दूसरी सुबह पिंटू के पापा ने मदन को फोन कर बताया की वो लोग १५ जनवरी के बाद, अच्छा सा मुहूरत देखकर, पिंटू और वैशाली की बड़े ही धूमधाम से शादी करना चाहते है..
वैशाली अपने सास-ससुर का दिल जीतकर अपने मम्मी पापा के घर लौट आई.. शादी का मुहूरत निकाला गया और शॉपिंग भी शुरू हो गई.. ज्यादातर शॉपिंग वैशाली को शीला के साथ या फिर अकेले ही करनी पड़ती थी.. काश कविता यहाँ होती.. !! और पीयूष भी होता.. तो उसके साथ ब्रा और पेन्टी की शॉपिंग करने जाने मे मज़ा आ जाता.. !! उस दिन जब वो दोनों साथ मे ब्रा-पेन्टी लेने गए थे तब की यादें ताज़ा हो गई
कितनी सारी यादें जुड़ी थी इस घर के साथ.. यहाँ के लोगों के साथ.. याद करते ही वैशाली का दिल भर आया
कविता और वैशाली फोन पर तो संपर्क मे रहते ही थे.. कभी कभार पीयूष से भी बात हो जाती थी वैशाली की
उस दौरान एक बड़ा बदलाव यह आया की मौसम ने अपना ऑफिस जॉइन कर लिया.. वैसे उसका उद्देश्य पीयूष की बिजनेस म ए मदद करना नहीं पर विशाल के करीब रहना ही था.. विशाल उसके दिल मे बस चुका था.. मौसम किसी भी तरह विशाल के साथ दोस्ती करना चाहती थी... तरुण के साथ हुए ब्रेक-अप के बाद जो पतझड़ आई थी.. वहाँ विशाल वसंत बनकर मौसम की ज़िंदगी मे आया था.. विशाल के साथ मित्रता करने मे मौसम को थोड़ी बहोत सफलता भी मिली.. हालांकि मालिक होने के नाते.. विशाल मौसम की बड़ी इज्जत करता और थोड़ी सी दूरी भी बनाए रखता.. वो हमेशा मौसम को "मैडम" कहकर संबोधित करता था..
मौसम पूरा दिन ऑफिस रहती इसलिए फाल्गुनी से उसका मिलना काफी कम हो गया था.. हालांकि वो दोनों रविवार के दिन जरूर मिलते.. बिजनेस का एक हिस्सा अब मौसम संभालने लगी थी.. पीयूष ने मौसम के लिए अलग से चैम्बर बनवा दिया था जिसमे मौसम एक बड़ी सी रिवॉलविंग कुर्सी पर शान से बैठती थी..
ऑफिस मे मौसम के दोस्ती उस रीसेप्शनिस्ट फोरम से भी हो गई थी.. वह दोनों साथ ही लंच लेते और ढेर सारी बातें करते.. वैसे भी बातुनी लड़कियों की दोस्ती होने मे देर नहीं लगती.. अब फोरम मौसम के घर भी आने लगी थी.. फाल्गुनी, फोरम और मौसम की टोली साथ मिलकर मौज मस्ती से अपने दिन व्यतीत कर रहे थे
विशाल के साथ जो कुछ भी बातें होती, वह सारी बातें मौसम घर आकर फोन पर फाल्गुनी को बताती और फिर वह दोनों मौसम विशाल के और करीब जा सकें वैसी योजनाएं बनाते..
फाल्गुनी के माता पिता बड़ी ही बेसब्री से उसका ब्याह करना चाहते थे पर फाल्गुनी किसी लड़के को पसंद ही नहीं कर रही थी.. !! यहाँ तक की उसकी मम्मी ने फाल्गुनी बता भी दिया था की अगर उसे कोई लड़का पसंद हो तो वो उसकी शादी खुशी खुशी करने को तैयार थे.. अब फाल्गुनी कैसे बताती.. उसे जो पसंद था वो तो पहले ही दुनिया छोड़कर जा चुका था
रविवार की एक सुबह.. मौसम और फाल्गुनी घर पर बैठे बोर हो रहे थे.. मौसम ने सुझाव दिया की ऑफिस जाकर बैठा जाए.. वैसे फाल्गुनी मौसम की ऑफिस कभी नहीं जाती थी.. क्योंकि वहाँ जाते ही उसे सुबोधकांत संग गुजारा वो हसीन समय याद आ जाता और वो उदास हो जाती.. लेकिन मौसम की जिद के कारण फाल्गुनी तैयार हो गई
दोनों एक्टिवा लेकर ऑफिस वाली सड़क पर पहुँच ही रहे थे की तब मौसम ने विशाल को बाइक पर जाते हुए देखा और जोर से चिल्लाई "वो देख फाल्गुनी.. विशाल जा रहा है" विशाल को देखते ही मौसम के चेहरे पर बहार आ गई
"हाय विशाल.. !!" हाथ हिलाते हुए मौसम ने विशाल की ओर देखकर जोर से आवाज लगाई..
विशाल ने सुन लिया और तुरंत अपना बाइक रोक दिया..
"अरे मैडम आप यहाँ?? आज तो संडे है फिर भी ऑफिस जा रहे है??"
मौसम: "विशाल.. बॉस के लिए कभी कोई छुट्टी नहीं होती.. उसकी नौकरी तो चौबीसों घंटे चालू ही रहती है.. तुम बताओ.. किस तरफ जा रहे थे?? अगर फ्री हो तो चलो मेरे साथ.. ऑफिस मे बैठकर साथ कॉफी पियेंगे.. "
विशाल: "मैडम.. दरअसल फोरम की तबीयत ठीक नहीं है.. बहोत तेज बुखार आया है उसे.. मैं उसे देखने ही जा रहा था"
फाल्गुनी: "ओह ये बात है.. हमें तो पता ही नहीं था.. एक काम करते है.. पहले फोरम को मिल आते है.. फिर कॉफी पियेंगे"
विशाल: "फिर चलते है.. मैं अपना बाइक आगे रखता हूँ.. आप पीछे आइए.. आपने फोरम का घर देखा नहीं होगा इसलिए"
दस मिनट के अंदर तीनों फोरम के घर पहुँच गए.. तीनों को साथ देखकर फोरम बहोत खुश हुई.. बुखार के कारण कमजोरी आ गई थी और उसका गोरा पतला चेहरा.. और दुबला लग रहा था.. फोरम का हाल जानकर वो लोग निकल ही रहे थे तब फोरम की मम्मी सब के लिए कॉफी लेकर आई
कॉफी को देखकर, मौसम और फाल्गुनी के दूसरे के सामने देखकर हंसने लगा
फोरम: "आप दोनों हंस क्यों रहे हो?"
फाल्गुनी: "दरअसल हम यहाँ से ऑफिस जाने वाले थे और वहाँ कॉफी पीने का प्लान था.. इसलिए हंस रहे थे"
विशाल ने फोरम के सर पर हाथ रखकर बड़ी ही आत्मीयता के साथ कहा "तू जल्दी ठीक हो जा.. फिर हम साब साथ बैठकर कॉफी पियेंगे"
विशाल और फोरम की इतनी करीबी देखकर मौसम के दिल मे आग सी लग गई.. विशाल जैसे जैसे फोरम के साथ बातें करता गया.. मौसम का चेहरा उतरता गया.. आखिर जब उससे बर्दाश्त नहीं हुआ था वो फाल्गुनी का हाथ पकड़कर खड़ी हो गई और बोली "अब चलें?? बहोत देर हो गई है"
फाल्गुनी: "हाँ चलते है"
मौसम: "और फोरम.. तबीयत ठीक न हो तो थोड़े दिनों तक आराम ही करना.. ऑफिस आने की जरूरत नहीं है.. वैसे भी फाल्गुनी फ्री बैठी है.. कुछ दिनों के लिए रीसेप्शन डेस्क वो संभाल लेगी"
फोरम की मम्मी ने मौसम का शुक्रियादा करते हुए कहा "वैसे भी वो बड़ी कमजोर हो गई है.. कुछ दिन लगेंगे उसे ठीक होने मे"
मौसम: "आप चिंता मत कीजिए आंटी.. बस फोरम का खयाल रखिए.. और जब तक वो पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाती उसे घर से बाहर मत निकालने देना.. और अगर कुछ काम हो तो ऑफिस फोन करना"
मन ही मन मौसम खुश हो रही थी.. जीतने दिन फोरम ऑफिस नहीं आती उतने दिन उसे विशाल के ओर करीब जाने का मौका जो मिलने वाला था..
मौसम और फाल्गुनी बाहर निकले
मौसम: "विशाल तो आया ही नहीं.. पूछ ले उसे की साथ चल रहा है या नहीं"
फाल्गुनी: "अब उसने कॉफी तो यही पी ली फिर क्यों आएगा साथ.. !!"
मौसम: "ठीक है फिर.. हम ऑफिस चलें या फिर घर जाना है?" कहते हुए मौसम ने एक्टिवा स्टार्ट किया
फाल्गुनी: "ऑफिस ही चलते है.. सिर्फ हम दोनों.. अकेले" कहते हुए फाल्गुनी अपने स्तन दबाकर मौसम के पीछे बैठ गई
दोनों ऑफिस पहुंचे..
अंदर प्रवेश करते ही फाल्गुनी बेहद उदास हो गई.. रीसेप्शन की दीवार पर सुबोधकांत के एक बड़े से फ़ोटो पर चंदन का हार चढ़ाया हुआ था.. जिसे देखते ही फाल्गुनी की आँखें भर आई..
फाल्गुनी ने अपने आँसू पोंछते हुए कहा "मौसम, इसी ऑफिस मे.. यहीं पर.. अंकल के साथ कितने मजे किए थे मैंने.. !! हर रविवार को दोपहर चार से छह के बीच में हम दोनों यही रहते थे.. " फाल्गुनी ज्यादा बोल न पाई..
मौसम: "अपने आप को कंट्रोल कर फाल्गुनी"
फाल्गुनी से रहा न गया और वो मौसम से लिपट कर बहोत रोई.. मौसम ने भी उसे रो लेने दिया
सच मे.. कुछ लोग और कुछ रिशतें... छुपकर रोने के लिए ही उनका अस्तित्व होता है.. तो कुछ संबंध इतने विशिष्ट होते है की उन्हें याद कर रोने के लिए भी एक खास प्रकार के एकांत की जरूरत होती है.. फाल्गुनी के आँसू, सुबोधकांत की रूह को भी रुला दे इतने ताकतवर थे.. मौसम तो सोच रही थी.. की ऑफिस आकर.. अकेलेपन का फायदा उठाकर दोनों मस्ती करेंगे.. पर यहाँ तो कुछ और ही हो गया.. फाल्गुनी की ऐसी मनोदशा देखते हुए कुछ होने की थोड़ी बहोत उम्मीद भी चल बसी..
सुबोधकांत की ऑफिस मे कुछ ज्यादा बदलाव नहीं हुए थे.. वही सोफ़ा सेट.. वही ऑफिस टेबल, वही कुर्सियाँ और वही टेलीफोन.. फरक था तो सिर्फ इतना की इन सब का असली मालिक अब मौजूद नहीं था.. जिसके कारण इस पूरी ऑफिस की शोभा थी.. फाल्गुनी एकटक सुबोधकांत के हँसते हुए फ़ोटो को तांक रही थी.. जैसे दोनों की रूह एक दूसरे के संग बातें कर रही हो.. फाल्गुनी का यह रूप मौसम ने भी आज पहली बार देखा था..
फाल्गुनी ने बगल मे पड़ा स्टूल उठाया.. और उसपर चढ़कर सुबोधकांत की तस्वीर नीचे उतारी.. मौसम ने भी उसे रोका नहीं.. रविवार होने के कारण ऑफिस मे उन दोनों के अलावा और कोई नहीं था.. सुबोधकांत की फ़ोटो गोद मे लेकर फाल्गुनी सोफ़ा पर बैठ गई और किसी जिंदा व्यक्ति के साथ बात कर रही हो वैसे उस तस्वीर के साथ बातें करने लगी.. उसके गालों पर अश्रु की धाराएं अविरत बहती जा रही थी... मौसम भी यह द्रश्य ज्यादा देर तक देख न सकी.. फाल्गुनी के प्रेम की परवशता देखकर उसने अपनी आँखें बंद कर ली.. उसका मौन रुदन.. उसके आँसू.. मौसम को जड़ से हिला गए..
मौसम ने फाल्गुनी के कंधे पर हाथ रख दिया.. और बड़े ही प्यार से उसे अपनी गोद मे सुला दिया.. मौसम की गोद मे लेटे हुए फाल्गुनी ने सुबोधकांत की फ़ोटो अपनी छाती से लगा रखी थी, वह बोली "अंकल, आपको मेरी यही छाती बहुत पसंद थी ना.. !!"
मौसम समझ गई.. फाल्गुनी केवल जुदाई के गम के कारण नहीं रो रही थी.. उसे पापा के मर्दाना स्पर्श की याद भी बड़ी सता रही थी.. थोड़ी देर फाल्गुनी को यूं ही पड़े रहने देने के बाद.. मौसम ने धीरे से उसके हाथों से अपने पिता की तस्वीर ले ली.. और उसे संभालकर टेबले पर रख दिया..
अब मौसम ने अपना हाथ फाल्गुनी के छाती पर रखकर उसके स्तनों को हल्के से दबा दिया
फाल्गुनी: "ओह्ह अंकल.. मैं आपको बहोत मिस कर रही हूँ.. बहोत बहोत ज्यादा.. आप प्लीज लौटकर वापिस आ जाइए.. !!"
मौसम हल्के हल्के से फाल्गुनी के स्तनों को मसल रही थी तब फाल्गुनी आँखें बंद कर फुट फुटकर रो रही थी.. मौसम का इरादा फाल्गुनी को इस दुख से मुक्त कर सामान्य करने का था.. वह धैर्यपूर्वक फाल्गुनी के स्तनों को मसलती रही
आखिर मौसम ने जैसा चाह था वैसा ही हुआ.. फाल्गुनी शांत हो गई.. आँखें बंद कर वो मौसम के स्पर्श में सुबोधकांत की झलक को ढूँढने लगी थी..
वैसे तो मौसम ने अनगिनत बार फाल्गुनी के स्तनों को दबाया था.. दोनों के लिए यह कोई नई बात नहीं थी.. पर आज जो हुआ वो आज से पहले कभी नहीं हुआ था.. मौसम के हाथों से फाल्गुनी को अंकल की अनुभूति का अजीब सा एहसास हो रहा था.. एक भावुक क्षण जब भावुक सेक्स मे परिवर्तित होती है वही तो उच्च कक्षा के प्रेम की अवस्था होती है..
फाल्गुनी और मौसम ने एक दूसरे के बेडरूम मे जितनी भी बार लेस्बियन सेक्स का आनंद लिया था.. तब फाल्गुनी हमेशा उसे सुबोधकांत की पसंद नापसंद और उनकी हरकतों के बारे मे बताती रहती थी.. इतने समय मे.. मौसम ने अपने पिता की सारी हरकतों को आत्मसात कर लिया था.. और वो सारी हरकतें करते हुए वो आज फाल्गुनी को अपने पिता की अनोखी याद दिलाना चाहती थी..
अक्सर प्रेमी जिस जगह नियमित रूप से मिलते हो... उस जगह से उन्हें एक अनूठा सा लगाव हो जाता है.. जुदाई के चरण मे.. वही जगह उन्हे फिर से बीते वक्त की याद दिलाने मे महत्वपूर्ण किरदार अदा करते है.. !! प्रेमी उस स्थान पर घंटों अकेले बैठे बैठे अपने खोए हुए प्यार की याद मे तड़प सकता है.. दुनिया की नजर मे इसे चोंचलेबाजी कहा जा सकता है.. पर उसका क्या महत्व होता है वो सिर्फ एक प्यार करने वाला ही बता सकता है
मौसम आज फाल्गुनी के साथ सुबोधकांत का किरदार निभा रही थी.. वही माहोल था.. वही जगह थी.. वही रविवार का दिन था.. बस समय बदल गया था.. जो काम दोपहर के बाद होता था वो आज दोपहर से पहले हो रहा था..
रो रो कर लाल हो चुकी आँखों के साथ.. फाल्गुनी ने अपने स्तनों को सहला रहे मौसम के हाथों को मजबूती से पकड़कर दबा दिया.. अपनी कमर उचकते हुए फाल्गुनी ने कहा "आह्ह मौसम.. तेरा हर एक स्पर्श, मुझे अंकल की याद दिला रहा है.. आह्ह.. और जोर से रगड़!!"
मौसम ने फाल्गुनी के शर्ट के बटन खोल दीये और ब्रा के अंदर से छलक रहे उभारों को एक के बाद एक चूम लिया.. मौसम की हर एक हरकत सुबोधकांत की तरह ही थी.. यह सब मौसम ने फाल्गुनी की बातों से ही तो सीखा था..
आवेश मे आकर फाल्गुनी ने अपने स्तनों को मौसम की छाती से रगड़ते हुए कहा "यार, कुछ कर ना यार.. !!"
"क्या करना है तू ही बता फाल्गुनी" फाल्गुनी के दोनों स्तनों को ब्रा की कैद से बाहर निकालकर मसलते हुए मौसम ने कहा.. अब मौसम का खून भी तेजी से दौड़ते हुए पूरे जिस्म को गरम करने लगा.. और उसके हाथ फाल्गुनी की जांघों पर होते हुए उसकी चूत तक पहुँच चुके थे..
फाल्गुनी अब खड़ी हो गई और उसने मौसम को धक्का देकर सोफ़े पर गिरा दिया.. फिर अपने स्तनों को मौसम के चेहरे के पास झुलाते हुए मौसम के दोनों स्तनों को पकड़कर बड़े ही जालिम अंदाज मे दबाने लग गई..
मौसम ने फाल्गुनी की एक चुची को पकड़कर उसकी निप्पल पर अपनी जीभ का स्पर्श किया.. फाल्गुनी सिहर उठी.. मौसम उसकी निप्पल चूसती रही और फाल्गुनी उसके स्तनों को दबाती रही.. उस दौरान वह दोनों बार बार एक दूजे की चूत को भी सहला रहे थे.. कुंवारी चूतों पर उंगलियों का घर्षण होते ही दोनों को झड़ने मे देर नहीं लगी..
एक सुंदर कामुक सेशन के बाद.. दोनों चूतें स्खलित होकर शांत हो गई.. चार स्तन मिलकर हांफ रहे थे.. बड़ा ही मनोहर द्रश्य था.. काफी देर तक एक दूसरे की बाहों मे पड़े रहने के बाद दोनों फ्रेश होकर घर की तरफ निकल गए
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मौसम जब फाल्गुनी को छोड़कर घर पहुंची... तब कविता और पीयूष, रमिलाबहन के साथ बातें करने मे मशरूफ़ थे..
मौसम को देखते ही रमिलाबहन ने उसे प्यार से अपने पास बुलाया और कहा "बेटा.. ये तेरे जीजू जो कह रहे है वो सच है क्या?? ऑफिस का वो लड़का तुझे बहोत पसंद है ऐसा वो कह रहे है.. !!"
मौसम ने शरमाते हुए अपनी नजरें झुका ली
पीयूष: "देखा मम्मी जी, आपको उस लड़के का नाम लेने की भी जरूरत नही पड़ी.. मौसम अपने आप समझ गई.. बड़ी चालाक है आपकी बेटी"
मौसम ने मुसकुराते हुए पीयूष की तरफ देखा मगर कुछ बोली नहीं
रमिलाबहन: "बेटा.. हम विशाल की बात कर रहे है.. तेरे जीजू का कहना है की तुम उस लड़के को बहोत पसंद करती हो"
कविता: "अरे मौसम.. अपने मनपसंद साथी के साथ ब्याहने का मौका मिले उससे बेहतर इस दुनिया मे और कुछ नहीं हो सकता" कहते हुए कविता को एक पल के लिए पिंटू की याद आ गई
पीयूष: "अरे चुप क्यों बैठी है..!!"
मौसम ने नजरें झुकाकर ही कहा "आप सब मिलकर जो भी तय करेंगे वो मुझे मंजूर है"
मौसम की स्वीकृति की महोर लगते ही.. पूरे घर मे आनंद की लहर जाग उठी.. रमिलाबहन की आँखों मे आँसू आ गए
वैसे मृत स्वजनों की हर रोज याद आती है.. पर जब कोई खुशी का या दुख का मौका या प्रसंग हो तब तो उनकी याद बड़ा सताती है.. अपनी माँ के आँख में आँसू देखकर कविता भी रो पड़ी.. जैसे सुबोधकांत एक बार फिर आंसुओं के जरिए अपनी मौजूदगी का एहसास दिला रहे थे..
पीयूष: "अगर सब की हाँ हो.. तो मुझे विशाल के माँ-बाप से मिलकर बात करनी होगी"
रमिलाबहन: "कुछ देर के लिए रुक जाओ बेटा.. १५ जनवरी तक शुभ मुहूरत नहीं है"
कविता: "ठीक है फिर.. ये तय रहा.. मकरसंक्रांति के दो दिन बाद हम सब विशाल के घर जाएंगे"
पीयूष: "जैसा आप सब कहें"
कविता: "एक बात का खास ध्यान रखना.. जब तक हम विशाल के घर जाकर शादी के बात नहीं कर लेते.. तब तक तू इस बारे में किसी से बात नहीं करेगी.. टांग अड़ाने वाले बहोत होते है और ऐसे मामलों में बात बिगड़ते देर नहीं लगती.. यह बात सिर्फ हम तीनों के बीच मे ही रहेगी.. और हाँ.. विशाल से भी थोड़ी दूरी बनाए रखना.. वरना तेरा बर्ताव देखकर उसे शक हो जाएगा.. कुछ दिनों की ही तो बात है"
मौसम: "ठीक है दीदी"
अगर विशाल मिल रहा हो तो मौसम कुछ भी करने के लिए तैयार थी.. तरुण के जीवन से जाने के बाद.. विशाल हो तो बहार बनकर लौटा था मौसम के जीवन मे.. काफी समय बाद मौसम के चेहरे पर आज वही चमक नजर आ रही थी जो चमक उसके चेहरे पर तरुण से सगाई टूटने से पहले नजर आती थी
मकरसंक्रांति के दिन फाल्गुनी ने मौसम को काफी बार कहा की वो लोग विशाल के घर जाए या तो फिर विशाल को यहाँ बुला ले.. पतंग साथ उड़ाने के बहाने.. पर अपनी दीदी की सख्त हिदायत याद आते ही, दिल पर पत्थर रखकर मौसम ने मना कर दिया.. फाल्गुनी को बड़ा ताज्जुब हुआ.. विशाल के पीछे पगली बनी घूमते रहती मौसम.. आज उससे मिलने को मना क्यों कर रही होगी भला.. !!!
संक्रांति के दिन.. फोरम मौसम के घर आई थी... सब ने मिलकर साथ पतंग उड़ाई.. कविता और पीयूष के साथ फाल्गुनी भी थी.. फोरम जब अपने घर लौटी तब उसकी मम्मी ने बताया की विशाल उससे मिलने आया था पर वो नहीं थी इसलिए चला गया
फोरम ने तुरंत ही विशाल को फोन किया और दूसरे दिन मिलने का वादा किया.. विशाल संक्रांति के दूसरे दिन फोरम के घर गया.. दोनों जवान दिल एक साथ पतंग उड़ाने लगे.. विशाल पतंग उड़ा रहा था और फोरम उसका चरखा पकड़कर खड़ी थी..
एक ही पतंग से.. तीन-चार पेच काटकर खुश हुए विशाल ने.. इसका सारा श्रेय फोरम को देते हुए कहा "वाह फोरम.. क्या चरखा पकड़ा है आज तो तूने.. अगर तूने चरखा नहीं पकड़ा होता तो आज मैं इतने सारे पतंग नहीं काट पाता.. बता, पूरी ज़िंदगी मेरा चरखा पकड़ने का क्या लोगी?"
फोरम ने शरमाकर कहा "तुम्हारा दिल.. !! और कुछ नहीं.." इतना कहते हुए फोरम ने चरखा कस कर पकड़ लिया.. धागा न छूटने के कारण विशाल की पतंग कट गई.. फोरम जोर से हंस पड़ी.. और उसे अचानक एहसास हुआ की मज़ाक मज़ाक मे उसने क्या बोल दिया था..!! शर्म के मारे उसकी नजरें झुक गई..
जब विशाल फोरम के साथ उसके घर पर पतंग उड़ा रहा था.. ठीक उसी समय.. पीयूष, कविता और रमिलाबहन विशाल के घर पहुंचकर उसके माँ-बाप से मिलकर शादी की बात चला रहे थे.. विशाल के पापा ने बड़ी ही सज्जनता से उत्तर दिया की वो अपने बेटे की राय जानने के बाद जवाब देंगे.. जाते जाते रमिलाबहन की नज़रों ने पूरे घर को स्कैन कर लिया.. यह जानने के लिए की क्या यह घर मौसम के लायक था भी या नहीं..
जब वो तीनों बाहर निकले तब कविता को अंदाजा था की मौसम कितनी बेसब्री से उसके फोन का इंतज़ार कर रही होगी.. उसने तुरंत मौसम को फोन लगाकर जो भी हुआ था वो कहा.. साथ मे ये भी कहा की विशाल के पापा के बात करने के अंदाज से लग रहा था की उनकी हाँ ही होगी.. !!
इतना सुनते ही मौसम खुशी से झूम उठी.. अगर उसे पंख होते तो अभी उड़कर विशाल के पास पहुँच जाती..
दूसरे दिन से पीयूष वापिस अपने कारोबार के कामों मे व्यस्त हो गया.. और कविता फिर से अकेली हो गई..
कुछ दिनों बाद वैशाली का फोन आया और उसने बताया की १४ फरवरी के दिन उसकी और पिंटू की शादी होना तय हुआ था.. समय काफी कम था और वैशाली चाहती थी की कुछ चीजों की शॉपिंग के लिए कविता वहाँ आकर उसकी मदद करे..
कविता ने पीयूष को फोन किया.. पीयूष कविता को कुछ दिनों के लिए वहाँ भेजने को राजी हो गया.. वैसे भी वो एक हफ्ते के लिए मुंबई जा रहा था.. वैशाली से मिलना भी हो जाएगा.. और वहाँ के घर की थोड़ी सी साफ-सफाई भी हो जाएगी
दूसरे ही दिन पीयूष को एयरपोर्ट छोड़कर, अपनी गाड़ी खुद चलाकर कविता वैशाली के शहर के तरफ जाने लगी.. अब तक सिर्फ बस मे सफर करती कविता का जीवन अब समृद्ध होते ही बदल चुका था.. गाड़ी चलाते वक्त पिंटू को बहोत याद कर रही थी कविता.. और तभी कार की म्यूज़िक सिस्टम पर जगजीत सिंह की मशहूर ग़ज़ल बज रही थी
𝄞⨾𓍢ִ໋ जग ने छीना मुझसे... मुझे जो भी लगा प्यारा.. !!
सब जीता किया मुझ से... मैं हरदम ही हारा... 𝄞⨾𓍢ִ໋𝄞⨾𓍢ִ໋
तुम हार के दिल अपना.. मेरी जीत अमर कर दो..
होंठों से छु लो तुम... ♫ྀི♪⋆.✮
देखते ही देखते, कविता की गाड़ी शीला के घर के बाहर पहुँच गई.. कविता को देखकर सब खुश हो गए.. खास कर वैशाली.. !!
शीला सब के लिए खाना बनाने की तैयारी करने लगी
शीला ने कविता से पूछा "बता, क्या बनाऊ तेरे लिए? मुझे पता है की तुझे भिंडी की सब्जी बहोत पसंद है.. पर अभी भिंडी घर पर है नहीं.. तू एक काम कर.. वैशाली के साथ जाकर नाके पर बैठे सब्जी वाले से भिंडी लेकर आ.. फिर मैं तुम्हारे लिए मस्त सब्जी बना दूँगी"
कविता: "भाभी, आप वो सब टेंशन छोड़िए.. मैं तो आज वो मशहूर भगत की पानीपूरी खाने का मन बनाकर आई हूँ.. सब चटपटा खाएंगे और मैं वैशाली के साथ देर तक घूमूँगी.. गाड़ी तो है ही.. हम दोनों साथ जाएंगे"
मदन: "अरे शाम के टाइम गाड़ी लेकर जाओगे तो ट्राफिक में ही फंसे रहोगे.. उससे अच्छा यह एक्टिवा लेकर जाओ.. आसानी रहेगी"
वैशाली और कविता ने हाथ मुंह धोकर कपड़े बदल लिए.. दोनों ने मस्त टाइट सेक्सी कपड़े पहने और एक्टिवा लेकर निकल पड़े..
तंग कपड़े पहन कर यह दोनों जवान पटाखे जब रास्ते पर निकले तब उनके नजाकत भरे उभारों को देखकर.. लोग आँखें सेंकने लगे.. !! दोनों सहेलियाँ काफी देर तक भटकने के बाद रात के नौ बजे घर लौटी.. उस दौरान एक बार पिंटू का फोन आया वैशाली पर.. वैशाली थोड़ी सी सहम गई कविता की मौजूदगी मे.. पर पिंटू समझदार था.. उसने सामने से वैशाली को कहा की वो कविता को फोन दे.. कविता से थोड़ी सी यहाँ वहाँ की बातें कर पिंटू ने फिर से वैशाली से बात की.. और कहा की जब वो अकेली हो तब बात करेंगे.. अभी बात करेंगे तो कविता का दिल दुखेगा
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इस तरफ मौसम के दिल मे विशाल के प्रेम की शहनाइयाँ गूंजना शुरू हो गई थी.. रोज रात को विशाल उसके सपनों मे आता था.. पर विशाल मौसम के स्टेटस के कारण एक निश्चित दूरी बनाए रखता था.. वरना मौसम ऐसी लड़की थी जिसे पाकर कोई भी अपने आप को धन्य महसूस करता..
विशाल के पापा का भी यही मानना था, उन्हों ने विशाल को सलाह देते हुए कहा "बेटा, प्यार, विवाह और दुश्मनी... हमेशा बराबरी वालों से ही करना बेहतर होता है.. हाँ, छोटे घर की लड़की खुद से ज्यादा अमीर घर मे सेट हो जाती है.. पर बड़े घर की लड़की, एक मध्यम वर्ग के परिवार मे सेट हो सके उसकी संभावना बहोत कम होती है.. " परोक्ष रूप से उन्हों ने विशाल को जता दिया की दोनों परिवारों के बीच जो आर्थिक असमानता है, उसे ध्यान मे लेकर ही फैसला करना चाहिए
मौसम का परिवार बेहद आमिर था.. जब की विशाल के पापा बेंक मे क्लर्क थे.. लाड़-प्यार से और अत्याधिक सुख-सुविधा के बीच पली बड़ी मौसम उनके घर मे रह पाएगी भी या नहीं उसका उन्हें यकीन नहीं था..!! इसीलिए उन्होंने विशाल को बहोत ही सोच समझकर इस बारे मे आगे बढ़ने की सलाह दी
इस बात से अनजान मौसम, पूरा दिन विशाल के विचारों मे ही डूबी रहती थी.. उस दिन के बाद, विशाल की तरफ देखने का उसका सारा दृष्टिकोण ही बदल गया.. विशाल को अपने जीवनसाथी के रूप मे सोचकर ही मौसम शर्म से पानी पानी हो जाती थी..
विशाल ने अपने पापा की बातों को बड़ी ही गंभीरता से लिया.. वह समझ रहा था की पापा ने बहोत ही सोच-समझ कर उसे आगे बढ़ने के लिए क्यों कहा.. अक्सर देखा गया है की प्यार के चक्कर मे लड़कियां अपने से कम आर्थिक स्तर वाले परिवारों मे ब्याहने तैयार तो हो जाती है.. पर थोड़े ही समय मे कीट-पीट शुरू हो जाती है.. जाहीर सी बात है.. जिस लड़की ने अपने घर मे पानी का ग्लास भी न उठाया हो.. उसे सुबह जल्दी उठकर पानी भरना पड़े, बर्तन माँजने पड़े और खाना पकाना पड़े तो वो उससे हो नहीं पाएगा.. क्योंकि उसे आदत ही नहीं है.. !! दो-तीन महीनों मे जब प्यार का भूत सर से उतर जाता है, फिर शुरू हो जाती है महाभारत.. हालांकि कुछ अपवाद भी होते है.. पर ज्यादातर किस्सों मे यही होता है..
विशाल यह सब भलीभाँति जानता था.. काफी सोच विचार करने के बाद उसने अपना मन बना लिया.. वो अब मौसम के साथ नाप-तोल कर ही बातें करता और अपना ज्यादा समय फोरम के साथ गुजारता.. फोरम के साथ विशाल की बड़ी अच्छी पटती थी.. दोनों के परिवार भी समान आर्थिक स्तर के थे.. और दोनों मे ओर भी कई समानता थी..
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वैशाली और कविता टीवी देखते हुए मदन और शीला के साथ बातें करते रहे.. थोड़ी देर के बाद दोनों वैशाली के बेडरूम मे चले गए.. बेडरूम का दरवाजा अंदर से बंद होते ही दोनों के सामाजिक रूप बदल गए.. एक दूसरे की ओर देखकर.. शरारत भरी सांकेतिक मुस्कान देते हुए.. दोनों बिस्तर पर लेट गई.. !!
बेड पर पड़े पड़े दोनों बातें कर रही थी पर उनके होंठों से ज्यादा उनके हाथ बातें कर रहे थे.. कविता को वैशाली के बड़े बड़े स्तन बेहद पसंद थे.. कभी कभी तो वो ईर्ष्या से जल भी जाती वैशाली के पुष्ट पयोधर स्तनों को देखकर... !!
दोनों बिना पुरुष के संसर्ग के भूखी थी.. कविता के अमरूद और वैशाली के खरबूजे एक हो गए.. एक शानदार ऑर्गजम के बाद दोनों एक दूसरे की बाहों मे बाहें डाले सो गए.. !!
सुबह वैशाली को अचानक पिंटू के साथ पासपोर्ट ऑफिस जाना पड़ा.. मदन भी मेरेज हॉल के बुकिंग के सिलसिले मे बाहर चला गया
अब कविता और शीला घर पर अकेले थे.. दोनों ने भरपूर लेस्बियन सेक्स का मज़ा लिया..
अगले दो दिन कविता और वैशाली ने बहोत सारी शॉपिंग की.. वैशाली की शादी के लिए जो कुछ भी जरूरी था वह सब खरीद लिया गया था.. शाम को वैशाली पिंटू के साथ घूमने जाती तब कविता और शीला एक दूसरे की आग को बुझाने मे व्यस्त हो जाते.. दोनों को भरपूर अकेलापन मिल जाता क्योंकि अब मदन घंटों बाहर रहता था... वैसे शीला को मदन की फिक्र नहीं थी क्योंकि वह जानता था की मदन रेणुका के पास ही गया होगा..
एक दिन दोपहर के समय शीला और कविता घर पर अकेले बिस्तर पर पड़े थे.. शीला की मालदार छातियों पर कविता के हाथ घूम रहे थे..
कविता: "वैशाली सच मे किस्मत वाली है.. दूसरी बार सुहागरात मनाने का मौका मिलेगा उसे"
शीला: "तो तू भी मना ले दूसरी सुहागरात... किसने रोका है.. !!"
कविता: "उसके लिए दूसरी बार शादी भी तो होनी चाहिए.. किसके साथ करूँ??"
शीला: "ढूंढेगी तो मिल जाएगा.. तेरे लिए कोई कमी थोड़ी न है.. अच्छा कविता, मुझे तुझ से एक बात पुछनी थी"
कविता: "हाँ पूछिए ना भाभी"
शीला: "मुझे वैशाली के ड्रॉअर से एक रबर का लँड मिला है.. अब मदन का कहना है की वो इंपोर्टेड डिल्डो है.. वैशाली के पास कैसे आया होगा.. !! मुझे और मदन को शक हो रहा है की कहीं वैशाली का कुछ और चक्कर तो नहीं चल रहा?? राजेश की ऑफिस के कई क्लायंट विदेशी होते है.. कहीं वैशाली किसी के साथ फंस तो नहीं गई होगी?"
कविता: "रबर का लंड?? जरा दिखाइए मुझे.. !!"
शीला जाकर वो डिल्डो ले आई.. और कविता के हाथ मे दे दिया.. !!"
रबर के लोडे को पकड़कर उसे चारों ओर से देखने लगी कविता..
कविता: "ये तो एकदम असली जैसा ही दिख रहा है भाभी"
शीला: "अरे यार, मैंने तुझ से जो पूछा उसका जवाब दे.. मुझे ये जानना है की ये वैशाली के पास आया कहाँ से.. !! वो तो तुझे सब कुछ बताती है.. कुछ जिक्र किया है उसने पहले?"
कविता: "कहीं से भी आया हो, क्या फरक पड़ता है भाभी.. !! आप समझने की कोशिश कीजिए.. संजय के साथ तलाक होने के बाद.. वैशाली की अपनी भी तो जरूरतें होंगी.. ले आई होगी कहीं से भी.. पर एक बात तो तय है... उसे ये किसी लड़की या महिला दोस्त ने ही दिया होगा.. कोई मर्द होता तो उसका असली लंड ही न ले लेती..!! इसलिए आप जिस बात की चिंता कर रही हो वैसा होने की कोई संभावना मुझे तो नजर नहीं आ रही"
शीला: "हम्म.. तेरी बात मे दम तो है.. !!"
कविता: "भाभी, मैं ये सोच रही थी की... क्यों न हम दोनों आज इसके इस्तेमाल करें?? मैंने कभी ऐसा कोई खिलौना ट्राय नहीं किया है.. !!"
और फिर.. पूरी दोपहर.. शीला ने अपनी कमर पर उस डिल्डो को बांधकर कविता की ऐसी जबरदस्त चुदाई की.. कविता की चूत से लगभग धुआँ निकलने लगा.. फिर बारी आई कविता की.. उसने कमर पर बांधकर शीला को चोदना चाहा.. पर कविता के धक्कों मे शीला को कैसे मज़ा आता.. !!! शीला ने खुद ही अपने हाथ मे डिल्डो लेकर... अपने भोसड़े को पूर्णतः तृप्त कर दिया.. खरीदा जिसने भी हो.. पैसे वसूल लिए शीला ने.. !!
शांत होकर काफी देर तक दोनों बेड पर लेटे हुए बातें करते रहे
कविता: "भाभी, आज की रात, मैं और वैशाली हमारे घर सोएंगे.. काफी समय से वो घर बंद पड़ा है.. मुझे उस घर की बहोत याद आती है.. आखिर पहली बार ब्याह कर मैं उसी घर मे तो आई थी.. हम वहाँ सोएंगे और आप तसल्ली से मदन भाई के साथ रात रंगीन करना.. !!"
शीला: "हम्म.. और तू वैशाली के साथ अपनी रात रंगीन करेगी.. हैं ना.. !!"
कविता: "हाँ जरूर करेंगे.. वैसे हम पहले भी ये कर चुके है.. वैशाली को आप कम मत आँकिए.. ऐसे ही उसके पास रबर का लंड थोड़ी न आया होगा.. मैंने तो उसे ये नहीं दिया.. मतलब उसकी और कोई महिला दोस्त होगी जिसने उसे ये दिया है.. और मुझे पक्का यकीन है की वैशाली के उस महिला के साथ भी जिस्मानी संबंध रहे होंगे"
शीला: "हाँ यार.. बात तो तेरी सही है.. पर मैं सोच सोचकर थक गई.. ऐसी कौन सी सहेली होगी वैशाली की??"
कविता: "वो तो मुझे नहीं पता.. पर आप चिंता मत कीजिए.. मैं ये डिल्डो साथ ले जाती हूँ.. रात को वैशाली को ये दिखाऊँगी और पूछ लूँगी"
शीला: "नहीं कविता.. उसे पता चल जाएगा की ये मैंने ही तुम्हें दिया है.. आखिर उसके वॉर्डरोब मे रखा डिल्डो तेरे पास कहाँ से आएगा.. !!"
कविता: "वो सब आप मुझ पर छोड़ दीजिए.. कुछ नहीं होगा.. आखिर मैं आप की शिष्या हूँ.. बात उगलवाना आप से सीख गई हूँ"
शीला की निप्पल खींचते हुए कविता खड़ी हो गई.. और फ्रेश होकर कपड़े पहनने लगी..
दोनों तैयार होकर फिर सब्जी मंडी की ओर निकल गई..
शीला और कविता दोनों के बीच आसमान जमीन का अंतर था.. शीला ताजमहल जैसी भव्य इमारत थी तो कविता का प्रभाव आधुनिक बुर्ज-खलीफा जैसा था.. काफी समय बाद इस शहर के मार्केट मे आकर कविता को बहोत अच्छा लग रहा था.. कई पुराने दुकानदारों ने कविता को पहचान लिया.. शाम के सात बजे तक दोनों मार्केट मे भटकते रहे..
घर पर लौटे तब वैशाली आ चुकी थी.. खाना खाने के बाद वैशाली और कविता.. पड़ोस के उनके पुराने मकान मे सोने के लिए चले गए
उस घर का ताला खोलते ही.. कई पुरानी यादों ने कविता को घेर लिया.. रोम रोम पुलकित हो गया कविता का... घर की प्रत्येक वस्तु के साथ कविता का गहरा लगाव था.. हर एक चीज को उठाकर कविता चूमने लगी.. शो-केस मे रखा हुआ एक पुराना टेडी-बियर को छाती से लगाते हुए कविता के आँसू निकल गए.. अलिप्त होकर वैशाली यह सब देख रही थी.. कविता को यूं रोते हुए देखकर उसे ताज्जुब हुआ.. उसने सोचा की शायद पीयूष ने उसे गिफ्ट दिया होगा.. नहीं नहीं.. ऐसा होता तो कविता रोती नहीं.. जरूर पिंटू ने ही गिफ्ट किया होगा..
ड्रॉइंगरूम को पार कर दोनों बेडरूम मे पहुंचे..
कविता: "वैशाली, यह वही कमरा है जहां मैंने और पीयूष ने शादी के बाद पहली रात मनाई थी"
वैशाली: "हम्म.. सुहागरात तो कभी भी भुलाये नहीं भूलती.. समझ सकती हूँ की इस बिस्तर से तेरी काफी यादें जुड़ी हुई होगी.. कितने सारे ऑर्गजम दीये होंगे पीयूष ने तुझे इस बिस्तर पर.. !!"
कविता: "सही कहा तूने... इस बेडरूम मे याद रखने जैसी.. और भूल जाने वाली भी... सेंकड़ों यादें जुड़ी हुई है"
वैशाली को समझ नहीं आया की कविता क्या कहना चाहती थी.. वो उससे कुछ पूछती उससे पहले घर की डोरबेल बजी.. दोनों चोंक उठी.. इतने महीनों से खाली पड़े घर पर आज कौन आ गया.. !!!
वैशाली को वहीं छोड़कर कविता अपने कपड़े ठीक करते हुए बाहर निकली.. और दरवाजा खोला.. सामने रसिक खड़ा था
रसिक: "अरे भाभी आप?? हमारे शहर मे?? आप तो हमें छोड़कर चली ही गई.. पर मुझे पक्का यकीन था.. की आप वापिस लौटकर आओगी ही.. वैसे मैं यहाँ से गुजर रहा था और मैंने पीछे के कमरे की लाइट चालू देखी तो सोचा चेक कर लूँ.. कहीं कोई घुस तो नहीं आया.. आजकल समय बड़ा खराब चल रहा है.. चोर अंदर घुसकर आराम से बंद घरों मे चोरी करते है.. खैर.. !!! आप आ गए वो बहोत अच्छा किया.. !! अब तो यहीं रहोगे ना.. !! कल से दूध देना शुरू कर दु क्या??" एक साथ कई प्रश्नों की झड़ी लगा दी रसिक ने
रसिक को देखकर थोड़ा सा परेशान हुई कविता ने कहा "अरे नहीं नहीं.. मैं तो कुछ दिनों के लिए ही आई हूँ.. और शीला भाभी के घर पर रुकी हूँ.. फिर लौट जाऊँगी.. और साथ में वैशाली को भी हमेशा के लिए साथ ले जाऊँगी.. ताकि तुम सब लोगों से उसकी जान छूटें"
रसिक का वैशाली के साथ कुछ खास संपर्क नहीं था.. बस इतना पता था की वो शीला की बेटी थी और तलाक लेकर उनके घर पर ही रह रही थी..
रसिक: "कैसी बातें कर रही हो आप भाभी.. !! हम कहाँ किसी को परेशान करते है.. चोर-लुटेरे थोड़े ही है हम... !!"
कविता: "सब पता है मुझे .. मेरा मुंह मत खुलवाओ.. कहाँ कहाँ क्या लूटा है सब जानती हूँ मैं.. !!"
रसिक सकपका गया.. इससे पहले की कविता कुछ और बोलती, उसने कहा "ठीक है भाभी.. मैं चलता हूँ.. कोई काम हो तो बताना" कहते हुए रसिक वहाँ से लगभग भाग ही गया
दरवाजा बंद कर अंदर बेडरूम मे आते हुए कविता गुस्से से बड़बड़ा रही थी "एक नंबर का हरामखोर है.. साला.. चोदू कहीं का.. !!"
वैशाली: "अरे वो जैसा भी हो.. तुझे उससे क्या लेना देना? तुझे कहाँ परेशान करता है वो.. !!"
कविता: "वो तो इसलिए क्यों की मैंने अपने आप को परेशान होने नहीं दिया.. वरना..!!! जाने दे उस बात को.. उस हरामी की सारी करतूतों से वाकिफ हूँ मैं.. "
वैशाली: "कैसी करतूतें??"
कविता: "जाने दे ना यार.. तुझे क्या करना है जानकर.. तुझे उसका लेना है क्या?? इतना मोटा है उसका.. !!" अपनी कलाई दिखाते हुए कविता ने कहा
वैशाली चोंक उठी "तुझे कैसे पता??"
कविता: "सिर्फ मुझे ही नहीं... इस मोहल्ले की लगभग सब औरतों को पता है की उसका कितना लंबा और मोटा है.. और उसमे तेरी मम्मी और मेरी सासुमाँ भी शामिल है"
अपनी माँ का नाम सुनकर वैशाली को गुस्सा आ गया "क्या बक रही है तू नालायक..!!"
कविता: "मुझे पता ही था की तुझे सच हजम नहीं होगा.. और तू मेरी बात का विश्वास नहीं करेगी.. पर मैं झूठ क्यों बोलूँगी भला.. !! वो तो मेरी किस्मत अच्छी थी की मैं बच गई.. वरना उस रात रसिक ने मेरी जान निकाल दी होती.. मुझे तो उसको देखकर ही उलटी आती है.. उस दिन अगर तू और तेरी मम्मी नहीं आ गए होते तो वो कमीना मुझे नोच खाता.. !!"
वैशाली परेशान होते हुए बोली "यार, तू क्या बोल रही है, मुझे तो कुछ समझ मे नहीं आता.. !!"
वैशाली की जिद के आगे झुककर कविता ने उसे सारी बात बताई.. उस रात की.. जब अनुमौसी ने अपना भोसड़ा चुदवाने के चक्कर मे.. रसिक के हाथों कविता का सौदा कर दिया था.. और उसे बेहोशी की दवाई वाला आइसक्रीम खिलाकर.. चोदने का प्लान भी बनाया था..
बात करते करते कविता के कपाल पर पसीना आ गया.. पल्लू से पसीना पोंछते हुए कविता ने कहा "तेरी मम्मी, मेरी सास.. यहाँ तक की वो रेणुका भी.. रसिक के लंड की दीवानी है.. तेरी माँ और रेणुका तो फिर भी जवान है.. पर मेरी सास ने तो अपनी उम्र का भी लिहाज नहीं किया.. और वो बुढ़िया इस हरामी रसिक से चुद गई.. !!"
वैशाली: "तो क्या सच मे रसिक का लंड इतना मोटा और लंबा है??"
कविता: "तूने कभी गधे का टाइट हुआ लंड देखा है.. !! बिल्कुल वैसा ही है रसिक का.. !! विकराल राक्षस जैसा लंड है उसका"
वैशाली: "यार, क्या सच मे इतने मोटे लंबे लंड होते है?? मैंने मोबाइल पर ब्ल्यू-फिल्मों मे ऐसे लंड देखे है.. पर संजय का कहना था की वो सब नकली होते है.. हकीकत मे उतने बड़े लंड होते ही नहीं है"
कविता: "अच्छा.. !! वैसे संजय का कितना बड़ा था??"
वैशाली: "संजय का भी अच्छा खासा बड़ा था.. !!"
कविता: "कभी याद आती है उसके... उसकी.. ??"
वैशाली: "हाँ, कभी बहुत एक्साइट होती हूँ तब याद आ जाती है.. खासकर पिरियड्स के दिनों मे.. पर उससे ज्यादा कुछ नहीं.. वो मेरा गुजरा हुआ कल है और संजय से जुड़ी सभी चीजों से मुझे नफरत है.. उसका कितना भी तगड़ा क्यों न हो.. और मुझे कितनी भी खुजली क्यों न हो रही हो.. मैं मर जाऊँगी पर उसे हाथ न लगाने दूँगी.. पर ऑनेस्टली कहूँ तो.. वो साला चुदाई मे मास्टर था.. औरत के शरीर को संतुष्ट करने मे उसका कोई मुकाबला नहीं कर सकता.. साला ऐसे चोदता था की रुला ही देता था.. खैर.. अब छोड़ उसकी बातें"
कविता: "मतलब अभी भी वो तुझे याद आता है.. !!"
वैशाली: "वो नहीं.. उसका लंड याद आता है.. जब उसका खड़ा हो जाता तब एकदम मस्त लगता था.. मुझे बड़ा और तगड़ा लंड बहोत पसंद है.. इसीलिए तो मैं तुझे कब से रसिक के लंड के बारे मे पूछ रही हूँ"
कविता: "यार, रसिक का लंड इतना मोटा तगड़ा है की मैं क्या कहूँ.. शब्दों से बयान नहीं कर सकती.. तू एक बार देखेंगी तो पता चलेगा"
वैशाली: "वैसे, क्या तुझे पता है की मम्मी ने रसिक के साथ कितनी बार किया होगा?"
कविता: "मेरे हिसाब से तो सेंकड़ों बार किया होगा.. जब तेरे पापा विदेश थे.. उस दौरान मैं रोज उन दोनों की हरकतें देखती थी सुबह सुबह.. भाभी भी कम नहीं है.. पूरी तरह से फिदा है वो रसिक पर"
अपनी माँ और रसिक की साथ मे कल्पना करते हुए वैशाली ने आँखें बंद कर ली..
थोड़ी देर तक वैसे ही बैठे रहने के बाद जब वैशाली ने आँखें खोली तब चोंक गई.. !! कविता के हाथ मे डिल्डो था.. !! वही डिल्डो जो उसे रेणुका ने दिया था
कविता: "वैशाली, ये क्या है?"
वैशाली ने झपटते हुए वो डिल्डो कविता के हाथों से छीन लिया और बोली "तेरे पास ये कहाँ से आया???"
कविता: "यार अब तुझसे क्या छुपाना.. तेरी मम्मी को ये तेरे ड्रॉअर से मिला.. फ़ॉरेन का है.. इसलिए उन्हें चिंता होने लगी थी.. की कहीं तेरे ऑफिस के किसी विदेशी क्लायंट के साथ तेरा को चक्कर तो नहीं है.. !!"
वैशाली: "अरे यार.. लोचा हो गया.. अब मम्मी को क्या जवाब दूँगी मैं.. !!!!"
कविता: "उसकी चिंता तू मत कर.. वो सीधे सीधे कुछ नहीं पूछेगी तुझे.. पर मुझे सच सच बता की ये तेरे पास कहाँ से आया.. !! तो मुझे पता चलें की भाभी को क्या जवाब देना है"
वैशाली: "यार, एक दिन मैं रेणुका के घर गई थी.. तो वहाँ बातों बातों मे सेक्स की बात निकली.. और दोनों की इच्छा हो गई और हमने कर लिया.. बाद मे उसने मुझे ये गिफ्ट दिया.. कहा की मेरा तो तलाक हो चुका है.. तो कभी बहोत मन हो जाए तो ये काम आएगा.. "
कविता: "पर वैशाली.. ये तो रसिक के लंड जैसा मोटा है.. ये तेरी चूत में डाल पाती है तू?? अगर ये अंदर जाता है तो तू रसिक का भी ले पाएगी"
वैशाली: "शुरुआत मे डालने मे थोड़ी तकलीफ जरूर होती है.. पर एक बार गीली हो जाने के बाद मज़ा आता है.. अब तक दो बार इससे कर चुकी हूँ.. कविता, यार तेरी बातें सुनकर तो मुझे भी अब रसिक का देखने की इच्छा हो गई है"
कविता: "तो बुला ले उसे.. वैसे भी उसे जवान फेशनेबल लड़कियों को चोदने का बड़ा ही कीड़ा है.. तेरे बुलाते ही दूम हिलाता आ जाएगा.. पर हाँ.. एक बात पहले ही बता दूँ.. मैं इसमे शामिल नहीं हो सकती.. मुझे तो उसे देखकर ही डर लगता है.. और वो तुझे सिर्फ दिखाकर थोड़े ही मानेगा.. डालेगा भी.. "
वैशाली: "तू मेरा एक काम कर सकती है?"
कविता: "क्या??"
वैशाली: "मेरी शादी होने मे अब ज्यादा दिन नहीं बचे.. उसके बाद तो ये सब बंद हो जाएगा मेरा.. तू कैसे भी करके रसिक को मेरे साथ सेट कर दे एक बार.. प्लीज!! तू शामिल मत होना.. पर मुझे तो करने दे.. !!"
कविता: "अरे मर जाएगी तू.. सोच ले.. पागल मत बन.. गधे जैसा लंड अंदर डालेगा तो आँखें फटकर बाहर निकल जाएगी तेरी.. मुझे तो ये पता नहीं चलता की ऐसा तो क्या है उस भड़वे मे.. जो हर कोई उससे चुदने को तैयार हो जाता है.. !!"
वैशाली: "यार, जिस तरह तूने उसके लंड का वर्णन किया.. मैं क्या.. कोई भी होता तो उसका मन हो जाता"
कविता: "लंड आखिर लंड ही होता है.. कोई हीरे-मोती नहीं जड़े होते उसमे.. !!"
वैशाली: "पर उसका लंड अलग है ना..!! मेरा बहोत मन कर रहा है यार.. एक बार ऐसे तगड़े मोटे लंड से चुदवाना है मुझे.. पॉर्न मूवीज मे जब उन कल्लुओ के बड़े बड़े लंड देखती हूँ तब कुछ कुछ होने लगता है मुझे.. !! और अगर डलवाने मे बहुत दर्द हुआ तो नहीं करवाऊँगी"
कविता: "अच्छा.. !! और वो क्या तुझे बिना चोदे छोड़ देगा?? एक बार उसका खड़ा हो जाए फिर किसी को नहीं छोड़ता.. मेरी सास के तो आँसू निकलवा दीये थे उसने.. सोच ले.. एक बार उसका खड़ा हो गया फिर तू बच कर भाग नहीं पाएगी"
सुनकर वैशाली सोच मे पड़ गई.. थोड़ी सी घबराहट तो हुई पर तगड़ा लंड लेने की लालसा का आखिर विजय हुआ.. भले ही चुदाई न हो पाए पर एक बार करीब से देखने का.. उसे चूसने का.. हाथ मे पकड़ने का बड़ा मन था वैशाली का.. !!
कविता: "तुझे बहोत खुजली हो तो तू ही फोन करके उसे बुला ले.. मैं फोन नहीं करूंगी.. बुलाना हो तो उसे आधी रात को बुला ले.. आकर एक घंटे मे करके चला जाएगा तो किसी को पता नहीं चलेगा.. पर मुझे डर लग रहा है.. कहीं वो मेरे साथ करने की जिद ना पकड़ ले.. !! उसकी बहोत दिनों से बड़ी गंदी नजर है मेरे ऊपर.. मुझे चोदने के लिए तो उसने मेरी सास को भी पटा लिया था.. मेरे लिए तो वो चीता से उठकर भागता हुआ आएगा.. पर मुझे उसे देखकर ही घिन आती है.. और उसका वो मूसल जैसा लंड..!! बाप रे.. !! अंदर घुसे तो जान ही निकल जाए"
वैशाली: "तू चिंता मत कर.. मैं हूँ ना तेरे साथ.. कुछ नहीं होगा तुझे"
कविता: "ठीक है फिर.. बुला ले उसे.. पर उसका नंबर कहाँ से मिलेगा तुझे?"
वैशाली: "मम्मी के मोबाइल मे तो होगा ही उसका नंबर.. एक काम करते है.. मेरे घर चलते है.. तू मम्मी को बातों मे उलझाए रखना.. तब तक मैं मोबाइल से नंबर निकाल लूँगी.. !!"
कविता: "तू भी यार.. बिल्कुल अपनी मम्मी जैसी ही है.. एक बार किसी चीज को लेकर मन बना लिया.. फिर किसी भी हाल मे तुम उसे पाकर ही रहते हो.. शीला भाभी भी बिल्कुल वैसे ही है"
वैशाली: "भाषण मत दे.. और चल मेरे साथ.. आज ही ग्रांड प्रोग्राम बना देते है"
हाथ पकड़कर वैशाली कविता को अपने घर ले गई.. घर का दरवाजा खुला था और शीला किचन मे बर्तन माँझ रही थी.. शीला का ध्यान नहीं था और वैशाली ने सोफ़े पर पड़े उसके मोबाइल से नंबर निकालकर अपने मोबाइल मे सेव कर लिया..
दोनों चुपके से बाहर निकल रही थी तभी मदन वॉक लेकर वापिस लौट रहा था..
मदन: "वैशाली, कहाँ जा रहे हो तुम दोनों?"
वैशाली: "हम कविता के घर सोने जा रहे है" बिना मदन की तरफ देखे वैशाली कविता को खींचते हुए उसके घर की तरफ चली गई
घर आकर मदन ने शीला से पूछा "वैशाली और कविता उस घर मे सोने क्यों गए है?"
शीला: "वो घर अब भी कविता का है.. बेच नहीं दिया उन्हों ने.. अपने घर से उसे लगाव तो होगा ही.. इसलिए कविता को वहाँ सोना था तो वो वैशाली को भी साथ ले गई.. !!"
मदन: "फिर ठीक है" कहने के बाद मदन चुप हो गया
शीला और मदन उस रात को कड़ाके की ठंड मे.. एक दूसरे के जिस्म की गर्मी महसूस करते हुए.. बाहों मे बाहें डालकर सो गए तब वैशाली के मन मे हवस के सांप लॉट रहे थे.. कविता भी वैशाली की इच्छा पूरी करने मे उसका साथ देने वाली थी
वैशाली ने आज तक केवल पॉर्न फिल्मों मे हबसी आफ्रिकन कल्लुओ के बड़े बड़े लंड देखें थे.. चौड़ी छाती.. कसा हुआ बदन.. और नीचे लटकता काले नाग जैसा लंड.. देखकर ही वैशाली की बुर मे सुरसुरी होने लगती थी.. रसिक के लंड को लेकर वैशाली के दिल मे रोमांच भी हो रहा था और थोड़ा सा डर भी लग रहा था..
वैशाली ने बड़ी ही चालाकी से.. रसिक को फोन कर.. उसे अपने लिए नहीं पर कविता से मिलने बुलाया.. वो सोच रही थी की उसके साथ तो रसिक को कोई खास लगाव था नहीं.. पर कविता का नाम सुनकर वो दौड़ा चला आएगा.. !! कविता को पाने के लिए तो वो एक्स्पाइरी डेट वाली अनुमौसी नाम की दवाई भी पी गया था.. !!
रसिक ने वैशाली से कहा की वो रात बारह बजे के बाद कभी भी आएगा..
बिस्तर पर बैठे हुए कविता ने वो रबर के लंड को अपनी संकरी चूत मे डालने का निरर्थक प्रयत्न किया.. पर इतना दर्द हुआ की उसने वो निकाल लिया.. मन ही मन उसने तय किया था की वो आज वैशाली और रसिक की चुदाई देखकर ही खुश रह लेगी..
कविता ने देखा की वैशाली ने तो बड़ी ही आसानी से वो डिल्डो आधे से ज्यादा अपनी चूत के अंदर फिट कर लिया था.. उस पर से कविता को अंदाजा लग गया की अपनी माँ की तरह वैशाली भी चुदाई की बेहद शौकीन है.. और उसे रसिक का तगड़ा लंड लेने मे थोड़ी कठिनाई तो होगी पर वो उसे ले जरूर लेगी
जैसे जैसे रात का समय बीतता गया.. वैशाली और कविता के दिलों की धड़कन बढ़ती गई.. दोनों ने मिलकर रसिक को घर बुलाने का बहोत बड़ा साहस तो कर लिया था लेकिन अब दोनों की फट रही थी.. कहीं किसी ने रसिक को घर मे घुसते देख लिया तो.. !! वैसे सर्दी का समय था इसलिए राते के बारह बजे के बाद कोई बाहर नहीं होता था.. इसलिए किसी के देख लेने की संभावना बहुत ही कम थी.. फिर भी, डर तो लग ही रहा था.. जो होगा देखा जाएगा.. यह सोचकर दोनों सोने की तैयारी करने लगी
वैशाली: "उसके आने से पहले थोड़ा सो लेते है... फिर तो नींद ही नसीब नहीं होगी"
कविता: "मुझे तो उसके आने के डर से नींद ही नहीं आएगी.. तू सो जा.. तू ने अब तक उसका देखा नहीं है इसलिए तुझे नींद आ रही है.. मेरी तो फट के फूलगोभी हो गई थी.. यार, ऐसी हिम्मत ना की होती तो ही बेहतर होता.. वो कलमुँहा हम दोनों की आज फाड़ देगा.. और हाँ.. तुझे पहले से ही बता देती हूँ.. कुछ भी हो तो जरा सा भी चीखना चिल्लाना मत.. वरना तेरे मम्मी-पापा यहाँ दौड़े चले आएंगे.. और हम दोनों की बैंड बजा देंगे.. मैं तो कहती हूँ, अब भी वक्त है.. केन्सल कर दे.. !!"
वैशाली ने जवाब नहीं दिया.. उसे चुप देखकर कविता को ओर डर लगने लगा.. ये क्या सोच रही होगी?
कविता ने वैशाली को कंधे से पकड़कर हिलाते हुए पूछा "अरे तू कुछ बोल क्यों नहीं रही?"
वैशाली: "तेरी बातें सुनकर अब मुझे भी थोड़ा डर लग रहा है"
कविता का चेहरा देखने लायक हो गया.. वो अब तक वैशाली की हिम्मत के बलबूते पर ही इस साहस मे जुड़ी थी.. अब उसे ही डरते हुए देख, कविता के होश उड़ गए..
कुछ भी गलत करने से फेले जो डर होता है.. वो एक तरह से चेतावनी के स्वरूप ही होता है.. उस डर से आगे बढ़कर ही किसी भी गुनाह को अंजाम दिया जा सकता है.. दोनों एक दूसरे के सामने देख रहे थे.. जो भी निर्णय लेना था.. अगले पाँच या दस मिनट मे ही लेना था..
तभी रसिक का फोन आया.. दोनों जबरदस्त घबरा गई.. और फोन कट कर दिया.. कोई कुछ बोल नहीं रहा था और दोनों की आँखों मे एक ही प्रश्न था.. की अब क्या करें???
रसिक कॉल पर कॉल किए जा रहा था.. और उसके हर कॉल के बाद दोनों की धड़कनें इतनी तेज हो रही थी की लग रहा था की प्रेशर से दिल फट जाएगा..
आखिर ग्यारह बजे.. दोनों भागकर शीला के घर आ गए.. ये कहकर की वहाँ मच्छर बहुत है.. और चुपचाप वैशाली के बेडरूम मे जाकर सो गए.. रसिक की क्या हालत हुई होगी?? उसे बुलाकर ऐसे फोन न उठाने पर वो क्या सोचेगा?? इन सब सवालों का एक ही जवाब था.. बच गए.. !!
डर के मारे वैशाली के साथ साथ कविता ने भी अपना मोबाइल स्विच ऑफ कर दिया.. दोनों ऐसे डर रहे थे की जैसे रसिक उनके मोबाइल से प्रकट होने वाला हो.. !!!