड़पती रहेगी?? कभी न कभी तो तुझे उन्हें भूलना ही पड़ेगा और नई ज़िंदगी की शुरुआत करनी ही होगी"
फाल्गुनी: "वो तो है ही, अंकल.. पर भूलना कहाँ आसान है.. !! और किसी को याद करना या भूलना ये हमारे बस में तो होता नहीं है.. फिलहाल मैं और मौसम एक दूसरे के सहारे जी रहे है.. हम दोनों को नए साथी की तलाश है.. जो सुबोध अंकल की तरह समजदार हो.. मेच्योर हो.. आई मिस हीम वेरी मच.. उनके साथ बिताया एक एक पल मुझे हरदम याद आता है.. !!"
राजेश: "उनका टच भी तो याद आता होगा.. है ना.. !!"
अब ये एकदम पर्सनल सवाल था जिसका जवाब फाल्गुनी देना नहीं नहीं चाहती थी.. पर राजेश ने उसके और अंकल के चुदाई के विडिओ तो देख ही लिए थे.. इसलिए अब औपचारिकता दिखाने की कोई जरूरत नहीं थी..
बिंदास होकर फाल्गुनी ने जवाब दिया.. "ऑफ कोर्स.. याद क्यों नहीं आएगा.. !! उस मामले मे वो एकदम परफेक्ट थे.. उन्हें कभी कुछ कहना नहीं पड़ता था.. वो सब समझ जाते थे.. उनके पास से मुझे जो मिला.. वो अप्रतिम था.. मैं कभी भूल नहीं पाऊँगी" फाल्गुनी की आवाज और आँखें नम हो गई..
राजेश: "फाल्गुनी, अब मैं और क्या कहूँ? पर अगर तुझे या मौसम को मेरा कुछ भी काम हो तो बेझिझक बताना.. तुम दोनों मुझसे या रेणुका से बात कर सकती हो.. वैसे मैंने रेणुका को तुम्हारे और सुबोधकांत के संबंधों के बारे में कुछ नहीं बताया है इसलिए वो बात मत करना.. वैशाली और उसकी मम्मी भी है.. कविता और पीयूष वहाँ शिफ्ट हो गए उसका ये मतलब नहीं की हमें भूल जाओ.. याद है ना.. एक साल पहले हम सब माउंट आबू गए थे रेणुका के बर्थडे पर तब कितना मज़ा किया था??"
फाल्गुनी: "हाँ अंकल याद है.. पर ऐसा कोई फ़ंक्शन हो तो आ सकते है.. आप फिर से रेणुका भाभी का बर्थडे सेलिब्रेट करेंगे तो हम जरूर आएंगे"
राजेश: "वैसे मजे करने के लिए मौकों का इंतज़ार नहीं करते.. मौके बनाने पड़ते है.. तुझे साथ लेकर घुमाने के लिए सुबोधकांत बिजनेस मीटिंग का बहाना बनाते ही थे ना.. !!"
फाल्गुनी: "वैसे बिजनेस आपका भी है.. तो क्या आप भी मीटिंग के नाम पर ये सब करते हो?"
राजेश: "सिर्फ मैं ही नहीं.. मेरे जैसे काफी लोग ऐसा करते है.. अगर सुबोधकांत अपनी पत्नी से ये कहते की मैं फाल्गुनी के साथ सेक्स करने जा रहा हूँ, तो क्या वो उन्हें जाने देती??"
फाल्गुनी: "हम्म.. मैं समझ गई अंकल"
राजेश: "डॉन्ट वरी.. मैं कुछ जुगाड़ करता हूँ मिलने का"
फाल्गुनी: "मैं फोन रखती हूँ"
राजेश: "रखने से पहले मैं तुम्हें पूछना चाहता हूँ.. क्या आगे से मैं तुम्हें फोन कर सकता हूँ? और क्या तुम मेरा फोन उठाओगी?"
फाल्गुनी: "हाँ अंकल.. पर कॉल करने से पहले मेसेज कर देना.."
राजेश: "उससे बेहतर यही होगा की तू ही सामने से मुझे फोन करना... जब तू अकेली हो.. सुबह नौ बजे से लेकर रात के आठ बजे तक मैं ऑफिस में होता हूँ.. उस समय तुम मुझे फोन कर सकती हो"
फाल्गुनी: "ठीक है अंकल"
राजेश: "बाय डीयर.. !!"
राजेश ने फोन रख दिया और आगे की रणनीति के बारे में सोचने लगा..
फाल्गुनी ने तुरंत मौसम को फोन लगाया और राजेश के फोन के बारे में बता दिया..
वैसे फाल्गुनी को राजेश से बात करने के बाद बहुत अच्छा लगा.. अंकल के जाने के बाद जो खालीपन महसूस हो रहा था.. उसमें कहीं न कहीं राजेश फिट होता नजर आने लगा था
मौसम से बात करने के बाद.. फाल्गुनी ने शीला को फोन लगाया और उन्हें बताया की तरुण के लिए मौसम के दिल में अभी भी जज़्बात है.. और हो सकें तो वो एक बार तरुण से बात करें.. शीला भी अब गंभीरता से इस बारे में सोचने लगी थी
मौसम के घर में अब केवल वो और उसकी मम्मी ही बचे थे.. कविता और पीयूष नजदीक ही रहते थे और आते जाते रहते थे.. पर सुबोधकांत का इतना बड़ा कारोबार अकेले संभालते हुए पीयूष के नाक में दम हो जाता.. पीयूष अक्सर सोचता की इतना बड़ा बिजनेस संभालने के बाद भी ससुरजी को गुलछर्रे उड़ाने का समय कैसे मिल जाता था.. !!!
कविता के पास अब ढेर सारा पैसा था.. वो जैसे चाहती उड़ा सकती थी.. उसे काफी बार पिंटू की याद आ जाती.. और पीयूष जब बेहद व्यस्त होता तब पुराने दिन भी याद आ जाते जब पीयूष राजेश की ऑफिस मे सिर्फ एक मुलाजिम था.. कम से कम शाम के सात बजे घर तो आ जाता था.. दौलत तो बहोत आ गई थी पर पति का साथ नहीं मिल रहा था.. काफी समय हो गया था कविता और पीयूष की शादी को.. अनुमौसी की आँखें उनके संतान को देखने के लिए तरस रही थी.. कविता को भी अक्सर अपनी सुनी कोख सताती रहती थी..
ऐसी ही एक शाम को कविता उदास मन से.. बरामदे में झूले पर बैठकर सब्जी काट रही थी..
तभी मौसम वहाँ पहुंची..
मौसम: "मुंह लटकाकर क्यों बैठी हो दीदी? जीजू ने रात को ठीक से डोज़ नहीं दिया क्या?" पिछले एक साल में मौसम और फाल्गुनी, कविता के साथ काफी बिंदास हो गए थे.. और सारी बातें खुलकर करते थे.. कविता और मौसम बहनों की तरह नहीं पर सहेलियों की तरह बन गई थी
कविता: "तेरे जीजू को टाइम ही कहाँ है मुझ डोज़ देने का.. पहले तो पीयूष रोज रात को सेक्स करने के लिए मुझे इतना तंग करता था.. मैं तो यही सोचती की इन मर्दों को सेक्स के अलावा और कुछ सूझता ही नहीं होगा क्या.. !! चौबीसों घंटे खड़ा ही रहता था उसका.. मौका मिलते ही बाहर निकालकर खड़ा हो जाता था वो.. शादी के शुरुआती समय में तो मैं ऐसा ही सोचती थी की लंड हमेशा सख्त ही रहता होगा क्योंकी नरम लंड मैंने कभी देखा ही नहीं था.. वही पीयूष आज बिजनेस में इतना डूब चुका है की मुझे कई बार ताज्जुब होता है.. इसे मेरी याद आती भी है या नहीं?"
मौसम: "दीदी... जीजू ने पापा का इतना बड़ा कारोबार इतने कम समय में संभाल लिया वही बहोत बड़ी बात है.. वरना सब कुछ बिखर जाता"
कविता: "वो सब तो ठीक है मौसम.. पर बिजनेस के चक्कर में घर-गृहस्थी बिखर जाएगी उसका क्या??"
मौसम किचन में पानी लेने चली गई इसलिए उसने सुना नहीं..
अपने दिल की भड़ास निकाल रही कविता पर पीयूष को फोन आया और उसने कहा की उसे देर हो जाएगी और खाना ऑफिस में ही खा लेगा..
कविता ने फोन रख दिया.. अभी अभी उसने फूलगोभी काटी थी सब्जी बनाने के लिए.. काटी हुई सब्जी की थाली उसने कंपाउंड के बाहर खड़े सांड के सामने उंडेल दी.. और उस विशालकाय सांड को खाते हुए देखती रही.. मन ही मन वो हंस रही थी.. पीयूष को फूलगोभी की सब्जी बहोत पसंद थी.. इसलिए मार्केट जाकर वो खास उसके लिए खरीद कर लाई थी.. पर पीयूष के पास समय ही कहाँ है.. !! फूलगोभी किसके लिए लाई थी और कौन खा रहा है.. !!
कहते है ना.. दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम.. !! फूलगोभी को चट करने के बाद वो सांड आभारवश कविता के सामने देख रहा था
"अरे दीदी.. ये क्या किया?? इतनी महंगी सब्जी आपने गाय को खिला दी?" मौसम ने बाहर आकर कहा
"वो गाय नहीं.. सांड है मौसम.. !!" कविता ने कहा
"अरे यार.. गाय हो या सांड.. क्या फरक पड़ता है?" मौसम का संकेत फूलगोभी की सब्जी की ओर था
"सांड सांड होता है और गाय गाय होती है.. फरक तू नहीं समझेगी.. जो काम सांड कर सकता है वो गाय कभी नहीं कर सकती.. !!" शादी-शुदा दीदी की अनुभवयुक्त वाणी सुनकर मौसम के गाल शर्म से लाल लाल हो गए.. दीदी के कहने का अर्थ भलीभाँति समझ रही थी मौसम
"हाँ दीदी.. मुझे कैसे समझ आएगा.. मैं ठहरी अनपढ़ और गंवार.. " दीदी की उदासी छटते देखकर मौसम ने मज़ाक जारी रखा
"मैंने कब कहा की तू अनपढ़ गंवार है.. !! हा सामाजिक तौर पर तुझ में अनुभव की कमी जरूर है.. पर आज कल की इंटरनेट जनरेशन बहोत जल्दी बड़ी हो जाती है.. अठारह की उम्र में ही लड़कियों को सारे अनुभव हो जाते है.. मेरी भी तो फ्रेंडशिप हो गई थी ना उस पिंटू के साथ"
मौसम ने कविता के कंधे से कंधा टकराते हुए शरारती अंदाज में कहा "तो क्या वो पिंटू के साथ भी तुमने अनुभव कर लिया था क्या?"
कविता: "मैं तो तैयार थी.. पर वो बेवकूफ ही नहीं माना.. !!"
मौसम: "अरे हाँ दीदी.. आपको बताना भूल गई.. मेरे खयाल से पिंटू अब वैशाली के साथ है.. और शायद वो दोनों जल्द ही शादी करने वाले है.. " मौसम ने बॉम्ब फोड़ दिया.. जिसने कविता के दिल के चींथड़े उड़ा दीये.. दिल बैठ गया उसका.. पर फिर उसे खयाल आया की उसके भरोसे पिंटू थोड़े ही पूरी ज़िंदगी कुंवारा बैठा रहेगा.. !!
कविता: "क्या सच मे?? मुझे तो पता ही नहीं था.. ये सब कब तय हुआ?? और तुझे किसने बताया?"
मौसम: "वो तो एक दिन वैशाली से बात करने के लिए फोन किया तो शीला भाभी ने उठाया.. बातों बातों में पता चला की वैशाली पिंटू के साथ घूमने गई हुई थी.. जिस साहजीकता से उन्होंने यह बात बताई उससे साफ जाहीर है की उनके संबंधों पर शीला भाभी और मदन भैया का ठप्पा लग चुका है"
कविता: "वो क्यों मना करेंगे भला.. पिंटू जैसा लड़का तो नसीब से ही मिलता है"
मौसम के गाल खींचकर कविता ने कहा "अब तेरी बारी है.. मैंने एक लड़का ढूंढ लिया है तेरे लिए"
मौसम ने थोड़े से गुस्से के साथ कहा "क्या दीदी आप भी.. मुझे नहीं करनी कोई शादी-वादी.. मैं तो जीजू से मिलने ऑफिस जा रही हूँ.. बहोत दिन हो गए उनसे मिले हुए.. जाकर पूछती हूँ.. की उन्हें अपनी ये सुंदर साली याद भी है या भूल गए?? तुम चलोगी?"
कविता: "नहीं यार.. तू जा.. शायद तुझे देखकर उसे अपनी मर्दानगी की याद आ जाए"
मौसम ठहाका मारकर हंसने लगी.. "क्या दीदी तुम भी.. !! अगर जीजू को अपनी मर्दानगी की याद आ गई तो ऑफिस में मेरा क्या हाल करेंगे?" स्कूटी स्टार्ट करके मौसम निकल गई.. कविता उसे पीछे से देखती रही.. सुंदर गुड़िया जैसी मौसम.. ऐसे रूप के खजाने को तरुण ने छोड़ दिया..
मौसम के जाने के बाद कविता घर के अंदर आई और शीला को फोन लगाया
शीला: "ओह्ह कविता.. साली भेनचोद... कहाँ है तू??" अपने खास अंदाज में शीला ने कहा.. शीला की आवाज सुनते ही कविता की सारी उदासी एक पल में गायब हो गई..
कविता: "क्या भाभी.. मैं तो यहीं हूँ.. आप ही मुझे भूल गई हो.. !!"
शीला: "हम्म.. मैं तो भूल गई हूँ तुझे.. पर वो बेचारा रसिक बहोत याद करता है"
कविता: "तो यहाँ का पता देकर भेज दो उसे मेरे पास.. मुझे वैसे भी बहोत जरूरत है"
शीला: "क्यों?? वो पीयूष विदेश चला गया क्या मेरे मदन की तरह??"
कविता: "जिसका पति विदेश हो उसे ही सर्विस देता है क्या रसिक?? तो मैं भी भेज देती हूँ पीयूष को विदेश.. पीयूष यहीं है लेकिन उसके पास बिजनेस से फुरसत ही नहीं है मेरे लिए.. इसलिए कह रही हूँ.. रसिक को भेज दो यहाँ.. हा हा हा हा हा ... !!"
शीला: "भूल जा.. रसिक को बर्दाश्त करना, तेरे बस की बात नहीं है"
कविता: "क्यों भला??"
शीला: "क्योंकि उसका सामान बहोत भारी है.. मुझ जैसी बड़ी सूटकेस भी उसके सामान को संभाल नहीं पाती.. तो तेरा क्या हाल करेगा?? रसिक से एक बार करवाने के बाद.. नीचे एक हफ्ते तक ताला लग जाता है.. ताकि उसके दीये हुए घाव ठीक हो सके.. तू बोल.. अचानक रसिक की इतनी जरूरत क्यों आन पड़ी?? और फोन भी इसीलिए किया था क्या?" कविता के शरीर को पाने के लिए रसिक कितना उत्सुक था वो शीला जानती थी.. और कविता भी तो जानती थी
कविता: "नहीं भाभी.. वो देसी पट्ठा मुझे तोड़-मरोड़कर रख देगा.. मेरे लिए तो पीयूष ही ठीक है.. रसिक आपको मुबारक.. !!"
शीला: "हाँ कविता.. उसे झेलना तेरे बस का नहीं है.. और मुझ जैसी को उसके अलावा और कोई राज नहीं आता.. मदन भी आठ महीनों के लिए विदेश गया था.. एक प्रोजेक्ट के सिलसिले मे.. तब रसिक से ही मेरा गुजारा चलता था.. मैं तो कहती हूँ की अच्छा हुआ जो तूने उसे अब तक चखा नहीं.. वरना और कोई पसंद ही न आता.. !!"
कविता: "इतना स्वादिष्ट है क्या रसिक?? फिर तो एक बार चखना पड़ेगा.. !!"
शीला: "तो आजा इधर एक दिन.. कर देती हूँ सेटिंग.. वो तो कब से तेरे पीछे पड़ा है.. तुझे तो पता ही होगा.. !!"
सुनकर कविता चोंक गई.. शीला को इस बारे में कैसे पता चला.. !! कहीं रसिक ने तो उस रात के बारे में शीला को बता तो नहीं दिया.. !!
कविता: "कितना भी मन क्यों न हो.. पर आने का मौका ही कहाँ मिलता है भाभी.. !! अक्सर मैं पुराने समय के बारे में सोचती हूँ.. आपके साथ थी तब जो मज़ा आता था.. वो सब तो गायब ही हो गया ज़िंदगी से"
हकीकत में कविता ने बड़े मजे कीये थे शीला के साथ.. दिन भर शीला भाभी की सेक्सी बातें.. नॉन-वेज जोक्स.. कामुक छेड़खानियाँ.. और एक दो बार का वो लेस्बियन सेक्स.. शीला भाभी के साथ रहकर कविता इतनी उत्तेजित हो जाती की वो इंतज़ार करती.. कब पीयूष आए और कब उससे लिपट कर चुदवाऊँ.. !! और पीयूष तो शीला भाभी को देखकर ऐसे उत्तेजित हो जाता जैसे अभी अभी वायग्रा की गोली खाई हो
कविता: "यहाँ और सब कुछ है भाभी.. सिर्फ आप नहीं हो.. बहोत मिस करती हूँ आपको"
शीला: "तो मैं भी यहाँ पर अकेली ही हूँ.. आप सब को याद करके कई बार रोना आ जाता है मुझे.. !!"
कविता: "एकाद बार आप क्यों नहीं आ जाती यहाँ?? उसी बहाने मेरा घर भी देख लोगी.. इतना बड़ा घर है मेरा.. आप और मदन भैया अलग अलग कमरे में सो सकते हो.. !!"
शीला: "आऊँगी.. जरूर आऊँगी.. और जब भी आऊँगी.. तेरे और पीयूष के बीच में सोऊँगी.. हा हा हा हा हा.. !! और बता.. सब ठीक चल रहा है बाकी सब?"
कविता: "दरअसल एक काम था इसलिए फोन किया था.. आप तरुण का नंबर नोट कीजिए.. उससे बात कीजिए और किसी भी तरह जानने की कोशिश कीजिए की उसने आखिर सगाई तोड़ क्यों दी थी.. !! बात बात में ये भी बताना है की मौसम अब भी बिन-ब्याही है.. और अगर उसकी इच्छा हो तो फिर से एक बार सोच लें इस बारे में"
शीला सोचने लगी.. पिछले दिन फाल्गुनी का इसी काम के लिए फोन आया था.. अब कविता भी वही बात कह रही है.. जो रिश्ता तरुण एक साले पहले तोड़ चुका था.. उससे फिर से जोड़ने के लिए कैसे कहें?? समाज क्या कहेगा? और अभी सगाई तोड़ने की असली वजह का तो पता भी नहीं है
शीला: "तू चिंता मत कर कविता.. मैं और मदन कुछ करेंगे इस बारे में"
शीला भाभी के आत्मीयता भरे आश्वासन से कविता का दिल भर आया.. पीयूष के बीजी होने से जो असंतोष था वो सब शीला भाभी को बताना चाहती थी.. पर तभी अचानक मदन आ गया और शीला ने फोन रख दिया..
मदन कपड़े बदलने लगा.. शायद कहीं जाने की तैयारी कर रहा था.. मदन को नंगा देखकर शीला के दिल के अरमान जाग उठे.. शीला अपनी कमर मटकाती हुई बेडरूम के अंदर आई.. तब मदन वॉर्डरोब से कपड़े निकाल रहा था..
मदन सुबोधकांत के निधन के बाद, एक प्रोजेक्ट के लिए कन्सल्टन्ट के तौर पर आठ महीनों के लिए फिर विदेश चला गया था.. वापिस लौटने के बाद भी शीला ने अपना गुस्सा नहीं छोड़ा था.. वो अब भी उस रात की बात निकालकर मदन को ताने मारती रहती थी.. अब भी मदन के साथ संबंध उसने सामान्य होने ही नहीं दीये थे.. तो मदन ने भी गुस्से में आकर शीला के साथ सेक्स करना बंद कर दिया था.. उसे बराबर पता था की बिना सेक्स के शीला ज्यादा दिन रह नहीं पाएगी और लँड लेने के चक्कर में उसके पास सामने से चलकर आएगी
अपनी आदत के अनुसार.. शीला को रोज रात चुदाई की इच्छा होती.. पर मदन करवट लेकर सो जाता और वो मन ही मन भड़कती रहती.. तकलीफ तो मदन को भी बहोत हो रही थी.. ठंड का वक्त था.. और बगल में गरम तंदूर जैसी बीवी सो रही हो.. और बिना कुछ कीये रात बिताने में उसी भी बड़ी तकलीफ हो रही थी.. आखिर वो बाथरूम में जाकर मूठ लगाकर सो जाता.. जिस आग में मदन जल रहा था उस आग ने शीला का कई ज्यादा नुकसान कर दिया था..
बेडरूम में घुसते ही शीला ने अपना पल्लू गिरा दिया.. और मदन के बिल्कुल करीब खड़े रहकर ऐसा अभिनय करने लगी जैसे वो भी वॉर्डरोब में कुछ ढूंढ रही हो..
♩♫ प्यास भड़की है सरे शाम से जल रहा है बदन,
इश्क से कह दो की ले आए कहीं से सावन..♫
शीला ये गीत गुनगुना कर मदन को उकसा रही थी.. जिसे सुनकर मदन का दृढ़ निश्चय चकनाचूर हो रहा था.. मदन वहाँ से हटकर शीला से दूर जाना चाहता था पर कमबख्त पेंट ही नहीं मिल रहा था.. उसने तिरछी नज़रों से कपड़े ढूंढ रही शीला की काँखों से नजर आ रहे खरबूजे जैसे स्तनों को देखा.. इतनी ठंड में भी शीला के जिस्म पर पसीना आ रहा था.. गोरी गर्दन से पसीने की धारा उसकी क्लीवेज के बीच जा रहा था.. वही क्लीवेज जिसमें कई मर्दों की मर्दानगी दफन पड़ी थी..
♫पिया तू... अब तो आजा..
शोला सा मन भड़के.. आ के बुझा जा..
तन की ज्वाला ठंडी हो जाए.. ऐसे गले लगा जा♬
शीला ने दूसरा गीत गाकर आग में पेट्रोल डालने का काम कर दिया..!!!
शीला के गूँदाज बबलों को देखकर मदन मन ही मन आहें भर रहा था.. सोच रहा था.. भेनचोद.. ये मेरे ही है.. बाकायदा ब्याह किया है मैंने.. फिर भी दबाने के लिए तरस रहा हूँ?? शीला की भव्य कमर और गहरी सेक्सी नाभि को देखता रहा मदन.. शीला के रूप.. और उसके गानों ने मदन के मन मे हवस की आग को हवा तो दे ही दी थी.. ऊपर से अकेलेपन ने आग में घी का काम किया.. और काम-यज्ञ शुरू हो गया.. मदन का सारा अहंकार एक ही पल में भांप बनकर उड़ गया..
आखिर आग और घी के मिलने से जो होता है वही हुआ
"मादरचोद.. कितने महीने हो गए.. साली तू तो सामने भी नहीं देखती?? बहोत चर्बी चढ़ी है तुझे रंडी.. आजा, आज तुझे दिखाता हूँ" कहते हुए मदन ने शीला को अपनी बाहों में जकड़ लिया
मन ही मन अपने विजय पर खुश हो रही शीला ने चेहरे पर अब भी क्रोध के भाव धारण कर रखे थे.. वो मदन की पकड़ से छूटने की नाकाम कोशिश करती रही.. वैसे वो छूटना चाहती ही नहीं थी.. सिर्फ नाटक कर रही थी..
"नालायक, भड़वे.. छोड़ मुझे.. राँडों को लेकर चोदने गया था तब मेरी याद नहीं आई तुझे.. साले हिजड़े.. !!" शीला की ये स्टाइल थी.. मदन की मर्दानगी को ललकारने पर वो बेकाबू हो जाता.. शीला के पुष्ट पयोधर स्तन मदन की छाती से दबकर चपटे हो गए थे.. शीला के गोरे गुलाबी गालों पर मदन ने उत्तेजनावश काट लिया..
"आह्ह छोड़ मुझे.. मर गई.. छोड़ दे मुझे भेनचोद.. जा उस बार्बी और सुनंदा को पकड़.. मुझे छोड़.." जैसे जैसे शीला नखरे करती गई वैसे वैसे मदन और हिंसक होता गया.. वो एक साल से भूखा था.. आज वो ऐसे गुर्रा रहा था जैसे लाल कपड़ा देखकर कोई सांड भड़क रहा हो.. उसने एक झटके में शीला का ब्लाउज फाड़ दिया.. कपड़ा फटते ही उसमें कैद मोटे खरगोश जैसे स्तन बाहर झूलने लगे.. उन्मुक्त मदन बेपरवाह होकर शीला के जिस्म पर हमले कर रहा था.. शीला को मदन का यह रूप बेहद पसंद था.. कभी कभी तो वो मदन को सामने से जोर-जबरदस्ती करने के लिए कहती.. इस तरह संभोग का पिशाची आनंद लेने में शीला को बहोत मज़ा आता.. आज कितने महीनों के बाद उसे मदन का यह रूप देखने मिला था.. अगर वो सहयोग देने लगती.. तो जोर-जबरदस्ती का सिलसिला रुक जाता.. जो वो नहीं चाहती थी.. वो तो चाहती थी की मदन ज्यादा से ज्यादा आक्रामक हो.. हिंसक हो.. और इसके लिए यह बेरुखी का नाटक जारी रखना बेहद जरूरी था.. ताकि मदन उसे काबू में करने के लिए और जोर आजमाए.. !!
मदन की राक्षसी पकड़ से शीला जैसे तैसे छूट तो गई.. पर भाग कर जाती कहाँ.. !! वैसे वो कहीं भागकर जाना चाहती भी नहीं थी.. दूसरे ही पल मदन ने झपट्टा मारकर उसे पकड़ लिया और शीला को बिस्तर पर गिराकर.. उसके ऊपर चढ़ गया.. !!! जबरदस्त उत्तेजित था मदन.. पूरे एक साल की सारी कसर वो आज शीला पर निकालना चाहता था.. शीला का फटा हुआ ब्लाउज.. जांघों तक ऊपर चढ़ चुका पेटीकोट.. शीला के जिस्म को रति जैसा सौन्दर्य प्रदान कर रहे थे.. शीला के पेट पर सवार होकर दोनों हाथों से स्तन पकड़कर मदन ने मसलते हुए चूस लिए..
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मदन की जीभ का स्पर्श निप्पल पर महसूस होते ही शीला का विरोध पचास प्रतिशत कम हो गया.. उसकी ताकत कमजोर हो गई और एक जबरदस्त सिसकी के साथ उसने काम-यज्ञ में आहुति देने का कार्य शुरू किया.. शीला खुद ही बड़ी उत्तेजना से मदन के लंड को जांघिये के ऊपर से ही पकड़ लिया.. इस खेल में.. कौन जीता, कौन हारा.. उसका फैसला करने के लिए मदन ने शीला की तरफ एक नजर देखा.. पर शीला ने मदन को सर के बालों से पकड़कर अपनी ओर खींचा और वासना सभर चुंबनों से पिछला तमाम हिसाब चुका दिया.. !!
पति-पत्नी के सामान्य झगड़ों और मन-मुटाव का अंत हमेशा कुछ ऐसा ही होता है.. और ऐसा ही अंत होना भी चाहिए..!! दो जिस्म जब एक हो जाए, फिर किसी भी गीले-शिकवे की कोई गुंजाइश नहीं बचती.. जरूरत होती है पहल करने की.. और छोटी-मोटी अनबनों को हद से ज्यादा न खींचने की..
शीला के गरम तंदूर जैसे भोसड़े से, मदन के प्रति प्रेम के कारण, बहोत ही जल्दी गीलापन रिसने लगा था.. केवल जाँघिया पहनकर शीला के शरीर पर सवार मदन के लंड को उकसाने का काम शीला ने शुरू कर दिया था.. जब उसे तसल्ली हो गई की उसका लंड पूरी तरह तनकर टाइट हो चुका था.. तब उसने जाँघिया सरकाकर लंड को बाहर निकाला..
"आह्हहहह...!!" शीला के मुख से.. मदन के लंड को देखकर ही आह निकल गई.. लंबा सख्त लोडा देखकर शीला को अनायास ही सुबोधकांत और राजेश के मोटे तगड़े लंड की याद आ गई.. उसे अब इतना मज़ा आ रहा था की उसने पलटी मारकर मदन को लिटा दिया और वो खुद उस पर सवार हो गई.. बिना किसी झिझक या शर्म के शीला ने मदन का लंड पकड़ा और अपने चूत के होंठों की बीच टिकाकर.. जिस्म का पूरा वज़न डालते हुए बैठ गई.. !!
बड़े ही आराम से मदन के लंड को अपने भोसड़े में छुपाकर वह अपने विशाल स्तनों से मदन के मुंह को दबाते हुए बोली
"साले भड़वे.. तू क्या मुझे चोदेगा.. !! देख मैं तुझे कैसे चोदती हूँ अब.." कहते हुए वो गुर्राकर मदन के लंड पर उछलने लगी
दोनों एक दूसरे में इतने मशरूफ़ थे की भूल ही गए.. मुख्य दरवाजा लॉक नहीं किया था.. और जब वैशाली ऑफिस से आई और इन दोनों की काम-क्रीडा में लिप्त देखा तब उसके पैर जमीन से जैसे चिपक से गए.. !! वो सोच रही थी.. की अगर ५५ की उम्र में भी मम्मी इतनी कामुक और हवसखोर ही की दरवाजा बंद करना भूल गई.. तो अपने जवानी के दिनों में वो क्या क्या नहीं करती होगी.. !! जिस पोजीशन में चुदाई चल रही थी.. वह वैशाली की पसंदीदा सेक्स पोजीशन थी.. स्त्री ऊपर और मर्द नीचे.. !! वो बेडरूम के दरवाजे के पीछे छुप गई.. मम्मी-पापा का सेशन खतम होने के बाद ही वो अपनी मौजूदगी जताना चाहती थी.. पर इस दौरान अगर कोई और घर के अंदर आ गया तो.. ?? दरवाजा तो अभी भी खुला था क्योंकि अब अगर वो बंद करने जाती तो उसकी आवाज से शीला और मदन को पता लग जाता और उनकी चुदाई के बीच बाधा पड़ती..
वैशाली चाहती थी की किसी तरह मम्मी और पापा को सचेत किया जाए.. पर ऐसा करने मे उसकी मौजूदगी जाहीर हो जाने का खतरा था.. तभी वैशाली के फोन पर पिंटू का फोन आया.. रिंगटोन सुनते ही शीला मदन के शरीर से छलांग मारकर बेड से उतर गई और पास पड़ी साड़ी से अपने तन को ढँक लिया.. मदन अपनी नग्नता को छुपाने के लिए दौड़कर बाथरूम में घुस गया.. गनीमत थी की फोन की रिंग बजते ही वैशाली उनके बेडरूम के दरवाजे से हटकर तुरंत ड्रॉइंगरूम में चली गई.. इसलिए शीला और मदन को किसी शर्मनाक परिस्थिति का सामना न करना पड़ा..
शीला ने फटाफट कपड़े पहने और बाहर आई.. उसने देखा की बेखबर होकर वैशाली सोफ़े पर बैठकर फोन पर बात कर रही थी.. शीला ने चैन की सांस ली.. उसने अंदर बेडरूम मे जाकर मदन का पेंट उठाया.. और बाथरूम के दरवाजे पर दस्तक देकर.. मदन को थमा दिया..
शीला वापिस ड्रॉइंग रूम में आई उससे पहले वैशाली अपने कमरे में जा चुकी थी.. बेड पर आँखें बंद कर लेटी हुई वैशाली की आँखों के सामने से वह द्रश्य हट ही नहीं रहा था जो उसने कुछ पलों पहले देखा था.. मम्मी के उछलते हुए स्तन... उनके भारी भरकम चूतड़.. बिखरे हुए बाल.. और नीचे पुचूक पुचूक कर रहा पापा का लंड.. आह्ह.. !! वैशाली को न चाहते हुए भी अपनी उंगली पेन्टी में डालनी पड़ी.. जब मम्मी पापा के लंड के ऊपर से छलांग लगाकर उठी तब पापा के लंड की जो हालत थी वो बार बार याद आ रही थी वैशाली को.. !!! क्यों की उनका पूरा लंड मम्मी की योनि के स्खलन-जल से लिप्त होकर चमक रहा था.. और अपने आप ऊपर नीचे हो रहा था.. वैशाली सोच रही थी की ऐसा तो क्या हो गया होगा जो वो लोग दरवाजा खुला छोड़कर ही शुरू हो गए?? नए कुँवारे जोड़ों के साथ ऐसा होना मुमकिन था.. पर शादी के तीस साल बीता चुके जोड़ों का संभोग पूरे प्लैनिंग के साथ होता है.. वक्त का सही चयन और परिस्थिति के पूर्ण आकलन के बाद ही अनुभवी विवाहित जोड़ें संभोग में रत होते है..
पेन्टी के अंदर अपनी उंगली से भगोष्ठ को रगड़ते हुए वैशाली सोच रही थी.. पिंटू के साथ ऐसा सुख मुझे न जाने कब मिलेगा.. !!! वैशाली का जिस्म अब पुरुष का भोग मांग रहा था.. शारीरिक भूख अब उसकी बर्दाश्त के बाहर होती जा रही थी
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बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है शीला ने सब कुछ संभाल लिया वरना मदन और राजेश के लोड़े लग जाते शीला और रेणुका ने सारी रात मजे किए बेचारे मदन और राजेश को टेंशन में छोड़ दिया ये तो गलत किया खुद बैंगन खाए और दूसरे को परहेज बताएकमरे के बाहर लॉबी में.. काफी असामान्य चहल-पहल की आवाज़ें सुनाई देने लगी.. !!! और उन आवाजों में डर और व्यग्रता के भाव स्पष्ट रूप से सुनाई पड़ रहे थे.. सब के चेहरे एकदम से गंभीर हो गए.. एक दूसरे की तरफ देखते हुए.. सब की आँखों में बस एक ही प्रश्न था.. की आखिर ऐसा क्या हो गया था.. !!!!
अचानक बाहर से किसी की चिल्लाने की आवाज आई "भागो... पुलिस की रैड पड़ी है.. !!!!"
पुलिस...!!!! तीन अक्षर का यह शब्द.. इंसान को हमेशा से डराता आया है.. !!
बाप रे... !!! पुलिस... !!!! मर गए... !!! अब कल के अखबार में.. फ़ोटो के साथ नाम आना तय हो चुका था.. !! सब की गांड फटकर फ्लावर हो रही थी..
हाथ से अपना सर पटकते हुए मदन ने कहा "माँ चुद गई यार.. हम तो घर पर झूठ बोलकर निकले थे.. अब क्या होगा..??? !!"
घबरा रहें कॉकटेल ने कहा "मैंने भी घर पर झूठ बोला है की एक पुराने दोस्त की मृत्यु हो गई है और उसकी अंतिम क्रिया में शामिल होने जा रहा हूँ " पहली बार सब ने कॉकटेल को बोलते हुए सुना.. आवाज जानी पहचानी जरूर लग रही थी.. पर अभी किसी का ध्यान उस ओर गया ही नहीं.. !!
"पुलिस की रैड है.. आप सब लोग अपने अपने कमरे में चले जाइए.. " काफी डरे हुए हेमंत ने कहा.. सब अपने कपड़े ढूँढने लगे.. जिसके हाथ में जो आया वो लेकर अपना शरीर छुपाते हुए.. सब अपने अपने कमरे की ओर भागे.. !!
जल्दबाजी में.. राजेश के कमरे में स्टेफी के बदले रेणुका चली गई.. और स्टेफी कॉकटेल के सामने वाले कमरे में.. उसके साथ घुस गई.. हेमंत और बार्बी अपने कमरे में दुबक कर बैठ गए.. !!
यह कोई अफवाह नहीं थी.. सचमुच पुलिस की रैड पड़ी थी.. चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ था.. रात के एक बजे पुलिस ने किसी अनजान खबर पर एक्शन लिया और इस बहोत बड़े सेक्स रैकिट का पर्दाफाश कर दिया था.. ज्यादातर सदस्य काफी अमीर और बड़ी बड़ी पहचान वाले थे.. उन सब को यकीन था की वह अपने पैसे के दम पर.. या किसी न किसी की सिफारिश के जोर पर बच जाएंगे.. पर दो ही दिन पहले प्रमोट हुए इंस्पेक्टर खान ने किसी की एक न सुनी.. वो हर कमरे में खुद जाकर तलाशी ले रहे थे.. जिन लोगों ने अपने फर्जी नाम बताकर रूम बुक किए थे.. उन सब को थाने ले जाने का आदेश दिया था इंस्पेकटर ने.. एक के बाद एक कपल.. चुपचाप पुलिस की वैन में बैठने लगे.. ईमानदार इन्स्पेक्टर के आगे.. ना पैसों की गर्मी चली और ना ही किसी की सिफारिश.. !!
होटल के प्रत्येक कमरे में जाकर इन्स्पेक्टर सब की पूछताछ कर रहे थे.. उसके साथ चार कॉन्स्टेबल भी थे.. शीला और मदन के कमरे के दरवाजे पर दस्तक पड़ी.. शीला ने इशारे से मदन को बाथरूम में छुप जाने को कहा.. और अपने उत्तेजक शर्ट और मेक्सी की बिना परवाह किए.. मास्क उतारकर.. बड़ी ही बेफिक्री से दरवाजा खोला
"हैलो मैडम.. मेरा नाम इन्स्पेक्टर खान है.. यह एक तहकीकात है.. और आपको हमें सहकार देना होगा"
"आइए सर.. !!" शीला ने जग से पानी भरकर ग्लास इन्स्पेक्टर को देते हुए कहा "बैठिए ना.. !! वैसे बात क्या है?? और इतनी रात गए आप लोग क्यों आए है?? और आप किस प्रकार के सहकार की बात कर रहे है?"
इन्स्पेक्टर: "देखिए मैडम.. बात दरअसल यह है की... !!"
शीला: "जी, मेरा नाम शीला है.. !!"
इन्स्पेक्टर: "थेंकस मिसिस शीला.. आप ये बताइए.. की आप किसके साथ यहाँ रूम में ठहरी हुई है?"
शीला: "जी, मेरे पति के साथ.. हम और हमारे दोस्त.. मिसिस रेणुका और राजेश.. जो बगल के कमरे में ठहरे हुए है.. हम लोग घूमने निकले थे.. पर वापिस आते वक्त हमें मजबूरन यहाँ रुकना पड़ा.. !!"
इन्स्पेक्टर: "ओह अच्छा.. तो कहाँ है आप के पति?"
शीला: "जी, वो टॉइलेट में है... अभी आ जाएंगे.. दरअसल उन्हें होटल का खाना राज नहीं आता.. इसलिए उन्हें लूज मोशन हो गए है"
उस दौरान शीला ने बड़ी ही चतुराई से रेणुका को कॉल कर.. फोन टेबल पर ही छोड़ दिया.. ताकि रेणुका, उसकी और इन्स्पेक्टर की बातें सुन ले.. और फिर बात करने में कहीं कोई गड़बड़ न हो जाए
शीला: "सर आपको एतराज न हो तो मैं हमारे दोस्त रेणुका और राजेश को भी यही बुला लूँ?? ताकि आप पूछताछ कर सकें और तसल्ली हो जाए.. आप का समय भी बच जाएगा"
इन्स्पेक्टर: "सॉरी मैडम.. पर ये देखिए.. होटल के रजिस्टर में यह कमरा किसी मिस्टर मेक के नाम से बुक किया गया है"
शीला: "सर, इस बारे में तो मुझे कुछ नहीं पता.. हम तो एक घंटे पहले ही यहाँ पहुंचे है.. और अभी तक हमने चेक-इन की विधि भी नहीं की है.. क्यों की मेरे पति को इतने लूज मोशन हो रहे थे.. की यह सब कार्यवाही का समय ही नहीं था.. वैसे भी रात के बारह बजे थे.. इसलिए हमने सोचा की रजिस्ट्रेशन हम सुबह कर लेंगे.. !!!"
बाहर हो रही बातचीत सुनकर.. मदन को वाकई में पतले दस्त हो गए.. अंदर से आ रही पैखाने की गरजदार आवाज़ें सुनकर.. इन्स्पेक्टर को भी विश्वास हो गया शीला की बातों पर.. कोई इंसान झूठ बोल सकता है.. पर लूज मोशन्स की आवाज़े निकालना मुमकिन नहीं है.. इन्स्पेक्टर की नजरें कब से शीला की मादक क्लीवेज पर चिपक गई थी..
इन्स्पेक्टर: "ठीक है मैडम.. आपके पति ठीक से रिलेक्स हो जाए तब तक हम आपके दोस्तों की पूछताछ कर लेते है.. "
शीला: "जी जरूर सर.. वो मेरी सहेली रेणुका.. पुलिस को देखकर बहोत डर जाती है.. आप समझ सकते हो सर.. !!"
इन्स्पेक्टर: "कोई बात नहीं.. चलिए.. हम उनके रूम में चलते है"
शीला: "सर, अगर उन दोनों को यहीं बुला ले तो?? क्या है की मेरे पति की तबीयत के चलते.. मेरा यहाँ रहना जरूरी है..!! इस तरह.. आपकी पूछताछ भी हो जाएगी.. और मेरे पति को किसी चीज की जरूरत पड़ी तो मैं संभाल भी सकूँगी.. !!"
इन्स्पेक्टर: "ठीक है मैडम.. बुलाइए उन दोनों को इधर.. !!"
पुलिस का नाम सुनते ही.. मदन को सच में लूज मोशन हो गए.. उसका दिमाग सुन्न हो गया था.. कुछ सूझ नहीं रहा था.. एक साथ सेंकड़ों सवाल दिमाग में घूमने लगे थे.. उन सब सवालों में.. सब से बड़ा सवाल था.. शीला यहाँ पहुंची कैसे????
इंस्पेक्टर खान ने हवालदार को इशारा करते ही वो दूसरे कमरे से रेणुका और राजेश को बुला लाया.. दोनों बेहद घबराए हुए थे.. इंस्पेक्टर ने एक दो मामूली से सवाल किए जिसके जवाब देने में ही दोनों की फट गई.. तुरंत शीला ने बाजी अपने हाथ में ले ली और मामले को संभाल लिया.. उस दौरान मदन भी टॉइलेट से बाहर निकल आया.. उसके चेहरे का नूर गायब हो चुका था..
एक रात मजे करने की कितनी बड़ी किंमत चुकानी पड़ रही थी.. !!
थोड़े और सवाल करने के बाद.. इन्स्पेक्टर ने चारों के आइडेंटिटी प्रूफ मांगें.. चेक करने पर उन्हें तसल्ली हो गई की वह वाकई पति पत्नी ही थे..
इन्स्पेक्टर: "आप सब को डिस्टर्ब करने के लिए माफी चाहता हूँ.. पर आप समझ सकते है की यह हमारी जिम्मेदारी का हिस्सा है.. " फिर मदन की ओर मुड़कर उन्हों ने कहा "मिस्टर, आप तुरंत किसी डॉक्टर को ढूंढकर दवाई ले लीजिए.. फूड-पॉइजन का मामला हो सकता है..!!"
इन्स्पेक्टर के जाते ही सब को ऐसा महसूस हुआ जैसे छाती पर से एक टन का वज़न कम हो गया हो..!! राजेश और मदन तो रेणुका-शीला से नजरें तक नहीं मिला पा रहे थे.. चारों गुमसुम थे..
आखिर माहोल को स्वाभाविक बनाने के लिए.. शीला ने टेबल से पैकेट उठाकर सिगरेट जलाई.. और एक कश खींचकर सिगरेट रेणुका के हाथों में थमा दी.. मदन और राजेश की सिट्टी-पीट्टी गूम हो गई थी.. जैसे पुलिस थाने में उन्हें रिमांड पर लिया गया हो और इंस्पेक्टर थर्ड डिग्री आजमाने की तैयारी में हो.. कुछ ऐसा ही माहोल था..
मदन और राजेश, अपनी बीवियों को पराये मर्दों से चुदते हुए देखने के बावजूद कुछ बोल पाने की स्थिति में न थे.. क्यों की आज अगर शीला और रेणुका यहाँ नहीं होती तो क्या होता.. यह सोचकर ही दोनों कांप उठते थे..!!
अब सारा टेंशन दूर हो चुका था.. पर फिर भी मदन और राजेश बहोत घबराए हुए थे.. पुलिस का टेंशन खत्म हो चुका था.. पर अब बीवियों की अदालत में दोनों की पेशी होने वाली थी..
शीला चलते चलते मदन के सामने खड़ी होकर उसे देखती रही.. बेहद प्रभावशाली लग रही थी शीला.. अभी भी उसने वो गोल्डन शर्ट, बिना ब्रा के पहन रखा था.. जिसके ऊपर के दो बटन खुले हुए थे.. जिसमें से उसकी नशीली क्लीवेज की झलक नजर आ रहा थी..
शीला: "क्यों राजेश?? तुझे अपने दोस्त की बीवी को नंगा देखने का बड़ा मन था ना.. !!!"
राजेश ने नजरें झुका दी.. वो किसी भी तरह की सफाई देने की स्थिति में न था.. उसने शीला के बारे में जो भी इच्छाएं मदन के सामने जताई थी.. वो सब शीला और रेणुका सुन चुके थे..!! शीला के चमकीले सुनहरे शर्ट के दो खुले बटन से झलक रहे स्तनों के उभार.. और तेज ए.सी. की ठंडी हवा के कारण शर्ट के महीन कपड़े से उभरी हुई निप्पल का नजारा देखते हुए राजेश का गला सूख रहा था.. वो उभार.. वो जोबन.. वो कातिल हुस्न.. नज़ारे को और मादक बनाते हुए शीला ने अपना एक पैर बेड के ऊपर रखकर.. अपनी मेक्सी को जांघों तक उठाए रखा था.. उसका गोरा चमकता हुए घुटना भी बड़ा ही आकर्षक लग रहा था.. सफेद संगेमर्मरी जांघें.. ऐसा नजारा था की देखने वाला सिर्फ उसकी जांघों की सिलवटों पर अपना सुपाड़ा रगड़कर ही अपना पानी गिरा सकता था
शीला का अर्ध-नग्न बदन अच्छे-अच्छों का खून गरम करने के लिए काफी था.. दो बड़े बड़े वक्षों वाली.. कामुक मादक गदराई औरत... बेफिक्री से सिगरेट फूंकते हुए धुएं के छल्ले बना रही थी.. अद्भुत द्रश्य था.. !! शीला के शर्ट को ध्यान से देखने पर.. वो शर्ट कई जगह से फटा नजर आ रहा था.. सूखे हुए वीर्य के कई धब्बे भी उसपर मौजूद थे.. पार्टी में एक साथ २०-२५ लोगों ने मिलकर उसे रौंदा था.. यह पूरा नजारा देखकर.. राजेश का लंड उसके बरमूडा में हरकत करने लगा.. और उसकी चड्डी में.. सब की नज़रों के सामने ही उभार बनाने लगा.. ऐसी गंभीर स्थिति में भी अपने लंड को नाचते देखकर राजेश को गुस्सा आ रहा था.. वो मन ही मन अपने लंड को कोस रहा था.. साले, तेरे चक्कर में आज इज्जत की मैया चुद जाती.. बाल बाल बचे है.. अब तो शांति से बैठ, मेरे भाई.. !!!
शीला ने रेणुका की ओर देखकर इशारा किया.. दोनों बिना कुछ कहें, उठ खड़े हुए.. और बगल के कमरे में जाकर सो गए.. राजेश और मदन एक दूसरे के चेहरे को देख रहे थे.. दोनों में से किसी को पता नहीं था की उन दोनों ने ऐसा क्यों किया... !!
सर पर हाथ रखकर मदन ने कहा "यार राजेश, मुसीबत खतम होने का नाम ही नहीं ले रही है.. !!"
राजेश का चेहरा भी बासी बासुंदी जैसा हो गया था.. दोनों बैठे बैठे अपनी किस्मत और अपने लंड को गालियां दे रहे थे..
दूसरे कमरे में...
रेणुका: "मुझे समझ नहीं आया शीला, आखिर तुमने वहाँ से निकल जाने के लिए क्यों कहा?? पतियों की अदला-बदली कर चुदवाने का मस्त मौका था यार.. !!
शीला; "नहीं... आज नहीं.. आज तो उन दोनों घोंचूओ को उदास ही पड़े रहने दे.. हम दोनों है ना.. !! एक दूसरे से खेलकर अपनी प्यास बुझा लेंगे आज की रात.. पर वो दोनों क्या करेंगे?? तड़पने दे सालों को.. !!!"
रेणुका: "बाप रे शीला.. बड़ी जालिम है रे तू.. पता है..!! ये तेरे बबले देखकर, राजेश का लंड खड़ा हो गया था.. !!"
शीला: "हाँ, देखा था मैंने.. पर तब अगर मैं उस लंड के मजे लेने जाती.. तो वो दोनों भी मूड में आ जाते.. मैं चाहती हूँ की सिर्फ एक रात के लिए उन दोनों को अपराधभाव से पीड़ित होने दु.. घर जाकर भी आसानी से नहीं मानना है.. एक एक पल तड़पाना है.. ऐसा करना है की वो दोनों हमारे पैरों पर गिरकर गिड़गिड़ाएं.. भीख मांगें.. ऐसा करने से हमारा पक्ष मजबूत होगा.. और फिर हम अपनी मनमानी कर सकेंगे"
शीला और रेणुका बेड पर लेटे लेटे सिगरेट फूँक रही थी.. और साथ ही साथ, एक दूसरे के स्तनों से खेलते हुए बातें कर रही थी.. शीला का शर्ट नीचे कर उसका स्तन बाहर निकालकर.. उसकी निप्पल चूसते हुए रेणुका ने पूछा
रेणुका: "अरे शीला.. उस रबर के लंड वाली औरत का क्या हुआ होगा फिर??"
शीला: "अरे हाँ यार.. वो तो अपनी कोई लेस्बियन साथी को लेकर आई थी ना.. चल उसे ढूंढते है.. !!"
रेणुका: "अरे यार.. इतनी रात को कहाँ ढूँढेंगे?? एक एक कमरे पर जाकर दस्तक तो नहीं दे सकते है ना..!! और हमारे हक के दो दो लंड बगल के कमरे में पड़े है.. तब उस रबर के लंड से चुदवाने में क्या फायदा??
शीला: "तू चिंता मत कर.. हम दोनों बिना लंड के भी मजे करेंगे.. वैसे भी आज रात हमने कितने लंड देख लिए.. चूस लिए.. और खेल भी लिए.. मुझे थोड़ी जिज्ञासा इस लिए हो रही है क्यों की वो हेमंत कह रहा था की वो रबर के लंड वाली विकृत और काफी आक्रामक है.. देखें तो सही.. वो क्या चीज है.. कुछ नया देखने और जानने को मिलेगा.. चल.. चलते है"
रेणुका: "शीला, मुझे चलने में कोई दिक्कत नहीं है.. मैं बस यही कह रही हूँ की रात के तीन बजे किसी का दरवाजा खटखटाना मुनासिब होगा?"
शीला: "वो सब तू मुझ पर छोड़ दे.. चल कपड़े पहन ले.. "
अब रेणुका के पास, शीला के साथ जाने के अलावा और कोई चारा नहीं था.. उसने तुरंत कपड़े पहन लीये.. और तैयार हो गई..
दोनों कमरे से बाहर निकलें.. रात के तीन बज रहे थे और पूरी लॉबी में नीरव शांति थी.. चार पाँच कमरों के दरवाजे खटखटाते हुए आखिर वह दोनों अपनी मंजिल पर पहुँच ही गई..
दरवाजा खोलने वाली उस औरत ने जल्दबाजी में गाउन पहन लिया था.. और उस पारदर्शी गाउन से रबर का लंड साफ नजर आ रहा था..
शीला को तो वो देखते ही पहचान गई.. बिना किसी संकोच या औपचारिकता के शीला कमरे के अंदर घुस गई.. रेणुका को अपने पीछे खींचते हुए..!!
फिर तीन बजे से पाँच बजे तक.. चारों औरतों ने मिलकर.. उस रबर के लंड से भरपूर चुदाई कर उसकी धज्जियां उड़ा दी.. अपने भोसड़ों की आग बुझाकर.. रेणुका और शीला चुपचाप कमरे में वापिस लौट आई.. शीला के साहस के कारण रेणुका को इस अनूठे अनुभव का आनंद मिला था और इसलिए अब वह शीला के गहरे प्रभाव के तले दब चुकी थी..
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पूरी रात की इन गतिविधियों के बाद रेणुका बेड पर लेटकर आराम करने जा ही रही थी की तब शीला ने उसका हाथ पकड़कर कहा
शीला: "चल रेणु.. मदन और राजेश के जागने से पहले हमें होटल छोड़ देनी है.. हम उनके साथ बात भी नहीं करेंगे और उन्हें बताएंगे भी नहीं"
आज की रात के अनुभव के बाद, रेणुका इतना तो जान ही गई थी की शीला की बुद्धि उससे सौ गुना ज्यादा तेज थी.. शीला के साथ निरर्थक बहस करने का कोई मतल नहीं था..
दोनों फटाफट बाथरूम में घुसी.. और एक साथ नहाने लगी.. बाहर निकलकर कपड़े पहने.. और चेक-आउट कर दोनों निकल गई.. मदन और राजेश तब अपने कमरे में खर्राटे लेकर सो रहे थे..
सुबह सात बजे राजेश की आँख खुली.. आँखें मलते हुए जब उसका दिमाग थोड़ा जागृत हुआ.. तब कल की डरावनी यादें ताज़ा हो गई.. !! और वो बेड पर स्प्रिंग की तरह उछल गया.. उसने झकझोर कर मदन को जगाया..
राजेश: "अरे यार मदन.. उठ जा यार.. चल यहाँ से जल्दी निकल जाते है.. मुझे तो यहाँ अब एक पल और रहने में भी डर लग रहा है!!"
मदन तुरंत जाग गया.. दोनों ने कपड़े पहने और बगल वाले कमरे में देखने गए.. वो कमरा खुला था और अंदर कोई नहीं था.. मतलब साफ था.. दोनों निकल चुकी थी.. उदास होकर सामान लेकर दोनों रीसेप्शन पर पहुंचे.. चेक-आउट कर दोनों बाहर निकलें.. गाड़ी में बैठकर दोनों की सांसें तब तक पूर्ववत नहीं हुई जब तक की वो शहर से बाहर नहीं निकल गए..
बहुत ही शानदार और लाजवाब अपडेट है लगता है तरुण ने सुबोधकांत को किसी ऐसे के साथ चुदाई करते हुए देख लिया जिसकी उसने कल्पना नहीं की होगी और जो जायज नहीं होगा होटल की पार्टी में सुबोधकांत ही कॉकटेल था क्या वह शीला को पहचान गया या नहीं शीला को कॉकटेल के लन्ड को देखकर डाउट हुआ था लेकिन आज घड़ी की वजह से पहचान गई ।लगता है सुबोधकांत को किसी ने टाइम दे रखा हैमदन तुरंत जाग गया.. दोनों ने कपड़े पहने और बगल वाले कमरे में देखने गए.. वो कमरा खुला था और अंदर कोई नहीं था.. मतलब साफ था.. दोनों निकल चुकी थी.. उदास होकर सामान लेकर दोनों रीसेप्शन पर पहुंचे.. चेक-आउट कर दोनों बाहर निकलें.. गाड़ी में बैठकर दोनों की सांसें तब तक पूर्ववत नहीं हुई जब तक की वो शहर से बाहर नहीं निकल गए..
उस दौरान, रेणुका और शीला, बड़े ही आराम से मस्ती करते हुए गाड़ी में अपने शहर की ओर जा रहे थे.. देखते ही देखते दोनों रेणुका के घर पहुँच गए.. शीला ऑटो लेकर घर पहुंची.. तब वैशाली ऑफिस जा चुकी थी.. रेणुका और शीला के बीच.. गाड़ी में जो गुफ्तगू हुई, वो जबरदस्त थी..!!
सुबह के दस बज गए थे.. पिछली रात के संस्मरणों के बारे में सोचते हुए शीला रोजमर्रा के काम में मशरूफ़ हो गई...
दोपहर तीन बजे के करीब मदन घर पहुंचा.. उसका चेहरा इतना उदास था, जैसे कोई उसके गोटे चुराकर भाग गया हो.. !! शीला ने उसका ऐसे स्वागत किया जैसे कल रात कुछ हुआ ही न हो.. एकदम स्वाभाविक व्यवहार दिखाया उसने.. !!
मदन धीरे धीरे चलते हुए सोफ़े पर जा बैठा.. शीला उसके लिए पानी का ग्लास लेकर आई..
यहाँ आने से पहले मन ही मन मदन सोच रहा था की घर पहुंचते ही शीला उसकी बैंड बजा देगी.. पर ये तो बिल्कुल उल्टा ही हो रहा था.. !! हाथ में ग्लास थमाकर शीला कोई गीत गुनगुनाते हुए किचन में चली गई.. थोड़ी देर के बाद अदरख की खुश्बू से पता चला की अंदर मस्त मसालेदार चाय बन रही थी..
हाथ में दो बड़े चाय से भरे मग लेकर शीला बाहर आई.. एक मग मदन को दिया और मदन के करीब सोफ़े पर बैठ गई..
मदन की हालत इतनी खस्ता थी की खिड़की के बाहर अपने बरामदे में झुककर झाड़ू लगा रही कविता के लटकते बबले देखने का भी मन नहीं हो रहा था उसे..
अपनी आँखें मटकाते हुए बड़े ही शरारती अंदाज में शीला ने मदन से पूछा "कैसी रही मीटिंग?"
मदन ने जवाब नहीं दिया..
मदन को इस स्थिति में देखकर शीला बेहद खुश हुई.. सशक्त और प्रभावशाली महिलाएं अपनी शक्ति और प्रभाव को पुरुषों पर हमेशा स्थापित करना चाहती हैं.. ऐसी महिलाएं अपनी स्थिति और अधिकार को तब महसूस करती हैं, जब वे अपने पुरुषों को कमजोर या उनके दायित्वों के तले दबा हुआ देखती हैं.. ऐसे सूरत में, महिलाएं आम तौर पर पुरुषों को नियंत्रण में रखने का आनंद महसूस करती हैं, और यह शक्ति का असमान वितरण उनके आत्म-सम्मान और संतुष्टि का हिस्सा बन जाता है..!!
मदन को ओर उंगली करने के लिए उसने उसे कुहनी मारकर कविता की तरफ इशारा करते हुए कहा "वो देख.. कविता के भी उस बार्बी जैसे ही है.. बुला ले उसे आज रात को.. !! तो क्या है, की तुझे झूठ बोलकर दोबारा इतने दूर जाना नहीं पड़ेगा"
मदन: "प्लीज यार शीला.. कविता के लिए ऐसा मत बोल.. उसमें उस बेचारी का क्या दोष?"
शीला: "बात तो तेरी सही है मदन.. पर क्या करूँ?? घूम फिरकर वही सारी बातें याद आ जाती है.. कल जब रेणुका तेरा लंड चूस रही थी.. तब तेरी उत्तेजना जबरदस्त बढ़ गई थी.. मैंने अपनी आँखों से देखा है इसलिए मुकर मत जाना.. वरना मर गया आज तो.. !!"
रेणुका की बात छेड़कर शीला क्या कहना चाह रही थी इसके बारे में मदन सोचता उससे पहले शीला ने और एक बाउंड्री मार दी..
शीला: "बिना मुझ से पूछे.. तुम दोनों ने आपस में ही बीवियाँ बदलने का तय कैसे कर लिया????"
मदन: "अरे यार.. तू ही तो कहती थी.. की तुझे ग्रुप सेक्स करना है.. बी.पी. देखते हुए तू कितनी गरम हो जाती थी और ऐसी बातें किया करती थी.. !! भूल गई क्या??"
शीला: "मदन, चल अंदर चलकर बात करते है"
मदन: "नहीं.. यही पर ही ठीक है.. " मदन जानता था की अंदर बेडरूम में ले जाने का बाद शीला कुछ भी कर सकती थी.. उसे वो जोखिम लेना ही नहीं था..
चाय खत्म हो गई.. पर दोनों की गरमागरम बातें खत्म नहीं हुई.. बड़ी मुश्किल से मदन ने शीला से अपनी जान छुड़ाते हुए कहा
मदन: "मैं थोड़ी देर बाहर जाकर आता हूँ"
शीला ने उसे रोका नहीं.. और वो चला गया.. शीला सोफ़े पर बैठे बैठे आगे की रणनीति सोच रही थी तभी मदन के फोन की रिंग बजी.. जल्दबाजी में मदन फोन ले जाना ही भूल गया था.. !!
शीला ने फोन हाथ में लिया.. स्क्रीन पर रेणुका का नाम नजर आ रहा था.. शीला ने फोन उठाया और कुछ बात की.. फोन काटकर उसने राजेश को फोन लगाया..
राजेश: "हैलो भाभी जी, कैसी है आप?" बड़ी ही विनम्रता से राजेश ने कहा
शीला: "अरे वाह.. कितने भोले बन रहे हो.. इतने भोले राजेश से मुझे कोई बात नहीं करनी.. रखती हूँ" बड़ी शातिर थी शीला
राजेश: "अरे नहीं नहीं भाभी.. कहिए, क्या काम था? वो तो.. कल रात के बाद.. आप से बात करने में थोड़ा संकोच हो रहा था इसलिए.. वरना आप के सामने भला कौन भोला बनकर रहना चाहेगा.. !!"
शीला ने मुस्कुराकर कहा "अच्छा.. !!! मैं तो समझ रही थी की मैं बूढ़ी हो चुकी हूँ"
राजेश: "भाभी जी, शराब जितनी पुरानी हो उतना ही ज्यादा मज़ा देती है"
शीला: "तो क्या मैं शराब हूँ? तब तो मुझ पर भी सरकार को रोक लगा देनी चाहिए"
राजेश: "खुलेआम मजे लेने पर तो वैसे भी रोक ही है ना.. फिर वो शराब हो या आप.. !! पर चुपके चुपके क्या कुछ नहीं हो सकता.. !! कल रात को ही आपने सारे नज़ारे देख लिए है"
शीला: "राजेश, एक बात कहूँ.. पर किसी को बताना मत"
राजेश: "हाँ कहिए भाभी.. "
शीला: "नहीं ऐसे नहीं.. पहले वादा करो को आप किसी को नहीं बाताओगे.. रेणुका को भी नहीं.. यह बात सिर्फ हम दोनों के बीच ही रहनी चाहिए"
राजेश: "बात क्या है भाभी? कुछ सीक्रेट है क्या? वैसे सीक्रेट बात हो या काम.. दोनों में ही मज़ा आता है.. जल्दी कहिए"
शीला: "पहले वादा करो किसी को नहीं बताओगे"
राजेश: "ठीक है, वादा करता हूँ"
शीला: "कैसे कहूँ... मुझे तो शर्म आती है.. राजेश.. कल तुम बहोत ही हार्ड थे.. तुम्हारा वो... उसकी तस्वीर मेरी आँखों के सामने से हट ही नहीं रही है"
सुनते ही राजेश का लंड ऐसे खड़ा हो गया जैसे अभी अभी वियाग्रा के साथ रेड-बुल के दो टीन पी लिए हो.. !! ऐसी उत्तेजना का अनुभव उसने इससे पहले सिर्फ एक ही बार किया था.. माउंट आबू में बियर पीने के बाद जब टॉइलेट में वैशाली ने उसे अंदर खींचकर उसका लंड पकड़ लिया था..!!
शीला: "राजेश, आप मेरे बारे में कुछ बुरा मत सोचिएगा.. आप दोनों जो अंदर अंदर स्वैपिंग करने की बात कर रहे थे.. उसके लिए रेणुका तैयार हो जाती.. शायद मैं भी तैयार हो जाती.. पर मदन कभी भी तैयार नहीं होगा.. मुझसे इतनी मोहब्बत करता है वो.. मुझे किसी और की बाहों में वो देख ही नहीं पाएगा.. !!"
राजेश: "अरे भाभी.. वो सब बातें तो हम सिर्फ मज़ाक मज़ाक में कर रहे थे.. आप उसे सिरियसली मत लीजिए.. चाहे आप हो या रेणुका.. अपने पति के दोस्त के साथ ऐसा करने की कौन भला सोचेगा??"
शीला: "सोच तो कोई भी सकता है.. कुछ भी नामुमकिन नहीं होता.. पति की जानकारी में ये करना जरूर मुश्किल है.. पर उससे छुपाकर तो हो ही सकता है"
सुनकर राजेश के होश उड़ गए "आप क्या कह रही हो भाभी????"
शीला: "प्लीज राजेश.. ये तो अच्छा हुआ की मदन अपना फोन भूल गया तो मैं उसके फोन से ये बात कह रही हूँ.. वरना मेरी ये इच्छा अधूरी ही रह जाती.. सामने से तो ऐसा कहने की मेरी हिम्मत कभी नहीं होती.. पर आज जब मौका मिल ही गया तो मैं उसे छोड़ना भी नहीं चाहती.. मुझे कहने दीजिए.. जब से मैंने तुमको इतना हार्ड होते हुए देखा है.. तब से मेरे रोम रोम में बस तुम्हारी ही याद बसी हुई है.. जो हरदम मुझे मजबूर कर रही है की उस हार्डनेस का अनुभव किए बगैर मैं रह नहीं पाऊँगी.. सिर्फ एक बार.. प्लीज मुझे चांस दो.. आई लव यू राजेश"
स्तब्ध हो गया राजेश.. !! ये क्या खेल खेल रही थी शीला उसके साथ.. !! शीला ने आई लव यु तक बोल दीया?? कोई इतनी जल्दी कैसे किसी से प्रेम कर सकता है?? शीला जबरदस्त गरम औरत थी उसमें कोई दो राय नहीं थी.. पर जैसे भी थी.. थी तो वो उसके दोस्त की बीवी.. मदन के साथ ऐसा धोखा मैं कैसे कर सकता हूँ??
धोखा..!! यह शब्द याद आते ही राजेश के दिल ने उसे एक मजबूत लात लगाकर मैदान के बाहर फेंक दिया.. धोखा देने में अब बाकी ही क्या बचा था?? और मदन भी तो रेणुका की चूत चाट ही चुका था.. !! वो भी मेरे नज़रों के सामने.. !! तो अब धोखे वाली बात के बारे में सोचने का कोई मतलब ही नहीं था.. और मैं कहाँ शीला पर कोई जबरदस्ती कर रहा हूँ?? या उसे फुसला रहा हूँ? ना ही मैं उसे कोई धोखा दे रहा हूँ.. जब वो ही सामने से चलकर आ रही है तो... !!
शीला: "क्या सोच रहे हो राजेश?? यही ना.. की मैं कितनी गिरी हुई और घटिया किस्म की औरत हूँ.. !!"
राजेश चुप ही रहा
शीला: "अब तुम मुझे घटिया समझो या गिरी हुई समझो.. पर मैं अपनी इच्छा को अधूरी छोड़ने वालों में से नहीं हूँ.. मुझे तो कल रात को ही तुम्हारा हार्ड पेनीस देखकर, उसे अंदर लेने का मन कर रहा था.. पर सच कहूँ तो मदन की मौजूदगी में.. मैं खुलकर मज़ा न ले पाती.. मुझे एकांत चाहिए.. सिर्फ तुम और मैं अकेले.. दुनिया का कोई एक ऐसा कोना जहां पर हम दोनों के अलावा और कोई न हो.. ऐसे माहोल में.. मैं मुक्त होकर तुम्हारे साथ इन्जॉय करना चाहती हूँ.. प्लीज मुझे निराश मत करना.. मैं मर रही हूँ तुम्हारी सख्ती को अपने अंदर महसूस करने के लिए.. !!"
राजेश के पास कहने के लिए शब्द नहीं थे.. शीला ने तो उसे प्रपोज ही कर दिया.. !! अब क्या जवाब दें.. !!
फोन पर बात करते हुए राजेश गाड़ी ड्राइव कर रहा था.. अपने घर की ओर.. वो घर पहुंचकर रेणुका के साथ अपने संबंधों को वापिस दुरस्त करना चाहता था.. दूध फट तो चुका था.. अब उससे जितना जल्दी पनीर बना लिया जाए उतना अच्छा.. !! और इसी बीच शीला का फोन आ गया.. गाड़ी चलाते हुए उसका लंड खड़ा हो गया था.. शीला की बातों ने उसके लंड को फिर बैठने ही नहीं दिया.. ऐसा हाल हो गया की गाड़ी चलाते चलाते ही उसने अपना लंड बाहर निकाला और मूठ लगाने लगा..
राजेश: "ओह्ह भाभी.. अपना तो मेरा हाल कल रात जैसा कर दिया.."
शीला: "तो फिर आ जाओ.. मदन बाहर गया है.. घर पर कोई नहीं है"
राजेश: "और कहीं वो आ गया तो?"
शीला: "एक काम करती हूँ.. उसे फोन करके पूछ लेती हूँ.. की कब लौटने वाला है"
राजेश: "पर कैसे पूछोगी? फोन तो उसका घर पर ही है"
शीला: "जाने दो.. लगता है तुम्हारी हिम्मत नहीं हो रही है"
राजेश: "ऐसा नहीं है भाभी... पर.. !!!"
शीला ने नाराज होकर कहा "मदन लौट आया है" और उसने फोन काट दिया
फोन रखने के बाद शीला को अफसोस हो रहा था की आखिर वासना की बाढ़ में बहकर उसने राजेश से ऐसी बात की ही क्यों?? अब वो क्या सोचेगा मेरे बारे में??
शीला की बातों से बेहद उत्तेजित होकर.. राजेश ने रोड के किनारे गाड़ी पार्क कर दी.. और मूठ लगाते हुए अपने रुमाल में पिचकारी मार ली.. और फिर घर की ओर निकल गया
घर के गंभीर वातावरण को देखते हुए अब वहाँ किसी उत्तेजक घटना के घटने की कोई संभावना नहीं थी.. जैसा राजेश ने सोचा था.. रेणुका मुंह फुलाकर बैठी हुई थी.. और उससे बात करने के मूड में नहीं थी.. और वो स्वाभाविक भी था.. इसलिए राजेश को कोई ताज्जुब नहीं हुआ..
उस रात उन दोनों के बीच कुछ खास नहीं हुआ.. पर बगल में सो रहे दोनों के दिमाग में पिछली रात की घटनाएं घूम रही थी.. रेणुका मदन के लंड को याद कर रही थी.. जब की राजेश के दिमाग में शीला ने आज दोपहर को कही हुई बातें बार बार आ रही थी..
इस तरफ मदन और शीला के हाल भी कुछ ऐसे ही थे.. शीला पार्टी के सारे लंड याद कर रही थी.. जब की मदन के दिमाग में रेणुका का छरहरा बदन घूम रहा था..
राजेश सोते सोते सोच रहा था.. आह्ह.. आज शीला भाभी ने मेरे लंड की तारीफ की.. मुझे खुला निमंत्रण तक दे दिया.. !! याद करते ही राजेश के मुंह से एक सिसकी निकल गई.. जो बगल में लेटकर उत्तेजना से झुलस रही रेणुका ने स्पष्ट रूप से सुना.. पर वह कुछ बोली नहीं.. वो मन ही मन सोच रही थी की अगर कल रात पुलिस की रैड न पड़ी होती.. तो वो और शीला अपनी पहचान अंत तक छुपाने में कामयाब रहते.. और रात का पूरा लुत्फ उठा पाते.. खैर फिर जो हुआ वो कल्पनातीत था.. भला हो शीला का.. जिसने अपनी सही पहचान बताकर सबको बचा लिया.. वरना आज सब के सब जैल की सलाखों के पीछे होते.. बाप रे.. !! समाज में क्या इज्जत रह जाती.. !! हाथ में नाम और पता लिखा हुआ बोर्ड थमाकर पुलिस वाले तस्वीर खींचते और अखबार वाले उसे पहले पन्ने पर छाप देते.. !!!
इस तरफ शीला करवट लेकर अपनी निप्पल को मसल रही थी.. उससे अब यह उत्तेजना बर्दाश्त नहीं हो रही थी.. हेमंत के जवान ताजे लंड ने उसे जो मजे दीये थे.. उसे याद करते हुए वह बहोत गर्म हो गई.. ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसका पूरा बदन बुखार से तप रहा हो.. ऊपर से, राजेश को लंड को चूसने पर जो शानदार किक मिली थी वो स्खलित होने के लिए काफी थी.. राजेश के लंड की याद आते ही शीला के भोसड़े में हवस की आग लग गई.. कुछ भी हो जाए.. एक बार तो वो लंड अंदर लेना ही है.. !! पर वो साला एक नंबर का डरपोक है.. क्या किया जाए?? मदन शहर से कहीं बाहर चला जाएँ तो फिर बढ़िया मौके का सेटिंग हो सकता है.. पर वैशाली तो घर पर ही होगी.. उसका क्या करें?? राजेश के घर पर रेणुका हर वक्त रहती थी.. ऑफिस मे पीयूष और पिंटू दोनों उसे पहचानते थे.. और यहाँ घर पर वैशाली और मदन का टेंशन.. ऊपर से.. कविता और अनुमौसी के नज़रों से बचाकर कुछ भी करना नामुमकिन सा था..
सोचते सोचते शीला अपनी चूत को कुरेदती रही.. और ऐसा सोचती रही की जैसे राजेश का लंड अंदर घुस रहा हो.. थोड़ी देर में ही उसकी चूत ने शहद टपका दिया.. और वो सो गई..
दूसरी सुबह, लगभग ग्यारह बजे के आसपास.. मदन पर राजेश का फोन आया.. दोनों ने काफी देर तक लंबी बातचीत की.. शीला बगल मे ही बैठी थी.. पर उस रात की घटना के बाद मदन की हिम्मत नहीं हो रही थी की वो खड़ा होकर, शीला से दूर जाकर बात करें.. उस रात के बारे में अब तक शीला और मदन के बीच खुल कर बात हुई भी नहीं थी.. !! आखिर मदन ने "बाद में बात करते है" कहते हुए फोन रख दिया..
शीला ने कुछ पूछा नहीं.. उसने उठकर डाइनिंग टेबल पर खाना लगा दिया.. मदन ने भी चुपचाप पालतू कुत्ते की तरह खाना खा लिया.. और शीला को बिना कुछ बताएं बाहर चला गया.. वो जितना हो सकें.. शीला के वाक्य-बाणों से दूर रहना चाहता था..
मदन ने बाहर निकलते ही राजेश को फोन किया.. और सीधा उसकी ऑफिस पहुँच गया.. पापा को देखकर वैशाली बहुत ही खुश हो गई.. काफी देर तक मदन और वैशाली की बातें चली.. बड़े ही उत्साह से वैशाली ने अपने काम के बारे मे बताया..
मदन ने राजेश की चेम्बर में प्रवेश किया.. राजेश ने बेल बजाकर प्युन को बुलाया और दो कप कॉफी मँगवाई.. और दोनों बातों में मशरूफ़ हो गए
राजेश: "मदन यार.. घर पर सब कैसा है?? मेरी तो वाट लगी पड़ी है.. !!"
मदन: "मेरा भी हाल कुछ ऐसा ही है.. तेरी भाभी तो मुझसे सीधे मुंह बात भी नहीं करती.. अपने ही घर में बेघर की तरह जी रहा हूँ.. बस खाना खाकर कोने में पड़ा रहता हूँ.. एक रात के मजे की इतनी बड़ी किंमत चुकानी पड़ेगी ये अंदाजा नहीं था.. बहोत बड़ी गलती हो गई.. तुझे क्या लगता है?"
राजेश: "बिल्कुल सच कहा तूने यार.. पर सोच.. अगर वहाँ हमारी बीवियाँ और पुलिस न आए होते तो कितना मज़ा आता.. !!"
मदन: "वो सब तो ठीक है यार.. पर ये सोच.. हो सकता है पुलिस को अपने सूत्रों से खबर मिली हो और उन्हों ने रैड कर दी.. पर मेरा दिमाग तो यह सोचकर खराब हुआ जा रहा है की हमारी बीवियों को इस बारे में कैसे और कहाँ से पता चला?? और वो दोनों वहाँ पहुंची कैसे??"
राजेश: "तुझे क्या लगता है मदन.. हम जो कुछ भी करते है.. उसका हमारी पत्नियों को पता नहीं चलता.. !! सब पता चलता है.. अगर हम न भी बताएं तो वो हमारी हरकतों से भांप लेती है की कहीं कुछ गलत हो रहा है.. उसे ही तो औरतों की छठी इंद्रिय कहा गया है.. असल मे.. वह लोग बहुत कुछ जानते हुए भी अनजान बने रहते है.. "
मदन: "नहीं यार.. मैं नहीं मानता.. !!"
राजेश: "ऐसा ही होता है मदन.. तू माने या ना मानें.. हकीकत यही है.. जब तक औरतों को अपनी सलामती या इज्जत पर कोई आंच आती न दिखे.. तब तक वो सब कुछ सह लेती है.. पर उन्हें जरा सा भी शक हुआ या डर लगा की मामला बिगड़ रहा है.. वह तुरंत ही सक्रिय हो जाती है.. और फिर वो किस हद तक जा सकती है, वो तो हम दोनों ने अपनी आँखों से देख ही लिया है"
मदन: "हाँ यार.. पर ताज्जुब इस बात का है.. की वो दोनों पुलिस से भी पहले पहुँच चुके थे.. उस हिसाब से उनका नेटवर्क तो पुलिस से भी ज्यादा मजबूत हुआ.. !!"
दोनों बातें कर रहे थे उस वक्त वैशाली कॉफी के तीन कप लेकर चेम्बर के अंदर आई.. राजेश और मदन ने बड़ी ही सफाई से अपनी बात बदल दी और क्रिकेट के बारे में बातें करने लगे..
टेबल पर तीनों कप रखकर वैशाली बैठ गई.. राजेश, मदन की मौजूदगी में ही वैशाली के विशाल तंदूरस्त स्तन-युग्म को देख रहा था.. जिस तरह से वो चलकर अंदर आई.. टाइट टी-शर्ट के अंदर दबी हुई चूचियाँ तालबद्ध लय में ऊपर नीचे हो रही थी.. एक पल के लिए मदन का इमान भी डोल गया पर उसने उस घृणास्पद विचार को रोक लिया..
वैशाली: "सॉरी पापा.. मैं आप लोगों को डिस्टर्ब कर रही हूँ.. पर मुझे आप से कुछ जरूरी बात करनी है.. !!"
मदन: "हाँ बोल न बेटा.. !!"
बाप-बेटी की बातचीत बड़े ध्यान से सुनते हुए राजेश अब भी वैशाली के कटीले बबलों को ताड़ रहा था
वैशाली: "दरअसल अभी मौसम का फोन आया था.. उसने मुझे और कविता को अर्जेंट उसके घर बुलाया है.. दो दिनों के लिए.. वो फोन पर बहोत ही रो रही थी.. !!"
राजेश: "तब तो बात जरूर बहोत गंभीर होगी.. !!"
मदन: "उसने कारण बताया या नहीं?? कुछ ज्यादा गंभीर बात हो तो हम भी चलें तुम लोगों के साथ"
वैशाली: "और तो कुछ नहीं बताया पर इतना बोली की उसके मंगेतर तरुण के बीच बहोत बड़ा प्रॉब्लेम हुआ है.. और तरुण सगाई तोड़ना चाहता है"
यह सुनकर राजेश और मदन दोनों चोंक गए
राजेश: "क्या?? ऐसे कैसे सगाई तोड़ सकता है?? कोई मज़ाक है क्या?? पर कुछ तो हुआ होगा उन दोनों के बीच... कुछ बताया मौसम ने?"
वैशाली: "वो फोन पर कुछ भी बताने को राजी नहीं है.. अब तो वहाँ जाकर ही कुछ पता चलेगा की मामले आखिर क्या है.. !!"
मदन: "ये आजकल के बच्चे भी ना.. सगाई-शादी जैसे गंभीर संबंधों को भी गुड्डे-गुड्डियों का खेल ही समझते है.. जब मर्जी की तब कर लिया.. और मन भर गया तो फेंक कर खड़े हो गए.. अरे भाई.. ऐसे थोड़े ही होता है.. !!"
राजेश: "बिल्कुल सही कहा तूने, मदन.. !! सच में.. मुझे तो अब अभी इस बात पर यकीन नहीं हो रहा"
मदन: "वैशाली बेटा.. तुझे जाना ही चाहिए.. मौसम की इस स्थिति को सहेलियाँ ही बेहतर समझ सकेगी और अच्छे से हेंडल भी कर सकेगी.. माँ-बाप इसमें ज्यादा कुछ कर नहीं सकते.. उन बेचारों पर तो आसमान टूट पड़ा होगा यह सुनकर... !!"
वैशाली: "ठीक है पापा.. मैं अभी घर को निकलती हूँ.. कविता से भी बात करनी होगी.."
मदन: "ठीक है बेटा.. "
वैशाली ने राजेश की ओर मुड़कर कहा "सर, आज का काम तो मैंने खतम कर दिया है.. अब वापिस आने में एक दो दिन लग सकते है.. तो क्या मैं जा सकती हूँ?"
राजेश: "अरे वैशाली.. यह भी कोई पूछने की बात है?? तू ऑफिस की चिंता मत कर और जा.." राजेश ने ड्रॉअर खोलकर पाँच सौ के दस नोट निकालकर वैशाली को दीये और कहा "ये साथ में रखना.. काम आएंगे"
मदन: "अरे राजेश, क्या कर रहा है यार तू.. उसे जरूरत होगी तो मुझसे ले लेगी.. तू क्यों दे रहा है??"
राजेश: "मुझे पता है की तू उसे दे ही सकता है.. पर अब एक बात समझ ले.. वैशाली को अपने पैरों पर खड़े होना होगा.. और उसमें हम सब उसकी मदद करेंगे.. वो अपनी तनख्वाह से खुद के खर्चे संभालेगी.. हाँ, उसे कभी कुछ भी ज्यादा जरूरत हुई तो हम सब है ना.. !! बाकी उसे अपने हिस्साब से ही जीने दे.. उससे उसका मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ेगा... वैशाली, तुम निकलो.. वहाँ जाकर इस प्रॉब्लेम का सही कारण ढूँढने की कोशिश करना.. और पता चले तो अपने पापा को तुरंत बताना.. हो सकता है हम लोग इसमें कुछ मदद कर सकें.. "
वैशाली: "ओके सर.. थेंकस..!!" कहते हुए वैशाली उठकर चली गई.. मुड़कर जाती हुई वैशाली के मटकते नितंब देखकर राजेश की दिल मे जबरदस्त सुरसुरी सी होने लगी..
वैशाली ने बाहर निकलकर ऑटो पकड़ी और तुरंत घर पहुँच गई.. ऑटो में बैठे बैठे उसने पिंटू को सारी बात फोन पर बता दी.. धीरे धीरे पिंटू अब.. किसी और की हो चुकी कविता से ज्यादा वैशाली के प्रति अपना ध्यान केंद्रित कर रहा था.. पिंटू का टूटा हुआ दिल.. और वैशाली का बर्बाद हो चुका वैवाहिक जीवन.. दोनों एक दूजे के लिए आदर्श विकल्प थे.. पर जब जब पिंटू के दिमाग में कविता का विचार आता.. तब उसे लगता की वो कविता का स्थान और किसी को भी नहीं दे पाएगा.. यही सोचकर वो वैशाली से पर्याप्त दूरी बनाए रखता था.. एक बार तो उसे दिमाग में भी आया.. की वो भी वैशाली के साथ जाएँ.. उसी बहाने वह घर भी जा सकेगा और वैशाली के साथ कुछ समय बिताने का मौका भी मिल जाएगा.. पर जैसे ही उसे पता चला की वैशाली तो कविता के साथ जा रही है.. उसने वो प्लान केन्सल कर दिया.. !!
वैशाली घर पहुंची.. शीला घर पर अकेली थी.. वैशाली को इतना जल्दी घर आया देख उसे ताज्जुब हुआ..
शीला: "क्या हुआ बेटा?? तबीयत तो ठीक है ना तेरी??"
वैशाली: "मम्मी, मुझे कुछ नहीं हुआ है.. तुम कविता को यहाँ बुलाओ.. मुझे काम है उसका.."
शीला: "अरे पर हुआ क्या? क्या काम है उसका? तू ही क्यों नहीं चली जाती उसके घर? सब ठीक तो है ना??"
वैशाली: "कुछ भी ठीक नहीं है मम्मी.. मौसम का फोन था.. तरुण सगाई तोड़ना चाहता है.. बहुत रो रही थी बेचारी.. मुझे और कविता को वहाँ बुला रही है"
शीला स्तब्ध होकर बोली "क्या??? ऐसा कैसे हो सकता है? अभी पंद्रह दिन ही तो हुए है सगाई को.. !!"
वैशाली: "पता नहीं मम्मी.. शायद कविता को कुछ पता हो इसके बारे में.. मौसम ने इतना ही कहा की मैं उसकी दीदी को लेकर तुरंत वहाँ आ जाऊ"
शीला गहरी सोच में पड़ गई.. ऐसा तो क्या हो गया अचानक??
शीला ने फोन करके कविता को बुलाया.. कविता तुरंत आ गई.. उसे तो इस बारे में कुछ मालूम ही नहीं था.. वो तो बेचारी सुनकर ही फुट फुटकर रोने लगी..
शीला और वैशाली ने बड़ी मुश्किल से उसे शांत किया और पानी पिलाया
शीला: "हिम्मत रख कविता.. जो होना था सो हो गया.. अच्छा हुआ की शादी से पहली ही हो गया.. वरना मौसम का हाल भी मेरी वैशाली जैसा हो जाता.. !!" और फिर अचानक शीला को याद आया और उसने वैशाली की ओर मुड़ कर देखा और कहा "अरे हाँ बेटा.. देख ये नोटिस आई है.. २५ तारीख को कोर्ट में सुनवाई है.. तुझे अपने पापा के साथ जाना है.. उससे पहले एक बार देसाई अंकल से मिल लेना"
वैशाली: "२५ तारीख को अभी बहोत देर है मम्मी.. फिलहाल मौसम को संभालना बहोत जरूरी है.. मैं सोच रही हूँ की मैं और कविता वहाँ चले जाते है"
शीला: "मुझे कोई प्रॉब्लेम नहीं है बेटा.. पर तुम दोनों अकेले कैसे जाओगी?"
वैशाली: "क्या मम्मी तुम भी!! दकियानूसी बातें कर रही हो.. हम अपने आप को संभाल सकती है.. "
शीला: "एक बार पापा से पूछ ले"
वैशाली: "मैंने उनसे पूछ लिया है.. वो ऑफिस पर ही थे.. उनसे भी पूछ लिया और राजेश सर की भी पर्मिशन ले ली है.. दोनों ने कहा की मुझे जाना चाहिए"
अब शीला के पास और कोई बहाना नहीं था.. वो बोली "ठीक है.. पर संभाल कर जाना.. ज़माना बहोत खराब है"
कविता उदास होकर घर चली गई.. जब वो आई तब उछलती हुई आई थी.. और जब जा रही थी तब उसके पैरों में से जान ही निकल गई थी
कविता ने घर आकर रोते हुए सारी बात अनुमौसी को बताई.. सुनकर मौसी का पारा सातवे आसमान पर चढ़ गया
अनुमौसी: "उस नालायक में हमारी मौसम को संभालने की ताकत ही नहीं होगी.. वरना क्या कमी है मौसम में?? वही लायक नहीं था मौसम के.."
शाम को पीयूष घर लौटा.. वो पूरा दिन ऑफिस के काम के सिलसिले में बाहर था इसलिए उसे इस बारे में कुछ भी पता नहीं था.. जब कविता ने उसे सारी बात बताई तब वो भी बेहद चोंक गया.. एक पल के लिए तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ..
थोड़ी देर सोचकर पीयूष ने कहा "कल हम दोनों तेरे घर चलते है.. मैं तरुण को समझाऊँगा.. वो पढ़ा लिखा है.. शायद मेरी बात मान जाए.. वैसे मौसम ने तुझे कब बताया इस बारे में? फोन किया था उसने तुझे?"
कविता: "मुझे नहीं.. वैशाली को फोन किया था"
पीयूष: "वैशाली को क्यों फोन किया?? तुझे नहीं कर सकती थी?"
अनुमौसी: "अरे बेटा.. वैशाली को फोन किया हो या कविता को.. क्या फरक पड़ता है?? शायद वो बेचारी कविता को सदमा पहुंचाना न चाहती हो इसलिए वैशाली को फोन किया होगा.. अब तू और कविता वहाँ जाओ.. और हो सके तो उस गधे के बच्चे को समझाओ.. और ना समझे तो कान पकड़कर मेरे पास लेकर आना.. दो चपेड़ लगाकर सीधा कर दूँगी उसे.. !!"
उस रात को बेडरूम में कविता और पीयूष के बीच तरुण और मौसम को लेकर काफी चर्चा हुई.. पीयूष ने मौसम को फोन भी लगाया पर वो बात करने की स्थिति में नहीं थी.. मौसम की माँ, रमिला बहन ने रोते रोते बस इतना ही कहा.. की मौसम ने खाना पीना सब छोड़ दिया है.. बस पूरा दिन रोती रहती है..
वैशाली, कविता और पीयूष दूसरी सुबह बस से मौसम के घर पहुँच गए.. कविता को देखते ही मौसम उसके गले मिलकर बहोत रोई.. पीयूष भी मौसम को गले लगकर सांत्वना देना चाहता था पर माहोल की गंभीरता देखते हुए उसे ऐसा करना योग्य नहीं लगा.. एकाध घंटे के बाद.. सब रोना धोना खत्म करके सब नॉर्मल हुआ.. कविता ने अपनी माँ और मौसम को हिम्मत देकर शांत किया..
शाम को पाँच बजे पीयूष चाय पीने के बहाने बाहर निकला.. तब वैशाली, मौसम और फाल्गुनी, कमरे में बैठकर बातें कर रही थी.. पीयूष का दिल कर रहा था की वो मौसम को भी बाहर ले जाए और प्यारे से सब पूछे.. पर ये मुमकिन न था..
चाय की टपरी पर बैठे बैठे पीयूष बड़ी ही गंभीरता से सोच रहा था.. ऐसा तो क्या हुआ होगा तरुण और मौसम के बीच?? मौसम को पाकर तो तरुण धन्य हो जाना चाहिए था.. कुछ तो कारण होगा.. और उस कारण को जानना बेहद ही जरूरी था..
चाय पीने के बाद सोचते सोचते चलता हुआ पीयूष.. बस अड्डे पर पहुँच गया.. सामने ही बस पड़ी थी.. जिस पर उस शहर का नाम लिखा था जहां तरुण रहता था.. थोड़ा सा सोचकर पीयूष उस बस में चढ़ गया.. !!!
बस की सीट पर बैठते ही पीयूष ने कविता को फोन लगाया
पीयूष: "मैं तरुण से मिलने जा रहा हूँ.. किसी को बताना मत.. कोई मेरे बारे में पूछे तो बताना की कंपनी का अर्जेंट काम निकल गया इसलिए गया है और कल तक लौट आएगा.. वैसे मौसम ने कुछ बताया?? "
कविता: "नहीं यार.. वो तो उस बारे में कुछ बोल ही नहीं रही.. एक ही रट लगाए बैठी है.. की उन दोनों के बीच ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है.. अरे, दोनों के बीच परसों आधी रात तक बात भी हुई थी.. और फिर अचानक क्या हो गया.. दूसरे दिन सुबह दस बजे फोन करके उसने रिश्ता तोड़ दिया"
पीयूष: "ठीक है.. मैं जाकर खुद पूछता हूँ.. तब तक तुम दोनों मौसम और मम्मी जी को संभालना"
कविता: "ओके.. संभलकर जाना"
पीयूष ने फोन रख दिया.. 2 घंटे के सफर के बाद पीयूष तरुण के शहर पहुंचा.. उसने तरुण को फोन लगाया.. तरुण को उसके फोन से कोई खास ताज्जुब नहीं हुआ.. उसने पीयूष को एक रेस्टोरेंट का पता दिया और वहाँ पहुँचने के लिए कहा
ढूंढते ढूंढते एक घंटे के बाद पीयूष उस बताए हुए पते पर पहुंचा..
वहाँ एक टेबल पर बैठे तरुण को देखते ही वो उसके पास पहुंचा.. और खड़े खड़े ही सवाल जवाब शुरू कर दीये
पीयूष: "तरुण, ये मैं क्या सुन रहा हूँ?" पीयूष की आवाज में आश्चर्य, मायूसी और क्रोध का मिश्रण था
तरुण ने जवाब नहीं दिया..
पीयूष: "देख तरुण.. तो इतना पढ़ा लिखा है.. मैं ना तो तुझे कोई सलाह या मशवरा दूंगा या फिर ना ही तुझे अपना निर्णय बदलने के लिए फोर्स करूंगा.. अपनी ज़िंदगी के फैसले खुद से करने का तुझे पूरा हक है.. मैं तो बस सगाई तोड़ने का कारण जानने के लिए आया हूँ.."
तरुण: "पीयूष भैया.. कुछ बातें ऐसी होती है जिसकी चर्चा करने से केवल नफरत और घृणा ही बढ़ती है.. और मैं नहीं चाहता की मैं आप से ऐसी कोई बात करूँ जिसे किसी की ज़िंदगी तबाह हो जाए.. "
पीयूष: "तू मुझे खुलकर बता सकता है.. यकीन मान.. तू जो भी बताएगा वह बात सिर्फ मुझ तक ही रहेगी.. अगर तेरी इच्छा न हो तो असली कारण में किसी को नहीं बताऊँगा.. कोई और ही कारण बताकर सब को मना लूँगा.. सिर्फ यही जानने के लिए मैं इतनी दूर आया हूँ.. इतना तो मुझे जानने का हक है ना.. !!"
तरुण: "अब अगर आप सुनना ही चाहते है तो सुनिए.. !! आपके ससुराल के सभी पात्र चारित्रहीन है.. !!"
सुनकर पीयूष के पैरों तले से धरती खिसक गई.. कहीं ऐसे मेरे और मौसम के संबंधों के बारे में तो नहीं पता चल गया.. !! अपने चेहरे के डर को बड़ी मुश्किल से छुपाते हुए पीयूष ने चकित होने के भाव धारण करते हुए कहा
पीयूष: "क्या बात कर रहा है तू तरुण?? मेरी शादी को इतना समय हो गया पर मुझे तो कभी कुछ ऐसा महसूस नहीं हुआ.. !!"
तरुण: "अब मुझे जो जानने मिला है.. उसे बताने के लिए मेरी जुबान नहीं चलेगी.. इसलिए सारी बातें मैं इस कागज पर लिखकर लाया हूँ" कहते हुए तरुण ने एक फोल्ड किया हुआ कागज पीयूष के हाथ में थमा दिया..
खोलकर पढ़ते ही पीयूष के होश उड गए.. !!!!! अब आगे कुछ भी बोलने-पूछने की आवश्यकता नहीं थी.. वो तरुण से हाथ मिलाकर खड़ा हो गया.. तरुण ने काफी आग्रह किया की वो कुछ खाकर जाए.. पर अब पीयूष के गले से एक निवाला तक उतरना मुमकिन नही था..
जाते जाते पीयूष ने तरुण के कंधे पर हाथ रखकर कहा "तरुण, तेरी और मौसम की जोड़ी बहोत प्यारी लगती है.. किसी और के गुनाह की सजा तू मौसम को दे, ये किस हद तक लाज़मी है?? जो कुछ तुझे जानने को मिला है वह सच ही होगा ऐसा मैं मानता हूँ.. पर इसमें मौसम बेचारी की क्या गलती??"
तरुण: "पीयूष भैया.. परिवार में कुछ भी ऊपर-नीचे या उल्टा-सुलटा हो तो उसका असर सारे सदस्यों पर पड़ता ही है.. ये तो आप भी मानेंगे.. मौसम का दोष सिर्फ इतना ही है की वो ऐसे परिवार की सदस्य है.. आप से हाथ जोड़कर विनती है की मुझे मनाने की कोशिश बिल्कुल मत करना.. मेरे मम्मी-पापा और परिवार के बाकी लोग अब इस रिश्ते के खिलाफ है.. और उन सब को नाराज कर मैं भी सुखी नहीं रह पाऊँगा.. मेरी और से आप मौसम से माफी मांग लेना.. और कहना की तरुण ने तुझे आगे की ज़िंदगी के लिए "ऑल ध बेस्ट" क यहा है.. और अब तरुण तुम्हारी ज़िंदगी का हिस्सा नहीं है और न कभी होगा.. शायद मौसम मेरी किस्मत में ही नहीं थी.. अब इस बारे में, मैं और बात नहीं करना चाहता भैया.. प्लीज..!!" कहते हुए नम आँखों के साथ तरुण खड़ा होकर रेस्टोरेंट से चला गया.. !!!!
पीयूष स्तब्ध होकर तरुण को जाते हुए देखता रहा.. मायूस होकर वह ऑटो से बस स्टेशन पहुंचा.. अगली बस रात के दस बजे थी.. डॉ घंटों की देरी थी.. अब अनजान शहर मे इतना वक्त खाली बैठे क्या करेगा.. !! बहुत जोरों की भूख लगी थी.. केंटीन में बैठकर उसने भरपेट खाना खाया और फिर बुक-स्टॉल से एक अखबार और एक बुक खरीदकर बैठे बैठे बस का इंतज़ार करने लगा
तभी कविता का फोन आया
फोन उठाकर पीयूष ने कहा "हाँ कविता.. मैं वापिस आ रहा हूँ"
कविता: "मिल भी लिया और बात भी हो गई??"
पीयूष: "हाँ मिल लिया मैंने तरुण से"
कविता: "पाज़िटिव या नेगटिव?" कविता ने इशारे से पूछा
पीयूष ने गहरी सांस छोड़कर कहा "नेगटिव" सच कहने के अलावा और कोई चारा नहीं था.. आज नहीं तो कल सच सामने आने ही वाला था.. फिर उससे मुंह छुपाकर क्या फायदा.. !!
कविता का मुंह लटक गया.. वो देखकर ही वैशाली समझ गई की पीयूष की मुलाकात का नतीजा क्या निकला होगा.. आदमी का चेहरा ही सब से बेहतरीन आईना होता है.. खुशी, नफरत, गुस्सा, प्रेम या गंभीरता.. इंसान के अंदर के भावों को निष्कर्ष बड़ी खूबी से बता देता है चेहरा.. !! अच्छा हुआ उस वक्त मौसम या उसकी माँ वहाँ मौजूद नहीं थे..
कविता ने आगे कुछ पूछा नहीं और कहा "बस स्टेंड पर उतरकर मुझे फोन करना.. मैं पापा को लेने भेज दूँगी.. आधी रात को तुझे ऑटो नहीं मिलेगा"
पीयूष: "मुझे एक बज जाएगा पहुंचते पहुंचते.. !!"
कविता: "हाँ ठीक है.. तूने खाना खाया?"
पीयूष: "हाँ खा लिया है.. तू मेरी चिंता मत कर..!!"
बस का समय होते ही पीयूष बैठ गया.. और पूरे दिन की थकान के कारण सो गया.. आँख खुली तो स्टेशन आ गया था.. रात का एक बजा था.. और पीयूष कविता को डिस्टर्ब करना नहीं चाहता था.. घर जाकर मौसम को कैसे सांझाए यह सोचते सोचते वो कविता के घर की तरफ चल दिया.. जिस तरुण के लेकर पीयूष के मन में बेहद ईर्ष्या थी.. उसी तरुण पर आज उसे सहानुभूति हो रही थी.. !!
मन की भावनाएं बड़ी विचित्र होती है... कब किसी के लिए कौनसे जज़्बात पैदा हो जाए.. कहा नहीं जा सकता.. फिर वो एक तरफा प्रेम हो.. या नफरत.. ईर्ष्या हो या क्रोध.. !!
सोचते सोचते आधे घंटे बाद वो घर पहुँच गया.. उसने डोरबेल बजाई.. थोड़ी देर के बाद कविता ने दरवाजा खोला.. घर पर सब सो चुके थे
कविता: "तूने फोन क्यों नहीं किया?"
पीयूष: "बेकार में सबके नींद खराब होती.. और वैसे स्टेशन उतना दूर भी नहीं है.. चलते चलते पहुँच गया"
पानी पीने के बाद पीयूष ने कविता को बताया की तरुण का पूरा परिवार अब इस रिश्ते को रखना नहीं चाहता था.. प्रॉब्लेम सिर्फ तरुण और मौसम के बीच होता तो शायद सुलझ भी जाता.. पर बात अब बहोत आगे बढ़ चुकी थी
चोंक उठी कविता ने कहा "अरे पर अचानक बात यहाँ तक कैसे पहुँच गई? दो दिन पहले तक तो सब ठीक था.. वजह बताई की नहीं तरुण ने?"
पीयूष: "हम्म.. न.. नहीं.. कुछ नही बताया" इतने समय से साथ रह रही कविता समझ गई की पीयूष सच नहीं बोल रहा था.. या शायद बोल नहीं पा रहा था.. हो सकता है की पीयूष अभी न बताना चाहता हो.. पर जब दोनों अकेले बेडरूम में होंगे तब वह सच बता ही देगा.. अभी फिलहाल उस पर जबरदस्ती करने का कोई मतलब नहीं था..
कविता: "जो हो गया सो हो गया.. अभी बात करने से हकीकत बदल तो नहीं जाएगी.. !! तू थक गया होगा.. हाथ मुंह धोकर फ्रेश हो जा.. मैं खाना लगाती हूँ.. !!
पीयूष डाइनिंग टेबल पर बैठ गया.. कविता ने खाने की थाली लगा दी.. और अंदर रोटियाँ बेलने लगी.. तभी मौसम ऊपर से उतरकर नीचे आई और पीयूष के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई..
जंग में हारे हुए योद्धा जैसा पीयूष.. मौसम से नजरें नहीं मिला पा रहा था.. बात को बदलने के इरादे से पीयूष ने कहा
पीयूष: "ओ हाय बेबी.. अभी भी जाग रही? नींद नहीं आ रही?"
मौसम ने उदास होकर कहा "कैसी नींद जीजू.. !!"
रोटी का गरम फुल्का लेकर कविता ने पीयूष की प्लेट में रखते हुए कहा " देख मौसम.. तू कितनी भी चिंता कर ले.. कितना भी जाग ले.. इस समस्या का हल अभी तो मिलने नहीं वाला.. चिंता होना जायज है पर चिंता किसी भी प्रॉब्लेम का हल नहीं है.. और मान ले की यह रिश्ता सच में हमेशा के लिए टूट जाता है.. तो इससे तेरी ज़िंदगी रुक थोड़ी न जाएगी??"
पीयूष: "मौसम.. किसी प्रॉब्लेम का जब हल न हो तो उसे वास्तविकता समझ कर स्वीकार लेना चाहिए.. तुझे यह मान लेना होगा की तरुण अब तेरे जीवन का हिस्सा नहीं है.. सदमा लगना स्वाभाविक है.. यह मैं समझ सकता हूँ.. पर अब तुझे ही तय करना है की इस बात को पकड़कर तू हमेशा के लिए दुखी रहना चाहती है या सब कुछ भूलकर आगे बढ़ना चाहती है.. !!"
मौसम: "जीजू.. मैंने तो हकीकत का स्वीकार कर ही लिया है.. की तरुण अब मेरा नहीं है.. मुझे तो सिर्फ यह जानना है की उसे ऐसा कदम आखिर क्यों उठाना पड़ा?? मैं क्या इतनी गई-गुजरी हुई जो वो मुझे बिना कोई वजह बताएं ही रिश्ता तोड़ दें??"
कविता: "वक्त आने पर सब पता चलेगा मौसम.. तू चिंता मत कर.. सच हमेशा सामने आ ही जाता है.. हो सकता है.. तरुण के साथ ही कोई प्रॉब्लेम हुई हो.. जो वो तुझे बता न पा रहा हो"
सुनकर मौसम का गुस्सा थोड़ा ठंडा हुआ.. उसे बस यही जानना था की तरुण के इस कदम के पीछे असली कारण क्या था
मौसम: "जीजू.. मैं यहाँ के वातावरण से तंग आ गई हूँ.. मैं कुछ दिन आपके यहाँ आकर रहना चाहती हूँ.. ताकि मेरे दिमाग से तरुण के विचारों को हटा सकूँ.. यहाँ रहूँगी तो पूरा दिन उसी के बारे में सोचती रहूँगी.. ऊपर से मम्मी का उदास चेहरा मुझसे देखा नहीं जाता.. प्लीज दीदी.. कल हम जितना हो सकें उतना जल्दी निकल जाते है यहाँ से.. !!"
पीयूष: "हाँ हाँ.. क्यों नहीं.. वैसा ही करेंगे.. दरअसल मैं सामने से तुझे यह कहने ही वाला था.. तू हमारे साथ चल.. सब ठीक हो जाएगा.. हम सब है ना तेरे साथ.. फिर किस बात की फिक्र.. !!"
मौसम: "ओके जीजू.. थेंकस.. गुड नाइट"
इतना कहते ही मौसम को फिर से रोना आ गया.. और वो भागकर अपने कमरे की और चली गई.. जाते जाते उसके रोने की आवाज स्पष्ट सुनाई दे रही थी..
कविता: "पीयूष, अब मुझे तो बता.. !! तरुण ने आखिर सगाई क्यों तोड़ दी??" सीधा सवाल किया कविता ने
पीयूष सोच में पड़ गया.. अब क्या बताएं कविता को?
पीयूष: "कविता, जब किसी बात को निकालने पर काफी सारे लोगों का अहित होना हो.. तब उसे न निकालना ही बेहतर होगा.. चल.. कल जल्दी उठना है.. सो जाते है.. सुबह ६ बजे की बस से निकल जाएंगे"
थोड़े घंटों की नींद लेने के बाद.. कविता, वैशाली, मौसम और पीयूष जाने के लिए तैयार हो गए.. सुबोधकांत उन्हें बस स्टेशन तक छोड़ने आए.. पहली बस मे काफी भीड़ थी.. इसलिए दूसरी बस की राह देखने लगी.. दूसरी बस का भी वही हाल था.. आखिर सुबोधकांत ने सब को अपनी गाड़ी में ही छोड़ आने का फैसला किया
कार तेजी से सड़क पर चल रही थी और उतनी ही तेजी से कविता और मौसम के दिमाग में विचार भी चल रहे थे.. गाड़ी चलाते हुए सुबोधकांत एकदम खामोश थे..
२ घंटों के सफर के बाद वो लोग पहुँच गए.. घर के अंदर घुसते ही मौसम अनुमौसी से गले मिलकर रोने लगी.. अनुमौसी ने अपने अनुभवयुक्त शब्दों से उसे सांत्वना दी..
मौसम कविता की मदद करने किचन में गई.. उस दौरान कविता ने उसे तरुण के बारे में.. उनके संबंधों के बारे में काफी कुछ पूछा.. पर उसे ऐसी कोई हिंट न मिली जिससे की वो किसी बात का अंदाजा लगा पाती
दोपहर के बाद पीयूष ऑफिस चला गया.. काम भी देखना जरूरी था..
थोड़ी देर के बाद, शीला और मदन भी मौसी के घर आ गए.. सुबोधकांत से मिलकर दोनों उनके साथ बैठे.. सुबोधकांत ने मौसम और तरुण की सगाई टूटने के बारे में बताया.. जिसके बारे में वह दोनों पहले से ही जानते थे.. थोड़ी देर की बातों के बाद.. सब एकदम चुपचाप बैठे थे
कविता और मौसम चाय लेकर आए..
चाय एक घूंट में खत्म करते ही.. सुबोधकांत ने अपनी घड़ी की ओर देखकर कहा "अब मुझे निकलना चाहिए"
कविता: "पापा, दोपहर तो हो ही चुकी है.. आप खाना खाकर ही जाइए"
सुबोधकांत: "नहीं बेटा.. अचानक यहाँ आना हुआ इसलिए मेरे कई काम रुकें पड़े है.. मुझे जाना ही होगा.. " बार बार अपनी घड़ी की ओर देख रहें सुबोधकांत तो कविता ने और नहीं रोका
अचानक शीला की नजर सुबोधकांत की गोल्डन केस वाली राडो घड़ी पर गई.. और ध्यान से देखते ही उसकी सांसें थम गई.. !!!
याद आते ही बेहद चोंक गई शीला.. अरे बाप रे... ये तो कॉकटेल है.. !! बिल्कुल यही घड़ी कॉकटेल ने भी पहन रखी थी.. ध्यान से देखने पर सुबोधकांत का शरीर, बोल-चाल सब कुछ कॉकटेल से मेल खा रहा था.. उसका लंड भी जाना-पहचाना सा क्यों लग रहा था वो अब पता चला शीला को.. सुबोधकांत के घर के गराज में एक बार चूस चुकी थी उनका लंड.. इसीलिए जब होटल में वह लंड दोबारा देखा तब हल्की सी भनक तो लगी थी पर याद नहीं आ रहा था.. !! शीला के पूरे बदन में झनझनाहट से छा गई.. हाँ, वो कॉकटेल ही था.. जिसका लंड मैंने और रेणुका दोनों ने दिल खोल कर चूसा था.. हे भगवान.. कहीं सुबोधकांत ने हमें पहचान तो नहीं लिया होगा.. !!!
मदन को वहीं बैठा छोड़कर शीला घबराकर घर वापिस आ गई..
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बहुत ही कामुक गरमागरम अपडेट है शीला और रेणुका दोनों के चुदवाने की चूल मची हैं शीला ना सही रेणुका पहुंच गई सुबोधकांत का लन्ड लेने के लिए ज्यादा ना सही मुंह में लेकर ही मजे कर लिए साथ ही एक गिफ्ट भी ले आई साथ ही मस्ती करने का ऑफर भी दे दिया जब राजेश और मदन बाहर जाए तबअचानक शीला की नजर सुबोधकांत की गोल्डन केस वाली राडो घड़ी पर गई.. और ध्यान से देखते ही उसकी सांसें थम गई.. !!!
याद आते ही बेहद चोंक गई शीला.. अरे बाप रे... ये तो कॉकटेल है.. !! बिल्कुल यही घड़ी कॉकटेल ने भी पहन रखी थी.. ध्यान से देखने पर सुबोधकांत का शरीर, बोल-चाल सब कुछ कॉकटेल से मेल खा रहा था.. उसका लंड भी जाना-पहचाना सा क्यों लग रहा था वो अब पता चला शीला को.. सुबोधकांत के घर के गराज में एक बार चूस चुकी थी उनका लंड.. इसीलिए जब होटल में वह लंड दोबारा देखा तब हल्की सी भनक तो लगी थी पर याद नहीं आ रहा था.. !! शीला के पूरे बदन में झनझनाहट से छा गई.. हाँ, वो कॉकटेल ही था.. जिसका लंड मैंने और रेणुका दोनों ने दिल खोल कर चूसा था.. हे भगवान.. कहीं सुबोधकांत ने हमें पहचान तो नहीं लिया होगा.. !!!
मदन को वहीं बैठा छोड़कर शीला घबराकर घर वापिस आ गई..
घर पहुंचकर सब से पहला काम उसने रेणुका को फोन करने का किया
रेणुका: "हाँ बोल शीला.. !!"
शीला: "यार एक जबरदस्त भांडा फूटा है आज तो.. !!"
रेणुका: "यार शीला.. जब से तू मेरी ज़िंदगी में आई है तब से रोज कुछ न कुछ धमाकेदार हो रहा है मेरे साथ.. अब क्या हुआ, ये भी बता दे"
शीला: "यार वो कॉकटेल था ना.. होटल में तेरा पार्टनर.. !!"
रेणुका: "हाँ, वो मस्त मोटे लंड वाला.. पार्टनर मेरा था और सब से ज्यादा तूने ही उसका लंड चूसा था.. !!"
शीला: "पता है वो कौन था??? मौसम का बाप, सुबोधकांत.. !!!!"
रेणुका: "क्या............!!!!!! क्या बक रही है तू??? जानती हूँ की तुझे उनसे चुदवाने की बड़ी ही चूल थी.. सगाई वाले दिन भी तू फ्लर्ट कर रही थी उनसे.. पर उसका मतलब ये नहीं की तू उनका नाम ऐसे जोड़ दे.. !! कुछ भी मत बोल"
शीला: "देख रेणुका.. अभी मदन आता ही होगा.. इसलिए लंबी बात नहीं हो सकती.. ये तो चांस मिला इसलिए मैंने तुझे बता दिया.. !!"
रेणुका: "पर तुझे ये पता कैसे चला.. ये तो बता.. !!!!"
शीला: "यार, एक बेड न्यूज़ है.. तुझे बताना ही भूल गई.. मौसम के साथ तरुण ने सगाई तोड़ दी है.. मौसम बहोत डिस्टर्ब थी तो कुछ दिनों के लिए यहाँ कविता के घर रहने चली आई है"
रेणुका: "हाँ, मुझे राजेश ने कुछ देर पहले बताया... बहुत बुरा हुआ उस बेचारी के साथ"
शीला: "मौसम को छोड़ने उसके पापा सुबोधकांत आए थे.. और तभी मेरा ध्यान उनकी घड़ी पर गया.. याद है.. !! कॉकटेल ने वो महंगी वाली घड़ी पहन रखी थी.. !! गोल्डन चैन वाली.. !!"
रेणुका: "हाँ बड़े अच्छे से याद है.. !!"
शीला: "बस, वही घड़ी मैंने सुबोधकांत की कलाई पर देखी"
रेणुका: "पागलों जैसी बात मत कर.. ऐसी एक ही घड़ी थोड़ी नआ होगी पूरी दुनिया मैं.. !!"
शीला: "अरे पगली.. घड़ी तो सिर्फ कड़ी थी.. फिर मैंने उनके शरीर के दिलडॉल, त्वचा का रंग.. आवाज.. सब मिलाकर देखा.. सुबोधकांत ही कॉकटेल है.. मुझे तो पक्का यकीन है"
रेणुका: "ओके बाबा.. चल रखती हूँ फोन"
शीला: "ओके बाय.. !!"
फोन काटकर शीला किचन में प्लेटफ़ॉर्म के आगे अपनी चूत खुजाते हुए सुबोधकांत के लंड को याद करने लगी.. जैसे शरीर के अंगों से उन्हें पहचान लिया.. वैसे हो सकता है की सुबोधकांत ने भी उसे पहचान लिया हो.. !! और कुछ याद रहे न रहे.. पर एक बार जिसने शीला के खुले हुए बबले देखें हो.. मरते दम तक नहीं भूल सकता..!!
इस तरफ रेणुका, शीला का फोन काटते ही, गहरी सोच मे पड़ गई.. थोड़ा सा विचार करने के बाद उसने सीधा सुबोधकांत को फोन लगाया.. सगाई के दौरान उसने घर के बाहर गार्डन में बातें करते हुए उनका नंबर लिया था
रेणुका: "हैलो... पहचाना.. ??"
सुबोधकांत: "हम्म..म..म..म..म..म.. सॉरी.. आवाज सुनी सुनी सी लगती है.. पर याद नहीं आ रहा.. वैसे इतना कह सकता हूँ की बड़ी सुरीली आवाज है आपकी.. "
रेणुका शरमाकर बोली "ओह थेंकस.. रेणुका बोल रही हूँ.. मुझे पता चला की आप शहर में आए हुए हो.. मुझे आपसे अर्जेंट मिलना था.. सिर्फ दस मिनट के लिए"
सुबोधकांत: "दस मिनट क्यों.. !! पूरा दिन आपके साथ गुजारने के लिए तैयार हूँ.. बस आपको राजेश को संभालना होगा.. आप के साथ सिर्फ दस मिनट गुजारने पर थोड़े ही मेरा मन भरेगा.. !!"
रेणुका ने हंसकर कहा "क्या आप भी.. पहले दस मिनट के लिए तो मिलिये.. फिर पूरा दिन साथ बिताने की प्लानिंग करेंगे.. !!"
सुबोधकांत: "सिर्फ दस मिनट में कुछ मज़ा आएगा नहीं.. वैसे मैं आपकी ऑफिस वाली सड़क से ही गुजर रहा हूँ.. अगर मिलना हो तो अभी मिल सकते है"
रेणुका: "क्या सच में.. !! ओके.. एक काम कीजिए.. उसी सड़क पर आगे एक पेट्रोल-पंप है.. वहाँ से टर्न लेकर बगल वाली सड़क पर आप मेरा इंतज़ार कीजिए.. मैं वहाँ पहुँच रही हूँ.. वैसे मैं आप से पहले पहुँच जाऊँगी"
रेणुका ने फटाफट कपड़े बदले.. और कार की चाबी लेकर बाहर निकली.. तभी उसे अंदाजा हुआ की इस वक्त बहोत ट्राफिक होगा और उतना समय था नहीं.. इसलिए फिर वह अपना एक्टिवा लेकर निकल गई
पंप पर पहुंचकर वो एक्टिवा में पेट्रोल भरवा रही थी.. तभी सुबोधकांत अपनी लंबी गाड़ी लेकर वहाँ पहुंचे.. रेणुका ने एक्टिवा बगल वाले कॉम्प्लेक्स के बाहर पार्क कर दिया.. और चुपचाप गाड़ी में आकर बैठ गई..
सुबोधकांत ने गाड़ी भगा दी.. काले कांच वाली खिड़कियों से बाहर से कोई उन्हें देख नहीं सकता था.. रेणुका की नजर सब से पहले सुबोधकांत की कलाई पर बंधी गोल्डन राडो घड़ी पर गई.. अब उसे शीला की बात पर यकीन हो गया.. सुबोधकांत ही कॉकटेल था.. !!! उसे याद आ गया की किस तरह उसने और शीला ने मिलकर उसका लंड चूसा था.. और कॉकटेल ने उसके बबलों का दबा दबाकर कचूमर निकाल दिया था..
सुबोधकांत का ध्यान आगे सड़क पर था तब रेणुका ने अपने टॉप में हाथ डालकर.. स्तन बाहर निकाले और सुबोधकांत की और देखकर कहा "हैलो, मिस्टर कॉकटेल.. !!"
सुबोधकांत ने चकराकर रेणुका की और देखा और एकदम से ब्रेक मार दी.. पीछे आ रही गाड़ी वाले ने सुबोधकांत की माँ को संबोधित करते हुए एक गाली दी और फिर ओवरटेक करते हुए आगे चला गया..
सुबोधकांत को दिन में तारे नजर आने लगे.. बेचारे पहली गेंद पर ही क्लीन बोल्ड हो गए.. !! वो सोचने लगे.. उस होटल से पकड़े जाने पर.. अखबार में मेरा नाम क्या आ गया.. रेणुका को पता भी चल गया.. !! वो तो ठीक है पर उसे मेरा नकली नाम कैसे पता चला?? अखबार वालों ने वो तो नहीं छापा था..!!
असमंजस में डूबे हुए सुबोधकांत की सारी शंकाओं का समाधान कर दिया रेणुका ने..
"मुझे राजेश ने बताया.. की आप भी थे उस दिन पार्टी में.. मुझे और शीला को ऐसा सब पसंद नहीं है इसलिए मदन और राजेश किसी और को लेकर वहाँ आए थे.. और आप भी वहाँ थे.. दूसरे दिन राजेश ने मुझे बताया की उन्होंने वहाँ खूब मजे किए और आपने भी बहोत इन्जॉय किया था" अपनी हकीकत छुपाते हुए आधा सच बताया रेणुका ने
सुबोधकांत सोच रहे थे.. लगता है रेणुका को पुलिस की रैड के बारे में पता नहीं है शायद...!!
सुबोधकांत ने रेणुका की जांघ पर हाथ फेरते हुए कहा "रेणुका जी.. राजेश एक नंबर का बेवकूफ है.. घर पर ही इतनी नशीली आइटम हो तो फिर बाहर मुंह मारने की क्या जरूरत.. !! वैसे अगर आपको एतराज न हो तो क्या मैं आपको एक किस कर सकता हूँ??" रेणुका के मस्त स्तन की गुलाबी निप्पल को देखकर लार टपकाते हुए उसने कहा
रेणुका: "मुझे एतराज है.. मैं क्यों करने दु आपको किस??"
सुबोधकांत: "तो फिर मुझे मिलने क्यों बुलाया?? और यहाँ गाड़ी में इस तरह आपके बूब्स खोलकर बैठने का मैं क्या मतलब समझूँ???"
रेणुका: "मतलब?? जो भी आँखों के सामने नजर आए उन सारी चीजों पर आपका हक हो गया??" रेणुका भी सुबोधकांत के मजे ले रही थी
सुबोधकांत: "वो आप जो भी समझें.. आप कार में मेरे साथ इतनी नजदीक बैठी हो.. और आपका थोड़ा सा प्रसाद भी मुझे नसीब न हो तो कैसे चलेगा.. !! वैसे आपको बता दूँ.. मैंने मेरी लाइफ में किसी के साथ भी जबरदस्ती नहीं की है.. जरूरत ही नहीं पड़ी.. जो प्यार से नहीं मिला वो मैंने खरीद कर हासिल कर लिया है.. और पैसे देकर न मिले उसे मैंने गिफ्ट्स देकर मना लिया.. अब आप बताइए.. आपको कौन सा ट्रांजेक्शन ज्यादा पसंद है??"
सुबोधकांत की सीधी बात से रेणुका इंप्रेस हो गई.. वैसे औरत को हासिल करने के कितने सारे तरीके होते है.. !! प्यार से.. कीमत चुकाकर.. धोखा देकर.. तारिफ करके.. झूठी कसमें खाकर.. विश्वास जीतकर.. महंगी गिफ्ट देकर.. वगैरह वगैरह..
रेणुका की नजर अपनी गोल्डन घड़ी पर बार बार जाते हुए देख.. सुबोधकांत को गलतफहमी हुई.. उसने अपनी घड़ी उतारकर रेणुका को देते हुए कहा "लीजिए रेणुकाजी, मेरी तरफ से एक छोटी सी भेंट.. !!"
रेणुका की जांघ पर घड़ी रखते हुए सुबोधकांत ने जांघों को दबा दिया.. और फिर उनका हाथ दोनों जांघों के बीच घुसने लगा..
एक बार के लिए रेणुका सकते में पड़ गई.. बार बार घड़ी की तरफ तांकने का गलत मतलब समझे थे सुबोधकांत.. पर अभी वो किसी भी तरह की सफाई देने के मूड में नहीं थी
रेणुका: "मैं आपकी जेन्ट्स घड़ी क्यों पहनु? दे देकर आपने कैसी गिफ्ट दी एक महिला को?"
सुबोधकांत: "अगर मुझे पहले से पता होता तो बढ़िया सी गिफ्ट लेकर आता आपके लिए.. आपके जैसी सुंदर महिलाओ को गिफ्ट देना का मुझे बड़ा शौक है.. वैसे आप कब से मेरी घड़ी की तरफ देख रही थी तो मुझे लगा आपको पसंद आ गई होगी.. इसलिए.. अगर पसंद न हो तो आप रिजेक्ट कर सकती हो.. !!"
रेणुका: "नहीं नहीं.. गिफ्ट का अस्वीकार करके मैं आपका अपमान नहीं करूंगी.. मुझे आपकी भेंट कुबूल है.. " कहते हुए रेणुका ने शरारती अंदाज में उस घड़ी को अपने दोनों स्तनों के बीच की खाई में डाल दिया..
सुबोधकांत: "अगली बार जब मैं आपके लिए गिफ्ट ले कर आऊँगा.. तब आपकी इस खास जेब में अपने हाथों से गिफ्ट रखूँगा"
सुनकर रेणुका शरमा गई..
रेणुका: "जरूर.. मैं मना नहीं करूंगी"
सुबोधकांत: "कब से आप सिर्फ बूब्स के ही दर्शन करवा रही हो.. नीचे वाले खजाने को क्यों छुपा रखा है??"
रेणुका: "यहाँ खुली सड़क पर कपड़े उतारने में डर लग रहा है.. "
सुबोधकांत ने रेणुका की सीट के नीचे के लिवर को खींचा.. और पूरी सीट फ्लेट हो गई.. एकदम सीधी.. बिस्तर की तरह.. और सीट के साथ रेणुका भी अचानक से लेट गई..
सुबोधकांत: "अब कोई नहीं देखेगा.. "
रेणुका ने अपनी साड़ी और पेटीकोट जांघों तक उठा लिया.. और जानबूझकर भारी सांसें लेने लगी..
सुबोधकांत: "आह्ह.. जबरदस्त है आपके बूब्स.. और ये गोरी जांघें.. देखकर मज़ा आ गया.. जरा पेन्टी भी नीचे सरका दीजिए तो और मज़ा आएगा"
रेणुका: "अभी नहीं.. नेक्स्ट टाइम.. अभी तो किसिंग-प्रेसींग के अलावा और कुछ नहीं" कहते हुए रेणुका ने सीट का लीवर खींचकर सीट को पूर्ववत कर दिया.. और दोनों स्तनों को वापिस टॉप के अंदर डाल डीईए
सुबोधकांत: "यार, तड़पा क्यों रही है.. थोड़ी देर और देख लेने देती.. मैं हाथ भी नहीं लगाऊँगा"
रेणुका: "प्लीज सुबोधकांत जी.. फिर मैं अपना कंट्रोल खो बैठूँगी तो यहीं पर सबकुछ करना पड़ेगा.. और अभी ये पोसीबल नहीं है.. इसलिए मना कर रही हूँ.. वरना मेरी खुद भी बहोत इच्छा है"
सुबोधकांत ने रेणुका को कंधे से पकड़कर खींचा और उसके होंठों पर जोरदार किस कर दिया.. रेणुका का पूरा शरीर गरम हो गया
अचानक रेणुका का हाथ सुबोधकांत के लंड पर चला गया और वह अपनी हथेली से उसे दबाने लगी.. देखते ही देखते पेंट के अंदर लंड एकदम सख्त हो गया.. इतना सख्त की उसे पेंट के अंदर बंद रखना मुश्किल हो रहा था..
रेणुका: "ओह्ह.. कितना हार्ड हो गया ये तो.. एक बार बाहर तो निकालो इसे.. बेचारे का दम घूंट जाएगा अंदर!!"
बिना एक सेकंड गँवाए सुबोधकांत ने अपनी चैन खोलकर लंड बाहर निकाल दिया..
सुबोधकांत: "तसल्ली से देख लीजिए.. और बताइए.. कैसा लगा?? राजेश के लंड से तो मोटा ही है !!" रेणुका के कंधे से होते हुए उन्हों ने उसके स्तन को पकड़कर दबाना शुरू कर दिया.. स्तन को दबाते हुए उनका लंड झटके खाने लगा
रेणुका ने स्माइल देते हुए कहा "आप दबा यहाँ रहे हो और असर यहाँ हो रहा है"
सुबोधकांत: "यही तो है इसके सख्त होने का कारण.. !!"
रेणुका अब उत्तेजित हो गई थी.. उसने सामने से सुबोधकांत को चूमते हुए कहा "सुबोधकांत जी, अभी तो हम कार में है.. इसलिए ज्यादा कुछ करना मुमकिन नहीं होगा.. देर भी हो रही है.. आप मुझे वापिस पेट्रोल-पंप पर छोड़ दीजिए.. आपको मैं घर पर बुलाऊँगी जब राजेश टूर पर हो तब.. फिर तसल्ली से करेंगे दोनों.. !!"
सुबोधकांत: "वो तो ठीक है रेणु.. पर क्या तुम अभी मेरे लंड को एक किस भी नहीं दोगी?? जिस तरह मुझे समझा रही हो.. वैसे ही इसे भी समझा दो ताकि यह शांत होकर बैठ जाए.. और कब तक ये "आप-आप" कहती रहोगी??"
रेणुका ने झुककर सुबोधकांत के लंड के टोपे को चूम लिया.. सिर्फ चूमने से उसका दिल नहीं भरा.. सुने लंड को जड़ से पकड़कर एक झटके में.. मुंह के अंदर ले लिए.. उसका पूरा मुंह सुबोधकांत के तगड़े लंड से भर गया.. उस गरम लोडे को रेणुका ने तेजी से चूसना शुरू कर दिया..
सुबोधकांत सिसकने लगे "यार, तुम बिल्कुल उसी तरह चूसती हो जिस तरह उस पार्टी में मेरी पार्टनर चूस रही थी.. आह्ह... ओह्ह.. रेणु मेरी जान.. मस्त चूसती है यार तू" कहते हुए सुबोधकांत के लंड ने लस्सेदार वीर्य रेणुका के मुंह में छोड़ दिया.. उसका पूरा मुंह वीर्य से भर गया.. वीर्य का विचित्र स्वाद रेणुका को पसंद तो नहीं था.. पर नया लंड चूत के अंदर लेने का मौका मिलेगा इसी आशा में वह सारा वीर्य निगल गई.. और लंड को ऐसे चूसा की जब मुंह से बाहर निकाला तब उसे साफ करने की जरूरत ही न रही.. ऐसे साफ कर दिया चूस कर..
सुबोधकांत ने यू-टर्न लिया और वापिस पेट्रोल पंप के पास आकर गाड़ी रोक दी.. गाड़ी से उतरकर.. बगैर पीछे देखे.. रेणुका अपना एक्टिवा लेकर घर भागी.. घर पहुंचकर उसने सब से पहला काम.. सुबोधकांत की दी हुई घड़ी को छुपाने का किया.. और फिर बेडरूम मे जाकर लेट गई.. और बड़े ही आराम से, सुबोधकांत के तगड़े लंड को याद करते हुए.. उंगली करते करते झड़ गई.. !!
झड़ने के बाद रेणुका की धड़कनें कुछ शांत हुई.. उसने शीला को फोन लगाया और सारी बात बताई.. सिवाय उस घड़ी वाली गिफ्ट के.. शीला और रेणुका के बीच काफी घनिष्ठ मित्रता हो गई थी.. राजेश और मदन की तरह..
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बहुत ही भावुक और चौंकाने वाला अपडेट हैसुबोधकांत ने यू-टर्न लिया और वापिस पेट्रोल पंप के पास आकर गाड़ी रोक दी.. गाड़ी से उतरकर.. बगैर पीछे देखे.. रेणुका अपना एक्टिवा लेकर घर भागी.. घर पहुंचकर उसने सब से पहला काम.. सुबोधकांत की दी हुई घड़ी को छुपाने का किया.. और फिर बेडरूम मे जाकर लेट गई.. और बड़े ही आराम से, सुबोधकांत के तगड़े लंड को याद करते हुए.. उंगली करते करते झड़ गई.. !!
झड़ने के बाद रेणुका की धड़कनें कुछ शांत हुई.. उसने शीला को फोन लगाया और सारी बात बताई.. सिवाय उस घड़ी वाली गिफ्ट के.. शीला और रेणुका के बीच काफी घनिष्ठ मित्रता हो गई थी.. राजेश और मदन की तरह..
कुछ दिनों बाद.. राजेश को एक काम के सिलसिले में मुंबई जाना हुआ.. तीन दिनों के लिए.. इस बार तो रेणुका ने उसे अपने सर की कसम खिलाकर तसल्ली कर ली थी.. की वो वाकई बिजनेस के सिलसिले में ही जा रहा था.. वैसे उस रात पार्टी में जो हुआ.. उसके बाद रेणुका को यकीन था की राजेश अब उसे बिना बताए ऐसा कुछ नहीं करेगा..
राजेश के जाने के बाद.. खुला मैदान मिलते ही रेणुका खुश हो गई.. उसने सुबह सुबह ही सुबोधकांत को फोन करके बुला लिया.. सुबोधकांत ने दोपहर ढाई बजे पहुँचने का वादा किया..
फिर रेणुका ने अब सुबोधकांत को फोन किया और अपने घर बुला लिया.. सुबोधकांत ने कहा की वो अभी निकल रहा है और कुछ ही घंटों में पहुँच जाएगा.. अब रेणुका ने शीला को फोन करके यह कहा की एक नया मुर्गा फसाया है चुदाई करने के लिए... पर सुबोधकांत का नाम नहीं बताया..!!
नया लंड लेने के विचार मात्र से शीला के पूरे शरीर में खलबली सी मच गई.. पर प्रश्न यह था की वो मदन को क्या बोलकर घर से निकलें?? आखिर वह बिना कुछ कहें बाहर निकल गई.. और थोड़ी देर बाद मदन को फोन किया और बताया की उसे अपनी कोई पुरानी सहेली मिल गई है और वो उसके घर जा रही है.. आने में देर हो जाएगी
शीला सीधे रेणुका के घर पहुँच गई..
शीला: "क्या बात है मेरी जान.. आज तो तूने मेरे भोसड़े को तृप्त करने का प्लान बना लिया..!! बता तो सही, आखिर किस लंड को पटाया है तूने.. !!"
रेणुका ने मुस्कुराकर कहा "थोड़ा सा धीरज धरो शीला रानी.. आज तुम्हें ऐसे लंड से चुदने का मौका मिलेगा जिसकी प्रतीक्षा तुम्हें कब से थी.. !! मिलकर मजे करेंगे.. मैं चाहती तो अकेले ही मजे कर सकती थी.. पर मैंने ऐसा नहीं किया.. ये तू भी याद रखना.. !!!"
दोनों बेडरूम मे जा पहुंची.. बड़ा सा बेड देखते ही शीला ने एक ही पल मे अपनी साड़ी उतार फेंकी.. और अपना घाघरा उठाकर बेड पर लेट गई.. उसकी नरम गोरी गुंदाज जांघों को देखकर रेणुका सिसक पड़ी..
रेणुका: "यार, अपना खजाना दिखाकर मुझे ऐसे ललचा मत.. वरना उस लंड के आने से पहले मैं ही तुझ पर टूट पड़ूँगी"
शीला ने अपने ब्लाउज के हुक खोलते हुए कहा "तो आजा ना मेरी जान.. किसने रोका है.. वैसे वो मज़ा तो नहीं आएगा जो लंड से मिलता है.. अरे हाँ.. मैं तो भूल ही गई.. तेरे पास वो रबर का मूसल जैसा लंड था ना.. वो लेकर आ..!! जब तक वो मेहमान नहीं आ जाता, तब तक उसी से काम चला लेते है.. याद है उस रात.. होटल मे.. वो डिल्डो वाली औरत के साथ हमने कितने मजे किए थे.. !!"
रेणुका एक पल के लिए सोच मे पड़ गई.. वो डिल्डो तो उसने वैशाली को दे दिया था.. पर शीला को कैसे बताती.. !!
रेणुका: "अरे यार.. मेरी उंगली क्या किसी डिल्डो से कम है.. !! तुझे ऐसा मज़ा दूँगी की तू उस रबर के नकली लंड को भूल जाएगी.. "
रेणुका ने टॉप के साथ अपनी ब्रा भी उतार दी.. और फटाफट अपने ट्रैक-पेंट को पेन्टी के साथ उतारते हुए नंगी हो गई.. शीला अब भी ब्रा और पेटीकोट मे थी.. रेणुका बेड पर होते हुए शीला के पास आकर लेट गई.. और शीला की ब्रा के अंदर हाथ डालकर उसके स्तनों से खेलने लगी
रेणुका: "यार सच मे.. तेरे बबलों का कोई मुकाबला ही नहीं है.. कितने बड़े है यार.. !!! मैं एक औरत होकर भी इन्हें छूकर पागल हो जाती हूँ.. तो मर्दों का क्या हाल होता होगा.. !!"
शीला ने अपनी ब्रा उतारकर अपने मदमस्त खरबूजों को आजाद कर दिया.. ताकि रेणुका आसानी से उनके साथ खेल सकें.. रेणुका ने अपना सर शीला की गोद मे रख दिया.. उन बड़े बड़े स्तनों के नीचे उसका चेहरा ऐसे दब गया की उसे शीला का मुंह भी नजर नहीं आ रहा था
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शीला के एक स्तन को अपनी दोनों हथेलियों में पकड़कर उसकी एक इंच लंबी निप्पल को मसलते ही शीला कराहने लगी.. शीला ने अपनी निप्पल पकड़ी और उसे जबरन रेणुका के मुंह मे डाल दी.. रेणुका चटकारे लगाते हुए उसकी निप्पल चूसने लगी
रेणुका के मुंह के गरम स्पर्श से शीला सिहरने लगी.. उसने अपना एक हाथ रेणुका की चूत पर रख दिया.. और चूत के होंठों के बीच अपनी उंगली फेरने लगी.. जवाब मे रेणुका अपनी कमर हिलाकर उसके स्पर्श का अभिवादन करने लगी.. कुछ ही पलों मे रेणुका की चूत पूर्णतः गीली हो गई.. उसकी गीली पुच्ची मे उंगली डालकर शीला ने बाहर निकाली और सूंघने लगी.. बड़ी ही मस्त मस्की सी गंध सूंघकर शीला बेहद उत्तेजित हो गई.. !!!
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उसने अब रेणुका को अपनी गोद से हटाया और उसे बेड पर लेटा दिया.. शीला बेड पर खड़ी हो गई और अपने पेटीकोट का नाड़ा खोलने लगी.. गांठ खींचते ही उसका पेटीकोट शीला के पैरों के इर्दगिर्द ढेर बनकर गिर गया.. पेन्टी तो आज उसने पहनी ही नहीं थी.. अपनी चरबीदार भोसड़े को हथेली से खुजाते हुए.. अपने दोनों पैर रेणुका के चेहरे के दोनों तरफ जमा लिए.. और अपनी कमर को धीरे धीरे नीचे ले जाकर.. चूत को रेणुका के मुंह के सामने लाकर रख दिया..
शीला का गुफा जैसा भोसड़ा अपने मुंह के सामने देख, रेणुका को और अधिक मार्गदर्शन की जरूरत नहीं पड़ी.. भांप छोड़ रहे उस छेद को ताज्जुब के साथ देखती रही रेणुका.. यह वही भोसड़ा है जिसमे शीला ने अच्छे अच्छे लंडों को समा लिया था.. अपनी दो उंगलियों से चूत के होंठों की परतों को अलग करते ही.. अंदर का गीला गुलाबी हिस्सा नजर आने लगा..
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शीला से अब और बर्दाश्त नहीं हुआ.. उसने अपना गरम छेद रेणुका के होंठों पर दबा दिया.. एक पल के लिए रेणुका का दम घुटने लगा.. उसने शीला की जांघों को अपनी हथेली से थोड़ा सा ऊपर उठा दिया ताकि उसे चाटने मे आसानी हो..
शीला का भोसड़ा अपना रस बहा रहा था.. उस रस को बड़े ही चाव से चाटते हुए रेणुका ने अपनी जीभ अंदर तक डाल दी.. एक पल के लिए उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे उसने गरम अंगारे पर अपनी जीभ रख दी हो.. !! शीला अपने चूतड़ों को आगे पीछे करते हुए.. रेणुका की जीभ का घर्षण मजे लेते हुए महसूस कर रही थी..
रेणुका की तंग चूचियों की तीखी नोक पर अपनी गांड रगड़ते हुए.. शीला बदहवास होकर अपना भोसड़ा चटवा रही थी.. अपने स्तनों को खुद ही मसलते हुए वह इतनी उत्तेजित हो गई की पागलों की तरह अपनी निप्पल खींचने लगी.. रेणुका ने शीला की जामुन जैसी क्लिटोरिस को अपनी जीभ से कुरेदकर उसे स्खलित करने की कगार पर ले गई..
पगलाई हुई घोड़ी की तरह शीला रेणुका के चेहरे पर सवार होकर ऐसे हिल रही थी जैसे उसके प्राण निकल जाने वाले हो.. !! रेणुका के सर को बालों से पकड़कर शीला ने अपने सुराख को उसके मुंह पर जोर से दबा दिया और चीखकर झड़ गई.. उसकी योनि का शहद रेणुका के पूरे चेहरे पर लिप्त था.. कुछ देर तक उसी स्थिति मे रहने के बाद.. शीला रेणुका के चेहरे के ऊपर से उतरी और उसे अपनी गिरफ्त से मुक्त किया..
थक कर शीला बेड पर लेट गई.. अब रेणुका की बारी थी.. वो शीला के जिस्म पर सवार हो गई.. और उसकी छाती पर सर रखकर उसके मम्मों को चूसने-चाटने लगी.. इस दौरान वो अपनी चूत को शीला के चरबीदार पेट पर रगड़ रही थी..
शीला ने अपनी टांगें फैलाई और रेणुका उसकी जांघों के बीच ऐसे सेट हो गई की दोनों की चूतें आराम से छु सकें.. अब वो अपनी कमर हिलाते हुए अपनी चूत को शीला के भोसड़े के साथ रगड़ने लगी.. कुछ ही पलों मे रेणुका का ऑर्गजम आ गया.. और वो शीला के बड़े बड़े स्तनों के ऊपर ढेर होकर गिर गई
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काफी देर तक उसी अवस्था में दोनों पड़े रहे.. और अपनी साँसे नॉर्मल होने का इंतज़ार करते रहे..
कुछ देर बाद.. शीला उठी.. और नंगे बदन ही किचन मे चली गई.. दोनों के लिए कॉफी बनाने..
थोड़ी देर मे कॉफी के दो मग लेकर वो बेडरूम मे आई तब रेणुका प्लास्टिक के हेर-ब्रश को अपनी गीली चूत में घुसेड़ रही थी..
शीला: "मेरे आने का तो इंतज़ार करती.. !! चल अब छोड़ वो सब.. और कॉफी पी" शीला रेणुका के करीब आई उसे मग देने के लिए..
रेणुका ने एक के बदले दोनों मग शीला के हाथों से ले लिए.. और बगल वाले टेबल पर रख दिए.. शीला को समझ नहीं आया की उसने ऐसा क्यों किया.. वो और कुछ सोच पाएं उससे पहले रेणुका ने उसे खींचकर अपने शरीर के ऊपर ले लिया..
शीला: "अरे क्या कर रही है पागल.. !!"
रेणुका: "यार.. मैंने तेरी चाटकर ठंडी कर दी.. अब तू मेरी चाट दे.. "
शीला बिना एक पल गँवाए.. अपने जिस्म को थोड़ा सा नीचे ले गई.. और रेणुका की जांघें फैलाकर उसकी गोरी-गुलाबी मुनिया के होंठ खोलकर सूंघने लगी.. उसे रेणुका की चूत की गंध बड़ी पसंद थी..
अलग अलग औरतों की योनियों की भिन्न भिन्न गंध होती है.. यह गंध उस औरत की स्वास्थ्य स्थिति, हॉर्मोनल बदलाव, साफ-सफाई और खानपान पर निर्भर करती है। यह गंध उत्तेजित भी कर सकती है और अगर तेज या दुर्गंधमय हो तो संभोग साथी को परेशान भी कर सकती है.. आम तौर पर एक स्वस्थ योनि से हल्की और प्राकृतिक गंध आती है.. कुछ औरतों की योनियाँ मछली जैसी या फिर बड़ी दुर्गंध वाली भी होती है.. जो किसी इन्फेक्शन के कारण या योग्य साफ-सफाई न रखने के कारण हो सकती है.. कुछ औरतों की योनियाँ मिठास भरी.. फलों जैसी गंध वाली भी होती है..!!
रेणुका आँखें बंद कर शीला की जीभ अपनी चूत मे अंदर बाहर होते हुए महसूस कर रही थी.. उसे इतना मज़ा आ रहा था की वो अपने पैर पटक रही थी.. शीला ने दो उंगलियों से जैसे ही चुटकी मे लेकर उसकी क्लिटोरिस दबाई.. रेणुका की चूत ने पानी छोड़ दिया.. वो बुरी तरह हांफने लगी.. और कुछ ही पलों मे शांत हो गई.. लेकिन शीला अंत तक उसका सारा रस चाटती ही रही.. जब तक रेणुका की चूत को पूरी तरह साफ नहीं कर दिया.. शीला ने चाटना बंद नहीं किया..
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आखिर शीला मुस्कुराकर खड़ी हुई.. और रेणुका के बगल मे लेट गई.. पास पड़े टेबल से उसने अपनी कॉफी का मग उठाकर एक घूंट पिया
शीला: "साली, तेरे चक्कर मे ये कॉफी ठंडी हो गई"
रेणुका: "भाड़ मे गई तेरी कॉफी.. मेरी चूत को ठंडा करना ज्यादा जरूरी था.. !!"
दोनों सहेलियाँ हँसते हुए एक दूसरे के जिस्म से खेलती रही..
अब नए लंड से चुदवाने के लिए दोनों ही उतावली हो रही थी..
जिस्म की आग थोड़ी ठंडी करने के बाद.. दोंनो निर्वस्त्र अवस्था में रेणुका के बेड पर लेटी हुई थी..
शीला: "यार बता तो सही की आखिर वो है कौन? और कितने बजे आने वाला है?"
रेणुका: "लगता है वो ट्राफिक में फंस गया है.. उसने कहा था की ढाई बजे तक आ जाएगा.. अभी तीन बज रहे है.. "
शीला: "क्या यार.. !! जो आदमी चोदने के लिए समय पर नहीं पहुँच सकता.. वो किसी काम का ही नहीं.. !! मुझे नहीं लगता की वो आएगा.. !!"
रेणुका: "आएगा.. जरूर आएगा"
शीला: "तूने उसका लंड देखा क्या??"
रेणुका: "देखा भी है और चूसा भी है"
शीला: "चूसा है मतलब अंदर भी डलवाया ही होगा.. मुझे खिलाने से पहले तू खुद चख चुकी है.. एक नंबर की चुदैल है तू.. !!"
रेणुका ने हँसते हँसते शीला के मादक बबलों को दबाते हुए कहा "नहीं डलवाया है यार.. भरी दोपहर में.. गाड़ी के अंदर खुली सड़क पर कैसे चुदवाती?? ऊपर ऊपर से ही किया था सब.. उसने मेरे मुंह के अंदर पिचकारी भी मारी थी"
शीला: "तो आज पहले मैं उसका मुंह में लूँगी.. तू उसे छूना भी मत.. तुझे सिर्फ देखना है"
रेणुका: "अरे हाँ मेरी माँ.. पहले उसे आ तो जाने दे.. पता नहीं कहाँ रह गया.. !! फोन कर के पूछूँ?"
शीला: "नहीं यार.. वो किसी तकलीफ में होगा वरना वही सामने से फोन कर देता ना तुझे.. !! थोड़ा इंतज़ार करते है.. अगर और थोड़ी देर में नहीं आया तो मुझे वापिस घर जाना होगा.. मदन से झूठ बोलकर आई हूँ.. वो कब आएगा.. कब हम दोनों करवाएंगे और कब मैं घर पहोचुंगी.. और यार.. तुझे तो पता है.. मुझे जल्दबाजी में करवाने में मज़ा ही नहीं आता.. अगर वो थोड़ी देर में आ गया तो मैं पहली करवा लूँगी और घर के लिए निकल जाऊँगी.. फिर तू आराम से पैर फैलाकर चुदवाना.. !!"
रेणुका: "एक काम करते है.. तेरे फोन से उसे फोन लगाते है.. पता तो चले क्या प्रॉब्लेम है.. !! पता चला तो ठीक वरना रोंग नंबर कहकर फोन कट कर देंगे"
शीला: "ठीक है.. !!" कहते हुए उसने अपने पर्स से फोन निकाला.. स्क्रीन पर नजर जाते ही उसके होश उड़ गए.. २० मिसकॉल थे मदन के.. अरे बाप रे.. !! इसे अचानक कौनसी मौत आ गई.. !! पहले तो कभी उसने इतने मिसकॉल नहीं किए.. !! शीला बहोत ही घबरा गई
रेणुका: "अरे फोन लगाकर पूछ ले.. जो भी होगा पता चल जाएगा"
शीला: "यार.. मुझे बहोत डर लग रहा है.. वो बहोत गुस्सा करेगा.. एक काम कर.. तू अपने फोन से कॉल लगाकर पूछ.. ये मत बताना की हम दोनों साथ है"
रेणुका उठकर बेडरूम गई अपना फोन लेने.. फोन उठाते ही वो चकित रह गई.. राजेश के आठ मिसकॉल थे..!! अपनी हवस बुझाने के चक्कर में दोनों ने फोन साइलन्ट मोड पर रखे हुए थे..
मदन को फोन लगाने से पहले रेणुका ने राजेश को फोन लगाया
रेणुका को अपेक्षा थी की फोन उठाते ही राजेश उस पर बुरी तरह भड़केगा.. पर राजेश ने ऐसा कुछ नहीं कहा.. राजेश ने जो कहा वो सुनकर रेणुका के चेहरे का रंग उड़ गया.. होश उड़ गए.. थर थर कांपने लगी वो... !!!
देखकर ही शीला को अंदाज लग गया की कुछ बहोत बड़ी गड़बड़ हुई थी.. !!
शीला: "क्या हुआ रेणुका?"
रेणुका स्तब्ध खड़ी रही.. जैसे उसकी आवाज ही छीन गई थी.. थोड़ी देर तक आँखें बंद कर वो नॉर्मल होने की कोशिश करती रही.. और फिर तुरंत उठकर कपड़े पहनने लगी..
शीला: "क्या कर रही है यार.. !!! कुछ बताएगी भी की क्या हुआ??? और मदन को फोन कर तो मुझे आगे दिमाग चलाने का पता चले"
घबराई हुई रेणुका ने कहा "शीला, तू अभी घर जाने के लिए निकल.. हमारे पास ज्यादा वक्त नहीं है.. राजेश कभी भी घर पहुँच सकता है.. आता ही होगा.. जल्दी निकल वरना हमारा सारा भांडा फुट जाएगा.. !!"
शीला: "अरे यार.. फिर वो तेरा नया लंड आ गया तो क्या करेगी??"
रेणुका ने शीला को लगभग धकेलते हुए कहा "वो अब नहीं आएगा.. तू जा यहाँ से.. !!"
शीला आगे कुछ पूछती उससे पहले रेणुका बाथरूम मे चली गई.. शीला को भी महसूस हुआ की कुछ बहोत बड़ा कांड हो गया था.. शीला ने तुरंत कपड़े पहने और दरवाजे की ओर जा ही रही थी की तभी डोरबेल बजी..
घबराकर शीला बाथरूम के दरवाजे के पास आकर रेणुका से बोली "यार लगता है राजेश आ गया.. अब क्या करें?"
रेणुका तुरंत बाहर निकली.. और शीला को हाथ से खींचते हुए किचन के रास्ते पीछे वाले दरवाजे पर ले गई.. शीला को रवाना कर वो भागी भागी मुख्य दरवाजे पर आई.. दरवाजा खोलते ही अपना बेग लेकर राजेश ने प्रवेश किया.. और धम्म से सोफ़े पर बैठ गया.. और सर पर हाथ रखकर सोचने लगा..
राजेश के अंदर जाने के बाद.. शीला चुपके से पीछे के रास्ते बाहर निकली.. और लगभग भागते हुए मुख्य सड़क पर आ गई.. तुरंत ऑटो में बैठकर उसने अपने घर का पता दिया.. ऑटो चल पड़ी और साथ ही साथ शीला के दिमाग में विचार भी चलने लगे.. क्या करू? मदन को क्या कहूँगी?? कैसे समझाऊँगी?? इतने मिसकॉल के बाद भी क्यों उसने फोन नहीं किया उसकी क्या सफाई देगी?? क्या हुआ होगा?? रेणुका इतनी घबराई हुई सी क्यों थी? मदन ने इतने सारे मिसकॉल क्यों किए होंगे?
देखते ही देखते ऑटो शीला के घर के बाहर पहुँच गई.. पैसे चुकाने के बाद शीला ने सब से पहले अपना मोबाइल स्विचऑफ कर पर्स में रख दिया.. और बेफ़िकर होकर घर में ऐसे घुसी जैसे उसे कुछ पता ही न हो.. !!
उसे देखते ही मदन उस पर टूट पड़ा..
मदन: "दिमाग नाम की कोई चीज है भी या नहीं.. !! कब से तुझे फोन कर रहा हूँ.. उठाया क्यों नहीं?? कोई ईमर्जन्सी हो तब फोन ही न उठाओ तो फोन रखने का क्या मतलब?? अब सुन.. सुबोधकांत का एक्सीडेंट हुआ है.. मैं और राजेश वहाँ जा रहे है.. बाद मैं फोन पर बात करेंगे.. अगर तू उठाएगी तो.. !!"
शीला: "इतना गुस्सा करने से पहले मेरी बात तो सुन ले.. मेरा फोन रास्ते में कहीं गिर गया है.. मैं पिछले एक घंटे से अपना फोन ही ढूंढ रही थी.. वरना तेरा फोन मैं क्यों नहीं उठाती? और सुबोधकांत जी के साथ अचानक ये क्या हो गया?? अभी थोड़े दिन पहले ही तो गए थे यहाँ से.. !!"
मदन: "मुझे क्या पता यार.. वहाँ जाकर पता चलेगा.. मैं और राजेश अभी निकल रहे है.. वो बस आता ही होगा.. वहाँ जाकर पता चलेगा की क्या हुआ, क्यों हुआ.. कितनी चोट आई है.. वगैरह वगैरह.. !!"
शीला: "मदन, कविता और मौसम को अभी बताना है या थोड़ा इंतज़ार करें?"
मदन: "अभी नहीं.. पहले वहाँ जाकर देख तो लें की क्या हाल है.. !!"
तभी बाहर गाड़ी का हॉर्न बजा.. मदन तुरंत बाहर निकला और गाड़ी में बैठ गया.. राजेस ने तेजी से गाड़ी दौड़ा दी
मदन: "तुझे किसने बताया इसके बारे में?"
राजेश: "मुझे रमिलाबहन का फोन आया था.. मैं तो एयरपोर्ट पर अपनी फ्लाइट का इंतज़ार कर रहा था तभी फोन आया.. उन्हों ने सब से पहले पीयूष को फोन किया पर उसका लगा नहीं.. कविता के घर पर किसी ने उठाया नहीं.. !! वो कह रही थी की पुलिस वालों ने सुबोधकांत की डायरी से घर का नंबर लेकर फोन किया और बताया की हमारे शहर के बाहर वाली हाइवे पर एक्सिडन्ट हुआ है.. !!"
फूल स्पीड से राजेश की गाड़ी बाहर हाइवे पर निकल गई.. थोड़ा आगे जाते ही रोड पर उलटी पड़ी हुई गाड़ी नजर आई.. गाड़ी का रंग देखकर दोनों समझ गए की वह सुबोधकांत की ही गाड़ी थी.. पास ही में पुलिस की पी.सी.आर गाड़ी खड़ी थी और दो पुलिसवाले वहाँ खड़े रहकर ट्राफिक का नियमन कर रहे थे.. एक्सीडेंट में तहस नहस होकर उलटी पड़ी गाड़ी को देखने लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी थी..
भीड़ को चीरते हुए राजेश और मदन अंदर घुसे और गाड़ी के पास जाकर, वहाँ खड़े पुलिस वाले से कहा "साहब, ये जिसका एक्सीडेंट हुआ है, हम उनके रिश्तेदार है.. उन्हें कौन सी अस्पताल ले गए है?? कितनी चोट आई है उनको?"
"बॉडी को पोस्टमॉर्टम के लिए सरकारी अस्पताल ले गए है" बड़ी ही रूखी आवाज में उस पुलिस वाले ने कहा
यह सुनते ही.. राजेश और मदन दोनों के पैर ठंडे पड़ गए..!!!!
राजेश ने सब से पहला काम यह किया की गाड़ी के अंदर जो भी कीमती और जरूरी चीजें थी उन्हें ढूंढ कर बाहर निकाला.. एक फ़ाइल थी.. कार स्प्रे की बोतल, सुबोधकांत का मोबाइल.. सबकुछ अपने साथ ले लिया.. गनीमत थी की उस पुलिस वाले की नजर ट्राफिक पर थी इसलिए उसे किसी ने रोका नहीं
मदन का चेहरा फीका पड़ गया था, उसने कहा "यार, रमिलाबहन को कैसे यह समाचार देंगे?? मुझसे तो कहा ही नहीं जाएगा"
राजेश: "पीयूष और कविता को भी यह बताना पड़ेगा"
तभी राजेश के मोबाइल पर पीयूष का फोन आया
पीयूष: "सर, मेरे ससुरजी का एक्सीडेंट हुआ है.. अभी मेरी सास का फोन आया था.. मुझे वहाँ जाना होगा.. !!"
राजेश: "पीयूष, अब मैं जो कहने जा रहा हूँ, उसे ध्यान से सुन.. हम एक्सीडेंट वाली जगह पर पहुँच चुके है.. बड़े ही दुख के साथ कहना पड़ रहा है की सुबोधकांत जी अब इस दुनिया में नहीं रहे.. उनकी बॉडी पोस्टमॉर्टम के लिए सरकारी अस्पताल ले गए है.. तू एक काम कर.. अपने ससुराल पहुँचने का बंदोबस्त कर.. और हाँ.. कविता और मौसम को भी साथ ले जाना.. यहाँ की चिंता मत कर.. और पैसों की जरूरत हो तो हमारे एकाउंटेंट से ले लेना.. !! हम अस्पताल से बॉडी लाने की कार्यवाही संभाल लेंगे"
मदन ने घर की लेंडलाइन पर शीला को फोन किया.. यह समाचार देने के लिए.. पर शीला ने पहले ही मौसम और कविता की जोर जोर से रोने की आवाज सुनकर अंदाज लगा ही लिया था..
राजेश: "हमे जल्दी अस्पताल पहुँच जाना चाहिए.. इन सरकारी कामों में बहोत वक्त लग जाता है..!!
सिविल अस्पताल के पी.एम. रूम के बाहर, राजेश और मदन बॉडी मिलने का इंतज़ार कर रहे थे.. अभी बॉडी मिलने में आधे घंटे की देर थी..
मदन: "यार, सुबह से चाय नहीं पी है.. सर फटा जा रहा है.. मैं जाकर चाय लेकर आता हूँ"
राजेश: "ओके.. "
मदन के जाने के बाद, राजेश ने अपनी जेब से सुबोधकांत का मोबाइल निकाल.. और जिज्ञासावश देखने लगा.. अंदर देखते ही सब से पहला झटका उसे तब लगा जब उसने देखा की सुबोधकांत को आखिरी बार रेणुका ने फोन किया था.. !!!!! रेणुका को क्या जरूरत पड़ी होगी सुबोधकांत को फोन करने की?? और उनकी गाड़ी की दिशा देखते हुए लग रहा था की वो इसी शहर में आ रहे थे.. !! कहीं सुबोधकांत और रेणुका के बीच... नहीं नहीं.. ऐसा नहीं हो सकता.. !!
दिमाग से खराब विचारों को झटकते हुए राजेश ने व्हाट्सप्प के मेसेज पढ़ना शुरू किया.. जितना वो पढ़ता गया, उतना ही उसका आश्चर्य और सदमा बढ़ता गया.. फाल्गुनी के साथ सुबोधकांत की चैट के मेसेज पढ़कर उसके पैरों तले से धरती खिसक गई.. !! मेसेज में सुबोधकांत द्वारा की गई चूत चटाई की तारीफ.. उनके लंड के गुण-गान.. और काफी अन्य सारे मेसेज थे.. उतना ही नहीं.. एक मेसेज में तो फाल्गुनी ने सुबोधकांत को यह पूछा था की उन्हें उसके साथ ज्यादा मज़ा आता है या वैशाली के साथ.. !! मतलब साफ था.. सुबोधकांत के काम-संबंध फाल्गुनी और वैशाली दोनों के साथ थे.. और वो भी काफी लंबे अरसे से.. !!
तभी सामने से मदन हाथ में चाय के दो कप लेकर आता नजर आया.. राजेश ने तुरंत व्हाट्सप्प चेट डिलीट कर दी और कॉल-लॉग भी साफ कर दीये.. कितने भी चौंकाने वाले सच क्यों न बाहर आ जाए.. अब क्या फ़र्क पड़ेगा.. !!! जब गुनहगार ही इस दुनिया को छोड़कर जा चुका हो.. फिर उन हकीकतों को उजागर करके.. अन्य लोगों को जीवन में नाहक का भूकंप लाने का क्या मतलब.. !!
राजेश को सुबोधकांत के मृत्यु से जितना सदमा नहीं लगा था.. उसे ज्यादा धक्का उस बात से लगा था की रेणुका और सुबोधकांत के बीच.. उनके एक्सीडेंट से पहले दो तीन बार बातचीत हुई थी.. राजेश की जानकारी अनुसार, रेणुका और सुबोधकांत की ऐसी कोई खास जान-पहचान थी नहीं की वो इतनी बातें करते.. ना ही रेणुका ने सुबोधकांत से बात होने के बारे में कोई जिक्र किया था.. !! साथ ही साथ.. सुबोधकांत के वैशाली और फाल्गुनी के साथ जिस्मानी संबंधों के बारे में जानकर राजेश को इतना तो यकीन हो गया था की सुबोधकांत कितने रंगीन मिजाज थे.. !!
राजेश के विचार रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे.. फाल्गुनी ने खुलेआम वैशाली के साथ सुबोधकांत के संबंधों का उल्लेख किया था.. तो क्या फाल्गुनी की नज़रों के सामने ही सुबोधकांत ने वैशाली को चोदा होगा.. ?? हो सकता है की सुबोधकांत और वैशाली को फाल्गुनी ने रंगेहाथों पकड़ लिया हो.. और फिर वो भी शामिल हो गई हो.. !!
राजेश ने मोबाइल वापिस अपनी जेब में रख दिया..
दो घंटों के बाद उन्हें सुबोधकांत की बॉडी मिली.. एम्बुलेंस में बॉडी रखकर मदन आगे की सीट पर बैठ गया.. और राजेश बॉडी के साथ पीछे बैठा था.. पूरे रास्ते मे उसने सुबोधकांत के फोन का पोस्टमॉर्टम जारी रखा और जो जानने मिला वो बेहद चौंकाने वाला था.. !!
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